Tuesday, 2 December 2025

चुनाव आयोग के हाथ खून से रंगे हैं।

यह कहना है तृणमूल कांग्रेस के उस प्रतिनिधिमंडल का जो चुनाव आयोग की पूरी बैंच के साथ दो दिन पहले मिला था। पश्चिम बंगाल में जारी वोटर लिस्ट में बदलाव की प्रािढया के बीच तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन के नेतृत्व में पार्टी के दस सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से मुलाकात की। ओ ब्रायन ने मीटिंग के बाद कहा कि पार्टी ने चुनाव आयोग के सामने पांच सवाल उठाए, लेकिन चीफ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार ने उनका कोई जवाब नहीं दिया। तृणमूल के सांसदों का कहना था कि यदि एसआईआर का उद्देश्य नकली वोटरों और घुसपैठियों का पता लगाना है तो फिर बंगाल ही क्यों? मेघालय और त्रिपुरा में क्यों नहीं? जबकि इन राज्यों की सीमाएं भी बांग्लादेश से मिलती हैं। हालांकि तृणमूल कांग्रेस सांसदों को सुनने के बाद आयोग ने स्पष्ट किया कि एसआईआर सभी राज्यों में होना है। डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि हम इन एसआईआर की संवैधानिक वैधता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि उस तरीके पर सवाल उठा रहे हैं, जिस तरीके से जल्दबाजी में इसे लागू किया जा रहा है उस पर एतराज है। एसआईआर के लिए उन्होंने समय बढ़ाने के लिए भी मांग की। तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने जब पावार को चुनाव आयोग की पूरी पीठ से मुलाकात की तो उन्होंने खुलकर आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में एसआईआर के कारण कम से कम 40 लोगों की मौत हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त के हाथ खून से सने हैं। हमने 5 सवाल उठाए और चुनाव आयोग ने एक घंटे तक बिना रूके हमसे बात की। जब हम बोल रहे थे तब हमें भी नहीं टोका गया लेकिन हमारे पांच सवालों में से किसी का भी जवाब नहीं मिला। लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलकर उन्हें 40 ऐसे लोगों की सूची सौंपी जिनकी मौत कथित तौर पर एसआईआर प्रािढया से जुड़ी थी। हालांकि उन्होंने कहा कि आयोग ने इन्हें केवल आरोपी कहकर खारिज कर दिया। सांसदों की चुनाव आयोग से करीब 40 मिनट में कल्याण बनर्जी, महुआ मोइत्रा और ममता बाला ठाकुर ने अपनी बात रखी और जो कहना था वो कहा। उन्होंने कहा, इसके बाद सीईसी ने एक घंटे तक बिना रूके बात की। जब हम बोल रहे थे तब हमें भी नहीं टोका गया, लेकिन हमें हमारे पांच सवालों में से किसी एक का भी जवाब नहीं मिला। एसआईआर के दूसरे चरण को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। टीएमसी सांसदों के प्रश्नों का संतोषजनक जवाब न देना इस प्रािढया के औचित्य और उपलब्धता पर सवाल उठ रहा है। एसआईआर से जुड़े संदेहों का दूर न होना शुभ संकेत नहीं है। एसआईआर के राजनीतिक पहल को समझा जा सकता है। खासकर बंगाल में जहां भाजपा और तृणमूल की कड़ी टक्कर होने का अंदाजा है। लेकिन इससे जुड़ी चिंताओं को भी खारिज नहीं कर सकते। एसआईआर की प्रासंगिकता पर कोई सवाल नहीं है और न ही आयोग के अधिकार पर। सुप्रीम कोर्ट भी यह बात कह चुका है। लेकिन विपक्ष की चिंताओं को दूर करना भी आयोग की ही जिम्मेदारी है। विपक्ष को अगर लग रहा है कि उनकी बातों को अनसुना किया जा रहा है तो देश की इस संवैधानिक संस्था को न केवल इनका संतोषजनक जवाब देना होगा। बल्कि स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव प्रािढया भी अपनानी होगी। 
-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 29 November 2025

