Tuesday 15 October 2024

जेलों में जातिगत भेदभाव


जेलों में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी। इतनी ही प्रशंसा उस रिपोर्ट या याचिका की भी होनी चाहिए जिसने सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा पर प्रहार का जरूरी साहस दिखाया। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के 11 राज्यों में जेल मैनुअल में जाति आधारित भेदभाव वाले प्रावधानों को खारिज करते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन हम अभी तक जाति आधारित भेदभाव को जड़ से समाप्त नहीं कर पाए हैं। ऐतिहासिक फैसले में जेलों में जाति के आधार पर कैदियों के बीच काम के बंटवारे को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि भेदभाव बढ़ाने वाले सभी प्रावधानों को खत्म किया जाए। शीर्ष अदालतों ने राज्यों के जेल मैनुअल के जाति आधारित प्रावधानों को रद्द करते हुए सभी राज्यों को फैसले के अनुरूप तीन माह में बदलाव का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि भेदभाव करने वाले सभी प्रावधान असंवैधानिक ठहराये जाते हैं। पीठ ने जेल में जातिगत भेदभाव पर स्वत संज्ञान लेते हुए रजिस्ट्री को तीन महीने बाद मामले को सूची करने का निर्देश दिया। इस फैसले को सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने महिला पत्रकार सुकन्या शांता की तारीफ करते हुए कहा कि सुकन्या शांता आपके रोषपूर्ण लेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके लेख से ही इस मामले की सुनवाई की शुरुआत हुई। पता नहीं इस लेख के बाद हकीकत कितनी बदली होगी, लेकिन हमें उम्मीद है कि इस फैसले से हालात बेहतर होंगे। जब लोग लेख लिखते हैं। शोध करते हैं और मामलों को अदालतों के सामने इस तरह से लाते हैं कि समाज की वास्तविकता दिखा सकें, तो हम इन समस्याओं का निदान कर सकते हैं। ये सभी प्रक्रियाएं कानून की ताकत को रेखांकित करती हैं। सुकन्या शांता द वायर डिजिटल प्लेटफार्म के लिए काम करती हैं। उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों में जेलों में जाति-आधारित भेदभाव पर रिपोर्टिंग कर एक सीरिज की। इस सीरिज में उन्होंने कैदियों को जाति के आधार पर दिए जाने वाले काम और जाति के आधार पर कैदियों के साथ भेदभाव जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया। इस सीरिज के प्रकाशित होने के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान लिया। इसके बाद सुकन्या ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और फैसला अब आपके सामने हैं। सरकारी दस्तावेजों में जाति नाम चिह्नित करना अनिवार्य है। कानून में संशोधन कर इस तरह के भेदभाव समाप्त करने में सरकारें संकुचाती हैं। क्योंकि जाति आधारित राजनीति करने में ये माहिर हैं। इसलिए उनकी प्राथमिकताओं में अंग्रेजों के बनाए नियमों को सुधारने की बात ही नहीं उठती। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बावजूद हम अब तक जातियों के पूर्वाग्रह और अंतहीन जंजाल से निकलने में पूर्णत असफल रहे हैं। अपराधियों को सजा बेशक अदालत देती है पर कैद के दौरान उनके साथ किया जाने वाला जेल अधिकारियों का बर्ताव भी कई दफा पक्षपाती होता है। ये सलाह सिर्फ जेल नियमावली तक ही नहीं सीमित होना चाहिए। बल्कि इस तरह का सुधारवादी कदम पूरे समाज में सख्तीपूर्वक लागू किए जाने की जरूरत है। ये छुआछात या जाति-आधारित भेदभाव से समाज को मुक्त कराने की जरूरत है। अदालत ने पहल कर दी है।

-अनिल नरेन्द्र

हरियाणा चुनाव ः किस पर दबाव कम हुआ किस पर बढ़ा


आरक्षण और संविधान पर खतरे को लेकर विपक्ष की बनाई धारणा के कारण लोकसभा चुनाव में पहुंचे नुकसान के बाद हरियाणा के नतीजे नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए संजीवनी से कम नहीं है। हरियाणा में जीत की हैट्रिक और जम्मू-कश्मीर में पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन से न सिर्फ मोदी पर दबाव कम होगा बल्कि पार्टी का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। मोदी जी पर पिछले कुछ समय से दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था। पार्टी के अंदर बढ़ते मतभेद, विपक्ष का तीखा हमला और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से बढ़ती आलोचना। मोदी नड्डा कई मोर्चो पर एक साथ लड़ रहे थे। हरियाणा के चुनाव परिणाम अगर भाजपा के खिलाफ आते तो संघ का मोदी-शाह जोड़ी पर और दबाव बढ़ता और प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर मोदी सरकार की नीतियों पर जो हमले हो रहे थे इनमें और तेजी आ जाती। मोदी ब्रैंड पर प्रश्नचिह्न लगने शुरू हो गए थे। पार्टी के अंदर यह आशंका भी जाहिर की जा रही थी कि अब मोदी ब्रांड चुनाव में चल ही रहा है। हरियाणा के परिणामों से न केवल इन अटकलों, आलोचनाओं पर विराम लगा बल्कि अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के अलावा उत्तर प्रदेश में अहम माने जाने वाले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर भी इसका असर पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी और कांग्रेsस पार्टी की इस हार की वजह से उन पर दबाव बढ़ेगा। राहुल गांधी जीत के दावे कर रहे थे। वोEिटग से पांच दिन पहले एक्स पर राहुल ने लिखा था, हरियाणा में दर्द के दशक का अंत करने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी शक्ति के साथ एकजुट है, संगठित है, समर्पित है। ये दावे कितने खोखले निकले परिणामों ने बता दिए। कई विश्लेषक इस हार को राहुल गांधी की व्यक्तिगत हार मान रहे हैं। लेकिन हमारा ऐसा मानना नहीं है। राहुल ने ईमानदारी से पूरी ताकत लगाई पर न तो स्थानीय नेताओं ने साथ दिया न ही संगठन ने। अब राहुल रैली में आई भीड़ को पोलिंग बूथ पर तो नहीं ले जा सकते। पर हो राहुल व कांग्रेस की इंडिया गठबंधन में बारगेनिंग की पोजीशन कम जरूर हुई है। होनी भी चाहिए थी क्योंकि कांग्रेस को कुछ ज्यादा अहंकार हो गया था। इसे आप पार्टी व समाजवादी पार्टी को साथ हरियाणा में लड़ना चाहिए था। अहीरवाल क्षेत्र में अखिलेश यादव की एक-दो सभा करनी चाहिए थी। इस हार से राहुल, प्रियंका और सोनिया को इतना तो समझ आ गया होगा कि पार्टी के अंदर बैठे जयचंदों से कैसे निपटा जाएगा। लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद जिस तरह विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लाक में कांग्रेस का रुतबा बढ़ा था हरियाणा की हार से उस पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है। उसके सहयोगी दल ही उन्हें आंखें दिखाने लगे हुए हैं। उधर उत्तर प्रदेश में सपा ने उपचुनाव के लिए अपने छह उम्मीदवारों की घोषणा कर दी हैं इनमें दो सीटें वह भी है जिन पर कांग्रेस दावा कर रही थी। सहयोगी आरोप लगा रहे हैं कि जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में होती है वहां वह सहयोगियों को एडजस्ट नहीं करती है। जम्मू-कश्मीर, हरियाणा के नतीजों का राहुल के नेतृत्व पर क्या असर पड़ेगा ये कहना जल्दबाजी होगी। अभी दो राज्यों के चुनाव बाकी हैं, जिनमें महाराष्ट्र और झारखंड शामिल हैं। इन दोनों राज्यों में राहुल गांधी के सामने चुनौती बढ़ गई है। इस बात में कोई शक नहीं कि कांग्रेस का पलड़ा हल्का हुआ है। टिकट बंटवारे इत्यादि में गठबंधन की पार्टियां अब कांग्रेस पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती हैं। कुल मिलाकर मैंने जैसे कहा कि नरेन्द्र मोदी की छवि बढ़ी है। उन पर दबाव कम हुआ है और राहुल गांधी की मेहनत को धक्का लगा है और उन पर दबाव बढ़ा है।

