Thursday 8 October 2015

दिल्ली में तो सांस लेना भी हो गया है जहर

दिल्ली में वायु प्रदूषण की सारी हदें पार होती जा रही हैं। अब तो दिल्ली में सांस लेने से डर लगने लगा है। भारत के सबसे प्रदूषित 13 शहरों में दिल्ली नम्बर वन पर है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एचएल दत्तू ने अपने घर परिवार के कुछ उदाहरण गिनाते हुए बताया कि दिल्ली में सांस लेना जहर हो गया है। छोटे-छोटे बच्चों, यहां तक कि मेरा पोता भी मॉस्क पहनता है। जब वो मॉस्क लगाता है तो कार्टून कैरेक्टर निन्जा जैसा दिखता है। हम चाहते हैं कि मसले को अखबार पहले पन्नों पर छापें। आमतौर पर अखबारों को ऐसा नहीं कहते, लेकिन लोगों को शिक्षित करना जरूरी है इसलिए छापें। चीफ जस्टिस इस समस्या के प्रति कितने गंभीर हैं उनकी इस टिप्पणी से पता चलता है। मामले में एक 1985 में दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी सामने आई। न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कोर्ट से कहा कि व्यावसायिक वाहन पैसा बचाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग से नहीं गुजरते हैं बल्कि दिल्ली के अंदर से होकर गुजरते हैं। इस कारण भी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार करीब 20 हजार व्यावसायिक वाहन रोजाना दिल्ली में प्रवेश करते हैं। एमसीडी के मुताबिक 22,628 जबकि निजी एजेंसियों के मुताबिक 38,588 बड़े वाहन (ट्रक) हर दिन बाहर से दिल्ली आते हैं। 30 प्रतिशत से ज्यादा प्रदूषण ट्रकों से होता है और बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। किसी धार्मिक किताब में नहीं लिखा है कि दीपावली पर पटाखे जलाने चाहिए, यह प्रकाश का त्यौहार है, शोर का नहीं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जस्टिस यूडी साल्वे ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी। याचिका दीपावली पर जलाए जाने वाले पटाखे और इससे होने वाले वायु प्रदूषण से संबंधित थी। इस पर केंद्र से 12 अक्तूबर तक जवाब मांगा गया है। चार दिन पहले दिल्ली के तीन परिवारों ने तीन से 14 महीने की उम्र तक के बच्चों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका लगाई गई है। इसमें साफ हवा में सांस लेने के लिए अनुकूल माहौल मांगा गया है। वकील साल्वे ने अदालत में कहाöमेरी बेटी और पत्नी को अस्थमा है। कुछ दिन पहले उन्हें स्टेरॉइड लेना पड़ा है। बहुत बुरी हालत है। सांस लेना दुभर हो रहा है। पर्यावरण कानून का सिद्धांत है `प्रदूषण करने वालों को भुगतान करना होगा' अब संवैधानिक न्याय व्यवस्था का हिस्सा बन चुका है। दिल्ली में अगर प्रदूषण रोकना है तो हम सभी को इसके लिए जुटना होगा। सरकार, अदालतें तो अपना काम कर रही हैं पर जब तक राजधानीवासी इसमें हाथ नहीं बंटाते यह हल होने वाली नहीं। दुख तो इस बात का है कि वह भी प्रदूषण की मार से बच नहीं सकते।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment