Saturday, 12 July 2025

पुलवामा हमला:टेरर फंडिंग भी ऑनलाइन

आतंकवादी पिछले कुछ वर्षों से अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देने के लिए पारंपरिक तरीके की बजाय आधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं। खासकर इंटरनेट के जरिए विभिन्न तरह की मदद हासिल करना उनके लिए आसान और सुलभ तरीका बन गया है। वैश्विक आतंकवाद वित्तपोषण निगरानी संस्था एफएटीएफ ने फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और गोरखनाथ मंदिर में हुई 2022 की घटना का हवाला देते हुए गत मंगलवार को कहा कि ई-कामर्स और ऑनलाइन भुगतान सेवाओं का दुरुपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। अपने विश्लेषण में एफएटीएफ ने आतंकवाद को सरकार द्वारा प्रायोजित किए जाने को भी चिह्नित करते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के विभिन्न स्त्राsतों और इस रिपोर्ट में प्रतिनिधिमंडलें के विचार से संकेत मिलता है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था एफएटीएफ की हालिया रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग पहलू की ओर ध्यान खिंचा है। इसमें बताया गया है कि कैसे टेक्नोलॉजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति की जरूरत हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर अमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों का लेन-देन में भी ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। यही नहीं आतंकी बम बनाने की विधि भी इंटरनेट से सीख रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में हुई कई आतंकी हमलों की जांच में इसके प्रमाण भी मिले हैं। इससे साफ है कि ऑनलाइन सेवाओं का दुरुपयोग किस कदर खतरनाक रूप ले चुका है। एफएटीएफ के अनुसार पुलवामा हमले में एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल विस्फोट के प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया गया था। जैश-ए-मुहम्मद ने फरवरी, 2019 में सुरक्षा बलें के काफिले पर आत्मघाती हमला किया था। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए विस्फोट में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा अतांकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। अब वे अपने को इंटरनेट की gदुनिया की ओर ले जा रहे हैं। एफएटीएफ की इस अपडेट रिपोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के दावे पर भी परोक्ष रूप से मुहर लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी अपने हिंसक अभियानों के लिए उपकरण, हथियार, रसायन और यहां तक कि थ्री डी प्रिटिंग सामग्री की खरीददारी भी ऑनलाइन सेवाओं के जरिए कर रहे हैं। यह बात सही है कि ऑनलाइन खरीददारी की व्यवस्था से लोगों को काफी सहुलियत हुई हैं, लेकिन इस सुविधा का उपयोग खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए न हो, इस पर सरकार को कड़ी नजर रखनी है और ऐसे नियम बनाने होंगे जिससे यह ऑनलाइन साइट्स की इस सुविधा का दुरुपयोग न कर सकें और आतंकवाद फैलाने में मदद न कर पाएं। साथ ही ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाले मंचों की भी जिम्मेदारी है कि वे इस तरह की सामग्री की नियमित निगरानी करें, ताकि इसके दुरुपयोग पर रोक सुनिश्चित हो सके। एफएटीएफ का यह खुलासा भी अहम है कि आतंकवादी संगठनों को कुछ देशों की सरकारों से वित्तीय और अन्य मदद मिलती रही है, जिसमें साजो-सामान और सामग्री संबंधित सहायता एवं प्रशिक्षण भी शामिल है। भारत समेत कई देश आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुट प्रयासों पर बल दे रहे हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा देशों द्वारा आतंकियों के वित्त-पोषण से इस पर पलीता लग रहा है। आतंकवाद की इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास करने होंगे। इससे पहले भी हमने देखा कि किस तरह पाक प्रायोजित आतंकी घटनाएं हमारे खिलाफ की जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान आतंकियों का पालन-पोषण कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा कि कैसे इन ई-कामर्स कंपनियों पर पाबंदी लगाई जाए ताकि वे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां बंद करें। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 10 July 2025

