Thursday, 20 November 2025

बिहार परिणाम राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर करेगा

 
भारत में 10 साल से केंद्र और अधिकतर राज्यों में सरकार चला रही भाजपा जब लोकसभा चुनाव 2024 में 240 सीटों पर अटक गई और बैसाखियें के सहारे सत्ता में आई तो कई विश्लेषकों को लगा था कि यहां से भारतीय राजनीति में शायद भाजपा ढलान पर आ जाए लेकिन उसके बाद से देश के कई राज्यों में हुए चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर भाजपा ने साबित कर दिया कि ये आकलन कहीं न कहीं गलत थे। हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और अब बिहार में जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने यह साबित कर दिया कि वह चुनाव जीतना जानती है। आज भी चुनावी रणनीति बनाने और उसे सफल बनाने में भाजपा के सामने कोई राजनीतिक दल ठहरता नहीं है। ताजा उदाहरण बिहार का है। अब भारत के अहम हिंदी भाषी राज्य बिहार में भी भाजपा, जेडीयू और कई क्षेत्रीय दलें के एनडीए गठबंधन ने अप्रत्याशित और बेमिसाल जीत दर्ज की है। बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा भारत की राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा और बहुआयामी प्रभाव डाल सकता है। यह नतीजा भाजपा के लिए एक बड़ी जीत और सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जिसने केंद्र की एनडीए सरकार और उसके नेतृत्व को मजबूती दी है। वहीं विपक्ष के लिए यह चुनौती और जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने का अलर्ट है। विश्लेषक मान रहे हैं कि विपक्ष को अपनी नीतियों, नेतृत्व और रणनीति में व्यापक सुधार करना होगा ताकि वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी चुनौती पेश कर सकें। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भाजपा बिहार परिणाम से और मजबूत होकर उभरेगी और उसका असर कई आगामी चुनावों तक दिखाई देगा। विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि भाजपा के भीतर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और मजबूत होंगे। भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की चुनावी रणनीति एक बार फिर सटीक साबित हुई है। बिहार चुनाव परिणाम ने भाजपा, नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व को फिर से मजबूत कर दिया है। विश्लेषक हेमंत अत्री के अनुसार बिहार चुनाव ने केंद्र सरकार की स्थिति जो 2024 के लोकसभा चुनावों में अल्पमत की स्थिति का सामना कर रही थी अब खुलकर अपने एजेंडे को चला सकेगी। अब उसे केंद्र सरकार की स्थिरता पर भी लगते प्रश्न चिह्नों की ज्यादा चिंता नहीं होगी। अब भाजपा और उसकी रणनीति पर विपक्ष के हमले कम हो सकते हैं और भाजपा दलितों, पिछड़ों और अन्य वर्गों से समर्थन हासिल करने की अपनी क्षमता को एक बार फिर प्रदर्शित करेगी। भाजपा अध्यक्ष का फैसला अब जो पिछले कई महीनों से लटका हुआ था उसका भी फैसला जल्द हो सकता है। अब फिर से इस धारणा को मजबूती मिलेगी कि मोदी इंविंसिबल यानी अजेय है। उन्हें कोई भी सत्ता से हिला नहीं सकता। इससे विपक्ष के मनोबल पर भी असर पड़ेगा। सीएसडीएस के निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार मानते हैं कि भारतीय राजनीति पर भाजपा का एकक्षत्र राज मजबूत हो रहा है जो लोकसभा चुनाव के बाद लगने लगा था कि शायद भाजपा का प्रभाव कम हो रहा है, लेकिन लगातार कई राज्यों में पार्टी की जीत ने साबित कर दिया है कि वह अजेय हैं और चुनावी रणनीति में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता, बिहार के चुनाव नतीजों से भाजपा का आत्मविश्वास और बढ़ेगा तथा पार्टी के लिए यह एक उत्साह बढ़ाने वाला परिणाम है, खासकर असम, तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल के चुनावों से पहले। विश्लेषज्ञोsं