Anil Narendra Blog
AAJ KI AWAZ आज की आवाज़
Thursday 10 October 2024
सिर्फ सरकार की आलोचना पर केस नहीं हो सकता
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पत्रकारिता कर रहे लोगों के लिए सुकून दे ही, हो सकती है कि सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गत शुक्रवार को कहा कि पत्रकारों के अधिकारों को देश के संविधान 19(1) के तहत संरक्षित किया गया है। एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में मानकर उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। साथ ही निर्देश दिया कि राज्य प्रशासन उनके लेख के संबंध में कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति एनवीएन भट्टी की पीठ ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया है। पीठ ने याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब पांच नवम्बर को होगी। अपने संक्षिप्त आदेश में पीठ ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ प्रासंगिक टिप्पणियां की। पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकारों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत संरक्षित किया जाता है। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन से सरकार की आलोचना के रूप में माना जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं लगाया जाना चाहिए। दरअसल, सरकारों को अपनी आलोचना करनी रास नहीं आती, मगर पिछले कुछ वर्षों में सरकारें इसे लेकर प्रकट रूप से सख्त नजर आने लगी हैं। सरकार के खिलाफ अखबारों में खबरें, लेख या कोई वैचारिक टिप्पणी करने पर कई पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएं सामने आई हैं। यहां तक कि कुछ पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम के तहत भी मुकदमें दर्ज किए गए हैं, जिसमें जमानत मिलना मुश्किल होती है। इस धारा के तहत कई पत्रकार अब भी सलाखों के पीछे हैं। कुछ मामलों में पहले ही सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं माना जा सकता। मगर किसी सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। किसी देश की पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र है और कितने साहस के साथ अपने सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना कर पा रही है, उससे उस देश की खुशहाली का भी पता चलता है। यह उदाहरण नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व खुशहाली सूचकांक में भारत निरंतर नीचे खिसकता गया है। सवाल यह है कि सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय की नसीहत को कितनी गंभीरता से लेती है और स्वतंत्र पत्रकारिता करने की इजाजत देती है?
-अनिल नरेन्द्र
ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड का एक साल
यह नाम था हमास के उस ऑपरेशन का जो उसने पिछले साल यानि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला किया था। पिछले साल सात अक्टूबर को हुए हमले को एक साल पूरा हो चुका है। एक साल हो गया जब हमास ने इजरायल पर हमला कर 1200 लोगों की हत्या कर दी थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया था। इजरायल ने इसके जवाब में गाजा में बड़े पैमाने पर हवाई और जमीनी हमले करके गाजा को लगभग मिट्टी में मिला दिया। हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इसमें 41,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए। इजरायल हमास युद्ध की वजह से फिलस्तीन का गाजा शहर आज मलबों के ढेर में तब्दील हो गया है। पिछले एक साल में इस शहर में 4.2 करोड़ टन से भी अधिक मलबा जमा हो गया है। इसमें टूटी और ध्वस्त दोनों इमारतें शामिल हैं। चिंता की बात है कि मलबा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के उपग्रह डाटा के मुताबिक गाजा की युद्ध पूर्व संरचनाओं में से दो तिहाई यानि 1,63,000 से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं या ढह गई हैं। इनमें से करीब एक तिहाई ऊंची इमारतें थीं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने गाजा के आठ शरणाथी शिविरों के आंकलन का हवाला देते हुए कहा कि करीब 23 लाख टन मलबा दूषित