Tuesday 5 November 2024

भारत की 19 कंपनियों पर प्रतिबंध



अमेरिका ने बुधवार 30 अक्टूबर को यूक्रेन में रूस के युद्ध प्रयासों में मदद करने के आरोप में 19 भारतीय कंपनियों और दो भारतीय नागरिकों सहित करीब 400 कंपनियों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कार्रवाई ऐसे समय पर हुई है जब अमेरिकी धरती पर सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में एक भारतीय नागरिक की कथित भूमिका को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा हुआ है। 24 अक्टूबर को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक इंटरव्यू में भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा था कि अमेरिका इस मामले में तभी संतुष्ट होगा जब पन्नू की हत्या की कोशिश को लेकर जिम्मेदारी तय की जाएगी। अमेरिका ने एक बयान जारी कर बताया है कि उसके विदेश विभाग, ट्रेजरी विभाग और वाणिज्य विभाग ने इन लोगों और कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। अमेरिका का आरोप है कि ये कंपनियां रूस को वो सामान उपलब्ध करवा रही हैं, जिनका इस्तेमाल रूस, यूक्रेन युद्ध में कर रहा है। इन वस्तुओं में माइक्रो इलेक्ट्रानिक्स और कम्प्यूटर न्यूमेरिकल कंट्रोल आइटम शामिल हैं, जिन्हें कॉमन हाई प्रायोरिटी लिस्ट (सीएचपीए) में शामिल किया गया है। इन वस्तुओं की पहचान अमेरिकी वाणिज्य विभाग के उद्योग और सुरक्षा ब्यूरो के साथ-साथ यूके, जापान और यूरोपीय संघ ने की है। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारतीय कंपनियों को निशाना बनाया है। इससे पहले नवम्बर 2023 में भी एक भारतीय कंपनी पर रूसी सेना की मदद करने के आरोप में प्रतिबंध लगाया गया था। सवाल है कि वो कौन सी भारतीय कंपनियां और भारतीय नागरिक हैं जिन पर ये आरोप लगाए गए हैं? अमेरिकी विदेश विभाग ने जिन 120 कंपनियों की सूची तैयार की है उसमें शामिल भारत की कंपनियों के खिलाफ आरोप लगाया गया है कि वे यूक्रेन के खिलाफ चल रही जंग में रूस की मदद कर रहे हैं। अमेरिका ने जिन दो भारतीय व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाया है। उनका नाम विवेक कुमार मिश्रा और सुधीर कुमार हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक विवेक कुमार मिश्रा और सुधीर कुमार एसेंड एविएशन के सह-निदेशक और आंशिक शेयर धारक हैं। ये कंपनी दिल्ली में स्थित है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विमानन उद्योग के लिए स्पेयर पार्टस के साथ-साथ लुब्रिकेंट सप्लाई करने का काम करती है। विदेश मामलों के जानकार और द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं, कंपनियों पर प्रतिबंध लगने के बाद उन्हें स्विफ्ट बैंकिंग सिस्टम में ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है। ऐसा होने पर ये कंपनियां उन देशों से लेन-देन नहीं कर पाती हैं। जो रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस के खिलाफ हैं। जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगा है, उनकी संपत्तियां फ्रीज हो सकती हैं। रॉबिन्द्र सचदेव कहते हैं कि अमेरिका ऐसा इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह रूस की कमर तोड़ना चाहता है। वह चाहता है कि रूस की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाए और उसकी डिफेंस इंडस्ट्री को वो सामान न मिल पाए, जिसकी मदद से यह यूक्रेन से युद्ध लड़ रहा है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि इस तरह से कंपनियों पर प्रतिबंध लगने से भारत और अमेरिका के संबंधों पर खास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच पहले से अच्छे संबंध हैं। हालांकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन का दावा है कि यूरोपीय प्रतिबंधों से रूस को कोई खास फर्क या नुकसान नहीं पहुंचा है। रूस हर रोज 80 लाख बैरल तेल का निर्यात कर रहा है, जिसमें भारत-चीन बड़े खरीददार हैं। देखना होगा कि ताजा प्रतिबंधों पर भारत सरकार का क्या रुख होता है।

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र में दोनों गठबंधनों के लिए जंग जीतना आसान नहीं



महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी और महायुति गठबंधन के बीच सियासी लड़ाई तेज होती जा रही है। दोनों गठबंधन एक दूसरे को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। क्योंकि दोनों गठबंधनों के लिए विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करना आसान नहीं है। कांग्रेस की अगुवाई वाला महाविकास अघाड़ी (एमवीए) लोकसभा चुनाव में खुद को साबित करने में सफल रहा है। एमवीए ने 40 में से 30 सीट जीती थीं। पर दोनों गठबंधनों के बीच वोट प्रतिशत का अंतर बेहद कम था। महायुति को करीब 42.71 प्रतिशत और एमवीए को 43.91 प्रतिशत वोट मिला था। लोकसभा के नतीजों को विधानसभा क्षेत्रों के मुताबिक देखें तो एमवीए को 153 और महायुति को 126 सीट पर बढ़त मिली थी। महाराष्ट्र में कुल 288 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 145 है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में मुकाबला बेहद मुश्किल लगता है। दोनों गठबंधनों के सामने अपने प्रदर्शन को लेकर चुनौती है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग स्थिर रहा है। वर्ष 2014 से 2024 लोकसभा तक कांग्रेस हर चुनाव में करीब 17 फीसदी वोट लेने में सफल रही है। वहीं भाजपा को औसतन 27 प्रतिशत वोट मिले हैं। पर शिवसेना और एनसीपी का वोट प्रतिशत बदला है। वर्ष 2019 विधानसभा तक शिवसेना की पूरी ताकत भाजपा के साथ थी। इसी तरह कांग्रेस के साथ एनसीपी, गुट एकजुट था। पर 2019 में एमवीए के गठन के बाद से शिवसेना और एनसीपी में विभाजन से तस्वीर पूरी तरह से बदल गई। अब दोनों गठबंधनों में शिवसेना और एनसीपी का एक-एक हिस्सा है। शिवसेना (यूवीटी) और वरिष्ठ नेता शरद पवार की अध्यक्षता वाली (एनसीपी) लोकसभा चुनाव में खुद को साबित करने में सफल रही है। पर यह दोनों गुट पार्टी के विभाजन से पहले का आंकड़ा छू नहीं पाए हैं। लोकसभा में शरद पवार को 10.27 प्रतिशत और उद्धव ठाकरे को 16.72 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 12.95 प्रतिशत तथा अजित पवार की एनसीपी को 03.60 प्रतिशत वोट मिले। बहुमत का आंकड़ा हासिल करने वाला गठबंधन कम से कम 49 प्रतिशत वोट हासिल करता रहा है। इस चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ उतरे महायुति और एमवीए यानी महाविकास अघाड़ी की टेंशन फिलहाल अपनों ने ही बड़ा रखी हैं। इस बीच शुक्रवार को महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस ने कहा वे नाराज हैं लेकिन वे अनपे ही हैं। हम उन्हें जल्द मना लेंगे। दोनों गठबंधन से कुल 50 बागी मैदान में हैं जिनमें महायुति से सबसे अधिक 36 बागी ने पर्चे दाखिल किए हैं। नाम वापसी की आखिरी तारीख 4 नवम्बर थी। दोनों गठबंधनों की तरफ से दावा किया जा रहा है कि तब तक हम बागियों को मना लेंगे और जहां भी वे अपने ही दल के उम्मीदवार के खिलाफ मैदान में हैं, उन्हें नाम वापस लेने के लिए राजी कर लिया जाएगा। हालांकि इतने कम समय में इतने अधिक बागियों को मनाना भी आसान काम नहीं होगा। पूरे महाराष्ट्र में तकरीबन 50 ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्होंने अपनी पार्टी से अलग रास्ता तय करने का फैसला ले रखा है। इनमें सबसे ज्यादा 36 उम्मीदवार महायुति से हैं। इनमें भाजपा से 19 और शिवसेना से 16 नाम शामिल हैं। जबकि अजित पवार से एक है।