Friday 11 October 2024

सीटें तो बढ़ी पर कश्मीरियों का दिल नहीं जीत पाई

जम्मू-कश्मीर में भाजपा सत्ता तक तो नहीं पहुंच पाई लेकिन 25.63 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा वोट शेयर करने में सफल रही। 2014 में उसे 22.98 प्रतिशत वोट मिले थे। पार्टी को राज्य में अब तक की सबसे ज्यादा सीटें भी मिली हैं। 2014 में भाजपा को पहली बार 25 सीटें मिली थीं। इस बार 29 सीटों पर पहुंच गई। भाजपा को 1987 के बाद साढ़े तीन दशक में सबसे बड़ी सफलता मिली है। हालांकि कश्मीर संभाग में 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, पर एक भी नहीं जीत सका। चुनाव में लोगों को राहुल-अब्दुल्ला का साथ रास आया और 1987 के बाद पांचवीं बार गठबंधन सरकार का रास्ता साफ हुआ। नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन पर कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में तो सफल रही, लेकिन सीटों के साथ वोट शेयर भी घट गया। 2014 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 18.01 फासदी मत प्रतिशत के साथ 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि इस चुनाव में उसे कुल 6 सीटें मिली और मत प्रतिशत भी गिर कर 11.97 प्रतिशत रह गया। दस साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी को भारी झटका लगा है। 2014 में भाजपा के साथ सरकार बनाने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। खुद चुनाव से दूर रहकर महबूबा मुफ्ती ने अपनी बेटी इल्तिजा पर दांव लगाया था, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पीडीपी का मत प्रतिशत भी गिरकर 8.87 फीसदी रह गया जो 2014 के चुनाव में 22.67 प्रतिशत था। 2014 में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं। इल्तिजा मुफ्ती का कहना है कि भाजपा के साथ गठबंधन की वजह से पार्टी की हार नहीं हुई। कई कारण रहे। घाटी में नेशनल कांफ्रेंस-पीडीपी में से एक को जनता ने मौका दिया। अनुच्छेद 370 व 35ए की बेड़ियों से जम्मू-कश्मीर की आजादी दिलाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में पहली सरकार बनाने का भाजपा के सपनों को न केवल झटका लगा है बल्कि अपने बलबूते पहली बार सूबे में सरकार बनाने का दावा भी खोखला निकला। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत पहली बार जेके में अनसूचित जाति (एसटी) को राजनीतिक आरक्षण देते हुए विधानसभा की नौ सीटें आरक्षित कीं। पर यहां भी उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। भाजपा को तमाम जतन के बाद भी पोरागंल में जोरदार झटका लगा। राजौरी-पुंछ की आठ में एसटी के लिए आरक्षित पांच सीटों पर वह करिश्मा नहीं कर सकी। इन दोनों जिलों की सात सीटों भाजपा हार गई। केवल चार-पांच सीटों की उम्मीद थी। भाजपा को यहां केवल बालाकोट-सुंदरबन सीट पर ही जीत मिली। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र रैना भी हार गए। खास बात यह रही कि पहाड़ी समुदाय को पहली बार भाजपा ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया था और उसे उम्मीद थी कि पहाड़ी समुदाय भाजपा का साथ देगी। गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रैलियां भी काम नहीं आई। चिनाव वैली में पिछला प्रदर्शन दोहराने में सफल रही। -अनिल नरेन्द्र

