Saturday, 19 July 2025

बिहार में पुनरीक्षण अभियान बना एक मजाक

बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) में लापरवाही, अव्यवस्था और गड़बड़झाले के कारनामे अब खुलकर सामने आ चुके हैं। अब यह सारी कवायद एक मजाक बनकर रह गई है। इस अभियान में कई स्तर पर गड़बड़ी की गई और की जा रही है। इन अनियमितताओं पर पत्रकारों से लेकर तमाम विपक्षी दलों ने प्रश्न चिह्न लगा दिया है। भास्कर की जमीनी पड़ताल में कहीं बीएलओ खेत में बैठकर फार्म भर रहे हैं, कहीं वाह्टसअप से पहचान पत्र मांग रहे थे। पटना में कई मतदाताओं के घर दो-दो तरह के फार्म पहुंचे। नगर निगम कर्मचारी और बीएलओ अलग-अलग फार्म दे रहे हैं। पावती फार्म नहीं दिए गए जबकि नियमानुसार यह जरूरी है। उधर एनडीए सरकार में शामिल तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर संबंधित कई सवाल पूछे हैं। तेदेपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर समावेश की धारणा का समर्थन करते हुए कि मतदाता पहले से ही नवीनतम प्रमाणित मतदाता सूची में नामांकित हैं। उन्हें अपनी पात्रता पुन स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। जब तक कि विशिष्ट और सत्यापन योग्य कारण दर्ज न किए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मतदाता सूची में किसी व्यक्ति का नाम पहले से शामिल करने से उसकी वैधता की धारणा बनती है और नाम हटाने से पहले वैध जांच होनी चाहिए। तेदेपा ने कहा कि सुबूत का भार निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी या आपत्तिकर्ता पर होता है। मतदाता पर नहीं, विशेषकर जब नाम अधिकारिक सूची में मौजूद हो। तेदेपा के इस प्रतिनिधिमंडल ने सीआईसी ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू व विवेक जोशी से मुलाकात की। इधर निर्वाचन आयोग ने बुधवार को कहा कि बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से केवल 6.85 फीसदी ने अभी तक विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत गणना फार्म नहीं भरे हैं। यानी आयोग ने अंतिम तिथि से नौ दिन पहले ही 93 फीसदी काम पूरा कर लिया है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता राहुल गांधी, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव ने निर्वाचन आयोग और भाजपा पर जोरदार हमला बोला। राहुल गांधी ने असम के गुवाहाटी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करे हुए आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच मिलीभगत है। यह इससे साबित हो जाता है कि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव से चार महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में करीब एक करोड़ नए मतदाता जोड़े गए और भाजपा चुनाव जीत गई। विपक्ष के मांगने पर भी चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सूची और मतदान केन्द्राsं की वीडियोग्राफी देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की तरह ही अब बिहार में चुनाव चोरी करने की साजिश रची जा रही है। बिहार में मतदाता सूची से गरीबों, मजदूरों और कांग्रेस-राजद समर्थकों के नाम हटाने का प्रयास किया जा रहा है। चुनाव आयोग खुलकर भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की आलोचना करते हुए कहा कि जब भी चुनाव आते हैं, भाजपा मतदाता सूची से नाम हटाना शुरू कर देती है। मैंने सुना है कि उन्होंने बिहार में 30.5 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं। इसी तरह भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव जीते थे। वे बिहार और बंगाल के लिए भी यही योजना लागू कर रहे हैं। इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने एक्स पर लिखा कि बिहार में कुल 7 करोड़ 90 लाख मतदाता हैं। कल्पना कीजिए भाजपा के निर्देश पर अगर एक फीसदी मतदाताओं को भी छांटा जाता है तो लगभग 7 लाख 90 हजार मतदाताओं के नाम कटेंगे। यहां हमने केवल एक फीसद की बात की है, जबकि इनका इरादा इससे भी अधिक चार से पांच फीसद का है। इस हिसाब से हर विधानसभा में 3200 से अधिक मतदाताओं के नाम कटेंगे। पिछले चुनावों में वोट बढ़ाए गए थे इस बार घटाए जा रहे हैं। तेजस्वी ने कहा, पिछले दो विधानसभा चुनावों में कम अंतर से हार जीत वाली सीटों का आंकड़ा देखें तो 2015 विधानसभा चुनाव में 3000 से कम मतों से हार जीत वाली कुल 15 सीटें थी, जबकि 2020 में यह 35 सीटें हो गई थीं। अगर चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर इस प्रकार के गंभीर आरोप लगने लगे तो संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है। आयोग पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब सर्वोच्च अदालत ने समयाभाव और समीक्षा की प्रक्रिया की दुरुस्ता पर सवाल किया और अगली सुनवाई की तिथि 28 जुलाई तय की है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग का संवैधनिक कर्तव्य है। अगर इस प्रक्रिया में कोई आपत्ति दर्ज होती है तो उसे सही करना, उसमें संशोधन करना, गलत आदेश वापस लेना यह सब चुनाव आयोग का फर्ज है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 17 July 2025

सत्ता के लिए खींचा गाजा युद्ध लंबा

इजरायल में सबसे ज्यादा समय सत्ता में रहने का रिकार्ड बेंजामिन नेतन्याहू के नाम है। वे 17 साल 9 महीने से इजरायल के प्रधानमंत्री हैं। दिसम्बर 2022 के बाद नेतन्याहू के तीसरे कार्य काल के 30 माह में से 21 माह तक इजरायल युद्ध में घिरा रहा है। नई न्यूयार्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक नेतन्याहू ने घटती लोकप्रियता, भ्रष्टाचार के आरोपों से और अदालतों में चल रही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के केसों से बचने व ध्यान हटाने के लिए गाजा युद्ध लंबा खींचा। आरोप है कि नेतन्याहू ने कतर के जरिए हमास की बाकायदा फंडिंग भी की। जानिए कैसे नेतन्याहू ने पीएम पद पर बने रहने और अपने फायदे के लिए बाकायदा युद्ध का इस्तेमाल किया। नेतन्याहू ने खुफिया इनपुट की अनदेखी की जिससे हमास मजबूत हुआ और उसे तैयारियों का मौका मिला। नेतन्याहू 2020 से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे, जिससे उनकी सियासी पकड़ कमजोर हुई। सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने दक्षिणपंथी और अतिवादी दलों के साथ गठबंधन किया। नेतन्याहू ने कतर के माध्यम से गाजा को आर्थिक सहायता देने की नीति अपनाई जिसे वे शांति खरीदने का तरीका मानते थे। लेकिन इससे हमास को सैन्य तैयारियों के लिए संसाधन जुटाने का मौका मिला। जुलाई 2023 में सैन्य खुफिया इकाई ने चेतावनी दी कि नेतन्याहू की न्यायपालिका सुधार योजना ने देश को कमजोर किया, जिससे हमास, हिजबुल्ला और ईरान को हमले का अवसर मिल सकता है। रिज बेट तत्कालीन प्रमुख रोनन बार रणनीतिक युद्ध की चेतावनी दी, लेकिन नेतन्याहू ने इसे खारिज कर दिया और प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे हमास को लाभ मिला। नेतन्याहू का दोहरा खेल, क्षेत्र के लिए युद्ध का ऐलान, नाकामी का ठीकरा सेना, एजेंसियों पर फोड़ा। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले ने इजरायल को चौंका दिया। हमले में 1195 इजरायली मारे गए और 251 को अगवा किया गया। नेतन्याहू ने तुरंत हमास नेतृत्व को खत्म करने के आदेश दिए। खुफिया विफलता की जिम्मेदारी से बचने के लिए उन्होंने सेना और खुफिया एजेंसियों पर ठीकरा फोड़ा। उनकी पहली रणनीति थी सैन्य जवाब को तेज करना, जिसमें गाजा पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शामिल थे। उन्होंने मध्यमार्गी बेनी गैंट्स और गादी आईजेनकारे को सरकार में शामिल किया। इस कदम ने गठबंधन सरकार को स्थिरता दी और युद्ध को लंबे खींचने की उनकी रणनीति को समर्थन मिला। पीएम ने दोहरा खेल खेलते हुए हमास हमले के लिए सार्वजनिक रूप से दावा किया कि उन्हें हमास के इरादों की कोई चेतावनी नहीं मिली थी, जिससे उनकी छवि को बचाने की कोशिश की। नेतन्याहू ने अपनी सियासी छवि को चमकाने और सत्ता में बने रहने के लिए युद्ध का इस्तेमाल किया। सितम्बर 2024 में बंधकों की हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन बढ़े। उनके प्रवक्ता ने एक हमास दस्तावेज को जर्मन अखबार बिल्ड में लीक किया, जिसमें दावा किया गया कि प्रदर्शनकारी हमास के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे थे। इस रणनीति ने जनता का ध्यान युद्ध विराम की मांग से हटाकर, हमास के खिलाफ एकजुटता की ओर मोड़ा। हिज्बुल्ला व ईरान के खिलाफ सैन्य सफलताओं ने नेतन्याहू की लोकप्रियता बढ़ा दी। हमास नेता माल्या सिनवार और हिज्बुल्ला नेता नसरूल्ला की मौत, लेबनान पर वाकी टॉकी हमले और ईरान के परमाणु fिठकानों पर हमले ने नेतन्याहू की स्थिति को और मजबूत किया। अप्रैल 2024 में नेतन्याहू ने एक युद्ध विराम योजना को मंजूरी दी जिसमें 30 से अधिक इजरायली बंधकों की रिहाई और सऊदी अरब के साथ शांति समझौते की संभावना शामिल थी। कैबिनेट बैठक में कट्टर दक्षिणपंथी और वित्त मंत्री ने धमकी दी कि अगर यह योजना आई तो सरकार गिर जाएगी। नेतन्याहू ने तुरंत अपनी सत्ता को प्राथमिकता देते हुए इस योजना को रद्द कर दिया। 1 जुलाई 2024 में एक और युद्ध विराम समझौता करीब था लेकिन नेशनल सिक्यूरिटी मंत्री के दबाव में नेतन्याहू ने गाजा-मिस्र सीमा पर नई शर्तें जोड़ दी जिससे बातचीत विफल हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में नेतन्याहू ने जनवरी 2025 में गाजा युद्ध विराम लागू तो किया लेकिन अपनी सत्ता बचाने के लिए मार्च में ही उसे तोड़ दिया। अल्ट्रा आर्थोडॉक्स सांसदों के विरोध में सरकार गिरने के खतरे को देखते हुए नेतन्याहू ने बेन ग्वीर को फिर से गठबंधन में जोड़ा जिसकी शर्त थी गाजा में बमबारी जारी रहे। 18 मार्च को हमले शुरू हुए, 19 को गठबंधन बहाल हुआ और बजट पारित। नेतन्याहू ने ट्रंप को ईरान पर हमले के लिए मना लिया। ट्रंप ने सैन्य समर्थन दिया और इजरायल का साथ देकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर जबरदस्त बमबारी की। इसी के बाद नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया। साफ है कि बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सत्ता बचाने के लिए गाजा युद्ध जारी रखा। 50 हजार से ज्यादा लोग बली चढ़ चुके हैं जिनमें 28000 बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। सत्ता की खातिर यह तानाशाह कुछ भी कर सकते हैं। ऊपर वाला सब देख रहा है और सही समय पर उनके कुकर्मों की सजा देगा। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 15 July 2025

क्या ट्रंप और नेतन्याहू ने फिर हमले की तैयारी कर ली है?


नेतन्याहू की हाल की अमेरिकी यात्रा के बाद ईरान पर फिर हमले की आशंका बढ़ गई है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बड़ा मकसद पूरा हो गया लगता है जिसके लिए वो खासतौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने अमेरिका गए थे। माना जा रहा है कि ट्रंप ने इजरायल को ईरान पर फिर से हमले करने की अनुमति दे दी है। तो सवाल यही है कि क्या नेतन्याहू ईरान पर हमले का दूसरा चरण शुरू करने जा रहे हैं? ईरान पर हमले का खतरा इसलिए बढ़ गया है क्योंकि ट्रंप और नेतन्याहू ईरान पर आाढमण का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके हैं। ऐसा अमेरिकी मीडिया दावा कर रहा है। नेतन्याहू जब वाशिंगटन गए थे तभी ये साफ हो गया था कि वो ट्रंप से ईरान पर हमले की अनुमति मांगेंगे। अब जबकि नेतन्याहू का दौरा पूरा हो गया है तो माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नेतन्याहू को ईरान पर हमले की हरी झंडी दे दी है। इसके संकेत इस बात से भी मिल रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों में वाशिंगटन में सब कुछ वैसा ही हो रहा हैं। जैसा पिछली बार हमले से पहले हुआ था। ट्रंप और नेतन्याहू में वाशिंगटन दौरे के दौरान दो बार आपात बैठक हुई। एक बैठक में तो ट्रंप के साथ तमाम अमेरिकी सेना के अध्यक्ष भी बैठक में शामिल थे। यानि कि सैनिक दृष्टि से भी हमले के सारे पहलुओं पर विचार हुआ होगा। नेतन्याहू की यात्रा के बाद ट्रंप अपने इटेंलीजेंस एजेंसियों से मिले। ट्रंप पिछली बार ईरान पर हुए हमले से पहले इसी तरह के शेड्यूल पर थे। इजरायल ने जिस दिन ईरान पर हमला किया था, उस दिन भी ट्रंप ने इंटेलीजेंस से ब्रीफिंग लिया था। नेतन्याहू का आाढामक रुख तो इसी बात का संकेत दे रहा है कि ईरान पर हमले का दूसरा राउंड किसी भी समय शुरू हो सकता है। अमेरिका और इजरायल के हमें दोबारा जंग छेड़ने के पीछे तीन मकसद नजर आते हैं। पहला है ईरान को हर हालत में परमाणु शक्ति बनने से रोकना। पहले राउंड में जब अमेरिका ने बी-2 स्टैल्थ बाम्बर से बंकर बस्टर बम गिराये थे तो ईरान की परमाणु प्रतिष्ठानों को इतना नुकसान नहीं हुआ था और विशेषज्ञों का दावा था कि ईरान परमाणु बम बनाने में सिर्फ 2-3 महीने पीछे हुआ है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ईरान ने अपने 400 किलो एनरिच्ड यूरेनियम को अमेरिकी हमले से पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान अब जब चाहे कम से कम दस परमाणु बम बना सकता है। ट्रंप-नेतन्याहू ईरान के परमाणु ठिकानों को हमेशा से मिटाना चाहते हैं। दूसरा मकसद ईरान को इतना कमजोर कर दें कि वह मध्य पूर्व एशिया में महज एक बिना प्रभाव का देश बन कर रह जाए। तीसरा मकसद ईरान से अयातुल्ला रेजीम को हमेशा के लिए खत्म करना। इसमें अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या का भी प्लान है। इजरायल का दावा है कि उसने ईरान के यूरेनियम का पता लगा लिया है। माना जा रहा है कि सीज फायर के बाद मोसाद ने उस लोकेशन का पता लगा लिया है, जहां ईरान ने अपना सर्वाधिक यूरेनियम छिपा रखा है। उधर अमेरिका इस बात से भड़का हुआ है कि ईरान अपने एटमी मिशन का निरीक्षण नहीं करने दे रहा है। इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी और आईएईए प्रमुख राफेल ग्रैसी ने ईरान के एटमी मिशन को लेकर कहा है कि ईरान के पास एटमी हथियार हैं। इस बात के सुबूत तो नहीं हैं। लेकिन खतरा हर बीतते दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। ग्रैसी के कहने का मतलब ये है कि ईरान इतना सक्षम हो चुका है कि वो बहुत जल्द परमाणु परीक्षण कर सकता है। अपुष्ट दावों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि ईरान ने परमाणु बम तैयार कर लिए हैं। उधर ईरान भी अगले राउंड के लिए पूरी तरह तैयार है। वह चुनौती दे रहा है और कह रहा है कि अगर इस बार अमेरिका और इजरायल ने फिर ईरान पर हमला किया तो उन्हें ऐसा सबक सिखाया जाएगा जिसे वह भूलेंगे नहीं। हम पूरी ताकत से जवाब देंगे। पिछले 12 दिन के राउंड में हमने साबित कर दिया था कि हम कितनी तबाही कर सकते हैं। इस बार तो ईरान और ज्यादा मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है क्योंकि चीन, रूस और उत्तरी कोरिया का भी उसे पूरा खुला समर्थन मिल चुका है। कुल मिलाकर स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। उम्मीद करते हैं, ऊपर वाले सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे ताकि कहीं तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत न हो जाए। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 12 July 2025

