Wednesday 31 January 2018

काबुल में तालिबान का घातक हमला

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित भारतीय दूतावास से महज 400 मीटर की दूरी पर शनिवार को हुए फिदायीन हमले में 95 लोगों की मौत हो गई जबकि 158 अन्य घायल हो गए। हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अफगान तालिबान ने ली है। यह कितना भयंकर हमला था इसी से पता चलता है कि इतनी बड़ी संख्या में निर्दोषों का मारा जाना और घायल होना। जितनी भारी संख्या में लोग मरे एवं घायल हुए उससे यह हाल के समय का सबसे बड़ा हमला हो गया है। तालिबान यदि इसकी जिम्मेदारी न भी लेता तो भी संदेह की सूई उसी ओर जानी थी। 20 जनवरी को भी तालिबान ने काबुल के एक होटल पर हमला किया था, जिसमें 25 लोग मारे गए थे। मरने वालों में ज्यादा विदेशी थे। अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के उप-प्रवक्ता नसरत रहिमी ने बताया कि हमलावर विस्फोटकों से लदी एम्बुलैंस में सवार होकर आए थे। आतंकी पहली जांच में एम्बुलैंस में मरीज होने और उसे जम्हूरियत अस्पताल ले जाने की बात कहकर नाके को पार कर गए थे। लेकिन दूसरी जांच चौकी पर पहुंचने से पहले ही सुरक्षा कर्मियों को हकीकत का पता चल गया। इसका अहसास होते ही एम्बुलैंस में बैठे हमलावर ने दूसरी चौकी पर पहुंचते ही विस्फोटकों में धमाका कर दिया। विस्फोट इतना भीषण था कि दो किलोमीटर दूर तक इसकी आवाज सुनी गई। जिस इलाके को विस्फोट के लिए चुना गया वहीं भारतीय काउंसलर कार्यालय, यूरोपीय संघ के कार्यालय, स्वीडन एवं हॉलैंड के दूतावास हैं। इससे लगता है कि इस बार भी तालिबान के निशाने पर विदेशी ही रहे होंगे। विस्फोट के लिए एम्बुलैंस का इस्तेमाल करना नई बात है और निहायत खतरनाक भी है। इस हमले के बाद एक-एक एम्बुलैंस को संदेह से देखा जाएगा। अफगान गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे तालिबान संबद्ध हक्कानी नेटवर्क की कारगुजारी बताया है। जब से अमेरिका ने पाकिस्तान पर तालिबानों के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ाया है और अफगानिस्तान स्थित अपने सैनिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की घोषणा की है तब से हक्कानी नेटवर्क विदेशियों के विरुद्ध कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गया है। यह किसी से छिपा नहीं कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई, हक्कानी नेटवर्क और अफगानी तालिबानों के बीच तालमेल है। पिछले दिनों अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ ड्रोन हमले भी किए थे। यह विस्फोट दर्शाता है कि अमेरिका और अफगानिस्तान के लिए समस्या गंभीर है। यह अमेरिका व अफगान सरकार को सीधी चुनौती भी है।
-अनिल नरेन्द्र
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आसियान देशों में राजा और हीरो हैं भगवान राम

क्या आपको मालूम है कि एशिया के कई देशों में भगवान राम और रावण मौजूद हैं। बेशक उनके नाम देशानुसार बदल जाते हैं। कहीं राम, रामाह तो कहीं फ्रा बन जाते हैं। वैसे ही रावण फिलीपींस में बदलकर लावण हो जाता है। कहानी वही रहती है। राम नायक और रावण खलनायक। एशिया में अलग-अलग देशों में राम भले ही ईश्वर के अवतार नहीं दिखते, लेकिन रामायण महाकाव्य का कथासार वही हैं। सत्य पर असत्य की जीत का संदेश देते इस महाकाव्य को भाषा, संस्कृति, परिवेश से इतर देखने का अनुभव भी इसी तरह अनुपम है। यह संयोग बीते 20 से 24 जनवरी को आसियान देशों के चार दिवसीय रामायण महोत्सव में रहा। इसका आयोजन दिल्ली में हुआ था। यहां सांझा संस्कृति का पर्याय बन चुके महाकाव्य रामायण को आसियान देशों ने एक मंच से अपने-अपने अंदाज में कहा। अलग-अलग रूपों, भाषाओं और नृत्य की शैलियों में मंच पर आए यह चरित्र बार-बार कह रहे थे कि रामायण बरसों पहले दूर-दूर तक विस्तार ले चुकी है। रामायण के किरदार सिर्फ भारत ही नहीं, एशिया वालों के दिल में बसते हैं। रामायण महोत्सव में आए फिलीपींस के कैथोलिक धर्म से जुड़े स्टीवन फर्नांडीज कहते हैं कि स्कूल-कॉलेज में हमें रामायण के बारे में पढ़ाया जाता है। फिलीपींस में हालांकि इस्लाम और ईसाई दो धर्म के लोग सबसे ज्यादा हैं। अपनी धार्मिक मान्यताओं से अलग हम राम या सीता की पूजा नहीं करते। हां, लेकिन राम हमारी कहानी का नायक है। मैं 40 साल से थियेटर में रामायण का मंचन कर रहा हूं। पहली बार भारत आकर राम के चरित्र और उनके धार्मिक विश्वास की मजबूत जड़ों के बारे में पता चल रहा है। सिर्फ स्टीवन ही नहीं, आसियान कलाकारों का पसंदीदा किरदार सीता हैं। उसके बाद दूसरे स्थान पर आते हैं अंजनि पुत्र हनुमान। हनुमान को दर्शाने के लिए कम्बोडिया के कलाकारों ने हनुमान चालीसा का भी चयन किया था। ईसाई देशों खासकर दक्षिणी द्वीपों में मुसलमानों को रामायण के संरक्षण का श्रेय दिया जाता है। म्यांमार राम की कहानी को तीन रूप में दर्शाता है। थिवड़ा बौद्ध धर्म के जातक कहानियों का जिक्र है, जहां राम को भविष्य में बुद्ध यानी बोधिसत राम माना जाता है। 300 वर्ष पहले ही एशिया में पहुंच चुकी थी रामायण। नौवीं शताब्दी में इंडोनेशिया के जावाद्वीप में प्रबानन नाम का शिव मंदिर है। थाइलैंड में आज भी राजा को राम की पदवी दी जाती है। थाइलैंड में जो भी राजा बनता है वह राम की पदवी ग्रहण करता है। राजा और हीरो हैं आसियान देशों के राम।

Tuesday 30 January 2018

देश को गर्व है दृष्टिहीन क्रिकेटरों पर

एक तरफ जहां इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में क्रिकेटरों पर पैसे की बरसात हो रही है वहीं दुख से कहना पड़ता है कि विश्व कप जीतने वाली भारतीय दृष्टिहीन क्रिकेट टीम का कोई खिलाड़ी खेतिहार मजदूर है तो कोई घरों में दूध बेचता है। कोई आर्किस्ट्रा में गाकर गुजर-बसर करता है। देश को विश्व में सम्मान दिलाने वाले यह खिलाड़ी तंगहाली से जूझ रहे हैं। हालत यह है कि दूसरी बार वन डे विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के 17 सदस्यों में से 12 के पास कोई स्थायी रोजगार नहीं है। इस सबके बावजूद उनकी हिम्मत और जज्बे में कमी नहीं। 2014 की तरह अपना जलवा बनाए रखकर दृष्टिहीन विश्व कप क्रिकेट पर कब्जा जमा लिया। उन्होंने फाइनल में अपनी चिरप्रतिद्वंद्वी टीम पाकिस्तान को दो विकेट से हराया। इस विश्व कप की शुरुआत 1998 में भारत में ही हुई और इसके फाइनल में पाकिस्तान को हराकर दक्षिण अफ्रीका के चैंपियन बनने को छोड़ दें तो बाकी चारों विश्व कपों के फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच ही खेले गए हैं। इनमें से आखिरी दो 2014 और 2018 के विश्व कपों पर भारत ने कब्जा जमाया है। भारत को जीत दिलाने में सुनील रमेश ने 93 रन बनाकर अहम भूमिका निभाई। दृष्टिहीन टीम को चुनने का तरीका भी अलग है। इसमें खेलने वाली टीमों में खिलाड़ी तो 11 ही खेलते हैं, लेकिन टीम में तीन श्रेणी के खिलाड़ी शामिल किए जाते हैं। टीम में बी-1 के चार, बी-2 के तीन और बी-3 के चार खिलाड़ी खिलाना जरूरी है। बी-1 का मतलब है पूर्णत दृष्टिहीन, बी-2 का मतलब है आंशिक दृष्टिहीन और बी-3 का मतलब है थोड़ा-बहुत देखने वाला खिलाड़ी। बी-1 खिलाड़ी को एक रनर दिया जाता है और वह जितने रन बनाता है, उसके दोगुने रन उसके खाते में जोड़े जाते हैं। बी-2 खिलाड़ी भी चाहें तो वे रनर ले सकता हैं। मैच में फील्डिंग करते समय चार बी-1 खिलाड़ियों का रहना जरूरी है। सभी श्रेणी के खिलाड़ी हाथों में अलग-अलग रंग के बैंड बांधते हैं। क्रिकेट के नियम ही दृष्टिहीन क्रिकेट में भी चलते हैं। लेकिन इन नियमों में दृष्टिहीन क्रिकेटरों के लिए सुविधाजनक बनाने के लिए थोड़ा सुधार कर दिया गया है। इसकी गेंद क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली गेंद से थोड़ी बड़ी होती है। गेंद के अंदर बजने वाली बॉल बियरिंग रहती है। इस आवाज से ही बल्लेबाज गेंद को पहचानता है। फील्डर की भी यही स्थिति होती है। इसके विकेट थोड़े बड़े होते हैं। वे मैटल पाइप के होते हैं। इनका रंग चमकीला, नारंगी या पीला होता है। इसमें गेंदबाजी अंडर आर्म की जाती है और गेंद का आधी पिच से पहले टप्पा खाना जरूरी होता है। इसका मकसद है कि गेंद बल्लेबाज के पास पहुंचते समय नीची ही रहे। गेंदबाज पहले रैडी कहता है और बल्लेबाज के हां कहने पर प्ले कहकर ही गेंद फेंकता है। इन तीनों बातों में तालमेल नहीं होने पर गेंद को नो बॉल हो सकती है। हमें इस टीम पर नाज है और दुख इस बात का भी है कि न तो सरकार की ओर से और न ही बीसीसीआई से इन खिलाड़ियों को वह सुविधाएं मिलती हैं जो इनको मिलनी चाहिए। कप्तान अजय रेड्डी ने कहा कि जहां क्रिकेटरों को एक जीत पर सिर-आंखों पर बैठाया जाता है, वहीं यह नौकरी और सम्मान को तरस रहे हैं। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी अपना पूरा फोकस खेल पर नहीं कर पा रहे हैं। बीसीसीआई या खेल मंत्रालय से मान्यता मिलने से भी समस्याएं बहुत हद तक सुलझ सकती हैं, लेकिन वह भी नहीं मिली हैं।

-अनिल नरेन्द्र

कासगंज हिंसा का जिम्मेदार कौन?

जो तिरंगा हमारे देश की एकता, अखंडता और अनेकता में एकता का गौरवमय प्रतीक है जब उसे ही लेकर टकराव और हिंसा हो तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। कासगंज में ऐसा ही हुआ। एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के कासगंज में 26 जनवरी को तिरंगा यात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच हिंसा में चन्दन गुप्ता पुत्र सुशील कुमार की मौत हो गई। सुबह 7.30 पर भारी पुलिस फोर्स के साथ उसके शव को काली नदी पर अंतिम संस्कार के लिए ले जा रहे लोगों ने जमकर भारत माता की जय और वंदेमातरम के नारे लगाए। अंत्योष्टि के बाद जब लोग वापस लौट रहे थे तो उनमें भारी आक्रोश था। इसके बाद शहर में हिंसा भड़क गई। शहर के नदरई गेट पर उपद्रवियों ने दो बसें व कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया। गणतंत्र दिवस पर कुछ बाइक सवार तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे। उनकी जिद थी कि यात्रा उसी सड़क से निकलेगी तो दूसरी ओर ध्वजारोहण कार्यक्रम सम्पन्न करने की मोहलत चाहिए थी। तनातनी बढ़ने की और भी वजहें बताई जा रही हैं। कासगंज में जो हुआ, वह क्या सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था या आकस्मिक, इस बारे में तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है। हिंसा को लेकर शासन को भेजी गई खुफिया रिपोर्ट में बवाल के लिए कुछ विपक्षी नेताओं की ओर इशारा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार चन्दन गुप्ता के हत्यारोपियों को स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। दूसरी ओर प्रशासनिक नाकामी पर शासन ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। वहां हिंसा करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई की जाएगी। कासगंज में पहले से ही तनाव रहा होगा जो गणतंत्र दिवस पर सामने आ गया। सवाल यह है कि कासगंज प्रशासन क्या कर रहा था? क्या उन्हें अंदरखाते तनाव, तैयारी का पता नहीं चला? अगर प्रशासन पहले ही एहतियातन कदम उठा चुका होता तो शायद इस हिंसा से बचा जा सकता था। प्रशासन संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर तिरंगा यात्रा का रूट बदलवा सकता था या फिर ध्वजारोहण कार्यक्रम को ही कहीं और करने को कह सकता था। लेकिन अफसोस। प्रशासन अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम रहा, राजनीतिक दलों ने अपना दायित्व नहीं निभाया। नतीजा यह हुआ कि कुछ बेकसूर लोगों की जान चली गई और सार्वजनिक निजी सम्पत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया। उम्मीद करते हैं कि सरकार और प्रशासन इस आग को दूसरे इलाकों में फैलने से रोके, कासगंज में शांति बहाली के लिए शरारती तत्वों पर अंकुश लगाए। सवाल यह भी उठता है कि आखिर कासगंज हिंसा का जिम्मेदार कौन है?