फसल बोई कांग्रेस ने, काटी भाजपा ने

हरियाणा राज्य के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी ने लगातार तीन बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की हो। हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत के जोर-शोर से दावे कर रही थी। तमाम सर्वेक्षण, पोल सर्वे, विश्लेषक कांग्रेस की जबरदस्त जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे। जानकार भी हरियाणा में बीते इस साल में भाजपा की सरकार को लेकर सत्ता विरोधी लहर का दावा कर रहे थे। एग्जिट पोल में कांग्रेस को न केवल जीतते हुए दिखाया गया बल्कि 90 सीटों में से कांग्रेsस को करीब 60 तक की सीटें मिलने का दावा कर रहे थे। कहा गया था कि हरियाणा में किसानों का मुद्दा हो, पहलवानों का मुद्दा हो, अग्निवीर जैसा मुद्दा हो इनकी वजह से भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी है। दावा तो यहां तक किया जा रहा था कि यह चुनाव हरियाणा की जनता बनाम भाजपा है। हरियाणा में दस साल बाद कांग्रेस अपनी सरकार बनाने का सपना पालती रही के हाथों में करारी हार लगी। वजह कई रही। इन नतीजों के पीछे सबसे बड़ी वजह रही है भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट। इसका असर हुआ कि हुड्डा के गढ़ सोनीपत की पांच में से चार सीटों पर कांग्रेस हार गई। हरियाणा के एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक हरियाणा में करीब 22 फीसदी जाट वोट हैं जो काफी लोकल हैं यानि खुलकर अपनी बात रखते हैं। गैर-जाटों को लगा कि कांग्रेस के जीतने पर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बनेंगे इसलिए उन्होंने खामोशी से भाजपा के पक्ष में वोट दिया। इस बार के विधानसभा चुनावों में वोटों का बंटवारा जाट और गैर-जाट के आधार पर हो गया, जिसका सीधा नुकसान कांग्रेsस को हुआ। हरियाणा में कांग्रेsस की हार के पीछे एक बड़ा कारण था पार्टी के अंदर गुटबाजी। जानकार मानते हैं कि राज्य में कांग्रेस के उम्मीदवारों को इस तरह से भी देखा जा रहा था कि कौन हुड्डा खेमे से है, कौन शैलजा खेमे से है। यही नहीं कांग्रेस के कई उम्मीदवारों को आलाकमान यानि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के कहने से मैदान में उतारा गया जिनका हरियाणा में कोई जनाधार नहीं था। इनमें से प्रमुख नाम लिया जा रहा है कांग्रेस संगठन मंत्री के सी वेणुगोपाल का। वेणुगोपाल ने सुना है 5 नाम दिए थे, सभी पांच हार गए। हुड्डा और शैलजा की आपसी खींचतान से भी पार्टी को नुकसान हुआ। शैलजा का घर बैठना और यह कहना कि पार्टी में उनका अपमान हुआ है ने दलित वोटों को खिसका दिया और इसका फायदा भाजपा को हुआ। हरियाणा में गुटबाजी और गलत तरीके से टिकट बांटने की वजह से कांग्रेस को लगभग 13 सीटें गंवानी पड़ी। इनमें आलाकमान, हुड्डा और शैलजा तीनों के चुनिंदा उम्मीदवार थे। कांग्रेsस के कई नेताओं का ध्यान चुनावों से ज्यादा चुनाव जीतने के पहले ही मुख्यमंत्री कुर्सी पर था। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने कहा है कि इन चुनावों का सबसे बड़ा सबक यही है कि अति आत्म विश्वास कभी नहीं करना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा ने 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए थे। इनमें 16 उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर ली। कांग्रेस ने अपने किसी विधायक का टिकट नहीं काटा और उसके आधे उम्मीदवारों की हार हो गई। उम्मीदवारों को नहीं बदलना भी कांग्रेsस के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों में से यह बात भी सामने आई कि 10 से ज्यादा सीटों पर छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार कांग्रेsस की हार के पीछे बड़ी वजह रही हैं। भाजपा ने उन सभी सीटों पर कांग्रेस विरोधी उम्मीदवारों की मदद की। खासकर उन जगहों पर जहां उसकी जीत की संभावना कम थी और कांग्रेस की जीत भी स्पष्ट नहीं दिख रही थी। कांग्रेस के संगठन में एक बार फिर कमी दिखाई दी। वो उमड़ती भीड़ को वोटों में तब्दील नहीं कर सके और अति उत्साह में जीती बाजी हार गई। इसलिए कहता हूं कि फसल बोई कांग्रेस ने, काटी भाजपा ने।

Thursday 10 October 2024

सिर्फ सरकार की आलोचना पर केस नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पत्रकारिता कर रहे लोगों के लिए सुकून दे ही, हो सकती है कि सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गत शुक्रवार को कहा कि पत्रकारों के अधिकारों को देश के संविधान 19(1) के तहत संरक्षित किया गया है। एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में मानकर उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। साथ ही निर्देश दिया कि राज्य प्रशासन उनके लेख के संबंध में कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति एनवीएन भट्टी की पीठ ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया है। पीठ ने याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब पांच नवम्बर को होगी। अपने संक्षिप्त आदेश में पीठ ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ प्रासंगिक टिप्पणियां की। पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकारों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत संरक्षित किया जाता है। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन से सरकार की आलोचना के रूप में माना जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं लगाया जाना चाहिए। दरअसल, सरकारों को अपनी आलोचना करनी रास नहीं आती, मगर पिछले कुछ वर्षों में सरकारें इसे लेकर प्रकट रूप से सख्त नजर आने लगी हैं। सरकार के खिलाफ अखबारों में खबरें, लेख या कोई वैचारिक टिप्पणी करने पर कई पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएं सामने आई हैं। यहां तक कि कुछ पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम के तहत भी मुकदमें दर्ज किए गए हैं, जिसमें जमानत मिलना मुश्किल होती है। इस धारा के तहत कई पत्रकार अब भी सलाखों के पीछे हैं। कुछ मामलों में पहले ही सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं माना जा सकता। मगर किसी सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। किसी देश की पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र है और कितने साहस के साथ अपने सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना कर पा रही है, उससे उस देश की खुशहाली का भी पता चलता है। यह उदाहरण नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में विश्व खुशहाली सूचकांक में भारत निरंतर नीचे खिसकता गया है। सवाल यह है कि सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय की नसीहत को कितनी गंभीरता से लेती है और स्वतंत्र पत्रकारिता करने की इजाजत देती है? -अनिल नरेन्द्र

ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड का एक साल

यह नाम था हमास के उस ऑपरेशन का जो उसने पिछले साल यानि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला किया था। पिछले साल सात अक्टूबर को हुए हमले को एक साल पूरा हो चुका है। एक साल हो गया जब हमास ने इजरायल पर हमला कर 1200 लोगों की हत्या कर दी थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया था। इजरायल ने इसके जवाब में गाजा में बड़े पैमाने पर हवाई और जमीनी हमले करके गाजा को लगभग मिट्टी में मिला दिया। हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इसमें 41,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए। इजरायल हमास युद्ध की वजह से फिलस्तीन का गाजा शहर आज मलबों के ढेर में तब्दील हो गया है। पिछले एक साल में इस शहर में 4.2 करोड़ टन से भी अधिक मलबा जमा हो गया है। इसमें टूटी और ध्वस्त दोनों इमारतें शामिल हैं। चिंता की बात है कि मलबा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के उपग्रह डाटा के मुताबिक गाजा की युद्ध पूर्व संरचनाओं में से दो तिहाई यानि 1,63,000 से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं या ढह गई हैं। इनमें से करीब एक तिहाई ऊंची इमारतें थीं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने गाजा के आठ शरणाथी शिविरों के आंकलन का हवाला देते हुए कहा कि करीब 23 लाख टन मलबा दूषित हो सकता है। इसमें से कुछ नुकसानदायक भी है। धूल एक गंभीर चिंता है। यह पानी और मिट्टी को दूषित कर सकती है। फेफड़े की बीमारी का कारण बन सकती है। मलबे में ऐसे शव हैं, जो बरामद नहीं हुए हैं। फिलस्तीन स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन शवों की संख्या करीब 10,000 है। कुछ बम भी हैं, जो फटे नहीं। यानि सात अक्टूबर के दिन ही पिछले साल हमास ने इजरायल पर हमला किया था और उसके बाद इजरायल ने हमास पर अटैक शुरू किया जो अब इजरायल के लिए सात फ्रंट वार में तब्दील हो गया है। एक साल से मध्य पूर्व में तनाव लगातार बढ़ ही रहा है और पिछले हफ्ते इजरायल पर ईरान की तरफ से हुए मिसाइल अटैक के बाद तो राकेट और मिसाइलों के हमलों से संकट और गहरा गया है। इजरायल ने अभी तक ईरान में जवाबी कार्रवाई की नहीं है लेकिन खतरा लगातार बना हुआ है। सवाल यह है कि अगर इजरायल ईरान पर हमला करता है तो ईरान भी जवाबी कार्रवाई करेगा। हमास और हिज्बुल्लाह और हूती मिलकर एक साथ अटैक का प्लान कर रहे हैं। जिस तरह इजरायल छह फ्रंट पर एक साथ लड़ रहा है उससे किसी भी तरफ के अटैक की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके लिए इजरायल ने अमेरिका और नाटो देशों की मदद से पुख्ता तैयारी कर रखी है। देखना यह है कि मध्य-पूर्व में जंग का विस्तार होता है या यह सीमित रहती है। सारा खेल पिछले साल 7 अक्टूबर को ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड से शुरू हुआ है।