हो सकता है। इसमें से कुछ नुकसानदायक भी है। धूल एक गंभीर चिंता है। यह पानी और मिट्टी को दूषित कर सकती है। फेफड़े की बीमारी का कारण बन सकती है। मलबे में ऐसे शव हैं, जो बरामद नहीं हुए हैं। फिलस्तीन स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन शवों की संख्या करीब 10,000 है। कुछ बम भी हैं, जो फटे नहीं। यानि सात अक्टूबर के दिन ही पिछले साल हमास ने इजरायल पर हमला किया था और उसके बाद इजरायल ने हमास पर अटैक शुरू किया जो अब इजरायल के लिए सात फ्रंट वार में तब्दील हो गया है। एक साल से मध्य पूर्व में तनाव लगातार बढ़ ही रहा है और पिछले हफ्ते इजरायल पर ईरान की तरफ से हुए मिसाइल अटैक के बाद तो राकेट और मिसाइलों के हमलों से संकट और गहरा गया है। इजरायल ने अभी तक ईरान में जवाबी कार्रवाई की नहीं है लेकिन खतरा लगातार बना हुआ है। सवाल यह है कि अगर इजरायल ईरान पर हमला करता है तो ईरान भी जवाबी कार्रवाई करेगा। हमास और हिज्बुल्लाह और हूती मिलकर एक साथ अटैक का प्लान कर रहे हैं। जिस तरह इजरायल छह फ्रंट पर एक साथ लड़ रहा है उससे किसी भी तरफ के अटैक की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके लिए इजरायल ने अमेरिका और नाटो देशों की मदद से पुख्ता तैयारी कर रखी है। देखना यह है कि मध्य-पूर्व में जंग का विस्तार होता है या यह सीमित रहती है। सारा खेल पिछले साल 7 अक्टूबर को ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड से शुरू हुआ है।
Tuesday 8 October 2024
हाथ में राइफलöमुस्लिम देशों से अपील
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई करीब पांच साल बाद जुमे की नमाज के दिन सार्वजनिक तौर पर उपस्थित हुए। खामेनेई की यह सार्वजनिक मौजूदगी इसलिए भी खास है क्योंकि इजरायल और ईरान के बीच तनाव के माहौल में उनके भूमिगत हो जाने की अटकले लगाई जा रहीं थीं। इन अटकलों के पीछे की वजह कुछ दिनों के अंदर ही हमास और हिज्बुल्लाह के कई वरिष्ठ नेताओं और कमांडरों की हत्या भी है। ईरान इसके लिए इजरायल को दोषी ठहराता है और इसी का बदला लेने के लिए उसने इजरायल पर जबरदस्त मिसाइली हमला किया था। ईरान इंटरनेशनल मीडिया ग्रुप के मुताबिक, करीब पांच साल बाद शुक्रवार की नमाज में खामेनेई की पहली बड़ी सार्वजनिक मौजूदगी थी। उसके मुताबिक खामेनेई ने वही पुरानी इजरायल और अमेरिका के खिलाफ भारत समेत उस वैचारिक नैरेटिव की बात कही जो उन्होंने 1979 से जारी रखी है। 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद वहां नई सत्ता कायम हुई थी। ईरान पर नजर रखने वाले लोग मानते हैं कि यह कार्यक्रम खामेनेई के प्रति समर्थन और तेहरान की सुरक्षा को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम का मकसद उन अफवाहों को दूर करना भी था जिसमें कहा गया था कि 28 सितम्बर को बेरुत में हिज्बुल्लाह नेता नसरुल्लाह की मौत के बाद खामेनेई एक गुप्त बंकर में छिपे हुए हैं। इजरायल के प्रमुख अखबार द टाइम्स ऑफ इजरायल लिखता है कि ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने अपने उपदेश के दौरान हाथ में बंदूक लेकर दावा किया कि इजरायल हमास और हिज्बुल्लाह को कभी नहीं हटा पाएगा। खामेनेई ने शुक्रवार को अपने धार्मिक उपदेश में इसी सप्ताह इजरायल पर किए गए मिसाइल हमले का समर्थन किया। इन मिसाइल हमलों की वजह से क्षेत्रीय युद्ध की आशकाएं बढ़ गई हैं। इजरायल किसी भी समय ईरान पर जवाबी हमला कर सकता है। निशाने पर है ईरान के तेल भंडार और परमाणु ठिकाने। द टाइम्स ऑफ इजरायल के मुताबिक खामेनेई ने आतंकी प्रमुखों की हत्या के बाद यह बयान दिया है और कहा है कि ईरान के मिसाइल हमले यहूदी अपराधों की न्यूनतम सजा है। इस अवसर पर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने तेहरान के मुख्य प्रार्थना स्थल मोसल्ला (ग्रेंड मस्जिद) पर हिज्बुल्लाह चीफ नसरुल्ला की याद में नमाज प़ढ़ी। इसके बाद उन्होंने एकत्रित हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के तमाम मुसलमानों को इजरायल के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। खामेनेई ने इस्लामी देशों के साथ देने की अपील करते हुए कहा कि वह इजरायल को खत्म करके रहेंगे। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से यमन और ईरान से गाजा तक साथी देश शत्रु पर कार्रवाई को तैयार हैं। करीब 40 मिनट लंबे भाषण में खामेनेई ने इजरायल पर मंगलवार दागी गई करीब 200 मिसाइलों को ईरान सशस्त्र बलों की शानदार कामयाबी बताया। आयतुल्लाह खामेनेई ने इजरायल से हो रही जंग में मारे जाने वाले लड़ाकों को बहादुर और इस्लाम की राह में कुर्बान होने वाला बताया। उन्होंने कहा लेबनान और फिलस्तीन में रहने वाले आप लोग बहादुर हैं, आप वफादार और धैर्यवान हैं। ये शहादतें और जो खून बहाया गया है, वह आपके और हमारे दृढ़ संकल्प को हिला नहीं सकता। खामेनेई ने अरब देशों को संबोधित करते हुए अपना आधा भाषण अरबी भाषा में ही दिया। उन्होंने इस्लामी देशों की एकजुटता का भी आह्वान किया। न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि खामेनेई ने पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमलों की प्रशंसा की है। उन्होंने फिलस्तीनी इलाकों पर इजरायल के लंबे समय से चले आ रहे कब्जे की वजह से हमास के हमलों को तार्किक, न्यायसंगत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनन वैध बताया।
मामला जग्गी वासुदेव यानि सद्गुरु का
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन आश्रम में दो महिलाओं को कथित तौर पर अवैध रूप से बंधक बनाकर रखने के मामले की पुलिस जांच पर प्रभावी ढंग से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति द्वारा मद्रास हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया, जिसमें आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के परिसर में बंधक बनाकर रखा गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक रिटायर्ड प्रोफेसर कामराज की उस याचिका के बाद ये आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि उनकी दो बेटियां योग केंद्र में हैं और उन्हें बाहर लाया जाए। प्रोफेसर का आरोप है कि उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है और उन्हें सेंटर में कैद करके रखा गया है। लेकिन प्रोफेसर की बेटियों ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि वे ईशा सेंटर में अपनी मर्जी से रह रही हैं। ईशा योग केंद्र ने भी कहा है कि किसी को शादी करने या सन्यास लेने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है, इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को जांच करने के आदेश दिए थे और 4 अक्टूबर को रिपोर्ट जमा करने को कहा था। इसके बाद पुलिस ने ईशा योग केंद्र पर छापा मारा और यह कार्रवाई बुधवार शाम तक चली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को इस तरह से संस्थान में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। कोयम्बटूर के जिला पुलिस अधीक्षक कार्तिकेयन के नेतृत्व में समाज कल्याण विभाग व बाल कल्याण अधिकारियों की संयुक्त टीम ने ईशा योग केंद्र की तलाशी ली थी। जांच रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट में 18 अक्टूबर को जमा करवानी होगी। ईशा योग केंद्र की स्थापना 1992 में जग्गी वासुदेव ने तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के वेलिगिरी में की थी। इस केंद्र में हजारों विवाहित, अविवाहित और कुछ ब्रह्मचार्य पथ पर चलने वाले लोग रहते हैं। बेटियों के पिता कामराज तमिलनाडु विश्वविद्यालय के कृषि इंजीनियर विभाग के पूर्व प्रमुख हैं। उनकी 42 और 39 साल की दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी ने इंग्लैंड के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रोनिक्स में मास्टर्स किया है। साल 2008 में उनका तलाक हो गया था, उसके बाद वह ईशा सेंटर से जुड़ गईं। छोटी बेटी साफ्टवेयर इंजीनियर है। अपनी याचिका में बेटियों के पिता कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों को उनके दिभाग की कार्यक्षमता को कम करने के लिए दवा दी गई थी और इसी वजह से उन्हेंने परिवार से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। आरोप लगाया कि बेटियों को ब्रेनवॉश करके उन्हें जवान संन्यासी बना दिया जाता है और उन्हें अपने माता-पिता से भी