का हालांकि यह भी मानना है कि किसी एक राज्य परिणाम से कुछ सबक तो सिखे जा सकते हैं लेकिन इससे पूरे देश का मिजाज बदलना मुश्किल fिदखता है। विश्लेषक आमतौर पर इस बात पर सहमत हैं कि बिहार नतीजों ने यह साबित किया है कि महिलाओं को अब अलग मतदाता वर्ग के रूप में देखा जाएगा। बिहार नतीजें का एक अहम सबक यह है कि राजनीति दल महिला मतदाताओं की एक अहमियत समझेंगे और ये समझ बढ़ेगी कि महिलाओं को अपने साथ रखना है और अपनी चुनावी घोषणा पत्रों में इस बात का ध्यान रखकर योजनाएं बनानी होंगी। एनडीए गठबंधन ने ये दिखाया कि कुछ ऐसे वादे करते हैं, जिन्हें पूरा कर सकें। विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले समय में भारतीय राजनीति पर वेलफेयर यानी समाज कल्याण योजनाओं का असर और ज्यादा नजर आ सकता है। यह बात एनडीए की बिहार जीत से साफ हो चुकी है। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 18 November 2025

बिहार में नीतीश कुमार की विश्वसनीयता


बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने यह तो साबित कर ही दिया है कि 20 साल शासन के बाद भी नीतीश कुमार की विश्वसनीयता अभी भी बनी हुई है। आज भी नीतीश बिहार के सबसे कद्दावर नेता हैं। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार की सेहत और सक्रियता पर सवाल छाए रहे। मीडिया से उनकी दूरी कुछ मंचों से उनके दिए बयान और हाव-भाव पर लोग सवाल उठा रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंच पर उनकी अनुपस्थिति और रोड शो में बराबर न खड़ा होना विवाद का विषय बना हुआ था। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नीतीश को अचेत मुख्यमंत्री कहते थे। लेकिन इन सबके बावजूद बिहार की जनता कहती रही कि नीतीश कुमार की पार्टी इस बार 2020 की तुलना में बढ़िया प्रदर्शन करेगी। जेडीयू ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की। पार्टी कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक पोस्टर लगे ...टाइगर अभी जिंदा है। जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पहले से ही कई इंटरव्यू में यह कह चुके थे कि नीतीश कुमार को जब-जब कम आंका जाता है। तब-तब वह अपने प्रदर्शन से लोगों को चौंकाते रहे हैं। इस बार बिहार में 67.13 प्रतिशत मतदान हुआ जो पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6 प्रतिशत ज्यादा है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 प्रतिशत ज्यादा रहा है। आमतौर पर यह माना गया था कि नीतीश कुमार को इस बार महिलाओं का भारी समर्थन मिल रहा है और ये चुनाव के परिणामों में भी नजर आया। मुमकिन है कि महागठबंधन को भी इसका आभास था, इसलिए पहले चरण के मतदान से महज पंद्रह दिन पहले तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों के लिए स्थायी नौकरी, तीस हजार के वेतन, कर्ज माफी, दो सालों तक ब्याज मुक्त क्रैडिट , दो हजार का अतिरिक्त भत्ता और 5 लाख तक का बीमा कवरेज देने का लंबा-चौड़ा वादा किया। इसके बावजूद नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए। महागठबंधन चुनाव से लगभग एक महीने पहले नीतीश सरकार की तरफ से जीविका दीदियों के खाते में 10-10 हजार कैश बेनेफिट ट्रांसफर करने को वोट खरीदने से जोड़ती हो पर परिणाम बताते हैं कि इनका सीधा फायदा एनडीए को हुआ। ऐसा नहीं कि अपने लंबे कार्यकाल में नीतीश ने जनकल्याण योजनाएं नहीं चलाई। साल 2007 में ही नीतीश ने इस योजना की शुरुआत कर दी थी। नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में ही स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल, पोशाक और मैट्रिक की परीक्षा पहली डिवीजन से पास करने वाली छात्राओं को दस हजार रुपए की राशि दी। बाद में 12वीं की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास करने