Sunday 3 November 2024

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और मध्य पूर्व

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है। दुनिया के सबसे ताकतवर दफ्तर के लिए दोनों प्रमुख दावेदार यानि डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नतीजों के बाद वाशिंगटन के व्हाइट हाउस में कमला की सत्ता जमेगी या ट्रंप का कार्ड चलेगा यह तो 5 नवम्बर को तय होगा। लेकिन इस चुनावी रेस के लिए अमेरिका में अर्ली वोटिंग यानि समय पूर्व मतदान की कवायद जोर-शोर से जारी है। 30 करोड़ में से करीब 3 करोड़ मतदान अपना वोट डाल भी चुके हैं। पिछली बार जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने थे, तो इजरायल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू इतने खुश हुए कि उन्होंने एक इलाके का नाम उनके नाम पर रख दिया था। यह इलाका है ट्रंप हाइट्स ये गोलन हाइट्स के चट्टानी इलाके में है। सारी दुनिया की नजर खासकर मध्य-पूर्व के लोगों की 5 नवम्बर पर पर टिकी हुई है। यह चुनाव मध्य-पूर्व एशिया के लिए महत्वपूर्ण होगा। सवाल यह है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप या डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस का इस क्षेत्र में क्या असर पड़ेगा? पिछले 7 अक्टूबर से आरम्भ हुए इस जंग को साल से ज्यादा समय हो गया है और यह कहीं थमने का नाम नहीं ले रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप को इजरायल का समर्थन मिला था, जब उन्होंने ईरान के साथ परमाणु समझौता रद्द कर दिया था। ट्रंप ने यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी। यह दशकों पुरानी अमेरिकी नीति के विपरीत था। नेतान्याहू ने ट्रंप को इजरायल का व्हाइट हाउस में अब तक का सबसे अच्छा मित्र कहा था। एक सर्वेक्षण के मुताबिक बेंजामिन नेतान्याहू के समर्थकों में केवल 1 प्रतिशत ही कमला हैरिस की जीत चाहते हैं। यरुशलम के मायने येहुदा बाजार में शापिंग कर रहे 24 साल के युवक का कहना था कि कमला हैरिस ने उस वक्त अपना असली रंग दिखाया जब वो एक रैली में प्रदर्शनकारियों से सहमत दिखीं। जिसमें इजरायल पर नरसंहार का आरोप लगाया था। कमला हैरिस ने कहा था कि वह (प्रदर्शनकारी) जिस बारे में बात कर रहे हैं वह सच है, हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वो नहीं मानती हैं कि इजरायल नरसंहार कर रहा है। जुलाई के महीने में व्हाइट हाउस में नेतान्याहू से मुलाकात के बाद कमला हैरिस ने कहा था कि वो गाजा की स्थिति के बारे में चुप नहीं रहेंगी। उन्होंने नेतान्याहू के सामने मानवीय पीड़ा और निर्दोष नागरिकों की मौत के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की थी। डोनाल्ड ट्रंप ने युद्ध की समाप्ति को इजरायल की जीत के रूप में देखा है और अभी तत्काल युद्ध विराम का विरोध किया है। ट्रंप ने कथित तौर पर नेतान्याहू से कहा है आपको जो करना है वो करें। फिलस्तनियों को किसी भी उम्मीदवार से कोई खास उम्मीद नहीं दिखती है। वेस्ट बैंक के एक प्रतिष्ठित फिलस्तीनी विश्लेषक मुस्तफा बरगौती का कहना है कि कुल मिलाकर अनुमान यह है कि उनके लिए डेमोक्रेटिक पार्टी हारती है, लेकिन मगर ट्रंप जीत जाते हैं तो स्थिति और भी खराब हो जाएगी। इसमें मुख्य अंतर यह है कि कमला हैरिस अमेरिकी जनता की राय में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील होंगी। इसका मतलब है कि वो युद्धविराम के पक्ष में ज्यादा होंगी, गाजा युद्ध ने फिलस्तीनी राज्य को दिशा में प्रगति के लिए सऊदी अरब जैसे अमेरिकी सहयोगियों पर दबाव बढ़ा है। लेकिन किसी भी उम्मीदवार ने फिलस्तीनी राज्य की स्थापना को अपने प्रमुख एजेंडे में नहीं रखा है। अब उनके फिलस्तीनियों ने अपने राज्य के सपने छोड़ दिए हैं। प्राथमिकता तो मध्य-पूर्व में छिड़ी जंग को रोकने की है और प्रभावित लोगों तक मदद पहुंचाने की होगी। -अनिल नरेन्द्र