एक बार फिर चर्चा में अफगानिस्तान

पिछले कुछ दिनों से एक बार फिर अफगानिस्तान चर्चाओं में है। दो घटनाएं ऐसी हुई हैं जिन्होंने अफगानिस्तान को सुर्खियों में ला दिया है। पहली घटना अमेरिका की है। अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में दिल दहलाने वाली घटना घटी। व्हाइट हाउस से कुछ ही दूरी पर बुधवार को दोपहर दो वेस्ट वजीनिया नेशनल गार्ड सदस्यों पर अचानक की गई गोलीबारी ने पूरे शहर को झकझोर दिया। व्हाइट हाउस में लॉकडाउन लग गया है। दोनों सैनिकों की दुखद मौत हो गई। वाशिंगटन की मेयर म्यूरियाल बाउजर ने इसे टारगेटिड शूटिंग बताया है। राष्ट्रपति ट्रंप ने हमलावर को जानवर बताते हुए अंजाम भुगतने की चेतावनी दी है। यह गोलाबारी उस समय हुई जब गार्ड के सदस्य एक मेट्रो स्टेशन के पास तैनात थे। हमलावर अचानक मोड़ से आया और बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने लगा। वहीं आसपास मौजूद अन्य सैनिकों ने तुरंत भागकर मौके पर पहुंचे और हमलावर को काबू कर लिया। गोली चलाने वाले का नाम रहमानुल्लाह लकनवाल (29 वर्ष) बताया गया है। यह अफगानिस्तान का नागरिक है जो 2021 में अमेरिका आया था। कहा जा रहा है कि यह अफगानिस्तान में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए भी काम कर चुका है। राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्रिटेन सरकार के तहत अमेरिका में आए अफगानिस्तान के हर नागरिक को फिर से जांच करने का भी वादा किया। ट्रंप ने फ्लोरिडा से सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए हमलावर को चेतावनी देते हुए कहा कि वह बहुत बड़ी कीमत चुकाएगा। हमलावर ने हमला क्यों किया इसकी जानकारी अभी नहीं आई। पहली सुखी अफगानिस्तान की तब बनी जब व्हाइट हाउस के बाहर गोली चलाने वाला एक अफगानी निकला। दूसरी सुर्खी तब बनी जब तीन दिन पहले अफगानिस्तान के एक मीडिया चैनल ने यह खबर चलाई कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान की जेल में हत्या कर दी गई है। इस खबर के आते ही पाकिस्तान में आग लग गई। बता दें कि इमरान खान पिछले दो साल से रावलपिंडी की मटियाला जेल में भ्रष्टाचार के आरोपों में बंद हैं। इमरान खान की सुरक्षा को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही हैं। इस बीच बेटे कासिम खान ने भी अपने पिता की सुरक्षा को लेकर एक्स पर एक पोस्ट लिखी है। मेरे पिता 845 दिन से जेल में हैं। पिछले छह हफ्तों से उन्हें एक डेथ सेल में एकांत में रखा गया है। यहां किसी तरह की पारदर्शिता नहीं है। अदालत के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद उनकी बहनों को हर मुलाकात से वंचित किया गया है। न कोई फोन, न कोई मुलाकात और न ही उनके जीवित होने का कोई सुबूत। मैं और मेरे भाई हम दोनों का अपने पिता से कोई संपर्क नहीं हुआ है। कासिम ने लिखा है, यह पूरी तरह से ब्लैकआउट कोई सुरक्षा प्रोटोकाल नहीं है, यह उनकी स्थिति को छिपाने और हमारे परिवार को यह जानने से रोकने का एक सोचा-समझा प्रयास है। मेरे पिता की सुरक्षा और इस अमानवीय एकांत केंद्र के हर नतीजे के लिए पाकिस्तानी सरकार को नोटिस और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह जवाबदेही ठहराया जाएगा। हम उम्मीद करते हैं कि इमरान की मौत महज एक अफवाह हो और वह जिंदा हों। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 27 November 2025