Tuesday 8 October 2024

हाथ में राइफलöमुस्लिम देशों से अपील


ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई करीब पांच साल बाद जुमे की नमाज के दिन सार्वजनिक तौर पर उपस्थित हुए। खामेनेई की यह सार्वजनिक मौजूदगी इसलिए भी खास है क्योंकि इजरायल और ईरान के बीच तनाव के माहौल में उनके भूमिगत हो जाने की अटकले लगाई जा रहीं थीं। इन अटकलों के पीछे की वजह कुछ दिनों के अंदर ही हमास और हिज्बुल्लाह के कई वरिष्ठ नेताओं और कमांडरों की हत्या भी है। ईरान इसके लिए इजरायल को दोषी ठहराता है और इसी का बदला लेने के लिए उसने इजरायल पर जबरदस्त मिसाइली हमला किया था। ईरान इंटरनेशनल मीडिया ग्रुप के मुताबिक, करीब पांच साल बाद शुक्रवार की नमाज में खामेनेई की पहली बड़ी सार्वजनिक मौजूदगी थी। उसके मुताबिक खामेनेई ने वही पुरानी इजरायल और अमेरिका के खिलाफ भारत समेत उस वैचारिक नैरेटिव की बात कही जो उन्होंने 1979 से जारी रखी है। 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद वहां नई सत्ता कायम हुई थी। ईरान पर नजर रखने वाले लोग मानते हैं कि यह कार्यक्रम खामेनेई के प्रति समर्थन और तेहरान की सुरक्षा को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम का मकसद उन अफवाहों को दूर करना भी था जिसमें कहा गया था कि 28 सितम्बर को बेरुत में हिज्बुल्लाह नेता नसरुल्लाह की मौत के बाद खामेनेई एक गुप्त बंकर में छिपे हुए हैं। इजरायल के प्रमुख अखबार द टाइम्स ऑफ इजरायल लिखता है कि ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने अपने उपदेश के दौरान हाथ में बंदूक लेकर दावा किया कि इजरायल हमास और हिज्बुल्लाह को कभी नहीं हटा पाएगा। खामेनेई ने शुक्रवार को अपने धार्मिक उपदेश में इसी सप्ताह इजरायल पर किए गए मिसाइल हमले का समर्थन किया। इन मिसाइल हमलों की वजह से क्षेत्रीय युद्ध की आशकाएं बढ़ गई हैं। इजरायल किसी भी समय ईरान पर जवाबी हमला कर सकता है। निशाने पर है ईरान के तेल भंडार और परमाणु ठिकाने। द टाइम्स ऑफ इजरायल के मुताबिक खामेनेई ने आतंकी प्रमुखों की हत्या के बाद यह बयान दिया है और कहा है कि ईरान के मिसाइल हमले यहूदी अपराधों की न्यूनतम सजा है। इस अवसर पर आयतुल्लाह अली खामेनेई ने तेहरान के मुख्य प्रार्थना स्थल मोसल्ला (ग्रेंड मस्जिद) पर हिज्बुल्लाह चीफ नसरुल्ला की याद में नमाज प़ढ़ी। इसके बाद उन्होंने एकत्रित हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के तमाम मुसलमानों को इजरायल के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। खामेनेई ने इस्लामी देशों के साथ देने की अपील करते हुए कहा कि वह इजरायल को खत्म करके रहेंगे। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से यमन और ईरान से गाजा तक साथी देश शत्रु पर कार्रवाई को तैयार हैं। करीब 40 मिनट लंबे भाषण में खामेनेई ने इजरायल पर मंगलवार दागी गई करीब 200 मिसाइलों को ईरान सशस्त्र बलों की शानदार कामयाबी बताया। आयतुल्लाह खामेनेई ने इजरायल से हो रही जंग में मारे जाने वाले लड़ाकों को बहादुर और इस्लाम की राह में कुर्बान होने वाला बताया। उन्होंने कहा लेबनान और फिलस्तीन में रहने वाले आप लोग बहादुर हैं, आप वफादार और धैर्यवान हैं। ये शहादतें और जो खून बहाया गया है, वह आपके और हमारे दृढ़ संकल्प को हिला नहीं सकता। खामेनेई ने अरब देशों को संबोधित करते हुए अपना आधा भाषण अरबी भाषा में ही दिया। उन्होंने इस्लामी देशों की एकजुटता का भी आह्वान किया। न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि खामेनेई ने पिछले साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमलों की प्रशंसा की है। उन्होंने फिलस्तीनी इलाकों पर इजरायल के लंबे समय से चले आ रहे कब्जे की वजह से हमास के हमलों को तार्किक, न्यायसंगत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनन वैध बताया।