Monday 29 January 2018

अमेरिका ने पाकिस्तान पर किया ड्रोन से हमला

पाकिस्तान की वित्तीय सहायता पर रोक लगाने और अब अमेरिका ने पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ सीधी कार्रवाई खुद ही करनी शुरू कर दी है। अमेरिका ने गत बुधवार को पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर ड्रोन से हमला कर हक्कानी नेटवर्क के दो कमांडरों सहित दो आतंकियों को ढेर कर दिया है। यह हमला अफगानिस्तान के पास पाकिस्तानी जनजाति वाले खुर्रम प्रांत के पास एक घर को ड्रोन से उड़ा दिया। डॉन न्यूज के मुताबिक उत्तरी वजीरिस्तान में हुए इस हमले में हक्कानी नेटवर्क के कमांडर एहसान उर्फ ख्वारी और उसके दो साथी कथित रूप से मारे गए हैं। अमेरिका ने खैबर पख्तूनख्वाह और ओराकजई के हांगू जिले के बीच दो देशों की सीमाओं पर स्थित त्राल क्षेत्र में एक घर पर ड्रोन से दो मिसाइलें दागी थीं। हाल ही में 17 जनवरी को भी पाक-अफगान सीमा पर अमेरिका ने पाकिस्तान के आतंकियों पर ड्रोन से हमला किया था। बुधवार को यहां इसी साल दूसरी बार ड्रोन हमला हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा की गई अफगान नीति की घोषणा के बाद से यहां लगातार कार्रवाई की जा रही है। आतंकवादियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने में विफल रहे पाकिस्तान की सुरक्षा सहायता में बड़ी कटौती किए जाने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के एक महीने के भीतर वाशिंगटन ने अफगान तालिबान तथा हक्कानी नेटवर्क के छह आतंकवादियों को भी प्रतिबंधित कर दिया है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग की ओर से आतंकवाद के मुकाबले के लिए पोषित प्रतिबंधों के मुताबिक दो पाकिस्तानी और पाकिस्तान में रह रहे चार अफगानी नागरिकों के अमेरिकी वित्तीय प्रणाली के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। अमेरिका का यह कदम विद्रोही समूहों को सुरक्षित शरणस्थली और अन्य सहायता देने को लेकर पाकिस्तान के प्रति उसके गुस्से का भी इजहार करता है। राष्ट्रपति ट्रंप ने नववर्ष के अवसर पर एक ट्वीट में कहाöअमेरिका पिछले 18 वर्षों से पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर मदद करने की मूर्खता कर चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह तो साबित कर दिया है कि वह जो कहते हैं, करते हैं। उन्होंने कई बार पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह अपनी धरती पर आतंकवादियों को पनाह देने से बाज आए। पर पाकिस्तान ट्रंप की चेतावनी को नजरंदाज करता रहा है। यह बताने के लिए कि अमेरिका अब सीधी कार्रवाई करेगा इसलिए भी अब ड्रोन से पाक के अंदर हमले हो रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मामला राहुल को छठी पंक्ति में बैठाने का

राजधानी दिल्ली में 69वें गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इंडिया गेट लॉन में छठी पंक्ति में स्थान दिए जाने पर कांग्रेस पार्टी ने जबरदस्त प्रतिक्रिया करते हुए मोदी सरकार की घटिया राजनीति करार दिया। कांग्रेस पार्टी के मीडिया मामलों के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने एक ट्वीट कर कहाöपूरे विश्व ने मोदी सरकार की घटिया राजनीति को देखा और इस घमंडी सरकार ने सभी परंपराओं को ताक पर रखकर जानबूझ कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पहले चौथी पंक्ति में सीट दी लेकिन फिर छठी पंक्ति में बिठाया। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी पहली बार परेड देखने गए थे। कांग्रेस की दलील थी कि अगर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पहली लाइन में जगह मिल सकती है तो राहुल गांधी को क्यों नहीं? हालांकि इन विवादों के बीच राहुल ने साफ किया कि वह परेड में भाग लेने गए थे क्योंकि परेड अहम है। उन्होंने कहा कि वे लोग मुझे कहां बैठाते हैं यह जरूरी नहीं है। गौरतलब है कि सत्ता पक्ष और विपक्षी दल के अध्यक्ष को पहली लाइन में जगह मिलती रही है। यहां तक कि मोदी सरकार में भी कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी को पहली लाइन में जगह मिलती रही है। पिछले साल भी वह पहली लाइन में ही बैठी थी। यह पहला मौका होगा जब कांग्रेस अध्यक्ष को पिछली सीट पर जगह दी गई है। राहुल गांधी को छठी पंक्ति में सीट मिलने पर कांग्रेस की आपत्ति को खारिज करते हुए भाजपा ने कहा कि वह खुद को अतिविशिष्ट व्यक्ति मानते हैं जिन्हें हर किसी के आगे रखा जाना चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीबीएल नरसिम्हा राव ने हैरानी जताई कि राहुल को जब प्रोटोकॉल के मुताबिक सीट आवंटित की गई तो इतना शोरशराबा क्यों हो रहा है। साथ ही कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान भाजपा नेताओं से इसी तरह का बर्ताव किया जाता था लेकिन उसने कभी इसे मुद्दा नहीं  बनाया। राव ने कांग्रेस की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि 133 साल के शानदार इतिहास का दावा करने वाली पार्टी पर यह जंचता नहीं है। उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो राजनाथ सिंह जैसे नेताओं और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्षों के साथ इसी तरह का व्यवहार किया गया। हम समझते हैं कि सीटों को आवंटित करने वालों की छोटी-सी गलती मुद्दा बन गई है। राहुल गांधी आज कांग्रेस अध्यक्ष हैं और उन्हें इस हिसाब से उचित सीट मिलनी चाहिए थी। बात बहुत छोटी है पर यह सरकार की मानसिकता दर्शाती है।

Sunday 28 January 2018

पद्मावत में राजपूतों की आन- बान-शान ही दर्शाई गई है

पिछले कई दिनों से संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत अखबारों व टीवी की सुर्खियां बनी हुई है। खुद को करणी सेना कहने वाले कुछ मुट्ठीभर लोगों की गुंडागर्दी, तोड़फोड़, आगजनी से पनपे भय के बीच 13वीं सदी की यह गौरव गाथा बृहस्पतिवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। विचित्र बात यह थी कि कलात्मक और सौंदर्यपरक दृष्टिकोण के लिए मशहूर भंसाली की इस फिल्म के कला पक्ष से ज्यादा चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि फिल्म में ऐसे कोई दृश्य हैं या नहीं, जिन्हें लेकर इतना बवाल मचा हुआ है। इसी शक को दूर करने के लिए मैंने फिल्म देखी। मैं पाठकों को, दर्शकों को बताना चाहता हूं कि फिल्म में ऐसा कोई दृश्य, डायलॉग नहीं है जिसे रानी पद्मावती या राजपूतों की शान में गुस्ताखी कहा जाए। फिल्म में जबरदस्त डायलॉग हैं जो राजपूतों का जमकर महिमामंडन करते हैं। इस फिल्म में राजपूतों की आन-बान-शान को दिखाया गया है। जो चिन्ता की तलवारों की नोक पर रखे हैं वो राजपूत। जो अंगारे पर चले और मूंछों को ताव दे वो राजपूत। जिसका सिर कट जाए पर कई दुश्मनों से लड़ता रहे वो राजपूत। राजपूतों की आन-बान और शान को दिखाता यह डायलॉग पद्मावत के ही हैं। हमें यह समझ नहीं आ रहा कि बगैर फिल्म देखे पूरे देश में इतना हंगामा आखिर क्यों? यह फिल्म तो राजपूतों की वीरता, त्याग और बलिदान की कहानी है, पद्मावत देखने के बाद असली तस्वीर सामने आ गई है। करणी सेना समेत तमाम राजपूत संगठन देशभर में उत्पात मचाते रहे, लेकिन वे इंतजार नहीं कर पाए कि एक बार परदे पर पद्मावत को देख तो लें। जिस मुद्दे को लेकर वे विरोध कर रहे हैं, उसमें सच्चाई है भी या नहीं? दरअसल करणी सेना समेत तमाम संगठनों तक सही संदेश पहुंचना जरूरी था कि भंसाली की इस फिल्म पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी कोई नायक नहीं, बल्कि खतरनाक खलनायक है जिससे कोई भी सिर्फ नफरत ही कर सकता है। फिल्म पद्मावत को लेकर जितना भी हंगामा हो रहा है वो निर्विवाद रूप से कितना गलत था वो फिल्म देखने के बाद स्पष्ट हो जाता है। फिल्म में राजपूतों की गरिमा और मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला एक भी दृश्य नहीं रखा गया, जिसके बारे में भंसाली पहले भी कह चुके थे। हैरानी की बात यह है कि विरोध करने वालों ने देखे बिना ही ज्यादा विरोध करना शुरू कर दिया। कहना गलत न होगा कि फिल्म देखने के बाद दर्शक राजपूती गरिमा, वीरता, आन-बान-शान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।

-अनिल नरेन्द्र

Friday 26 January 2018

आतंकवाद के बढ़ते असर से दुनिया प्रभावित

आतंकवाद के शिकार देशों की संख्या में पिछले साल बढ़ोतरी देखने को मिली है। साल 2015 में जहां 66 देश इसके शिकार हुए थे वहीं 2016 में 77 देश इसकी जद में आ गए। जारी हुई वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (जीटीआई) की रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। जीटीआई ने कहा है कि दुनियाभर में आतंकवाद में हुई बढ़ोतरी का जो ट्रेंड है वह परेशान करने वाला है। वहीं रिपोर्ट ने चेतावनी भी दी कि आईएस के आतंकी इराक और सीरिया के साथ अन्य देशों में भी अपनी पहुंच बढ़ा सकते हैं। साल 2016 में उन्होंने अफगानिस्तान की स्थिति काफी जटिल बताई है। उनका कहना है कि तालिबान ने जहां नागरिकों पर हमलों की संख्या को कम कर दिया है वहीं सरकारी सेनाओं के खिलाफ हमले तेज कर दिए हैं। जीटीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के वर्ल्ड टेड सेंटर पर 11 सितम्बर 2001 को हुए हमले को छोड़ दें तो यूरोप व अन्य विकसित देशों के लिए 2016 साल 1988 के बाद से सबसे खतरनाक साल रहा है। यूरोप में बढ़ रहे हमलों के लिए रिपोर्ट में आईएस को जिम्मेदार ठहराया गया है। उसमें कहा गया है कि 2014 के बाद से आईएस के आदेश से या उससे प्रभावित होकर किए गए हमलों के कारण इन देशों में आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या में 75 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इधर हमारे जम्मू-कश्मीर में पिछले एक अरसे से आतंकवाद एक नए रूप में तेजी से उभरा है। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, कुलगाम, त्राल आदि इलाकों में बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवक जिन्हें डाक्टर, इंजीनियर व अन्य सेवाओं में जाना था, ने एके-47 थाम ली हैं। सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ समय से करीब तीन दर्जन युवा घरों से भागकर आतंकी बन गए हैं। मौजूदा वक्त में 200 से अधिक आतंकी घाटी में सक्रिय हैं जिनमें सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण कश्मीर में घर से भागे युवाओं की है। दुखद पहलू यह है कि जहां एक ओर सुरक्षाबलों को आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराने में निरंतर भारी सफलता मिल रही है वहीं दूसरी ओर कम उम्र के पढ़े-लिखे युवक आतंकवाद की ओर प्रेरित हो रहे हैं, जबकि घाटी में आतंकवाद एक नए एवं भयावह चेहरे के तौर पर सामने आ रहा है। आईएस को बेशक खदेड़ दिया गया हो पर उससे प्रभावित विचारधारा के कई संगठन खड़े हो चुके हैं और यह आए दिन धमाके करते रहते हैं। आतंकवाद केवल भारत की समस्या नहीं है बल्कि यह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल रहा है और इस पर जीत तभी हो सकती है जब सारे मिलकर इसका मुकाबला करें।

