Thursday, 3 July 2025

ईरान और आईएईए के बीच तनातनी

ईरान और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने भरोसे की कमी और बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के डायरेक्टर जनरल रफाएल ग्रोसी की संभावित यात्रा से साफ इंकार कर दिया। अरागची ने यह भी साफ किया कि ईरान एक नया कानून लागू करने जा रहा है, जिसमें खास शर्तें पूरी होने तक आईएईए से सहयोग रोकने की बात है। उधर, ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ नाराजगी को देखते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसकी निंदा की है और आईएईए के काम का खुलकर समर्थन किया। आईएईए के लिए ईरान का यह सख्त रुख उसके परमाणु ठिकानों पर हुए इजरायल और अमेरिका के हमलों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिससे आगे परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ी निगरानी और ज्यादा पेचीदा हो सकती है। आईएईए प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने 24 जून को ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम की घोषणा के बाद अब्बास अरागची से मिलने और आईएईए-ईरान की बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने 26 जून को सरकारी चैनल आईआरआईएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा ः इस वक्त हमारा बिल्कुल भी कोई इरादा नहीं है कि हम रफाएल ग्रोसी को बुलाएं। वह हमारे परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इजरायल के हमलों से हुए ऩुकसान का आकलन करना चाहते हैं। उन्होंने कहा ग्रोसी ने अपनी रिपोर्ट में ईमानदारी से काम नहीं लिया। जब हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ तब एजेंसी ने उस हमले की निंदा तक नहीं की। अरागची ने यह भी बताया कि ईरान ने आईएईए के साथ सहयोग रोकने के लिए एक नया कानून पारित किया है। इस मामले पर एक विधेयक संसद से पास हुआ, गार्डियन काउंसिल से मंजूरी भी मिल गई है और अब यह कानून बन चुका है, जिसे हमें मानना ही पड़ेगा। अमेरिका ने ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ उठ रही आवाजों पर सख़्त रुख़ अपनाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा-ईरान में आईएईए के महानिदेशक रफाएल ग्रोसी की गिरफ्तारी और फांसी की मांगें अस्वीकार्य हैं और इनकी निंदा की जानी चाहिए। हम ईरान में आईएईए के अहम जांच और निगरानी काम का समर्थन करते हैं। बता दें कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जिसे दुनिया के एटम्स फॉर पीस एंड डवेलपमेंट के नाम से भी जाना जाता है। यह परमाणु क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मुख्य केंद्र है, जो अपने सदस्य देशों और दुनियाभर के कई साझेदारों के साथ मिलकर परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, भरोसेमंद और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। 2018 में अमेरिका के इस संगठन से बाहर होने के बाद और नए प्रतिबंधों के बाद ईरान ने समझौते की शर्तों का पालन कम कर दिया। उसने यूरेनियम संवर्धन की सीमा बढ़ा दी। अमेरिका के ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी के बाद अब यह संभावना तय है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा और जल्द ही हमें यह जानकारी मिल सकती है कि ईरान अब परमाणु शक्ति बन गया है और जिस दिन यह घोषणा हुई उसी दिन से पूरी दुनिया की राजनीति बदल सकती है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 1 July 2025