पुलवामा हमला:टेरर फंडिंग भी ऑनलाइन

आतंकवादी पिछले कुछ वर्षों से अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देने के लिए पारंपरिक तरीके की बजाय आधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं। खासकर इंटरनेट के जरिए विभिन्न तरह की मदद हासिल करना उनके लिए आसान और सुलभ तरीका बन गया है। वैश्विक आतंकवाद वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ ने फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और गोरखनाथ मंदिर में हुई 2022 की घटना का हवाला देते हुए गत मंगलवार को कहा कि ई-कामर्स और ऑनलाइन भुगतान सेवाओं का दुरुपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। अपने विश्लेषण में एफएटीएफ ने आतंकवाद को सरकार द्वारा प्रायोजित किए जाने को भी चिह्नित करते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के विभिन्न स्त्राsतों और इस रिपोर्ट में प्रतिनिधिमंडलें के विचार से संकेत मिलता है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था एफएटीएफ की हालिया रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग पहलू की ओर ध्यान खिंचा है। इसमें बताया गया है कि कैसे टेक्नोलॉजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति की जरूरत हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर अमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों का लेन-देन में भी ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। यही नहीं आतंकी बम बनाने की विधि भी इंटरनेट से सीख रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में हुई कई आतंकी हमलों की जांच में इसके प्रमाण भी मिले हैं। इससे साफ है कि ऑनलाइन सेवाओं का दुरुपयोग किस कदर खतरनाक रूप ले चुका है। एफएटीएफ के अनुसार पुलवामा हमले में एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल विस्फोट के प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया गया था। जैश-ए-मुहम्मद ने फरवरी, 2019 में सुरक्षा बलें के काफिले पर आत्मघाती हमला किया था। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए विस्फोट में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा अतांकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। अब वे अपने को इंटरनेट की gदुनिया की ओर ले जा रहे हैं। एफएटीएफ की इस अपडेट रिपोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के दावे पर भी परोक्ष रूप से मुहर लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी अपने हिंसक अभियानों के लिए उपकरण, हथियार, रसायन और यहां तक कि थ्री डी प्रिटिंग सामग्री की खरीददारी भी ऑनलाइन सेवाओं के जरिए कर रहे हैं। यह बात सही है कि ऑनलाइन खरीददारी की व्यवस्था से लोगों को काफी सहुलियत हुई हैं, लेकिन इस सुविधा का उपयोग खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए न हो, इस पर सरकार को कड़ी नजर रखनी है और ऐसे नियम बनाने होंगे जिससे यह ऑनलाइन साइट्स की इस सुविधा का दुरुपयोग न कर सकें और आतंकवाद फैलाने में मदद न कर पाएं। साथ ही ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाले मंचों की भी जिम्मेदारी है कि वे इस तरह की सामग्री की नियमित निगरानी करें, ताकि इसके दुरुपयोग पर रोक सुनिश्चित हो सके। एफएटीएफ का यह खुलासा भी अहम है कि आतंकवादी संगठनों को कुछ देशों की सरकारों से वित्तीय और अन्य मदद मिलती रही है, जिसमें साजो-सामान और सामग्री संबंधित सहायता एवं प्रशिक्षण भी शामिल है। भारत समेत कई देश आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट प्रयासों पर बल दे रहे हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा देशों द्वारा आतंकियों के वित्त-पोषण से इस पर पलीता लग रहा है। आतंकवाद की इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास करने होंगे। इससे पहले भी हमने देखा कि किस तरह पाक प्रायोजित आतंकी घटनाएं हमारे खिलाफ की जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान आतंकियों का पालन-पोषण कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा कि कैसे इन ई-कामर्स कंपनियों पर पाबंदी लगाई जाए ताकि वे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां बंद करें। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 10 July 2025

राफेल गिरने पर चीन ने फैलाया भ्रम

आपको याद होगा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने भारत के कई विमानों को मार गिराया है। इनमें राफेल, सुखोई और मिग शामिल थे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या भारत के राफेल फाइटर जेट गिरे थे? एक इंटरव्यू में रक्षा सचिव आर के सिंह ने सीएनवीसी-टीवी-18 को कहा कि आपने राफेल्स शब्द बहुवचन में इस्तेमाल किया है। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यह बिल्कुल भी सही नहीं है। पाकिस्तान को ह्यूमन और सैन्य साजो समान दोनों स्तरों पर भारत की तुलना में कई गुना अधिक नुकसान हुआ और 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। वहीं, पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर ने कहा कि भारत से सैन्य संघर्ष के दौरान बाहरी समर्थन मिलने का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है। अब खबर आई है कि ऑपरेशन सिंदूर के दरम्यान हुई झड़पों के बाद निर्मित राफेल जेट विमानों के विषय में संदेह फैलाया गया था। चीन ने इस काम पर अपने दूतावास को तैनात किया था। फ्रांसीसी सैन्य अधिकारियों व खुफिया एजेंसियों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर बताया जा रहा है, फ्रांस के प्रमुख लड़ाकू विमान की प्रतिष्ठा व पी को क्षति पहुंचाने का बीजिंग प्रयास कर रहा था और लगातार कर भी रहा है। फ्रांसीसी खुफिया सेवा की रपट के आधार पर बताया कि चीन के दूतावासों में रक्षा अधिकारियों ने राफेल की पी को प्रभावित करने के लिए अभियान चलाया। इसका उद्देश्य उन राज्यों को राजी करना था, जिन्होंने पहले से ही फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान का आर्डर दे रखा है, विशेष रूप से इंडोनेशिया कि वे राफेल विमान न खरीदे तथा अन्य संभावित खरीददारों को चीन निर्मित विमान एफ-10 और एफ-15 इत्यादि या एफ-35 लड़ाकू विमान चुनने के लिए प्रोत्साहित हों। राफेल समेत अन्य तमाम हथियारों की पी फ्रांस के रक्षा उद्योग का प्रमुख कारोबार है, जिससे पेरिस के दुनिया भर के देशों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसमें चूंकि एशियाई देश भी शामिल हैं। जहां चीन प्रमुख शक्ति बन चुका है। चीन का पूर्वी एरिया में लगातार प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भारत-पाक संघर्ष के दौरान पड़ोसी मुल्क की वायु सेना द्वारा 5 भारतीय विमानों के मार गिराने का छद्म प्रचार किया गया था। जिनमें तीन राफेल बताए गए। फ्रांसीसी अधिकारियों का मानना है कि इस प्रमुख प्रचार से राफेल के प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगाने का प्रयास चीन ने किया। फ्रांसीसी वायुसेना प्रमुख जनरल जेरोम बेलगार ने कहा कि उन्होंने केवल तीन भारतीय विमानों को क्षति होने की ओर इशारा करते हुए सुबूत देखे हैं। जेरोम के मुताबिक इनमें एक राफेल, एक सुखोई और फ्रांस निर्मित एक मिराज 2000 लड़ाकू विमान शामिल हैं। फ्रांस ने 8 देशों को राफेल लड़ाकू विमान बेचे हैं जिनमें से भारत-पाक संघर्ष में इस विमान के गिरने का पहला ज्ञात मामला आया है। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट, कथित राफेल मलबा, छेड़छाड़ की गई तस्वीरों, एआई से बनाए कंटेंट व युद्ध का अनुकरण करने वाले वीडियो गेम वगैरह इस अभियान का हिस्सा था। हमारी राय में तो भारत सरकार को देश को अब बता देना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने विमानों को नुकसान हुआ था और यह कौन-कौन से विमान थे? छिपाने से अफवाह फैलती है और दुश्मनों को भ्रम फैलाने का अवसर मिल जाता है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 8 July 2025

पाकिस्तान तो महज चेहरा, सीमा पर कई दुश्मन थे

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को किस-किस मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह रहस्य अभी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। आपरेशन सिंदूर की परतें खुलने लगी हैं। ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य रणनीति में एक मील का पत्थर बनकर उभरा है। जो खुफिया जानकारी से संचालित युद्ध, वृद्धि पर नियंत्रण और तकनीकी तत्परता के बारे में बहुमूल्य सबक प्रदान करता है, यह बात डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही हैं। पावार को न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजी पर फिक्की के एक कार्पाम में बोलते हुए जनरल सिंह ने इस ऑपरेशन को भारत की एकीकृत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए सही समय पर संघर्ष को रोकने के लिए तैयार किया गया एक मास्टरली स्ट्रोक बताया। पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना रणनीतिक वृद्धि युद्ध शुरू करना आसान है, लेकिन इसे नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है। फिक्की के कार्पाम को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन की भूमिका पर बात की। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 5 साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है। सिंह का कहना है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान के साथ चीन की तो बड़ी भूमिका थी ही पर इस दौरान तुर्कीये की पाकिस्तान को दी गई सैन्य मदद का भी पा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन इस्तेमाल किए गए। जो तुर्किये से आए थे। वो कहते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कुछ सबक है जो मैं जरूरी समझता हूं बताना। सबसे पहले एक सीमा पर दो दुश्मन नहीं थे। हमने सिर्फ पाकिस्तान को तो सामने देखा, लेकिन दुश्मन असल में दो थे, बल्कि अगर कहें तो तीन या चार भी थे। पाकिस्तान तो सिर्फ सामने दिखने वाला चेहरा था। हमें चीन से (पाकिस्तान को) हर तरह की मदद मिलती दिखी और ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से पाकिस्तान की हर क्षेत्र में मदद करता रहा है। उनका कहना है एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो ये कि वो अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की लाइव लैब उसे मिल गई हो। इसके अलावा तुर्कीये ने भी बहुत अहम भूमिका निभाई, जो पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा था। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ उनके प्रशिक्षित लोग भी थे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक ये है कि कम्युनिकेशन निगरानी और सेना नागरिक तालमेल। इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब डीजीएमओ लेवल की बातचीत हो रही थी, तब पाकिस्तान कह रहा था कि हमें मालूम है कि आपकी एक यूनिट पूरी तरह तैयार है। कृपा इसे पीछे कर लें। यानि चीन उन्हें लाइव इनपुट दे रहा था। इस मामले में हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। मैंने इलेक्ट्रानिक वार फेयर की बात की और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत भी बताई। लेकिन हमारे आबादी वाले इलाकों की रक्षा भी जरूरी है। जहां तक बाकी बात है, हमारे पास वो सहूलियते नहीं है जो इजरायल के पास है। वहां आयरन डोम जैसा सिस्टम है और कई एयर डिफेंस फीचर हैं। हमारे देश का दायरा बहुत बड़ा है तो इस तरह की चीजों पर बहुत पैसा लगता है इसलिए हमें सैंसेटिव हल ढूंढने होंगे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक मिला कि हमारे पास मजबूत और सुरक्षित सप्लाई चेन होनी चाहिए। उन्होंने इसे सोच के नजरिए से समझाते हुए कहा कि जो उपकरण हमें इस साल जनवरी या पिछले साल अक्टूबर-नवम्बर तक मिलने चाहिए थे, वो वक्त पर नहीं पहुंच सके। मैंने ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को बुलाया था और पूछा था कि कितने लोग तय समय पर उपकरण दे सकते हैं। तो कई लोगों ने हाथ उठाए। लेकिन एक हफ्ते बाद जब फिर से बात की, तब कुछ भी सामने नहीं आया। इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि डिप्टी चीफ आर्मी स्टॉफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने सार्वजनिक मंच से वही बात साफ कर दी है जो लम्बे वक्त से चर्चा में थी। उन्हेंने एक्स पर लिखा और बताया कि किस तरह चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स की असाधारण तरीके से मदद की। यह वही चीन है जिसने पांच साल पहले लद्दाख में यथास्थिति पूरी तरह बदल दी थी। जनरल सिंह ने देश को चेता दिया है कि अगले संघर्ष में भारत को फिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 5 July 2025

ईरान का मोसाद से बदला

इजरायल के ईरान पर हमले की शुरुआत के बाद सामने आई रिपोर्ट्स से स्पष्ट संकेत मिला कि युद्ध का मोर्चा आसमान में नहीं बल्कि जमीन में भी पहले से ही खुल चुका था। काफी समय से ईरान में गहरी खुफिया और ऑपरेशन घुसपैठ के जरिए इजरायल में तैयारी कर रहा था। हालांकि, ईरानी अधिकारी पहले भी ये आशंका जता चुके हैं कि इजरायल ईरानी सुरक्षा बलों में घुसपैठ कर सकता है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इजरायल आमतौर पर मोसाद के कामकाज पर टिप्पणी नहीं करता और ईरान में चली रही कार्रवाईयों में दूसरी खुफिया एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं। फिर भी ऐसा माना जाता है कि मोसाद ने ईरानी जमीन पर लक्ष्यों की पहचान और ऑपरेशनों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ इजरायली अधिकारियों की टिप्पणियों से साफ होता है कि ईरान के भीतर एंटी-सबमरीन सिस्टम, मिसाइल गोदाम, कमांड सेंटर्स और चुनिंदा टॉप मिलिट्री और साइंटिस्टों को निशाना बनाकर एक साथ और बेहद सटीक हमले किए गए। ये हमले उन खुफिया गतिविधियों के जरिए मुमकिन हो पाए, जो काफी समय से ईरान के अंदर सक्रिय थीं। इजरायल के हमलों ने न सिर्फ ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि देश के भीतर उनकी खुफिया क्षमताओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया। उधर इजरायल के साथ हाल के संघर्ष के बाद ईरान में गिरफ्तारियों और मौत की सजा देने का मोसाद से बदला लेने का सिलसिला शुरू हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि इजरायल के एजेंटों ने ईरानी खुफिया सेवाओं में अभूतपूर्व ढंग से घुसपैठ कर ली है। इन अधिकारियों को इस बात का शक है कि ईरान के हाई प्रोफाइल नेताओं की जिस तरह से हत्या हुई है, उसमें इजरायली सेना को दी खुफिया एजेंटों से मिली जानकारियों का हाथ रहा होगा। इजरायल ने हाल के संघर्ष में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कई सीनियर कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी। ईरानी अधिकारियों ने इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में तीन लोगों को फांसी दे दी है। तेहरान ने संघर्ष विराम के एक दिन बाद जहां 3 मोसाद जासूसों को फांसी दी वहीं सेना ने 700 से अधिक इराकी संबंध रखने वाले जासूसों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा ईरान ने यह भी कहा है कि सुरक्षा एजेंसियें ने हाल के हफ्तों में तेहरान और अन्य शहरों में मोसाद एजेंटों द्वारा संचालित कई भूमिगत ड्रोन सुविधाओं को भी नष्ट कर दिया है। इन तीन मोसाद एजेंटों को ईरानी शहर उरमिया में फांसी दी गई। ईरानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को बरकरार रखा जिसके बारे में उनका कहना है कि यह व्यापाक कानूनी कार्रवाई के बाद हुआ था। तीनों लोगों की पहचान इदरीस अली, आजाद शोजाई और रसूल अहमद रसूल के रूप में हुई है। उन पर आरोप था कि तीनों लोगों ने इजरायल की मोसाद के सहयोग करके प्रतिष्ठित ईरानी हस्तियों के लिए ईरान के अंदर ही बम और विध्वंस के सामान की तस्करी की। ईरानी टीवी रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायिक रिकार्ड बताते हैं कि इन व्यक्तियों ने पड़ोसी देश में एक प्रमुख मोसाद एजेंट के माध्यम से पेय पदार्थों की तस्करी की और तदनुसार किसी ईरानी व्यक्ति की हत्या कर सकते थे। जैसा मैंने कहा ईरान ने मोसाद से बदला लेना शुरू कर दिया है और घर के अंदर दुश्मनों की सफाई शुरू कर दी है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 3 July 2025

ईरान और आईएईए के बीच तनातनी

ईरान और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने भरोसे की कमी और बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के डायरेक्टर जनरल रफाएल ग्रोसी की संभावित यात्रा से साफ इंकार कर दिया। अरागची ने यह भी साफ किया कि ईरान एक नया कानून लागू करने जा रहा है, जिसमें खास शर्तें पूरी होने तक आईएईए से सहयोग रोकने की बात है। उधर, ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ नाराजगी को देखते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसकी निंदा की है और आईएईए के काम का खुलकर समर्थन किया। आईएईए के लिए ईरान का यह सख्त रुख उसके परमाणु ठिकानों पर हुए इजरायल और अमेरिका के हमलों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिससे आगे परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ी निगरानी और ज्यादा पेचीदा हो सकती है। आईएईए प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने 24 जून को ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम की घोषणा के बाद अब्बास अरागची से मिलने और आईएईए-ईरान की बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने 26 जून को सरकारी चैनल आईआरआईएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा ः इस वक्त हमारा बिल्कुल भी कोई इरादा नहीं है कि हम रफाएल ग्रोसी को बुलाएं। वह हमारे परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इजरायल के हमलों से हुए ऩुकसान का आकलन करना चाहते हैं। उन्होंने कहा ग्रोसी ने अपनी रिपोर्ट में ईमानदारी से काम नहीं लिया। जब हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ तब एजेंसी ने उस हमले की निंदा तक नहीं की। अरागची ने यह भी बताया कि ईरान ने आईएईए के साथ सहयोग रोकने के लिए एक नया कानून पारित किया है। इस मामले पर एक विधेयक संसद से पास हुआ, गार्डियन काउंसिल से मंजूरी भी मिल गई है और अब यह कानून बन चुका है, जिसे हमें मानना ही पड़ेगा। अमेरिका ने ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ उठ रही आवाजों पर सख़्त रुख़ अपनाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा-ईरान में आईएईए के महानिदेशक रफाएल ग्रोसी की गिरफ्तारी और फांसी की मांगें अस्वीकार्य हैं और इनकी निंदा की जानी चाहिए। हम ईरान में आईएईए के अहम जांच और निगरानी काम का समर्थन करते हैं। बता दें कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जिसे दुनिया के एटम्स फॉर पीस एंड डवेलपमेंट के नाम से भी जाना जाता है। यह परमाणु क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मुख्य केंद्र है, जो अपने सदस्य देशों और दुनियाभर के कई साझेदारों के साथ मिलकर परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, भरोसेमंद और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। 2018 में अमेरिका के इस संगठन से बाहर होने के बाद और नए प्रतिबंधों के बाद ईरान ने समझौते की शर्तों का पालन कम कर दिया। उसने यूरेनियम संवर्धन की सीमा बढ़ा दी। अमेरिका के ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी के बाद अब यह संभावना तय है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा और जल्द ही हमें यह जानकारी मिल सकती है कि ईरान अब परमाणु शक्ति बन गया है और जिस दिन यह घोषणा हुई उसी दिन से पूरी दुनिया की राजनीति बदल सकती है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 1 July 2025