मामला जग्गी वासुदेव यानि सद्गुरु का


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन आश्रम में दो महिलाओं को कथित तौर पर अवैध रूप से बंधक बनाकर रखने के मामले की पुलिस जांच पर प्रभावी ढंग से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति द्वारा मद्रास हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया, जिसमें आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के परिसर में बंधक बनाकर रखा गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक रिटायर्ड प्रोफेसर कामराज की उस याचिका के बाद ये आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि उनकी दो बेटियां योग केंद्र में हैं और उन्हें बाहर लाया जाए। प्रोफेसर का आरोप है कि उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है और उन्हें सेंटर में कैद करके रखा गया है। लेकिन प्रोफेसर की बेटियों ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि वे ईशा सेंटर में अपनी मर्जी से रह रही हैं। ईशा योग केंद्र ने भी कहा है कि किसी को शादी करने या सन्यास लेने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है, इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को जांच करने के आदेश दिए थे और 4 अक्टूबर को रिपोर्ट जमा करने को कहा था। इसके बाद पुलिस ने ईशा योग केंद्र पर छापा मारा और यह कार्रवाई बुधवार शाम तक चली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को इस तरह से संस्थान में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। कोयम्बटूर के जिला पुलिस अधीक्षक कार्तिकेयन के नेतृत्व में समाज कल्याण विभाग व बाल कल्याण अधिकारियों की संयुक्त टीम ने ईशा योग केंद्र की तलाशी ली थी। जांच रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट में 18 अक्टूबर को जमा करवानी होगी। ईशा योग केंद्र की स्थापना 1992 में जग्गी वासुदेव ने तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के वेलिगिरी में की थी। इस केंद्र में हजारों विवाहित, अविवाहित और कुछ ब्रह्मचार्य पथ पर चलने वाले लोग रहते हैं। बेटियों के पिता कामराज तमिलनाडु विश्वविद्यालय के कृषि इंजीनियर विभाग के पूर्व प्रमुख हैं। उनकी 42 और 39 साल की दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी ने इंग्लैंड के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रोनिक्स में मास्टर्स किया है। साल 2008 में उनका तलाक हो गया था, उसके बाद वह ईशा सेंटर से जुड़ गईं। छोटी बेटी साफ्टवेयर इंजीनियर है। अपनी याचिका में बेटियों के पिता कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों को उनके दिभाग की कार्यक्षमता को कम करने के लिए दवा दी गई थी और इसी वजह से उन्हेंने परिवार से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। आरोप लगाया कि बेटियों को ब्रेनवॉश करके उन्हें जवान संन्यासी बना दिया जाता है और उन्हें अपने माता-पिता से भी मिलने नहीं दिया जाता है। मद्रास हाईकोर्ट में सुनवाई के समय दोनों बेटियां अदालत में मौजूद थीं और उन्होंने कहा कि वह अपनी मर्जी से रह रही हैं और किसी ने उन्हें मजबूर नहीं किया। जजों ने सवाल किया कि सद्गुरु के नाम से जाने वाले जग्गी वासुदेव योग केंद्र में अपनी बेटी की शादी क्यों करते हैं और अन्य महिलाओं को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासी के रूप में रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं? न्यायाधीशों ने अदालत में मौजूद महिलाओं से पूछा था, आप आध्यात्मिक मार्ग पर होने का दावा करती हैं। क्या अपने माता-पिता को छोड़ना पाप नहीं लगता? मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि इसके पीछे की सच्चाई का पता लगाने के लिए आगे की जांच की जरूरत है। ईशा योग केंद्र के एक प्रवक्ता ने एक लिखित बयान में कहा कि ईशा योग केंद्र किसी को शादी करने या संन्यास लेने के लिए मजबूर, प्रोत्साहित या प्रेरित नहीं करता। ईशा योग केंद्र के मुताबिक 2016 के जजों ने कहा था माता-पिता का दायर मामला सच नहीं है और हम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जिन लोगों को हिरासत में लिए जाने का आरोप है, वे अपनी मर्जी से केंद्र में रह रही हैं।

-अनिल नरेन्द्र


Friday 4 October 2024

कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो

तिरुपति में लड्डू विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नसीहत दी है। राजनेताओं से कहा है कि कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखो। यह लोगों की आस्था का मामला है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुबूत मांगते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के इस दावे पर सवाल उठाया कि तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही इस पर सख्त रुख अपनाते हुए चंद्रबाबू नायडू की तीखी आलोचना की। तिरुपति के प्रसाद से जुड़े इस विवाद को आधार बनाते हुए जो पांच याचिकाएं दायर की गई हैं, उन पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई हालांकि जारी है, लेकिन पहले ही दिन कोर्ट की नजर में यह तथ्य आ गया कि प्रसाद में मिलावटी घी के इस्तेमाल का कोई ठोस सबूत अभी तक नहीं पाया गया है। इससे न केवल यह पूरा मामला या विवाद ही निराधार साबित हो रहा है बल्कि यह सवाल भी सामने आया कि आखिर क्यों इस विवाद को तूल दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री से संबंधित दावा 18 सितम्बर को किया, जबकि मामले में प्राथमिकी 25 सितम्बर को दर्ज की गई और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन 26 सितम्बर को किया गया। पीठ ने कहा कि एक अन्य संवैधानिक पदाधिकारी के लिए सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देना उचित नहीं है जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। राजनीति और धर्म को मिलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नायडू ने दावा किया था कि पिछली सरकार के दौरान तिरुपति लड्डू बनाने में इस्तेमाल किया गया घी शुद्ध होने की बजाए जानवरों की चर्बी से युक्त था। अदालत ने सवाल किया कि जांच जब जारी है तो रिपोर्ट आने से पहले आप मीडिया में क्यों गए? लड्डू का स्वाद खराब होने की श्रद्धालुओं की शिकायत की बात उठने पर राज्य सरकार से सवाल किया कि आप कह सकते हैं कि टेंडर गलत तरीके से दिया गया। मगर यह कहना कि मिलावटी घी प्रयोग किया गया, इसका सबूत कहां है? तिरुपति मंदिर देश का एक ऐसा प्रमुख श्रद्धा का केंद्र है, जहां से करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने चंद्रबाबू नायडू पर राजनीति के लिए भगवान का प्रयोग करने और जनता का ध्यान सरकार के कामों से हटाने का आरोप लगाया। मंदिर की पवित्रता को ठेस लगाने वाली ये खबरें श्रद्धालुओं के लिए किसी सदमे से कम नहीं कही जा सकतीं। मगर जैसा शीर्ष अदालत ने कहा है कि धर्म को राजनीति से मिलाने की जरूरत नहीं है। आस्था-विश्वास के प्रति राजनीतिज्ञों को विशेष सतर्कता बरतनी सीखनी चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए लोग ये धर्म का दुरुपयोग जनता को दिग्भ्रमित करने और समुदायों के दरम्यान दरारे डालने वालों पर सख्ती की जानी आवश्यक है। सनसनी फैलाने वाले दोषमुक्त नहीं हो सकते। यदि वास्तव में किसी भी तरह की मिलावट हुई है, तो आस्था से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। इस तरह लोगों की आस्था से खेलकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश वैसे भी हमारे संवैधानिक मूल्यों पर भी आघात है। -अनिल नरेन्द्र

