देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के बीच बूथ लेवल अफसरों (बीएलओ) की मौत चिंता का कारण बन गई है। मध्य प्रदेश में 24 घंटों में 2 बीएलओ की मौत हो गई है। वहीं पिछले 4 दिनों में भोपाल के 50 से ज्यादा बीएलओ बीमार पड़े हैं। इनमें दो को हार्ट अटैक और एक को ब्रेन हैमरेज हुआ है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में एक महिला बीएलओ ने तो आत्महत्या ही कर ली। परिजनों ने ज्यादा काम के दबाव को मौत का कारण बताया। एसआईआर 4 नवम्बर को शुरू हुआ। तब से अब तक यानि 19 दिनों में 6 राज्यों में 16 लोगों की मौत हो गई है। गुजरात व मध्य प्रदेश में 4-4, पश्चिम बंगाल में 3, राजस्थान में 2, केरल व तमिलनाडु में 1-1 की जान गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन मौतों के लिए केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर को अव्यावहारिक बताते हुए इसे तुरन्त रोकने की मांग की है। कांग्रेस नेता व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी एक्स पर पोस्ट कर इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने लिखा एसआईआर के नाम पर देशभर में अफरा-तफरी मचा रखी है नतीजा? तीन सालों में 16 बीएलओ की जान चली गई। हार्ट अटैक, तनाव, आत्महत्या एसआईआर में कोई सुधार नहीं। थोपा गया जुल्म है। उन्होंने आरोप लगाया, ईसीआई ने ऐसा सिस्टम बनाया है जिसमें नागरिक को खुद को तलाशने के लिए 22 साल पुरानी मतदाता सूची के हजारों स्कैन पन्नों को पलटना पड़े, मकसद साफ है-सही मतदाता हारकर थक कर बैठ जाए और वोट चोरी बिना रोक-टोक जारी रहे। दूसरी ओर भाजपा ने इन मौतों के लिए तृणमूल कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया है। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के मुख्यालय कृष्णा नगर में बीएलओ के तौर पर काम करने वाली रिंकू नामक महिला शिक्षक ने शनिवार को आत्महत्या कर ली। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि शव के पास बरामद एक सुसाइड नोट में रिंकू ने अपनी मौत के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए जिला चुनाव अधिकारी से रिपोर्ट मांगी है। पुलिस के मुताबिक रिंकू ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उन्होंने 95 फीसदी ऑफलाइन काम पूरा कर लिया है, लेकिन ऑनलाइन के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं है। सुपरवाइजर को इस बारे में बताने से भी कोई फायदा नहीं हुआ। इससे कुछ दिन पहले बर्धमान जिले के मेचारी में भी काम के कथित दबाव के कारण ब्रेन स्ट्रोक की वजह से नमिता हासंदा नाम का एक बीएलओ की मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन घटनाओं पर दुख जताते हुए सवाल किया कि आखिर एसआईआर और कितने लोगों की जान लेगी? दूसरी ओर भाजपा और सीपीएम ने इन घटनाओं पर कहा था कि इनके लिए तृणमूल कांग्रेस खुद जिम्मेदार है। सीपीएम नेता और पार्टी के केंद्रीय समिति के सदस्य सुजन चक्रवर्ती का सवाल है कि आखिर काम के दौरान बीएलओ को जान क्यों गंवानी पड़ रही है? उनका कहना था चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी से इंकार नहीं कर सकता। साथ ही राज्य सरकार को भी बीएलओ की मदद करनी चाहिए थी। लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी और भाजपा इस प्रक्रिया का राजनीतिक फायदा उठाने में जुटी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राज्य में बीएलओ की मौतों और बीमारियों ने तृणमूल कांग्रेस को चुनाव आयोग और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत हथियार दे दिया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी इस मुद्दे पर लगातार दबाव बढ़ा रही हैं। राजनीतिक हानि-लाभ को एक तरफ रखें और इस दुखद मुद्दे पर विचार करें तो चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए और इस दबाव के कारण आत्महत्या तक करने पर मजबूर होने की प्रक्रिया में सुधार लाना चाहिए या तो वह बीएलओ की संख्या बढ़ाएं या फिर लक्ष्य पूरा करने के लिए समय सीमा बढ़ाएं? चुनाव आयोग को अविलंब एक्शन लेना होगा नहीं तो इन निर्दोषों की हत्या का दाग उस पर लगेगा।
-अनिल नरेन्द्र