Thursday, 13 November 2025

आसिम मुनीर को तानाशाह बनाने की राह पर


पाकिस्तान का इतिहास सैन्य शासन से भरा हुआ है। यहां चुनी हुईं सिविलयन सरकार थोड़ा समय चलती है फिर कोई न कोई जनरल शासन का तख्ता पलट देता है। ताजा उदाहरण पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को ही ले लीजिए। पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ की सरकार भारत के ऑपरेशन सिंदूर से सबक लेते हुए संवैधानिक बदलाव की तैयारी में है। जिसमें सेना प्रमुख आसिम मुनीर को चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (सीडीएफ) बनाने की योजना है, इससे उनकी शक्तियां संवैधानिक रूप से बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान की शाहबाज शरीफ ने लगता है कि एक बार फिर अपने सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने का फैसला किया है। 8 नवम्बर को संसद में पेश 27वें संवैधानिक संशोधन विधेयक के जरिए रक्षा बलों के प्रमुख (चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस) सीडीएफ नामक एक नया अत्यंत शक्तिशाली पद सृजित कर दिया गया, जो सीधे मुनीर के लिए ही रचा गया प्रतीत होता है। यह पदोन्नति मई 2025 में भारत के साथ हुए चार दिवसीय संघर्ष के बाद मिले फील्ड मार्शल के सम्मान के ठीक छह महीने बाद हो रही है। लेकिन सवाल उठता है कि आतंकवाद के कथित संरक्षक मुनीर को यह दोहरी मेहरबानी आखिर क्यों? क्या मई का संघर्ष ही वह कारनामा है या फिर पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता और सैन्य तानाशाही को मजबूत करने की साजिश? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुनीर को ओसामा बिन लादेन इन सूट कहा जाता है और अब यह प्रमोशन उसके दोहरे चेहरे-एक तरफ आतंक के प्रायोजक, दूसरी तरफ क्षेत्रीय स्थिरता के हामी-की ओर उजागर कर रहा है। संवैधानिक संशोधन ः मुनीर की कमान को संवैधानिक छतरी लेकिन लोकतंत्र पर सहमे कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कैबिनेट की मंजूरी के बाद सीनेट में पेश किए गए इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 243 में व्यापक बदलाव प्रस्तावित है, जो सशस्त्र बलों की कमान संरचना को पूरी तरह पुनर्गठित कर देते हैं। यह 27वां संविधान विधेयक पाकिस्तान के संविधान में एक बड़ा बदलाव लाने वाला प्रस्तावित कानून है। इस संशोधन में अनुच्छेद 243 संशोधन भी शामिल है, जिसके तहत रक्षा बलों के प्रमुख का पद औपचारिक रूप से सेना प्रमुख को सौंप दिया जाएगा और उन्हें आजीवन फील्ड मार्शल का पद प्रदान किया गया है। अगर यह बिल पास हुआ तो सेना प्रमुख आसिम मुनीर आजीवन फील्ड मार्शल के पद पर रहेंगे। हालांकि इसका विपक्ष पुरजोर विरोध कर रहा है। पाकिस्तान सरकार का दावा है कि यह बदलाव देश की रक्षा आवश्यकताओं और सैन्य कमान-संरचना को आधुनिक बनाने के लिए किया जा रहा है। पाकिस्तान ने सीडीएफ का जो मसौदा पेश किया है, वह भारत के चीफ डिफेंस ऑफ आर्मी स्टॉफ (सीडीएस) के प्रारूप की चोरी की है। मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लेमीन पार्टी प्रमुख अल्लामा राजा नासिर अब्बास ने कहा है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं पंगू हो चुकी हैं। राष्ट्र को (प्रस्तावित) 27वें संशोधन के खिलाफ कदम उठाना चाहिए। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 11 November 2025

बिहार यूं ही नहीं लोकतंत्र की जननी