वांगचुक को हिरासत में लेने पर सियासी संग्राम

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 700 किलोमीटर लंबी दिल्ली चलो यात्रा को लेकर सोनम वांगचुक को दिल्ली के सिंघु बार्डर पर पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हिरासत में लिए जाने से नाराज सोनम वांगचुक मंगलवार को अनशन पर बैठ गए। दरअसल, सोनम वांगचुक सवा सौ साथियों के साथ सोमवार देर रात करीब 11 बजे सिंघु बार्डर पहुंचे थे। इस दौरान आउट नार्थ जिला पुलिस ने उनके काफिले को रोक लिया और वापस जाने के लिए कहा। जब वे नहीं माने तो पुलिस ने सोनम वांगचुक और उनके साथियों को हिरासत में ले लिया। पुलिस सोनम और उनके 40 साथियों को बवाना थाने ले गई। इसके अलावा अन्य को अलग-अलग थानों में रखा गया। सोनम वांगचुक को हिरासत में लेने के बाद सियासत गर्मा गई है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी वांगचुक से मिलने बवाना थाने पहुंचीं, लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पुलिस की कार्रवाई को गलत बताया है। इधर इस मुद्दे पर आक्रामक कांग्रेस ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए इसे तानाशाही रवैया करार दिया। मुख्यमंत्री आतिशी ने वांगचुक की गिरफ्तारी और पुलिस के रवैये पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने मांग की कि लद्दाख और दिल्ली के एलजी राज खत्म हो और दोनों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। चुनी हुई सरकार की प्रतिनिधि को वांगचुक से मिलने नहीं देना निंदनीय है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल और वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने भी भाजपा और केंद्र पर हमला बोला। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में आने से कभी किसानों को रोका जाता है तो कभी लद्दाख के लोगों को। दिल्ली आने का अधिकार सभी को है। निहत्थे शांतिपूर्ण लोगों से आखिर इन्हें क्या डर लग रहा है? वहीं लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने राजधानी में प्रवेश से रोकने के लिए वांगचुक को हिरासत में लेने के कदम को अस्वीकार्य करार दिया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लद्दाख के लोगों की आवाज सुननी पड़ेगी। लद्दाख में वांगचुक के लिए जनसमर्थन की लहर बढ़ी है और संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी समुदायों की सुरक्षा की व्यापक मांग हो रही है। मगर मोदी सरकार अपने करीबी दोस्तों को लाभ पहुंचाने के लिए लद्दाख के परिस्थितिकी रूप से संवेदनशील हिमालयी ग्लेशियरों का दोहन करना चाहती है। राहुल गांधी ने कहा कि पर्यावरण और संवैधानिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक पदयात्रा कर रहे सोनम वांगचुक और लद्दाख के लोगों को हिरासत में लेना अस्वीकार्य है। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और कई अन्य को दिल्ली सीमा पर हिरासत में लिए जाने के खिलाफ मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता के वकील ने मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष मामले को सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया। अदालत ने मामले को मंगलवार सूचीबद्ध करने से इंकार करते हुए इस बात पर सहमति व्यक्त की कि यदि अपराह्न साढ़े तीन बजे तक उसके काम की स्थिति सामान्य हो जाती है तो मामले को जल्द की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। उधर वांगचुक अपने साथियों के साथ बवाना थाने में बेमियादी अनशन पर बैठ गए हैं। वांगचुक को बुधवार को रिहा कर दिया गया।

Thursday 3 October 2024

नसरुल्लाह विलेन या हीरो?

लेबनान पर इजरायली हमले वैसे तो सितम्बर के मध्य से ही हो रहे थे, लेकिन 27 सितम्बर की शाम राजधानी बेरुत के घनी आबादी वाले दक्षिणी हिस्से में स्थित हिज्बुल्लाह मुख्यालय में हुए हमले में हिज्बुल्लाह प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह की मौत ने पहले से ही अस्थिर पश्चिम एशिया में स्थितियों को और जटिल तो बनाया ही है, इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध विराम के समर्थकों को भी भारी धक्का लगा है। नसरुल्लाह का मारा जाना हिज्बुल्लाह के लिए ऐसा झटका है, जिससे उभरना उसके लिए आसान नहीं होगा। नसरुल्लाह की मौत से तमाम अरब दुनिया में शोक का माहौल है। बहुत से इस्लामिक देश उसे अपना हीरो मानते थे जो इजरायल से पिछले तीन दशकों से टक्कर ले रहा था। नसरुल्लाह तीन दशक से ज्यादा समय से हिज्बुल्लाह का नेतृत्व कर रहा था। अपने लेबनानी शिया अनुयायियों के आदर्श और अरब तथा इस्लामिक जगत के लाखों लोगों के बीच सम्मानित नसरुल्लाह को सैयद की उपाधि दी गई थी। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देश और इजरायल उसे दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी मानते थे। उसके मरने के बाद कई देशों ने खुशियां मनाई, मिठाइयां बांटी। नसरुल्लाह को इजरायल ने किस बखूबी से मारा वह भी चौंकाने वाला है। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने अपने मुखबिरों से पता कर लिया था कि नसरुल्लाह किस दिन, किस समय, किस घर में होगा। कहा जा रहा है कि मोसाद का गुप्तचर कोई ईरानी हो सकता है क्योंकि ईरान के पास ही नसरुल्लाह की पूरी जानकारी रही होगी। खैर, ठीक समय में इजरायल ने अपने विमानों से बंकर बस्टर बम गिराए। नसरुल्लाह घर की बेसमेंट में एक कांक्रीट बंकर में मीटिंग लेने गया था जब यह बम आ गिरा। इजरायल ने 80 से अधिक बंकर बस्टर बम गिराए। ये बम इतने शक्तिशाली हैं कि जमीन के भीतर 60 फीट तक की गहराई में तथ्य को ध्वस्त कर सकते हैं। यह बम स्टील, कांक्रीट की मोटी दीवारों को तोड़ सकते हैं। ये गाडेड बम तहखाने, बंकर या सुरंगों को उड़ाने के लिए ही अमेरिका ने तैयार किए हैं। कहा जा रहा है कि इजरायल ने जो बम गिराए वह अमेरिका ने उसे दिए हैं। इजरायली सेना और नेतन्याहू सरकार के लिए यह बड़ी कामयाबी मानी जा रही है, मुझे अफसोस इस बात पर भी है। कथित झटके या कामयाबी के बाद भी इस क्षेत्र में शांति की संभावना मजबूत नहीं हुई है। इसके उलट संघर्ष के बेकाबू होने का खतरा है। पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय में हिज्बुल्लाह का नेतृत्व कर रहा नसरुल्लाह मध्य पूर्व के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में शुमार किया जाता था। उसकी कमी की जल्द भरपाई होना भी आसान नहीं है। मगर हिज्बुल्लाह के लिए यह इकलौता झटका नहीं है। हाल के हमलों में उसके एक दर्जन से ज्यादा टॉप कमांडर मारे जा चुके हैं। बहुचर्चित पेजर और वॉकी-टॉकी हमलों ने उसके इंटर कम्युनिकेशन सिस्टम को भी लगभग खत्म कर दिया है। ताजा झटका कितना बड़ा भी क्यों न हो, यह समझना गलत होगा ]िक इससे हिज्बुल्लाह इजरायल के सामने समर्पण कर देगा। कुछ समय पहले तक 12 देशों की ओर से प्रस्तावित युद्धविराम को लेकर जो भी बची-खुची उम्मीद थी, अब वह समाप्त हो गई है। इजरायल अभी रूका नहीं है वह अब लेबनान के अंदर घुसकर पूरा आक्रमण करने जा रहा है, इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। निगाहे ईरान पर भी टिकी हैं, तेहरान के ही गेस्ट हॉउस में हमास नेता इस्माइल हानिया की मौत का बदला भी उसने लेना है, नसरुल्लाह की मौत उसके लिए भी झटका है। देखना होगा कि उसकी प्रतिक्रिया कितनी और कैसी होगी। -अनिल नरेन्द्र