राफेल गिरने पर चीन ने फैलाया भ्रम

आपको याद होगा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने भारत के कई विमानों को मार गिराया है। इनमें राफेल, सुखोई और मिग शामिल थे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या भारत के राफेल फाइटर जेट गिरे थे? एक इंटरव्यू में रक्षा सचिव आर के सिंह ने सीएनवीसी-टीवी-18 को कहा कि आपने राफेल्स शब्द बहुवचन में इस्तेमाल किया है। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यह बिल्कुल भी सही नहीं है। पाकिस्तान को ह्यूमन और सैन्य साजो समान दोनों स्तरों पर भारत की तुलना में कई गुना अधिक नुकसान हुआ और 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। वहीं, पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर ने कहा कि भारत से सैन्य संघर्ष के दौरान बाहरी समर्थन मिलने का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है। अब खबर आई है कि ऑपरेशन सिंदूर के दरम्यान हुई झड़पों के बाद निर्मित राफेल जेट विमानों के विषय में संदेह फैलाया गया था। चीन ने इस काम पर अपने दूतावास को तैनात किया था। फ्रांसीसी सैन्य अधिकारियों व खुफिया एजेंसियों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर बताया जा रहा है, फ्रांस के प्रमुख लड़ाकू विमान की प्रतिष्ठा व पी को क्षति पहुंचाने का बीजिंग प्रयास कर रहा था और लगातार कर भी रहा है। फ्रांसीसी खुफिया सेवा की रपट के आधार पर बताया कि चीन के दूतावासों में रक्षा अधिकारियों ने राफेल की पी को प्रभावित करने के लिए अभियान चलाया। इसका उद्देश्य उन राज्यों को राजी करना था, जिन्होंने पहले से ही फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान का आर्डर दे रखा है, विशेष रूप से इंडोनेशिया कि वे राफेल विमान न खरीदे तथा अन्य संभावित खरीददारों को चीन निर्मित विमान एफ-10 और एफ-15 इत्यादि या एफ-35 लड़ाकू विमान चुनने के लिए प्रोत्साहित हों। राफेल समेत अन्य तमाम हथियारों की पी फ्रांस के रक्षा उद्योग का प्रमुख कारोबार है, जिससे पेरिस के दुनिया भर के देशों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसमें चूंकि एशियाई देश भी शामिल हैं। जहां चीन प्रमुख शक्ति बन चुका है। चीन का पूर्वी एरिया में लगातार प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भारत-पाक संघर्ष के दौरान पड़ोसी मुल्क की वायु सेना द्वारा 5 भारतीय विमानों के मार गिराने का छद्म प्रचार किया गया था। जिनमें तीन राफेल बताए गए। फ्रांसीसी अधिकारियों का मानना है कि इस प्रमुख प्रचार से राफेल के प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगाने का प्रयास चीन ने किया। फ्रांसीसी वायुसेना प्रमुख जनरल जेरोम बेलगार ने कहा कि उन्होंने केवल तीन भारतीय विमानों को क्षति होने की ओर इशारा करते हुए सुबूत देखे हैं। जेरोम के मुताबिक इनमें एक राफेल, एक सुखोई और फ्रांस निर्मित एक मिराज 2000 लड़ाकू विमान शामिल हैं। फ्रांस ने 8 देशों को राफेल लड़ाकू विमान बेचे हैं जिनमें से भारत-पाक संघर्ष में इस विमान के गिरने का पहला ज्ञात मामला आया है। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट, कथित राफेल मलबा, छेड़छाड़ की गई तस्वीरों, एआई से बनाए कंटेंट व युद्ध का अनुकरण करने वाले वीडियो गेम वगैरह इस अभियान का हिस्सा था। हमारी राय में तो भारत सरकार को देश को अब बता देना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने विमानों को नुकसान हुआ था और यह कौन-कौन से विमान थे? छिपाने से अफवाह फैलती है और दुश्मनों को भ्रम फैलाने का अवसर मिल जाता है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 8 July 2025

