Thursday 29 April 2021

क्यों न हो दर्ज हत्या का मामला

मद्रास हाई कोर्ट ने सोमवार को निर्वाचन आयोग की तीखी आलोचना करते हुए देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए उसे अकेले जिम्मेदार करार देते हुए सबसे गैर-जिम्मेदार संस्था बताया। अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में भी मामला दर्ज किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को रैलियां और सभाएं करने की अनुमति देकर महामारी को फैलाने के मौके दिए। अदालत ने पूछाöक्या आप दूसरे गृह पर रह रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिल कुमार राममूर्ति की बेंच ने छह अप्रैल को हुए विधानसभा में करूर से अन्नाद्रमुक उम्मीदवार व राज्य के परिवहन मंत्री एमआर विजय भास्कर की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस याचिका में अधिकारियों को कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए दो मई को करूर में निष्पक्ष मतगणना सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि करूर निर्वाचन क्षेत्र में हुई चुनाव में 77 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई है। ऐसे में उनके एजेंट को मतगणना कक्ष में जगह देना काफी मुश्किल होगा। इससे नियमों के पालन पर असर पड़ सकता है। निर्वाचन आयोग के वकील ने जब न्यायाधीशों को बताया कि सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं तो पीठ ने कहा कि उसने राजनीतिक दलों को रैलियां और सभाएं करने की अनुमति देकर (आयोग ने) कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रकोप का रास्ता साफ कर दिया था। अदालत ने निर्वाचन आयोग ने वकील की इस टिप्पणी पर नाराजगी जताई कि मतदान केंद्रों पर सभी तरह के एहतियाती कदम उठाए जाएंगे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि देश में महामारी की दूसरी लहर फैलने के लिए निर्वाचन आयोग अकेले जिम्मेदार है। न्यायाधीशों ने मौखिक रूप से चेतावनी दी कि वह दो मई को मतगणना रोकने से भी नहीं हिचकिचाएंगे। तमिलनाडु में रविवार को कोरोना संक्रमण के 15 हजार नए मामले सामने आने के बाद उपचाराधीन रोगियों की कुल संख्या बढ़कर एक लाख से अधिक हो गई। तीन राज्योंöतमिलनाडु, केरल, असम व केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए हैं। पीठ ने कहा कि नागरिक बचेंगे तभी तो लोकतांत्रिक गठतंत्र में दिए गए अपने अधिकारों का उपयोग कर पाएंगे। आज सवाल अपनी जान बचाने और जीवित रहने का है। बाकी सारी बातें इसके बाद आती हैं।

हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज फिर बन सकेंगे जज

देश के न्यायिक इतिहास में संभवत पहली बार देशभर के हाई कोर्टों में जजों की तदर्थ नियुक्ति होगी। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत एड-हॉक जजों की नियुक्ति का रास्ता साफ कर दिया है। हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज दो से तीन साल तक दोबारा जज का पद्भार ग्रहण कर सकेंगे। चीफ जस्टिस शरद अरविन्द बोबड़े, जस्टिस संजय किशन कौल और सूर्यकांत की बेंच ने स्पष्ट किया कि यदि हाई कोर्ट में रिक्त पदों की तादाद 20 प्रतिशत से अधिक है तो हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस राष्ट्रपति से तदर्थ जज की नियुक्ति को सिफारिश कर सकते हैं। एक नियुक्ति दो से तीन साल के लिए होगी और एड-हॉक जज को हाई कोर्ट के जज के लिए निर्धारित वेतनमान मिलेगा। यदि तदर्थ जज के लिए सरकारी आवास का प्रबंध नहीं हो पाता है तो उसे नियमों के अनुसार हाउसिंग भत्ता दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने लोक-प्रहरी बनाम भारत सरकार के मामले में यह निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पेंन्डिग मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो ऐसे मामलों को निपटाने के लिए चीफ जस्टिस अपनी संवैधानिक शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं। चीफ जस्टिस यह अनुमान लगा सकते हैं कि हाई कोर्ट में लंबित केस की तादाद लगातार बढ़ रही है और उनके निपटारे के लिए रेग्युलर जज की नियुक्ति नहीं हुई तो संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत राष्ट्रपति से तदर्थ नियुक्ति की अनुमति हासिल कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न सिर्फ सेवानिवृत जज ही नहीं बल्कि अवकाश ग्रहण करने की कगार पर खड़े जजों को भी एड-हॉक जज नियुक्त किया जा सकता है। तदर्थ जज की नियुक्ति के लिए उसका पुराना रिकॉर्ड देखा जाएगा। यदि उसने अपने कार्यकाल में मुकदमों का तेजी से निपटारा किया तो उसे तरजीह दी जाएगी। एक हाई कोर्ट में दो से पांच जज तदर्थ रूप से नियुक्ति किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट में जजों के 40 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं, 25 हाई कोर्ट में जजों के 1080 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इस समय 664 जज कार्यरत हैं। 416 पद रिक्त पड़े हैं। 196 जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। 220 की सिफारिश की जानी बाकी है। हाई कोर्ट कोलेजियम 45 जजों की नियुक्ति की सिफारिश छह माह पहले कर चुका है। केंद्र सरकार के पास यह सिफारिश छह माह से पेंन्डिग है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 10 नामों की सिफारिश की है, जिस पर सरकार ने निर्णय नहीं लिया है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम छह नामों की सिफारिश दो बार कर चुके हैं। उस पर भी केंद्र निर्णय नहीं ले रहा है जबकि कोलेजियम के दोबारा सिफारिश करने पर सरकार जज की नियुक्ति के लिए बाधा है।

अब कोरोना वायरस फेफड़ों पर कर रहा है हमला

दूसरी लहर का कोरोना वायरस फेफड़ों पर तेजी से हमला कर रहा है। पहली लहर का कोरोना पूरे फेफड़े को जहां 10 दिन में संक्रमित कर पा रहा था, वहीं अब दो-तीन दिन में ही संक्रमित कर दे रहा है। इस बार संक्रमण दर भी तीन गुणा बढ़ी है। पहले एक संक्रमित व्यक्ति से तीन लोग पॉजिटिव हो रहे थे, इस बार यह आंकड़े आठ-नौ का है। इस बार कोविड-19 के लक्षण अलग हैं। अधिकतर मरीजों में डायरिया, पेट दर्द व बुखार के लक्षण देखे जा रहे हैं। डॉक्टरों ने लोगों से अपील की है कि कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरन्त टेस्ट कराएं। कोरोना लक्षण के बाद भी एंटीजन व रीयल टाइम वाले मरीज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। कोरोना इंसान के फेफड़ों पर हमला करता है। फेफड़े जैसे-जैसे कमजोर होते हैं वैसे-वैसे इंसान में सांस लेने की शक्ति घटती जाती है और फिर कोरोना पॉजिटिव मरीजों को ऑक्सीजन का सहारा लेना पड़ता है। यहां तक कि कई लोगों को वेंटिलेटर की सपोर्ट देकर जान बचाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस महामारी के दौर में थर्मल एनएक्टिवेशन ऑफ सॉर्स कोविड वायरस पर किए गए शोध के बाद आए प्रमाण में लोगों के अंदर उम्मीद की किरण जगा दी है। इस शोध का निष्कर्ष यह है कि आप कोरोना वायरस को खत्म करने का रामबाण उपाय है। बता दें कि वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए शोध से संबंधित रिपोर्ट जर्नल ऑफ लाइफ साइंस में भी प्रकाशित की गई है। इस तरह अब जो कोरोना वायरस है वह पहले के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है। सिर्फ सुरक्षा ही उपाय है। हर टाइम मास्क पहने रखिए, सामाजिक दूरी बनाए रखें और हैंड सैनिटाइज करते रहें। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday 28 April 2021

मामला महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री की गिरफ्तारी का

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों में मामला दर्ज कर लिया और शनिवार को मुंबई में विभिन्न स्थानों पर छापे मारे। अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी ने देशमुख के खिलाफ मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच करने संबंधी बंबई हाई कोर्ट के आदेश पर प्रारंभिक जांच शुरू की थी। शाम तक खबर आते-आते पूर्व गृहमंत्री को हिरासत में भी ले लिया। अधिकारियों के मुताबिक जांच-पड़ताल के दौरान सीबीआई को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत देशमुख और अन्य अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने मुंबई में कई स्थानों पर छापे मारे। परमबीर सिंह ने 25 मार्च को देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच का अनुरोध करते हुए आपराधिक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें दावा किया गया था कि देशमुख ने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे समेत अन्य अधिकारियों को बार एवं रेस्तराओं से 100 करोड़ रुपए की वसूली करने को कहा था। वाजे एनआईए की जांच का सामना कर रहे हैं। यह जांच मुंबई के उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटकों से भरी स्कॉर्पियो एसयूवी मिलने के मामले से जुड़ी है। सिंह ने शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि देशमुख के भ्रष्ट आचरण के बारे में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और अन्य वरिष्ठ नेताओं से शिकायत करने के बाद उनका तबादला किया गया। शीर्ष अदालत ने मामले को गंभीर बताया था, लेकिन सिंह को उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा था। इसके बाद सिंह ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर देशमुख के खिलाफ अपने आरोपों को दोहराया और राकांपा नेता के खिलाफ सीबीआई से तत्काल एवं निष्पक्ष जांच का अनुरोध किया। राकांपा ने अनिल देशमुख के ठिकानों पर चल रही सीबीआई की छापेमारी पर शनिवार को कहा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और दोहराया कि उच्च न्यायालय के आदेश पर जांच के बाद देशमुख और राज्य सरकार के खिलाफ रची गई राजनीतिक साजिश से पर्दा उठ जाएगा। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रवक्ता तथा सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने कहाöकानून से ऊपर कोई नहीं है। अनिल देशमुख एजेंसियों के साथ सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देशमुख के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। मलिक ने कहा कि एनआईए को अभी यह बताना है कि निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे ने जब उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के निकट विस्फोटक सामग्री रखी तब वह किसके लिए काम कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगायाöइस मामले में मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त (परमबीर सिंह) की क्या भूमिका थी? यह सभी कार्रवाइयां परमबीर सिंह के पत्र के आधार पर की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह कुछ और नहीं, राज्य सरकार की और अनिल देशमुख की छवि खराब करने के लिए सत्ता का दुरुपयोग है। हमें न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है और हम जानते हैं कि जांच के जरिये राजनीतिक षड्यंत्र पर से पर्दा उठ जाएगा।

ऐसे विद्वान कम आते हैं

इस्लाम धर्म के जानकार तो बहुत हैं मगर ऐसे शायद कम ही लोग होंगे जिनके लिखे को कई देशों की कई पीढ़ियों ने पढ़ा और संहारा। हम बात कर रहे हैं इस्लाम के जानकार आध्यात्मिक नेता और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पाए लेखक पद्मविभूषण मौलाना वहीदुद्दीन खान की। 97 साल की उम्र में कोरोना से उभरी दिक्कतों के कारण गत बुधवार को दिल्ली में उनका निधन हो गया। मौलाना वहीदुद्दीन आपसी भाईचारे और सह-अस्तित्व के पैरोकार रहे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राम जन्मभूमि विवाद पर उनका तीन सूत्री फार्मूला चर्चित हुआ था। मौलाना वहीदुद्दीन खान को आध्यात्मिक क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मविभूषण मिला था। 200 से अधिक किताबें लिख चुके मौलाना खान ने पवित्र कुरान का अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया था। 1955 में उनकी लिखी पहली किताब नए अहद के दरवाजे पर आई जिसके बाद उन्होंने इस्लाम और उसकी आधुनिक चुनौतियों पर किताब लिखी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मौलाना वहीदुद्दीन खान की लिखी किताब गॉड अराइजेज छह से ज्यादा अरब देशों की यूनिवर्सिटी का हिस्सा है। इसे हिन्दी, अंग्रेजी, तुर्की, मलयालम और अन्य कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया। 1970 में उन्होंने दिल्ली में इस्लामिक सेंटर बनाया। वह मुसलमानों की शिक्षा पर जोर देते थे। राम जन्मभूमि विवाद पर उनका तीन सूत्री फार्मूला चर्चा में आया। इसमें मुख्य तौर पर यह बात कही गई थी कि हिन्दू समाज अपना आंदोलन अयोध्या तक ही रोक दे। मस्जिद विध्वंस के बाद मुस्लिम समाज के लिए इस मसले पर बहुत कुछ बचा नहीं, इसलिए वह इस मुद्दे को देश के विवेक पर छोड़ दें और इस मुद्दे से खुद को अलग कर लें। साथ ही सरकार कानून बनाकर गारंटी दे कि देश में जहां कहीं भी इस्लामिक इमारतें हैं, उनकी रक्षा की जाएगी, बिना इस पड़ताल में गए कि उस जगह पर पहले क्या था। न ही हिन्दू समाज उनके अस्तित्व पर सवाल करेगा। अयोध्या में मस्जिद विध्वंस के बाद वह महाराष्ट्र में आचार्य सुशील कुमार और स्वामी नित्यनंद के साथ शांति यात्रा पर भी गए थे। 1976 में अल रसाला नाम से खुद की पत्रिका शुरू की। मौलाना वहीदुद्दीन का जाना पूरी मानव जाति के लिए भारी क्षति है। ऐसे विद्वान कम आते हैं।

कोरोना मरीज को एक मिनट में 50-60 लीटर ऑक्सीजन चाहिए

दिल्ली में कोरोना मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। ऐसे में मेडिकल संबंधी दिक्कतें भी बढ़ रही हैं। दिल्ली के दर्जनों अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की शिकायतें आ रही हैं। वहीं मरीजों के बढ़ने से इसकी खपत भी बढ़ती जा रही है। खासकर वेंटिलेटर के मरीजों में दोगुना ज्यादा ऑक्सीजन की डिमांड बढ़ गई है। पहले जिन वेंटिलेटर के मरीजों को हर मिनट 25 से 30 लीटर ऑक्सीजन खर्च होती थी, अब 50 से 60 लीटर प्रति मिनट लग रही है। ऑक्सीजन कमी की यह एक बड़ी वजह हो सकती है। लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की एनेस्थीशिया एक्सपर्ट डॉक्टर रंजू सिंह ने बताया कि अगर फेस मास्क के जरिये ऑक्सीजन दी जाती है तो ऐसे मरीज को हर मिनट पांच से छह लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है। वहीं अगर मरीज वेंटिलेटर पर है तो उसे 25 से 30 लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट चाहिए, लेकिन कोविड मरीजों को इससे कहीं ज्यादा जरूरत होती है। इन्हें अभी हार्ट फ्लो नेजल ऑक्सीजन थैरेपी दी जा रही है। इसमें मरीज को एक मिनट में 50 से 60 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। डॉक्टर रंजू ने कहा कि एमएफएनओ में एक खास प्रकार की मशीन का इस्तेमाल होता है, जो नाक की दोनों नली के जरिये दी जाती है। इससे मरीज की ऑक्सीजन की जरूरत पूरी होती है लेकिन इसमें दोगुना ज्यादा ऑक्सीजन खर्च होती है। जिस तरह दिल्ली में कोविड मरीजों का इजाफा हुआ है और वेंटिलेटर मरीज की संख्या बढ़ी है, उसकी वजह से ऑक्सीजन की डिमांड भी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के अधिकांश सभी बड़े अस्पतालों में लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। सभी बड़े अस्पतालों में प्लांट हैं, जहां से पाइप के जरिये ऑक्सीजन वार्ड, आईसीयू और वेंटिलेटर बेड्स में सप्लाई की जाती है। यह आमतौर पर इमरजैंसी के लिए होता है, जब मरीज को कहीं शिफ्ट करना हो या जांच के लिए जाना हो। -अनिल नरेन्द्र

Sunday 25 April 2021

एक देश, एक वैक्सीन... तीन दाम

एक मई से 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन खुलने से पहले केंद्र सरकार के निर्देश के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट ने रेट जारी कर दिए। कंपनी राज्य सरकारों को 400 रुपए और निजी अस्पतालों को 600 रुपए प्रति डोज की दर से वैक्सीन देगी। कंपनी की इस घोषणा के बाद से ही वैक्सीन के दाम पर बवाल मच गया। दरअसल सीरम अब तक केंद्र सरकार को 150 रुपए प्रति डोज की दर से वैक्सीन दे रही और समझौते के मुताबिक जुलाई तक इसी रेट पर देती रहेगी। राज्य सरकारों के लिए ज्यादा दाम रखने पर विपक्षी दल केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए हैं। यही नहीं, निजी अस्पतालों के लिए नए रेट जारी होने से अब प्राइवेट में टीका लगवाने वाले 45 पार के लोग व फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी ज्यादा दाम चुकाने होंगे। अब तक इन सभी को प्राइवेट अस्पतालों में 250 रुपए प्रति डोज पर वैक्सीन लग रही थी। इसमें 150 रुपए वैक्सीन की कीमत और 100 रुपए लॉजिस्टिक चार्ज था। कंपनी के नए रेट हूबहू लागू हुए तो लॉजिस्टिक चार्ज के साथ एक डोज 700 रुपए की पड़ेगी। 45+ के जो लोग निजी अस्पताल में पहली डोज 250 रुपए में लगवा चुके हैं, उनकी दूसरी डोज भी अब बढ़ी हुई कीमत पर लगेगी। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से सरकारी अस्पतालों और सरकारी टीकाकरण केंद्रों में 45+ के लोगों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को मुफ्त में ही वैक्सीन लगाई जाएगी। सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन कोविशील्ड के दाम को लेकर महाराष्ट्र के सत्तापक्ष एवं विपक्ष में रार छिड़ गई है। केंद्र सरकार के लिए कोविशील्ड के दाम कम एवं राज्यों के लिए ज्यादा रखे जाने पर राकांपा व कांग्रेस ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। महाराष्ट्र के महाविकास अघाड़ी सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने सवाल उठाया है कि सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा उत्पादित कोविशील्ड वैक्सीन केंद्र सरकार को 150 रुपए में, जबकि राज्य सरकारों को 400 रुपए में क्यों दी जा रही है? बता दें कि खुले बाजार में इसकी कीमत 600 रुपए प्रति खुराक निर्धारित की गई है। मलिक ने पूछा है कि एक वैक्सीन, एक देश और तीन दाम क्यों हैं? अलग-अलग ग्राहकों के लिए अलग-अलग दाम क्यों हैं। इसका उत्तर सीरम को देना चाहिए। हालांकि सीरम के सीईओ अदार पूनावला ने अपने बयान में तीन विदेशी वैक्सीन के दाम भी बताए हैं, जो भारत में खुले बाजार के लिए दी जाने वाली कोविशील्ड की तुलना में अधिक ही है। इनमें अमेरिकी वैक्सीन की कीमत 1500 रुपए एवं रूस की वैक्सीन की कीमत 350 रुपए बताई गई है। बता दें कि पूनावाला द्वारा जारी इस बयान पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी तंज कसा है। उन्होंने ट्वीट में इस बयान को नत्थी करते हुए लिखा है कि आपदा देश की, अवसर मोदी मित्रों का, अन्याय केंद्र का। राहुल के इस बयान का जवाब देते हुए महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत दादा पाटिल ने कहा है कि कोरोना ने शायद राहुल गांधी के दिमाग पर असर डाला है। इसीलिए वह अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे के अनुसार सीरम इंस्टीट्यूट ने राज्य सरकार को बता दिया है कि वह 24 मई से पहले वैक्सीन नहीं दे पाएंगे, क्योंकि केंद्र के साथ उसने एक करार कर रखा है। इसीलिए महाराष्ट्र सरकार अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए विदेशी वैक्सीन निर्माताओं से बात करने का विचार कर रही है।

