Saturday 16 March 2024

हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन


लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हरियाणा में भाजपा और जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठबंधन टूटना, उन चौंका देने वाले अप्रत्याशित निर्णयों की कड़ी में नया जुड़ाव है, जो पिछले काफी समय से भाजपा के केन्द्राrय नेतृत्व की शैली बन गई है। चाहे राजस्थान हो, बिहार हो या मध्य प्रदेश, विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों के नेता जिस तरह भाजपा के प्रति आक्रोशित हो रहे हैं, वह भाजपा की चुनावी तैयारी और गंभीरता को दर्शाता है। ताजा उदाहरण हरियाणा का है। हरियाणा की राजनीति में मंगलवार को दिन की शुरुआत भाजपा व जजपा के गठबंधन में दरार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की चर्चा के साथ हुई। दोपहर तक खट्टर बाहर हो गए और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी को नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया। इससे एक दिन पहले ही नरेन्द्र मोदी ने खट्टर की जमकर सराहना की थी। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व ने उन्हें क्यों बदला, यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है। पार्टी विधायक दल की बैठक में खुद मनोहर लाल खट्टर ने अगले मुख्यमंत्री के लिए नायाब सिंह सैनी के नाम का प्रस्ताव रखा। हरियाणा में यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गुरुग्राम के एक कार्यक्रम में हरियाणा के विकास के लिए खट्टर और उनके दृष्टिकोण की सराहना करने के एक दिन बाद हुआ। गुरुग्राम के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने द्वारका एक्सप्रेस-वे के हरियाणा खंड के शुभारंभ में बताया था कि कैसे वह अक्सर खट्टर की मोटर साइकिल पर पिछली सीट पर बैठकर रोहतक से गुड़गांव (अब गुरुग्राम) तक यात्रा करते थे। छोटी सड़कें थीं, लेकिन आज पूरा गुरुग्राम क्षेत्र एक्सप्रेस-वे सहित कई प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा है जो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रगतिशील मानसिकता को दर्शाता है। आज मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हर हरियाणावासी का भविष्य सुरक्षित है। हfिरयाणा वासियों का तो भविष्य बेशक सुरक्षित हो पर खुद खट्टर साहब को यह अंदाजा नहीं था कि उनका अपना भविष्य 24 घंटों में बदलने वाला है। इस पूरे घटनाक्रम में अगर कोई फंसा तो वह है जजपा अध्यक्ष व पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला। गठबंधन में होते हुए भी एक-दूसरे को मात देने के लिए चल रहे शह और मात के खेल में आखिरकार जजपा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भाजपा के चक्रव्यूह में फंसते चले गए। जजपा को बड़ा झटका देते हुए आनन-फानन में मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा देकर पूरा खेल ही पलट दिया। न तो अधिकारिक रूप से गठबंधन तोड़ने का आरोप लगा और और न ही जजपा का साथ। उल्टा जजपा के 5 विधायकों को भाजपा ने साध लिया है और दुष्यंत के लिए अपनी पार्टी ही टूटने का खतरा पैदा हो गया है। साढ़े चार साल पहले बनी पाटी पर अब संकट के बादल छाए हुए हैं। भाजपा के हरियाणा मामलों के प्रभारी बिल्पब देव ने एक साल पहले ही साफ कर दिया था कि चुनावों में भाजपा जजपा के साथ नहीं चलेगी। बावजूद इसके दुष्यंत चौटाला भाजपा हाईकमान के संपर्क में रहे और गठबंधन में खटपट चलती रही। सबसे बड़ा राजनीतिक संकट दुष्यंत चौटाला के सामने आने वाला है। हालांकि वह यह ऐलान कर चुके हैं कि राज्य की दसों सीट पर वह अपने उम्मीदवार उतारेंगे। गठबंधन तोड़ने के भाजपा के पास और भी कई कारण हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सवाल चुनाव से ठीक पहले सीएए लागू करने का


नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाए जाने के करीब चार साल बाद सोमवार को केन्द्राrय गृह मंत्रालय ने उसे लागू करने की घोषणा कर दी। जब यह कानून लाया गया था, तब इसके खिलाफ काफी लंबा शांतिपूर्ण विरोध हुआ था। शायद इसे नोटिफाई करने में इतनी देर के बाद लाने के पीछे एक तर्क यह हो सकता है कि सरकार चाहती थी कि दोबारा इस मुद्दे पर देश में इस तरह के हालात न बने जैसे चार साल पहले बने थे। केन्द्र सरकार के इस फैसले पर पूरे देश से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, लेकिन सबसे तीखी प्रतिक्रिया पश्चिम बंगाल और असम से आई है। जब 2019 में कानून बना था उस वक्त भी दोनों ही राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे। पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सीएए बंगाल में दोबारा विभाजन और देश से बंगालियों को खदेड़ने का खेल है। तृणमूल कांग्रेस के अलावा वामपंथी दलों ने भी इसे चुनावी लॉली पॉप करार दिया है। ममता बनजी ने कहा है कि अगर नागरिकता कानून के जरिए किसी की नागरिकता जाती है तो मैं इसका कड़ा विरोध करूंगी। सरकार किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देगी। ममता ने कहा, यह बच्चों का खेल नहीं है। ममता का सवाल था कि यह कानून साल 2020 में पारित किया गया था। अब सरकार ने चार बाद लोकसभा चुनाव के ऐन पहले इसे लागू करने का फैसला क्यों किया? वहीं उत्तर 24 परगना समेत दूसरे राज्यों में फैले मतुआ समुदाय ने इस पर खुशियां जताई है और उत्सव मनाया है। मतुआ समुदाय के लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि ममता बनजी राज्य में सीएए और एनआरसी लागू होने का पहले से ही विरोध करती रही हैं। उनकी दलील थी कि मतुआ समुदाय के लोग पहले से ही भारतीय नागरिक हैं। अगर नहीं हैं तो उन्होंने अब तक चुनाव में भाजपा को वोट कैसे दिया था? ऐसे में उनको दोबारा नागरिकता कैसे दी जा सकती है? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने भी इस कानून को लागू करने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर इसे चुनाव से पहले क्यों लागू किया गया है? साफ है कि इसका मकसद चुनावी फायदा उठाना है। दूसरी ओर सीपीएम सचिव मोहम्मद सलीम ने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ममता बनजी के बीच की मिलीभगत का नतीजा बताया है। पत्रकारों से बातचीत में उनका दावा था कि ममता महज दिखावे के लिए इस कानून का विरोध कर रही हैं। उनका कहना था कि केन्द्र ने धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के लिए चुनाव से ठीक पहले इस कानून को लागू करने का फैसला किया है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इलेक्ट्रोरल बांड से उत्पन्न हुई विस्फोट स्थिति से जनता का ध्यान हटाने के लिए इस कानून को लाया गया है। उधर भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार कहते हैं कि केंद्र सरकार ने हमेशा अपने वादे पूरे किए हैं। केन्द्राrय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने का भरोसा दिया था। अब यह वादा पूरा हो गया है। इस कानून से आतंकित होने की जरूरत नहीं है। चुनावी लाभ-हानि का जो भी गणित हो, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी पक्ष इस मसले पर संवेदनशीलता और संयम बनाए रखें और प्रदर्शन बेशक करें पर कानून व्यवस्था भंग न करें।

