Friday, 8 November 2024

एक अहम फैसला जिसका दूरगामी प्रभाव होगा

यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्स 2004 से जुड़े एक मामले में मंगलवार को आया सुप्रीम कोर्ट का पैसला ऐतिहासिक तो है ही बल्कि न केवल इस कानून की संवैधानिकता की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी बताता है कि शिक्षा और धर्मनिपेक्षता जैसे मुद्दों को कितनी बारीकी और संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा कानून 2004 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी है। साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक ठहराकर गलती की थी। हाईकोर्ट ने इसी साल इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को]िनयमित स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए। उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। उन्होंने कहा सिर्फ इसलिए कि मदरसा कानून में कुछ मजहबी प्रशिक्षणन शामिल है, इसे असंवैधानिक नहीं माना जा सकता। मदरसा कानून राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एलसीआरटी) की पाठ्य पुस्तकों और मजहबी तालीम का उपयोग कर शिक्षा देने की रूपरेखा प्रदान करता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 22 मार्च को यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून ने 2004 को निरस्त कर दिया था। उनका कहना था कि यह अंसवैधानिक है और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लघंन है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, हमारा विचार है कि याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर बारीकी से विचार किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने अधिनियम के प्रावधानों को समझने की भूल की है। उनका उद्देश्य 17 लाख मदरसा विद्यार्थियों पर असर डालेगा। दस हजार शिक्षकों पर भी सीधा असर होगा। इन छात्रों को स्कूलों में भेजने का आरोप ठीक नहीं है। इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने एक बार टिप्पणी की थी कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब है, जियो और जीने दो। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अंजुम कादरी मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस, ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन, मदारिस अरबियार न्यू दिल्ली। मैनेजर एसोसिएशन अरबी मदरसा, नई बाजार और टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया कानपुर की ओर से याचिकाएं दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट को इस बात का अहसास था कि इस आदेश का प्रभाव न सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश के अल्पसंख्यक साधनों से जुड़े मामलों पर होगा। इसलिए उसने यह साफ करने में काई कमी नहीं रखी कि अल्पसंख्यक समुदायों को अपने मनाने का अधिकार है तो राज्य को भी उन संस्थानों में दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का अधिकार है। इस मामले में जहां सेक्यूलर मूल्यों की अहमियत रेखांकित हुई है। वहीं उन्हें सुनिश्चित करने के तरीकों में बरती जाने वाली सावधानी की जरूरत भी स्पष्ट हुई। -अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment