Saturday, 21 December 2024

इजराइल से लौटे कामगारों के अनुभव

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी बीते सोमवार को संसद में फलस्तीन लिखा हैंड बैग लेकर पहुंची थीं और अगले दिन यानी मंगलवार को इसका जिक्र उत्तर प्रदेश विधानसभा में हुआ। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, कल कांग्रेस की एक नेत्री फलस्तीन का बैग लेकर संसद घूम रही थीं और हम यूपी के नौजवानों को इजराइल भेज रहे हैं। प्रियंका गांधी ने सीएम योगी के इस बयान को शर्म की बात बताया। प्रियंका जो हैंड बैग लेकर पहुंची थीं उस पर फलस्तीन शब्द के साथ कई फलस्तीनी प्रतीक भी बने हुए थे। इस घटना क्रम के बाद बीबीसी ने यूपी के उन लोगों से बातचीत की जो इजराइल काम करने गए थे। अधिकतर कामगारों के लिए काम के घंटे और मनचाहा काम न मिलने की बड़ी समस्या बताई। बीबीसी ने कामगारों के दावों पर यूपी सरकार का पक्ष जानने के लिए संबंधित विभाग से संपर्क भी किया पर कोई जवाब नहीं मिला। उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन के चल रहे सत्र में सीएम योगी ने कहा कल कांग्रेस की नेत्री फलस्तीन का बैग लेकर घूम रही थीं और हम यूपी के नौजवानों को इजराइल भेज रहे हैं। यूपी के अब तक लगभग 5600 से अधिक नौजवान इजराइल में हैं। उन्हें रहने के लिए फ्री स्थान, डेढ़ लाख रुपए अतिरिक्त मिल रहे हैं और पूरी सुरक्षा की गारंटी भी है। आप यह मानकर चलिए कि वह नौजवान जब डेढ़ लाख रुपए अपने घर भेजता है तो प्रदेश के ही विकास में योगदान और अच्छा काम कर रहा है। हमास और इजराइल की जंग की वजह से इजराइल में मजदूरों की संख्या में कमी हुई है। इसलिए इस कमी को पूरी करने के लिए इजराइल सरकार ने भारत से मजदूरों को ले जाने की पहल की थी। इसके तहत यूपी के अलावा दूसरे राज्यों जैसे हरियाणा, तेलंगाना से भी मजदूर इजराइल गए हैं। योगी के बयान के बाद प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा ः यूपी के युवाओं को यहां रोजगार देने की जगह उन्हें युद्ध ग्रस्त इजराइल भेजने वाले इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। उन्होंने आगे लिखा ः अपने युवाओं को युद्ध में झोंक देना पीठ थपथपाने की नहीं बल्कि शर्म की बात है। प्रदीप सिंह यूपी के बाराबंकी जिले में देवा शरीफ के पास के गांव में रहने वाला है। 4 जून 2024 को प्रदीप सिंह यूपी से काम करने के लिए इजराइल गए थे। वह इजराइल में लगभग चार महीने रहे। बीबीसी से बातचीत में प्रदीप बताते हैं ः हम लोग पेरा टिकवा शहर में थे और सुविधाएं ठीक थीं लेकिन काम थोड़ा हाई था। मैंने प्लास्टरिंग कैटेगरी के लिए आवेदन किया था लेकिन वहां दूसरा काम करना पड़ा। हम लोग एक चीनी कंपनी शटरिंग और सरिया से जुड़ा काम कर रहे थे। प्रदीप का दावा है कि उन्हें वक्त से ज्यादा समय तक काम करना पड़ता था। हम लोगों को सुबह 7 बजे से शाम सात बजे तक कुल 12 घंटे काम करना होता था। इसमें आधा घंटे तक लंच होता था। प्रदीप वापस इजराइल जाना चाहते हैं लेकिन उनके ही इलाके के दिवाकर सिंह वापस इजराइल नहीं जाना चाहते। दिवाकर कहते हैं कि चीनी कंपनियों में वहां 12 घंटे काम करना होता था, बीच में आराम भी नहीं कर सकते थे। मैंने आयरन वैंडिंग (सरिया मोड़ने का काम) कैटेगरी में इंटरव्यू दिया था लेकिन दूसरे काम करने पड़ते थे। कई बार तो साफ-सफाई का काम भी करना पड़ता था। दिवाकर मई 2024 में इजराइल गए थे और दो महीने वहां रहे थे। वह बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने दो से ढाई लाख रुपए की बचत जमा कर ली थी। फिलहाल दिवाकर अपने घर के पास एक निजी कंपनी में 30 हजार रुपए की नौकरी कर रहे हैं। -अनिल नरेन्द्र

