Saturday 27 April 2024

ननद-भाभी की सियासी प्रतिष्ठा दांव पर

महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट पर सियासी लड़ाई दो दलो में बंट चुके पवार परिवार के बीच है। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले तो अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार आमने-सामने है। लोकसभा चुनाव में बारामती की जनता को रिश्ते में ननद और भाभी लगने वाली दो उम्मीदवारों में से किसी एक को संसद पहुंचाना है। क्षेत्र में एक ही परिवार के दो लोगों के बीच कांटे की टक्कर में दूसरे उम्मीदवार की मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। चुनाव लड़ने के लिए कुल 51 लोगों ने नामांकन किया था और 46 का नामांकन वैध माना गया है। ऐसे में मतदाताओं का वोट बिखरता है तो राजनीतिक स्थिति रोचक हो सकती है। पवार परिवार की परम्परा रही है कि बारामती सीट पर चुनाव प्रचार का अंत बारामती शहर में मौजूद क्रिश्चियन कालोनी के मैदान में होता था। यहां पूरा पवार परिवार जुटता था, यहीं भोजन करता था और इसके बाद मैदान में ही मौजूद भीड़ को संबोधित करते थे। चार दशक में ऐसा पहली बार हुआ जब इस चुनाव में पवार परिवार की यह परम्परा टूट गई है। अजीत पवार ने रैली के लिए मैदान को 5 मई के लिए बुक कर लिया है। वहीं सुप्रिया सुले रैली के लिए नई जगह तलाश रही हैं। सीट पर सात मई को चुनाव है और पांच मई को प्रचार का अंतिम दिन है। मैदान पर चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सभा की शुरुआत शरद पवार ने उस वक्त की थी जब अजित पवार राजनीति में नहीं आए थे। पवार परिवार प्रचार की शुरुआत करन हेरो गांव से करता है। इसकी शुरुआत भी शरद पवार ने 1967 में की थी। इस बार भी दोनों गुट यहीं से शुरुआत करेंगे। शरद पवार के भतीजे अजित पवार बारामती से विधायक हैं, राजनीतिक इतिहास के अनुसार शरद पवार बारामती से पहला लोकसभा चुनाव 1984 में जीते थे। 1991 में इस सीट से अजीत पवार जीते, लेकिन चाचा को सीट से सांसद बनाने के लिए उन्होंने अपनी सीट छोड़ दी थी। इसके बाद शरद पवार 2004 तक यहीं से जीतते रहे। बाद में पिता की सीट को सुप्रिया सुले ने 2009 में संभाला। वह लगातार तीन बार सीट से सांसद रह चुकी हैं। चुनाव आयोग के अनुसार बारामती सीट पर कुल 19 बार चुनाव हुए हैं। इसमें चार उपचुनाव हैं। शरद पवार इस सीट से कई बार जबकि उनकी बेटी सुप्रिया सुले तीन बार सांसद चुनी गई हैं। शरद पवार ने एनसीपी की स्थापना 10 जून 1990 को की थी, जो अब अजीत गुट के पास है, इससे पहले शरद पवार कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से जीतते थे। 1977 का चुनाव जनता पार्टी ने जीता था। इसके बाद से कांग्रेस और एनसीपी का ही इस सीट पर एकछत्र राज है। सुप्रिया सुले का जन्म 30 जून 1969 को पुणे में हुआ था। मुंबई के जयहिंद कालेज से माइक्रोबायोलिजी में बीएससी हैं। 60 वर्षीय सुनेत्रा पवार अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रही हैं। वह एनसीपी की पूर्व नेता पदमा सिंह पाटिल की बेटी हैं। एक दौर था जब पाटिल को शरद पवार का सबसे करीबी माना जाता था। 4 जून को पता चलेगा कि ननद-भाभी की इस लड़ाई में बाजी कौन मारता है? -अनिल नरेन्द्र

