Thursday 25 April 2024

हम संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं


इंडिया गठबंधन ने रविवार को रांची में आयोजित उलगुलान न्याय रैली में अपनी ताकत और एकजुटता दिखाई। एक मंच पर इकट्ठा हुए गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने इस बार के लोकसभा चुनाव को संविधान और लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बताते हुए केन्द्र की मौजूदा सत्ता को बदलने की अपील की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आतंकित करने की कोशिश करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) नेता ने विपक्षी गठबंधन इंडिया से अलग होने के बजाय जेल जाना पसंद किया। इससे पहले सतना में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दावा किया कि यदि मोदी-शाह सरकार फिर से सत्ता में आई तो देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। झारखंड मुfिक्त मोर्चा की मेजबानी में आयोजित रैली में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने अपने पति हेमंत सोरेन का जेल से भेजा संदेश पढ़ा। हेमंत सोरेन ने अपने संदेश में कहा, उन्हें बेबुनियादी आरोपों में ढाई महीनों से जेल में बंद करके रखा गया है। आजादी के बाद ये पहली बार है जब विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव के ठीक पहले जेल में डाला जा रहा है। लेकिन हम जेल से डरने वाले नहीं हैं। हेमंत सोरेन ने कहा हमने केन्द्र से अपना हक मांगा तो उसके बदले में हमारे साथ यह सलूक हुआ। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने कहा कि विपक्षी गठबंधन इंडिया भाजपा की तानाशाही के खिलाफ लड़ेगा और जीतेगा। सुनीता ने रैली में कहा, वे मेरे पति अरविंद केजरीवाल को मारना चाहते हैं। उनके भोजन पर कैमरे से निगरानी रखी जा रही है। उन्होंने दावा किया है कि उनके पति को जन सेवा का काम करने के लिए जेल में डाल दिया गया और उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं किया जा सका। हम तानाशाही के खिलाफ लड़ेंगे और जीतेंगे। जेल के ताले टूटेंगे और अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन जेल से छूटेंगे। यूपी के पूर्व सीएम सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि इस बार जनता तानाशाही ताकतों के खिलाफ वोट करेगी। हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के साथ केन्द्र सरकार ने अन्याय किया है। इस अन्याय का बदला जनता एक-एक वोट से लेगी। उन्होंने चुनाव को लोकतंत्र और संविधान की लड़ाई बताया। बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि केन्द्र की सरकार बिहार से लेकर झारखंड और दिल्ली तक विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल रही है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो संविधान बनाया था, आज उस पर खतरा मंडरा रहा है। उलगुलान महारैली में मंच पर दो कुर्सियां हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के लिए खाली रही। इसकी चर्चा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी की। तेजस्वी यादव ने कहा कि यहां रैली में जहां तक नजर जा रही है, जनसैलाब नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि यह भीड़ बता रही है कि झारखंड ने मूड बना लिया है। भाजपा भगाओ देश का लोकतंत्र बचाओ।

-अनिल नरेन्द्र

सपा और बसपा क्या मौका तलाश रही हैं?