आंबेडकर पर सियासी भूचाल

अब यह एक फैशन हो गया है... आंबेडकर, आंबेडकऱ, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। संसद में केन्द्राrय मंत्री अमित शाह के संविधान पर चर्चा के दौरान एक लंबे भाषण के इस छोटे से अंश को लेकर ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्रवाई स्थगित करनी प़ड़ गई। इस बयान में आंबेडकर का अपमान देख रहे हमलावर विपक्ष को जवाब देने के लिए अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर कहा ः जिन्होंने जीवनभर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाई, वो लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर बताया कि उनकी सरकार ने भारत के संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर के सम्मान में क्या-क्या काम किए हैं लेकिन इसके बावजूद हंगामा नहीं रूका। अब यह मामला पूरे देश में आग की तरह फैल चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह पर आंबेडकर का उपहास करने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे तक की मांग कर ली। खड़गे ने कहा... बाबा साहेब का अपमान किया है, संविधान का अपमान किया है। उनकी आरएसएस की विचारधारा दर्शाती है कि वो स्वयं बाबा साहेब के संविधान का सम्मान नहीं करना चाहते हैं। समूचा विपक्ष अमित शाह का इस्तीफा मांग रहा है। वहीं शाह के इस बयान को आंबेडकर का अपमान इसलिए माना जा रहा है कि अगर ईश्वर शोषण से मुक्ति देने वाला है तो डॉ. भीमराव आंबेडकर जाति व्यवस्था में बंटे भारतीय समाज के इन करोड़ों लोगों के ईश्वर हैं, जिन्होंने सदियों तक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक भेदभाव झेला है। भीमराव आंबेडकर ने संविधान में बराबरी का अधिकार देकर अनुसूचित और पिछड़ी जातियों को शोषण से मुक्ति दी है। यही वजह है कि आंबेडकर की विचारधारा से जुड़े और दलित राजनीति से जुड़े लोग अमित शाह के इस बयान को आंबेडकर के अपमान के रूप में देख रहे हैं। लेकिन कटु सत्य यह भी है कि इस समय सभी राजनीतिक पार्टियों में आंबेडकर को अपनाने की होड़ मची है और राजनीतिक दल आंबेडकर के विचारों का इस्तेमाल करके दलित मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं। अमित शाह के इस विवादास्पद बयान के बाद से भाजपा बचाव की मुद्रा में है। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि अमित शाह को मुंह से भले ही निकल गया हो लेकिन इस पर बहुत हैरान नहीं होना चाहिए। उन्होंने वही बोला है जो वह महसूस करते होंगे, जो आरएसएस भी महसूस करती है। अमित शाह के बचाव में राजनीतिक शोरगुल के बीच सवाल उठता है कि क्या ये बयान भाजपा को सियासी नुकसान पहुंचा सकता है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसका कोई बड़ा राजनीतिक नुकसान नहीं होगा। दूसरी ओर विपक्षी दल इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़कों पर ले जा रही है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में दलितों, पिछड़ों, ओबीसी, अल्पसंख्यकों का मानना है कि यह भी बाबा साहेब आंबेडकर जी की बदौलत आज उन्हें इज्जत मिली है, सम्मान और सुरक्षा मिली है। बाबा साहेब का संविधान ही देश की स्वतंत्रता और समानता का प्रतीक है।

