Sunday 31 January 2016

...और अब हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश का सवाल

एक ओर जहां महिलाएं महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में चबूतरे पर जाने के लिए आंदोलन कर रही हैं वहीं अब मुस्लिम महिलाओं ने भी हाजी अली की दरगाह में अनुमति के लिए प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। गुरुवार को महिलाओं के कई समूहों ने इस बाबत मुंबई में विरोध प्रदर्शन किया। विद्रोह प्रदर्शन में हिस्सा ले रहीं इस्लामिक स्टडीज की प्रोफेसर जीनत शौकत अली ने कहा कि महिलाओं पर बंधन कोई धर्म नहीं बल्कि पितृसत्ता लगाती है। मैं इस्लाम की जानकारी रखती हूं और इस्लाम में कहीं यह नहीं लिखा है कि महिलाओं को मजारों पर जाने से रोका जाए। जब इस्लाम ने हमें हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं रखा तो पुरुष हम पर अपनी क्यों चलाएंगेहिन्दुओं और मुस्लिमों दोनों समुदाय में पितृसत्ता कायम है। महिलाओं के साथ भेदभाव इस्लाम की सीख के खिलाफ है। संविधान ने हमें बराबरी का दर्जा व अधिकार दिए हैं और इस्लाम संविधान का पालन करता है। मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए लड़ने वाला संगठन हाजी अली दरगाह के ट्रस्टी के साथ कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। दरगाह के ट्रस्टीज ने ही यहां औरतों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। वहीं हाजी अली दरगाह ट्रस्ट ने इस बारे में सफाई देते हुए कहा है कि चूंकि यह सूफी संत की कब्र है, इसलिए यहां महिलाओं को एंट्री देना गंभीर पाप होगा। ट्रस्ट का कहना है कि इस्लाम के नियमों के मुताबिक महिलाओं को पुरुष संतों के करीब नहीं जाना चाहिए। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के लिए बाम्बे हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की है। मुंबई के वरली क्षेत्र में समुद्र के बीच स्थित मशहूर हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के अधिकार को लेकर महिलाओं का एक समूह 2011 से कानूनी लड़ाई लड़ता आ रहा है। हाजी अली दरगाह न्यास यह कहकर महिलाओं को दरगाह के अंदर प्रवेश नहीं देता कि किसी मुस्लिम संत की दरगाह के निकट महिलाओं का जाना घोर पाप होता है। अब एक बार फिर यह मामला उछला है, ऐसे समय जब हिन्दू महिलाओं का एक समूह महाराष्ट्र के ही शनि देव मंदिर के चबूतरे पर जाने का अधिकार मांग रही हैं। देखें कि मौलवी व दरगाह के अधिकारी इस मसले को कैसे सुलझाते हैं। वैसे चूंकि मामला बाम्बे हाई कोर्ट में भी चल रहा है संभव है कि अदालत कोई फैसला दे। पर इसमें संदेह है कि ऐसे धार्मिक मामलों में अदालत किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करे।

-अनिल नरेन्द्र

प्रश्न शनि शिंगणापुर मंदिर चबूतरे पर महिलाओं के प्रवेश का

भारत की महिलाओं में एक नई ऊर्जा देखने को मिल रही है और अब भारत की महिलाएं पुरुषों से हर क्षेत्र में बराबरी की मांग कर रही हैं। हमारे सामने शनि शिंगणापुर मंदिर के पवित्र चबूतरे पर पूजन कर रही महिलाओं का केस सामने है। महिलाओं का शनि शिंगणापुर के मंदिर के चबूतरे में प्रवेश पर पाबंदी सदियों पुरानी है। हमारे संविधान ने सदियों पहले से हमारे देश में महिलाओं को धर्म और दर्शन में समान अधिकार दिए हैं लेकिन पुजारी इसको मानने को तैयार नहीं हैं। दरअसल गत दिनों भूमाता ब्रिगेड की करीब 400 महिलाओं ने पवित्र चबूतरे पर पूजा करने जाने के लिए पुणे से अहमदनगर के लिए कूच किया था। लेकिन मंदिर से 45 किलोमीटर दूर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। शनि शिंगणापुर मंदिर का संचालन न्यासी बोर्ड करता है। बोर्ड के वकील सायाराम बानकर के मुताबिक मंदिर का संचालन बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट 1950 के नियम 53 के तहत होता है। चूंकि महाराष्ट्र का विधि और न्याय विभाग मुख्यमंत्री फड़नवीस के पास है, ऐसे में अगर वह चाहें तो विशेष एक्ट पास कराकर मंदिर के नियमों को बदल सकते हैं। उधर ज्योतिष व द्वारिका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना है कि शनि पूजा से महिलाओं को कोई लाभ नहीं होने वाला है। शनि शिंगणापुर में दर्शन के लिए महिलाओं के दर्शन के बाबत कहाöमहिलाओं को समाज में समानता का हक मिलना चाहिए लेकिन शनि की पूजा करने से उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने पुणे में बुधवार को आंदोलनकारी महिलाओं से मिलकर उनकी मांगों का समर्थन किया। मुख्यमंत्री की पहल को देखते हुए मंदिर के न्यासी बोर्ड ने आंदोलनकारियों से बातचीत करने का संकेत भी दिया है। आरएसएस के नेता एमजी वैद्य ने भी कहा कि मंदिर में शनि भगवान की पूजा करने से महिलाओं को नहीं रोका जाना चाहिए। हालांकि शिवसेना की महिला शाखा ने मंदिर में महिलाओं के पूजा करने पर परंपरागत पाबंदी का समर्थन किया है। कांग्रेसी नेता संजय निरूपम ने भी महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को गलत बताया। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के पूजा के अधिकार के लिए एक महिला संगठन की पहल की वह सराहना करते हैं। उन्होंने कहा कि सदियों पहले से हमारे देश में महिलाओं को हर क्षेत्र में समान दर्जा मिला हुआ है तो पूजा में क्यों नहीं? अगर यह विवाद जल्द नहीं सुलझता तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और उनकी भाजपा सरकार को इसका हल निकालने हेतु हस्तक्षेप करना पड़ेगा। हम उम्मीद करते हैं कि मसला जल्द सुलट जाएगा।

Saturday 30 January 2016

आखिर हम क्यों नहीं समझते पाकिस्तान की फितरत को?

पाकिस्तान से पता नहीं क्यों भारत के हुक्मरान इस बात की उम्मीद करते हैं कि आतंकवाद के मुद्दे पर वह भारत से सहयोग करेगा? बार-बार पाक की ओर से नकारात्मक व्यवहार ही सामने आता है। हम बार-बार इस बात पर जोर डालते हैं कि पठानकोट-मुंबई हमलों के कसूरवारों पर सख्त कार्रवाई हो और पाकिस्तान हमेशा किसी न किसी बहाने इनको टाल देता है। ताजा उदाहरण है पाकिस्तान की एक अदालत ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मुंबई हमलों के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी और छह अन्य संदिग्धों की आवाज के सैम्पल मांगे गए थे। इसमें 26/11 हमलों की सुनवाई को झटका लगा है। इस्लामाबाद हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि 2008 में हुए मुंबई हमले को लेकर भारतीय खुफिया एजेंसियों ने संदिग्धों और आतंकियों के बीच बातचीत रिकार्ड की थी। इस बातचीत में संदिग्ध हैंडलर आतंकियों को निर्देश दे रहे हैं। सरकारी पक्ष इसकी पुष्टि के लिए संदिग्धों की आवाज का सैम्पल लेना चाहता था ताकि इसे कोर्ट में बतौर सबूत पेश किया जा सके। कोर्ट का तर्प था कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जो आरोपियों के आवाज के सैम्पल लेने की अनुमति दे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पिछले महीने पाकिस्तान गई थीं, तब पाकिस्तान ने आश्वासन दिया था कि 26/11 के मुंबई अटैक के मुकदमे का नतीजा जल्द निकले इसके लिए कदम उठाए जा रहे हैं। भारत कदम उठाने की लगातार मांग करता रहा है। ताजा खबर राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र से आई है। पाकिस्तान ने अब एक नया सिलसिला बैलूनों का शुरू किया है। राजस्थान के बाड़मेर में जिस बैलून को भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने मंगलवार को मार गिराया था, वह पाकिस्तान से आया था। अमेरिका में बने तीन मीटर परिधि वाले इस बैलून पर हैप्पी बर्थडे लिखा था, जो 25 हजार फुट की ऊंचाई पर उड़ रहा था। मुमकिन है कि पाकिस्तान ने ट्रायल के रूप में यह बैलून हमले की योजना बनाई हो और भारत को चकमा देने हेतु यह बर्थडे बैलून भेजा हो। भारत पठानकोट हमले के मास्टर माइंड जैश--मोहम्मद के मुखिया मौलाना मसूद अजहर और 26/11 के मास्टर माइंड जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद पर सख्त कार्रवाई की मांग करता रहा है। कार्रवाई करना तो दूर रहा हाफिज पाक में फलफूल रहे हैं और खुलेआम भारत को धमका रहे हैं। लाहौर में जमात-उद-दावा के मुख्यालय में कुछ दिन पहले एक सभा में हाफिज सईद ने भारत पर परमाणु हमले तक की धमकी दे दी। हम दोस्ती का हाथ जब भी बढ़ाते हैं पाकिस्तान के यह नॉन स्टेट एक्टर हमें ताजा हमला करके करारा जवाब देते हैं। फिर भी हम न इन्हें समझते हैं और न ही पाकिस्तान की फितरत को।

-अनिल नरेन्द्र

कूड़े का पहाड़ बनती जा रही है हमारी दिल्ली

राजधानी दिल्ली में केजरीवाल सरकार और दिल्ली नगर निगम में रस्साकशी के बीच दिल्ली कूड़े का पहाड़ बनती जा रही है। बृहस्पतिवार को करीब डेढ़ लाख सफाई कर्मचारी हड़ताल पर रहे। इससे न तो स्कूलों में पढ़ाई हो पा रही है और न ही सड़कों पर सफाई। अब एमसीडी कर्मियों ने दिल्ली सरकार के मंत्रियों के घरों के सामने कूड़ा डालने की कवायद शुरू कर दी है। इसकी शुरुआत बृहस्पतिवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के कार्यालय के बाहर कूड़ा फेंक कर शुरू की। मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल हाय-हाय के नारे व बच्चे मर गए हाय-हाय के नारे भी लगाए। मोदी-भाजपा हाय-हाय के भी नारे लगे। सफाई कर्मचारी, नर्स व टीचर वेतन न मिलने पर हड़ताल पर हैं। बढ़ती गंदगी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को बेहद कड़ा रुख अख्तियार करते हुए तीनों नगर निगमों को फटकार लगाकर पूछा कि क्या वे दिल्ली को कूड़े का पहाड़ बनाना चाहते हैं? हाई कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी दिल्ली में कूड़ा निपटाने के लिए लैंडफिल साइटों की अव्यवस्था पर की। कोर्ट ने कहा कि तय मानकों के अनुसार लैंडफिल साइटों की अधिकतम ऊंचाई 70 फुट से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि मौजूदा समय में जहां कूड़ा एकत्र किया जा रहा है उन जगहों की ऊंचाई 150 से 170 फुट तक पहुंच गई है। वेतन नहीं मिलने से तीनों नगर निगमों के सफाई कर्मचारियों की हड़ताल पर भी हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और दिल्ली सरकार के अलावा तीनों नगर निगम को भी नोटिस जारी किया। सफाई कर्मचारियों की हड़ताल पर कोर्ट ने पूछा कि दिल्ली सरकार इस बात का जवाब दे कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत केंद्र सरकार से मिला पैसा कहां गया? हाई कोर्ट ने कहा कि स्वच्छता के नाम पर जब लोगों से कर वसूला जा रहा है तो दिल्ली को साफ क्यों नहीं रखा जा रहा है। कोर्ट ने निगम के कर्मियों को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि सफाई नहीं होने पर कोई बहाना नहीं चलेगा। दरअसल दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार व केंद्र सरकार की आपसी लड़ाई का खामियाजा दिल्लीवासी भुगत रहे हैं। सफाई कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें वेतन का भुगतान महीने की पहली तारीख को हो। 2003 से एरियर नहीं दिया गया है उसका तुरन्त भुगतान हो। आर्थिक बदहाली को दूर करने के लिए तीनों नगर निगमों को एक किया जाए। दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के टकराव में पिछले चार माह से वेतन के लिए बुरी तरह पिस रहे निगम कर्मियों ने अब प्रशासन से आर-पार की लड़ाई करने का फैसला कर लिया है। उधर दिल्ली सरकार दावा कर रही है कि एमसीडी को पूरी राशि दी जा चुकी है। अपना वित्तीय लेखाजोखा नहीं दे रहे। तीनों निगमों का 1576 करोड़ रुपए डीडीए पर सम्पत्ति-कर के रूप में बकाया है, इसे क्यों नहीं वसूला जा रहा? दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद अरविंद केजरीवाल सरकार निगमों को तीसरे वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार 3000 करोड़ रुपए का भुगतान क्यों नहीं कर रही है? प्रदेश कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि दिल्ली सरकार अपने प्रचार-प्रसार और विधायकों के वेतन बढ़ाने पर तो खर्च कर रही है लेकिन निगमों को फंड नहीं दे रही है। इसी तरह से केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान तथा योग दिवस पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए परन्तु निगमों को वित्तीय संकट से उबारने में कोई ध्यान नहीं दिया। दिल्ली नगर निगम के आर्थिक संकट से लेकर वेतन संकट का मूल कारण निगम का बंटवारा होना था। सरकार से आवंटन व आमदनी तो ज्यों की त्यों रही पर निगम के बंटवारे के बाद एक एमसीडी के 105 विभाग हो गए। एक निगम में 30 कमेटियों की जगह 90 कमेटियां बन गईं। एमसीडी के तीन कमिश्नर, एक दर्जन से अधिक एडिशनल कमिश्नर, तीन महापौर, तीन उपमहापौर, तीन नेता सदन, तीन स्थायी कमेटी, तीन कमेटी के उपाध्यक्ष के साथ 272 वार्डों व निगम के पार्षद भी बन गए। तीनों ही एमसीडी में 75 विभागों के विभागाध्यक्षों से लेकर अधिकारी व कर्मचारियों के वेतन की बड़ी समस्या हो गई। निगम के बंटवारे के बाद प्रतिमाह 500 करोड़ रुपए खर्च होने लगा। यूनिफाइड एमसीडी का बजट 6699 करोड़ था वहीं तीनों को अपना बढ़ा खर्च चलाने के लिए वर्ष 2016-17 में प्रस्तावित बजट 14347.31 करोड़ रखना पड़ा है। समझ नहीं आता कि इस पूरे मसले को कैसे सुलझाया जाए?