मतदान के प्रथम चरण में गुरुवार को हुए बंपर मतदान ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि बिहार यूं ही नहीं लोकतंत्र की जननी है। 64.46 प्रतिशत बता रहा है कि यहां के लोकतांत्रिक मूल्यों की कितनी एहमियत है। अगर कई मतदान केन्द्राsं पर लाइट न जाती और कई स्थानों पर ईवीएम खराबी की शिकायतें नहीं आती तो यह 2-3 प्रतिशत और बढ़ जाता। मतदान में जनता की भागीदारी अधिक होने का मतलब साफ है कि भारत में अभी भी लोकतंत्र जीवित है। इनका एक अर्थ यह भी निकलता है कि जनता राजनीति से उदासीन नहीं है। लोकतंत्र में ऐसा ही होना चाहिए। वर्ष 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर गुरुवार को पिछली बार के मुकाबले 31 लाख 81 हजार 858 अधिक मत पड़े। बिहार के मुख्य (चुनाव) निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) विनोद सिंह गुनियाल ने कहा कि मतदाता जागरूकता, मतदाता सूची की सफाई और महिला, युवा एवं बुजुर्ग मतदाताओं का उत्साह वोट प्रतिशत बढ़ाने में सहायक बना। उन्होंने उम्मीद जताई कि दूसरे चरण के मतदान में भी मतदाताओं का उत्साह बढ़-चढ़ कर वोट करेगा। सीईसी ने कहा कि बिहार ने देश को राह दिखाई है। पहले चरण में महागठबंधन के सीएम पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव, डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा, सम्राट चौधरी समेत कई बड़े नामों की किस्मत दांव पर है। इस चरण में बिहार में दो दशकों से सत्तासीन नीतीश कुमार या उनकी जगह कोई और इस दौर के चुनाव में एक बड़ा बहस का मुद्दा रहा। हाल के चुनावों में यह सवाल इतनी मजबूती के साथ कभी नहीं पूछा गया था। जनता जो भी निर्णय लेगी, वह राज्य की सामाजिक-राजनीतिक दिशा तय करेगी। सबसे सकारात्मक बात यह रही कि बिहार की जनता ने इस बात को समझा और 2020 की तुलना में लगभग 13-14 प्रतिशत ज्यादा वोट दिया। बिहार के 18 जिलों की 121 सीटों के लिए हुए रिकार्ड मतदान पर दोनों गठबंधन के नेता, कार्यकर्ताओं के जरिए आंकलन करने में लगे हैं। दोनों ही तरफ से हालांकि जीत के दावे पहले ही कर दिए गए हैं। एनडीए नेता बंपर वोटिंग को महिला मतदाताओं के चमत्कार के रूप में देख रहे हैं तो महागठबंधन अपने लिए बेहतर मान रहा है। मतदान केंद्रों पर महिला मतदाताओं की लंबी कतारें दिखने के बाद एनडीए में कहा जा रहा है कि यह सीएम नीतीश कुमार द्वारा महिला रोजगार योजना के जरिए 1 करोड़ 40 लाख महिलाओं को दिए गए 10-10 हजार रुपए के बाद पैदा भरोसे के लिए वोट है। सीएम की यह स्कीम आगे भी जारी रहनी है और इनके अलावा पीएम मोदी की केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों पर भी भरोसे का वोट है। लेकिन आरजेडी इसे तेजस्वी यादव द्वारा सरकार बनते ही आगामी मकर पांति पर 14 जनवरी को 30 हजार रुपए (हर महीने 2500 रुपए की स्कीम) देने के वादे के लिए किया गया वोट है। कांग्रेस को भरोसा है कि युवा वर्ग ने वोट चोरी के मुद्दे को लेकर सत्तारुढ़ गठबंधन के खिलाफ वोट दिया है। इस बार चुनाव में एसआईआर और वोट चोरी भी मुद्दे रहे। युवा तबके में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा था। लगता भी है कि इस बार जेन-जी (18-25 वर्ष) के युवाओं ने भी बढ़-चढ़ कर वोट दिया है। याद रहे कि वोटिंग के एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर यह आरोप लगाए। फिर एसआईआर के कारण पहले के मुकाबले करीब 47 लाख कम वोट हैं। इसके बावजूद जनता ने पोलिंग बूथों पर पहुंचकर अपनी राय जोर-शोर से प्रकट की। चुनावी धांधलियों के आरोप भी लग रहे हैं। कहीं तो स्ट्रांग रूम में अवैध लोगों की एंट्री बताई जा रही है, कहीं ईवीएम की पर्चियां सड़कों पर फेंकी जा रही हैं तो कहीं पर वोटिंग मशीन खराब होने और बिजली काटने के आरोप लग रहे हैं। नेताओं को भगाया जा रहा है तो कहीं गोबर तक फेंका गया है। एनडीए सरकार को हर मोर्चे पर विफल बताते हुए लालू प्रसाद यादव की टिप्पणी जोरदार रही। अपने एक्स हैंडल पर लालू ने लिखा ः तवा पर रोटी पलटती रहनी चाहिए नहीं तो जल जाएगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 8 November 2025