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ ठाकुर बिरादरी के नेताओं का गुस्सा दिख रहा है। पार्टी ने इस बिरादरी के उम्मीदवारों को उम्मीद से कम टिकट दिए हैं। इससे ठाकुरों में नाराजगी की खबरें आ रही हैं। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। अखबार लिखता है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को इस नाराजगी में अपने लिए मौका नजर आ रहा है और वे ऊंची जातियों के उम्मीदवारों से संपर्क बढ़ाने की कोशिश में लग गई है। खबर के मुताबिक रविवार को गाजियाबाद में मायावती ने एक रैली में भाजपा पर क्षत्रियों (ठाकुर, राजपूत) की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने टिकट बंटवारे में हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। अखबार लिखता है कि गाजियाबाद के बीएसपी उम्मीदवार नंद किशोर पुंडीर ठाकुर हैं जबकि बागपत के बीएसपी उम्मीदवार प्रवीण बंसल गुर्जर हैं। मायावती ने कहा यूपी की ऊंची जातियों में क्षत्रिय समुदाय के लोगों की आबादी काफी ज्यादा है और ये देखना निराशाजनक है कि इस बिरादरी को समर्थन देने का दावा करने वाली भाजपा ने उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन्हें काफी कम टिकट दी है। उन्होंने कहा गाजियाबाद में हमने क्षत्रिय उम्मीदवार को टिकट दिया है। पहले हमने पंजाबी कैंडिडेट उतारा था लेकिन फिर हमें लगा कि उनकी संख्या लखीमपुर खीरी में ज्यादा है इसलिए वहां हमने पंजाबी सिख उम्मीदवार को टिकट दिया। मायावती ने कहा कि वो क्षत्रिय समुदाय की उन महापंचायतों का समर्थन करती हैं जो उन पार्टियों का समर्थन करने की बात कर रही हैं जो ठाकुर उम्मीदवार उतार रही हैं। मायावती का ये बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने अपनी रैलियों में ठाकुरों की मौजूदगी पर टिप्पणी की थी। उन्होंने नोएडा की एक रैली में कहा था मैं उनके सिर पर सम्मान की पगड़ी देख रहा हूं जो लोग पारंपरिक रूप से दूसरे दलों के लिए वोटिंग करते थे, वे आज यहां हैं। मैं उनकी राजनीतिक चेतना के प्रति आभारी हूं। इस बार वो साइकिल का समर्थन करने जा रहे हैं। बीएसपी ने गौतमबुद्ध नगर में क्षत्रिय समुदाय के राजेन्द्र सोलंकी पर दांव लगाया है। सोलंकी ने कहा है कि इस सीट पर 4.5 लाख वोटर हैं। बीएसपी उनसे जुड़ने की पूरी कोशिश कर रही है। पिछले शुक्रवार को यूपी की जिन आठ सीटों पर वोटिंग हुई उनमें सिर्फ एक ठाकुर उम्मीदवार कुंवर सर्वेश सिंह को मुरादाबाद सीट पर भाजपा ने टिकट दिया था। मतदान के बाद सर्वेश सिंह का निधन हो गया था। 26 अप्रैल को जिन आठ सीटों पर वोटिंग होगी उनमें भाजपा की तरफ से कोई भी ठाकुर उम्मीदवार नहीं है। इन उम्मीदवारों में दो ब्राह्मण, दो वैश्य, एक गुर्जर और एक जाट बिरादरी के उम्मीदवार हैं। पश्चिमी यूपी में ठाकुर बिरादरी के जिस बड़े नेता का इस बार भाजपा की ओर से टिकट काटा गया। उनमें भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वीके सिंह शामिल हैं। भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि पार्टी के बीच असंतोष का अहसास हो गया है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता ठाकुरों को मनाने में जुट गए हैं ताकि ठाकुरों की वोटों का नुकसान कम से कम हो।

