Thursday, 12 December 2024

इंडिया गठबंधन के साथियों में बेचैनी



संसद के अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद अब पार्टियां गठबंधन के भीतर अपनी आवाजें उठाने लगी हैं। साथ ही राहुल गांधी की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। राहुल गांधी पर कोई सीधे सवाल खड़े कर रहा है तो कोई इंडिया कंवीनर को लेकर अपने सुझाव दे रहा है। महाराष्ट्र में सपा का शिव सेना उद्धव ठाकरे गुट से नाराजगी की बात कहते हुए महाविकास अघाड़ी गुट से नाता तोड़ लेने में राज्य की सियासत पर असर भले ही न डाले, लेकिन इसके गहरे मायने हैं। इसी तरह तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का इंडिया एलाइंस को लीड करने की इच्छा जाहिर करना भी बहुत कुछ कहता है। इन दोनों की नाराजगी गठबंधन के नेतृत्व और इस तरह से सीधे कांग्रेस को लेकर है। इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के बयानों पर यदि गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि उनमें भी कहीं न कहीं बेचैनी है। कटु सत्य तो यह है कि कांग्रेस चाहे लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा का कांग्रेस कहीं अच्छा परफार्म नहीं कर पाई। दरअसल कांग्रेस का संगठन बहुत कमजोर है। बेशक सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन कितना भी जोर लगाकर हवा बना दें पर संगठन नाम की कोई चीज कांग्रेस के पास नहीं है। खुद कांग्रेस के अंदर लोग राहुल को फेल करने में लगे हुए हैं। जहां कहीं भी कांग्रेस और भाजपा की डायरेक्ट फाइट होती है। कांग्रेस बुरी तरह से हार जाती है। राहुल बेशक जनता से जुड़े मुद्दे उठाते हैं पर उनका पार्टी के अंदर कोई फालोअप नहीं है और पार्टी नेतृत्व में थोक परिवर्तन करने की इच्छा शक्ति भी नहीं दिखती। आज तक ढंग से हरियाणा और महाराष्ट्र में करारी हार की जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी और न पार्टी के अंदर बैठे किसी जयचंदों की छुट्टी हो सकी। सो इस लिहाज से अगर ममता इंडिया गठबंधन को लीड करती हैं तो उसमें बुराई क्या है? मकसद तो भाजपा को हराना है और यह काम कांग्रेस या राहुल गांधी मौजूदा परिस्थितियों में नहीं कर सकते। हर हार से विपक्ष कमजोर होता जा रहा है और सत्तापक्ष मजबूत होता जा रहा है। राहुल गांधी को अपनी स्ट्रेटजी भी बदलनी होगी। उन्हें अब गौतम अडाणी पर इतना फोकस नहीं करना चाहिए। यह मेरी निजी राय है। क्योंकि अडाणी मुद्दे पर न तो उनकी पार्टी के अंदर उन्हें समर्थन मिल रहा है और न ही सहयोगी दलों से। सब अपने हितों को देखते हैं। गौतम अडाणी अब पूरी तरह एक्सपोज हो चुके हैं। उनके काले कारनामें पूरी दुनिया में उजागर हो रहे हैं। अडाणी से अमेरिका, केन्या, आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश इत्यादि देश निपट लेंगे। राहुल को दूसरे ज्वलंत मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, संविधान सुरक्षा, आपसी सद्भाव जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। बेशक आज ऐसा लगता हो कि इंडिया गठबंधन में दरार आ गई है ऐसा नहीं है। आज भी सब अपने-अपने तरीके से सत्तारूढ़ दल से निपटने में जुटे हुए हैं। रहा सवाल गठबंधन के नेतृत्व का तो सभी दलों को मिल-बैठकर आपसी मशविरा करके तय कर लेना चाहिए।

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