पर 25000 रुपए और ग्रेजुएशन में 50,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाने लगी। अपने पहले कार्यकाल में नीतीश ने महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया। पुलिस भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी और इस बार के चुनाव में भी वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो राज्य सरकार की नौकरियों में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। नीतीश कुमार को इस बार अति पिछड़ा वर्ग का भी भरपूर समर्थन मिला है। प्रभुत्व वाली नीतियों के खिलाफ ईबीसीवी जातियां एकजुट नजर आईं और उन्होंने एनडीए को वोट दिया। नीतीश कुमार जिस सामाजिक वर्ग से आते हैं, वह बिहार की आबादी का सिर्फ 2.91 प्रतिशत है। इसके बावजूद वह इतने बड़े गठबंधन के नेता बने। आमतौर पर माना जा रहा है कि तेजस्वी के लिए अब भी पिता लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल की जंगलराज वाली छवि को भेदना मुश्किल हो गया था और चुनाव में यह एक मुद्दा जरूर बना। दूसरी तरफ नीतीश कुमार सुशासन बाबू की अपनी छवि को अब भी बनाए हुए हैं। 20 साल सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि है, उन पर आज तक भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। पर आलोचक यह भी कहते हैं कि नीतीश के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार होते हुए भी बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में है। पलायन आज भी एक बहुत बड़ी वास्तविकता है। नीतीश ने इन मुद्दों को गंभीरता से अड्रैस नहीं किया और इन पर काम करना अब एनडीए की सरकार के लिए एक चुनौती है। एक विश्लेषक का मानना है कि नीतीश कुमार को सहानुभूति वोट भी मिलें क्योंकि कुछ लोगों का मानना था कि यह इलेक्शन नीतीश कुमार का फेयरवेल इलेक्शन था और बिहार के वोटरों ने वोट के जरिए अपने नेता को एक अच्छा फेयरवेल दिया है। लोगों में एक संदेश था कि ये शायद नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव है। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 15 November 2025

यह डॉक्टर्स ऑफ डेथ

 
राजधानी के स्कूलों और अस्पतालों के आतंकी खतरे संबंधी कई सरकारी इमारतों को बम से उड़ाने की धमकी भरे ई-मेल 30 अप्रैल 2024 से लगातार आ रहे थे। इस वजह से डेढ़ साल से दिल्ली-एनसीआर में दहशत का माहौल बना हुआ था। लेकिन केन्द्राrय जांच एजेंसियों से लेकर खुफिया एजेंसियां इसकी तह तक नहीं पहुंच सकी। अचानक सोमवार 10 नवम्बर शाम को लाल किला मेट्रो स्टेशन गेट नंबर एक के पास हुए तेज धमाके ने देश को हिलाकर रख दिया। यह 14 साल बाद दिल्ली की राजधानी में हुआ बड़ा बम धमाका था। यह हमारी खुफिया एजेंसियों की भारी विफलता थी। चौंकाने वाली बात यह है यह विस्फोट सोमवार को फरीदाबाद के पास एक कश्मीरी डॉक्टर के किराये के मकान से 360 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट और एक एके-47 राइफल समेत हथियार बरामद होने के कुछ ही घंटों बाद हुआ। दरअसल देशभर में 15 दिन तक चले ऑपरेशन के जरिए जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गलवत-उल-हिन्द से जुड़े एक आतंकवादी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया जिसमें कई आतंकी मॉड्यूल जिसमें डॉक्टर समेत 8 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया। इनसे 2,900 किलो विस्फोटक जब्त किया गया। इसके तार कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैले हुए हैं। इससे साफ होता है कि देशभर में कई आतंकी मॉड्यूल सािढय हैं, जो टेरर फैलाने में जुटे हुए हैं। दिल्ली में सोमवार की शाम जो ब्लास्ट हुआ, जिसमें 12 लोगों की जान जा चुकी है और दर्जनों घायल हैं को अंजाम देने वाला जेहादी मानसिकता का एक डाक्टर है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर फरीदाबाद के फतेहुपर टागा गांव में मुजम्मिल शकील द्वारा किराए पर लिए गए दो घरों पर छापेमारी के दौरान 2900 किलोग्राम आईईडी बनाने की सामग्री बरामद की थी। बाबत इसके शाम को ही लाल किले में ब्लास्ट हो गया। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि टेरर मॉड्यूल्स के डॉक्टर्स ऑफ डेथ क्या इस हमले की पटकथा पहले ही लिख चुके थे या फिर अपने साथियों की गिरफ्तारी होने के बाद बदला लेने के लिए इस ब्लॉस्ट की प्लानिंग की गई। क्योंकि कार में सवार पुलवामा का डॉक्टर उमर मोहम्मद भी इसी मॉड्यूल का हिस्सा बताया जा रहा है। हालांकि मामले पर अभी खुलकर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। अब सरकार ने भी यह माना है कि यह एक आतंकी हमला था, जिसकी तार जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ती हैं। जितनी मात्रा में विस्फोटक सामान बरामद हुआ है, उससे साफ था कि इनकी साजिश कुछ बड़ा करने की थी। जिस तरह उमर ने कार को लाल किले की पार्किंग में घंटों खड़ा रखा और फिर लाल किले के सामने ब्लास्ट हो गया। ऐसे में वहां की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। क्योंकि सुबह ही फरीदाबाद में इतना विस्फोटक बरामद हुआ था। बावजूद इसके बाद लाल किले पर सुरक्षा व्यवस्था का यह हाल था। रोज की तरह बाहर गाड़ियां बेढंगे तरीके से खड़ी थी। आतंका का चेहरा अब और अधिक रहस्ममय और खौफनाक होता जा रहा है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि शालीनता का मुखौटा ओढ़े यह चेहरे आपके आसपास ही सािढय हैं कि आपसे थोड़ी सी चूक हुई तो यह आपको अपना शिकार बनाने में देर नहीं करेंगे। फरीदाबाद में विस्फोटकों की बरामदगी और दिल्ली में लाल किले धमाके से साबित हो गया है कि यह सफेदपोश आतंकी की नई पौध कट्टरपंथी सोच में आकंठ डूबी है। डाक्टरों के फूलप्रूफ आतंकी नेटवर्क ने देश के कई हिस्सों में कहर बरपाने की भयावह साजिश रची थी। सहारनपुर के फेमस अस्पताल में तैनात डॉ. अदील की एक माह की छुट्टी और इस दौरान पोस्टर लगाने में चूक ही देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए अहम कड़ी बनी। दरअसल, जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन में धमकी भरे पोस्टर लगाते समय डॉ. अदील मौलाना इरफान के साथ सीसीटीवी में कैद हो गया। बस इसी फुटेज के आधार पर श्रीनगर पुलिस ने पहले मौलाना को हिरासत में लिया और फिर डॉक्टर अदील तक पहुंची। दिल्ली-एनसीआर और सहारनपुर में सािढय आतंकियों के डाक्टर गैंग के खतरनाक मंसूबे का खुलासा हैरान करने वाला है। जाहिर है कि इस हादसे का असर दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश की एकता व शांति के लिए खतरा है। दोषियों को सजा सुनिश्चित करने की दिशा में जांच एजेंसियां, सरकार देनों अपना काम कर ही रही हैं पर लोगों को भी सतर्क रहना होगा और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरन्त सूचना देने के लिए अलर्ट रहना होगा। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 13 November 2025

आसिम मुनीर को तानाशाह बनाने की राह पर


पाकिस्तान का इतिहास सैन्य शासन से भरा हुआ है। यहां चुनी हुईं सिविलयन सरकार थोड़ा समय चलती है फिर कोई न कोई जनरल शासन का तख्ता पलट देता है। ताजा उदाहरण पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को ही ले लीजिए। पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ की सरकार भारत के ऑपरेशन सिंदूर से सबक लेते हुए संवैधानिक बदलाव की तैयारी में है। जिसमें सेना प्रमुख आसिम मुनीर को चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (सीडीएफ) बनाने की योजना है, इससे उनकी शक्तियां संवैधानिक रूप से बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान की शाहबाज शरीफ ने लगता है कि एक बार फिर अपने सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने का फैसला किया है। 8 नवम्बर को संसद में पेश 27वें संवैधानिक संशोधन विधेयक के जरिए रक्षा बलों के प्रमुख (चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस) सीडीएफ नामक एक नया अत्यंत शक्तिशाली पद सृजित कर दिया गया, जो सीधे मुनीर के लिए ही रचा गया प्रतीत होता है। यह पदोन्नति मई 2025 में भारत के साथ हुए चार दिवसीय संघर्ष के बाद मिले फील्ड मार्शल के सम्मान के ठीक छह महीने बाद हो रही है। लेकिन सवाल उठता है कि आतंकवाद के कथित संरक्षक मुनीर को यह दोहरी मेहरबानी आखिर क्यों? क्या मई का संघर्ष ही वह कारनामा है या फिर पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता और सैन्य तानाशाही को मजबूत करने की साजिश? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुनीर को ओसामा बिन लादेन इन सूट कहा जाता है और अब यह प्रमोशन उसके दोहरे चेहरे-एक तरफ आतंक के प्रायोजक, दूसरी तरफ क्षेत्रीय स्थिरता के हामी-की ओर उजागर कर रहा है। संवैधानिक संशोधन ः मुनीर की कमान को संवैधानिक छतरी लेकिन लोकतंत्र पर सहमे कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कैबिनेट की मंजूरी के बाद सीनेट में पेश किए गए इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 243 में व्यापक बदलाव प्रस्तावित है, जो सशस्त्र बलों की कमान संरचना को पूरी तरह पुनर्गठित कर देते हैं। यह 27वां संविधान विधेयक पाकिस्तान के संविधान में एक बड़ा बदलाव लाने वाला प्रस्तावित कानून है। इस संशोधन में अनुच्छेद 243 संशोधन भी शामिल है, जिसके तहत रक्षा बलों के प्रमुख का पद औपचारिक रूप से सेना प्रमुख को सौंप दिया जाएगा और उन्हें आजीवन फील्ड मार्शल का पद प्रदान किया गया है। अगर यह बिल पास हुआ तो सेना प्रमुख आसिम मुनीर आजीवन फील्ड मार्शल के पद पर रहेंगे। हालांकि इसका विपक्ष पुरजोर विरोध कर रहा है। पाकिस्तान सरकार का दावा है कि यह बदलाव देश की रक्षा आवश्यकताओं और सैन्य कमान-संरचना को आधुनिक बनाने के लिए किया जा रहा है। पाकिस्तान ने सीडीएफ का जो मसौदा पेश किया है, वह भारत के चीफ डिफेंस ऑफ आर्मी स्टॉफ (सीडीएस) के प्रारूप की चोरी की है। मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लेमीन पार्टी प्रमुख अल्लामा राजा नासिर अब्बास ने कहा है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं पंगू हो चुकी हैं। राष्ट्र को (प्रस्तावित) 27वें संशोधन के खिलाफ कदम उठाना चाहिए। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 11 November 2025

बिहार यूं ही नहीं लोकतंत्र की जननी


मतदान के प्रथम चरण में गुरुवार को हुए बंपर मतदान ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि बिहार यूं ही नहीं लोकतंत्र की जननी है। 64.46 प्रतिशत बता रहा है कि यहां के लोकतांत्रिक मूल्यों की कितनी एहमियत है। अगर कई मतदान केन्द्राsं पर लाइट न जाती और कई स्थानों पर ईवीएम खराबी की शिकायतें नहीं आती तो यह 2-3 प्रतिशत और बढ़ जाता। मतदान में जनता की भागीदारी अधिक होने का मतलब साफ है कि भारत में अभी भी लोकतंत्र जीवित है। इनका एक अर्थ यह भी निकलता है कि जनता राजनीति से उदासीन नहीं है। लोकतंत्र में ऐसा ही होना चाहिए। वर्ष 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर गुरुवार को पिछली बार के मुकाबले 31 लाख 81 हजार 858 अधिक मत पड़े। बिहार के मुख्य (चुनाव) निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) विनोद सिंह गुनियाल ने कहा कि मतदाता जागरूकता, मतदाता सूची की सफाई और महिला, युवा एवं बुजुर्ग मतदाताओं का उत्साह वोट प्रतिशत बढ़ाने में सहायक बना। उन्होंने उम्मीद जताई कि दूसरे चरण के मतदान में भी मतदाताओं का उत्साह बढ़-चढ़ कर वोट करेगा। सीईसी ने कहा कि