Thursday 14 March 2024

तो इसलिए 400 पार का नारा

भाजपा नेता आए दिन 400 पार का नारा देते हैं। इस नारे के पीछे असल मकसद क्या है? इस पर अटकलें लगाईं जा रही हैं। अब एक भाजपा के ही सांसद ने इसके पीछे की रणनीति का खुलासा किया है। भाजपा सांसद अनंत वुमार हेगड़े ने रविवार को कहा कि प्रास्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने के लिए भाजपा संविधान में संशोधन करेगी। उन्होंने लोगों से लोकसभा में भाजपा को दो-तिहाईं बहुमत देने का आह्वान किया ताकि देश के संविधान में संशोधन किया जा सके। हेगड़े ने छह साल पहले भी इसी तरह का बयान दिया था। हेगड़े ने कहा कि भाजपा के संविधान में संशोधन करने के लिए और कांग्रोस द्वारा इसमें जोड़ी गईं अनावश्यक चीजों को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाईं बहुमत की जरूरत होगी। उन्होंने यहां एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा को इसके लिए 20 से अधिक राज्यों में सत्ता में आना होगा। कर्नाटक से छह बार के लोकसभा सदस्य हेगड़े ने कहा, अगर संविधान में संशोधन करना है, कांग्रोस ने संविधान में अनावश्यक चीजों को जबरदस्ती भरकर विशेष रूप से ऐसे कानून लाकर जिनका उद्देश्य हिन्दू समाज को दबाना था, संविधान को मूलरूप से विवृत कर दिया है— यदि यह सब बदलना है तो इस (वर्तमान) बहुमत के साथ संभव नहीं है, उन्होंने कहा अगर हम सोचते हैं कि यह किया जा सकता है, क्योंकि लोकसभा में कांग्रोस नहीं है और प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास लोकसभा में दो-तिहाईं बहुमत है और चुप रहे तो यह संभव नहीं है। हेगड़े ने कहा, मोदी ने कहा है कि अबकी बार 400 पार। 400 पार क्यों? हेगड़े के इस बयान पर गंभीर चिता व्यक्त करते हुए कांग्रोस ने इसे देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे पर हमले का प्रायास करार दिया। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया — मोदी सरकार, भाजपा और आरएसएस गुप्त रूप से तानाशाही लागू करना चाहती है। वे भारत के लोगों पर अपनी मनुवादी मानसिकता थोपेंगे और एससी-एसटी तथा ओबीसी के अधिकार छीन लेगी। कोईं चुनाव नहीं होगा। ज्यादा से ज्यादा दिखावटी चुनाव होंगे। संस्थानों की स्वतंत्रता में कटौती की जाएगी। अभिव्यक्ति की आजादी पर बुलडोजर चलाया जाएगा। भाजपा हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और विविधता में एकता को नष्ट कर देगी। संघ परिवार के इस गलत इरादों को कांग्रोस सफल नहीं होने देगी। राहुल गांधी ने कहा, नरेन्द्र मोदी और भाजपा का अंतिम तथ्य बाबा साहेब के संविधान को खत्म करना है। उन्हें न्याय, बराबरी, नागरिक अधिकार और लोकतंत्र से नफरत है। समाज को बांटना मीडिया को गुलाम बनाना अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा बनाकर विपक्ष को मिटाने की साजिश करके भारत के महान लोकतंत्र को तानाशाही में बदलना चाहते हैं। वैसे भाजपा की कर्नाटक इकाईं ने सोशल मंच एक्स पर पोस्ट किया, संविधान पर हेगड़े की टिप्पणी उनके निजी विचार हैं और पाटा के रूख को प्रातिबिबित नहीं करती है। भाजपा देश के संविधान को बनाए रखने के लिए अपनी अटूट प्रातिबद्धता दोहराती है और हेगड़े से उनकी टिप्पणी के संबंध में स्पष्टीकरण मांगेगी। ——अनिल नरेन्द्र

अरुण गोयल ने इस्तीफा क्यों दिया?

लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने में अब वुछ ही दिन बाकी रह गए हैं, लेकिन उससे पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। कानून मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में इस बात की जानकारी दी गईं कि राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। यह नौ मार्च से प्राभावी हो गया है। गोयल का कार्यंकाल पांच दिसम्बर 2027 तक था और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईंसी) राजीव वुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद वे अगले साल फरवरी में संभवत: सीईंसी का पदभार संभालते। इसी के साथ चुनाव आयोग में इस समय सिर्प मुख्य चुनाव आयुक्त ही बचे हैं। चुनाव आयोग में दो चुनाव आयुक्त और एक मुख्य चुनाव आयुक्त होते हैं। एक चुनाव आयुक्त का पद पहले से ही खाली था तो अब अरुण गोयल के जाने से सिर्प मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार ही बचे हैं। तत्काल यह पता नहीं चल पाया है कि गोयल ने इस्तीफा क्यों दिया? उनका इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब चुनाव आयोग (ईंसी) चुनाव तैयारियों की समीक्षा के लिए देश भर में यात्रा कर रहा था और वुछ दिनों में लोकसभा चुनाव के कार्यंव््राम की घोषणा होने की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में गोयल ने हाल में तमिलनाडु, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रादेश और पािम बंगाल के दौरे किए थे। बंगाल के दौरे से लौटने के बाद गोयल ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार की अगुवाईं में चुनाव आयोग के द्वारा बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। तब एक अधिकारी ने कहा था कि स्वास्थ्य कारणों से गोयल इसमें हिस्सा नहीं ले सके। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर बने नए कानून के अनुसार कानून मंत्री की अध्यक्षता में दो वेंद्रीय सचिवों वाली एक खोज समिति पांच नामों का चयन करेगी। फिर एक चयन समिति नाम को अंतिम रूप देगी। प्राधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति में उनके (प्राधानमंत्री) द्वारा नामित एक वेंद्रीय मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे। विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीपे को लेकर तरह-तरह के सवाल दागकर सियासी गमा बढ़ा दी है। इस्तीपे के पीछे सरकार के दबाव से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार से उनके मतभेद की खबरों के बीच विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। कांग्रोस समेत विपक्षी दलों ने सरकार से जवाब मांगा है कि अरुण गोयल ने मोदी सरकार या मुख्य चुनाव आयुक्त जिसके साथ मतभेद के कारण इतना बड़ा कदम उठाया, जबकि उनका कार्यंकाल अभी चार साल बाकी था और मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की लाइन में थे। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने तो गोयल के इस्तीपे की खबर आने के तत्काल बाद शनिवार रात ही इस पर सवाल उठाए तो एसोसिएशन फार डेमोव््रोटिक रिफाम्र्स ने कहा अरुण गोयल के इस्तीपे से पता चलता है कि वह ऊपर खाते किस दबाव में काम कर रहे थे। कांग्रोस का कहना था क्या वास्तव में स्वतंत्र होकर काम करने के प्रायास में चुनाव आयुक्त या मोदी सरकार के साथ मतभेदों या व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दिया गया है? टीएमसी प्रावक्ता ने कहा कि पद बीच में छोड़ कर इस्तीफा देने के पीछे इस अचानक रहस्य की वजह क्या है? इस्तीफे के कारण का जल्द खुलासा होगा।

Tuesday 12 March 2024

बिहार में लोकसभा व विधानसभा चुनाव साथ होंगे?


बिहार के औरंगाबाद में 2 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने नीतीश कुमार ने जो कहा उसकी खूब चर्चा हुई। नीतीश ने मोदी से कहा था, इधर हम गायब हो गए थे। हम फिर आपके साथ हैं। हम आपको आश्वस्त करते हैं कि अब हम इधर-उधर होने वाले नहीं हैं। हम रहेंगे आप ही के साथ। इसलिए जरा तेजी से यहां वाला काम सब हो जाए। नीतीश की इस बात पर प्रधानमंत्री मोदी समेत मंच के ज्यादातर लोग हंस रहे थे और भीड़ में भी ठहाकों की आवाज आ रही थी। लोगों ने यह बयान नहीं दिया कि नीतीश किस काम को तेजी से करने की मांग कर रहे थे? बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर साल 2005 से नीतीश कुमार जमे हुए हैं। लेकिन साल 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जनता दल युनाइटेड को महज 42 सीटें मिली थीं। नीतीश और उनकी पार्टी जेडीयू इसके पीछे एलजेपी के चिराग पासवान को बड़ी वजह मानते हैं। चिराग ने 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए में रहकर भी जेडीयू के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे। इससे जेडीयू को सीटों का बड़ा नुकसान हुआ था। जानकारों के मुताबिक इन्हीं आंकड़ों में नीतीश कुमार का सबसे बड़ा दर्द छिपा हुआ है। इसी को बेहतर करने की कोशिश में वो महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में वापस आए थे। नीतीश ने इसी मंशा का जिक्र औरंगाबाद में भी मोदी के आगे किया था। माना जाता है कि अब नीतीश की पार्टी का गिरता ग्राफ उन्हें असहज कर रहा है। बिहार के सियासी गलियारों में यह चर्चा लगातार जारी है कि नीतीश कुमार राज्य विधानसभा भंग कर इसी साल होने वाले लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा का चुनाव भी कराना चाहते हैं। बिहार की पिछली सरकार में नीतीश के सहयोगी और उपमुख्यमंत्री रहे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी दावा कर चुके हैं कि नीतीश कुमार विधानसभा भंग करना चाहते थे। विशेषज्ञो के अनुसार महागठबंधन सरकार के दौरान मंत्रिमंडल की अंतिम बैठक में नीतीश कुमार बिहार की विधानसभा को भंग करने का प्रस्ताव लेकर आए थे, जिसे आरजेडी और बाकी सहयोगी दलों ने ठुकरा दिया। दरअसल विधानसभा भंग कर चुनाव कराने में फायदा केवल नीतीश कुमार का हो सकता है। हो सकता है कि उनकी कुछ सीटें बढ़ जाएं। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आरजेडी ही सबसे बड़ी पार्टी बने और कांग्रेस या वामदल भी अपनी सफलता का दोहरा ही लें। माना जाता है कि पटना में विपक्ष की जन विश्वास महारैली ने एनडीए के अंदर सियासत पर भी असर डाला है, नीतीश कुमार के मन में यह हो सकता है कि सहयोगियों के सहारे उनकी विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है। लेकिन नीतीश करीब दो दशक से बिहार की सत्ता पर बैठे हैं और माना जाता है कि राज्य में उनके खिलाफ एंटी इंकंबेसी से सहयोगी दलों को नुकसान हो सकता है। माना जाता है कि नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ने के पीछे यह एक बड़ी वजह थी। इसलिए नीतीश कुमार इसी शर्त पर एनडीए में वापस हुए ताकि बिहार विधानसभा भंग कर लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभा के चुनाव हों। बिहार में विधानसभा और लोकसभा एक साथ कराने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं। मसलन इतने कम समय में दोनों चुनाव संभव नहीं हैं। मौजूदा बिहार विधानसभा के कार्यकाल में अभी डेढ़ दो साल बचे हैं और बहुत से विधायक अभी से चुनाव का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