Friday 29 January 2016

ओबामा की पाकिस्तान को खरी-खरी

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बार फिर आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकी संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई कर सकता है और ऐसा करना चाहिए। एक इंटरव्यू में ओबामा ने कहा कि पाकिस्तान को अपनी धरती से चल रहे आतंकी नेटवर्प को अवैध घोषित करने के साथ ही उनको पूरी तरह से नष्ट करना चाहिए। पठानकोट हमले के बाद जहां राष्ट्रपति ओबामा की सलाह व चेतावनी का सवाल है भारत के लिए स्वागतमय है। ओबामा ने यह ठीक कहा कि पाकिस्तान के पास दुनिया को यह दिखाने का मौका है कि वह आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर गंभीर है। पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले को भारत की ओर से लंबे समय से झेले जा रहे अक्षम्य आतंकवाद की एक और मिसाल करार देते हुए ओबामा ने पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने के लिए पीएम मोदी की सराहना भी की। जैसा मैंने कहा कि ओबामा ने पाकिस्तान को नसीहत के साथ हिदायत देते हुए जो कहा उसे अपने यहां हर तरह के आतंकी नेटवर्प को ध्वस्त करना चाहिए वह स्वागतयोग्य है, लेकिन तथ्य यह भी है कि अमेरिका दोहरी बातें करता है और उस पर किसी प्रकार का यकीन करना मुश्किल हो जाता है। एक तरफ आलोचना करता है दूसरी तरफ पाकिस्तान को एफ-16 विमान देने की बात होती है, यह जानते हुए भी कि यह भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने हैं। अरबों डॉलरों की सहायता करता है ताकि पाकिस्तान में यह जेहादी संगठन और मजबूत हों। अमेरिका की मजबूरी भी हम समझ सकते हैं। उन्हें हर हालत में अफगानिस्तान से भागना है और ऐसा करने के लिए उन्हें पाकिस्तानी मदद की सख्त जरूरत है। अमेरिका एक ओर आतंकवाद के खिलाफ अभियान का नेतृत्व भी कर रहा है और दूसरी ओर इन देशों के प्रति यथोचित कार्रवाई करने से भी बच रहा है जो इस या उस बहाने आतंकवाद का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन करने में लगे हैं। अगर हम राष्ट्रपति ओबामा की टिप्पणी भारत आए गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान को भी जोड़ लें जिसमें उन्होंने पठानकोट हमले के सन्दर्भ में पाकिस्तान से जवाब-तलब करने की हमारी नीति को सही ठहराया है, तो इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि दुनिया के बड़े देश हमारे पड़ोसी को आतंकवाद का प्रायोजक मानते हैं। यह निराशाजनक है कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में हैं तब भी वह पाकिस्तान के मामले में दोहरी बातें करके भारत को कोरी दिलासा दिलाने का काम कर रहे हैं। उचित तो यह होगा कि पाक के सन्दर्भ में ओबामा अपनी कथनी और करनी एक करें ताकि आतंक से सही ढंग से लड़ा जा सके।

-अनिल नरेन्द्र

फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की सफल भारत यात्रा

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की तीन दिवसीय भारत यात्रा सफल रही। गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि ने जहां गणतंत्र दिवस की परेड का लुत्फ उठाया वहीं उन्हें भारत की क्षमताओं का भी अनुमान लगा। पेरिस हमले के बाद ओलांद की इस यात्रा का विशेष महत्व था। इस बार तो बाकायदा फ्रांस की एक सैनिक टुकड़ी ने भी राजपथ पर परेड की और फ्रैंच बैंड ने भी परेड में हिस्सा लिया। फ्रांस के राष्ट्रपति की यह यात्रा कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रही। फ्रांस्वा ओलांद ने आतंकवाद के मसले पर मोदी सरकार के रुख का पुरजोर समर्थन किया। इसी माह के शुरू में पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े होने संबंधी एक प्रश्न के जवाब में ओलांद ने कहा कि फ्रांस पठानकोट हमले की कड़े शब्दों में निन्दा करता है। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि मुजरिमों को कठघरे में खड़ा करने के लिए भारत की ओर से उठाए गए कदम पूरी तरह तर्पसंगत हैं। उन्होंने कहा कि भारत और फ्रांस पर एक ही तरह का खतरा है। हम पर हत्यारे हमला करते हैं, लेकिन वे ऐसे कृत्य के लिए धार्मिक आधार का बहाना करते हैं। उनका वास्तविक उद्देश्य घृणा फैलाना है। ओलांद ने कहा कि उनकी यात्रा के दो मकसद हैं। फ्रांस 1998 में भारत के साथ अपनी साझेदारी में बदलाव चाहता था मगर यह अब संभव हो पाया है। दोनों बड़े लोकतंत्र हैं। इसलिए साझेदारी का महत्व समझते हैं। दोनों देश ऊर्जा में दुनिया में शीर्ष स्थान पर हो सकते हैं। भारत अपनी ऊर्जा की 40 फीसदी जरूरतें अक्षय ऊर्जा से पूरी करे। फ्रांस इस क्षेत्र में अपनी टेक्नोलॉजी भारत से बांटना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहाöमैं एक साल में पांच बार ओलांद से मिला हूं और अलग-अलग मंच पर हुई इन मुलाकातों में कई मुद्दों पर बात हुई। हमारी 125 करोड़ आबादी है। 2022 तक 50 लाख गरीब लोगों को घर देना है। इन कार्यों में फ्रांस हमारी बड़ी सहायता कर सकता है क्योंकि वह टेक्नोलॉजी में माहिर है। भारत के उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित भारत-फ्रांस व्यापार सत्र में फ्रांस के वित्त एवं  लोक लेखा मंत्री माइकल सापिन ने कहा कि फ्रांसीसी कंपनियों ने भारत में अरबों डॉलर का निवेश किया है। हमें उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में ये कंपनियां 10 अरब डॉलर से अधिक निवेश करेंगी। सापिन ने कहा कि भारत में 20 अरब डॉलर के निवेश के साथ फ्रांस तीसरा बड़ा विदेशी निवेशक बन गया है। यहां 400 से अधिक फ्रांसीसी कंपनियां काम कर रही हैं जिनका एकीकृत कारोबार 20 अरब डॉलर से अधिक है। एक अत्यंत  महत्वपूर्ण मुद्दा था फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमानों का। यह खुशी की बात है कि 25 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद के बीच कीमत को छोड़कर विमानों की खरीद पर सहमति बन गई। अभी कीमतों पर थोड़ा मतभेद जरूर है। सरकारी सूत्रों के अनुसार संप्रग काल के टेंडर के अनुसार 36 राफेल विमानों की कीमत करीब 66 हजार करोड़ होती है। इसमें मूल्य वृद्धि और डॉलर की दर को ध्यान में रखा गया है। भारत की मांग पर विमान में बदलाव पर हुए खर्च भी इसमें शामिल है। भारत का प्रयास है कि कीमत घटाकर करीब 59 हजार करोड़ रुपए की जाए। इस मामले में एक अन्य मुद्दा अग्रिम भुगतान का भी है। सूत्रों के मुताबिक कम से कम 50 फीसदी अग्रिम भुगतान देना होगा। इसमें 15 फीसद तुरन्त भुगतान करना होगा। शुरू में फ्रांस कुछ शर्तों को मानने को राजी नहीं था पर प्रधानमंत्री मोदी ने काफी हद तक रुकावटें दूर कर ली हैं। कुल मिलाकर फ्रांसीसी राष्ट्रपति की तीन दिवसीय भारत यात्रा सफल ही रही।

Thursday 28 January 2016

फाइलों के सार्वजनिक होने पर भी नहीं सुलझा नेताजी का अंत

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 119वीं जयंती पर उनसे जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों को शनिवार पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक कर दिया। यह कदम स्वागत योग्य है। ऐसी और भी फाइलें हैं जिनमें से 25 फाइलें हर महीने राष्ट्रीय अfिभलेखागार डिजिटल रूप में जारी करेगा। इन फाइलों के सार्वजनिक होने के बावजूद नेताजी की मौत के रहस्य से पूरा पर्दा नहीं उठ सका। कहा तो यही जा रहा है कि 18 अगस्त 1945 ताईपे (ताइवान) में जापान की सेना के एक बाम्बर विमान साइगोन (वियतनाम) एयर स्ट्रिप से उड़ान भरने के 20 मिनट बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उसमें सवार थे। केंद्र सरकार ने उक्त घटना के लगभग 70 वर्षें बाद नेताजी से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजनिक की हैं, इन फाइलों के सामने आने से अब ज्यादा शक नहीं रह गया कि आजादी के लगभग 40 वर्षों तक कांग्रेस की विfिभन्न सरकारों ने नेताजी से जुड़े मामले को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सवाल यह है कि इन फाइलों को सार्वजनिक न करके इतने वर्षें तक रहस्य से पर्दा न उठने देने की जवाबदेही किसकी है? आखिर अपने विराट महानायक के बारे में सच कौन-सा देश नहीं जानना चाहेगा? संभव है इस गोपनीयता और नेताजी के परिवार पर खुफिया नजर रखने से भी नेताजी के बारे में रहस्य को विस्तार देने में मदद मिली है। उनके बारे में ये सच्चाइयां पहले भी बाहर आ सकती थीं पर मोदी सरकार ने इन्हें सार्वजनिक करने का साहसी फैसला किया। पर हम अब भी उम्मीद करते हैं कि नेताजी के रहस्यमय तरीके से लापता होने की गुत्थी सुलझाने में कुछ तो मदद मिलेगी ही। हालांकि सरकार के इस कदम के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में मई के आसपास विधानसभा चुनाव होने हैं। बंगाल में नेताजी का दर्जा युग पुरुष जैसा है। पिछले साल सितम्बर में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक कर मास्टर स्ट्रोक खेला था। तब अक्टूबर में मोदी ने 100 फाइलों को सार्वजनिक करने का फैसला किया था, माना जा रहा है कि शनिवार को मोदी ने फाइलें आम करके एक तरह से ममता को जवाब देने की कोशिश की है। इस मामले को लेकर सरकार ने तीन जांच आयोग बनाए थे। इनमें से दो का मानना था कि प्लेन कैश में ही नेताजी का निधन हुआ था जबकि तीसरे मुखर्जी आयोग का कहना था कि नेताजी विमान हादसे के वक्त भी जीवित थे। इस बारे में नेताजी के परिजनों की राय भी अलग-अलग है।  जर्मनी में रहने वाली नेताजी की बेटी अनीता बोस विमान हादसे को सच मानती थीं जबकि नेताजी के पौत्र चंद्र बोस ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि एमिली (नेताजी की पत्नी) को कभी इस झूठी कहानी में यकीन नहीं रहा। क्या नेताजी उर्फ गुमनामी बाबा रूस चले गए थे? 18 अगस्त 1945 को ताइपे में हुए विमान हादसे में नेताजी बुरी तरह जख्मी हो गए थे और अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया था। एक दूसरी थ्योरी यह है कि देश की आजादी की लड़ाई जारी रखने के लिए नेताजी (पूर्व सोवियत संघ) रूस चले गए थे। जहां वहां बाद में उनकी हत्या कर दी गई। तीसरी थ्योरी नेताजी विदेश से गुपचुप भारत लौट आए और उत्तर पदेश के फैजाबाद में 1985 तक गुमनामी बाबा बनकर रहे। हजारों पन्नों के इन दस्तावेजों की पड़ताल में वक्त लगेगा पर नेताजी की मृत्यु का कfिथत रहस्य सुलझने की जो उम्मीद की जा रही थी वह शायद अब भी पूरी न हो। नेताजी के अंत का रहस्य बरकरार है।

