Wednesday 30 April 2014

श्रीनगर, लद्दाख और बिहार में कड़ा मुकाबला है

जम्मू-कश्मीर की प्रतिष्ठित लोकसभा सीट पर 30 अप्रैल को मतदान होगा। मैदान में हैं केंद्रीय मंत्री डॉ. फारुख अब्दुल्ला। पीपुल्स डेमोकेटिक पार्टी (पीडीपी) ने यहां से तारिक हामिद, भाजपा ने फैयाज अहमद बट और आम आदमी पार्टी ने डॉ. राजा मुजफ्फर बट को मैदान में उतारा है। यहां से कुल 14 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें से आठ निर्दलीय हैं। कभी कोई चुनाव नहीं हारने वाले डॉ. फारुख सुबह पांच बजे उठ जाते हैं और अपने कश्मीरी लिबास (फेरान और कराकुली) पहनकर पूरा दिन कश्मीरी भाषा में ही प्रचार करते हैं। चुनावी रैलियों के दौरान फारुख अनुच्छेद 370 के पक्ष में नारा जरूर लगवाते हैं। वह अपनी हर रैली में पीडीपी के प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद सईद और भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने से नहीं चूकते। भाजपा की ओर से पहले आरिफ रजा उम्मीदवार थे, लेकिन पार्टी के घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 के उल्लेख के बाद रजा ने बगावत कर दी। रजा ने भाजपा की ओर से पर्चा भी दाखिल कर दिया था, लेकिन कुछ ही घंटों बाद पार्टी ने अपना उम्मीदवार बदल दिया। जम्मू-कश्मीर के इस लोकसभा चुनाव में युवाओं की भूमिका अहम रहेगी। सूबे में कुल 69 लाख 33 हजार 118 वोटरों में से 56.01 फीसद वोटर 18 वर्ष से 39 साल के आयु वर्ग में हैं। श्रीनगर अब्दुल्ला खानदान का मजबूत किला है और फारुख साहब को हराना मुश्किल है। जम्मू-कश्मीर में देश की सबसे बड़ी सीट भी है लद्दाख। 1.73 लाख वर्ग मीटर के इलाके वाले इस संसदीय क्षेत्र में चुनाव में सिर्प चार उम्मीदवार हैं। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का यहां गठबंधन है। इस सीट से कांग्रेस के रिसरिंग सैफल चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुख्य मुकाबला भाजपा के थप्स्टन भिवांग से है। इन दोनों के अलावा सईद मोहम्मद काजिम और गुलाम रजा निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। लद्दाख में सात मई को मतदान होगा। छह-सात पोलिंग बूथ लद्दाख में ऐसे हैं जहां वोटिंग पार्टी को हेलीकॉप्टर से पहुंचाना पड़ता है। जम्मू-कश्मीर से अब रुख करते हैं बिहार का। चुनावी रणनीति बदली लेकिन राज्य में 30 अप्रैल को होने जा रहे चुनाव कुछ उन पुराने योद्धाओं के जंग की रोचकता का गवाह बनने जा रहा है बिहार लोकसभा संसदीय चुनाव। चुनावी दंगल में पुराने योद्ध एक-दूसरे की कमजोर नब्ज पकड़ परिणाम को अपने हक में करने के लिए भिड़ रहे हैं। राज्य में 30 अप्रैल को होने वाला मधुबनी, दरभंगा, झाझरपुर व समस्तीपुर में पुराने योद्धाओं की भिड़ंत है। मधुबनी लोकसभा सीट से एक बार फिर भाजपा के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री हुक्मदेव नारायण यादव और राजद के उम्मीदवार पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी में मुकाबला है। जद (यू) ने राजद से ही बॉरो प्लेयर विधान परिषद में राजद के नेता रहे गुलाम गौंस को उम्मीदवार बनाया है। मगर जद (यू) के वोटों की भरपायी भाजपा-लोजपा व रालोद-सपा से गठबंधन करने में लगी है तो दूसरी ओर राजद के उम्मीदवार को कांग्रेस का साथ है। मधुबनी से कांग्रेस के डॉ. शकील अहमद चुनाव लड़ रहे हैं। दरभंगा लोकसभा का चुनावी मैदान भाजपा के कीर्ति आजाद व राजद के अली अशरफ फातमी के बीच रोचक जंगों का गवाह बना है। 1999 की जंग में कीर्ति आजाद ने अली अशरफ को पटखनी दी तो 2004 में लोकसभा चुनाव में राजद के अली अशरफ फातमी ने कीर्ति को धूल चटाई। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी डॉ. प्रभात रंजन दास भी सीट के लिए जोर लगा रहे हैं। गठबंधन से अलग होने की वजह से जद (यू) की टिकट पर संजय झा की मौजूदगी नए और प्रभावी समीकरण बना सकती है। निर्णायक रहने वाले वोटों में सेंधमारी की वजह से इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी दोनों की कुछ हद तक प्रतिष्ठा दांव पर है।

-अनिल नरेन्द्र

30 अप्रैल के मतदान को वीआईपी चरण भी कहा जा सकता है

सोलहवीं लोकसभा के लिए मतदान के सातवें चरण में हालांकि मतदान तो केवल 89 सीटों पर है लेकिन यह कई मायनों में है अत्यंत महत्वपूर्ण। इस चरण में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, भाजपा के प्रधानमंत्री  पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी, नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला, जद (यू) के शरद यादव, डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे विभिन्न राजनीतिक दलों के दिग्गजों का भविष्य दांव पर है। इन 89 सीटों में से सर्वाधिक 37 सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं। भाजपा के पास इस समय 19 सीटें हैं जिसमें से 15 सीटें तो गुजरात की हैं। इस तरह भाजपा के पास गुजरात को छोड़कर कुल चार सीटें हैं। यहीं से भाजपा को अच्छा प्रदर्शन करना होगा और अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए यह चरण इस लिहाज से उसके लिए महत्वपूर्ण है। इस चरण में गुजरात की सभी 26 सीटों पर एक साथ मतदान हो रहा है। जिस सीट पर सबकी आंखें लगी हुई हैं वह है वड़ोदरा जहां से नरेन्द्र मोदी मैदान में हैं। यहां उनका मुकाबला कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्राr से है। इस चरण में जिन अन्य सीटों पर मतदान होगा वह नौ राज्यों में फैली हुई हैं। इसमें आंध्र प्रदेश की 17 सीटें शामिल हैं। यह सभी सीटें आंध्र का बंटवारा कर बनाए गए राज्य तेलंगाना में हैं। इसी दिन तेलंगाना के लोग अपने नए राज्य के विधायकों को भी चुनेंगे। आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद तेलंगाना से कांग्रेस को बहुत उम्मीदें हैं। उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर जहां कानपुर से भाजपा के डाक्टर मुरली मनोहर जोशी का कड़ा मुकाबला केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से है तो वहीं रायबरेली से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपनी जीत के वोट अन्तर को बढ़ाने की चुनौती है। पंजाब की सभी 13 सीटों पर मतदान है। अमृतसर में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह को भाजपा के दिग्गज नेता अरुण जेटली को उतारा है। कैप्टन की पत्नी तथा केंद्रीय मंत्री परनीत कौर, श्रीमती अम्बिका सोनी की किस्मत भी दांव पर है। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती तथा फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना, परेश रावल के भाग्य का फैसला भी 30 अप्रैल को होगा। उधर बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव तथा लोक जन शक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान का भी भविष्य तय होगा। बिहार की इन नौ सीटों से राज्य के मूड का भी पता चलेगा। नीतीश बनाम नरेन्द्र मोदी का प्रभाव भी इस बहाने पता चलेगा। यह भी पता चलेगा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक प्रभाव अब भी है। पश्चिम बंगाल की नौ सीटों में श्रीरामपुर सीट पर मशहूर फिल्म संगीतकार बप्पी लहरी का मुकाबला तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी से है। पायनियर के सम्पादक व पत्रकार चन्दन मित्रा भी हावड़ा से दंगल में हैं। देखना यहां यह होगा कि वामदलों का रुख क्या होता है। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एक बयान में कहा कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को हराना जरूरी है। क्या उनका अपने मतदाताओं को यह इशारा था कि आप भाजपा उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं जहां आपको लगे कि वाम उम्मीदवार तृणमूल को हरा नहीं सकते। हाल ही के दिनों में तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी और नरेन्द्र मोदी के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला है। इसका मतदान पर कितना प्रभाव पड़ता है यह भी देखना होगा। कुल मिलाकर बेशक है तो 543 में से कुल 89 सीटों पर मतदान पर है यह सभी महत्वपूर्ण हैं जिस पर कई सियासी दिग्गजों का भविष्य दांव पर है।

Tuesday 29 April 2014

कानपुर और संगम नगरी इलाहाबाद में जबरदस्त टक्कर!

उत्तर प्रदेश की औद्योगकि राजधानी के रूप में मशहूर कानपुर अपनी पहचान लगातार खोता जा रहा है। बंद होती मिलें और मजदूरों का पलायन रोकने की कोशिश किसी ने नहीं की। लाल इमली एल्गिन मिल, जेके जूट मिल जैसी कई औद्योगिक इकाइयां हैं जिनके उत्पाद देश ही में नहीं, विदेशों में अपनी गुणवत्ता का लोहा मनवाते रहे हैं। यह सब बंद हो चुकी हैं। कानपुर से इस बार चुनाव में भाजपा ने अपने दिग्गज डॉ. मुरली मनोहर जोशी को उतारा है। मुकाबले में हैं कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल। सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं और भारत सरकार के कोयला मंत्री हैं। वह दावा करते हैं कि जितना विकास पिछले 15 वर्षों में कानपुर में हुआ है उतना कभी नहीं हो पाया। उम्मीद जताते हैं कि चौथी बार फिर यहां की जनता उन्हें संसद भेजेगी। भाजपा के डॉ. मुरली मनोहर जोशी के प्रत्याशी बनाए जाने से कानपुर का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है और कांटे का हो गया है। बसपा ने सलीम अहमद को मैदान में उतारा है। हालांकि पिछली बार भी पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन बाद में टिकट सुखदा मिश्रा को दे दिया। आप ने मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने के लिए डॉ. महमूद हुसैन रहमानी को मैदान में उतारा है। हालांकि डॉ. रहमानी पहली दफा लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं। समाजवादी पार्टी ने पहले कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव को प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन राजू ने स्थानीय इकाई का साथ न मिलने की बात कह मैदान छोड़ दिया था। इस पर पार्टी ने एक बार फिर सुरेंद्र मोहन अग्रवाल को मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में वह चौथे स्थान पर रहे थे। डॉ. जोशी की एक बड़ी मुश्किल उनकी तुनकमिजाजी है। वह पार्टी कार्यकर्ताओं को यह याद दिलाते रहते हैं कि उनका कद कितना बड़ा है। वे यह बताना भी नहीं भूलते कि कैसे वह अटल जी और आडवाणी जी को भी सलाह देते रहे हैं। डॉ. जोशी को यह पसंद नहीं कि बगैर इजाजत लिए पार्टी के नेता ठेठ कानपुरिया अंदाज में उनके कमरे में घुस आएं। श्रीप्रकाश जायसवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मुलायम सिंह के प्रभाव के चलते यहां मुस्लिम वोट बैंक का एक बड़े हिस्से को सपा में जाने से रोकना। आप उम्मीदवार डॉ. महमूद रहमानी जाने-माने नेत्र विशेषज्ञ हैंलेकिन वे किसी भी वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पा रहे। डॉ. जोशी को जहां मोदी लहर का लाभ मिलेगा। वहीं श्रीप्रकाश जायसवाल को एंटी इन्कम्बैंसी व कोयला घोटाले से उत्पन्न स्थिति का मुकाबला करना है। लड़ाई इन दोनों के बीच है। अब बात करते हैं संगम नगरी की। इलाहाबाद का नाम केवल संगम के साथ ही नहीं जुड़ा है। आजादी की लड़ाई के दौरान सियासत का केंद्र रहा आनंद भवन इस बात की गवाही देता है कि इलाहाबाद देश को लगातार सियासी शक्ति देता रहा है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ ही लाल बहादुर शास्त्राr, विश्वनाथ प्रताप सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा, छोटे लोहिया, जानेश्वर मिश्रा और भाजपायी दिग्गज डॉ. मुरली मनोहर जोशी की साख इसी शहर से बढ़ी। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी इसी क्षेत्र से राजनीति का पाठ सीखा। ऐसे धुरंधरों के कारण ही इलाहाबाद संसदीय सीट वर्षों तक वीआईपी सीट रही पर पिछले कुछ वर्षों से यह दर्जा छिन गया है। इस बार के चुनाव के मुकाबले में हैं सपा के रेवती रमण सिंह, भाजपा के श्याम चरण गुप्ता, कांग्रेस के नंदगोपाल नंदी और आप के आदर्श शास्त्राr। इलाहाबाद में लगातार दो बार से सांसद रेवती रमण सिंह की पार्टी में मजबूत पकड़ है और प्रशासनिक हलकों में धमक रही है। क्षेत्र का कोई गांव ऐसा नहीं जहां लोग उन्हें पहचानते नहीं। रेवती का दावा है कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों में इलाहाबाद में कई विकास कार्य किए हैं। इलाहाबाद के मतदाता नेताओं को सिर पर बैठाते हैं तो उन्हें पैदल करने में भी देर नहीं करते। यही कारण है कि यहां से  लगातार तीन चुनाव जीतने का रिकार्ड भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ही बना सके। उनके कारण ही यह सीट भाजपा का गढ़ बनी लेकिन रेवती रमण सिंह ने `इंडिया शाइनिंग' के दौर में उन्हें पराजित किया। रेवती भी लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं और यहां से हैट्रिक लगाने की संभावना है। भाजपा उम्मीदवार श्यामाचरण गुप्ता दो महीने पहले तक सपा में थे। मोदी लहर और पुराने सम्पर्कों पर उन्हें भरोसा है। दावा तो वह यह भी करते हैं कि रेवती रमण सिंह के तमाम सिपहसालारों के सम्पर्प उनसे अब भी हैं। बसपा की केराटी देवी पटेल पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं और बसपा कैडर की मजबूत नेता हैं। 2004 में फूलपुर से उम्मीदवार बनाया था, दूसरे नंबर पर रही थीं। कांग्रेस के नंदगोपाल गुप्ता बसपा सरकार में मायावती के करीबी रहे। माना जा रहा है कि वह किसी के लिए भी परेशानी खड़ी कर सकते हैं। लेकिन केंद्र में एंटी इन्कम्बैंसी फैक्टर और पार्टी की स्थिति उनती मजबूत नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्राr के पौत्र और कांग्रेस नेता अनिल शास्त्राr के पुत्र आदर्श शास्त्राr आप पार्टी के उम्मीदवार हैं। शास्त्राr जी के नाम और केजरीवाल के आंदोलन का सहारा है। कायस्थ मतदाताओं से भी समर्थन की उम्मीद है। कुल मिलाकर कांटे के मुकाबले में रेवती रमण को हराना मुश्किल लग रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

