Tuesday 15 October 2024

जेलों में जातिगत भेदभाव


जेलों में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी। इतनी ही प्रशंसा उस रिपोर्ट या याचिका की भी होनी चाहिए जिसने सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा पर प्रहार का जरूरी साहस दिखाया। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के 11 राज्यों में जेल मैनुअल में जाति आधारित भेदभाव वाले प्रावधानों को खारिज करते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन हम अभी तक जाति आधारित भेदभाव को जड़ से समाप्त नहीं कर पाए हैं। ऐतिहासिक फैसले में जेलों में जाति के आधार पर कैदियों के बीच काम के बंटवारे को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि भेदभाव बढ़ाने वाले सभी प्रावधानों को खत्म किया जाए। शीर्ष अदालतों ने राज्यों के जेल मैनुअल के जाति आधारित प्रावधानों को रद्द करते हुए सभी राज्यों को फैसले के अनुरूप तीन माह में बदलाव का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि भेदभाव करने वाले सभी प्रावधान असंवैधानिक ठहराये जाते हैं। पीठ ने जेल में जातिगत भेदभाव पर स्वत संज्ञान लेते हुए रजिस्ट्री को तीन महीने बाद मामले को सूची करने का निर्देश दिया। इस फैसले को सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने महिला पत्रकार सुकन्या शांता की तारीफ करते हुए कहा कि सुकन्या शांता आपके रोषपूर्ण लेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके लेख से ही इस मामले की सुनवाई की शुरुआत हुई। पता नहीं इस लेख के बाद हकीकत कितनी बदली होगी, लेकिन हमें उम्मीद है कि इस फैसले से हालात बेहतर होंगे। जब लोग लेख लिखते हैं। शोध करते हैं और मामलों को अदालतों के सामने इस तरह से लाते हैं कि समाज की वास्तविकता दिखा सकें, तो हम इन समस्याओं का निदान कर सकते हैं। ये सभी प्रक्रियाएं कानून की ताकत को रेखांकित करती हैं। सुकन्या शांता द वायर डिजिटल प्लेटफार्म के लिए काम करती हैं। उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों में जेलों में जाति-आधारित भेदभाव पर रिपोर्टिंग कर एक सीरिज की। इस सीरिज में उन्होंने कैदियों को जाति के आधार पर दिए जाने वाले काम और जाति के आधार पर कैदियों के साथ भेदभाव जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया। इस सीरिज के प्रकाशित होने के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान लिया। इसके बाद सुकन्या ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और फैसला अब आपके सामने हैं। सरकारी दस्तावेजों में जाति नाम चिह्नित करना अनिवार्य है। कानून में संशोधन कर इस तरह के भेदभाव समाप्त करने में सरकारें संकुचाती हैं। क्योंकि जाति आधारित राजनीति करने में ये माहिर हैं। इसलिए उनकी प्राथमिकताओं में अंग्रेजों के बनाए नियमों को सुधारने की बात ही नहीं उठती। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बावजूद हम अब तक जातियों के पूर्वाग्रह और अंतहीन जंजाल से निकलने में पूर्णत असफल रहे हैं। अपराधियों को सजा बेशक अदालत देती है पर कैद के दौरान उनके साथ किया जाने वाला जेल अधिकारियों का बर्ताव भी कई दफा पक्षपाती होता है। ये सलाह सिर्फ जेल नियमावली तक ही नहीं सीमित होना चाहिए। बल्कि इस तरह का सुधारवादी कदम पूरे समाज में सख्तीपूर्वक लागू किए जाने की जरूरत है। ये छुआछात या जाति-आधारित भेदभाव से समाज को मुक्त कराने की जरूरत है। अदालत ने पहल कर दी है।