वित्त मंत्री सीतारमण पर एफआईआर

शायद यह पहली बार हो रहा है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी भी केंद्रीय वित्त मंत्री पर एफआईआर दर्ज हुई हो। इससे पहले जहां तक मेरी जानकारी है कभी भी किसी केंद्रीय वित्त मंत्री पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई। मामला इलेक्टोरल बांड संबंधी है। अब समाप्त हो चुकी चुनावी बांड योजना से संबंधित एक शिकायत के बाद बेंगलुरू से चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए नामित मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के बाद इलेक्टोरल बांड के मुद्दे पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ जबरन वसूली और आपराधिक साजिश का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। कोर्ट ने यह फैसला आदर्श अय्यर की याचिका पर सुनाया था। आदर्श जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष हैं। उन्होंने मार्च में स्थानीय पुलिस को एक शिकायत दी थी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। हाईकोर्ट के आदेश के अगले ही दिन यानि शनिवार दोपहर तीन बजे एफआईआर दर्ज की गई। इसमें केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण, ईडी के अधिकारी, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के पदाधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 304 (जबरन वसूली) 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य इरादे से कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कृत्य) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। जनाधिकार संघर्ष परिषद के सह-अध्यक्ष आदर्श आर अय्यर ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने चुनावी बांड की आड़ में जबरन वसूली की और 8000 करोड़ रुपए से अधिक का फायदा उठाया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सीतारमण ने ईडी अधिकारियों की गुप्त सहायता और समर्थन के माध्यम से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर दूसरों के फायदे के लिए हजारों करोड़ रुपए की जबरन वसूली की। शिकायत में कहा गया है कि चुनावी बांड की आड़ में जबरन वसूली का काम विभिन्न स्तरों पर भाजपा के पदाधिकारियों की मिलीभगत से चलाया जा रहा था। फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इससे संविधान के तहत सूचना के अधिकार और भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लघंन होता है। इस केस की जानकारी सामने आते ही भाजपा और कांग्रेस ने एक दूसरे पर निशाना साधना शुरू कर दिया। कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता आर आशोक ने कहा कि इलेक्टोरल बांड का लाभार्थी कांग्रेस भी रही है और निर्मला सीतारमण ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की तरह अपने ही परिवार को फायदा पहुंचाने के लिए पैसे नहीं लिए हैं। जब से राज्यपाल का पद गहलोत ने सीएम सिद्धरमैया के खिलाफ मूडा मामले में केस चलाने की मंजूरी दी है, तब से भाजपा उनका इस्तीफा मांग रही है। कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से राज्यपाल की दी गई मंजूरी को रद्द करने के लिए दी गई याचिका जिसे खारिज कर दिया गया। उधर कांग्रेस ने इस संबंध में कहा कि लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए वित्त मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्री खुद से ऐसा नहीं कर सकतीं। हम जानते हैं कि नंबर-1 और नंबर-2 कौन है और यह किसके निर्देश पर किया गया। सिंघवी ने इसे ईबीएस (इंक्सटॉशनिस्ट बीजेपी स्कीम) करार देते हुए कहा था कि बड़ा मुद्दा समान अवसर उपलब्ध कराने का है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है। इस बीच कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार का वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ इस मामले की जांच पर रोक लगा दी है। भाजपा नेता नलिन कुमार ने उन्हें आरोपी के रूप में नामजद करने वाली एफआईआर को चुनौती दी थी। अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी। देखें, अब आगे क्या होता है। वैसे यह अभूतपूर्व मामला है जहां किसी केंद्रीय मंत्री को किसी केस में आरोपी बनाया गया हो।