पाकिस्तान तो महज चेहरा, सीमा पर कई दुश्मन थे

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को किस-किस मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह रहस्य अभी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। आपरेशन सिंदूर की परतें खुलने लगी हैं। ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य रणनीति में एक मील का पत्थर बनकर उभरा है। जो खुफिया जानकारी से संचालित युद्ध, वृद्धि पर नियंत्रण और तकनीकी तत्परता के बारे में बहुमूल्य सबक प्रदान करता है, यह बात डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही हैं। पावार को न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजी पर फिक्की के एक कार्पाम में बोलते हुए जनरल सिंह ने इस ऑपरेशन को भारत की एकीकृत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए सही समय पर संघर्ष को रोकने के लिए तैयार किया गया एक मास्टरली स्ट्रोक बताया। पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना रणनीतिक वृद्धि युद्ध शुरू करना आसान है, लेकिन इसे नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है। फिक्की के कार्पाम को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन की भूमिका पर बात की। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 5 साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है। सिंह का कहना है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान के साथ चीन की तो बड़ी भूमिका थी ही पर इस दौरान तुर्कीये की पाकिस्तान को दी गई सैन्य मदद का भी पा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन इस्तेमाल किए गए। जो तुर्किये से आए थे। वो कहते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कुछ सबक है जो मैं जरूरी समझता हूं बताना। सबसे पहले एक सीमा पर दो दुश्मन नहीं थे। हमने सिर्फ पाकिस्तान को तो सामने देखा, लेकिन दुश्मन असल में दो थे, बल्कि अगर कहें तो तीन या चार भी थे। पाकिस्तान तो सिर्फ सामने दिखने वाला चेहरा था। हमें चीन से (पाकिस्तान को) हर तरह की मदद मिलती दिखी और ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से पाकिस्तान की हर क्षेत्र में मदद करता रहा है। उनका कहना है एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो ये कि वो अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की लाइव लैब उसे मिल गई हो। इसके अलावा तुर्कीये ने भी बहुत अहम भूमिका निभाई, जो पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा था। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ उनके प्रशिक्षित लोग भी थे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक ये है कि कम्युनिकेशन निगरानी और सेना नागरिक तालमेल। इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब डीजीएमओ लेवल की बातचीत हो रही थी, तब पाकिस्तान कह रहा था कि हमें मालूम है कि आपकी एक यूनिट पूरी तरह तैयार है। कृपा इसे पीछे कर लें। यानि चीन उन्हें लाइव इनपुट दे रहा था। इस मामले में हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। मैंने इलेक्ट्रानिक वार फेयर की बात की और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत भी बताई। लेकिन हमारे आबादी वाले इलाकों की रक्षा भी जरूरी है। जहां तक बाकी बात है, हमारे पास वो सहूलियते नहीं है जो इजरायल के पास है। वहां आयरन डोम जैसा सिस्टम है और कई एयर डिफेंस फीचर हैं। हमारे देश का दायरा बहुत बड़ा है तो इस तरह की चीजों पर बहुत पैसा लगता है इसलिए हमें सैंसेटिव हल ढूंढने होंगे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक मिला कि हमारे पास मजबूत और सुरक्षित सप्लाई चेन होनी चाहिए। उन्होंने इसे सोच के नजरिए से समझाते हुए कहा कि जो उपकरण हमें इस साल जनवरी या पिछले साल अक्टूबर-नवम्बर तक मिलने चाहिए थे, वो वक्त पर नहीं पहुंच सके। मैंने ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को बुलाया था और पूछा था कि कितने लोग तय समय पर उपकरण दे सकते हैं। तो कई लोगों ने हाथ उठाए। लेकिन एक हफ्ते बाद जब फिर से बात की, तब कुछ भी सामने नहीं आया। इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि डिप्टी चीफ आर्मी स्टॉफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने सार्वजनिक मंच से वही बात साफ कर दी है जो लम्बे वक्त से चर्चा में थी। उन्हेंने एक्स पर लिखा और बताया कि किस तरह चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स की असाधारण तरीके से मदद की। यह वही चीन है जिसने पांच साल पहले लद्दाख में यथास्थिति पूरी तरह बदल दी थी। जनरल सिंह ने देश को चेता दिया है कि अगले संघर्ष में भारत को फिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 5 July 2025