हर नागरिक को सरकारी फैसले की आलोचना का अधिकार


जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने की आलोचना करने और पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस पर उसके नागरिकों को बधाई देने के आरोपित एक प्रोफेसर के विरुद्ध बंबई हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा, समय आ गया है कि पुलिस तंत्र को भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा के बारे में जागरूक और शिक्षित किया जाए। महाराष्ट्र पुलिस ने वाट्सअप मैसेज पोस्ट करने पर प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के विरुद्ध कोल्हापुर में आईपीसी की धारा-153 ए के तहत एफआईआर दर्ज की थी। इन वाट्सअप मैसेज में प्रोफेसर जावेद ने लिखा था, जम्मू-कश्मीर के लिए पांच अगस्त काला दिन है। 14 अगस्तö पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस की बधाई। जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा, अगर एक नागरिक 14 अगस्त पर पाकिस्तान के नागरिकों को बधाई देता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है, पीठ ने कहा 75 से अधिक वर्षों से हमारा देश लोकतांत्रिक गणराज्य है। लोग लोकतांत्रिक मूल्यों का महत्व जानते हैं। इसलिए यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि ये राष्ट्र विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य या शत्रुता या देश की भावनाओं को बढ़ावा देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के हर नागरिक को सरकार के फैसले की आलोचना करने का अधिकार है। साथ ही कहा कि भारत के किसी व्यक्ति का दूसरे देशों के नागरिकों को उनके स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं देने में कुछ गलत नहीं है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने की वाट्सअप के जरिए आलोचना करने के मामले में एक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के संबंध में बंबई हाईकोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया। महाराष्ट्र पुलिस ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के सबंधं में वाट्सअप पर संदेश पोस्ट करने के लिए प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के खिलाफ कोल्हापुर के एक थाने में मामला दर्ज किया था। उनके खिलाफ साप्रादायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए थे। प्रोफेसर हजाम ने अपने वाट्सअप संदेशों में कहा था, पांच अगस्त जम्मू-कश्मीर के लिए काला दिवस और 14 अगस्त पाकिस्तान को स्वंतत्रता दिवस मुबारक। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइंया की पीठ ने प्रोफेसर जावेद अहमद की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत का संविधान अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसके तहत प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की कार्रवाई और उस मामले में सरकार के फैसले की आलोचना करने का अधिकार है। उन्हें यह कहने का अधिकार है कि वह सरकार के फैसले से नाखुश हैं। पीठ ने कहा कि अगर भारत का कोई नागरिक 14 अगस्त को पाकिस्तान के नागरिकों को शुभकामनाएं देता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। पाकिस्तान 14 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है। लिहाजा यह अदालत हाईकोर्ट के 10 अप्रैल 2023 के फैसले और एफआईआर को रद्द करती है।