अनिल नरेंद्र

कांटों भरी राह है भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की

पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भरोसेमंद अमित शाह को रविवार को दोबारा भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। उनका निर्वाचन जैसी उम्मीद थी निर्विरोध हुआ। हालांकि अमित शाह के मुकाबले अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए किसी और नेता ने नामांकन पत्र तो दाखिल नहीं किया लेकिन शाह की कार्यशैली से पहले ही नाखुश भाजपा के बुजुर्ग नेताओं ने उनके निर्वाचन कार्यकम का बहिष्कार कर अपना विरोध एक तरह से जता ही दिया। शाह को दोबारा बीजेपी की कमान देने के पीछे क्या उनकी काबिलियत थी या फिर नरेन्द्र मोदी की निकटता? हालांकि मोदी-शाह खेमे का मानना है कि शाह के राजनीतिक कौशल और उनकी संगठनात्मक विशेषज्ञता की बदौलत ही उन्हें अध्यक्ष पद की कमान मिली। अमित शाह मई 2014 में उस समय भाजपा अध्यक्ष बने थे जब तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह सरकार में शामिल हो गए थे। 51 वर्षीय शाह का ताजा कार्यकाल 3 वर्ष का होगा। भले ही नरेन्द्र मोदी के भरोसे की बदौलत बीजेपी की कमान एक बार फिर मिली हो लेकिन उनके लिए भविष्य की राह न केवल चुनौतीपूर्ण है बल्कि आसान नहीं है। इसकी वजह यह भी है कि शाह और मोदी सरकार दोनों की परफॉरमेंस का असर पार्टी के भविष्य पर सीधा पड़ेगा। इस साल जिन पांच राज्यों और केंद्र शासित पदेश में चुनाव होने हैं, उनमें असम को छोड़कर बाकी राज्यों में भाजपा को ज्यादा बड़ी उम्मीदें नहीं हैं। ऐसे में शाह के लिए पहली चुनौती असम की है, जहां से भाजपा नेताओं ने उम्मीदें बांध रखी हैं और लगातार दावे किए जा रहे हैं। अगले साल भी भाजपा की राह आसान नहीं होने वाली क्योंकि अगले साल 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सबसे बड़ी चुनौती अगले साल होने वाले उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव की होगी। शाह को भाजपा के सर्वोच्य पद पर लाने व उनकी पबंधकीय क्षमता पर पहली मुहर उत्तर पदेश ने ही बीते साल लोकसभा चुनाव में लगाई थी। अब शाह पर उत्तर पदेश को लेकर ज्यादा दबाव रहेगा क्योंकि दिल्ली व बिहार के नतीजों ने विरोधियों को शाह की रणनीति व चुनाव पबंधन पर सवाल खड़े करने का मौका दिया है। अभी तक भाजपा केंद्र में सरकार बनने की खुशी व नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत लोकपियता का फायदा उठाती रही है। पर जहां एक तरफ मोदी की लोकपियता का ग्राफ गिर गया है वहीं सरकार की कारगुजारी पर भी पश्न चिन्ह लग रहे हैं। केंद्र सरकार लगातार नई योजनाओं की घोषणा कर रही है। विकास के वादों की गूंज है। पधानमंत्री विदेश यात्राओं के जरिए रोज नई दोस्ती के समीकरण रच रहे हैं मगर जमीनी हकीकत यह है कि आम लोगों में सरकार के कामकाज को लेकर उत्साह नहीं है। अच्छे दिन आने की उम्मीद धूमिल पड़ गई हैं। इस साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भाजपा की ताकत सिर्प अपने दम खम पर मुकाबले में रहने की नहीं लगती। शाह के सामने एक चुनौती यह भी होगी ऐसे राज्यों में सहयोगियों की तलाश करने की। करीब साल भर बाद उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव होगा शाह की अग्निपरीक्षा। उसी से अगले लोकसभा चुनाव के रुझान भी तय होंगे। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक स्ंाघ में समन्वय बनाए रखना भी पार्टी और सरकार के लिए जरूरी होगा। पार्टी के अंदर भी असंतोष है। भाजपा पर जब कभी संघ हावी होता है तो कुछ नेताओं व कार्यकर्ताओं में निरंकुश व्यवहार हमें हाल देखने को मिला। जिस नेता के मुंह में जो कुछ आता है बोल देता है चाहे उसका दुष्परिणाम सरकार व पार्टी के लिए कुछ भी हो। अगर इस पर नियंत्रण नहीं लगा तो पार्टी और सरकार दोनें मुश्किल में आती रहेंगी। दिल्ली व बिहार की सबसे करारी हार के बाद भी अमित शाह को अध्यक्ष पद पर बरकरार रखने का फैसला किया गया है क्योंकि शाह पीएम के सबसे विश्वस्त हैं और संघ नहीं चाहता कि अध्यक्ष बदलने के बाद सरकार व संगठन में कोई अंतर दिखे। अमित शाह को बधाई।

Tuesday 26 January 2016

ओम श्री हनुमंत: नम: जय श्रीराम

हमारे शास्त्राsं में लिखा हुआ है कि इस युग में सबसे ज्यादा पूजा हनुमान जी और माता की होगी। इस सदी के आरंभ से साईं बाबा की भी पूजा आरंभ हो गई है। हनुमान जी और माता के भक्त सारी दुनिया में फैले हुए हैं। इसलिए हमें ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ जब अखबारों में छपा कि हनुमान जी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी ताकत देते हैं। वैसे यह हैरत में डालने वाली बात है कि हिन्दुओं के आराध्य हनुमान दुनिया के सबसे शक्तिशाली पुरुष अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी प्रेरणा देते हैं। भगवान हनुमान की छोटी-सी मूर्ति उन चुनिन्दा चीजों में शामिल है, जिन्हें ओबामा हमेशा अपनी जेब में रखते हैं। वो जब भी थका हुआ या हतोत्साहित महसूस करते हैं उन्हें हनुमान जी से प्रेरणा मिलती है। बराक ओबामा ने वीडियो ब्लॉगिंग वेबसाइट यूट्यूब को दिए एक साक्षात्कार में यह जानकारी दी। यह साक्षात्कार अमेरिका में उनके कम उम्र समर्थकों व नागरिकों के लिए यूट्यूब ने जारी किया है। बताया गया है कि हनुमान जी की लघु प्रतिमा को वह हमेशा अपनी जेब में रखते हैं। जब वह प्रेरणा लेने की जरूरत महसूस करते हैं, तब मूर्ति को निकालकर श्रद्धाभाव से उसे देखते हैं। ऐसी वस्तुएं उनके लिए व्यक्तिगत महत्व की हैं। इनमें वह माला भी शामिल है जो व्हाइट हाउस में हुई मुलाकात में पोप फ्रांसिस ने उन्हें दी थी। इसी प्रकार से भगवान बुद्ध की एक मूर्ति एक संत ने दी थी। इथोपिया दौरे के समय उपहार में मिला पवित्र क्रॉस भी इन्हीं खास वस्तुओं में से एक है। ओबामा ने कहा कि वे इन सभी वस्तुओं को हमेशा अपने साथ रखते हैं। उन्होंने यह भी रहस्योद्घाटन किया कि जब वे थके हुए होते हैं, आत्मविश्वास में कमी महसूस करते हैं तब हाथ स्वत पॉकेट की तरफ चला जाता है। इसके बाद वह खुद को पहले की तरह आत्मविश्वास से भरा हुआ और काम के लिए ऊर्जावान पाते हैं। ओबामा ने कहाöमैं हमेशा इन्हें अपने पास रखता हूं। मैं इतना अंधविश्वासी नहीं हूं, इसलिए ऐसा नहीं है कि मुझे लगे कि जरूरी है कि मैं उन्हें अपने पास रखूं ही रखूं। लेकिन उन्होंने कहा कि ये चीजें उन्हें राष्ट्रपति पद तक पहुंचाने में उनके लंबे सफर की याद दिलाती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहाöअगर मुझे थकावट हो या आत्मविश्वास की कमी लगे तो मैं अपनी जेब में हाथ डालकर कह सकता हूं कि मैं इस चीज से पार पा लूंगा क्योंकि किसी ने मुझे इन मुद्दों पर काम करने का विशेषाधिकार दिया है, जो उन्हें  प्रभावित करने वाला है। बता दें कि बराक ओबामा के पिता मूल रूप से केन्या के मुसलमान थे। उनकी मां अमेरिका में ईसाई समुदाय से थीं। ओबामा के बचपन का कुछ हिस्सा इंडोनेशिया में भी बीता है जहां दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं। ओम श्री हनुमंत नम जय श्रीराम।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली सरकार की घोषणा का स्वागत है

स्वास्थ्य का एक ऐसा क्षेत्र है जो सबको सीधा प्रभावित करता है। हर नागरिक को अच्छी स्वास्थ्य सेवा मिले, सस्ती दवाएं मिलें, यह हर सरकार का कर्तव्य भी है। यह खुशी की बात है कि दिल्ली सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाया है। गरीबों को सरकारी अस्पतालों में सस्ती दवाएं मिलें, डाक्टर जो दवा चाहे वह उपलब्ध हो यह होनी चाहिए सरकार की प्राथमिकता। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में एक फरवरी से सभी दवाएं मुफ्त मिलेंगी। अभी जो डाक्टर लिखते हैं, उसके न मिलने की शिकायतें अधिक आती हैं। एक फरवरी से डाक्टर जो दवा लिखेंगे वह अस्पताल में होंगी। अस्पतालों में जरूरत की कुछ अन्य चीजें भी फ्री होंगी। डाक्टर मरीजों से दस्ताने, पट्टी या अन्य चीजें नहीं मंगाएंगे। केजरीवाल ने सरकारी अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षक और चीफ मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) के साथ बैठक के बाद संवाददाताओं से कहाöअस्पताल अच्छे हैं, डाक्टर व कर्मचारी अच्छे हैं। सिस्टम खराब है जिसे ठीक कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक फरवरी को एक हेल्पलाइन नम्बर जारी करेंगे। अगर दवाई नहीं मिली तो फोटो खींचकर उस नम्बर पर डालने के लिए लोगों से कहा जाएगा। फोटो डालने पर उसे वहीं दवा उपलब्ध कराई जाएगी। बाहरी रिंग रोड पर मंगोलपुरी से मधुबन चौक के बीच एलिवेटिड रोड का उद्घाटन करते हुए कुछ दिन पहले अरविंद केजरीवाल ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में एक फरवरी से जनता को सिटी स्कैन और एमआरआई का शुल्क नहीं देना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक निर्माण विभाग ने तीन प्रोजेक्ट को समय से पहले और स्वीकृत बजट से भी कम में पूरा किया है। इससे लगभग 350 करोड़ रुपए की बचत हुई है। इस राशि को जनता की भलाई में लगाया जाएगा। दिल्ली सरकार को प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करना है। सरकारी प्रोजेक्ट में बचने वाली राशि का उपयोग इन सुविधाओं के लिए किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) का नाम आते ही उसे भ्रष्टाचार के अड्डे के रूप में देखा जाता है। दिल्ली के लोक निर्माण विभाग ने इस धारणा को बदल दिया है। 300 करोड़ रुपए में हुआ निर्माण मंगोलपुरी से मधुबन चौक तक लगभग 3.9 किलोमीटर सिग्नल फ्री कॉरिडोर बनाने के लिए 423 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत हुआ था। जिसे पीडब्ल्यूडी विभाग ने 300 करोड़ में ही पूरा कर दिया। इससे लगभग 123 करोड़ रुपए की बचत हुई। हम दिल्ली सरकार द्वारा एक फरवरी से सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाएं व अन्य सुविधाओं की घोषणा का स्वागत करते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें हों सभी को ध्यान देना चाहिए।

Friday 22 January 2016

Once again Children's carnage in Pakistan

Undoubtedly the time passed a year ahead but the terrorists once again slaughtered students in Pakistan. The terrorists attacked an army school in Peshawar in December 2014. 140 innocents lost their lives in this attack.