ममदानी की ऐतिहासिक जीत

अमेरिका में इस साल यानी 2025 में दो ऐसे चुनाव हुए हैं जिनका असर पूरी दुनिया में पड़ा है। पहला 20 जनवरी को हुआ जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने। इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। दूसरा चुनाव 4 नवम्बर को हुआ जब जोहरान ममदानी ने न्यूयार्क सिटी के मेयर का चुनाव जीता है। यह कोई साधारण चुनाव नहीं था। कई मामलों में यह ऐतिहासिक चुनाव था। पहली बार 1892 के बाद से न्यूयार्क के सबसे युवा मेयर जोहरान ममदानी की जीत हुई है। वो न्यूयार्क सिटी के पहले मुस्लिम मेयर भी होंगे। उन्होंने पिछले साल ही चुनावी मैदान में पांव रखा था। उस समय उनके पास न तो कोई बड़ी पहचान थी, न ही बहुत सारे पैसे और न ही पार्टी का समर्थन था। यही वजह है कि उनकी एंड्रयू कुओमो और रिपब्लिक उम्मीदवार कार्टिस स्लिवा पर मिली जीत न केवल असाधारण थी पर कई मायनों में ऐतिहासिक भी है। ममदानी युवा और करिश्माई हैं। फ्री चाइल्ड केयर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के विस्तार और फ्री मार्पेट सिस्टम में सरकारी दखल जैसे वामपंथी मुद्दों का समर्थन किया। न्यूयार्क शहर में करीब 48 फीसदी ईसाई और 11 फीसदी यहूदी हैं। यहां मुस्लिम भी नौ फीसदी हैं जो अमेरिका में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी का घर है। कहा जाता है कि 9ध्11 के बाद इस्लामोफोबिया की विरासत से यह शहर अब तक उभर नहीं सका है। यहां आज तक कोई मुस्लिम मेयर रहा भी नहीं। इसके बावजूद अगर ममदानी को जीत मिली है तो यह केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि उनकी सुविचारित मुहिम की जीत अधिक लगती है। 34 साल के जिस युवा को उसके कम अनुभव की वजह से पहले चुनावी लड़ाई में कमजोर माना जा रहा था, बाद में वही सबसे अहम फैक्टर साबित हुआ। उनकी खासियत रही जनता से जुड़ाव। उन्होंने विज्ञापनों पर खर्च करने की बजाए सीधे लोगों से संवाद किया। आम शहरों की समस्याओं को समझा और कई ऐसे वादे किए जो न्यूयार्क के नागरिकों को समझ आ गए, भा गए। ममदानी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान भी मैनहैटन और न्यूयार्क सिटी के रहने वाले बड़े कार्पोरेट और कारोबारियों की कड़ी आलोचना की थी। इसलिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, एलन मस्क और तमाम उद्योगपतियों ने ममदानी का जमकर विरोध भी किया। ट्रंप ने धमकी भी दे डाली कि अगर ममदानी जीते तो वो उसकी फंडिंग बंद कर देंगे। उनकी मुस्लिम होने पर भी आलोचना की गई पर ममदानी ने खुलकर स्वीकार किया कि वह एक मुसलमान हैं और इस पर उन्हें गर्व है। इसलिए तमाम इस्लामिक दुनिया में उनकी जीत को एक नए युग का आगाज माना जा रहा है। वह न केवल ट्रंप के लिए सिरदर्द बन सकते हैं बल्कि नेतन्याहू को तो अगर वह न्यूयार्क आए तो उन्हें गिरफ्तार करने की भी धमकी वह दे चुके हैं। वह हमारे प्रधानमंत्री की भी आलोचना कर चुके हैं और 2002 गुजरात दंगों को याद कराते रहते हैं। हालांकि जीतने के बाद अपने पहले भाषण में ममदानी ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को याद किया। अपनी विक्ट्री स्पीच में ममदानी ने पंडित नेहरू को याद करते हुए कहा, मैं जवाहर लाल नेहरू के शब्दों के बारे में सोचता हूं। इतिहास में ऐसा क्षण बहुत कम आता है, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं। जब एक युग का अंत होता है और एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है। आज रात हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 6 November 2025