फिर मुस्लिम तुष्टिकरण का सहारा ः डूबते को तिनके का सहारा

लोकसभा चुनाव के छह चरण पूरे हो जाने के बाद अचानक कांग्रेस को मुस्लिमों की याद आई है। चुनावों में पीछे छूट गई पार्टी को मुस्लिमों को 4.5 फीसद आरक्षण का वादा डूबते को तिनके का सहारा समान है, संजीवनी की तलाश समान है। इतने दिन बीत जाने के बाद उसे मुस्लिम समुदाय को बताने की जरूरत क्यों पड़ रही है? घोषणा पत्र जारी करने के करीब महीने भर बाद इस पूरक घोषणा पत्र की मंशा है मुस्लिम मतों को प्रभावित करना। मूल घोषणा पत्र में भी पार्टी ने पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण का लाभ देने की बात कही है पर पूरक घोषणा पत्र में विस्तार से बताया गया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो अन्य पिछड़े वर्ग के तहत दिए जाने वाले आरक्षण में पिछड़े मुस्लिमों को 4.5 फीसद का कोटा मिलेगा। इस पूरक घोषणा पत्र जारी करने से कुछ सवाल जरूर उठेंगे। पहली बात कि आखिर अब जब कुछ चरण का ही मतदान बाकी रहा है कांग्रेस को पिछड़े मुसलमानों की सुध क्यों आई? दूसरा बड़ा सवाल यह है कि अगर पिछड़े मुसलमानों के हितों की इतनी ही चिंता थी तो पिछले 10 सालों में सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस ने इसके लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? यद्यपि इस बारे में कांग्रेस का कहना है कि उसने पहले ही इसका प्रावधान तो किया था पर अमल नहीं किया जा सका। कांग्रेस प्रवक्ता और कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है और जब तक शीर्ष अदालत में इस मामले का निपटारा नहीं होता, पार्टी कुछ भी नहीं कर सकती। मुसलमानों समेत सभी अल्पसंख्यकों को विकास का लाभ मिले इससे किसी को इंकार नहीं है, लेकिन मुश्किल यह है कि कांग्रेस की यह `सद-इच्छा' चुनावी लाभ की मंशा से प्रेरित लगती है। चुनाव से पहले भी सोनिया गांधी की शाही इमाम से मुलाकात और मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस के लिए वोट करने की अपील, देश सुन चुका है। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति सिर्प कांग्रेस करती है ऐसा भी नहीं है। चुनावी दौर में अरविंद केजरीवाल की तौकीर रजा से और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की कल्बे सादिक से मुलाकात इसकी पुष्टि करते हैं। यहां यह भी याद रखना होगा कि आरक्षण के भीतर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। यह मामला न्यायपालिका में विचाराधीन है। ऐसे में वादा किए  जाने के बावजूद फिलहाल इस पर अमल कर पाना मुश्किल है। ऐसे में इस पूरक घोषणा पत्र का यही मतलब रह जाता है कि अगर पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को इस वादे पर भरोसा हो जाए तो संभव है कि कांग्रेस को इसका कुछ चुनावी लाभ मिल जाए। लेकिन यह हो पाएगा, इसकी उम्मीद काफी कम लग रही है। इसके अलावा यह भी देखने की बात है कि न केवल मुख्य विपक्षी दल भाजपा की ओर से इसका सख्त विरोध किया जा रहा है बल्कि पिछड़े वर्ग के मुसलमानों की ओर से भी कोई उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। हमें संदेह है कि कोई भी मुसलमान अब कांग्रेस के इस हसीन सपनों का मुरीद होगा? केंद्र में 10 साल सत्ता में रहते हुए तो कांग्रेस ने इनकी बेहतरी के लिए तमाम कदम उठा सकने की स्थिति में होते हुए भी कुछ ठोस नहीं किया। अब जब मतदान के छह चरण पूरे हो चुके हैं और कुछ ही चरण बचे हैं हमें संदेह है कि मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के इस वादे को गंभीरता से लेगा। जैसा मैंने कहा डूबते को तिनके का सहारा समान है यह पूरक घोषणा पत्र।

Sunday 27 April 2014

पंजाब में अकाली दल-भाजपा बनाम कांग्रेस बनाम आप

पंजाब की अमृतसर लोकसभा सीट इस समय सबसे हॉट सीट बनी हुई है। अमृतसर सीट पर प्रतिष्ठा की लड़ाई है जहां एक युद्ध नायक तथा वरिष्ठ राजनीतिज्ञ अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए मैदान में है तो दूसरी तरफ एक रसूखदार नेता इस दिग्गज को पराजित करने के लिए कमर कसे हुए है। पंजाब की इस सीट पर सभी की निगाहें हैं जहां 30 अप्रैल को मतदान होगा। गुरु की नगरी में राजनीतिक माहौल गरमाने लगा है। बादल साहिब द्वारा आश्वासन देने के बाद भी भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को खूब पसीना बहाना पड़ रहा है। 61 वर्षीय अरुण जेटली के लिए यह पहला चुनाव है जिसमें वह प्रत्यक्ष निर्वाचन का सामना कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि भाजपा नीत राजग के सत्ता में आने पर उन्हें दिल्ली में बड़ी भूमिका मिल सकती है। शायद जेटली ने भी यह नहीं सोचा कि शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार के 7 साल के शासन तथा निवर्तमान सांसद नवजोत सिंह सिद्धू के प्रदर्शन को लेकर सत्ता विरोधी लहर की पृष्ठभूमि में उन्हें अमृतसर सीट पर कितने कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस ने उनके मुकाबले में अपने पंजाब के सबसे शक्तिशाली  उम्मीदवार कैप्टन अमरिन्दर सिंह को उतारा है। कांग्रेस ने कैप्टन के रूप में अपना तुरुप का पत्ता खेल कर यहां मुकाबला कड़ा बना दिया है। अमृतसर में कहीं-कहीं आप का प्रभाव भी दिख रहा है। पिछड़ी जातियों का वोट जो कभी कांग्रेस और बसपा के बीच बंटता था इस बार आधा झुकाव आप की ओर लग रहा है। वैसे इस क्षेत्र में 23 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं जिनमें बसपा के प्रदीप वालिया भी एक हैं पर मुख्य मुकाबला जेटली व कैप्टन में ही है। बादल खानदान के दो सूरमाओं के बीच बठिंडा में कड़ा मुकाबला होने जा रहा है। एक मौजूदा सांसद मैदान में ताल ठोंक ही रहे हैं तो बादल परिवार से अलग हुए कुनबे के एक अन्य सदस्य भी बठिंडा की हाई प्रोफाइल सीट पर अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं। यह सीट सत्तारूढ़ अकाली दल का मजबूत किला मानी जाती है जहां एक हमनामे उम्मीदवार के प्रवेश ने चुनावी जंग को पेचीदा बना दिया है। इस सीट से मौजूदा सांसद अकाली दल की हरसिमरत कौर और उनके देवर मनप्रीत सिंह बादल एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। पूर्व वित्तमंत्री और पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के संस्थापक मनप्रीत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। मनप्रीत भाकपा और शिरोमणि अकाली दल (बरनाला) के समर्थन से अपने चचेरे भाई और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर पर हमला करने में कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। पाकिस्तान की सीमा से लगा गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र फिल्म और सियासत के जबरदस्त घालमेल के कारण हॉट सीट बन गया है। फिल्मी दुनिया में लम्बे समय तक बादशाहत चलाने वाले फिल्म स्टार विनोद खन्ना एक बार फिर से भाजपा के उम्मीदवार हैं। उनका सामना पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और मौजूदा सांसद प्रताप सिंह बाजवा से है। इनके बीच कई दलों में रह चुके सुच्चा सिंह छोटेपुर आम आदमी पार्टी की टोपी पहनकर मैदान में हैं। विनोद खन्ना और प्रताप सिंह बाजवा दोनों को लेकर सबसे ज्यादा असंतुष्टि की बात यह है कि वे जीतने के बाद गायब हो जाते हैं। इलाके से दूरी बनाने और उपेक्षित छोड़ देने का आरोप झेल रहे विनोद खन्ना ने कुछ समय पहले पठानकोट के सैली रोड पर एक कोठी खरीद ली है। उनकी चुनावी मुहिम इसी कोठी में तय हो रही है। कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है आनंदपुर साहिब की सीट। पांचवां तख्त होने के कारण आनंदपुर साहिब सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। कांग्रेस ने पार्टी में अहम भूमिका निभाने वाली अम्बिका सोनी को अकाली दल के प्रेम सिंह चन्दूमाजरा के मुकाबले खड़ा करके रोचक स्थिति बना दी है। इस सीट पर पिछले चुनावों में कांग्रेस के रवनीत बिट्टू ने अकाली दल के सचिव दलजीत चीमा को हराया था। स्वर्गीय संजय गांधी से लेकर अब तक गांधी परिवार के सबसे निकट लोगों में से एक श्रीमती सोनी के लिए न केवल इस बार मुकाबला तकड़ा है बल्कि कुछ हद तक उनकी और उनकी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल भी बन गया है। पंजाब की संगरूर सीट पर हास्य कलाकर भगवंत मान के मैदान में उतरने से मुकाबला रोचक और त्रिकोणीय हो गया है। वह आप के प्रत्याशी हैं। इस सीट पर कांग्रेस और अकाली दल-भाजपा गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर रहती थी। कांग्रेस ने राहुल गांधी ब्रिगेड के विजय इन्दर सिंगला को मैदान में उतारा है तो शिरोमणि अकाली दल ने अपने वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींढसा को सिंगला के खिलाफ मैदान में उतारा है। संगरूर लोकसभा सीट दो जिलोंöसंगरूर और बरनाला में बंटी हुई है। 30 अप्रैल को पंजाब की 13 सीटेंöगुरदासपुर, अमृतसर, खंडूर साहिब, जालंधर, होशियारपुर, आनंदपुर साहिब, लुधियाना, फतेहपुर साहिब, फरीदकोट, फिरोजपुर, बठिंडा, संगरूर व पटियाला में वोट पड़ेंगे। मिशन मोदी 272+ के लिए पंजाब के यह चुनाव महत्वपूर्ण हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी के नामांकन रोड शो से बौखलाई आप व कांग्रेस