बिहार ने देश को राह दिखाई है। पहले चरण में महागठबंधन के सीएम पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव, डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा, सम्राट चौधरी समेत कई बड़े नामों की किस्मत दांव पर है। इस चरण में बिहार में दो दशकों से सत्तासीन नीतीश कुमार या उनकी जगह कोई और इस दौर के चुनाव में एक बड़ा बहस का मुद्दा रहा। हाल के चुनावों में यह सवाल इतनी मजबूती के साथ कभी नहीं पूछा गया था। जनता जो भी निर्णय लेगी, वह राज्य की सामाजिक-राजनीतिक दिशा तय करेगी। सबसे सकारात्मक बात यह रही कि बिहार की जनता ने इस बात को समझा और 2020 की तुलना में लगभग 13-14 प्रतिशत ज्यादा वोट दिया। बिहार के 18 जिलों की 121 सीटों के लिए हुए रिकार्ड मतदान पर दोनों गठबंधन के नेता, कार्यकर्ताओं के जरिए आंकलन करने में लगे हैं। दोनों ही तरफ से हालांकि जीत के दावे पहले ही कर दिए गए हैं। एनडीए नेता बंपर वोटिंग को महिला मतदाताओं के चमत्कार के रूप में देख रहे हैं तो महागठबंधन अपने लिए बेहतर मान रहा है। मतदान केंद्रों पर महिला मतदाताओं की लंबी कतारें दिखने के बाद एनडीए में कहा जा रहा है कि यह सीएम नीतीश कुमार द्वारा महिला रोजगार योजना के जरिए 1 करोड़ 40 लाख महिलाओं को दिए गए 10-10 हजार रुपए के बाद पैदा भरोसे के लिए वोट है। सीएम की यह स्कीम आगे भी जारी रहनी है और इनके अलावा पीएम मोदी की केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों पर भी भरोसे का वोट है। लेकिन आरजेडी इसे तेजस्वी यादव द्वारा सरकार बनते ही आगामी मकर पांति पर 14 जनवरी को 30 हजार रुपए (हर महीने 2500 रुपए की स्कीम) देने के वादे के लिए किया गया वोट है। कांग्रेस को भरोसा है कि युवा वर्ग ने वोट चोरी के मुद्दे को लेकर सत्तारुढ़ गठबंधन के खिलाफ वोट दिया है। इस बार चुनाव में एसआईआर और वोट चोरी भी मुद्दे रहे। युवा तबके में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा था। लगता भी है कि इस बार जेन-जी (18-25 वर्ष) के युवाओं ने भी बढ़-चढ़ कर वोट दिया है। याद रहे कि वोटिंग के एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर यह आरोप लगाए। फिर एसआईआर के कारण पहले के मुकाबले करीब 47 लाख कम वोट हैं। इसके बावजूद जनता ने पोलिंग बूथों पर पहुंचकर अपनी राय जोर-शोर से प्रकट की। चुनावी धांधलियों के आरोप भी लग रहे हैं। कहीं तो स्ट्रांग रूम में अवैध लोगों की एंट्री बताई जा रही है, कहीं ईवीएम की पर्चियां सड़कों पर फेंकी जा रही हैं तो कहीं पर वोटिंग मशीन खराब होने और बिजली काटने के आरोप लग रहे हैं। नेताओं को भगाया जा रहा है तो कहीं गोबर तक फेंका गया है। एनडीए सरकार को हर मोर्चे पर विफल बताते हुए लालू प्रसाद यादव की टिप्पणी जोरदार रही। अपने एक्स हैंडल पर लालू ने लिखा ः तवा पर रोटी पलटती रहनी चाहिए नहीं तो जल जाएगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 8 November 2025

ममदानी की ऐतिहासिक जीत

अमेरिका में इस साल यानी 2025 में दो ऐसे चुनाव हुए हैं जिनका असर पूरी दुनिया में पड़ा है। पहला 20 जनवरी को हुआ जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने। इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। दूसरा चुनाव 4 नवम्बर को हुआ जब जोहरान ममदानी ने न्यूयार्क सिटी के मेयर का चुनाव जीता है। यह कोई साधारण चुनाव नहीं था। कई मामलों में यह ऐतिहासिक चुनाव था। पहली बार 1892 के बाद से न्यूयार्क के सबसे युवा मेयर जोहरान ममदानी की जीत हुई है। वो न्यूयार्क सिटी के पहले मुस्लिम मेयर भी होंगे। उन्होंने पिछले साल ही चुनावी मैदान में पांव रखा था। उस समय उनके पास न तो कोई बड़ी पहचान थी, न ही बहुत सारे पैसे और न ही पार्टी का समर्थन था। यही वजह है कि उनकी एंड्रयू कुओमो और रिपब्लिक उम्मीदवार कार्टिस स्लिवा पर मिली