भाजपा की 44 दिन पहले ही निर्विरोध जीत

गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर सोमवार को भाजपा के मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित हुए। बसपा प्रत्याशी प्यारे लाल भारती और चार निर्दलीय सहित कुल आठ उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया। गुजरात में पहली बार कोई प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुआ है। 1984 से सूरत सीट पर भाजपा जीत रही है। इस सीट पर 7 मई को वोटिंग होनी थी। कांग्रेsस के प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी और डमी प्रत्याशी का नामांकन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में त्रुटि के चलते रविवार को खारिज कर दिया गया था। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार सूरत में भाजपा की निर्विरोध जीत के लिए कांग्रेsस प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी ने ही भाजपा से हाथ मिला लिया था। भाजपा की ओर से कुंभाणी को ऑपरेशन निर्विरोध की क्रिप्ट मिली। इसके अनुसार ही नीलेश कुंभाणी ने कांग्रेस की प्रदेश इकाई को अंधेरे में रखते हुए पैंतरें चले। कुंभाणी ने अपने नामांकन पत्र के प्रस्तावकों में कांग्रेस कैडर कार्यकर्ताओं, मेंबर की बजाए अपने रिश्तेदारों और करीबियों को रखा। पुंभाणी ने अपने पर्चे में प्रस्तावक बहनोई जगदीयां सावलिया और बिजनेस पार्टनर ध्रविन धामेलीया और रमेश पोलरा को बनाया। नीलेश कुंभाणी ने कांग्रेस पार्टी के डमी प्रत्याशी सुरेश पडसाला का प्रस्तावक भी अपने भांजे भौतिक कोलडिया को बनवाया। पर्चा दाखिल करते वक्त भी कुंभाणी किसी भी प्रस्तावक को चुनाव अधिकारी के सामने नहीं ले गए। चारों प्रस्तावकों ने हस्ताक्षर फर्जी होने का शपथ पत्र दे दिया और खुद भूमिगत हो गए। सभी को कारण बताओ नोटिस जारी करने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। कोई भी सामने नहीं आया। इसके बाद कुंभाणी और डमी प्रत्याशी सुरेश पडसाला का पर्चा खारिज हो गया। सूरत में भाजपा के इस आपरेशन निर्विरोध का एपिक सेंटर बना सूरत का फाइव स्टार होटल ली-मैरेडियन, यहां से 24 घंटे तक ऑपरेशन निर्विरोध की कार्रवाई का संचालन हुआ। ये कवायद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की सीधी निगरानी में हुई। सूरत की जीत 400 पार के लक्ष्य की पहली जीत है। हम इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समर्पित करते हैं यह कहते हैं सीआर पाटिल, गुजरात भाजपाध्यक्ष। उधर कांग्रेsस नेता राहुल गांधी ने कहा ः तानाशाह की असली सूरत फिर देश के सामने है। मैं फिर कह रहा हूं, यह चुनाव देश और संविधान को बचाने का है। जनता से अपने नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहब अबंडेकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है। राहुल ने लिखा, मैं एक बार फिर कह रहा हूं - यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव हैं, संविधान की रक्षा का चुनाव है। वहीं जयराम रमेश ने क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि लोकतंत्र खतरे में है। उन्होंने एक्स पर लिखा सूरत जिला अधिकारी ने 7 मई 2024 को मतदान से लगभग 2 सप्ताह पहले ही 22 अप्रैल 2024 को सूरत लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार को निर्विरोध जिता दिया गया।