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के गुरुवार को वाराणसी में हुए रोड शो से दोनों कांग्रेस और आप बौखला गई हैं। इन्हें यकीन ही नहीं हो रहा कि इतना भव्य शो कैसे हुआ? मोदी के नामांकन भरने के समय में मानो सारा काशी ही उमड़ पड़ा हो। भारी जनसैलाब के चलते मलदहिया चौक से जिला मजिस्ट्रेट ऑफिस पहुंचने में मोदी को करीब दो घंटे लगे। दो घंटे की देरी से शुरू हुए इस रोड शो में दो लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए। सड़कों पर, मकान-दुकान की छतों पर भारी जनसैलाब मोदी के समर्थन में नारे लगाते नजर आया। मोदी 215 मिनट पर नामांकन ऑफिस से निकले। इससे पहले नामांकन दाखिल करने के लिए मोदी को मजिस्ट्रेट के यहां करीब आधा घंटा इंतजार करना पड़ा। इससे पहले मेराज खालिद नूर नाम के निर्दलीय उम्मीदवार खड़े थे। नियमानुसार उन्हें पहले मौका दिया गया अपना नामांकन भरने का। मेराज वही शख्स हैं जो पूर्व में आतंकी लादेन जैसा चेहरा-मोहरा बनाकर लालू यादव व पासवान के साथ चुनाव प्रचार कर चुके हैं और अपने आपको ओसामा कहते हैं। मोदी ने रोड शो से पहले कोई भाषण नहीं दिया जिससे वहां घंटों से इंतजार कर रही भीड़ को थोड़ी निराशा हुई। इससे एक दिन पहले यानि बुधवार को आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपने लाव लश्कर के साथ अपना नामांकन पत्र भरा था। फर्प बस इतना था कि केजरीवाल के रोड शो में हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया और मोदी के में लाखों ने। इसी से आप बौखला गई और दोनों कांग्रेस और आप बैकफुट पर आ गई। पहले बात करते हैं आप की। आप सूत्रों की मानें तो केजरीवाल के रोड शो के बाद मोदी के रोड शो से पार्टी के वालंटियरों में उत्साह की भारी कमी आई है। अपने संयोजक अरविंद केजरीवाल के रोड शो के जरिये भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश की थी, लेकिन मोदी के रोड शो में उमड़ी लाखों की भीड़ ने केजरीवाल कैम्प पर चौतरफा दबाव बढ़ा दिया है। आप के रणनीतिकारों को चिंता इस बात को लेकर सताने लगी है कि अगर मोदी के रोड शो का असर शीघ्र खत्म नहीं हुआ तो केजरीवाल के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है। रही बात कांग्रेस की तो पार्टी प्रवक्ता आनंद शर्मा ने मोदी के रोड शो को आचार संहिता का खुला उल्लंघन बताते हुए कहा कि गुरुवार को जिन 117 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा था उनमें मतदाताओं को प्रभावित करने का भाजपा ने प्रयास किया और इस रोड शो का आयोजन किया। कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने बाकायदा चुनाव आयोग से इसकी शिकायत भी की। हमें दुख हुआ कि कांग्रेस ऐसी बेतुकी हरकतें कर रही है। पहली बात तो हर उम्मीदवार अपने नामांकन के समय लाव-लश्कर के साथ ही जाता है चाहे चुनाव एमपी का हो या सरपंच का या विधायक का। दूसरी बात एक दिन पहले अरविंद केजरीवाल का रोड शो हुआ। सबसे दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन गुरुवार को जिस समय मोदी अपना रोड शो कर रहे थे उसी समय लखनऊ में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी के लिए रोड शो कर प्रचार कर रहे थे। अगर मोदी दोषी हैं तो केजरीवाल और राहुल भी कम दोषी नहीं हैं। दोषी सही मायने में अगर कोई है तो वह चुनाव आयोग है। इस बार चुनावी प्रक्रिया लगभग सवा महीने लम्बी है। नामांकन भरने की तिथियां चुनाव आयोग ने तय की हैं। न तो किसी पार्टी ने तय की है और न ही किसी उम्मीदवार ने। चुनाव आयोग को भलीभांति मालूम था कि मतदान के दिनों में नामांकन  भरने की तिथियां भी हैं। इसमें पार्टी या उम्मीदवार का क्या दोष है कि इधर नामांकन का रोड शो चल रहा है तो उधर मतदान हो रहा है। कांग्रेस उसी दिन लखनऊ में राहुल गांधी के रोड शो को क्यों नहीं देखती। चुनाव आयोग को चाहिए कि भविष्य में वह चुनाव प्रक्रिया और तिथियों, नियमों में संशोधन करे। भविष्य में वह यह कर सकती है कि जिस दिन मतदान हो उस दिन नामांकन न भरा जाए। नामांकन भरने की तिथि और मतदान की तिथि एक दिन नहीं होनी चाहिए। मुझे नहीं मालूम कि क्या चुनाव आयोग ऐसा करेगा, उसे ऐसा करने में कोई कठिनाई होगी? पर अगर भविष्य में इसका ध्यान रखा जाए तो ऐसे विवादों से बचा जा सकेगा। वैसे अंत में चलते-चलते पाठकों को बता दें कि सट्टा बाजार लोकसभा चुनाव-2014 चुनाव के बारे में क्या दांव लगा रहा है। सट्टा बाजार में सबसे ज्यादा फायदे में भाजपा चल रही है। सटोरिए मानकर चल रहे हैं कि इन चुनावों में भाजपा को 240 सीटें मिल जाएंगी और वह कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों के सहयोग से एनडीए की सरकार बना लेगी। सबसे खराब हालत `आप' की है उसे सट्टेबाज केवल 4-5 सीटें दे रहे हैं। रोचक बात यह है कि जिस दिन केजरीवाल दिल्ली में सीएम बने थे उस दिन सट्टेबाज मान रहे थे कि वे लोकसभा में 30 सीटें जीत सकते हैं। दिल्ली की केवल एक सीट पर ही आप की बढ़त मानी जा रही है बाकी सभी सीटों पर भाजपा जीत रही है। हरियाणा में 10 में से 6-7 सीटें भाजपा को दे रहे हैं। सेंटर फॉर मीडिया द्वारा कराए गए एक अन्य अध्ययन में पिछले पांच साल में भारत में विभिन्न चुनावों के दौरान 1,50,000 करोड़ रुपए से अधिक का धन खर्च किया गया है।

Saturday 26 April 2014

एके-47 राइफल मामले में घिरे कांग्रेसी उम्मीदवार अजय राय

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व उत्तर प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने वाराणसी से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार विधायक अजय राय पर गंभीर आरोप लगाए हैं। लखनऊ में भाजपा प्रदेश मुख्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस के पास स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों का टोटा है।  शाह ने राय पर एके-47 राइफल सौदे में शामिल होने के संबंध में राहुल और सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाए। पूर्व सांसद शहाबुद्दीन व पूर्व विधायक अजय राय द्वारा आतंकियों से एके-47 जैसे स्वचालित हथियारों की खरीद मामले में 11 वर्ष पहले बिहार के तत्कालीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डीपी ओझा ने 87 पन्नों की रिपोर्ट तत्कालीन गृह सचिव को सौंपी थी। वाराणसी से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय अवैध हथियारों की तस्करी में शामिल रहे हैं। बिहार के कई कुख्यातों से संबंध रखने वाले अजय राय की एक जमाने में अंडरवर्ल्ड में दहशत कायम थी। कश्मीर से आने वाले हथियारों की खेप में से चार एके-47 राइफल अजय राय ने  ली थीं। इसका खुलासा डेढ़ दशक पहले 50 हजार के इनामी कुख्यात फौजी उर्प नंदगोपाल पांडे ने किया था। रोहताश के विक्रम गंज थाने में सात फरवरी 1999 को दिए बयान में फौजी ने कई सनसनीखेज खुलासे किए थे। जिसमें महत्वपूर्ण यह भी है कि सीवान के बाहुबली पूर्व सांसद शहाबुद्दीन, आरा के सुनील पांडेय, रांची के अनिल शर्मा और अजय राय के बीच रिश्ते थे। श्रीनगर से आने वाले अत्याधुनिक हथियारों की खेप में सबका हिस्सा होता था। आम आदमी पार्टी के वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे अरविंद केजरीवाल ने  कांग्रेसी उम्मीदवार अजय राय पर हथियारों के अवैध कारोबार में शामिल होने की जांच की मांग की है। आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि भाजपा नेता अमित शाह ने राय पर एके-47 राइफल के अवैध कारोबार में शामिल होने का आरोप लगाया है। मगर इसमें जरा-सी भी सच्चाई है तो इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि अजय राय प्रकरण आज पूरे देश के सामने है। आश्चर्यजनक यह है कि इस पर केंद्र सरकार ने संज्ञान क्यों नहीं लिया और अब तक सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने इस मामले में चुप्पी क्यों साध रखी है। इस प्रकरण में उन्हें स्पष्टीकरण देना चाहिए। उधर अजय राय ने कहा है कि भाजपा नेता और यूपी के प्रभारी अमित शाह के अनर्गल आरोप पर वे चुनाव आयोग जाएंगे। श्री राय ने संवाददाताओं से कहा कि अमित शाह द्वारा मेरे चरित्र हनन की कोशिश की गई है और यह भाजपा की बौखलाहट का संकेत है। उन्होंने कहा कि कोई भी सुरक्षा एजेंसी मेरे खिलाफ लगे आरोप साबित करे तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा। मजेदार बात तो यह है कि यही अजय राय भापा में भी रह चुके हैं। भाजपा ने तब इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया? नलिन कोहली ने स्पष्ट जवाब न देकर कहा कि इस मामले की संबंधित रिपोर्ट केंद्र सरकार के पास है, इसलिए जवाबदेही उसकी है। देखना यह है कि ऐसी खबरों का वाराणसी चुनाव में वोट पर कोई असर पड़ेगा या नहीं? चुनाव के दौरान अकसर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता ही रहता है।

-अनिल नरेन्द्र

एक दामाद हैं राबर्ट वाड्रा और एक दामाद थे फिरोज जहांगीर गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष और अपनी मां सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र रायबरेली में चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका ने शायद पहली बार अपने पति राबर्ट वाड्रा पर लग रहे आरोपों का बचाव किया। प्रियंका ने एक नुक्कड़ सभा में कहा कि मेरे परिवार (वाड्रा परिवार) को जलील किया जा रहा है। लेकिन मैंने इंदिरा गांधी से सीखा है कि जब दिल में सच्चाई होती है, इरादे सही होते हैं तो कवच बन जाते हैं। मुझे  जितना जलील किया जाएगा, उतनी मजबूती से लड़ूंगी। यह सिर्प एक पत्नी की भावुक पीड़ा नहीं हो सकती बल्कि एक राजनीतिक जवाबदेही भी लगती है। वोट की खातिर हर विरोधी पार्टी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती है। लेकिन अंतिम फैसला तो जनता की अदालत में ही होता है। प्रियंका जनता की अदालत में अपने पति को पाक-साफ बताने की कोशिश जो कर रही हैं। उसके पीछे यह मंशा भी साफ है कि वह अब न तो इस मुद्दे पर चुप बैठेंगी और न ही इसे बर्दाश्त करेंगी। हम प्रियंका का दुख समझ सकते हैं और महसूस भी करते हैं। प्रियंका किससे विवाह करती हैं यह उनका और सोनिया गांधी परिवार का निजी मामला है और इसमें किसी को कुछ कहने का हक नहीं पर जब उनके पति और सोनिया गांधी के दामाद पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने राजनीतिक प्रभाव का गलत फायदा उठाते हुए करोड़ों की सम्पत्ति बना ली है तो मामला गंभीर हो जाता है, मामला भ्रष्टाचार का हो जाता है। यह आरोप हम नहीं लगा रहे दुनिया के बहुप्रतिष्ठित व विश्वसनीय माने जाने वाले अमेरिका के अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लगाए हैं। अरविंद केजरीवाल तो पहले ही यह आरोप लगा चुके हैं। अब समाचार पत्र ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में वाड्रा के पास करीब 252 करोड़ की जमीन-जायदाद थी। उसी साल वाड्रा ने 72 करोड़ की जमीन बेची थी यानि वाड्रा के पास करीब 324 करोड़ रुपए की जमीन जायदाद थी। अखबार ने कम्पनी की ऑडिट रिपोर्ट, लैंड रिकार्ड और प्रॉपर्टी के जानकारों के हवाले से राबर्ट की सम्पत्ति का पूरा विवरण पेश किया है। रिपोर्ट में वाड्रा की लैंड डील्स का खुलासा किया गया है और राबर्ट वाड्रा ने इतनी तरक्की अपने राजनीतिक  कनेक्शनों से की है। एक दामाद फिरोज जहांगीर गांधी भी थे (राजीव के पिता)। उस दौर में विकासशील देशों के एकछत्र नेता और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दामाद थे। फिरोज गांधी कांग्रेस के सांसद थे और अपनी सरकार को परेशान किया, विपक्ष को मुद्दा दिया लेकिन उन पर कभी अंगुली नहीं उठ सकी। फिरोज जहांगीर गांधी ने भाई-भतीजों को राजनीति में लाने का काम कभी नहीं किया। जमीनों की न तो भूख थी और न ही करोड़ों-अरबों के मालिक बनने की चाह। फिरोज गांधी ने तमाम काम किए। रायबरेली के कॉलेज से लेकर दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया तक उनकी ही देन है। लेकिन एक दामाद हैं कारोबारी राबर्ट वाड्रा। इस अकेले व्यक्ति ने कांग्रेस जैसी पार्टी को जितना नुकसान पहुंचाया है वह राहुल गांधी की एक दशक की राजनीतिक उपलब्धियों, सोनिया गांधी के त्याग से कहीं ज्यादा है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस मामले पर अपनी-अपनी टिप्पणियां की हैं। अमृतसर से अरुण जेटली ने प्रियंका और कांग्रेस नेताओं के मोदी पर निजी हमले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी की वैवाहिक स्थिति के बारे में क्यों चर्चा की जा रही है? बिना किसी सबूत के गुजरात की युवती की जासूसी करने के आरोप क्यों लगाए जा रहे हैं? राबर्ट वाड्रा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराए जाने संबंधी सवाल के जवाब में जेटली ने कहा यह भी होगा, 16 मई को रिजल्ट आने दो। अभी तो कांग्रेस पार्टी ने जांच एजेंसियों को इन मामलों की जांच के लिए रोका हुआ है। 16 मई के बाद कानून स्वतंत्र होकर अपना काम करेगा। इधर इन सब विवादों के बीच एक अधिवक्ता एमएल शर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है और इसे हाई कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया है। हाई कोर्ट ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा सहित अन्य रीयल एस्टेट डेवलपर्स को हरियाणा में नियमों का उल्लंघन कर लाइसेंस देने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई 30 अप्रैल से होगी। याचिका मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग की खंडपीठ ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है। श्री शर्मा ने अपनी याचिका में तर्प रखा कि हरियाणा में 21,366 एकड़ कृषि भूमि पर रिहायशी कॉलोनी बनाने और भवन निर्माण करवाने के लिए विभिन्न भवन निर्माताओं को संवैधानिक नियमों का पालन किए बिना ही लाइसेंस दिया गया है। इस निर्णय से राज्य को 3.9 लाख करोड़ का राजकोषीय घाटा हुआ है। शर्मा का आरोप है कि कॉलोनियां  बनाने के लिए लाइसेंस का आवंटन हरियाणा विकास एवं शहरी क्षेत्रों के विनियमन अधिनियम 1975 का उल्लंघन कर प्रदान किया गया है। याचिका में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) शशि कांत शर्मा द्वारा तीन जून 2013 को सौंपे गए उस पत्र को भी खारिज करने की मांग की गई जिसमें वाड्रा से संबंधित स्काई लाइट हॉस्पिटेलिटी प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए लाइसेंस की जांच को वापस लेने का आरोप है। हम उम्मीद करते हैं कि हाई कोर्ट में इस मामले पर दूध का दूध, पानी का पानी सामने आ जाएगा। जो लोग आरोप लगा रहे हैं उन्हें अदालत में भ्रष्टाचार साबित करना होगा। दूसरी ओर राबर्ट वाड्रा को भी अपनी सफाई देने का पूरा मौका मिलेगा और शायद प्रियंका का दुख दूर हो जाए?

