Saturday 27 April 2024

ननद-भाभी की सियासी प्रतिष्ठा दांव पर

महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट पर सियासी लड़ाई दो दलो में बंट चुके पवार परिवार के बीच है। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले तो अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार आमने-सामने है। लोकसभा चुनाव में बारामती की जनता को रिश्ते में ननद और भाभी लगने वाली दो उम्मीदवारों में से किसी एक को संसद पहुंचाना है। क्षेत्र में एक ही परिवार के दो लोगों के बीच कांटे की टक्कर में दूसरे उम्मीदवार की मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। चुनाव लड़ने के लिए कुल 51 लोगों ने नामांकन किया था और 46 का नामांकन वैध माना गया है। ऐसे में मतदाताओं का वोट बिखरता है तो राजनीतिक स्थिति रोचक हो सकती है। पवार परिवार की परम्परा रही है कि बारामती सीट पर चुनाव प्रचार का अंत बारामती शहर में मौजूद क्रिश्चियन कालोनी के मैदान में होता था। यहां पूरा पवार परिवार जुटता था, यहीं भोजन करता था और इसके बाद मैदान में ही मौजूद भीड़ को संबोधित करते थे। चार दशक में ऐसा पहली बार हुआ जब इस चुनाव में पवार परिवार की यह परम्परा टूट गई है। अजीत पवार ने रैली के लिए मैदान को 5 मई के लिए बुक कर लिया है। वहीं सुप्रिया सुले रैली के लिए नई जगह तलाश रही हैं। सीट पर सात मई को चुनाव है और पांच मई को प्रचार का अंतिम दिन है। मैदान पर चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सभा की शुरुआत शरद पवार ने उस वक्त की थी जब अजित पवार राजनीति में नहीं आए थे। पवार परिवार प्रचार की शुरुआत करन हेरो गांव से करता है। इसकी शुरुआत भी शरद पवार ने 1967 में की थी। इस बार भी दोनों गुट यहीं से शुरुआत करेंगे। शरद पवार के भतीजे अजित पवार बारामती से विधायक हैं, राजनीतिक इतिहास के अनुसार शरद पवार बारामती से पहला लोकसभा चुनाव 1984 में जीते थे। 1991 में इस सीट से अजीत पवार जीते, लेकिन चाचा को सीट से सांसद बनाने के लिए उन्होंने अपनी सीट छोड़ दी थी। इसके बाद शरद पवार 2004 तक यहीं से जीतते रहे। बाद में पिता की सीट को सुप्रिया सुले ने 2009 में संभाला। वह लगातार तीन बार सीट से सांसद रह चुकी हैं। चुनाव आयोग के अनुसार बारामती सीट पर कुल 19 बार चुनाव हुए हैं। इसमें चार उपचुनाव हैं। शरद पवार इस सीट से कई बार जबकि उनकी बेटी सुप्रिया सुले तीन बार सांसद चुनी गई हैं। शरद पवार ने एनसीपी की स्थापना 10 जून 1990 को की थी, जो अब अजीत गुट के पास है, इससे पहले शरद पवार कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से जीतते थे। 1977 का चुनाव जनता पार्टी ने जीता था। इसके बाद से कांग्रेस और एनसीपी का ही इस सीट पर एकछत्र राज है। सुप्रिया सुले का जन्म 30 जून 1969 को पुणे में हुआ था। मुंबई के जयहिंद कालेज से माइक्रोबायोलिजी में बीएससी हैं। 60 वर्षीय सुनेत्रा पवार अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रही हैं। वह एनसीपी की पूर्व नेता पदमा सिंह पाटिल की बेटी हैं। एक दौर था जब पाटिल को शरद पवार का सबसे करीबी माना जाता था। 4 जून को पता चलेगा कि ननद-भाभी की इस लड़ाई में बाजी कौन मारता है? -अनिल नरेन्द्र

