Tuesday, 7 October 2025

कांटे की टक्कर दिखती है बिहार में


बिहार में विधानसभा चुनावों की तैयारियां अपने चरम पर हैं। पार्टियों के बीच साधे जा रही सीटों के समीकरण के बीच भारतीय चुनाव आयोग ने एसआईआर यानि गहन मतदाता पुनरीक्षण के आंकड़े भी जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक बिहार में अब 7.42 करोड़ मतदाता हैं। अब बिहार चुनाव की घोषणा भी हो गई और 14 नवंबर 2025 को रिजल्ट भी आ जाएगा। पाठकों की जानकारी के लिए बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए किसी भी दल या गठबंधन के पास 122 सीटें होना जरूरी है। बिहार में फिलहाल जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के घटक दलों वाली एनडीए सरकार है और आरजेडी के तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। विधानसभा में अभी भाजपा के 80 विधायक हैं। आरजेडी के 77, जेडीयू के 45 और कांग्रेस के 19, कम्युनिस्ट पार्टी के 11, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के 4, कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के 2, कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के दो, ओवैसी की पार्टी का एक और 2 निर्दलीय विधायक हैं। सभी पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए जमकर रेवड़ियां बांट रही है। कहीं तो बिहार की 75 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए पहुंच रहे हैं तो कहीं चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से पहले सीएम नीतीश कुमार की तरफ से करोड़ों रुपए की योजनाओं की घोषणा हो रही है। महिलाओं के खातों में पैसे देने के बाद पीएम मोदी ने युवाओं के लिए करीब 62 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू की हैं। इनमें बिहार के लिए भी काफी योजनाएं हैं। इन योजनाओं से लगता है कि बिहार चुनाव सत्तारूढ़ केंद्र की एनडीए सरकार के लिए बहुत ज्यादा महत्व रखती है और केंद्रीय नेतृत्व किसी भी हालत में बिहार खोना नहीं चाहता। इन योजनाओं से लगता है कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार महिलाओं और युवाओं पर विशेष ध्यान देकर चुनाव में जीत की संभावनाएं बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी ओर महागठबंधन भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। एसआईआर, वोट चोरी और संविधान रक्षा इनके प्रमुख मुद्दे हैं। एनडीए की अंदरूनी खींचतान भी चिंता का विषय बना हुआ है। इस बार चुनाव में एक नया फैक्टर भी जुड़ गया है। वह है पीके यानि प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी। पीके ने बिहार में अपने आरोपों से तहलका मचा दिया है। उनके फिलहाल निशाने पर सत्तारुढ़ एनडीए सरकार के मंत्री हैं। प्रशांत किशोर अपनी जनसभाओं में जबरदस्त भीड़ खींच रहे हैं। देखना यह होगा कि यह किसकी वोट काटते हैं, एनडीए की या महागठबंधन की? अगर पीके 10-12 सीटें निकाल लेते हैं तो यह किंग मेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं। बिहार में इस समय लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन बनाम जन सुराज पार्टी के बीच दिखती है। मैं व्यक्तिगत रूप से इन चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर विश्वास नहीं करता पर जो इन पर यकीन करते हैं उनकी जानकारी के लिए एक ताजा सर्वेक्षण का ब्यौरा दे रहा हूं। नीतीश कुमार, तेजस्वी या प्रशांत किशोर.... बिहार का कौन होगा अगला मुख्यमंत्री नाम के सी-वोटर का ताजा सर्वेक्षण आया है। 2025 में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ गई है। हालिया सी-वोटर सर्वे ने दिखाया है कि तेजस्वी यादव अभी सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री के दावेदार हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि प्रशांत किशोर ने लोकप्रिया में नीतीश कुमार को पछाड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल किया है। कौन जीत रहा है यह कहना मुश्किल है, कांटे की टक्कर है। एनडीए, इंडिया गठबंधन और प्रशांत की जन सुराज पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले ने लड़ाई दिलचस्प बना दी है। सवाल यह भी है कि क्या नीतीश कुमार लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बन पाएंगे या फिर एनडीए की जीत होती है तो क्या भाजपा किसी नए मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा करेगी। वहीं विपक्ष अगर जीतती है तो उसका कौन मुख्यमंत्री होगा क्योंकि अभी तक इस विषय पर कांग्रेस ने कुछ खुलकर नहीं बोला है। सी-वोटर सर्वे के अनुसार बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को लगभग 35 फीसदी लोगों ने भावी मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। जबकि नीतीश कुमार को इस सर्वे में तीसरी पसंद बताया गया है और उन्हें केवल 16 प्रतिशत लोगों ने चुना। जबकि दूसरे नंबर पर राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की लोकप्रियता इस सर्वे में सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री के रूप में 23 प्रतिशत तक पहुंच गई है। जैसा मैंने कहा कि मुझे इन सर्वेक्षणों पर यकीन नहीं है। इनसे बहरहाल इतना तो पता चलता ही है कि बिहार में कैसी सियासी हवा चल रही है। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 4 October 2025

बंदियों की रिहाई तक बातचीत नहीं

कारगिल डेपोटिक अलायंस (केडीए) ने मंगलवार को कहा कि बंदियों की रिहाई तक केंद्र सरकार से कोई बातचीत नहीं होगी। संगठन ने गोलीबारी की घटना की न्यायिक जांच की मांग की। वहीं केडीए ने लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के केंद्र के साथ बातचीत स्थगित करने के फैसले का भी समर्थन किया है। बीते 24 सितम्बर को हुई हिंसा में 4 लद्दाखियों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए थे। मरने वालों में कारगिल युद्ध में भाग लेने वाले पूर्व सैनिक त्सेवांग थारचिन भी शामिल थे। राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा कि थारचिन के पिता का जो वीडियो सामने आया है। उससे पता चलता है कि पिता भी फौजी है, बेटा भी फौजी है, जिनके खून में देशभक्ति बसी है। फिर भी सरकार ने देश के वीर बेटे की गोलीमार कर जान ले ली, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो लद्दाख और अपने अधिकार के लिए खड़ा था। बता दें कि 24 सितम्बर को एलएबी द्वारा बुलाए गए बंद में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इसमें 4 लोगों की मौत हो गई थी। 150 लोगों को दंगा फैलाने के आरोप में हिरासत में लिया गया। आंदोलन का चेहरा बने सोनम वांगचुक को एनएसए में गिरफ्तार कर जोधपुर जेल में भेजा गया है। सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने मंगलवार को कहा कि उनके पति सोनम वांगचुक को 26 सितम्बर को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिया गया था। उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि सोनम वांगचुक समेत अभी तक 60 भारतीयों को मैग्सायसाय अवार्ड मिला है। इनमें से 20 को भारत सरकार ने पदमश्री, पद्मभूषण भी दिया है। तो क्या सरकार एंटी नेशनल को भी ये सभी अवार्ड देती है। नवभारत टाइम्स में छपी इस रिपोर्ट में डॉक्टर गीतांजलि ने सीधा सवाल किया कि अगर सोनम एंटी नेशनल थे तो यही सरकार उन्हें इतना पुरस्कृत क्यों कर रही थी। अभी एक महीने से ऐसा क्या हुआ? जो अच्छा काम कर रहा है उसको टारगेट किया जा रहा है। उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट को मिले कथित डोनेशन के बारे में कहा कि वह डोनेशन नहीं, बल्कि बाहर की यूनिवर्सिटी ने उनकी रिसर्च खरीदी थी। गीतांजलि ने कहा कि सरनेम और उनके हिमालय इंस्टीट्यूट ऑफ अल्ट्रनेटिव लद्दाख (एचआईएएल) के बारे में जो नैरेटिव फैलाया जा रहा है, वह सब सरासर गलत है। सीबीआई और आईटी से लेकर सभी को उन्होंने सुबूत दिए हैं कहीं भी कुछ नहीं मिला। गीतांजंलि ने कहा कि अगर कोई पाकिस्तानी सिस्टम लद्दाख में दिखा तो हमारा सवाल यह है कि आपने यह सेफ्टी प्रोटोकॉल कैसे ब्रीच होने दिया? इसका जवाब हम नहीं बल्कि केन्द्राrय गृह मंत्रालय को देना चाहिए। उन्होंने सोनम के राजनीति में आने की बात को भी दरकिनार करते हुए कहा कि हर बार जब भी चुनाव आते हैं तो सभी राजनीतिक पार्टी उन्हें अप्रोच करती हैं लेकिन वह कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि तीन बार तो मेरे सामने ही उन्होंने इसे रिजेक्ट किया है। सरकार को हिंसा और डर की राजनीति बंद करके संवाद करना चाहिए। सोनम वांगचुक को देशद्रोही मानने को कोई भी तैयार नहीं है। जो आदमी भारतीय सेना के लिए सोलर टेंट बना सकता है ताकि हमारे सैनिक कड़ाके की ठंड से बच सकें वो देशद्रोही कैसे हो सकता है? चीन से सीधे टक्कर लेने वाले लद्दाखियों से ज्यादा देशभक्त देश में और कौन हो सकता है? आज लद्दाख में क्या स्थिति हैं भाषा की यह रिपोर्ट दर्शाती है। हितधारकों का कहना है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद बड़े पैमाने बुकिंग पर रद्द होने से उद्योग को सर्वाधिक झटका लगा था, लेकिन अब लेह में हुई हिंसा से हिंसक पर्यटकों का भरोसा डगमगा गया है। एलएबी द्वारा बंद के दौरान हुई झड़पों के बाद 24 सितम्बर को लेह शहर में अनिश्चितकाल कर्फ्यू लगा दिया गया था जिसमें अब थोड़ी राहत दी गई है। लेह एपेक्स बॉडी लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इसे में छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए आंदोलन कर रही है। लद्दाख में इंटरनेट सेवाएं बंद रहीं। इस वजह से सारी बुकिंग रद्द होने लगी है और स्थायी हितकारियों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। यात्री अपने कमरों में बंद हैं। केंद्र सरकार को लद्दाख की एहमियत समझनी चाहिए। वह चीन और पाकिस्तान से लगता बार्डर क्षेत्र है। लद्दाखियों ने हमेशा देश की सुरक्षा में अगली पंक्ति में भाग लिया है। केंद्र सरकार को तुरन्त शांति बहाल करनी चाहिए। सभी कैदियों को रिहाकर सारे केस वापस लेने चाहिए। ऐसा एपेक्स बॉडी का कहना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार इस ज्वलंत स्थिति का अविलम्ब समाधान करेगी। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 2 October 2025

कप हमने जीता, ट्राफी लेकर भागे पाकिस्तानी


लेकर भागे पाकिस्तानी एशिया कप में भारत की बादशाहत बरकरार रही। रविवार को दुबईं में खचाखच भरे स्टेडियम में टीम इंडिया ने पाक को पांच विकेट से हराकर नौवीं बार एशिया कप अपने नाम किया। यह मैच जितना रोमांचक फील्ड पर था उतना ही रोमांचक मैच खत्म होने के बाद रहा। कांटे का मुकाबला देखने को मिला। आखिरी ओवर तक यह नहीं पता लग रहा था कि जीत किसकी होगी? इस मुकाबले में पाकिस्तान ने इस एशिया कप की सबसे शानदार ओपनिंग की। पाकिस्तान का एक समय में 113 रन पर सिर्प एक विकेट थी। लेकिन अंतिम ओवरों में उन्होंने 33 रन ही बनाकर अपनी 9 विकटें गंवा दी। भारतीय गेंदबाजों में सबसे सफल रहे वुलदीप यादव जिन्होंने वुल 30 रन देकर 4 विकटें लीं, पर महत्वपूर्ण पल तब था जब वरुण चव्रवर्ती ने ओपनिंग जोड़ी को तोड़कर साहिबजादा फरहान को आउट किया। यह गेम का टर्निग प्वाइंट था। पाकिस्तान 19.1 ओवर में वुल 146 रन ही बना पाया। भारत की शुरुआत अच्छी नहीं रही। ओपनर अभिषेक शर्मा दूसरी बॉल पर ही आउट हो गए, जिससे सबसे ज्यादा उम्मीद थी। कप्तान सूर्यंवुमार यादव एक बार फिर फिसड्डी साबित हुए और 1 रन ही बनाकर निकल लिए। भारत अब मुश्किल में था। पाकिस्तान का पलड़ा भारी हो गया था पर तिलक वर्मा, संजू सैमसन और शिवम दूबे ने मोर्चा संभाला और अंतिम ओवर में तिलक के छक्के और रिंवू सिंह के चौके ने एशिया कप भारत के नाम कर दिया। बेशक मैदान में व्रिकेट का मैच तो यहीं खत्म हो गया पर एक दूसरा नाटक आरंभ हो गया। भारत ने जैसा पूर्व मैचों में हुआ था पाकिस्तानी खिलािड़यों से हाथ नहीं मिलाया।

यही नहीं टीम इंडिया ने एशिया कप ट्राफी भी नहीं ली। दरअसल फाइनल के बाद टीम इंडिया ने साफ मना कर दिया था कि वह पाकिस्तानी सरकार के मंत्री मोहसिन नकवी से ट्रॉफी नहीं लेंगे, लेकिन एशियन व्रिकेट काउंसिल के अध्यक्ष होने के नाते ट्राफी देने की जिद पर अड़े रहे। इसके चलते पोस्ट मैच प्रेजेंटेशन भी काफी देरी से शुरू हुईं। जब भारतीय टीम के मेडल और ट्राफी लेने की बात आईं तो साइमन डूल ने कहा कि देवियों और सज्जनों, मुझे एशियाईं व्रिकेट परिषद ने सूचित किया है कि भारतीय व्रिकेट टीम आज अपने पुरस्कार नहीं ले पाएगी तो मैच के बाद की प्रस्तुती यहीं समाप्त होती है। भारतीय टीम ने ट्रॉफी लेने से इंकार किया तो मोहसिन नकवी ट्रॉफी और मेडल लेकर अपने होटल चले गए। हालांकि उन्हें ऐसा करने का कोईं अधिकार नहीं था। यह ट्रॉफी न तो उनकी थी न ही पाकिस्तान की। बीसीसीआईं के सचिव देवजीत सैकिया ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि हम ऐसे व्यक्ति से ट्रॉफी स्वीकार नहीं कर सकते जो ऐसे देश का प्रतिनिधित्व करता है जो हमारे देश के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है और खुलेआम परमाणु बम हम पर गिराने की वकालत करता है। टीम इंडिया के इस पैसले का पूरे देश ने तहेदिल से स्वागत किया है। ट्रॉफी से कहीं ज्यादा तिरंगा, आत्मसम्मान मैटर करता है। ट्रॉफियां तो आती-जाती रहती हैं। भारतीय कप्तान सूर्यंवुमार यादव ने मैच के बाद एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम उठाया। पाकिस्तान को पांच विकेट से हराकर नौंवी बार यह खिताब जीतने के बाद सूर्यंवुमार यादव ने घोषणा की वह टूर्नामेंट में खेले गए अपने सभी मैचों की पूरी फीस भारतीय सेना को दान कर देंगे।

यह उनके लिए और पूरी टीम के लिए भावनात्मक और देशभक्ति पूर्ण पल था। भारतीय व्रिकेट वंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआईं) ने टीम के शानदार प्रदर्शन की सराहना करते हुए खिलािड़यों और सपोर्ट स्टाफ के लिए 21 करोड़ रुपए की घोषणा की है। अगर यह ट्रॉफी भारत के पक्ष में आईं तो हमें वुछ खिलािड़यों के विशेष योगदान की सराहना करनी होगी। वुलदीप यादव ने इस फाइनल मैच में न केवल 30 रन देकर 4 विकेट ही लिए बल्कि भारत की तरफ से टी-20 फाइनल में सबसे बेस्ट बॉलिंग करने वाले गेंदबाज बन गए। उन्होंने एक साथ इरफान पठान, चहल, हार्दिक और आरपी सिंह का रिकार्ड तोड़ दिया। अगर हम बल्लेबाजी की बात करें तो तिलक वर्मा का योगदान कभी न भूलने वाली पारी थी। भारत की जीत का तिलक असल में तिलक वर्मा को लगाना चाहिए। भारत की जीत के हीरो तिलक वर्मा रहे। पूरे टूर्नामेंट में भारत ने पाक पर जीत की हैट्रिक लगाईं। तिलक वर्मा ने भारत की पारी तब संभाली जब टीम इंडिया हार के कगार पर खड़ी थी और पाकिस्तानियांे को लग रहा था कि वह जीत गए हैं। तिलक 69 रन बनाकर नाबाद रहे। वहीं शिवम दूबे ने 33 रन बनाए।

147 रन का टारगेट भारतीय टीम ने 20वें ओवर की चौथी बॉल पर रिंवू सिंह के चौके के साथ हासिल कर लिया। हम टीम इंडिया को तहेदिल से बधाईं देते हैं और धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने तिरंगे की शान बचाईं।