The age of the perpetrators of the attack was not much.  The terrorists were in the age group of 18 to 25 years. It is unfortunate these terrorists resorting to the violence targeted the innocent children for the sake of their politics. What did these innocents do to them? And they have faith in the same Islam under the pretext of protecting which you do the bloodshed. If an assessment is made, atleast 650 schools-colleges in Pakistan have fallen prey to the attacks of the terrorists. As per Global Terrorism Maryland America studies, amongst the attacks on educational institutions in Pakistan between 1970 – 2014 the most frightening was the attack on Army Public School on 14th December 2014 in which 140 children were killed.

The time passed a year ahead and the terrorists again slaughtered the students in Pakistan. The prestigious Bacha Khan University became the target this time. The terrorists fired indiscriminately here on Wednesday killing 25 people. Most of them are students. About 50 persons have been injured in the attack. The four terrorists involved in the attack were killed. Tehrik-e-Taliban Pakistan (TPP) has claimed the responsibility for this attack. This outfit had also killed 132 students in Army School in Peshawar on 31st December 2014. Entering the university the terrorists started firing on students and teachers. As per media reports about 60-70 students were hit on the head but it had not been confirmed. At the time of the incident, three thousand students and 600 guests were present in the university.

There are some similarities in this attack on Bacha Khan University at Charsadda in Pak and the attack on Pathankot Airbase in India. Terrorists were in the army uniform in both attacks. The assailants were of the age between 20-25 years in both attacks. The assailants wore suicide jacket in both attacks. It’s by chance that in both attacks the security forces killed the assailants and they couldn’t explode themselves. Tehrik-e-Taliban Pakistan’s commander Umar Mansoor has claimed responsibility for the attack. Mansoor is also called a child killer. 13 outfits had formed Tehrik-e-Taliban. It has also an aim to enforce Sharia law in Pakistan.

At the time of the attack 600 outsiders had also came to attend the Mushaira being organized on the occasion of anniversary of the Bacha Khan, the founder of the Bacha Khan University in Charsadda district 50 kms away from Peshawar. The attack has exposed the success of Pakistan army’s campaign Zarb-e-Azb. The purpose of this campaign started from the areas adjoining Pak-Afghan border in June 2014 was to finish other terrorist outfits including Tehrik-e-Taliban. Before this attack the Pak army had claimed in its website that it has hit the backbone of all the terrorist outfits including Tehrik-e-Taliban on Pak-Afghan border.

Besides their structure, sleeper cell has almost been demolished. It is clear from the terrorist attack on Bacha Khan University one year after the attack on Army Public School in Peshawar that Pak army has failed in its mission. It’s clear from the attack occurred 18 months after the operation that the terrorists’ back has not broken. It also reveals the difference between the response time of Indian security agencies and Pak security agencies.  Pathankot attack was also of such kind and our brave soldiers not only killed all the assailants but the number of casualties in the attack was also less than 10. In this attack at Peshawar officially 25 persons have died and more than 50 persons are injured. We are also surprised over this attack.

It’s the right time Pakistan should seek help of India to finish these terrorists. Terrorism has neither any religion nor any creed or caste. This attack is also a clear message for those forces (Pakistan) that differ in good and bad terrorism. Terrorism has housed in Pakistan, the fruits of the seed sown by the Pak army and ISI have now come to them. This is the appropriate time that Pakistan must eliminate these jehadi outfits from its soil.

Pakistan is also in a critical stage as the US’s Afghanistan policy has created a crisis for South Asia particularly for Pakistan and India. Despite the 13 year long efforts the US couldn’t break the back of Taliban and is now engaged in compromising to get rid of them. Taking this advantage, these terrorists have become a part of the social life there by reorganizing them and with the help of Pak army and ISI. Stating the Pak government (Nawaz Sharief) as pro-US they’ve started a war against it. As we condole at this moment of sorrow for Pakistan, it should atleast understand it that it’s benefit lies in eliminating the terrorism with the help of India.

- Anil Narendra

 

एक बार फिर बच्चों का पाक में कत्लेआम

वक्त तो बेशक एक साल और आगे बढ़ा पर पाकिस्तान में आतंकियों ने एक बार फिर छात्रों का कत्लेआम किया। दिसम्बर 2014 में आतंकियों ने पेशावर के एक आर्मी स्कूल में अटैक किया था। इस हमले में 140 मासूमों की जान गई थी। उस हमले को अंजाम देने वालों की उम्र भी ज्यादा नहीं थी। आतंकी 18 साल से 25 साल के उम्र के थे। यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि हिंसा का सहारा लेने वाले ये आतंकी अपनी सियासत की खातिर मासूम बच्चों को निशाना बनाते हैं। इन मासूमों ने इनका भला क्या बिगाड़ा है? और फिर यह भी उसी इस्लाम को मानते हैं जिसकी रक्षा करने के बहाने आप यह खूनखराबा करते हैं। देखा जाए तो पाकिस्तान में सबसे ज्यादा 850 स्कूल-कॉलेज दहशतगर्दों के हमलों का शिकार हुए हैं। ग्लोबल टेरेरिज्म मेरीलैंड अमेरिका के अध्ययन के मुताबिक 1970 से 2014 के बीच पाकिस्तान में शिक्षण संस्थानों पर हमलों में सबसे भयावह तो 14 दिसम्बर 2014 को आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुआ हमला था जिसमें 140 बच्चों की मौत हुई थी। समय एक साल आगे बढ़ा और पाक में आतंकियों ने फिर छात्रों का कत्लेआम किया। इस बार निशाना पेशावर का प्रतिष्ठित बाचा खान विश्वविद्यालय बना। आतंकियों ने बुधवार को अंधाधुंध गोलीबारी कर यहां 25 लोगों को मार डाला। इनमें ज्यादातर छात्र हैं। हमले में करीब 50 लोग घायल हुए हैं। हमले में शामिल चारों आतंकी मारे गए। इस हमले की भी जिम्मेदारी तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली है। इसी संगठन ने 31 दिसम्बर 2014 को पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 बच्चों की हत्या की थी। आतंकियों ने विश्वविद्यालय में घुसते ही छात्रों और टीचरों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार करीब 60-70 बच्चों के सिर में गोली मारी गई। पर इसकी अधिकृत पुष्टि नहीं हुई। घटना के वक्त विश्वविद्यालय में तीन हजार छात्र और 600 मेहमान मौजूद थे। पाक के चारसद्दा स्थित बाचा खान विश्वविद्यालय के इस हमलों में और हाल ही में भारत के पठानकोट एयरबेस हमले में कुछ समानताएं हैं। दोनों ही हमलों के वक्त आतंकवादी सेना की वर्दी पहने हुए थे। दोनों ही हमलों में हमलावरों की उम्र 20-25 वर्ष के बीच थी। दोनों ही हमलों में आतंकी आत्मघाती जैकेट पहने हुए थे। यह अलग बात है कि दोनों ही हमलों में सुरक्षा बलों ने हमलावरों को मार गिराया था और वह खुद को नहीं उड़ा सके। हमले की जिम्मेदारी तहरीक--तालिबान पाकिस्तान के कमांडर उमर मंसूर ने ली है। मंसूर को चाइल्ड किलर भी कहा जाता है। 2007 में 13 संगठनों ने तहरीक--तालिबान बनाया था। इसका एक मकसद पाकिस्तान में शरीया कानून लागू कराना भी है। हमले के समय पेशावर से 50 किलोमीटर चारसद्दा जिले में बाचा खान यूनिवर्सिटी में संस्थापक बाचा खान की बरसी के मौके पर होने वाले मुशायरे में भाग लेने 600 बाहरी लोग भी आए हुए थे। इस हमले ने पाकिस्तानी सेना के अभियान जर्ब--अज्ब की कामयाबी की पोल खोलकर रख दी है। जून 2014 में पाक-अफगान सीमा से लगे इलाकों में शुरू हुए इस अभियान का मकसद तहरीक--तालिबान समेत दूसरे आतंकी संगठनों का खात्मा करना था। इस ताजा हमले से पहले पाकिस्तानी सेना ने अपनी वेबसाइट में दावा किया था कि उसने पाक-अफगान सरहद पर तहरीक--तालिबान समेत तमाम आतंकी संगठनों की कमर तोड़कर रख दी है। साथ ही उनके ढांचे, स्लीपर सेल को भी लगभग ध्वस्त कर दिया है। पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए हमले के एक साल बाद बाचा खान यूनिवर्सिटी पर हुए आतंकी हमले से साफ है कि पाक सेना अपने मिशन में असफल रही है। ऑपरेशन के 18 महीने बाद हुए हमले से साफ है कि आतंकियों की कमर नहीं टूटी है। इससे यह भी पता चलता है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियों और पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों में रिस्पांस टाइम में कितना फर्प है। पठानकोट में भी ठीक इसी तरह का हमला हुआ था और हमारे बहादुर जवानों ने न केवल सारे हमलावरों को मार गिराया था बल्कि हमले में मरने वालों की संख्या भी 10 से कम थी। पेशावर के इस हमले में अधिकृत रूप से 25 लोगों की तो मौत हो चुकी है और 50 से ज्यादा लोग घायल हैं। इस हमले से हम भी सकते में हैं। यह सही समय है जब पाकिस्तान को भारत की मदद लेकर इन दहशतगर्दों का खात्मा करना चाहिए। आतंक का न तो कोई धर्म होता है, न रंग और न जाति। यह हमला उन ताकतों (पाक) के लिए भी सीधा संदेश है जो अच्छे और बुरे आतंकवाद में भेद करते हैं। आतंकवाद पाकिस्तान में घर कर चुका है, जो बीज पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने बोया था आज उसी का फल उन्हें देखने को मिल रहा है। यह समय बिल्कुल माकूल है कि पाकिस्तान अपनी सर-जमीन से इन जेहादी संगठनों की जड़ से समाप्ति करे। पाकिस्तान की स्थिति चिन्ताजनक यूं भी है कि अमेरिका की अफगानिस्तान नीति ने दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। खासकर पाकिस्तान और भारत के लिए। 13 साल लंबी कोशिशों के बावजूद अमेरिका तालिबान की कमर तोड़ नहीं पाया और अब वहां से पिण्ड छुड़ाकर निकलने के लिए उन्हीं के साथ समझौते करने में जुटा हुआ है। इसका फायदा उठाकर इन आतंकियों ने खुद को नए सिरे से संगठित करके और पाक सेना व आईएसआई की मदद से वहां के सामाजिक जीवन का हिस्सा बन गए हैं। पाक सरकार (नवाज शरीफ) को अमेरिका परस्त बताते हुए उन्हीं के खिलाफ लंबी लड़ाई छेड़ रखी है। जहां हम पाकिस्तान की दुख की इस घड़ी में उनके साथ अफसोस में शरीक हैं वहीं पाक को कम से कम इतना तो समझना होगा कि भारत के साथ मिलकर उन्हें आतंक को समाप्त करने में फायदा है।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday 21 January 2016

Salwinder Singh involved in drug racket, is involved with terror too?