भाजपा की 44 दिन पहले ही निर्विरोध जीत

गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर सोमवार को भाजपा के मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित हुए। बसपा प्रत्याशी प्यारे लाल भारती और चार निर्दलीय सहित कुल आठ उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया। गुजरात में पहली बार कोई प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुआ है। 1984 से सूरत सीट पर भाजपा जीत रही है। इस सीट पर 7 मई को वोटिंग होनी थी। कांग्रेsस के प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी और डमी प्रत्याशी का नामांकन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में त्रुटि के चलते रविवार को खारिज कर दिया गया था। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार सूरत में भाजपा की निर्विरोध जीत के लिए कांग्रेsस प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी ने ही भाजपा से हाथ मिला लिया था। भाजपा की ओर से कुंभाणी को ऑपरेशन निर्विरोध की क्रिप्ट मिली। इसके अनुसार ही नीलेश कुंभाणी ने कांग्रेस की प्रदेश इकाई को अंधेरे में रखते हुए पैंतरें चले। कुंभाणी ने अपने नामांकन पत्र के प्रस्तावकों में कांग्रेस कैडर कार्यकर्ताओं, मेंबर की बजाए अपने रिश्तेदारों और करीबियों को रखा। पुंभाणी ने अपने पर्चे में प्रस्तावक बहनोई जगदीयां सावलिया और बिजनेस पार्टनर ध्रविन धामेलीया और रमेश पोलरा को बनाया। नीलेश कुंभाणी ने कांग्रेस पार्टी के डमी प्रत्याशी सुरेश पडसाला का प्रस्तावक भी अपने भांजे भौतिक कोलडिया को बनवाया। पर्चा दाखिल करते वक्त भी कुंभाणी किसी भी प्रस्तावक को चुनाव अधिकारी के सामने नहीं ले गए। चारों प्रस्तावकों ने हस्ताक्षर फर्जी होने का शपथ पत्र दे दिया और खुद भूमिगत हो गए। सभी को कारण बताओ नोटिस जारी करने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। कोई भी सामने नहीं आया। इसके बाद कुंभाणी और डमी प्रत्याशी सुरेश पडसाला का पर्चा खारिज हो गया। सूरत में भाजपा के इस आपरेशन निर्विरोध का एपिक सेंटर बना सूरत का फाइव स्टार होटल ली-मैरेडियन, यहां से 24 घंटे तक ऑपरेशन निर्विरोध की कार्रवाई का संचालन हुआ। ये कवायद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की सीधी निगरानी में हुई। सूरत की जीत 400 पार के लक्ष्य की पहली जीत है। हम इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समर्पित करते हैं यह कहते हैं सीआर पाटिल, गुजरात भाजपाध्यक्ष। उधर कांग्रेsस नेता राहुल गांधी ने कहा ः तानाशाह की असली सूरत फिर देश के सामने है। मैं फिर कह रहा हूं, यह चुनाव देश और संविधान को बचाने का है। जनता से अपने नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहब अबंडेकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है। राहुल ने लिखा, मैं एक बार फिर कह रहा हूं - यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव हैं, संविधान की रक्षा का चुनाव है। वहीं जयराम रमेश ने क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि लोकतंत्र खतरे में है। उन्होंने एक्स पर लिखा सूरत जिला अधिकारी ने 7 मई 2024 को मतदान से लगभग 2 सप्ताह पहले ही 22 अप्रैल 2024 को सूरत लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार को निर्विरोध जिता दिया गया।

Thursday 25 April 2024

हम संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं


इंडिया गठबंधन ने रविवार को रांची में आयोजित उलगुलान न्याय रैली में अपनी ताकत और एकजुटता दिखाई। एक मंच पर इकट्ठा हुए गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने इस बार के लोकसभा चुनाव को संविधान और लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बताते हुए केन्द्र की मौजूदा सत्ता को बदलने की अपील की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आतंकित करने की कोशिश करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) नेता ने विपक्षी गठबंधन इंडिया से अलग होने के बजाय जेल जाना पसंद किया। इससे पहले सतना में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दावा किया कि यदि मोदी-शाह सरकार फिर से सत्ता में आई तो देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। झारखंड मुfिक्त मोर्चा की मेजबानी में आयोजित रैली में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने अपने पति हेमंत सोरेन का जेल से भेजा संदेश पढ़ा। हेमंत सोरेन ने अपने संदेश में कहा, उन्हें बेबुनियादी आरोपों में ढाई महीनों से जेल में बंद करके रखा गया है। आजादी के बाद ये पहली बार है जब विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव के ठीक पहले जेल में डाला जा रहा है। लेकिन हम जेल से डरने वाले नहीं हैं। हेमंत सोरेन ने कहा हमने केन्द्र से अपना हक मांगा तो उसके बदले में हमारे साथ यह सलूक हुआ। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने कहा कि विपक्षी गठबंधन इंडिया भाजपा की तानाशाही के खिलाफ लड़ेगा और जीतेगा। सुनीता ने रैली में कहा, वे मेरे पति अरविंद केजरीवाल को मारना चाहते हैं। उनके भोजन पर कैमरे से निगरानी रखी जा रही है। उन्होंने दावा किया है कि उनके पति को जन सेवा का काम करने के लिए जेल में डाल दिया गया और उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं किया जा सका। हम तानाशाही के खिलाफ लड़ेंगे और जीतेंगे। जेल के ताले टूटेंगे और अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन जेल से छूटेंगे। यूपी के पूर्व सीएम सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि इस बार जनता तानाशाही ताकतों के खिलाफ वोट करेगी। हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के साथ केन्द्र सरकार ने अन्याय किया है। इस अन्याय का बदला जनता एक-एक वोट से लेगी। उन्होंने चुनाव को लोकतंत्र और संविधान की लड़ाई बताया। बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि केन्द्र की सरकार बिहार से लेकर झारखंड और दिल्ली तक विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल रही है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो संविधान बनाया था, आज उस पर खतरा मंडरा रहा है। उलगुलान महारैली में मंच पर दो कुर्सियां हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के लिए खाली रही। इसकी चर्चा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी की। तेजस्वी यादव ने कहा कि यहां रैली में जहां तक नजर जा रही है, जनसैलाब नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि यह भीड़ बता रही है कि झारखंड ने मूड बना लिया है। भाजपा भगाओ देश का लोकतंत्र बचाओ।