मिलने नहीं दिया जाता है। मद्रास हाईकोर्ट में सुनवाई के समय दोनों बेटियां अदालत में मौजूद थीं और उन्होंने कहा कि वह अपनी मर्जी से रह रही हैं और किसी ने उन्हें मजबूर नहीं किया। जजों ने सवाल किया कि सद्गुरु के नाम से जाने वाले जग्गी वासुदेव योग केंद्र में अपनी बेटी की शादी क्यों करते हैं और अन्य महिलाओं को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासी के रूप में रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं? न्यायाधीशों ने अदालत में मौजूद महिलाओं से पूछा था, आप आध्यात्मिक मार्ग पर होने का दावा करती हैं। क्या अपने माता-पिता को छोड़ना पाप नहीं लगता? मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि इसके पीछे की सच्चाई का पता लगाने के लिए आगे की जांच की जरूरत है। ईशा योग केंद्र के एक प्रवक्ता ने एक लिखित बयान में कहा कि ईशा योग केंद्र किसी को शादी करने या संन्यास लेने के लिए मजबूर, प्रोत्साहित या प्रेरित नहीं करता। ईशा योग केंद्र के मुताबिक 2016 के जजों ने कहा था माता-पिता का दायर मामला सच नहीं है और हम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जिन लोगों को हिरासत में लिए जाने का आरोप है, वे अपनी मर्जी से केंद्र में रह रही हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Friday 4 October 2024
कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो
तिरुपति में लड्डू विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नसीहत दी है। राजनेताओं से कहा है कि कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो। यह लोगों की आस्था का मामला है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुबूत मांगते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के इस दावे पर सवाल उठाया कि तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही इस पर सख्त रुख अपनाते हुए चंद्रबाबू नायडू की तीखी आलोचना की। तिरुपति के प्रसाद से जुड़े इस विवाद को आधार बनाते हुए जो पांच याचिकाएं दायर की गई हैं, उन पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई हालांकि जारी है, लेकिन पहले ही दिन कोर्ट की नजर में यह तथ्य आ गया कि प्रसाद में मिलावटी घी के इस्तेमाल का कोई ठोस सबूत अभी तक नहीं पाया गया है। इससे न केवल यह पूरा मामला या विवाद ही निराधार साबित हो रहा है बल्कि यह सवाल भी सामने आया कि आखिर क्यों इस विवाद को तूल दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री से संबंधित दावा 18 सितम्बर को किया, जबकि मामले में प्राथमिकी 25 सितम्बर को दर्ज की गई और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन 26 सितम्बर को किया गया। पीठ ने कहा कि एक अन्य संवैधानिक पदाधिकारी के लिए सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देना उचित नहीं है जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। राजनीति और धर्म को मिलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नायडू ने दावा किया था कि पिछली सरकार के दौरान तिरुपति लड्डू बनाने में इस्तेमाल किया गया घी शुद्ध होने की बजाए जानवरों की चर्बी से युक्त था। अदालत ने सवाल किया कि जांच जब जारी है तो रिपोर्ट आने से पहले आप मीडिया में क्यों गए? लड्डू का स्वाद खराब होने की श्रद्धालुओं की शिकायत की बात उठने पर राज्य सरकार से सवाल किया कि आप कह सकते हैं कि टेंडर गलत तरीके से दिया गया। मगर यह कहना कि मिलावटी घी प्रयोग किया गया, इसका सबूत कहां है? तिरुपति मंदिर देश का एक ऐसा प्रमुख श्रद्धा का केंद्र है, जहां से करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने चंद्रबाबू नायडू पर राजनीति के लिए भगवान का प्रयोग करने और जनता का ध्यान सरकार के कामों से हटाने का आरोप लगाया। मंदिर की पवित्रता को ठेस लगाने वाली ये खबरें श्रद्धालुओं के लिए किसी सदमे से कम नहीं कही जा सकतीं। मगर जैसा शीर्ष अदालत ने कहा है कि धर्म को राजनीति से मिलाने की जरूरत नहीं है। आस्था-विश्वास के प्रति राजनीतिज्ञों को विशेष सतर्कता बरतनी सीखनी चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए लोग ये धर्म का दुरुपयोग जनता को दिग्भ्रमित करने और समुदायों के दरम्यान दरारे डालने वालों पर सख्ती की जानी आवश्यक है। सनसनी फैलाने वाले दोषमुक्त नहीं हो सकते। यदि वास्तव में किसी भी तरह की मिलावट हुई है, तो आस्था से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। इस तरह लोगों की आस्था से खेलकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश वैसे भी हमारे संवैधानिक मूल्यों पर भी आघात है।