भारत में एफ-35बी का उतरना रहस्यमय

केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर कुछ दिन पहले शनिवार के दिन रात एक अत्याधुनिक ब्रिटिश स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 बी की इमरजैंसी लैंडिंग ने न सिर्फ हमारी सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अटकलों का बाजार भी गर्म कर दिया। यह वहीं एफ-35 बी है जिसे अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है और जो नाटो देशों का राजनीतिक हथियार माना जाता है। यह अमेरिका का सबसे आधुनिक पांचवीं जेनरेशन का एडवांस जैट फाइटर है, जिसे अमेरिका भारत को बेचने का प्रयास व दबाव डाल रहा है। लैंडिंग का कारण ः ईंधन या तकनीकी गड़बड़ी या फिर भारत की जासूसी? शुरुआती रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि विमान का ईंधन खत्म होने के कारण इसे लैंडिंग करनी पड़ी। लेकिन बाद में सामने आया कि हाइड्रोलिक सिस्टम में गंभीर खराबी भी आ गई थी और यह तकनीकी गड़बड़ी इतनी गंभीर थी कि अब तक विमान उड़ान नहीं भर सका है और अभी भी तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर खड़ा है। रायल नेवी के युद्धपोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स से रातोंरात विशेषज्ञों को हेलीकॉप्टर के जरिए भेजा गया ताकि मरम्मत तुरन्त शुरू हो सके। लैंडिंग के बाद विमान से एक पल के लिए भी दूर नहीं होना चाहता पायलट। जब तकनीकी की टीम नहीं पहुंची वह एयरसाइड पर ही विमान के पास एक कुर्सी पर बैठा रहा। इसी दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटिड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ने विमान को ट्रैप करके उसकी पहचान कर ली। इस एफ-35 बी को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग साजिश की थ्योरी चल रही है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों और वेरिफाइड अकांट्स का कहना है कि यह भारतीय वायु सुरक्षा प्रणाली की परख भी हो सकती हैö जैसे यह देखना कि भारत के राडार इस स्टेला विमान को पकड़ सकते हैं या नहीं? विशेषकर जब तक भारत में हाल ही में आपरेशन सिंदूर के तहत चीन और पाकिस्तान के पास आए ड्रोन और मिसाइलों को रोककर अपनी एयर डिफेंस क्षमता का प्रदर्शन किया है। क्या इमरजेंसी थी या? कोई रणनीतिक योजना? इस सवाल का कोई आधिकारिक जवाब अब तक नहीं मिला है। लेकिन भारत की सतर्कता ने एक बात तो साफ कर दी कि भारतीय एयरफोर्स और एटीसी की प्रतिािढया तेज, सटीक और पेशेवर थी। ब्रिटिश नौसेना पहले जैट को हैंगर में नहीं ले जाना चाहती थी। उन्हें डर था जैट की तकनीकी जानकारी दूसरे लोग देख सकते हैं। दो सप्ताह इंकार के बाद ब्रिटेन ने आखिरकार फंसे विमान को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के हैंगर में शिफ्ट करने की सहमति दे दी। ब्रिटिश नेवी को डर है कि कहीं भारत या दूसरे मित्र देश (रूस) जैट की खास तकनीक को न देख सकें और उसे एनालाइन करके कापी न कर लें। एफ-35बी पांचवीं पीढ़ी का अमेरिकी निर्मित रटेल्स फाइटर जेट है और सबसे उन्नत स्टेन्थ फाइटर जेट है। इतिहास का सबसे महंगा फाइटर जेट प्रोग्राम है। एफ-35बी मल्टी रोल वाला विमान है और ये हवाई, जमीनी जंग में मदद और इलैक्ट्रोनिक युद्ध में महारत रखता है। ये इलैक्ट्रानिक युद्ध, खुफिया जानकारी जुटाने, हवा से जमीन और एयर टू एयर में एक साथ मिशन चलाने की क्षमता रखता है। इसके सैंसर से जमा हुई जानकारी अपने कमांड सेंटर को सुरक्षित भेज सकता है। - अनिल नरेन्द्र

Saturday, 28 June 2025

इजरायल-ईरान युद्ध के क्या निकले नतीजे

इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग के क्या नतीजे निकले? इस जंग में तीन प्रमुख देश शामिल थेö इजरायल, ईरान व अमेरिका। इसके तीन ही प्रमुख किरदार थे... अयातुल्ला अली खामेनेई, बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रंप। अगर हम किरदारों की बातें करें तो सबसे बड़े हीरो रहे अयातुल्ला खामेनेई। न सिर्फ उन्होंने इजरायल को उनके इतिहास में पहली बार ऐसी मार मारी की उसे अपने असितत्व को बचाने के लिए ट्रंप के आगे भीख मांगनी पड़ी। बता दें कि इजरायल ने 12 दिन के इस युद्ध को दो उद्देश्यों से शुरू किया था। पहला ः ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म करा जाए। दूसरा उद्देश्य था कि ईरान से अयातुल्ला रेजीम को खत्म करके अपने पिठ्ठओं को बैठाना। इजरायल दोनों मामलों में नाकाम रहा। ईरान ने इजरायल सेना पर तबाड़तोड़ जवाबी हमला किया कि उसके अस्तित्व पर ही खतरा हो गया और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ट्रंप की शरण में जाना पड़ा। रहा सवाल सत्ता परिवर्तन का तो ईरान पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हो गया और मजबूत हो गया। इजरायल की मध्य पूर्व में बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो गई। और जहां तक परमाणु कार्पाम रोकने का सवाल है बेशक अमेरिका ने ईरान के कुछ परमाणु संयंत्रों पर जबरदस्त हमले किए पर वह ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म नहीं कर सके। ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। अमेरिकी पेंटागन से जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है अमेरिका और इजरायल के हमले से ईरान का परमाणु कार्पाम पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि ट्रंप इसे फेक न्यूज कहते हैं। अब बात करते हैं इजरायल और नेतान्याहू की। नेतान्याहू ने इजरायल को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है जितना उसको 70-75 वर्षों के इतिहास में किसी ने नहीं पहुंचाया। इसने इजरायल के मध्य पूर्व में न केवल धौंस को ही खत्म कर दिया बल्कि दुनिया को यह साबित कर दिया कि वह अभेद देश नहीं, उस पर भी हमले हो सकते हैं। इजरायल की चौधराहट हमेशा के लिए खत्म हो गई है। नेतान्याहू चले तो खामेनेई को हटाने कहीं खुद को न हटना पड़ जाए? अब बात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। वह बार-बार झूठे साबित हो चुके हैं पर उनके सीज फायरों (युद्ध विराम) की घोषणाएं भी मजाक बनकर रह गई हैं। उल्लेखनीय है कि संघर्ष के 12वें दिन ट्रंप के सीजफायर ऐलान के कुछ ही घंटों में इजरायल और ईरान ने फिर से हमले करने शुरू कर दिए। यह खुशी की बात है कि फिलहाल युद्ध विराम लागू है, कितने दिनों तक रहता है यह कहना मुश्किल है। जहां तक ट्रंप के सीजफायर की बात है तो आपरेशन सिंदूर संघर्ष को रुकवाने का श्रेय वह अब तक 17 बार ले चुके हैं जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसे ही ट्रंप ने रूस-पोन के युद्ध विराम की झूठी घोषणा की थी किन्तु यह संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी सीजफायर घोषणाओं को भी नोबेल पुरस्कार के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हैं। हालांकि तथ्य यह है कि नोबेल पुरस्कार तत्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। कुल मिलाकर ईरान और अयातुल्ला का पलड़ा सबसे भारी रहा। मैंने लिखा था कि ईरान बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा यह सत्य होता जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 26 June 2025

ईरान के पास पलटवार के विकल्प

रविवार सुबह इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका के सीधे कूदने से पूरे विश्व में चिन्ता की लहर दौड़ गई। घोषित रूप से अमेरिका ने ईरान के परमाणु उपामों को निशाना बनाया और इसकी आशंका संघर्ष की शुरुआत से ही जताई जा रही थी। अमेरिका ने अपने सबसे दूसरे बड़े बम कल्संटर बम जो कि बी-2 बॉम्बर से फेंका गया या इस्तेमाल करके अब ईरान के लिए जवाबी कार्रवाई अपनी पूरी ताकत के साथ करने का रास्ता खोल दिया। इजरायल और अमेरिका दो प्रमुख लक्ष्य के साथ इस संघर्ष में उतरे थे। ईरान का परमाणु कार्पाम का पूरी तरह से खात्मा और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के शासन का अंत। हमें नहीं लगता कि अमेरिकी बमबारी के बाद भी वह अपने इन लक्ष्यों में से कोई भी लक्ष्य पूरा होने के करीब पहुंचा। आज ईरान को अमेरिका को भी मुहंतोड़ जवाब देने का मौका मिल गया। जब से इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु स्थलों पर बम फेंके हैं और युद्ध शुरू किया है। तब से ईरान के सर्वोच्च नेता से लेकर कई अधिकारियों ने अमेरिका को इस युद्ध से दूर रहने के कहा था। अब देखना है कि ईरान के पास जवाबी कार्रवाई करने के विकल्प क्या हैं? ईरान होर्मूज जलडमरूमध्य को को निशाना बना सकता है। ईरान फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। बता दें कि वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल तेल व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत इसी होर्मूज के जरिए ही होता है। इसका दुनिया पर क्या परिणाम होगा कल्पना भी करना मुश्किल है। दूसरा ः अमेरिकी ठिकानों और सहयोगियों पर हमला कर सकता है ईरान। अमेरिका ने इस क्षेत्र में हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं। इनमें कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में स्थायी अड्डे शामिल हैं। इन ठिकाने पर इजरायल जैसे ही अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्था है। लेकिन मिसाइलों की बौछार या सशस्त्र ड्रोनों के झुंडों से पहले अलर्ट के लिए बहुत कम समय होगा। ईरान उन देशों में प्रमुख तेल और गैस संयंत्रों पर भी हमला कर सकता है। ऐसा करके ईरान युद्ध में अमेरिका की भागीदारी के लिए इन देशों को सबक सिखाना चाहेगा। इजरायल अपनी प्रवासियों-हिजबुल्ला, हमास, हूती से भी अमेरिका और इजरायल पर हमले करवा सकता है। ईरान ने अमेरिकी हमलों की कड़ी निन्दा की है और इसे अपमानजनक बताया है। ईरान ने दूरगामी नतीजों की चेतावनी भी दी है। ईरान को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जवाब देने का हक है और वह इजरायल के साथ अमेरिका को भी निशाना बना सकता है। अव्वल तो ट्रंप के संघर्ष में कूदने की अमेरिका में ही निन्दा हो रही है। विपक्षी दल युद्ध भड़काने वाले इस एकतरफा कदम की तीखी आलोचना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इजरायल में नेतान्याहू की और अमेरिका में ट्रंप की सत्ता को ही चुनौती मिल सकती है। रहा सवाल ईरान का और अयातुल्ला अली खामेनेई को सत्ता से हटाने के लक्ष्य का। सवाल है आज ईरान एकजुट हो गया है और पूरी ताकत से अयातुल्ला खामेनेई के पीछे खड़ा है। एक के बाद एक महामारी और युद्धों से जूझती जा रही दुनिया का सबसे ज्यादा स्थायित्व और शांति की जरूरत थी लेकिन डर है कि अमेरिकी हमले ने ऐसी किसी उम्मीद पर पानी फेर दिया है। यही नहीं पूरे विश्व को तीसरे महायुद्ध के दरवाजे पर ला खड़ा कर दिया है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 19 June 2025

क्या ईरान मध्य-पूर्व एशिया का नया सुपर पावर बनेगा

शुक्रवार को इजरायल ने ईरान के खिलाफ यह कहते हुए बड़े हमलों को अंजाम दिया कि ईरान उनके लिए और दुनिया के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। इसी उद्देश्य को बताते हुए इजरायल ने तेहरान पर ताबड़तोड़ हमला किया। इजरायल और उसके समर्थक देशों ने सोचा था कि इस हमले के बाद जिसमें उसने ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशीप व परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी सोचा कि ईरान अब घबराकर चुप बैठ जाएगा पर इतनी बर्बादी के 24 घंटे के अंदर-अंदर ईरान ने इजरायल पर इतना जबरदस्त जवाबी हमला किया कि इजरायल-अमेरिका तमाम साथी तिलमिला गए। इजरायल के शुक्रवार को किए गए हमले के जवाब में ईरान ने शनिवार को ही जवाबी हमला कर दिया। इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) के मुताबिक ईरान ने शनिवार देर रात करीब 24 घंटे में 150 से ज्यादा इजरायली ठिकानों को निशाना बनाया और तब से लेकर इस लेख लिखने तक ईरान इजरायल पर अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों के जरिए ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। ईरान ने इजरायल के कई महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को सीधा निशाना बनाया है, इनमें सेना का हेडक्वार्टर से लेकर वाइजमैन सेंटर जहां से इजरायल सारी सैनिक कार्रवाईयां तय करता है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के निवास तक को नहीं छोड़ा। दरअसल ईरानी मिसाइलें इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम को गच्चा देकर अपने निशाने पर पहुंच गई। इससे सारी दुनिया चौंक गई। ईरान ने साबित कर दिया कि उसकी टेक्नोलॉजी अमेरिका, रूस और चीन के लगभग बराबर पहुंच गई है। इसी से इजरायल और अमेरिका में घबराहट पैदा हो गई है। यही नहीं अन्य अरब देशों में भी दहशत पैदा हो गई है। ईरान दरअसल पिछले बीस-पच्चीस साल से इस लम्हे की तैयारी कर रहा था। इजरायल का ईरान पर हमला करने के पीछे कई उद्देश्य थे। दरअसल वो चाहते हैं कि ईरान में इन आयतुल्ला रैजीम का तख्ता पलट करवा दें और अपनी मनपसंद, हमदर्द सरकार को सत्ता सौंप दे। इस मकसद में ईरान के अंदर से भी उसको मदद मिल रही है। मौसाद ने ईरान के अंदर कई स्लीपर सेल तैयार कर लिए हैं जो आयतुल्ला खामेनेई सरकार के खिलाफ इजरायल के लिए काम करते हैं। फिर शाह रजा पल्लवी के समर्थक अभी भी ईरान में मौजूद हैं। शुक्रवार को जब इजरायल ने पहली बार ईरान पर हमला किया था तो उसमें ईरान के अंदर ड्रोनों से हमला किया गया था। इसका मतलब है कि मौसाद ने ईरान के अंदर ही ड्रोन फैक्ट्री तैयार कर ली थी। ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशिप की पुख्ता जानकारी भी रही। ईरानी मौसाद एजेंटों ने इजरायल को जानकारी दी होगी तभी तो मौसद ने ठीक ठिकानों पर हमला किया। इस बीच इजरायल सरकार ने ईरानी लोगों से खामेनेई को सत्ता के विरोध का आ"ान किया है। इसके लिए इजरायल की ओर से फारसी भाषा में संदेश जारी किए जा रहे हैं। इस बीच यह भी संकेत मिला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या करने की इजरायल की योजना पर रोक लगा दी है। कुल मिलाकर जिस तरीके से ईरान इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा जो रूकने के नाम नहीं ले रहे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि मिडल ईस्ट में एक नया पावर सेंटर ईरान बनने जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 17 June 2025

अगर जंग बढ़ी तो क्या होगा?

