जम्मू-कश्मीर में लगातार हो रहे आतंकी हमलों को लेकर सियासत तेज हो गई है। नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारुख अब्दुल्ला ने बड़गाव आतंकी हमले की जांच की मांग की है। उनके समर्थन में एनसीपी के प्रमुख शरद पवार भी उतर आए हैं, मीडिया से बात करते हुए फारुख अब्दुल्ला ने कहा मुझे संदेह है कि आतंकी हमले जम्मू-कश्मीर में सरकार को अस्थिर करने के लिए किए जा रहे हैं। बड़गाव सहित सभी आतंकी हमलों की जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर वे (आतंकवादी) पकड़े जाते हैं तो हमें पता चलेगा कि यह कौन करा रहा है। उन्हें नहीं मारा जाना चाहिए, उन्हें जिंदा पकड़ा जाना चाहिए और पूछना चाहिए कि उनके पीछे कौन है, हमें जांच करनी चाहिए कि क्या कोई एजेंसी है जो उमर अब्दुल्ला सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है? जवाब में केन्द्राrय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले सुरक्षा में चूक की वजह से नहीं है। हमलों को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सेना आतंकवादियों से जांबाजी से निपट रही है। पहले की तुलना में आतंकी घटनाएं कम हुई हैं। सुरक्षा बल सर्तक है और जल्द ही ऐसी स्थिति आएगी जब तक आतंकी गतिविधियों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाएगा। आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर में विकास होगा। दरअसल, जम्मू-कश्मीर में हुए शांतिपूर्ण चुनाव और यहां की शांति पड़ोसी देश पाकिस्तान को रास नहीं आ रही है। वह लगातार कश्मीर में नापाक वारदातों को अंजाम दे रहा है। दहशतगर्दों के जरिए प्रवासी लोगों को निशाना बनाए जाने के बाद श्रीनगर के रविवारीय मार्पेट में ग्रेनेड विस्फोट कर एक बार फिर यहां की शांति भंग की साजिश रची है। अब तो पर्यटकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जा रहा है ताकि पिछले दो साल की शांति के कारण घाटी में टूरिज्म बढ़ रहा था। इस पर अंकुश लगाने के लिए आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं, पाकिस्तान कश्मीर में चुनी हुई सरकार को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। इसलिए गुलमर्ग, पहलगांव जैसे पर्यटन स्थल और अब श्रीनगर को निशाना बनाकर हमला किया गया है। हालांकि हर आतंकी घटना के बाद सेना का तलाशी अभियान तेज हो जाने का दावा किया जाता है और कुछ आतंकियों को मार गिराया जाता है, मगर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि आखिर क्या वजह है कि पिछले दस वर्षों से आतंकवाद समाप्त करने के तेज अभियान के दावे के बावजूद इसकी जड़ें घाटी में जमी हुई हैं? सरकार बार-बार दावा करती है कि घाटी में आतंकवादियों की कमर टूट चुकी है, वे केवल कुछ क्षेत्रों तक सिमटकर रह गए हैं मगर हकीकत यह है कि कुछ कुछ अंतराल पर दहशतगर्द अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो जाते हैं। आतंकवाद को हमारी राय में किसी सियासी चश्मे से नहीं देखना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला सरकार को केन्द्र सरकार के साथ बैठकर ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म होना चाहिए पर केन्द्र सरकार के साथ-साथ चुनी हुई उमर सरकार की भी जिम्मेदारी है।
-अनिल नरेन्द्र
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