——अनिल नरेन्द्र 

Tuesday, 30 September 2025

शाहरुख खान बनाम समीर वानखेड़े

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ड्रग्स से जुड़े अपराधों की जांच करने वाली एक केंद्रीय एजेंसी है। इसके पूर्व अधिकारी आईआरएस एवं एनसीबी के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े ने दिल्ली हाईकोर्ट में अभिनेता शाहरुख खान और गौरी खान के स्वामित्व वाली कंपनी रेड चिलीज के प्रोडक्शन में बनी और नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम की गई वेब सीरीज द वैड्स ऑफ बॉलीवुड में झूठा, भावनापूर्ण और मानहानि वाला कंटेंट पेश करने के खिलाफ याचिका दायर की है। याचिका में उन्होंने दो करोड़ रुपए का मुआवजा भी मांगा है। जिसे वे टाटा मैमोरियल कैंसर अस्पताल को दान करना चाहते हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि यह राशि कैंसर रोगियों के इलाज के लिए अस्पताल में इस्तेमाल की जाएगी। बता दें कि मामला क्या है? दरअसल इस वेब सीरीज में समीर वानखेड़े का कहना है कि इसमें दिखाए गए दृश्य उन्हें बदनाम करने की कोशिश है क्योंकि इसमें एक अधिकारी को ऐसा दिखाया गया है जैसे वह बॉलीवुड सितारों के पीछे पड़ा रहता है। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक याचिका में कहा गया है कि यह सीरिज जानबूझकर समीर वानखेड़े की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के इरादे से बनाई गई है। इसमें यह भी पा है कि यह सीरीज ऐसे समय तैयार की गई है जब वानखेड़े और शाहरुख खान के बेटे आर्यन से जुड़ा मामला बाम्बे हाईकोर्ट और एनडीपीएस की विशेष अदालत में विचाराधीन है। साल 2021 में आर्यन खान के खिलाफ शुरू हुआ था यह मामला। शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को लेकर यह विवाद 4 साल पहले 21 अक्टूबर 2021 में तब शुरू हुआ था जब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने मुंबई कॉर्डेलिया ाtढज जहाज पर एक रेव पार्टी की जानकारी मिलने पर छापेमारी की थी। एनसीबी के उस समय के मुंबई जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े और अधीक्षक वीवी सिंह की टीम ने इस छापे का नेतृत्व किया था। छापेमारी में आशीष रंजन जांच अधिकारी के रूप में मौजूद थे। एनसीबी ने 3 अक्टूबर 2021 को आर्यन खान को गिरफ्तार किया था। 25 दिन जेल में बिताने के बाद 28 अक्टूबर 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने आर्यन को जमानत दी थी। हालांकि इस छापेमारी और इसमें शामिल अधिकारियों पर सवाल खड़े हुए और 25 अक्टूबर 2021 को एनसीबी की ओर से एक विशेष जांच दल का गठन किया गया। इस दल ने मुंबई और दिल्ली में एनसीबी के अधिकारियों सहित स्वतंत्र गवाहों से भी पूछताछ की और वानखेड़े और अन्य अधिकारियों की कार्यशैली को लेकर कई अहम सवाल उठ गए। जांच दल ने पूछताछ के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने एक प्राथमिकी दर्ज की। इसमें समीर वानखेड़े, विश्व विजय सिंह और अन्य के खिलाफ आरोप लगाए गए। समीर वानखेड़े इस विवाद से पहले भी अक्सर गौसवी, सैनविल डिसूजा और एक अज्ञात के खिलाफ भी आरोप लगाए गए। मुंबई एयरपोर्ट पर कस्टम विभाग में काम करते हुए उन्होंने कई बॉलीवुड सितारों के खिलाफ कार्रवाई की थी। जिसमें उनकी कड़ी छवि बनी। हालांकि आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद उनका नाम और काम दोनों ज्यादा सुर्खियों में आए। उस समय महाराष्ट्र सरकार के मंत्री रहे नवाब मलिक ने आरोप लगाया था कि वे बॉलीवुड सितारों को झूठे मामलों में फंसाने की साजिश रच रहे हैं और उनके नाम से फर्जी दस्तावेज बनाए गए हैं। नवाब मलिक ने इन आरोपों को सोशल मीडिया पर भी उठाया, जिससे विवाद और बढ़ गया। वानखेड़े के वकील आदित्य गिरी ने दावा किया कि वेब सीरीज के एक किरदार को अश्लील इशारा करते हुए दिखाया गया है। यह इशारा सत्यमेव जयते का नारा लगाने के बाद बीच वाली उंगली दिखाते हुए किया गया है। इस तरह का चित्र राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। वानखेड़े की ओर से इस याचिका में कहा गया है कि इस सीरीज की अवधारणा और ािढयान्वयन जानबूझकर वानखेड़े की प्रतिष्ठा को कलंकित करने के इरादे से किया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने पावार को समीर वानखेड़े की मानहानि याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया। जस्टिस पुष्पेन्द्र कुमार ने कहा कि मांगी गई राहतें दिल्ली में विचार योग्य नहीं हैं। हालांकि कोर्ट ने वानखेड़े को याचिका में संशोधन कर दोबारा दाखिल करने की इजाजत दे दी। सुनवाई के दौरान रेड चिलीज की ओर से सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और नेटफ्लिक्स की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी पेश हुए। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 27 September 2025

बिहार में भ्रष्टाचार पर उठते सवाल

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जंगलराज बनाम विकास के नैरेटिव की जंग के बीच अब भ्रष्टाचार यानी करप्शन का मुद्दा गरमा गया है। चारों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला आरंभ हो चुका है। पहले बात करते हैं जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर की। प्रशांत किशोर ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सहित सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं पर कई आरोप लगाए हैं। वे लगातार इन आरोपों को दोहरा रहे हैं तो अब सत्तारूढ़ गठबंधन के लोग भी इन आरोपों को लेकर सवाल पूछने लगे हैं। बिहार में भाजपा और उसके सहयोगी दल विपक्ष को घेरने के लिए जंगलराज का मुद्दा उठा रहे हैं। सोशल मीडिया और अन्य प्रचार माध्यमों से जंगलराज की याद दिलाई जा रही है। पार्टी के एक नेता के मुताबिक जिन लोगों ने बिहार में जंगलराज का दौर देखा है। उन्हें फिर से उस दौर की याद दिलाई जा रही है। साथ ही नई पीढ़ी को भी बता सकें कि बिहार किस दौर से गुजरा था और अगर विपक्ष सत्ता में फिर आया तो वह दौर फिर लौट सकता है। एक तरफ जहां भाजपा इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है वहीं राजनीति में एक नया मुद्दा भी जुड़ता जा रहा है, जो भाजपा को ही नहीं पूरे एनडीए की चिंता बढ़ा सकता है। जनसुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर हत्या और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है तो जेडीयू नेता और मंत्री अशोक चौधरी पर भी 200 करोड़ की बेमानी संपत्ति का आरोप लगाया है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे पर दिलीप जायसवाल से पैसे लेकर फ्लैट खरीदने का आरोप जड़ा है तो उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर फर्जी डिग्री का आरोप लगाया है। प्रशांत किशोर जिस आक्रामक तरीके से लगातार इन आरोपों को उठा रहे हैं और इन पर जवाब मांग रहे हैं उससे राज्य की राजनीति में जंगलराज बनाम विकास की जगह अभी सबसे ज्यादा चर्चा इसी पर होने लगी है। इस पूरी बहस को और हवा दी भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर ने जिन नेताओं पर आरोप लगाए हैं उन्हें जवाब देना चाहिए और जवाब नहीं आने से भाजपा का ग्राफ गिर रहा है। जेडीयू नेता व प्रवक्ता नीरज कुमार ने भी कहा कि आरोपों पर अशोक चौधरी को अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी अग्नि परीक्षा से गुजर रही है और इस तरह के गंभीर आरोप सामान्य बात नहीं है। आरोपों का बिंदुवार जवाब देना चाहिए। उधर बिहार के मंत्री अशोक चौधरी ने मंगलवार को जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर को कानूनी नोटिस भेजा। साथ ही कहा कि वह बिना शर्त माफी मांगे या 100 करोड़ रुपए की मानहानि का मुकदमा झेलने के लिए तैयार रहें। बता दें कि हाल ही में पटना में प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया था कि चौधरी करीब 200 करोड़ रुपए मूल्य की जमीन की कथित रूप से अनियंत्रित खरीद-परोख्त में शामिल हैं। ग्रामीण कार्य विभाग का प्रभार संभाल रहे अशोक चौधरी ने नोटिस से किशोर से कहा है कि वह या तो अपने आरोपों को साबित करने के लिए सुबूत दें या फिर सार्वजनिक तौर पर बिना शर्त माफी मांगे। बिहार विधानसभा चुनावों की किसी भी समय घोषणा हो सकती हैं, ऐसे में इस प्रकार के आरोप एनडीए के लिए शुभ नहीं माने जा सकते। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 25 September 2025

पाक-सऊदी में सैन्य समझौता

पाकिस्तान और सऊदी अरब में एक अहम और कुछ मायनों में महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। पाकिस्तान एक सैन्य परमाणु शक्ति है बेशक वह एक संघर्ष करती अर्थव्यवस्था है। वहीं सऊदी अरब आर्थिक रूप से ताकतवर है लेकिन सैन्य रूप से कमजोर है। सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों ही सुन्नी बहुल देश हैं और दोनों के बीच मजबूत संबंध रहे हैं। सऊदी ने कई बार आर्थिक संकट के समय पाकिस्तान की मदद की है और पाकिस्तान भी बदले में सऊदी को सुरक्षा सहयोग का भरोसा देता रहा है। अब पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच स्ट्रैटिजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट हुआ है। इसके मुताबिक, किसी एक के प्रति दिखाई गई आाढामकता दूसरे के खिलाफ मानी जाएगी। कुछ वैसा ही समझौता जैसा नाटो के सदस्य देशों के बीच है। यह डिफेंस एग्रीमेंट यह भी कहता है कि अगर एक देश पर हमला हुआ तो दूसरा देश उसे खुद पर भी हमला मानेगा। यानि अब अगर पाकिस्तान या सऊदी अरब पर कोई हमला होता है तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। दोनों देशों की थल, वायु और नौ सेनाएं अब और अधिक सहयोग करेंगी और खुफिया जानकारियां साझा करेंगी। चूंकि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है। ऐसे में इसे खाड़ी में सऊदी अरब के लिए सहयोग का भरोसा भी माना जा सकता है। हाल ही में इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास नेताओं पर हमले किए थे। इससे अरब जगत में उथल-पुथल और बेचैनी बढ़ गई है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस समझौते के बाद कहा, हमारे भाईचारे के रिश्ते ऐतिहासिक मोड़ पर हैं, हम दुश्मनों के खिलाफ एकजुट हैं। पाक के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा, पाकिस्तान सऊदी से मिले पैसे से अमेरिकी हथियार खरीद पाएगा। भले ही यह कहा जा रहा हो कि यह समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब के लंबे ऐतिहासिक रिश्तों का परिणाम है, लेकिन भारत के लिए यह डिवेलपमेंट चिंता बढ़ाने वाला जरूर है। सऊदी अरब खाड़ी में भारत के करीबी सहयोगियों में से एक है। व्यापार, निवेश, ऊर्जा, सुरक्षा सहयोग समेत कई क्षेत्रों में दोनों के बीच पिछले दो दशकों में संबंध गहरे हुए हैं। खासकर ाढाउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के दौर में नई तरह की गर्मजोशी देखने को मिली है। पीएम मोदी इस साल अप्रैल में ही अपने तीसरे सऊदी दौरे पर गए थे। जहां दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी थी। यह समझौता जितना पश्चिम एशिया के लिए, उतना ही भारत समेत समूचे दक्षिण एशिया के लिए भी चिंतनीय है। सर्वाधिक शंकाएं तो समझौते के इस प्रावधान को लेकर है कि दोनों में से किसी भी देश पर कोई हमला दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। क्या इसका अर्थ यह है कि अगर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा होती है तो सऊदी अरब और पाकिस्तान एक साथ खड़े होंगे? चार महीने पहले ही भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा संघर्ष हुआ था। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बार्डर पर अब भी तनाव बना हुआ है। ऐसे में यह आशंका दरकिनार नहीं की जा सकती कि भारत और पाकिस्तान के तनाव में इस समझौते की वजह से सऊदी अरब भी पार्टी बन जाए। हालांकि समझौते का एक और अहम एंगल भी है, हाल में इजरायल ने कतर पर एक एयर स्ट्राइक कर हमास नेताओं को निशाना बनाने का प्रयास किया था। इसे लेकर मुस्लिम वर्ल्ड में काफी गुस्सा है। इस हमले के बाद दोहा में इस्लामिक अरब देशों का एक आपातकालीन शिखर सम्मेलन बुलाया गया था। जहां यह चर्चा भी उठी थी क्या नाटो जैसा कोई संयुक्त सुरक्षा बल बनाया जा सकता है? यह समझौता उसी का नतीजा भी हो सकता है। देखा जाए तो भारत और सऊदी अरब के बीच गहरे सामाजिक सांस्कृतिक संबंध तो हैं ही, यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सऊदी अरब भारत का 5वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। खाड़ी देशों में लाखों भारतीय नौकरियां करते हैं। इस समझौते के बाद भारत की चिंता का जन्म होना स्वाभाविक है। ऐसा समझौता रूस ने उत्तर कोरिया के साथ किया था। हमारे रूस से अच्छे संबंध हैं जबकि नार्थ कोरिया से उतने अच्छे नहीं हैं। क्योंकि वह चीन के नजदीक है। बावजूद इसके रूस से हमारे रिश्तों पर नैगेटिव असर नहीं पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि हमें सऊदी अरब से कोई खतरा नहीं है, लेकिन इससे पाकिस्तान को जो फायदा और मजबूती मिलेगी उसे वह भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। इस रक्षा समझौते से पूरे क्षेत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है। भारत ने कहा है कि वह इसके असर को देखेगा। सरकार को अपनी चिंताओं को लेकर सऊदी अरब से खुलकर बात करनी चाहिए। पाकिस्तान के इस्लामिक नाटो सरीखे विचार को खाड़ी देशों ने तवज्जो न भी दी हो, लेकिन उपर्युक्त समझौता भारत से कूटनीतिक सतर्कता बनाए रखते हुए बहुपक्षीय विदेशी नीति को मजबूत करने की मांग तो करता ही है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 23 September 2025

किर्क की हत्या ः अमेरिका में बढ़ती राजनीतिक हिंसा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी चार्ली किर्क को गोली मारकर हत्या कर दी गई। वारदात यूटा के ओरम स्थित यूटा वैली यूनिवर्सिटी में छात्रों की मीटिंग के ठीक दौरान हुई। इस हत्या ने एक बार फिर अमेरिका को हिलाकर रख दिया है। यूटा वैली यूनिवर्सिटी में उस समय करीब तीन हजार छात्र थे। जब हमलावर ने चार्ली पर निशाना साधा। अधिकारियों ने जांच में पाया कि स्नाइपर ने दूर एक इमारत की छत पर छिपकर जो करीब 180 मीटर दूर थी से सीधी एक गोली चलाई जो चार्ली की गर्दन में लगी और वहीं वह ढेर हो गए। कौन थे चार्ली किर्क? चार्ली एक अमेरिकी कंजरवेटिव और मीडिया पर्सनैलिटी थे। उन्होंने टर्निंग प्वांट यूएसए नाम का यंग कंजरवेटिव संगठन 18 साल की उम्र में ही स्थापित किया था। वह उसके को-फाउंडर थे। वह युवाओं को राजनीतिक रूप से सािढय बनाने, बहसों में हिस्सा लेने और रूढ़िवादी विचारों को प्रेरित करने के लिए जाने जाते थे। राष्ट्रपति ट्रंप के करीबी चार्ली किर्क के हत्यारे और हत्या की वजह के बारे में अब तक कुछ ठोस पता नहीं चला है लेकिन यह तय है कि उनकी लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ रही थी। ऐसे में एक सवाल यह भी है]िक उन्हें कहीं उनकी बढ़ती लोकप्रियता तो हत्या की वजह नहीं बनी? छत से गोली वैसे ही चलाई गई, जैसे जुलाई 2024 में चुनाव प्रचार के दौरान पेनसिलवेनिया में डोनाल्ड ट्रंप पर चली थी। तब गोली ट्रंप का कान छूकर निकल गई थी। ट्रंप ने 31 वर्षीय किर्क को महान और दिग्गज बताया। वीडियो संदेश में उन्हें सत्य और स्वतंत्रता का शहीद बताया। हत्या के लिए उन्हेंने कट्टर वामपंथियों की बयानबाजी को दोषी ठहराया। चार्ली किर्क के आखिरी भाषण का 30 सेकेंड का वीडियो सामने आया है। सफेद टेंट में बैनर्स पर द अमेरिकन कमबैक और प्रूव मी रॉन्ग भी रांडा स्लोगन लिखे थे। माइक लेकर बैठे किर्क सवालों का जवाब दे रहे हैं। श्रोता ः 10 सालों में कितने ट्रांसजेंडर अमेरिकियों ने मास शूटिंग की है? किर्क ः बात ज्यादा। श्रोता ः क्या आपको पता है कि 10 सालों में कुल कितने मास शूटर रहे हैं। किर्क ः गैंग वायलेंस की गिनना है या नहीं? तभी गोली चलती है। गर्नर्ड किर्क के पास बैठी मैडिसन लैटिन ने कहा ः मैंने गोली की आवाज सुनी। उनके शरीर से खून निकला और वे गिर गए। फिर चीख-पुकार के बीच अफरातफरी मच गई। यह दुखद है कि अमेरिका में राजनीतिक हिंसा लगातार बढ़ रही है। दक्षिण पंथी व वामपंथी दोनों विचारधाराएं इससे प्रभावित हुई हैं। अमेरिकी इतिहास राजनीतिक हिंसा से भरा है। 60 के दशक में जान एफ कैनेडी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या हुई। हाल के वर्षों में यह भय बार-बार सामने आया। 2021 में ट्रंप समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हमला किया। 2021 में सांसदों को 9600 से ज्यादा धमकियां मिली। अगले साल नैंसी पेलोसी के पति पर हमला हुआ। उसी साल न्यूयार्क के गर्वनर पद के उम्मीदवार ली नेल्डिन को सभा में चाकू से मारने की कोशिश हुई। 2024 में प्रचार के दौरान खुद ट्रंप पर दो बार जानलेवा हमले हुए, जिनमें वे बाल-बाल बच गए थे। अमेरिका के इस यह गन कल्चर को नियंत्रित करने की कई राष्ट्रपति प्रयास कर चुके हैं पर अमेरिका की यह गन लॉबी इतनी शक्तिशाली है कि वह किसी भी प्रकार के कंट्रोल को पारित ही नहीं होने देती। चार्ली किर्क की हत्या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए सीधी चुनौती है। विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला ट्रंप, अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा झटका और चुनौती है। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 19 September 2025