ईरान का मोसाद से बदला

इजरायल के ईरान पर हमले की शुरुआत के बाद सामने आई रिपोर्ट्स से स्पष्ट संकेत मिला कि युद्ध का मोर्चा आसमान में नहीं बल्कि जमीन में भी पहले से ही खुल चुका था। काफी समय से ईरान में गहरी खुफिया और ऑपरेशन घुसपैठ के जरिए इजरायल में तैयारी कर रहा था। हालांकि, ईरानी अधिकारी पहले भी ये आशंका जता चुके हैं कि इजरायल ईरानी सुरक्षा बलों में घुसपैठ कर सकता है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इजरायल आमतौर पर मोसाद के कामकाज पर टिप्पणी नहीं करता और ईरान में चली रही कार्रवाईयों में दूसरी खुफिया एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं। फिर भी ऐसा माना जाता है कि मोसाद ने ईरानी जमीन पर लक्ष्यों की पहचान और ऑपरेशनों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ इजरायली अधिकारियों की टिप्पणियों से साफ होता है कि ईरान के भीतर एंटी-सबमरीन सिस्टम, मिसाइल गोदाम, कमांड सेंटर्स और चुनिंदा टॉप मिलिट्री और साइंटिस्टों को निशाना बनाकर एक साथ और बेहद सटीक हमले किए गए। ये हमले उन खुफिया गतिविधियों के जरिए मुमकिन हो पाए, जो काफी समय से ईरान के अंदर सक्रिय थीं। इजरायल के हमलों ने न सिर्फ ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि देश के भीतर उनकी खुफिया क्षमताओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया। उधर इजरायल के साथ हाल के संघर्ष के बाद ईरान में गिरफ्तारियों और मौत की सजा देने का मोसाद से बदला लेने का सिलसिला शुरू हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि इजरायल के एजेंटों ने ईरानी खुफिया सेवाओं में अभूतपूर्व ढंग से घुसपैठ कर ली है। इन अधिकारियों को इस बात का शक है कि ईरान के हाई प्रोफाइल नेताओं की जिस तरह से हत्या हुई है, उसमें इजरायली सेना को दी खुफिया एजेंटों से मिली जानकारियों का हाथ रहा होगा। इजरायल ने हाल के संघर्ष में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कई सीनियर कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी। ईरानी अधिकारियों ने इजरायल के लिए जासूसी करने के आरोप में तीन लोगों को फांसी दे दी है। तेहरान ने संघर्ष विराम के एक दिन बाद जहां 3 मोसाद जासूसों को फांसी दी वहीं सेना ने 700 से अधिक इराकी संबंध रखने वाले जासूसों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा ईरान ने यह भी कहा है कि सुरक्षा एजेंसियें ने हाल के हफ्तों में तेहरान और अन्य शहरों में मोसाद एजेंटों द्वारा संचालित कई भूमिगत ड्रोन सुविधाओं को भी नष्ट कर दिया है। इन तीन मोसाद एजेंटों को ईरानी शहर उरमिया में फांसी दी गई। ईरानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को बरकरार रखा जिसके बारे में उनका कहना है कि यह व्यापाक कानूनी कार्रवाई के बाद हुआ था। तीनों लोगों की पहचान इदरीस अली, आजाद शोजाई और रसूल अहमद रसूल के रूप में हुई है। उन पर आरोप था कि तीनों लोगों ने इजरायल की मोसाद के सहयोग करके प्रतिष्ठित ईरानी हस्तियों के लिए ईरान के अंदर ही बम और विध्वंस के सामान की तस्करी की। ईरानी टीवी रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायिक रिकार्ड बताते हैं कि इन व्यक्तियों ने पड़ोसी देश में एक प्रमुख मोसाद एजेंट के माध्यम से पेय पदार्थों की तस्करी की और तदनुसार किसी ईरानी व्यक्ति की हत्या कर सकते थे। जैसा मैंने कहा ईरान ने मोसाद से बदला लेना शुरू कर दिया है और घर के अंदर दुश्मनों की सफाई शुरू कर दी है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 3 July 2025