-अनिल नरेन्द्र

जज लोया केस गंभीर ः हम चुप नहीं रह सकते

सुप्रीम कोर्ट ने विशेष सीबीआई न्यायाधीश बीएच लोया की मौत को लेकर कहा कि हम चुपचाप नहीं बैठ सकते। जज लोया की मौत से संबंधित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों को गंभीर बताया। हालांकि शीर्ष अदालत ने मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का नाम घसीटने के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने संबंधित सभी दस्तावेजों को पूरी गंभीरता के साथ देखने का फैसला किया। न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के प्रति नाखुशी भी जाहिर की जब उन्होंने एक संभावित भावी आदेश का निष्कर्ष निकाला कि शीर्ष अदालत मामले में मीडिया पर अंकुश लगा सकती है। बता दें कि किस्सा क्या है? जज लोया मृत्यु से पहले सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले पर सुनवाई कर रहे थे। उनकी एक दिसम्बर 2014 को नागपुर में कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी, वह अपने सहकर्मी की बेटी की शादी में हिस्सा लेने के लिए नागपुर गए थे। साल 2014 में हुई लोया की मौत पर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ के पास लंबित दो अन्य याचिकाएं अपने पास स्थानांतरित कर लीं। बता दें कि चार सीनियर जजों ने पिछले दिनों चीफ जस्टिस पर जो आरोप लगाए थे, उनमें लोया केस की सुनवाई का मामला शामिल था। पीठ ने देश में सभी उच्च न्यायालयों के लोया की मौत से संबंधित किसी भी याचिका पर विचार करने पर भी रोक लगा दी। पीठ ने कहा कि लोया की मृत्यु से जुड़े वे सारे दस्तावेज जो अभी तक दाखिल नहीं किए गए हैं, उनकी विवरणिका पेश करें। न्यायालय इन दस्तावेजों की सुनवाई अगली तारीख दो फरवरी को अवलोकन करेगा। जस्टिस चन्द्रचूड़ ने जस्टिस लोया की मौत को लेकर मीडिया रिपोर्टों का जिक्र करते हुए कहाöहम चुपचाप नहीं बैठ सकते। हमें रिकार्ड और मृत्यु से जुड़ी परिस्थितियों को देखना होगा। उनकी मृत्यु को प्राकृतिक बताया गया था लेकिन उसके बाद से मौत के कारणों को लेकर विवाद खड़ा हुआ है। जस्टिस लोया की जगह आए सीबीआई जज ने शाह को बरी कर दिया था। जस्टिस लोया के भाई और बहन उनकी मृत्यु की जांच की मांग कर चुके हैं। हालांकि उनके बेटे ने हाल ही में कहा था कि वह जांच नहीं चाहते। इससे पहले इस मामले की सुनवाई से जस्टिस अरुण मिश्रा ने खुद को अलग कर लिया था। इस मामले में महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के प्रतिवाद पर विचार के दौरान ही पीठ ने इस पर कड़ी आपत्ति करते हुए कहाöआज की स्थिति के अनुसार यह स्वाभाविक मृत्यु है। फिर आक्षेप मत लगाइए।

Thursday 25 January 2018

अप्रैल के बाद बदल जाएगी राज्यसभा की तस्वीर

संसद में लोकसभा के बहुमत वाली पार्टी भाजपा अब राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है। भारतीय संसद के उच्च सदन की असली तस्वीर अप्रैल में बदलेगी जब इसके 55 सदस्यों का कार्यकाल पूरा होगा। अप्रैल माह में 53 सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है तथा यदि संबंधित राज्यों की वर्तमान विधानसभा की तस्वीर पर नजर डाली जाए तो इनकी जगह चुनकर आने वाले सदस्यों में भाजपा को छह सीटों का फायदा हो सकता है और कांग्रेस को चार सीटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अप्रैल में भाजपा के 23, कांग्रेस के आठ और अन्य दलों के 21 सदस्य जीतकर आ सकते हैं। 27 जनवरी को कांग्रेस के तीन सदस्यों का कार्यकाल पूरा होगा। कांग्रेस के जनार्दन द्विवेदी, परवेज हाशमी और डा. कर्ण सिंह सेवानिवृत्त हो रहे हैं। तीनों राज्यसभा में दिल्ली का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और इनके स्थान पर अब आम आदमी पार्टी के तीन सदस्य संजय सिंह, नारायण दास गुप्ता और सुशील गुप्ता को आना है, जबकि फरवरी में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट केहियो ला चुगपा, 23 तारीख को सेवानिवृत्त होंगे। इन तीनों सदस्यों के जाने के बाद कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर 54 रह जाएगी। राज्यसभा में सत्तारूढ़ भाजपा के पास अभी तक राज्यसभा में न तो बहुमत था और न ही वह सबसे बड़ी पार्टी ही थी। अप्रैल में जिनका कार्यकाल पूरा होगा उनमें केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, जेपी नड्डा, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी, राजीव शुक्ला, रेणुका चौधरी तथा मनोनीत सदस्य रेखा एवं सचिन तेंदुलकर शामिल हैं। यदि उच्च सदन में वर्तमान संख्या बल पर नजर डालें तो भाजपा के 58 सदस्य और कांग्रेस के 57 सदस्य हैं। अप्रैल में वर्तमान 55 सदस्यों की जगह नए पुननिर्वाचित सदस्यों के आगमन के बाद भाजपा सदस्यों की संख्या 64 और कांग्रेस की 53 हो सकती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा की वर्तमान स्थिति के अनुसार राज्यसभा की इस राज्य से खाली हो रहीं नौ सीटों में से 7 भाजपा को मिल सकती हैं, जबकि दो विपक्षी दलों के पास जा सकती हैं। बहुमत के अभाव में सरकार को उच्च सदन में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में कठिनाई आती है। उल्लेखनीय है कि उच्च सदन एक स्थायी सदन है जिसमें हर दो वर्ष के भीतर दो तिहाई सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो जाता है। कुल मिलाकर अप्रैल के बाद राज्यसभा की तस्वीर बदलेगी और सरकार को राज्यसभा में पर्याप्त संख्या में सांसदों की कमी से जो कठिनाई होती है वह दूर हो जाएगी।

- अनिल नरेन्द्र

दावोस ः अर्थ जगत की पंचायत

मंगलवार को दावोस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक पंचायत को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज दुनिया में आतंकवाद, संरक्षणवाद और जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा खतरा हैं जिनसे दुनिया को एकजुट होकर निपटना पड़ेगा। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की 48वीं सालाना बैठक का उद्घाटन करते हुए मोदी ने दुनियाभर के निवेशकों को भारत में निवेश का आह्वान किया। डब्ल्यूईएफ की बैठक को संबोधित करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। इससे  पहले 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवे गौड़ा ने  मंच की बैठक में शिरकत की थी। स्विट्जरलैंड को हम उसकी बर्फबारी और खूबसूरत वाfिदयों के लिए जानते हैं। कई हिंदी फिल्मों में इन्हीं वादियों के बीच हीरो-हीरोइन का रोमांस परवान चढ़ता और उतरता रहा है लेकिन इसी देश के एक छोटे से शहर में दुनिया के बड़े-बड़े सियासी और कारोबारी फैसले परवान चढ़ते हैं। इस शहर का नाम है दावोस जो फिलहाल हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे की वजह से चर्चा में है। यहां वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम है और इसी में मोदी शामिल हुए हैं। साल 1997 के बाद कोई प्रधानमंत्री यहां पहली बार जा रहा है। इसकी वजह पूछी गई तो मोदी ने कहा, `दुनिया भली-भांति जानती है कि दावोस अर्थजगत की पंचायत बन गया है। दावोस दुनिया के लिए इतना खास क्यों है?' क्यों पूरी दुनिया की अर्थनीति वहां से प्रभावित होती है? क्यों आस्ट्रेलिया से अमेरिका तक के दिग्गज नेता यहां पहुंचते हैं? यहां दुनिया भर के राजनीतिक और कारोबारी दिग्गज साल में एक बार जुटते हैं और सरल भाषा में इस अहम बैठक को दावोस भी कहा जाता है, इसके अलावा ये स्विट्जरलैंड का सबसे बड़ा स्की रिजार्ट भी है। हर साल के अंत में यहां सालाना स्पेगलर कप आईस हाकी टूर्नामेंट का आयोजन होता है जिसकी मेजबानी एचसी दावोस लोकल हाकी टीम करती है। दावोस यूं तो बेहद खूबसूरत है लेकिन उसे दुनिया के नक्शे पर पहचान मिली है वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की वजह से। फोरम की वेबसाइट के मुताबिक उसे दावोस-क्लोस्टर्स की सालाना बैठक के लिए जाना जाता है। बीते कई साल से कारोबारी, सरकारें और सिविल सोसायटी के नुमाइंदे वैश्विक मुद्दे पर चर्चा के लिए यहां जुटते  हैं और चुनौतियों से निपटने के लिए समाधानों पर विचार करते हैं। दरअसल जनवरी में इसकी सालाना बैठक होती है और दुनियाभर के जाने-माने लोग यहां पहुंचते हैं। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं और भारत में निवेश बढ़ाने की अपील की है। उनके हिंदी में भाषण का भी स्वागत है।

Wednesday 24 January 2018

सवाल आधार की अनिवार्यता का

पिछले काफी समय से आधार यानी विशिष्ट पहचान संख्या से जुड़े ब्यौरे के असुरक्षित होने को लेकर बराबर सवाल उठते रहे हैं। आधार की अनिवार्यता और सुरक्षा को लेकर दायर मुकदमों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। लेकिन इस बीच कई ऐसी खबरें आई हैं जिनसे लगता है कि आधार और उससे निहित जानकारियां सुरक्षित नहीं हैं, न ही अभेद्य ही हैं। आधार कार्ड की अनिवार्यता के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने कहा कि हमारे देश में हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि बिना आधार कार्ड के नागरिक के तौर पर आप जीवित नहीं रह सकते। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष वकील दीवान ने बंबई हाई कोर्ट के 2014 के आदेश का उल्लेख किया जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि आपराधिक मामलों में वो बायोमेट्रिक डाटा साझा करेंगे। उन्होंने कहा कि जब बैंक अकाउंट, मोबाइल नम्बर, इश्योरेंस पॉलिसी और ट्रांजेक्शन के लिए आधार अनिवार्य कर दिया गया है तो देश में कई ऐसे लोग हैं जो आधार कार्ड को बनवाने के लिए आधार कार्ड तक नहीं पहुंच पाते हैं। लोग तीन या चार बार लगातार फिंगर प्रिन्ट देते हैं और उनको यह पता नहीं होता कि पहली बार में सही सत्यापन हुआ है या नहीं? ऐसे में इस बात का भी अंदेशा रहता है कि उनके अकाउंट को खाली न कर दिया गया हो? सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन आधार मामले के दौरान फिंगर प्रिन्ट फुलप्रूफ नहीं होने का मामला उठा। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार के दावे पर टिप्पणी की। इसने कहा कि सरकार कई बार दावा कर चुकी है कि व्यक्तिगत डेटा को गोपनीय रखा जाएगा, लेकिन हाल में देखने को मिला है कि एक क्रिकेटर का डाटा लीक हो गया। वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि फिंगर प्रिन्ट फुलप्रूफ नहीं हैं। जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने टिप्पणी की कि चार-पांच साल में फिंगर प्रिन्ट पहचान योग्य नहीं रह जाता। उन्होंने डाटा लीक पर सवाल उठाया और कहा कि एक क्रिकेटर का डाटा लीक होने की बात सामने आई है। जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस चन्द्रचूड़ के सवाल पर दीवान ने दलील दी कि जब हम बैंक अथवा अन्य किसी सर्विस प्रोवाइडर के सामने दस्तावेज या डाटा देते हैं तो हमें पता होता है कि हम किसे डाटा दे रहे हैं। आधार के लिए जो प्राइवेट कंपनियां डाटा लेती हैं उनके बारे में आम आदमी जानते तक नहीं है। अच्छी बात यह है कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का ध्यान मीडिया की रिपोर्टों के माध्यम से जनता की शिकायतों की ओर गया है और आधार के सत्यापन के लिए अंगुलियों के निशान, आंख की पुतली के साथ इंसान के चेहरे को भी शामिल कर लिया गया है। यह फैसला निश्चित तौर पर देश के बुजुर्ग, बीमार और मेहनतकश जनता के पक्ष में है। ये मामला बेहद गंभीर है। सुप्रीम कोर्ट में पूरे आधार प्रोजैक्ट को चुनौती दी गई है। कोई भी लोकतांत्रिक समाज इस तरह की परियोजना को स्वीकार करने से कतराएगा। बायोमेट्रिक डाटा पर विदेशों में फैसला नागरिकों के पक्ष में गया है। अगर सरकारी योजना को मंजूरी दी जाती है तो ये नागरिकों का संविधान नहीं, बल्कि सरकार का संविधान जैसा होगा। वकील दीवान ने कहा कि आधार कार्ड संवैधानिक है या नहीं, यह संविधान पीठ को तय करना है।