इशाक डार ने ट्रंप के दावे की पोल खोली

पाकिस्तान से दो ऐसी स्वीकृति आई हैं जो न सिर्फ भारत के ऑपरेशन सिंदूर में भारत की सफलता का ही उल्लेख करती है बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति के दावों को भी खारिज करती हैं। इनसे इस बात की भी पुष्टि होती है जो भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी दावा करते आ रहे हैं। सबसे पहले बात करते हैं जैश-ए-मोहम्मद के नंबर दो कमांडर मसूद इलियास कश्मीरी की। इलियास कश्मीरी ने स्वीकार किया है कि आतंकी संगठन के बहावलपुर मुख्यालय पर भारतीय सेना के हमले में उसके संस्थापक मसूद अजहर के परिवार के सदस्यों के चीथड़े उड़ गए थे। मैं अपने परिवार के सदस्यों के मारे जाने की बात स्वीकार करता हूं। मंगलवार को एक यूट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए वीडियो में जैश-ए-मोहम्मद कमांडर इलियास कश्मीरी को भारतीय हमले के खिलाफ जहर उगलते सुना जा सकता है। जिसमें अजहर के परिवार के सदस्य मारे गए थे। यह वीडियो 6 सितम्बर को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुए मिशन मुस्तफा सम्मेलन का बताया जा रहा है। कई बंदूकधारियों के बीच खड़े जैश कमांडर ने कहा इस देश की वैचारिक और भौगोलिक सीमाओं की रक्षा के लिए हमने दिल्ली, काबूल और कंधार पर हमला किया (जेहाद छेड़ा) और अपना सब कुछ कुर्बान करने के बाद सात मई को बहावलपुर में मौलाना मसूद अजहर के परिवार के सदस्यों को भारतीय हमलों में टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया। बता दें कि पहलगाम हमले के बाद भारत ने 6-7 मई की रात ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान व गुलाम कश्मीर में लश्कर व जैश के मुख्यालय समेत 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया था। अजहर ने खुद कहा था कि बहावलपुर में भारतीय हमले में मरने वालों में उसकी बड़ी बहन और उसके पति, एक भतीजा व उसकी पत्नी, एक अन्य भतीजी व परिवार के पांच बच्चे शामिल थे यानि कुल मिलाकर दस ज्यादा मारे गए थे। इसी से साबित होता है कि भारतीय सेना का निशाना कितना सटीक था। अब बात करते हैं ताऊ ट्रंप के दांवों की। पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशार डार ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम कराने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे की ही पोल खोल दी है। डार ने कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने मई में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के दौरान उनसे कहा था कि भारत ने युद्ध विराम के लिए तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से इंकार कर दिया था क्योंकि यह दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है। जब डार से भारत के साथ वार्ता या तीसरे पक्ष की भागीदारी को लेकर पाकिस्तान के रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन भारत स्पष्ट रूप से कह रहा है कि यह एक द्विपक्षीय मामला है। बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार दावा किया है कि उन्होंने दोनों परमाणु संपन्न पड़ोसियों के बीच युद्ध विराम करवाया। ट्रंप 10 मई के संघर्ष विराम के बाद से 30 से ज्यादा बार दोनों देशों में संघर्ष विराम का दावा कर चुके हैं। इशाक डार ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारत ने अमेरिका सहित किसी भी देश की मध्यस्थता से साफ इंकार कर दिया है। डार ने ट्रंप की पोल खोल दी है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 18 September 2025

नेपाल, फ्रांस के बाद अब लंदन


पिछले एक पखवाड़े से कई देशों में जनता सड़कों पर उतरी हुई है। हमने नेपाल में देखा फिर फ्रांस में देखा और अब लंदन में देखा कि किस तरह वहां की जनता अपनी मांगों को लेकर जन-आंदोलन कर रही है। हर देश में हालांकि आंदोलन के मुद्दे अलग-अलग हैं। नेपाल में जहां व्यवस्था परिवर्तन मुद्दा था वहीं फ्रांस में सरकारी नीतियों का विरोध प्रदर्शन था और लंदन में अवैध प्रवासियों के खिलाफ जन आाढाsश देखने को मिला। ब्रिटेन में भी अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकालने की मांग तेज हो गई है। सेंट्रल लंदन में शनिवार को 1 लाख से ज्यादा लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रोटेस्ट को युनाइटेड द किंगडम नाम दिया गया, जिसे एंटी-टू इमिग्रेशन नेता टॉमी रॉबिन्सन ने लीड किया। इसे ब्रिटेन की सबसे बड़ी दक्षिण पंथी रैली माना जा रहा है। इन विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में 26 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। रैली में तनाव उस वक्त बढ़ गया जब प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर बोतलें और दूसरी चीजें फेंकी। मेट्रोपोलिटन पुलिस के अनुसार 4 पुलिसकर्मियों को गंभीर चोटें आई। इस दौरान टेस्ला के मालिक अरबपति एलन मस्क ने वीडियो लिंक के जरिए व्हाइट हाल में मौजूद प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया। वहीं पास में इस रैली के विरोध में स्टैंडअप टू रेसिज्म (नस्लवाद का विरोध करें) द्वारा आयोजित एक और विरोध प्रदर्शन हो रहा था जिसमें करीब 5 हजार लोग शिरकत कर रहे थे। शरणार्थियों को जिन होटलों में जगह दी जाती है उनके सामने भी ‘यूनाइट द किगंडम' की तरफ से बीते दिनों विरोध प्रदर्शन हुए हैं। प्रदर्शन को संबोधित करते हुए टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने कहा कि एक तो ब्रिटेन कमजोर आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है, दूसरी बात यह है कि देश विनाश की ओर बढ़ रहा है। मस्क ने भीड़ से कहा कि हिंसा आ रही है और या तो आप लड़ेंगे या मरेंगे। मस्क ने कहा कि अगर यह जारी रहा तो हिंसा आपके पास आएगी। आपके पास कई विकल्प नहीं होगा। आप यहां एक बुनियादी स्थिति में हैं। आप हिंसा चुनें या न चुनें, हिंसा आपके पास आ रही है या तो आप जवाबी कार्रवाई करेंगे या मर जाएंगे। मुझे सचमुच लगता है कि ब्रिटेन में सरकार बदलनी होगी। चुनाव के लिए अभी चार साल हैं। लेकिन कुछ तो करना ही होगा। संसद को भंग करके नए सिरे से चुनाव कराना होगा। प्रदर्शनकारी ब्रिटेन में अवैध अप्रवासन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इनकी मांग है कि अवैध अप्रवासियों को देश से बाहर किया जाए। इस साल 28 हजार से ज्यादा प्रवासी इंग्लिश चैनल के रास्ते नावों में ब्रिटेन पहुंचे हैं। प्रदर्शन में शामिल लोग अवैध अप्रवासियों को शरण देने के खिलाफ हैं। हाल ही में एक इथियोपियाई अप्रवासी ने 14 साल की लड़की का यौन उत्पीड़न किया था, जिसने लोगों के गुस्से को और बढ़ावा दिया है। सरकार और पुलिस पर आरोप है कि वे अवैध आव्रजन पर नकेल कसने में असफल रहे हैं। इस प्रदर्शन की वजह से इमिग्रेशन नियमों को लेकर राजनीतिक चर्चा फिर से तेज हो गई है। सरकार पर अवैध आव्रजन को रोकने के लिए कठोर फैसले लेने का दबाव है। इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं टॉमी रॉबिन्सन। रॉबिन्सन का असली नाम स्टीफन याक्सली-लेनन है। वह खुद को सरकारी भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला पत्रकार बताते हैं। हालांकि उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। उन्होंने दावा किया कि ब्रिटेन की अदालतों ने बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों के अधिकारों को स्थानीय समुदाय के अधिकारों से ऊपर जगह दी है। कोर्ट ऑफ अपील ने पिछले महीने एस्सेक्स के एपिंग में बेल होटल में शरणार्थियों को ठहराने पर रोक जो लगी थी उसे हटा दी थी। शाम के साढ़े छह बजे रॉबिन्सन ने अपने कार्पाम को खत्म किया। साथ ही उन्होंने इसी तरह के अगले कार्पाम का वादा भी किया। 42 साल के रॉबिन्सन को इसी साल जेल से रिहा किया गया था। अक्टूबर में उन्हें एक सीरियाई शरणार्थी के बारे में झूठे दावे करने से रोकने के आदेश की अवमानना करने के लिए तब जेल हुई जब उस शरणार्थी ने उनके खिलाफ मानहानि का केस जीत लिया था। उधर ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर कीर स्टारगर ने कहा है कि लोगों को शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार हैं, लेकिन पुलिस पर हमले निंदनीय है। हम ब्रिटेन को उन लोगों के हाथों में कभी नहीं सौंपेंगे जो इसे हिंसा, भय और विभाजन के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हम अशांति फैलाने वालों के सामने समर्पण नहीं करेंगे। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 16 September 2025

क्या नई जंग की है ये आहट?

9 सितम्बर 2025 यानि गत मंगलवार का दिन पूरे मध्य पूर्व, विशेषकर कतर और सऊदी अरब के लिहाज से बहुत अहम रहा। इस दिन इजरायली सेना ने दोहा में हमास नेताओं को अपना निशाना बनाया। घटना के बाद इजारयल द्वारा की गई इस हरकत की लगभग सर्वत्र निंदा हुई। दोहा में मंगलवार को हुए इस मिसाइल हमले के बाद कतर हिल गया है। कतर ने इजरायल को कड़ी चेतावनी दी है। कतर के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने इस हमले को संप्रभुता का स्पष्ट उल्लंघन और क्षेत्र को अस्थिर करने की कोशिश बताया। कतरी अधिकारियों के मुताबिक इजरायल का निशाना हमास प्रतिनिधियों को बनाना था, जो दोहा में संघर्ष विराम वार्ता के लिए मौजूद थे। अल-थानी ने इसे एक आतंकी हमला करार देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य शांति प्रािढया को पटरी से उतारना और पूरे इलाके में अराजकता फैल रहा है। हमले में एक कतरी नागरिक की मौत की पुष्टि हुई है। हालांकि हमास प्रतिनिधिमंडल बन गया। प्रधानमंत्री अल-थानी ने सीधे इजरायली प्रधानमंत्री बेजामिंन नेतन्याहू पर आरोप लगाते हुए कहा - यह हमला इस बात का संकेत है कि क्षेत्र में एक ऐसा ताकतवर खिलाड़ी मौजूद है जो अराजकता फैला रहा है। नेतन्याहू पूरे क्षेत्र को अपूरणीय टकराव की ओर धकेल रहे हैं। उन्होंने इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून और नैतिक मूल्य दोनों के खिलाफ बताया। रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमले के बाद कतर के अमीर से बात की। ट्रंप ने हमले की निंदा करते हुए दोहा के प्रति एकजुटता जताई और कतर से आग्रह किया कि वह गाजा में संघर्ष विराम कराने की अपनी भूमिका जारी रखें। उधर इजरायल ने हमले की बात लगभग तुरन्त स्वीकार कर ली। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक बयान में कहा, इजरायल ने इसे शुरू किया इसे अंजाम दिया और हम इसकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। इजरायली मीडिया ने दावा किया कि इस अभियान में 15 इजरायली लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया गया। जिन्होंने 10 बम गिराए। इसमें ड्रोन का इस्तेमाल भी शामिल था। हमला हमास नेतृत्व को निशाना बनाकर किया गया था, हालांकि एक कतरी सुरक्षा अधिकारी सहित छह अन्य लोग मारे गए। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू ने अमेरिका में 9/11 हमले की 24वीं बरसी पर जारी वीडियो संदेश में कतर की राजधानी दोहा पर इजरायली हमले को सही ठहराते हुए सफाई दी। अपने संदेश में नेतन्याहू ने पाकिस्तान और ओसामा बिन लादेन का भी पा किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने अलकायदा का पीछा करते हुए पाकिस्तान में ओसमा बिन लादेन को भी मार दिया था। दोहा हमले का हवाला देते हुए उन्होंने कतर समेत अन्य देशों को चेतावनी दी कि वे चरमपंथियों को पनाह न दें। नहीं तो इजरायल विदेशों में ऐसे हमले जारी रखेगा। बता दें कि ओसमा बिन लादेन को 2 मई 2011 को अमेरिकी नौसेना ने पाकिस्तान के एयराफ्ट में एक ऑपरेशन में मार गिराया था। दोहा हमले को लेकर इजरायली सेना ने दावा किया कि उसने 7 अक्टूबर के ाtढर नरसंहार के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार लोगों को निशाना बनाया जबकि हमास का कहना है कि दोहा में उसके वार्ता प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को निशाना बनाया गया, लेकिन वे हमले में सुरक्षित बच गए। नेतन्याहू ने आगे कहा कि हम 7 अक्टूबर के मास्टर माइंड आतंकवादियों के पीछे गए और हमने यही कतर में किया। वो आतंकवादियों को पनाह देता है, हमास को फंड करता है। आतंकवादी नेताओं को शानदार महल देता है। अब दुनिया के कई देश इजरायल की निंदा कर रहे हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। कतर के विदेश मंत्रालय ने दोहा हमले की तुलना अलकायदा से करने के नेतन्याहू के बयान की निंदा करते हुए कहा कि ये बयान न केवल इजरायल के कायरतापूर्ण हमले को सही ठहराने की कोशिश है। बल्कि भविष्य में भी संप्रभुता के उल्लंघन को सही ठहराने का शर्मनाक प्रयास भी है। नेतन्याहू पूरी तरह से जानते थे कि हमास सदस्यों की मेजबानी कतर के मध्यस्थता प्रयासों के तहत थी और इसका अनुरोध खुद इजरायल और अमेरिका ने किया था। नेतन्याहू के बयान में दो बार पाकिस्तान का पा किए जाने के बाद कई सोशल मीडिया यूजर्स इस पर चर्चा कर रहे हैं। यूजर मंजूर कुरैशी ने लिखा है कि नेतन्याहू कतर को चेतावनी दे रहे हैं कि आतंकवादियों को हमें सौंप दो वरना हम कार्रवाई करेंगे, उन्होंने लिखा यह हैरानी की बात है कि उन्होंने दोहा हमले को सही ठहराते हुए दो बार पाकिस्तान का उल्लेख किया। वही एक अन्य यूजर ने लिखा, पाकिस्तान कतर नहीं है और इजरायल अमेरिका नहीं है। इस बीच कतर से एकजुटता जाहिर करने के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ गुरुवार को कतर यात्रा पर रवाना हो गए। कतर इस इजरायली हमले से तो नाराज है ही पर खाड़ी के अन्य अरब देश अब इसका बदला लेने की तैयारी कर रहे हैं। एक बार फिर मध्यपूर्व में नई जंग की आहट सुनाई देने लगी है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 13 September 2025

जेन जी का प्रादर्शन हुआ हाईंजैक


हुआ हाईंजैक ऐसा नहीं है कि नेपाल में जन आंदोलन पहली बार हो रहा है। ऐसे जन आंदोलन पहले भी कईं बार हुए हैं। पर जिस प्राकार से इस बार इस आंदोलन ने हिसात्मक रूप लिया है वह अभूतपूर्व है। नेपाल में मौजूदा विरोध-प्रादर्शनों में शामिल अधिकांश युवा 28 वर्ष से कम हैं, इसलिए इसे जेन जी का आंदोलन कहा जा रहा है। यह पहला मौका है जब युवा पीढ़ी इस तरह से सड़क पर उतरी। लेकिन क्या इतनी नाराजगी सिर्प सोशल मीडिया पर पाबंदी को लेकर है? इसके जवाब में यही कहा जा सकता है.. शायद नहीं। सोशल मीडिया पर प्रातिबंध के खिलाफ सड़कों पर उतरने से पहले युवा लोग सत्ताधारी वर्ग में व्याप्त भ्रष्टाचार और नेपो बेबीज को लेकर लगातार पोस्ट कर रहे थे। उनके लिए सोशल मीडिया अपनी नाराजगी जाहिर करने का एक हथियार बन चुका था। लोग प्रामुख परिवारों के युवा सदस्यों की तस्वीरें पोस्ट करके सवाल उठा रहे थे।

उनकी जीवन शैली का खर्च वैसे उठाया जाता है? सोशल प्रातिबंध युवाओं के लिए अपना हथियार छीनने जैसा भी था। बढ़ती बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा था। सोशल मीडिया पर नेताओं के भ्रष्टाचार और उनके बच्चों की ऐशो-आराम वाली जिदगी की तस्वीरें और वीडियो शेयर किए। सांसद परिसर तक पहुंचे युवाओं ने नारे लगाए कि हमारा टैक्स तुम्हारी रईंसी कि नहीं चलेगी। सोशल मीडिया बैन ने बस उस आग में घी डालने का काम किया। जिसके पीछे लंबे समय से जमा हताशा और आव््राोश का फल था। जिस प्राकार से इस आंदोलन ने शक्ल ली है उससे तो हमारा मानना है कि यह सिर्प सत्ता परिवर्तन का आंदोलन नहीं यह तो पूरी व्यवस्था का सिस्टम बदलने के आंदोलन का रूप ले चुका है।