जीत न केवल असाधारण थी पर कई मायनों में ऐतिहासिक भी है। ममदानी युवा और करिश्माई हैं। फ्री चाइल्ड केयर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के विस्तार और फ्री मार्पेट सिस्टम में सरकारी दखल जैसे वामपंथी मुद्दों का समर्थन किया। न्यूयार्क शहर में करीब 48 फीसदी ईसाई और 11 फीसदी यहूदी हैं। यहां मुस्लिम भी नौ फीसदी हैं जो अमेरिका में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी का घर है। कहा जाता है कि 9ध्11 के बाद इस्लामोफोबिया की विरासत से यह शहर अब तक उभर नहीं सका है। यहां आज तक कोई मुस्लिम मेयर रहा भी नहीं। इसके बावजूद अगर ममदानी को जीत मिली है तो यह केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि उनकी सुविचारित मुहिम की जीत अधिक लगती है। 34 साल के जिस युवा को उसके कम अनुभव की वजह से पहले चुनावी लड़ाई में कमजोर माना जा रहा था, बाद में वही सबसे अहम फैक्टर साबित हुआ। उनकी खासियत रही जनता से जुड़ाव। उन्होंने विज्ञापनों पर खर्च करने की बजाए सीधे लोगों से संवाद किया। आम शहरों की समस्याओं को समझा और कई ऐसे वादे किए जो न्यूयार्क के नागरिकों को समझ आ गए, भा गए। ममदानी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान भी मैनहैटन और न्यूयार्क सिटी के रहने वाले बड़े कार्पोरेट और कारोबारियों की कड़ी आलोचना की थी। इसलिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, एलन मस्क और तमाम उद्योगपतियों ने ममदानी का जमकर विरोध भी किया। ट्रंप ने धमकी भी दे डाली कि अगर ममदानी जीते तो वो उसकी फंडिंग बंद कर देंगे। उनकी मुस्लिम होने पर भी आलोचना की गई पर ममदानी ने खुलकर स्वीकार किया कि वह एक मुसलमान हैं और इस पर उन्हें गर्व है। इसलिए तमाम इस्लामिक दुनिया में उनकी जीत को एक नए युग का आगाज माना जा रहा है। वह न केवल ट्रंप के लिए सिरदर्द बन सकते हैं बल्कि नेतन्याहू को तो अगर वह न्यूयार्क आए तो उन्हें गिरफ्तार करने की भी धमकी वह दे चुके हैं। वह हमारे प्रधानमंत्री की भी आलोचना कर चुके हैं और 2002 गुजरात दंगों को याद कराते रहते हैं। हालांकि जीतने के बाद अपने पहले भाषण में ममदानी ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को याद किया। अपनी विक्ट्री स्पीच में ममदानी ने पंडित नेहरू को याद करते हुए कहा, मैं जवाहर लाल नेहरू के शब्दों के बारे में सोचता हूं। इतिहास में ऐसा क्षण बहुत कम आता है, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं। जब एक युग का अंत होता है और एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है। आज रात हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 6 November 2025

बाहुबल, बदला, सियासी संग्राम का प्रतीक मोकामा



बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा विधानसभा सीट सुर्खियों में है। 30 अक्टूबर को जन सुराज पार्टी के समर्थक बाहुबली दुलारचंद यादव की सरेआम हत्या ने राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया है। यह सीट सिर्फ दो बाहुबली परिवारों की सियासत-विरासत का प्रतीक बन चुकी है, बल्कि बिहार की राजनीति में बाहुबल और सत्ता के गठजोड़ की सबसे बड़ी मिसाल बन चुकी है। पिछले हफ्ते गुरुवार को दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई थी। दुलारचंद की हत्या का आरोप बाहुबली अनंत सिंह पर लगा। अनंत सिंह को राजनीतिक दबाव के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। शनिवार देर रात पटना पुलिस ने बाढ़ शहर के बेढना गांव से अनंत सिंह को उन्हीं के करगिल मार्पेट से गिरफ्तार कर लिया था। अनंत सिंह इसी करगिल मार्पेट की इमारत में रहते हैं। अनंत सिंह की गिरफ्तारी जब हुई तो उनके एक समर्थक संदीप कुमार ने बताया कि रात 12.30 बजे पटना पुलिस आई थी और विधायक जी को अपने साथ ले गई। अनंत