Sunday 26 May 2013

यूपीए-2 के चार साल का रिकार्ड ः डूबती साख, वक्त कम


 Published on 26 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
यूपीए सरकार ने बुधवार को सरकार की उपलब्धियों की रंगीन तस्वीर पेश करते हुए यूपीए-2 का रिपोर्ट कार्ड बड़ी धूमधाम से पेश किया। यूपीए-2 के चौथे वर्ष में पीएम और कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा जारी रिपोर्ट कार्ड में सरकार की तमाम उपलब्धियां, मनरेगा, खाद्य सब्सिडी और सोशल सेक्टर की योजनाओं के बारे में बताया गया है। अपनी-अपनी राय हो सकती है। चौथी सालगिरह मना रही यूपीए-2 सरकार की हमारी नजरों में जितनी उपलब्धियां हैं उससे कहीं ज्यादा उसने अपने खाते में अपयश कमाया है। चुनाव करीब आ रहा है और सरकार लोकप्रियता की बजाय लगातार जनाक्रोश से घिरती जा रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में खुद के 206 सांसदों की जीत के बलबूते कांग्रेस ने जोड़तोड़ कर यूपीए सरकार की इमारत बना ली। चुनावी जंग में कांग्रेस को मिलती सफलता को देखकर ही राजनीतिक पंडितों ने 2014 के चुनावी नतीजों का भी अनुमान लगा लिया। यूपीए सरकार की इन पंडितों ने तो तीसरी पारी भी तय कर दी है। मगर पिछले चार सालों में भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई, सुस्त विदेश नीति, बिगड़ती कानून व्यवस्था, नीतिगत अपंगता और जन विरोधी आर्थिक सुधारों की फजीहत यूपीए सरकार की सबसे बड़ी पहचान बन गए हैं। नतीजतन यूपीए सरकार से उसके दो सबसे बड़े घटक दल द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस ने पीछा छुड़ा लिया। यूपीए सरकार को चार साल हो गए हैं लेकिन इस सरकार का दुर्भाग्य यह है कि इसके बारे में आम राय यह बन चुकी है कि यह एक कमजोर सरकार है। आम जनता तो यह भी मानने लगी है कि यह सरकार नीतियों को पूरा नहीं कर सकती। 2009 की शानदार जीत के ठीक बाद ही इस यूपीए सरकार की फजीहत का सिलसिला शर्म-अल-शेख से शुरू हो गया। पाकिस्तान के साथ साझा बयान में बलूचिस्तान पर पहली बार उसको बढ़त देने से शुरू हुआ यूपीए का संकट, 2010 में 1.76 करोड़ रुपए के 2जी स्पेक्ट्रम के महाघोटाले का पर्दाफाश परवान चढ़ा। इसके बाद महंगाई का ग्रॉफ तेजी से बढ़ा। आम आदमी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान का प्रबंध करना मुश्किल हो गया। यही नहीं खुद आर्थिक विशेषज्ञ मनमोहन सिंह उनकी विशेष आर्थिक टीम मोंटेक सिंह आहलूवालिया और सी. रंगाराजन ने देश की अर्थव्यवस्था को ही चौपट कर दिया। विकास दर साढ़े पांच फीसदी तक गिर गई। लाखों युवकों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। फिर आया घोटालों का तूफान। भ्रष्टाचार को खत्म करने के तमाम दावे ठोंके गए मगर कोयला घोटाला, रक्षा सौदों में दलाली, हेलीकाप्टर अगस्ता सौदा और राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श हाउसिंग, रेलवे घूसकांड जैसे एक के बाद एक घोटाले सामने आए। आर्थिक सुधारों पर ना-नुकुर करने के बाद सरकार ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी  निवेश लाने की हिम्मत दिखाई तो ममता बनर्जी ने उससे नाता तोड़ लिया। कुछ महीने बाद श्रीलंका में तमिल लोगों की सुरक्षा के बहाने द्रमुक ने भी सरकार से नाता तोड़ लिया। संसद में अल्पमत का खतरा झेल रही सरकार सपा और बसपा की बैसाखी पर दिन काट रही है। इस लुंजपुंज सरकार पर आरोपों की लम्बी सूची है। सीबीआई के सहारे चार साल सत्ता में बने रहना सरकार की एकमात्र उपलब्धि मानी जा सकती है। शासन की नीतियों में अंतिम शब्द सोनिया गांधी का होता है प्रधानमंत्री का नहीं। मनमोहन सिंह जैसे हंसी, कटाक्ष और व्यंग्य के पात्र बने हैं वैसा आज तक कोई पीएम नहीं बना है। अनिर्णय, असमर्थता और चुप्पी के पर्याय बन चुके हैं प्रधानमंत्री। सीवीसी, निर्वाचन आयोग, मानवाधिकार आयोग के लिए यूपीए द्वारा नियुक्तियां विवादित हैं और संदेह के घेरे में हैं। पड़ोसियों के साथ इतने संकटपूर्ण रिश्ते कभी भी नहीं रहे। मालदीव जैसा छोटा देश भी आज भारत को आंखें दिखाने से बाज नहीं आ रहा। दिल्ली गैंगरेप के बाद सरकार पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ कड़ा कानून बनाया, मगर पांच महीने समाप्त होने पर भी दामिनी केस अभी अदालतों में ही फंसा है, सजा कब होगी कहा नहीं जा सकता। दिल्ली में बलात्कार के तमाम रिकार्ड टूट गए हैं और यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पाक के कूटनीतिक मोर्चे पर सरकार की विफलता का ताजा उदाहरण है पाक जेलों में भारतीय कैदियों की मौत व सीमा पर भारतीय जवानों का सिर काटकर ले जाना इस सरकार की नपुंसकता के ज्वलंत उदाहरण हैं। कांग्रेस का एक वर्ग खुलकर आज कह रहा है कि मनमोहन सिंह पार्टी और सरकार के लिए एक बोझ बन चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने Šजी से लेकर कोयला घोटाले तक प्रधानमंत्री कार्यालय की भूमिका पर विपरीत टिप्पणियां की हैं। कांग्रेस के भीतर से कई बार ऐसी आवाजें भी आई हैं कि डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर अक्षम साबित हो रहे हैं और अब उन्हें अपने पद से हट जाना चाहिए। इसकी वजह से मनमोहन सिंह को बार-बार कांग्रेस से आक्सीजन लेनी पड़ती है। कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान इस कदर बढ़ गई है कि सत्ता के दो केंद्रों को अनुचित बताने संबंधी कांग्रेस के एक-एक महासचिव का बयान इसी का हिस्सा है। लोकसभा चुनाव से पहले इस आखिरी साल में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती आज पिछले नौ वर्षों में तार-तार हुई छवि को सुधारना है। भ्रष्टाचार, महंगाई और कुशासन को लेकर यूपीए के दूसरे कार्यकाल में सरकार और पार्टी की छवि पर जो धब्बा लगा है, उससे न केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साख पर बट्टा लगा है बल्कि कांग्रेस पार्टी की सम्भावनाओं को धूमिल करने का काम भी किया है। पार्टी के एक महासचिव के अनुसार नौ साल की उपलब्धियों पर कुछ बड़े घोटालों ने पानी फेरने का काम किया है। उनके अनुसार सबसे बड़ी चुनौती देश की जनता के मन पर घर कर चुकी उस छवि को धोने की है जिससे यह संदेश जा रहा है कि भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस नेतृत्व और प्रधानमंत्री गम्भीर नहीं हैं। प्रधानमंत्री के बारे में कहा जा रहा है कि वह टाइम पास कर रहे हैं जितने दिन और चल जाएं चलते रहें। उन्हें पार्टी की कतई चिन्ता नहीं है। बार-बार राहुल गांधी को सरकार का नेतृत्व सम्भालने का अनुरोध पास नहीं हो रहा है। पार्टी और इस सरकार की खुशकिस्मती यह है कि विपक्ष बंटा हुआ है और भाजपा अभी भी जनता में यह विश्वास नहीं बिठा सकी कि वह कांग्रेस का स्वाभाविक विकल्प है पर यह स्थिति तेजी से बदल रही है। नरेन्द्र मोदी और राजनाथ सिंह की जोड़ी ने माहौल अपने पक्ष में करने के लिए जी-जान लगा रखी है। कांग्रेस और सरकार के पास सब ठीक-ठाक करने के लिए समय कम है। जल्द उन्हें प्रभावी कदम उठाने होंगे।

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