ईरान और आईएईए के बीच तनातनी

ईरान और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी आईएईए के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने भरोसे की कमी और बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के डायरेक्टर जनरल रफाएल ग्रोसी की संभावित यात्रा से साफ इंकार कर दिया। अरागची ने यह भी साफ किया कि ईरान एक नया कानून लागू करने जा रहा है, जिसमें खास शर्तें पूरी होने तक आईएईए से सहयोग रोकने की बात है। उधर, ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ नाराजगी को देखते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने इसकी निंदा की है और आईएईए के काम का खुलकर समर्थन किया। आईएईए के लिए ईरान का यह सख्त रुख उसके परमाणु ठिकानों पर हुए इजरायल और अमेरिका के हमलों की प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिससे आगे परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ी निगरानी और ज्यादा पेचीदा हो सकती है। आईएईए प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने 24 जून को ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम की घोषणा के बाद अब्बास अरागची से मिलने और आईएईए-ईरान की बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने 26 जून को सरकारी चैनल आईआरआईएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा ः इस वक्त हमारा बिल्कुल भी कोई इरादा नहीं है कि हम रफाएल ग्रोसी को बुलाएं। वह हमारे परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इजरायल के हमलों से हुए ऩुकसान का आकलन करना चाहते हैं। उन्होंने कहा ग्रोसी ने अपनी रिपोर्ट में ईमानदारी से काम नहीं लिया। जब हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ तब एजेंसी ने उस हमले की निंदा तक नहीं की। अरागची ने यह भी बताया कि ईरान ने आईएईए के साथ सहयोग रोकने के लिए एक नया कानून पारित किया है। इस मामले पर एक विधेयक संसद से पास हुआ, गार्डियन काउंसिल से मंजूरी भी मिल गई है और अब यह कानून बन चुका है, जिसे हमें मानना ही पड़ेगा। अमेरिका ने ईरान में आईएईए प्रमुख के खिलाफ उठ रही आवाजों पर सख़्त रुख़ अपनाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा-ईरान में आईएईए के महानिदेशक रफाएल ग्रोसी की गिरफ्तारी और फांसी की मांगें अस्वीकार्य हैं और इनकी निंदा की जानी चाहिए। हम ईरान में आईएईए के अहम जांच और निगरानी काम का समर्थन करते हैं। बता दें कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी आईएईए संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जिसे दुनिया के एटम्स फॉर पीस एंड डवेलपमेंट के नाम से भी जाना जाता है। यह परमाणु क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मुख्य केंद्र है, जो अपने सदस्य देशों और दुनियाभर के कई साझेदारों के साथ मिलकर परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, भरोसेमंद और शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। 2018 में अमेरिका के इस संगठन से बाहर होने के बाद और नए प्रतिबंधों के बाद ईरान ने समझौते की शर्तों का पालन कम कर दिया। उसने यूरेनियम संवर्धन की सीमा बढ़ा दी। अमेरिका के ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी के बाद अब यह संभावना तय है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा और जल्द ही हमें यह जानकारी मिल सकती है कि ईरान अब परमाणु शक्ति बन गया है और जिस दिन यह घोषणा हुई उसी दिन से पूरी दुनिया की राजनीति बदल सकती है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 1 July 2025

भारत में एफ-35बी का उतरना रहस्यमय

केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर कुछ दिन पहले शनिवार के दिन रात एक अत्याधुनिक ब्रिटिश स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 बी की इमरजैंसी लैंडिंग ने न सिर्फ हमारी सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अटकलों का बाजार भी गर्म कर दिया। यह वहीं एफ-35 बी है जिसे अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है और जो नाटो देशों का राजनीतिक हथियार माना जाता है। यह अमेरिका का सबसे आधुनिक पांचवीं जेनरेशन का एडवांस जैट फाइटर है, जिसे अमेरिका भारत को बेचने का प्रयास व दबाव डाल रहा है। लैंडिंग का कारण ः ईंधन या तकनीकी गड़बड़ी या फिर भारत की जासूसी? शुरुआती रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि विमान का ईंधन खत्म होने के कारण इसे लैंडिंग करनी पड़ी। लेकिन बाद में सामने आया कि हाइड्रोलिक सिस्टम में गंभीर खराबी भी आ गई थी और यह तकनीकी गड़बड़ी इतनी गंभीर थी कि अब तक विमान उड़ान नहीं भर सका है और अभी भी तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर खड़ा है। रायल नेवी के युद्धपोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स से रातोंरात विशेषज्ञों को हेलीकॉप्टर के जरिए भेजा गया ताकि मरम्मत तुरन्त शुरू हो सके। लैंडिंग के बाद विमान से एक पल के लिए भी दूर नहीं होना चाहता पायलट। जब तकनीकी की टीम नहीं पहुंची वह एयरसाइड पर ही विमान के पास एक कुर्सी पर बैठा रहा। इसी दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटिड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ने विमान को ट्रैप करके उसकी पहचान कर ली। इस एफ-35 बी को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग साजिश की थ्योरी चल रही है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों और वेरिफाइड अकांट्स का कहना है कि यह भारतीय वायु सुरक्षा प्रणाली की परख भी हो सकती हैö जैसे यह देखना कि भारत के राडार इस स्टेला विमान को पकड़ सकते हैं या नहीं? विशेषकर जब तक भारत में हाल ही में आपरेशन सिंदूर के तहत चीन और पाकिस्तान के पास आए ड्रोन और मिसाइलों को रोककर अपनी एयर डिफेंस क्षमता का प्रदर्शन किया है। क्या इमरजेंसी थी या? कोई रणनीतिक योजना? इस सवाल का कोई आधिकारिक जवाब अब तक नहीं मिला है। लेकिन भारत की सतर्कता ने एक बात तो साफ कर दी कि भारतीय एयरफोर्स और एटीसी की प्रतिािढया तेज, सटीक और पेशेवर थी। ब्रिटिश नौसेना पहले जैट को हैंगर में नहीं ले जाना चाहती थी। उन्हें डर था जैट की तकनीकी जानकारी दूसरे लोग देख सकते हैं। दो सप्ताह इंकार के बाद ब्रिटेन ने आखिरकार फंसे विमान को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के हैंगर में शिफ्ट करने की सहमति दे दी। ब्रिटिश नेवी को डर है कि कहीं भारत या दूसरे मित्र देश (रूस) जैट की खास तकनीक को न देख सकें और उसे एनालाइन करके कापी न कर लें। एफ-35बी पांचवीं पीढ़ी का अमेरिकी निर्मित रटेल्स फाइटर जेट है और सबसे उन्नत स्टेन्थ फाइटर जेट है। इतिहास का सबसे महंगा फाइटर जेट प्रोग्राम है। एफ-35बी मल्टी रोल वाला विमान है और ये हवाई, जमीनी जंग में मदद और इलैक्ट्रोनिक युद्ध में महारत रखता है। ये इलैक्ट्रानिक युद्ध, खुफिया जानकारी जुटाने, हवा से जमीन और एयर टू एयर में एक साथ मिशन चलाने की क्षमता रखता है। इसके सैंसर से जमा हुई जानकारी अपने कमांड सेंटर को सुरक्षित भेज सकता है। - अनिल नरेन्द्र