-अनिल नरेन्द्र

आप का क्या होगा जनाबे आली

आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को चुनाव आयोग ने अयोग्य घोषित कर दिया है और राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सिफारिश को मंजूरी दे दी है। पार्टी के पास केवल कोर्ट से राहत की उम्मीद बची है। पार्टी को दिल्ली हाई कोर्ट से फौरी राहत नहीं मिली है पर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुई हैं। पार्टी के 20 विधायकों के इस केस के अलावा एक अन्य केस 27 विधायकों के खिलाफ भी चल रहा है। यह मामला भी लाभ के पद या कहें ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़ा हुआ है। यह मामला आम आदमी पार्टी के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति से जुड़ा हुआ है। यह शिकायत 22 जून 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से की गई थी। अभिवक्ता विभोर आनंद ने अपनी इस शिकायत में कहा था कि आप सरकार ने 27 विधायकों को दिल्ली के विभिन्न सरकारी अस्पतालों की रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया हुआ है जो लाभ का पद है। उन्होंने आप के इन विधायकों की सदस्यता निरस्त किए जाने की मांग की थी। शिकायत के अनुसार विधायक कानून से किसी छूट के बिना दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में रोगी कल्याण समितियों के अध्यक्ष पदों पर नहीं बैठ सकते। रोगी कल्याण समिति एक तरह की सोसाइटी या एनजीओ है जो अस्पताल के प्रबंधन को देखती है। इसमें विधायक चेयरमैन नहीं हो सकता है। इस पर चुनाव आयोग ने 2016 में 27 विधायकों को नोटिस जारी कर 11 नवम्बर तक जवाब मांगा था। आयोग ने जांच में पाया था कि संसदीय सचिव बनाए गए विधायकों में से 11 रोगी कल्याण समिति के भी अध्यक्ष हैं। अपने 20 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य करार दिए जाने को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) भले चुनाव आयोग और विपक्षी दलों पर सियासी बंदूक तान रही हो लेकिन पार्टी के अंदरखाते जबरदस्त हड़कंप मचा है। आयोग की सिफारिश के दायरे में आए तमाम विधायक सकते में हैं तो दूसरी ओर पार्टी के बागी इन विधायकों को यह अहसास दिलाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि इसकी इकलौती वजह मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की जिद्द और अपने विरोधियों को निपटाने की खातिर किए गए अनाप-शनाप निर्णय हैं। उधर राष्ट्रपति द्वारा 20 विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट विधायकों की सुनवाई कर सकता है और क्या सदस्यता गंवा चुके विधायकों को स्टे मिल सकता है? कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को कोर्ट में गुहार लगाने का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या विधायकों को कोर्ट से स्टे मिल सकता है? सदस्यता गंवाए आप के विधायक और पार्टी के नेता राष्ट्रपति और केंद्रीय चुनाव आयोग के कदम को पक्षपातपूर्ण बता रहे हैं। उनका आरोप है कि विधायकों का पक्ष जाने बिना एकतरफा फैसला लिया गया, इसलिए वे हाई कोर्ट के अलावा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और इंसाफ की मांग करेंगे। संविधान विशेषज्ञ व लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा का कहना है कि जो व्यक्ति अपने को पीड़ित मानता है, उसे कोर्ट जाने का संवैधानिक अधिकार है। संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट उनकी सुनवाई कर ले, लेकिन इसकी संभावना कम नजर आ रही है कि कोर्ट से उनको राहत मिल पाए। असल में इस मसले को लेकर विधायक पहले से हाई कोर्ट जा चुके हैं और वहां से उन्हें राहत नहीं मिली है, इसलिए कम ही आसार हैं कि अब सुप्रीम कोर्ट उन्हें स्टे दे। विधायकों की सदस्यता छिनवाने में रोल अदा करने वाले हाई कोर्ट के वकील प्रशांत पटेल मानते हैं कि मामला लाभ के पद से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट का रोल नहीं होता। राष्ट्रपति या चुनाव आयोग ही इन्हें देखता है। पटेल के अनुसार विधायकों के लिए राहत के सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल के लिए आने वाले दिन और भी चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है।

Tuesday 23 January 2018

हैं तो छोटे राज्य पर चुनाव से बड़े संदेश निकलेंगे

आमतौर पर कम चर्चित रहने वाले पूर्वोत्तर के राज्यों के चुनाव इस बार ज्यादा चर्चित हो सकते हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश और कर्नाटक के चुनाव की पूर्व पीठिका के तौर पर फरवरी में होने जा रहे त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव भाजपा शासित राज्यों की गिनती बढ़ा भी सकते हैं या कांग्रेस का उत्साहवर्द्धन भी कर सकते हैं। वैसे तो ये सारे राज्य छोटे हैं फिर भी इस समय इनका राजनीतिक दृष्टि से व्यापक महत्व है। केरल के बाद माकपा के नेतृत्व में त्रिपुरा में दूसरी सरकार है। पिछले पांच बार से वहां माकपा नेतृत्व वाले वामदल ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव देश के तीनों राजनीतिक ध्रुवोंöभाजपा, कांग्रेस और माकपा के लिए बेहद अहम है। पूर्वोत्तर में तेजी से बढ़ रही भाजपा इन तीनों राज्यों में भी बढ़ने की तैयारी में है। वह तीनों राज्यों में स्थानीय दलों के साथ गठबंधन करने की जुगत में है। वहीं कांग्रेस व माकपा के सामने अपनी सरकारें बचाने की चुनौती है। मिशन 2019 के मद्देनजर इन तीन राज्यों में लोकसभा की सीटें तो महज पांच ही हैं, लेकिन इन राज्यों के नतीजों का राजनीतिक महत्व ज्यादा है। केंद्र में आने के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर में तेजी से पांव पसारे हैं। सिक्किम समेत आठ राज्यों में से असम, अरुणाचल और मणिपुर में उसकी सरकारें हैं। भाजपा के मंसूबे काफी ऊंचे हैं। उसके एक प्रमुख नेता ने कहा है कि वह लोकसभा चुनाव से पहले पूर्वोत्तर में राजग की सभी आठों राज्यों में सत्ता के साथ जाने की कोशिश करेंगे। त्रिपुरा में देश में पहली बार किसी राज्य में सत्तारूढ़ वामपंथी माकपा व दक्षिणपंथी भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। चूंकि त्रिपुरा माकपा का गढ़ रहा है और वह 1978 के बाद से 40 साल में केवल पांच साल 1988 से 1993 के बीच सत्ता से बाहर रही है। साल 2013 के चुनाव में माकपा को 60 में से 49 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार समीकरण बदले हुए हैं। भाजपा की कोशिश इस वामपंथी गढ़ को ढहाने की है। नागालैंड में भाजपा की सहयोगी एनपीएफ सत्ता में है और दोनों दल फिर से मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। अगर वामदल गढ़ बचाने में कामयाब रहे तो वे मोदी सरकार के खिलाफ गोलबंदी के लिए ज्यादा सक्रिय होंगे। कांग्रेस के सामने मुख्य चुनौती तो किसी तरह मेघालय की सरकार बचाने की है। कोई पार्टी जीते या हारे, देश तो यही चाहेगा कि चुनाव संसदीय लोकतंत्र के संस्कारों के अनुरूप मर्यादाओं से बंधे हुए हों, नेताओं के बयान सीमाओं से बाहर न जाएं और राजनीतिक कटुता न हो।
-अनिल नरेन्द्र


सीमा पर जंग जैसे माहौल से दहशत

लगातार हो रही पाकिस्तानी सैनिकों की गोलाबारी से सीमा पर जंग जैसा माहौल बन गया है। शनिवार को तो लाइन ऑफ कंट्रोल और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर से लगे स्कूल भी बंद रहे। सीमावर्ती इलाकों के गांवों में रहने वालों के बीच दहशत है। युद्ध जैसी स्थिति पर पाक गोलाबारी का भारतीय सेना मुंहतोड़ जवाब दे रही है। शनिवार को लगातार चौथे दिन भी पाकिस्तान की ओर से भारतीय सुरक्षा चौकियों व आवासीय बस्तियों समेत कठुआ के पहाड़पुर से लेकर समूची भारत-पाक सीमा के अलावा नियंत्रण रेखा से सटे राजौरी और पुंछ को निशाना बनाया गया। जम्मू-कश्मीर से लगती पाक सीमा पर हालात किस कदर खराब हो रहे हैं, यह तो इससे स्पष्ट है कि बीते चार दिनों में पांच जवान समेत 11 लोग पाकिस्तानी गोलाबारी का निशाना बने हैं और इससे भी कि सीमांत क्षेत्रों के करीब 40 हजार लोगों को अपना घर छोड़कर राहत शिविरों या फिर अन्य सुरक्षित जगहों पर रहना पड़ रहा है। सीमावर्ती गांवों में घरों में फैला खून, खिड़कियों के टूटे शीशे और ध्वस्त छतों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले चार दिनों में पाकिस्तानी गोलीबारी ने इन इलाकों में कितना नुकसान पहुंचाया है। इन गांवों में गन पाउडर की गंध बनी हुई है। एक स्थानीय निवासी रत्ना देवी ने कहाöहम लोग मौत के साये में जी रहे हैं। हमारे घरों पर मोर्टार बमों की बौछार हो रही है। एक बार तो ऐसा लगा कि अब हम मर जाएंगे, लेकिन पुलिस हम लोगों को बाहर निकाल लाई। देवी ने बताया कि साईं खुर्द में गोलाबारी में कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। कई जानवरों की मौत हो गई है। संघर्षविराम उल्लंघन के चलते सीमावर्ती बस्तियों से 10,000 से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा है। चूंकि पाकिस्तानी सेना लगातार गोलाबारी कर रही है इसलिए हालात युद्ध जैसे नजर आ रहे हैं। युद्ध जैसे यह हालात उस छद्म युद्ध का हिस्सा हैं जो पाकिस्तान ने कश्मीर पर थोपा हुआ है। पाकिस्तानी सेना ने बीते एक हफ्ते में करीब 100 गांवों को निशाना बनाया है। आमतौर पर जम्मू-कश्मीर में वर्ष में एकाध बार वैसी स्थिति बन ही जाती है जैसी आज नजर आ रही है। इसका एक कारण यह भी है कि न तो सीमा को अभेद्य बनाया जा सका है और न ही किसी ऐसी योजना पर जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के सीमांत इलाकों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर बसाया जा सका। जिस प्रकार से पाकिस्तान गोलाबारी कर रहा है उससे साफ है कि अब घुसपैठियों के साथ-साथ पाक सेना भी खुलकर सामने आ गई है। यह जो गोलाबारी हो रही है यह न तो कोई जेहादी संगठन कर सकता है और जिस प्रकार मोर्टार बमों का इस्तेमाल हो रहा है यह सिर्फ पाक सेना ही कर सकती है। आरएसपुरा के एसडीपीओ सुरिन्दर चौधरी का कहना है कि सीमावर्ती इलाके वास्तव में युद्ध क्षेत्र में बदल गए हैं। पाकिस्तानी नागरिक इलाकों को निशाना बना रहे हैं। इससे मकानों और जानवरों को काफी नुकसान हुआ है। हम सीमावर्ती इलाकों के गांवों के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि हम स्थिति को काबू में लाने के लिए क्या कर रहे हैं? आए दिन पाकिस्तान के हुक्मरान परमाणु बम मारने की धमकी देते हैं। उन्होंने हमारे पांच मारे और हमने उनके 10 मारे यह समस्या का समाधान नहीं है। अंध विरोध से ग्रस्त पाकिस्तान भारत को न केवल सबसे बड़ा खतरा मानता है, बल्कि उसे नुकसान पहुंचाकर उसकी बराबरी भी करना चाहता है। ऐसी पागलपन भरी सोच से ग्रस्त देश से सामान्य तौर-तरीकों से नहीं निपटा जा सकता। दुखद पहलू यह भी है कि हमारे कुछ कश्मीरी नेता कह रहे हैं कि उनसे बात की जानी चाहिए। इन परिस्थितियों में बात कैसे हो? मोदी सरकार को इस ज्वलंत समस्या का कोई स्थायी हल निकालना होगा।

Sunday 21 January 2018

सकारात्मक संकेतों से सेंसेक्स में भारी उछाल

आर्थिक मोर्चे पर सकारात्मक संकेतों के चलते सेंसेक्स बुधवार को रिकार्ड 35000 अंक के आंकड़े के पार निकल गया। शेयर बाजार हालांकि पिछले कुछ दिनों से उड़ान भर रहा था, लेकिन मौजूदा वित्तवर्ष में अतिरिक्त उधारी का लक्ष्य 50,000 करोड़ से घटाकर 20,000 करोड़ करने की सरकार की घोषणा ने जैसे उसमें नई जान फूंक दी। विशेषज्ञों के मुताबिक इसके कई कारण हो सकते हैं। अतिरिक्त उधारी का 50 से घटकर 20 हजार करोड़ रुपए होने के कारण भी बाजार में तेजी आई। फिर जीएसटी-नोटबंदी से उभरते हुए औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने से भी बाजार में यह उछाल आया है। वहीं टीसीएस, इंफोसिस आदि के बेहतर नतीजों के कारण भी बाजार रिकार्ड स्तर पर पहुंचा है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में तेजी से बढ़ते आर्थिक सुधारों से विदेशी के साथ घरेलू निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। ऐसे में कोई संदेह नहीं है कि 2018 के अंत तक 40 हजार के आंकड़े को छू सकता है। जबकि निफ्टी 12800 के अंक तक पहुंच सकता है। अप्रैल-मई तक सेंसेक्स 37 हजार और निफ्टी 11300 अंक तक जा सकता है। नोटबंदी और जीएसटी की व्यावहारिक परेशानियों का उद्योग व्यापार पर जो असर पड़ा था अब वह धीरे-धीरे कम हो रहा है। साथ ही सरकार जीएसटी को जरूरत अनुसार घटा रही है उससे भी बाजार में उत्साह है। औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोत्तरी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में बढ़ती बिक्री जैसे आंकड़ों से भी अर्थव्यवस्था के प्रति उम्मीद बढ़ी है। हालांकि शेयर बाजार पूरी अर्थव्यवस्था का आईना तो नहीं होता, भारत जैसे देशों में तो और नहीं, जहां सिर्फ 20 फीसदी आबादी की ही शेयर बाजार में मौजूदगी है। कृषि और रोजगार के मोर्चे पर स्थिति बहुत अनुकूल नहीं है और ऊपर जाती मुद्रास्फीति व कच्चे तेल में आ रही तेजी भी चिन्ता बढ़ाती है। लेकिन आर्थिक अनुशासन के मोर्चे पर सरकार के खरे उतरने और पिछले झटकों से उभरते हुए अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के संकेत की उम्मीद तो जगाते ही हैं। आर्थिक सुधारों के प्रति सरकार की दृढ़ता ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है। इसके अलावा भाजपा को राज्यों में मिली सफलता और केंद्र में स्थिरता ने भी बाजार में भरोसा पैदा किया है। उछाल में आईटी सेक्टर की बेहतर परफार्मेंस भी एक कारण रहा है। 13 मई 2014 को सेंसेक्स 24069 था जो 2018 में बढ़कर 35081 हो गया।