नेक इंसान, मिलनसार विकास पुरुष डॉ. वालिया

दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार के 15 वर्ष के कार्यकाल के दौरान स्वास्थ्य, लोक निर्माण, उच्च शिक्षा और वित्त जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके डॉ. अशोक कुमार वालिया का कोरोना संक्रमण से निधन होना बहुत भारी क्षति है। पार्टी के लिए हमेशा समर्पित, मृदुभाषी, मिलनसार और कर्मठ नेता को हमेशा विकास पुरुष के रूप में याद किया जाएगा। मंत्री के तौर पर डॉ. वालिया ने दिल्लीवासियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने की सभी कोशिशें की। महामारी से लड़ने में भी उनके किए कार्यों से मदद मिल रही है। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उन्होंने 21 नए अस्पताल बनाए। इनमें पांच विशेष अस्पाल शामिल हैं। प्राथमिक चिकित्सा को ध्यान में रखते हुए उनके कार्यकाल में 364 डिस्पेंसरियां बनाई गई। उनके निधन से कांग्रेस में शोक की लहर दौड़ गई। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा समेत मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने शोक व्यक्त किया। राहुल गांधी ने कहा कि डॉ. वालिया गहरी सामाजिक चेतना के साथ-साथ पार्टी के अहम सदस्य थे। अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए केजरीवाल ने शोक संतप्त परिवार को शक्ति देने के लिए प्रार्थना की। प्रियंका गांधी ने कहा कि डॉ. वालिया ने संकट में कई लोगों की मदद की। डॉ. वालिया के निधन से कांग्रेस पार्टी के तमाम कार्यकर्ता और नेता दुखी हैं। दिल्ली को स्वस्थ रखने की कल्पना के साथ आगे बढ़ने वाले डॉ. वालिया खुद कोरोना की जंग में तो जरूर हार गए, लेकिन उनके बनवाए हुए 21 अस्पतालों में लाखों लोग स्वस्थ हुए। प्राइमरी हैल्थ को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के सभी विधानसभाओं व वार्ड में 364 डिस्पेंसरियों का निर्माण वालिया के कार्यकाल में हुआ। सुपर स्पेशियलिटी सेंटर की बात करें तो इस अवधारणा के साथ पांच विशेष अस्पतालों का निर्माण करवाया। स्वास्थ्य ही नहीं दिल्ली के विकास में योगदान देने वाले फ्लाइओवरों का जाल भी वालिया ने अपने शहरी विकास मंत्री रहने के दौरान ही तैयार कराया। उन्होंने दिल्ली में 65 फ्लाइओवर, 60 फुट ब्रिज, सब-वे और 6240 किलोमीटर सड़क निर्माण में विशेष योगदान दिया। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने छह विश्वविद्यालय, छह डीम्ड विश्वविद्यालय, 22 जनरल एजुकेशन के कॉलेज व 23 प्रोफेशनल शिक्षा के लिए कॉलेज उनके ही शिक्षा मंत्री रहने के दौरान खुले। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित व वालिया के साथ कैबिनेट मंत्री रहे डॉ. नरेन्द्र नाथ का कहना है कि दिल्ली के विकास के लिए एके वालिया बराबर याद किए जाएंगे। कोविड काल में जितने भी अस्पताल दिल्ली वालों की सेवा कर रहे हैं उनमें से 99 प्रतिशत वालिया की ही देन हैं। गीता कॉलोनी में फ्लाइओवर बनवाकर टैफिक जाम से छुटकारा दिलाने में अहम भूमिका में वालिया रहे। वह नेक इंसान के साथ ईमानदार, मददगार नेता के रूप में जाने जाएंगे। मीडिया के लोग उनके वालिया नर्सिंग जाकर मुफ्त इलाज करवाते थे। उन्होंने कभी भी किसी से पैसे नहीं लिए। हर किसी की समस्या सुनना, उसे दूर करने का प्रयास करना यह डॉ. वालिया की खूबी थी। उनके जाने से हम बहुत भारी क्षति महसूस कर रहे हैं।

जून में रोज 2500 मौतें होने की आशंका

जून में हर दिन देश में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा ढाई हजार के पार हो सकता है। लैसेंट जर्नल में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में भारत को लेकर यह दावा किया गया है। एक अहम तथ्य यह है कि शोध से जुड़े एक वैज्ञानिक भारत सरकार की कोरोना टास्क फोर्स के सदस्य हैं। भारत में दूसरी कोरोना लहर के प्रबंधन के लिए जरूरी कदम शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जल्द ही देश में हर दिन औसतन 1750 की मौत हो सकती है। रोजाना मौतों की यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ते हुए जून के पहले सप्ताह में 2320 तक पहुंच सकती है। इस बार देश के टीयर-2 व टीयर-3 श्रेणी वाले शहर सबसे ज्यादा संक्रमित हैं। यानि 10 लाख तक की आबादी वाले शहरों में इस बार हाल ज्यादा खराब हैं। भौगोलिक स्थिति के हिसाब से देखें तो पहली लहर और दूसरी लहर में संक्रमण क्षेत्र लगभग वही है। पहली और दूसरी लहर में अंतर समझिए। पहली लहर के दौरान 10 हजार प्रतिदिन नए केसों से 80 हजार प्रतिदिन नए केस होने में 83 दिन लगे थे। जबकि इस बार फरवरी से अप्रैल की शुरुआत तक प्रतिदिन मामले 80 हजार होने में मात्र 10 दिन लगे। शोध के मुताबिक इस बार कोरोना केस ज्यादा तादाद में मिल रहे हैं जिनकी तुलनात्मक रूप से कम मौतों हो रही हैं। जबकि पहली लहर में लक्षण वाले मरीजों की तादाद बहुत अधिक थी जिससे ज्यादा मौतें हो रही थीं। पहली लहर के दौरान 50 प्रतिशत मामले 40 जिलों से आते थे, जो अब घटकर 20 जिले रह गया है। यानि कुछ जिलों में संक्रमण ज्यादा कहर बरपा रहा है। पिछले साल जब पहली लहर चरम पर थी तब 75 प्रतिशत मामले 60 से 100 जिलों से दर्ज हो रहे थे, जबकि इस बार इतने ही प्रतिशत केसों में मात्र 20 से 40 जिलों का योगदान है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday 24 April 2021

आर्थिक हित मानव जीवन से ऊपर नहीं हो सकते

उच्च न्यायालय ने कोविड-19 मरीजों के लिए राजधानी में ऑक्सीजन की कमी को अत्यंत गंभीरता से लिया है। अदालत ने कहा कि आर्थिक हित मानव जीवन से ऊपर नहीं हो सकते, उद्योग इंतजार कर सकते हैं, मरीज नहीं। कोविड-19 रोगियों को ऑक्सीजन प्रदान करने के लिए इस्पात और पेट्रोलियम उत्पादन में कुछ कमी का सुझाव भी दिया। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान केंद्र ने बताया कि फिलहाल दिल्ली में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई कमी नहीं है। कुछ उद्योगों को छोड़कर ऑक्सीजन के अन्य तरह के औद्योगिक इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। खंडपीठ ने इससे पूर्व कहा था कि उद्योग बिना ऑक्सीजन के रुक सकते हैं लेकिन कोविड मरीज नहीं। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि यदि लॉकडाउन जारी रहता है तो सब कुछ रुक जाएगा। इसलिए ऐसी स्थिति में स्टील, पेट्रोल और डीजल की क्या जरूरत होगी? अदालत ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान विकास का क्या होगा और ऑक्सीजन के औद्योगिक इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए 22 अप्रैल तक इंतजार क्यों किया जा रहा है। अदालत ने कहा कि कमी अब है, आप स्टील और पेट्रोलियम उद्योगों से कुछ ऑक्सीजन लेकर देखें। वह बड़ी लॉबी है। उन्हें बताएं कि उत्पादन में कटौती करने है तो फिर वह उत्पादन में कटौती कर सकते हैं। खंडपीठ ने कहा कि सबसे पहले लोगों की जान बचानी होगी। अदालत ने केंद्र सरकार को एक वकील का उदाहरण दिया जिसके पिता अस्पताल में भर्ती थे और ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे, लेकिन ऑक्सीजन की कमी के कारण उसे इसके संरक्षण के लिए कम दबाव पर ऑक्सीजन मुहैया कराई जा रही थी। अदालत ने चेतावनी देते हुए कहाöयदि अब भी कुछ नहीं किया गया तो हम एक बड़ी आपदा की ओर जा रहे हैं। करीब एक करोड़ लोगों को हम खो सकते हैं, क्या हम उसे स्वीकार करने को तैयार हैं? अदालत ने उन अस्पतालों में कोविड बैड बढ़ाने का भी सुझाव दिया, जिनमें अपनी ऑक्सीजन पैदा करने की क्षमता है। इससे पहले उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि क्या उद्योगों की ऑक्सीजन आपूर्ति कम करके उसे वह मरीजों को मुहैया कराई जा सकती है? अदालत ने कहा कि उन्होंने सुना है कि गंगा राम अस्पताल के डॉक्टरों को कोविड-19 के मरीजों को दी जाने वाली ऑक्सीजन मजबूरी में कम करनी पड़ रही है क्योंकि वहां जीवनरक्षक गैस की कमी है। केंद्र ने कहा कि दिल्ली में मेडिकल ऑक्सीजन की क्षमता बढ़ाने की खातिर पीएम केयर्स फंड से आठ प्रैशर स्विंग अडसॉर्पशन (पीएएस) ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाए जा रहे हैं। उसने कहा कि इन संयंत्रों की मदद से मेडिकल ऑक्सीजन की क्षमता 14.4 मीट्रिक टन बढ़ जाएगी।

गरीब के पेट पर ही बार-बार लात मारी जाती है

पिछली बार लॉकडाउन में मार्केट एसोसिएशन की तरफ से खाना खिलाया गया था। रोज सुबह-शाम राय चौक मार्केट में खाना बनता था और फिर लोगों को बांट दिया जाता था, लेकिन इस बार के लॉकडाउन में मिलेगा या नहीं? अभी तक कुछ नहीं पता। मार्केट के दुकानदारों की हालत भी बहुत खराब है। यह कहना है राय चौक मार्केट में दीये और फूल बेच रही पूनम का। पूनम बताती हैं कि फूलमाला बेचकर घर का खर्च चलाती हैं। पति पहले बेलदारी का काम करते थे लेकिन अब बीमार रहते हैं और घर में बच्चे हैं, जोकि पढ़ाई कर रहे हैं। मेरे अलावा कोई कमाने वाला नहीं है। फिर से लॉकडाउन होने की वजह से बहुत दिक्कत होने वाली है। यह भी नहीं पता, कब तक लगेगा। पहले दो दिन का लगाया था, अब एक सप्ताह का और लगा दिया। किराये के मकान में रहते हैं। कहां से किराया का पैसा लाएंगे और खाने का इंतजाम कैसे करेंगे? पालम में पानी की पाइपलाइन ठीक कर रहे दिहाड़ी मजदूर सुरेन्द्र ने बताया कि कोविड संक्रमण बढ़ गया है। इस वजह से लॉकडाउन लगाया गया है। उम्मीद है कि सरकार ने दिहाड़ी मजदूर के बारे में भी सोचा होगा। इसकी वजह से काम पर असर पड़ेगा। कमाई कम होगी। कर भी क्या सकते हैं? हर बार गरीब के पेट पर ही लात पड़ती है। नजफगढ़ के रेहड़ी वाले पवित्र महेन्द्र ने बताया कि छह दिन के लॉकडाउन से काम पर असर पड़ेगा। पिछली बार भी लॉकडाउन में काम पर असर पड़ा था। मगर खाने को लेकर दिक्कत नहीं हुई थी। राशन आराम से मिल गया था। पटरी लगाने वाली निर्मला कहती हैं कि पति का एक्सिडेंट हो गया। पहले फैक्ट्री में काम करते थे, मगर फैक्ट्री बंद हो गई। अब काम नहीं मिल रहा है। जिसकी वजह से दीपावली में फूल बेचने का काम शुरू किया था। अब लॉकडाउन की वजह से घर का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। घर में कोई सफाई का काम भी नहीं देता है। पिछले साल लॉकडाउन के दिन याद करके रूह कांप जाती है। रोज भगवान से यही दुआ करती थी कि कुछ भी हो जाए मगर पिछले साल जैसे दिन न आएं, लेकिन अब फिर से वही दिन वापस आ रहे हैं। मुझे अपने बच्चों के लिए डर लगता है। एक वक्त की रोटी खाए बिना रह लूंगी। लेकिन मेरे बच्चे कैसे रह पाएंगे? रेहड़ी लगाने वाले धीरज कहते हैं कि काम की तलाश में 15 साल पहले आगरा से आया था। तब से चूड़ी और कंगन बेचकर घर चलाता हूं। बच्चों की पढ़ाई का भी खर्च इसी से चलता है। अब दोबारा लॉकडाउन हो गया। परेशानी होगी। बच्चों के स्कूल की छोटी-मोटी जरूरत और दवाई के खर्च कैसे निकलेंगे? इस लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा गरीबों को परेशान किया है। एक दिन में जो कमाई होती है उसी से घर का सामान लाते और रोजाना घर के किराये के लिए पैसे अलग से रखते हैं। लेकिन एक दिन भी कमाई नहीं होती तो पूरे महीने का बजट बिगड़ जाता है। लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार दिहाड़ी वाले मजदूरों, रेहड़ी-पटरी लगाने वालों को पड़ रही है। उन्हें खाने के लाले पड़ गए हैं। अगर कोई खान बांटे, कोई लंगर लगाए तो वहां के मजदूरों को एक वक्त का खाना मिल जाता है, पर जब यह नहीं मिले तो भूखे पेट ही सोना पड़ता है। सरकार को इनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए।

वैक्सीन और कोरोना टेस्ट एक ही जगह

दिल्ली में लॉकडाउन के दौरान वैक्सीनेशन और टेस्टिंग के लिए लोगों को छूट दी गई है। लेकिन डिस्पेंसरियों में इन दिनों कामों के लिए जाने वाले लोग काफी परेशान और डरे हुए हैं। साउथ वैस्ट एरिया की डिस्पेंसरियों में एक ही जगह पर टेस्टिंग और वैक्सीनेशन के लिए लाइनें लग रही हैं। भीड़ इतनी है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल हो रहा है। यहां टेस्टिंग की लाइन में लगे कई मरीज खांस रहे हैं, तो कुछ छींक रहे होते हैं। इतनी तेज गर्मी में कई बार लोग मास्क भी नाक के नीचे कर लेते हैं ताकि खुलकर सांस ले सकें। ऐसे में लोगों को डर है कि वह आए तो वैक्सीनेशन के लिए हैं, लेकिन कहीं उन्होंने कोरोना न हो जाए। पालम, मंगलापुरी दोनों डिस्पेंसिरयों का कमोबेश यही हाल है। यहां पर सुबह से ही लोगों की कतारें लगनी शुरू हो जाती हैं। टेस्टिंग हो या वैक्सीनेशन, एक से दो घंटे तक का समय लग रहा है। लोगों के अनुसार इस समय कहीं भी भीड़ कम रहे इसके लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए। सरकार को पहले की तरह टेस्टिंग के लिए कैंप लगाने चाहिए, ताकि लोगों को अपने घरों के पास ही टेस्टिंग करवाने की सुविधा मिले। लेकिन ऐसे कैंप नजर नहीं आ रहे हैं। यदि डिस्पेंसरियों में ही टेस्टिंग और वैक्सीनेशन करना है तो दोनों के समय अलग-अलग कर देने चाहिए ताकि भीड़ भी कम हो जाए और वैक्सीनेशन के लिए आने वाले लोग टेस्टिंग के लिए आ रहे मरीजों के सम्पर्क में न आएं। लोगों के अनुसार इस तरह की व्यवस्था लोगों को वैक्सीनेशन से दूर कर सकती है। -अनिल नरेन्द्र