यह नवाब मलिक कौन है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ एनसीपी नेता नवाब मलिक की मनखुर्द शिवाजी नगर सीट से उम्मीदवारी को लेकर भयंकर विवाद छिड़ गया है। उन्हें एनसीपी (अजित पवार गुट) ने यहां से टिकट दिया है लेकिन भाजपा इससे बहुत नाराज है। भाजपा ने नवाब मलिक को अंडरवर्ल्ड माफिया और भारत के वांछित अपराधी दाऊद इब्राहिम के साथ जोड़कर उनकी आलोचना की है। भाजपा उस महायुति में शामिल है जिसके शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार) भी हिस्सा हैं। भाजपा ने साफ कर दिया है कि वो नवाब मलिक के लिए प्रचार नहीं करेंगे। जिस सीट पर नवाब मलिक लड़ रहे हैं वहां से शिवसेना (शिंदे गुट) ने भी उम्मीदवार उतार दिया है। नवाब मलिक के सामने समाजवादी पार्टी के अबु असिम आजमी और शिवसेना (शिंदे गुट) के सुरेश बुलेट पाटिल होंगे। महायुति (महागठबंधन) ने बुलेट पाटिल को अपना आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया है। मंगलवार को मुंबई भाजपा अध्यक्ष अवनीश रोलर ने एक बयान में कहा कि उनकी पार्टी नवाब मलिक के समर्थन में प्रचार नहीं करेगी। उन्होंने कहा भाजपा की भूमिका स्पष्ट रही है। महागठबंधन में शामिल सभी दलों को अपने-अपने उम्मीदवार तय करने हैं। विषय सिर्फ एनसीपी द्वारा नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाने का है। उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडण्वीस और मैंने इस संबंध में भाजपा की स्थिति को बार-बार स्पष्ट किया है। अब एक बार फिर कह रहे हैं कि भाजपा नवाब मलिक के लिए प्रचार नहीं करेगी। हमारा रुख दाऊद और उसके मामले से जुड़े व्यक्ति को बढ़ावा देना नहीं है। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने भी ऐलान किया है कि भाजपा की इस सीट से शिवसेना (शिंदे गुट) के उम्मीदवार सुरेश पाटिल का समर्थन करेगी। एनसीपी (अजित गुट) ने नवाब मलिक की छोटी बेटी सना मलिक को भी अणुशक्ति नगर विधानसभा सीट से टिकट दिया है, हालांकि भाजपा ने ये संकेत दिया है कि वह सना का विरोध नहीं करेगी। भाजपा का नवाब मलिक को लेकर विरोध नया नहीं है। पार्टी उन्हें दाऊद इब्राहिम का सहयोगी कहती रही है, लेकिन अब नवाब मलिक भाजपा की गठबंधन सहयोगी पार्टी के उम्मीदवार हैं, बावजूद इसके पार्टी उनका खुलकर विरोध कर रही है। कुछ विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि 4 नवम्बर तक इंतजार करना चाहिए, कौन-कौन मैदान से नाम वापिस लेता है? नवाब मलिक जब कथित भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए थे तब उनकी पार्टी (एनसीपी) के अधिकतर नेताओं ने उनसे मुंह मोड़ लिया था, लेकिन अजित पवार उनके साथ थे, नवाब मलिक ने एक साक्षात्कार में कहा मैं आभारी हूं कि अजित पवार ने मुझे उम्मीदवार बनाया है अजित पवार के साथ रहना मेरा कर्तव्य है क्योंकि उन्होंने हमेशा मेरे परिवार का साथ दिया है। उन्होंने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि मैं महायुति का उम्मीदवार हूं क्योंकि शिवसेना (शिंदे गुट) का भी उम्मीदवार मैदान में है, भाजपा भी प्रचार नहीं कर रही है, भाजपा मेरा प्रचार करती है या नहीं, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि जनता मेरे साथ है। महाराष्ट्र में 20 नवम्बर को सभी 288 सीटों पर चुनाव होने हैं और 23 नवम्बर को नतीजे आएंगे। नवाब पहले नवम्बर 2021 में चर्चा में आए थे जब उन्होंने ड्रग्स मामले में शाहरुख खान के बेटे को गिरफ्तार करने वाले समीर वानखेड़े को हिंदू नहीं बल्कि मुसलमान बताया था। 4 नवम्बर के बाद तस्वीर साफ होगी।