Readers would remember when Pathankot terrorist attack occurred and the role of Gurdaspur SP Salwinder Singh came under limelight ; I had written in this  very column that Salwinder Singh is somehow involved in this attack. My guess was right. Salwinder Singh was involved in the drug smuggling across the border. It has been clear in his six-day interrogation in the NIA headquarters. Due to greed his vehicle went into the  hands of  the terrorists and they proceeded uninterruptedly because of the blue beacon on the vehicle. Salwinder’s involvement is now heading towards final stage. The decision to undergo polygraph test means that concerned person is not only a suspect but has not been cooperating with the investigation agencies trying to unearth the nefarious plot.. Investigating officers also believe that they have got such inputs from several sources that Salwinder Singh is linked with the drug racket. He used to help in crossing the consignment of drugs coming from Pakistan, hiding the consignment for some time and then forwarding the same, for which he was paid handsomely. At times he was given diamond jewellery in lieu of the money. The only reason for taking jeweller Rajesh Verma was that he used to identify the diamond on the spot and quote the price. Investigating NIA officers suspect that jeweller Rajesh Verma (who was driving then) slowed the vehicle mistakenly identifying the terrorists as drug smugglers.  Taking this advantage, terrorists got hold of them this easily. That is why the terrorists didn’t kill them. Besides Rajesh Verma, two more jewellers are also believed to be involved in this syndicate. Salwinder used to take help from his two cooks and two or three local people also. Besides big drug businessmen, small paddlers were also sought for help. It’s also being confirmed that Salwinder along with his cook Madan Gopal and jeweller Rajesh Verma had gone to the shrine in the Baniyal area on 31st December night just for the deal. NIA has interrogated Salwinder along with the cook and the priest of the shrine face-to-face. Statements of Salwinder do not match them. Not only this, electronic evidences mobilized about their activities too don’t match with the statement. Like Salwinder insists on visiting the shrine at nine pm  while his vehicle was seen at a toll plaza at half past ten at night. The way to the shrine via this toll plaza takes one hour. Besides this, Salwinder is unable to give a solid reply for taking such a long route in return while it was late enough? Salwinder had gone to the shrine in Baniyal area on 31st December night just for the deal. He had to receive the payment for the previous consignment and help cross the fresh consignment. But the people came happened to be terrorists instead of the drug mafia people. Salwinder has admitted nothing so far. Either he twists the questions of the interrogating officers or doesn’t reply. Why did he take a cook and a jeweller with him instead of his security and driver in border area in so late at night? Salwinder has not answered to this question so far. Lie detector test of Salwinder has been completed on Tuesday. NIA may also get the lie detector test of Salwinder’s cook and the priest of the shrine and Rajesh Verma, if necessary. Let’s see if the lie detector test succeeds in exposing the real story of Salwinder Singh’s involvement in the Pathankot Airbase attack?

-        Anil Narendra

 

रिकॉर्ड सस्ता तेल होने पर भी उपभोक्ताओं को राहत नहीं

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत रिकार्ड 12 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। शुकवार को अंतर्राष्ट्रीय बाजार के कच्चे तेल की कीमत गिर कर 30 डॉलर से नीचे पहुंच गई। इस गिरावट के मुकाबले भारत में लोगों को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई खास राहत नहीं मिली है। पेट्रोल-डीजल के दामों में मामूली कमी की गई है। दाम घटने के साथ ही सरकार ने इस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी में एक और इजाफा कर दिया है।  नवंबर 2004 से लेकर अब तक कच्चा तेल करीब 56 फीसदी सस्ता हो चुका है लेकिन देश में पेट्रोल सिर्फ 7.5 फीसदी ही सस्ता हुआ है। ईरान से पतिबंध हटते ही बाजार में तेल की सप्लाई बढ़ जाएगी और उम्मीद तो यह जताई जा रही है कि कीमतें 25 डॉलर पति बैरल तक भी पहुंच सकती हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मौजूदा कीमतें घटने का भारत के उपभोक्ताओं को ज्यादा फायदा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि आप को यह जानकर हैरानी होगी कि जिस पेट्रोल को हम 66.59 रुपए में खरीदते हैं उसमें से 19.36 रुपए एक्साइज ड्यूटी के रूप में केंद्र को जबकि 16.80 पैसे वैट के रूप में राज्य सरकार को चुकाते हैं। यानी 36.16 रुपए। वहीं पेट्रोल कंपनियां सीधे तौर पर 6.40 रुपए कमा रही हैं जबकि डीलर 2.25 रुपए। यानी 21 रुपए का पेट्रोल हम तक पहुंचता है और 45 रुपए टैक्स व अन्य खर्च मिलकर करीब 66.59 रुपए हो जाता है। सूबे के पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने कहा कि सूबे में 5 पतिशत एंट्री टैक्स लिया जाता है लेकिन डीलरों के इनवॉइस में इसका उल्लेख नहीं हो रहा। पेट्रोल पर वैट की दर आंध्र पदेश और उत्तराखंड के बाद देश में सबसे ज्यादा है। ग्राहकों को इसका नुकसान अलग से हो रहा है। मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद पेट्रोल और डीजल के दामों को घटाने का दावा कर रही थी। यह सच है। जुलाई 2014 से अब तक पेट्रोल के दाम में 22 बार और डीजल के दाम में 18 बार कटौती की गई। लेकिन दूसरी ओर सरकार का लगातार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाना भी जारी रहा। यही वजह है कि कच्चे तेल में गिरावट की तुलना में उपभोक्ताओं को ज्यादा फायदा नहीं हुआ है।

-अनिल नरेंद्र

सलविंदर सिंह ड्रग रैकेट में शामिल था, क्या टेरर से भी मिलीभगत थी?

पाठकों को याद होगा कि जब पठानकोट आतंकी हमला हुआ था और गुरदासपुर के एसपी सलविंदर सिंह की भूमिका सामने आई थी तो मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि सलविंदर सिंह इस हमले में किसी न किसी रूप में शामिल जरूर है। मेरा अनुमान सही निकला। सलविंदर सिंह सीमा पार से होने वाली ड्रग तस्करी में शामिल था। एनआईए मुख्यालय में उससे छह दिन की पूछताछ में यह साफ हो गया है। सलविंदर सिंह के लोभ के चक्कर में ही उसकी गाड़ी आतंकियों के हाथ लग गई और वे बेरोकटोक आगे बढ़ गए। सलविंदर सिंह का मामला अब फाइनल स्टेज की तरफ बढ़ रहा है। पालीग्राफ टेस्ट कराने के फैसले का मतलब यही है कि संबंधित व्यक्ति पर शक ही नहीं बल्कि अब वह बड़े शक के घेरे में आ चुका है और जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। जांच कर रहे अफसरों का भी मानना है कि उन्हें कई जगहों से यह इनपुट मिली है कि सलविंदर के तार ड्रग सिंडिकेट से जुड़े हैं। वह पाकिस्तान से आने वाले नशीले पदार्थों की खेप को पार लाने, कुछ दिन छिपाने और फिर खेप को आगे ले जाने में मदद करता था। इस खेप की एवज में उसे पैसे मिलते थे। कईं बार पैसे की जगह हीरे की ज्वैलरी भी दी जाती थी। ज्वैलर राकेश वर्मा को अपने साथ ले जाने के पीछे यही कारण था कि वह तत्काल हीरे की पहचान कर उसकी कीमत बता देता था। जांच से जुड़े एनआईए अधिकारियों को संदेह है कि आतंकियों को ड्रग तस्कर समझकर ज्वैलर राकेश वर्मा (जो गाड़ी चला रहा था) ने गाड़ी धीमी कर दी थी। इसका फायदा उठाकर आतंकियों ने उन्हें कब्जे में ले लिया। यही कारण है कि आतंकियें ने उन्हें जान से मारने की कोशिश नहीं की। राकेश वर्मा के अलावा दो और ज्वैलर भी इस सिंडिकेट में शामिल थे। सलविंदर अपने दो कुक और दो-तीन लोकल लोगों की मदद भी लेता था। ड्रग के बड़े कारोबारियों के अलावा छोटे पैडलर्स से भी मदद ली जाती थी। इस पूरे सिंडिकेट के कई लोगों के बारे में एनआईए को जानकारी मिली है। यह भी कन्फर्म हो रहा है कि सलविंदर अपने कुक मदन गोपाल और ज्वैलर राकेश वर्मा को लेकर 31 दिसंबर की रात बनियाल इलाके की दरगाह पर डील के लिए ही गया था। वहीं का समय दिया गया था। एनआईए कुक और दरगाह के बाबा को आमने-सामने बैठाकर सलविंदर से पूछताछ कर चुकी है। सलविंदर के बयान उनसे मेल नहीं खा रहे हैं। यही नहीं, उनकी गतिविधियों के बारे में जुटाए गए इलेक्ट्रोनिक सबूत भी बयान से मेल नहीं खा रहे हैं। जैसे सलविंदर नौ बजे दरगाह पर जाने की बात पर अड़े हैं जबकि एक टोल प्लाजा पर रात साढ़े दस बजे उनकी गाड़ी जाती देखी गई। इस टोल प्लाजा से दरगाह का रास्ता एक घंटे का है। इसके अलावा सलविंदर इस बात का भी ठोस जवाब नहीं दे पा रहा है कि लौटते समय लंबा रास्ता उन्होंने क्यों लिया, जबकि रात काफी हो गई थी? 31 दिसंबर की रात सलविंदर बनियाल इलाके की दरगाह पर डील के लिए ही गया था। वहीं का समय दिया गया था। पिछली खेप का पेमेंट लिया जाना था और ताजा खेप आगे पार लगानी थी। लेकिन जो लोग आए वे ड्रग माफिया के लोगों की बजाय आतंकी निकले? सलविंदर ने अभी तक कुछ स्वीकार नहीं किया है। वह जांच अफसरों के सवालों के जवाब या तो घुमा देता है या जवाब देता ही नहीं है। अपनी सिक्यूरिटी और ड्राइवर के बजाय बार्डर एरिया में, इतनी घनी रात में कुक और एक ज्वैलर को साथ क्यों ले गये? इसका जवाब सलविंदर से अभी तक नहीं मिला। सलविंदर का लाई डिटेक्टर टेस्ट मंगलवार को पूरा हो गया है। इसके साथ ही जरूरत पड़ने पर एनआईए सलविंदर के कुक और दरगाह के बाबा व राजेश वर्मा का भी लाई डिटेक्टर टेस्ट करा सकती है। सलविंदर का लाई डिटेक्टर टेस्ट बुधवार को भी जारी रहेगा। देखें कि लाई डिटेक्टर टेस्ट कितना सफल होता है और सच्चाई सामने आती है या...?