Tuesday 23 April 2024

पप्पू यादव ने मुकाबले को रोचक बनाया


पप्पू यादव की निर्दलीय उम्मीदवार मौजूदगी ने पूर्णिया चुनाव को रोचक बना दिया है। सोमवार को नाम वापसी की अंतिम तारीख थी। लेकिन पप्पू यादव ने अपना पर्चा वापस नहीं लिया। अब अपने चुनाव निशान कैंची लेकर घूम रहे हैं। कहते हैं कि इसी की धार से महागठबंधन और राजग उम्मीदवारों की जीत को काटूंगा। पूर्णिया की देवतुल्य जनता बतौर निर्दलीय प्रत्याशी एक बार फिर मुझे संसद भेजेगी। इससे राजद और कांग्रेस दोनों के नेताओं में तनाव है। पप्पू यादव कहते हैं कि पूर्णिया से मुझे असीम प्यार है और मुझे एक बच्चे की तरह पूर्णिया के लोग देखते हैं। यहां हिन्दू-मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं है। यही कारण है कि सभी मुझे बेहद प्यार करते हैं और मेरे दिल में भी पूर्णिया बसा है। यहां से इंडिया गठबंधन की बीमा भारती ने पर्चा भरा है। वे राजद उम्मीदवार हैं। पांच दफा विधायक रही बिहार में मंत्री रहीं। इस दफा वे रुपौली की विधायक सीट जद (एकी) की टिकट पर जीती थीं। उससे इस्तीफा देकर राजद की लालटेन थाम ली और राजद ने सीट बंटवारे के पहले ही इन्हें चुनाव चिह्न दे दिया था। ये भी चुनावी रण में डटी हैं। इनका पर्चा दाखिल कराने तेजस्वी यादव खुद आए थे। बताते हैं कि हालांकि लालू प्रसाद और राहुल गांधी के समझाने पर भी निर्दलीय तौर पर पप्पू यादव ने पर्चा दाखिल कर दिया। अब दिक्कत यह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बीमा भारती के लिए प्रचार के लिए जनसभा करने का न्यौता दिया गया है। क्या राहुल राजद उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने आते हैं या नहीं यह देखना है। इन दोनों का मुकाबला जद (एकी) उम्मीदवार व निवर्तमान सांसद संतोष कुशवाह से है। पूर्णिया के मतदाता उन्हें फिर निर्वाचित करती है या नहीं? लेकिन मुकाबला तिकोना होने की संभावना है। वैसे 1999 वाली स्थिति भी पूर्णिया दोहरा सकती है। इस चुनाव में पप्पू यादव ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत हासिल की थी। वैसे बीमा भारती के पति अवधेश मंडल आपराधिक छवि के हैं। इनके खिलाफ विभिन्न थानों में एक दर्जन मामले दर्ज हैं। वहीं पप्पू यादव की छवि भी दबंग नेता की रही है। वामदल विधायक अजीत सरकार की हत्या मामले में सजा होने की वजह से 2009 का चुनाव नहीं लड़ सके थे। 2013 में ऊपरी अदालत से ये बरी हो गए थे। पप्पू यादव के मैदान में रहने से पूर्णिया का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। सबसे ज्यादा दुविधा कांग्रेस को है जिसने पप्पू को यहां से लड़ाने के लिए वादा किया था। यही नहीं पप्पू यादव ने अपनी पूरी पार्टी को भी कांग्रेस में मिला दिया था। राजद को भी कांग्रेस की मजबूरी समझनी चाहिए थी और पूर्णिया की सीट कांग्रेस को दे देनी चाहिए थी। खैर, जो होना था सो हो गया। अब देखें कि ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

राज वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं दिग्गी राजा


दिग्विजय सिंह देश के उन गिने-चुने नेताओं में हैं जो सियासत में पांच दशक से ज्यादा वक्त गुजार चुके हैं। राजनीति में दिग्गी राजा के नाम से मशहूर दिग्विजय सिंह की उम्र 77 वर्ष है। इस आयु में भी राजगढ़ लोकसभा सीट से बतौर कांग्रेsस उम्मीदवार पैदल गांव-गांव प्रचार कर रहे हैं। उनकी फिटनेस की सिर्फ समर्थक ही नहीं, बल्कि विरोधी भी तारीफ करते हैं। 2014 से यह सीट भाजपा के पास है। राघोगढ़ राजपरिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह के पिता राजा बलभद्र सिंह को हिन्दु महासभा का करीबी माना जाता था कि दिग्विजय सिंह जनसंघ में अपनी राजनीति पारी शुरू करेंगे पर उन्होंने कांग्रेस का चुनाव किया। सिर्फ 22 साल की उम्र में राघोगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष पद से सियासत की शुरुआत करने वाले दिग्विजय सिंह को जनसंघ में शामिल होने के कई ऑफर मिले पर वह हमेशा जनसंघ के इन ऑफर को ठुकराते रहे। दिग्विजय सिंह के पिता की प्रदेश कांग्रेsस के नेता गोविंद नारायण से दोस्ती थी। शायद इसलिए दिग्विजय सिंह का रुझान कांग्रेस की तरफ गया और वह 1977 में पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह लगातार चार बार विधायक रहे। इस बीच उन्हें युवा कांग्रेsस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1980 में चुनाव जीतने के बाद वह अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री बने। 1984 और 1991 में राजगढ़ सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे। अपने बयानों की वजह से अमूमन सुर्खियों में रहने वाले दिग्गी राजा 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद पार्टी को प्रदेश में सत्ता तक पहुंचाने में पूरे 15 साल इंतजार करना पड़ा। वर्ष 2018 के चुनाव में कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने पर पार्टी में बगावत के कारण 2020 में सत्ता एक बार फिर भाजपा के हाथ लग गई। इस बीच दिग्विजय सिंह कांग्रेस संगठन में कई जिम्मेदारी संभालते रहे। 2014 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। राजगढ़ सीट पर दिग्विजय सिंह का मुकाबला 2014 और 2019 में जीत दर्ज कर चुके रोडमल नागर से है। 2019 में नागर को 65 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेsस की मोना सुस्तानी सिर्फ 31 फीसदी वोट हासिल कर पाई थीं। दिग्विजय सिंह इससे पहले इस सीट से 1984, 1989 और 1991 में चुनाव लड़ चुके हैं। 1989 का चुनाव वह भाजपा के प्यारे लाल खंडेलवाल से हार गए थे। वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था और उसके बाद उप चुनाव में दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। पूरे 33 साल बाद राजगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने की दिग्विजय सिंह की कहानी भी दिलचस्प है। वह इस बार चुनाव लड़ने के हक में नहीं थे पर जब पार्टी ने तय किया कि सभी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव मैदान में उतरना होगा तो दिग्विजय ने पार्टी का निर्णय स्वीकार करने में देरी नहीं की। मध्य प्रदेश कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव में हार के डर से अपने हथियार डाल दिए हैं।