पहले जितने भी आंदोलन हुए हैं उनमे कभी भी इस तरह की आगजनी, तोड़फोड़, बदले की भावना से हत्याएं संसद, सरकारी इमारतें जलाना पहले कभी नहीं देखा गया। उनके निशाने पर नेता हैं चाहे वे किसी भी दल के हों। सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस उक्त आंदोलन के पीछे केवल घरेलू असंतोष है या फिर वुछ विदेशी ताकतों ने भी इसे हवा देने की कोशिश है। कहीं नेपाल के बहाने दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का खेल तो नहीं खेला जा रहा? वुछ छात्रों ने भी दावा किया कि हमारा आंदोलन शांतिप््िराय था पर इसे बाहरी तत्वों ने हाईंजैक कर लिया और हिसा का तांडव मचा दिया। सूदन गुरंग जिस सामाजिक संगठन हामी (हामरो अधिकार मंच इनीशिएटिव) से जुड़े रहे हैं, उस पर विपक्ष और मीडिया ने आरोप लगाया कि इसे विदेशी दूतावास खासकर अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से पंडिग मिली है। यूएसआईंडी, एनईंटी और वुछ यूरोपीय एनजीओ ने हामी को परोक्ष सहायता दी है। आलोचकों का दावा है कि इस तरह की संस्थाएं लोकतांत्रिक सुधार और सिविल सोसायटी को मजबूत करने के नाम पर पािमी प्राभाव पैलाने का काम करती हैं। हालांकि सार्वजनिक ऑडिट में अमेरिकी सरकारी एजेंसियों से सीधी पंडिग के ठोस प्रामाण अब तक सामने नहीं आए हैं। काठमांडू स्थित अमेरिकी दूतावास ने सफाईं देते हुए कहा है कि नेपाल में दी जाने वाली कोईं भी सहायता पूरी तरह पारदशा और कानूनी हैं। यह केवल शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और प्राशासनिक क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों तक सीमित है। रूसी मीडिया संस्थान आरटी और स्पूतनिक ने नेपाल के काम युवा आंदोलन की तुलना यूव््रोन (2004, 2014) और जार्जियार (2003) जैसे रंग व््रांति अभियानों से की है। इन आंदोलनों की असंतोष पूर्ण भावनाओं का इस्तेमाल कर पािमी देशों, खासकर अमेरिका ने राजनीतिक सत्ता परिवर्तन की जमीन तैयार की थी। रूस का आरोप है कि नेपाल की मौजूदा अस्थिरता का पैटर्न भी वैसा ही है, जहां भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे असल मुद्दों के बीच विदेशी ताकतें अपने हित साधना चाहती हैं। रूस यह भी कह रहा है कि अमेरिका नेपाल में युवा शक्ति को एक सॉफ्ट टूल की तरह इस्तेमाल कर सकता है, ताकि भारत व चीन दोनों पर दबाव बनाया जा सके। यह भी दावा किया जा रहा है कि जिस तरह नेपाल की सत्ताधारी सरकार चीन के करीब आती जा रही थी उससे भी अमेरिका परेशान था। वुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नेपाल का यह युवा छात्र आंदोलन हाईंजैक हो गया है।

——अनिल नरेन्द्र

Thursday, 11 September 2025

दागदार चुने जन प्रतिनिधि

यह सूचना न केवल चौंकाती है बल्कि हमें सोचने पर मजबूर करती है कि जिन मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को हम अपना भाग्य बनाने के लिए चुनते हैं वह अंदर खाते कितने दागदार हैं। उनके खिलाफ कितने गंभीर आरोप लगे हुए हैं। आपराधिक मामलों में भी हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध के गंभीर मामले शामिल हैं। चुनाव अधिकार संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने अपनी नई रिपोर्ट में चौंकाने वाले आरोपों की लंबी लिस्ट दी है। अभी हाल ही में तीन विधेयक संसद में पेश किए गए थे ताकि गंभीर आपराधिक मामलों में अगर किसी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिन भी जेल में रहना पड़े तो उसे स्वत पद मुक्त मान लिया जाए। हालांकि विपक्ष ने इसका जमकर विरोध किया और आशंका जताई गई कि अगर ये कानून बन गए तो उनका दुरुपयोग होगा, जिससे विपक्षियों को निशाना बनाया जाएगा। फिलहाल ये कानून जेपीसी को सौंपा गया है और उसकी रिपोर्ट आने के बाद ही इस पर आगे कार्रवाई होगी। पर हम एडीआर की रिपोर्ट की तरफ लौटते हैं। रिपोर्ट के अनुसार देशभर के 302 मंत्री (करीब 47 प्रतिशत) खुद पर आपराधिक केस होने की बात स्वीकार कर चुके हैं। इनमें 174 मंत्री ऐसे हैं जिन पर हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं वहीं केंद्र सरकार के 72 मंत्रियों में से 29 (40 प्रतिशत) ने आपराधिक केस होने की बात मानी है। एडीआर ने 27 राज्यों, 3 केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र सरकार के कुल 643 मंत्रियों के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया। यानी कि ये सब केस नेताओं ने अपने शपथ पत्रों में दिए हैं, यह सब अपराध उन्होंने खुद स्वीकार किए हैं। एडीआर ने यह भी कहा कि जिस शपथ पत्रों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई है वे 2020 से 2025 के बीच चुनावों के दौरान दाखिल हुए थे। इन मामलों की स्थिति बदल भी सकती है। जिन मुख्यमंत्रियों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। उस सूची में सबसे ऊपर तेलंगाना के कांग्रेसी मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी हैं जिन पर 89 केस चल रहे हैं। अगला नंबर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन का आता है जिन पर 47 केस चल रहे हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और मोदी सरकार की बैसाखी बने चंद्रबाबू नायडू पर 19 केस चल रहे हैं। कनार्टक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर 13, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर 5, देवेंद्र फणनवीस व भाजपा के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर 4, हिमाचल के सुखविंदर सिंह सुक्खू पर 4, केरल के पी. विजयन पर 2, सिक्किम के पीएस तमांग, भगवंत मान, मोहन मांझी और भजनलाल पर एक-एक केस चल रहा है। पार्टिवार स्थिति कुछ ऐसी है भाजपा के 336 मंत्रियों में से 136 (40 प्रतिशत) पर आपराधिक केस हैं। वहीं 88 (26 प्रतिशत) पर गंभीर आरोप हैं। कांग्रेस के 61 मंत्रियों में से 45 (74 प्रतिशत) पर केस हैं, 18 (30 प्रतिशत) पर गंभीर आरोप हैं। डीएमके के 31 में से 27 (87 प्रतिशत) मंत्री आरोपी हैं, 14 (48 प्रतिशत) पर गंभीर केस हैं। टीएमसी के 40 में से 13 (33 प्रतिशत) पर केस हैं, 8 (20 प्रतिशत) पर गंभीर आरोप हैं। तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के 23 में से 22 (96 प्रतिशत) मंत्री आरोपी हैं। इनमें से 13 (57 प्रतिशत) पर गंभीर केस हैं। आम आदमी पार्टी के 16 में से 11 (69 प्रतिशत) मंत्री आरोपी हैं, 5 (31 प्रतिशत) पर गंभीर केंस हैं। दुखद पहलु तो यह है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। वास्तव में देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं है जिसमें आपराधिक दाग वाले नेता न हों। आपराधिक मामलों के आंकड़े यह साफ बताते हैं कि कथित साफ छवि का दावा करने वाले में राजनीतिक दल भी अपने नेताओं पर लगने वाले दाग को गंभीरता से नहीं लेते। वे अगर सबसे पहले कुछ देखते हैं तो यह कि कौन आदमी यह सीट निकाल सकता है भले ही उसकी छवि कुछ भी हो। बहरहाल, एडीआर ने मंत्रियों की औसत संपत्ति के भी दिलचस्प आंकड़े पेश किए हैं कर्नाटक में सबसे अधिक आठ अरबपति मंत्री हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में अमीर नेताओं की संख्या समय के साथ बढ़ती चली जाएगी। यही नहीं चुनाव लड़ना भी महंगा होता जा रहा है। चुनाव लड़ना साधारण व्यक्ति की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। यही वजह है कि ईमानदार, कम साधनों वाले अब विधानसभा, लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना भी नहीं देख सकते और यह हाल सब पार्टियों का है। इसीलिए कहता हूं कि इस हमाम में सब नंगे हैं। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 9 September 2025

चीन से है सबसे बड़ी चुनौती


जब से प्रधानमंत्री एससीओ के लिए चीन की राजधानी बीजिंग गए हैं तब से पूरे देश में एक बार फिर हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे सुनाई देने लगे हैं। हालांकि ट्रंप के दो दिन पहले दिए बयान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ से फिर देश में असमंजस की स्थिति बन गई है। भक्तों को समझ नहीं आ रहा की ट्रंप की जय-जय करें या शी जिनपिंग की? हमारा मानना है कि चीन कभी भी भारत का भरोसेमंद दोस्त नहीं हो सकता। इस बीच भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) का एक ताजा बयान आया है। जनरल अनिल चौहान ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक कार्पाम को संबोधित करते हुए कहा कि चीन के साथ अनसुलझा सीमा विवाद भारत की सबसे बड़ी राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती है और पाकिस्तान द्वारा चलाया जा रहा छद्म युद्ध तथा हजारों जख्मों से भारत को लहूलुहान करने की उसकी नीति दूसरी सबसे गंभीर चुनौती है। जनरल चौहान ने इस साल मई में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के ऑपरेशन सिंदूर का भी पा किया और कहा है कि सेना ने इस दौरान आतंकी शिविरों को तबाह किया था। इस ऑपरेशन में सेना को फैसला लेने की पूरी आजादी थी। जनरल चौहान ने ये टिप्पणी ऐसे समय में की है, जब हाल में चीन के तियानजिन शहर में हुए एससीओ सम्मेलन में भारत और चीन के रिश्तों में गर्माहट के संकेत मिलने की बात की जा रही है। इस सम्मेलन में पाकिस्तान ने भी हिस्सा लिया था। इसी साल जुलाई महीने में भारतीय सेना के डिप्टी चीफ राहुल सिंह ने कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने भारत की मिलिट्री तैनाती पर नजर रखने के लिए अपने सैटेलाइट का इस्तेमाल किया और पाकिस्तान को इसकी रियल टाइम जानकारी दी थी। यह भी दावा किया गया कि भारतीय सेना सिर्फ पाकिस्तान से नहीं लड़ रही थी, पाकिस्तान तो मुखौटा था, पीछे खड़ा था चीन। हम पाकिस्तान और चीन दोनों से लड़ रहे थे। चीन ने पाकिस्तान को हर तरह के सैन्य उपाम, हथियार मुहैया कराए। कहा जा रहा है कि 80 फीसदी पाकिस्तान के पास जो हथियार हैं वह चीन द्वारा दिए गए हैं। इनमें वे फाइटर और भी हैं जिनको लेकर पाकिस्तान दावा कर रहा है कि उसने भारतीय जेट विमानों को गिराया है। जनरल चौहान ने कहा कि देश के सामने आने वाली चुनौतियां अस्थायी नहीं होती, बल्कि वे अलग-अलग रूपों में बनती है। मेरा मानना है कि चीन के साथ सीमा विवाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती है और आगे भी बनी रहेगी। दूसरी बड़ी चुनौती है पाकिस्तान का भारत के खिलाफ प्राक्सी वॉर जिस की रणनीति है हजार जख्म देकर भारत को कमजोर करना। उधर आर्मी के डिप्टी चीफ ने भी ऑपरेशन सिंदूर में चीन और पाकिस्तान के भारत के खिलाफ मिलकर लड़ने की बात कही थी। भारत-पाक सैन्य संघर्ष को चीन ने एक लाइव लैब की तरह इस्तेमाल किया था। वे देख रहा था कि पाक को दिए गए उसके हथियार कैसे काम कर रहे हैं? चीन को चुनौती बताने वाले जनरल चौहान का बयान ऐसे समय में आया है। जब भारत के खिलाफ ट्रंप के 50 फीसदी टैरिफ का चीन ने विरोध किया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन भारत के साथ संतुलन बनाए रखना अमेरिकी दबाव के खिलाफ एक ढाल का काम कर सकता है और नई दिल्ली को पूरी तरह वाशिंगटन के रणनीतिक घेरे में जाने से रोक सकता है। यह तात्कालिक हितों का मेल है, कोई गहरा रणनीतिक गठबंधन नहीं, लेकिन दोनों पक्षों के लिए तनाव कम करने का अवसर जरूर है। प्रधानमंत्री मोदी ने सात साल बाद चीन का दौरा किया और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पिछले दस महीनों में पहली द्विपक्षीय मुलाकात थी। हालांकि बर्फ तो पिघली है पर हम इन संबंधों को संकीर्ण लेन-देन वाले नजरिए से देखते हैं। इनके बावजूद यह संबंध विरोधाभास से मुक्त नहीं हैं। चीन पाकिस्तान के साथ अपने गहरे सैन्य और परमाणु सहयोग को बनाए हुए है। ब्रह्मपुत्र पर चीन का विशाल बांध निर्माण और अक्साईचिन से होकर गुजरने वाली नई रेल लाइन भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है। शंघाई सहयोग संगठन जैसे बहुपक्षीय मंचों पर बीजिंग ने जम्मू-कश्मीर में हुए हमलों की निंदा वाले बयानों को रोक दिया पर ब्लूचिस्तान हिंसा को प्रमुखता से रखा। इन कदमों से स्पष्ट है कि चीन का मौजूदा रूप सामरिक अवसरवाद पर आधारित है। जिसे भारत-अमेरिका के बीच हालिया तनाव ने बढ़ावा दिया है। चीन भले ही भारत से रिश्ते सुधारने की बात कहे लेकिन उसने अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान का हाथ नहीं छोड़ा है। यह इस बात से समझा जा सकता है कि दोनों देशों ने 8.5 अरब अमेरिकी डालर के 21 समझौतों व संयुक्त उद्यमों पर कुछ दिन पहले ही हस्ताक्षर किए हैं। इसमें चीन-पाक आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना के दूसरे चरण की शुरुआत शामिल है। पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की चीन यात्रा के अंतिम दिन गुरुवार को बीजिंग में इन समझौता पर हस्ताक्षर किए गए। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 6 September 2025

प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा


वैज्ञानिक बार-बार चेता रहे थे कि प्रकृति से इतनी छेड़छाड़ न करो पर मनुष्य इस चेतावनी को नजरअंदाज करता चला गया। नतीजा सामने है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में भारी परिवर्तन आया है। उत्तर भारत में सितम्बर में भी बाढ़-बारिश और भूस्खलन का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश से पंजाब और दिल्ली तक कई इलाके बाढ़ से बेहाल हैं। हिमाचल में भूस्खलन की अलग-अलग घटनाओं में कई लोगों की मौत हुई है। कई घायल हैं और कई लापता। पंजाब के सभी 23 जिलों में 1200 से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में हैं। 3.75 लाख एकड़ कृfिष भूमि खासकर धान के खेत पानी में डूब गए हैं। फिरोजपुर मंडल में 16 ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। हिमाचल में रायपुर में चलती बस पर चट्टान गिरने से दो लोगों की मौत हो गई। बिलासपुर में 9 घर ढह गए हैं। मृतकों की संख्या 7 हो गई है। कुल्लू में दो लोग मलबे में दब गए। 7 नेशनल हाईवे समेत 1,155 सड़कें, 2,477 बिजली ट्रांसफार्मर और 720 पेयजल योजनाएं ठप रही। वहीं छत्तीसगढ़ व बलरामपुर जिले में बांध का एक हिस्सा टूटने से आई बाढ़ में 4 लोगों की मौत हो गई, जिनमें दो महिलाएं थीं। माता वैष्णो देवी के ट्रैक पर बुधवार को फिर भूस्खलन हुआ, लेकिन यात्रा बंद रहने से बड़ा हादसा टल गया। जम्मू-कश्मीर में राजौरी जिले के सुंदर बनी तहसील में मकान गिरने से मां-बेटी की मौत हो गई। पंजाब में दर्जनों पशु पानी में बह गए। पंजाब में बारिश का कहर जारी है। राज्य इस समय 1988 के बाद की सबसे भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है और 2.56 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं, जिनमें गुरदासपुर, पठानकोट, फाजिल्का, कपूरथला, तरनतारन, फिरोजपुर, होशियारपुर और अमृतसर शामिल हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी ने सीएम भागवत मान से जानकारी ली है। पाकिस्तान के पंजाब में बाढ़ से प्रभावित करतारपुर कॉरिडोर परिसर अब भी श्रद्धालुओं के लिए बंद है। गुरुद्वारा दरबार साहिब में सेना और सिविल प्रशासन बहाली कार्य में जुटे हैं। अत्यंत दुख की बात है कि इस समय लगभग सारी यात्राएं बाढ़ के कारण बंद हैं। केदारनाथ धाम बंद, बद्रीनाथ धाम बंद, माता वैष्णो देवी धाम बंद, ऋfिषकेश के घाट बंद, किन्नर कैलाश बंद, अमरनाथ यात्रा बंद ये सब यात्रा है जहां जाकर साक्षात भगवान के दर्शन होते हैं। कुछ तो गलती कर रहे हैं इंसान की भगवान भी मुंह मोड़ रहे हैं। इस जगह को पर्यटक स्थल न बनाएं। सिर्फ भfिक्त के लिए ही जाएं। बहुत कुछ संकेत प्रकृति हमको दे रही है। अगर अब भी नहीं चेते तो यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रकृति ऐसा बदला लेगी कि लोग भूल नहीं सकेंगे। ट्रेलर तो देखने को मिल ही रहा है। यह बताना भी जरूरी है कि इस समय देश में कई नदियां उफान पर हैं। इसके अलावा 21 जगहें पर बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। 33 जगहें पर नदियों का जलस्तर सामान्य से ऊपर चल रहा है। सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 21 गंभीर बाढ़ प्रभावित स्थानों में से 9 बिहार में, 8 उत्तर प्रदेश में और एक-एक दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और झारखंड में है। वहीं व्यास, सतलुज, चिनाव, रावी, अलकनंदा और भागीरथी नदियों में जलस्तर अचानक बढ़ने की आशंका है। इस बार बारिश सिर्फ पर्वतीय राज्यों तक सीमित नहीं है इस बार मैदानी राज्यों में भी कहर ढा रही है। इसका कारण सिर्फ ज्यादा वर्षा होना नहीं है, इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि कमजोर आधारभूत ढांचे का निर्माण और जल निकासी के उपयुक्त उपाय न होना भी है। यही कारण है कि नए पुल, नई बनी सड़के भी बाढ़ के कारण ताश के पत्तों की तरह ढह रही है। स्थिति यह है कि महानगर तक की सड़कें यहां तक कि एक्सप्रेसवे और हाईवे तक में जल निकासी के पर्याप्त इंतजाम नदारद हैं। बाढ़ के बाद डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है। फिलहाल संकट से निपटने के लिए जिन तत्कालिक उपायों की जरूरत हैं, उन पर तो सरकार ध्यान देगी ही, हैरत की बात तो अलबत्ता यह है हर साल बारिश के मौसम में ऐसी ही स्थिति खड़ी होने पर भी हम खुद को वहीं के वहीं खड़े पाते हैं। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति के साथ समंजस्य बनाए बगैर हम ऐसी आपदाओं को बार-बार झेलने के लिए मजबूर होंगे। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 4 September 2025

क्या उपराष्ट्रपति चुनाव परिणाम चौंका सकते हैं?


उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, इस पद के लिए सत्तारूढ़ एनडीए के प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन और विपक्ष के उम्मीदवार जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी ने प्रचार तेज कर fिदया है। 2017 एवं 2022 उपराष्ट्रपति चुनाव के समय भाजपा को लोकसभा में स्वयं बहुमत प्राप्त था। इस समय लोकसभा में वह बहुमतविहीन है लेकिन राजग को बहुमत प्राप्त है। दोनों सदनों के अंकगणित को देखें तो लोकसभा में 542 और राज्यसभा में 240 सांसद हैं। कुल उपराष्ट्रपति चुनाव में संख्या हुई 782। दोनों सदनों में इंडिया गठबंधन सांसदों की संख्या 422 है। इनके अनुसार सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना प्राय निश्चित है, विपक्ष को भी पता है कि लोकसभा एवं राज्यसभा की संख्या बल के आधार पर उसके उम्मीदवार को जिताना अंसभव है। उम्मीदवारों के पीछे की रणनीति उनकी योग्यताएं और संदेशों को समझने के पूर्व ध्यान रखना आवश्यक है कि यह एक अभूतपूर्व चुनाव है। जिन परिस्थितियों में जगदीप धनखड़ ने त्यागपत्र दिया वैसा पहले कभी नहीं हुआ। चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं इसलिए उस स्थान को ज्यादा समय तक खाली नहीं छोड़ा जा सकता। सीपी राधाकृष्णन कभी भी विवादों में नहीं रहे। राधाकृष्णन कई महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर रहे हैं और संघ के करीबी माने जाते हैं। लगातार जनता के बीच रहने के बावजूद किसी तरह का राजनीतिक विवाद न होना उनकी विवेकशीलता का प्रमाण है। दूसरी ओर सुदर्शन रेड्डी आंध्र प्रदेश और गुवाहटी हाईकोर्ट में न्यायाधीश तथा उसके बाद 2007 से 2011 तक उच्चतम न्यायालय के जज रह चुके हैं और उनके वर्तमान तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जब सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, जातीय सर्वेक्षण करवाया तो उसकी रिपोर्ट के लिए सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता में ही एक समिति बनाई थी। इस तरह कांग्रेस के साथ उनका संपर्क बना हुआ था। हालांकि जब वे गोवा के लोकायुक्त थे तब कांग्रेस ने इनका विरोध किया था। उस समय उनकी नियुक्ति भाजपा सरकार की ओर से की गई थी और इसलिए कांग्रेस ने उन्हें पक्षपाती माना था। छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के विरुद्ध जनता के सलवाजुडूम संघर्ष को उन्होंने असंवैधानिक करार दिया था ऐसा कहना केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का है। हालांकि जस्टिस रेड्डी ने दो टूक जवाब fिदया कि यह फैसला मेरा नहीं था। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट का था। यह मानना पड़ेगा कि श्री सुदर्शन रेड्डी जबरदस्त चुनावी अभियान चला रहे हैं। उन्होंने बहुत से सांसदों से सीधा संपर्क किया है। यहां तक कहा है कि मुझे भाजपा सांसदों से भी समर्थन करने की अपील करने में कोई मुश्किल नहीं है। वह कहते हैं कि लड़ाई सिर्फ एक पद के लिए नहीं है बल्कि यह लड़ाई संविधान बचाने की है। देश में लोकतंत्र बचाने की है, चूंकि वह सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं इसलिए वह संविधान को समझते हैं, कानूनों को समझते हैं। वह कहते हैं मैं गैर राजनीतिक हूं इसलिए मैं सभी से अपील कर सकता हूं। चुनाव प्रचार चरम सीमा पर है। 9 सितम्बर को होने वाले इस चुनाव में जहां एक तरफ एनडीए ने अनुभवी नेता और पूर्व राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है, वहीं विपक्ष ने एक चौंकाने वाला दांव चला है। इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर इस चुनाव को सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं बल्कि संविधान बनाम विचारधारा की लड़ाई बना दिया है। भले ही संसद में एनडीए के पास संख्याबल ज्यादा हो, लेकिन विपक्ष भी अपना साझा उम्मीदवार उतारकर इस चुनाव को दिलचस्प बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। जस्टिस सुदर्शन रेड्डी ने सीपीआई (एम) नेताओं से मुलाकात की और समर्थन मांगा। चूंकि वह मूल रूप से आंध्र प्रदेश से हैं इसलिए एनडीए को डर है कि कहीं चंद्रबाबू नायडू गुप्त रूप से उनका समर्थन न कर दें। बता दें कि उपराष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान होता है, इससे पता नहीं चलता कि किसने किसको वोट दिया है। चूंकि वह तेलुगू भाषा क्षेत्र से हैं इसलिए तेलुगू प्राइड भी मुद्दा बन सकता है और अगर यह बना तो क्रास वोटिंग संभव हो सकती है। उधर सोशल मीडिया में भी यह खबर चल रही है कि कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार भी एक्टिव हो गए हैं और तमाम दक्षिण भारत के सांसदों से समर्थन साध रहे हैं और रेड्डी का समर्थन मांग रहे हैं। जस्टिस सुदर्शन रेड्डी ने कहा है कि उन्हें खुशी है कि न सिर्फ इडिया गठबंधन बल्कि उससे बाहर के लोग भी उनका समर्थन करने के लिए आगे आ रहे हैं, कुल मिलाकर आंकड़ों के हिसाब से तो विपक्ष की जीत भले ही मुश्किल हो, लेकिन वे इसे एक राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि 2029 के लोकसभा चुनाव और अगले दो सालों में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए एक मजबूत नींव रखी जा सके। अब देखना यह होगा कि क्या इस चुनाव में कोई चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं? 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 2 September 2025

क्या-क्या बोले सरसंघ चालक मोहन भागवत

 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में 26 से 28 अगस्त तक तीन दिवसीय कार्पाम आयोजित हुआ। मोहन भागवत ने देश में रोजगार परिदृश्य, संस्कृत की अनिवार्यता, भारत की अखंडता, हिन्दू-मुस्लिम एकता सहित कई ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बात कही। मैं यहां पर सरसंघचालक द्वारा प्रमुख मुद्दों और उनके जवाबों को प्रस्तुत कर रहा हूं। पाठक स्वयं फैसला कर लें कि मोहन भागवत जी के विचार क्या हैं? उन्होंने कहा, हमारे हिन्दुस्तान का प्रयोजन विश्व कल्याण है। दिखते सब अलग-अलग हैं लेकिन सब एक हैं। दुनिया अपनेपन से चलती है, यह सौदे पर नहीं चल सकती है। धर्म की रक्षा करने से सृष्टि ठीक चलती है क्योंकि जड़वाद बढ़ा और गति पर पहुंच गया, व्यक्तिवाद बढ़ा और अति पर पहुंच गया। 75 साल के बाद क्या राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए? इस सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा, मैंने ये बात मोरोपंत जी के बयान का हवाला देते हुए उनके विचार रखे थे। मैंने ये नहीं कहा कि मैं रिटायर हो जाऊंगा या किसी और को रिटायर होना चाहिए....हम जिंदगी में किसी भी समय रिटायर होने के लिए तैयार हैं और संघ हमसे जिस भी समय तक काम कराना चाहेगा, हम संघ के लिए उस समय तक काम करने के लिए भी तैयार हैं। भाजपा और संघ के बीच संबंधों पर भागवत ने कहा, सिर्फ इस सरकार के साथ नहीं, हर सरकार के साथ हमारा अच्छा संबंध रहा है...कहीं कोई झगड़ा नहीं है। उन्होंने कहा, मतभेद के मुद्दे कभी नहीं होते। हमारे यहां विचारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद बिल्कुल नहीं है। क्या भाजपा सरकार में सब कुछ संघ तय करता है? यह पूरी तरह गलत बात है। मैं कई सालों से संघ चला रहा हूं, वे सरकार चला रहे हैं, सलाह दे सकते हैं लेकिन उस क्षेत्र में फैसला उनका है और इस क्षेत्र में हमारा। जब सवाल पूछा गया कि भाजपा अध्यक्ष चुनने में इतना समय क्यों लग रहा है तो भागवत ने जवाब दिया, हम तय करते तो इतना समय लगता क्या? हम तय नहीं करते। कुछ पार्टियों के संघ विरोध पर भागरत ने कहा, परिवर्तन होते हुए भी हमने देखा है। 1948 में जयप्रकाश बाबू हाथ में जलती मशाल लेकर संघ का कार्यालय जलाने चले थे...बाद में इमरजेंसी के दौरान उन्होंने कहा कि परिवर्तन की आशा आप लोगों से ही है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से लेकर प्रणब मुखर्जी का पा करते हुए कहा कि वे संघ के आयोजन में आए। उन्होंने अपने मत नहीं बदले, लेकिन संघ के बारे में जो गलत फहमियां थीं वो दूर हुईं। तीन बच्चे होने चाहिए ः भागवत ने कहा कि भारत के हर नागरिक के तीन-तीन बच्चे होने चाहिए। जनसंख्या नियंत्रित रहे और पर्याप्त रहे। इस लिहाज से तीन ही बच्चे होने चाहिए, तीन से ज्यादा नहीं होने चाहिए। जन्म दर हर किसी की तय हो। इसलिए भारत के हर नागरिक को चाहिए कि उनके घर में तीन बच्चे हों। जन्म दर हर किसी की कम हो रही है। हिन्दुओं की पहले से ही कम थी तो ज्यादा कम हो रही है लेकिन दूसरे समुदायों की उतनी कम नहीं थी तो अब उनकी भी कम हो रही है। श्री भागवत जी ने कहा, बाहर से भी जो विचारधारा आई वह आाढामण के कारण आई, वहीं के लोगों ने उनको स्वीकार किया, लेकिन हमारा मत तो सबको स्वीकार करने का है। जो दूरियां बनी हैं उसको पाटने के लिए दोनों तरफ से प्रयास की जरूरत है। ये सद्भावना और सकारात्मकता के लिए अत्यन्त आवश्यक है, जिसे देश को राष्ट्रीय स्तर पर करना पड़ेगा। सरसंघ प्रमुख ने कहा हमारे हिन्दुस्तान का प्रयोजन विश्व कल्याण है। भारत में जितना बुरा दिखता है उससे 40 गुना ज्यादा समाज में अच्छा है। हमको समाज के कोने-कोने तक पहुंचाना पड़ेगा। कोई व्यक्ति बाकी नहीं रहे। समाज के सभी वर्गों में और सभी स्तरों में जाना पड़ेगा। गरीब से नीचे से लेकर अमीर तक के ऊपर तक संघ को पहुंचाना पड़ेगा। ये जल्दी से जल्दी करना पड़ेगा। जिससे सब लोग मिलकर समाज परिवर्तन के काम में लग जाएं। पर्यावरण में पानी बचाओ, सिंगल यूज प्लास्टिक हटाओ और तीसरा पेड़ लगाओ। इसके अलावा सामाजिक समरसता को लेकर काम करना होगा। मनुष्य को लेकर हम जाति के बारे में सोचने लगते हैं। इसको मन से खत्म करना होगा। मंदिर, पानी, श्मशान सबके लिए हैं। उसमें भेद नहीं होना चाहिए। भारत को आत्मनिर्भर होना जरूरी है। स्वदेशी की बात का मतलब विदेशों से संबंध नहीं होंगे ऐसा नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध और व्यापार चलते रहेंगे, लेकिन इसमें दबाव नहीं होना चाहिए बल्कि स्वेच्छा होनी चाहिए। अंत में भागवत ने कहा नींबू की शिकंजी पी सकते हैं तो कोका कोला और सप्राइट क्यों चाहिए। घर पर अच्छा खाना खाओ, बाहर से पिज्जा की क्या जररूत है? 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 30 August 2025

टैरिफ ने छीनी हीरे की चमक

भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी अमेरिकी टैरिफ बुधवार को लागू हो गया। इसी के साथ भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त टैरिफ बढ़कर 50 फीसद हो गया। माना जा रहा है 48 अरब डॉलर से ज्यादा का अमेरिका को दिए जाने वाला भारतीय निर्यात इससे प्रभावित होगा। भारत के वस्त्र, परिधान, रत्न आभूषण, झींगा, चमड़ा, टेक्सटाइल इत्यादि बहुत से उद्योगों पर सीधा असर पड़ेगा। मैंने कुछ दिन पहले हरियाणा के उद्योगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन किया था। आज मैं गुजरात के सूरत हीरा उद्योग के बारे में बताने का प्रयास करूंगा। सूरत दुनिया में हीरा की कटिंग और पालिशिंग के लिए जाना जाता है। लेकिन अब इस उद्योग पर निर्भर रहने वाले लोग मुश्किल में हैं। 50 फीसदी टैरिफ ने इस क्षेत्र के व्यापारियों के साथ-साथ मजदूरों को भी चिंता में डाल दिया है। हीरा उद्योग से जुड़े 25 लाख से ज्यादा कामगार इससे प्रभावित हो सकते हैं। 50 फीसदी टैरिफ लगाने का असर सबसे ज्यादा इस क्षेत्र पर पड़ रहा है क्योंकि सूरत का हीरा उद्योग अमेरिका के किए जाने वाले निर्यात पर ज्यादा निर्भर है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर टैरिफ कम नहीं किया गया तो कई व्यापारी हीरा उद्योग से बाहर हो जाएंगे। कई लोगों की नौकरियां चली जाएंगी और भयंकर मंदी आ जाएगी। हालांकि दूसरी ओर हीरा उद्योग से जुड़े संगठन जैसे सूरत डायमंड एसोसिएशन और साउथ गुजरात चेंबर ऑफ कॉमर्स का मानना है कि अमेरिकी टैरिफ से कुछ मंदी आएगी लेकिन समय के साथ स्थिति स्थिर हो जाएगी क्योंकि भारत को हीरा उद्योग की जितनी जरूरत है, अमेरिका में भी हीरों की उतनी ही मांग है। इसलिए वहां के लोग, व्यापारी भी इस समस्या का समाधान चाहते हैं। सूरत की कई छोटी फैक्ट्रियों में 20 से 200 श्रमिक तक काम करते हैं। राज्यों में तो यह संख्या 500 तक होती है और सूरत में ऐसी हजारों फैक्ट्रियां हैं। हाल ही में कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया है। सूरत में कई छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों का यह हाल है कि 20 साल पहले शैलेश मंगुकिया ने सिर्फ एक पॉलिशिंग व्हील (चक्की) से हीरा पालिश करने की एक यूनिट शुरू की थी जो अब इतनी बड़ी हो गई कि यहां कामगारों की संख्या 3 से बढ़कर 300 हो गई, हालांकि अब इस फैक्ट्री में सिर्फ 70 लोग ही बचे हैं। वे कहते हैं कि सारे आर्डर कैंसल कर दिए गए है। मजदूरों को कहना पड़ रहा है कि काम नहीं है। आर्डर नहीं होने की वजह से काम नहीं है और काम न होने की वजह से सैलरी देने के पैसे नहीं हैं। पिछले साल अगस्त में उनकी फैक्ट्री में हर महीने औसतन 2000 हीरें की प्रोसेसिंग हो रही थी। लेकिन इस साल घटकर मात्र 300 रह गई है। श्रमिक सुरेश राठौर ने कहा, आमतौर पर हमें जन्माष्टमी के दौरान सिर्फ 2 दिन की छुट्टी मिलती थी, इस बार हमें 1ˆ दिन की बिना वेतन छुट्टी दी गई। हम ऐसे कैसे रह सकते हैं? सुरेश राठौर जैसे कई कारीगर हैं, जो इस तरह प्रभावित हो रहे हैं। सूरत डायमंड पालिशर्स यूनियन के भावेश टांक कहते हैं कि हमारे पास इस समय बहुत से जौहरी शिकायत लेकर आ रहे हैं कि उनका वेतन कम कर दिया गया या उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। हजारों मजदूरों की आमदनी कम हो रही है। उद्योग जगत के नेताओं ने एक स्पेशल डायमंड टास्क फोर्स बनाई है। जो इस स्थिति का समाधान निकालने की कोशिश करेगी। दक्षिण गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष निखिल मद्रासी ने इस बारे में बीबीसी से कहा, अमेरिकी बाजार पर भारी निर्भरता के कारण लंबे समय में बड़ा झटका लगेगा। पुराने आर्डर पूरे हो गए हैं, लेकिन नए आर्डर का भविष्य अस्पष्ट है। सरकार को तुरंत मदद करनी होगी। उन्होंने कहा कि कई व्यापारी मध्य पूर्व और यूरोप जैसे बाजारों में अवसर तलाश रहे हैं और कुछ तो बाईपास मार्गों के जरिए अमेरिका तक माल पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि उनके अनुसार अब अलग-अलग यूरोपीय देशों में नए बाजारों की तलाश करने की जरूरत है। सवाल यह है कि सूरत के हीरा उद्योग को कैसे बचाया जा सकता है? इस उद्योग जगत के कुछ लोगों का कहना है कि आने वाले दिनों में स्थिति और खराब हो सकती है। जेम एंड ज्वैलरी एक्सपर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के गुजरात अध्यक्ष जयंति भाई सावलिया का मानना है कि अब समय आ गया है कि अमेरिका पर निर्भरता कम की जाए और अन्य बाजारों की ओर देखा जाए। उन्होंने कहा, अगर आर्डर नहीं मिले तो निश्चित रूप से श्रमिकों के वेतन और रोजगार पर असर पड़ेगा। असली मार आने वाले महीनों में दिखेगी। वे आगे कहते हैं कि वर्तमान में अमेरिका को होने वाला कुल निर्यात लगभग 12 अरब डॉलर का है, अगर हम इसका आधा व्यापार भी अन्य देशों में कर सके, तो सूरत का हीरा उद्योग बच सकता है। उस सूरत में भारत के हीरे की चमक टैरिफ से पड़ने वाले असर को कम कर देगी। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 28 August 2025

वोट चोरी आरोप पर चुनाव आयोग का जवाब

भारत में चुनाव प्रािढया पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है तो इसके पीछे क्या राजनीति है? सात अगस्त को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेस के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं हमारी वोट तो काटी नहीं है? राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेस में वोट चोरी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सत्तारुढ़ भाजपा के साथ सांठगांठ की बात कही थी जिसे चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया है। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के साथी इसे बिहार में जोरशोर से उठा रहे हैं और इसे भारी जनसमर्थन भी मिलता दिख रहा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की हताशा वाली राजनीति कह रहे हैं। बता दें कि जिस दिन बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा शुरू हुई थी। उसी दिन चुनाव आयोग ने भी प्रेस कांफ्रेंस की थी। लेकिन इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद भी चुनाव आयोग आलोचकों के निशाने पर है। सवाल है कि क्या केंद्र सरकार इन आरोपों के बाद किसी तरह बैकफुट पर दिखती है? चुनाव आयोग अगर बचावे करे तो क्या उसे हर बार पक्षपात के तौर पर ही देखा जाएगा? और चुनाव आयोग आखिर राहुल गांधी से शपथ पत्र लेने की मांग पर क्यों अड़ा हुआ है? जबकि राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि जो दस्तावेज उन्होंने सात अगस्त को पेश किए वे सब चुनाव आयोग के ही दिए आंकड़े हैं? इन सवालों पर चर्चा के लिए इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ब्यूरो चीफ रितिका चोपड़ा और भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा बीबीसी के साप्ताहिक कार्पाम ‘द लेंस' में शामिल हुए। इसी साल जून के महीने में राहुल गांधी ने अखबारों में एक लेख लिखा था। लेख में उन्होंने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को मैच फिक्सिंग कहा था। अब बिहार में एसआईआर बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। एसआईआर पर अशोक लवासा कहते हैं, सबसे पहले उत्तेजन का कारण बिहार विधानसभा चुनाव है। चुनाव से पहले एसआईआर जैसी बड़ी प्रािढया अपनाने से लोगों में संशय हुआ है। दूसरा कारण है कि 2003 के रिवीजन में प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था। सासाराम में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिहार में एसआईआर करके नए वोटरों को जोड़कर और योग्य लोगों के नाम काटकर यह (भाजपा-संघ) बिहार का चुनाव चोरी करना चाहती है। जबकि चुनाव आयोग का तर्क है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों के दूर करने के लिए एसआईआर प्रािढया अपनाई जा रही है। अशोक लवासा का कहना है इस बार प्रािढया काफी जटिल बना दी गई है और इसके लिए लोगों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया है। इस बार सवाल मतदाता सूची पर उठाए जा रहे हैं और पिछले दस सालों में ऐसे सवाल नहीं उठाए गए थे। बीते चुनावों में राजनीतिक दल ईवीएम, चुनावी शेड्यूल या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट से संबंधित शिकायतें करते रहे हैं। सवाल अब भी चुनाव आयोग पर है लेकिन मुद्दा वोटर लिस्ट है इसलिए यह बाकी मामलों से अलग है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग सिर्फ उनसे शपथ पत्र मांग रहा है जबकि किसी और से नहीं मांगा। अशोक लवासा का कहना है, अगर इतने बड़े पैमाने पर एक विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा लोगों के बारे में दावा किया गया है तो किसी भी सार्वजनिक कार्यालय को इसकी जांच करनी चाहिए। मेरे ख्याल से उसके लिए किसी शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सियासी दलों से पूछा कि जब इतनी समस्याएं हैं तो सिर्फ आयोग के पास दो ही शिकायतें क्यों आई हैं? हालांकि तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि उनकी शिकायतों को स्वीकार नहीं किया गया है। यह भी सच है कि ज्ञानेश कुमार के बोलने के तरीके के कारण लोगों के मन की शिकायतें पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। अशोक लवासा ने आगे कहा कि चुनाव आयोग को यह समझना चाहिए कि अगर कोई भ्रांति फैलाई जा रही है तो उसे चुनाव आयोग को ही दूर करना होगा। आयोग को दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए। सही और गलत का निर्णय लोग स्वयं कर लेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय बचा है। समय सिर्फ तीन महीने का है और चुनाव आयोग को दस्तावेज जमा करने के साथ उनकी पुष्टि भी करनी है। कई वोटरों के पास तय दस्तावेज नहीं हैं और कुछ लोगों में भय का माहौल है। इन्हीं सब समस्याओं की वजह से इस मुद्दे की पकड़ ग्राउंड पर बढ़ती जा रही है। कई लोग इसे अपनी नागरिकता के साथ भी जोड़ रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने साफ किया है कि एसआईआर का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है पर बिहार के वोटरों में शंका बनी हुई है। अशोक लवासा बताते हैं प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप के इस्तेमाल से नागरिकता पर प्रश्न बना हुआ है। चुनाव आयोग बार-बार कह रहा है कि वोटर लिस्ट में नाम न आने से नागरिकता समाप्त नहीं होगी। लेकिन इसमें भी विरोधाभास यह है कि उसी वजह से तो आप उसे मतदाता सूची से बाहर निकाल रहे हैं? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 26 August 2025

राज्यपाल बिल में देरी करें तो रास्ता क्या है?


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को पेडिंग रखते हैं तो इससे विधान मंडल निपिय हो जाएगा। ऐसी स्थिति में क्या अदालतें हस्तक्षेप करने में असमर्थ हैं? दरअसल मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि क्या न्यायालय आदेशों द्वारा राष्ट्रपति-राज्यपाल को समय-सीमा में बांध सकता है? चीफ जस्टिस आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस पाम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर की पीठ इसी प्रेजिटेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान पावार को भारत सरकार के सॉलिसीटर जनरल ने दलीलें दी कि न्यायपालिका राष्ट्रपति या राज्यपाल को बाध्यकारी निर्देश नहीं दे सकती। तब चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या हम यह कहें कि चाहे संवैधानिक पदाधिकारी कितने भी ऊंचे हों, यदि वे कार्य नहीं करते तो अदालत असहाय है? हस्ताक्षर करना है या अस्वीकार करना है, उस कारण पर हम नहीं जा रहे कि उन्होने क्यों किया। परन्तु यदि सक्षम विधान मंडल ने कोई अधिनियम पारित कर दिया है और माननीय राज्यपाल बस उस पर बैठे रहें तो सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि हर समस्या का समाधान कोर्ट में नहीं खोजा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर बैठे हुए हैं और उन पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, ऐसे में राज्यों को न्यायिक समाधान के बजाए राजनीतिक समाधान तलाशने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर राज्यपाल विधेयकों में देर करते हैं तो रास्ता क्या है? तब सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि व्यावहारिक उत्तर यह है कि यदि कोई राज्यपाल विधेयकों पर बैठे रहते हैं तो राजनीतिक समाधान होते हैं। और ऐसे समाधान हो भी रहे हैं। हर जगह ऐसा नहीं होता कि राज्य को सुप्रीम कोर्ट आने की सलाह दी जाए। मुख्यमंत्री जाते हैं और प्रधानमंत्री से अनुरोध करते हैं। मुख्यमंत्री राष्ट्रपति से मिलते हैं। प्रतिनिधिमंडल जाते हैं और कहते हैं कि ये विधेयक लंबित पड़े हैं, कृपया राज्यपाल से बात करें ताकि वे किसी न किसी रूप में निर्णय लें। कई बार टेलीफोन पर ही मामले को निपटा लिया जाता है। मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राज्यपाल की संयुक्त बैठकें होती हैं और इस तरह गतिरोध समाप्त होता है। लेकिन इससे ये अधिकार क्षेत्र यानी ज्यूरिएडिक्शन नहीं मिल जाती कि जुडिशियल निर्णय के द्वारा समय-सीमा तय कर दें। सवाल यह है कि जब संविधान में समय-सीमा निर्धारित नहीं है तो क्या अदालत समय-सीमा तय कर सकती हैं? भले ही उसके लिए औचित्य हो? ऐसे मुद्दे कई दशकों से हर राज्य में उठते रहे हैं। लेकिन जब राजनीतिक (स्टेटसमैन शिप) और राजनीतिक परिपक्वता दिखाई जाती है तो वे केंद्र के संवैधानिक कार्यवाहकों से मिलते हैं, चर्चा करते हैं और राजनीतिक समाधान निकाल लेते हैं, यही इन समस्याओं के समाधान हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि अगर राज्यपाल की निपियता के खिलाफ कोई पीड़ित राज्य अदालत के पास आता है तो क्या आपके अनुसार न्यायिक समीक्षा पूरी तरह निषिद्ध है। इन पर तुषार मेहता ने कहा कि वे राज्यपाल की कार्रवाई की न्याय संगलता के प्रश्न पर नहीं है, बल्कि इस प्रश्न पर है कि क्या अदालत राज्यपाल को समय-सीमा के भीतर कार्य करने का निर्देश दे सकती है। इन पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर कोई गलत है, तो उपाय तो होना चाहिए। मेहता ने उत्तर दिया कि देश की हर समस्या का समाधान इस मंच (सुप्रीम कोर्ट) से नहीं हो सकता। इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि अगर कोई संवैधानिक पदाधिकारी बिना किसी कारण अपना कर्तव्य नहीं निभाता, तो क्या इस न्यायालय के हाथ बंधे हुए हैं? जस्टिस सूर्यकांत ने इस दौरान जोड़ा कि अगर व्याख्या की शक्ति सुप्रीम कोर्ट में निहित है तो कानून की व्याख्या अदालत को ही करनी होगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 23 August 2025

विधेयक पर विपक्ष का हंगामा


गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार और लगातार 30 दिन हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों को पद से हटाने वाले बिल बुधवार को पेश हुए। हालांकि इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया है जो अगले सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष को जेपीसी के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराने का मौका मिलेगा। अभी जो कानून है, उसके अनुसार जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाए, तब तक ये आला मंत्री इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस बिल के जरिए संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन करना होगा, जिसमें प्रधानमंत्री के साथ मंत्रियों की नियुक्ति और जिम्मेदारियों की बातें हैं। ड्राफ्ट बिल के मुताबिक अगर किसी मंत्री के पद पर रहते हुए लगातार 30 दिन के लिए किसी कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में लिया जाता है जिसमें पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान है, उसे राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा दिया जाएगा। ऐसा हिरासत में लिए जाने के 31वें दिन हो जाना चाहिए। सरकार इस विधेयक को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने बिल पेश करते समय कहा, राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी सरकार की प्रतिबद्धता और जनता के आक्रोश को देखकर मैंने संविधान संशोधन बिल पेश किया ताकि पीएम, सीएम और मंत्री जेल में रहते हुए सरकार न चला सकें। इसका उद्देश्य राजनीति में शुचिता लाना है। हाल में ऐसी स्थिति बनी कि सीएम या मंत्री बिना इस्तीफा दिए जेल से सरकार चलाते रहे। उधर विपक्ष ने इस विधेयक का जबरदस्त विरोध किया। विपक्ष की ओर से एआईएमआईएम के चीफ व सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के मनीष तिवारी, केसी वेणुगोपाल, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन व समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने जमकर विरोध किया। प्रेमचंद्रन ने कहा कि तीनों विधेयकों को सदन में पेश करने की सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों है? इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रेमचन्द्रन जल्दबाजी की बात कर रहे हैं, लेकिन इनका सवाल इसलिए नहीं उठता क्योंकि मैं इन विधेयकों को जेपीसी को सौंपने का अनुरोध करने वाला हूं। इसके बाद कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि भाजपा के लोग कह रहे हैं कि यह विधेयक राजनीति में शुचिता लाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि क्या मैं गृहमंत्री से पूछ सकता हूं कि जब वह गुजरात के गृहमंत्री थे, उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब क्या उन्होंने नैतिकता का ध्यान रखा था? गृहमंत्री ने वेणुगोपाल को जवाब देते हुए कहा कि मैं रिकार्ड स्पष्ट करना चाहता हूं। मैंने गिरफ्तार होने से पहले नैतिकता के मूल्यों का हवाला देकर इस्तीफा भी दिया और जब तक अदालत से निर्दोष साबित नहीं हुआ तब तक मैंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया। शाह ने कहा कि हमें क्या नैतिकता सिखाएंगे? कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने विधेयक को अलोकतांत्रिक बताया और केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे विधेयक लाकर भाजपा सरकार लोगों की आंखें में धूल झोंकने की कोशिश कर रही है। यह पूरी तरह दमनकारी कदम है। यह हर चीज के खिलाफ है और इसे भ्रष्टाचार विरोधी कदम के रूप में पेश करना लोगों की आंख में धूल झोंकना जैसा है। सोशल मीडिया में भी इस विधेयक की जमकर चर्चा हो रही है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह विधेयक ही दो-मूही तलवार है। जहां इस विधेयक से चुनी हुई राज्य की विपक्षी सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, वहीं यह एनडीए सहयोगियों के लिए भी इशारा है कि आप अगर लाइन पर नहीं चले तो आपका भी क्या अंजाम हो सकता है, समझदार को इशारा ही काफी है। वैसे हमें लगता है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को पारित करना इतना आसान नहीं होगा। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत दोनों सदनों में चाहिए होगा। जो फिलहाल उसके पास नहीं है। वैसे भी मानसून सत्र खत्म हो गया है बिल अब तो विंटर सेशन में ही आएगा। केंद्र सरकार इस विधेयक को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है, जबकि विपक्ष इससे सहमत नहीं है। दोनों पक्षों को समन्वय के मार्ग पर चलना चाहिए। ध्यान रहे, हमारे संविधान सभा में शामिल नेताओं ने सोचा भी नहीं था कि कभी देश की राजनीति का नैतिक स्तर इतना गिर जाएगा। आज तो कोई दागी नेता पद नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में आज या कल कुछ कानूनी प्रावधान ऐसे करने ही पड़ेंगे, ताकि दागियों के लिए जगह न बचे और इस हमाम में सभी नंगे है। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 21 August 2025