बाहुबल, बदला, सियासी संग्राम का प्रतीक मोकामा



बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा विधानसभा सीट सुर्खियों में है। 30 अक्टूबर को जन सुराज पार्टी के समर्थक बाहुबली दुलारचंद यादव की सरेआम हत्या ने राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया है। यह सीट सिर्फ दो बाहुबली परिवारों की सियासत-विरासत का प्रतीक बन चुकी है, बल्कि बिहार की राजनीति में बाहुबल और सत्ता के गठजोड़ की सबसे बड़ी मिसाल बन चुकी है। पिछले हफ्ते गुरुवार को दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई थी। दुलारचंद की हत्या का आरोप बाहुबली अनंत सिंह पर लगा। अनंत सिंह को राजनीतिक दबाव के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। शनिवार देर रात पटना पुलिस ने बाढ़ शहर के बेढना गांव से अनंत सिंह को उन्हीं के करगिल मार्पेट से गिरफ्तार कर लिया था। अनंत सिंह इसी करगिल मार्पेट की इमारत में रहते हैं। अनंत सिंह की गिरफ्तारी जब हुई तो उनके एक समर्थक संदीप कुमार ने बताया कि रात 12.30 बजे पटना पुलिस आई थी और विधायक जी को अपने साथ ले गई। अनंत सिंह मोकामा में हर जाति के हीरो हैं। सूरजभान सिंह चाहे जितनी कोशिश कर लें इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा। वीणा सिंह इलाके के बाहुबली नेता सूरजभान सिंह की पत्नी हैं और उन्हें ही राष्ट्रीय जनता दल ने मोकामा सीट से उम्मीदवार बनाया है। मोकामा से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी विधायक हैं लेकिन इस बार खुद अनंत सिंह चुनावी मैदान में हैं। बता दें कि मोकामा भूमिहारों के दबदबे वाला इलाका है। सूरजभान और अनंत दोनें इसी जाति से ताल्लुक रखते हैं। जन सुराज पार्टी से पीयूष प्रियदर्शी मैदान में हैं, जो धानुक जाति से हैं। ऐसे में लड़ाई केवल भूमिहारों के वोट को लामबंद करने की नहीं है बल्कि गैर यादव ओबीसी और दलित वोटों को हासिल करने की भी है। दुलारचंद की हत्या के प्रत्यक्षदर्शी पीयूष प्रियदर्शी के अनुसार घोसवरी प्रखंड के तारतर गांव में अनंत सिंह आए थे। इसी गांव से अनंत सिंह का काफिला निकला। पीयूष प्रियदर्शी कहते हैं बसावनचक गांव से मेरा काफिला जा रहा था, मेरे साथ दुलारचंद यादव भी थे। यह मोकामा विधानसभा क्षेत्र के टाल का इलाका है। दोनों का काफिला तारतर और बसावनचक गांव के बीच में टकराया। अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद पटना के एसएसपी कार्तिकेय शर्मा ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में कहा, दुलारचंद की हत्या जहां हुई वहां अनंत सिंह मौजूद थे। अनंत सिंह इस मामले में मुख्य अभियुक्त हैं। रविवार को अनंत सिंह को गिरफ्तार कर पटना की सीजेएम की अदालत में पेश किया गया और अदालत ने अनंत सिंह व उनके दो अन्य साथियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। आदेश के बाद तीनों को बेऊर जेल भेजा गया। मोकामा के जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह के साथ ही मणिकांत ठाकुर और रंजीत कुमार को शनिवार देर रात गिरफ्तार किया गया था। तारतर दुलारचंद का गांव