Thursday, 16 January 2025

आस्था के महाकुंभ हर-हर गंगे


प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में आस्था का कुंभ मेला शुरू हो गया है। तंबुओं का एक पूरा शहर यहां रूप ले चुका है, जिसकी आबादी अगले कुछ दिनों में दुनिया के बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ देगी। आस्था के इस संगम में डुबकी लगाने को लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। त्रिवेणी से नज़र उठाओ तो एक तरफ नौकाओं की लंबी कतारें, दूसरी तरफ तंबुओं का अनंत संसार दिखता है। और बीच-बीच में जहां नज़र ठहरे, वहां मुस्तैद खड़े पुलिस वाले दिखाई देते हैं। प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हुआ कुंभ, सिर्फ आस्था का ही संगम नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक क्षमता का भी इम्तिहान है। कुंभ का समापन महाशिवरात्रि के दिन, 26 फरवरी को होगा। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि इस बार कुंभ में 40 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस ने बैरिकेडिंग की हुई है। वज्रवाहन, ड्रोन, बम निरोधक दस्तों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) तक को तैनात किया गया है। अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत राजसी शानो-शौकत के साथ कुंभ में प्रवेश कर रहे हैं। इस दौरान उनके साथ हाथी, घोड़े, ऊंट और नाच गाना करते सैकड़ों की संख्या में भक्त हैं। सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग अखाड़ों ने अपने भव्य टेंट लगाए हैं। जहां रहकर वे पूजा पाठ कर रहे हैं। पंच दशनाम जूना अखाड़ा में नागा साधु शरीर पर भस्म और गले में रुद्राक्ष की मालाएं पहने बैठे हैं। बीबीसी से बातचीत में एक नागा साधु कहते हैं, जब साधना में आ जाते हैं तो ठंड की कोई बात ही नहीं रह जाती। भक्ति में बहुत शक्ति होती है, फिर ठंड नहीं लगती। वे कहते हैं, हम अघोरी बाबा हैं। हम कपड़ों की जगह शरीर पर भस्म लगाते हैं। इससे ठंड थोड़ी कम लगती है। भस्म ही हमारा अंग वस्त्र है। कई ऐसे बाबा भी कुंभ में आए हैं, जिनका दावा है कि उन्होंने कई सालों से अपना एक हाथ ऊपर उठा रखा है। वे खुद को उर्ध्वबाहु कहते हैं। ऐसे ही एक असम के कामाख्या पीठ से आए गंगापुरी महाराज हैं, जो 3 फीट 8 इंच कद के हैं। उनका कहना है कि वे 32 सालों से नहीं नहाए हैं। शहर के एडीजी भानु भास्कर के मुताबिक मेला क्षेत्र में प्रवेश के लिए अलग-अलग दिशाओं से आने वाले कुल सात मुख्य मार्ग तय किए गए हैं। इन रूटों पर वाहनों के लिए मेला क्षेत्र के करीब 100 से ज्यादा पार्किंग बनाई गई है। हजार विशेष ट्रेनें भी चलाई जा रही हैं। कुंभ में ठहरने के लिए कई लाख लोगों के रुकने की व्यवस्था की गई है। इनमें फ्री रैन बसेरों से लेकर पांच सितारा लग्जरी कैंप तक मौजूद हैं, जिनका एक रात का किराया लाख रुपये से भी ज्यादा है। भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) ने अरैल क्षेत्र के अंदर सेक्टर 25 में महाकुंभ ग्राम नाम से एक टेंट सिटी बसाई गई है। यहां श्रद्धालुओं के लिए सुपर डीलक्स कमरे और विला बनाए गए हैं। इन कमरों का प्रतिदिन किराया 16 हजार से 20 हज़ार रुपये है। यहां नाश्ता, लंच और डिनर की सुविधा के साथ-साथ गर्म पानी की व्यवस्था है। इसके अलावा अरैल घाट के पास एक डोम सिटी बनाया गया है। यहां शीशे के गुंबदनुमा कमरे बनाए गए हैं, जो जमीन से करीब 18 फीट ऊपर हैं। एक पांच सितारा होटल में जो सुविधा होती हैं, वो सभी सुविधाएं इसमें मिलेंगी। देश-विदेश से श्रद्धालु प्रयागराज आते हैं। भीड़ की वजह से वो घाट तक नहीं आ पाते। इसलिए हमने इस प्रोजेक्ट को डिजाइन किया है। बीबीसी से बातचीत में प्रबंधक सिंह बताते हैं, हमारे यहां शाही स्नान के दिन एक कमरे का प्रतिदिन किराया 1 लाख 11 हजार, वहीं आम दिनों में 81 हजार रुपये है। इसमें महाराजा बेड के साथ-साथ टीवी और अलग से अटैच बाथरूम भी बनाया गया है। इस पूरे प्रोजेक्ट में हमारे करीब 51 करोड़ रुपये लगे हैं। कुंभ में सात दिन शाही स्नान होंगे। उन दिनों में हमारे यहां एक डबल बेड वाले कमरे का किराया 20,000 और आम दिनों में 10,000 रुपए रखा है। वहीं दूसरी तरफ शहर में नगर निगम ने जगह-जगह पर अस्थाई रैन बसेरे बनाए हैं। यहां निःशुल्क रहने की व्यवस्था की गई है। कुंभ में लाखों लोग कल्पवास करते हैं, जिन्हें कल्पवासी कहते हैं। पिछले कई दिनों से भक्तों का प्रयागराज पहुंचने का सिलसिला जारी है। ये लोग माघ के पूरे महीने तंबू लगाकर पूजा पाठ करते हैं और अपने साथ जरूरत का सभी सामान घर से लेकर आते हैं। हम सांसारिक माया मोह और भौतिक चीजों से दूर रहें। बस भोजन और भजन करें, ठंडी और गर्मी का अहसास ना हो, यही कल्पवास है। प्रयागराज की रहने वाली श्यामलि तिवारी पिछले सात सालों से कल्पवास कर रही हैं। वे मां गंगा का नाम लेते हुए रोने लगती हैं। श्यामलि कहती हैं, यहां गंगा जी नहाने आए हैं, जो गलतियां हुई हैं, उन्हें गंगा मां माफ करेंगी। हम यहां एक महीने रहेंगे। शुद्ध भोजन करेंगे। लहसुन, प्याज और सरसों के तेल का इस्तेमाल तो दूर हम नमक भी सेंधा खाते हैं।

- अनिल नरेन्द्र

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