दबाव से बीएलओ की मौतों पर सवाल


देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के बीच बूथ लेवल अफसरों (बीएलओ) की मौत चिंता का कारण बन गई है। मध्य प्रदेश में 24 घंटों में 2 बीएलओ की मौत हो गई है। वहीं पिछले 4 दिनों में भोपाल के 50 से ज्यादा बीएलओ बीमार पड़े हैं। इनमें दो को हार्ट अटैक और एक को ब्रेन हैमरेज हुआ है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में एक महिला बीएलओ ने तो आत्महत्या ही कर ली। परिजनों ने ज्यादा काम के दबाव को मौत का कारण बताया। एसआईआर 4 नवम्बर को शुरू हुआ। तब से अब तक यानि 19 दिनों में 6 राज्यों में 16 लोगों की मौत हो गई है। गुजरात व मध्य प्रदेश में 4-4, पश्चिम बंगाल में 3, राजस्थान में 2, केरल व तमिलनाडु में 1-1 की जान गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन मौतों के लिए केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर को अव्यावहारिक बताते हुए इसे तुरन्त रोकने की मांग की है। कांग्रेस नेता व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी एक्स पर पोस्ट कर इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने लिखा  एसआईआर के नाम पर देशभर में अफरा-तफरी मचा रखी है नतीजा? तीन सालों में 16 बीएलओ की जान चली गई। हार्ट अटैक, तनाव, आत्महत्या एसआईआर में कोई सुधार नहीं। थोपा गया जुल्म है। उन्होंने आरोप लगाया, ईसीआई ने ऐसा सिस्टम बनाया है जिसमें नागरिक को खुद को तलाशने के लिए 22 साल पुरानी मतदाता सूची के हजारों स्कैन पन्नों को पलटना पड़े, मकसद साफ है-सही मतदाता हारकर थक कर बैठ जाए और वोट चोरी बिना रोक-टोक जारी रहे। दूसरी ओर भाजपा ने इन मौतों के लिए तृणमूल कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया है। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के मुख्यालय कृष्णा नगर में बीएलओ के तौर पर काम करने वाली रिंकू नामक महिला शिक्षक ने शनिवार को आत्महत्या कर ली। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि शव के पास बरामद एक सुसाइड नोट में रिंकू ने अपनी मौत के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए जिला चुनाव अधिकारी से रिपोर्ट मांगी है। पुलिस के मुताबिक रिंकू ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उन्होंने 95 फीसदी ऑफलाइन काम पूरा कर लिया है, लेकिन ऑनलाइन के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं है। सुपरवाइजर को इस बारे में बताने से भी कोई फायदा नहीं हुआ। इससे कुछ दिन पहले बर्धमान जिले के मेचारी में भी काम के कथित दबाव के कारण ब्रेन स्ट्रोक की वजह से नमिता हासंदा नाम का एक बीएलओ की मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन घटनाओं पर दुख जताते हुए सवाल किया कि आखिर एसआईआर और कितने लोगों की जान लेगी? दूसरी ओर भाजपा और सीपीएम ने इन घटनाओं पर कहा था कि इनके लिए तृणमूल कांग्रेस खुद जिम्मेदार है। सीपीएम नेता और पार्टी के केंद्रीय समिति के सदस्य सुजन चक्रवर्ती का सवाल है कि आखिर काम के दौरान बीएलओ को जान क्यों गंवानी पड़ रही है? उनका कहना था चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी से इंकार नहीं कर सकता। साथ ही राज्य सरकार को भी बीएलओ की मदद करनी चाहिए थी। लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी और भाजपा इस प्रक्रिया का राजनीतिक फायदा उठाने में जुटी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राज्य में बीएलओ की मौतों और बीमारियों ने तृणमूल कांग्रेस को चुनाव आयोग और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत हथियार दे दिया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी इस मुद्दे पर लगातार दबाव बढ़ा रही हैं। राजनीतिक हानि-लाभ को एक तरफ रखें और इस दुखद मुद्दे पर विचार करें तो चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए और इस दबाव के कारण आत्महत्या तक करने पर मजबूर होने की प्रक्रिया में सुधार लाना चाहिए या तो वह बीएलओ की संख्या बढ़ाएं या फिर लक्ष्य पूरा करने के लिए समय सीमा बढ़ाएं? चुनाव आयोग को अविलंब एक्शन लेना होगा नहीं तो इन निर्दोषों की हत्या का दाग उस पर लगेगा।
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 25 November 2025