भारत में एफ-35बी का उतरना रहस्यमय

केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर कुछ दिन पहले शनिवार के दिन रात एक अत्याधुनिक ब्रिटिश स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 बी की इमरजैंसी लैंडिंग ने न सिर्फ हमारी सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अटकलों का बाजार भी गर्म कर दिया। यह वहीं एफ-35 बी है जिसे अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है और जो नाटो देशों का राजनीतिक हथियार माना जाता है। यह अमेरिका का सबसे आधुनिक पांचवीं जेनरेशन का एडवांस जैट फाइटर है, जिसे अमेरिका भारत को बेचने का प्रयास व दबाव डाल रहा है। लैंडिंग का कारण ः ईंधन या तकनीकी गड़बड़ी या फिर भारत की जासूसी? शुरुआती रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि विमान का ईंधन खत्म होने के कारण इसे लैंडिंग करनी पड़ी। लेकिन बाद में सामने आया कि हाइड्रोलिक सिस्टम में गंभीर खराबी भी आ गई थी और यह तकनीकी गड़बड़ी इतनी गंभीर थी कि अब तक विमान उड़ान नहीं भर सका है और अभी भी तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर खड़ा है। रायल नेवी के युद्धपोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स से रातोंरात विशेषज्ञों को हेलीकॉप्टर के जरिए भेजा गया ताकि मरम्मत तुरन्त शुरू हो सके। लैंडिंग के बाद विमान से एक पल के लिए भी दूर नहीं होना चाहता पायलट। जब तकनीकी की टीम नहीं पहुंची वह एयरसाइड पर ही विमान के पास एक कुर्सी पर बैठा रहा। इसी दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटिड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ने विमान को ट्रैप करके उसकी पहचान कर ली। इस एफ-35 बी को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग साजिश की थ्योरी चल रही है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों और वेरिफाइड अकांट्स का कहना है कि यह भारतीय वायु सुरक्षा प्रणाली की परख भी हो सकती हैö जैसे यह देखना कि भारत के राडार इस स्टेला विमान को पकड़ सकते हैं या नहीं? विशेषकर जब तक भारत में हाल ही में आपरेशन सिंदूर के तहत चीन और पाकिस्तान के पास आए ड्रोन और मिसाइलों को रोककर अपनी एयर डिफेंस क्षमता का प्रदर्शन किया है। क्या इमरजेंसी थी या? कोई रणनीतिक योजना? इस सवाल का कोई आधिकारिक जवाब अब तक नहीं मिला है। लेकिन भारत की सतर्कता ने एक बात तो साफ कर दी कि भारतीय एयरफोर्स और एटीसी की प्रतिािढया तेज, सटीक और पेशेवर थी। ब्रिटिश नौसेना पहले जैट को हैंगर में नहीं ले जाना चाहती थी। उन्हें डर था जैट की तकनीकी जानकारी दूसरे लोग देख सकते हैं। दो सप्ताह इंकार के बाद ब्रिटेन ने आखिरकार फंसे विमान को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के हैंगर में शिफ्ट करने की सहमति दे दी। ब्रिटिश नेवी को डर है कि कहीं भारत या दूसरे मित्र देश (रूस) जैट की खास तकनीक को न देख सकें और उसे एनालाइन करके कापी न कर लें। एफ-35बी पांचवीं पीढ़ी का अमेरिकी निर्मित रटेल्स फाइटर जेट है और सबसे उन्नत स्टेन्थ फाइटर जेट है। इतिहास का सबसे महंगा फाइटर जेट प्रोग्राम है। एफ-35बी मल्टी रोल वाला विमान है और ये हवाई, जमीनी जंग में मदद और इलैक्ट्रोनिक युद्ध में महारत रखता है। ये इलैक्ट्रानिक युद्ध, खुफिया जानकारी जुटाने, हवा से जमीन और एयर टू एयर में एक साथ मिशन चलाने की क्षमता रखता है। इसके सैंसर से जमा हुई जानकारी अपने कमांड सेंटर को सुरक्षित भेज सकता है। - अनिल नरेन्द्र