-अनिल नरेन्द्र

हरियाणा चुनाव ः किस पर दबाव कम हुआ किस पर बढ़ा


आरक्षण और संविधान पर खतरे को लेकर विपक्ष की बनाई धारणा के कारण लोकसभा चुनाव में पहुंचे नुकसान के बाद हरियाणा के नतीजे नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए संजीवनी से कम नहीं है। हरियाणा में जीत की हैट्रिक और जम्मू-कश्मीर में पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन से न सिर्फ मोदी पर दबाव कम होगा बल्कि पार्टी का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। मोदी जी पर पिछले कुछ समय से दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था। पार्टी के अंदर बढ़ते मतभेद, विपक्ष का तीखा हमला और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से बढ़ती आलोचना। मोदी नड्डा कई मोर्चो पर एक साथ लड़ रहे थे। हरियाणा के चुनाव परिणाम अगर भाजपा के खिलाफ आते तो संघ का मोदी-शाह जोड़ी पर और दबाव बढ़ता और प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर मोदी सरकार की नीतियों पर जो हमले हो रहे थे इनमें और तेजी आ जाती। मोदी ब्रैंड पर प्रश्नचिह्न लगने शुरू हो गए थे। पार्टी के अंदर यह आशंका भी जाहिर की जा रही थी कि अब मोदी ब्रांड चुनाव में चल ही रहा है। हरियाणा के परिणामों से न केवल इन अटकलों, आलोचनाओं पर विराम लगा बल्कि अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के अलावा उत्तर प्रदेश में अहम माने जाने वाले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर भी इसका असर पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी और कांग्रेsस पार्टी की इस हार की वजह से उन पर दबाव बढ़ेगा। राहुल गांधी जीत के दावे कर रहे थे। वोEिटग से पांच दिन पहले एक्स पर राहुल ने लिखा था, हरियाणा में दर्द के दशक का अंत करने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी शक्ति के साथ एकजुट है, संगठित है, समर्पित है। ये दावे कितने खोखले निकले परिणामों ने बता दिए। कई विश्लेषक इस हार को राहुल गांधी की व्यक्तिगत हार मान रहे हैं। लेकिन हमारा ऐसा मानना नहीं है। राहुल ने ईमानदारी से पूरी ताकत लगाई पर न तो स्थानीय नेताओं ने साथ दिया न ही संगठन ने। अब राहुल रैली में आई भीड़ को पोलिंग बूथ पर तो नहीं ले जा सकते। पर हो राहुल व कांग्रेस की इंडिया गठबंधन में बारगेनिंग की पोजीशन कम जरूर हुई है। होनी भी चाहिए थी क्योंकि कांग्रेस को कुछ ज्यादा अहंकार हो गया था। इसे आप पार्टी व समाजवादी पार्टी को साथ हरियाणा में लड़ना चाहिए था। अहीरवाल क्षेत्र में अखिलेश यादव की एक-दो सभा करनी चाहिए थी। इस हार से राहुल, प्रियंका और सोनिया को इतना तो समझ आ गया होगा कि पार्टी के अंदर बैठे जयचंदों से कैसे निपटा जाएगा। लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद जिस तरह विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लाक में कांग्रेस का रुतबा बढ़ा था हरियाणा की हार से उस पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है। उसके सहयोगी दल ही उन्हें आंखें दिखाने लगे हुए हैं। उधर उत्तर प्रदेश में सपा ने उपचुनाव के लिए अपने छह उम्मीदवारों की घोषणा कर दी हैं इनमें दो सीटें वह भी है जिन पर कांग्रेस दावा कर रही थी। सहयोगी आरोप लगा रहे हैं कि जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में होती है वहां वह सहयोगियों को एडजस्ट नहीं करती है। जम्मू-कश्मीर, हरियाणा के नतीजों का राहुल के नेतृत्व पर क्या असर पड़ेगा ये कहना जल्दबाजी होगी। अभी दो राज्यों के चुनाव बाकी हैं, जिनमें महाराष्ट्र और झारखंड शामिल हैं। इन दोनों राज्यों में राहुल गांधी के सामने चुनौती बढ़ गई है। इस बात में कोई शक नहीं कि कांग्रेस का पलड़ा हल्का हुआ है। टिकट बंटवारे इत्यादि में गठबंधन की पार्टियां अब कांग्रेस पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती हैं। कुल मिलाकर मैंने जैसे कहा कि नरेन्द्र मोदी की छवि बढ़ी है। उन पर दबाव कम हुआ है और राहुल गांधी की मेहनत को धक्का लगा है और उन पर दबाव बढ़ा है।