Wednesday 20 January 2016

दांव पर है अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता पर अक्सर प्रश्न उठाए जाते हैं। आम धारणा यह है कि वह आरोप लगाते हैं और फिर जब उन्हें साबित करने का समय आता है तो भाग खड़े होते हैं। ऐसे ही एक मामले में उन्होंने दिल्ली और जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। डीडीसीए ने मानहानि का मुकदमा दिल्ली हाई कोर्ट में दायर किया है। डीडीसीए की ओर से दायर मुकदमे पर विचार करने के बाद संयुक्त रजिस्ट्रार अनिल कुमार सिसोदिया ने याचिका को सुनवाई योग्य माना, इसलिए प्रतिवादियों (केजरीवाल और कीर्ति आजाद) के लिए अपना रुख स्पष्ट करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि प्रतिवादियों को दो मार्च से पहले अपना जवाब दाखिल करना होगा। डीडीसीए ने अपनी याचिका में कहा है कि केजरीवाल ने अपने पहले के मकसद के कारण हाल में कुछ गलत, हतप्रभ करने वाले झूठे, मानहानिपूर्ण, अपमानजनक, निराधार, दुर्भावना से प्रेरित और शर्मनाक बयान दिए हैं। ये हमारे लिए मानहानिकारक हैं। डीडीसीए के वकील संग्राम पटनायक ने कहा कि कीर्ति आजाद भी कुछ इसी तरह की बयानबाजी में शरीक रहे हैं। ये बयान अपने फायदे के लिए वादी (डीडीसीए) का अपमान करने और उन्हें नुकसान पहुंचाने के एजेंडे के तहत किए गए हैं। संग्राम पटनायक ने कहा कि इस वजह से डीडीसीए को 500 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। बहरहाल इससे हुए नुकसान की भरपायी के लिए उसने प्रतिवादियों से कुल पांच करोड़ रुपए का हर्जाना मांगते हुए मौजूदा मुकदमा दर्ज करने का फैसला किया है। अपने और अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ कथित रूप से गलत और अपमानजनक बयान के लिए केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली पहले ही केजरीवाल और उनकी पार्टी के पांच अन्य नेताओं को अदालत में घसीट चुके हैं। जेटली ने आप नेताओं से 10 करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के छह नेता भी केंद्रीय मंत्री की ओर से निचली अदालत में दायर आपराधिक मामले में मानहानि के मुकदमे का सामना कर रहे हैं। डीडीसीए घोटाले मामले में मानहानि के मुद्दे पर अरुण जेटली ने मुख्यमंत्री और उनके सह-सहयोगियों को घेरने के लिए मंझे हुए रणनीतिकार की तरह कानूनी बिसात बिछाई है। मुख्यमंत्री केजरीवाल के आरोपों का जिस तरह से कानूनी व सियासी दिग्गज जेटली ने जवाब देना शुरू किया है उससे लगता है कि वह इस लड़ाई को काफी आगे लेकर जाने की नीयत रखते हैं। अब केजरीवाल, उनके साथियों जिसमें कीर्ति आजाद भी शामिल हैं, को अपने आरोपों को साबित करने का समय आ रहा है। अरुण जेटली व डीडीसीए के खिलाफ उन्होंने कई घोटालों का आरोप लगाया है। क्या यह आरोप सिर्प कीर्ति आजाद के तथ्यों पर आधारित हैं या उनके पास और भी स्वतंत्र सबूत हैं आगे चलकर उन्हें साबित करना होगा। दांव पर है केजरीवाल की विश्वसनीयता।

-अनिल नरेन्द्र

ईरान में एक नए दौर का आगाज

पिछले साल जुलाई में प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते के लागू होने के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटा लिए गए हैं और इसके साथ ही देश ने अपने अंतर्राष्ट्रीय एकाकीपन को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ा लिया है। वर्ष 2013 में हसन रुहानी ने ईरान का राष्ट्रपति बनने के बाद 14 जुलाई को वियना समझौते की दिशा में बेहद कठिन राजनयिक प्रयास शुरू करने में मदद की थी। रुहानी ने कल कहा कि यह धैर्यवान देश ईरान के लिए एक बड़ी जीत है। छह वैश्विक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हुए यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख फेडेरिका मोफेटिनी ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े बहुपक्षीय और राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय प्रतिबंध हटा लिए गए हैं। दरअसल 1978 की इस्लामी क्रांति से ईरान के अलग-थलग पड़ने की शुरुआत हुई थी। फिर इराक के साथ आठ साल चले युद्ध ने उसे तबाही के कगार पर ला खड़ा किया। उसके कुछ समय बाद परमाणु हथियार बनाने की जो मुहिम ईरान के कट्टरपंथी राजनीतिक नेतृत्व द्वारा शुरू की गई, उसने तो इसके विशाल भूगोल को नक्शे पर एक खाली जगह ही बदलकर रख दी। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की यह ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाएगी कि उन्होंने दुनिया की मुख्यधारा में पहले क्यूबा और अब ईरान की वापसी का रास्ता बनाया। कहा जा रहा है कि आर्थिक प्रतिबंध हटने से ईरान को विदेशी बैंकों में जमा अपने 100 अरब डॉलर वापस मिल जाएंगे। विदेशों में उत्पादित होने वाली छोटी-छोटी चीजों के लिए भी तरस जाने वाली, भयंकर मुद्रास्फीति से जूझ रही ईरानी आबादी के अच्छे दिन आ गए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ईरान अब भारत समेत दुनिया के किसी भी देश से सहजतापूर्वक व्यापार कर सकेगा और मुख्यत तेल के निर्यात पर निर्भर उसकी अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में एक स्थायी शक्ल ले सकेगी। ईरान जश्न में डूबा है। अपने ऊपर से आर्थिक प्रतिबंध हटने से ईरानियों की खुशी समझी भी जा सकती है। आर्थिक तंगी और मुश्किलों से जूझ रहा ईरान एक नए दौर में कदम रख रहा है। उसके सदर हसन रुहानी ने पाबंदियों में राहत की सराहना करते हुए एक शानदार कामयाबी और अहम मोड़ बताया है। ईरानी मीडिया ने खास लहजे में एक नए दौर के आगाज का स्वागत किया है और इसके लिए उसने काफी कल्पनाशील व चमत्कारिक शीर्षकों का इस्तेमाल किया है। ईरान पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटने से विश्व कूटनीति में एक नए दौर का आगाज होगा। इतिहास में हमेशा से ही एक बड़ी सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक शक्ति होने के बावजूद यह देश काफी लंबे समय से हाशिये पर पड़ा था। ईरान के नए स्वरूप से सबसे बड़ा खतरा सऊदी अरब को महसूस होगा जो इससे उबरने के लिए किसी भी ऊलजुलूल हरकत पर उतारू हो सकता है। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए ईरान से प्रतिबंध हटाने का एक मकसद यह भी रहा है कि सीरिया और इराक में आईएसआईएस की गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन यह खतरा भी बरकरार है कि कहीं इस बात को लेकर लेबनान, बहरीन और यमन में भी ईरान और सऊदी अरब का प्रॉक्सी वार न शुरू हो जाए। रूस प्रतिबंधों के हटने का स्वागत करेगा क्योंकि ईरान, इराक और सीरिया के साथ वह आईएसआईएस के खिलाफ साझा मोर्चा और तेज करेगा। चूंकि ईरान शिया देश है इसलिए भी वहाबी सऊदी अरब को ईरान का खौफ है। भारत और ईरान के हमेशा से करीबी संबंध रहे हैं। भारत को अब दोस्ती का और लाभ मिलेगा। कुल मिलाकर ईरान से प्रतिबंध हटने का स्वागत करना चाहिए।

Tuesday 19 January 2016

क्या सुनंदा की मौत का रहस्य कभी खुलेगा?

दिल्ली के एक पांच सितारा होटल के बंद कमरे में हुई पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत सियासत की बिसात पर अबूझ पहेली बन गई है। सुनंदा पुष्कर की मौत का मामला और सनसनीखेज हो गया है। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने सुनंदा की मौत जहर से होने के एम्स के दावे की पुष्टि कर दी है। इसके साथ ही एफबीआई ने यह भी कहा है कि सुनंदा के शरीर में खतरनाक रसायन मिला था, जिसके कारण संभवत उनकी मौत हुई। इस मामले में एफबीआई के विश्लेषण वाली एम्स की रिपोर्ट मिलने का खुलासा करते हुए दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी ने भी कहा कि सुनंदा की मौत अप्राकृतिक थी, लेकिन उन्होंने सुनंदा के विसरा में रेडियोएक्टिव तत्व होने की बात खारिज कर दी। एम्स के फोरेंसिक साइंस विभाग के प्रमुख सुधीर गुप्ता ने कहा कि एफबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह मौत जहर के कारण हुई थी जैसा कि एम्स ने अपने निष्कर्ष में कहा था। बस्सी ने कहा कि अब तक की जांच और इकट्ठे किए गए साक्ष्यों के आधार पर पुख्ता तौर पर स्पष्ट हो गया है कि यह मौत असामान्य थी। यह ठीक है कि सुनंदा की मौत जहर की वजह से हुई पर यह सवाल अभी भी सुलझा नहीं कि उन्होंने कौन-सा जहर खाया या उन्हें दिया गया? खुद खाया या फिर उसे किसी ने इंजैक्ट किया? अगर किसी ने जहर दिया तो फिर वह कौन है? 17 जनवरी 2014 को चाणक्यपुरी स्थित पांच सितारा होटल लीला पैलेस के सुइट में सुनंदा पुष्कर मृत पाई गई थीं। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और दिल्ली पुलिस तत्कालीन कांग्रेसी गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के हाथ में थी। कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर से मामला जुड़ा होने के कारण पहले ही दिन से पुलिस मामले में लीपापोती करती रही थी। पर्याप्त सबूत मिलने के बावजूद ऊपरी दबाव के कारण पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी। आखिरकार नाटकीय ढंग से एक साल बाद एक जनवरी 2015 को सुनंदा की मौत को हत्या बताते हुए रिपोर्ट दर्ज की गई। सुनंदा की मौत पहले दिन से ही पहेली बनी हुई थी। मौत के मामले में विशेष जांच दल को लेकर भ्रम रहा। शुरुआत में एसआईटी बनाने का दावा तो किया गया पर एक साल बाद इसका गठन हुआ। फिर केस को हल्का करने के इरादे से एसआईटी का नेतृत्व कर रहे डीसीपी (स्पेशल सेल) प्रमोद कुशवाहा समेत तीन अधिकारियों का नियम विरुद्ध तबादला कर दिया गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार आक्षेप और आधे-अधूरे सच का सहारा ले शशि थरूर और पार्टी के दूसरे नेताओं के पीछे पड़ने के लिए बदले की राजनीति कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि शशि थरूर इस मामले में न तो आरोपी हैं और न ही प्राथमिकी में उनका नाम है। सवाल अंत में भी यही उठता है कि सुनंदा को किसने, क्यों और कैसे जहर दिया? क्या यह मामला कभी सुलझेगा भी या नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र निकाय चुनावों में भाजपा- शिवसेना को करारा झटका

निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को घोषणा की कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक और महाराष्ट्र सहित आठ राज्यों में 12 विधानसभा सीटों पर 13 फरवरी को उपचुनाव कराया जाएगा। उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर, देवबंद और बिकापुर विधानसभा सीटों व कर्नाटक में देवदुर्ग, बीदर और हेब्बल विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे। पंजाब, महाराष्ट्र, बिहार, त्रिपुरा, तेलंगाना और मध्यप्रदेश में एक-एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा। अधिसूचना 20 जनवरी को जारी की जाएगी। नामांकन भरने की आखिरी तारीख 27 जनवरी और नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 31 जनवरी है। चुनाव 13 फरवरी को शनिवार के दिन होगा। उत्तर प्रदेश में जिन तीन सीटों पर उपचुनाव होना है, उन पर सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का कब्जा था। कर्नाटक की देवदुर्ग सीट पर सत्तारूढ़ कांग्रेस का कब्जा था, जबकि बीदर और हेब्बल भाजपा के पास थी। पंजाब की खंडूर साहिब सीट कांग्रेस के पास थी, जबकि बिहार की हरलाखी सीट पर आरएलएसपी का कब्जा था। त्रिपुरा के अमरपुर में उपचुनाव इसलिए आवश्यक हो गया क्योंकि माकपा के एक विधायक एम. आचार्जी को निष्कासित कर दिया गया था। महाराष्ट्र के पालपार में उपचुनाव पिछले एक साल जून से लंबित था, लेकिन निर्वाचन आयोग एक चुनाव याचिका के लंबित होने की वजह से आगे नहीं बढ़ सका। यह सीट शिवसेना के पास थी। तेलंगाना की नारायण खेद सीट और मध्यप्रदेश की मैहर सीट कांग्रेस के पास थी। वैसे तो उपचुनाव सत्तारूढ़ दलों (दोनों केंद्र व राज्य सरकारों) के लिए इतने महत्वपूर्ण तो नहीं होते पर इससे इतना जरूर पता चलता है कि सूबे में हवा किस ओर बह रही है। हाल ही में महाराष्ट्र के कुछ जिलों में नगर पालिका और नगर पंचायत चुनावों में भाजपा और शिवसेना दोनों को नाउम्मीदी का सामना करना पड़ा है और कांग्रेस ने इस चुनाव के जरिये पार्टी को मुकाबले में लाकर खड़ा कर दिया है। चुनाव के नतीजे सोमवार रात को घोषित किए गए। इन नतीजों के अनुसार कांग्रेस ने निगम परिषद, नगर पंचायत और उपचुनाव में 105 सीटें जीती हैं। इन चुनावों में भाजपा को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा है। 80 सीटों पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दूसरे स्थान पर और 59 सीटें जीतकर शिवसेना तीसरे स्थान पर रही। सत्तारूढ़ भाज1पा को 39 सीटों के साथ चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। हालांकि ये जिले कांग्रेस-राकांपा के मजबूत गढ़ माने जाते हैं लेकिन कांग्रेस इन परिणामों को राज्य सरकार के प्रति लोगों के घटते विश्वास का नतीजा मानती है। भाजपा के लिए बेकअप कॉल है, आगे मोर्चा बहुत कैड़ा है।

Monday 18 January 2016

Why should we expect any reciprocation from Pakistan?