है। दो बाहुबलियों के बीच पीयूष का चुनाव लड़ना बताता है कि वह किसी से डरते नहीं हैं। भूमिहारों के बाद धानुकों की तादाद अच्छी खासी है। धानुक उनके साथ हैं। दुलारचंद के पोते नीरज यादव ने आरोप लगाया है कि अनंत सिंह के साथ रंजीत राम और मणिकांत ठाकुर की गिरफ्तारी मामले में नया जातीय मोड़ देने के लिए की गई है। यह उलझाने के लिए किया गया है कि इसमें दलित भी शामिल हैं। अनंत सिंह के साथ जिन दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वे नदावां गांव के हैं। नदावां अनंत सिंह का पैतृक गांव है। गीता ने बीबीसी को बताया कि उन्हें रविवार सुबह पता चला कि उनके पति को गिरफ्तार कर लिया गया है। गीता कहती हैं कि मेरे पति अनंत सिंह के लिए खाना बनाते थे। उनका यही गुनाह है। अनंत सिंह को जेल में कोई सेवा करने के लिए चाहिए, इसलिए दोनों को पुलिस साथ ले गई है। 58 साल के अनंत सिंह और उनके परिवार का मोकामा विधानसभा क्षेत्र में पिछले 35 सालों से दबदबा है। अनंत कुमार 1990 के दशक में तब चर्चा में आए जब उन पर कई गंभीर आरोप लगे। उनके खिलाफ हत्या, अपराध के दर्जनों मामले हैं। जिसमें एके-47 बरामदगी भी शामिल है। सूरजभान सिंह ने सन 2000 में मोकामा से अनंत सिंह के भाई को हराकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। सूरजभान सिंह भी हत्या, रंगदारी के मामले में घिरे रहे हैं। दुलारचंद यादव ने 1990 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन मामूली अंतर से अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह से हार गए थे। 1991 से 2010 के बीच उन पर हत्या, अपहरण, रंगदारी से जुड़े 11 मामले दर्ज हुए थे। 1990 से अब तक मोकामा सीट का इतिहास बाहुबल, प्रभाव और बदले की राजनीति से भरा हुआ है। इसीलिए इन बाहुबलियों को गैंग्स ऑफ मोकामा कहा जाता है।
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 4 November 2025

प्रधानमंत्री का गठबंधन पर तीखा हमला


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के लिए जारी एनडीए के संकल्प पत्र की तारीफ करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, एनडीए का संकल्प-पत्र आत्मनिर्भर और विकसित बिहार के हमारे विजन को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। इसमें किसान भाई-बहनों, युवाओं और माताओं-बहनों के साथ ही राज्य के मेरे सभी परिवार जनों के जीवन को और आसान बनाने के लिए हमारी प्रतिबद्धता दिखाई देगी। पीएम ने कहा बिहार के चौतरफा विकास के लिए राज्य की डबल इंजन सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। राज्य के बदलावों का साक्षी बना है। इसमें और तेजी लाकर सुशासन को जन-जन की समृद्धि का आधार बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं। उम्मीद है कि इन प्रयासों को जनता का समर्थन मिलेगा। वहीं प्रधानमंत्री ने गत गुरुवार को मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर चीनी मिल मैदान और छपरा हवाई अड्डे मैदान में सभाओं को संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस-राजद गठबंधन पांच ‘क' कट्टा, ाtढरता, कटुता, कुशासन और करप्शन का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह पांच ‘क' राजद के जंगलराज की पहचान है। राजग-कांग्रेस का घोषणा पत्र वास्तव में एक रेट चार्ट है। उनके वादे रंगदारी, फिरौती, भ्रष्टाचार, लूट के हैं। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि राजग की रैलियों में किस तरह के गाने बजाए जा रहे हैं। इनमें, कट्टा, दुनाली और बहन-बेटियों के अपहरण की बात है। मोदी ने मुजफ्फपुर और छपरा में अपनी रैलियों में यह दावा किया कि राज्य में राजद शासन के दौरान 35,000-40,000 अपहरण हुए और गुंडे वाहन शोरूम लूटते थे। उनका इशारा पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती की शादी की ओर था। मीसा वर्तमान में पाटलीपुत्र से सांसद हैं। मोदी ने कहा कि दूसरी ओर राजग सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और सम्मान देने तथा बिहार सहित अन्य राज्यों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने का पक्षधर है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी सर्वे बता रहे हैं कि आरजेडी-कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सीटें मिलेंगी। एनडीए को सबसे बड़ी जीत मिलने जा रही है। मोदी ने कहा कि एनडीए सरकार छठ पूजा को यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल करवाने के लिए प्रयास करेगी। दूसरी ओर आरजेडी-कांग्रेसियों की भक्ति, समता, ममता, समरता के महापर्व को ड्रामा-नौटंकी बता रहे हैं। उन्होंने लोगों से पूछा कि आपने कभी राजद और कांग्रेस वालों को राम मंदिर जाते देखा क्या? उन्हें डर है अयोध्या में प्रभु श्रीराम के दर्शन कर लेंगे तो उनके वोट बैंक नाराज हो जाएंगे। तुष्टिकरण का गणित बिगड़ जाएगा। आपकी आस्था का जो लोग सम्मान नहीं कर सकते वह कभी यहां आकर के स्थलों का विकास नहीं कर सकते। पीएम ने कहा, एनडीए का सवाल है कि बिहार में पढ़ाई, कमाई, दवाई और सिंचाई के भरपूर अवसर बने। यहां के बेटा-बेटी अब पलायन नहीं करेंगे। बल्कि यहीं काम कर बिहार का नाम रोशन करेंगे। पीएम ने जीएसटी छूट का पा करते हुए कहा कि इससे बिहार के युवाओं ने इस साल सितम्बर-अक्टूबर में डेढ़ लाख से अधिक मोटरसाइकिलें खरीदीं। जंगलराज में नई गाड़ी खरीदते ही आरजेडी के गुंडे पीछे लग जाते थे। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 1 November 2025

और अब बिहार चुनाव में राहुल की एंट्री


बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार अब धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंचता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव तो मैदान में उतर ही चुके हैं। अगर कमी महसूस की जा रही है तो कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की कमी महसूस की जा रही थी। सियासी गलियारों में सवाल पूछा जा रहा था कि पिछले एक महीने से ज्यादा समय से राहुल गांधी कहां गायब हो गए? जब बिहार का चुनाव प्रचार अपनी चरम सीमा पर पहुंचता जा रहा है। ऐसे में राहुल गांधी की गैर मौजूदगी पर तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे थे। अंतत राहुल गांधी बिहार पहुंच ही गए और अगर यह कहा जाए कि उन्होंने एक ड्रेमेटिक एंट्री की तो यह कहना गलत नहीं होगा। राहुल गांधी ने मुजफ्फरपुर से अपनी पहली चुनावी रैली की शुरुआत की और दरभंगा में भी एक रैली को संबोधित किया। राहुल गांधी की रैलियों ने ही हंगामा खड़ा कर दिया। अपनी पहली रैली में उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिस पर विवाद खड़ा हो गया। अपनी पहली चुनावी रैली में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। राहुल गांधी ने कहा, उन्हें सिर्फ आपका वोट चाहिए। अगर आप कहोगे नरेन्द्र मोदी जी आप ड्रामा करो तो वह कर देंगे। उन्हें कहो हम आपको वोट देंगे और आप स्टेज पर डांस करो तो वो डांस कर देंगे। चुनाव से पहले जो भी करवाना है, करवा लो क्योंकि चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी दिखाई ही