बिहार में गृह विभाग सम्राट चौधरी को मिलना

सम्राट चौधरी को मिलना नीतीश सरकार के मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के साथ ही शुक्रवार को बिहार की सत्ता में बड़ा परिवर्तन दिखा। 2005 के बाद से लगातार गृह विभाग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभाल रहे थे, जो आमतौर पर सभी मुख्यमंत्री अपने पास ही रखते हैं पर ताजा दायित्व बंटवारे में यह महत्वपूर्ण विभाग उनसे छीना गया है और गृहमंत्री अमित शाह के विश्वास पात्र सम्राट चौधरी को दिया गया है। इससे इन अटकलों को जोर मिला है कि बिहार पर भाजपा का पूरा नियंत्रण हो चुका है और नीतीश कुमार महज रिमोट मुख्यमंत्री बन गए हैं। भाजपा की वर्षो से यही कोशिश रही कि बिहार का वंट्रोल उसके हाथ में आ जाए। इसी उद्देश्य से चुनाव से पहले भाजपा ने यह घोषणा नहीं की थी कि नीतीश ही अगले मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा के इस उद्देश्य की प्राप्ति में अभी पूरी सफलता नहीं मिली है। चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि बिहार में नीतीश आज भी सबसे कद्दावर नेता हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस मजबूरी के चलते नीतीश को भाजपा की यह शर्त माननी पड़ी कि गृह विभाग उनके पास नहीं होगा, भाजपा अपने पास रखेगी और नीतीश को झुकना पड़ा। इस तरह अमित शाह के विश्वासपात्र सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृह मंत्रालय भी मिल गया। अगर यह कहा जाए कि अब नीतीश रिमोट मुख्यमंत्री हैं तो गलत शायद न हो। असल कंट्रोल तो दिल्ली से ही होगा। अब तमाम प्राशासन, पुलिस, कानून व्यवस्था इत्यादि सम्राट चौधरी के हाथ में होगी। बिहार में लालू राज समाप्त होने के बाद नीतीश कुमार नवम्बर 2005 में सत्ता में आए। उसके बाद लगातार 20 साल से गृह विभाग उनके पास था। लालू राज के जिस जंगलराज की बात इस चुनाव में कानून व्यवस्था स्थापित कर दहशत के उस दौर को समाप्त किया और शांति व्यवस्था लागू करवाने में नीतीश का विशेष योगदान रहा। अपराध पर नकेल कसी, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए, पुलिस को खुली छूट दी। सख्त कानून व्यवस्था के जरिए यह अवधारणा बनी कि अपराधी चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, सियासी दबदबा भी रखता हो, कानून की नजर से कोईं नहीं बच सकता। सुशासन का प्रादेश में ऐसा माहौल बना कि नीतीश कुमार सुशासन बाबू ही कहलाने लग गए। दो दशक के दौरान बिहार में कोईं बड़ा दंगा भी नहीं हुआ। नीतीश कुमार को इस बार गृह विभाग न मिलना चौंकाने वाला जरूर है। लोग इसका मतलब तलाश रहे हैं। क्या भाजपा यह संकेत दे रही है कि मजबूरी के चलते नीतीश को मुख्यमंत्री तो बना दिया पर कितने दिन तक वह इस पद पर टिके रहेंगे इस पर अटकलों का बाजार गर्म है। पर शपथ ग्राहण से पहले नीतीश को यह समझा दिया गया था कि चूंकि भाजपा की सीटें जद(यू) से ज्यादा हैं इसलिए गृह विभाग तो हमारे पास ही रहेगा। नीतीश कुमार ने अपने पैरों पर पहले ही वुल्हाड़ी मार ली थी इसलिए इसे स्वीकार करने के अलावा उनके पास शायद कोईं और विकल्प नहीं रहा होगा। पर नीतीश मंझे हुए खिलाड़ी हैं वह इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं। क्या निकट भविष्य में बिहार में कोईं नया खेला भी देखने को मिल सकता है। वैसे भाजपा को गृह मंत्रालय मिलने से राज्य में अपराधियों पर तो नकेल कसेगी ही लेकिन यदि वैसा नहीं हुआ तो उसका असर भी उल्टा हो सकता है। गृह विभाग भाजपा को मिलने से पार्टी विरोधियों खासकर आरजेडी और कांग्रोस में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक है। अंत में जन सुराज पार्टीा के संस्थापक प्राशांत किशोर ने आरोप लगाया कि बिहार में नीतीश वुमार सरकार की नईं कैबिनेट भ्रष्ट और अपराधियों से भरी है। यह मंत्रिपरिषद बिहार के लोगों के मुंह पर एक तमाचा है। ——अनिल नरेन्द्र