सिंह मोकामा में हर जाति के हीरो हैं। सूरजभान सिंह चाहे जितनी कोशिश कर लें इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा। वीणा सिंह इलाके के बाहुबली नेता सूरजभान सिंह की पत्नी हैं और उन्हें ही राष्ट्रीय जनता दल ने मोकामा सीट से उम्मीदवार बनाया है। मोकामा से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी विधायक हैं लेकिन इस बार खुद अनंत सिंह चुनावी मैदान में हैं। बता दें कि मोकामा भूमिहारों के दबदबे वाला इलाका है। सूरजभान और अनंत दोनें इसी जाति से ताल्लुक रखते हैं। जन सुराज पार्टी से पीयूष प्रियदर्शी मैदान में हैं, जो धानुक जाति से हैं। ऐसे में लड़ाई केवल भूमिहारों के वोट को लामबंद करने की नहीं है बल्कि गैर यादव ओबीसी और दलित वोटों को हासिल करने की भी है। दुलारचंद की हत्या के प्रत्यक्षदर्शी पीयूष प्रियदर्शी के अनुसार घोसवरी प्रखंड के तारतर गांव में अनंत सिंह आए थे। इसी गांव से अनंत सिंह का काफिला निकला। पीयूष प्रियदर्शी कहते हैं बसावनचक गांव से मेरा काफिला जा रहा था, मेरे साथ दुलारचंद यादव भी थे। यह मोकामा विधानसभा क्षेत्र के टाल का इलाका है। दोनों का काफिला तारतर और बसावनचक गांव के बीच में टकराया। अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद पटना के एसएसपी कार्तिकेय शर्मा ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में कहा, दुलारचंद की हत्या जहां हुई वहां अनंत सिंह मौजूद थे। अनंत सिंह इस मामले में मुख्य अभियुक्त हैं। रविवार को अनंत सिंह को गिरफ्तार कर पटना की सीजेएम की अदालत में पेश किया गया और अदालत ने अनंत सिंह व उनके दो अन्य साथियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। आदेश के बाद तीनों को बेऊर जेल भेजा गया। मोकामा के जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह के साथ ही मणिकांत ठाकुर और रंजीत कुमार को शनिवार देर रात गिरफ्तार किया गया था। तारतर दुलारचंद का गांव है। दो बाहुबलियों के बीच पीयूष का चुनाव लड़ना बताता है कि वह किसी से डरते नहीं हैं। भूमिहारों के बाद धानुकों की तादाद अच्छी खासी है। धानुक उनके साथ हैं। दुलारचंद के पोते नीरज यादव ने आरोप लगाया है कि अनंत सिंह के साथ रंजीत राम और मणिकांत ठाकुर की गिरफ्तारी मामले में नया जातीय मोड़ देने के लिए की गई है। यह उलझाने के लिए किया गया है कि इसमें दलित भी शामिल हैं। अनंत सिंह के साथ जिन दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वे नदावां गांव के हैं। नदावां अनंत सिंह का पैतृक गांव है। गीता ने बीबीसी को बताया कि उन्हें रविवार सुबह पता चला कि उनके पति को गिरफ्तार कर लिया गया है। गीता कहती हैं कि मेरे पति अनंत सिंह के लिए खाना बनाते थे। उनका यही गुनाह है। अनंत सिंह को जेल में कोई सेवा करने के लिए चाहिए, इसलिए दोनों को पुलिस साथ ले गई है। 58 साल के अनंत सिंह और उनके परिवार का मोकामा विधानसभा क्षेत्र में पिछले 35 सालों से दबदबा है। अनंत कुमार 1990 के दशक में तब चर्चा में आए जब उन पर कई गंभीर आरोप लगे। उनके खिलाफ हत्या, अपराध के दर्जनों मामले हैं। जिसमें एके-47 बरामदगी भी शामिल है। सूरजभान सिंह ने सन 2000 में मोकामा से अनंत सिंह के भाई को हराकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। सूरजभान सिंह भी हत्या, रंगदारी के मामले में घिरे रहे हैं। दुलारचंद यादव ने 1990 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन मामूली अंतर से अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह से हार गए थे। 1991 से 2010 के बीच उन पर हत्या, अपहरण, रंगदारी से जुड़े 11 मामले दर्ज हुए थे। 1990 से अब तक मोकामा सीट का इतिहास बाहुबल, प्रभाव और बदले की राजनीति से भरा हुआ है। इसीलिए इन बाहुबलियों को गैंग्स ऑफ मोकामा कहा जाता है।
-अनिल नरेन्द्र