-अनिल नरेन्द्र

सीलिंग से बाजारों में आतंक

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मॉनिटरिंग कमेटी के निर्देश पर हो रही दिल्ली में सीलिंग से दिल्ली वालों को जल्द राहत मिलने की उम्मीद नहीं नजर आ रही है। सीलिंग के खिलाफ कारोबारियों में नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। मॉनिटEिरग कमेटी के सदस्यों ने साफ कर दिया है कि अभी तक सीलिंग सिर्फ कन्वर्जन चार्ज को लेकर हो रही थी, आने वाले दिनों में अवैध निर्माण को लेकर भी सीलिंग का अभियान चलाया जाएगा। राजधानी दिल्ली में अब अफरातफरी का दौर आने वाला है। पिछले कुछ दिनों से राजधानी में सीलिंग की कार्रवाई चल रही है। बाजारों में हाहाकार मचा हुआ है। असल में केंद्र सरकार के एक आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी ने अपने एक्शन को रोक दिया था। लेकिन अब वह इस आदेश से मुक्त हो गई है, इसलिए उसने एक्शन की ठान ली है। अफसरों को आदेश दिए गए हैं कि अवैध निर्माण पर एक्शन लें, साथ ही कन्वर्जन चार्ज न देने वालों की दुकान को भी सील करना शुरू कर दें। सीलिंग का मामला दिल्ली में भाजपा नेताओं के गले से नहीं उतर रहा है। नए-नए पार्षदों को जनता का सामना करना भारी पड़ रहा है। ऐसे में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी के खिलाफ दिल्ली भाजपा नेताओं का रोष बढ़ रहा है। चर्चा है कि चूंकि हरदीप पुरी एक ब्यूरोक्रेट हैं, इसलिए अभी तक दिल्ली की जनता को सीलिंग से निजात नहीं मिल पा रही है। इनका मानना है कि पुरी के स्थान पर कोई पॉलिटिकल व्यक्ति होता तो अब तक जरूर सीलिंग से दिल्ली को राहत मिल चुकी होती। उत्तरी दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस दल के नेता मुकेश गोयल ने कहा कि दुकानदारों एवं व्यापारियों को सीलिंग से राहत दिलाने के लिए भाजपा व आम आदमी पार्टी गंभीर नहीं है। इन पार्टियों के नेता इस मुद्दे पर न केवल नूराकुश्ती कर रहे हैं बल्कि गलतबयानी कर लोगों को गुमराह करने में लगे हैं। कांग्रेस सीलिंग से दिल्लीवासियों को स्थायी राहत दिलाने के पक्ष में है, इसी कारण कांग्रेस निगम की आम सभा में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा कर ठोस निर्णय या नीति बनाना चाहती थी लेकिन बैठक शुरू होते ही आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने इस मुद्दे पर शोर-शराबा करना शुरू कर दिया। उधर आप के प्रवक्ता दिलीप पांडे ने आरोप लगाया है कि भाजपा शासित निगम ने कन्वर्जन शुल्क के नाम पर करोड़ों रुपए का घोटाला किया है। निगम ने व्यापारियों को लूटने का काम किया है। उन्होंने कहा कि सालों से भाजपा शासित एमसीडी ने व्यापारियों से कन्वर्जन चार्ज समेत रजिस्ट्रेशन फीस और पार्किंग चार्ज के नाम पर हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की रकम इकट्ठा की थी, लेकिन वो रकम कहां गई यह भाजपा के नेता बता नहीं पा रहे हैं। भाजपा ने दिल्ली एमसीडी को अपने भ्रष्टाचार का अड्डा बना रखा है। प्रदेश भाजपा ने दिलीप पांडे के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि वसूला गया कन्वर्जन चार्ज एवं पार्किंग शुल्क बाजारों में सुविधाओं पर ही खर्च किया गया है। यह राशि कहां-कहां खर्च की गई है, इसका भी भाजपा प्रवक्ता अशोक गोयल एवं प्रवीश शंकर कपूर ने पूरा ब्यौरा दिया है। सीलिंग को लेकर दिल्ली में हालात बिगड़ने की संभावना बन रही है। व्यापारी अब बाजार बंद करने लगे हैं। सीलिंग नहीं रुकी और सरकार ने सीलिंग से बचाव के लिए सही कदम नहीं उठाए तो अगले सप्ताह पूरी दिल्ली को बंद रखने पर विचार किया जा रहा है। कारोबारियों का कहना है कि सीलिंग की वजह से आतंक का माहौल है। स्थानीय ग्राहक ही नहीं, बाहर के व्यापारियों का भी आना बंद हो गया है। इस वजह से पूरे उत्तर भारत में असर पड़ रहा है। पूरी दिल्ली सीलिंग की गिरफ्त में आने की वजह से करोड़ों रुपए का नुकसान रोजाना हो रहा है। इस सीलिंग के अभियान के चलते राजधानी में कानून व्यवस्था की बड़ी समस्या भी खड़ी हो सकती है।

Saturday 20 January 2018

चीन भारत का चौतरफा घेराव कर रहा है

दक्षिण एशिया में लंबे समय से भारत का प्रभुत्व कायम रहा है, लेकिन अब चीन उसे कम करने में जुटा है। वह भारत के मित्र छोटे देशों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में जुटा है। भारत पड़ोसियों के साथ संबंध मजबूत बनाने की कितनी ही कोशिशें करे, लेकिन चीन उसमें रोड़ा अटकाता रहा है। श्रीलंका, नेपाल व मालदीव ऐसे देश हैं जिनके साथ भारत के हमेशा संबंध अच्छे रहे हैं। इन देशों को चीन अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए आर्थिक मदद का सहारा लेता है। हिमालय की श्रृंखला भारत को शेष एशिया से अलग करती है। इस उपमहाद्वीप में भारत की स्थिति विशाल हाथी के समान है। पाकिस्तान के साथ लंबे समय से शत्रुता का भाव भूलकर भारत ने छोटे पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की। लेकिन इन पड़ोसियों ने भारत की विशालता का कभी-कभी गलत मतलब भी निकाला। चीन इस स्थिति का फायदा उठा रहा है। उसने भारत के प्रभाव वाले क्षेत्रों में आर्थिक मदद के रूप में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ सप्ताहों को ही देख लीजिएöश्रीलंका ने नौ दिसम्बर को अपनी महत्वपूर्ण बंदरगाह 99 वर्ष की लीज पर उस कंपनी को सौंप दी जिसकी मालिक चीन सरकार है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के गठबंधन ने संसदीय चुनाव जीता और फिर उसने चीन से करीबी और भारत से दूरी बढ़ाने का आह्वान किया। मालदीव की संसद में नवम्बर में आपात सत्र बुलाया गया। बिना विपक्ष वाले उस सत्र में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते की घोषणा कर दी गई। दक्षिण एशिया में ऐसा करने वाला वह पाकिस्तान के बाद दूसरा देश बन गया। चीन तेजी से भारत के इर्द-गिर्द पैर पसार रहा है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि आज भी नेपाल में भारत का प्रभाव है परन्तु यह भी सच है कि नेपाल सरकार ने चीन के साथ कई डील कर रखी हैं। वहां हाल के चुनाव में बिजली, सड़क और देश के पहले नेटवर्क भी चीनी निवेश लाने के वादे शामिल हैं। चीन ने कुछ महीने पहले भूटान-चीन-भारत वाले त्रिकोणीय पठार (डोकलाम) में सेना भेजकर भारत-भूटान के संबंधों की परीक्षा ली। चीनी सेना वहां सड़क बनाना चाहती थी, लेकिन भारत के विरोध के कारण उसे पीछे हटना पड़ा। चीन ने भूटान को लालच दिया कि वह सीमा विवाद सुलझाना चाहता है। भारत ने उसकी चाल नाकाम कर दी। कई दशकों से भूटान और भारत के संबंध मजबूत व गहरे हैं। अगर किसी एक विषय पर तुलना हो तो भारत चीन से कम नहीं है। भारत की विदेश नीतियों में संबंधों को लेकर कुछ खामियां हैं, लेकिन वह उसमें सुधार कर रहा है। खासतौर पर उत्तरी पड़ोसी देशों को लेकर। स्थितियां बदल रही हैं, भारतीय हाथी धीरे-धीरे ही सही रास्ते पर आ रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति का माकूल जवाब दे रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

पाकिस्तान में कोई केस हाफिज साहब के खिलाफ नहीं है

पाकिस्तान आतंक और आतंकवादियों के प्रति न केवल हमदर्दी ही रखता है बल्कि उन्हें हर तरह से पनाह व समर्थन भी देता है। यह बात एक बार फिर साबित हो गई। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद अब्बासी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहाöपाकिस्तान में कोई केस हाफिज सईद साहब के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर किसी के खिलाफ कोई केस रजिस्टर होगा तो कार्रवाई होगी। नवम्बर 2017 में भी अब्बासी ने कहा था कि भारत ने हाफिज सईद के खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं किया है। जिसके बल पर कानूनी कार्रवाई की जा सके। अब्बासी ने हाफिज सईद के बारे में पूछे जाने पर साहब कहते हुए बड़े अदब के साथ उसका नाम लिया। यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी हुकूमत ने हाफिज सईद का इस तरह बचाव किया है। हालांकि अनेक सबूतों से जाहिर है कि मुंबई के आतंकी हमले और भारत में हुई दहशतगर्दी की कई दूसरी वारदातों में हाफिज का हाथ था। मगर भारत की तरफ से पेश किए गए तमाम सबूतों को पाकिस्तान खारिज करता रहा है। बेशक वह अपनी तरफ से दुनियाभर में यह साबित करने की कोशिश करे कि पाकिस्तान में दहशतगर्दी की कोई जगह नहीं है मगर वह इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने न केवल हाफिज सईद को वांछित वैश्विक आतंकवादियों की सूची में नाम दर्ज कर रखा है बल्कि उसके ऊपर अमेरिका ने छह करोड़ रुपए से अधिक का इनाम भी घोषित कर रखा है। इससे एक बार फिर यह साबित हो जाता है कि आतंकवाद पाकिस्तान सरकार की विदेश नीति का हिस्सा है। यह भी बार-बार साबित हो चुका है कि पाकिस्तानी हुक्मरान दहशतगर्दी व आतंकी संगठनों, सेना और वहां की खुफिया एजेंसी के हाथों की कठपुतली की तरह काम करते हैं। पाकिस्तानी हुकूमत चाहे जितना बचाव करे पर यह हकीकत दुनिया के सामने है कि हाफिज सईद पाकिस्तान में आतंकी संगठनों का सरगना है। खासकर भारत में दहशतगर्दी फैलाने में उसका अकसर हाथ रहता है। जब अमेरिका का दबाव पड़ा तो पाकिस्तान ने लश्कर--तैयबा पर प्रतिबंध जरूर लगा दिया था, लेकिन जमात-उद-दावा नाम से उसने नया संगठन खड़ा कर लिया था। यानी संगठन ने दुनिया की आंखों में धूल झोंकने हेतु सिर्फ अपना चोला बदल लिया। अपनी हुकूमत महफूज रखने की मंशा से बेशक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद अब्बासी हाफिज सईद का बचाव कर लें, पर देर-सबेर इसका उसे भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत, अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र सभी को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।