Saturday, 22 November 2025

पीके क्यों चारों खाने चित हुए

2025 का बिहार विधानसभा चुनाव प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी के लिए पहली बड़ी चुनावी परीक्षा थी। यह चुनाव प्रशांत किशोर की खुद की भविष्यवाणी जैसा रहा कि उनकी पार्टी या तो अर्श पर होगी या फर्श पर होगी। नतीजों ने पार्टी को फर्श पर ही रखा। प्रशांत किशोर की छवि के आधार पर तैयार किए गए एक आक्रामक और व्यापक प्रचार अभियान के बावजूद जन सुराज पार्टी शुरुआती उत्साह को वोटों में नहीं बदल सकी। 243 में से 238 सीटों पर चुनाव लड़कर पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। दस में से चार मतदाताओं ने बताया (लगभग 39 प्रतिशत) कि उन्हें पार्टी से फोन कॉल, एसएमएस, व्हाट्सएप या सोशल मीडिया के जरिए कम से कम एक राजनीतिक संदेश मिला जो भाजपा के साथ सबसे ज्यादा था। इसी तरह 43 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनसे डोर टू डोर संपर्क किया गया। वोटरों से इस तरीके से संपर्क करने के मामले में जन सुराज पार्टी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। इस स्तर पर संपर्क ने पार्टी को एक तरह से fिबहार के कई स्थापित दलों की बराबरी पर ला दिया। ऐसी मौजूदगी के बावजूद उसे मिला समर्थन, सीमित रहा। इसके बाद से यह सवाल उठ रहा था कि क्या प्रशांत किशोर राजनीति छोड़ेंगे? मंगलवार को हुई पटना की प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत किशोर ने अपने इस बयान में सफाई दी है। उन्होंने कहा, मैं उस बात पर बिल्कुल कायम हूं। अगर नीतीश कुमार की सरकार ने वोट नहीं खरीदे हैं तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने उन्हें काउंटर किया कि जब आपने यह बयान दिया था तब ये शर्तें क्यों नहीं बताई थी? इस पर प्रशांत किशोर ने कहा, मैं किस पद पर हूं कि इस्तीफा दे दूं? मैंने ये तो नहीं कहा था कि बिहार छोड़कर चले जाएंगे। मैंने राजनीति छोड़ रखी है, राजनीतिकार ही नहीं रहे हैं। लेकिन ये तो नहीं कहा है कि बिहार के लोगों की बात उठाना छोड़ देंगे। जन सुराज पार्टी का दावा है कि नीतीश कुमार की सरकार ने चुनाव से पहले कई सारी योजनाएं लाईं और बिहार की जनता के खातों में पैसे भेजे। इनकी वजह से एनडीए फिर सत्ता में आई है और जन सुराज पार्टी को हार मिली है। हालांकि प्रशांत किशोर खुद अपनी जन सुराज पार्टी के लिए कुछ नहीं कर पाए। चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कई मौकों पर दावा किया था कि इस बार बिहार में बदलाव होगा और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। विश्लेषकों का यह भी मानना है कि प्रशांत किशोर इस हार के बावजूद राजनीति छोड़कर भागेंगे नहीं। वह लंबी रेस के घोड़े हैं। उन्होंने पड़े-लिखे लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की, अच्छे मुद्दे उठाए, प्रशांत किशोर ने पत्रकारों से कहा, जहां पिछले 50 साल से जाति की राजनीति का दबदबा हो वहां पहले ही प्रयास से 10 फीसदी वोट लाना हमारा जलवा है या क्या है, यह आप तय कर लीजिए। प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि अगर हमारी पार्टी को दस प्रतिशत वोट आया है तो यह मेरी जिम्मेदारी है। भले ही यह मेरे अकेले की जिम्मेदारी नहीं है? लेकिन मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं। इस दस प्रतिशत को 40 प्रतिशत करना है। यह एक साल में हो या पांच साल में। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 20 November 2025