Friday 23 April 2021

वैक्सीन की लाखों डोज बर्बाद

एक तरफ जब देश में कोविड-19 के कारण रोजाना 1500 से अधिक लोगों की जान जाने लगी है वहीं कई राज्यों से टीके के अभाव की शिकायतें सुनने को मिल रही हैं, तब यह चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन हुआ है कि 11 अप्रैल तक देश में टीके की 44.5 लाख से अधिक खुराकें बर्बाद हो गई हैं। देश में 16 जनवरी से शुरू हुए टीकाकरण अभियान के बाद से 11 अप्रैल तक देश में 44.5 लाख से अधिक डोज बर्बाद हो चुकी हैं। टीके की बर्बादी में सबसे आगे तमिलनाडु है। सरकार ने यह जानकारी आरटीआई (सूचना के अधिकार) कार्यकर्ता और फ्रीलांस पत्रकार विवेक पांडेय द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में दी। सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 11 अप्रैल तक राज्यों को टीके की करीब 10.34 करोड़ डोज जारी की गई, जिसमें से 44.78 लाख से अधिक डोज विभिन्न कारणों से बेकार हो गई। सबसे ज्यादा 12 प्रतिशत डोज तमिलनाडु में बर्बाद हुई। इसके बाद हरियाणा में 9.74 प्रतिशत, पंजाब में 8.12 प्रतिशत, मणिपुर में 7.8 प्रतिशत, तेलंगाना में 7.55 प्रतिशत डोज बर्बाद हुई। वहीं केरल, बंगाल, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, गोवा, दमन और दीव, अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश रहे, जहां वैक्सीन की डोज न के बराबर यानि जीरो प्रतिशत बर्बाद हुई। उल्लेखनीय है कि देश में कोरोना वैक्सीन को लेकर गैर-भाजपा शासित राज्यों और केंद्र के बीच जमकर राजनीति हो रही है। महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली की सरकारें केंद्र पर आरोप लगाती रही हैं कि उन्हें गुजरात के मुकाबले वैक्सीन का स्टॉक कम मिला। केंद्र सरकार के द्वारा सोमवार को पहली मई से 18 साल के ऊपर के सभी लोगों को कोरोना टीका लगाने की अनुमति देने के बाद देश में टीकाकरण अभियान को और गति मिलने की उम्मीद है। देशभर में वैक्सीन की भारी मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने विदेश में इस्तेमाल की जा रही अलग-अलग कोरोना वैक्सीन के भी भारत में आपात इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। वैक्सीन की बर्बादी काबिले बर्दाश्त नहीं है। इसे तुरन्त रोकने के उपाय होने चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि टीकाकरण सत्रों का नियोजन बेहतर व प्रभावी होना चाहिए। हर सत्र में अधिक से अधिक 100 लाभार्थियों का टीकाकरण किया जाना चाहिए। जब तक 10 लोग मौजूद न हों तब तक शीशी न खोलें। एक शीशी में 10 डोज होती हैं। अगर 10 से कम लोग होंगे तो डोज बच जाएंगी और उसको अगर ध्यान से स्टोर न किया जाए तो वह बर्बाद हो जाएगी। प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी को ही टीकाकरण में लगाया जाए, ताकि शीशी में उपलब्ध सभी खुराक का इस्तेमाल हो सके। कोविड-19 से संघर्ष में इस वक्त हम जिस मोड़ पर खड़े हैं, उसमें अब किसी कोताही के लिए कोई जगह नहीं है, बल्कि वह जनता ही नहीं, पूरी मानवता के प्रति आपराधिक लापरवाही कहलाएगी। देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत से पहले बाकायदा कई अभ्यास किए गए थे, इसका प्रोटोकॉल तय हुआ था, उसके बावजूद यदि यह स्थिति है तो हमें अपनी निगरानी तंत्र पर गौर करने और बगैर वक्त गंवाए उसे दुरुस्त करने की दरकार है। राज्य सरकारों को भी अपनी कार्यशैली पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। देश के नागरिक इस समय तकलीफ में हैं, तो ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए, जिससे उनकी पीड़ा दोहरी हो जाए। लोग गम जज्ब कर लेते हैं, अगर उन्हें यह दिखता है कि मददगारों ने अपनी ओर से ईमानदारी से कोशिश की है। इसलिए जीवन रक्षक संसाधनों की बर्बादी, कालाबाजारी को केंद्र और राज्य सरकारों को हर हाल में रोकना होगा।

पैगंबर के अपमान पर पाकिस्तान में हिंसा

फ्रांस ने पाकिस्तान से अपने 15 राजनयिकों को वापस बुला लिया है। पैगंबर मोहम्मद के कार्टून प्रकाशन को लेकर हुई हिंसा के बाद फ्रांस ने यह फैसला किया है। पाकिस्तान में बीते दिनों से हिंसक झड़पें जारी हैं, जिनमें एक प्रतिबंधित संगठन भी शामिल है। इन लोगों की मांग है कि फ्रांस के राजनयिकों को पाकिस्तान से बाहर किया जाना चाहिए। इन मांगों और हिंसा के बीच फ्रांस ने अपने राजनयिकों को इस्लामिक देश से वापस बुला लिया है। पाकिस्तान ने इस हिंसा में शामिल संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान पर एंटी टेरेरिज्म एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए बैन लगा दिया है। इस हिंसा में दो पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। लगातार तीन दिनों तक हिंसक प्रदर्शन किए जाने के बाद पाक सरकार ने इस संगठन पर बैन लगा दिया। पाकिस्तान में हिंसा के चलते अब तक 15 राजनयिक देश छोड़ चुके हैं या फिर निकलने की तैयारी में हैं। फ्रांसीसी अखबार लेफिगाटो की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। फ्रांसीसी दूतावास ने अपने नागरिकों को लिखा था। पाकिस्तान में फ्रांसीसी हितों के सामने गंभीर खतरा है। ऐसी स्थिति में हमारी सलाह है कि फ्रांस के नागरिक और कंपनियां अस्थायी तौर पर देश से निकल जाएं। अब फ्रांस की ओर से राजनयिकों को वापस बुलाए जाने से साफ है कि यूरोपीय देश और पाकिस्तान के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। फ्रांस की एमैनुअल मेक्रों की सरकार की ओर से व्यंग्य पत्रिका शार्ली हेब्दो में प्रकाशित पैगंबर के कार्टून का बयान किया गया था। इसके बाद ही दोनों देशों के बीच संबंधों में दरार देखने को मिल रही है। राष्ट्रपति मैक्रों के बयान का पाकिस्तान में तीखा विरोध किया था। इमरान खान ने भी शार्ली हेब्दो की निन्दा की।

गोदामों से आती रही शराब, फिर भी कम पड़ गई

लॉकडाउन का आदेश आते ही पूरी दिल्ली में लोग शराब खरीदने के लिए ठेकों पर उमड़ पड़े। लगभग हर शराब के ठेके के बाहर इतनी भीड़ बढ़ गई कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ गईं। एक-एक व्यक्ति ने कई पेटियां खरीद डालीं। हालांकि पूरी दिल्ली में एक दिन में कितनी शराब बिकी, इसके आंकड़े अभी नहीं मिले। एक्साइज डिपार्टमेंट का कहना है कि जरूरत से कई गुना शराब बिक गई। जीके में तो दोपहर दो बजे ही शराब की दुकानों पर इतनी भीड़ जमा हो गई कि ठेकों को बंद करना पड़ा। मालवीय नगर में भी स्टॉक खत्म होने की वजह से शराब की दुकानों को बंद करना पड़ा। कालका जी में शराब के इतने खरीददार पहुंच गए कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। लक्ष्मीनगर मेट्रो स्टेशन के पास शराब की दुकान पर भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी। खान मार्केट में भी शराब खरीदने वालों की लंबी लाइन देखने को मिली। दुर्गापुरी चौक के पास शराब के लिए उमड़ी भीड़ की वजह से जाम लग गया। लोग बिना एमआरपी पूछे ही शराब खरीद रहे थे। दुकानदार जो भी ब्रांड और कीमत की शराब या बीयर ग्राहकों को दे रहे थे और कस्टमर भी बेहिचक खरीद रहे थे। रोहिणी सैक्टर-20 में दोपहर दो बजे काफी लोग लाइन में दिखे। जल्दबाजी में शराब लेने के चक्कर में लोग कोरोना नियमों को भूल गए। इस पर लोगों के बीच मामूली नोकझोंक भी हुई। दिल्ली में कई दुकानों में स्टॉक खत्म होने के बाद गोदामों से भी माल मंगवाया गया, लेकिन खरीददार इतने थे कि वह भी कम पड़ गया। लोग एक हफ्ते से लेकर एक महीने का स्टॉक जमा करते दिखे। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन करने हेतु गोले बनाए गए थे पर लोग एक-दूसरे पर चढ़े जा रहे थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेका आबादी के बीच है। कोरोना काल में इस तरह से भीड़ आएगी तो लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा और अधिक हो जाएगा। पर शराब पीने वालों को इसकी क्या परवाह है? -अनिल नरेन्द्र

Thursday 22 April 2021

प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू

दिल्ली में तेजी से फैल रही कोरोना महामारी का संक्रमण लगातार भयावह स्थिति पैदा कर रही है। दिल्ली में कोरोना के मरीजों के कारण सभी अस्पतालों में आईसीयू बैड फुल हो चुके हैं। कोरोना के गंभीर मरीज को लेकर परिजन इस अस्पताल से लेकर उस अस्पताल में आईसीयू के लिए चक्कर काटते रहे, पर ऐप और अस्पताल में आईसीयू बैड नहीं होने के कारण अस्पताल मरीज को भर्ती करने के बजाय किसी और अस्पताल में मरीज को ले जाने की सलाह दे रहे हैं। जीटीबी, एलएनजेपी सहित कई अस्पतालों में मरीजों को भर्ती नहीं करने पर बरामदे व अस्पताल परिसर में बैठने की बातें सामने आ रही हैं। दिल्ली में पूर्णबंदी की घोषणा होने के साथ ही प्रवासी मजदूरों का पलायन भी शुरू हो गया है। पहले ही दिन मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की अपील बेअसर होती दिखी। लॉकडाउन के साथ ही मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने प्रवासी मजदूरों से अपील की थी कि वह दिल्ली छोड़कर न जाएं। उन्होंने कहा कि यह छोटा लॉकडाउन है। उम्मीद है कि इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। केजरीवाल ने प्रवासियों से भावुक अपील करते हुए कहा कि यह निर्णय तब लेना पड़ा, जब मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था। यह फैसला हमारे लिए कठिन था। केजरीवाल ने कहा कि आपके आने-जाने में आपका समय, पैसा और काफी ऊर्जा खत्म हो जाएगी। आप दिल्ली में ही रहिए। मुझे उम्मीद है कि यह छोटा लॉकडाउन है और छोटा ही रहेगा। सरकार आपका ख्याल रखेगी। पर केजरीवाल की भावुक अपील के बावजूद प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है। आनंद विहार बस अड्डे पर भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों की भीड़ पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर बना फुटओवर ब्रिज लोगों की भीड़ से भरा नजर आ रहा है। लोग दीवार फांद कर बस अड्डे में दाखिल होने लगे हैं। यहां से ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश व बिहार जा रहे हैं। बस टर्मिनल पर देर रात तक उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाले लोगों की भीड़ बढ़ती गई। मजदूरों को भरोसा नहीं कि एक सप्ताह बाद दिल्ली में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। सबको इसके लंबा चलने का डर सता रहा है। यही डर है कि मजदूरों का पलायन होने लगा है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम का कौशांबी बस अड्डे से उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली बसें पूरी भरकर जा रही हैं। बसों में लोग बाहर लटक कर गए। इससे यह साफ है कि प्रवासी मजदूरों के बीच घर लौटने की होड़ मच गई है। अन्य बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर पहुंच रहे हैं। स्टेशनों पर प्रवासियों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। लोगों ने कहा कि अब यहां काम नहीं मिल रहा, राशन में परेशानी होने लगी है, लिहाजा वह घर लौट रहे हैं। दिल्ली के तमाम बस स्टैंडों पर मजदूरों की भीड़ देखी जा रही है। दिल्ली से हजारों मजदूर अपने घर लौटने के लिए लोग सिर पर सामान रखे और महिलाएं गोद में बच्चे लिए नजर आ रही हैं। मजदूर बच्चों को गोद, कंधे और सामान सिर पर लिए आनंद विहार बस टर्मिनल और कौशांबी बस डिपो के बीच दौड़ते नजर आ रहे हैं और सभी मजदूरों में होड़ है कि जल्दी से अपने गांवों को वापस पहुंचें। साल 2020 में लॉकडाउन की परेशानी देख चुके मजदूर दिल्ली छोड़कर अपने गांव पहुंचना चाहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मजदूरों के पलायन की स्थिति एक बार फिर देखने को मिल रही है। मजदूर भी क्या करें उन्हें 2020 के लॉकडाउन का भूत सता रहा है। वह दोबारा उस स्थिति से नहीं निपटना चाहते। इन्हें रोकने का प्रयास होना चाहिए, सारी सुविधाएं देने का आश्वासन देना होगा ताकि वह दिल्ली में ही टिके रहें।

कंधा देने वाले चार लोग भी नहीं मिले

गोरखपुर शहर में पिता की मौत के बाद शिक्षक बेटे ने भी कोरोना में दम तोड़ दिया। शव अस्पताल से घर पहुंचा तो खौफ में पड़ोसियों ने दरवाजे बंद कर लिए गए। किसी ने झांका तक नहीं। शिक्षक के भाई और भतीजे भी संक्रमित हैं। एक भाई की हालत गंभीर है। कंधा देने वाले चार लोग भी नहीं। अंतिम संस्कार का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में पृथक्वास में रहने वाले दूसरे मोहल्ले के एक व्यक्ति को जानकारी मिली। उसने फोन कर प्रशासन को सूचना दी तब छह घंटे बाद शव वाहन पहुंचा। पिता को मुखाग्नि देने वाले संक्रमित भाई ने राप्ती तट पर शिक्षक का भी अंतिम संस्कार किया। इंसानियत को झकझोर देने वाली यह घटना गोरखपुर शहर के रामजानकी नगर की है। 12 अप्रैल को कॉलोनी में रहने वाले रिटायर बिजली कर्मचारी के घर मौत ने दस्तक दी। रिटायर बिजली कर्मी चल बसे। परिवार के मुताबिक उनकी रिपोर्ट नेगेटिव थी लेकिन लक्षण कोरोना वाले ही थे। ऐसे में शिक्षक बेटे ने अपनी और दोनों भाइयों व बच्चों को 11 अप्रैल को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जांच कराई जिनकी रिपोर्ट पिता की मौत के एक दिन बाद पॉजिटिव आई थी। पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद परिवार होम आइसोलेशन में था। इस सदमे से परिवार अभी उबर नहीं पाया था कि गुरुवार देर रात शिक्षक की हालत बिगड़ गई। शुक्रवार तड़के संक्रमित भाई और भतीजे उन्हें ऑटो में एचएन सिंह चौराहे के पास एक निजी अस्पताल में ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत बताया। यहां से बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले गए, जहां हॉस्पिटल के सामने एंबुलैंस ड्यूटी में तैनात टेक्नीशियन ने भी मृत बताया तब सुबह सात बजे शव को लेकर घर आ गए। इसके बाद ही देखते ही देखते आसपास के घरों ने अपने दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लीं। दोपहर तक शव घर पर ही रहा। इसी बीच कोतवाली क्षेत्र में रहने वाले विजय श्रीवास्तव को इसकी जानकारी मिली। भाई के संक्रमित होने से खुद को घर में आइसोलेट कर चुके विजय ने फोन से प्रशासनिक अफसरों को सूचना दी। इसके बाद दोपहर करीब एक बजे प्रशासन ने शव वाहन के साथ टीम को भेजा तब शव राप्ती तट पर ले जाया गया। पिता को मुखाग्नि देने वाले बड़े भाई ने छोटे का अंतिम संस्कार किया।

नीरव मोदी प्रत्यार्पण का रास्ता साफ

भारत में पंजाब नेशनल बैंक के साथ 13 हजार करोड़ रुपए का घोटाला करने वाले हीरा कारोबारी नीरव मोदी के प्रत्यार्पण की ब्रिटेन की गृहमंत्री प्रीति पटेल ने अनुमति दे दी है। इसे भारत सरकार के प्रयासों की कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। सीबीआई की याचिका पर ब्रिटिश कोर्ट ने नीरव के प्रत्यार्पण का आदेश दिया, जिसके बाद पटेल ने ब्रिटिश सरकार की ओर से उसे भारत भेजने की हरी झंडी दे दी। भारत में सीबीआई ने 31 जनवरी 2018 को नीरव, मेहुल चोकसी और पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले में संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। लेकिन जांच एजेंसी के कदम की भनक लगते ही नीरव और मेहुल चोकसी देश से फरार हो गए। यह घोटाला फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी करने को लेकर हुआ था। इसके आधार पर नीरव और मेहुल चोकसी को बैंकों से बेरोकटोक नकद राशि मिल जाती थी, जिसे बाद में वह वापस नहीं करते थे। इसी के चलते 13 हजार करोड़ का घोटाला हुआ। लंदन की वेस्टमिंस्टर कोर्ट के डिस्ट्रिक्ट जज सैमुअल गूंजी ने नीरव को घोटाले का साजिशकर्ता माना और कहा कि उसे भारतीय अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। ब्रिटिश कोर्ट ने भारतीय जेलों में नीरव के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हीरा कारोबारी की सारी दलीलों को खारिज करते हुए फैसला सुनाया है। इसी आदेश के आधार पर ब्रिटेन की गृहमंत्री ने नीरव के प्रत्यार्पण के अनुमति पत्र पर दस्तखत किए हैं। लेकिन नीरव गृहमंत्री की अनुमति के 14 दिन के भीतर हाई कोर्ट में इसे चुनौती दे सकता है। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday 21 April 2021

वोटर की जान से ज्यादा जरूरी रैली, रोड शो

रविवार को पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल में एक नया रंग मिल गया। कोरोना के बढ़ते कहर के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बंगाल में बाकी चरणों में प्रचार नहीं करने का फैसला किया है। उन्होंने राज्य में होने वाली बाकी सभी रैलियों को रद्द कर दिया है। राहुल ने रविवार को ट्वीट कियाöकोविड की स्थिति को देखते हुए मैं बंगाल में अपनी सभी रैलियों को स्थगित कर रहा हूं। मैं सभी नेताओं को सलाह दूंगा कि मौजूदा हालात में बड़ी रैलियों के परिणामों पर गहराई से विचार करें। सोचना चाहिए कि इन रैलियों से जनता का देश को कितना खतरा है। कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने भी कहाöपीएम को दिल्ली में रहकर काम करना चाहिए और मुख्यमंत्रियों के साथ समन्वय कर कोरोना से निपटना चाहिए। राहुल ने एक अन्य ट्वीट के जरिये मोदी पर निशाना साधा, जिसमें मोदी ने कहा था कि उनकी रैली में बंगाल में इतनी भीड़ है कि जहां तक नजर जा रही है, लोग ही लोग दिख रहे हैं। पीएम के भाषण का यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल है और इसी सन्दर्भ में राहुल ने लिखाöबीमारों और मृतकों की भी इतनी भीड़ पहली बार देखी है। वरिष्ठ तृणमूल नेता और राज्य के मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने कहा कि पार्टी कोई बड़ी रैली नहीं करेगी। चट्टोपाध्याय भवानीपुर सीट से चुनावी मैदान में हैं। दरअसल बंगाल में रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ को लेकर सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग पर निशाना साधा जा रहा है। आम आदमी पार्टी ने कोरोना महामारी के प्रबंधन में ढिलाई को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक राघव चड्ढा ने कहा कि पिछले 10 दिनों में जिस गति से कोरोना संक्रमण और मौत का आंकड़ा बढ़ा है, उससे ज्यादा रफ्तार बंगाल में भाजपा की रैलियों की रफ्तार बढ़ी है। उन्होंने कहा कि देश में कोरोना के रोजाना दो लाख से अधिक मामले आ रहे हैं और भाजपा बंगाल चुनाव में जनसैलाब वाली रैलियों में व्यस्त है। चड्ढा ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और भारतीय जनता पार्टी से महामारी की लड़ाई में देशवासियों का साथ देने की अपील की। उन्होंने कहा कि जनसैलाब वाली रैलियों के जरिये सुपर प्रैडर इवेंट आयोजित किए जा रहे हैं। देश के किसी भी नागरिक या सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों को कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करने के लिए कहा जाता है तो उसका तुरन्त उत्तर आता है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में तो सभी राजनीतिक दल और उसके नेता-कार्यकर्ता कोरोना के सभी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। भाजपा के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि राहुल रैली करें या न करें फर्क नहीं पड़ता है। उनकी रैली में भीड़ भी नहीं आती, अब सूरत बचाने को ऐसा कर रहे हैं। वैसे चुनाव आयोग के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए रैलियों पर पाबंदी लगाने का अधिकार है। इस अधिकार के तहत वह पश्चिम बंगाल के चुनाव में रैलियों, रोड शो और सभाओं पर तुरन्त प्रतिबंध लगाकर एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकता था। अगर चुनाव आयोग ऐसा करता तो पूरे देश में उसकी प्रशंसा होती और इस आरोप से भी बच जाता कि वह भाजपा के इशारों पर काम कर रहा है। केंद्र सरकार को भी कोरोना की गंभीर स्थिति को समझना चाहिए। भाजपा और टीएमसी दोनों को जनहित को चुनाव हित से उपर रखना चाहिए।