-अनिल नरेन्द्र
वांगचुक को हिरासत में लेने पर सियासी संग्राम
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 700 किलोमीटर लंबी दिल्ली चलो यात्रा को लेकर सोनम वांगचुक को दिल्ली के सिंघु बार्डर पर पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हिरासत में लिए जाने से नाराज सोनम वांगचुक मंगलवार को अनशन पर बैठ गए। दरअसल, सोनम वांगचुक सवा सौ साथियों के साथ सोमवार देर रात करीब 11 बजे सिंघु बार्डर पहुंचे थे। इस दौरान आउट नार्थ जिला पुलिस ने उनके काफिले को रोक लिया और वापस जाने के लिए कहा। जब वे नहीं माने तो पुलिस ने सोनम वांगचुक और उनके साथियों को हिरासत में ले लिया। पुलिस सोनम और उनके 40 साथियों को बवाना थाने ले गई। इसके अलावा अन्य को अलग-अलग थानों में रखा गया। सोनम वांगचुक को हिरासत में लेने के बाद सियासत गर्मा गई है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी वांगचुक से मिलने बवाना थाने पहुंचीं, लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पुलिस की कार्रवाई को गलत बताया है। इधर इस मुद्दे पर आक्रामक कांग्रेस ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए इसे तानाशाही रवैया करार दिया। मुख्यमंत्री आतिशी ने वांगचुक की गिरफ्तारी और पुलिस के रवैये पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने मांग की कि लद्दाख और दिल्ली के एलजी राज खत्म हो और दोनों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। चुनी हुई सरकार की प्रतिनिधि को वांगचुक से मिलने नहीं देना निंदनीय है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल और वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने भी भाजपा और केंद्र पर हमला बोला। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में आने से कभी किसानों को रोका जाता है तो कभी लद्दाख के लोगों को। दिल्ली आने का अधिकार सभी को है। निहत्थे शांतिपूर्ण लोगों से आखिर इन्हें क्या डर लग रहा है? वहीं लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने राजधानी में प्रवेश से रोकने के लिए वांगचुक को हिरासत में लेने के कदम को अस्वीकार्य करार दिया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लद्दाख के लोगों की आवाज सुननी पड़ेगी। लद्दाख में वांगचुक के लिए जनसमर्थन की लहर बढ़ी है और संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी समुदायों की सुरक्षा की व्यापक मांग हो रही है। मगर मोदी सरकार अपने करीबी दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए लद्दाख के परिस्थितिकी रूप से संवेदनशील हिमालयी ग्लेशियरों का दोहन करना चाहती है। राहुल गांधी ने कहा कि पर्यावरण और संवैधानिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक पदयात्रा कर रहे सोनम वांगचुक और लद्दाख के लोगों को हिरासत में लेना अस्वीकार्य है। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और कई अन्य को दिल्ली सीमा पर हिरासत में लिए जाने के खिलाफ मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता के वकील ने मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष मामले को सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया। अदालत ने मामले को मंगलवार सूचीबद्ध करने से इंकार करते हुए इस बात पर सहमति व्यक्त की कि यदि अपराह्न साढ़े तीन बजे तक उसके काम की स्थिति सामान्य हो जाती है तो मामले को जल्द की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। उधर वांगचुक अपने साथियों के साथ बवाना थाने में बेमियादी अनशन पर बैठ गए हैं। वांगचुक को बुधवार को रिहा कर दिया गया।
Thursday 3 October 2024
नसरुल्लाह विलेन या हीरो?