Saturday, 28 June 2025

इजरायल-ईरान युद्ध के क्या निकले नतीजे

इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग के क्या नतीजे निकले? इस जंग में तीन प्रमुख देश शामिल थेö इजरायल, ईरान व अमेरिका। इसके तीन ही प्रमुख किरदार थे... अयातुल्ला अली खामेनेई, बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रंप। अगर हम किरदारों की बातें करें तो सबसे बड़े हीरो रहे अयातुल्ला खामेनेई। न सिर्फ उन्होंने इजरायल को उनके इतिहास में पहली बार ऐसी मार मारी की उसे अपने असितत्व को बचाने के लिए ट्रंप के आगे भीख मांगनी पड़ी। बता दें कि इजरायल ने 12 दिन के इस युद्ध को दो उद्देश्यों से शुरू किया था। पहला ः ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म करा जाए। दूसरा उद्देश्य था कि ईरान से अयातुल्ला रेजीम को खत्म करके अपने पिठ्ठओं को बैठाना। इजरायल दोनों मामलों में नाकाम रहा। ईरान ने इजरायल सेना पर तबाड़तोड़ जवाबी हमला किया कि उसके अस्तित्व पर ही खतरा हो गया और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ट्रंप की शरण में जाना पड़ा। रहा सवाल सत्ता परिवर्तन का तो ईरान पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हो गया और मजबूत हो गया। इजरायल की मध्य पूर्व में बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो गई। और जहां तक परमाणु कार्पाम रोकने का सवाल है बेशक अमेरिका ने ईरान के कुछ परमाणु संयंत्रों पर जबरदस्त हमले किए पर वह ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म नहीं कर सके। ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। अमेरिकी पेंटागन से जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है अमेरिका और इजरायल के हमले से ईरान का परमाणु कार्पाम पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि ट्रंप इसे फेक न्यूज कहते हैं। अब बात करते हैं इजरायल और नेतान्याहू की। नेतान्याहू ने इजरायल को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है जितना उसको 70-75 वर्षों के इतिहास में किसी ने नहीं पहुंचाया। इसने इजरायल के मध्य पूर्व में न केवल धौंस को ही खत्म कर दिया बल्कि दुनिया को यह साबित कर दिया कि वह अभेद देश नहीं, उस पर भी हमले हो सकते हैं। इजरायल की चौधराहट हमेशा के लिए खत्म हो गई है। नेतान्याहू चले तो खामेनेई को हटाने कहीं खुद को न हटना पड़ जाए? अब बात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। वह बार-बार झूठे साबित हो चुके हैं पर उनके सीज फायरों (युद्ध विराम) की घोषणाएं भी मजाक बनकर रह गई हैं। उल्लेखनीय है कि संघर्ष के 12वें दिन ट्रंप के सीजफायर ऐलान के कुछ ही घंटों में इजरायल और ईरान ने फिर से हमले करने शुरू कर दिए। यह खुशी की बात है कि फिलहाल युद्ध विराम लागू है, कितने दिनों तक रहता है यह कहना मुश्किल है। जहां तक ट्रंप के सीजफायर की बात है तो आपरेशन सिंदूर संघर्ष को रुकवाने का श्रेय वह अब तक 17 बार ले चुके हैं जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसे ही ट्रंप ने रूस-पोन के युद्ध विराम की झूठी घोषणा की थी किन्तु यह संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी सीजफायर घोषणाओं को भी नोबेल पुरस्कार के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हैं। हालांकि तथ्य यह है कि नोबेल पुरस्कार तत्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। कुल मिलाकर ईरान और अयातुल्ला का पलड़ा सबसे भारी रहा। मैंने लिखा था कि ईरान बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा यह सत्य होता जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 26 June 2025