पहले से युद्धरत इजरायल ने ईरान के परमाणु व सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसमें कई शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर मारे गए हैं। अपने लिए युद्ध का न केवल एक मोर्चा खोल दिया है बल्कि यूं कहें कि न केवल पश्चिम एशिया को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एक खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल, इजरायल का कहना है कि यह ऑपरेशन राइजिंग लायन ईरान की कथित परमाणु हथियार महत्वाकांक्षाओं को विफल करने के लिए किया गया है। इजरायल के हमले के जवाब में पावार रात ईरान ने अपना जवाबी ऑपरेशन लांच किया। इजरायल में राजधानी तेल अवीव, यरूशलम में कई जगहों पर कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गईं और ड्रोन से हमला किया। सोशल मीडिया में इजरायल ईरान के हमले से हुई बर्बादी की कई तस्वीरें आई हैं। ईरान ने दावा किया है कि उसने इजरायल के मिलिट्री कमांड सेंटर जहां से इजरायल के सारे हमले आपरेशन तय किए जाते हैं उसको भी नष्ट कर दिया है। इजरायल का शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम कई मिसाइलों और ड्रोन को गिरा सका पर बहुत से मिसाइलें और ड्रोन सटीक अपने निशाने पर लगे। अब इजरायल की बारी है और फिर ईरान उसका जवाब देगा। ईरान बेशक यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्पाम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है लेकिन उस पर गुप्त ढंग से परमाणु कार्पाम चलाने के जो आरोप लगते रहे हैं, वे आशंकाएं भी पैदा करता है। इसके अतिरिक्त ईरान की ओर से बार-बार यरूशलम को नष्ट करने की धमकियां और उसके द्वारा समर्पित हमास, हिजबुल्ला व हुती जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इजरायल की चिंताओं को और ठोस करती है। फिर सवाल केवल इजरायल की सुरक्षा का नहीं है, एक परमाणु संपन्न ईरान पूरे पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को बिगाड़ने का बताया जा रहा है। फिर सवाल यह भी किया जा सकता है कि पाकिस्तान भी तो एक इस्लामी परमाणु संपन्न देश है तो उससे न तो अमेरिका को कोई चिंता है और न ही इजरायल को। क्या हम यह मानकर चलें कि पाकिस्तान गुप्त रूप से अमेरिका और इजरायल के साथ है। सोशल मीडिया में तो यहां तक दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के करीबी संबंध हैं और सूचनाओं के आदान-प्रदान में साझे हैं। जब पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं तो ईरान से क्यों? विगत दशकों में हमने पश्चिम एशिया में बहुत खून-खराबा देखा है। लाखों बेगुनाह मारे जा चुके हैं। ऐसे में अगर इजरायल और ईरान के बीच युद्ध और बढ़ता है तो बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे। इराक व अफगानिस्तान की तबाही लोग भूले नहीं हैं और बीच में बसे इजरायल और ईरान की तबाही कोई नहीं चाहेगा। अगर सोशल मीडिया पर भरोसा किया जाए तो कुछ मध्य एशिया विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ईरान में अयातुल्लाह रेजीम को खत्म करके अपने हित वाली सरकार बनाना चाहता है। ईरान को बम बनाने की जल्दी है, जबकि अमेरिका के सहयोगी देश ऐसा नहीं चाहते। ईरान की इस कोशिश पर इजरायल को सख्त आपत्ति है और उसका मानना है कि अगर ईरान का परमाणु कार्पाम अभी न रोका गया तो बहुत देर हो जाएगी और ईरान एक परमाणु संपन्न देश बन जाएगा। जो इजरायल के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा। इसलिए वह जल्दी में है। आज युद्ध और युद्ध का माहौल दोनों से बचने की जरूरत है। कुछ लोगों के अहंकार की वजह से आम लोगों का खून नहीं बहना चाहिए। इसके साथ ही यह मुस्लिम देशों के लिए भी अमन-चैन से सोचने का समय है। उन्हें मजहब की बुनियाद पर किसी भी गुटबाजी या जंग की हिमायत से बचना होगा। रही बात इजरायल की तो अमेरिका ऐसे हर मोर्चे पर पल्ला झाड़कर खड़ा हो जाता है। यह किसी से छिपा नहीं कि इस लड़ाई में अमेरिका पूरी ताकत से इजरायल के साथ खड़ा है। बल्कि हम यह कहें कि यहां सारी खुराफात के पीछे अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हाथ है। उसका पिट्ठू नेतान्याहू बगैर अमेरिका के एक कदम नहीं उठाता है। ट्रंप को लगता है कि इस बात की भी कतई चिंता नहीं कि ईरान-इजरायल युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में न बदल जाए, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऊपर वाला सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे और जंग रोकने में मदद करे। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 14 June 2025

डिप्लोमेसी या डबल गेम?

अमेरिका ने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की खुलकर तारीफ की है, बल्कि पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिका आमंत्रित किया है। इससे ठीक पहले असीम मुनीर ने एक ऐसा बयान दिया था, जिसे भारत ने जम्मू-कश्मीर में हुए 22 अप्रैल के आतंकी हमले से जोड़कर देखा। दरअसल ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के साथ ही यह देखा जा रहा है कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का ट्रंप प्रशासन का रुख कुछ बदला हुआ है। गत बुधवार को यह काफी स्पष्ट भी हो गया कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका का रवैया बदला हुआ है। पिछले कुछ घंटों में अमेरिकी सरकार ने तीन स्तरों पर ऐसे संकेत दिए हैं जो भारत की चिंताओं को बढ़ाते हैं। पहलाöअमेरिकी सेना के केंद्रीय कमांड (यूएस सेंटकॉम) के प्रमुख माइकल कुरिल्ला ने कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पाकिस्तान एक जबरदस्त साझीदार है। दूसराö14 जून को अमेरिकी सेना दिवस की परेड में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया है। तीसरा-व्हाइट हाउस ने संकेत दिए है कि कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हस्तक्षेप कर सकते हैं। अमेरिकी सेंटकॉम के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अमेरिकी सरकार के कानूनी बाडी हाउस कमेटी आन आर्मड सर्विसेज की एक सुनवाई में कई बातें कही। हमें भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रिश्ते बनाकर रखने की जरूरत है। हम ऐसा विचार नहीं रख सकते कि अगर भारत के साथ संबंध रखना है तो हम पाकिस्तान के साथ नहीं रख सकते। पाकिस्तान के साथ हमारी काफी जबरदस्त साझेदारी है। पाकिस्तान ने आईएसआईएस-खोरासान के आतंकियों के खिलाफ काफी कार्रवाई की है, दर्जनों आतंकवादियों को मारा है। अमेरिका के साथ सूचनाएं साझा की है और बड़े आतंकियों को पकड़ने में मदद की है। सेंटकॉम चीफ ने असीम मुनीर का भी जिक्र करते हुए तारीफ की है कि कैसे सबसे पहले उन्होंने सरीफुल्लाह की गिरफ्तारी की सूचना उनको दी। सेंटकॉम प्रमुख ने पाकिस्तान सरकार के इस तर्क पर भी मुहर लगाई कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई तो लंबे समय से लड़ी जा रही है। उसमें भी वह प्रभावित हुए हैं। उक्त बयान के कुछ घंटों के बाद ही सूचना आई कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को अमेरिकी सैन्य समारोह में आमंत्रित किया गया है। यह समारोह 14 जून को है। ये वही मुनीर हैं जिन्होंने 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में एक भाषण में कश्मीर को पाकिस्तान को अपनी अपनी जीवन रेखा बताया था। उन्होंने टू नेशन थ्योरी का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिमों को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे हिंदुओं से अलग हैं। मुनीर के इस भड़काऊ बयान के बाद ही 22 अप्रैल को बारीसरन, पहलगाम में आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक शहीद हो गए। आखिर अमेरिका क्या कहना चाहता है? असीम मुनीर जैसे विवादित व्यक्ति को बुलाना भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। हालांकि आज भारत वैश्विक मंचों पर बहुत ऊंचे स्थान पर है। एक विचार है कि अमेरिका का असीम मुनीर को बुलाना और पाकिस्तान को अभूतपूर्व साझेदार कहना भले ही रणनीतिक हो लेकिन भारत के लिए ये साफ संकेत है कि वाशिंगटन अब इस क्षेत्र में बैलेंस बनाकर चलना चाहता है। इससे भारत की नई थर्ड पार्टी पॉलिसी को चुनौती मिलती है। हालांकि दोनों देशों से संबंध बनाएं रखने में अमेरिका की पुरानी नीति रही है, फिर भी यह कदम कूटनीतिक रूप से भारत के लिए असहज जरूर हैं। टैंशन नहीं, लेकिन सतर्कता जरूरी है। अमेरिका की मंशा और सोच पर कई सवाल खड़े होते हैं। फील्ड मार्शल मुनीर के बयान पहलगाम आतंकी हमले से जुड़े हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका की यह डिप्लोमेसी है या डबल गेम? -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 12 June 2025

पाक को अलग-थलग करने में हम विफल रहे


ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीते 9 मई को, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज के रूप में एक अरब डॉलर की किश्त की मंज़ूरी दे दी। ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को 40 बिलियन डॉलर देने का निर्णय लिया... फिर एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पाकिस्तान को 800 बिलियन डॉलर दिए और कुछ दिन पहले 4 जून को पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया। पाकिस्तान के संदर्भ में हुई इन सभी डेवलपमेंट्स को कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सामने रखा है और भारत की विदेश नीति के पतन से जोड़कर देखा है। साथ ही उन्होंने वैश्विक समुदाय पर भी सवाल खड़े किए हैं। 
पाकिस्तान इन नियुक्तियों को एक बड़ी जीत के रूप में पेश कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है यह उनके देश के लिए बहुत गर्व की बात है। उन्होंने एक्स पर किए एक पोस्ट में लिखा है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महत्वपूर्ण नियुक्तियां प्रमाणित करती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की आतंकवाद-रोधी कोशिशों पर पूरा भरोसा है। शरीफ ने कहा पाकिस्तान उन देशों में से एक है जो आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित है। आतंकवाद के कारण अब तक देश में 90,000 लोगों की जान जा चुकी है। देश को 150 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हो चुका है। पर भारत ने इसे लेकर खासी आपत्ति जताई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बीते 22 अप्रैल को निर्दोष, निहत्थे पर्यटकों पर हुए हमले के लिए भारत ने पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है। इससे पहले भी अलग-अलग म़ौकों पर, मसलन साल 2016 में उरी में भारतीय सैनिकों पर हमला, साल 2019 में पुलवामा में हुआ विस्फ़ोट या फिर साल 2008 में मुंबई के होटलों पर हुए हमले .साबित करते हैं कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान है। उनकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। ऑपरेशन सिंदूर भारत को मजबूरी में करना पड़ा। तीन-चार दिन के संघर्ष के बाद भारतीय सांसदों के सात अलग-अलग शिष्टमंडलों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा किया। पीआईबी की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक इस दौरे का मकसद ऑपरेशन सिंदूर और सीमापार आतंकवाद के खिलाफ भारत की निरंतर लड़ाई के बारे में सदस्य देशों को अवगत कराना था, जहां एक तरफ भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों के समक्ष सीमापार आतंकवाद का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान को घेरने की कोशिश में जुटा था, वहीं पाकिस्तान को इस यूएनएससी के आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुन लिया गया। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के डिप्लोमेटिक एडिटर सुभाजित राय ने लिखा है-शायद इन्हीं कारणों से भारत में एक असहजता की स्थिति नजर आ रही है। राजस्थान के एक पुलिस, सिक्यूरिटी एंड क्रिमिनल जस्टिस के इंटरनेशनल अ़फेयर्स असिस्टेंट प्ऱोफेसर विनय कौड़ा का कहना है कि पाकिस्तान जैसे देश को यूएनएससी जैसी संस्था में कोई भी ज़िम्मेदारी देना केवल कूटनीतिक संवेदनहीनता नहीं बल्कि इस पूरे ढांचे की खामी को उजागर करता है। पाकिस्तान को इन समितियों का हिस्सा बनाना उसी देश को आतंकवाद पर निगरानी की ज़िम्मेदारी सौंपने जैसा है, जिस पर स्वयं आतंकवाद को पनाह देने, जन्म देने और उसे विदेश नीति के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप हैं। ये भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद-रोधी ढांचे की विश्वसनीयता के लिए भी एक चिंता का विषय है। पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति कोई नया मुद्दा नहीं है, यह ऐतिहासिक तथ्यों और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दर्ज है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादियों को शरण देना हो, जैसे ओसामा बिन लादेन या हा]िफज़ सईद या फिर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को खुला समर्थन देना हो। पाकिस्तान ने लगातार आतंकवाद को अपनी राजनीति का उपकरण बनाया है, विशेष रूप से भारत के विरुद्ध। जेएनयू में असिस्टेंट प्ऱोफेसर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ये खबर भारत के लिए चिंता पैदा करने वाली है। ऐसी नियुक्तियां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों की तऱफ से हरी झंडी मिलने के बाद ही होती हैं और हरी झंडी देने का मतलब है ये स्वीकारना की पाकिस्तान का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है। हमारी कोशिश रही है कि आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका रही है पर दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ऐसा शायद नहीं मानते। जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान को सर्टिफिकेट देना उसकी बड़ी उपलब्धि रही है, वहीं यह भारत की एक बड़ी विफलता मानी जाएगी। हमारी विदेश नीति एक बार फिर नाकारा साबित होती है। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 10 June 2025

मस्क बनाम ट्रंप बनाम अडानी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आजकल प्रमुख उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं। पहले बात करते हैं एलन मस्क की। दुनिया के सबसे अमीर शख्स में से एक एलन मस्क और सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरा टकराव हो गया है। दोनों के बीच की असहमति अब पूरी तरह जुबानी जंग में तब्दील हो चुकी है। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर उनमें तलवारें खींची हुई हैं। मस्क की तरफ से ट्रंप के बार-बार टैक्स बिल के आलोचना किए जाने पर ट्रंप ने बेहद नाराजगी जताई। ट्रंप ने संघीय सरकार के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले एलन मस्क के कारोबारी सौदों को लेकर धमकी दी है। ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया वेबसाइट पर धमकी देते हए लिखा, अगर बजट में बात करनी है तो इसका सबसे आसान तरीका है एलन मस्क को मिलने वाली अरबों डालर की सब्सिडी और कांट्रेक्ट खत्म कर दिए जाएं। फिलहाल तो ट्रंप और मस्क के झगड़े के बाद मस्क की कंपनी टेस्ला के शेयर गुरुवार को 14 फीसदी गिर गए। हालांकि यह जंग एकतरफा का नहीं थी। ट्रंप के हमले के बाद मस्क ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाने तक की बात की और मांग कर दी। मस्क ने पलटवार करते हुए यहां तक कह दिया कि मैं न होता तो ट्रंप चुनाव हार जाते। उन्होंने ट्रंप पर बेवफाई का आरोप भी लगाया। यही नहीं मस्क ने कहा कि अब नई पार्टी बनाने का समय आ गया है जोकि 80 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करे। इस टकराव का असर अमेरिका की राजनीति, अंतरिक्ष कार्पामों और वैश्विक टेक जगत पर भी पड़ सकता है। इधर ट्रंप और उनकी एजेसियां भारत के बड़े उद्योगपति गौतम अडानी के पीछे भी हाथ धोकर पड़ी हुई है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिकी अभियोजक जांच कर रहा है कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अडानी की कंपनियों ने मुद्रा पोर्ट के रास्ते में ईरानी लिक्विडफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का आयात किया था। हालांकि अडानी एंटरप्राइजेस ने एक बयान में इस रिपोर्ट को बेबुनियाद और नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा, हमें इस मामले पर अमेरिकी अधिकारियों की ओर से की गई किसी जांच के बारे में जानकारी नहीं है। वाल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि उसे गुजरात के मुद्रा बंदरगाह और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले टैकरों में कुछ ऐसे संकेत दिखे हैं, जो एक्सपर्ट्स के अनुसार प्रतिबंधों से बचने वाले जहाजों में आम होते हैं। अपनी रिपोर्ट में अखबार ने यह भी कहा कि अमेरिका का न्याय विभाग अडानी समूह की प्रमुख इकाई अडानी एंटरप्राइजेज को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई एलपीजी टैकरों की गतिविधियों की समीक्षा कर रहा है। ये जांच ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई में ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स की खरीद पर पूरी तरह रोकने का आदेश दिया था और कहा था कि जो देश या व्यक्ति ईरान से खरीददारी करेगा, उस पर तुरन्त से सेकेंडरी सेक्शंस लगाए जाएंगे। अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में लिखा कि एशिया के हमारे सबसे बड़े अमीर शख्स गौतम अडानी अपने खिलाफ अतीत में लगे आरोपों को खारिज करवाने की कोशिशों में जुटे हैं। बीते साल नवम्बर में ही गौतम अडानी पर अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वत का मुकदमा दायर किया गया था। अखबार ने लिखा है कि ब्रकलिन में अमेरिकी अटार्नी कार्यालय की ओर से की जा रही जांच अडानी के लिए समस्या साबित हो सकती है। वाल स्ट्रीट के अनुसार बीते साल की शुरुआत में अमेरिकी एजेंसियों ने मुद्रा पोर्ट से फारस की खाड़ी जाने वाले जहाजों की गतिविधियों को जांचा था। जहाजों को ट्रैक करने वाले एक्सपर्टस का कहना है कि ऐसे जहाजों में देखा गया है जो आवाजाही के दौरान अपनी पहचान स्पष्ट नहीं रखते। वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट पर अडानी समूह ने बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी है कि अडानी समूह की कंपनियों और ईरान एलपीजी के बीच संबंध का आरोप लगाने वाली वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट निराधार और नुकसान पहुंचाने वाली है। अडानी जानबूझकर किसी भी तरह के प्रतिबंधों से बचने का ईरानी एलपीजी से जुड़े व्यापार में संलिप्तता से साफ इंकार करते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 7 June 2025