लेबनान पर इजरायली हमले वैसे तो सितम्बर के मध्य से ही हो रहे थे, लेकिन 27 सितम्बर की शाम राजधानी बेरुत के घनी आबादी वाले दक्षिणी हिस्से में स्थित हिज्बुल्लाह मुख्यालय में हुए हमले में हिज्बुल्लाह प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह की मौत ने पहले से ही अस्थिर पश्चिम एशिया में स्थितियों को और जटिल तो बनाया ही है, इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध विराम के समर्थकों को भी भारी धक्का लगा है। नसरुल्लाह का मारा जाना हिज्बुल्लाह के लिए ऐसा झटका है, जिससे उभरना उसके लिए आसान नहीं होगा। नसरुल्लाह की मौत से तमाम अरब दुनिया में शोक का माहौल है। बहुत से इस्लामिक देश उसे अपना हीरो मानते थे जो इजरायल से पिछले तीन दशकों से टक्कर ले रहा था। नसरुल्लाह तीन दशक से ज्यादा समय से हिज्बुल्लाह का नेतृत्व कर रहा था। अपने लेबनानी शिया अनुयायियों के आदर्श और अरब तथा इस्लामिक जगत के लाखों लोगों के बीच सम्मानित नसरुल्लाह को सैयद की उपाधि दी गई थी। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देश और इजरायल उसे दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी मानते थे। उसके मरने के बाद कई देशों ने खुशियां मनाई, मिठाइयां बांटी। नसरुल्लाह को इजरायल ने किस बखूबी से मारा वह भी चौंकाने वाला है। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने अपने मुखबिरों से पता कर लिया था कि नसरुल्लाह किस दिन, किस समय, किस घर में होगा। कहा जा रहा है कि मोसाद का गुप्तचर कोई ईरानी हो सकता है क्योंकि ईरान के पास ही नसरुल्लाह की पूरी जानकारी रही होगी। खैर, ठीक समय में इजरायल ने अपने विमानों से बंकर बस्टर बम गिराए। नसरुल्लाह घर की बेसमेंट में एक कांक्रीट बंकर में मीटिंग लेने गया था जब यह बम आ गिरा। इजरायल ने 80 से अधिक बंकर बस्टर बम गिराए। ये बम इतने शक्तिशाली हैं कि जमीन के भीतर 60 फीट तक की गहराई में तथ्य को ध्वस्त कर सकते हैं। यह बम स्टील, कांक्रीट की मोटी दीवारों को तोड़ सकते हैं। ये गाडेड बम तहखाने, बंकर या सुरंगों को उड़ाने के लिए ही अमेरिका ने तैयार किए हैं। कहा जा रहा है कि इजरायल ने जो बम गिराए वह अमेरिका ने उसे दिए हैं। इजरायली सेना और नेतन्याहू सरकार के लिए यह बड़ी कामयाबी मानी जा रही है, मुझे अफसोस इस बात पर भी है। कथित झटके या कामयाबी के बाद भी इस क्षेत्र में शांति की संभावना मजबूत नहीं हुई है। इसके उलट संघर्ष के बेकाबू होने का खतरा है। पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय में हिज्बुल्लाह का नेतृत्व कर रहा नसरुल्लाह मध्य पूर्व के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में शुमार किया जाता था। उसकी कमी की जल्द भरपाई होना भी आसान नहीं है। मगर हिज्बुल्लाह के लिए यह इकलौता झटका नहीं है। हाल के हमलों में उसके एक दर्जन से ज्यादा टॉप कमांडर मारे जा चुके हैं। बहुचर्चित पेजर और वॉकी-टॉकी हमलों ने उसके इंटर कम्युनिकेशन सिस्टम को भी लगभग खत्म कर दिया है। ताजा झटका कितना बड़ा भी क्यों न हो, यह समझना गलत होगा ]िक इससे हिज्बुल्लाह इजरायल के सामने समर्पण कर देगा। कुछ समय पहले तक 12 देशों की ओर से प्रस्तावित युद्धविराम को लेकर जो भी बची-खुची उम्मीद थी, अब वह समाप्त हो गई है। इजरायल अभी रूका नहीं है वह अब लेबनान के अंदर घुसकर पूरा आक्रमण करने जा रहा है, इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। निगाहे ईरान पर भी टिकी हैं, तेहरान के ही गेस्ट हॉउस में हमास नेता इस्माइल हानिया की मौत का बदला भी उसने लेना है, नसरुल्लाह की मौत उसके लिए भी झटका है। देखना होगा कि उसकी प्रतिक्रिया कितनी और कैसी होगी।
-अनिल नरेन्द्र
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