ईरान के पास पलटवार के विकल्प

रविवार सुबह इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका के सीधे कूदने से पूरे विश्व में चिन्ता की लहर दौड़ गई। घोषित रूप से अमेरिका ने ईरान के परमाणु उपामों को निशाना बनाया और इसकी आशंका संघर्ष की शुरुआत से ही जताई जा रही थी। अमेरिका ने अपने सबसे दूसरे बड़े बम कल्संटर बम जो कि बी-2 बॉम्बर से फेंका गया या इस्तेमाल करके अब ईरान के लिए जवाबी कार्रवाई अपनी पूरी ताकत के साथ करने का रास्ता खोल दिया। इजरायल और अमेरिका दो प्रमुख लक्ष्य के साथ इस संघर्ष में उतरे थे। ईरान का परमाणु कार्पाम का पूरी तरह से खात्मा और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के शासन का अंत। हमें नहीं लगता कि अमेरिकी बमबारी के बाद भी वह अपने इन लक्ष्यों में से कोई भी लक्ष्य पूरा होने के करीब पहुंचा। आज ईरान को अमेरिका को भी मुहंतोड़ जवाब देने का मौका मिल गया। जब से इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु स्थलों पर बम फेंके हैं और युद्ध शुरू किया है। तब से ईरान के सर्वोच्च नेता से लेकर कई अधिकारियों ने अमेरिका को इस युद्ध से दूर रहने के कहा था। अब देखना है कि ईरान के पास जवाबी कार्रवाई करने के विकल्प क्या हैं? ईरान होर्मूज जलडमरूमध्य को को निशाना बना सकता है। ईरान फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। बता दें कि वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल तेल व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत इसी होर्मूज के जरिए ही होता है। इसका दुनिया पर क्या परिणाम होगा कल्पना भी करना मुश्किल है। दूसरा ः अमेरिकी ठिकानों और सहयोगियों पर हमला कर सकता है ईरान। अमेरिका ने इस क्षेत्र में हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं। इनमें कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में स्थायी अड्डे शामिल हैं। इन ठिकाने पर इजरायल जैसे ही अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्था है। लेकिन मिसाइलों की बौछार या सशस्त्र ड्रोनों के झुंडों से पहले अलर्ट के लिए बहुत कम समय होगा। ईरान उन देशों में प्रमुख तेल और गैस संयंत्रों पर भी हमला कर सकता है। ऐसा करके ईरान युद्ध में अमेरिका की भागीदारी के लिए इन देशों को सबक सिखाना चाहेगा। इजरायल अपनी प्रवासियों-हिजबुल्ला, हमास, हूती से भी अमेरिका और इजरायल पर हमले करवा सकता है। ईरान ने अमेरिकी हमलों की कड़ी निन्दा की है और इसे अपमानजनक बताया है। ईरान ने दूरगामी नतीजों की चेतावनी भी दी है। ईरान को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जवाब देने का हक है और वह इजरायल के साथ अमेरिका को भी निशाना बना सकता है। अव्वल तो ट्रंप के संघर्ष में कूदने की अमेरिका में ही निन्दा हो रही है। विपक्षी दल युद्ध भड़काने वाले इस एकतरफा कदम की तीखी आलोचना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इजरायल में नेतान्याहू की और अमेरिका में ट्रंप की सत्ता को ही चुनौती मिल सकती है। रहा सवाल ईरान का और अयातुल्ला अली खामेनेई को सत्ता से हटाने के लक्ष्य का। सवाल है आज ईरान एकजुट हो गया है और पूरी ताकत से अयातुल्ला खामेनेई के पीछे खड़ा है। एक के बाद एक महामारी और युद्धों से जूझती जा रही दुनिया का सबसे ज्यादा स्थायित्व और शांति की जरूरत थी लेकिन डर है कि अमेरिकी हमले ने ऐसी किसी उम्मीद पर पानी फेर दिया है। यही नहीं पूरे विश्व को तीसरे महायुद्ध के दरवाजे पर ला खड़ा कर दिया है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 19 June 2025