चुनावी सवालों का जवाब नहीं मिला

आखिर भारत के चुनाव आयोग ने चुनावी सवालों के मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस की। प्रेस कांफ्रेंस तो की पर ज्वलंत सवालों के जवाबों को टालने पर ज्यादा जोर दिया गया। बेहतर होता कि चुनाव आयोग यह प्रेस कांफ्रेंस न करता। प्रेस कांफ्रेंस भी उस दिन की गई जब रविवार था और उसी दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोड शो चल रहा था और बिहार के सासाराम में राहुल गांधी की वोट चोरी यात्रा आरंभ हो रही थी। नतीजा यह हुआ कि इस प्रेस कांफ्रेंस ने नए सवालों को जन्म दे दिया। लोकतंत्र में चुनाव केवल सरकार चलाने की वैधता हासिल करना नहीं, बल्कि यह उस चुनाव की बुनियाद का प्रमुख स्तंभ है, जिस पर देश, राज्य व लोकतंत्र का दारोमदार टिका हुआ है। इस प्रक्रिया के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से पारदर्शिता से संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है। रविवार को चुनाव आयोग ने विपक्षी राजनीतिक दलों के वोट चोरी से जुड़े आरोपों के जवाब दिए। प्रेस कांफ्रेंस के बाद कांग्रेस ने कहा कि इस प्रेस कांप्रेंस में विपक्ष के उठाए सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया गया। तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार चुनाव से ठीक पहले भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोट देने का अधिकार छीन रही है। आरजेडी ने यह सवाल उठाया कि एसआईआर ऐसे समय क्यों की जा रही है जब बिहार में बाढ़ आई हुई है। पत्रकारों ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा था। इस पर आयोग ने कहा, बिहार में 2003 में भी एसआईआर हुआ था और उसकी तारीख भी 14 जुलाई से 14 अगस्त थी। तब भी यह सफलतापूर्वक हुआ था। राहुल गांधी ने दावा किया था कि 2004 के लोकसभा और महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ, जिससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ। विशेष रूप से, उन्होंने बेंगलुरु की महादेवपुरा विधानसभा में एक लाख से ज्यादा फर्जी वोटर और कई अमान्य पतों का आरोप लगाया था। राहुल गांधी ने डुप्लीकेट वोटरों (जैसे एक ही व्यक्ति का कई राज्यों में वोटर के रूप में रजिस्ट्रेशन) और गलत पतों (जैसे एक छोटे से कमरे में सैंकड़ों वोटर) के उदाहरण दिए थे। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार और गैर जिम्मेदाराना बताते हुए खारिज किया और कहा कि वोट चोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करोड़ों मतदाताओं, लाखों चुनाव कर्मचारियों की ईमानदारी पर हमला है। क्या राहुल गांधी के सवालों का यही जवाब था? राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग उनसे शपथ पत्र मांग रहा है, मुझसे एफीडेविट मांगा है जबकि कुछ दिन पहले ही भाजपा के लोग प्रेस कांफ्रेंस करते हैं तो उनसे कोई एफीडेविट नहीं मांगा जा रहा है। ज्ञानेश कुमार ने जवाब दिया, जहां आप गड़बड़ी की बात कर रहे हैं और आप उस विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक नहीं हैं तो कानून के मुताबिक आपको शपथ पत्र देना होगा। आयोग का कहना है कि हलफनामा देना होगा या देश से माफी मांगनी होगी। अगर सात दिनों के अंदर हलफनामा नहीं मिलता है तो इसका मतलब है कि ये सभी आरोप निराधार हैं। पर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि चुनाव आयोग ने विपक्ष के सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया। खेड़ा ने कहा क्या ज्ञानेश कुमार ने उन लाख वोटर्स के बारे में कोई जवाब दिया जिन्हें हमने महादेवापुरा में बेनकाब किया था? नहीं दिया। उन्होंने कहा, हमने उम्मीद की थी कि श्री ज्ञानेश कुमार हमारे प्रश्नों के उत्तर देंगे... ऐसा लग रहा था कि (प्रेस कांप्रेंस में) भाजपा का एक नेता बोल रहा है। वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता चुनाव आयोग की इस प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे। उनका मानना है कि फिलहाल जो सफाई चुनाव आयोग ने दी है उससे यह मुद्दा खत्म होते नहीं दिखाई दे रहा है। ठाकुरता कहते हैं, प्रेस कांफ्रेंस में कुछ सवालों के स्पष्ट जवाब नहीं मिले है। जैसे मैंने पूछा कि क्या यह सच है कि महाराष्ट्र में आपने 40 लाख नए लोगों को वोटर लिस्ट में शामिल किया? इस पर आयोग ने कहा कि उस समय किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी। मैंने एक और सवाल पूछा कि क्यों लोगों से ज्यादा नाम मतदाता सूची में थे तो इसका जवाब मुझे नहीं मिला। इस तरह से कई और सवाल हैं जिनके स्पष्ट जवाब नहीं मिले हैं। चुनाव आयोग ने बिहार ड्राफ्ट लिस्ट से करीब 65 लाख मतदाता हटाए हैं। यह एक बड़ी संख्या है, इसका कोई जवाब नहीं मिला। चुनाव आयोग आज से पहले इस तरह कभी प्रेस कांफ्रेंस करने सामने नहीं आया था। विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव आयोग के जवाब को राजनीतिक संदर्भ में देखने की जरूरत है। टाइमिंग की बात करें तो निश्चित रूप से चुनाव आयोग का जवाब भी राजनीतिक है। जैसे राहुल गांधी इसे बिहार में राजनीतिक बना रहे है तो ठीक उसी तारीख को सरकार की ओर से चुनाव आयोग ने अपना पक्ष सामने रखा है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 19 August 2025

अलास्का में नहीं बनी बात

 
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की अलास्का की बैठक पर सारी दुनिया की नजरें थीं। पिछले तीन साल से चले आ रहे रूस, यूक्रेन युद्ध की समाप्ति पर उम्मीदें लगाई जा रही थीं। स्थायी शांति न भी होती तो इतना तो हो सकता था कि युद्ध विराम तो हो जाता। पर सारी उम्मीद टूट गई। बेशक कुछ मुद्दों पर जरूर दोनों देशों के राष्ट्रपतियों की सहमति बनी पर कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। तीन साल से अलग-थलग किए गए पुतिन का ट्रंप ने न सिर्फ खुले दिल से स्वागत किया, बल्कि लाल कालीन बिछाकर उनका सार्वजनिक रूप से सम्मान भी किया। हालांकि जिस मुद्दे के लिए यह अहम बैठक हुई थी उस पर कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। ट्रंप-पुतिन मुलाकात से यूक्रेन मुद्दे पर कोई तत्काल हल नहीं निकला, बावजूद यह मुलाकात खास रही। रूस के यूक्रेन पर हमले और युद्ध अपराधों के आरोपों के चलते पुतिन पश्चिमी दुनिया से अलग-थलग पड़ गए थे। इस मुलाकात ने उन्हें अचानक वैश्विक केंद्र में वापस ला दिया। अमेरिका के सैन्य अड्डे पर दोनों नेताओं का बगल-बगल खड़े होकर एक-दूसरे की तारीफ करना, बातचीत करना और यहां तक कि ट्रंप की लियोजीन में साथ बैठना ये सब ऐसे दृश्य थे जो अमेरिका-रूस संबंधों के इतिहास में कम ही देखे गए। दुनिया भर की मीडिया एक प्रेस कांफ्रेंस की उम्मीद कर रही थी, लेकिन दोनों नेताओं ने सिर्फ बयान दिए और किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। ट्रंप ने उम्मीद जताई थी और यहां तक दावा किया था कि वह रूस–यूक्रेन युद्ध को रूकवा देंगे। हालांकि पुतिन ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया था। पुतिन के लिए यह बैठक किसी जीत से कम नहीं थी। बिना कोई रियायत दिए उन्हें दुनिया की सबसे ताकतवर कुर्सी से सम्मान और स्वीकृति मिल गई। इस पूरी कवायद में यूक्रेन की भूमिका हाशिए पर रही। इस बैठक के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमीर जेलेंस्की को आमंत्रित तक नहीं किया गया। अलास्का में ट्रंप पुतिन बैठक को वैश्विक मीडिया शांति की दिशा में बहुत भरोसे के साथ नहीं देख रहा है। रूसी मीडिया ने पुतिन की कूटनीतिक जीत का सुबूत माना, यूरोपीय मीडिया ने उम्मीद और आशंका दोनों जताई। वहीं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों और घरेलू अमेरिकी राजनीतिक हल्कों में चर्चा का बड़ा हिस्सा ट्रंप की व्यक्तिगत शैली और उनकी मसखरी नेता जैसी छवि पर केंद्रित रहा। न्यूयार्क टाइम्स ने अपेक्षाकृत संशयपूर्ण रुख अपनाते हुए सवाल उठाया, क्या यह वार्ता सिर्फ फोटोशूट और अल्पकालिक सुर्खियां थीं या वास्तव में संघर्ष विराम की दिशा में ठोस कदम? अमेरिकी खुफिया व रक्षा हल्कों में आशंका है कि पुतिन ने बैठक का इस्तेमाल वैश्विक मंच पर अपनी छवि सुधारने और यह दिखाने के लिए किया कि अमेरिका अंतत रूस से बातचीत करने पर मजबूर हुआ। वाशिंगटन पोस्ट ने राजनीतिक दांव बताते हुए सवाल उठाया कि क्या ट्रंप का मूड आधारित नेतृत्व अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति को कमजोर कर रहा है। दोनों अखबारों ने लिखा कि ट्रंप के फैसले उनके मूड पर निर्भर हैं आज खुश तो शांति की बात करेंगे, पर गुस्से में होंगे तो पलट जाएंगे। एमएसएन ने ट्रंप को रियलिटी शो का होस्ट स्टार करार दिया। नोबेल की चाह में बेकरार राजनेता वैश्विक मंच पर कोई ड्रामा कर सकता है। ट्रंप वैश्विक मंच व वैश्विक राजनीति शो मैनशिप में बदल रहे हैं। सीएनएन ने कहा, ट्रंप शांति की ओर बढ़ रहे हैं पर उनका अप्रत्याशित रुख सब पर भारी है। वहीं ब्रिटिश अखबार व गार्डियन ने वार्ता को राजनीतिक विडम्बना बताया। लिखा ः वार्ता ऐसे समय हुई जब आर्कटिक क्षेत्र में रूस, अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की दौड़ तेज है, सुरक्षा विशेषज्ञों को यह कदम अमेरिका की आर्टिक रणनीति में नरमी का संकेत लगता है। गार्डियन ने चेतावनी दी, ट्रंप की अप्रत्याशित कूटनीति से वार्ता के नतीजे भरोसेमंद नहीं माने जा सकते। उधर रूस के अखबार इजवेसित्या ने लिखा ः ट्रंप को मानना पड़ा कि पुतिन के बिना यूक्रेन का भविष्य तय नहीं हो सकता। कोमरूट ने इसे रूस की कूटनीतिक वापसी बताया। टीवी चैनल आरटी ने भी बैठक को पुतिन की मजबूती और धैर्य का परिणाम करार दिया। इतना तो हम भी कह सकते हैं कि इस बैठक ने निसंदेह ब्लादिमीर पुतिन को वैश्विक कटूनीति का अपरिहार्य खिलाड़ी बना दिया है। उम्मीद की जाती है कि रूस-यूक्रेन जंग में जो बर्फ पिघलने का सिलसिला शुरू हुआ है यह आगे बढ़ेगा और अंतत यह जंग बंद होगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 17 August 2025

ट्रंप टैरिफ से निर्यात पर संकट


केंद्र सरकार के प्रमुख सलाहकार (आर्थिक) अनंता नागेश्वरन ने कहा कि ट्रंप टैरिफ का असर 6 महीने से ज्यादा नहीं रहने वाला है। उन्होंने कहा, लांग टर्म चैलेंज के लिए प्राइवेट सेक्टर को अहम योगदान देना होगा। नागेश्वरन ने चेताया कि छह महीने के दौरान जैम्स एंड जूलरी टेक्सटाइल और फूड इंडस्ट्री को बढ़े हुए टैरिफ का मुकाबला करना होगा। ट्रंप टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर खासकर कुछ क्षेत्रों में तो अभी से बुरा असर पड़ना शुरू हो गया है। दैनिक भास्कर की छपी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उत्पादों पर अमेरिका के भारी भरकम 50 फीसदी टैरिफ ने देश के कई प्रमुख निर्यात उद्योगों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। इसका असर न सिर्फ भारत के 55 फीसदी निर्यात पर पड़ेगा, बल्कि राज्यों के सामने भी नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हालांकि, टैरिफ का असर सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। लेकिन कहीं पुराने सौदों पर संकट है तो कहीं भविष्य में आर्डर ठप होने की आशंका बढ़ गई है। चावल निर्यातकों की चिंता! भारत 127 देशों को करीब 60 लाख टन बासमती चावल निर्यात करता है। इसमें से करीब 2.70 लाख टन यानि 4 फीसदी चावल अमेरिका को जाता है। इस निर्यात में करीब 40 फीसदी हिस्सा हरियाणा में तरावड़ी (करनाल) से जाता है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि अगर अमेरिका को बासमती चालव का निर्यात नहीं होता तो भी बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। 2.70 लाख टन अन्य देशों में खपाना मुश्किल नहीं होगा। फिलहाल चावल निर्यातक वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं, क्योंकि इस साल का निर्यात लगभग पूरा हो चुका है। पानीपत उत्तर भारत का बड़ा टेक्सटाइल हब है। जहां से हर साल करीब 20,000 करोड़ रुपए का निर्यात होता है। इसमें से 10,000 करोड़ रुपए तक का व्यापार अकेले अमेरिका से जुड़ा है। निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से 500 करोड़ रुपए के पुराने ऑर्डर पर संकट आ गया है। नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कुछ निर्यातक पहले से ही स्थिति को भांप गए थे। ऐसे में उन्होंने अमेरिका से बड़े ऑर्डर लेना बंद कर दिए और उत्पादों में भी कटौती की है। सिंगापुर के जरिए भी अमेरिका से व्यापार की गुंजाइश है। यूके से द्विपक्षीय समझौते से कुछ लाभ मिल सकता है। पानीपत में 35000 करोड़ टेक्सटाइल्स इकाइयां हैं जिसमें 500 एक्सपोर्ट हाउस हैं और इनमें करीब 2.5 लाख लोगों को रोजगार मिला है। नए ऑर्डर नहीं मिलने पर इनकी आजीविका पर असर पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर के हैंडलूम और हस्तशिल्प उद्योग (विशेषकर पश्मीना एवं घानी शॉल) ने बीते तीन साल में निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। टैरिफ के बाद कारोबारी सतर्क हो गए हैं। जम्मू के शॉल निर्यात संगठन ने कहा अमेरिका में माल महंगा होगा पर कोई आर्डर अभी तक रद्द नहीं हुआ है। हमारे लिए दूसरे देशों के बाजार खुले हुए हैं। मगर अमेरिका में मांग घटी तो निर्यात को दूसरे देशों के बाजारों में मोड़ देंगे। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय और जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वे से कुल निर्यात तीन साल में बढ़कर 2023-24 में 1,162 करोड़ पहुंच गया। इसमें शॉल का निर्यात 477.24 करोड़ था। रोहतक का नट-बोल्ट उद्योग सालाना 5,000 करोड़ रुपए का कारोबार करता है। इसमें 70 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता है। उद्यमियों का कहना है कि नया टैरिफ अगर लागू होता है तो न सिर्फ आपूर्ति प्रभावित होगी बल्कि कारोबार भी मुश्किल में आ जाएगा। चिंता की बात है कि कुछ कंपनियों को दो महीने से अमेरिका से कोई आर्डर नहीं मिला है। बड़ी कंपनियां पुराने आर्डर को पूरा करने में लगी हैं। भविष्य के लिए जो आर्डर मिले हैं। उनकी आपूर्ति पर टैरिफ का असर दिखेगा। अतिरिक्त टैरिफ से जिले की औद्योगिक इकाइयों के लिए दुनिया के बड़े बाजारों में माल बेचना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि उत्पाद 25 फीसदी तक महंगा हो जाएगा। इसका असर कंपनी पर सीधा न पड़कर ग्राहक पर पड़ेगा। जसमेर लाठा जिसने बताया हम अमेरिका, यूके, यूरोप में नट-बोल्ट की आपूर्ति करते हैं। टैरिफ के कारण यहां से करीब 50 करोड़ रुपए के ही आर्डर बुक हुए हैं। हमारा 70 फीसदी नट-बोल्ट अमेरिका जाता है। पहले कस्टम ड्यूटी तीन फीसदी थी। अब यह बढ़कर 25 फीसदी हो गई है । यह पिछले 40-50 वर्षों में बहुत ज्यादा है। इसके अलावा 25 फीसदी टैरिफ और भी है। इससे हमारा उत्पाद काफी महंगा हो जाएगा ऐसा यहां के उद्योग चलाने वालों का मानना है। मैंने यह तो सिर्फ हरियाणा के कुछ उद्योग और निर्यातकों की बात की है, शेष देश में प्रभावित उद्योगों की बात नहीं की। लाखों कामगार बेरोजगार होने की कगार पर खड़े हैं। पहले से ही बेरोजगारी देश में चरम पर है, इस नए धमाके का क्या असर पड़ेगा जल्द पता चल जाएगा। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 14 August 2025

आसिम मुनीर की खुली धमकी

अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को धमकी भरा बयान दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए संघर्ष के तीन महीने बाद अब पाकिस्तानी सेना प्रमुख का बयान सामने आया है। मुनीर ने दावा किया है कि मई में हुए संघर्ष में पाकिस्तान को कामयाबी मिली थी। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने का दावा करता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। आसिम मुनीर का बयान ऐसे समय पर सामने आया है जब शनिवार और रविवार को ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय थल सेना और वायु सेना प्रमुखों के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। पहले बता दें कि भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि पहलगाम हमले के जवाब में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर किसी भी पारपंरिक मिशन से अलग था। शनिवार को भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने दावा किया था कि मई में हुए संघर्ष के दौरान भारत ने छह पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था। हालांकि उसी रोज पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने बयान जारी कर इसका खंडन किया। 10 मई को संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद गोलीबारी थम गई थी। उस समय पाकिस्तान ने भारत के पांच लड़ाकू विमान गिराने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। फ्लोरिडा में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने एक निजी कार्यक्रम में दावा किया था कि पाकिस्तान ने भारत के भेदभाव पूर्ण और दोहरे व्यवहार वाली नीतियों के खिलाफ एक सफल कूटनीतिक युद्ध लड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद में शामिल है और इस संबंध में उन्होंने कनाडा में एक सिख नेता की हत्या, कतर में आठ नौसेना अधिकारियों का मामला और कुलभूषण जाधव जैसी घटनाओं का उदाहरण दिया। गौरतलब है कि भारत पहले ही इन सभी आरोपों का खंडन कर चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बेहद आभारी है। जिनके राजनीतिक नेतृत्व में न केवल भारत पाक युद्ध को रोका बल्कि दुनिया में कई युद्धों को भी रोका। फील्ड मार्शल मुनीर ने अपने भाषण में कश्मीर को एक अधूरा एजेंडा बताया। आसिम मुनीर यहीं नहीं रूके उन्होंने भारत को खुली धमकी दे डाली। मुनीर ने कहा कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोकने के लिए बांध बनाया तो हम मिसाइल से उसे उड़ा देंगे। मुनीर ने कहा, हम भारत के सिंधु नदी पर डैम बनने का इंतजार करेंगे और जब वे ऐसा करेंगे तो हम मिसाइलों से उसे तबाह कर देंगे। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मुनीर यह गीदड़ भभकी देने से भी नहीं चूके कि अगर भविष्य में भारत के साथ युद्ध में उनके देश के अस्तित्व को खतरा हुआ तो वो इस पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देंगे। मुनीर ने कहा कि हम एक परमाणु संपन्न राष्ट्र हैं और अगर हमें लगता है कि हम डूब रहे हैं तो हम आधी दुनिया को अपने साथ ले जाएंगे। मुनीर का यह बयान इस लिहाज से सनसनीखेज है कि पहली बार अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश को परमाणु युद्ध की धमकी दी गई है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने जिस तरह खुलेआम परमाणु युद्ध की धमकी दी है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस पर अपनी-अपनी राय हो सकती है। बहरहाल इससे एक बात तो साबित होती ही है कि पाकिस्तान के पास परमाणु शfिक्त होना केवल भारत के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह दुखद है कि मुनीर का यह बयान अमेरिका की धरती से आया है। यह पहली बार है जब किसी ने अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश के लिए इस तरह के धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह भी पहली बार है जब किसी सेना प्रमुख ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हfिथयार भी इस्तेमाल कर सकता है। मुनीर के बयान का भारतीय विदेश मंत्रालय ने सही जवाब दिया है कि जिस देश में सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हो, वहां परमाणु कमांड और कंट्रोल की विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत किसी न्यूfिक्लयर ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सरकार का यही रुख रहा था। मुनीर के बयान का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए करना चाहिए। भारत को अमेरिकी सरकार से भी यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अपनी धरती से ऐसे बेहूदा, विस्फोटक भड़काऊ बयान देने की इजाजत कैसे दी? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 12 August 2025