After Pathankot attack It wasn’t difficult for Indian Agencies to conclude that the terrorists had come from Pakistan and the attack was planned, executed  in Pakistan itself. Immediately the evidence of this attack was provided to Pakistan but as it was expected Pakistan in its old traditional predictable method conducted raids at some places for show and also publicized the news of taking some persons into custody. However the best part is that they didn’t confirm officially the arrest of the Pathankot terror attack  mastermind Maulana Masood  Azhar. It’s also reported that the Pak government has categorically denied the phone number being Pakistani from  which the terrorists had spoken with their Pak handlers after reaching Pathankot. In fact when the Pak Prime Minister held the meeting of senior officers for two consecutive days; thereafter it was reported in Pak media through official sources that India has not provided any strong evidence. As per Pak media Maulana Masood Azhar has been taken into custody. But it has not yet been officially confirmed by the Pak government. The action is for show and may have been taken so that  the sequence of talks with India is not hindered and also escape from shame in the international world. The experience and record of Pakistan so far tells just that stern action has  never been taken against the terrorists sects creating carnage and terror in India from Pakistani soil. Pakistan firstly denies the terrorist activities of its people in India, then asks for evidence and later on says these are insufficient. With this it also boasts the neutrality of its judiciary. After terrorist attack of 26\11 Mumbai attack under pressure from India and international forum Pakistan had played drama of arresting Lashkar-e-Taiba chief Hafiz Mohammed Syed and its top commander Zaki-ur-Rehman Lakhawi earlier also but they are moving freely in Pakistan now. Officially Pakistan has put a ban on terrorist sects like Lashkar-e-Taiba, Jaish-e-Mohammed but these groups are still active and  with fake names  openly vomiting poison on Pak territory against India. Hizbul Mujahidin’s chief Syed Salauddin is also hiding in Pakistan. But no action has been taken against him till date. Salauddin admitted  in an interview in 2012 that Pak intelligence agency ISI and Pak army have given free hand to the  Jehadi organisations,  be it Jaish-e-Mohammed or Lashkar-e-Taiba. It is because of the strategic, financial and moral help given by ISI and Pakistan Army that these organisations have not onle expanded their base but have become very lethal in their strikes. Within last five years Jaish-e-Mohammed has imparted military training to more than 500 terrorists in its palatial headquarters spread in 18 acres at Bahawalpur. As per intelligence agencies after Lashkar-e-Taiba, Jaish-e-Mohammed is the largest threat for India. It is also a matter of concern that the intelligence agencies of the entire world keep vigil on Lashkar but not on Jaish. The mastermind of the terrorist attack on Pathankot airbase Masood Azhar is the chief of Jaish. Azhar’s name has been in limelight in hijacking of Indian plane in 1999 and  attack of Indian Parliament in the year 2001. He is also responsible for the first sucide attack on Indian soil, when a 17 year terrorist of Jaish-e-Mohammed blasted the Maruti car laden with explosives before the army headquarters at Srinagar. Recently, the US president, Barak Obama also for once admitted  the truth. At the fag end of his Presidential term and the  last State of the Union address Obama said that Pakistan is a heaven for the terrorists. He warned that Pakistan-Afghanistan will continue to be a safe shelter for new terrorist networks and terrorism will continue for decades in both these countries. I acts of terror actions are to be taken on the basis of clues and signals in international crimes especially in matters like terrorism. Due to such experiences now Indian public opinion is not ready to fall in the trap of Pakistan i.e. perhaps Pakistan may not be able to misguide through its method of dispensing contradictory information. The media reports of the arrest of Masood Azhar and his associates may have a purpose to mislead the US alongwith India since several US senators are opposing the sale of F-16 fighter planes to Pakistan. It is clear that Pak should  not be trusted until India has  solid evidence that Pakistan in serious to finish the terrorist sects threatening India. It’s not sufficient that Masood Azhar and some of his associates have been taken into custody. India should not fall into the trap of Pakistan.

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ANIL NARENDRA

Sunday 17 January 2016

जेल की नौबत आने तक बिल्डर काम नहीं करते ः कोर्ट

पिछले कुछ समय से दिल्ली और एनसीआर के बिल्डर्स में हड़कंप मचा हुआ है। कारण है कि अदालतों का रुख बिल्डरों के खिलाफ हो गया है। वादा करके, पैसे लेकर वर्षों तक निवेशकों के फ्लैट लटकाना आम बात हो गई है। ये बिल्डर इतने शातिर हैं कि यह फ्लैट खरीदने वालों के साथ जो एग्रीमेंट करते हैं उसमें अपने आपको बचाने की शर्तें पहले से ही डाल देते हैं। जब फ्लैट ऑनर अदालत जाता है तो यह उस एग्रीमेंट का हवाला देकर साफ निकल जाते हैं और निवेशक हाथ पर हाथ धरे रह जाता है पर कुछ समय से अदालतों का रुख बदला है और उन्होंने इस प्रकार के एग्रीमेंटों को रिजेक्ट करना शुरू कर दिया है। गत दिनों राजधानी-एनसीआर के एक प्रतिष्ठित बिल्डर यूनिटेक के वरिष्ठ पदाधिकारियों को अदालत ने जेल भेज दिया। निवेशकों से धोखाधड़ी के मामले में यूनिटेक के चेयरमैन और निदेशकों को शिकायतकर्ता की सहमति के बाद बृहस्पतिवार को रिहा कर दिया। हालांकि कोर्ट ने बड़े सख्त लहजे में कहाöआपने आश्वासन दिया और भाग गए। आप तब तक काम नहीं करते जब तक आपको जेल भेजने की नौबत न आ जाए। बाकी सैकड़ों लोगों के पैसे का क्या होगा? उनका हिसाब कौन करेगा? सभी आरोपी तीन दिन की अंतरिम जमानत खत्म होने पर बृहस्पतिवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विमल कुमार यादव की कोर्ट में पेश हुए थे। इस मामले में अदालती समन के बाद भी पेश न होने पर यूनिटेक के चेयरमैन रमेश चन्द्रा, एमडी संजय चड्ढा, अजय चन्द्रा और निदेशक मिनोती बाहरी को निवेशकों से वादा करने के बाद की गई धोखाधड़ी के लिए सोमवार को हिरासत में लिया गया था। अदालत ने इससे पहले गैर जमानती वारंट जारी किया था। सत्र अदालत ने आरोपियों के आश्वासन पर उन्हें तीन दिन की अंतरिम जमानत दे दी थी। साकेत जिला अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विमल कुमार यादव से आरोपियों ने कहा कि उन्होंने शिकायतकर्ता को उसका पैसा लौटा दिया है और वह अपनी शिकायत वापस लेने को तैयार हैं। शिकायत करने वाले सीए संजय कालरा व उनके साझेदार देवेश वाधवा का आरोप था कि उन्होंने ग्रेटर नोएडा में यूनिटेक के प्रोजेक्ट हैविटेट अपार्टमेंट में प्रॉपर्टी बुक करवाई थी, लेकिन उन्हें कब्जा नहीं दिया गया। उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा कि अदालती आदेश के बाद भी आरोपियों ने उनका पूरा पैसा वापस नहीं किया। गौरतलब है कि संजय व देवेश की शिकायत पर कोर्ट ने यूनिटेक के चारों अधिकारियों को सोमवार को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। हालांकि एक घंटे के अंदर ही अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने तीन दिन की अंतरिम जमानत दे दी थी पर कोर्ट से समय पर रिलीज ऑर्डर न मिलने पर चारों को एक रात जेल में बितानी पड़ी।

-अनिल नरेन्द्र

आतंकवाद के खिलाफ पूरी दुनिया को एकजुट होना होगा

पेरिस के आतंकी हमले के बाद आतंकी हमलों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ है कि आए दिन दुनिया के किसी न किसी कोने से ऐसे हमलों की खबरें आ रही हैं। पिछले दो-तीन दिनों से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में यह आतंकी धमाके कर रहे हैं। पहले तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में, फिर पाकिस्तान के क्वेटा में, फिर अफगानिस्तान के जलालाबाद में, फिर इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। देखा जाए तो दिसम्बर में फ्रांस की राजधानी पेरिस में जो धमाके किए गए थे, उसके बाद ऐसे धमाकों या ऐसी कोशिशों का सिलसिला जारी है। ज्यादातर मामलों में आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का हाथ है और इनमें आत्मघाती विस्फोट के साथ गोलाबारी करने की रणनीति अपनाई जा रही है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में सीरियल बम विस्फोटों की जिम्मेदारी लेकर आईएसआईएस ने अपना भौगोलिक दायरा अचानक बढ़ा दिया है। फ्रांस में हुए भीषण हमले के बावजूद अभी तक इस आतंकी संगठन को पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों तक ही सीमित माना जा रहा था। सीरिया में रूसी हस्तक्षेप के बाद यह भी प्रचारित किया गया कि आईएसआईएस पर दबाव बढ़ रहा है और वह अपनी जमीन खोते जा रहे हैं। इंडोनेशिया पुलिस को यह सूचना काफी पहले से थी कि उसके लगभग 100 नागरिक आईएसआईएस में शामिल हैं, जबकि देश में करीब 1000 लोग इस संगठन के समर्थक हैं। ध्यान रहे कि जेहादी आतंकी संगठनों का इंडोनेशिया में प्रभाव पहले भी कुछ कम नहीं रहा। कुछ मामलों में दूसरे आतंकी संगठनों का नाम भी आ रहा है। जैसे क्वेटा में पाकिस्तानी तहरीक--तालिबान का हाथ है और पूर्वी तुर्की में हुए कार बम धमाकों के पीछे कुर्द विद्रोहियों का हाथ बताया जाता है। आईएसआईएस के आतंकियों की दुनियाभर में इस तरह की सक्रियता से पता चलता है कि आईएसआईएस का जाल कितनी दूर-दूर तक फैला है। ज्यादातर हमलावर या तो सीरिया या इराक में आईएसआईएस की मुहिम में हिस्सा लेकर लौटे नौजवान हैं या फिर अपने ही देश में उन्हें आईएसआईएस की उग्र व हिंसक विचारधारा का समर्थक बनाया गया है। मौजूदा साल 2016 के कुल पहले 15 दिनों में लगभग रोज ही कहीं न कहीं, किसी बड़े आतंकी हमले की खबर आई है, जिनमें तीन तरह के आतंकी संगठनों का हाथ साबित होता है। एक वो जो आईएसआईएस से  जुड़े हैं। दूसरे वे जिनका रिश्ता आज भी अलकायदा से बना हुआ है और तीसरे वे जो किसी न किसी देसी मुहावरे के तहत अपनी आतंकी गतिविधियां संचालित करते हैं। ऐसे हमले भारत के अलावा तुर्की, सीरिया, इराक, लीबिया और अभी इंडोनेशिया में सुनने को मिले हैं। इन हमलों से यह आशंका पुख्ता होती है कि आईएसआईएस ने तमाम देशों में अपने समर्थकों का एक जाल बिछा रखा है, जो कभी भी अपने आकाओं के इशारे पर वारदात करने के लिए तैयार हैं। ये लोग किस कदर कट्टरवादी विचारधारा की गिरफ्त में आ गए हैं, यह इससे पता चलता है कि ज्यादातर हमलों में मानव बमों का इस्तेमाल किया गया है और जिन लोगों ने गोलीबारी की, वे भी मरने के लिए तैयार होकर आए थे। रूस ने तुर्की के इस्तांबुल में हुए आतंकी बम विस्फोटों के बाद दुनिया के सभी देशों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील की है। रूस के विदेश मंत्रालय ने विस्फोट के बाद जारी एक बयान में कहा कि लगातार बढ़ते आतंकी हमलों को देखते हुए अब सभी देशों को बिना देर किए आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट हो जाना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त सेना का गठन कर इसके खिलाफ अभियान चलाना होगा। बयान में कहा गया है कि आतंकवाद के जड़ से खात्मे के लिए सभी देशों को संयुक्त होकर जिस सेना का गठन करना होगा उसका प्रारूप सीरिया में आईएसआईएस के खिलाफ छेड़े गए अमेरिकी गठबंधन सेना से भी बढ़कर हो। समय आ गया है कि आतंक से लड़ने के लिए सारी दुनिया एकजुट हो।

Saturday 16 January 2016

आखिर क्यों भारत पाकिस्तान से इतनी उम्मीदें रखता है?