Saturday 9 March 2024

कांग्रेस कम सीटों पर लड़कर स्ट्राइक रेट बढ़ाएगी


लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने पहली लिस्ट जारी करके विपक्षी दलों पर दवाब बढ़ा दिया है। खासकर विपक्षी गठबंधन इंडिया और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए यह बड़ा संदेश माना जा रहा है।

भाजपा ने विपक्ष को साफ संदेश देने की कोशिश की है कि चुनाव को लेकर वह पूरी तरह से तैयार है। वह सिर्प जीत का दावा ही नहीं कर रही, बल्कि उम्मीदवारों का ऐलान कर चुनावी तैयारियों का शंखनाद भी कर दिया है। माना जा रहा है कि इससे अब न सिर्प विपक्ष पर दबाव बढ़ गया है कि वह भी जल्द से जल्द गठबंधन में सीट बंटवारे को फाइनल करे और सीटों और उम्मीदवारों का ऐलान करें। कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और पांच राज्यों में आम आदमी पार्टी के साथ तालमेल हो गया है। बिहार से आरजेडी, महाराष्ट्र में एमवीए के बीच, झारखंड में झामुमो और दूसरे दलों के साथ और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ तालमेल होना बाकी है। दावा किया जा रहा है कि महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के सहयोगियों में सीट शेयरिंग का फार्मूला तय हो गया है। इसकी औपचारिक घोषणा भी की जा सकती है। सूत्रों के अनसार फाइनल हुईं सीट बंटवारे के तहत शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) 20, कांग्रेस 18 व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) 10 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। गठबंधन के अन्य सहयोगियों को शिव सेना अपने कोटे से समायोजित करेगी। सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के महाराष्ट्र पहुंचने से पहले ही सीट बंटवारे को लेकर औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। न्याय यात्रा में सहयोगी दलों के नेता भी शामिल होंगे। इतना ही नहीं राहुल गांधी की रैली में भी इंडिया के नेता मौजूद रहेंगे। सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी सीटों के बंटवारे का मामला तय हो गया है। केवल आधिकारिक घोषणा की जानी है। राहुल और अखिलेश यादव के गले मिलने से उत्तर प्रदेश में सीट शेयरिंग का पैसला हो गया है। 63 सीटें समाजवादी पार्टी लड़ेगी और कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस गठबंधन के साथ एक बार फिर यूपी में दो लड़कों की जोड़ी विपक्ष की ओर से भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभालेंगी। सूत्रों का मानना है कि 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पार्टी को यह समझौता इंडियन नेशनल डेवेलेपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के घटक दलों के साथ गठबंधन की वजह से करना पड़ेगा। क्योंकि पार्टी कईं राज्यों में इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। वर्ष 2019 में पार्टी ने 421 सीट पर चुनाव लड़ा था।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने से ज्यादा अहम जीत है। यही वजह है कि पार्टी इंडिया गठबंधन के साथ समझौता करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कांग्रेसी नेता ने कहा कि फसल तो तैयार है, काटने वाला चाहिए। देखा गया है कि कांग्रेस का संगठन अक्सर कमजोर पड़ जाता है और जीती जिताईं बाजी हार जाते हैं। इस समय हमें एक नेता ऐसा लगता है जो कि कांग्रेस के संगठन को मजबूती दे सकता है वह कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिव वुमार हैं।

उन्होंने कईं बार साबित किया है कि वह हार के मुंह से जीत निकाल सकते है। उन्हें लोकसभा चुनाव का इंचार्ज बनाना चाहिए। जैसे मैंने कहा राहुल ने माहौल तो बना दिया है, गठबंधन भी हो गए हैं, पर वोटों को निकालना है। क्या कांग्रेस और महागठबंधन यह कर सकेगा।

——अनिल नरेन्द्र