Friday 26 January 2018

आतंकवाद के बढ़ते असर से दुनिया प्रभावित

आतंकवाद के शिकार देशों की संख्या में पिछले साल बढ़ोतरी देखने को मिली है। साल 2015 में जहां 66 देश इसके शिकार हुए थे वहीं 2016 में 77 देश इसकी जद में आ गए। जारी हुई वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (जीटीआई) की रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। जीटीआई ने कहा है कि दुनियाभर में आतंकवाद में हुई बढ़ोतरी का जो ट्रेंड है वह परेशान करने वाला है। वहीं रिपोर्ट ने चेतावनी भी दी कि आईएस के आतंकी इराक और सीरिया के साथ अन्य देशों में भी अपनी पहुंच बढ़ा सकते हैं। साल 2016 में उन्होंने अफगानिस्तान की स्थिति काफी जटिल बताई है। उनका कहना है कि तालिबान ने जहां नागरिकों पर हमलों की संख्या को कम कर दिया है वहीं सरकारी सेनाओं के खिलाफ हमले तेज कर दिए हैं। जीटीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के वर्ल्ड टेड सेंटर पर 11 सितम्बर 2001 को हुए हमले को छोड़ दें तो यूरोप व अन्य विकसित देशों के लिए 2016 साल 1988 के बाद से सबसे खतरनाक साल रहा है। यूरोप में बढ़ रहे हमलों के लिए रिपोर्ट में आईएस को जिम्मेदार ठहराया गया है। उसमें कहा गया है कि 2014 के बाद से आईएस के आदेश से या उससे प्रभावित होकर किए गए हमलों के कारण इन देशों में आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या में 75 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इधर हमारे जम्मू-कश्मीर में पिछले एक अरसे से आतंकवाद एक नए रूप में तेजी से उभरा है। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, कुलगाम, त्राल आदि इलाकों में बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवक जिन्हें डाक्टर, इंजीनियर व अन्य सेवाओं में जाना था, ने एके-47 थाम ली हैं। सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ समय से करीब तीन दर्जन युवा घरों से भागकर आतंकी बन गए हैं। मौजूदा वक्त में 200 से अधिक आतंकी घाटी में सक्रिय हैं जिनमें सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण कश्मीर में घर से भागे युवाओं की है। दुखद पहलू यह है कि जहां एक ओर सुरक्षाबलों को आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराने में निरंतर भारी सफलता मिल रही है वहीं दूसरी ओर कम उम्र के पढ़े-लिखे युवक आतंकवाद की ओर प्रेरित हो रहे हैं, जबकि घाटी में आतंकवाद एक नए एवं भयावह चेहरे के तौर पर सामने आ रहा है। आईएस को बेशक खदेड़ दिया गया हो पर उससे प्रभावित विचारधारा के कई संगठन खड़े हो चुके हैं और यह आए दिन धमाके करते रहते हैं। आतंकवाद केवल भारत की समस्या नहीं है बल्कि यह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल रहा है और इस पर जीत तभी हो सकती है जब सारे मिलकर इसका मुकाबला करें।

-अनिल नरेन्द्र

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