Thursday 25 April 2024

हम संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं


इंडिया गठबंधन ने रविवार को रांची में आयोजित उलगुलान न्याय रैली में अपनी ताकत और एकजुटता दिखाई। एक मंच पर इकट्ठा हुए गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने इस बार के लोकसभा चुनाव को संविधान और लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बताते हुए केन्द्र की मौजूदा सत्ता को बदलने की अपील की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आतंकित करने की कोशिश करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) नेता ने विपक्षी गठबंधन इंडिया से अलग होने के बजाय जेल जाना पसंद किया। इससे पहले सतना में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दावा किया कि यदि मोदी-शाह सरकार फिर से सत्ता में आई तो देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। झारखंड मुfिक्त मोर्चा की मेजबानी में आयोजित रैली में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने अपने पति हेमंत सोरेन का जेल से भेजा संदेश पढ़ा। हेमंत सोरेन ने अपने संदेश में कहा, उन्हें बेबुनियादी आरोपों में ढाई महीनों से जेल में बंद करके रखा गया है। आजादी के बाद ये पहली बार है जब विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव के ठीक पहले जेल में डाला जा रहा है। लेकिन हम जेल से डरने वाले नहीं हैं। हेमंत सोरेन ने कहा हमने केन्द्र से अपना हक मांगा तो उसके बदले में हमारे साथ यह सलूक हुआ। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने कहा कि विपक्षी गठबंधन इंडिया भाजपा की तानाशाही के खिलाफ लड़ेगा और जीतेगा। सुनीता ने रैली में कहा, वे मेरे पति अरविंद केजरीवाल को मारना चाहते हैं। उनके भोजन पर कैमरे से निगरानी रखी जा रही है। उन्होंने दावा किया है कि उनके पति को जन सेवा का काम करने के लिए जेल में डाल दिया गया और उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं किया जा सका। हम तानाशाही के खिलाफ लड़ेंगे और जीतेंगे। जेल के ताले टूटेंगे और अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन जेल से छूटेंगे। यूपी के पूर्व सीएम सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि इस बार जनता तानाशाही ताकतों के खिलाफ वोट करेगी। हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के साथ केन्द्र सरकार ने अन्याय किया है। इस अन्याय का बदला जनता एक-एक वोट से लेगी। उन्होंने चुनाव को लोकतंत्र और संविधान की लड़ाई बताया। बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि केन्द्र की सरकार बिहार से लेकर झारखंड और दिल्ली तक विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल रही है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो संविधान बनाया था, आज उस पर खतरा मंडरा रहा है। उलगुलान महारैली में मंच पर दो कुर्सियां हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के लिए खाली रही। इसकी चर्चा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी की। तेजस्वी यादव ने कहा कि यहां रैली में जहां तक नजर जा रही है, जनसैलाब नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि यह भीड़ बता रही है कि झारखंड ने मूड बना लिया है। भाजपा भगाओ देश का लोकतंत्र बचाओ।

-अनिल नरेन्द्र

सपा और बसपा क्या मौका तलाश रही हैं?


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ ठाकुर बिरादरी के नेताओं का गुस्सा दिख रहा है। पार्टी ने इस बिरादरी के उम्मीदवारों को उम्मीद से कम टिकट दिए हैं। इससे ठाकुरों में नाराजगी की खबरें आ रही हैं। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। अखबार लिखता है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को इस नाराजगी में अपने लिए मौका नजर आ रहा है और वे ऊंची जातियों के उम्मीदवारों से संपर्क बढ़ाने की कोशिश में लग गई है। खबर के मुताबिक रविवार को गाजियाबाद में मायावती ने एक रैली में भाजपा पर क्षत्रियों (ठाकुर, राजपूत) की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने टिकट बंटवारे में हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। अखबार लिखता है कि गाजियाबाद के बीएसपी उम्मीदवार नंद किशोर पुंडीर ठाकुर हैं जबकि बागपत के बीएसपी उम्मीदवार प्रवीण बंसल गुर्जर हैं। मायावती ने कहा यूपी की ऊंची जातियों में क्षत्रिय समुदाय के लोगों की आबादी काफी ज्यादा है और ये देखना निराशाजनक है कि इस बिरादरी को समर्थन देने का दावा करने वाली भाजपा ने उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन्हें काफी कम टिकट दी है। उन्होंने कहा गाजियाबाद में हमने क्षत्रिय उम्मीदवार को टिकट दिया है। पहले हमने पंजाबी कैंडिडेट उतारा था लेकिन फिर हमें लगा कि उनकी संख्या लखीमपुर खीरी में ज्यादा है इसलिए वहां हमने पंजाबी सिख उम्मीदवार को टिकट दिया। मायावती ने कहा कि वो क्षत्रिय समुदाय की उन महापंचायतों का समर्थन करती हैं जो उन पार्टियों का समर्थन करने की बात कर रही हैं जो ठाकुर उम्मीदवार उतार रही हैं। मायावती का ये बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने अपनी रैलियों में ठाकुरों की मौजूदगी पर टिप्पणी की थी। उन्होंने नोएडा की एक रैली में कहा था मैं उनके सिर पर सम्मान की पगड़ी देख रहा हूं जो लोग पारंपरिक रूप से दूसरे दलों के लिए वोटिंग करते थे, वे आज यहां हैं। मैं उनकी राजनीतिक चेतना के प्रति आभारी हूं। इस बार वो साइकिल का समर्थन करने जा रहे हैं। बीएसपी ने गौतमबुद्ध नगर में क्षत्रिय समुदाय के राजेन्द्र सोलंकी पर दांव लगाया है। सोलंकी ने कहा है कि इस सीट पर 4.5 लाख वोटर हैं। बीएसपी उनसे जुड़ने की पूरी कोशिश कर रही है। पिछले शुक्रवार को यूपी की जिन आठ सीटों पर वोटिंग हुई उनमें सिर्फ एक ठाकुर उम्मीदवार कुंवर सर्वेश सिंह को मुरादाबाद सीट पर भाजपा ने टिकट दिया था। मतदान के बाद सर्वेश सिंह का निधन हो गया था। 26 अप्रैल को जिन आठ सीटों पर वोटिंग होगी उनमें भाजपा की तरफ से कोई भी ठाकुर उम्मीदवार नहीं है। इन उम्मीदवारों में दो ब्राह्मण, दो वैश्य, एक गुर्जर और एक जाट बिरादरी के उम्मीदवार हैं। पश्चिमी यूपी में ठाकुर बिरादरी के जिस बड़े नेता का इस बार भाजपा की ओर से टिकट काटा गया। उनमें भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वीके सिंह शामिल हैं। भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि पार्टी के बीच असंतोष का अहसास हो गया है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता ठाकुरों को मनाने में जुट गए हैं ताकि ठाकुरों की वोटों का नुकसान कम से कम हो।

