Saturday, 21 December 2024
आंबेडकर पर सियासी भूचाल
अब यह एक फैशन हो गया है... आंबेडकर, आंबेडकऱ, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। संसद में केन्द्राrय मंत्री अमित शाह के संविधान पर चर्चा के दौरान एक लंबे भाषण के इस छोटे से अंश को लेकर ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्रवाई स्थगित करनी प़ड़ गई। इस बयान में आंबेडकर का अपमान देख रहे हमलावर विपक्ष को जवाब देने के लिए अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर कहा ः जिन्होंने जीवनभर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाई, वो लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर बताया कि उनकी सरकार ने भारत के संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर के सम्मान में क्या-क्या काम किए हैं लेकिन इसके बावजूद हंगामा नहीं रूका। अब यह मामला पूरे देश में आग की तरह फैल चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह पर आंबेडकर का उपहास करने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे तक की मांग कर ली। खड़गे ने कहा... बाबा साहेब का अपमान किया है, संविधान का अपमान किया है। उनकी आरएसएस की विचारधारा दर्शाती है कि वो स्वयं बाबा साहेब के संविधान का सम्मान नहीं करना चाहते हैं। समूचा विपक्ष अमित शाह का इस्तीफा मांग रहा है। वहीं शाह के इस बयान को आंबेडकर का अपमान इसलिए माना जा रहा है कि अगर ईश्वर शोषण से मुक्ति देने वाला है तो डॉ. भीमराव आंबेडकर जाति व्यवस्था में बंटे भारतीय समाज के इन करोड़ों लोगों के ईश्वर हैं, जिन्होंने सदियों तक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक भेदभाव झेला है। भीमराव आंबेडकर ने संविधान में बराबरी का अधिकार देकर अनुसूचित और पिछड़ी जातियों को शोषण से मुक्ति दी है। यही वजह है कि आंबेडकर की विचारधारा से जुड़े और दलित राजनीति से जुड़े लोग अमित शाह के इस बयान को आंबेडकर के अपमान के रूप में देख रहे हैं। लेकिन कटु सत्य यह भी है कि इस समय सभी राजनीतिक पार्टियों में आंबेडकर को अपनाने की होड़ मची है और राजनीतिक दल आंबेडकर के विचारों का इस्तेमाल करके दलित मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं। अमित शाह के इस विवादास्पद बयान के बाद से भाजपा बचाव की मुद्रा में है। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि अमित शाह को मुंह से भले ही निकल गया हो लेकिन इस पर बहुत हैरान नहीं होना चाहिए। उन्होंने वही बोला है जो वह महसूस करते होंगे, जो आरएसएस भी महसूस करती है। अमित शाह के बचाव में राजनीतिक शोरगुल के बीच सवाल उठता है कि क्या ये बयान भाजपा को सियासी नुकसान पहुंचा सकता है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसका कोई बड़ा राजनीतिक नुकसान नहीं होगा। दूसरी ओर विपक्षी दल इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़कों पर ले जा रही है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में दलितों, पिछड़ों, ओबीसी, अल्पसंख्यकों का मानना है कि यह भी बाबा साहेब आंबेडकर जी की बदौलत आज उन्हें इज्जत मिली है, सम्मान और सुरक्षा मिली है। बाबा साहेब का संविधान ही देश की स्वतंत्रता और समानता का प्रतीक है।
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