महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आए हुए लगभग 10 दिन हो चुके हैं। 23 नवम्बर को नतीजे आए थे और 25 नवम्बर तक सरकार का गठन होना जरूरी था। अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे अनुसार राष्ट्रपति शासन लग सकता था। पर इतने दिन बीतने के बाद महायुति गठबंधन न तो सरकार बनाने का दावा पेश कर सका है और न ही इस संपादकीय लिखने तक यह तय कर सका है कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? संभव है कि आगामी एक दो दिन में यह तय हो जाए। पेंच कहां फंसा है? महाराष्ट्र में सरकार गठन से पहले महायुति में मुख्यमंत्री पद और विभागों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर बृहस्पतिवार देर रात तीन घंटे चली बैठक में भी कोई फैसला नहीं हो पाया। सारा पेंच एकनाथ शिंदे का फंसा हुआ है। शिंदे समर्थक कहते हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में लड़ा गया था इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री पद मिलना चाहिए। वहीं भाजपा नेताओं का मानना है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तो मुख्यमंत्री उसका ही होना चाहिए। कायदे से यह बात भी ठीक है। सबसे बड़ी पार्टी का ही मुख्यमंत्री होना चाहिए। पर यह भी सही है कि विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे ने कड़ी मेहनत की है, उनकी कई योजनाएं रंग लाई हैं, उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था तो मुख्यमंत्री पद पर उनका ही हक बनता है। पर भाजपा इसके लिए तैयार नहीं है। एकनाथ शिंदे नाराज होकर अपने गांव सतारा चले गए थे और कोपभाजन में जाकर बैठ गए थे। इधर भाजपा में भी किसको मुख्यमंत्री बनाना है इस पर भी असमंजस की स्थिति है। एक वर्ग देवेन्द्र फडणवीस को बनाना चाहता है, और फडणवीस को कहा जा रहा है कि संघ का भी समर्थन है। पर भाजपा के अंदर एक तबका इसका विरोध कर रहा है कि एक ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाया तो ओबीसी और खासकर मराठा मतदाता नाराज हो जाएगा। सामाजिक समीकरण भी देखने होंगे। इसलिए किसी अन्य मराठा नेता की तलाश की जा रही है। पर भाजपा नेतृत्व की गले की फांस बने हुए हैं एकनाथ शिंदे। शिंदे को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं करना चाहता भाजपा नेतृत्व। उसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला कि पिछले ढाई साल से एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र की कमान संभाली हुई है। उनके पास कई ऐसी जानकारियां होंगी जिनके उभरने से नेतृत्व को नुकसान हो सकता है। अगर शिंदे के खिलाफ नेतृत्व के पास फाइल तैयार है तो शिंदे के पास भी सारे कारनामों की फाइल तैयार होगी। इसके अलावा हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि केंद्र में शिवसेना (शिंदे गुट) के सात सांसद हैं जो भाजपा सरकार का समर्थन कर रहे हैं। कहीं इस विवाद में वह अपना समर्थन वापस न ले लें और केंद्रीय सरकार अस्थिर हो जाए। कुल मिलाकर हमें लगता है कि तुरुप के पत्ते एकनाथ शिंदे के हाथों में हैं। देखें, अब ऊंट किस करवट बैठता है।
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