न्यायपालिका में सवाल भ्रष्टाचार का

भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाओं का जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे पूरी व्यवस्था की अखंडता में विश्वास कम होता है। ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने पर एक गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यदि कोई जज सेवानिवृत्ति के तुरन्त बाद सरकार के साथ कोई अन्य नियुक्ति लेता है या चुनाव लड़ने के लिए बेंच से इस्तीफा देता है तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इसकी सार्वजनिक जांच होनी चाहिए। सीजेआई ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कहा कि जब भी भ्रष्टाचार और कदाचार के ये मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित उपाय किए हैं। इसके अलावा हर प्रणाली चाहे वह कितनी भी मजबूत क्यों न हो, पेशेवर कदाचार के मुद्दों के लिए अतिसंवेदनशील होती है। सीजेआई ने कहा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामलों से लोगों के मन में इसके प्रति विश्वास कम होता है। हालांकि, इस विश्वास को इन मुद्दों पर त्वरित निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई से दोबारा कायम किया जा सकता है। भारत में भी ऐसे मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित कदम उठाए हैं। सीजेआई की यह टिप्पणी इलाहाबाद के जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार आरोपों के मुद्दे पर आई। वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हर लोकतंत्र में न्यायपालिका को न केवल न्याय प्रदान करना चाहिए बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रख सकती है। हम सीजेआई के शब्दों के लिए उनकी सराहना करते हैं। अगर हम पिछले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना को छोड़ दें तो उससे पहले कई सीजेआई पर सत्ता की तरफ झुकने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ को तो सत्ता के हक में फैसले देने के लिए सेवानिवृत्त होने के बाद पुरस्कृत भी किया गया। प्रधान न्यायाधीश गवई ने भारतीय न्यायपालिका के भी जड़े जमा रही या जमा चुकी उन समस्याओं को दबे साफ शब्दों में स्वीकार किया। जिन्हें लेकर उंगुलियां उठती रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय और कुछ हाईकोर्टों के जजो के राजनीतिक दबाव में या निजी स्वार्थ साधने के मकसद से फैसले सुनाने को लेकर काफी असंतोष जाहिर किया जाता रहा है। कटु सत्य तो यह है कि राजनीतिक लाभ और सत्तापक्ष के दबाव से मुक्त हुए बिना न्यायपालिका सही अर्थों में अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह नहीं कर सकती। इसीलिए प्रधान न्यायाधीश का इस दिशा में प्रयास सराहनीय है। लोकतंत्र में न्यायपालिका पर जनता का विश्वास इसलिए भी बने रहना बहुत जरूरी है कि यही एक स्तंभ है जिस पर संविधान की रक्षा का दायित्व और राजनीतिक तथा व्यवस्थागत कदाचार पर नकेल कसने का मजबूत अधिकार है। चीफ जस्टिस गवई ने यह भी साफ कर दिया है कि देश में न तो कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया सबसे ऊपर है, सबसे ऊपर देश का संविधान है और देश संविधान से ही चलेगा। सीजेआई के वक्तव्यों की हम सराहना करते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 5 June 2025

यूक्रेन ने रूस में 4000 किमी घुसकर मारा

करीब तीन साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन ने रविवार को रूस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला (ड्रोन) किया। इसमें यूक्रेन के अनुसार रूस के सैन्य विमान तबाह करने का दावा किया गया है। हमले से हुए नुकसान की अनुमानित लागत 1.5 अरब पाउंंड (करीब 1.72 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा बताई गई है। यूक्रेन ने इस अभियान को ऑपरेशन स्पाइडर वेब का नाम दिया। उधर रूस पर हुए इस हमले को रूस का पर्ल हार्बट कहा जा रहा है। इस बीच रूस ने भी यूक्रेन पर अब तक का सबसे बड़ा हमला ड्रोन से किया है। 472 ड्रोन और 7 मिसालें दागी गईं। इस हमले में यूक्रेन के 12 सैनिक मारे गए और 60 से ज्यादा घायल हुए। रूसी मीडिया और युद्ध समर्थकों ने इसे रूस के लिए एविएशन का सबसे बड़ा काला दिन बताया और पुतिन से परमाणु हमले की मांग की। ड्रोन को ट्रकों में कंटनेर के जरिए रूस के अंदर ले जाया गया। एक ट्रक मुरमांस्क के ओलेनेर्गस्क में पेट्रोल पंप पर रूका था, जहां से ड्रोन निकालकर एयरबेस की ओर बढ़े। ड्रोन एफपी की तकनीक से लैस थे और सैटेलाइट से नियंत्रित हो रहे थे। बाद में इस कंटेनर को भी उड़ा दिया गया। रूस के बेलाया एयरबेस समेत कई एयरफील्डस को निशाना बनाया गया। हमला रूस के इरकुत्स्क क्षेत्र में हुआ जो यूक्रेन से 4 हजार किलोमीटर दूर है। जिन विमानों पर यूक्रेन ने हमला किया, वे परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थे। रूस की परमाणु नीति के अनुसार अगर किसी हमले से उसकी परमाणु क्षमता प्रभावित होती है तो वह परमाणु जवाब दे सकता है। इसीलिए पुतिन के समर्थक खुलेआम मांग कर रहे हैं कि रूस यूक्रेन पर परमाणु जवाबी हमला करे। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता होनी है। इससे पहले इस तरह का बड़ा हमला रूस पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। कुछ अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक में स्थित रूस के परमाणु बेस पर भी हमला हुआ है। यह बेस रूस की उत्तरी पलीर का मुख्यालय है। कोला प्रायद्वीप पर हुए विस्फोटों के बाद काले धुएं का वीडियो भी सामने आया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि वहां क्या निशाना बना। एक यूक्रेनी सैन्य अफसर ने बताया कि यह ऑपरेशन करीब डेढ़ साल की तैयारी के बाद अंजाम दिया गया। इसकी योजना खुद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की निगरानी में बनाई गई। इन हमले में इस्तेमाल ड्रोन यूक्रेन में विकसित और निर्मित थे, जो रूस की सीमा पर सटीकता से निशाना बनाने में सफल रहे। यह हमला रूसी डिफेंस को कमजोर करने के लिए था। इसके जरिए रूसी वायुसेना को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान होने का भी दावा किया जा रहा है। इस हमले में मिग और सुखोई जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान, निगरानी विमान और कुछ परिवहन विमानों को नष्ट करने की बात भी सामने आई है। रूस को जो नुकसान पहुंचा हो शायद विश्लेषक उसका आंकलन कर रहे हों या न कर रहे हों। लेकिन ऑपरेशन स्पाइडर वेब से एक महत्वपूर्ण संदेश सिर्फ न रूस बल्कि यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों को भी गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा कर रहे थे कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध को रूकवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। यह तो उल्टा बढ़ गया है और निहायत खतरनाक दौर में पहुंच गया है। ऊपर वाला दोनों रूस-यूक्रेन को सद्बुद्धि दे और इस युद्ध को रोकने का हरसंभव प्रयास करें। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 3 June 2025

रक्षा सौदों की आपूर्ति में देरी


पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को लेकर तीनों सेनाओं की हो रही सराहना के बीच वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने मानो एक बम फोड़ दिया है। वायुसेना प्रमुख ने रक्षा सौदे होने के बावजूद आपूर्ति में देरी पर खुलेतौर पर गंभीर चिंता का इजहार किया। भारतीय वायुसेना को लाइट काम्बेट एयराफ्ट (एलसीए) तेजस की आपूर्ति में हो रही देरी की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई बार हम रक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय जानते हैं कि ये उपकरण सिस्टम में समय पर नहीं आएंगे। वायुसेना प्रमुख ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि एक भी परियोजना समय पर पूरी नहीं हुई है। रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों और एजेंसियों को बेबाक संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि हम ऐसा वादा ही क्यों करें, जो पूरा नहीं हो सकता। वायुसेना प्रमुख ने पावार को शीर्ष उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना बैठक के एक सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। दुनिया फिलहाल जिस संवेदनशील दौर से गुजर रही है और भारत के सामने अपने कुछ पड़ोसी देशों के अस्थिर रुख की चुनौतियां खड़ी रहती हैं, वैसे में सुरक्षा का हर मोर्चा हर वक्त पूरी तरह चौकन्ना और दूरुस्त रहना एक अनिवार्य तकाजा है। रक्षा परियोजनाओं में देरी पर एयर मार्शल एपी सिंह की चिंता और सवाल वाजिब है। दोतरफा मोर्चे पर जूझ रही भारतीय सेना के आधुनिकता में तेजी लाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत भी रक्षा उत्पादन में तेजी लानी होगी। कटु सत्य तो यह है कि पिछले दस-ग्यारह सालों से केंद्र सरकार ने रक्षा उत्पादों की ओर ध्यान नहीं दिया है। हमारी वायुसेना में 200 फाइटर जेट्स की कमी पिछले कई सालों से चली आ रही है। एयर मार्शल एपी सिंह समय-समय पर चेताते भी रहे हैं। पर न तो रक्षा मंत्री ने कोई ध्यान दिया न केंद्र सरकार ने। हम अभी 10 साल पहले के दौर में हैं जहां तक काम्बेट एयराफ्ट का सवाल है और हमारे दुश्मन चीन 5वीं जेनेरेशन के फाइटर एयराफ्ट बना चुका है और पाकिस्तान को देने को तैयार है। भारतीय वायुसेना के पास 42.5 स्क्वाडन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 301 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तैनात मार्क ए की डिलीवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायुसेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही जिस तरह चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। रक्षा परियोजनाओं के तहत अगर किसी संदर्भ में वादे किए जाते हैं तो उन्हें समय पर पूरा करने को लेकर भी उतनी ही सत्यता होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी और संसाधनों के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता सबसे बेहतर समाधान है, लेकिन तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। एयर मार्शल एपी सिंह की पीड़ा को हम समझ सकते हैं। बावजूद इन कमियों के हमारे जवानों ने दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारतीय वायुसेना की है। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 31 May 2025

संघर्ष विराम के बाद भी अनसुलझे सवाल


भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम को लगभग 2 सप्ताह होने को जा रहे हैं। बेशक हमने 7 मईं को 22 अप्रैल की पहलगाम आतंकी घटना के बाद पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। उनके 9 आतंकी अड्डों को नष्ट किया, कईं एयरबेस तबाह किए पर हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।

इतने दिन बाद भी कईं अनसुलझे सवाल पूछे जा रहे हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि वो तीन-चार आतंकी कहां हैं जिन्होंने पहलगाम में नरसंहार किया था? आज तक उनका पता नहीं चला कि वह मर गए या जिंदा हैं? कहां है? सरकार की ओर से आज तक कोईं जवाब नहीं मिला। सवाल पूछा जा रहा है कि जिन उद्देश्यों को लेकर हमने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था क्या वह उद्देश्य पूरे हो गए? बेशक हमने जैश और लश्कर-एतै यबा के ठिकानों को नष्ट कर दिया हो, पर क्या यह आतंकवाद की जड़ है। जड़ तो पाक सेना और आईंएसआईं है। पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर का करारा जवाब देते हुए उस जेहादी जनरल आसिम मुनीर को पदोन्नति करके उसे फील्ड मार्शल बना दिया। खबर तो यह भी है कि चीन पाकिस्तान की ऑपरेशन सिंदूर में हुईं क्षति की पूर्ति करने में लगा है।

गोला-बारूद से लेकर ऑर्टिलरी गन, सर्वेलैंस इक्वीपमेंट से लेकर अत्याधुनिक विमान तक देने की कोशिश कर रहा है और हमारा क्या हाल है? चौंकाने वाली बात सामने आईं है कि जब भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने खुलकर कहा कि हमारे को पर्यांप्त लड़ावू विमान नहीं मिल रहे और भारतीय वायुसेना में कम से कम 200 विमानों की कमी है।

उन्होंने चौंकाने वाली बात यह भी कही कि हमें मालूम है कि एचएएल अपनी समय सीमा में विमानों की आपूर्ति नहीं कर सकती? यह सरकार को खुली चुनौती भी है और आलोचना भी। चाहे भाजपा भक्त हों चाहे आम नागरिक हो, सवाल पूछे रहे हैं कि आपने जीती हुईं बाजी क्यों हारी? यहां तक कि भाजपा के भक्त भी कह रहे हैं कि आपने जीत से हार क्यों छीन ली? आप पर कौन सा दबाव था जिसके कारण आपने ऐसा किया? क्या अमेरिकी राष्ट्रपति का कोईं ऐसा दबाव था जिसका आज तक आप जवाब नहीं दे सके। जम्मू-कश्मीर में विश्वास बहाली के लिए वेंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए? आज तक इतने दिन बीतने के बाद भी न तो नंबर बनाए, न दो नंबर या नंबर तीन। उधर उमर अब्दुल्ला बधाईं के पात्र हैं कि वह कम से कम विश्वास बहाली का प्रयत्न तो कर रहे हैं। पर्यंटकों को वापस बुलाने के लिए वह पहलगाम में वैबिनेट बैठक कर रहे हैं, सड़कांे पर साइकिल चला रहे हैं और आपके पास इतना समय नहीं, न ही आपकी प्राथमिकता है कि जम्मू-कश्मीर की जनता को यह विश्वास दिलाएं कि हम आपके इस दुख की बेला में साथ खड़े हैं। पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उसकी मनुस्थिति घायल जानवर की तरह है जो मौका देखते ही फिर झपटा मारेगा। इसलिए हमें पूरी चौकसी रखनी होगी। सेना की जरूरतों को हर हालत में पूरा करना होगा। ऑपरेशन सिंदूर से सियासी फायदा लेने का प्रयास नहीं होना चाहिए। इसका सारा व्रेडिट हमारी पराव्रमी सेना को जाता है और आपके नेता खुलेआम सेना के अधिकारियों की बेइज्जती करने में लगे हैं और आप राजनीतिक हानि-लाभ के चलते उनके खिलाफ वुछ नहीं करते। उम्मीद है कि वेंद्र सरकार इन कमियों को जल्द पूरा करेगी। जय हिंद।

——अनिल नरेन्द्र

Thursday, 29 May 2025

ट्रंप के पाक परस्त होने के पीछे


होने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के व्रिप्टो कारोबार की गूंज अब पाकिस्तान पहुंच गईं है। रिपोट्र्स के मुताबिक, ट्रम्प और उनके परिवार द्वारा समर्थित व्रिप्टो फर्मो का नया ठिकाना अब पाकिस्तान बनने जा रहा है। इस वंपनी की कमान खुद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बेटे सलमान शहबाज के हाथों में होगी। दुबईं में बनी एक संदिग्ध ब्लॉकचेन फर्म हाईंलैंड सिस्टम्स के जरिए यह सारा नेटवर्व खड़ा किया जा रहा है। हाईंलैंड सिस्टम्स की मदद से पाकिस्तान सरकार ब्लॉकचेन और व्रिप्टो माइनिग तकनीक विकसित करेगी। वंपनी में ट्रम्प के बेटे एरिक ट्रम्प और पाकिस्तान के टॉप मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर्स भी साझेदार हैं। दरअसल, ट्रम्प के करीबी निवेशक और व्रिप्टो लॉबी पहले से ही अमेरिका में रेगुलेशन की सख्ती से नाराज है। ऐसे में वे ऐसे देशों की तलाश में हैं, जहां नियम ढीले हों और सत्ता से सीधा तालमेल हो। पाकिस्तान इस समय वह गढ़ बनकर उभरा है। आर्थिक अस्थिरता और सरकार की अमेरिका के साथ संबंध सुधारने की तत्परता जैसे कारण पाक को ट्रम्प के वुनबे के लिए व्रिप्टो हब बनाने के लिए एक आदर्श देश बना रहे हैं। बता दें कि शहबाज सरकार व्रिप्टो को वैध करेंसी के रूप में मान्यता देने की भी योजना बना रही है।

वल्र्ड लिबटा फाइनेंशियल (डब्ल्यूएलएफ) ने शहबाज सरकार द्वारा गठित पाकिस्तान व्रिप्टो काउंसिल (पीकेके) से डील की है। डब्ल्यूएलएफ में ट्रम्प वुनबे की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के वुछ महीने पहले ही यह वंपनी लॉन्च हुईं थी। डब्ल्यूएलएफ ने मार्च में यूएसडी 1 नामक स्टेबलकॉइन लॉन्च किया, जो 18 हजार करोड़ के माव्रेट वैप तक पहुंच गया है। डब्ल्यूएलएफ में ट्रम्प खुद चीफ व्रिप्टो एडवोकेट हैं। उनके बेटे एरिक भी शीर्ष पोस्ट पर हैं। इसके अलावा ट्रम्प परिवार की वंपनियों के पास ट्रम्प मीमकॉइन का 80 प्रतिशत हिस्सा भी है, जिसकी वर्थ एक लाख करोड़ तक पहुंच चुकी है। मेलानिया भी अलग मीमकॉइन लॉन्च कर चुकी हैं। वहीं, बेटे एरिक, दामाद जेरेड वुश्नर ने भी व्रिप्टो में बड़ा निवेश किया है। ट्रम्प वुनबे का व्रिप्टो में दांव अब उनके अचल संपत्तियों का बड़ा हिस्सा हो गया है। सलमान की अगुवाईं वाली एसएसआईं टेक्नोलॉजीज पाकिस्तान की सबसे बड़ी सोलर पैनल इंपोर्टर है। अब ये वंपनी हाईंलैंड सिस्टम्स के साथ मिलकर पाकिस्तान में व्रिप्टो माइनिग नेटवर्व तैयार करेगी। दरअसल, व्रिप्टो माइनिग में सबसे ज्यादा खर्च बिजली का होता है। इसी समस्या के समाधान के लिए एसएसआईं टेक्नोलॉजीज को इस नेटवर्व का अहम भागीदार बनाया गया है। सूत्रों के अनुसार, वंपनी पाकिस्तान के सिध और बलूचिस्तान में सोलर फर्म स्थापित करेगी, जिनकी बिजली से माइनिग ऑपरेशंस को चलाया जाएगा। पाकिस्तान व्रिप्टो अपनाने के मामले में अभी दुनिया में नौवें नंबर पर है। अमेरिका से व्रिप्टो ब्लॉकचेन और माइनिग तकनीक विकसित करने को लेकर हुईं डील के बाद इसमें और बढ़त के आसार हैं। अब धीरे-धीरे समझ आ रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान की ओर झुकने और भारत को दिन-रात कोसने का एक कारण। यह नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप के लिए सबसे बड़ा धंधा व्यापार है, पैसा है और यह जहां से भी अर्जित हो सके वे करेंगे।

——अनिल नरेन्द्र 

Tuesday, 27 May 2025

चीन, पाकिस्तानतालिबान की दोस्ती


पाकिस्तानतालिबान की दोस्ती पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार अपनी चीन यात्रा पूरी कर चुके हैं। गत बुधवार को बीजिग में इसहाक डार ने अफगानिस्तान के कार्यंकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। तीनों देशों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गालियारे (सीपीईंसी) का अफगानिस्तान तक विस्तार करने पर सहमति जताईं है।

पाक विदेश मंत्रालय ने जारी किया बयान में कहा- चीन और पाकिस्तान ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआईं) सहयोग के व्यापक ढांचे के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईंसी) का अफगानिस्तान तक विस्तार करने का समर्थन किया है, चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता, संप्राभुता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा करने का भी समर्थन किया है। भारत सीपीईंसी की आलोचना करता रहा है क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान प्राशासित कश्मीर से होकर गुजरता है। सीपीईंसी चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना का हिस्सा है। इसलिए भारत इसका भी विरोध करता है। यह त्रिपक्षीय बैठक विदेश मंत्री एस. जयशंकर की आमिर खान मुत्तकी से बातचीत के वुछ दिन बाद हुईं है। हालांकि भारत नेअभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। जब इस बारे में विदेश मंत्रालय के प्रावक्ता रणधीर जायसवाल से इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, हमने वुछ रिपोट्र्स देखी है। इसके अलावा हमें इस बारे में और वुछ नहीं कहना है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रावक्ता लिन जियान ने बीजिग में हुईं इस बैठक को अनौपचारिक बताया है। चीन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, अफगानिस्तान और पाकिस्तान ने राजनयिक संबंधों को आगे बढ़ाने का स्पष्ट रुख व्यक्त किया है। चीन और पाकिस्तान, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास का समर्थन करता है। चीन साल 2021 में आने के बाद तालिबान सरकार के साथ राजनीतिक संबंध जारी रखने वाले शुरुआती देशों में से एक था। इस मुलाकात को पाकिस्तान की भारत के खिलाफ वूटनीतिक रणनीति और क्षेत्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश के रूप में एक और कदम देखा जा सकता है। चीन-पाकिस्तान और अफगानिस्तान अगर करीब आते हैं तो भारत की विदेश नीति को एक और करार झटका लगता है। वैसे ही आपरेशन सिदूर ने इतना तो साबित कर ही दिया है कि भारत की विदेश नीति, कोर नीति पूरी तरह से असफल ही है। इसका जीता जागत सुबूत है कि आपरेशन सिदूर के दौरान सिवाय इक्का-दुक्का देश के और कोईं देश भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ। माने या न माने हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर बुरी तरह से पेल हो गए है और मोदी जी के लिए एक बोझ बन गए हैं जिन्हें बदलना अति आवश्यक हैं। प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संयुक्त दलों का प्रातिनिधिमंडल विदेश में भारत के स्टैंड को बताने का पैसला सराहनीय है। यह भी अच्छा कदम है कि इस व््राइसिस के समय पूरी पिछली सरकार और वेंद्र सरकार मिलकर काम करें। पाकिस्तान वूटनीति और विदेश नीति में हमारे से बेहतर रहा है। अब अगर चीन-पाक और तालिबान भी एक मंच पर आ जाते हैं तो भारत की चिता और बढ़ जाती है। दुर्भाग्य यह है कि तालिबान सरकार भूल गईं है कि उसके पुनर्निर्माण में भारत ने कितनी मदद की और कर रही है। पर चीन के सामने शायद ही कोईं टिक सके और चीन हमें घेरने में कोईं कसर नहीं छोड़ रहा है।

——अनिल नरेन्द्र 

Saturday, 24 May 2025

छत्तीसगढ़ में मारा माओवादियों का शीर्ष कमांडर



का शीर्ष कमांडर छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में 27 नक्सलियों को मार गिराया। सूत्रों के मुताबिक सुरक्षा बलों ने इस मुठभेड़ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्प बसवराजू को मार गिराया। इस घटना में हमारा एक जवान भी शहीद हो गया। 70 साल के नंबाला केशव राव को नक्सली आंदोलन में बसवराजू के नाम से जाना जाता है। बुधवार को नारायणपुर में पुलिस ने मुठभेड़ में 27 माओवादियों के साथ बसवराजू को मार गिराया। केशव राव का मारा जाना कितना महत्वपूर्ण है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इसकी अधिकारिक घोषणा बस्तर के किसी पुलिस अधिकारी या राज्य के गृहमंत्री, मुख्यमंत्री ने नहीं की। सबसे पहले देश के गृहमंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर केशव राव के मारे जाने की अधिवृत जानकारी दी। वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक्स पर पोस्ट किया- नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाईं में एक ऐतिहासिक उपलब्धि आज छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों ने 27 खूंखार माओवादियों को मार गिराया है, जिनमें सीपीआईं माओवादी के महासचिव शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ नंबाला केशव राव उर्प बसवराजू भी शामिल हैं। बस्तर के आईंजी पुलिस सुंदरराज पी कहते हैं वर्ष 2024 में जिस तरीके से सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ एक निर्णायक और प्रभावी अभियान संचालित किया गया, उसे 2025 में भी हम लगातार आगे ले जा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि माओवादी संगठन के महासचिव, जो सीपीआईं माओवादी का पोलित ब्यूरो मेंबर भी है, मारा गया। एनआईंए से लेकर सीबीआईं और अलग-अलग राज्यों की सरकारों द्वारा केशव राव उर्प बसवराजू पर घोषित इनाम की रकम डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक पहुंच गईं है।

बसवराजू की उम्र करीब 70 साल थी। बसवराजू जितना वुख्यात था उतना ही दुष्ट-दरिंदा भी। वह गुरिल्ला शैली के हमलों के लिए जाना जाता था। यह सराहनीय है कि वेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अगले वर्ष मार्च तक माओवाद के खात्मे को लेकर प्रतिबद्ध हैं। इसी कारण ऑपरेशन सिंदूर के समय भी माओवादियों पर प्रहार जारी है। पिछले एक वर्ष में नक्सली कहे जाने वाले माओवादी बड़ी संख्या में मारे गए हैं।

सुरक्षा बलों के दबाव में कईं माओवादियों ने आत्मसमर्पण भी किया है।

यह दबाव कायम रहना चाहिए ताकि वे फिर से सिर न उठा सवें।

माओवादी जिस विषैली विचारधारा से लैस हैं, वह बंदूक के बल पर सत्ता छीनने में यकीन रखते हैं, इसी कारण माओवादी न तो लोकतंत्र मानते हैं और न ही संविधान। वे यह मुगालता पाले हैं कि एक दिन शासन, प्रशासन, न्याय व्यवस्था आदि को पंगू करके भारत पर काबिज हो जाएंगे। अर्बन नक्सल कहे जाने वाले ऐसे तत्वों से सतर्व रहने के साथ यह समझना चाहिए कि माओवादी इन गरीबों, वंचितों के हित की फर्जी आड़ लेते हैं, उनके शत्रु भी हैं। इस शानदार उपलब्धि पर गृहमंत्री, तमाम सुरक्षा बलों को बधाईं।

——अनिल नरेन्द्र 

Thursday, 22 May 2025

आईंएसआईं की जासूस ज्योति मल्होत्रा


हरियाणा और पंजाब पुलिस ने पाकिस्तान की आईंएसआईं को खुफिया जानकारी मुहैया कराने के आरोप में जिन लोगों को हाल ही में गिरफ्तार किया है, उनमें हरियाणा की ट्रैवल ब्लॉगर और यूटाूबर ज्योति मल्होत्रा भी शामिल हैं। हरियाणा पुलिस के मुताबिक ज्योति मल्होत्रा के मोबाइल और लैपटॉप से वुछ संदिग्ध सामग््िरायां मिली हैं। उनके खिलाफ ऑफिशियल सीव््रोटस एक्ट, भारतीय न्याय संहिता धारा-152 के तहत उनकी गिरफ्तारी की गईं। गिरफ्तारी के बाद से ही ज्योति की पाकिस्तान यात्रा की काफी चर्चा हो रही है। ज्योति मल्होत्रा के यूटाूब चैनल और इंस्टाग्राम पन्नों का नाम ट्रैवल विद जो चला रही हैं। उनके यूटाूब चैनल पर 3.79 लाख से ज्यादा सब्सव््राइबर हैं और इंस्टा पर 1.40 लाख फालोअर्स हैं। उन्होंने देश के अलग-अलग राज्यों में अपनी यात्रा के वीडियोज से लेकर अपनी विदेश यात्रा के कईं वीडियो पोस्ट किए हैं। ज्योति की गिरफ्तारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईंएसआईं से जुड़े जासूसी नेटवर्व के खिलाफ देश की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तेज करने के नतीजे से हुईं है। दावा किया जा रहा है कि ज्योति मल्होत्रा को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों एसेट के तौर पर तैयार कर रही थी। ज्योति पर कईं तरह के आरोप लगे हैं। वैसे वो पाकिस्तानी उच्चायोग के संपर्व में आईं और आगे क्या हुआ यह सब डिटेलस मीडिया में आ चुकी है। उन्हें दोहराने की आवश्यकता नहीं है।

काम की बात यह है कि पाक खुफिया एजेंसियों से भी संपर्व में थी और यहां तक दावा किया जा रहा है कि उन्होंने आपरेशन सिदूर की भी खुफिया जानकारी पाक को पहुंचाईं। हिसार के एसपी शशांक वुमार सवान ने रविवार को बताया कि ज्योति पाकिस्तान हाईं कमीशन में तैनात अधिकारी दानिश उर्प एहसान-उर-रहीम के संपर्व में थी। यह संपर्व 22 अप्रौल को पहलगाम हमले के बाद भारत-पाक के चार दिवसीय सैन्य तनाव के बाद भी बना रहा। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि ज्योति के पास सैन्य जानकारी तक सीधी पहुंच थी या नहीं लेकिन पाकिस्तान इंटेलीजेंस आपरेशन के भी सीधे संपर्व में थी। एफआईंआर के अनुसार 2023 में पाकिस्तानी वीजा के लिए आवेदन करते समय वह दानिश के संपर्व में आईं थी। ज्योति ने दो बार पाकिस्तान और चीन की एक बार यात्रा की। पीटीआईं के अनुसार हिसार एसपी का कहना है कि ज्योति पीआईंओ के संपर्व में थी। इंडियन एक्सप्रोस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्योति पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने और अपने वंटेंट के जरिए पाकिस्तान की सकारात्मक छवि पेश करने के लिए वहां के हैंडलर्स से सीधे संपर्व में रहने का आरोप है। ज्योति के पिता हरीश वुमार ने बीबीसी को बताया कि पुलिस अधिकारी गुरुवार सुबह साढ़े नौ बजे आए और ज्योति को अपने साथ ले गए। पांच-छह लोग आए और आधे घंटे तक घर की तलाशी ली। जिसके बाद तीन मोबाइल और लैपटॉप धर लिया। उन्होंने कहा मेरी बेटी सरकार की अनुमति से पाकिस्तान गईं थी। उसकी जांच भी की गईं और फिर से वीजा दिया गया जिसके बाद वह पाकिस्तान गईं थी। रिपोर्ट के अनुसार ज्योति के मोबाइल फोन में पाकिस्तान उच्चायोग के कईं अधिकारियों के नंबर मिले हैं। जिनसे वह निरंतर संपर्व में रहती थी और देश की महत्वपूर्ण जानकारी और सूचनाएं उन तक पहुंचा रही थी। हैरान करने वाली बात यह है कि वह देश भक्ति का लबादा ओढ़कर अपनी करतूतों को अंजाम दे रही थी। इन लोगों की गिरफ्तारियां भारतीय एजेंसियों की बहुत बड़ी सफलता है। पर जरूरी है कि ज्योति जैसे पाकिस्तानी एसेट्स को पूरे नेटवर्व को जड़ से खत्म किया जाए। उन लोगों तक भी पहुंचा जाए जिसमें ये लोग संपर्व में थे।

इससे पहले एक महिला समेत दो लोगों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईंएसआईं से जुड़े जासूसी नेटवर्व के खिलाफ हमारी एजेंसियों द्वारा कार्यंवाही तेज करने के नतीजे से हुईं। देश जहां विदेशी ताकतों से लड़ रहा है वहां देश के अंदर से दुश्मन के एसेट्स से पहले निपटा जाए? ——अनिल नरेन्द्र 
 

Tuesday, 20 May 2025

ब्रह्मोस का खौफ

भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच 8-9 मई की रात जब ब्रह्मोस मिसाइल ने रावलपिंडी के एयरबेस तक कहर बरपा दिया तो पाकिस्तान सेना के पैरों तले जमीन खिसक गई। नतीजा यह हुआ कि सैन्य हेडक्वाटर्स को रावलपिंडी से पाक की राजधानी इस्लामाबाद में शिफ्ट करने के बरसों से अटके प्रोजेक्ट में तेजी आ गई। नए जनरल हेडक्वाटर्स (जीएचक्यू) को इस्लामाबाद की मरगला हिल्स की तलहटी में शिफ्ट किया जा रहा है। जीएचक्यू यानी पाकिस्तानी सेना की सीधी रिपोर्टिंग और कमांड पोस्ट यहीं होती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने मीडिया रिपोर्टें के अनुसार यह स्वीकार किया है कि ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तानी सेना के अड्डों पर भारी नुकसान किया है। ब्रह्मोस को भारतीय सेना का एक ताकतवर हfिथयार माना जाता है। अब तो दुनिया भी ब्रह्मोस की मारक क्षमता को मानने लगी हैं। ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसे पनडुब्बी, शिप, एयर क्राफ्ट पर जमीन पर कहीं से भी छोड़ा जा सकता है। भारत ने रूस के साथ एक साझेदारी में ब्रह्मोस को विकसित किया है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है। ब्रह्मोस मिसाइल की गति ही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। यह आवाज की गति से करीब तीन गुना तेजी से उड़ती है। यही स्पीड इसे बहुत ही मारक और दुश्मन के रडार में कभी न पकड़ में आने वाली मिसाइल बनाती है। इसका निशाना इतना सटीक है कि 290 किलोमीटर की दूरी पर भी अपने लक्ष्य से एक मीटर घेरे के अंदर ही गिरती है, यह एक क्रूज मिसाइल है। इस मिसाइल का इंजन अंत तक चलता रहता है। इस दौरान यूएवी की तरह ही इसके लक्ष्य को बदला जा सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका सीकर सेंसर इतना घातक है कि एक समान लक्ष्य में से असली लक्ष्य पहचान कर उसे तबाह करने में सक्षम है। इसकी सटीक ड्राइविंग तकनीक कमाल की है, यह मिसाइल सतह से चंद मीटर ऊपर उड़ती हुई सामने आने वाली बाधा को पार कर दुश्मन पर अचानक हमला करने की क्षमता रखती है। इस मिसाइल के निर्माण के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी डीआरडीओ के तत्कालीन प्रमुख डा. एपीजे अब्दुल कलाम और रूस के उप रक्षामंत्री एनबी मिखाइलोव ने 12 फरवरी 1998 को हस्ताक्षर किए। इसके बाद ब्रह्मोस एयरोस्पेस कंपनी का गठन किया गया। इस समय यही कंपनी मिसाइल का उत्पादन कर रही है। ब्रह्मोस 290 किलोमीटर तक उड़ सकती है इस। यह दस मीटर से पंद्रह मीटर तक की ऊंचाई से उड़ान भरने में सक्षम है। साल 2007 में भारतीय सेना में भी इसे शामिल किया गया। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30 और एमकेआई विमान से हवा से लांच किया जाने वाला संस्करण अपनाया। अभी ब्रह्मोस मिसाइल का वजन 2900 किलोग्राम है। इसके कारण लड़ाकू विमानों पर एक बार में एक ही मिसाइल लग पा रही है। इसका वजन कम होने के बाद एक ही जगह पांच मिसाइलें लगाई जा सकेंगी। रक्षा मामलों के जानकार कर्नल ओझा (रिटायड) कहते हैं कि भारत को बहुत घातक, सटीक और लंबी दूसरी तक मार करने वाली मिसाइल बना दिया है। उन्होंने बताया कि सुखोई में लगने के बाद इस मिसाइल की मारक क्षमता और भी बढ़ गई है। ऑपरेशन सिंदूर की तीसरी रात पाकिस्तान के 11 एयरबेस पर कहर बरपाने में ब्रह्मोस की अहम भूमिका रही। सबसे ज्यादा दूरी पर स्थित 6 एयरबेस को सुखोई-30 एमकेआई की अंडरवैली से निकली हवा से सतह मार करने वाली ब्रह्मोस ने निशाना बनाया। सूत्रों के अनुसार पाकिस्तानी वायुसेना के बेहद सुरfिक्षत ठिकानों को निशाना बनाने की जमीन एक रात पहले ही तैयार कर ली थी। लाहौर स्थित कमांड एंड कंट्रोल सेंटर पर हमले से पाकिस्तानी वायुसेना बहुत हद तक लाचार हो चुकी थी। बता दें कि ब्रह्मोस मिसाइल ने रावलपिंडी में चकलाल स्थित नूरखान एयरबेस पर भी तबाही मचाई थी। यह मौजूदा जीएचक्यू से महज 8 किलोमीटर ही दूर था। जय हिंद। भारतीय वैज्ञानिकों को आज पूरा देश सलाम करता है। जय हिंद। -अनिल नरेन्द्र

