Tuesday 29 October 2024

चुनाव के बाद घाटी में लौटता आतंक


रविवार को जम्मू-कश्मीर के गांदर बल जिले में एक निर्माणाधीन सुरंग के पास चरमपंथी हमला हुआ जिसमें दो मजदूरों की तो मौके पर ही मौत हो गई। जबकि डाक्टर और अन्य चार मजदूरों की इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। मारे गए लोगों की पहचान डॉ. शाहनवाज, फहीम, नजीर, कलीम, मोहम्मद हनीफ, शशि अबरोल, अनिल शुक्ला और गुरजीत सिंह के रूप में हुई है। चरमपंथियों ने हमला तब किया। जब गांदरबल में सोनभर्ग इलाके के गुंह में सुरंग परियोजना पर काम कर रहे मजदूर और अन्य कर्मचारी देर शाम अपने शिविर में लौट आए थे। दो मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई बाकी की अस्पताल में इलाज के दौरान हो गई। फिलहाल अन्य घायलों का इलाज चल रहा है। आठ अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर चुनाव के नतीजे आए थे और सरकार के गठन के बाद यह पहला मौका था जब इतना बड़ा चरमपंथी हमला हुआ है। कश्मीर घाटी में महीनों के बाद ऐसा हुआ कि 7 दिन में ही 4 आतंकी हमलों में 13 लोगों की जान चली गई। 18 अक्टूबर को शोपिया में हुए आतंकी हमले में बिहार के मजदूर की मौत, 20 अक्टूबर को गांदरबल में 6 गैर स्थानीय व एक स्थानीय डाक्टर की मौत और 24 अक्टूबर को गुलमर्ग में सैन्य वाहन पर हमले में 3 जवान व दो स्थानीय रिपोर्टर की जान गई। विधानसभा चुनावों के बाद ये हमले तेजी से बढ़े हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्वक चुनाव होने से पाक सेना और खुफिया एजेंसी और सरकार बौखला गई है। अब पाक समर्थित से आतंकी घाटी में अपनी मौजूदगी दिखाना चाहते हैं। वे संदेश देना चाहते हैं कि जम्मू कश्मीर में चुनी हुई सरकार बनाकर भले ही आपने लोकतंत्र का परचम बुलंद कर दिया हो, लेकिन हम अभी खत्म नहीं हुए हैं। 1989 से पाक लगातार घाटी में अशांति फैलाने की कोशिश कर रहा है। पर मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हमलों को कायरतापूर्ण बताते हुए इनकी निंदा की है। उन्होंने एक्स पर लिखाः सोनमर्ग क्षेत्र में गगनगीर में गैर-स्थानीय मजदूरों पर कायरतापूर्ण हमले की बेहद दुखद खबर है, ये लोग इलाके में एक प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना पर काम कर रहे थे। मैं निहत्थे, निर्दोष लोगों पर हुए इस हमले की कड़ी निंदा करता हूं और उनके प्रियजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं। पिछले कुछ दिनों में लगातार होते हमले पुलिस प्रशासन और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए बड़ी चुनौती हैं। पूरे राज्य में आतंकवादी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए खुफिया तंत्र, सुरक्षा उपायों को चाक-चौबंद और मजबूत करने की जरूरत है ताकि शांति भंग करने वाले समूहों को पराजित किया जा सके। हालांकि अलगाववादियों और आतंकवाद को जनता का समर्थन नहीं है जो उसकी तमाम धमकियों के बावजूद विधानसभा के लिए खुलकर वोट दिया और लोकतंत्र का समर्थन किया। लेकिन मुश्किल यह है कि सीमा पार से आने वाले घुसपैठियों का छोटा-सा समूह उग्रवाद को पाक सेना के उकसावे पर बढ़ावा दे रहा है। केंद्र और राज्य सरकार को अपने सियासी मतभेदों को दरकिनार करते हुए साझी रणनीति बनानी चाहिए। और इन हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा रणनीति बनानी चाहिए। चुनाव खत्म हो गए हैं। जनता ने अपना फैसला सुना दिया है अब अपने वादे पूरे करने की चुनौती राज्य सरकार, प्रशासन और केंद्र सरकार की है।

-अनिल नरेन्द्र

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