लालू को हाई कोर्ट ने दी जमानत

झारखंड उच्च न्यायालय ने करोड़ों रुपए के चारा घोटाले से जुड़े दुमका कोषागार मामले में शनिवार को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को जमानत दे दी और इसके साथ ही उनके जेल से रिहा होने का रास्ता साफ हो गया। चारा घोटाले से एक जुड़े केस में लालू 23 दिसम्बर 2017 से जेल में थे। न्यायमूर्ति एके सिंह ने लालू को जमानत दी। लालू का जेल से बाहर आने के लिए एक लाख के निजी मुचलके का बांड निचली अदालत में भरना होगा। हालांकि अदालत ने उन्हें जमानत अवधि के दौरान बिना अनुमति के देश से बाहर नहीं जाने तथा अपना पता और मोबाइल नम्बर नहीं बदलने का निर्देश दिया। चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू यादव की जमानत पर सुनवाई के दौरान अदालत ने सीबीआई की दलीलें खारिज कर दीं। लालू अभी नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में न्यायिक हिरासत में भर्ती हैं। सीबीआई की विशेष अदालत में जमानत संबंधी प्रक्रिया पूरी होने पर उनके जल्द जेल से रिहा हो जाने की संभावना है। उन्हें चारा घोटाले के अन्य तीन मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी है। अधिवक्ता देवीष मंडल ने कहा कि लालू की रिहाई के लिए सभी आवश्यक कार्यवाही जल्द ही सीबीआई अदालत खुलने पर पूरी कर लिए जाने की संभावना है। लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले से जुड़े सभी मामलों में जमानत मिलने के बाद उनके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है। रांची हाई कोर्ट ने उन्हें आधी सजा पूरी करने के बाद जमानत दी है। सूत्रों के अनुसार जल्द ही लालू प्रसाद को जमानत मिलने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी लेकिन चूंकि उनका इलाज दिल्ली एम्स में चल रहा है, ऐसे में उन्हें अगले एक-दो हफ्ते तक शायद ही बाहर आने का मौका मिले। लालू प्रसाद के करीबियों के अनुसार वह पूरी तरह ठीक होने के बाद ही वह सार्वजनिक तौर पर सामने आएंगे। आरजेडी संस्थापक लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में सजा पाने के बाद जब तीन साल पहले तीसरी बार जेल गए थे तो सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या अब वह वापसी कर पाएंगे और क्या उनके बिना उनकी पार्टी एकजुट रह पाएगी? तब लालू प्रसाद पिछले कई सालों से यूपीए की धुरी रहे हैं। भाजपा के खिलाफ मजबूत आवाज रहे हैं। लेकिन उनके बेटे तेजस्वी यादव ने न सिर्फ आरजेडी को बिखरने से रोका बल्कि पिछले साल एनडीए को कड़ी चुनौती भी दी थी। ऐसे में सवाल है कि क्या लालू प्रसाद अब दोबारा आरजेडी में अपना दखल बढ़ाएंगे या राष्ट्रीय राजनीति में अधिक फोकस करेंगे? दो बार जेल जाने के बाद भले लालू प्रसाद और मजबूत बनकर निकले हों, लेकिन इस बार उनके सामने कठिन चुनौती है। लालू प्रसाद के अब तक के सियासी रिकॉर्ड को देखते हुए उनके विरोधियों की भी नजर होगी कि इस बार वापसी के बाद उनका क्या रुख रहता है? हालांकि आरजेडी के अंदर भी यह उत्सुकता रहेगी कि जिस पार्टी में पूरी तरह पीढ़ी परिवर्तन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, वहां अब लालू प्रसाद की भूमिका कितनी होगी। आरजेडी के एक सीनियर लीडर ने कहा कि अभी लालू प्रसाद की जरूरत राष्ट्रीय राजनीति में सबसे अधिक है और वह विपक्षी दलों को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। बेटे तेजस्वी यादव का कहना था कि जमानत मिलने से खुशी है लेकिन उनके स्वास्थ्य को लेकर चिन्ता है। वह जब तक स्वस्थ नहीं हो जाते वहीं रहेंगे।

अमेरिका में गोलीबारी में चार सिखों की गई जान

अमेरिका के इंडियाना प्रांत में फेडएक्स कंपनी के परिसर में गोलीबारी की घटना में सिख समुदाय के चार व्यक्तियों की भी जान गई। इसके अलावा तीन अन्य लोग भी मारे गए और पांच लोग घायल हो गए। बंदूकधारी हमलावर की पहचान इंडियाना के 19 वर्षीय ब्रेंडन स्कॉट होल के रूप में की गई है। उसने इंडियानापोलिस में स्थित फेडएक्स कंपनी परिसर में गोलीबारी करने के बाद कथित तौर पर खुद को गोली मार ली। गोलीबारी की इस घटना पर पीड़ित परिवारों ने गुस्सा, भय व चिन्ता जताई है। डिलीवरी सेवा प्रदाता कंपनी के इस परिसर में कार्यरत 90 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक बताए जाते हैं, जिनमें ज्यादातर सिख समुदाय के हैं। सिख समुदाय के नेता गुरिन्दर सिंह खालसा ने फेडएक्स परिसर के कर्मचारियों के परिजनों से मुलाकात के बाद कहाöयह बेहद दुखद है। इस त्रासद घटना से सिख समुदाय आहत है। शुक्रवार देर रात, मेरियन काउंटी कोरोनर कार्यालय व इंडियानापोलिस मेट्रोपॉलिटन पुलिस विभाग ने मृतकों के नाम अमरजीत जौहल, जसविंदर कौर, अमरजीत और जसविंदर बताए हैं। इनमें शुरू के तीन नाम महिलाओं के हैं। आईएमपीडी ने कहा कि कोरोनर का कार्यालय घटना के कारणों का पता लगाएगा। इसने कहा कि सिख समुदाय के एक अन्य व्यक्ति हरप्रीत सिंह गिल को आंख के पास गोली लगी और अभी वह अस्पताल में हैं। बताया जा रहा है कि घटनास्थल पर पुलिस के आने से पहले हमलावर ने खुद को गोली मार ली। फेडएक्स ने इसकी पुष्टि की है कि उक्त हमलावर इंडियानापोलिस में कंपनी का पूर्व कर्मचारी था। आगे की जानकारी की प्रतीक्षा की जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन व उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने इस त्रासद घटना पर शोक व्यक्त किया है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday 20 April 2021

हम चुनाव नहीं चाहते थे, पर ज्यूडिशियरी और आयोग ने नहीं सुनी

राजस्थान में तीन विधानसभा सीटों (सहाड़ा, सुजानगढ़, राजसमंद) उपचुनाव के शनिवार को वोट पड़ गए। सीएम अशोक गहलोत ने शुक्रवार को ज्यूडिशियरी और चुनाव आयोग पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो हम कोविड प्रोटोकॉल फॉलो करने के लिए कहते हैं और दूसरी ओर चुनावों में लाखों लोगों की भीड़ की रैलियां और रोड शो होते रहे। ऐसा सब बिहार चुनाव से हो रहा है। राजनेता चाहते तो वर्चुअल रैली जैसे विकल्पों का इस्तेमाल कर भीड़ इकट्ठा होने से रोक सकते थे। सीएम ने सोशल मीडिया पर ज्यूडिशियरी और चुनाव आयोग पर हमला बोलते हुए कहा कि ज्यूडिशियरी और चुनाव आयोग भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने राज्यों के विरोध के बावजूद पंचायतों, स्थानीय निकायों व राज्यों के विधानसभा चुनाव करवाने के आदेश दे दिए। चुनाव आयोग चाहता तो आपातकाल की स्थिति में चुनाव आगे बढ़ा सकता था। कोविड-19 की भयानक स्थिति में आपातकाल माना जा सकता था। नेताओं ने जमकर कोविड-19 की परवाह किए बगैर प्रचार किया, रोड शो किए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने ठीक कहा कि कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए हम राजनेता भी कुछ हद तक दोषी हैं। अब कोरोना का नया रूप प्रकट हुआ है और देश में भयावह स्थिति बनती जा रही है एवं लॉकडाउन और कर्फ्यू लगाने जैसे सख्त फैसले करने पड़ रहे हैं। कटु सत्य यह है कि देश के पांच राज्यों में चुनावों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार में कई गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। विधानसभा चुनाव के प्रचार और रैलियों के कारण केरल, असम, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और तमिलनाडु कोरोना के हॉट स्पॉट बनकर उभरे हैं। 15 अप्रैल को खत्म हुए एक पखवाड़े में मिले नए संक्रमितों की संख्या में पिछले पखवाड़े (16 मार्च से 31 मार्च) के मुकाबले सबसे अधिक 625 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी असम में दर्ज की गई। यह बढ़ोत्तरी पश्चिम बंगाल में 504 प्रतिशत, केरल में 125 प्रतिशत और पुडुचेरी में 195 प्रतिशत रही। असम में 16 से 31 मार्च के बीच केवल 537 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे। मतलब उस दौरान स्थिति काफी बेहतर थी। लेकिन एक से 15 अप्रैल के बीच संक्रमितों की संख्या में 625 प्रतिशत इजाफा हुआ है। बंगाल में संक्रमितों की संख्या में 504 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हो चुकी है। राज्य में 16 से 31 मार्च तक केवल 32 मरीजों की मौत हुई, लेकिन एक से 15 अप्रैल के अंदर कुल 149 मरीजों की मौत हो चुकी है। तमिलनाडु में संक्रमण दर शुक्रवार को 4.6 प्रतिशत रही जो बहुत ज्यादा है। एक से 15 अप्रैल के बीच संक्रमितों की संख्या में पिछले पखवाड़े (16 से 31 मार्च) के मुकाबले 190.9 प्रतिशत दर्ज की गई। यही हाल केरल और पुडुचेरी का भी हुआ। अभी तो रैलियां, रोड शो चल रहे हैं। इनमें संक्रमितों का पता तो थोड़ी देर बाद चलेगा। कोरोना महामारी के चलते राज्यों के चुनाव स्थगित होने चाहिए थे। पर राजनेताओं को सत्ता बचाने, सत्ता में आने की इतनी मजबूरी थी कि उन्होंने जनता में इसके दुप्रभाव की परवाह नहीं की। ज्यूडिशियरी भी इन राजनेताओं के इशारों पर चली और उसने भी कहीं भी चुनाव स्थगित करने का निर्देश नहीं दिया। अब इनकी लापरवाही का असर पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है।

150 लाख करोड़ खर्च व 20 साल बाद अफगानिस्तान से निकलेगा अमेरिका

अमेरिकी सैनिक 20 साल बाद एक बेहद लंबे और महंगे युद्ध के बाद अफगानिस्तान से वापस अपने वतन लौटेंगे। 9/11 हमले की 20वीं बरसी यानि 11 सितम्बर तक सभी अमेरिकी सैनिक यहां से निकल जाएंगे। पहले यह समय सीमा एक मई थी लेकिन ढाई हजार से ज्यादा सैनिकों की वापसी को देखते हुए समय सीमा बढ़ा दी गई। अलकायदा के 9/11 हमले के बाद साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में सेना उतारी थी। इस युद्ध में अमेरिका ने 2400 सैनिकों को खोया है, साथ ही इस युद्ध पर अमेरिका ने दो ट्रिलियन यानि 150 लाख करोड़ रुपए के करीब खर्च किए हैं। मई 2011 में अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार गिराया लेकिन न तो तालिबान को खत्म कर पाया और न ही अफगानिस्तान में शांति स्थापित कर पाया है। बिडेन प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि लंबी बहस और कई रिपब्लिकन के विरोध के बावजूद राष्ट्रपति जो बिडेन ने यह निर्णय लिया है। राष्ट्रपति का कहना है कि अगर स्थितियों को आधार बनाकर देखें तो अमेरिकी सैनिक कभी वहां से वापस ही नहीं लौट पाएंगे। हालांकि इस निर्णय के बाद यह बहस अमेरिका में शुरू हो गई है कि अमेरिका की वापसी के बाद इस इलाके में फिर से युद्ध की स्थिति बन जाए? लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान अफगानियों का हुआ है। उनके 60 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मी इस दौरान मारे गए और इससे दोगुनी संख्या में नागरिकों की जान गई, तो यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या यह सब वाजिब था? इसका जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे मापते हैं? एक पल के लिए पीछे चलते हैं और सोचते हैं कि पश्चिमी ताकतें आखिर वहां गई क्यों? क्या हासिल करना चाहती थीं? 1996-2001 तक पांच सालों में चरमपंथी समूह अलकायदा अपने नेता ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अफगानिस्तान में खुद को स्थापित करने में कामयाब हो गया। इसके बाद दुनियाभर से करीब 20 हजार जेहादियों की भर्ती की गई और उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने ही 1998 में कीनिया और तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों पर हमले किए, जिसमें 224 लोग मारे गए। अलकायदा अफगानिस्तान में आसानी से काम करने में सक्षम था क्योंकि उस समय तालिबानी सरकार उसे संरक्षण देती थी। सोवियत रेड आर्मी के वापस लौटने और बाद में विनाशकारी गृहयुद्ध के बाद के वर्षों में तालिबान ने 1996 में पूरे देश पर नियंत्रण कर लिया था। सितम्बर 2001 में 9/11 के हमलों के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान को हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को सौंपने के लिए कहा, लेकिन फिर से तालिबान ने इंकार कर दिया। अमेरिका और ब्रिटिश सेना ने तालिबान को सत्ता से हटाकर अलकायदा को पाक सीमा पर जाने के लिए मजबूर कर दिया। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय चरमपंथी की दृष्टि से पश्चिमी सैन्य उपस्थिति अपने उद्देश्यों में सफल रही है। लेकिन निश्चित रूप से इसे सिर्फ इस तरीके से मापना बहुत साधारण प्रक्रिया होगी और यह अफगानिस्तान के सैनिक और आम जनता जो अपनी जान गंवा चुके हैं, अभी भी गंवा रहे हैं, उसे नजरंदाज करना होगा। अमेरिकी सेना के हटने के बाद निश्चित रूप से तालिबान मजबूत होकर उभरेगा। वह अभी से कह रहे हैं कि हमने अमेरिका को हटा दिया है। इसके अलावा अमेरिका के हटने से जो शून्य बनेगा, उसे चीन और रूस मिलकर पाकिस्तान के साथ भरने की कोशिश कर सकते हैं। निश्चित ही भारत की वहां अहम भूमिका है। जैसा कि बिडेन ने भी कहा है। अच्छा तो यह होता कि कुछ दिन पहले अमेरिका ने सुझाव दिया था कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में सम्मेलन हो। निश्चय ही अगले चार महीने चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें भारत को अपनी भूमिका तय करनी होगी, ताकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रास्ते से उसके खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम दें।

कोरोना का डर दिखाने की जगह समस्या का हल करे सरकार

किसान नेताओं ने सरकार को एक बार फिर चुनौती दी है कि वह धरना स्थल से नहीं हटेंगे। उनका कहना है कि यहां अब आंदोलनकारी किसानों का एक गांव बस गया है। कोरोना का डर दिखाकर आंदोलन खत्म करने की सरकार की कोशिश बेकार जाएगी। इससे बेहतर है कि कोरोना रोकथाम के इंतजाम यहां भी किए जाएं। किसानों ने इसका पालन करना शुरू कर दिया है। धरना स्थल में किसानों के बीच पहुंचे किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ शब्दों में कहा कि किसान अपनी मांगें पूरी हुए बगैर किसी कीमत पर यहां से नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा कि हम कहां जाएंगे। यहीं रहेंगे। यह हमारा गांव है। कोई भी सरकार गांव के लोगों को भगा नहीं सकती। संयुक्त किसान मोर्चा, गाजीपर के नेता जगतार सिंह बाजवा ने कहा कि किसान आंदोलन एक गांव का रूप ले चुका है। सरकार आंदोलन खत्म कराने की कोई साजिश रचती है तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। किसान एकता मंच से किसानों से उन्होंने कहा कि अब यह हमारा गांव बन गया है। कोरोना नियमों का पालन करते हुए आंदोलन जारी रखा जाएगा। किसान धरना स्थल से कहीं जा नहीं रहे हैं। बाहरी लोग बहुत कम ही आते हैं। उन्हें भी आने से रोक दिया जाएगा। देशभर में कोरोना रोकथाम के जो नियम लागू किए गए हैं वह आंदोलन स्थल पर भी लागू होंगे। उनका पालन किया जाएगा। किसान नेता गुरअमनजीत ने बेहद उत्तेजित होते हुए सरकार को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि आंदोलन स्थल में कोई हिंसक घटना होती है तो उसके लिए सीधे रूप से सरकार जिम्मेदार होगी। धरना स्थल में किसानों को हटाने का विषय सुबह से प्रमुखता से चिलचिलाती गर्मी में प्रमुखता से छाया रहा। दोपहर होते-होते पश्चिमी हवाओं ने गर्मी से किसानों को राहत दी और शाम को धूल भरी आंधी के कारण मंच की गतिविधियां रोक दी थीं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday 17 April 2021