क्या ईरान मध्य-पूर्व एशिया का नया सुपर पावर बनेगा

शुक्रवार को इजरायल ने ईरान के खिलाफ यह कहते हुए बड़े हमलों को अंजाम दिया कि ईरान उनके लिए और दुनिया के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। इसी उद्देश्य को बताते हुए इजरायल ने तेहरान पर ताबड़तोड़ हमला किया। इजरायल और उसके समर्थक देशों ने सोचा था कि इस हमले के बाद जिसमें उसने ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशीप व परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी सोचा कि ईरान अब घबराकर चुप बैठ जाएगा पर इतनी बर्बादी के 24 घंटे के अंदर-अंदर ईरान ने इजरायल पर इतना जबरदस्त जवाबी हमला किया कि इजरायल-अमेरिका तमाम साथी तिलमिला गए। इजरायल के शुक्रवार को किए गए हमले के जवाब में ईरान ने शनिवार को ही जवाबी हमला कर दिया। इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) के मुताबिक ईरान ने शनिवार देर रात करीब 24 घंटे में 150 से ज्यादा इजरायली ठिकानों को निशाना बनाया और तब से लेकर इस लेख लिखने तक ईरान इजरायल पर अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों के जरिए ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। ईरान ने इजरायल के कई महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को सीधा निशाना बनाया है, इनमें सेना का हेडक्वार्टर से लेकर वाइजमैन सेंटर जहां से इजरायल सारी सैनिक कार्रवाईयां तय करता है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के निवास तक को नहीं छोड़ा। दरअसल ईरानी मिसाइलें इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम को गच्चा देकर अपने निशाने पर पहुंच गई। इससे सारी दुनिया चौंक गई। ईरान ने साबित कर दिया कि उसकी टेक्नोलॉजी अमेरिका, रूस और चीन के लगभग बराबर पहुंच गई है। इसी से इजरायल और अमेरिका में घबराहट पैदा हो गई है। यही नहीं अन्य अरब देशों में भी दहशत पैदा हो गई है। ईरान दरअसल पिछले बीस-पच्चीस साल से इस लम्हे की तैयारी कर रहा था। इजरायल का ईरान पर हमला करने के पीछे कई उद्देश्य थे। दरअसल वो चाहते हैं कि ईरान में इन आयतुल्ला रैजीम का तख्ता पलट करवा दें और अपनी मनपसंद, हमदर्द सरकार को सत्ता सौंप दे। इस मकसद में ईरान के अंदर से भी उसको मदद मिल रही है। मौसाद ने ईरान के अंदर कई स्लीपर सेल तैयार कर लिए हैं जो आयतुल्ला खामेनेई सरकार के खिलाफ इजरायल के लिए काम करते हैं। फिर शाह रजा पल्लवी के समर्थक अभी भी ईरान में मौजूद हैं। शुक्रवार को जब इजरायल ने पहली बार ईरान पर हमला किया था तो उसमें ईरान के अंदर ड्रोनों से हमला किया गया था। इसका मतलब है कि मौसाद ने ईरान के अंदर ही ड्रोन फैक्ट्री तैयार कर ली थी। ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशिप की पुख्ता जानकारी भी रही। ईरानी मौसाद एजेंटों ने इजरायल को जानकारी दी होगी तभी तो मौसद ने ठीक ठिकानों पर हमला किया। इस बीच इजरायल सरकार ने ईरानी लोगों से खामेनेई को सत्ता के विरोध का आ"ान किया है। इसके लिए इजरायल की ओर से फारसी भाषा में संदेश जारी किए जा रहे हैं। इस बीच यह भी संकेत मिला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या करने की इजरायल की योजना पर रोक लगा दी है। कुल मिलाकर जिस तरीके से ईरान इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा जो रूकने के नाम नहीं ले रहे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि मिडल ईस्ट में एक नया पावर सेंटर ईरान बनने जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 17 June 2025

अगर जंग बढ़ी तो क्या होगा?

