Tuesday 12 April 2011

विपक्षी दलों का दावा:अन्ना ने हमारी लगाई फसल काटी है

प्रकाशित: 12 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र
लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे के पांच दिन तक चले अनशन से फजीहत की स्थिति में कई पार्टियां व व्यक्ति अब डैमेज कंट्रोल में लग गए हैं। अन्ना के आंदोलन का सबसे ज्यादा नुकसान विपक्षी दलों और बाबा रामदेव सरीखे के लोगों को हुआ है। बाबा रामदेव पिछले कई महीनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ जगह-जगह सभाएं कर रहे थे और इन सभाओं में उन्हें जबरदस्त समर्थन भी मिल रहा था पर अन्ना हजारे मुंबई से उड़कर जन्तर-मन्तर आए और पूरी मूवमेंट को हाइजैक कर गए। आंदोलन के बाद जो जन लोकपाल के गठन के लिए समिति बनी है उसमें बाबा का नामोंनिशान नहीं। समिति के सदस्यों को लेकर बाबा रामदेव ने शांति भूषण और उनके पुत्र सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण दोनों को समिति में लेने पर एतराज किया है। रामदेव ने हरिद्वार में कहा कि समिति में भाई-भतीजावाद क्यों?  देश में और भी कई कानूनविद् हैं जिन्हें समिति में लिया जा सकता है। अन्ना हजारे ने जो समिति बनाई है उसमें चार सदस्य सरकार की ओर से मंत्री हैं और चार सदस्य अन्ना हजारे के। सवाल यह उठता है कि भाजपा सहित अन्य विपक्षी दल कहां गए? क्या अब इनका भविष्य में रोल खत्म हो गया है? सत्तापक्ष और जनता ही सब फैसले करेगी? अन्ना के आंदोलन से यह बात तो साफ हो ही गई है कि जनता की नजरों में राजनेताओं की स्थिति कितनी गिर चुकी है। जनता इन्हें न तो देखना पसंद कर रही है और न ही अब इन्हें अपना नुमाइंदा मानने को ही तैयार है।

यूपीए के भ्रष्टाचार के खिलाफ विपक्ष का अभियान अन्ना हजारे के आंदोलन से पूरी तरह हाइजैक हो जाने के बाद अब भाजपा व उसके सहयोगी यह दावा करने में जुटे हैं कि दरअसल समाजसेवी तबका उन्हीं की बोई मेहनत की फसल काट रहा है। विपक्षी नेता यह कबूल करने को तैयार नहीं कि नागरिक समूह  का इस कदर सड़कों पर उतरना राजनीतिक दलों के लिए खतरे की घंटी है। इन नेताओं की दलील है कि बिल का मसौदा तैयार करने के लिए जितने भी एनजीओ के प्रतिनिधि घुस जाएं, मगर यह बिल तो पारित संसद में ही होना है। एनडीए संयोजक शरद यादव का दावा है कि विपक्ष ने भ्रष्टाचार से जुड़े तथ्यों को लेकर जिस मुस्तैदी से पूरे देश में अलख जगाई उसी का नतीजा है कि आज जनता प्रभावी कानून के लिए सड़कों पर उतर आई।

शनिवार को भाजपा नेताओं ने अन्ना के आंदोलन के आगे सरकार के घुटने टेकने की अलग-अलग अंदाज में व्याख्या की। मगर सभी नेताओं की दलील यही थी कि सिविल सोसाइटी ने विपक्ष के ही आंदोलन को आगे बढ़ाया है। भाजपा ने कहा कि विपक्ष महीनों से यूपीए-दो के भ्रष्टाचार की परतें जनता के सामने लाने में जुटा है। संसद के शीतकालीन सत्र और बजट सत्र में उसकी आक्रामकता सबके सामने है। इसके अलावा भाजपा व दूसरे विपक्षी दलों ने देशभर में घूमकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता में आक्रोश बनाया। भाजपा नेता ने इस बात से तो इंकार किया कि यह राजनीतिक दलों के किनारे किए जाने का संकेत है मगर उन्होंने माना कि अब राजनेताओं पर आसानी से भरोसा करने में जनता कतराती है और हर पार्टी को इस पर आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है।

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