Wednesday 14 April 2021

ये नक्सली पूंजीवादियें के स्लेव हैं

देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था का हमेशा से विरोध करने वाले नक्सलपंथी बड़ी संख्या में मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे ही एक पूर्व नक्सली नेता हैं बिनॉय कुमार दास। बिनॉय पश्चिम बंगाल विधानसभा में उत्तर दिनाजपुर में रायगंज की करनदीघी विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं। बिनॉय कहते हैं कि चुनाव का बहिष्कार करने वाले नक्सली झूठे और पूंजीवादियों के नौकर हैं। बिनॉय ने कहा, ये नक्सली पूंजीवादियें के स्लेव हैं, सब कमीशन लेकर अपनी जेबें भर रहे हैं। नक्सली हमलों को लेकर बिनॉय ने कहा कि जो जंगी आज लोगों को मार रहे हैं, वो ये क्यें नहीं सोच रहे कि ये सैनिक भी तो हमारे परिवार से हमने तैयार किया है। मुझे बहुत दुख है कि वो लोग ऐसा करते हैं, आखिर वो इंडियन सिटिजन हैं, इंडियन फ्लैग के नीचे काम करते हैं, फिर अपने ही देश के नागरिकों को क्यों मार रहे हैं? ये सब पूंजीवादियों का खेला है। अर्बन नक्सल को लेकर बिनॉय का कहना है कि ये लोग नक्सलवादी क्रांति को समझते ही नहीं हैं, ये नक्सली हैं ही नहीं। वह कहते हैं, इन लोगों को स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और राजनीतिक दलों द्वारा कंट्रोल किया जाता है। सरकार और राजनीतिक दलें का इन पर पूरा कंट्रोल है और यह उनके इशारों पर चलते हैं। अर्बन नक्सली 1969 के समय में होते थे। उस समय मुख्यधारा में शामिल रहे लोग नक्सल क्रांति का समर्थन करते थे। उनमें मिथुन चक्रवर्ती समेत कई लोग शामिल थे। उनका कहना था कि वे ओरिजनल नक्सली थे। आज वाले दो नंबरी हैं। बिनॉय कहते हैं कि अगर जनता उन्हें यह मौका देती है तो वह सबसे पहले रोटी, कपड़ा और मकान की उपलब्धता पर काम करेंगे। वह कहते हैं कि इतने सालों में भी लोगों को ये बेसिक चीजें नहीं मिल पाई हैं। पार्टी के छोटे-मोटे नेता अपना काम करा लेते हैं और आम जनता को कुछ भी नहीं मिलता, सिवाय 2 किलो चावल के। मूल रूप से कर्णजोश कालीबाड़ी इलाके के रहने वाले बिनॉय की पैतृक संपत्ति की कीमत 650 करोड़ 82 लाख 57 हजार रुपए है। जानकारी के मुताबिक उनके पास 100 एकड़ से ज्यादा जमीन, रायगंज, मालदा, जलपाईगुड़ी, हरियाणा, वाराणसी समेत कई जगहों पर 14 पैतृक निवास हैं। इसके बावजूद वह किराये के घर में रहते हैं। बिनॉय ने 2018 में रायगंज जिला परिषद का चुनाव लड़ा था। इसके अलावा वह 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। हालांकि दोनों चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

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