Saturday 24 April 2021

गरीब के पेट पर ही बार-बार लात मारी जाती है

पिछली बार लॉकडाउन में मार्केट एसोसिएशन की तरफ से खाना खिलाया गया था। रोज सुबह-शाम राय चौक मार्केट में खाना बनता था और फिर लोगों को बांट दिया जाता था, लेकिन इस बार के लॉकडाउन में मिलेगा या नहीं? अभी तक कुछ नहीं पता। मार्केट के दुकानदारों की हालत भी बहुत खराब है। यह कहना है राय चौक मार्केट में दीये और फूल बेच रही पूनम का। पूनम बताती हैं कि फूलमाला बेचकर घर का खर्च चलाती हैं। पति पहले बेलदारी का काम करते थे लेकिन अब बीमार रहते हैं और घर में बच्चे हैं, जोकि पढ़ाई कर रहे हैं। मेरे अलावा कोई कमाने वाला नहीं है। फिर से लॉकडाउन होने की वजह से बहुत दिक्कत होने वाली है। यह भी नहीं पता, कब तक लगेगा। पहले दो दिन का लगाया था, अब एक सप्ताह का और लगा दिया। किराये के मकान में रहते हैं। कहां से किराया का पैसा लाएंगे और खाने का इंतजाम कैसे करेंगे? पालम में पानी की पाइपलाइन ठीक कर रहे दिहाड़ी मजदूर सुरेन्द्र ने बताया कि कोविड संक्रमण बढ़ गया है। इस वजह से लॉकडाउन लगाया गया है। उम्मीद है कि सरकार ने दिहाड़ी मजदूर के बारे में भी सोचा होगा। इसकी वजह से काम पर असर पड़ेगा। कमाई कम होगी। कर भी क्या सकते हैं? हर बार गरीब के पेट पर ही लात पड़ती है। नजफगढ़ के रेहड़ी वाले पवित्र महेन्द्र ने बताया कि छह दिन के लॉकडाउन से काम पर असर पड़ेगा। पिछली बार भी लॉकडाउन में काम पर असर पड़ा था। मगर खाने को लेकर दिक्कत नहीं हुई थी। राशन आराम से मिल गया था। पटरी लगाने वाली निर्मला कहती हैं कि पति का एक्सिडेंट हो गया। पहले फैक्ट्री में काम करते थे, मगर फैक्ट्री बंद हो गई। अब काम नहीं मिल रहा है। जिसकी वजह से दीपावली में फूल बेचने का काम शुरू किया था। अब लॉकडाउन की वजह से घर का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। घर में कोई सफाई का काम भी नहीं देता है। पिछले साल लॉकडाउन के दिन याद करके रूह कांप जाती है। रोज भगवान से यही दुआ करती थी कि कुछ भी हो जाए मगर पिछले साल जैसे दिन न आएं, लेकिन अब फिर से वही दिन वापस आ रहे हैं। मुझे अपने बच्चों के लिए डर लगता है। एक वक्त की रोटी खाए बिना रह लूंगी। लेकिन मेरे बच्चे कैसे रह पाएंगे? रेहड़ी लगाने वाले धीरज कहते हैं कि काम की तलाश में 15 साल पहले आगरा से आया था। तब से चूड़ी और कंगन बेचकर घर चलाता हूं। बच्चों की पढ़ाई का भी खर्च इसी से चलता है। अब दोबारा लॉकडाउन हो गया। परेशानी होगी। बच्चों के स्कूल की छोटी-मोटी जरूरत और दवाई के खर्च कैसे निकलेंगे? इस लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा गरीबों को परेशान किया है। एक दिन में जो कमाई होती है उसी से घर का सामान लाते और रोजाना घर के किराये के लिए पैसे अलग से रखते हैं। लेकिन एक दिन भी कमाई नहीं होती तो पूरे महीने का बजट बिगड़ जाता है। लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार दिहाड़ी वाले मजदूरों, रेहड़ी-पटरी लगाने वालों को पड़ रही है। उन्हें खाने के लाले पड़ गए हैं। अगर कोई खान बांटे, कोई लंगर लगाए तो वहां के मजदूरों को एक वक्त का खाना मिल जाता है, पर जब यह नहीं मिले तो भूखे पेट ही सोना पड़ता है। सरकार को इनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए।

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