Friday 25 April 2014

लोकसभा 2014 चुनाव और मुस्लिम मतदाता?

लोकसभा चुनाव 2014 में एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि देश के मुसलमानों ने किसको वोट दिया और किसको नहीं देने का फैसला किया है? मुंबई के एक अंग्रेजी समाचार पत्र ने चार अप्रैल के अपने अंक में भाजपा नेता किरीट सोमैया का यह बयान छापा है कि मैंने बहुत कोशिश की मगर मुस्लिम मतदाताओं को राजी करने में मुझे अब तक सफलता नहीं मिल सकी है। याद रहे कि किरीट सोमैया सिर्प एक बार 13वीं लोकसभा के लिए मुंबई नॉर्थ ईस्ट से चुने गए थे। कोई दूसरा मौका उन्हें नहीं मिला जिसका एक बड़ा कारण मुस्लिम समुदाय की उनसे दूरी है। इस सन्दर्भ में कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि जो हाल मुंबई नॉर्थ ईस्ट लोकसभा क्षेत्र में किरीट सोमैया का है, लगभग वही हाल देशभर के उन भाजपा प्रत्याशियों का होगा जो 16वीं लोकसभा की सदस्यता के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी के नामांकन से भाजपा और मुस्लिम समुदाय की दूरी जो पहले भी कम नहीं थी और भी बढ़ गई है। रही-सही कसर गिरिराज सिंह, प्रवीण तोगड़िया सरीखे के नेता पूरी कर रहे हैं। कट्टर विचारधारा के मुस्लिमों में आज इमरान मसूद सरीखे के लोग हीरो बन गए हैं। मोदी को कोई तो गाड़ रहा है तो कोई उनकी बोटी-बोटी करने की धमकी दे रहा है। इसमें शायद ही किसी को अब सन्देह हो कि मुस्लिम समुदाय के सारे लोग चाहे वे पढ़े-लिखे हों या थोड़ा-बहुत लिखना-पढ़ना जानते हों, अमीर हों या गरीब, निजी कारोबार करते हों या नौकरशाह हों सब कांग्रेस से नाराज हैं। यह नाराजगी इतनी ज्यादा है कि कोई भी व्यक्ति बहुत आसानी से कांग्रेस के कारनामे गिना सकता है। हाल ही में सम्पन्न हुए चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर क्षेत्र की 10 सीटों पर जो मतदान हुआ उसमें मुस्लिम मतदाताओं ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। यहां वोट प्रतिशत बढ़ने का एक कारण यह भी रहा। मुसलमानों में समाजवादी पार्टी से मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर इस बार नाराजगी है कि उन्होंने न तो कांग्रेस को वोट दिया और न ही सपा को। उन्होंने बसपा और आम आदमी पार्टी को अपना वोट देना ही बेहतर समझा। हालांकि मेरा मानना यह भी है कि मुसलमानों के एक तबके ने नरेन्द्र मोदी को भी वोट दिया है। मुसलमानों का एक पढ़ा-लिखा तबका मोदी को एक मौका देने के पक्ष में मुझे दिखता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रतिष्ठित शिया उलेमा मौलाना कल्बे जव्वाद व मदनी के बयान भी इस ओर इशारा करते हैं। आम आदमी पार्टी में दूसरे समुदायों के लोगों की तरह मुस्लिम समुदाय की भी रुचि बढ़ी मगर अपनी जल्दबाजी में उसने बहुत से लोगों को मायूस किया है। अगर आप धैर्य से काम लेती, दिल्ली की सरकार को ठीक ढंग से चलाती, अच्छे शासन की मिसाल देती और 2019 के चुनावी दंगल में पूरी तत्परता से उतरती तो बात दूसरी होती। लेकिन उसने सात सीटों वाली दिल्ली को छोड़कर 543 सीटों वाली लोकसभा की तरफ उड़ान भरी और यह नहीं देखा कि जान कितनी छोटी, पंख कितने कमजोर और चुनावी आसमान कितना विशाल है। मुस्लिम वोटर यह सब देख रहा है। यही कारण है कि मुसलमान अब भी असमंजस में हैं और उसके पास रणनीतिक वोटिंग को छोड़कर कोई दूसरा विकल्प नहीं है अर्थात मुस्लिम वोट सपा, बसपा, तृणमूल, आप और कांग्रेस (सोनिया-इमाम बुखारी मुलाकात के कारण नहीं) आदि पार्टियों के खाते में जाएगा। इस वक्त मुस्लिम तेवर साफ गवाही दे रहे हैं कि वे इस चुनाव में बड़ी संख्या में मतदान के लिए अपने घरों से निकलेंगे और दिल से ज्यादा दिमाग से वोट देने की नीति अपनाएंगे। अधिकतर जगहों पर उनका टारगेट एक ही होगा...भाजपा।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी के मिशन 272+ में सबसे बड़ी बाधा हैं यह तीन देवियां

पिछले एक दशक से ज्यादा समय भाजपा केंद्र में विपक्ष की भूमिका निभाती रही है। इन 10 वर्षों में पहली बार भाजपा को उम्मीद की किरण नजर आ रही है और उम्मीद की यह किरण नरेन्द्र मोदी हैं।  नरेन्द्र मोदी ने सितम्बर 2013 से ही चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था और अब तक 500 से ज्यादा सभाएं कर चुके हैं। अगर भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव में भी नहीं जीतती तो कई वर्षों के लिए फिर विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा। नरेन्द्र मोदी इज द बैस्ट बैट फॉर भाजपा। नरेन्द्र मोदी को केंद्र की सत्ता में पहुंचने के लिए दिन-रात एक कर अगले चार चरणों के चुनाव में ये तीन देवियों की चुनौती से पार होना होगा जो उनके चुनावी रथ को रोकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। अगले चार चरणों में जिनमें एक चरण 24 अप्रैल को पूरा हो गया है ये उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की कुल 161 सीटों में से अधिकतम सीटों पर मतदान है और यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें भाजपा की झोली में डालने के लिए मोदी को ममता बनर्जी, जयललिता और मायावती की चुनौती को तोड़ना होगा। अपने अक्खड़ विचारों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए मशहूर ममता बनर्जी का  प्रभाव आज भी पश्चिम बंगाल में बरकरार है। 42 लोकसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में 2009 में तृणमूल कांग्रेस को 19, कांग्रेस को छह तथा वाम दलों को 16 सीटें मिली थीं। इस बार अधिकांश स्थानों पर भाजपा को तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी तथा कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है। 39 लोकसभा क्षेत्रों वाले तमिलनाडु में पहली बार कमल खिलाने के लिए भाजपा डीएमडीके समेत पांच दलों के साथ तालमेल कर चुनाव मैदान में उतरी है। पिछले लोकसभा चुनाव में द्रमुक को 19, अन्नाद्रमुक को नौ तथा कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं। वर्ष 1991, 2001, 2002 और 2011 में इस राज्य की मुख्यमंत्री बनीं जयललिता की पूरी कोशिश है कि भाजपा यहां पैर नहीं जमा पाए। दूसरी ओर दक्षिण में परम्परागत रूप से कमजोर पार्टी मानी जाती भाजपा को इस बार पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। पार्टी को उम्मीद है कि वह दक्षिण में अपने सहयोगियों के साथ 25-30 सीटें तो जीत ही लेगी। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में लोगों ने देखा है कि पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में स्थानीय भाषा का इस्तेमाल किया। पिछले आठ महीनों में मोदी ने इन राज्यों में कई रैलियां की हैं। इन तीनों राज्यों में पार्टी ने स्थानीय ताकतों के साथ गठबंधन किया है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू कहते हैं कि हम दक्षिण भारत से इस बार 50 सीटें जीत लेंगे। 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश पर तमाम प्रमुख पार्टियों की नजरें जमी हुई हैं। भाजपा ने इस राज्य को सबसे महत्वपूर्ण माना है और मोदी न केवल यहां से चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि जाति की राजनीति को लेकर चर्चित यहां के लोगों को अपनी पार्टी के पक्ष में गोलबंद करने के लिए अधिक समय दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी के कब्जे वाले इस राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने लगभग दो साल पहले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी और इसके लिए उम्मीदवारों का चयन भी कर लिया था। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा को यहां से 23, कांग्रेस को 21 और भाजपा को 10 सीटें मिली थीं। बसपा के 19 प्रत्याशी विजयी हुए थे और 46 स्थानों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। भाजपा को नौ तथा सपा को 16 तथा कांग्रेस को सात क्षेत्रों में दूसरा स्थान मिला। भाजपा के यूपी प्रभारी अमित शाह को उम्मीद है कि 2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी को 50 सीटें मिलेंगी। मोदी के मिशन 272+ में सबसे बड़ी बधाए हैं यह तीन देवियां।

