Thursday 15 January 2015

श्रीलंका के राजपक्षे का दाव उलटा ही पड़ा

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने छह साल के तीसरे कार्यकाल के लिए जीत की उम्मीद में तय समय से दो साल पहले ही राष्ट्रपति पद का चुनाव कराने का फैसला किया था। लेकिन वह तब हैरान रह गए जब पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मैत्रीपाला सिरिसेना चुनाव कराने के फैसले के एक दिन बाद ही सरकार छोड़कर राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार बन गए। राजपक्षे चुनाव हार गए और सत्ता सिरिसेना के हाथ आ गई। महिंद्रा राजपक्षे लगता है कि अपने एक दशक लंबे शासन के विरुद्ध पनप रही लोगों की नाराजगी और विपक्ष की साझा रणनीति का अंदाजा नहीं लगा पाए। तमिल लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के खिलाफ की गई भीषण सैन्य कार्रवाई के बाद से तमिल बहुल क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के निशाने पर थे। मगर 25 वर्ष चले गृह युद्ध की समाप्ति के बाद हुए 2009 के चुनाव में सिंहली बहुसंख्यकों के दम पर राजपक्षे दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। श्रीलंका में आए परिणाम का अनुमान लगाना कठिन था। महिंद्रा राजपक्षे को अपनी राजनीतिक शक्ति में इतना भरोसा था कि उन्होंने समय से दो साल पहले राष्ट्रपति चुनाव कराने का फैसला किया, लेकिन चुनाव की सारी दिशा उस समय  बदल गई जब उनके मंत्री सिरिसेना ने पाला बदल लिया। सिरिसेना भी राजपक्षे की ही तरह ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं, सिंहली हैं, उन्होंने लिट्टे के खिलाफ लड़ाई के आखिरी दौर में सैन्य प्रबंधन में खास भूमिका निभाई थी और कुल मिलाकर साफ छवि के नेता हैं। इससे वह राजपक्षे के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हुए। श्रीलंका में राजपक्षे की हार से तमिलनाडु की पार्टियां खुश हैं। तमिल राजपक्षे को 2009 में तमिलों के विरुद्ध युद्ध अपराधी का दोषी मानते हैं। डीएमके सुप्रीमो एम. करुणानिधि ने कहा कि उनकी पार्टी युद्ध अपराध के आरोपों की अंतर्राष्ट्रीय जांच की मांग करेगी। माना जा रहा है कि सिरिसेना की जीत से भारत और श्रीलंका के संबंधों में मजबूती आएगी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बधाई संदेश में कहा, मैं श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को बधाई देता हूं। साथ ही बधाई  उनको भी देना चाहूंगा, जिन्होंने शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को संभव बनाया। राजपक्षे का दूसरा कार्यकाल कुनबापरस्ती और भ्रष्टाचार की मिसाल बन गया। हालत यह थी कि देश के पांच प्रमुख मंत्रालय राजपक्षे और उनके भाइयों के पास थे, जिनकी देश के बजट में 75 फीसदी की हिस्सेदारी होती है। लेकिन बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लोगों की नाराजगी उनके राज के लिए आखिरी कील साबित हुई। सिरिसेना के राष्ट्रपति बनने से बड़ा परिवर्तन श्रीलंका की विदेश नीति में दिख सकता है। नए राष्ट्रपति की जीत में तमिल वोटरों का महत्वपूर्ण योगदान है, अत अनुमान लगाया जा सकता है कि सिरिसेना की सरकार तमिल हितों और भारतीय संवेदनशीलताओं का उचित ख्याल रखेगी। कुल मिलाकर श्रीलंकाई जनादेश का संदेश यह है कि बहुसंख्यक वर्चस्व और सैन्य शक्ति के सहारे खुद को महफूज नहीं रखा जा सकता। यह उत्साहवर्द्धक घटनाक्रम है।

-अनिल नरेन्द्र

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