Tuesday 23 April 2024

पप्पू यादव ने मुकाबले को रोचक बनाया


पप्पू यादव की निर्दलीय उम्मीदवार मौजूदगी ने पूर्णिया चुनाव को रोचक बना दिया है। सोमवार को नाम वापसी की अंतिम तारीख थी। लेकिन पप्पू यादव ने अपना पर्चा वापस नहीं लिया। अब अपने चुनाव निशान कैंची लेकर घूम रहे हैं। कहते हैं कि इसी की धार से महागठबंधन और राजग उम्मीदवारों की जीत को काटूंगा। पूर्णिया की देवतुल्य जनता बतौर निर्दलीय प्रत्याशी एक बार फिर मुझे संसद भेजेगी। इससे राजद और कांग्रेस दोनों के नेताओं में तनाव है। पप्पू यादव कहते हैं कि पूर्णिया से मुझे असीम प्यार है और मुझे एक बच्चे की तरह पूर्णिया के लोग देखते हैं। यहां हिन्दू-मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं है। यही कारण है कि सभी मुझे बेहद प्यार करते हैं और मेरे दिल में भी पूर्णिया बसा है। यहां से इंडिया गठबंधन की बीमा भारती ने पर्चा भरा है। वे राजद उम्मीदवार हैं। पांच दफा विधायक रही बिहार में मंत्री रहीं। इस दफा वे रुपौली की विधायक सीट जद (एकी) की टिकट पर जीती थीं। उससे इस्तीफा देकर राजद की लालटेन थाम ली और राजद ने सीट बंटवारे के पहले ही इन्हें चुनाव चिह्न दे दिया था। ये भी चुनावी रण में डटी हैं। इनका पर्चा दाखिल कराने तेजस्वी यादव खुद आए थे। बताते हैं कि हालांकि लालू प्रसाद और राहुल गांधी के समझाने पर भी निर्दलीय तौर पर पप्पू यादव ने पर्चा दाखिल कर दिया। अब दिक्कत यह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बीमा भारती के लिए प्रचार के लिए जनसभा करने का न्यौता दिया गया है। क्या राहुल राजद उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने आते हैं या नहीं यह देखना है। इन दोनों का मुकाबला जद (एकी) उम्मीदवार व निवर्तमान सांसद संतोष कुशवाह से है। पूर्णिया के मतदाता उन्हें फिर निर्वाचित करती है या नहीं? लेकिन मुकाबला तिकोना होने की संभावना है। वैसे 1999 वाली स्थिति भी पूर्णिया दोहरा सकती है। इस चुनाव में पप्पू यादव ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत हासिल की थी। वैसे बीमा भारती के पति अवधेश मंडल आपराधिक छवि के हैं। इनके खिलाफ विभिन्न थानों में एक दर्जन मामले दर्ज हैं। वहीं पप्पू यादव की छवि भी दबंग नेता की रही है। वामदल विधायक अजीत सरकार की हत्या मामले में सजा होने की वजह से 2009 का चुनाव नहीं लड़ सके थे। 2013 में ऊपरी अदालत से ये बरी हो गए थे। पप्पू यादव के मैदान में रहने से पूर्णिया का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। सबसे ज्यादा दुविधा कांग्रेस को है जिसने पप्पू को यहां से लड़ाने के लिए वादा किया था। यही नहीं पप्पू यादव ने अपनी पूरी पार्टी को भी कांग्रेस में मिला दिया था। राजद को भी कांग्रेस की मजबूरी समझनी चाहिए थी और पूर्णिया की सीट कांग्रेस को दे देनी चाहिए थी। खैर, जो होना था सो हो गया। अब देखें कि ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