Thursday 24 April 2014

छठा चरण दांव पर 117 सीटें और राहुल-मोदी व मुलायम का भविष्य

पांचवें चरण की तरह छठे चरण में भी राहुल और मोदी के बीच कड़ा मुकाबला है। 24 अपैल को होने वाले चुनाव में 117 सीटें दांव पर हैं। यह सीटें अधिकांश उन राज्यों में है जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। पिछले चरण की तरह यह चरण भी भविष्य की राजनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है और यही वजह है कि इस चरण में भी हमले और तीखे हो गए हैं। छठे चरण के महत्व की बात करें तो उसमें उत्तर पदेश (10 सीट), महाराष्ट्र (19), मध्य पदेश (10), बिहार (7), छत्तीसगढ़ (6), राजस्थान (5) व झारखंड (4) में कांग्रेस-भाजपा का सीधा मुकाबला है। पहले बात करते हैं उत्तर पदेश की कुछ सीटों की। आगरा में दो लोकसभा सीटें हैं जिनमें से फतेहपुर सीकरी इन दिनों हॉट सीट बनी हुई है। इस सीट पर सपा ने कैबिनेट मंत्री की पत्नी को, बसपा ने पूर्व ऊर्जा मंत्री की पत्नी को, भाजपा ने पूर्व मंत्री को और रालोद ने राज्यसभा सांसद अमर सिंह पर दांव लगाया है। फिल्मी सितारों के पचार में शामिल होने से यह सीट चर्चा का विषय बन गई है। गत दिनों ताजनगरी पहुंचे मुलायम सिंह यादव को भी कहना पड़ा कि सितारों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है जिस पर पलटवार करते हुए अमर सिंह ने कहा कि सपा मुखिया द्वारा फिल्मी सितारों का अपमान किया जा रहा है। सितारे रुपए लेकर नहीं, निजी संबंधों पर उनके लिए पचार कर रहे हैं।  विधानसभा के आंकड़ों पर नजर डालें तो फतेहपुर सीकरी सीट पर जाट, ठाकुर व दलित मतदाताओं का ध्रुवीकरण तय है। अब तक इस सीट पर पिछड़ा वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। मुकाबला कांटे का है। मथुरा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में कड़े मुकाबले का सामना कर रहे वर्तमान सांसद जयंत चौधरी ने स्वीकार किया है कि उनकी पतिद्वंद्वी एवं गुजरे जमाने की बॉलीवुड ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी की छवि लोगों को आकर्षित कर रही है। राष्ट्रीय लोकदल के 35 वषीय नेता और पाटी पमुख अजीत सिंह ने अपनी मुख्य पतिद्वंद्वी भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि गंभीर राजनीति को गंभीर लोगों की जरूरत है न कि मेहरों की। यह आसान नहीं हैं, यह किसी फिल्म में भूमिका निभाने जैसा नहीं है। आपको अपना दिल खोलना होता है और अपने लोगों के बीच रहना होता। मथुरा में 17 लाख मतदाता और 2,300 गांव हैं। हेमा जयंत को कितनी चुनौती दे सकती हैं पता चल जाएगा। उत्तर पदेश की संभल, मैनपुरी, एटा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज व अकबरपुर में भाजपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ी है। यह सपा और बसपा का गढ़ रहा है। नरेंद्र मोदी फेक्टर कितना असर डालेगा यह देखना होगा। मोदी के मिशन 272+ के लिए इन सीटों पर जीत जरूरी है। लोकसभा चुनाव को लेकर राजस्थान में लड़ाई अब मात्र पांच सीटों पर सिमट गई है। वर्तमान में इनमें से एक भी सीट पर भाजपा का सांसद नहीं है वहीं कांग्रेस के यहां से चार सांसद हैं और एक सीट पर निर्दलीय किरोड़ी लाल मीणा सांसद थे लेकिन अब वे विधानसभा चुनाव जीतकर सांसद पद को खाली कर चुके हैं। कांग्रेस अपने पभाव की सीटों को कब्जे में रखने के लिए जी तोड़ कोशिश में लगी है तो भाजपा इन सभी सीटों को अपनी झोली में डालना चाह रही है। सवाई माधोपुर, अलवर, महलपुर, धौलपुर-करौली सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दावा कर रही हैं कि भाजपा राजस्थान की सारी सीटें जीतेगी। इन 25 सीटों में यह पांच भी शामिल हैं। उन्हें अपने काम व मोदी लहर पर पूरा विश्वास है। मध्य पदेश की विदिशा सीट पर भाजपा दिग्गज नेता सुषमा स्वराज की राह इस बार आसान नहीं है। यह चुनाव सुषमा के लिए वॉक ओवर नहीं लगता। मुकाबला दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह के साथ है जो पड़ोस की राजगढ़ सीट से पांच बार सांसद रह चुके है। सुषमा अपने वोटरों को टारगेट देती हैं इस बार उन्हें चार लाख से अधिक मतों से विजयी बनाना। हालांकि यह भाजपा का गढ़ है जहां से अटल बिहारी वाजपेयी जीते फिर पांच बार शिवराज सिंह चौहान जीते सो सुषमा जी की जीत तो सुनिश्चित है। देखना बस इतना है कि कितने मार्जिन से जीतती हैं। झारखंड की दुमका संसदीय सीट पर इस बार सूरमाओं की भिड़ंत है। दो संसदीय छत्रप झामुमो पमुख शिबू सोरेन व झाविमो सुपीमो बाबूलाल मरांडी के लिए यह सीट आन-बान की लड़ाई बन गई है। सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पिता की जीत के लिए यहां सबसे ज्यादा समय दे रहे हैं। 1998 के बाद यह पहला मौका होगा जब शिबू सोरेन के सामने बाबू लाल मरांडी हैं। पश्चिम बंगाल की रामगंज लोकसभा सीट पर एक दिलचस्प मुकाबला हो रहा है। यहां देवर-भाभी के बीच मुकाबला हो रहा है। कांग्रेस ने यहां पूर्व केंद्रीय मंत्री पियरंजन दास मुंशी की पत्नी दीपा मुंशी को फिर मैदान में उतारा है तो तृणमूल कांग्रेस ने पियरंजन के भाई सत्यरंजन दास मुंशी को टिकट दिया है। पियरंजन की राजनीतिक विरासत पाने के लिए देवर-भाभी आमने-सामने हैं। अभिनेता नीमू मौसिक भाजपा पत्याशी हैं तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पाटी( माकपा) ने यहां से पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम को मैदान में उतारा है। ममता की पतिष्ठा अगर दांव पर है तो कांग्रेस के लिए भी इस सीट का महत्व कम नहीं। पश्चिम बंगाल में मोदी लहर पर टिकी हैं भाजपा की उम्मीदें। 24 अपैल को उत्तर पदेश में तीसरे चरण के चुनाव में ब्रज और मध्य यूपी की जिन 12 सीटों पर मुकाबला होना है उनमें सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पाटी और भाजपा दोनों के सामने है। इस चरण में खुद सपा सुपीमो मुलायम सिंह यादव मैदान में हैं जबकि उनके परिवार के दो सदस्यों की भी पतिष्ठा दांव पर है। सपा सुपीमो के सामने कन्नौज से बहू डिंपल यादव और फिरोजाबाद से भतीजे अक्षय यादव को जिताने की चुनौती है ही, साथ ही इस चरण में सबसे ज्यादा सीटों वाले अपने गढ़ को भी बचाने की जिम्मेदारी उन पर है। तीसरे चरण की यह 12 सीटें सपा का गढ़ मानी जाती है क्योंकि सपा सुपीमो जिस सैफई गांव के हैं वह इसी इलाके में है। पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा चार सीटें यहीं से सपा को मिली थीं। दूसरी ओर भाजपा रणनीतिकारों का टारगेट है उत्तर पदेश में 80 में से 50 सीटें जीतने का। भले ही टिकट देने में गलती हो गई या जातिगत गणित का ध्यान नहीं रखा गया लेकिन पाटी कामयाब होती दिख रही है। भाजपा ने शुरुआत में 1998 वाला टारगेट यूपी के लिए रखा था जब पाटी को 85 में 58 सीटें मिली थीं। एक सीनियर लीडर ने कहा कि अमित शाह ने छह महीने पहले यूपी का चार्ज लेने के साथ ही मिशन यूपी पर काम शुरू कर दिया था। शाह के एक करीबी ने कहा कि यूपी में भाजपा हमेशा वोटों के 58 फीसदी में ही लड़ाई करती रही है क्योंकि 42 फीसदी ने तो हमे कभी परंपरागत रूप से वोट किया ही नहीं। इनमें मुसलमान, यादव और दलित शामिल हैं। इन 58 फीसदी में सबसे बड़ा हिस्सा ओबीसी का है, इसलिए हमने 28 टिकट ओबीसी को दिए हैं। पाटी ने 17 ठाकुरों के मुकाबले 19 ब्राह्मणों को टिकट दिए हैं। मोदी के मिशन 272+ के लिए 24 अपैल को होने वाले चुनाव मेक और ब्रेक की तरह हैं। अगर भाजपा को इस चरण में सफलता मिलती है तो मिशन 272+ तक पहुंचना आसान हो जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday 23 April 2014

महबूबा मुफ्ती, संजय निरूपम व अक्षय यादव के भाग्य का 24 को फैसला

जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस  गठबंधन सरकार से मोहभंग की स्थिति अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र से दिख रही है। सरकार में शामिल दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता आपस में लड़ रहे हैं और पूरे सूबे में सत्ता विरोधी लहर दिख रही है। ऐसे में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस के लिए अनंतनाग सीट को बरकरार रखने की लड़ाई मुश्किल लग रही है। पीपुल्स डेमोकेटिक पार्टी यानि पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने दक्षिण कश्मीर की इस सीट से चुनाव लड़ रहे मौजूदा सांसद डॉ. महबूब बेग के खिलाफ उतर कर मुकाबले को रोमांचक बना दिया है। अनंतनाग सीट पर 24 अप्रैल को मतदान होगा। अनंतनाग को पीडीपी का गढ़ भी माना जाता है। दक्षिण कश्मीर के 16 विधायकों में से 12 पीडीपी के हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में डॉ. बेग ने कांग्रेस के समर्थन से पीडीपी के उम्मीदवार पीर मुहम्मद हुसैन को 5224 के मामूली अन्तर से हराया था। उस समय लोकसभा के चुनाव विधानसभा चुनावों से पहले हुए थे और पीडीपी विपक्ष में थी। लेकिन इस बार पीडीपी उमर अब्दुल्ला सरकार के खिलाफ बन रही लहर का फायदा उठाने को तैयार है, साथ ही महबूबा मुफ्ती के सीधे मैदान में उतरने से उनका पलड़ा भारी हो गया है। महबूबा को हराना मुश्किल है। जम्मू-कश्मीर की वादियों से अब चलते हैं देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई की ओर। महाराष्ट्र की उत्तर मुम्बई लोकसभा सीट पर 24 अप्रैल को मतदान होगा और यहां कांग्रेस के वर्तमान सांसद संजय निरूपम को भाजपा के गोपाल शेट्टी से बड़ी चुनौती मिल रही है। निरूपम ने वर्ष 2009 के चुनाव में 5000 से कुछ अधिक मतों से जीत दर्ज की थी। इस बार उनका मुकाबला शेट्टी, आईआईएम के स्नातक सतीश जैन (आप) तथा सपा के कमलेश यादव से है। वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस विरोधी वोट भाजपा और मनसे के  बीच बंट गए थे। जिसका सीधा फायदा निरूपम को हुआ था। निरूपम को 3,55,157 वोट, भाजपा प्रत्याशी तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री राम नायक को 2,49,378 और मनसे प्रत्याशी सिरोप पार्पर को 1,47,502 वोट मिले थे। आप प्रत्याशी सतीश जैन क्षेत्र के विकास के लिए टेस्क्ट बुक मैनेजमेंट के सिद्धांतों को लागू करने पर जोर दे रहे हैं। उत्तर मुम्बई की इस महत्वपूर्ण सीट पर मोदी फेक्टर का कितना असर होता  इसका पता तो ईवीएम खुलने पर ही लगेगा। अब मुम्बई से चलते हैं उत्तर प्रदेश के चूड़ियों के लिए विख्यात फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र। यहां पिछले डेढ़ साल से सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। अपने पिता द्वारा राजनीति की बिसातें तो बिछी देखीं लेकिन अक्षय को इस सुहाग नगरी में आकर ही राजनीति का क, , ग सीखने को मिला है। प्रो. रामगोपल यादव ने अपने बेटे अक्षय के लिए ऐसी सीट का चुनाव किया जो उपचुनाव में सिने स्टार राज बब्बर सपा की झोली से छीन ली थी। पिछले डेढ़ साल में अखिलेश सरकार ने करोड़ों रुपए के विकास कार्यों की मंजूरी दिलाई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चुनाव जीतने के बाद अब उपचुनाव में उनकी पत्नी डिम्पल यादव को हार का सामना करना पड़ा तो इस सीट पर उतरने के दौरान जरूर परिवार को कई बार सोचना पड़ा होगा, लेकिन उपचुनाव में हुए भीतरघात को अब डेढ़ साल में धीरे-धीरे पाटने का काम भी अक्षय ने किया है। अक्षय का यहां मुकाबला पूर्व सांसद व भाजपा प्रत्याशी प्रो. एसपी सिंह बघेल से है। पूर्व में दो बार फिरोजाबाद से चुनाव भी लड़ चुके हैं। कांग्रेस के अतुल चतुर्वेदी व बसपा के विश्वदीप सिंह तथा आम आदमी पार्टी के राकेश यादव भी मैदान में हैं। इस बार सिने स्टार राज बब्बर फिरोजाबाद सीट से नहीं लड़ रहे हैं। ईमानदार छवि, सरल स्वभाव और विरोधियों पर कोई प्रहार न करना अक्षय यादव की ताकत मानी जा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

10 साल बाद सोनिया अमेठी में राहुल की नैया बचाने पहुंचीं

पिछले कई चुनावों में कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्रों की चिन्ता कभी नहीं सताई और वह इन दोनों सीटों को टेकन फॉर ग्रांटेड लेती रही है। वजह यह थी कि इन दोनों सीटों पर सोनिया और राहुल का राजनीतिक जादू सिर पर चढ़कर बोलता रहा है। ऐसे में कांग्रेस को इन दोनों सीटों की कभी भी चिन्ता नहीं हुई। लेकिन इस बार के चुनाव में हालात बदले-बदले नजर आ रहे हैं। रायबरेली से तो सोनिया की जीत निश्चित मानी जा रही है पर पड़ोस की सीट अमेठी पर सियासी हालात तेजी से बदल रहे हैं। खबर है कि खुफिया एजेंसियों ने चेताया है कि राहुल की अमेठी में स्थिति संतोषजनक नहीं है। जी-न्यूज ने तो एक सर्वे भी कराया था जिसके अनुसार भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी को राहुल से बहुत आगे दिखाया गया। कुमार विश्वास (आप) तीसरे नम्बर पर थे। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार स्मृति ईरानी की चुनौती लगातार बढ़ रही है और उनका चुनाव प्रचार भी तेजी पकड़ने लगा है। इससे कांग्रेस में भारी बेचैनी होना स्वाभाविक ही है। इतना ही नहीं, खुफिया एजेंसियों का मानना है कि कुमार विश्वास राजनीतिक ड्रॉमेबाजी कर कांग्रेस का ही वोट काटेंगे, जो पार्टी के लिए सिरदर्द पैदा कर सकता है। इससे भी स्मृति ईरानी को लाभ मिल सकता है। कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि राहुल के कंधों पर राष्ट्रव्यापी अभियान का भार है और इस वजह से उनके पास अपने संसदीय क्षेत्र के लिए ज्यादा वक्त नहीं है। अन्य कारणों से भी राहुल अमेठी में ज्यादा समय नहीं लगाना चाहते क्योंकि इससे यह संदेश जा सकता है कि राहुल को अमेठी से डर लगने लगा है। अमेठी और रायबरेली में भाई और मां का चुनाव प्रचार देख रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा ने जमीनी हालात को समझते हुए दिल्ली से सोनिया को एसओएस भेजा है। उन्होंने बताया कि अमेठी में और ताकत लगानी पड़ेगी क्योंकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार यहां कोई न कोई हर रोज सियासी ड्रॉमा कर रहे हैं। दिल्ली सहित कई स्थानों से आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं की कई टोलियां अमेठी संसदीय क्षेत्र में पहुंच चुकी हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने स्मृति ईरानी को उतारा है, बेशक स्मृति के लिए यह नई जगह है लेकिन वे बड़े सधे अंदाज में राहुल गांधी पर तीखे प्रहार कर रही हैं। स्मृति की मदद के लिए संघ परिवार ने कई प्रदेशों से अमेठी में पांच हजार प्रचारकों को लगा दिया है। यह गांव-गांव जाकर सोनिया और राहुल के बारे में नकारात्मक बातें बता रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के धुआंधार प्रचार का भी स्मृति को सीधा फायदा हो रहा है। असल लड़ाई राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी बन गई है। इन्हीं वजहों से सोनिया गांधी पुत्र के प्रचार के लिए 10 साल बाद अमेठी पहुंचीं। दरअसल महंगाई और भ्रष्टाचार पर कांग्रेस को हर जगह जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। ऐसे में सोनिया गांधी अमेठी में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहतीं। वोट बैंक की हिफाजत में कोई कसर न रह जाने की रणनीति के तहत ही अमेठी में पहुंचीं और सभा की। सोनिया गांधी ने अमेठी के लोगों को भावुक अपील करते हुए कहाöबरसों पहले इंदिरा जी यहां आई थीं और अपने बेटे राजीव गांधी को अमेठी परिवार को सौंप गई थीं। 2004 में मैंने भी अपना बेटा दे दिया। मुझे वह दिन याद आ रहे हैं जब मैं राजीव गांधी के साथ यहां आती थी। इस सबसे प्रतीत होता है कि अमेठी में राहुल के लिए अलग-अलग कारणों से स्मृति ईरानी व कुमार विश्वास एक चुनौती पेश कर रहे हैं और सोनिया कोई जोखिम नहीं उठाना चाहतीं।