Thursday, 19 December 2024

महाराष्ट्र की महायुति सरकार में बढ़ता असंतोष


बावजूद इसके कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला पर गठबंधन में असंतोष थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहले तो 23 नवम्बर को चुनाव नतीजे आने के बाद लंबी जद्दोजहद के 12 दिन बाद देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री की शपथ ले पाए और उसके भी दस दिन बाद मंत्रिमंडल तय हो पाया और उनका शपथ ग्रहण हो सका। अब मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने सोमवार को नई महायुति सरकार में शामिल नहीं किए जाने पर निराशा व्यक्त की और कहा कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से बात करेंगे और फिर तय करेंगे कि उनकी भविष्य की राह क्या होगी। वहीं शिवसेना विधायक नरेन्द्र मोंडेकर ने महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कैबिनेट विस्तार में रविवार को महायुति के घटक दलों, भाजपा, शिवसेना और राकांपा के 19 विधायकों ने शपथ ली। कैबिनेट से 10 पूर्व मंत्रियों को हटा दिया गया और 16 नए चेहरों को शामिल किया गया। पूर्व मंत्री छगन भुजबल और राकांपा के दिलीप वाल्से पाटिल एवं भाजपा के सुधीर मुनगंटीवार और विजय कुमार गावित नए मंत्रिमंडल से बाहर किए गए कुछ प्रमुख नेता हैं। भुजबल ने कहा कि वे नई मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से नाखुश हैं। अपने भविष्य के कदम के बारे में पूछे जाने पर नासिक जिले के येआलो निर्वाचन क्षेत्र के विधायक ने कहा कि मुझे देखने दीजिए। मुझे इस पर विचार करने दीजिए। पूर्व मंत्री दीपक केसरकर को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। वहीं शिव सेना विधायक मोंडेकर ने दावा किया कि उनकी पार्टी के प्रमुख एवं उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उन्हें मंत्रिमंडल में जगह देने का वादा किया था। मोंडेकर शिव सेना के उपनेता और पूर्वी विदर्भ जिलों के समन्वयक हैं। महायुति गठबंधन में रस्साकशी जारी है। शिव सेना एकनाथ शिंदे के लिए गठबंधन में अपने दूसरे नंबर की पार्टी है। एकनाथ शिंदे को पचाना और अपने समर्थकों से स्वीकार कराना मुश्किल हो रहा है। उपमुख्यमंत्री पद के लिए वे बेशक अंतत राजी तो हुए पर मंत्रियों की कम संख्या का सवाल आड़े आया और अब विभागों के बंटवारे को लेकर आखिर दलों तक रस्साकशी होती रही है। तीनों पार्टियों में चल रही इस असामान्य रस्साकशी का एक रूप कहिए विधायकों की बढ़ी हुई संख्या का दबाव पर महाराष्ट्र के मंत्रियों के लिए ढ़ाई साल के कार्यकाल का ताजा फार्मूला कितना कारगर साबित होता है यह समय ही बताएगा। देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जितनी जद्दोजहद हुई वो किसी से छिपी नहीं। दिल्ली चाहती थी कि फडणवीस मुख्यमंत्री न बनें और इसी रणनीति के कारण एकनाथ शिंदे ने न केवल दिल्ली में डेरा डाला बल्कि आखिरी समय तक सस्पेंस जारी रखा। देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जहां दिल्ली नेतृत्व को पीछे हटना पड़ा। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जीत हुई और उन्होंने अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाया। फडणवीस के सामने गठबंधन को प्रभावी ढंग से चलाना और अच्छी सरकार देने की चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर विरासत की लड़ाई