राज वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं दिग्गी राजा


दिग्विजय सिंह देश के उन गिने-चुने नेताओं में हैं जो सियासत में पांच दशक से ज्यादा वक्त गुजार चुके हैं। राजनीति में दिग्गी राजा के नाम से मशहूर दिग्विजय सिंह की उम्र 77 वर्ष है। इस आयु में भी राजगढ़ लोकसभा सीट से बतौर कांग्रेsस उम्मीदवार पैदल गांव-गांव प्रचार कर रहे हैं। उनकी फिटनेस की सिर्फ समर्थक ही नहीं, बल्कि विरोधी भी तारीफ करते हैं। 2014 से यह सीट भाजपा के पास है। राघोगढ़ राजपरिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह के पिता राजा बलभद्र सिंह को हिन्दु महासभा का करीबी माना जाता था कि दिग्विजय सिंह जनसंघ में अपनी राजनीति पारी शुरू करेंगे पर उन्होंने कांग्रेस का चुनाव किया। सिर्फ 22 साल की उम्र में राघोगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष पद से सियासत की शुरुआत करने वाले दिग्विजय सिंह को जनसंघ में शामिल होने के कई ऑफर मिले पर वह हमेशा जनसंघ के इन ऑफर को ठुकराते रहे। दिग्विजय सिंह के पिता की प्रदेश कांग्रेsस के नेता गोविंद नारायण से दोस्ती थी। शायद इसलिए दिग्विजय सिंह का रुझान कांग्रेस की तरफ गया और वह 1977 में पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह लगातार चार बार विधायक रहे। इस बीच उन्हें युवा कांग्रेsस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1980 में चुनाव जीतने के बाद वह अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री बने। 1984 और 1991 में राजगढ़ सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे। अपने बयानों की वजह से अमूमन सुर्खियों में रहने वाले दिग्गी राजा 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद पार्टी को प्रदेश में सत्ता तक पहुंचाने में पूरे 15 साल इंतजार करना पड़ा। वर्ष 2018 के चुनाव में कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने पर पार्टी में बगावत के कारण 2020 में सत्ता एक बार फिर भाजपा के हाथ लग गई। इस बीच दिग्विजय सिंह कांग्रेस संगठन में कई जिम्मेदारी संभालते रहे। 2014 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। राजगढ़ सीट पर दिग्विजय सिंह का मुकाबला 2014 और 2019 में जीत दर्ज कर चुके रोडमल नागर से है। 2019 में नागर को 65 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेsस की मोना सुस्तानी सिर्फ 31 फीसदी वोट हासिल कर पाई थीं। दिग्विजय सिंह इससे पहले इस सीट से 1984, 1989 और 1991 में चुनाव लड़ चुके हैं। 1989 का चुनाव वह भाजपा के प्यारे लाल खंडेलवाल से हार गए थे। वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था और उसके बाद उप चुनाव में दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। पूरे 33 साल बाद राजगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने की दिग्विजय सिंह की कहानी भी दिलचस्प है। वह इस बार चुनाव लड़ने के हक में नहीं थे पर जब पार्टी ने तय किया कि सभी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव मैदान में उतरना होगा तो दिग्विजय ने पार्टी का निर्णय स्वीकार करने में देरी नहीं की। मध्य प्रदेश कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव में हार के डर से अपने हथियार डाल दिए हैं।

