Friday 7 February 2020

सियाचिन में जवानों को राशन की कमी

कैग की ताजा रिपोर्ट जो सोमवार को संसद में पेश हुई, ने हमारी चिन्ता बढ़ा दी है। बजट की कमी का सामना कर रही भारतीय सेना की सामान आपूर्ति का एक खुलासा हुआ है। सीएजी ने सोमवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सियाचिन, लद्दाख आदि ऊंचाई वाले स्थानों में तैनात जवानों को जरूरी उपकरण के साथ-साथ राशन की भी कमी हुई है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सैन्य दलों को दैनिक ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए राशन की राशि कम दी जा रही है। यह ऊर्जा की जरूरत के आधार पर नहीं बल्कि वहां लागत के आधार पर दिया जा रहा है। वहां राशन की लागत ज्यादा है और ज्यादा लागत में जवानों को कम राशन मिल पाता है जिसकी वजह से उन्हें ऊर्जा की उपलब्धता 82 प्रतिशत तक कम हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जवानों को जरूरी उपकरण उपलब्ध कराने में देरी हुई। इसके चलते या तो जवानों ने पुराने उपकरणों से काम चलाया या बिना उपकरण के रहे। कुछ उपकरणों के मामले में कमी 62 से 98 प्रतिशत दर्ज की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जवानों के लिए जरूरी कपड़ों एवं उपकरणों की उपलब्धता में चार सालों का विलंब किया गया जिससे जवानों के लिए कपड़ों एवं अन्य उपकरणों की कमी हुई। सैन्य बलों को नवम्बर 2015 से सितम्बर 2016 के दौरान बहुउद्देश्य जूते नहीं दिए गए, जिसके चलते उन्होंने अपने पुराने जूतों की मरम्मत कर काम चलाया। इसके अतिरिक्त जवानों के लिए पुराने किस्म के फेस मास्क जैकेट, स्लीपिंग बैग्स आदि खरीदे गए जबकि नवीनीकृत उत्पाद बाजार में उपलब्ध थे। ऐसा करने से विषम परिस्थितियों में तैनात जवान नवीन तकनीकों के लाभ से वंचित रहे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रक्षा प्रयोगशालाओं द्वारा अनुसंधान एवं विकास में पिछड़ने के कारण ऊंचाई पर इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के मामले में सरकार विदेशी आयात पर ही निर्भर रही। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ उपकरणों के मामले में कमी बहुत ज्यादा थी। स्नो गॉग्लस की कमी जांच की अवधि के दौरान 62 से 98 प्रतिशत तक पाई गई जबकि सियाचिन आदि में जवानों के लिए यह बेहद जरूरी है। रिपोर्ट के अनुसार अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर सैनिकों के लिए आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने हेतु परियोजना अस्थायी रूप से निष्पादित की गई। पायलट योजना के तहत तैयार आवासीय परियोजनाओं को उपयोगकर्ताओं को सौंपने में भारी देरी की गई। दरअसल पहले इनके गर्मी और फिर सर्दी के परीक्षण किए गए। इसके बाद इनकी पुष्टि के लिए एक और परीक्षण हुआ। इसमें काफी समय नष्ट हो गया। इसके चलते पहले से ही विषम जलवायु परिस्थितियों में कार्य कर रहे सैनिकों को और दिक्कतें हुईं। हालांकि सेना ने इन सब आरोपों का खंडन किया है। पर समय-समय पर हमारे सैनिक यह कमियां उजागर करते रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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