बिहार परिणाम राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर करेगा

 
भारत में 10 साल से केंद्र और अधिकतर राज्यों में सरकार चला रही भाजपा जब लोकसभा चुनाव 2024 में 240 सीटों पर अटक गई और बैसाखियें के सहारे सत्ता में आई तो कई विश्लेषकों को लगा था कि यहां से भारतीय राजनीति में शायद भाजपा ढलान पर आ जाए लेकिन उसके बाद से देश के कई राज्यों में हुए चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर भाजपा ने साबित कर दिया कि ये आकलन कहीं न कहीं गलत थे। हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और अब बिहार में जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने यह साबित कर दिया कि वह चुनाव जीतना जानती है। आज भी चुनावी रणनीति बनाने और उसे सफल बनाने में भाजपा के सामने कोई राजनीतिक दल ठहरता नहीं है। ताजा उदाहरण बिहार का है। अब भारत के अहम हिंदी भाषी राज्य बिहार में भी भाजपा, जेडीयू और कई क्षेत्रीय दलें के एनडीए गठबंधन ने अप्रत्याशित और बेमिसाल जीत दर्ज की है। बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा भारत की राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा और बहुआयामी प्रभाव डाल सकता है। यह नतीजा भाजपा के लिए एक बड़ी जीत और सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जिसने केंद्र की एनडीए सरकार और उसके नेतृत्व को मजबूती दी है। वहीं विपक्ष के लिए यह चुनौती और जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने का अलर्ट है। विश्लेषक मान रहे हैं कि विपक्ष को अपनी नीतियों, नेतृत्व और रणनीति में व्यापक सुधार करना होगा ताकि वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी चुनौती पेश कर सकें। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भाजपा बिहार परिणाम से और मजबूत होकर उभरेगी और उसका असर कई आगामी चुनावों तक दिखाई देगा। विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि भाजपा के भीतर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और मजबूत होंगे। भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की चुनावी रणनीति एक बार फिर सटीक साबित हुई है। बिहार चुनाव परिणाम ने भाजपा, नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व को फिर से मजबूत कर दिया है। विश्लेषक हेमंत अत्री के अनुसार बिहार