Friday 19 January 2018

मोदी सरकार का बड़ा फैसला ः हज सब्सिडी समाप्त

केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला करते हुए मुसलमानों को हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने एक प्रेसवार्ता में कहा कि इस साल से हज पर कोई सब्सिडी नहीं होगी। नकवी ने कहा कि हज पर सब्सिडी की व्यवस्था खत्म होने के बावजूद वर्ष 2018 में 1.75 लाख भारतीय मुसलमान हज पर जाएंगे। सरकार हर साल 700 करोड़ रुपए हज यात्रा की सब्सिडी पर खर्च करती थी। यह पहली बार हुआ है कि हज यात्रियों की सब्सिडी हटाई गई है। हज पर दी जाने वाली सब्सिडी खत्म होनी ही थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2012 में ही इसे 10 सालों में चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के आदेश दिए थे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह (सब्सिडी) माइनॉरिटी कम्युनिटी को लालच देना जैसा है और गवर्नमेंट को इस पॉलिसी को खत्म कर देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार धीरे-धीरे इस सब्सिडी को खत्म करे। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को 10 साल का वक्त दिया था, यानि 2022 तक सब्सिडी पूरी तरह से खत्म की जानी थी। इस आदेश का एक बड़ा आधार यह इस्लामी मान्यता बनी थी कि हज तो अपने पैसों से ही करना चाहिए। इसके अतिरिक्त एक पंथनिरपेक्ष देश में हज के लिए सब्सिडी का कोई औचित्य नहीं बनता था। अगर केंद्र सरकार ने तय अवधि से चार साल पहले ही हज सब्सिडी खत्म करने का फैसला किया तो इसका मतलब है कि मुस्लिम समाज के शैक्षिक उत्थान के लिए जो पैसा 2022 से खर्च होना शुरू होता वह इसी साल से खर्च होने लगेगा। सरकार का कहना है कि यह फैसला अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण किए बगैर लिया गया है। इस फैसले से आमतौर पर मुसलमान खुश हैं। उनका कहना हैöसब्सिडी  नहीं रोजगार चाहिए, लेकिन जो पैसा बचाकर मुसलमान लड़कियों की एजुकेशन पर खर्च करने की बात की जा रही है, वो न की जाए, बल्कि देश की सभी लड़कियों की बात की जाए। नहीं तो यह तुष्टिकरण ही होगा। उन्होंने कहा कि यह फैसला तो बहुत देर से हुआ। हज करने गरीब इंसान नहीं जाता और न हज उन पर वाजिब है बल्कि हज यात्रा करना उसी मुसलमान का फर्ज है जिसके पास खर्च के अलावा इतना पैसा है कि वो यात्रा कर सके। यह पैसा देश की गरीब जनता के हित में खर्च हो तो अच्छा है। एक मुसलमान का कहना था कि सब्सिडी मुसलमानों के साथ धोखा था। सच तो यह था कि एयर इंडिया को घाटे से उबारने के लिए सब्सिडी दी जाती थी। अब मुसलमान अच्छी और ज्यादा सहूलियत वाली फ्लाइट से सफर कर सकेंगे। दिल्ली वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़े जामा मस्जिद निवासी कहते हैं कि जो मुसलमान हज करने जाता था, वो अब भी जाएगा। इससे मुसलमानों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जहां डेढ़ लाख रुपए मुसलमान यात्रा पर खर्च कर सकता है वहां 10 हजार रुपए और भी खर्च कर सकता है। फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद कहते हैं कि खटारा जहाजों में सफर करके नुकसान उठाना पड़ रहा था। सब्सिडी के इस पैसे को बचाकर जो मुस्लिम लड़कियों पर खर्च करने की बात की जा रही है, वो न की जाए, बल्कि देश की सभी लड़कियों के लिए खर्च हो। हज के लिए सब्सिडी का कोई औचित्य नहीं बनता। हज यात्रियों को ऐसी कोई सुविधा इस्लामी देशों में भी नहीं दी जाती, लेकिन भारत में तुष्टिकरण की राजनीति के तहत ऐसा किया जाने लगा। निस्संदेह हज सब्सिडी  खत्म करने का यह मतलब नहीं कि हज यात्रियों को सुविधाएं देने अथवा उन्हें सस्ती यात्रा के विकल्प मुहैया कराने से मुंह मोड़ा जाए। अब पानी के जहाज से हज यात्रा की बात हो रही है। इसे सुनिश्चित करने के प्रयास होने चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

ताकतवर ही ला सकता है अमन

भारत के दौरे पर आए इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को कहा कि आतंकवाद से भारत और इजरायल दोनों ही पीड़ित हैं। नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहाöभारत और इजरायल, दोनों ही आतंकी हमले के दर्द को अच्छी तरह जानते हैं। हमें आज भी 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पर हुए भयानक हमले का मंजर याद है। लेकिन आतंकवाद के आगे हम झुकेंगे नहीं, बल्कि उसको मिलकर मुंहतोड़ जवाब देंगे। इजरायली प्रधानमंत्री ने आतंकियों और उनके संगठनों के साथ-साथ आतंकवाद प्रायोजित करने वाले, उन्हें वित्तीय मदद करने वालों और उन्हें पनाह देने वालों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आतंकी गतिविधि को किसी भी आधार पर जायज नहीं ठहराया जा सकता है। बता दें कि 2016 में इजरायल में 122 आतंकी हमले हुए। इन हमलों में 90 लोगों की मौत हुई और 381 लोग घायल हुए। फिलस्तीन के चरमपंथी संगठन हम्मास के लड़ाके इजरायली नागरिकों को निशाना बनाते हैं। रॉकेट हमले, चाकूबाजी, गोलाबारी और बम धमाकों से हमले होते हैं। गाजापट्टी और वैस्ट बैंक के सीमावर्ती इलाकों और यरुशलम में सबसे अधिक हमले होते हैं। भारत में पिछले साल जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में 75 जवानों की शहादत हुई, 40 नागरिकों की जान गई। 321 लोग इन आतंकी हमलों में घायल हुए, करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ। इन आतंकी हमलों में भारत और इजरायल के रिस्पांस में फर्क हैं। दुनिया की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी मोसाद आतंकियों पर नजर रखती है। दुश्मनों को हमला करने से पहले ही मोसाद की सूचना पर सैनिक उनका सफाया कर देते हैं। इजरायल नागरिक विमानों में कमांडो तैनात करने वाले शुरुआती देशों में से एक है। सीमा पर लेजर दीवार खड़ी की, मिसाइलरोधी प्रणाली विकसित की। यरुशलम विवाद को पीछे छोड़ भारत और इजरायल आतंक के खिलाफ साझा तंत्र बनाने पर सहमत हुए हैं। यह सहमति दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) के बीच मैराथन बैठक के बाद तय हुई। बातचीत मुख्य तौर से सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए साझा तंत्र विकसित करने पर सहमति बनी। इजरायल आतंकवाद से निपटने के लिए मशहूर है। अगर वह भारत के साथ इस ज्वलंत समस्या पर एका करे तो निश्चित रूप से भारत की सुरक्षा में फर्क पड़ जाएगा।

Thursday 18 January 2018

उपचुनाव में वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा दांव पर

वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव और अगले साल प्रस्तावित राजस्थान विधानसभा चुनाव के संग्राम से पहले प्रदेश की दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए 29 जनवरी को होने वाले उपचुनाव में सत्ताधारी भाजपा और मुख्य प्रतिपक्षी कांग्रेस की अग्नि परीक्षा होगी। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस तीनों उपचुनाव जीतने के दावे कर रही है, लेकिन दावों की असलियत एक फरवरी को चुनाव परिणाम बताएंगे। यूं तो तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव प्रचार का घमासान शुरू हो चुका है और 16 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी की बाड़मेर में पचपदरा में रिफाइनरी परियोजना के कार्य आरंभ करने के बाद इसमें तेजी आई है। मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे ने तीनों सीटों पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखने के लिए चुनाव की औपचारिक घोषणा से पहले ही तीनों क्षेत्रों में धुंआधार दौरे कर कार्यकर्ताओं में जोश भरने का प्रयास किया है। उधर कांग्रेस ने धौलपुर के उपचुनाव में मिली करारी पराजय से सबक लेते हुए उम्मीदवारों की घोषणा में अलवर संसदीय सीट से पूर्व सांसद डा. करण सिंह यादव को चुनाव में उतार कर बढ़त अवश्य ले ली थी लेकिन बाद में दोनों निर्वाचन क्षेत्र अजमेर, माडलगढ़ में वह भाजपा से पिछड़ गई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने तीनों उपचुनाव में ऐतिहासिक जीत का दावा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा किए गए विकास के कारण भाजपा भारी बहुमत से जीतेगी साथ ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा फिर सरकार बनाएगी, दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने परनामी के दावों को खोखला बताते हुए कहा कि प्रदेश की जनता अगले होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार की विदाई करेगी और इसकी उलटी गिनती उपचुनाव से शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एकजुटता से चुनाव में जुट गई है और तीनों उपचुनाव जीतेगी। कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि चुनाव प्रचार आरंभ हो चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट व अन्य नेता चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। भाजपा केंद्र और राज्य सरकार की विकास परियोजनाओं, फ्लैगशिप योजनाओं के बल पर तीनों सीटें जीतेगी, जबकि कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था, बेरोजगारी और किसानों की अनदेखी के विरोध में तीनों क्षेत्रों के मतदाता भाजपा के खिलाफ मतदान करेंगे। यह उपचुनाव मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए एक तरह से प्रतिष्ठा का प्रश्न हो गया है क्योंकि अगले साल विधानसभा परिणाम इससे प्रभावित हो सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सैन्य आपरेशन के साथ राजनीतिक पहल भी जरूरी

सीमा पर भारतीय सेना की कार्रवाई में चार पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने के बीच सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी है कि यदि वह बाज नहीं आता है तो भारत एक बार फिर मजबूरी में दूसरा विकल्प अपनाने में पीछे नहीं हटेगा। जनरल रावत ने 70वें सेना दिवस  के अवसर पर भव्य परेड की सलामी लेने के बाद अपने संबोधन में कहा कि पाकिस्तान की सेना घुसपैठियों की मदद करती रही है, अगर हमें मजबूर किया गया तो और मजबूत कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि सेना उकसावे की किसी हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है। उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर में शांति कायम करने के लिए सैन्य आपरेशन के साथ राजनीतिक पहल भी जारी रहनी चाहिए। उनका कहने का आशय यही है कि सरकार बातचीत के जरिए पाकिस्तान की सरकार को आतंकवाद फैलाने और घुसपैठ सहित तमाम मसलों पर विचार करे, लेकिन सेना का आतंकवादियें के खिलाफ सख्ती का रुख बरकार रहेगा। जनरल रावत आतंकियों के खिलाफ अपने कड़े बर्ताव के लिए जाने जाते हैं। हालांकि सेना प्रमुख ने इसके अलावा दो और अहम बातें कहीं। पहली यह कि जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे सशस्त्र बल यथास्थितिवादी नहीं हो सकते। उन्हें  हमेशा चौकस रहना होगा और अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा, और दूसरी महत्वपूर्ण बात उन्होंने यह कही कि अगर सही तरीके से सैन्य और राजनीतिक विमर्श होगा तो राज्य में स्थायी तौर पर शांति की पताका फहराएगी। जम्मू-कश्मीर में जनरल रावत की पहल पर आपरेशन आल आउट चल रहा है। इस दौरान 210 आतंकी मारे जा चुके हैं। यह आंकड़ा बीते तीन साल में सबसे ज्यादा है, हालांकि साल भर के दौरान आतंकी हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं। 10 दिसंबर तक जहां 2016 में 302 आतंकी हिंसा की वारदात हुईं वहीं 2017 में यह बढ़कर 335 हो गई। यह भी एक तथ्य है कि आतंकी पाकिस्तानी सेना के सहयोग-समर्थन से सीमा पर तैनात जवानों को निशाना बनाने और घुसपैठ करने में भी संलग्न है। सीमा पर सैन्य चौकसी बढ़ाने के बावजूद पाक सेना जिस तरह आए दिन संघर्ष विराम का उल्लघंन करती है, उससे यही पता चलता है कि अभी उसे जरूरी सबक सिखाया जाना शेष है। पाकिस्तान की तरफ से 2017 में 820 संघर्ष विराम उल्लघंन की घटनाएं सामने आई हैं। यह सब कुछ तब है जब सेना की पुरजोर सख्ती है। इस नाते सेना प्रमुख ने एक तरह से सरकार को बातचीत से मसले को सुलझाने की  प्रक्रिया जारी रखने का संकेत भी दिया है और पाकिस्तान को कहा है कि हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे।

