Thursday, 5 December 2024
क्या कांग्रेस कठोर निर्णय लेने में सक्षम है?
पहले हरियाणा अब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस ने इसकी वजहों पर हर बार हार के बाद मंथन किया और माना कि आपसी कलह, संगठन की कमजोरी के साथ-साथ किसी की जवाबदेही स्पष्ट न होने से पार्टी की यह दुर्गति हुई है। साथ ही, ईवीएम पर संदेह का मुद्दा भी उठाया। कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में प्रस्ताव पारित कर आरोप लगाया गया कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संवैधानिक जनादेश है। पर चुनाव आयोग की पक्षपाती कार्यप्रणाली से गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी ने आरोप लगाया कि समाज के कई वर्गों में निराशा व आशंकाएं बढ़ रही हैं। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो टूक कहा कि अब पुराना ढर्रा नहीं चलने वाला है। पार्टी नेताओं को बिना सोचे-समझे एक-दूसरे पर टीका-टिप्पणी करने से बाज आना होगा। खरगे ने कहा, हमें तुरंत चुनावी नतीजों से सबक लेते हुए संगठन के स्तर पर अपनी कमजोरियों और खामियों को दुरुस्त करने की जरूरत है। ये नतीजे हमारे लिए स्पष्ट संदेश हैं। खरगे ने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल के बावजूद हरियाणा व महाराष्ट्र में हार को आश्चर्यजनक बताया। कहा सिर्फ छह महीने पहले जो नतीजे आए थे, उसके बाद ऐसे नतीजे? क्या कारण है कि हम माहौल का फायदा उठा नहीं पाते? मल्लिकार्जुन हfिरयाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान से बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं। अगर वे सही मायने में कांग्रेस संगठन को मजबूत करना चाहते हैं। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और खुद मल्लिकार्जुन बेशक माहौल तैयार करें पर उसका फायदा तभी होगा जब कांग्रेस का संगठन इस हवा को कैश कर सकेगा। कटु सत्य तो यह है कि इन तीन नेताओं को छोड़कर बाकी कांग्रेसी अब मेहनत करने के आदी नहीं रहे, जमीन पर उतरने को तैयार नहीं हैं। जनता की भावनाओं से कट चुके हैं। हाई कमान के करीबी लोग अनचाहे टिकटों का बंटवारा करते हैं, यह भी कहा जाता है कि टिकटों की सेल भी होती है। पार्टी को इससे छुटकारा पाना होगा। वह संगठन मंत्री ही क्या जो आज तक जिला अध्यक्ष, ब्लाक अध्यक्ष, बूथ अध्यक्ष तक नहीं बना सके? छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार को करीब छह महीने बीत चुके हैं पर, पार्टी अभी तक इन राज्यों में जवाबदेही तय करते हुए बदलाव नहीं कर पाई हैं। दोनें राज्यों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अपने पदों पर अभी भी बरकरार हैं। हिमाचल प्रदेश और ओडिशा में पार्टी प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर चुकी है पर काफी कोशिशों के बावजूद नए अध्यक्ष के नाम पर प्रदेश कांग्रेस के दोनों गुटों में सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में पार्टी जवाबदेही तय करने की हिम्मत जुटाती है, तो उसे पार्टी के अंदर काफी विरोध का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि, प्रदेश क्षत्रप बदलाव के लिए तैयार नहीं है। महाराष्ट्र में भी पार्टी को नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुfिक्त करते हुए प्रदेश प्रभारी को भी बदलना होगा। प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले और प्रदेश प्रभारी रमेश दोनों के खिलाफ अंदर-अंदर नाराजगी है। हरियाणा चुनाव परिणाम को दो महीने से ज्यादा समय हो चुका है पर पार्टी ने अभी तक हार से कोई सबक नहीं लिया है। आपसी गुटबाजी की वजह से पार्टी विधानसभा में नेता विपक्ष तक इतने दिनों के बाद भी तय नहीं कर पाई। कांग्रेस का ऊपर से नीचे तक ओवर हॉल करना होगा पर सवाल है कि क्या मल्लिकार्जुन ऐसा कर कर सकते हैं।
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