Thursday 23 May 2013

आखिर कैसे होगा तोता पिंजरे से आजाद



 Published on 23 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अंतत केंद्र सरकार ने सीबीआई को स्वायत्तता देने और बाहरी दबाव से बचाने वाला नया कानून बनाने के उद्देश्य से एक मंत्रियों के समूह के गठन का फैसला किया है। इस जीओएम का गठन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम करेंगे। आमतौर पर इस प्रकार के मंत्रियों के समूह या जीओएम का गठन तब होता है, जब मान लिया जाता है कि मामले को लम्बे वक्त तक ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए। सरकार को 10 जुलाई की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट में पेश होना है इससे पहले इस कानून का मसौदा अदालत में पहुंच जाना चाहिए। लिहाजा डेढ़ महीने में तस्वीर साफ हो जाएगी कि मसौदे में क्या-क्या बिन्दु शामिल किए जाते हैं। देश की इस सर्वोच्च जांच एजेंसी के राजनीतिक दुरुपयोग की कहानी लम्बी है। यह आम धारणा है कि जो पार्टी केंद्र की सत्ता में होती है, अपने लोगों को बचाने और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को फंसाने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आती पर जैसा पिछले दिनों के घटनाक्रम में देखने को मिला है कि इस यूपीए-2 सरकार ने तो सारी हदें पार कर दीं। यहां तक कि एजेंसी से सुप्रीम कोर्ट तक में झूठा हलफनामा दिलवा दिया। अब यह ग्रुप ऑफ मिनिस्टर क्या करता है देखना बाकी है। सवाल यह है कि क्या अब इस एजेंसी को लेकर लोकपाल बिल में किए गए प्रावधानों को छोड़ दिया जाएगा? या जीओएम इस बारे में लोकपाल बिल के प्रावधानों का ही जिक्र संसद में कर बिल पास कराने की तैयारी का हवाला देगी? या कुछ मिलाजुला रूप सामने आएगा? सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को राजनीतिक दखल से बचाने के लिए प्रभावशाली कानून बनाने के लिए एक तरह से कहा है, तो क्या पिंजरे में बन्द तोते की आजादी के लिए अलग से कारगर कानून बन पाएगा? जीओएम में चिदम्बरम अध्यक्ष हैं, कमेटी में अन्य सदस्य हैं विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, दूरसंचार व कानून मंत्री कपिल सिब्बल, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और पीएमओ के राज्यमंत्री वी. नारायणस्वामी। सीबीआई के निदेशक इस समूह के विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा ने एक हिन्दी दैनिक पत्र को विशेष साक्षात्कार में कहा कि केंद्रीय एजेंसी को स्वतंत्र कहना सबसे बड़ा झूठ है। उनका कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि सीबीआई सरकारी तंत्र की गिरफ्त में है। सिन्हा सीबीआई के पहले ऐसे निदेशक हैं जिन्होंने इतनी बेबाकी से इस सच को स्वीकारा है। सिन्हा उस दिन का बेताबी से इंतजार कर रहे हैं जब 2010 से धूल खा रहा सीबीआई एक्ट कड़े संशोधनों के साथ कानून की शक्ल लेगा। इस प्रावधान में एजेंसी को स्वायत्त बनाने के कई बड़े फैसले लिए गए हैं। रंजीत सिन्हा की मानें तो सीबीआई को पूरी तरह से खुला छोड़ना भी खतरे से खाली नहीं है। सिन्हा ने कहा कि भले ही वह सीबीआई को पूरी तरह स्वतंत्र और स्वायत्त बनाने की कोशिश में हैं लेकिन सीबीआई के लोग पूर्ण स्वतंत्रता मिलने पर दुरुपयोग शुरू कर देंगे। इस खतरे को दूर करने के लिए सिन्हा ने अपने उच्च अधिकारियों से उपाय सुझाने को कहा है। उधर भारतीय जनता पार्टी ने पूरे मामले को धूल झोंकने वाला कदम बताया है। भाजपा ने कहा है कि जब इस मामले में पहले ही सिलेक्ट कमेटी अपनी सिफारिशें दे चुकी है तो ऐसे में जीओएम बनाने की क्या तुक है? सीबीआई को स्वतंत्र करने के मामले में लोकपाल बिल के दौरान काफी चर्चा हो चुकी है। इस मामले में संसद की सिलेक्ट कमेटी ने भी जो सिफारिशें दी हैं उन्हें कैबिनेट भी मंजूर कर चुकी है। सवाल सरकार की नीयत का है, जीओएम पता नहीं क्या नए सुझाव देगी? कटु सत्य तो यह है कि अब जनता भी चाहती है कि सीबीआई स्वायत्त हो और सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रुख अख्तियार कर लिया है, तो ऐसा लगता है कि सीबीआई की स्वायत्तता के लिए कानून बनाने से सरकार बच नहीं सकती। देर-सवेर उसे कुछ ठोस करना ही पड़ेगा। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि सीबीआई आर्थिक दृष्टि से भी केंद्र सरकार के रहमोंकरम पर न निर्भर रहे। वह अपने यहां आईपीएस अफसरों की नियुक्ति के लिए गृह मंत्रालय पर निर्भर है, कोष और अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए कार्मिक मंत्रालय पर। जांच, मुकदमे और अन्य खर्चों के लिए वह वित्त मंत्रालय पर आश्रित है। मुकदमे की पैरवी के लिए विशेष वकील की नियुक्ति कानून मंत्रालय करता है। आरोपी अगर आला नौकरशाह या रसूख रखने वाला राजनीतिक हो, तो जांच शुरू करने और मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी की बाट जोहनी पड़ती है। कुछ मामलों में यह इंतजार लम्बा होता है और अधिकतर में मंजूरी ही नहीं मिल पाती। सीबीआई के लगभग सभी श्रेणियों के ढेर सारे पद खाली हैं। रिक्त पदों को समय से नहीं भरे जाने के कारण सीबीआई की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। आने वाले कानून से उम्मीद करते हैं कि उक्त कमियों को ध्यान में रखते हुए ऐसे प्रावधान अवश्य होने चाहिए जिनसे कि सीबीआई को इन निर्भरताओं से निजात मिल सके। अगर ऐसा कानून बनता है तो यह हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बड़ी जीत होगी। सरकार से कहीं ज्यादा उम्मीदें हमें सुप्रीम कोर्ट से हैं।

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