Tuesday 22 April 2014

तमिलनाडु दंगल ः जयललिता बनाम मोदी बनाम ए. राजा

इस बार तमिलनाडु के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। राज्य में सत्ता अब तक बेशक ही दो अलग-अलग ध्रुवों पर रही हो, लेकिन उसका केंद्र लम्बे समय से अन्नाद्रमुक और द्रमुक जैसी द्रविड़ पार्टियां ही रही हैं। अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता अभी भी ताकतवर हैं। पहले उन्होंने वाम दलों से गठबंधन किया था, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने वाम दलों को छोड़ दिया जबकि द्रमुक के बुजुर्ग नेता एम. करुणानिधि बेटों के विवाद के बाद कमजोर हुए हैं। द्रमुक की इस आंतरिक कलह का असर उसके चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है। राज्य में हमेशा हाशिए पर रही भाजपा इस बार तीसरा बड़ा केंद्र बनने की जुगत में है। जयललिता की पहले भाजपा के साथ जाने की चर्चा थी, अब राजग कुनबा जयललिता का नहीं, करुणा और कांग्रेस के लिए भी चिन्ता का कारण बना हुआ है। जयललिता अपनी रैलियों में कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा को भी खूब कोस रही हैं। वहीं नरेन्द्र मोदी रैलियों में आ रही भीड़ को वोटों में तब्दील करने में जुटे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन ने 18 सीटें जीती थीं। यूपीए गठबंधन के खाते में 27 सीटें आई थीं। जयललिता ने तीसरा मोर्चा बनाकर एडीएमके, सीपीआई, सीपीएम, पीएमके से गठबंधन किया था। अन्नाद्रमुक को नौ जबकि एमडीएमके, सीपीआई और सीपीएम को एक-एक सीट मिली थी। भाजपा और डीएमडीके अलग-अलग चुनाव लड़ीं और  दोनों को एक भी सीट नहीं मिली। इस बार चुनाव में अधिक से अधिक सीट जीतने हेतु भाजपा ने यहां द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बाद बचे पांच प्रमुख क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया है। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए में शामिल होने के लिए किसी दल ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। कुल मिलाकर राज्य की सभी 39 लोकसभा सीटों पर द्रमुक, अन्नाद्रमुक, राजग, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच लड़ाई  है। यहां मतदान 24 अप्रैल को होना है। तमिलनाडु की एक बहुचर्चित सीट है ऊटी। ऊटी लोकसभा सीट से वर्ष 2011 में 2जी घोटाले के मुख्य आरोपी नायक पूर्व संचार मंत्री ए. राजा चुनाव लड़ रहे हैं। 40 डिग्री गर्मी में तपते तमिलनाडु में अगर कोई सबसे ज्यादा सुकून देने वाली जगह है तो वह है ऊटी। देशभर से आए पर्यटकों की चहल-पहल से ऊटी का सबसे भव्य ब्लैक थंडर रिसॉर्ट का सूईट नम्बर एक ए. राजा के लिए ही रिजर्व है। 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले के प्रमुख आरोपी और डीएमके के उम्मीदवार का यह चुनाव क्षेत्र है, जहां ठंड में उनके पसीने छूट रहे हैं। राजा एक महीने से यहीं हैं। राजा का कुनबा हर गांव और हर गली नाप रहा है। 2जी का भारी-भरकम बोझ क्षेत्र में साफ दिखाई देता है। चार रंगीन पन्नों पर एक भावुक अपील जारी की गई है। मोटे अक्षरों में लिखा हैöआपकी अदालत में मेरा फैसला। कवर पर छपी तस्वीर राजा की गिरफ्तारी के समय की है। वे कहते हैं `मैं तो बेकसूर हूं। लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत में इंसाफ मांगने निकला हूं।' अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इस सीट से राजा को 2009 में 85 हजार वोटों से जीत मिली थी। अब वोटरों में सीधा विभाजन साफ है। एक तरफ हैं शहरी क्षेत्र के पढ़े-लिखे, कारोबारी, युवा जो 2जी घोटाले को एक कलंक की तरह महसूस करते हैं। इनमें हर कोई राजा को हराने के लिए कमर कस रहा है। दूसरी तरफ है निम्न आय वर्ग। सब्जी, फल और नारियल पानी बेचने वाले, ऑटो रिक्शा चालक, मजदूर और गांव के लोग। राजा की दरियादिली के इनके बीच कई किस्से हैं। पेशे से टेलर रवि चन्द्रन की पत्नी और बच्चे पहाड़ी नदी की बाढ़ में बह गए थे। लाशें मिली थीं। दुखड़ा रोने के लिए वह राजा के पास गए थे। एक लाख की फौरन मदद मिली। इन दिनों वे सिलाई का काम छोड़कर राजा की ध्वजा थामकर घूम रहे हैं। ऐसे कई और किस्से सुनने को मिलते हैं। यहां से भाजपा प्रत्याशी एस. गुरुमूर्ति का नामांकन खारिज हो चुका है। एआईएडीएमके के गोपाल कृष्णन अच्छी टक्कर दे रहे हैं। मुख्यमंत्री जयललिता जिन दो सीटों पर अपनी पार्टी की मुमकिन जीत चाहती हैं उनमें पी. चिदम्बरम की शिव गंगा के अलावा दूसरी सीट यही है। दूसरी ओर करुणानिधि ने राजा को वोट देने की अपील गुड गवर्नेंस के वादे के साथ की है। लोग चटखारे लेकर कह रहे हैं कि इनकी गुड गवर्नेंस का 2जी से बड़ा कोई सबूत हो तो बताइए?

-अनिल नरेन्द्र

लोकसभा चुनाव परिणाम पर निर्भर है दिल्ली विधानसभा का भविष्य

दिल्ली विधानसभा चुनाव निकट भविष्य में न चाहने वालों की नजर सुप्रीम कोर्ट की ओर लगी हुई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी की याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई करते हुए कहा कि  राष्ट्रपति अगर चाहें तो दिल्ली में विधानसभा भंग कर नए सिरे से चुनाव करवा सकते हैं। हकीकत तो यह है कि आम आदमी पार्टी के अलावा न तो भाजपा अभी दिल्ली विधानसभा का चुनाव चाहती है और न ही कांग्रेस। अधिकांश विधायक फिलहाल चुनाव के पक्ष में नहीं हैं, उनका कहना है कि अभी दिल्ली में आम आदमी पार्टी का असर लगभग बरकरार है, अगर थोड़ी कमी आई है तो मध्य वर्ग और पढ़े-लिखे वर्ग में आई है। ऐसे वोटर जिनमें पॉश कॉलोनियों के लोग भी शामिल हैं जिन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को वोट दिया था अरविन्द केजरीवाल के भगोड़ेपन, वादा खिलाफी और उसकी सियासी महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए अगली बार आप को वोट नहीं देंगे। क्या आम आदमी पार्टी को अपने विधायकों की टूट-फूट का डर सता रहा है अथवा उसे पक्का यकीन हो चला है कि यदि दिल्ली में दोबारा विधानसभा चुनाव कराए गए तो केजरीवाल की अगुवाई में पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल हो जाएगी? वजह जो भी हो लेकिन पार्टी ने दिल्ली विधानसभा को लम्बित स्थिति में रखे जाने पर एक बार फिर से सवाल उठाते हुए उपराज्यपाल नजीब जंग से मांग की है कि वो इस मामले का निपटारा जल्द से जल्द करें। पिछले चुनाव में अपना राजपाठ गंवा चुकी कांग्रेस सूबे में विधानसभा चुनाव को लेकर फिलहाल अपने पत्ते खोलना नहीं चाहती। हालांकि अन्दरखाते पार्टी नेता यही चाहते हैं कि चुनाव करवाने में कोई हड़बड़ी नहीं की जाए। कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा कि हमें लगता है कि यदि चुनाव थोड़े ठहर कर हुए तो यह हमारे लिए फायदेमंद होगा। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि विधानसभा चुनाव का भविष्य  बहुत कुछ लोकसभा चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा। पार्टी के कई नेता दावा करते हैं कि यदि लोकसभा चुनाव में आप का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तो अरविन्द केजरीवाल के लिए अपने विधायकों को सम्भालना मुश्किल हो जाएगा। आप के कई विधायक लक्ष्मीनगर के विधायक विनोद कुमार बिन्नी की राह पर चल सकते हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए सरकार बनाना आसान हो जाएगा। यानि सब कुछ लोकसभा चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन सहित कई बड़े नेता यह कह चुके हैं कि वह किसी भी स्थिति के लिए तैयार हैं। हालांकि डॉ. साहेब के लिए एक बड़ी मुसीबत यह खड़ी हो सकती है कि अगर वह चांदनी चौक से जीत जाते हैं तो वह सांसद रहेंगे या विधायक? और अगर ऊपर वाला न करे हार जाते हैं तो नैतिकता के आधार पर उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री पद सम्भालने में कोई मुश्किल तो नहीं आएगी? वैसे हमारी राय में भाजपा हाई कमान ने डॉ. हर्षवर्धन को लोकसभा चुनाव लड़वाने की गलती की है। खासकर जब उन्हें यह मालूम था कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव निकट भविष्य में होने वाले हैं। जब चुनाव और मतदान की  बात कर रहे हैं तो उपराज्यपाल महोदय को भी दिल्ली के बारे में अंतिम निर्णय लेने से पहले केंद्र में नई सरकार के गठन का इंतजार है। अब  केंद्र का नया मंत्रिमंडल ही दिल्ली में राष्ट्रपति शासन को लागू रखने अथवा नए सिरे से विधानसभा चुनाव कराने को लेकर कोई निर्णय ले पाएगा। यानि दिल्ली विधानसभा के भविष्य का निर्णय अब 16 मई को लोकसभा परिणाम आने और नई सरकार के गठन के बाद ही होगा।

Sunday 20 April 2014

मेधा पाटेकर बनाम किरीट सोमैया, करुणा शुक्ल बनाम लखन साहू

उत्तर-पूर्व मुंबई लोकसभा सीट से कई दिग्गज मैदान में हैं। यहां सबसे रोचक पक्ष है आम आदमी पार्टी की ओर से मेधा पाटेकर का चुनाव मैदान में कूदना। मुंबई में आम आदमी पार्टी से बड़ा ब्रांड मेधा पाटेकर हैं। जिस इलाके से आप चुनाव लड़ रही है, वहां इस पार्टी को जानने वाले बहुत कम हैं। लेकिन पाटेकर उनके लिए अनजाना नाम नहीं है। हालांकि इसमें भी विरोधाभास है। उत्तर-पूर्व लोकसभा क्षेत्र में मध्य वर्ग की कॉलोनियों के लोग देशभर में किए उनके कार्य के कारण उन्हें जानते हैं लेकिन झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को इनके बारे में उतना पता नहीं है। इस लोकसभा सीट से उनका मुकाबला एनसीपी (कांग्रेस समर्थित) के मौजूदा सांसद संजय दीना पाटिल और भाजपा के दिग्गज नेता किरीट सोमैया से है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पाटेकर कांग्रेस के मतदाताओं को अपनी ओर ज्यादा खींचेंगी बजाय भाजपा के वोटरों के। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लम्बी लड़ाई लड़ने वाली मेधा की राजनीतिक तौर पर यह पहली लड़ाई है। वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी अनुभवी राजनीतिक खिलाड़ी हैं संजय पाटिल। संजय पाटिल ने पिछली बार किरीट सोमैया को तीन हजार से कम वोटों से हराया था। यह परिणाम एनसीपी के पक्ष में इसलिए भी गया था क्योंकि तब शिवसेना से टूट कर अलग हुए दल एमएनएस ने अपना प्रत्याशी खड़ा किया था। लिहाजा भाजपा के वोट बंट गए थे। सोमैया की छवि भी एक राजनीतिक संघर्ष के योद्धा की है। उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामले उठाए। पाटेकर और पाटिल के बीच वोट कटने से सोमैया निकल सकते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी पूर्व भाजपा सांसद करुणा शुक्ल बिलासपुर सीट से इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। करुणा अटल जी के बड़े भाई की बेटी हैं। नवम्बर में करुणा ने भाजपा के साथ अपना करीब तीन दशक पुराना संबंध समाप्त करके कांग्रेस का हाथ थाम लिया था और अब वह इस मुद्दे के साथ मतदाताओं से रूबरू हैं कि भाजपा के अटल युग का समापन हो चुका है। अब वह जीवनपर्यंत कांग्रेस संगठन को मजबूत करने का प्रयास करेंगी। बड़ा विचित्र है कि कांग्रेस की करुणा शुक्ल और भाजपा के लखन साहू दोनों ही उम्मीदवार अटल का नाम जप कर वोट मांग रहे हैं। करुणा की तकरीर में अटल जी का जिक्र जरूर होता है जबकि भाजपा के प्रचार में भी अटल जी के होर्डिंग लगे हैं। भाजपा उम्मीदवार लखन साहू स्वयं भाजपा के दिग्गज नेता स्वर्गीय निरंजन केसरवानी के बेटे के खिलाफ जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुके हैं। कांग्रेस में करुणा का बाहरी होने का मुद्दा है तो लखन साहू के बारे में कहा जाता है कि बड़े नेताओं को परे कर उनको टिकट दिया गया है क्योंकि उनका ज्यादा रसूख नहीं माना जाता और दिग्गजों के झगड़े में उनकी लॉटरी लग गई। करुणा शुक्ल कहती हैं कि वह मायके से ससुराल आ गई हैं। अटल बिहारी वाजपेयी उनके चाचा हैं, इसलिए भाजपा उनका घर है। शादी के बाद वह शुक्ल परिवार में आईं जो कांग्रेस से जुड़ा है, इसलिए कांग्रेस प्रवेश के बाद वह अपनी ससुराल आ गई हैं। भाजपा में अब अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का युग समाप्त हो चुका है। भाजपा अब नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह और कुछ अन्य विशेष लोगों के समूह द्वारा संचालित होती है। 17 लाख मतदाता वाले बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व रहा है मगर अगला वर्चस्व किसका होगा, 24 अप्रैल को पता चल जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र