नहीं देंगे। चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी जी अंबानी जी की शादी में दिखाई देंगे। किसानों-मजदूरों के साथ नहीं बल्कि सूट-बूट वालों के साथ दिखाई देंगे। उन्होंने कहा वो आपकी वोट चोरी में लगे हुए हैं क्योंकि वो कहते हैं यह इलेक्शन वाली बीमारी खत्म कर दो। महाराष्ट्र और हरियाणा में इन्होंने चुनाव चोरी किया है और बिहार में पूरी कोशिश करेंगे कि बिहार की आवाम की सरकार न बने। महागठबंधन की गारंटी है कि हर वर्ग, जात, धर्म की सरकार बिहार में बनाएंगे और किसी को पीछे नहीं छोड़ेंगे। इसी दौरान राहुल गांधी ने कहा कि 20 साल से नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए उन्होंने क्या किया है? जनता का ऐसा विकास चाहती है जहां अडानी को एक-दो रुपए में जमीन दी जाए और लोगों को रोजगार न मिले। राहुल गांधी के बयान की भाजपा ने निंदा की है। भाजपा के प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने एक्स पर पोस्ट कर राहुल गांधी के बयान को एक लोकल गुंडे जैसी भाषा बताया और लिखा, राहुल गांधी एक लोकल गुंडे की तरह बोलते हैं। राहुल गांधी ने खुलेतौर पर भारत और बिहार के हर गरीब और उस शख्स का अपमान किया है जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को वोट दिया है। राहुल गांधी ने मतदाताओं और भारतीय लोकतंत्र का मजाक बनाया है। वहीं दरभंगा की रैली में राहुल गांधी ने कहा कि अमित शाह कहते हैं कि जमीन की कमी हैं तो फिर अडानी को एक रुपए में कौन सी जमीन दी जा रही है? उन्होंने कहा, जब अंबानी-अडानी को जमीन देनी होती है तो जमीन मिल जाती है। जब किसान से जमीन छीननी होती है तो दो मिनट में जमीन मिल जाती है। बिहार के बच्चों को बिजनेस या कारखाना चलाना हो तो अमित शाह कहते हैं कि बिहार में जमीन नहीं है। इसी दौरान राहुल गांधी ने (शायद पहली बार सार्वजनिक रूप से) घोषणा की कि महागठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे। चलते-चलते राहुल ने कहा कि एनडीए सरकार ने राज्य को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मोर्चे पर पीछे धकेला है। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता अब महागठबंधन की ओर उम्मीद से देख रही है। हम बिहार को हर क्षेत्र में नंबर वन बनाएंगे। हमें मेड इन चाइना नहीं अब मेड इन बिहार चाहिए। उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठाए और कहा राज्य के युवा दिन-रात मेहनत करते हैं लेकिन अंत में पेपर लीक हो जाता है। कुछ चुने लोगों को एग्जाम से पहले पेपर दे दिया जाता है। यही शिक्षा व्यवस्था का हाल बदलना है। आप राहुल की दलीलों से सहमत हों या न हों पर इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि जो वो कह रहे हैं उसमें बहुत दम है और बिहार में इसी बदलाव की भी जरूरत है। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 30 October 2025

बिहार चुनाव में महिलाओं की भूमिका


बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एक बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। इस बार चुनाव में पहले के मुकाबले महिलाओं की ज्यादा भागीदारी देखने को मिल रही है। कई ऐसी उच्च शिक्षा ग्रहण कर चुकी बेटियां भी चुनावी मैदान में उतरी हैं जिनके कंधों पर पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की चुनौती है। विधानसभा चुनाव में इस बार जो अच्छी बात देखने को मिल रही है वो है महिलाओं की भागीदारी जो आमतौर पर कम देखने को मिलती है। इस बार मैदान में ऐसी महिलाएं दांव आजमा रही हैं जिन्होंने बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों से उच्च शिक्षा ग्रहण की है। बिहार की चुनावी रणभूमि में उतरने का साहस दिखाने वाली इन बेटियों का आना एक शुभ और अच्छा संकेत माना जाएगा। सत्ताधारी पार्टी एनडीए की बात करें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुजुर्ग और विधवा पेंशन बढ़ा दी है। डोमिसाइल नीति के तहत बिहार की सरकारी नौकरियों में 35 फीसद स्थानीय महिलाओं की भागीदारी की घोषणा की है। सहायिका, आशा कार्यकर्ताओं, जीविका दीदियों का मानदेय बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने महिलाओं को 2500 प्रति महीना देने की घोषणा की है। जीविका दीदियों का वेतन 30000 रुपये करने का ऐलान किया है। इसके अलावा मां योजना के तहत भी कई योजनाओं का ऐलान किया है। दरअसल बिहार में बड़ी संख्या में पुरुषों को रोजगार के लिए पलायन की वजह से भी महिला मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न पुरुषों से ज्यादा रहा है। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मतदान किया था। पिछले विधानसभा चुनाव में पुरुषों ने 54.55 प्रतिशत मतदान किया था तो महिलाओं ने 56.69 प्रतिशत मतदान किया था। मतलब पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने करीब 2 प्रतिशत ज्यादा वोट डाले थे। जीविका समूह, आंगनवाड़ी, सेविका सहायिकाओं और आशा कार्यकर्ताओं की मदद से चुनाव आयोग ने भी महिलाओं को मतदान के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया है। कई सीटों पर महिलाएं मजबूती से टक्कर देने के लिए तैयार हैं। ऐसे में इस बार महागठबंधन की तुलना में एनडीए ने महिलाओं पर ज्यादा भरोसा जताया है। जानकारी के मुताबिक एनडीए के पांच घटक दलों ने मिलकर 34 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा जबकि महागठबंधन के सात घटक दलों ने मिलकर सिर्फ 31 महिलाओं को ही टिकट दिया। एनडीए की बात करें तो भाजपा और जेडीयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। इसके साथ दोनों ही दलों ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया है। अन्य घटक दलों की बात करें तो चिराग पासवान के लोजपा (र) जिनके खाते में 29 सीटें गई हैं ने पांच महिलाओं को टिकट दिया है। जीतन राम मांझी ने 2 सीटों पर और उपेन्द्र कुशवाहा ने एक महिला को टिकट दिया है। ये महिला उम्मीदवार उपेन्द्र कुशवाहा की पत्नी हैं। इसी तरह महागठबंधन की बात करें तो वह 254 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और आरजेडी ने 24 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि मोहनियां सीट से प्रत्याशी श्वेता सुमन का नामांकन रद्द कर दिया गया जिसके बाद यह नंबर 23 हो गया है। कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने 5 महिलाओं को टिकट दिया है। इसके अलावा सीपीआईएम दल जो 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, सिर्फ एक महिला को टिकट दिया है। वीआईपी और आईआईपी ने भी एक-एक महिला पर भरोसा जताया जबकि भाकपा और माकपा ने एक भी महिला को टिकट नहीं दिया। बिहार में सत्ता दिलाने के लिए महिलाओं का वोट अहम और पुरुषों से ज्यादा रहा है मतदान प्रतिशत। बिहार में जबसे नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हैं। उन्हें सूबे की सत्ता व सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाने में महिलाओं ने हमेशा अहम भूमिका निभाई है। इस बार भी महिला वोट अगली बिहार सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएगी। 
-अनिल नरेन्द्र