पठानकोट हमले के बाद भारतीय एजेंसियों को इस निष्कर्ष पर पहुंचने में देर नहीं लगी कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए और इस हमले की साजिश पाकिस्तान में ही रची गई। जल्द ही इस हमले से एकत्र सबूत पाकिस्तान को मुहैया करवा दिए गए लेकिन जैसी उम्मीद थी कि पाकिस्तान ने अपने पुराने ढर्रे पर चलते हुए दिखावटी तौर पर कुछ जगहों पर छापे मारे और कुछ लोगों को हिरासत में लेने की बात प्रचारित तो करवा दी पर यह अधिकृत तौर पर कन्फर्म नहीं किया कि मास्टर माइंड अजहर को गिरफ्तार किया गया है। खबर तो यह भी है कि पाक सरकार ने उस फोन नम्बर के पाकिस्तानी होने की बात सिरे से नकार दी है जिस पर पठानकोट आकर दहशतगर्दों ने अपने पाक स्थित हैंडलर्स से बात की थी। दरअसल पिछले हफ्ते ही जब पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने लगातार दो दिन आला अधिकारियों की बैठक की तो उसके बाद पाकिस्तानी मीडिया में सरकारी सूत्रों के हवाले से यह खबर छपी थी कि भारत ने कोई ठोस सबूत नहीं दिए हैं। मौलाना मसूद अजहर को पाक मीडिया के अनुसार हिरासत में ले लिया गया है। पर पाक सरकार की ओर से अभी तक इसकी कोई अधिकृत पुष्टि नहीं हुई है। यह कार्रवाई दिखावे की और मात्र इसलिए की गई हो सकता है कि भारत से वार्ता का सिलसिला खटाई में न पड़ जाए और अंतर्राष्ट्रीय जगत में शर्मिंदगी से बचा जा सके। अभी तक का अनुभव और रिकार्ड यही बताता है कि पाकिस्तान से भारत में खूनखराबा करने और दशहत फैलाने वाले आतंकी संगठनों के खिलाफ कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। भारत में अपने लोगों की आतंकी गतिविधि पर पाकिस्तान पहले तो सिरे से इंकार करता है, फिर सबूत मांगता है और बाद में कह देता है कि वे अपर्याप्त हैं। इसी के साथ वह अपनी न्यायपालिका के निष्पक्ष होने की दुहाई भी देता है। आतंकी हमलों के बाद भारत के और अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान पहले भी लश्कर--तैयबा के मुखिया हाफिज मोहम्मद सईद और उसके शीर्ष कमांडर जकीउर रहमान लखवी को भी गिरफ्तार करने का ड्रामा कर चुका है लेकिन आज वे आजाद घूम रहे हैं। भारत और अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने लश्कर--तैयबा, जैश--मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों पर पाबंदी तो लगाई लेकिन ये संगठन छद्म नामों से आज भी सक्रिय हैं और खुलेआम भारत के खिलाफ पाकिस्तानी जमीन पर जहर उगल रहे हैं। हिजबुल मुजाहिद्दीन का सरगना सैयद सलाऊद्दीन भी पाकिस्तान में ही छिपा है। लेकिन उस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। वर्ष 2012 में सलाऊद्दीन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी फौज ने जेहादी संगठनों को खुली छूट दे रखी है। चाहे वह जैश--मोहम्मद हो या लश्कर--तैयबा हो इनको यहां तक पहुंचने में सबसे ज्यादा मदद पाक सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने की है। पिछले पांच वर्षों में जैश--मोहम्मद ने बड़ी सभाओं के जरिये बहावलपुर में अपने 16 एकड़ में फैले आलीशान मुख्यालय में 500 से ज्यादा आतंकियों को सैनिक प्रशिक्षण दिया है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक लश्कर--तैयबा के बाद जैश--मोहम्मद भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। चिन्ता इस बात की भी है कि दुनियाभर की खुफिया एजेंसियों की नजरें लश्कर पर तो जाती हैं पर जैश पर नहीं। पठानकोट वायुसेना बेस पर हुए आतंकी हमले का मास्टर माइंड मसूद अजहर जैश का सरगना है। 1999 में भारतीय विमान की हाइजैकिंग से लेकर वर्ष 2001 में संसद पर हुए हमले में अजहर का नाम आया है। भारत में घाटी में पहला आत्मघाती हमला भी इसी ने करवाया था जब जैश--मोहम्मद के 17 साल के आतंकी ने श्रीनगर में सेना के हेडक्वार्टर के आगे विस्फोटों से लदी मारुति कार को उड़ा दिया था। पाकिस्तान की सर-जमीन पर अगर ये आतंकी संगठन फल-फूल रहे हैं तो इसके पीछे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का ही हाथ है। जाते-जाते अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुंह से भी सच निकल आया। राष्ट्रपति कार्यकाल के आठवें और अंतिम स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन में ओबामा ने कहा कि पाकिस्तान आतंकियों के लिए जन्नत जैसा है। उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान-अफगानिस्तान नए आतंकी नेटवर्कों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बने रहेंगे और इन देशों में दशकों तक आतंकवाद बना रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय अपराधों खासकर आतंकवाद जैसे मामलों में कार्रवाइयां सुराग और संकेतों के आधार पर ही करनी होती हैं। इनमें ठोस सबूतों की मांग असल में कुछ न करने का बहाना होता है, जैसा कि 26/11 के समय में देखा गया था। ऐसे ही अनुभवों के कारण अब भारतीय जनमत पाकिस्तान के झांसे में आने को तैयार नहीं है यानि परस्पर विरोधी सूचनाएं फैलाने के पाकिस्तानी तौर-तरीकों में शायद इस बार उन्हें गुमराह करने में सफलता न मिले। मसूद अजहर और उनके साथियों को हिरासत में लेने का एक मकसद भारत के साथ अमेरिका को भी बहकाना हो सकता है, क्योंकि कई अमेरिकी सांसद पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान देने का विरोध कर रहे हैं। स्पष्ट है कि जब तक इसके ठोस प्रमाण न मिल जाएं कि पाकिस्तान भारत के लिए खतरा बने आतंकी संगठनों को खत्म करने को लेकर गंभीर है तब तक उस पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। केवल इतना पर्याप्त नहीं कि मसूद अजहर और उनके कुछ साथियों को हिरासत में लिया गया है। भारत को पाक के झांसे में नहीं आना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

Friday 15 January 2016

Pak and China challenge the Sovereignty of India

Both Pakistan and China have decided to challenge the honour, prestige and sovereignty of India. Pakistan doesn’t refrain from its nefarious activities these days. Now Pakistan is preparing to give constitutional status to Gilgit-Baltistan in its occupation. Pakistan’s step may increase the problems of India since India treats this area as a part of the disputed Kashmir. Pakistan is now trying to constitutionally make Gilgit-Baltistan, an integral part of Pakistan. To do so, it has constituted a high level committee. Dialogues with the local puppet government are being flouted. Pakistan is going to include  Gilgit-Baltistan in its constitution for the first time. It may be noted that there is no mention of Gilgit-Baltistan in Pak constitution applied since 1973. Pakistan got the administrative responsibility of the area under the said Karachi Pact. Cunningly with malafide intentions Pakistan fudged the statistics by changing rules in 1974. In 2009 a 33-member council was formed. It is widely believed that Pakistan is doing all this to please its friend China which had expressed concerned regarding the ambitious 46 million dollar economic corridor passing through this strategic zone. Gilgit-Baltistan in the North is the only such strategic area which is directly connected with China. This is also the important outlet to China-Pak economic corridor that connects Gwadar port including road network, highway, railway and investment parks of Western China and Southern Pakistan. In fact India had lodged its objection to Pakistan for passing of this economic corridor running  through the POK. Presently Pakistan considers the entire POK including Gilgit-Baltistan a disputed area and it’s also not been mentioned in its constitution. Sajjad-ul-Haq, the spokesperson of Gilgit-Baltistan’s Chief Minister, Hafij-ul-Rahman, indicating that formally the POK is a semi-autonomous area and that Prime Minister Nawaz Sharief has constituted a high level committee to consider this issue. On 9th June 2015 the puppet Prime Minister of POK Chaudhery Abdul Majeed had also said that Gilgit-Baltistan is part of J&K and it needs to be treated as a province. In 1994 the Pak Supreme Court had admitted in its judgement that Gilgit-Baltistan (North Zone then) is an integral part of the State of Jammu & Kashmir. To add fuel to the fire  China has also decided to build a mega dam in the POK. A Chinese state-owned company has also confirmed that it is going to build this dam. It signals that despite the strong protest of India China is working on big projects in the POK. GCTC among the biggest state-owned hydro power companies of China has entered into an agreement to build a dam in the POK. As per Pak media reports China has signed a 30 year tariff agreement for this. India has already lodged objections on Chinese activities but China has mentioned it as pure commercial activity. It says that there was no bias on Kashmir issue while signing this project. It also said that China has an indifferent attitude over any dispute between India and Pakistan. It is clear that neither Pakistan nor China is concerned over the concerns of India. Both are marching ahead with their plans and India watches them as a mute spectator.

-        Anil Narendra

 

112 साल बाद सूर्य मंदिर के दरवाजे खोलने की योजना

कोणार्प का सूर्य मंदिर भारत के पास ये विश्व की धरोहर है। कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखाöकोणार्प जहां पत्थरों की भाषा मनुपट से श्रेष्ठ है, आजकल फिर चर्चा में है। अगर आप मंदिर गए हों तो आपने देखा होगा कि तीन मंडपों में बंटे इस मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला ध्वस्त हो चुके हैं और अब इसका ढांचा ही शेष है। बीच का हिस्सा, जिसे जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है, इसमें 1901 में चारों तरफ से दीवारें उठवाकर रेत भर दी गई थी। अब इसी रेत और दीवारों को हटाने की कवायद की जा रही है ताकि इसके भीतर की दीवारों की कलाकृति भी लोग देख सकें। अपनी विशिष्ट कलाकृति और इंजीनियरिंग के लिए विश्व प्रसिद्ध इस मंदिर को पर्यटकों ने अभी तक अधूरा ही देखा है। इसके लिए भारतीय पुरातत्व विभाग और सीबीआरआई (सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की) की टीम काम कर रही है। हाल ही में सीबीआरआई की टीम ने एंडोस्कोपी के जरिये मंदिर के भीतर के कुछ चित्र और वीडियो लिए हैं, जिनका अध्ययन किया जा रहा है, साथ ही इसकी एक छोटी-सी रिपोर्ट की एक कॉपी एएसआई के हेडक्वार्टर भेजी जा चुकी है। अब इस पर एएसआई को निर्णय करना है। सब कुछ सही रहा तो वर्ष 2016 में रेत हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। सबसे प्रमुख तथ्य धरोहर की रक्षा है। मंदिर दोबारा खोलने की प्रक्रिया का अभी पहला चरण ही पूरा हुआ है, जिसमें एंडोस्कोपी के जरिये अध्ययन किया जा रहा है। इसके आधार पर अंदर की दीवारों की मजबूती, इंजीनियरिंग के मापदंड और मंदिर के फाउंडेशन सिस्टम का अध्ययन किया जा रहा है। सूर्य मंदिर के मुख्य अधिकारी निर्मल कुमार महापात्र के अनुसार कोणार्प में औसतन रोज तकरीबन 10 हजार लोग आते हैं। सीजन में यह संख्या 25 हजार तक चली जाती है। इसे बढ़ाने की योजना पर पर्यटन विभाग और इंडियन ऑयल फाउंडेशन विभिन्न उपाय कर रहे हैं। कोणार्प में लाइट और साउंड शो की तैयारी भी हो रही है। मंदिर का इतिहास यह है कि कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण जब मंदिर के बीच का हिस्सा शेष बचा तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडवन ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह से रेत से भर दिया ताकि यह सलामत रहे और किसी तरह की आपदा इसे प्रभावित न कर सके। तब से लेकर अब तक यह इसी अवस्था में है। इसके बाद समय-समय पर पुरातत्वविदों ने इसके अंदर के भाग के अध्ययन की जरूरत बताई और रेत निकालने के लिए योजना बनाने पर जोर दिया।

-अनिल नरेन्द्र