Saturday 20 April 2024

जेडीयू दिग्गज नेता बनाम बाहबुली की बीवी


आमतौर पर लोग घर बसाने के लिए शादी करते हैं, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए शादी की जाए तो मामला अनोखा जरूर बन जाता है। इसी शादी की वजह से मौजूदा लोकसभा चुनाव में बिहार की जिन सीटों की सबसे ज्यादा चर्चा है, उनमें मुंगेर लोकसभा सीट भी शामिल है। इस सीट पर आरजेडी ने कुछ ही महीने जेल से जमानत पर बाहर आए अशोक महतो की पत्नी अनिता देवी को टिकट दिया है। जबकि जेडीयू ने अपने मौजूदा सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारा है। ललन सिंह पिछले साल जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष थे। भाजपा ने आरोप लगाया था कि आरजेडी से करीबी की वजह से ललन सिंह को अध्यक्ष के पद से हटाया गया था। अशोक महतो का ताल्लुक साल 2000 के आसपास बिहार के बांद्रा, शेखपुरा, जमुई और आसपास के इलाकों में सक्रीय उस महतो गुट से रहा है, जो पिछड़ी जातियों का समर्थक था। बिहार के करीब 20 साल पहले तक अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच कई खूनी संघर्ष हुए थे। बिहार में गैंगवार और एसपी अमित लोढ़ा का वो सच जिस पर बनी फिल्म खाकी ः ‘द बिहार चैप्टर’ है। अशोक महतो को साल 2001 में नवादा जेल ब्रेक कांड में दोषी ठहराया गया था। बिहार में इस संघर्ष पर ओटीटी पर वेब सीरीज खाकी ः द बिहार चैप्टर भी आ चुकी है। अशोक महतो नवादा जेल ब्रेक कांड में करीब 17 साल जेल की सजा काट चुके हैं। उन्होंने कुछ ही दिन पहले शादी भी कर ली जिसके बाद उनकी पत्नी चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर जेडीयू के मौजूदा सांसद ललन सिंह भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। मुंगेर सीट पर भूमिहार वोटों का बड़ा असर माना जाता है। जेडीयू के ललन Eिसह का दावा है कि मुंगेर में उनका कोई मुकाबला नहीं है और जनता विकास के नाम पर वोट करेगी। साल 2014 में मुंगेर सीट पर बाहुबली नेता माने जाने वाले भूमिहार नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को हटा दिया था। यह भी एक संयोग है कि मुंगेर लोकसभा सीट पर जिन दो उम्मीदवारों के बीच सीधे मुकाबले की संभावना है, उनमें से एक भूमिहार बिरादरी से हैं जबकि दूसरा महतो समुदाय से। ललन सिंह के मुताबिक मुंगेर के लोग मानते हैं कि नीतीश कुमार विकास के प्रतीक हैं। इसलिए मुंगेर में कोई लड़ाई नहीं है। 4 जून को चुनाव परिणाम बता देगा कि मुंगेर की जनता विकास के साथ है या नहीं। प्रजातंत्र में जनता मालिक है। जनता सब देखती है, उसी को फैसला करना है, ललन सिंह को नीतीश कुमार के काफी करीबी माना जाता है। मुंगेर सीट पर लोकसभा चुनावों के चौथे चरण में 13 मई को वोटिंग होनी है। गंगा के किनारे बसा यह इलाका किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन साल 1964 में मुंगेर सीट पर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी नेता मधुकर रामचंद्र लिमये (मधु लिमये) की जीत ने इस सीट को पूरे देश में सुर्खियों में लगा दिया था। मुंगेर में अभी चुनाव प्रचार ठंडा है, अंभी जोर नहीं पकड़ा है। प्रचार में जब तेजी आएगी तब माहौल का सही पता लग पाएगा। इस सीट पर भूमिहार वोटरों की भूमिका अहम हो गई है। कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, यादव, मुस्लिम भी अच्छी तादाद में हैं।