Wednesday 17 January 2018

84 के दंगों का बदनुमा दाग

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख दंगों में अपना सब कुछ खो चुके परिवारों के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भारी राहत दी है। अदालत ने उन 186 मामले जिन्हें बिना किसी कारण के बंद कर दिया गया था, उसकी जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन के आदेश दिए हैं। यह कितना दुखदायक व पीड़ादयक है इन दंगों के पीड़ितों को 34 साल बाद भी न्याय नहीं मिल सका। हालांकि इस नरसंहार के लिए अब तक 10 आयोग और समितियां बन चुकी हैं लेकिन खूनखराबा करने वाले अभी भी आजाद घूम रहे हैं। पीड़ितों को अगर न्याय की जरा-सी भी उम्मीद है तो वह न्यायपालिका से ही है। उन दंगों में तीन हजार तीन सौ से अधिक लोग मारे गए थे। अकेले दिल्ली में ही ढाई हजार से ज्यादा लोगों की हत्या हुई थी। तब से सिखों का समर्थन पाने के लिए समय-समय पर जांच और मुआवजे की घोषणाएं होती रहीं पर इंसाफ का तकाजा कभी पूरा नहीं हो सका। दरअसल दंगे की जांच जिस महकमे को करनी थी, सबसे बड़ा सवाल तो उसकी भूमिका पर ही उठता है। पुलिस ने न सिर्फ शिकायतों की अनदेखी की बल्कि कई मामलों में सिखों पर हुए हमलों में भीड़ का साथ तक दिया और यही इस कांड की सबसे बड़ी त्रासदी है। सुप्रीम कोर्ट के एसआईटी गठन करने के निर्णय से पीड़ित परिवारों को न्याय पाने की उम्मीद जहां एक बार फिर जगी है, वहीं पूर्व के एसआईटी की सुस्त और सतही तफ्तीश से यह आशंका बढ़ जाती है कि क्या इस बार दंगा पीड़ितों को वो मिलेगा जिसकी आस में यह लोग अभी भी न्यायपालिका पर भरोसा बनाए हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1984 के 186 मामलों की नए सिरे से जांच के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस शिव नारायण ढींगरा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय एसआईटी गठित की है। आईपीएस अफसर अभिषेक दुलार और रिटायर्ड आईजी राजदीप सिंह भी इसमें हैं। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने दो महीने में स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा है। बता दें कि जस्टिस ढींगरा वही हैं जिन्होंने आरोपी अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। 1990 में त्रिलोकपुरी में 150 हत्याओं के दोषी किशोरी लाल को भी मौत की सजा सुनाई थी। यह सच है कि जिनका सब कुछ बर्बाद हो चुका हो, लुट चुका हो उसे उसी रूप में वापस नहीं किया जा सकता किन्तु न्याय मिलने से उनकी पीड़ा काफी हद तक कम होगी।

-अनिल नरेन्द्र

नेतन्याहू की भारत यात्रा का महत्व

इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की छह दिवसीय भारत यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा से ही यह सुनिश्चित हो गया था कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे। नेतन्याहू की अगवानी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हवाई अड्डे पहुंचे और प्रोटोकॉल तोड़ते हुए गले लगकर गरमजोशी से स्वागत किया। 15 साल बाद किसी इजरायली पीएम का भारत दौरा है। भारत रवाना होने से पहले नेतन्याहू ने अपने संदेश में कहा था कि वे अपने दोस्त नरेंद्र मोदी से मिलने जा रहे हैं और यह यात्रा इजरायल के लिए वरदान साबित होने वाली है। प्रधानमंत्री ने भी उन्हें मित्र कहकर संबोधित किया। पिछले महीने ही यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने में अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रस्ताव का भारत ने संयुक्त राष्ट्र में विरोध किया था। लेकिन नेतन्याहू की अगवानी के लिए प्रधानमंत्री मोदी का प्रोटोकॉल तोड़कर हवाई अड्डे पर पहुंचना और दोनों का गले मिलना बताता है कि नई दिल्ली का यह फैसला भारत-इजरायल के बीच रिश्तों की फांस नहीं बना है। इसके विपरीत नेतन्याहू के दौरे के पहले दिन तीन मूर्ति चौक में इजरायली शहर हाइफा का नाम जोड़कर मोदी ने भारत-इजरायल के पुराने संबंधों को प्रासंगिक बनाने का कदम उठाया है। दरअसल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने इजरायल के हाइफा शहर को आजाद कराने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इजरायल की आजादी का रास्ता हाइफा की उस लड़ाई से ही खुला था। गौरतलब है कि हाइफा की उस लड़ाई का भी यह 100वां साल है। नेतन्याहू के साथ 130 लोगों का व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भारत आया है, जिनमें प्रतिरक्षा, सूचना तकनीक, ऊर्जा, पर्यटन आदि क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हैं। पिछली जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इजरायल की यात्रा की थी, वह भी भारत के किसी प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। हालांकि भारत और इजरायल के बीच व्यापारिक रिश्ते पुराने हैं। भारत हर साल करीब एक अरब रुपए का प्रतिरक्षा साजो-सामान खरीदता है पर पिछले दिनों जब भारत ने इजरायली कंपनी राफेल के साथ रक्षा सौदों को रद्द कर दिया तो दोनों के संबंधों में कुछ गतिरोध के कयास लगाए जाने लगे थे। वह सौदा 50 अरब डॉलर का था। इस तरह राफेल की मदद से भारत में स्पाइक नाम से तैयार होने वाली एंटी टैंक गाइडिड मिसाइल की परियोजना पर भी विराम लग गया। नेतन्याहू की इस यात्रा में उस गतिरोध को भी दूर करने के प्रयास होंगे। नेतन्याहू अपने राज्य के प्रति अधिकांश देशों का समर्थन जुटाना चाहते हैं। भारत उभरती हुई विश्व शक्ति है, लिहाजा उसके समर्थन का वैश्विक महत्व है। भारत से इजरायल की दोस्ती उसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि को निखार सकती है। दूसरी ओर रक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आतंकवाद के मोर्चे पर भारत को भी इजरायल की मदद और सहयोग की जरूरत है। यह पारस्परिक निर्भरता दोनों देशों को करीब ला रही है। श्री बेंजामिन नेतन्याहू का भारत में स्वागत है और हम उम्मीद करते हैं कि दोनों देशों के आपसी रिश्ते और मजबूत होंगे।

Tuesday 16 January 2018

जब पाकिस्तान एक जनाजे के बोझ में दबा

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी एक निर्भया कांड हो गया है। सात साल की जैनब के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या से पूरे पाकिस्तान में आग लग गई है। जगह-जगह हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पंजाब प्रांत के कसूर में पिछले बृहस्पतिवार को सात साल की बच्ची अपने घर के ही पास ट्यूशन पढ़ने गई थी। इसी दौरान उसे अगवा कर लिया गया और उसके साथ दुष्कर्म किया गया। बच्ची का शव मंगलवार को कूड़े के ढेर में मिला। इसके बाद शहर में हिंसक प्रदर्शन हुए। मासूम को इंसाफ और दोषियों को सजा दिलाने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक मुहिम शुरू की है। बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के विरोध में एक टीवी न्यूज एंकर ने अनूठे तरीके से नाराजगी जताई। जगह-जगह हिंसक विरोध प्रदर्शन के बीच शमा न्यूज चैनल की एंकर किरन नाज ने लाइव शो में अपनी छोटी बच्ची को गोद में बिठाकर खबरें पढ़ीं। वह बताना चाहती थीं कि कोई भी अकेली बच्ची इस देश में महफूज नहीं है। उनका यह वीडियो दुनियाभर में वायरल हो गया और लोग उनके इस कदम की सराहना कर रहे हैं। मासूम की हत्या से दुखी नाज ने न्यूज बुलेटिन की शुरुआत करते हुए कहाöआज मैं टीवी होस्ट किरन नाज नहीं बल्कि एक मां की हैसियत से अपनी बच्ची के साथ आप सबके सामने बैठी हूं। वह कहती हैं कि जनाजा जितना छोटा होता है, वह उतना ही भारी होता है। आज एक ऐसा ही जनाजा कसूर की सड़कों पर पड़ा हुआ है और पूरा पाकिस्तान उसके बोझ के नीचे दबा हुआ है। मां-बाप अरब में बैठकर बेटी के लिए दुआ कर रहे थे और इधर कसूर में दरिन्दा उस बच्ची की जिन्दगी की डोर काट रहा था। इस बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या का मामला शुक्रवार को पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में भी उठा और पाक अखबार द नेशन की रिपोर्ट के अनुसार विपक्षी नेता खुर्शीद शाह ने घटनाओं को रोकने में नाकाम रहने पर पंजाब के गवर्नर की कड़ी आलोचना की। उधर लाहौर उच्च न्यायालय ने पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के पुलिस प्रमुख को आदेश दिया है कि सात साल की बच्ची की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या किए जाने के मामले में अपराधी को 36 घंटों के भीतर गिरफ्तार किया जाए। डॉन अखबार के अनुसार शहर में पिछले साल से अब तक दो किलोमीटर के दायरे में इस तरह की 12 वारदातें हो चुकी हैं। 2015 में कसूर तब अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में आया था, जब बच्चों से यौन अपराध में शामिल एक गिरोह पकड़ा गया था। इसने इलाके में कम से कम 280 बच्चों को अगवाकर यौन शोषण किया था।

-अनिल नरेन्द्र

एफडीआई को लेकर सरकार का बड़ा फैसला

आम बजट से ठीक पहले मोदी सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में बड़ा बदलाव करते हुए एयर इंडिया में विदेशी एयरलाइनों को 49 फीसदी निवेश और सिंगल ब्रांड रिटेल ट्रेड और निर्माण क्षेत्र में आटोमेटिक रूट से 100 फीसदी निवेश की अनुमति दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट में यह फैसले लिए गए। यह सभी फैसले काफी महत्वपूर्ण हैं, इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि सरकार ने एक तरह से नई विदेशी निवेश नीति ही बना दी है। इन फैसलों पर एक राय बनना कठिन है। एकल ब्रांड खुदरा कारोबार और निर्माण क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से विदेशी निवेश की अनुमति देने का मतलब है कि इन क्षेत्रों को विदेशी कंपनियों के लिए पूरी तरह से खोल दिया जाना। एयर इंडिया में विदेशी निवेश को लेकर दो अर्थ लगाए जा रहे हैं। एक तो यह कि सरकार ने अब यह पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है कि लगातार घाटे में चल रही इन एयरलाइंस में और ज्यादा सार्वजनिक पूंजी झोंकना निरर्थक है और दूसरा यह कि विदेशी निवेश के बावजूद इसका नियंत्रण विदेशी हाथों में नहीं पहुंचेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके बाद एयर इंडिया पेशेवर प्रबंधन के हाथों में पहुंच जाएगी और बाजार की तरह दूसरी एयरलाइंस से स्पर्द्धा भी कर सकेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि वह सार्वजनिक धन की बर्बादी के दौर से बाहर निकल आएगी। अभी तक भारत में जो निजी एयरलाइंस काम कर रही हैं, उनमें भी 49 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत है, मगर एयर इंडिया को इससे अलग रखा गया था, अब उस पर भी यही नियम लागू होगा। इस विषय को लेकर देश में लंबे समय से बहस चल रही थी। खुद भाजपा ने पिछली सरकार के दौरान खुदरा क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश के खिलाफ स्टैंड लिया था। आज भी संघ परिवार के संगठन स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ इसके खिलाफ हैं। वाम दलों ने भी इसका विरोध किया है और कई व्यापारी संगठनों ने भी। ऐसा नहीं कि चिन्ता वाजिब नहीं है। खुदरा व्यापार में हमारे यहां कई करोड़ लोग लगे हैं। भय है कि विदेशी दुकानदारों के आने से कहीं उनका रोजगार खत्म न हो जाए? हालांकि इसके समर्थकों का कहना है कि इससे रोजगार घटेगा नहीं बढ़ेगा। कम से कम अभी मल्टी-ब्रांड खुदरा व्यापार में यह अनुमति नहीं मिली। जो मिली है उसमें भी शर्त यह है कि उन्हें भारत में अपनी पहली दुकान खोलने के दिन से अगले पांच साल तक अपने कारोबार के लिए कच्चे माल का 40 फीसदी हिस्सा भारत से ही खरीदना होगा। कीमतें नियंत्रित करने के लिए विदेशी वस्तुओं से बाजार को पाट देना कोई अंतिम उपाय नहीं माना जाता। संतुलित विकास दर के लिए देसी कारोबार को बढ़ावा देना भी जरूरी होता है। पहले ही हमारे यहां छोटे और मझौले कारोबारी कठिनाइयों से गुजर रहे हैं। विदेशी कंपनियों के लिए निर्बाध रास्ता खोल देने से उनकी मुश्किलें और भी बढ़ेंगी। ऐसे में विदेशी के साथ-साथ देसी कंपनियों के लिए जगह बनाने के व्यावहारिक उपाय तलाशने की अपेक्षा स्वाभाविक है। बेरोजगारी की समस्या बड़े पैमाने पर तभी दूर हो सकेगी, जब विदेशी निवेश के बाद स्वदेशी उद्योग भी उनके मुकाबले के लिए डटकर खड़ा हो जाएगा।