नई दिल्ली विधानसभा सीट पिछले छह विधानसभा चुनाव से दिल्ली को मुख्यमंत्री देती आ रही है। 1998 से लेकर 2002 तक यहां से जीते विधायक ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। पिछले तीन टर्म शीला दीक्षित ने यहां से जीत हासिल की थी। यह सीट उनकी विरासत की बन गई थी। बाद में यह अरविंद केजरीवाल की सीट बन गई। वह यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इस बार 2025 विधानसभा चुनाव में लड़ाई दिलचस्प होने वाली है। यहां के विधायक व पूर्व सीएम केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के पूर्व दो सीएम के बेटों ने ताल ठोक रखी है। दो पूर्व सांसद मैदान में हैं। दरअसल नई दिल्ली विधानसभा हमेशा हाई प्रोफाइल सीट रही है। 1998 से 2008 के बीच तीन बार शीला दीक्षित यहां से विधायक रही हैं। तीनों बार वह मुख्यमंत्री बनीं। यहां से चौथे चुनाव में केजरीवाल ने बाजी पलटी और उन्हें यहां से पहली बार हार का सामना करना पड़ा। फिर 2013, 2015 और 2020 में हुए चुनाव में केजरीवाल यहां से विधायक बने और तीनों बार सीएम भी बने। यही नहीं एक न्यूज चैनल में केजरीवाल ने ऐलान किया कि नई दिल्ली से ही वह फिर चुनाव ल़ड़ेंगे और जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि पूर्व सीएम के सामने इस बार दो पूर्व सीएम के बेटे मैदान में होंगे। कांग्रेस ने यहां से शीला जी के बेटे संदीप दीक्षित को अपना उम्मीदवार बनाया है। संदीप के पास अपनी पुरानी विरासत को फिर से हासिल करने की भी चुनौती है। वहीं पोस्टबाजी और सोशल मीडिया में भाजपा के पूर्व सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा खुद को जिस प्रकार पेश कर रहे हैं, उसमें इस कयास को बल मिल रहा है कि नई दिल्ली से भाजपा के उम्मीदवार वही हो सकते हैं। बता दें कि प्रवेश वर्मा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के सुपुत्र हैं। इसलिए उन पर भी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती है। रही बात कि अगर संदीप दीक्षित या प्रवेश वर्मा में कोई भी जीतता है और अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो क्या उनकी पार्टी उन्हें मुख्ममंत्री के तौर पर देख रही है। इस पर सूत्रों का कहना है कि भविष्य में क्या होगा यह कहना मुश्किल है, लेकिन जिस प्रकार दोनों को उनकी पार्टियों ने केजरीवाल के खिलाफ ही लड़ाने का फैसला किया है, इससे तो यही संकेत मिलते हैं कि दोनों खुद को सीएम उम्मीदवार मान रहे हैं। क्योंकि वेस्ट दिल्ली से सांसद रह चुके प्रवेश वर्मा को अपने इलाके के 10 विधानसभा सीटें छोड़कर नई दिल्ली से केजरीवाल के खिलाफ उतारने के पीछे की क्या रणनीति हो सकती है? ंइसी प्रकार ईस्ट दिल्ली से सांसद रहे संदीप दीक्षित किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते थे, नई दिल्ली विधानसभा से ही क्यों? नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार का विधानसभा चुनाव इसलिए दिलचस्प माना जा रहा है क्योंकि अरविंद केजरीवाल के सामने दोनों ही पार्टियां बड़े चेहरे उतार रही हैं। देखें, आगे क्या होता है।