शमशान में कतार, कोवैक्सीन चोरी, दवाओं की कालाबाजारी

कोरोना महामारी में जहां रोजाना सैकड़ों लोगों की मौत हो रही हैं, वहीं लोगों को बचाने के लिए बनाई गई व्यवस्थाएं भी अलग-अलग वजहों से बिगड़ चुकी हैं। कई जगहों पर जरूरी टीकों की कालाबाजारी से लेकर चोरी तक हो रही है। वहीं प्राइवेट अस्पतालों द्वारा लाखों रुपए वसूले जा रहे हैं, जिससे इलाज से दूर मरीजों की मौत भी हो रही है। जानिए बुधवार को विभिन्न राज्यों में सामने आए ऐसे ही कुछ मामले। छत्तीसगढ़ और झारखंड की राजधानी रांची में तो हालात इस कद्र खराब हैं कि अस्पताल से लेकर शमशान और कब्रिस्तान तक लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। शवदाह के लिए प्लेटफार्म बढ़ाने पड़ रहे हैं। गुजरात के सूरत में कब्रों की एडवांस में खुदाई कराई जा रही है। मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल शहरों का भी हाल बेहाल है। रांची में मरीजों को न तो अस्पतालों में बैड मिल रहे हैं और न ही समय पर सैंपलों की जांच हो पा रही है। अंतिम संस्कार के लिए भी लाइन लग रही है। एक साथ कतार में जलती लाशों का नजारा इससे पहले कभी नहीं देखा गया। सभी निजी अस्पतालों में मरीजों को नो बैड का हवाला देकर वापस किया जा रहा है। पिछले चार दिनों में राज्य में 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। रांची में मंगलवार को 52 शवों का अंतिम संस्कार किया गया, जबकि सोमवार को 22 व बुधवार को 12 से अधिक शवों की अंत्येष्टि हुई। राजस्थान के शास्त्राr नगर के कावंटिया अस्पताल में रखी गई कोवैक्सीन की 320 डोज चोरी हो गई। चोरी 12 अप्रैल को हुई थी, लेकिन केस बुधवार को दर्ज करवाया गया। ऐसे समय में जब कई राज्यों में टीके की कम डोज बची है, यह चोरी व्यवस्थाओं को और बिगड़ने का काम कर रही हैं। यहां कई जिलों में दवाओं की कालाबाजारी और अधिक कीमत पर बेचने की शिकायतें भी आ रही हैं। गुजरात के कई जिलों में शमशान स्थलों के बाहर कोविड-19 से मरे लोगों का अंतिम संस्कार करने आए उनके परिजनों की कतारें नजर आ रही हैं। परेशान लोग पिछले एक हफ्ते से मजबूर हैं, क्योंकि दिन में बारी नहीं आ सकी। सामान्यत हिन्दू ऐसा नहीं करते। अहमदाबाद में शवदाह के लिए आठ-आठ घंटे कतार में इंतजार कर रहे हैं। सोमवार को सूरत में एक साथ 25 शवदाह किए गए। बड़ोदरा में निगम के अधिकारी हितेंद्र पटेल ने बताया कि भीड़ की वजह से रात को शवदाह किए जा रहे हैं। अस्थायी जमा करने को धातु की 75 ट्रे लगाई हैं, ताकि दाह स्थल जल्द खाली कर दूसरे का शवदाह करवा सकें। मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों में शमशानों में शवों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बुधवार को इंदौर में 150 से ज्यादा शवों का दाह-संस्कार किया गया, वहीं राजधानी भोपाल में 88 संक्रमितों का अंतिम संस्कार किया गया। जबलपुर के मौहनी मुक्ति धाम में बुधवार रात तक 50 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। महाराष्ट्र का हाल भी बुरा है। सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों की संख्या और उनमें बैड नहीं बढ़ाने की कीमत मरीज अपनी जान देकर चुका रहे हैं। ऐसे हालात में भी प्राइवेट अस्पताल इन मरते मरीजों और उनके परिजनों को लूट रहे हैं। महाराष्ट्र के पुणे, औरंगाबाद, नागपुर, ठाणे सहित कई जिलों में प्राइवेट अस्पताल कोविड-19 संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए तीन लाख से आठ लाख रुपए तक वसूल रहे हैं। अधिकतर मरीज इस भारी खर्च से बचने के लिए सरकारी अस्पताल में बैड मिलने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन तब तक कोरोना वायरस उनके फेफड़ों में फैलकर जानलेवा बना रहा है और यह स्थिति आगे चलकर और खराब होने की संभावना है क्योंकि कोविड संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

निरंजनी के बाद आनंद अखाड़े ने किया कुंभ समाप्त

उत्तराखंड के हरिद्वार में हो रहे कुंभ मेले पर कोरोना महामारी का असर होना स्वाभाविक ही था। मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं और साधुओं के कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद अब अखाड़ों ने इस आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन से दूरी बनाना शुरू कर दिया है। कुंभ मेले में कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए प्रमुख 13 अखाड़ों में से निरंजनी अखाड़ों ने यहां से जाने के पीछे मेले में कोरोना की बिगड़ती हालत को कारण बताया है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार के चलते निरंजनी पंचायती अखाड़े ने अपने साधु-संतों के लिए 17 अप्रैल से कुंभ के समापन की घोषणा की। अखाड़े के सचिव महंत रविन्द्रपुरी ने कहा कि साधु-संत और श्रद्धालु कोरोना की चपेट में आने लगे हैं। ऐसे में निरंजनी अखाड़े की छावनियां 17 अप्रैल को खाली हो गई। निरंजनी अखाड़े के महंत अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी समेत 40 संत कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। महंत रविन्द्रपुरी ने कहा कि जिन संतों को 27 अप्रैल का स्नान करना होगा, वह पैदल अलग-अलग चले जाएंगे। कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैल रहा है, उतना ही घातक भी हो चला है। चित्रकूट से हरिद्वार कुंभ मेले में शामिल होने आए महामंडलेश्वर कपिल देवदास की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई। निर्वाणी मणि बैरागी अखाड़े के महामंडलेश्वर कपिल देवदास (65) सोमवती अमावस्या के शाही स्नान से पहले हरिद्वार आए थे। 12 अप्रैल की सोमवती अमावस्या के स्नान के बाद वह अपने अखाड़े में लौट गए थे। कुछ देर बाद उन्होंने सांस लेने में तकलीफ और बुखार की शिकायत की। उन्हें देहरादून स्थित कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां उनकी कोरोना जांच पॉजिटिव आई। चिकित्सकों के अनुसार वह किडनी रोग से ग्रसित थे। संक्रमण के कारण हालत बिगड़ गई और उनकी जान चली गई। कोविड में कुंभ स्नान से महामारी का खतरा मंडराने लगा है। 12 से 14 अप्रैल तक तीन स्नान पर गंगा में 49,31,343 संतों और श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई है। 40 संतों समेत कई श्रद्धालु बीमार भी हैं। रूड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञों का दावा है कि गंगा का पानी बहाव के साथ वायरस बांट सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमितों के गंगा स्नान और लाखों की भीड़ का असर महामारी के रूप में सामने आ सकता है। संक्रमण के फैलाव से रूड़की विश्वविद्यालय के बाहर रिसोर्स डिपार्टमेंट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संदीप शुक्ला के मुताबिक सूखी सतह और धातु की तुलना में पानी में अधिक सक्रिय रहता है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चन्द्र दूबे का कहना है कि कुंभ ने कोविड का खतरा कई गुना बढ़ा दिया है। संक्रमण का असर 10 से 15 दिनों में दिखने लगेगा। क्या अब उत्तराखंड सरकार को कुंभ मेला खत्म करने की घोषणा कर देनी चाहिए? जो भी स्नान करना चाहिए वह बेशक अकेले-अकेले जाकर स्नान कर ले पर लाखों की भीड़ को समाप्त करना चाहिए। 12 से 14 अप्रैल तक 49 लाख से अधिक श्रद्धालुओं व साधु-संतों ने तीन स्नान कर चुके हैं। अब बाकी स्नानों को समाप्त करना ही बेहतर होगा।

कर्फ्यू तभी असरदार जब सख्ती से लागू किया जाए

दिल्ली वालों को अब बढ़ते कोविड के केसों के कारण सख्ती से घरों में समय गुजारना होगा। कोरोना की स्पीड रोकने के लिए चेन ब्रेक करने के लिए दिल्ली सरकार ने शहर में वीकेंड कर्फ्यू का ऐलान किया है जिसे एक्सपर्ट पॉजिटिव कदम तो बता रहे हैं, मगर कइयों का यह भी मानना है कि वीकेंड की बजाय वीकडेज में कर्फ्यू ज्यादा कारगर साबित हो सकता है। रोजाना तेजी से बढ़ रहे कोविड मामलों को देखते हुए वीकेंड कर्फ्यू इस स्पीड को कुछ कम करने का हल माना जा रहा है। इसी तरह विभिन्न सरकारों ने रात को कर्फ्यू का भी सहारा लिया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना वायरस की चेन को ब्रेक लगाने के लिए लॉकडाउन बहुत जरूरी है, मगर इकोनॉमी को देखते हुए शुरुआत वीकेंड लॉकडाउन से सही है। इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि वीकेंड कर्फ्यू से वायरस का फैलना तभी कम होगा, जब इसे सख्ती से लागू किया जाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेजिडेंट डॉ. केके अग्रवाल कहते हैं कि वीकेंड की बजाय इस वक्त पांच दिन के कर्फ्यू की जरूरत है। लॉकडाउन का मतलब होता है, मिनीमेशन यानि इसे कम करना। बचाव की स्टेज अब निकल चुकी है। दो दिन लॉकडाउन में लोग घर बैठेंगे तो उनके लक्षण कुछ सामने आएंगे। अभी ऐसे मरीज बाहर निकल रहे हैं और सबको बीमारी फैला रहे हैं। खांसी, बुखार में अब लोग वैक्सीन लगवाने जा रहे हैं। मगर पांच दिन का लॉकडाउन होता है तो बीमारी के लक्षण पूरी तरह से बाहर निकलकर सामने आएंगे। कुछ लोगों का सुझाव है कि वीकेंड की जगह ऑड-ईवन बेहतर ऑप्शन है। शनिवार-रविवार को अधिकतर लोग घर के लिए जरूरी सामान खरीदने निकलते हैं। सरकार को वीकेंड में दो दिन का कर्फ्यू या मार्केट टाइमिंग घटाने या ऑड-ईवन स्कीम शुरू करनी चाहिए। -अनिल नरेन्द्र

वैक्सीन लेने के बाद भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं

वैक्सीन लेने के बाद भी कुछ लोग कोरोना संक्रमित हो रहे हैं। आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि ऐसे में वैक्सीन लेने का क्या फायदा? एक्सपर्ट की राय में इसकी कई वजहें हैं। उनका कहना है कि महामारी से बचाव वैक्सीन ही है। यह संक्रमण से बचाती है और संक्रमित होने पर बीमारी को गंभीर नहीं होने देती। एक्सपर्ट का कहना है कि वैक्सीन के बाद संक्रमण की कई वजहें हो सकती हैं। पहली वजह यह हो सकती है कि अभी वायरस में म्यूटेशन बहुत ज्यादा हो रहा है। ऐसे में जो वैक्सीन दी जा रही है, वह मौजूदा वेरिएंट के खिलाफ कारगर नहीं हो। दूसरी वजह यह हो सकती है कि पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं बन रही हों। अगर एंटीबॉडी की वजह से ऐसा हो रहा है तो इसके भी कई कारण हो सकते हैं। कोविड एक्सपर्ट डॉक्टर अंशुमान कुमार ने कहा कि अभी जो भी वायरस की वैक्सीन है, यह इंट्रामस्कयुलर इंजेक्शन हैं, जो मांसपेशियों में दी जाती है। यह ब्लड में जाकर वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाती है। यह वैक्सीन बॉडी में मुख्य रूप से दो प्रकार की एंटीबॉडी बनाती है। पहलाöइम्यूरोग्लोबुलिन एम, जिसे मेडिकली आईजीएम कहा जाता है। दूसराöइम्यूरोग्लोबुलिन जी बनाता है, इसे आईजीजी के नाम से जानते हैं। डॉक्टर अंशुमान ने कहा कि हमारा शरीर किसी वायरस के संक्रमण के खिलाफ पहले आईजीएम बनाता है। शरीर में आईजीजी धीरे-धीरे बनता है और यह लंबे समय तक शरीर में रहता है। इसी आईजीजी से कोरोना वायरस की संभावित इम्यूनिटी की पहचान होती है। यह एंटीबॉडी हमारे ब्लड में मौजूद रहती है और जब कोई नया संक्रमण आता है तो उसके खिलाफ एक्टिव हो जाती है। गंगाराम अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एचओडी डॉक्टर चांद वॉटल ने कहा कि एक और इम्यूनोग्लोबिन ए होता है, जिसे आईजीए कहा जाता है। इसका होना भी जरूरी है। लेकिन यह एंटीबॉडी म्यूकोजा में बनती है। यानि नाक, मुंह, लंग्स, आंत के अंदर एक खास प्रकार की लाइनिंग होती है, जिस पर यह वायरस को चिपकने नहीं देती। अभी जो वैक्सीन दी जा रही है, उसमें आईजीए कितना बन रहा है, इसका पता नहीं है। डॉक्टर अंशुमान ने कहा कि जब कोरोना की नेजल वैक्सीन आएगी, हो सकता है कि यह ज्यादा कारगर होगी। क्योंकि कोरोना वायरस की एंट्री नाक के जरिये ज्यादा है। जब वैक्सीन की ड्रॉप वहां से जाएगी तो म्यूकोजा के पास भी एंटीबॉडी बनेगी और फिर वह ब्लड में जाकर वहां भी एंटीबॉडी बनाएगी। तब इस वायरस के खिलाफ ज्यादा कारगर हो सकती है और वैक्सीनेशन के बाद संक्रमण होने की संभावना कम हो सकती है। डॉ. अंशुमान कहते हैं कि किसी को कोरोना है या नहीं, इसकी पहचान के लिए नाक से सैंपल लिया जाता है। नाक के पास म्यूकोजा में नहीं है। इसलिए नाक के म्यूकोजा में वायरस चिपक जाता है। उन्होंने कहा कि जब वायरस म्यूकोजा तक पहुंचता है, तो रिजल्ट पॉजिटिव आता है, लेकिन वह शरीर के अंदर प्रवेश नहीं कर सकता। क्योंकि ब्लड में मौजूद एंटीबॉडी उसके खिलाफ एक्टिव हो जाती है। यही वजह है कि संक्रमित होने के बाद भी जिन लोगों ने वैक्सीन ली है, उनमें बीमारी माइल्ड या माडरेट रहती है। वो सीरियस या गंभीर नहीं होते। यह वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा है।

ढाबा खोलकर पिता बोलाöबेटा खोया है, हौंसला नहीं

कश्मीर में सक्रिय जेहादियों के एजेंडे की हार का संकेत देते हुए कृष्णा वैष्णो भोजनालय बैसाखी और नरवात्रि (कश्मीरी पंडितों का नव वर्ष) के मंगल मौके पर फिर से लोगों की श्रद्धा शांत करने में जुट गया है। सैलानियों को भोजन परोसने में व्यस्त रमेश कुमार के चेहरे पर बेटे का गम तो है, लेकिन हौंसले अडिग हैं। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति व संकल्प की लकीरें बता रही हैं कि वह हार मानने वालों में नहीं, बल्कि दुखों को समेट जंग जीतने वालों में हैं। 17 फरवरी 2021 को कृष्णा ढाबा उस समय सुर्खियों में आया जब तीन स्थानीय आतंकियों ने ढाबे में घुसकर गोलियां बरसाई थीं। इस घटना में ढाबा मालिक रमेश कुमार के पुत्र आकाश मेहरा गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ दिन जिंदगी और मौत के बीच जूझने के बाद आकाश ने 28 फरवरी को अंतिम सांस ली थी। रमेश मूलत जम्मू के रहने वाले डोगरा हिन्दू हैं, जो बरसों से कश्मीर में रह रहे हैं। चंद दिन बाद पुलिस ने तीनों आतंकियों को पकड़ लिया, लेकिन ढाबा बंद रहा। ऐसा लगने लगा कि यह अब नहीं खुलेगा और जेहादी अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे। मगर मंगलवार को कृष्णा वैष्णो भोजनालय खुलने के बाद देखते ही देखते भोजन के इच्छुक सैलानियों की भीड़ से भर गया। इस परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और फिर से ढाबा खोलकर लोगों को यह संदेश दिया कि वह कश्मीर को कभी भी छोड़ने वाले नहीं हैं। रमेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि आज फिर से उन्होंने अपना काम शुरू किया है। वह यहां पर सुरक्षित हैं। यह वह जगह है, जहां उनका जन्म हुआ। यहीं पर उनका पालन-पोषण हुआ और वह कभी भी कश्मीर छ़ोड़ने वाले नहीं हैं। हम रमेश की बहादुरी को सलाम करते हैं और इनकी बहादुरी से उन आतंकियों को स्पष्ट संकेत दिया है कि आपकी दहशत की हम परवाह नहीं करते, हम यहां ही रहेंगे।

उत्तीर्ण होने का क्या होगा आधार?