-अनिल नरेन्द्र

बॉलीवुड की क्वीन या हिमाचल के प्रिंस


कंगना रनौत मेरे बारे में कहती हैं कि मैं राजा का बेटा हूं। मेरे पिता वीरभद्र सिंह सिर्फ रामपुर बुशहर सियासत के राजा नहीं थे, वो हिमाचल प्रददेश के दिलों के राजा थे और मुझे गर्व है कि मैं उनका बेटा हूं। हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री और मंडी लोकसभा सीट के कांग्रेस के प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह रामपुर बुशहर में इकट्ठा लोगों को संबोधित कर रहे थे। शनिवार शाम को कांग्रेस की ओर से मंडी लोकसभा सीट का प्रत्याशी बनाए जाने के अगले दिन वह अपने प्रचार अभियान का आगाज कर रहे थे। भाजपा की ओर से टिकट दिए जाने के बाद से ही यह माना जाना लगा था कि कांग्रेsस इस बार उनकी मां और वर्तमान सांसद प्रतिभा सिंह के बजाए विक्रमादित्य सिंह को मंडी से उतार सकती है। वजह ये थी कि विक्रमादित्य ने सिर्फ कंगना रनौत के पुराने बयानों को उठाते हुए उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। फिर कंगना ने भी सीधे विक्रमादित्य सिंह पर निशाना साधना शुरू कर दिया। मंडी लोकसभा सीट में छह जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से तीन विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं और पांच अनुसूचित जाति के लिए। हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर आखिरी चरण के तहत मतदान होगा लेकिन मंडी लोकसभा सीट पर सियासी पारा लगातार चढ़ रहा है। कंगना और विक्रमादित्य एक-दूसरे पर तीखे जुबानी हमले कर चुके हैं। कई बार उनके बयान निजी हमलों की शक्ल में भी होते हैं। जहां विक्रमादित्य सिंह ने कंगना रनौत को मौसमी राजनेता बताते हुए उन पर बीफ खाने का आरोप लगाया, वहीं कंगना ने उनसे सबूत मांगते हुए उन्हें छोटा पप्पू और राजा बेटा कह दिया। एक-दूसरे पर जुबानी हमलों के मामलों में दोनों अभी तक एक से एक बढ़कर नजर आ रहे हैं। कंगना की बोलचाल में राजनेताओं जैसी बात नहीं दिखती, हालांकि अब वह लोगों से स्थानीय बोली में बात कर रही हैं, जिससे लोगों को अपनापन लग सकता है। वह कहते हैं, कंगना एक सेलिब्रिटी हैं तो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए जुट रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके लिए ये लड़ाई एक-तरफा है। लोगों ने हिमाचल के साथ लगते पंजाब के गुरदास पुर का भी उदाहरण देखा है। जहां अभिनेता सन्नी देओल पर चुनाव जीतने के बाद वापस अपने हलके की ओर न देखने के आरोप लगे थे। हिमाचल के लोग चाहते हैं कि नेता उनके दुख-सुख में शामिल हों। ऐसे में लोग कंगना को सिर्फ अभिनेत्री होने के कारण वोट दे देंगे, ऐसा लगता नहीं है। विक्रमादित्य के पिता वीरभद्र सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे और तीन बार मंडी लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। हालांकि खुद को कांग्रेस का वफादार बताने वाले विक्रमादित्य पर पिछले दिनों सवाल खड़े हो गए थे। विक्रमादित्य सिंह के उतरने के कारण हालात बदल गए हैं। वे युवा हैं, राज्य सरकार के मंत्री हैं और सबसे बड़ी बात वह वीरभद्र सिंह के बेटे हैं। इन सब बातों से लड़ना कंगना के लिए आसान नहीं है। सक्रिय राजनीति में कंगना नई हैं, जबकि विक्रमादित्य को अपने अनुभव के साथ वीरभद्र सिंह के परिवार से होने का भी लाभ मिलेगा। वो जानते हैं कि हिमाचल की जनता किन बातों से जुड़ाव महसूस करती है, कंगना को इस दिशा में भी मेहनत करनी होगी।