पहले से युद्धरत इजरायल ने ईरान के परमाणु व सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसमें कई शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर मारे गए हैं। अपने लिए युद्ध का न केवल एक मोर्चा खोल दिया है बल्कि यूं कहें कि न केवल पश्चिम एशिया को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एक खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल, इजरायल का कहना है कि यह ऑपरेशन राइजिंग लायन ईरान की कथित परमाणु हथियार महत्वाकांक्षाओं को विफल करने के लिए किया गया है। इजरायल के हमले के जवाब में पावार रात ईरान ने अपना जवाबी ऑपरेशन लांच किया। इजरायल में राजधानी तेल अवीव, यरूशलम में कई जगहों पर कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गईं और ड्रोन से हमला किया। सोशल मीडिया में इजरायल ईरान के हमले से हुई बर्बादी की कई तस्वीरें आई हैं। ईरान ने दावा किया है कि उसने इजरायल के मिलिट्री कमांड सेंटर जहां से इजरायल के सारे हमले आपरेशन तय किए जाते हैं उसको भी नष्ट कर दिया है। इजरायल का शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम कई मिसाइलों और ड्रोन को गिरा सका पर बहुत से मिसाइलें और ड्रोन सटीक अपने निशाने पर लगे। अब इजरायल की बारी है और फिर ईरान उसका जवाब देगा। ईरान बेशक यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्पाम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है लेकिन उस पर गुप्त ढंग से परमाणु कार्पाम चलाने के जो आरोप लगते रहे हैं, वे आशंकाएं भी पैदा करता है। इसके अतिरिक्त ईरान की ओर से बार-बार यरूशलम को नष्ट करने की धमकियां और उसके द्वारा समर्पित हमास, हिजबुल्ला व हुती जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इजरायल की चिंताओं को और ठोस करती है। फिर सवाल केवल इजरायल की सुरक्षा का नहीं है, एक परमाणु संपन्न ईरान पूरे पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को बिगाड़ने का बताया जा रहा है। फिर सवाल यह भी किया जा सकता है कि पाकिस्तान भी तो एक इस्लामी परमाणु संपन्न देश है तो उससे न तो अमेरिका को कोई चिंता है और न ही इजरायल को। क्या हम यह मानकर चलें कि पाकिस्तान गुप्त रूप से अमेरिका और इजरायल के साथ है। सोशल मीडिया में तो यहां तक दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के करीबी संबंध हैं और सूचनाओं के आदान-प्रदान में साझे हैं। जब पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं तो ईरान से क्यों? विगत दशकों में हमने पश्चिम एशिया में बहुत खून-खराबा देखा है। लाखों बेगुनाह मारे जा चुके हैं। ऐसे में अगर इजरायल और ईरान के बीच युद्ध और बढ़ता है तो बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे। इराक व अफगानिस्तान की तबाही लोग भूले नहीं हैं और बीच में बसे इजरायल और ईरान की तबाही कोई नहीं चाहेगा। अगर सोशल मीडिया पर भरोसा किया जाए तो कुछ मध्य एशिया विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ईरान में अयातुल्लाह रेजीम को खत्म करके अपने हित वाली सरकार बनाना चाहता है। ईरान को बम बनाने की जल्दी है, जबकि अमेरिका के सहयोगी देश ऐसा नहीं चाहते। ईरान की इस कोशिश पर इजरायल को सख्त आपत्ति है और उसका मानना है कि अगर ईरान का परमाणु कार्पाम अभी न रोका गया तो बहुत देर हो जाएगी और ईरान एक परमाणु संपन्न देश बन जाएगा। जो इजरायल के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा। इसलिए वह जल्दी में है। आज युद्ध और युद्ध का माहौल दोनों से बचने की जरूरत है। कुछ लोगों के अहंकार की वजह से आम लोगों का खून नहीं बहना चाहिए। इसके साथ ही यह मुस्लिम देशों के लिए भी अमन-चैन से सोचने का समय है। उन्हें मजहब की बुनियाद पर किसी भी गुटबाजी या जंग की हिमायत से बचना होगा। रही बात इजरायल की तो अमेरिका ऐसे हर मोर्चे पर पल्ला झाड़कर खड़ा हो जाता है। यह किसी से छिपा नहीं कि इस लड़ाई में अमेरिका पूरी ताकत से इजरायल के साथ खड़ा है। बल्कि हम यह कहें कि यहां सारी खुराफात के पीछे अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हाथ है। उसका पिट्ठू नेतान्याहू बगैर अमेरिका के एक कदम नहीं उठाता है। ट्रंप को लगता है कि इस बात की भी कतई चिंता नहीं कि ईरान-इजरायल युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में न बदल जाए, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऊपर वाला सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे और जंग रोकने में मदद करे। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 14 June 2025

डिप्लोमेसी या डबल गेम?