बिहार में असल मुकाबला भाजपा बनाम नीतीश नहीं बनाम लालू है

बिहार में चुनाव की दिलचस्प स्थिति बनी हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अजब स्थिति का सामना कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के बूते पर बलवान हुए भाजपा और उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव नीतीश का वोट छीनने के लिए आपस में लड़ रहे हैं। मुस्लिम बहुल किशनगंज से जद (यू) उम्मीदवार अख्तरुल इमाम ने मंगलवार को ऐलान किया कि वह कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में दौड़ से आगे निकल रहे हैं। याद रहे कि इमाम को नीतीश ने लालू से तोड़कर अपने साथ किया था। किशनगंज में 24 अप्रैल को होने वाले चुनावी चरण में एकमात्र सीट है जो कांग्रेस के कब्जे में है। गत चुनाव में यहां से जद (यू) के उम्मीदवार सैयद महबूब अंसारी को कांग्रेस के असरारुल हक ने परास्त किया था। कांग्रेस ने असरारुल हक को फिर उम्मीदवार बनाया है। इस बार स्थितियां बदली हुई हैं। भाजपा ने दिलीप जायसवाल को उतारा है। इमाम के चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद यहां कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है। बिहार की भागलपुर की सीट खासी चर्चा में है। कारण है यहां से भाजपा दिग्गज व पूर्व मंत्री शाहनवाज हुसैन हैट्रिक लगाने की कोशिश में हैं। 2009 के चुनाव में उन्होंने राजद के शकुनी चौधरी को लगभग 60 हजार मतों से परास्त किया था। इस बार उनका संघर्ष राजद के बुलो मंडल तथा जद (यू) के अबु कैसर से है। बसपा की नौशाबा खानम भी मैदान में हैं। हुसैन को भाजपा के लोजपा के साथ गठबंधन का भी सहारा है जिससे उन्हें दलितों का महत्वपूर्ण समर्थन हासिल करने में मदद मिलेगी। हुसैन को विश्वास है कि इस बार मोदी की लहर उन्हें जीत दिला देगी। अररिया से वर्ष 2009 की चुनावी जंग जीते प्रदीप कुमार सिंह ने लोजपा के जाकिर हुसैन को हराया था। वर्ष 2014 की जंग में लोजपा इस बार भी श्री कुमार के साथ है। इस बार उनका मुकाबला राजद के तस्लीमुद्दीन व जद (यू) के विजय कुमार मंडल से है। केंद्र की यूपीए सरकार में एनसीपी के मंत्री तारिक अनवर कटिहार से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कटिहार में एक बार फिर भाजपा के निखिल कुमार चौधरी का संघर्ष राकांपा के तारिक अनवर से है। इनकी लड़ाई को त्रिकोणात्मक जद (यू) के राम प्रकाश महतो बना रहे हैं। वर्ष 2009 की लड़ाई में भाजपा के ही श्री चौधरी ने लगभग 9000 वोटों से विजय हासिल की थी। बांका की पुतुल देवी के भाजपा में शामिल होते ही यहां का लोकसभा चुनाव काफी रोचक हो गया है। जद (यू) ने यह सीट अपने गठबंधन दल माकपा के संजय कुमार के लिए छोड़ दी है। राजद ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश यादव को फिर से रण में उतारा है। पूरे बिहार में मुस्लिम मतों के लिए जद (यू) और राजद के बीच रस्साकशी चल रही है। जातीय मतों की गोलबंदी व मुस्लिम मतों पर केंद्रित होती बिहार की राजनीति में स्थानीय समस्याओं की कोई भी बात नहीं कर रहा है। जहां अपनी चुनावी सभाओं में नीतीश ने बिहार के मुद्दों पर जोर दिया है वहीं नरेन्द्र मोदी ने स्थानीय नायकों की चर्चा के साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दों का जिक्र भी किया है। नीतीश के लिए बुरी खबर यह है कि मोदी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया है। भागलपुर और अररिया की अपनी जनसभाओं में मोदी ने लालू और सोनिया पर हमला किया। वह यादव वोटों पर तेजी से ध्यान दे रहे हैं। नवादा और बक्सर में यादव समुदाय को सम्बोधित करते हुए मोदी ने गायों के रक्षक भगवान कृष्ण की द्वारका का जिक्र किया। बिहार में नीतीश नहीं मोदी बनाम लालू के बीच है जंग। लालू-कांग्रेस गठबंधन को लग रहा है कि उनका गठबंधन 15 सीटें हासिल करेगा। उधर भाजपा लोजपा को उम्मीद है कि वह बिहार में शानदार प्रदर्शन करेंगी और 25 सीटें जीतेंगी।
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Saturday 19 April 2014

अमेरिकी बहुप्रतिष्ठित गैलप पोल का सर्वेक्षण

लोकसभा चुनावों के नतीजे वैसे तो पूरे देशभर के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे लेकिन केंद्र में अगली सरकार किस दल की या गठबंधन की बनती है, इसे छह बड़े राज्यों को तय करना है। पिछले चुनाव में इन छह राज्यों ने निर्णायक भूमिका निभाई थी और यूपीए सत्ता पर काबिज हुई थी। इस बार भी इन राज्यों में जिस गठबंधन का प्रदर्शन बेहतर रहेगा वही केंद्र की सत्ता पर काबिज होगा। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश (अविभाजित), बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं। इन छह राज्यों में कुल 264 सीटें हैं। लेकिन यूपीए एवं एनडीए के लिए केंद्र में सरकार बनाने के लिए इन राज्यों में से कम से कम पांच राज्यों में शानदार प्रदर्शन करना जरूरी है। यदि यूपीए या एनडीए देश के अन्य राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं और इन राज्यों में वह पिछड़ते हैं तो सरकार बनाना शायद सम्भव न हो पाए। करीब-करीब सभी चुनावों में इन राज्यों के परिणाम असर डालते हैं। पिछले चुनावों में उपरोक्त छह में से पांच राज्यों में यूपीए का प्रदर्शन शानदार रहा था। इनमें यूपी, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं। यूपी में कांग्रेस को 22, महाराष्ट्र में कांग्रेस सहयोगी एनसीपी समेत 25, आंध्र में रिकार्ड 33, राजस्थान में 21 एवं मध्य प्रदेश में 11 सीटें मिली थीं। कुल मिलाकर 112 सीटें यूपीए को इन पांच राज्यों में मिली थीं, जो उसकी कुल सीटों में आधे से भी अधिक थीं। लेकिन इस बार इन राज्यों में यूपीए की राह मुश्किल भरी है। दुनिया की मशहूर कम्पनी अमेरिका की गैलप पोल ने एक नवीनतम सर्वेक्षण किया है। सर्वेक्षण के अनुसार भारतीयों का बहुत बड़ा हिस्सा यह मानता है कि उनकी सरकार में हर तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है। ज्यादातर भारतीयों का यह भी मानना है कि मौजूदा सरकार ने इससे निपटने के लिए कुछ खास नहीं किया है। गैलप के सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2013 में 18 से 34 वर्ष के भारतीय युवाओं का तीन-चौथाई हिस्सा यह मानता है कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार व्यापक रूप से फैला हुआ है। इसके अनुसार 35 से 54 वर्ष के 76 फीसदी वयस्कों और 55 वर्ष से ऊपर के 72 फीसदी बुजुर्गों का भी ऐसा ही मानना है। इस सर्वे के लिए अक्तूबर 2013 के दौरान 3000 लोगों से बात की गई थी। सर्वे के अनुसार दक्षिण भारत के लोग उत्तर की तुलना में आर्थिक माहौल को लेकर ज्यादा सकारात्मक हैं। दक्षिण भारत में रहने वाले 38 फीसदी लोग यह मानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था बेहतर हो रही है, लेकिन दक्षिण भारत के करीब आधे लोग (45 फीसदी) यह मानते हैं कि अर्थव्यवस्था ठप है या उसकी हालत बदतर हुई है। सर्वेक्षण के अनुसार कृषि उद्योग में सुस्ती की वजह से उत्तर भारत के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा है, इसलिए सर्वे में  भी उनकी राय की झलक पेश की गई। उत्तर भारत के सिर्प 9 फीसदी लोग ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था बेहतर हो रही है जबकि 65 फीसदी का भारी बहुमत मानता है कि भारत की अर्थव्यवस्था बदतर हो रही है। गैलप के अनुसार वर्ष 2013 में महज 27 फीसदी भारतीयों ने मनमोहन सिंह के कामकाज को सही ठहराया जबकि 40 फीसदी ने उन्हें खारिज कर दिया। उत्तर भारत में महज 14 फीसदी लोगों ने ही मनमोहन सिंह को सफल बताया जबकि वर्ष 2012 में इसी इलाके के 38 फीसदी लोगों ने उन्हें सफल बताया था।

-अनिल नरेन्द्र

बेटी का बेटी से मुकाबला तो भाई का भाई से, कल्याण के बेटे भी दंगल में

लोकसभा चुनाव के छठे चरण में 24 अप्रैल को 117 सीटों पर मतदान होगा। इनमें कई पुत्र, पुत्रियां, भाई-भाई मैदान में होंगे। पहले बात करते हैं पुत्रियों की। पूनम महाजन को मुंबई उत्तर-मध्य सीट से उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने बेटी के मुकाबले बेटी को उतारने की रणनीति अपनाई है। पूनम महाजन भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की बेटी हैं जो दिवंगत अभिनेता और कांग्रेस नेता सुनील दत्त की बेटी और सांसद प्रिया दत्त के खिलाफ मैदान में हैं। पूनम से पहले भाजपा मुंबई उत्तर-मध्य लोकसभा सीट पर प्रिया दत्त को चुनौती देने के लिए किसी चमक-दमक वाले व्यक्ति की तलाश में थी। इसके लिए  उसने हेमा मालिनी, विनोद खन्ना और अनुपम खेर जैसे अभिनेता-नेत्रियों से सम्पर्प भी किया। लेकिन कोई भी प्रिया दत्त के खिलाफ उतरने को तैयार नहीं हुआ तब पार्टी ने पूनम महाजन के नाम पर मुहर लगा दी। प्रिया इस सीट पर दो बार जीत चुकी हैं। पूनम का मुकाबला कांग्रेस की प्रिया दत्त के अलावा आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी फिरोज पालकीवाला व सपा के अबु फरहान से है। मुंबई उत्तर-मध्य लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से पांच सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन और एक पर भाजपा-शिवसेना काबिज है। 2009 के चुनाव में प्रिया दत्त ने भाजपा के महेश जेठमलानी को 1,74,553  मतों से हराया था। पूनम की युवा और ईमानदार छवि, मोदी लहर की ताकत है जबकि कांग्रेस की यह बहुत मजबूत सीट है। यह सीट ईसाई-मुस्लिम बहुल है। कांटे के मुकाबले में प्रिया को हराना एक चुनौती होगी। भाजपा के बुजुर्ग नेता व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह एटा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार हैं। उनका मानना है कि इस आम चुनाव में पूरा देश भाजपा को केंद्र में लाना चाहता है और इसका असर एटा में भी दिखेगा। एटा की सीट पर 2009 के लोकसभा चुनाव में कल्याण सिंह काबिज हुए थे। उस समय वह सपा के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे। कल्याण सिंह फिर से भाजपा में लौट चुके हैं और बेटे को टिकट दिलाने में भी सफल रहे। राजवीर के सामने एटा पर पकड़ साबित करने की चुनौती है जो भाजपा का गढ़ रहा है। यहां से पांच बार भाजपा ने परचम लहराया है। क्षेत्र में लोदी समुदाय प्रभावशाली है और राजवीर इसी समुदाय के हैं। 62 वर्षीय राजवीर सिंह का मुकाबला सपा के देवेन्द्र सिंह, आम आदमी पार्टी के दिलीप यादव और बसपा के इंजीनियर नूर मुहम्मद से है। इनकी अगर ताकत पर नजर डालें तो उनकी ईमानदार छवि, राजनीतिक अनुभव व पिता कल्याण सिंह का बेटा होना है। दूसरी ओर बार-बार भाजपा छोड़ने और दल-बदल करने से पार्टी कार्यकर्ताओं का भरोसा डगमगा गया है। इनको संगठित करना चुनौती होगा। अब बात करते हैं राजस्थान की दौसा लोकसभा सीट की। दौसा सीट रोचक और विभिन्न चुनावी जंग का गवाह बनी हुई है। इस सीट पर दो भाइयों ने देश की दो सबसे कट्टर प्रतिद्वंद्वी पार्टियों से एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकी है। दोनों ही भारतीय पुलिस सेवा में रह चुके हैं। दौसा से भाजपा ने हरिश्चंद्र मीणा को मैदान में उतारा है। हरिश्चंद्र ने चुनाव लड़ने के लिए स्वेच्छा से फोर्स से सेवानिवृत्ति ली है। दूसरी ओर दौसा सीट से ही कांग्रेस ने हरिश्चंद्र के भाई नमो नारायण मीणा को अपना प्रत्याशी बनाया है। दौसा सीट पर छठे चरण के तहत 24 अप्रैल को चुनाव होना है। देश की दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के प्रत्याशी होने के बावजूद दोनों भाइयों को चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते नहीं देखा गया। राजस्थान की 25 सीटों में से 17 अप्रैल को 20 सीटों पर मतदान हो चुका है। अब छठे चरण के तहत 24 अप्रैल को शेष पांच सीटों पर मतदान होगा। हरिश्चंद्र राज्य के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं जबकि नमो नारायण पूर्व आईपीएस होने के साथ-साथ दो बार सांसद भी रह चुके हैं। नमो नारायण मौजूदा संप्रग सरकार में वित्त राज्यमंत्री हैं। एक दौसा निवासी ने बताया कि जहां नमो नारायण संप्रग के विकास कार्यों की दुहाई दे रहे हैं, वहीं उनके भाई हरिश्चंद्र भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के नाम पर और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नाम पर मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश में लगे हुए हैं। भाजपा का पलड़ा भारी लगता है। दौसा क्षेत्र में ही विश्व प्रसिद्ध बालाजी (हनुमान जी) का मंदिर भी आता है।