केंद्रीय माध्यम शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा 10वीं की परीक्षा रद्द करने और 12वीं की बोर्ड परीक्षा स्थगित करने के फैसले के बाद अभिभावकों व छात्रों की मिलीजुली प्रतिक्रिया है। हालांकि स्वास्थ्य और सुरक्षा को सबने प्राथमिकता दी है। 12वीं के छात्र जहां परीक्षण में देरी को बेहतर मान रहे हैं वहीं 10वीं के छात्रों में यह चिंता है कि किस आधार पर उनको उत्तीर्ण किया जाएगा? जब परीक्षा नहीं होगी तो मूल्यांकन का आधार क्या होगा। इस बाबत सीबीएसई ने भी कुछ स्पष्ट नहीं किया है। 10वीं के छात्रों को उत्तीर्ण करने का क्या आधार होगा, इसको लेकर स्कूलों को भी सीबीएसई के निर्देशों का इंतजार है। इस बार देश में 10वीं में लगभग 21.5 लाख छात्र व 12वीं में लगभग 14 लाख छात्रों ने नामांकन कराया है। सीबीएसई के एक अधिकारी का कहना है कि इस दिशा में वर्कआउट करने के बाद चीजें सांझा की जाएंगी। वहीं एक निजी स्कूल के प्रिंसीपल का कहना है कि 10वीं के बोर्ड के छात्रों को उत्तीर्ण करने का आधार कई हो सकते हैं। प्री-बोर्ड, इंटरनल असेसमेंट, प्रैक्टिकल। बस बोर्ड यह तय करे कि उसके लिए कितना वेरेज दिया जाना है। उसी के आधार पर परिणाम निकाला जा सकता है। सेंट थॉमस की छात्रा रितिका शर्मा का कहना है कि 10वीं की परीक्षा रद्द करने का मुझे नुकसान हुआ है। जब सबको पास कर देंगे तो फिर पढ़ाई का मतलब क्या है। हालांकि कोविड पर उन्होंने भी चिंता जताई। माउंट आबू पब्लिक स्कूल की प्रिंसीपल ज्योति अरोड़ा ने वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस फैसले को संतुलित निर्णय बताया। -अनिल नरेन्द्र

Friday 16 April 2021

दोषपूर्ण जांच आरोपी को बरी का आधार नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि दोषपूर्ण जांच आरोपी को बरी करने का आधार नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता है तो लोगों का न्यायपालिका पर से विश्वास उठ जाएगा। कोर्ट ने यह कहते हुए आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में सास-ननद को बरी करने के आदेश को निरस्त कर दिया और नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया। उसने माना कि इस मामले में जांच अधिकारी की भूमिका संदिग्ध रही और निचली अदालत ने भी तथ्यों का सही तरीके से अध्ययन नहीं किया। न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद ने पुलिस से मृतका की मां सरोज भोला की एसडीएम के समक्ष दो जुलाई 2015 को दिए बयानों के आधार पर जांच करने के निर्देश दिए। साथ ही किसी अन्य जांच अधिकारी से जांच करवाने को कहा है जो निरीक्षक स्तर से नीचे का न हो। उन्होंने इस तथ्य की भी जांच करने को कहा है कि क्या यह मामला आत्महत्या के उकसाने की अपेक्षा दहेज हत्या का बनता है या नहीं? न्यायमूर्ति ने कहा कि जांच एजेंसी की चूक या लापरवाही आरोपी के पक्ष में जाती है तो अदालत का दायित्व बनता है कि वह सही जांच कराए। अदालत को इस तथ्य के प्रति अपनी आंखें बंद नहीं करना चाहिए कि वही पीड़ित हैं जो अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं और न्याय चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि दोषपूर्ण व लापरवाहीपूर्ण जांच के कारण अभियुक्त बच जाता है तो अदालत की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में त्रुटिपूर्ण जांच होने की संभावना होने के बावजूद निचली अदालत ने फिर से जांच के आदेश नहीं दिए। मामले में प्रथम दृष्टया साक्ष्य हैं कि मृतका को ससुराल में दहेज प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। सत्र न्यायाधीश ने अपने फैसले में माना कि जांच में गंभीर लापरवाही है। इसके बावजूद उन्होंने दहेज हत्या के अपराध पर विचार नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि हर मामले में मजिस्ट्रेट को आरंभिक सुनवाई में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच ठीक तरीके से हो और आरोपी बच न सके। इस मामले में तथ्यों से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने समय-समय पर संयुक्त पुलिस आयुक्त व पुलिस आयुक्त को जांच अधिकारी के खिलाफ शिकायत दी। इस तथ्य पर भी ध्यान नहीं दिया गया कि पुलिस ने एसडीएम को दोबारा कहने के 10 माह बाद मामला दर्ज किया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उनकी पुत्री आंचल का 26 अप्रैल 2012 को विवाह हुआ था। ससुराल पक्ष उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करता था और विवाह के करीब ढाई वर्ष बाद 24 अक्तूबर 2014 को आंचल का शव पंखे से लटका मिला। पुलिस ने उनके बयान एसडीएम के समक्ष दर्ज होने के बावजूद इसे आत्महत्या का मामला बताते हुए एफआईआर दर्ज नहीं की। दो जुलाई 2015 को उन्होंने पुन एसडीएम के समक्ष शिकायत की तो पुलिस ने 10 माह बाद मामला दर्ज किया। लेकिन जांच में लापरवाही से आरोपी बरी हो गए।

ईरान के परमाणु स्थल पर हमला

ईरान ने अपने भूमिगत नातांज परमाणु केंद्र पर हमले करने के लिए सोमवार को इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है। इस हमले में परमाणु केंद्र का सेंट्रीफ्यूज क्षतिग्रस्त हो गया था जिसका इस्तेमाल वहां पर यूरेनियम संवर्द्धन के लिए किया जाता है। ईरान ने चेतावनी दी है कि वह इस हमले का बदला लेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादा की यह टिप्पणी रविवार की घटना के लिए पहली बार आधिकारिक तौर पर इजरायल पर आरोप लगाती है। इस घटना से परमाणु केंद्र में बिजली चली गई थी। इजरायल ने हमले की सीधे तौर पर जिम्मेदारी नहीं ली है। बहरहाल शक फौरन उस पर गया, क्योंकि मीडिया ने देश द्वारा विनाशकारी साइबर हमले की खबर दी जिससे बिजली गुल हो गई। अगर इजरायल हमले के लिए जिम्मेदार है तो यह दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाएगा जिनके बीच पहले से ही टकराव चल रहा है। रविवार को अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन से मुलाकात करने वाले इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संकल्प लिया है कि ईरान और विश्व शक्तियों के बीच परमाणु समझौते को बहाल होने के प्रयास को रोकने के लिए उनके बस में जो है, वो करेंगे। वहीं खतीबजादा ने कहा नातांज का जवाब इजरायल से बदला लेना है। इजरायल को उसके तरीके से ही उसका जवाब मिलेगा। हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया। खतीबजादा ने माना कि आईआर-1 सेंट्रीफ्यूज हमले में क्षतिग्रस्त हुआ है। इस बीच ईरान के अर्द्धसैनिक रेवोल्यूशनरी गार्ड के पूर्व प्रमुख मेजर जनरल मोहसिन रेजाई ने ट्विटर पर कहा है कि नातांज में एक साल में दूसरी बार आग लगना घुसपैठ की घटना गंभीरता का संकेत देता है। ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने कहा कि नातांज को और उन्नत मशीनरी के साथ बनाया जाएगा और यह परमाणु समझौते को बचाने के लिए वियना में चल रही बातचीत को संकट में डालने वाला है। ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी ईरना ने जरीफ के हवाले से कहा कि यहूदी लोग प्रतिबंध हटाने को लेकर उनकी सफलता पर ईरानी लोगों से बदला लेना चाहते हैं।

जज घर से ही करेंगे सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के 44 कर्मचारियों के कोरोना से संक्रमित होने के मद्देनजर सभी न्यायाधीश अपने-अपने घरों से अदालतें लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट की पीठ अपने निर्धारित समय से एक घंटे की देरी से सुनवाई के लिए बैठेंगी। सुप्रीम कोर्ट के करीब 50 प्रतिशत कर्मचारियों के संक्रमित होने को लेकर मीडिया में आई कुछ खबरों पर शीर्ष अदालत के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले एक हफ्ते में 44 कर्मचारी संक्रमित मिले हैं। शीर्ष अदालत में करीब 3000 कर्मचारी काम कर रहे हैं। जहां कुछ न्यायाधीश अदालती कार्यवाही के लिए शीर्ष अदालत के परिसर में आ रहे थे वहीं कुछ अन्य न्यायाधीश अब भी अपने-अपने घरों से अदालतें लगा रहे थे। कोविड-19 के मामले बढ़ने के बीच शीर्ष अदालत ने दो अधिसूचनाएं जारी की हैं। इनमें से एक में कहा गया है कि जो पीठें सुनवाई के लिए साढ़े 10 बजे और 11 बजे बैठती हैं वह अपने निर्धारित समय से एक घंटे की देरी से बैठेंगी। सभी न्यायाधीश अपने-अपने निवास स्थानों से वीडियो कांफ्रेंस के जरिये मामले सुनेंगे। इस बीच अदालती कक्षों के साथ ही समूचे न्यायालय परिसर को संक्रमण मुक्त किया जा रहा है। अन्य अधिसूचना में वकीलों द्वारा अत्यावश्यक मामलों का अदालत आकर उल्लेख करने पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गई है। उधर दिल्ली हाई कोर्ट के भी तीन न्यायाधीश कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए हैं। वह होम आइसोलेशन में हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday 15 April 2021

कुरान की 26 आयतों को हटाने की मांग वाली याचिका खारिज

देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी धार्मिक ग्रंथ में दखल देने से साफ इंकार कर दिया है। कुरान की 26 आयतों को आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली बताने को लेकर याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उक्त याचिका निराधार है और बिल्कुल फिजूल तरह की है। इस तरह की याचिकाएं अदालत का समय बर्बाद करती हैं, इसलिए हम याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपए जुर्माना भी लगा रहे हैं। सोमवार को हुई सुनवाई में रिजवी के वकील आरके रायजादा की तमाम दलीलें कोर्ट ने खारिज कर दीं। इस मामले में यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि कुरान की 26 आयतों को बहुत बाद में कुरान में जोड़ा गया था। इन आयतों में गैर-मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा को प्रेरित करने वाली बाते हैं, जिससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। यह आयतें देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के लिए खतरा हैं। याचिका में यह भी कहा गया था कि कुरान की इन 26 आयतों की इन दिनों गलत तरीके से व्याख्या की जा रही है। इसका हवाला देकर इंसानियत के मूल सिद्धांतों की अवहेलना और धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है तथा खूनखराबा हो रहा है। मदरसों में इन आयतों की शिक्षा देने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए जाने चाहिए। इसके अलावा रिजवी की याचिका में इन आयतों को पवित्र किताब से हटाने का आदेश देने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस नरीमन ने रिजवी के वकील से पूछा कि क्या आप इस याचिका के प्रति गंभीर हैं? इस पर रायजादा ने कहा कि वह मदरसा शिक्षा के नियमन तथा प्रार्थना को सीमित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ आयतों की शाब्दिक व्याख्या ने गैर-विश्वासियों के खिलाफ हिंसा का प्रचार किया है, बच्चों को मदरसों में बंदी बनाकर रखा जाता है। इन उपदेशों का विचारों के बाजार में स्थान नहीं हो सकता। मैंने केंद्र को कार्रवाई के लिए लिखा है, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस पर केंद्र सरकार और मदरसा बोर्ड को यह सुनिश्चित करने के लिए बुलाया जा सकता है कि हिंसा की वकालत करने वाले छंदों के शाब्दिक शिक्षण से बचने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? हालांकि जस्टिस नरीमन की बैंच की मामले पर विचार करने की इच्छुक नहीं थी। उन्होंने याचिका को बिल्कुल तुच्छ करार देते हुए 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए इसे खारिज कर दिया। याचिका दायर करने के बाद से रिजवी का कड़ा विरोध हो रहा है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इसे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करार दिया है। वहीं शिया और सुन्नी, दोनों ही समुदाय रिजवी को मुस्लिम समुदाय से निकाले जाने की घोषणा कर चुके हैं। बरेली में उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का केस भी दर्ज हुआ। मुरादाबाद के एक वकील ने रिजवी का सिर काटने पर 11 लाख रुपए इनाम की घोषणा की थी।

एंटीलिया के बाद एनकाउंटर का था प्लान

मुंबई की तलोजा जेल पहुंच चुके पूर्व एपीआई सचिन वाजे को लेकर रोज नए खुलासे हो रहे हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की 27 दिनों की कड़ी पूछताछ में यह सामने आया है कि वाजे जिलेटिन केस के बाद कुछ बड़ा करने वाला था। इसकी डिटेल एनआईए की टीम जल्द सार्वजनिक कर सकती है। एनआईए सूत्रों के मुताबिक स्कॉर्पियो कांड के बाद वाजे एक एनकाउंटर की प्लानिंग कर रहा था। इसमें वह कुछ लोगों का एनकाउंटर कर पूरे मामले को उनके सिर पर डालने वाला था। यह एनकाउंटर औरंगाबाद से चोरी मारुति ईको कार में किया जाना था। एनआईए को शक है कि इस एनकाउंटर में मनसुख हिरेन को भी शिकार बनाया जा सकता था। जांच में यह भी सामने आया है कि इस एनकाउंटर में दिल्ली के एक अपराधी को भी मारने की प्लानिंग थी। इससे पहले ही एनआईए की एक केस में एंट्री हो गई और वाजे की प्लानिंग फेल हो गई। एनआईए ने कोर्ट में कहाöअब और पूछताछ की जरूरत नहीं। इससे पहले एनआईए ने कोर्ट को खुद कहा था कि वाजे से हमें और पूछताछ की जरूरत नहीं है। मतलब उसने जिलेटिन केस की जांच लगभग पूरी कर ली है। माना जा रहा है कि एनआईए जल्द दोनों केसों का खुलासा कर सकती है। एनआईए जबरन वसूली रैकेट की गहराई से जांच में जुटी है। इस बीच ताजा सामने आए सुबूतों से पता चला है कि निलंबित अधिकारी सचिन वाजे और उनके बॉस रह चुके पूर्व पुलिस अधिकारी एनकाउंटर किंग के नाम से विख्यात प्रदीप शर्मा के बीच काफी घनिष्ठ संबंध रहे हैं। एक प्रमुख नेता और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक ने बताया कि शर्मा ने 2016 में अपने करीबी वाजे को बचाने के लिए कथित तौर पर भाजपा की सरकार से सम्पर्क किया था। भाजपा विधायक ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहाöयह बैठक मुंबई हवाई अड्डे पर स्थित होटल लीला केंमिपंस्की में हुई थी। मुंबई क्राइम ब्रांच के एक जाने-माने व्यक्तित्व, जो असंख्यक पुलिस मुठभेड़ों को अंजाम देने के लिए जाने जाते थे, व्यक्तिगत रूप से बैठक के लिए होटल आए थे। बैठक के दौरान उन्होंने एक भाजपा नेता से पुलिस विभाग में अपने पूर्व अधीनस्थ वाजे को बहाल करने का अनुरोध किया, लेकिन भाजपा सरकार ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि शर्मा के प्रयास विफल रहने के बाद, शिवसेना के शीर्ष नेतृत्व ने पुलिस विभाग में वाजे को बहाल करने के लिए भाजपा से सम्पर्क किया था। एनआईए कोर्ट ने वाजे को 14 दिनों की ज्यूडिशियल कस्टडी में तलोजा जेल भेज दिया। सुनवाई के दौरान एनआईए ने बताया कि उन्हें वाजे के पास कई लाख कैश, बेनामी कारतूस व बैंक खाते में जमा डेढ़ करोड़ रुपए राशि की जानकारी मिली। एजेंसी ने दावा किया कि एंटीलिया से जुड़ी साजिश में हिरेन भी शामिल था। जिसके चलते उसकी जान गई।

कुंभ में 35 लाख ने लगाई डुबकी

हरिद्वार कुंभ में सोमवती अमावस्या के शाही स्नान में हर की पैड़ी समेत ऋषिकेश मुनी के विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। कुंभ मेला प्रशासन के मुताबिक 33 लाख लोगों ने कुंभ मेला क्षेत्र में दूसरे शाही स्नान में गंगा में डुबकी लगाई। प्रशासन के मुताबिक शाम छह बजे तक 31 लाख, 23 हजार लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। हालांकि कुंभ मेले को लेकर केंद्र और राज्य सरकार तथा कुंभ मेला प्रशासन द्वारा कोरोना को लेकर जारी दिशानिर्देशों की श्रद्धालुओं और 13 अखाड़ों के साधु-संतों ने खुलेआम धज्जियां उड़ाईं। शोभा यात्रा निकाल रहे साधु-संतों ने कोरोना से बचाव के लिए सामाजिक दूरी का बिल्कुल ख्याल नहीं रखा। हर की पैड़ी पर लोग भारी भीड़ के बीच एक-दूसरे से चिपक कर गंगा में डुबकी लगा रहे थे। इतना ही नहीं, जो साधु-संत, महामंडलेश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर सामाजिक दूरी मास्क जरूरी की अपील लोगों से कर रहे थे, वह ही शाही स्नान के वक्त हर की पैड़ी पर इसकी धज्जियां उड़ाते नजर आए। रविवार को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी और छह साधु भी कोरोना संक्रमित हुए थे। स्वास्थ्य विभाग ने 80 साधुओं के नमूने जांच के लिए भेजे हैं। कुंभ मेले को दिव्य और भव्य बनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से हेलीकॉप्टर अखाड़ों की शोभायात्रा में फूल बरसा रहे थे। श्री निरंजनी पंचायती अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाश नंद गिरी के मेहमान बने नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र बीर विक्रम शाह भी रथ पर सवार होकर साधुओं की पेशवाई में शामिल हुए। इस वर्ष पूरे साल में केवल एक ही सोमवती अमावस्या होने के कारण सोमवार के स्नान को लेकर श्रद्धालुओं में भारी आकर्षण दिखा। यह स्नान कुंभ काल का पहला शाही स्नान था। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday 14 April 2021

पहली और दूसरी डोज में कितना अंतर होना चाहिए?

अमेरिका में कोरोना वायरस की चौथी लहर की आशंका के साथ वैक्सीन की दो डोज के बीच अंतर पर विशेषज्ञांs में फिर से बहस छिड़ गई है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है, पहली और दूसरी डोज के बीच समय बढ़ाने से पहली डोज लेकर सुरक्षित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी। लेकिन कुछ विशेषज्ञों को भय है कि इससे वायरस के नए खतरनाक स्वरूप को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। अमेरिका में वैक्सीन की दो डोज में तीन से चार सप्ताह का अंतर है। ब्रिटेन में अधिकतर लोगों को तेजी से वैक्सीन लगाने के लिए दूसरी डोज में 12 सप्ताह का अंतराल रखा गया है। कनाडा में एक सरकारी समिति ने दूसरी डोज के चार माह बढ़ाने की सलाह दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक डोज से ही संक्रमण का खतरा 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ सोचते हैं, अमेरिका को भी कनाडा, ब्रिटेन के रास्ते पर चलना चाहिए। पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में हेल्थकेयर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डा. एजेकील इमैनुअल का कहना है, अमेरिका में अगले कुछ सप्ताह तक पूरी वैक्सीन पहली डोज वालों को लगाई जाए। यूएसए टुडे में प्रकाशित लेख में डा. इमैनुअल और उनके सहयोगियों ने लिखा है, ऐसा करने में मिशीगन मिनिसोटा जैसे स्थानों में चौथी लहर रोकी जा सकेगी। दूसरी ओर राष्ट्रपति जो बिडेन की सरकार के स्वास्थ्य सलाहकारों सहित अन्य विशेषज्ञों की दलील है, डोज में देर करने का प्रस्ताव खराब है। उन्हेंने चेतावनी दी है कि इस कारण पहले से सक्रीय वायरस का नया स्वरूप और अधिक फैलेगा। फूड एंड ड्रग्स एडमिनिसेट्रेशन के पूर्व प्रमुख साइंटिस्ट लुसियाना बोरियो का कहना है कि दूसरी डोज की तारीख आगे बढ़ाना खतरनाक है। इस बहस के बीज दिसम्बर में पड़ गए थे। जब फाइजर बायोएनटेक वैक्सीन के ट्रायल में दूसरी डोज दो सप्ताह बाद वालंटियर्स को बहुत अधिक सुरक्षा मिल गई थी। यह पहली डोज से अधिक थी। उसी माह ब्रिटेन में फाइजर बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीनों को मंजूरी दी थी। दोनें वैक्सीन की दूसरी डोज 12 हफ्ते बाद लगाई गई गई थी। क्लीनिकल ट्रायल से पता लगा है कि पहली डोज से कई सप्ताह तक बचाव की क्षमता मिलती है। बीमारी नियंत्रण और रोकथाम सेंटरों (सीडीसी) ने बताया है कि मॉडर्ना या फाइजर-बायोएनटेक की पहली डोज के दो सप्ताह बाद किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है। ब्रिटेन में शोधकर्ताओं का कहना है कि पहली डोज से सुरक्षा चक्र कम से कम बारह सप्ताह तक बना रहता है। विशेषज्ञ डा. इमैनुअल का कहना है कि ब्रिटेन में अधिक लोगों को पहली डोज देने के कारण संक्रमण में 95 प्रतिशत गिरावट आई है। वायरस का अध्ययन करने वाली साइंटिस्ट डा. कोवे और उनके साथियों का कहना है कि कुछ लोगों को बहुत अधिक सुरक्षा देने की बजाए अधिक लोगों को वैक्सीन की एक डोज लगाकर वायरस के फैलाव को रोकना संभव है।

