Tuesday 9 October 2012

गुजरात विधानसभा परिणाम राज्य और केंद्र दोनों की राजनीति तय करेंगे


 Published on 9 October, 2012 
अनिल नरेन्द्र
 चुनाव आयोग ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावों की घोषणा कर दी है। गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए तो विशेष महत्व रखते ही हैं पर साथ-साथ यह देश की भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय कर सकते हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि गुजरात में नरेन्द्र मोदी हैट्रिक कर लेंगे। चुनाव यह भले ही राज्य विधानसभा का हो पर मोदी के लिए यह केंद्र की भी लड़ाई बन गई है। पार्टी के अन्दर राजनीतिक जीत के लिए दोबारा सत्ता में आना भर नहीं बल्कि पहले से भी बड़ी जीत हासिल करना कुछ मायनों में ज्यादा जरूरी हो सकता है वरना गुजरात जीतकर भी वह केंद्र की लड़ाई हार सकते हैं। यूं तो 2007 का चुनाव मोदी के लिए बहुत मुश्किल था, लेकिन इस बार उन पर दो मोर्चों को फतह करने की चुनौती है। दरअसल विपक्ष ही नहीं खुद भाजपा भी उनकी राजनीति से परहेज का संकेत देने लगी है। सूरजपुंड में राष्ट्रीय परिषद की हालिया बैठक में तब यह स्पष्ट हो गया था जब लाल कृष्ण आडवाणी और राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी उस धर्मनिरपेक्ष छवि की बात की थी जिससे दूसरे दल भी आश्वस्त हो सकें। पार्टी के अन्दर भी उन्हें लेकर खेमा बंटा हुआ है। ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो मोदी को केंद्रीय भूमिका से दूर रखना चाहते हैं। ऐसे में अगर गुजरात में भाजपा की सीटें कम हुईं तो मोदी जीतकर भी पार्टी के अन्दर हारे हुए ही माने जाएंगे। यह और बात है कि 12 साल की सत्ता के बाद 182 से 122 सीटों का वर्तमान आंकड़ा दोहराना भी कम मुश्किल नहीं है। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि मोदी की ताकत इस बार कुछ कम होगी। वे अगर अपनी सरकार को बचा ले गए तो सीटों में कमी जरूर होगी। इसका अन्दाजा उन्हें भी है लिहाजा वे बेहद आक्रामक अन्दाज में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व पर हमला कर रहे हैं। अगर कांग्रेस के पास कोई स्थानीय स्तर पर दमदार नेता मौजूद होता तो लड़ाई कठिन हो सकती थी। हालांकि इस बार तीसरा मोर्चा भी गुजरात की लड़ाई को दिलचस्प बना सकता है। ममता बनर्जी ने एक एलायंस की बात की है जो तीसरे मोर्चे के दलों   दलों को मिलाकर बन सकता है और मुसलमानों का मत इस मोर्चे को मिल सकता है। लेकिन इससे गुजरात में सत्ता परिवर्तन शायद ही हो सके। एक मत यह भी है कि अगर मोदी चुनाव जीतते हैं तो भाजपा के लिए 2014 के चुनाव में नई मुश्किलें आ सकती हैं। तब प्रधानमंत्री के तौर पर न सही लेकिन मोदी को सबसे बड़े चुनाव प्रचारक के तौर पर तो जगह देनी ही होगी। इससे केंद्रीय स्तर पर एनडीए का गठबंधन भी दरकेगा और मुस्लिम मतदाताओं के विरोध के चलते पार्टी को अपनी स्थिति का नुकसान भी हो सकता है। इसलिए नरेन्द्र मोदी के लिए आगे का रास्ता जोखिम भरा जरूर है। जीतना पड़ेगा और वह भी अच्छे मार्जिन व सीटों से। गुजरात चुनाव परिणाम इस दृष्टि से राष्ट्रीय महत्व रखते हैं।

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