Tuesday, 17 December 2024

असद के पास 200 टन सोना, 1.80 लाख करोड़ रुपए



सीरिया के तानाशाह जिनका तख्ता पलट दिया गया है उनके बारे में चौंकाने वाली जानकारियां आ रही हैं। स्टील के मोटे दरवाजों के पीछे काल वाल कोठरियों की कतारें, उनके टार्चर चेम्बरों इत्यादि की बात तो हो रही है पर उनकी संपत्ति का ब्यौरा मिलने से सब चौंक गए हैं। एक बार बशर-अल-असद ने पिता से पूछा कि सत्ता को स्थायी रूप से कैसे मजबूत किया जा सकता है। पिता हाफिज अल असद ने जवाब दिया, अपनी जनता को कभी भी पूरी तरह खुश मत करो। जब वे थोड़े असंतुष्ट रहेंगे, तभी वो तुम्हारी और देखेंगे और तुमे जरूरी समझेंगे। पिता की इस सलाह को असद ने कुछ इस तरह लिया कि उनके 24 साल के शासन में सीरिया की जनता हमेशा जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करती रही। सऊदी अखबार ने ब्रिटिश इंटेलीजेंस सर्विसेज एमआई 6 के हवाले से लिखा है कि पूर्व राष्ट्रपति असद के पास करीब 200 टन सोना है। इसके अलावा 16 अरब डॉलर और 5 अरब यूरो हैं। जिनकी रुपए में कीमत करीब 1.80 लाख करोड़ है। हालांकि असद अब देश छोड़कर रूस में शरण ले चुके हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे सब कुछ अपने साथ ले गए हैं और कितना धन छोड़कर गए हैं इसका खुलासा नहीं हुआ है। असद बचपन में बेहद शांत और शर्मीले थे। उन्हें लोगों से आंख मिलाने में भी संकोच होता था। उन्हें धीमी आवाज में बात करने वाले शख्स के रूप में जाना जाता था। असद की सियासत में बिल्कुल भी रूचि नहीं थी। एक ब्रिटिश रिपोर्ट के अनुसार उनकी छवि को मजबूत बनाने के लिए पिता हाफिज ने उन्हें एक रणनीति के तहत भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का प्रमुख बनाया। असद ने इस दौरान कई बड़े अधिकारियों को पद से हटाया ताकि उनकी छवि कड़क शासक के रूप में सामने आए। उन्हें महंगी गा]िड़यों का शौक है। उनके काफिले में रोल्स रॉयस फैंटम, फेरारी, मर्सिडीज बेंजा, ऑडी लैंबोर्गिनी भी शामिल थी। बशर अल-असद का जन्म सीरिया की राजधानी दमिश्क में हाफिज अल-असद और अनीसा अखलाफ के घर हुआ था। हाफिज 29 साल तक सीरिया के राष्ट्रपति रहे। उनकी 5 संतानों में बशर तीसरे नंबर के थे। बशर शुरू में सेना और राजनीति से दूर रहकर मैडिकल क्षेत्र में करियर बनाना चाहते थे। दमिश्क यूनिवर्सिटी से स्नातक करने के बाद, नेत्र चिकित्सा में विशेज्ञता के लिए 1992 में वे लंदन चले गए। जनवरी 1994 में कार दुर्घटना से उनके बड़े भाई और तब सत्ता के वारिस बेसिल की मौत हो गई तो उन्हें वापस बुला लिया। स्वतंत्र मानिटरिंग ग्रुप सीरियन नेटवर्क के रिकार्ड के अनुसार असद के खिलाफ 2011 में शुरू हुए जन उभार के बाद पिछली जुलाई तक देश के जेलों में टार्चर की वजह से 15,102 मौते हुईं थी। अनुमान है कि इस साल अगस्त तक 1,30,000 लोग गिरफ्तार थे या जबरन हिरासत में लिए थे। उनकी देश की खुफिया एजेंसियों को गैर जवाबदेही बताया गया है। पर हर तानाशाह का ऐसा ही हश्र होता है। मुश्किल से दो-तीन हफ्ते में खेल खत्म हो गया और रातो-रात भागना पड़ा। ऐसे तानाशाहों की लिस्ट बहुत लम्बी है जिन्होंने अपने देश को लूट लिया और फिर भागना पड़ा। शेख हसीना ताजा उदाहरण हैं।