ये नक्सली पूंजीवादियें के स्लेव हैं

देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था का हमेशा से विरोध करने वाले नक्सलपंथी बड़ी संख्या में मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे ही एक पूर्व नक्सली नेता हैं बिनॉय कुमार दास। बिनॉय पश्चिम बंगाल विधानसभा में उत्तर दिनाजपुर में रायगंज की करनदीघी विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं। बिनॉय कहते हैं कि चुनाव का बहिष्कार करने वाले नक्सली झूठे और पूंजीवादियों के नौकर हैं। बिनॉय ने कहा, ये नक्सली पूंजीवादियें के स्लेव हैं, सब कमीशन लेकर अपनी जेबें भर रहे हैं। नक्सली हमलों को लेकर बिनॉय ने कहा कि जो जंगी आज लोगों को मार रहे हैं, वो ये क्यें नहीं सोच रहे कि ये सैनिक भी तो हमारे परिवार से हमने तैयार किया है। मुझे बहुत दुख है कि वो लोग ऐसा करते हैं, आखिर वो इंडियन सिटिजन हैं, इंडियन फ्लैग के नीचे काम करते हैं, फिर अपने ही देश के नागरिकों को क्यों मार रहे हैं? ये सब पूंजीवादियों का खेला है। अर्बन नक्सल को लेकर बिनॉय का कहना है कि ये लोग नक्सलवादी क्रांति को समझते ही नहीं हैं, ये नक्सली हैं ही नहीं। वह कहते हैं, इन लोगों को स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और राजनीतिक दलों द्वारा कंट्रोल किया जाता है। सरकार और राजनीतिक दलें का इन पर पूरा कंट्रोल है और यह उनके इशारों पर चलते हैं। अर्बन नक्सली 1969 के समय में होते थे। उस समय मुख्यधारा में शामिल रहे लोग नक्सल क्रांति का समर्थन करते थे। उनमें मिथुन चक्रवर्ती समेत कई लोग शामिल थे। उनका कहना था कि वे ओरिजनल नक्सली थे। आज वाले दो नंबरी हैं। बिनॉय कहते हैं कि अगर जनता उन्हें यह मौका देती है तो वह सबसे पहले रोटी, कपड़ा और मकान की उपलब्धता पर काम करेंगे। वह कहते हैं कि इतने सालों में भी लोगों को ये बेसिक चीजें नहीं मिल पाई हैं। पार्टी के छोटे-मोटे नेता अपना काम करा लेते हैं और आम जनता को कुछ भी नहीं मिलता, सिवाय 2 किलो चावल के। मूल रूप से कर्णजोश कालीबाड़ी इलाके के रहने वाले बिनॉय की पैतृक संपत्ति की कीमत 650 करोड़ 82 लाख 57 हजार रुपए है। जानकारी के मुताबिक उनके पास 100 एकड़ से ज्यादा जमीन, रायगंज, मालदा, जलपाईगुड़ी, हरियाणा, वाराणसी समेत कई जगहों पर 14 पैतृक निवास हैं। इसके बावजूद वह किराये के घर में रहते हैं। बिनॉय ने 2018 में रायगंज जिला परिषद का चुनाव लड़ा था। इसके अलावा वह 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। हालांकि दोनों चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

बैंक ने गरीबों के खाते से काट लिए 300 करोड़ रुपए

देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने छोटे बैंक जमा और जनधन खाताधारकों से करीब 300 करोड़ रुपए वसूल लिए। महीने में चार से ज्यादा ट्रांजेक्शन करने पर गलत तरीके से प्रति निकासी 17.70 रुपए तक की रकम वसूली है। आईआईटी बाम्बे की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक बैंक ने मिशन डिजिटल इंडिया के तहत किए जा रहे यूपीआई, इंटरनेट लेनदेन समेत डेबिड कार्ड इस्तेमाल करने पर भी राशि काटी है। यह राशि 2015 से 2020 के दौरान एसबीआई ने 12 करोड़ जनधन खातों से काटी है। इनमें वित्तवर्ष 2018-2019 में 72 करोड़ व 2019-2020 में 158 करोड़ रुपए ग्राहकों से वसूले। 2015 से 2020 के दौरान पंजाब नेशनल बैंक ने भी करीब 9.5 करोड़ रुपए वसूले हैं। ज्यादातर बैंकों ने यह शुल्क नहीं लिया जिसमें चार प्रमुख और सरकारी बैंक शामिल हैं। कुछ बैंकों ने जो वसूली की थी उसे वापस भी किया है। आईसीआईसीआई बैंक ने पहले शुल्क लगाया लेकिन बाद में वापस कर दिया। रिजर्व बैंक के एक अधिकारी का कहना है कि बैंकों की गलत वसूली से सरकार के इस मिशन को धक्का पहुंचा है। आम लोगों की सहूलियत के लिए जनधन खाते खोले गए थे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को ऐसे ग्राहकों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। रिपोर्ट तैयार करने वाले प्रोफेसर आशीष दास ने हिन्दुस्तान को बताया कि रिजर्व बैंक का निर्देश है कि जून 2019 तक वसूली न की जाए। हर महीने चार लेन-देन मुफ्त करने दें उसके बाद लेन-देन का विकल्प बैंक तय करें पर शुल्क नहीं लगाया जा सकता है। रिजर्व बैंक को शुल्क लगाने वाले बैंकों को जनता से काटे रुपए वापस करने के आदेश देने चाहिए और सख्ती से कहा जाए कि भविष्य में भी ऐसा न करें। -अनिल नरेन्द्र

Sunday 11 April 2021

लॉकडाउन के डर से पलायन फिर शुरू

राजधानी में नाइट कर्फ्यू लगने के बाद से ही यहां के मजदूरों को अब दोबारा लॉकडाउन का डर सताने लगा है। बसों, ट्रेनों और आरक्षण केंद्रों पर अचानक भीड़ बढ़ गई है। साथ ही कंस्ट्रक्शन कंपनियों, सिक्यूरिटी एजेंसियों जैसी जगहों पर काम करने वाले श्रमिक छुट्टियों को अर्जी लगा रहे हैं। श्रमिकों के अनुसार जिस तरह अचानक नाइट कर्फ्यू घोषित कर दिया गया, अचानक उसी तरह लॉकडाउन भी घोषित कर दिया जाएगा। फिर उनके लिए पिछले साल जैसी समस्याएं शुरू हो जाएंगी। इससे बेहतर है कि वह अभी से अपने गांव पहुंच जाएं। रेलवे आरक्षण केंद्र में आए सुरेश कुमार के अनुसार पिछले साल उन्होंने करीब 350 किलोमीटर का पैदल सफर तय किया था। मकान मालिक ने उनका सामान घर के बाहर रख दिया। काम मिलना बंद हो गया। खाने तक के लाले पड़ गए थे। इस बार वह लॉकडाउन में नहीं फंसना चाहते। कापसहेड़ा में रहने वाले लोग और अधिक परेशान हैं। उनका कहना है कि यदि लॉकडाउन न भी लगा, लेकिन बॉर्डर बंद हो गए तो उनका काम छूट जाएगा। बड़ी मुश्किल से वह पुरानी स्थितियों से उबर पाए हैं। बुरे दिनों में प्रशासन और पुलिस, दोनों डंडे मारते हैं। इससे अच्छा है कि अभी जब ट्रांसपोर्ट उपलब्ध है, वह अपने घरों को चले जाएं। अशोक विहार की सिंघ सिक्यूरिटी सर्विस की निदेशक पूनम सिंह ने बताया कि नाइट कर्फ्यू के बाद से ही कई लोग छुट्टी मांग रहे हैं। संख्या एकदम से बढ़ गई है। ज्यादातर लोग पिछले समय को याद करके भयभीत हैं।

एक ही चिता पर आठ लोगों का अंतिम संस्कार

कोरोना काल में बुरी खबरों के बीच यह एक और बुरी खबर है। यह खबर महाराष्ट्र के बीड जिले से आई है, जहां कोविड-19 से जान गंवाने वाले आठ लोगों का अंतिम संस्कार एक ही चिता पर कर दिया गया। इस संबंध में एक अधिकारी ने बुधवार को कहा कि एक अस्थायी शवदाह गृह में जगह की कमी के चलते ऐसा किया गया। अधिकारी ने बताया कि क्योंकि अंबाजोगई नगर के शवदाह गृहों में कोरोना से संबंधित लोगों का अंतिम संस्कार किए जाने का स्थानीय निवासियों ने विरोध किया था। इसलिए स्थानीय अधिकारियों को अंत्येष्टि के लिए दूसरी जगह ढूंढनी पड़ी, जहां जगह कम थी। अंबाजोगई नगर परिषद के प्रमुख अशोक सावले ने बताया कि वर्तमान समय में हमारे पास जो शवदाह गृह हैं, वहां संबंधित मृतकों का अंतिम संस्कार किए जाने का स्थानीय लोगों ने विरोध किया, इसलिए हमें नगर से दो किलोमीटर दूर मांडवा मार्ग पर एक अन्य स्थान ढूंढना पड़ा। उन्होंने कहा कि इस नए अस्थायी अंत्येष्टि गृह में जगह कम है। अधिकारी ने बताया, इसलिए मंगलवार को हमने एक बड़ी चिता बनाई और इस पर आठ शवों का अंतिम संस्कार कर दिया। यह बड़ी चिता थी और शवों को एक-दूसरे से एक निश्चित दूरी पर रखा गया था। उन्होंने कहा कि चूंकि कोरोना विषाणु का संक्रमण तेजी से फैल रहा है और इसके चलते मौत का आंकड़ा बढ़ने की आशंका है, इसलिए अस्थायी शवदाह गृह को विस्तारित करने तथा मानसून शुरू होने से पहले इसे वॉटरप्रूफ बनाए जाने की योजना तैयार की जा रही है। बीड जिले में मंगलवार को संक्रमण के 716 नए मामले सामने आए, जहां महामारी के अब तक सामने आए, मामलों की कुल संख्या 28,491 हो गई है। जिले में कोविड-19 से अब तक 672 लोगों की मौत हो चुकी है।

12 माह बाद खुला दिल्ली का चिड़ियाघर

कोरोना महामारी के कारण बंद हुए दिल्ली चिड़ियाघर को करीब 380 दिन बाद बृहस्पतिवार को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। लंबे समय बाद वन्यजीवियों का दीदार कर बच्चों व वन्यजीव प्रेमियों के चेहरे खिले नजर आए। पहले दिन ही 1645 पर्यटकों ने ऑनलाइन टिकट के माध्यम से प्रवेश किया, जिससे प्रशासन को 1,18,560 रुपए की कमाई हुई। तकनीकी खामियों की वजह से पर्यटकों को टिकट बुक करने में परेशानी का भी सामना करना पड़ा। पहले के मुकाबले चिड़ियाघर नए रंग रूप में नजर आया। प्रवेश द्वार पर बनाई गई कलाकृतियों ने पर्यटकों का मन मोह लिया। कोरोना की वजह से गत वर्ष 18 मार्च को चिड़ियाघर को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था। इसके बाद से चिड़ियाघर प्रशासन केंद्र की ओर से मंजूरी का इंतजार कर रहा था, लेकिन इस बीच बर्ड फ्लू के कारण चिड़ियाघर के खुलने की फाइल एक बार फिर ठंडे बस्ते में चली गई थी। लगातार दो बार नमूनों की रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद पूरी तैयारी के साथ चिड़ियाघर को एक अप्रैल से पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। पहले दिन ही वन्यजीवों के दीदार करने के लिए पहुंचे पर्यटकों को टिकट बुकिंग के सर्वर डाउन की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा। पर्यटकों का कहना था कि टिकट बुकिंग के दौरान यूपीआई सर्वर में परेशानी की वजह से दिक्कतें आ रही थीं। इस वजह से कई पर्यटकों के अकाउंट से पैसा कटने के बाद भी टिकट बुक नहीं हो रही थी। चिड़ियाघर के निदेशक रमेश कुमार पांडे ने कहा कि पहला दिन होने के कारण थोड़ी परेशानी हुई है। शिकायतों पर गौर किया जा रहा है और ऑनलाइन व्यवस्था में आ रही परेशानियों को जल्द सुधारा जाएगा। उन्होंने बताया कि पर्यटकों की सुविधा के लिए 10 से अधिक स्थानों पर क्यूआर कोड लगाए गए थे, जिससे पर्यटक आसानी से टिकट बुक कर सकें। पहली पाली में सुबह आठ से 12 बजे तक और दूसरी पाली में दोपहर एक से पांच बजे तक प्रवेश की अनुमति थी। प्रत्येक पाली में अधिकतम 1500 लोगों की बुकिंग रखी गई। इस प्रकार एक दिन में कुल 3000 पर्यटकों की संख्या सीमित की गई। चिड़ियाघर खुलने के बाद ही सबसे अधिक भीड़ मकसूद कांड से मशहूर हुए विजय बाघ के बाड़े के बाहर देखने को मिली। यहां खासतौर पर पहुंचे बच्चों के चेहरे खिले नजर आए। इसके अलावा हाथी, शेर, भालू, बंदर, मगरमच्छ और तेंदुए को देखने के लिए जमघट लगा रहा। वर्ष 2014 में विजय बाघ के बाड़े में मकसूद नाम का व्यक्ति गिर गया था, जिसे बाघ ने अपना शिकार बना लिया था। चूंकि विजय किसी जंगल में नहीं रहा इसीलिए उसे समझ नहीं आया कि मकसूद उसके बाड़े में कर क्या रहा है। हालांकि चिड़ियाघर कर्मियों ने मकसूद को बचाने के लिए कई कदम उठाए पर उसे बचा नहीं सके। -अनिल नरेन्द्र

Saturday 10 April 2021

वाजे से वसूली करवाते थे महाराष्ट्र के दो मंत्री

महाराष्ट्र में वसूली का बवंडर विकराल रूप धारण करता जा रहा है। अनिल देशमुख के बाद महाराष्ट्र सरकार के एक और मंत्री अनिल परब पर वसूली कराने का आरोप लगा है। 100 करोड़ रुपए की उगाही मामले में गृहमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले अनिल देशमुख के साथ शिवसेना नेता व संसदीय कार्यमंत्री अनिल परब की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। निलंबित पुलिस सब-इंस्पेक्टर सचिन वाजे ने देशमुख पर नौकरी में बनाए रखने के लिए दो करोड़ रुपए मांगने का सनसनीखेज आरोप लगाया है। वहीं अनिल देशमुख ने सैफी बुरहानी ट्रस्ट से 50 करोड़ की डील करने को कहा था। पत्र में वाजे ने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के नाम से गुटखा व्यापारी से 100 करोड़ रुपए वसूलने के लक्ष्य का भी आरोप लगाया। वाजे के वकील ने बुधवार को विशेष कोर्ट में पेश पत्र में दावे किए हैं। वाजे का दावा है कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार नहीं चाहते थे कि वह पुलिस में बने रहें। दोबारा ड्यूटी ज्वाइन करने पर पवार ने मुझे फिर निलंबित करने को कहा था। इसकी एवज में ही देशमुख ने दो करोड़ रुपए मांगे थे। मैंने असमर्थतता जताई, तो वह बाद में लेने को तैयार हो गए। देशमुख ने कहा था कि 1650 बार व रेस्टोरेंट हैं। प्रति बार व रेस्टोरेंट से तीन से साढ़े तीन लाख रुपए वसूल करो। मैंने उन्हें बताया कि करीब 200 बार ही हैं और मैं यह वसूली नहीं कर सकता। देशमुख के बंगले से निकलने पर उनके पीए ने मंत्री की मांग मानने की सलाह दी थी। बाद में मैंने यह जानकारी तत्कालीन पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह को दी। उन्होंने कहा कि अवैध काम मत करना। हालांकि कोर्ट ने पत्र को स्वीकार नहीं किया और इसे ठीक से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। हालांकि वाजे ने पत्र में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार से सीधे निर्देश मिलने का जिक्र नहीं किया। लेकिन लिखा हैöदर्शन घोड़ावत नामक व्यक्ति ने कहा था कि वह अजीत का करीबी है। घोड़ावत ने कुछ लोगों के नाम दिए और कहा कि लिस्ट में दर्ज व्यापारियों से 100 करोड़ रुपए वसूली करो।

मुख्तार का नया पता बैरक नम्बर 15, बांदा जेल

माफिया मुख्तार अंसारी का नया पता होगा.... बैरक नम्बर 15, बांदा जेल। 26 महीने की जद्दोजहद के बाद उसकी वापसी यूपी में हो गई। पंजाब के बिल्डर से 10 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने के आरोप में मामला दर्ज होने के बाद पंजाब पुलिस उसे प्रोडक्शन वारंट पर जनवरी 2019 को यूपी से ले गई थी और करीब 24 महीने से अंसारी न्यायिक हिरासत में रोपड़ जेल में था। पंजाब की रोपड़ जेल बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को खूब रास आई। वह यहां पर अपने आपको पूरी तरह सुरक्षित समझता था। यहां से यूपी नहीं जाना चाहता था। दो साल में आठ बार यूपी पुलिस उसे लेने रोपड़ भी पहुंची, लेकिन हर बार सेहत, सुरक्षा और कोरोना का कारण बताकर पंजाब पुलिस ने सौंपने से इंकार कर दिया। पंजाब पुलिस हर बार डॉक्टर की सलाह का हवाला देती रही कि अंसारी को डिप्रैशन, शुगर, रीढ़ से संबंधित बीमारियां हैं। ऐसे में उसे कहीं और शिफ्ट करना ठीक नहीं है। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पंजाब सरकार ने आरोपी को पंजाब की जेल में रखने के लिए कई तर्क रखे, लेकिन वह सब विफल रहे। 21 जनवरी 2019 को मोहाली पुलिस अंसारी को कारोबारी से रंगदारी मांगने के आरोप में यूपी से प्रोडक्शन वारंट पर लाई थी। 25 जनवरी 2019 से आरोपी रोपड़ जेल में बंद था। करीब 26 महीने से यूपी में चल रहे 54 केसों की सुनवाई हुई, वह एक बार भी अदालत में पेश नहीं हुआ। हालांकि इलाज के लिए बाहर आता रहता था। यह मामला यूपी और पंजाब सरकार के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का कारण भी बन गया था। अंतत सुप्रीम कोर्ट के दखल से उसकी घर वापसी हुई। उस पर राज्य और अन्य स्थानों पर 54 से अधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से अधिकांश मामलों में गवाहों के मुकर जाने या गवाही के लिए सामने न आने से यह मामला ढीले पड़ चुके थे। लेकिन 15 मामलों में सुनवाई अभी जारी है। यूपी पुलिस के अत्याधुनिक हथियारों से लैस करीब 60 जवान उसे लाने एक एम्बुलेंस, ब्रज वाहन सहित 11 वाहनों का काफिले लेकर पहुंचे थे। 900 किलोमीटर के इस सफर में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा का इंतजाम था। बांदा जेल की बैरक नम्बर 15 उसका नया ठिकाना होगा। जेल में सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम किए गए हैं। मुख्तार के परिवार वाले उसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। दरअसल उन्हें यूपी की भाजपा सरकार के माफिया गैंगस्टर विरोधी रुख से खतरा महसूस हो रहा है। मुख्तार और उसके गुर्गों की कई अवैध सम्पत्तियों पर बुल्डोजर चल चुके हैं। उसकी पत्नी अफशां अंसारी और बड़े भाई गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी सुप्रीम कोर्ट से उसकी सुरक्षा बढ़ाने की गुहार कर चुके हैं। कोई कितना भी बड़ा सरगना या अपराधी क्यों न हो, न्याय करना कानून का काम है। मुख्तार अब यूपी की जेल में है। अब वक्त है कि बयानबाजी छोड़कर कानून को अपना काम करने दिया जाए।

धधकते जंगल क्लाइमेंट चेंज का नतीजा

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग महज एक संयोग है या फिर पहाड़ों के गरम होते मौसम का नतीजा? विशेषज्ञ इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार जंगलों में आग लगना असामान्य नहीं है लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि अब जंगलों में आग लगने की घटनाएं तब हो रही हैं जब गर्मी का मौसम चरम पर नहीं पहुंचा। इसलिए इसका संबंध ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ता है। गर्मी बढ़ रही है, पेड़-पौधे ज्यादा सूख रहे हैं। धरती का पानी सूख रहा है, टूटे पत्ते जल्दी सूख रहे हैं और सूखे पत्ते भी आग लगने का सबब बनते हैं। भारत में भी इस सबका असर साफ दिख रहा है। 2020 में भी देश के चार राज्यों के जंगलों में आग की बड़ी घटनाएं हुईं। यह राज्य थेöउत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और नागालैंड। सेंटर फॉर बॉयोडायवर्सिटी एंड कंजर्वेशन के वरिष्ठ फैलो डॉक्टर जगदीश कृष्णास्वामी के अनुसार आजकल देश के कुछ हिस्सों में मौसम बहुत गरम है। तेज गर्मी के चलते वहां पहाड़ों पर उगने वाले झाड़-फंकार के सूख जाने से शुष्क ईंधन की उपलब्धता इन ]िदनों बढ़ गई है और उसकी उपलब्धता से प्रज्जवलन और ज्वलनशीलता की संभावना है। इस साल की शुरुआत में उत्तराखंड में सर्दियों में बारिश घटी है। बारिश 50 मिलीमीटर की जगह महज 10 मिलीमीटर ही हो रही है। हिमाचल क्षेत्र में ग्लोबल वॉर्मिंग की दर सबसे ज्यादा है। मानसून की बारिश का अभाव वहां मौजूद वनस्पति को सूखा कर ज्वलनशील ईंधन में तब्दील करने के लिए काफी है। -अनिल नरेन्द्र

Friday 9 April 2021

राफेल पर कांग्रेस-भाजपा फिर आमने-सामने

राफेल विमान सौदे को लेकर भाजपा और कांग्रेस में फिर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। ताजा विवाद फ्रांसीसी पोर्टल मीडियापार्ट की एक खबर को लेकर है, जिसमें राफेल सौदे में 11 लाख यूरो (मौजूदा मूल्य के हिसाब से लगभग 9.5 करोड़ रुपए) की दलाली का दावा किया गया है। कांग्रेस ने इस रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सफाई मांगी है, वहीं भाजपा ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि मीडियापार्ट ने ही 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राफेल के साथ हुए ऑफशोर समझौते पर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट छापी थी। मीडियापार्ट की खबर का हवाला देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी ने जांच में पाया है कि दासौ ने डेफसिस सॉल्यूशंन को राफेल के 50 मॉडल बनाने के लिए 11 लाख यूरो का भुगतान किया था, लेकिन कंपनी इन मॉडल की आपूर्ति दिखाने में विफल रही। दो सरकारों के बीच हुए सौदे में दलाली की रकम दिया जाना गंभीर मामला है। पीएम मोदी को इसका जवाब देना चाहिए। सुरेजवाला ने कहा कि सौदे की शर्तों में साफ-साफ लिखा है कि इसमें किसी तरह के बिचौलिये की कोई भूमिका नहीं होगी। वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल सौदे में एक बिचौलिये को 11 लाख यूरो (करीब 9.5 करोड़ रुपए) का भुगतान किए जाने वाली इस खबर पर मंगलवार को सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि व्यक्ति जो कर्म करता है उसका फल सामने आ जाता है तथा इससे कोई बच नहीं सकता। उन्होंने ट्वीट किया कि मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। राहुल ने कहा कि जब कांग्रेस ने मामले की गहन जांच की मांग की थी तो भाजपा ने आरोपों को पूरी तरह निराधार करार देते हुए आरोप लगाया था कि मुख्य विपक्षी पार्टी सुरक्षा बलों को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। फ्रांस के समाचार पोर्टल ने नए खुलासे से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के इस रुख को सही साबित किया है कि राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है। इस पर पलटवार करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए मीडियापार्ट की रिपोर्ट पर ही सवाल उठाया। उन्होंने रिपोर्ट के पीछे कारपोरेट लड़ाई की ओर इशारा किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट व सीएजी पहले ही सौदे को क्लीन चिट दे चुके हैं। रविशंकर प्रसाद ने बिचौलिये के रूप में डेफसिस सॉल्यूशंस और उसके मालिक सुशेन गुप्ता का नाम सामने आने को भी हास्यास्पद करार दिया। उन्होंने कहा कि सुशेन गुप्ता को अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले के आरोप में वर्ष 2019 में ईडी गिरफ्तार कर चुकी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद स्वीकार कर चुके हैं कि वह सुशेन गुप्ता के पूरे परिवार से परिचित हैं। यही नहीं, अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के नाम भी सामने आ चुके हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहाöराफेल को लेकर कांग्रेस लंबे समय से विवाद खड़ा करने की कोशिश करती रही है, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली है। प्रसाद ने ध्यान दिलाया कि कांग्रेस ने इस मामले को पूर्व में भी उठाया है और सुप्रीम कोर्ट में भी उसकी हार हुई। यहां तक कि कैग जांच में भी कुछ गलत नहीं पाया गया। हमारा मानना है कि चूंकि सारा मामला फ्रांस से उठा है और वहां जांच जारी है। जांच में किस-किस का नाम आता है यह फ्रांस की जांच पर निर्भर है। रिश्वत दी गई तो कितनी, किसको दी गई, पता नहीं इसका खुलासा होता है या नहीं?

युवाओं की मौत का औजार है मादक पदार्थ

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मादक पदार्थों का कारोबार करने वाले लोग ऐसे निर्दोष युवा पीड़ितों की मौत के लिए साधन हैं तथा वह समाज पर घातक प्रभाव डालते हैं। न्यायालय ने कहा कि देश में मादक और नशीले पदार्थों की तस्करी तथा उनके अवैध कारोबार से जनता के एक बड़े हिस्से, विशेष तौर पर किशोरों में मादक पदार्थों की लत लग जाती है। न्यायालय ने कहा कि इस समस्या ने गंभीर और खतरनाक रूप ले लिया है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के नवम्बर 2019 के फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस फैसले को कायम रखा था जिसमें एक किलोग्राम हेरोइन बरामद होने पर एक व्यक्ति को मादक पदार्थ संबंधी कानून के तहत दोषी ठहराते हुए 15 साल की कैद तथा दो लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। न्यायालय ने कहाöआरोपी की ओर से दी गई दलीलों पर विचार करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हत्या के किसी मामले में आरोपी एक या दो लोगों की हत्या करता है, जबकि मादक पदार्थों का कारोबार करने वाले लोग कई मासूम युवाओं की मौत का साधन होते हैं... इसका समाज पर घातक प्रभाव पड़ता है। वह समाज के लिए खतरा हैं। यह कटु सत्य है कि देश में मादक पदार्थों की तस्करी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और आए दिन कोई न कोई तस्कर पकड़ा जाता है। पर अभी तक इसके रोकने की कोई ठोस नीति नहीं बन पाई। देश की युवा पीढ़ी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। इसे रोकना अत्यंत आवश्यक है।

वक्त से पहले रिकॉर्ड गर्मी

वक्त से पहले रिकॉर्डतोड़ गर्मी से मैदान तपने लगे हैं। राजधानी दिल्ली में एक दिन पहले ही 75 साल का रिकॉर्ड टूटा तो राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, यूपी समेत कई राज्यों में लू के थपेड़ों से लोग बेहाल हो गए। विशेषज्ञों के मुताबिक कम मानसूनी बारिश की सबसे बड़ी वजह है। दिल्ली में लोगों को इस बार सामान्य से ज्यादा गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। फरवरी में औसत तापमान 27.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। बीते 120 वर्षों में सिर्फ दो बार ही फरवरी का औसत तापमान इस स्तर पर दर्ज किया गया। फरवरी के बाद मार्च में तपन बढ़ी है। पिछले वर्ष मार्च के महीने में एक दिन भी ऐसा नहीं रहा था जब अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से पार पहुंचा हो, लेकिन इस बार तीन दिन 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान राजधानी दिल्ली में दर्ज किया गया। होली का दिन यानि 29 मार्च सबसे ज्यादा गरम रहा। इस दिन तापमान (अधिकम) 40.1 डिग्री रहा जो सामान्य से आठ डिग्री ज्यादा है। इससे पहले वर्ष 1945 में 31 मार्च के दिन 41.5 डिग्री तापमान रहा था जो ऐतिहासिक तौर पर सबसे ज्यादा है। इस तरह से यह दूसरा सबसे गरम दिन रहा है। दिल्ली में मंगलवार के दिन भी अधिकतम तापमान सामान्य से छह डिग्री ज्यादा रहा। मौसम विभाग के सफदरजंग केंद्र में अधिकतम तापमान 37.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। हालांकि इसकी तुलना सोमवार से करें तो तेज हवाओं के चलते पारे में लगभग दो डिग्री की गिरावट हुई। सोमवार को अधिकतम तापमान 40.1 डिग्री था जो कि सामान्य से आठ डिग्री ज्यादा था। वैसे देखा जाए तो यही मायनों में अभी गर्मी की शुरुआत है। जून-जुलाई में यह तापमान कहां पहुंचेगा सोचकर भी घबराहट होती है। दिल्लीवासियों को तगड़ी गर्मी, लू इत्यादि के लिए तैयार रहना होगा। -अनिल नरेन्द्र

Thursday 8 April 2021

ऐसे आरोपों को बिना जांच के नहीं छोड़ा जा सकता

पिछले कई दिनें से चल रहे विवाद में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों के बाद बाम्बे हाई कोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के आदेश देने के बाद महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख के पास अपने पद से इस्तीफा देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प बचा ही नहीं था। हाई कोर्ट ने सीबीआई को देशमुख के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की प्रारंभिक जांच 15 दिन के भीतर करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि देशमुख के खिलाफ पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों ने पुलिस पर नागरिकों के भरोसे को दांव पर लगा दिया है। राज्य के गृह मंत्री के खिलाफ लगाए गए ऐसे आरोपों को बिना जांच के नहीं रहने दे सकते। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में एक स्वतंत्र एजेंसी से कराया जाना जरूरी है जिससे लोगों का भरोसा कायम रहे। कोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे दोनों जजों ने ऐसा पहले कभी नहीं देखा। पीठ ने कहा, यह कहा जाता है कि कोई भी समय को नहीं देख सकता, लेकिन कई बार समय हमें चीजों को अनदेखा होने से पहले उन्हें दिखा देता है। सच है। पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के वकील ने तर्क दिया कि समूचा पुलिस बल हत्सोत्साहित था और नेताओं के हस्तक्षेप के कारण दबाव में काम कर रहा था। इस पर पीठ ने पूछा कि अगर सिंह को देशमुख के कथित कदाचार की जानकारी थी तो उन्होंने मंत्री के खिलाफ एफआईआर क्यों दर्ज नहीं कराई। एक अन्य याचिकाकर्ता जयश्री पाटिल ने पीठ को बताया कि उन्होंने स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत कराई थी, लेकिन उस पर कुछ एक्शन नहीं हुआ। वहीं राज्य सरकार के वकील ने कहा कि याचिकाएं विचार करने योग्य नहीं है, उन्हें रद्द किया जाए। पिछले महीने पुलिस कमिश्नर के पद से हटाए जाने के बाद परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को खुली चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया था कि देशमुख एपीआई (अब निलंबित) सचिन वाजे सहित निचले स्तर के पुलिस अधिकारियों को न केवल सीधे निर्देश देते हैं, बल्कि उन्होंने उनसे मुंबई के बार और रेस्तरां से सौ करोड़ रुपए की वसूली की मांग की है। परमबीर सिंह के आरोपों के बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के एक पूर्व जज की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनाई थी। मगर देशमुख पद पर बने हुए थे। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और भाजपा को राज्य सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया। वास्तव में जब उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक मिलने के मामले में वहां एक पुलिस अधिकारी की fिगरफ्तारी हुई थी, तभी से यह लग रहा था कि सबसे सुरक्षित आने जाने वाले इलाकों में कानून व्यवस्था का यह मामला तूल पकड़ सकता है। खासतौर पर पूर्व पुलिस कमिश्नर के पत्र के बाद अनिल देशमुख के राजनीतिक भविष्य को आशंकाएं खड़ी हो गई थीं। महाराष्ट्र की राजनीति में अनिल देशमुख कुछ वैसे नेताओं के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे जो एक छोटे अंतराल को छोड़ कर वहां की सरकार में खासी पैठ रखते रहे हैं। लेकिन अब उनके इस्तीफे के बाद देखना यह है कि जांच के बाद कैसी तस्वीर उभरती है। लेकिन अब इस्तीफे के बाद देखना यह है कि महाराष्ट्र सरकार की क्या स्थिति बनती है? हालांकि अगर हाईकोर्ट की समय-सीमा में जांच पूरी होती है तो हफ्ते के बाद इस मामले की गुत्थियां और ज्यादा स्पष्ट रूप से खुल सकती हैं। लेकिन ताजा घटनाक्रम पर बताने के लिए काफी है कि अब राज्य की राजनीति में सत्ता कायम रखने और उसे हासिल करने के लिए दांवपेच का नया दौर फिर से शुरू हो सकता है। देखना यह है कि सीबीआई जांच कितनी दूर तक जाती है, क्योंकि इस पर ही उद्धव ठाकरे सरकार का भविष्य टिका हुआ है।

केरल में खुला लव जिहाद के खिलाफ मोर्चा

पिछले कुछ वर्षों से केरल में हिंदू संगठन प्रमुखता से लव जिहाद के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, लेकिन अब स्थिति बदलती प्रतीत हो रही है। वैसे केरल का ईसाई समुदाय पहले से ही लव जिहाद की घटनाओं से प्रभावित रहा है, लेकिन अब इसके खिलाफ उनके बीच प्रमुखता से आवाज उठने लगी है। द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक केरल स्थित ईसाई संगठन क्रिश्चियन एसोसिएशन एंड एलायंस फॉर सोशल एक्शन (सीएएसए) ने फेसबुक पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें कथित तौर पर लव जिहाद की जाल में फंसी एक लड़की की कहानी के जरिए इस समस्या को सामने लाने का प्रयास किया गया है। इस वीडियो को ईसाइयों के कई व्हाट्सप समूह में शेयर किया जा रहा है। लेकिन इस वीडियो को मलयालम में जो परिचय लिखा गया है, वह काफी दिलचस्प है। इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने के आ"ान के तहत इसमें कहा गया है कि माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और कांग्रेस नीति संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) जिहादियों के तुष्ट करने के लिए लव जिहाद नामक आतंकवाद को सही ठहरा रहे हैं। पिछले साल केरल के साइरो-मालाबार चर्च ने एक बयान जारी कर यह चिंता जताई थी कि ईसाई लड़कियों को लव जिहाद के जरिए निशाना बनाया जा रहा है। साल भर हो गया, यह बात आज भी वहां के चर्च के किसी न किसी हिस्से में कहीं न कहीं गूंज रही है। चर्च खासकर साइरो-मालाबार चर्च से जुड़े लोगों से बातचीत के आधार पर द प्रिंट का कहना है कि सारे लोग इस घटना को मानने वाले नहीं हैं, लेकिन ऐसे भी काफी लोग हैं, जो वीडियो में पेश की गई तस्वीर से सहमत है। सेव साइरो-मालाबार फोरम से जुड़ा एक पदाधिकारी इसे संदेह से परे मानता है। उनके मुताबिक यह महज स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि वैश्विक परिघटना है। हालांकि, वे सभी अंतर धार्मिक विवाह के खिलाफ नहीं हैं। उनकी नजर में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ऐसी सभी शादियां लव जिहाद हैं। धर्मांतरण एक निजी मामला है, लेकिन इसके बाद उनमें से कुछ को सीरिया या आईएसआईएस में ले जाना चिंताजनक है। पहली बार करीब 2009 में केरल से लव जिहाद शब्द चर्चा में आया था। तब केरल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने के लिए कहा था। फिर 2016 में खबर आई कि 20 महिलाओं के इस्लाम में धर्मांतरण के बाद उन्हें आईएसआईएस में शामिल किया जा रहा है। साइरो-मालाबार चर्च के मुताबिक लव जिहाद की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण केरल के सांप्रदायिक सौहार्द और शांति को खतरा पैदा हो गया है। इसके जरिए ईसाई लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है। ईसाई समुदाय में लव जिहाद के खिलाफ चर्चा है, तो अपने को प्रगतिशील मानने वाला धड़ा इसके खिलाफ आवाज भी उठाने लगा है। आर्कडामोसेसन मूवमेंट फॉर ट्रांसपरेंसी ने इस घटना को स्पष्ट तौर पर चुनौती दी है। हालांकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में लव जिहाद एक हिंदू-मुस्लिम समस्या के रूप में जाना जाता है। लेकिन केरल में यह ईसाइयों, खासकर साइरो-मालाबार चर्च के बीच अपनी जगह बना चुकी है। केरल में ईसाइयों की आबादी के मद्देनजर यह प्रवृत्ति राजनीतिक दृष्टि से दक्षिणपंथी प्रोपगेंडा के लिए फायदेमंद है। यह सब मुस्लिम समुदाय के लिए निराशाजनक है। केरल की आबादी में करीब 19 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाला ईसाई समुदाय वहां के राजनीतिक दलों के लिए अहम स्थान रखता है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की बात कही। सत्ताधारी माकपा का मानना है कि लव जिहाद का प्रदेश में कोई वजूद नहीं है, यह संघ परिवार के दिमाग की उपज है।