Friday 11 October 2024

सीटें तो बढ़ी पर कश्मीरियों का दिल नहीं जीत पाई

जम्मू-कश्मीर में भाजपा सत्ता तक तो नहीं पहुंच पाई लेकिन 25.63 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा वोट शेयर करने में सफल रही। 2014 में उसे 22.98 प्रतिशत वोट मिले थे। पार्टी को राज्य में अब तक की सबसे ज्यादा सीटें भी मिली हैं। 2014 में भाजपा को पहली बार 25 सीटें मिली थीं। इस बार 29 सीटों पर पहुंच गई। भाजपा को 1987 के बाद साढ़े तीन दशक में सबसे बड़ी सफलता मिली है। हालांकि कश्मीर संभाग में 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, पर एक भी नहीं जीत सका। चुनाव में लोगों को राहुल-अब्दुल्ला का साथ रास आया और 1987 के बाद पांचवीं बार गठबंधन सरकार का रास्ता साफ हुआ। नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन पर कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में तो सफल रही, लेकिन सीटों के साथ वोट शेयर भी घट गया। 2014 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 18.01 फासदी मत प्रतिशत के साथ 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि इस चुनाव में उसे कुल 6 सीटें मिली और मत प्रतिशत भी गिर कर 11.97 प्रतिशत रह गया। दस साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी को भारी झटका लगा है। 2014 में भाजपा के साथ सरकार बनाने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। खुद चुनाव से दूर रहकर महबूबा मुफ्ती ने अपनी बेटी इल्तिजा पर दांव लगाया था, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पीडीपी का मत प्रतिशत भी गिरकर 8.87 फीसदी रह गया जो 2014 के चुनाव में 22.67 प्रतिशत था। 2014 में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं। इल्तिजा मुफ्ती का कहना है कि भाजपा के साथ गठबंधन की वजह से पार्टी की हार नहीं हुई। कई कारण रहे। घाटी में नेशनल कांफ्रेंस-पीडीपी में से एक को जनता ने मौका दिया। अनुच्छेद 370 व 35ए की बेड़ियों से जम्मू-कश्मीर की आजादी दिलाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में पहली सरकार बनाने का भाजपा के सपनों को न केवल झटका लगा है बल्कि अपने बलबूते पहली बार सूबे में सरकार बनाने का दावा भी खोखला निकला। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत पहली बार जेके में अनसूचित जाति (एसटी) को राजनीतिक आरक्षण देते हुए विधानसभा की नौ सीटें आरक्षित कीं। पर यहां भी उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। भाजपा को तमाम जतन के बाद भी पोरागंल में जोरदार झटका लगा। राजौरी-पुंछ की आठ में एसटी के लिए आरक्षित पांच सीटों पर वह करिश्मा नहीं कर सकी। इन दोनों जिलों की सात सीटों भाजपा हार गई। केवल चार-पांच सीटों की उम्मीद थी। भाजपा को यहां केवल बालाकोट-सुंदरबन सीट पर ही जीत मिली। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र रैना भी हार गए। खास बात यह रही कि पहाड़ी समुदाय को पहली बार भाजपा ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया था और उसे उम्मीद थी कि पहाड़ी समुदाय भाजपा का साथ देगी। गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रैलियां भी काम नहीं आई। चिनाव वैली में पिछला प्रदर्शन दोहराने में सफल रही। -अनिल नरेन्द्र