पाकिस्तान का कबूलनामा

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना की एयर स्ट्राइक ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद जहां भारत में जश्न का माहौल है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पहली बार कबूल किया है कि भारतीय सेना की ओर से रावलपिंडी के नूरखान एयरबेस पर 9ö10 मई की रात को भारत ने एयर स्ट्राइक किया था। भारतीय सेना ने एयर स्ट्राइक में कई पाकिस्तानी एयरबेस पर मिसाइल से हमले किए थे। शरीफ का यह बयान यौम-ए-तशक्कुर (धन्यवाद) नामक भव्य समारोह में अपने भाषण के दौरान किया। इस्लामाबाद के प्रतिष्ठित स्थल द मॉन्यूमेंट में आयोजित समारोह के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने घटनाक्रम की श्रृंखला का विवरण दिया और उसके बाद भारत के प्रति अपनी प्रतिक्रिया दी। पाक पीएम ने अपने संबोधन में नूरखान एयरबेस पर भारतीय मिसाइल हमले को लेकर भारत के दावे को स्वीकार किया। शरीफ ने कहा, 9 और 10 मई की रात करीब 2.30 बजे सेना प्रमुख ने मुझे बताया कि भारत ने अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिए हम पर हमला किया है। एक मिसाइल नूरखान एयरबेस पर गिरी और कुछ अन्य मिसाइलें अन्य इलाकों में गिरी। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक का पूरी ताकत से जवाब देने की अनुमति मांगी थी। भारत की एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों के जरिए हमले किए। पाक प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं उन सभी मित्र देशों का बहुत आभारी हूं जो दुनिया के हिस्से में शांति और युद्ध विराम को बढ़ावा देने में बहुत मददगार रहे हैं। पाक पीएम ने कहा कि मैं राष्ट्रपति ट्रंप को उनके नेतृत्व के लिए धन्यवाद देना चाहूंगा। शरीफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने में मदद के लिए सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, ईरान, तुर्की, चीन, ब्रिटेन और अन्य देशों का धन्यवाद करता हूं। यह पाकिस्तान की ओर से पहली बार स्वीकार किया गया है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने मिसाइलों से पाकिस्तान के एयरबेसों पर हमला किया।

Saturday, 17 May 2025

परमाणु मुखौटा अब उतर चुका है



पिछले दो दशक से एक मिथक भारत और पाकिस्तान के तमाम टकरावों पर हावी रहा है वह यह कि इस्लामाबाद के पास परमाणु हथियार हैं और हर बार जब किसी आतंकी घटना के बाद भारत जवाबी कार्रवाईं करता था तो पाक परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दे देता था और भारत को दुनिया डरा देती थी कि कार्रवाईं को आगे न बढ़ाओ। इस बार के छद्म युद्ध में भी यही हुआ। पर ऑपरेशन सिदूर ने यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान का परमाणु मखौटा अब उतर चुका है। इसलिए प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कहा कि भारत अब कोईं भी न्यूक्लिर ब्लैकमेल नहीं सहेगा। ऑपरेशन सिदूर में भारतीय वायु सेना द्वारा लक्षित सैन्य कार्रवाईं के बाद पाकिस्तान की परमाणु सुविधाओं की सुरक्षा के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं। विशेष रूप से सरगोधा एयरबेस से सटे हुईं किराना हिल्स क्षेत्र को लेकर। हालांकि भारत ने किसी परमाणु स्थल को निशाना बनाने से इंकार करता आ रहा है, लेकिन अटकले और अंतर्राष्ट्रीय बयान इसको लेकर बढ़ता जा रहा है। भारतीय आव््रामक और रणनीतिक प्राभाव ऑपरेशन सिदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने नूर खान, रफीकी, मुरीद, सुक्कर और सियालकोट जैसे प्रामुख एयरबेस कथित तौर पर प्राभावित हुए और इन हमलों ने पाकिस्तान के रक्षा बुनियादी ढांचे को कमजोर किया। सरगोधा से सटी हुईं किराना हिल्स में पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार छिपा कर रखता है। ऐसा कहा जाता है। किराना हिल्स परमाणु सुविधा के आसपास अटकलें सबसे खतरनाक दावे सोशल मीडिया पर अटकलों से उपजे हैं, जो बताते हैं कि किराना हिल्स परमाणु सुविधा में एक बड़ी घटना हो सकती है। वुछ रिपोर्टो में दावा है कि अमेरिकी राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा प्राशासन (एनएनएसए) के विमान पाकिस्तान में देखे गए थे, जो परमाणु आपातकाल की संभावना को दर्शाता है। हालांकि इसकी कोईं आधिकारिक पुष्टि नहीं की गईं है लेकिन ऑनलाइन चैट की विशाल यात्रा ने सैन्य विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय पर्यंवेक्षकों को बयान देने पर मजबूर किया है। सोशल मीडिया में दावा किया जा रहा है कि किराना हिल्स के आसपास के इलाकों से नागरिकों को हटा दिया गया है। अपुष्ट खबरों में कहा जा रहा है कि वुछ नागरिकों को परमाणु रेडिएशन का भी खतरा जताया जा रहा है। आधिकारिक भारतीय प्रातिव््िराया अफवाहों के बावजूद भारत अपने सैन्य इरादों के बारे में खुलकर बता रहा है। एक प्रोस वार्ता के दौरान एयर मार्शल एके भारती ने स्पष्ट किया कि भारतीय वायुसेना ने सरगोधा एयरबेस पर हमला किया है और किसी भी परमाणु स्थल पर जानबूझकर हमला नहीं किया गया। सोशल मीडिया अक्सर अविश्वसनीय होता है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान के परमाणु सुरक्षा को लेकर चितित हैं। किराना हिल्स में क्या हुआ यह तो शायद ही पता चले क्योंकि पाकिस्तान हर बात को छिपाता है पर इतना जरूर है कि वुछ तो हुआ है। मुद्दे की बात यह है कि लगता है कि पाकिस्तान की न्यूक्लियर धमकी का असर भारत पर शायद ही हो तभी तो प्राधानमंत्री ने कहा कि भारत पाकिस्तान की न्यूक्लियर ब्लैकमैलिग के सामने न ही झुकेगा और न ही जवाबी कार्रवाईं करने से कतराएगा।
अनिल नरेन्द्र 

Thursday, 15 May 2025

मान न मान मैं तेरा मेहमान


भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे के सैन्य हवाई अड्डों पर हमले और नुकसान पहुंचाने के दावे किए। दोनों देशों के बीत तनाव शीर्ष पर था। इसी बीच अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वैंस सािढय हुए और उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर से बातचीत की। भारत की तरफ से पाकिस्तान के साथ जारी संघर्ष को खत्म करने का ये पहला संकेत था। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ से फोन पर बात की। इस बातचीत में दोनों देशों में जमीन, वायु और जल क्षेत्र से एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बनी। इस सहमति की हैरान करने वाली घोषणा न तो भारत के प्रधानमंत्री ने की और न ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने। यह घोषणा दुनिया के स्वयंभू ठेकेदार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को 5.30 बजे अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म सवाल पर किए एक पोस्ट में की। ट्रंप ने अपनी पोस्ट में कहा, मैं आप दोनों के साथ मिलकर यह पता लगाने के लिए बात करूंगा कि क्या कश्मीर के संबंध में कोई समाधान निकाला जा सकता है। भारत और पाकिस्तान दोनों के बीच संघर्ष विराम की घोषणा करते हुए ट्रंप ने दावा किया कि रात भर चली बातचीत में अमेरिका की मध्यस्थता का दावा किया। भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम, मैं इसे संघर्ष विराम ही कहूंगा क्योंकि युद्ध तो हुआ ही नहीं जो तीन-चार दिन चला उसे संघर्ष ही कहा जाएगा। देश प्रश्न पूछ रहा है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप का दावा सही है? अगर अमेरिका ने संघर्ष विराम रुकवाने में कोई भूमिका निभाई तो इसमें हमें कोई ऐतराज नहीं है। क्योंकि संभव है कि ट्रंप के पास ऐसी कोई खुफिया जानकारी हो जिससे लगता हो कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की तैयारी में हो। हमें ऐतराज इस बात का है कि डोनाल्ड ट्रंप कौन होते हैं भारत-पाक संघर्ष विराम की घोषणा करने वाले? वो भी जब न तो भारत की तरफ से और न ही पाकिस्तान की तरफ से ऐसी घोषणा हुई। फिर पूरा देश इससे उत्तेजित है कि ट्रंप का यह कहना कि मैं दोनों देशों के साथ बैठकर कश्मीर का मुद्दा हल करवाने की कोशिश करूंगा, क्या इसका मतलब है कि भारत ने कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिकी की मध्यस्थता स्वीकार कर ली है? बता दे कि न तो प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के अपने संबोधन में इस पर कोई स्पष्टीकरण दिया है और न ही भारत सरकार ने किसी भी स्तर पर इसका खंडन किया है। पिछले कई वर्षों से भारत का यही स्टैंड रहा है कि यह मामला द्विपक्षीय है जिसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं होगी। शिमला समझौते में इसका साफ पा किया गया है। भारत सरकार को इसका स्पष्टीकरण देना होगा। अभी यह विवाद चल ही रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप धमकियों पर उतर आए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच खतरनाक टकराव को रोकते हुए युद्ध विराम में मदद की थी। ट्रंप ने कहा, हमने इसमें बहुत मदद की। मैंने दोनों देशों से कहा कि अगर आप संघर्ष रोकते हैं तो हम व्यापार करेंगे। नहीं तो कुछ नहीं। ट्रंप ने कहा कि अगर दोनों देश युद्ध विराम नहीं करते तो मैं दोनों देशों से व्यापार बंद कर दूंगा और अगर वे मानते हैं तो व्यापार (ट्रेड) बढ़ा दूंगा। ट्रंप ने आगे दावा किया कि दोनों मान गए और युद्ध विराम पर राजी हो गए। उल्लेखनीय है कि ट्रंप का यह पोस्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र को संबोधन के ठीक एक घंटे पहला आया। अमेरिकी राष्ट्रपति को लगता है और कोई काम नहीं है। पिछले तीन दिन से लगातार भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है। सबसे अफसोस जनक बात यह है कि इतना कुछ होने के बावजूद भी भारत ने चुप्पी साध रखी है। भारत के सामने पोन जैसे छोटे देश के प्रधानमंत्री जेलेंस्की ने व्हाइट हाउस के अंदर ही ट्रंप को हड़का दिया था और भी कई देशों के प्रमुखों ने ट्रंप को मुंहतोड़ जवाब दिया पर पता नहीं भारत की क्या मजबूरी है जो एक शब्द अमेरिका के खिलाफ नहीं निकलता। रहा सवाल भारत-पाक युद्ध रूकवाने का तो ट्रंप तो रूस-पोन युद्ध भी रूकवा रहे थे और इजरायल और हमास युद्ध भी रूकवा रहे थे? मान न मान मैं तेरा मेहमान। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 13 May 2025

पाकिस्तान का भस्मासुर आसिम मुनीर


भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की सहमति शनिवार को शाम 5 बजे हुई। अभी जश्न मनाना आरंभ भी नहीं हुआ था कि इस कहानी और युद्ध विराम के तीन घंटे के अंदर पाकिस्तान ने भारत के विभिन्न राज्यों में ड्रोन हमले शुरू कर दिए और युद्ध विराम की धज्जियां उड़ा दी। पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया? इन पर आंकलन चल रहे हैं। पर हमारा मानना है कि इसके पीछे अगर कोई खासतौर पर जिम्मेदार है तो वह पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर और उनके सैन्य कमांडर हैं। पाकिस्तान की आतंरिक स्थिति ठीक नहीं है। क्या यह संभव है कि पाक सेना प्रमुख ने अपनी ही सरकार और प्रधानमंत्री के फैसले का विरोध करके हमले जारी रखे? जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी तो सेना प्रमुख उसका खुला उल्लंघन दर्शाता है कि पाक सेना प्रमुख प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की बात, उनके फैसले को नहीं मानते। दरअसल इस सारी लड़ाई के पीछे आसिम मुनीर ही हैं। उसने अपनी नीयत पहलगाम हमले से पहले ही जाहिर कर दी थी। जब उसने 17 अप्रैल को दिए गए अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान कश्मीर से लेकर जीवन शैली तक हर मामले में हिन्दुओं से अलग है। इस भाषण में जनरल मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर के लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। माना जा रहा है कि इसी भाषण के बाद पहलगाम हमला हुआ। इस हमले की सारी भूमिका मुनीर ने ही बनाई थी और इसको अंजाम भी उसने दिलवाया। भारत को याद रखना चाहिए कि कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस नहीं है जैसा कि मुनीर यकीन दिलाते हैं। असल में नस तो ब्लूचिस्तान और सिंध हैं। कश्मीर तो बस उस नैरेटिव को बनाएं रखना चाहता है। अगर ऐसा न होता तो पहलगाम पर हमला क्यों करवाता जहां पर पर्यटकों को निशाना बनाकर कश्मीरियों की रोटी रोजी पर लात मार दी? कहा जा रहा है कि नवम्बर 2022 में सेना प्रमुख बने मुनीर नवम्बर 2025 के बाद किसी भी कीमत पर एक्सटेंशन पाने की जुगाड़ में हैं। भारत के साथ एक सीमांत सीमित युद्ध पर उसके खिलाफ एक बड़ा आतंकवादी हमला उन्हें उस मकसद तक पहुंचा सकता है। जाहिर है, पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ सस्ते युद्ध के एक साधन के रूप में जिहाद का इस्तेमाल जारी रखने वाली है। पाकिस्तान की आतंरिक स्थिति ठीक नहीं है। इस समय पाकिस्तान में कई फैक्टर काम कर रहे हैं। चीन उसके पीछे सीधे तौर पर खड़ा होता ना दिखे पर वो अपने हथियारों के जरिए मुनीर की मदद कर रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में अब खुलकर चीनी हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है। लड़ाकू विमान से लेकर सर्विलांस यंत्र के साथ-साथ चीनी राइफलों का भी भारत सीमा पर इस्तेमाल हो रहा है। पाकिस्तान भारत का मुकाबला करने की कोशिश में चीन में निर्मित एसएच-15 आर्टिलरी का भी इस्तेमाल कर रहा है। इसी चाइनिज गन के सहारे पाकिस्तान भारत के पोस्ट और सीमावर्ती गांवों को निशाना बना रहा है। दूसरा फैक्टर है तुर्की पाकिस्तान ने भारत के अलग-अलग हिस्से में बड़े पैमाने पर ड्रोन्स का इस्तेमाल किया है और कर रहे हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तानी सेना द्वारा गुरुवार की रात सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाते हुए 300 से 400 ड्रोन छोड़े गए। और ड्रोन से हमले अभी भी जारी हैं। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि ये ड्रोन तुर्की के एसिसगार्ड सोनगर ड्रोन हैं। सोनगर ड्रोंस हथियार ले जाने में सक्षम यूएवी यानि मानव रहित हवाई वाहन है जिसे तुर्की ने डिजाइन और विकसित किया। पता नहीं कि तुर्की ने कितने हजारों ड्रोन पाकिस्तान को दिए हैं जिनका पूरा इस्तेमाल जनरल मुनीर भारत के खिलाफ कर रहा है? तुर्की की सैन्य मदद के अलावा एक तीसरा फैक्टर भी पाकिस्तान में काम कर रहा है वह है हमास के लड़ाकू। कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए अब हमास भी एक्टिव है। हमास के अनुभवी कमांडर अब जैश-ए-मोहम्मद के साथ मिलकर भारत पर हमले कर रहे हैं। जैश के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में हमास के लड़ाकू देखे गए हैं। जिस तरीके से भारत पर ड्रोन से हमले हो रहे हैं इसी तरह हमास इजरायल में ताबड़तोड़ हमले करता रहा है। इन हमलों के पीछे सीधे-सीधे हमास का हाथ नजर आ रहा है। इस साल 5 फरवरी को कश्मीर ]िदवस के मौके पर जैश और लश्कर के जलसे में भी हमास का पॉलिटिक्ल चीफ नजर आया था यह जलसा पीओके के रावलकोट में मनाया गया था। भारत के लिए यह एक खतरनाक और चिंताजनक संकेत हैं। कुल मिलाकर आज पाकिस्तान में सेना प्रमुख आसिम मुनीर की ही चल रही है। यह पाकिस्तान के लिए भस्मासुर साबित होगा। युद्ध विराम तोड़ने पर भारत जबरदस्त जवाबी कार्रवाई करेगा यह मुनीर जानता है। सेना में तख्ता पलट भी हो सकता है, शाहबाज शरीफ का तख्ता भी पलट सकता है। कुछ भी हो सकता है। हमें 24 घंटे चौंकन्ना रहना होगा। न हम अमेरिका पर विश्वास करें और पाकिस्तान की तो बात ही न करें। हमारी सेना मुंहतोड़ जवाब देगी। जय हिंद!