Thursday 18 April 2024

क्षत्रियों ने बढ़ाई भाजपा की धड़कने


लोकसभा चुनाव जीतने के लिए एक-एक वोट पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे भाजपा के नेताओं के सामने क्षत्रिय संगठनों ने परेशानी खड़ी कर दी है। गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय संगठन आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए थोड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। दरअसल केन्द्राrय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने क्षत्रियों को लेकर ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे क्षत्रिय समाज के लोग आंदोलन पर उतर आएं हैं। गाजियाबाद के सांसद बीके सिंह का टिकट कटने से क्षत्रिय पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में आंदोलन कर रहे हैं। रूपाला 22 साल के बाद चुनावी राजनीति में उतरे हैं। वह गुजरात दंगों के बाद चुनाव हार गए थे। तब से वह राज्यसभा में ही रहे हैं। इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यसभा कोटे से मंत्री बने नेताओं को चुनाव में उतारा है। पुरुषोत्तम रुपाला को राजकोट से चुनावी मैदान में उतारा गया है। रुपाला ने एक सभा में कहा कि आजादी के आंदोलन में दलित मोर्चे पर डटे रहे लेकिन क्षत्रियों ने घुटने टेक दिए थे। वह यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि क्षत्रियों का मुगलों के साथ रोटी-बेटी का भी रिश्ता था। रुपाला के इस बयान से बवाल मच गया। राज्य के अनेक संगठन ने रुपाला के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राजपूत के संगठन करणी से ना भी राजकोट में प्रदर्शन कर रही है। पुलिस और करणी सेना के बीच झड़प भी हुई है। रुपाला ने माफी मांग ली है लेकिन राजपूत संगठन उनका टिकट बदलने की मांग कर रहे हैं। रुपाला के बयान को कांग्रेस खूब भुना रही है। पार्टी के नेता जगह-जगह घूमकर रुपाला के बयान को हवा दे रहे हैं। गुजरात में लगभग सभी सीटों पर पांच से आठ प्रतिशत ठाकुर हैं। कुछ सीटों पर उनकी संख्या ज्यादा है। अब भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात दौरे से विवाद पर विराम लगेगा और क्षत्रियों की नाराजगी दूर होगी। क्योंकि सभी गुजराती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात गौरव मानते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री के कहने पर सभी की नाराजगी दूर हो जाएगी। ऐसी उम्मीद की जा रही है। उत्तर प्रदेश में भी जनरल बीके सिंह के टिकट कटने से क्षत्रिय आंदोलन कर रहे हैं। क्षत्रिय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय सम्मेलन कर भाजपा को हराने का आह्वान कर रहे हैं। उनकी नाराजगी दूर करने की तरकीब तलाशी जा रही है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमान, दलित और जाट अधिक संख्या में हैं। भाजपा के साथ अगड़ा वोट पक्की तरह से जुड़ा है। भाजपा नहीं चाहती कि अगड़ी जाति का एक भी वोट उनके कोटे से दूसरी जगह जाए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को क्षत्रिय समाज को समझाने की जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा ने अभी तक ब्रजभूषण शरण सिंह का टिकट फाइनल नहीं किया है। कैसरगंज सांसद का आजकल जबरदस्त प्रभाव है। महिला पहलवानों के आरोपों के कारण भाजपा हरियाणा में रिस्क नहीं लेना चाहती है। भाजपा उनके बदले उनकी पत्नी या बेटे को टिकट देने को तैयार है। लेकिन ब्रजभूषण शरण सिंह इसके लिए तैयार नहीं हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भाजपा के लिए एक-एक सीट का प्रश्न बना हुआ है। इसलिए वह सिर्फ किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहती। आश्चर्य नहीं होगा कि अंत में ब्रजभूषण शरण सिंह को ही टिकट दे दिया जाए। हरियाणा में 20 मई को और कैसरगंज में 25 मई का चुनाव है। मामला फंसा है लेकिन पार्टी राजपूतों को खुश करने के लिए ब्रजभूषण पर दांव लगा सकती है?

- अनिल नरेन्द्र