Saturday 20 April 2024

जेडीयू दिग्गज नेता बनाम बाहबुली की बीवी


आमतौर पर लोग घर बसाने के लिए शादी करते हैं, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए शादी की जाए तो मामला अनोखा जरूर बन जाता है। इसी शादी की वजह से मौजूदा लोकसभा चुनाव में बिहार की जिन सीटों की सबसे ज्यादा चर्चा है, उनमें मुंगेर लोकसभा सीट भी शामिल है। इस सीट पर आरजेडी ने कुछ ही महीने जेल से जमानत पर बाहर आए अशोक महतो की पत्नी अनिता देवी को टिकट दिया है। जबकि जेडीयू ने अपने मौजूदा सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारा है। ललन सिंह पिछले साल जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष थे। भाजपा ने आरोप लगाया था कि आरजेडी से करीबी की वजह से ललन सिंह को अध्यक्ष के पद से हटाया गया था। अशोक महतो का ताल्लुक साल 2000 के आसपास बिहार के बांद्रा, शेखपुरा, जमुई और आसपास के इलाकों में सक्रीय उस महतो गुट से रहा है, जो पिछड़ी जातियों का समर्थक था। बिहार के करीब 20 साल पहले तक अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच कई खूनी संघर्ष हुए थे। बिहार में गैंगवार और एसपी अमित लोढ़ा का वो सच जिस पर बनी फिल्म खाकी ः ‘द बिहार चैप्टर’ है। अशोक महतो को साल 2001 में नवादा जेल ब्रेक कांड में दोषी ठहराया गया था। बिहार में इस संघर्ष पर ओटीटी पर वेब सीरीज खाकी ः द बिहार चैप्टर भी आ चुकी है। अशोक महतो नवादा जेल ब्रेक कांड में करीब 17 साल जेल की सजा काट चुके हैं। उन्होंने कुछ ही दिन पहले शादी भी कर ली जिसके बाद उनकी पत्नी चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर जेडीयू के मौजूदा सांसद ललन सिंह भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। मुंगेर सीट पर भूमिहार वोटों का बड़ा असर माना जाता है। जेडीयू के ललन Eिसह का दावा है कि मुंगेर में उनका कोई मुकाबला नहीं है और जनता विकास के नाम पर वोट करेगी। साल 2014 में मुंगेर सीट पर बाहुबली नेता माने जाने वाले भूमिहार नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को हटा दिया था। यह भी एक संयोग है कि मुंगेर लोकसभा सीट पर जिन दो उम्मीदवारों के बीच सीधे मुकाबले की संभावना है, उनमें से एक भूमिहार बिरादरी से हैं जबकि दूसरा महतो समुदाय से। ललन सिंह के मुताबिक मुंगेर के लोग मानते हैं कि नीतीश कुमार विकास के प्रतीक हैं। इसलिए मुंगेर में कोई लड़ाई नहीं है। 4 जून को चुनाव परिणाम बता देगा कि मुंगेर की जनता विकास के साथ है या नहीं। प्रजातंत्र में जनता मालिक है। जनता सब देखती है, उसी को फैसला करना है, ललन सिंह को नीतीश कुमार के काफी करीबी माना जाता है। मुंगेर सीट पर लोकसभा चुनावों के चौथे चरण में 13 मई को वोटिंग होनी है। गंगा के किनारे बसा यह इलाका किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन साल 1964 में मुंगेर सीट पर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी नेता मधुकर रामचंद्र लिमये (मधु लिमये) की जीत ने इस सीट को पूरे देश में सुर्खियों में लगा दिया था। मुंगेर में अभी चुनाव प्रचार ठंडा है, अंभी जोर नहीं पकड़ा है। प्रचार में जब तेजी आएगी तब माहौल का सही पता लग पाएगा। इस सीट पर भूमिहार वोटरों की भूमिका अहम हो गई है। कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, यादव, मुस्लिम भी अच्छी तादाद में हैं।

-अनिल नरेन्द्र