वोट चोरी पर आर-पार की लड़ाई

लोकसभा चुनाव के 14 माह बाद एसआईआर और वोट बंदी के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने में सफल रहे हैं। भारत में राजनीति इस समय टॉप गीयर पर है। यह सही है कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव करवाना आसान नहीं है। यही नहीं भारत में इतने चुनाव होते हैं जो चुनाव आयोग की योग्यता के लिए चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सफल रहा है। वोट करना हर वोटर का संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। यह भी जरूरी है कि उसका वोट उसे ही मिले जिसे उसने वोट दिया है। जब यह आशंका पैदा हो जाए कि उसका वोट दिया किसी को है और गया कहीं ओर तो बड़ा संदेह और निराशा पैदा हो जाती है। किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती-विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें सरकार को चुने जाने की प्रक्रिया कितनी स्वच्छ, स्वतंत्र और पारदर्शी है। इसके लिए चुनाव आयोजित कराने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी नागरिक वोट देने के अधिकार से वंचित न हो, मतदान की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तथा चुनाव में हिस्सेदारी करने वाले सभी दलों के लिए भरोसेमंद हो और नतीजों को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट हों। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कर्नाटक की एक विधानसभा क्षेत्र का डाटा पेश करते हुए आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। दस्तावेज का ढेर मीडिया के समक्ष दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि यह सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध मतदाता सूची के ढेर से निकली है। उनका दावा है कि महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतों की चोरी हुर्ह है। संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि लोकसभा चुनावों, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। तथ्यों के साथ राहुल ने साबित करने की कोशिश की। मतदाता सूची में हेर-फेर, फर्जी मतदाता, गलत पते, एक पते पर कई मतदाता, एक मतदाता का नाम कई जगह की सूची में होने जैसे कुछ खास तरीकों पर आधारित वोट चोरी करने के इस माडल को कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमल में लाया गया ताकि भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि चुनाव गड़बड़ियां, ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायतें तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन आमतौर पर वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकीं या फिर निर्वाचन आयोग की ओर से उन्हें निराधार घोषित किया जाता रहा है। अब इस बार जिस गंभीर स्वरूप में इस मामले को उठाया गया है, उसके बाद देशभर में यह बहस खड़ी हो गई है कि अगर इन आरोपों का मजबूत आधार है तो इससे एक तरह से समूची चुनाव प्रक्रिया की वैधता कठघरे में खड़ी होती है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाए राहुल गांधी से शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर शिकायत देने या फिर देश की जनता को गुमराह न करने को कहा है। मगर राहुल गांधी ने वोट चोरी का दावा करते हुए जिस तरह अपने आरोपों को सुबूतों पर आधारित बताया है। उसके बाद चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह पूरी समूची प्रक्रिया पर भरोसे को बहाल रखने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ इस संबंध में उठे सवालें का जवाब सामने रखे। बहरहाल इस आरोप की गंभीरता को समझना आवश्यक है कि दो कमरों में क्रमश 80/46 लोग कैसे रह सकते हैं? इनमें तमाम मतदाताओं की तस्वीरें आकार में इतनी छोटी हैं कि पहचान करना मुश्किल है। इन आरोपों की पुष्टि आयोग को बगैर प्रत्यारोपों के करनी चाहिए। मतदाता सूचियों के प्रति आयोग जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। जो भी त्रुटियां सामने आती हैं उनके बारे में स्पष्टता से संतोषजनक जवाब देना चाहिए। सवाल आरोपों-प्रतिआरोपों का नहीं है। सवाल देश में संविधान की रक्षा का है जिसकी रक्षा तभी हो सकती है जब हर नागरिक को अपने वोट देने का अधिकार मिले और उसकी वोट उसे ही जाए जिसे वोट दिया गया है। हमारे लोकतंत्र की जड़ है स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव मगर इसमें भी हेराफेरी होती है तो हमारे संविधान व लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। उम्मीद है कि चुनाव आयोग प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देगा और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 9 August 2025

बिहार वोटर लिस्ट पर टकराव

बिहार मतदाता सूची परीक्षण एसआईआर का मामला संसद से सड़क और सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक स्वाभाविक ही गरमाया हुआ है। विपक्षी दलों ने बिहार में जारी मतदाता सूची में एसआईआर को लेकर संसद में इसे वोटों की डकैती करार दिया और कहा कि इस विषय पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करना देश हित के लिए जरूरी है। यदि सरकार एसआईआर पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होती तो समझा जाएगा कि वह लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं रखती। वहीं संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और लोकसभा के कार्य संचालन और प्रक्रियाओं के नियमों एवं परिपाटी के तहत इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। उधर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं सूची की जांच के संकेत दिए हैं। बिहार में नई मतदाता सूची में करीब 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट यह परखना चाहता है कि लोगों के नाम सही ढंग से कटे हैं या नहीं? बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी गई थी। इसी याचिका के तहत सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं। तीन दिन के अंदर चुनाव आयोग को हटाए गए नामों का विवरण प्रस्तुत करना है। 9 अगस्त तक यह पेश करने को कहा गया है। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस उज्जवल भूइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा, वोटर लिस्ट में हटाए गए मतदाताओं का विवरण दें और एक कापी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स को भी दें। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेशों को चुनौती देने वाले संगठन एडीआर ने एक नया आवेदन दायर किया है। इसमें आयोग को हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। एडीआर ने कहा है, विवरण में यह भी आलेख हो कि वह मृत हैं या स्थायी रूप से विस्थापित हैं या किसी अन्य कारण से उनके नाम पर विचार नहीं किया गया है। पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण से कहा नाम हटाने का कारण बाद में पता चलेगा क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा सूची है। इस पर भूषण ने तर्क दिया, कुछ दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, लेकिन इस पर स्पष्ट नहीं है कि मतदाता की मृत्यु हो गई या वह कहीं और चले गए हैं। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यह रिकार्ड पर लाएंगे कि उन्होंने यह जानकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साझा की है। उन्होंने यह भी कहा कि बीएलओ ने जिनके नाम हटाने या न हटाने की सिफारिश की, उसकी सूची केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जारी हुई है। हम उसमें पारदर्शिता चाहते हैं। इस बार जस्टिस सूर्यकांत ने कहा-आयोग के नियमों के अनुसार हर राजनीतिक दल को यह जानकारी दी जाती है। कोर्ट ने उन राजनीतिक दलों की सूची मांगी जिन्हें लिस्ट दी गई है। भूषण ने कहा जिन लोगों के फार्म मिले, उनमें अधिकांश ने फार्म नहीं भरे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन मतदाताओं पर असर पड़ सकता है, उन्हें आवश्यक जानकारी दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने आयोग को इस बारे में शनिवार तक जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा, भूषण (एडीआर) उसे देखें, फिर हम देखेंगे कि क्या खुलासा किया गया और क्या नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, एडीआर 12 अगस्त से होने वाली सुनवाई में दलीलें दे सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए तो वह हस्तक्षेप करेगा। राजनीतिक दलों की चिंता जायज है, पर यह चिंता प्रत्येक दल को होनी चाहिए, केवल विपक्षी दलों को नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की जल्दबाजी की वजह से विवाद गहराया है। अगर पर्याप्त समय लेकर पुनरीक्षण का कार्य किया जाता तो संभव है कि विवाद की गुजांइश इतनी न होती। बहरहाल लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव आयोग सब सच सामने रखे। वोट का अधिकार हर नागरिक का मौलिक संवैधानिक अधिकार है जिसे कोई नहीं छोड़ सकता। इसी अधिकार पर लोकतंत्र टिका हुआ है। अगर कोई राजनीतिक दल किसी भी तरह से बेइमानी करके चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में कराता है तो यह देश के लोकतंत्र की जड़े खोद रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान की सबसे बड़ी संरक्षक है वह न्याय करेगी और निष्पक्ष होकर तथ्यों के आधार पर अपना फैसला करेगी। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 7 August 2025

बिछने लगी सियासी बिसात


उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गहमागहमी शुरू हो गई है। संसद के हालांकि दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के दलीय समीकरण में सत्तारूढ़ राजग के पास अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त संख्या तो है पर फिर भी लगता है कि इस बार यह चुनाव आसान नहीं होगा। विपक्ष चुनौती देने की तैयारी में लगा हुआ है। बेशक, विपक्ष चुनौती तो दे सकता है पर बिना बड़ी सेंध के उलटफेर करने की स्थिति में नहीं लगता। पर राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है कुछ भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन पर कोई व्हिप जारी नहीं होगा। सांसदों को अपनी आत्मा के अनुसार वोट करने का अधिकार होता है। इसीलिए ऐसे चुनावों में क्रास वोटिंग का बड़ा खतरा रहता है। पहले बात करते हैं सत्ता पक्ष की। भाजपा और उनके सहयोगी दलों की। भाजपा चाहेगी कि उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार चुना जाए जो उनका समर्थक हो और सरकार की लाइन पर चले। यह काम श्री जगदीश धनखड़ ने शुरू-शुरू में बाखूबी किया था। यह और बात है कि उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहती है कि जो भी उम्मीदवार हो वो संघ की पसंद व समर्थक हो। वह सरकार की लाइन पर चलने वाला नहीं हो। एक नेता ने कहा कि पिछली बार जब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था उस वक्त भी संघ परिवार में इसे लेकर चर्चा थी। इस बार लगभग सभी मान रहे हैं कि संघ अपनी विचारधारा को समझने वाला उम्मीदवार ही चाहता है। दक्षिण भारत की सियासी पार्टियां चाहती हैं कि जब राष्ट्रपति उत्तर से है तो कम से कम उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत का हो। इससे देश में एकता आएगी। वहीं यह जानते हुए कि भाजपा का पलड़ा भारी है फिर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एक साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। सूत्रों का कहना है कि योजना बिहार या आंध्र प्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी और जदयू को असमंजस में डाला जा सके। चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने की और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावानाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में पड़ जाएंगे। आंध्र प्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में 7 सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर ंइस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटता है तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा में भी इस मुद्दे पर एका नहीं है। संघ से जुड़े विचारधारा वाले भाजपा सांसद संघ के कहने पर अगर उम्मीदवार उन पर भाजपा हाई कमान द्वारा थोपा गया तो वह क्रास वोटिंग भी कर सकते हैं। हालांकि मेरी राय में यह मुश्किल होगा पर राजनीति में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता? ये किसी से छिपा नहीं कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है जो जिस तरह से जगदीप धनखड़ को अपमानित करके हटाया गया उससे वे खुश नहीं हैं। सरकार से इस समय कांग्रेस के जिस तरह के रिश्ते हैं उसे देखकर लगता नहीं कि विपक्ष सरकार के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। कांग्रेस के साथ सरकार के वरिष्ठ मंत्रियें के रिश्ते बहुत बिगड़े हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ से कांग्रेस की कथित नजदीकियों को लेकर जिस तरह की कहानियां बनाई गई उससे भी भाजपा खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन) उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी ओबीसी या मुस्लिम नाम पर भी विचार कर रहा है। इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं का सुझाव है कि विपक्ष को उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के रूप में लड़ना चाहिए। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 5 August 2025

एक और फ्रंट खुलता नजर आ रहा है


अमेरिका और रूस के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब रूस के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलने की ठान ली है। पिछले कई दिनों से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के खिलाफ ट्रंप जहर उगल रहे हैं और युक्रेन के साथ युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। पर पुतिन उनकी एक नहीं सुन रहे हैं। ट्रंप ने इस बार पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव पर निशाना साधते हुए पुतिन और रूस को धमकाया है। ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की ओर से बेहद उकसाने वाली टिप्पणियों के बाद दो परमाणु पनडुब्बियों को सही जगह पर तैनात करने का आदेश दिया है। बता दें कि मेदवेदेव ने हाल ही में अमेरिका के खिलाफ टिप्पणी की थी। ये ट्रंप के उस अल्टीमेटम के जवाब में था जिसमें उन्हेंने रूस से युक्रेन युद्ध विराम की मांग की थी। ट्रंप ने कहा मैंने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हो सकता है कि ये (मेदवेदेव की टिप्पणी) मूर्खतापूर्ण और भड़काऊ बयान सिर्फ बातें भर न हो। शब्दों की एहमियत होती है और कई बार इनके अंजाम अनचाहे हो सकते हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि इस बार ऐसा नहीं होगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि अमेरिकी नौसेना की ये पनडुब्बियां कहां भेजी गई हैं। ट्रंप ने कहा कि यह मामला उन परिस्थितियों में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह फाइनल अल्टीमेटम है। रूस और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और दोनों के पास परमाणु पनडुब्बियों का विशाल बेड़ा है। बता दें कि 29 जुलाई को ट्रंप ने कहा था कि यदि रूस 10-12 दिनों के अंदर यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं करता तो उस पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध और टैरिफ लगाए जाएंगे। अमेरिका शांति चाहता है लेकिन वह कमजोर नहीं है। इस पर 29 जुलाई को रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने लिखा ः हर नई डेडलाइन एक धमकी है और युद्ध की ओर एक कदम है। अमेरिका को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। मगर वह रूस को इस तरह धमकाता रहा। 30 जुलाई को ट्रंप ने मेदवेदेव को फेल पूर्व राष्ट्रपति कहते हुए कहा- उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। वे अब बहुत खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। अगले दिन ही मेदवेदेव ने फिर धमकी दी, कहाö सोवियत युग का डेड हैंड प्रणाली आज भी पीय है। यदि अमेरिका सोचता है कि वह एकतरफा आदेश दे सकता है तो वह गलतफहमी है। इसके बाद ही पावार को ट्रंप ने एटमी पनडुब्बियों की तैनाती का आदेश दिया। पिछले कुछ दिनों से जैसे मैने बताया ट्रंप और मेदवेदेव सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब ट्रंप ने पुतिन को युद्ध खत्म करने के लिए 8 अगस्त की नई समय सीमा दी है। लेकिन पुतिन ने इसका कोई संकेत नहीं दिया कि वह ऐसा करने वाले हैं। बता दें कि मेदवेदेव 2022 में पोन पर रूस के हमले के प्रबल समर्थक रहे हैं। वह पश्चिमी देशों के कड़े आलोचक भी हैं। केवल छह देशों के पास ही परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियां हैं। ये देश हैं चीन, भारत, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। उम्मीद करते हैं कि अमेरिका-रूस में बढ़ती तनातनी जरूर रूक जाएगी और कोई समझौता हो जाएगा। रूस भी बहुत ताकतवर देश है। वह आसानी से झुकने वाला नहीं। रूस–यूक्रेन से समझौता तो कर सकता है पर यह तभी हो सकता है जब उसकी शर्तें  युक्रेन माने जो बहुत मुश्किल लगता है। अमेरिका का यहां भी दोहरा चरित्र नजर आता है। एक तरफ तो ट्रंप युक्रेन को हथियार, पैसा दे रहे हैं। यूरोप के देशों से युक्रेन  की मदद करवा रहे हैं और दूसरी तरफ युद्ध विराम की बात करते हैं। अगर दुनिया में कोई आदमी बेनकाब हुआ है, एक्सपोज हुआ है तो वह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। नोबेल पुरस्कार लेने की इतनी जल्दी है कि अनाप-शनाप बाते करते हैं। धमकियों पर उतर आए हैं पर अब दुनिया उन्हें समझ चुकी है। वह जानती है कि अंदर से वह कितने खोखले हैं और शायद ही अब इसे कोई गंभीरता से लेता हो। पर रूस-युक्रेन का युद्ध रूकना चाहिए। दोनों पुतिन और जेलेंस्की को गंभीरता से बैठ कर हल निकालना चाहिए। हजारों जाने व्यर्थ में जा रही हैं। रूस-युक्रेन युद्ध रूकना चाहिए। अगर ट्रंप रूकवा सकते हैं तो भी कोई हर्ज नहीं है। 
-अनिल नरेन्द्र