बावजूद इसके कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला पर गठबंधन में असंतोष थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहले तो 23 नवम्बर को चुनाव नतीजे आने के बाद लंबी जद्दोजहद के 12 दिन बाद देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री की शपथ ले पाए और उसके भी दस दिन बाद मंत्रिमंडल तय हो पाया और उनका शपथ ग्रहण हो सका। अब मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने सोमवार को नई महायुति सरकार में शामिल नहीं किए जाने पर निराशा व्यक्त की और कहा कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से बात करेंगे और फिर तय करेंगे कि उनकी भविष्य की राह क्या होगी। वहीं शिवसेना विधायक नरेन्द्र मोंडेकर ने महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कैबिनेट विस्तार में रविवार को महायुति के घटक दलों, भाजपा, शिवसेना और राकांपा के 19 विधायकों ने शपथ ली। कैबिनेट से 10 पूर्व मंत्रियों को हटा दिया गया और 16 नए चेहरों को शामिल किया गया। पूर्व मंत्री छगन भुजबल और राकांपा के दिलीप वाल्से पाटिल एवं भाजपा के सुधीर मुनगंटीवार और विजय कुमार गावित नए मंत्रिमंडल से बाहर किए गए कुछ प्रमुख नेता हैं। भुजबल ने कहा कि वे नई मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से नाखुश हैं। अपने भविष्य के कदम के बारे में पूछे जाने पर नासिक जिले के येआलो निर्वाचन क्षेत्र के विधायक ने कहा कि मुझे देखने दीजिए। मुझे इस पर विचार करने दीजिए। पूर्व मंत्री दीपक केसरकर को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। वहीं शिव सेना विधायक मोंडेकर ने दावा किया कि उनकी पार्टी के प्रमुख एवं उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उन्हें मंत्रिमंडल में जगह देने का वादा किया था। मोंडेकर शिव सेना के उपनेता और पूर्वी विदर्भ जिलों के समन्वयक हैं। महायुति गठबंधन में रस्साकशी जारी है। शिव सेना एकनाथ शिंदे के लिए गठबंधन में अपने दूसरे नंबर की पार्टी है। एकनाथ शिंदे को पचाना और अपने समर्थकों से स्वीकार कराना मुश्किल हो रहा है। उपमुख्यमंत्री पद के लिए वे बेशक अंतत राजी तो हुए पर मंत्रियों की कम संख्या का सवाल आड़े आया और अब विभागों के बंटवारे को लेकर आखिर दलों तक रस्साकशी होती रही है। तीनों पार्टियों में चल रही इस असामान्य रस्साकशी का एक रूप कहिए विधायकों की बढ़ी हुई संख्या का दबाव पर महाराष्ट्र के मंत्रियों के लिए ढ़ाई साल के कार्यकाल का ताजा फार्मूला कितना कारगर साबित होता है यह समय ही बताएगा। देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जितनी जद्दोजहद हुई वो किसी से छिपी नहीं। दिल्ली चाहती थी कि फडणवीस मुख्यमंत्री न बनें और इसी रणनीति के कारण एकनाथ शिंदे ने न केवल दिल्ली में डेरा डाला बल्कि आखिरी समय तक सस्पेंस जारी रखा। देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जहां दिल्ली नेतृत्व को पीछे हटना पड़ा। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जीत हुई और उन्होंने अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाया। फडणवीस के सामने गठबंधन को प्रभावी ढंग से चलाना और अच्छी सरकार देने की चुनौती है।
-अनिल नरेन्द्र
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