Sunday 14 January 2018

एयर होस्टेस रंगे हाथों पकड़ी गई

दिल्ली से हांगकांग जाने वाली जेट एयरवेज के आरोप में एक एयर होस्टेस को राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने रंगे हाथों पकड़ा है। वह तीन करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की विदेशी मुद्रा हांगकांग ले जा रही थी। पता लगा है कि वह इससे पहले नौ बार इसी तरह अमेरिकी डॉलर हांगकांग ले जा चुकी है। माना जा रहा है कि करीब 20 करोड़ रुपए के अमेरिकी डॉलर हांगकांग लेकर गई है। डॉलर फाइल पेपर के अंदर छिपाकर हवाई जहाज तक ले जाए जाते थे ताकि एक्सरे-स्कैनर मशीन में इसका पता न लगे। डीआरआई सूत्रों का कहना है कि आरोपी एयर होस्टेस को हांगकांग वाली फ्लाइट में 7/8 जनवरी की रात को उस वक्त पकड़ा गया, जब वह टेक-ऑफ के लिए रेडी थी। सूचना मिलने पर डीआरआई टीम ने फ्लाइट रुकवाकर एयर होस्टेस से पूछताछ की। पहले तो उसने कुछ नहीं बताया, लेकिन हैंडबैग की तलाशी लेने पर अमेरिकी डॉलर मिल गए। कुछ डॉलर उसने रजिस्टर्ड लगेज में छिपा रखे थे। कुल चार लाख 80 हजार 200 यूएस डॉलर उसके पास मिले। पूछताछ में उसने बताया कि डॉलर अमित मल्होत्रा नाम के एक व्यक्ति ने दिए थे। वह विवेक विहार में रहता है। डीआरआई ने उसे भी पकड़ लिया है। अमित को हवाला के इस गेम का अभी तक का दिल्ली-एनसीआर का मास्टर माइंड बताया गया है। डीआरआई सूत्रों का कहना है कि इस तरह के हैंडलर और भी हो सकते हैं। जांच में पता लगा है कि पकड़ी गई एयर होस्टेस इससे पहले नौ बार अमेरिकी डॉलर हांगकांग ले जा चुकी थी। यह ट्रांजेक्शन क्यों की जा रही थी? इसके जवाब में सूत्रों का कहना है कि असल में यह सारा पैसा चीन को जाता है। चीन इंडिया माल इम्पोर्ट करने वाले कुछ बड़े इम्पोटर कस्टम ड्यूटी चोरी करने के लिए माल की अंडरबिलिंग करा रहा है, फिर अंडरबिलिंग के बैलेंस को ही हवाला के जरिये चीन पहुंचाया जाता है। जेट एयरवेज का कहना है कि जांच पूरी होने के बाद ही इस मामले में आगे बढ़ा जाएगा। इस मामले में डीआरआई का शक एयरलाइंस के क्रू मैम्बर पर भी है। इन सभी के विदेशी टूर की डिटेल खंगाली जा रही है, मंगलवार को गिरफ्तार की गई एयर होस्टेस को दिल्ली की एक अदालत में पेश किया गया। ड्यूटी मजिस्ट्रेट ऋतु सिंह ने एयर होस्टेस देवेशी कुलश्रेष्ठ के साथ एजेंट अमित मल्होत्रा को इस निर्देश के साथ जेल भेजा कि उन्हें जल्द संबंधित मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए। पूछताछ में एयर होस्टेस ने खुलासा किया कि वह इस एवज में 50 फीसद कमीशन लेती थी।

-अनिल नरेन्द्र

उत्तर और दक्षिण कोरिया की बातचीत का स्वागत

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने बुधवार को कहा कि वह उचित परिस्थितियों में उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन से मिलने के लिए तैयार हैं। करीब दो साल बाद दोनों देशों में पहली आधिकारिक बैठक का सारी दुनिया ने स्वागत किया है। पिछले कुछ महीनों में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया था कि डर लगने लगा था कि कहीं तीसरा विश्व युद्ध ही न शुरू हो जाए। पर अचानक उत्तर कोरिया के विचार बदले हैं और वह बातचीत को तैयार हुआ है। दोनों देशों की पहली आधिकारिक बैठक में यह समझौता किया गया जिसे एक सकारात्मक कदम के तौर पर देखा जा रहा है। फरवरी महीने में दक्षिण कोरिया में आयोजित 2018 के विंटर ओलंपिक खेल के लिए उत्तर कोरिया एक प्रतिनिधिमंडल भी भेजेगा। दोनों देशों में सैन्य हॉटलाइन को फिर से बहाल करने पर भी सहमति हो गई है। इसे दो साल पहले रद्द कर दिया गया था। हालांकि दक्षिण कोरिया का कहना है कि उत्तर कोरिया का परमाणु निरस्त्राrकरण पर रुख नकारात्मक है। बातचीत के बाद दोनों देशों ने संयुक्त रूप से एक बयान जारी किया है। इसी बयान में उन्होंने पुष्टि की है कि दोनों देश सीमा पर तनाव खत्म करने को लेकर सैन्य बातचीत के लिए राजी हो गए हैं। दक्षिण कोरिया की समाचार एजेंसी मोन हैप के अनुसार दोनों देशों के बयानों में संबंधों को सुधारने के लिए अन्य उच्च स्तरीय बैठकों की बातें कही गई हैं। दक्षिण कोरिया की सरकार ने कहा है कि उसने उत्तर कोरिया से किसी भी शत्रुतापूर्ण कदम को खत्म करने के लिए कहा था ताकि तनाव कम किया जा सके। दक्षिण कोरिया सरकार का कहना है कि उत्तर कोरिया सहमत हो गया है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हीथर नोर्ट ने मंगलवार को हुई कोरियाई वार्ता का स्वागत किया। उन्होंने कहा, इसका मकसद ओलंपिक खेलों का सुरक्षित और सफल आयोजन कराना है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वह खुद किम जोंग उन के साथ बातचीत को तैयार हैं और उन्होंने कोरियाई वार्ता से प्रभावित होने की उम्मीद जताई है। जैसा मैंने कहा कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया की वार्ता से सारी दुनिया ने राहत की सांस ली है, नहीं तो उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की आए दिन धमकियों से सारा माहौल खतरनाक हो रहा था।

Saturday 13 January 2018

आतंक से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं मदरसे?

उत्तर प्रदेश सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा है जिसमें उन्होंने मदरसों को समाप्त करने की मांग की है। उन्होंने इस पत्र में देशभर के मदरसों को समाप्त कर सामान्य शिक्षा नीति बनाने की मांग की है। निकाय ने आरोप लगाया है कि ऐसे इस्लामी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा छात्रों को आतंकवाद से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने दावा किया कि मदरसे बच्चों को कट्टरपंथी बना रहे हैं जिससे वे आतंकियों के आसान शिकार बनते जा रहे हैं। उन्होंने सवाल कियाöकितने मदरसों से इंजीनियर, डाक्टर व आईएएस अफसर निकले हैं? अलबत्ता कुछ मदरसों से आतंकी जरूर पैदा हुए हैं। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि अधिकतर मदरसे जकात यानी दान के पैसों से चल रहे हैं। उनका आरोप है कि यह पैसा देश के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे देशों से आता है। उन्होंने मांग की है कि मदरसों के स्थान पर ऐसे स्कूल हों, जो सीबीएसई या आईसीएसई से संबद्ध हों और ऐसे स्कूल छात्रों के लिए इस्लामिक शिक्षा के वैकल्पिक विषय की पेशकश करेंगे। बोर्ड ने सुझाव दिया है कि सभी मदरसा बोर्डों को भंग कर दिया जाना चाहिए। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने दावा किया कि देश के अधिकतर मदरसे मान्यता प्राप्त नहीं हैं और ऐसे संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने वाले मुस्लिम छात्र बेरोजगारी की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि ऐसे मदरसे लगभग हर शहर, कस्बे व गांव में खुल रहे हैं और ऐसे संस्थान गुमराह करने वाली धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मदरसों के संचालन के लिए पैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी आते हैं और कुछ आतंकवादी संगठन भी उनकी मदद करते हैं। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी ने कहा कि आजादी की लड़ाई में मदरसों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और रिजवी उन पर सवाल उठाकर उनकी तौहीन कर रहे हैं। मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली (इमाम ईदगाह लखनऊ) ने कहा कि रिजवी के आरोप बेबुनियाद हैं। मदरसे ने ही देश को मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसा पहला शिक्षामंत्री दिया। यही नहीं, मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम की शुरुआती शिक्षा भी मदरसे में ही हुई थी। एआईएमईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि रिजवी ने आरएसएस को अपनी आत्मा बेच दी है। उनके पास मदरसों में आतंकी पैदा होने का कोई सबूत हो तो उसे गृहमंत्री को दिखाएं। इत्तेफाक की बात यह है कि भारत में मदरसों पर निगरानी को लेकर चल रही बहस के बीच पाकिस्तान ने आतंकियों के गढ़ माने जाने वाले खैबर पख्तूनख्वाह में मदरसों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। वहां की सरकार ने मदरसों को अब सीधे सरकारी नियंत्रण में ले लिया है। इनका पंजीकरण, पाठ्यक्रम, पढ़ाई और निगरानी स्कूली शिक्षा विभाग के अधीन कर दी गई है। माना जा रहा है कि आतंकी संगठनों की सप्लाई लाइन काटने के लिए यह कदम उठाया गया है। दरअसल 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ लड़ाई के लिए आतंकी पैदा करने में खैबर पख्तूनख्वाह इलाके में बड़े पैमाने पर मदरसे खोले गए थे। कभी पाकिस्तान रणनीति का अहम हिस्सा माने जाने वाले यह मदरसे अब उसकी ही गले की फांस बन गए हैं। यहां तक कि मदरसों की पहचान उनसे जुड़े आतंकी व कट्टरपंथी संगठनों के साथ जुड़ाव को लेकर होने लगी है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पूरे पाकिस्तान में फैले मदरसों से निकलने वाले छात्र आतंकवादी संगठनों और कट्टरपंथी जमातों की लाइफ लाइन बन गए हैं। पिछले दिनों इस्लामाबाद में कट्टरपंथी जमातों के घटने के कारण भड़की हिंसा और उसकी मांग के आगे झुकते हुए कानून मंत्री के इस्तीफे के बाद पाकिस्तान में मदरसों पर शिकंजा कसने की मांग तेज हो गई थी। ध्यान देने की बात यह है कि खैबर पख्तूनख्वाह में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तानी मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक खैबर पख्तूनख्वाह सरकार ने सभी मदरसों को अब स्कूली शिक्षा विभाग में पंजीकरण कराने को कह दिया है। स्कूली शिक्षा विभाग ही अब इन मदरसों का पाठ्यक्रम तैयार करेगा और छात्रों की परीक्षा भी लेगा। इसके साथ ही स्कूली शिक्षा विभाग इन मदरसों की निगरानी भी करेगा। इधर वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि मदरसों में दी जा रही शिक्षा आज के माहौल के हिसाब से प्रासंगिक नहीं है और इसलिए वे देश में बेरोजगार युवाओं की संख्या को बढ़ाते हैं। रिजवी ने कहा कि मदरसों से पास होने वाले छात्रों को रोजगार मिलने की संभावना अभी काफी कम है और उन्हें अच्छी नौकरियां नहीं मिलतीं। अधिक से अधिक उन्हें उर्दू अनुवादकों या टाइपिस्टों की नौकरियां प्राप्त होती हैं। भाजपा ने कहा है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों की मदरसों को बंद करने की कोई योजना नहीं है। प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने दावा किया कि इसके बजाय सरकारें मदरसों में आधुनिक शिक्षा मुहैया कराने की दिशा में काम कर रही हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Friday 12 January 2018

मामला धर्मस्थलों से लाउड स्पीकर हटाने का

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा था कि मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर प्रशासन की लिखित अनुमति से लगाए गए हैं या नहीं? यदि नहीं तो इन्हें हटाने के लिए सरकार की ओर से क्या कार्रवाई की गई? इस पर राज्य सरकार ने सभी जिलों से जानकारियां जुटानी शुरू कर दी हैं। टीम पता करेगी कि कितने धर्मस्थलों पर बिना अनुमति के लाउड स्पीकर बजाए जा रहे हैं। जिन धर्मस्थलों के पास अनुमति नहीं है उनके प्रबंधकों को 15 जनवरी से पहले अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदन का प्रारूप उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि ध्वनि प्रदूषण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। कटु सत्य तो यह है कि जैसे हवा और पानी का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है वैसे ही वातावरण में शोर बढ़ रहा है। आए दिन जुलूस निकलते रहते हैं और इनमें भाग लेने वालों का प्रयास यह होता है कि ज्यादा से ज्यादा दूर तक माहौल गूंजना चाहिए। विवाह के सीजन में त्यौहारों में भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ जाता है। बैंडबाजों का शोर तो रहता ही है, पटाखों की ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण दोनों में इजाफा होता जा रहा है। दिन और रात का लिहाज भी नहीं किया जाता। मंदिरों, मस्जिदों में धार्मिक कार्य का हिस्सा मानकर कोई उन्हें रोकता-टोकता नहीं, न कोई पुलिस में शिकायत करता है, कोई करे भी तो पुलिस ऐसे मामलों में पड़ना नहीं चाहती और उलटे शिकायतकर्ता को आयोजकों-प्रबंधकों की नाराजगी मोल लेनी पड़ती है। लेकिन समय आ गया है कि ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगे। उत्तर प्रदेश ने इसकी शुरुआत की है। अलबत्ता यह सरकारी पहल का परिणाम नहीं है, बल्कि एक अदालती आदेश का नतीजा है। हाई कोर्ट के इस आदेश को कुछ धार्मिक नेता गलत बता रहे हैं। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि किसी एक धर्म के खिलाफ कुछ नहीं होना चाहिए। अगर कार्रवाई करनी है तो सबसे पहले मस्जिदों में से लाउड स्पीकर हटवाएं और फिर हमारे यहां देखें। हाई कोर्ट के इस आदेश का पालन राज्य सरकार के लिए आसान नहीं होगा। अगर सरकार को कार्रवाई करनी है तो एक साथ सभी ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों पर करनी होगी। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यह हमारी धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है और अदालत व सरकार हमारे धार्मिक कामों में दखलंदाजी कर रही है। कोशिश आम सहमति बनाने की होनी चाहिए न कि जोर-जबरदस्ती से।

-अनिल नरेन्द्र