फसल बोई कांग्रेस ने, काटी भाजपा ने

हरियाणा राज्य के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी ने लगातार तीन बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की हो। हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत के जोर-शोर से दावे कर रही थी। तमाम सर्वेक्षण, पोल सर्वे, विश्लेषक कांग्रेस की जबरदस्त जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे। जानकार भी हरियाणा में बीते इस साल में भाजपा की सरकार को लेकर सत्ता विरोधी लहर का दावा कर रहे थे। एग्जिट पोल में कांग्रेस को न केवल जीतते हुए दिखाया गया बल्कि 90 सीटों में से कांग्रेsस को करीब 60 तक की सीटें मिलने का दावा कर रहे थे। कहा गया था कि हरियाणा में किसानों का मुद्दा हो, पहलवानों का मुद्दा हो, अग्निवीर जैसा मुद्दा हो इनकी वजह से भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी है। दावा तो यहां तक किया जा रहा था कि यह चुनाव हरियाणा की जनता बनाम भाजपा है। हरियाणा में दस साल बाद कांग्रेस अपनी सरकार बनाने का सपना पालती रही के हाथों में करारी हार लगी। वजह कई रही। इन नतीजों के पीछे सबसे बड़ी वजह रही है भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट। इसका असर हुआ कि हुड्डा के गढ़ सोनीपत की पांच में से चार सीटों पर कांग्रेस हार गई। हरियाणा के एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक हरियाणा में करीब 22 फीसदी जाट वोट हैं जो काफी लोकल हैं यानि खुलकर अपनी बात रखते हैं। गैर-जाटों को लगा कि कांग्रेस के जीतने पर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बनेंगे इसलिए उन्होंने खामोशी से भाजपा के पक्ष में वोट दिया। इस बार के विधानसभा चुनावों में वोटों का बंटवारा जाट और गैर-जाट के आधार पर हो गया, जिसका सीधा नुकसान कांग्रेsस को हुआ। हरियाणा में कांग्रेsस की हार के पीछे एक बड़ा कारण था पार्टी के अंदर गुटबाजी। जानकार मानते हैं कि राज्य में कांग्रेस के उम्मीदवारों को इस तरह से भी देखा जा रहा था कि कौन हुड्डा खेमे से है, कौन शैलजा खेमे से है। यही नहीं कांग्रेस के कई उम्मीदवारों को आलाकमान यानि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के कहने से मैदान में उतारा गया जिनका हरियाणा में कोई जनाधार नहीं था। इनमें से प्रमुख नाम लिया जा रहा है कांग्रेस संगठन मंत्री के सी वेणुगोपाल का। वेणुगोपाल ने सुना है 5 नाम दिए थे, सभी पांच हार गए। हुड्डा और शैलजा की आपसी खींचतान से भी पार्टी को नुकसान हुआ। शैलजा का घर बैठना और यह कहना कि पार्टी में उनका अपमान हुआ है ने दलित वोटों को खिसका दिया और इसका फायदा भाजपा को हुआ। हरियाणा में गुटबाजी और गलत तरीके से टिकट बांटने की वजह से कांग्रेस को लगभग 13 सीटें गंवानी पड़ी। इनमें आलाकमान, हुड्डा और शैलजा तीनों के चुनिंदा उम्मीदवार थे। कांग्रेsस के कई नेताओं का ध्यान चुनावों से ज्यादा चुनाव जीतने के पहले ही मुख्यमंत्री कुर्सी पर था। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने कहा है कि इन चुनावों का सबसे बड़ा सबक यही है कि अति आत्म विश्वास कभी नहीं करना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा ने 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए थे। इनमें 16 उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर ली। कांग्रेस ने अपने किसी विधायक का टिकट नहीं काटा और उसके आधे उम्मीदवारों की हार हो गई। उम्मीदवारों को नहीं बदलना भी कांग्रेsस के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों में से यह बात भी सामने आई कि 10 से ज्यादा सीटों पर छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार कांग्रेsस की हार के पीछे बड़ी वजह रही हैं। भाजपा ने उन सभी सीटों पर कांग्रेस विरोधी उम्मीदवारों की मदद की। खासकर उन जगहों पर जहां उसकी जीत की संभावना कम थी और कांग्रेस की जीत भी स्पष्ट नहीं दिख रही थी। कांग्रेस के संगठन में एक बार फिर कमी दिखाई दी। वो उमड़ती भीड़ को वोटों में तब्दील नहीं कर सके और अति उत्साह में जीती बाजी हार गई। इसलिए कहता हूं कि फसल बोई कांग्रेस ने, काटी भाजपा ने।

Thursday 10 October 2024

सिर्फ सरकार की आलोचना पर केस नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पत्रकारिता कर रहे लोगों के लिए सुकून दे ही, हो सकती है कि सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गत शुक्रवार को कहा कि पत्रकारों के अधिकारों को देश के संविधान 19(1) के तहत संरक्षित किया गया है। एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में मानकर उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। साथ ही निर्देश दिया कि राज्य प्रशासन उनके लेख के संबंध में कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति एनवीएन भट्टी की पीठ ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया है। पीठ ने याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब पांच नवम्बर को होगी। अपने संक्षिप्त आदेश में पीठ ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ प्रासंगिक टिप्पणियां की। पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकारों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत संरक्षित किया जाता है। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन से सरकार की आलोचना के रूप में माना जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं लगाया जाना चाहिए। दरअसल, सरकारों को अपनी आलोचना करनी रास नहीं आती, मगर पिछले कुछ वर्षों में सरकारें इसे लेकर प्रकट रूप से सख्त नजर आने लगी हैं। सरकार के खिलाफ अखबारों में खबरें, लेख या कोई वैचारिक टिप्पणी करने पर कई पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएं सामने आई हैं। यहां तक कि कुछ पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम के तहत भी मुकदमें दर्ज किए गए हैं, जिसमें जमानत मिलना मुश्किल होती है। इस धारा के तहत कई पत्रकार अब भी सलाखों के पीछे हैं। कुछ मामलों में पहले ही सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं माना जा सकता। मगर किसी सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। किसी देश की पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र है और कितने साहस के साथ अपने सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना कर पा रही है, उससे उस देश की खुशहाली का भी पता चलता है। यह उदाहरण नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व खुशहाली सूचकांक में भारत निरंतर नीचे खिसकता गया है। सवाल यह है कि सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय की नसीहत को कितनी गंभीरता से लेती है और स्वतंत्र पत्रकारिता करने की इजाजत देती है? -अनिल नरेन्द्र

ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड का एक साल

यह नाम था हमास के उस ऑपरेशन का जो उसने पिछले साल यानि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला किया था। पिछले साल सात अक्टूबर को हुए हमले को एक साल पूरा हो चुका है। एक साल हो गया जब हमास ने इजरायल पर हमला कर 1200 लोगों की हत्या कर दी थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया था। इजरायल ने इसके जवाब में गाजा में बड़े पैमाने पर हवाई और जमीनी हमले करके गाजा को लगभग मिट्टी में मिला दिया। हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इसमें 41,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए। इजरायल हमास युद्ध की वजह से फिलस्तीन का गाजा शहर आज मलबों के ढेर में तब्दील हो गया है। पिछले एक साल में इस शहर में 4.2 करोड़ टन से भी अधिक मलबा जमा हो गया है। इसमें टूटी और ध्वस्त दोनों इमारतें शामिल हैं। चिंता की बात है कि मलबा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के उपग्रह डाटा के मुताबिक गाजा की युद्ध पूर्व संरचनाओं में से दो तिहाई यानि 1,63,000 से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं या ढह गई हैं। इनमें से करीब एक तिहाई ऊंची इमारतें थीं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने गाजा के आठ शरणाथी शिविरों के आंकलन का हवाला देते हुए कहा कि करीब 23 लाख टन मलबा दूषित हो सकता है। इसमें से कुछ नुकसानदायक भी है। धूल एक गंभीर चिंता है। यह पानी और मिट्टी को दूषित कर सकती है। फेफड़े की बीमारी का कारण बन सकती है। मलबे में ऐसे शव हैं, जो बरामद नहीं हुए हैं। फिलस्तीन स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन शवों की संख्या करीब 10,000 है। कुछ बम भी हैं, जो फटे नहीं। यानि सात अक्टूबर के दिन ही पिछले साल हमास ने इजरायल पर हमला किया था और उसके बाद इजरायल ने हमास पर अटैक शुरू किया जो अब इजरायल के लिए सात फ्रंट वार में तब्दील हो गया है। एक साल से मध्य पूर्व में तनाव लगातार बढ़ ही रहा है और पिछले हफ्ते इजरायल पर ईरान की तरफ से हुए मिसाइल अटैक के बाद तो राकेट और मिसाइलों के हमलों से संकट और गहरा गया है। इजरायल ने अभी तक ईरान में जवाबी कार्रवाई की नहीं है लेकिन खतरा लगातार बना हुआ है। सवाल यह है कि अगर इजरायल ईरान पर हमला करता है तो ईरान भी जवाबी कार्रवाई करेगा। हमास और हिज्बुल्लाह और हूती मिलकर एक साथ अटैक का प्लान कर रहे हैं। जिस तरह इजरायल छह फ्रंट पर एक साथ लड़ रहा है उससे किसी भी तरफ के अटैक की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके लिए इजरायल ने अमेरिका और नाटो देशों की मदद से पुख्ता तैयारी कर रखी है। देखना यह है कि मध्य-पूर्व में जंग का विस्तार होता है या यह सीमित रहती है। सारा खेल पिछले साल 7 अक्टूबर को ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड से शुरू हुआ है।