Tuesday 1 October 2024

अमेरिका की दहलीज तक पहुंचने वाली चीनी मिसाइल

चीन ने प्रशांत महासागर में बुधवार को एक अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) का परीक्षण किया। चीनी मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि मिसाइल पर प्रतिरूपी आयुध (डमी वार हैड) लगाया था, जिसे समुद्र के एक निषेध क्षेत्र में गिराया गया। चीन की इस डीएफ-41 मिसाइल को साल 2017 में सेना के अंदर शामिल किया गया था। इसकी मारक क्षमता 12 हजार से लेकर 15 हजार किलोमीटर तक है। ऐसे में यह मिसाइल अमेरिका की मुख्य भूमि के अंदर तबाही मचा सकती है। चीनी अखबार साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार इससे पहले चीन ने मई 1980 में अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल डीएफ-5 का परीक्षण किया था। चीन की इस पहली मिसाइल की मारक क्षमता 9 हजार किलोमीटर तक थी। हालांकि ताजा लांच अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास के अनुरूप है और किसी भी देश की ओर इसे टारगेट नहीं किया गया पर जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने इस टेस्ट पर चिंता जाहिर की है। इस लांच से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में तनाव बढ़ा है। जानकारों का मानना है कि इससे पता चलता है कि चीन की लंबी दूरी तक हमला करने की न्यूक्लियर क्षमता बढ़ी है। अमेरिका ने बीते साल आगाह किया था कि चीन ने डिफेंस अपग्रेड के तहत अपनी परमाणु ताकतों को मजबूत किया है। चीन ने जिस मिसाइल यानि आईसीबीएम का परीक्षण किया है वह 5000 से 12000 किलोमीटर तक मार कर सकती है। इससे चीन की पहुंच अब अमेरिका और हवाई द्वीप तक हो गई है। लेकिन चीन की सैन्य ताकत अब भी रूस और अमेरिका से करीब पांच गुना कम है। चीन कहता रहा है कि उसका न्यूक्लियर रखरखाव सिर्फ इसलिए है कि कोई और हमला न करे। विश्लेषकों का कहना है कि आमतौर पर चीन परीक्षण देश के अंदर ही किसी हिस्से में किया करता था। अतीत में शिजियांग प्रांत के एक रेगिस्तान में ऐसे परीक्षण किए गए थे। न्यूक्लियर मिसाइल विशेषज्ञ अंकित पांडे ने बीबीसी से कहा, इस तरह के परीक्षण अमेरिका जैसे दूसरे देशों के लिए असाक्ष्य नहीं है, मगर चीन के मामले में यह सामान्य बात नहीं है। अंकित ने कहा चीन के परमाणु आधुनिकीकरण के परिणामों के चलते पहले ही काफी बदलाव आ चुके हैं। ये लांच अब चीन के रुख में बदलाव को दिखाता है। जापान ने भी गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि चीन की ओर से कोई नोटिस नहीं दिया गया था। आस्ट्रेलिया ने कहा कि इस कदम से क्षेत्र में अस्थिरता और गलत आंकलन का जोखिम बढ़ता है। आस्ट्रेलिया ने भी इस मामले में चीन से जवाब मांगा है। न्यूजीलैंड ने चीन के परीक्षण का स्वागत नहीं किया है और इसे चिंता पैदा करने वाली हरकत बताया। अंतर्राष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर लिप एरिक एसले ने कहा कि अमेरिका के लिए साफ संदेश है कि ताइवान, स्ट्रेट संघर्ष में किसी भी तरह का सीधा दखल अमेरिका की धरती को भी खतरे में डाल सकता है। उन्होंने कहा चीन का ये परीक्षण अमेरिका और एशिया में उसके सहयोगियों को ये दिखाता है कि चीन कई मोर्चों पर एक साथ लड़ सकता है, बता दें कि यह मिसाइल ताइवान, फिलीपींस और गुआव के पास से गुजरती हुई प्रशांत महासागर में जा गिरी। यह भारत के लिए भी चिंता का विषय है। -अनिल नरेन्द्र

हरियाणा में बागी व छोटे दल बिगाड़ रहे हैं गणित

गुटबाजी भाजपा और कांग्रेस दोनों में है देखना यह होगा कि कौन मतदान से पहले इस पर काबू पा सकता है। कहा तो जा रहा है कि हरियाणा में माहौल कांग्रेsस का है। लेकिन आपसी गुटबाजी जीती हुई बाजी को नुकसान में भी बदल सकती है। राहुल गांधी की सभा में बेशक कुमारी शैलजा व भूपेन्द्र सिंह हुड्डा एक मंच पर दिखे पर इससे क्या गुटबाजी का सिलसिला थम गया है। वहीं भाजपा में भी गुटबाजी चरम पर है। वहां तो कई नेताओं ने अभी से अपने आप को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया है। गांव-देहात में भाजपा उम्मीदवारों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कई गांवों में तो भाजपा प्रत्याशी को गांव में घुसने ही नहीं दिया जा रहा है। बड़े-बड़े दिग्गजों को अपनी जान बचाने के लिए मौके से भागना पड़ा। भाजपा का सबसे बड़ा वोट केंपेनर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अंभी तक हुई दो चुनावी सभाओं में भीड़ नदारद थी। पांच से दस हजार लोग ही उपस्थित थे। जहां डेढ़-दो लाख आदमियों का हुजूम प्रधानमंत्री को सुनने के लिए आता रहा है। एक तरफ मुख्यमंत्री सैनी का गुट है, दूसरी तरफ मनोहर लाल खट्टर का गुट है तो तीसरी तरफ अनिल विज का गुट डटा हुआ है। संघ अलग नाराज चल रहा है। कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। वहीं रही-सही कसर बागी और निर्दलीय उम्मीदवार उतार रहे हैं। दोनों प्रमुख पार्टियों की तुलना करते समय कहा जाता है कि भाजपा के साथ एक संगठित सुव्यवस्थित संगठन है। यह संगठन बिल्कुल नीचे तक है। बूथ इंचार्ज से लेकर पन्ना प्रमुख तक सारे पदों पर लोग तैयार हैं, उनकी भूमिका तय है। कहा तो यह भी जाता है कि भाजपा हर समय चुनाव लड़ते रहने वाली दुनिया की एक सबसे बड़ी मशीन है। इसके विपरीत कांग्रेस में संगठन नाम मात्र के लिए है। जैसा कि हमने मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में देखा था। माहौल पक्ष में होने के कारण अति-विश्वास भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। जैसा कि हमने छत्तीसगढ़ में देखा जैसे-जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ रहा है हरियाणा में मुकाबले कड़े होते जा रहे हैं। बेशक मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। चुनिंदा सीटों को छोड़ दिया जाए तो राज्य की 90 सीटों में से ज्यादातर पर मुकाबला नजदीकी बताया जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है दोनों दलों के प्रत्याशियों के अतिरिक्त निर्दलीय, इनेलो, जजपा और आप प्रत्याशियों का भी पूरा जोर लगाना है। 30 से ज्यादा सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय या तीन से अधिक प्रत्याशियों में हो गया है। इस कारण से मुकाबला नजदीकी होता जा रहा है। 15 सीटों पर भाजपा और 29 सीटों पर कांग्रेस के 29 बागी मैदान में है। मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों की पहचान वाले इस राज्य में एक बार फिर वह हाशिए पर हैं। इनके चुनिंदा प्रत्याशी ही प्रभावी दिख रहे हैं। इनसे अधिक निर्दलीय और बागी चर्चा में हैं। इनेलो, जजपा और निर्दलीय में बंटे बेनिवाल परिवार के 8 प्रत्याशी मैदान में हैं। अब प्रचार उफान पर है। रैलियां और रोड शो हो रहे हैं, कांग्रेस-भाजपा अपनी गारंटी और संकल्प पत्र के साथ आम जनता के बीच है। मतदान में मुश्किल से चंद दिन ही बचे हैं। अब प्रचार और मुद्दे आक्रामक व तीखे होंगे। ऐसे में मुकाबलों की दिशा बदल सकती है। वैसे माना जाता है कि हरियाणा में तीन मुद्दे सबसे ज्यादा प्रभावी होते हैं, किसान, जवान और पहलवान।