Thursday 1 April 2021

बंगाल में बंपर वोटिंग खिला सकती है बड़ा गुल

पश्चिम बंगाल में हर चुनाव में ही भारी मतदान होता है, ऐसे में इस बार शाम पांच बजे तक 80 फीसदी मतदान होना कोई खास बात नहीं है। ऐसा ही लगभग हर चुनाव में होता है। क्या इस बार भारी मतदान कोई बड़ा गुल खिला सकता है? 2001 में 75.23 फीसदी वोटिंग हुई थी और नतीजा सत्तारूढ़ वाममोर्चा के पक्ष में रहा। इसी तरह 2006 के विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने बंगाल में अपने पैर जमाने की कोशिश की थी, मगर वाममोर्चा की जड़ें नही हिला सकीं। उस साल विधानसभा चुनावों में 81.95 फीसदी मतदान हुआ और फायदा वामदलों को ही मिला था। 2011 में ममता ने वाममोर्चा के 34 सालों के शासन को जड़ से उखाड़ फेंक दिया। इस वर्ष 84.46 फीसदी वोट पड़े थे। 2016 में उनके खिलाफ काफी माहौल बनाया गया और राज्य में 82.96 फीसद वोटिंग हुई, मगर जीत ममता की तृणमूल कांग्रेस की हुई। हालांकि पहले उनके सामने पारंपरिक तौर पर चुनाव लड़ने वाले वामदल थे, परंतु इस बार का चुनाव अलग है। वह इसलिए क्योंकि इस बार ममता के सामने भाजपा है। ऐसे में 2016 या फिर 2011 से पूर्व के चुनावों में वामदलों की तरह भारी मतदान और सत्ता विरोधी लहर को गलत साबित करना ममता के लिए आसान नहीं होगा। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण में शाम पांच बजे तक ही करीब 80 फीसदी वोटिंग हो गई थी। वैसे आयोग ने बंगाल में मतदान की अवधि 6.30 बजे तक निधारित कर रखी है, जिसके चलते पिछली बार यानी 2016 में इन 30 सीटों पर पड़े 85.50 फीसद वोट के करीब यह आंकड़ा पहुंचने या फिर इससे अधिक होने की उम्मीद जताई जा रही है। इससे साफ होता है कि भारी मतदान का ट्रेंड आगे भी जारी रहने वाला है। हालांकि कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रथम चरण में किस दल के नेता व कार्यकर्ता अधिक बेचैन थे, उससे साफ होता है कि खेल किसका बिगड़ा और किसका बना है। शनिवार को हुए मतदान की एक बात काफी अहम रही कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की ओर से भाजपा पर एक के बाद एक कई आरोप लगाए गए। मतदान के दौरान ही दस सांसदों की टीम चुनाव आयोग के पास पहुंच गई थी। वहीं, इंटरनेट मीडिया पर भी भाजपा के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की टीम और उनके नेता काफी सक्रीय थे और बेचैनी दोनों तरफ से साफ झलक रही है। बंगाल में बांकुड़ा, पुरुलिया, मांडग्राम, पश्चिमी मिदनापुर और पूर्वी मिदनापुर जिले की 30 सीटों पर जहां मतदान हुआ है यह इलाका ममता बनर्जी का गढ़ है। कुछ दिन पहले झाड़ग्राम में गृहमंत्री अमित शाह की रैली ऐन मौके पर रद्द हो गई थी। कहा गया कि हैलीकाप्टर में तकनीकी खराबी थी। लेकिन चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि हेलीकाप्टर की खराबी नहीं बल्कि झाड़ग्राम में पिछले 30 दिनों में जो माहौल बदला है, उसके चलते शाह सभास्थल इसलिए नहीं आए क्योंकि उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं जुटी। खाली मैदान की फोटो टीएमसी ने भी शेयर की थी। स्थानीय लोग कहते हैं कि दस साल में ममता ने यहां विकास के बहुत काम किए हैं। पक्की सड़कें और ओवर ब्रिज का जाल बिछाया, 2017 में झाड़ग्राम को नया जिला बनाया इत्यादि। लेकिन टोलाबाजी और बेरोजगारी के चलते टीएमसी से नाराज लोग भाजपा को विकल्प के रूप में देख रहे हैं। संघ भी यहां सालों से काम कर रहा है। अब देखना यह है कि यहां की बंपर वोटिंग क्या गुल खिलाएगी।

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