Saturday 26 November 2016

नोटबंदी पर सरकार को दिया सुप्रीम कोर्ट ने झटका

नोटबंदी पर केंद्र सरकार को संसद से सड़कों तक, गांवों से अदालत तक झटके ही झटके लग रहे हैं। अदालतें बार-बार केंद्र को झटके दे रही हैं। ताजा झटका बुधवार को तब लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न हाई कोर्टों में नोटबंदी के संबंध में लंबित कार्रवाई पर स्थगनादेश जारी करने की केंद्र की अपील को यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि हो सकता है कि जनता उनसे त्वरित राहत चाहती हो। केंद्र सरकार ने दावा किया कि नोटबंदी सफल है क्योंकि अब तक बैंकों में छह लाख करोड़ रुपए के 500 और 1000 के नोट जमा हो चुके हैं। 30 दिसम्बर तक यह आंकड़ा 10 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे नजरअंदाज करते हुए साफ कहाöहम विभिन्न हाई कोर्टों में दायर याचिकाओं को रोकना नहीं चाहते। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि अदालतें लोगों को तत्काल राहत दे सकती हैं। पीठ के जजों डीवीई चन्द्रचूड़ और एल. नागेश्वर राव ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहाöहमें लगता है कि आपने जरूर कुछ उचित कदम उठाए होंगे? अब क्या स्थिति है? आपने अभी तक कितनी रकम एकत्र की है? इसके जवाब में रोहतगी ने कहा कि स्थिति काफी बेहतर है व नोटबंदी के बाद छह लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि अभी तक बैंकों में आ चुकी है। धन के डिजिटल लेन-देन में काफी उछाल आया है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला 70 सालों में जमा काले धन को हटाने के मकसद से लिया गया है और सरकार हालात पर हर रोज और हर घंटे निगरानी कर रही है। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए दो दिसम्बर की तारीख तय कर दी और याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे उस समय केंद्र की स्थानांतरण की अपील पर अपने जवाब दाखिल करें। उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने 18 नवम्बर को बैंकों और डाक घरों के बाहर लंबी कतारों को गंभीर मुद्दा बताते हुए केंद्र की उस याचिका पर अपनी आपत्ति जताई थी जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि आठ नवम्बर की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर देश में कोई अन्य अदालत विचार नहीं करे। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर और अनिल आर. दवे की पीठ ने संबंधित पक्षों से सभी आंकड़ों और दूसरे बिन्दुओं के बारे में लिखित में सामग्री तैयार करने का निर्देश देते हुए कहा था कि यह गंभीर विषय है जिस पर विचार की आवश्यकता है। देखिए जनता किस तरह की समस्याओं से रूबरू हो रही है। लोगों को हाई कोर्ट जाना ही पड़ेगा। यदि हम हाई कोर्ट जाने का उनका विकल्प बंद कर देते हैं तो हमें समस्या की गंभीरता कैसे पता चलेगी। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि सरकार के अचानक लिए गए इस फैसले ने अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है और आम जनता परेशान, हैरान हो रही है।

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