अमेरिका ने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की खुलकर तारीफ की है, बल्कि पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिका आमंत्रित किया है। इससे ठीक पहले असीम मुनीर ने एक ऐसा बयान दिया था, जिसे भारत ने जम्मू-कश्मीर में हुए 22 अप्रैल के आतंकी हमले से जोड़कर देखा। दरअसल ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के साथ ही यह देखा जा रहा है कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का ट्रंप प्रशासन का रुख कुछ बदला हुआ है। गत बुधवार को यह काफी स्पष्ट भी हो गया कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका का रवैया बदला हुआ है। पिछले कुछ घंटों में अमेरिकी सरकार ने तीन स्तरों पर ऐसे संकेत दिए हैं जो भारत की चिंताओं को बढ़ाते हैं। पहलाöअमेरिकी सेना के केंद्रीय कमांड (यूएस सेंटकॉम) के प्रमुख माइकल कुरिल्ला ने कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पाकिस्तान एक जबरदस्त साझीदार है। दूसराö14 जून को अमेरिकी सेना दिवस की परेड में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया है। तीसरा-व्हाइट हाउस ने संकेत दिए है कि कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हस्तक्षेप कर सकते हैं। अमेरिकी सेंटकॉम के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अमेरिकी सरकार के कानूनी बाडी हाउस कमेटी आन आर्मड सर्विसेज की एक सुनवाई में कई बातें कही। हमें भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रिश्ते बनाकर रखने की जरूरत है। हम ऐसा विचार नहीं रख सकते कि अगर भारत के साथ संबंध रखना है तो हम पाकिस्तान के साथ नहीं रख सकते। पाकिस्तान के साथ हमारी काफी जबरदस्त साझेदारी है। पाकिस्तान ने आईएसआईएस-खोरासान के आतंकियों के खिलाफ काफी कार्रवाई की है, दर्जनों आतंकवादियों को मारा है। अमेरिका के साथ सूचनाएं साझा की है और बड़े आतंकियों को पकड़ने में मदद की है। सेंटकॉम चीफ ने असीम मुनीर का भी जिक्र करते हुए तारीफ की है कि कैसे सबसे पहले उन्होंने सरीफुल्लाह की गिरफ्तारी की सूचना उनको दी। सेंटकॉम प्रमुख ने पाकिस्तान सरकार के इस तर्क पर भी मुहर लगाई कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई तो लंबे समय से लड़ी जा रही है। उसमें भी वह प्रभावित हुए हैं। उक्त बयान के कुछ घंटों के बाद ही सूचना आई कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को अमेरिकी सैन्य समारोह में आमंत्रित किया गया है। यह समारोह 14 जून को है। ये वही मुनीर हैं जिन्होंने 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में एक भाषण में कश्मीर को पाकिस्तान को अपनी अपनी जीवन रेखा बताया था। उन्होंने टू नेशन थ्योरी का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिमों को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे हिंदुओं से अलग हैं। मुनीर के इस भड़काऊ बयान के बाद ही 22 अप्रैल को बारीसरन, पहलगाम में आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक शहीद हो गए। आखिर अमेरिका क्या कहना चाहता है? असीम मुनीर जैसे विवादित व्यक्ति को बुलाना भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। हालांकि आज भारत वैश्विक मंचों पर बहुत ऊंचे स्थान पर है। एक विचार है कि अमेरिका का असीम मुनीर को बुलाना और पाकिस्तान को अभूतपूर्व साझेदार कहना भले ही रणनीतिक हो लेकिन भारत के लिए ये साफ संकेत है कि वाशिंगटन अब इस क्षेत्र में बैलेंस बनाकर चलना चाहता है। इससे भारत की नई थर्ड पार्टी पॉलिसी को चुनौती मिलती है। हालांकि दोनों देशों से संबंध बनाएं रखने में अमेरिका की पुरानी नीति रही है, फिर भी यह कदम कूटनीतिक रूप से भारत के लिए असहज जरूर हैं। टैंशन नहीं, लेकिन सतर्कता जरूरी है। अमेरिका की मंशा और सोच पर कई सवाल खड़े होते हैं। फील्ड मार्शल मुनीर के बयान पहलगाम आतंकी हमले से जुड़े हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका की यह डिप्लोमेसी है या डबल गेम? -अनिल नरेन्द्र