चुनाव ने केंद्र सरकार की स्थिति जो 2024 के लोकसभा चुनावों में अल्पमत की स्थिति का सामना कर रही थी अब खुलकर अपने एजेंडे को चला सकेगी। अब उसे केंद्र सरकार की स्थिरता पर भी लगते प्रश्न चिह्नों की ज्यादा चिंता नहीं होगी। अब भाजपा और उसकी रणनीति पर विपक्ष के हमले कम हो सकते हैं और भाजपा दलितों, पिछड़ों और अन्य वर्गों से समर्थन हासिल करने की अपनी क्षमता को एक बार फिर प्रदर्शित करेगी। भाजपा अध्यक्ष का फैसला अब जो पिछले कई महीनों से लटका हुआ था उसका भी फैसला जल्द हो सकता है। अब फिर से इस धारणा को मजबूती मिलेगी कि मोदी इंविंसिबल यानी अजेय है। उन्हें कोई भी सत्ता से हिला नहीं सकता। इससे विपक्ष के मनोबल पर भी असर पड़ेगा। सीएसडीएस के निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार मानते हैं कि भारतीय राजनीति पर भाजपा का एकक्षत्र राज मजबूत हो रहा है जो लोकसभा चुनाव के बाद लगने लगा था कि शायद भाजपा का प्रभाव कम हो रहा है, लेकिन लगातार कई राज्यों में पार्टी की जीत ने साबित कर दिया है कि वह अजेय हैं और चुनावी रणनीति में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता, बिहार के चुनाव नतीजों से भाजपा का आत्मविश्वास और बढ़ेगा तथा पार्टी के लिए यह एक उत्साह बढ़ाने वाला परिणाम है, खासकर असम, तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल के चुनावों से पहले। विश्लेषज्ञोsं का हालांकि यह भी मानना है कि किसी एक राज्य परिणाम से कुछ सबक तो सिखे जा सकते हैं लेकिन इससे पूरे देश का मिजाज बदलना मुश्किल fिदखता है। विश्लेषक आमतौर पर इस बात पर सहमत हैं कि बिहार नतीजों ने यह साबित किया है कि महिलाओं को अब अलग मतदाता वर्ग के रूप में देखा जाएगा। बिहार नतीजें का एक अहम सबक यह है कि राजनीति दल महिला मतदाताओं की एक अहमियत समझेंगे और ये समझ बढ़ेगी कि महिलाओं को अपने साथ रखना है और अपनी चुनावी घोषणा पत्रों में इस बात का ध्यान रखकर योजनाएं बनानी होंगी। एनडीए गठबंधन ने ये दिखाया कि कुछ ऐसे वादे करते हैं, जिन्हें पूरा कर सकें। विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले समय में भारतीय राजनीति पर वेलफेयर यानी समाज कल्याण योजनाओं का असर और ज्यादा नजर आ सकता है। यह बात एनडीए की बिहार जीत से साफ हो चुकी है। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 18 November 2025