-अनिल नरेन्द्र

लंबे अरसे बाद सटीक वक्ता का भाषण


मैं बात कर रहा हूं कांग्रेsस की वानयाड सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पहले संसदीय भाषण की। बहुत अर्से बाद ऐसा जबरदस्त भाषण सुनने को मिला। प्रियंका के भाषण देने का अपना ही स्टाइल है। वह साधारण भाषा में प्रभावी ढंग से अपनी बात कहती हैं, मुद्दे को ऐसे उठाती हैं जो आम जनता को समझ आ जाए। अपने पहले भाषण में प्रियंका ने लगभग सभी महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। शुक्रवार को उन्होंने संविधान, आरक्षण और जाति जनगणना के मुद्दे उठाए। उन्हेंने कहा कि संविधान सुरक्षा कवच है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी इसे तोड़ने की कोशिश कर रही है। पहली बार संसद पहुंची प्रियंका ने कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की कम सीटों ने अकसर संविधान के बारे में बात करने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा चुनाव में भाजपा का ये हाल नहीं हुआ होता तो वो संविधान बदलने का काम शुरू कर चुकी होती। करीब 32 मिनट के भाषण में प्रियंका ने संविधान संशोधन, जवाहर लाल नेहरू के अच्छे कामों, किसानों के आंदोलन, दल-बदल और अडाणी प्रेम इत्यादि सभी मुद्दों पर सरकार को निशाने पर लिया। संविधान की बात करते हुए प्रियंका ने कहा कि सरकार की लेटरल एंट्री से संविधान कमजोर कर रही है। लोकसभा के नतीजे ऐसे न होते तो संविधान बदलने का काम शुरू हो गया होता। आज के राजा भेष को बदलते हैं, शौकीन भी हैं पर आलोचना नहीं सुनते हैं। देशवासियों को हक है कि सरकार बना भी सकते हैं, बदल भी सकते हैं। नेहरू पर बोलते हुए प्रियंका ने कहा कि सत्तापक्ष अतीत की बातें करता है। नेहरू ने क्या किया। वर्तमान की बात करिए कि आप क्या कर रहे हैं? अच्छे काम के लिए पंडित नेहरू का नाम नहीं लेते। देश निर्माण में उनकी भूमिका कभी नहीं मिटाई जा सकती। सत्ता पर उन्होंने कहा कि आप चुनी हुई सरकारों को पैसों के दम पर गिरा देते हैं। पूरा देश जानता है कि आपके पास एक वाशिंग मशीन है। जो विपक्ष का सत्ता की ओर जाता है। उसमें उसके सारे दाग धुल जाते हैं। आप बैलेट पर चुनाव करा लीजिए, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। जातिगत जनगणना को लेकर सरकार की गंभीरता का प्रमाण यह है कि जब चुनाव में पूरा विपक्ष जाति जनगणना की बात लाया तो पीएम मोदी कह रहे थे कि विपक्ष वाले आपकी भैंस चुरा लेंगे, मंगलसूत्र चुरा लेंगे। तानाशाही पर बोलते हुए प्रियंका ने कहा कि देश का किसान भगवान भरोसे है। हिमाचल में सेब के किसान रो रहे हैं। देश देख रहा है कि एक अडाणी को बचाने के लिए 142 करोड़ जनता को नकारा जा रहा है। बंदरगाह, एयरपोर्ट, सड़कें, रेलवे, खदानों, सरकारी कंपनियां सिर्फ एक व्यक्ति को दी जा रही हैं। उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), बीएचएल, सेल, गेल, ओएनजीसी, रेलवे, एनटीपीसी, आईआईटी, आईआईएम, आयल रिफाइनरी और कई सार्वजनिक उपक्रम लगवाए। उनका नाम किताबों से मिटाया जा सकता है। भाषणों से हटाया जा सका है, लेकिन देश की आजादी और इसके निर्माण में उनकी भूमिका को कभी नहीं मिटाया जा सका। प्रियंका के भाषण के बाद भाई राहुल गांधी ने कहा कि यह भाषण मेरे पहले भाषण से कहीं अच्छा था। दिलचस्प बात यह थी कि सत्तापक्ष भी बड़े ध्यान से प्रियंका का भाषण सुन रहा था, थोड़ी सी टोकाटोकी के अलावा सभी ने ध्यान से सुना। सोशल मीडिया में तो प्रियंका ने तहलका मचा दिया। कांग्रेस को अरसे बाद जबरदस्त वक्ता मिला है।