Tuesday 8 October 2024

हाथ में राइफलöमुस्लिम देशों से अपील


ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई करीब पांच साल बाद जुमे की नमाज के दिन सार्वजनिक तौर पर उपस्थित हुए। खामेनेई की यह सार्वजनिक मौजूदगी इसलिए भी खास है क्योंकि इजरायल और ईरान के बीच तनाव के माहौल में उनके भूमिगत हो जाने की अटकले लगाई जा रहीं थीं। इन अटकलों के पीछे की वजह कुछ दिनों के अंदर ही हमास और हिज्बुल्लाह के कई वरिष्ठ नेताओं और कमांडरों की हत्या भी है। ईरान इसके लिए इजरायल को दोषी ठहराता है और इसी का बदला लेने के लिए उसने इजरायल पर जबरदस्त मिसाइली हमला किया था। ईरान इंटरनेशनल मीडिया ग्रुप के मुताबिक, करीब पांच साल बाद शुक्रवार की नमाज में खामेनेई की पहली बड़ी सार्वजनिक मौजूदगी थी। उसके मुताबिक खामेनेई ने वही पुरानी इजरायल और अमेरिका के खिलाफ भारत समेत उस वैचारिक नैरेटिव की बात कही जो उन्होंने 1979 से जारी रखी है। 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद वहां नई सत्ता कायम हुई थी। ईरान पर नजर रखने वाले लोग मानते हैं कि यह कार्यक्रम खामेनेई के प्रति समर्थन और तेहरान की सुरक्षा को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम का मकसद उन अफवाहों को दूर करना भी था जिसमें कहा गया था कि 28 सितम्बर को बेरुत में हिज्बुल्लाह नेता नसरुल्लाह की मौत के बाद खामेनेई एक गुप्त बंकर में छिपे हुए हैं। इजरायल के प्रमुख अखबार द टाइम्स ऑफ इजरायल लिखता है कि ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने अपने उपदेश के दौरान हाथ में बंदूक लेकर दावा किया कि इजरायल हमास और हिज्बुल्लाह को कभी नहीं हटा पाएगा। खामेनेई ने शुक्रवार को अपने धार्मिक उपदेश में इसी सप्ताह इजरायल पर किए गए मिसाइल हमले का समर्थन किया। इन मिसाइल हमलों की वजह से क्षेत्रीय युद्ध की आशकाएं बढ़ गई हैं। इजरायल किसी भी समय ईरान पर जवाबी हमला कर सकता है। निशाने पर है ईरान के तेल भंडार और परमाणु ठिकाने। द टाइम्स ऑफ इजरायल के मुताबिक खामेनेई ने आतंकी प्रमुखों की हत्या के बाद यह बयान दिया है और कहा है कि ईरान के मिसाइल हमले यहूदी अपराधों की न्यूनतम सजा है। इस अवसर पर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने तेहरान के मुख्य प्रार्थना स्थल मोसल्ला (ग्रेंड मस्जिद) पर हिज्बुल्लाह चीफ नसरुल्ला की याद में नमाज प़ढ़ी। इसके बाद उन्होंने एकत्रित हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के तमाम मुसलमानों को इजरायल के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। खामेनेई ने इस्लामी देशों के साथ देने की अपील करते हुए कहा कि वह इजरायल को खत्म करके रहेंगे। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से यमन और ईरान से गाजा तक साथी देश शत्रु पर कार्रवाई को तैयार हैं। करीब 40 मिनट लंबे भाषण में खामेनेई ने इजरायल पर मंगलवार दागी गई करीब 200 मिसाइलों को ईरान सशस्त्र बलों की शानदार कामयाबी बताया। आयतुल्लाह खामेनेई ने इजरायल से हो रही जंग में मारे जाने वाले लड़ाकों को बहादुर और इस्लाम की राह में कुर्बान होने वाला बताया। उन्होंने कहा लेबनान और फिलस्तीन में रहने वाले आप लोग बहादुर हैं, आप वफादार और धैर्यवान हैं। ये शहादतें और जो खून बहाया गया है, वह आपके और हमारे दृढ़ संकल्प को हिला नहीं सकता। खामेनेई ने अरब देशों को संबोधित करते हुए अपना आधा भाषण अरबी भाषा में ही दिया। उन्होंने इस्लामी देशों की एकजुटता का भी आह्वान किया। न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि खामेनेई ने पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमलों की प्रशंसा की है। उन्होंने फिलस्तीनी इलाकों पर इजरायल के लंबे समय से चले आ रहे कब्जे की वजह से हमास के हमलों को तार्किक, न्यायसंगत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनन वैध बताया।