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 10 May 2025

दुनिया ने देखा सिंदूर का शौर्य


जब पाकिस्तान ने पहलगाम के बैसरान पर निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या नाम पूछकर की तो उसके पीछे उनकी नापाक नीति थी। भारत में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द को बिगाड़ दें और दंगे करवा दें ताकि देश हिंदू-मुस्लिम में बंट जाए पर हुआ इसका उल्टा। आज सारा देश एक है और चाहे वे सियासी पार्टियां हो, भारत की तमाम जनता हो वह सब अपनी बहादुर सेना के पीछे चट्टान की तरह खड़ी है। और रही पाकिस्तान की तो उसे शायद अब समझ आ रहा हो कि सिंदूर उजाड़ने की कितनी भारी कीमत अदा करनी पड़ रही है। सबसे पहले मैं अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने न केवल अभूतपूर्व साहस दिखाया हमारी सेनाओं को जवाबी कार्रवाई करने की खुली छूट दी बल्कि पूरे ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन सिंदूर रखा। सूत्रों ने कहा आतंकवादियों ने पहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या कर दी थी जिनमें सभी पुरुष थे और उन मृतकों की पीड़ित पत्नियों को ध्यान में रखते हुए जवाबी अभियान के लिए ऑपरेशन सिंदूर नाम सबसे मुफीद समझा गया। यह न केवल एक सैन्य जवाबी कार्रवाई है बल्कि यह भारत की नारी शक्ति के सम्मान और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। सैन्य कार्रवाई की प्रेस ब्रीफिंग करने में भी विशेष ध्यान रखा गया। प्रेस ब्रीफिंग के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी (मुस्लिम) और विंग कमांडर व्योमिका सिंह (हिंदू) को खासकर चुना गया ताकि पूरी दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत एक है और नारी शक्ति के साथ खड़ा है। जिस किसी ने भी यह फैसला किया वह बधाई का पात्र है। जब जंग छिड़ती है तो दोनों तरफ के निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं। पाकिस्तान ने जानबूझकर सोची-समझी रणनीति के तहत या यूं कहे बौखलाहट में भारत के सिविलियन इलाकों पर हमले किए हैं जिसमें बहुत से निर्दोष नागरिक मारे गए हैं। पर यह कीमत तो चुकानी होगी। आए दिन इन आतंकी हमलों में भी तो निर्दोष मारे जाते हैं। इसलिए बेहतर रणनीति यही है कि इस बार आतंकवाद और उनके प्रायोजकों को ही खत्म किया जाए। कई आतंकी अड्डों को तबाह कर दिया गया है पर असल समस्या पाकिस्तान सेना और उसकी आईएसआई है। जब तक इनको ऐसी जबरदस्त चोट न पहुंचाई जाए तब तक यह समस्या निपटने वाली नहीं। हमें खुशी है कि भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सीधे हमले किए हैं और कइयों को तबाह किया है। ऑपरेशन सिंदूर का पहला निशाना पाकिस्तान में जैश-ए-मुहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयाब के मुख्यालय और आतंकी प्रशिक्षण शिविर थे जिन्हें तबाह कर दिया गया है। अब सारे हमले पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर किए जा रहे हैं। गौरतलब बात यह है कि भारत ने किसी आम नागरिक या सिविलियन इलाकों पर हमले नहीं किए बल्कि सिर्फ सैन्य ठिकानें पर। ऑपरेशन सिंदूर के लिए भारतीय सेना ने हर लक्ष्य का चयन विश्वसनीय इंटेलिजेंस सूचनाओं के आधार पर किया। पहलगाम के 15 दिनों बाद जवाबी कार्रवाई कर पाकिस्तान को सुधरने का पूरा मौका दिया गया यानी पाकिस्तान अपनी गलती सुधारे और अपनी जमीन पर पल रहे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का पूरा मौका fिदया गया। पर जब पाकिस्तान ने सुधार की जगह उल्टा धमकियां देनी शुरू कर दी तो जवाब देना जरूरी हो गया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से जब भारतीय हमलों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा हमने हनुमान के उस आदेश का पालन किया है जो उन्होंने अशोक वाटिका उजाड़ते समय दिया था। जिन मोहि मारा, तिन मोहि मारे अर्थात केवल उन्हीं को मारा है जिन्होंने हमारे मासूमों को मारा है। आज पूरा भारत देश एक है। लड़ाई तो सेना लड़ती है पर पीछे खड़ा होता है पूरा मुल्क। आज पूरा देश अपनी बहादुर सेना के पीछे खड़ा है और अपने जबाजों की बहादुरी पर सबको गर्व है। जय हिंद। 
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 8 May 2025

पहले ही मिल गई थी हमले की खुफिया जानकारी


पहलगाम में हुए भयानक आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई। जिनमें 25 पर्यटक थे और एक स्थानीय, मरने वाले सभी 24 पर्यटक हिन्दू समुदाय से थे। अब इस मामले में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि सुरक्षा एजेंसियों को हमले की आशंका पहले से ही थी, लेकिन लोकेशन और तारीख को लेकर अनुमान गलत साबित हुआ। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार खुफिया ब्यूरो (आईबी) और अन्य एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर व स्थानीय सुरक्षा अधिकारियों को आगाह किया था कि पर्यटकों को निशाना बनाकर आतंकी हमला हो सकता है। यह अलर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 19 अप्रैल को होने वाली श्रीनगर यात्रा के मद्देनजर किया गया था। इसके बाद श्रीनगर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी, खासकर उन जगहों पर जहां पर्यटक अधिक आते हैं, जैसे डाचीगाम नेशनल पार्क। हालांकि मौसम खराब होने की वजह से प्रधानमंत्री की यह यात्रा रद्द कर दी गई थी। इसके ठीक बाद आतंकी 22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन इलाके में हमला कर बैठे। यह इलाका श्रीनगर से लगभग 90 किलोमीटर दूर है और पूरे साल खुला रहता है। अमरनाथ यात्रा के दौरान ही इसे बंद किया जाता है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया दस में से नौ बार ऐसे अलर्ट बेकार जाते हैं, लेकिन इस बार पर्यटकों को लेकर चेतावनी सही थी। इसमें मुश्किल हिस्सा होता है कि हम सही जगह की पहचान करें। इस बार वह गलत हो गई। उन्होंने पुष्टि की कि सेना और सिविल सुरक्षा बलों को प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान श्रीनगर के निकट किसी पर्यटन स्थल पर हमले की आशंका को लेकर सतर्क रहने के निर्देश दिए गए थे। अब जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो यह स्पष्ट है कि आतंकी प्रधानमंत्री की यात्रा रद्द होने का इंतजार कर रहे थे। सबसे बड़ी चूक बैसरन क्षेत्र में संभावित हमले की आशंका न जता पाने की रही, जो साल भर खुला रहता है और केवल अमरनाथ यात्रा के दौरान बंद होता है। एक अधिकारी के अनुसार स्थानीय दो आतंकवादियों ने पर्यटकों को एक ओर खदेड़ा जब]िक विदेशी आतंकियों ने गोलियां चलाईं। चूंकि इस स्थल पर प्रवेश और निकास एक ही निर्धारित स्थान से होता है। पर्यटकों के लिए भागना मुश्किल हो गया। यह अब स्पष्ट है कि आतंकी क्षेत्र में पहले से ही रह रहे थे और अब भी इलाके में सािढय हैं। अधिकारियों के मुताबिक सबसे बड़ी चूक स्थानीय खुफिया एजेंसियों की थी। जो इस उपस्थिति और योजना को भांपने में नाकाम रही। समय आ गया है कि अब पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए जाएं। सारा देश भारत की जवाबी कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहा था। भारत के लोगों का गुस्सा अभी उफान पर है। भारत ने अभी तक जो दंडात्मक कदम उठाए हैं, उनसे ऐसा नहीं लगता कि जपोश में किसी तरह की प्रभावी कमी आई है। स्वयं प्रधानमंत्री ने, भाजपा नेताओं ने और मेन स्ट्रीम मीडिया ने जो वातावरण बनाया है, उसमें यह अपेक्षा निहित है कि पाकिस्तान को ऐसा दंड दिया जाए जो दंड प्रतीत हो। अगर ऐसा नहीं होता तो जनता के विश्वास को ठेस पहुंचेगी और कहा जाएगा बड़े-बड़े दावे करने वाले अंदर से खोखले निकले। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 6 May 2025

क्या कहते हैं पूर्व रॉ प्रमुख दुलत

 
भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख और आईपीएस अफसर अमरजीत सिंह दुलत जो कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में बतौर जम्मू-कश्मीर मामलों के सलाहकार रहे ने पहलगाम हमले पर बीबीसी से एक महत्वपूर्ण बातचीत की। आज के परिप्रेक्ष्य में मेरे विचार में देश को कुछ बातों पर जरूर गौर करना चाहिए। प्रस्तुत है उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश दुलत ने अपने करियर के शुरुआती सालों में बतौर जम्मू-कश्मीर मामलों के सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं और शुरुआती सालों में उन्होंने जे एंड के में 2 इंटेलिजेंस ब्यूरो का काम भी देखा है। दुलत कहते हैं, पहलगाम में जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ और उसे सुरक्षा और खुफिया तंत्र की चूक बताया। मुझे लगता है कि पहलगाम हमला एक सिक्यूरिटी फेलियर है। वहां किसी किस्म की सिक्यूरिटी भी नहीं थी। जहां हम इंटेलिजेंस या खुफिया तंत्र की बात करते हैं, वहां हमें समझना होगा कि कश्मीर में जो सबसे जरूरी इंटेलिजेंस है, वह आपको कश्मीरियों से ही मिलेगी। तो कश्मीरियों को अपने साथ रखना बहुत जरूरी है। मैं किसी को दोषी नहीं कहना चाहता लेकिन जे एंड के में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी तो केंद्र सरकार के हाथ में है न कि वहां के मुख्यमंत्री के हाथ में है। तो केंद्र सरकार को देखना चाहिए वहां के एलजी को देखना चाहिए था। पहलगाम के हमले से पहले जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहां 2020 में 34 लाख से अधिक पर्यटक आए थे। वहीं साल 2023 के खत्म होते-होते ये आंकड़ा दो करोड़ 11 लाख के पार चला गया था। लेकिन क्या चरमपंथी हिंसा में कोई कमी आई? साउथ एशिया टेरिज्म पोर्टल के मुताबिक साल 2012 में जम्मू-कश्मीर में 19 आम नागरिकों की मौत चरमपंथी हिंसा में हुई, उसी साल 18 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए। 84 चरमपंथी मारे गए थे। उसके मुकाबले साल 2023 में 12 नागरिकों की मौत हुई, 33 सुरक्षा कर्मी मारे गए और 87 चरमपंथी मारे गए। पिछले साल 2024 में 31 आम नागरिक 26 सुरक्षाकर्मी और 69 चरमपंथी मारे गए थे। यानि हमले जारी थे। लेकिन सरकार के बयानों में जम्मू-कश्मीर से चरमपंथ लगभग खत्म कर दिया गया है का दावा किया जा रहा था। साथ ही पर्यटक ऐसे इलाकों में भी जाने लगे जहां प्रशासन ने सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए थे। जम्मू-कश्मीर में पिछले दो सालों में ज्यादा हमले हुए हैं। टूरिज्म या पर्यटन एक बात है और नॉर्मल्सी दूसरी चीज है। जब भी हमने कहा कि जम्मू-कश्मीर में नॉर्मल्सी है, तभी आतंकी हमले ज्यादा हो गए। जिस तरह पर्यटन बढ़ रहा था, लोग मर्जी से वहां जा रहे थे तो आप यह कह सकते हैं कि सरकार को खतरा पहले ही नजर आ जाना चाहिए था। हमले में मारे गए लोगों के परिजनों ने बताया कि पहलगाम में लोगों का धर्म पूछकर मारा गया तो दुलत ने कहा कि पहलगाम में जो हुआ, वह हिन्दु-मुस्लिम मुद्दा नहीं है। न जम्मू-कश्मीर है और न ही भारत में कोई हिन्दू-मुस्लिम है। बल्कि यहां हिन्दू-मुस्लिम एक हैं। यह मैसेज साफतौर पर जाना चाहिए। आज खासतौर से मैं कहूंगा कि कश्मीरियत को हमें खोना नहीं चाहिए। उसे जिन्दा रखना बहुत जरूरी है। 
-अनिल नरेन्द्र 

Saturday, 3 May 2025

कनाडा में खालिस्तानियों की करारी हार

जस्टिन ट्रूडो ने भारत से खूब दुश्मनी निभाई। अपनी सत्ता की लालच में उन्होंने क्या-क्या नहीं किया। कभी भारत पर मनगढ़ंत आरोप तो कभी खालिस्तानियों को सिर पर चढ़ाया। जस्टिन ट्रूडो की वजह से भारत और कनाडा के रिश्तों में तल्खी आ गई। जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानियों के दम पर भारत से पंगा लिया। इसमें खालिस्तानियों के कथित आका जगमीत सिंह ने खूब मदद की। जगमीत सिंह के सपोर्ट पर ही जस्टिन ट्रूडो की सरकार चल रही थी। जगमीत सिंह ने सरकार को समर्थन के बदले अपने खालिस्तानी एजेंडों को पाला-पोसा। पर कनाडा की नजर से उसकी चालाकी नहीं बच पाई। कनाडा में जगमीत सिंह की पार्टी एनडीपी यानी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की करारी हार हुई है। एनडीपी को कुल 343 में से 7 ही सीटें मिली हैं। एनडीपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी छिन गया है। जबकि पिछले चुनाव में एनडीपी 25 सीटें जीतकर किंगमेकर बनी थी। एनडीपी के समर्थन से तत्कालीन पीएम जस्टिन ट्रूडो ने चार साल सरकार चलाई। एनडीपी प्रमुख जगमीत सिंह अपनी परंपरागत बर्नबी सेंट्रल से भी चुनाव हार गए। जगमीत सिंह इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे, जबकि पिछले चुनाव में इस सीट पर एक तरफ 56 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार जगमीत को मात्र 27 प्रतिशत ही वोट मिले। जगमीत की पार्टी ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के जो 7 प्रत्याशी जीते हैं उसमें से कोई भी भारतीय मूल का नहीं है। एनडीपी सिख बहुल अपनी सीट भी नहीं जीत पाई है। चुनाव में भारत विरोधी एनडीपी के जगमीत सिंह और लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो कनाडा की राजनीति से आउट हो गए हैं। जगमीत ने एनडीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के केस में जगमीत ने भारत के खिलाफ बहुत जहर उगला था। कनाडा द्वारा पिछले साल भारतीय राजनयिकों को उच्चायोग से निकालने की कार्रवाई का जगमीत ने समर्थन किया था। कनाडा में इस बार रिकार्ड 23 भारतवंशी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे है। पिछली बार 19 भारतीय सांसदों ने चुनाव में जीत हासिल की थी। इस बार लिबरल पार्टी में 13 जबकि कंजरवेटिव पार्टी से 10 भारतवंशी सांसदों को जीत मिली है। जहां तक भारत -कनाडा के संबंधों की बात है, ये पूर्व पीएम ट्रूडो के दौर से निश्चित रूप से बेहतर रहने वाले हैं। ट्रूडो ने कई मुद्दों पर भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने का काम किया। नए नेता मार्क कार्नी कह चुके हैं कि दोनों देशों के हित आपसी विश्वास पर कायम होंगे। कार्नी का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के वर्तमान दौरे में भारत-कनाडा अहम भूमिका निभा सकते हैं। कार्नी के रूप में सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी के नए नेतृत्व का उभार हो रहा है। ट्रूडो और लिबरल को समर्थन देने वाले जगमीत हाशिए पर चले गए हैं। कार्नी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच तनावपूर्ण रिश्ता रहा है। ट्रंप ने कनाडा पर भारी टैरिफ लगाया, जिसका कनाडा की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा। ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने जैसी विवादित बातें कहीं, जिस पर कार्नी समेत पूरे कनाडा ने नाराजगी जताई। यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्नी को लिबरल पार्टी के दोबारा सत्ता में आने में ट्रंप का बड़बोलापन काम आया। -अनिल नरेन्द्र