बिहार में नीतीश कुमार की विश्वसनीयता


बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने यह तो साबित कर ही दिया है कि 20 साल शासन के बाद भी नीतीश कुमार की विश्वसनीयता अभी भी बनी हुई है। आज भी नीतीश बिहार के सबसे कद्दावर नेता हैं। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार की सेहत और सक्रियता पर सवाल छाए रहे। मीडिया से उनकी दूरी कुछ मंचों से उनके दिए बयान और हाव-भाव पर लोग सवाल उठा रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंच पर उनकी अनुपस्थिति और रोड शो में बराबर न खड़ा होना विवाद का विषय बना हुआ था। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नीतीश को अचेत मुख्यमंत्री कहते थे। लेकिन इन सबके बावजूद बिहार की जनता कहती रही कि नीतीश कुमार की पार्टी इस बार 2020 की तुलना में बढ़िया प्रदर्शन करेगी। जेडीयू ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की। पार्टी कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक पोस्टर लगे ...टाइगर अभी जिंदा है। जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पहले से ही कई इंटरव्यू में यह कह चुके थे कि नीतीश कुमार को जब-जब कम आंका जाता है। तब-तब वह अपने प्रदर्शन से लोगों को चौंकाते रहे हैं। इस बार बिहार में 67.13 प्रतिशत मतदान हुआ जो पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6 प्रतिशत ज्यादा है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 प्रतिशत ज्यादा रहा है। आमतौर पर यह माना गया था कि नीतीश कुमार को इस बार महिलाओं का भारी समर्थन मिल रहा है और ये चुनाव के परिणामों में भी नजर आया। मुमकिन है कि महागठबंधन को भी इसका आभास था, इसलिए पहले चरण के मतदान से महज पंद्रह दिन पहले तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों के लिए स्थायी नौकरी, तीस हजार के वेतन, कर्ज माफी, दो सालों तक ब्याज मुक्त क्रैडिट , दो हजार का अतिरिक्त भत्ता और 5 लाख तक का बीमा कवरेज देने का लंबा-चौड़ा वादा किया। इसके बावजूद नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए। महागठबंधन चुनाव से लगभग एक महीने पहले नीतीश सरकार की तरफ से जीविका दीदियों के खाते में 10-10 हजार कैश बेनेफिट ट्रांसफर करने को वोट खरीदने से जोड़ती हो पर परिणाम बताते हैं कि इनका सीधा फायदा एनडीए को हुआ। ऐसा नहीं कि अपने लंबे कार्यकाल में नीतीश ने जनकल्याण योजनाएं नहीं चलाई। साल 2007 में ही नीतीश ने इस योजना की शुरुआत कर दी थी। नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में ही स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल, पोशाक और मैट्रिक की परीक्षा पहली डिवीजन से पास करने वाली छात्राओं को दस हजार रुपए की राशि दी। बाद में 12वीं की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास करने पर 25000 रुपए और ग्रेजुएशन में 50,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाने लगी। अपने पहले कार्यकाल में नीतीश ने महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया। पुलिस भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी और इस बार के चुनाव में भी वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो राज्य सरकार की नौकरियों में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। नीतीश कुमार को इस बार अति पिछड़ा वर्ग का भी भरपूर समर्थन मिला है। प्रभुत्व वाली नीतियों के खिलाफ ईबीसीवी जातियां एकजुट नजर आईं और उन्होंने एनडीए को वोट दिया। नीतीश कुमार जिस सामाजिक वर्ग से आते हैं, वह बिहार की आबादी का सिर्फ 2.91 प्रतिशत है। इसके बावजूद वह इतने बड़े गठबंधन के नेता बने। आमतौर पर माना जा रहा है कि तेजस्वी के लिए अब भी पिता लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल की जंगलराज वाली छवि को भेदना मुश्किल हो गया था और चुनाव में यह एक मुद्दा जरूर बना। दूसरी तरफ नीतीश कुमार सुशासन बाबू की अपनी छवि को अब भी बनाए हुए हैं। 20 साल सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि है, उन पर आज तक भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। पर आलोचक यह भी कहते हैं कि नीतीश के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार होते हुए भी बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में है। पलायन आज भी एक बहुत बड़ी वास्तविकता है। नीतीश ने इन मुद्दों को गंभीरता से अड्रैस नहीं किया और इन पर काम करना अब एनडीए की सरकार के लिए एक चुनौती है। एक विश्लेषक का मानना है कि नीतीश कुमार को सहानुभूति वोट भी मिलें क्योंकि कुछ लोगों का मानना था कि यह इलेक्शन नीतीश कुमार का फेयरवेल इलेक्शन था और बिहार के वोटरों ने वोट के जरिए अपने नेता को एक अच्छा फेयरवेल दिया है। लोगों में एक संदेश था कि ये शायद नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव है। 
-अनिल नरेन्द्र