Friday 18 April 2014

उत्तराखंड में नरेन्द्र मोदी लहर और हरीश रावत सरकार में कांटे की टक्कर

उत्तराखंड के सीमांत इलाके की इसे जागरुकता कहें या फिर सैन्य बहुल क्षेत्र की स्वाभाविक प्रकृति, राजनीतिक रूप से इस राज्य के जनमानस ने लगभग हर चुनाव में स्वयं को राष्ट्रीय धारा के साथ ही जोड़े रखा। वर्ष 1957 के पहले चुनाव से लेकर 2009 में 15वें लोकसभा चुनाव तक यहां के वोटरों ने उन्हीं पार्टियों के प्रत्याशियों पर भरोसा जताया जो बहुमत या बहुमत के करीब रहीं। वर्तमान में उत्तराखंड में लोकसभा की कुल पांच सीटें हैंöटिहरी, पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल और हरिद्वार। पांचवीं लोकसभा तक देश की सियासत में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा तो उत्तराखंड में कांग्रेस को एकतरफा जीत मिली। आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में छठवीं लोकसभा के चुनाव में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ तो उत्तराखंड की सभी सीटों पर जनता पार्टी का कब्जा हो गया। तब से लेकर अब तक उत्तराखंड में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। 1998 में भाजपा ने कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया किया तो अगले साल 1999 के लोकसभा चुनाव में राजग की सरकार बनी तो भाजपा को चार व कांग्रेस को एक सीट मिली। हरिद्वार की महत्वपूर्ण सीट पर तस्वीर अब साफ हो गई है। इस बार यहां मोदी लहर और हरीश रावत सरकार के बीच जंग है। हरिद्वार सीट पर मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत चुनाव लड़ रही हैं जबकि टिहरी सीट से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र सांकेत बहुगुणा, पौड़ी गढ़वाल सीट से राज्य के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत मैदान में हैं। रेणुका हरिद्वार सीट से लड़ रही हैं जिसका प्रतिनिधित्व उनके पति हरीश रावत कर चुके हैं। 2009 में हरीश रावत यहां से विजयी हुए थे। भाजपा की ओर से हरिद्वार से पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक उम्मीदवार हैं। वैसे तो और भी उम्मीदवार हैं पर मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री की पत्नी और निशंक के बीच ही माना जा रहा है। पिछले वर्ष आई बाढ़ की तबाही और फिर केदारनाथ घाटी व राज्य के अन्य भागों में प्रभावित रिलीफ वर्प सत्तारूढ़ दल को भारी पड़ सकता है। हरिद्वार में असल मुकाबला वर्तमान मुख्यमंत्री बनाम पूर्व मुख्यमंत्री ही है। टिहरी सीट पर मुकाबला दो राजनीतिक घरानों का है। एक तरफ टिहरी राजघराने की साख तो दूसरी तरफ हेमवती नंदन बहुगुणा परिवार की तीसरी पीढ़ी का भविष्य दांव पर है। यहां राजघराने की माला राज्यलक्ष्मी शाह भाजपा की टक्कर पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा जो कांग्रेस से लड़ रहे हैं के बीच है। उपचुनाव में मिली हार की कसक झेल रहे साकेत का राजनीतिक भविष्य काफी हद तक इस चुनाव पर टिका हुआ है। 2012 के उपचुनाव में साकेत को मात दे चुकीं माला राज्यलक्ष्मी के लिए अपनी जीत दोहराना आसान नहीं होगा। भाजपा-कांग्रेस के अलावा टिहरी से आम आदमी पार्टी, बसपा और उक्रांद के भी उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं। सियासी विरासत के मामले में दोनों परिवार एक-दूसरे से कम नहीं हैं। टिहरी में शाही परिवार की पैठ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक 16 लोकसभा चुनावों (उपचुनाव समेत) में 10 मर्तबा जनता ने राजपरिवार पर भरोसा जताया है। उधर बहुगुणा परिवार  की यूपी से दिल्ली तक दबदबा रखने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा की मजबूत सियासी नींव जगजाहिर है। दोनों परिवारों में सियासी जंग भी पुरानी है। टिहरी सीट पर जीत-हार तय करता है मैदानी क्षेत्र। टिहरी लोकसभा  क्षेत्र में उत्तरकाशी जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों में महज पौने दो लाख वोटर हैं। टिहरी जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में लगभग तीन लाख मतदाता हैं और शेष सात लाख मतदाता देहरादून जिले के सात विधानसभा क्षेत्रों में हैं। 2012 के उपचुनाव में भाजपा को देहरादून के मैदानी क्षेत्रों की पांच विधानसभा सीटों पर भारी बढ़त मिली थी। कांग्रेस के लिए मैदानी क्षेत्र बड़ी चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

भगोड़े केजरीवाल का असल मकसद मोदी के बढ़ते कदमों को रोकना है

आज हम बात करेंगे दिल्ली के भगोड़े पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की। 49 दिन के यह बादशाह अब कहते हैं कि मैंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को छोड़कर गलती की। अरविंद केजरीवाल ने अब जाकर माना है कि दिल्ली में झटके से सरकार छोड़ना उनकी भूल थी। उन्होंने कहा कि इस बारे में उन्हें पहले जनसभाएं करनी चाहिए थीं और लोगों को अपने फैसले के बारे में बताना चाहिए था। यह भी माना कि इस फैसले की वजह से बहुत से लोग उनकी पार्टी से दूर हुए हैं। केजरीवाल ने दावा किया है कि इस्तीफा देने का फैसला सामूहिक था और यह पार्टी की राजनीतिक मामलों की कमेटी में लिया गया था। केजरीवाल के सहयोगी और आप के वरिष्ठ सलाहकार सदस्य प्रशांत भूषण ने दावा किया है कि केजरीवाल का इस्तीफा देना, सरकार त्यागने का कभी भी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति में फैसला नहीं हुआ था। यह मामला तो वहां तक पहुंचा ही नहीं। यह केजरीवाल का निजी फैसला था जो बाद में उन्होंने पार्टी पर थोप दिया। यह गलत फैसला था पर हमारा 400 सीटों पर चुनाव लड़ना पार्टी का पेसला है। संगठन के नाम पर चंद बड़े शहरों तक सिमटी आम आदमी पार्टी (आप) ने उम्मीदवार खड़े करने में सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को भी पीछे छोड़ दिया है। अब तक 432 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी आप में अभी अच्छे लोगों की तलाश जारी है। जबकि दोनों  बड़ी पार्टियां अब तक सवा चार सौ के आसपास ही अटकी हुई हैं। वैसे राजनीतिक पार्टियों का टिकट पाने की मारामारी तो हर चुनाव में दिखती है लेकिन इस बार के चुनाव टिकट लौटाने की वजह से भी याद रखे जाएंगे। दो दर्जन से ज्यादा पार्टी उम्मीदवार इस बार टिकट मिलने के बाद मैदान छोड़ गए और मैदान से भाग लिए हैं। इसमें कांग्रेस के चार उम्मीदवार हैं और पहली बार लोकसभा चुनाव में शिरकत कर रही आम आदमी पार्टी के 20 से ज्यादा कैंडिडेट हैं। टिकट वापस होने के मामले में आप ने नया रिकार्ड बना दिया है। अब तक कभी किसी पार्टी के इतने कैंडिडेट्स ने टिकट नहीं लौटाया था। दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनाव की अप्रत्याशित सफलता ने आम आदमी पार्टी को रातोंरात सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था। पार्टी के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं का तो `एटीट्यूट' भी वहीं पहुंच गया था। जब इंसान आसमान ताकेगा तो तारे नजर आएंगे न। फर्प बस इतना है कि रात में तारे देखने पर फील गुड होता है और जब यही तारे दिन में दिखने लगें तो समझिए मुसीबत सिर पर है। अभी यही हालत आप के नेताओं की है। पार्टी का तेजी से गिरता ग्रॉफ देखकर नेताओं में भगदड़ मची हुई है। उन्हें दिन में भी तारे दिखने लगे हैं। एक के बाद एक आप के नेता लड़ाई से पहले ही हार के डर से मैदान छोड़कर भाग रहे हैं। ऊपर से आम आदमी पार्टी से निष्कासित विधायक विनोद कुमार बिन्नी की अगुवाई में पार्टी में एक बड़ा धड़ा अपने अलग नेता को चुनने की कवायद में जुटा हुआ है। एक तो खाज उसमें भी खुजली केजरीवाल साहेब! झाड़ू की दिशा चैक कीजिए। मतलब कहीं यह उल्टी तो नहीं चल रही है? अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिन पहले गूगल हैंगआउट प्रोग्राम में देशभर के वोटरों के सवालों का जवाब दिया। पहली बार चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि उन्होंने फोर्ड फाउंडेशन से एक भी पैसा नहीं लिया है। कोर्ट ने विदेशी फंडिंग के मामले में भाजपा और कांग्रेस पर सवाल उठाए हैं। वोटरों ने केजरीवाल से तीखे सवाल पूछे। एक सवाल के जवाब में केजरीवाल ने कहा कि वाराणसी से चुनाव लड़ने का मकसद चुनाव जीतकर संसद में पहुंचना नहीं है बल्कि गलत लोगों को संसद में पहुंचने देने से रोकना है। उन्होंने यह भी कहा कि वह वाराणसी में चुनाव लड़ने के लिए बाहुबली मुख्तार अंसारी का समर्थन नहीं लेंगे। मोदी और राहुल एक ही सिस्टम के दो पार्ट हैं। इन दोनों में से जो भी सत्ता में आएगा सत्ता का हस्तांतरण होगा, व्यवस्था नहीं बदलेगी। उन्होंने दावा किया कि अमेठी से आप उम्मीदवार कुमार विश्वास राहुल गांधी को हराकर दो लाख वोटों से जीतेंगे। काशी तक बहरहाल पहुंचते-पहुंचते अरविंद केजरीवाल की भ्रष्टाचारी नेताओं की लिस्ट गुम हो गई है। अब न उन्हें कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को हटाने की फिक्र है और न ही कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को। साथ ही वो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, फारुख अब्दुल्ला समेत तमाम ऐसे नेताओं को भी भूल चुके हैं जिन्हें चुनाव में पटकनी देने के दावे के साथ केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव का अभियान शुरू किया था। आम चुनाव में उतरने का ऐलान करते हुए 31 जनवरी को पार्टी की बैठक में केजरीवाल ने एक लिस्ट पढ़ी थी। इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मुलायम सिंह समेत कई नेताओं के नाम शामिल थे। केजरीवाल ने इनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारकर चुनाव में हराने का दम भरा था। खास बात यह है कि पहली लिस्ट में नरेन्द्र मोदी का नाम नहीं था। बाद में मोदी का नाम भी जुड़ गया। आप ने शुरुआत में राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से कुमार विश्वास को उतारकर इरादों पर कायम रहने का संकेत भी दिया पर जैसे-जैसे सियासी पारा चढ़ा केजरीवाल का असल मकसद सामने आ गया और वह यह था नरेन्द्र मोदी को वाराणसी से रोकना। फिलहाल उनका पूरा फोकस नरेन्द्र मोदी और भाजपा के बढ़ते कदमों को रोकने पर है।