Saturday, 14 December 2024

आत्महत्या केस में इंसाफ मांगता परिवार



बेंगलुरु में कथित आत्महत्या करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के परिवार ने उनके लिए न्याय और उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। अतुल का परिवार सदमे में हैं। पिता पवन मोदी कुछ भी बोलने के बजाय इंसाफ मांग रहे हैं। उनका कहना है कि हमने बहू और उसके मायके वालों की प्रताड़ना के कारण अपना होनहार बेटा खोया है। हमें सिर्फ और सिर्फ इंसाफ चाहिए। उन्होंने बहू की खामियां गिनाते हुए अपनी समधन यानि बेटे की सास को इस घटना के लिए दोषी ठहराया है। कर्नाटक के बेंगलुरु में एक नामी कंपनी में एआई इंजीनियर के तौर पर काम करने वाले अतुल सुभाष ने सोमवार की रात फंदा लगाकर खुदखुशी कर ली थी। मौत को गले लगाने से पहले उन्होंने करीब सवा घंटे का वीडियो बनाया और 24 पेजों का सुसाइड नोट के साथ उसे सोशल मीडिया के एक ग्रुप में शेयर किया। वीडियो में उन्होंने आत्महत्या करने के पीछे अपनी पत्नी निकिता और ससुराल वालों की ओर से मिलने वाली मानसिक प्रताड़ना को कारण बताया। अतुल के पिता पवन मोदी ने फोन पर बताया कि हमारे घर में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन कोरोना काल के दौरान पूरा माहौल बदल गया। 2019 में हमने बेटे की शादी जौनपुर के निवासी सिंघानिया परिवार की बेटी निकिता से की। शादी के बाद बिदाई के बाद बहु केवल एक दिन हमारे घर यानि समस्तीपुर में रही। उसके बाद बेटे के साथ बेंगलुरु चली गई। इस बीच 2020 में पोता हुआ। तब तक सब ठीक था। इस बीच कोविड आया तो बेटे अतुल ने सास को बेंगलुरु बुला लिया। उसी समय से स्थिति बदली और मामला यहां तक बढ़ा कि हमने बेटा खो दिया। अतुल सुभाष ने अपने सवा घंटे के वीडियो में मुकदमों का भी जिक्र किया था। आरोप लगाया कि कभी केस वापस लेना, कभी केस दायर करना, पत्नी के लिए आदत-सी बन गई थी। जौनपुर से लेकर हाईकोर्ट तक एक ही तरह के मामलों में केस फाइल करने से परेशान किया गया। अतुल की तरफ से लगाए कुल नौ मामलों में से मौजूदा समय में चार मामले अदालत में लंबित हैं। दिसम्बर और जनवरी में मिलाकर कुल तीन डेट लगी हैं। अतुल सुभाष मोदी ने अपने सुसाइड नोट में एक पत्र अपने चार साल के बेटे को लिखा है। दावा किया जा रहा है कि उसने यह पत्र मौत को गले लगाने से कुछ ही देर पहले लिखा। पत्र के नीचे 9 दिसम्बर की तिथि अंकित करते हुए हस्ताक्षर भी किया है। अतुल ने बेटे को पत्र में लिखा है कि किसी पर भरोसा मत करना। तुम्हारे लिए मैं खुद को एक हजार बार कुर्बान कर सकता हूं। मैं कुछ कहना चाहता हूं। मुझे उम्मीद है कि एक दिन वह हमें समझने के लिए पर्याप्त समझदार बनेगा। बेटा जब तुम्हें पहली बार देखा तो सोचा था कि मैं तुम्हारे लिए कभी भी अपनी जाने दे सकता हूं, लेकिन दुख की बात है कि मैं अब तुम्हारी वजह से अपनी जान दे रहा हूं। आगे लिखा कि मेरे जाने के बाद कोई पैसा नहीं रहेगा। एक दिन तुम अपनी मां का असली चेहरा जरूर जान पाओगे। अतुल के 24 पेज के सुसाइट नोट में शादी शुदा जीवन में लंबे तनाव, उनके खिलाफ बढ़े कई मामले, उनकी पत्नी, ससुराल वालों और उत्तर प्रदेश के एक जज द्वारा प्रताड़ित किए जाने का ब्यौरा है। सुभाष के भाई विकास ने कहा, इस देश में एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया हो जिसके लिए पुरुषों को भी न्याय मिले। मैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहता हूं जो न्यायिक पद पर बैठे और भ्रष्टाचार कर रहे हैं। पुरुषों को भी लगने लगा है कि अगर उन्होंने शादी कर ली तो वो एटीएम बनकर रह जाएंगे।

-अनिल नरेन्द्र