Thursday 28 June 2012

प्रणब मुखर्जी के बिना कांग्रेस और मनमोहन सरकार

श्री प्रणब मुखर्जी ने लगभग चार दशकों से सक्रिय राजनीति से मंगलवार को टा टा कर दिया। उन्होंने वित्त मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया. मंगलवार उनके लिए वित्त मंत्रालय में अंतिम दिन था। अब जब प्रणब दा अपने लम्बे राजनीतिक जीवन से विदा होकर राष्ट्रपति भवन से नई पारी शुरू करना चाहते हैं तो उन्हें इस बात का अफसोस जरूर होगा कि वह देश की अर्थव्यवस्था को ऐसे हाल पर छोड़ रहे हैं जब सामने अंधी सुरंग नजर आ रही है। कुछ घंटों पहले ही उन्होंने रिजर्व बैंक की ओर से बड़ा ऐलान किए जाने की घोषणा की थी, मगर रिजर्व बैंक ने जो उपाय घोषित किए हैं, वह न तो आम जनता में और न ही हमारी अर्थव्यवस्था में कोई नया जोश या दिशा दे सके? कारण चाहे जो भी रहे हों, यूपीए-2 सरकार की शुरुआत से ही निरंतर आर्थिक क्षेत्र में भारत पिछड़ता ही चला गया। बाजार और आर्थिक विश्लेषक, आर्थिक सलाहकार सभी कुछ बड़े नीतिगत फैसलों को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और यह सब तब होता रहा जब वित्त मंत्रालय की कमान प्रणब मुखर्जी जैसे कद्दावर अर्थशास्त्राr के हाथ में रही हो। अब तो उनकी क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं। सवाल तो यह भी उठ रहे हैं कि यूपीए-2 में संकट मोचन की भूमिका निभाने वाले प्रणब मुखर्जी के सक्रिय राजनीति से हटने के बाद मनमोहन सरकार को कौन चलाएगा? सवाल यह भी कांग्रेस में किया जा रहा है कि प्रणब दा का विकल्प कौन होगा? यूपीए सरकार में विभिन्न मंत्रालयों के कामकाज से जुड़े 27 मंत्री समूह (जीओएम) है। इनमें 13 जीओएम की अध्यक्षता दादा करते आए हैं। इसके अलावा उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के भी समूह (ईजीओएम) हैं। इनमें से 12 ईजीओएम के अध्यक्ष प्रणब रहे हैं। माना जा रहा है कि जीओएम और ईजीओएम की जिम्मेदारियां संबंधित विभागों के कैबिनेट मंत्रियों को सौंपने पर विचार चल रहा है। फिर यह भी देखना है कि प्रधानमंत्री वित्त मंत्री किसको बनाते हैं? इसको लेकर दो-तीन नामों की ही चर्चा तेज रही है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी दोनों के विश्वासपात्र हैं। लेकिन 2जी घोटाले और उनके चुनावी विवाद को लेकर पहले से ही वह विवादों में हैं। इसके चलते शायद ही उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। मोंटेक सिंह आहलूवालिया और सी. रंगराजन के नामों की भी चर्चा है। दोनों प्रधानमंत्री के चहेते हैं पर किसी गैर राजनीतिक को यह पद सौंपना शायद खुद कांग्रेसियों को स्वीकार न हो। ऐसे में वाणिज्य मंत्री आनन्द शर्मा की लॉटरी लग सकती है, क्योंकि उन्हें 10 जनपथ और 7 रेस कोर्स रोड दोनों की आशीर्वाद हासिल है। सरकार और पार्टी को सबसे ज्यादा मुश्किल विपक्ष से तालमेल बिठाने की आ सकती है। अकसर प्रणब मुखर्जी ही यह भूमिका निभाते थे। विपक्षी भी उनकी इज्जत, सम्मान करते थे और जो काम प्रणब करवा लेते थे वह कोई और मौजूदा कांग्रेसी करवा पाए इसमें सन्देह है। प्रणब का पार्टी और सरकार से हटना कांग्रेस के लिए एक नई चुनौती है। लोकसभा चुनावों में ज्यादा समय नहीं बचा है। बचा हुआ कार्यकाल ठीक ठाक निकल जाए यह एक चुनौती होगी।

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