Friday 10 April 2015

स्थापना दिवस पर भाजपा संस्थापकों को ही भूल गई

दक्षिणपंथी विचारधारा के पोषक रहे भारतीय जनसंघ की बुनियाद पर छह अप्रैल 1980 को स्थापित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आज दुनिया की सबसे बड़ी सियासी पार्टी बन चुकी है। हाल ही में करीब 10 करोड़ सदस्य बनाकर पार्टी ने यह मुकाम हासिल किया है। बीते 35 साल में पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और कभी लोकसभा में महज दो सीट पाने वाली पार्टी आज केंद्र की सत्ता में होने के साथ-साथ 13 राज्यों की सरकार में भागीदार है। पर हमें दुख से कहना पड़ता है कि वर्तमान पार्टी नेतृत्व आज उन बुजुर्गों की अनदेखी कर रहा है जिनकी बदौलत पार्टी आज यहां तक पहुंची है। सोमवार को पार्टी ने अपना 35वां स्थापना दिवस मनाया। इस दौरान पार्टी मुख्यालय पर आयोजित समारोह में वरिष्ठ नेताओं समेत कई कार्यकर्ता भी मौजूद थे लेकिन पार्टी संस्थापकों में से एक लाल कृष्ण आडवाणी ने कार्यक्रम में इसलिए शिरकत नहीं की क्योंकि उन्हें बुलाया ही नहीं गया। बेंगलुरु में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी व डॉ. मुरली मनोहर जोशी को एक बार फिर बेआबरू होना पड़ा है। उन्हें पार्टी के 35वें स्थापना दिवस समारोह के लिए निमंत्रण ही नहीं भेजा गया। निमंत्रण नहीं मिलने के कारण पार्टी के संस्थापक रहे आडवाणी 35 साल के इतिहास में पहली बार स्थापना दिवस कार्यक्रम से दूर रहे। वह भी तब जब पार्टी इस समारोह में दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनने और पहली बार अपने दम पर केंद्र की सत्ता में कब्जा करने लायक बहुमत जुटाकर बड़ा जश्न मना रही थी। खास बात यह है कि इस दौरान समारोह में पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी भी नहीं दिखे। श्री लाल कृष्ण आडवाणी का पार्टी नेतृत्व से नाराज होना वाजिब है। अगर पार्टी आज यहां तक पहुंची है तो इसमें अटल जी, आडवाणी जी व डॉ. मुरली मनोहर जोशी का बहुत बड़ा योगदान है। श्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने तो पिछले डेढ़-दो साल से ही पार्टी नेतृत्व संभाला है  पर उससे 30-31 साल पहले तो आडवाणी, अटल, जोशी ने ही पार्टी को संभाला और बनाया। आज उन्हें नेतृत्व ने ऐसे बाहर किया है जैसे दूध में से मक्खी को किया जाता है। आज पार्टी को तीन नेता चला रहे हैं। न तो पार्टी में सामूहिक नेतृत्व है और न ही आज कार्यकर्ता नेतृत्व से मिल सकते हैं। हर फैसला तीन नेता मिलकर करते हैं और अपने ढंग से पार्टी व सरकार चला रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि आडवाणी इन दिनों  पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से खासे नाराज हैं। क्योंकि नेतृत्व की तरफ से उनकी भूमिका रिटायर्ड नेता की कर दी गई है। बेंगलुरु में यह पार्टी के इतिहास में दूसरी बार हुआ कि लाल कृष्ण आडवाणी मंच पर तो मौजूद थे लेकिन उनका नाम भाषण देने वाले नेताओं की सूची में नहीं था। इसका अहसास होने के बाद आडवाणी मंच पर अनिच्छुक मन से  मौजूद रहे। कहा तो यह भी जा रहा है कि उन्हें कार्यकारिणी में बोलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह ने आग्रह भी किया लेकिन भाषण देने वाले नेताओं की सूची में नाम नहीं होने से वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। भाजपा के वर्तमान नेतृत्व का प्रयास यह होना चाहिए कि सबको साथ लेकर चले। यह राजनीतिक पार्टी है कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं।

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