Saturday, 28 June 2025

इजरायल-ईरान युद्ध के क्या निकले नतीजे

इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग के क्या नतीजे निकले? इस जंग में तीन प्रमुख देश शामिल थेö इजरायल, ईरान व अमेरिका। इसके तीन ही प्रमुख किरदार थे... अयातुल्ला अली खामेनेई, बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रंप। अगर हम किरदारों की बातें करें तो सबसे बड़े हीरो रहे अयातुल्ला खामेनेई। न सिर्फ उन्होंने इजरायल को उनके इतिहास में पहली बार ऐसी मार मारी की उसे अपने असितत्व को बचाने के लिए ट्रंप के आगे भीख मांगनी पड़ी। बता दें कि इजरायल ने 12 दिन के इस युद्ध को दो उद्देश्यों से शुरू किया था। पहला ः ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म करा जाए। दूसरा उद्देश्य था कि ईरान से अयातुल्ला रेजीम को खत्म करके अपने पिठ्ठओं को बैठाना। इजरायल दोनों मामलों में नाकाम रहा। ईरान ने इजरायल सेना पर तबाड़तोड़ जवाबी हमला किया कि उसके अस्तित्व पर ही खतरा हो गया और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ट्रंप की शरण में जाना पड़ा। रहा सवाल सत्ता परिवर्तन का तो ईरान पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हो गया और मजबूत हो गया। इजरायल की मध्य पूर्व में बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो गई। और जहां तक परमाणु कार्पाम रोकने का सवाल है बेशक अमेरिका ने ईरान के कुछ परमाणु संयंत्रों पर जबरदस्त हमले किए पर वह ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म नहीं कर सके। ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। अमेरिकी पेंटागन से जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है अमेरिका और इजरायल के हमले से ईरान का परमाणु कार्पाम पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि ट्रंप इसे फेक न्यूज कहते हैं। अब बात करते हैं इजरायल और नेतान्याहू की। नेतान्याहू ने इजरायल को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है जितना उसको 70-75 वर्षों के इतिहास में किसी ने नहीं पहुंचाया। इसने इजरायल के मध्य पूर्व में न केवल धौंस को ही खत्म कर दिया बल्कि दुनिया को यह साबित कर दिया कि वह अभेद देश नहीं, उस पर भी हमले हो सकते हैं। इजरायल की चौधराहट हमेशा के लिए खत्म हो गई है। नेतान्याहू चले तो खामेनेई को हटाने कहीं खुद को न हटना पड़ जाए? अब बात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। वह बार-बार झूठे साबित हो चुके हैं पर उनके सीज फायरों (युद्ध विराम) की घोषणाएं भी मजाक बनकर रह गई हैं। उल्लेखनीय है कि संघर्ष के 12वें दिन ट्रंप के सीजफायर ऐलान के कुछ ही घंटों में इजरायल और ईरान ने फिर से हमले करने शुरू कर दिए। यह खुशी की बात है कि फिलहाल युद्ध विराम लागू है, कितने दिनों तक रहता है यह कहना मुश्किल है। जहां तक ट्रंप के सीजफायर की बात है तो आपरेशन सिंदूर संघर्ष को रुकवाने का श्रेय वह अब तक 17 बार ले चुके हैं जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसे ही ट्रंप ने रूस-पोन के युद्ध विराम की झूठी घोषणा की थी किन्तु यह संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी सीजफायर घोषणाओं को भी नोबेल पुरस्कार के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हैं। हालांकि तथ्य यह है कि नोबेल पुरस्कार तत्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। कुल मिलाकर ईरान और अयातुल्ला का पलड़ा सबसे भारी रहा। मैंने लिखा था कि ईरान बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा यह सत्य होता जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र