Published on 30 August, 2012
अनिल नरेन्द्र
पिछले कई दिनों से गीतिका शर्मा और गोपाल कांडा का केस अखबारों की सुर्खियों में है। गीतिका की आत्महत्या के मामले में शायद कुछ नया नहीं है। इससे पहले भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिनमें लड़कियों की हत्या या आत्महत्या की गुत्थी के ऐसे पहलू सामने आए हैं। आखिर ऐसे मामलों में दोष किसका है। इन लड़कियों का जो तरक्की करने के लिए एक ऐसे जाल में फंस जाती हैं जिससे निकलना कई बार नामुमकिन हो जाता है या फिर वो जिम्मेदार है जो महत्वाकांक्षा की कीमत वसूलना जानते हैं। गीतिका से पहले हाल ही में हमारे सामने अनुराधा बाली उर्प फिजा का मामला आया। संदिग्ध परिस्थितियों में अभी हाल ही में फिजा की मौत का मामला सामने आया है। पुलिस यह पता नहीं लगा पाई है कि फिजा की मौत आत्महत्या है, हत्या या फिर कॉकटेल की ओवरडोज। हरियाणा के डिप्टी सीएम चन्द्रमोहन के साथ मुहब्बत की यह कहानी एक महीना भी नहीं चली और फिजा और चन्द्रमोहन की शादी टूट गई। अब सामने रह गई है मौत की एक कहानी। मध्य प्रदेश की आरटीआई एक्टिविस्ट शहला मसूद की मौत की कहानी भी राजनीति के दांव-पेंच में घूम रही है। कहते हैं कि मध्य प्रदेश के बीजेपी के एक पॉवरफुल नेता ध्रुवनारायण सिंह और शहला में काफी नजदीकियां थीं। पुलिस के अनुसार ये नजदीकियां ध्रुवनारायण को चाहने वाली इंटीरियर डिजाइनर जाहिदा परवेज को बिल्कुल पसंद नहीं थी। जाहिदा ने शहला मसूद को ही सुपारी देकर मरवा डाला। सीबीआई ने केस की तफ्तीश की तो केस की सारी परतें खुल गईं। सीबीआई ने जाहिदा को मुख्य आरोपी बनाते हुए केस की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी है। इसी तरह कई और मामले भी हैं जिनमें मेरठ की एक प्रोफेसर कविता चौधरी, पत्रकार शिवानी भटनागर, कवयित्री मधुमिता शुक्ला के केस प्रमुख हैं। दरअसल समस्या यह है कि आजकल समाज में ज्यादातर लोग जल्दी से जल्दी बहुत कुछ पा लेना चाहते हैं और ऐसा करते वक्त वे असुरक्षा से घिर जाते हैं। बहुत जल्दी से आगे बढ़ने की इस चाहत का कुछ लोग गलत फायदा उठाने की ताक में हमेशा रहते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ में जहां घालमेल हुआ वहीं से समस्याओं की शुरुआत हो जाती है। जो लोग संवेदनशील और भावुक होते हैं उनके साथ ऐसी समस्याएं खासतौर पर आती हैं, क्योंकि किसी व्यक्ति के सब्ज-बाग दिखाए जाने पर ऐसे लोग आसानी से भावुक हो जाते हैं। इस भावुकता के कारण जाल में आसानी से फंस जाते हैं। ऐसे में जब आशाएं टूटती हैं तो तनावग्रस्त होकर इंसान भी टूटने लगता है और खुद को अकेला महसूस करता है। दरअसल इस तरह के भटकाव से बचने के लिए बैलेंस लाइफस्टाइल की जरूरत है जिन्दगी में। यह सही है कि आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं जिन्दगी में होनी चाहिए लेकिन उनका रास्ता ठोस और पुख्ता होना चाहिए। सपनों में जीना बुरी बात नहीं है, लेकिन इसका भी एक संतुलित तरीका होना चाहिए। इन सारे केसों में परिवार वालों का भी रोल महत्वपूर्ण रहा। सब जानते हुए समय रहते किसी ने नहीं रोका, क्योंकि सभी लाभ उठा रहे थे।
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