-अनिल नरेन्द्र

सपा और बसपा क्या मौका तलाश रही हैं?


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ ठाकुर बिरादरी के नेताओं का गुस्सा दिख रहा है। पार्टी ने इस बिरादरी के उम्मीदवारों को उम्मीद से कम टिकट दिए हैं। इससे ठाकुरों में नाराजगी की खबरें आ रही हैं। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। अखबार लिखता है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को इस नाराजगी में अपने लिए मौका नजर आ रहा है और वे ऊंची जातियों के उम्मीदवारों से संपर्क बढ़ाने की कोशिश में लग गई है। खबर के मुताबिक रविवार को गाजियाबाद में मायावती ने एक रैली में भाजपा पर क्षत्रियों (ठाकुर, राजपूत) की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने टिकट बंटवारे में हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। अखबार लिखता है कि गाजियाबाद के बीएसपी उम्मीदवार नंद किशोर पुंडीर ठाकुर हैं जबकि बागपत के बीएसपी उम्मीदवार प्रवीण बंसल गुर्जर हैं। मायावती ने कहा यूपी की ऊंची जातियों में क्षत्रिय समुदाय के लोगों की आबादी काफी ज्यादा है और ये देखना निराशाजनक है कि इस बिरादरी को समर्थन देने का दावा करने वाली भाजपा ने उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन्हें काफी कम टिकट दी है। उन्होंने कहा गाजियाबाद में हमने क्षत्रिय उम्मीदवार को टिकट दिया है। पहले हमने पंजाबी कैंडिडेट उतारा था लेकिन फिर हमें लगा कि उनकी संख्या लखीमपुर खीरी में ज्यादा है इसलिए वहां हमने पंजाबी सिख उम्मीदवार को टिकट दिया। मायावती ने कहा कि वो क्षत्रिय समुदाय की उन महापंचायतों का समर्थन करती हैं जो उन पार्टियों का समर्थन करने की बात कर रही हैं जो ठाकुर उम्मीदवार उतार रही हैं। मायावती का ये बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने अपनी रैलियों में ठाकुरों की मौजूदगी पर टिप्पणी की थी। उन्होंने नोएडा की एक रैली में कहा था मैं उनके सिर पर सम्मान की पगड़ी देख रहा हूं जो लोग पारंपरिक रूप से दूसरे दलों के लिए वोटिंग करते थे, वे आज यहां हैं। मैं उनकी राजनीतिक चेतना के प्रति आभारी हूं। इस बार वो साइकिल का समर्थन करने जा रहे हैं। बीएसपी ने गौतमबुद्ध नगर में क्षत्रिय समुदाय के राजेन्द्र सोलंकी पर दांव लगाया है। सोलंकी ने कहा है कि इस सीट पर 4.5 लाख वोटर हैं। बीएसपी उनसे जुड़ने की पूरी कोशिश कर रही है। पिछले शुक्रवार को यूपी की जिन आठ सीटों पर वोटिंग हुई उनमें सिर्फ एक ठाकुर उम्मीदवार कुंवर सर्वेश सिंह को मुरादाबाद सीट पर भाजपा ने टिकट दिया था। मतदान के बाद सर्वेश सिंह का निधन हो गया था। 26 अप्रैल को जिन आठ सीटों पर वोटिंग होगी उनमें भाजपा की तरफ से कोई भी ठाकुर उम्मीदवार नहीं है। इन उम्मीदवारों में दो ब्राह्मण, दो वैश्य, एक गुर्जर और एक जाट बिरादरी के उम्मीदवार हैं। पश्चिमी यूपी में ठाकुर बिरादरी के जिस बड़े नेता का इस बार भाजपा की ओर से टिकट काटा गया। उनमें भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वीके सिंह शामिल हैं। भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि पार्टी के बीच असंतोष का अहसास हो गया है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता ठाकुरों को मनाने में जुट गए हैं ताकि ठाकुरों की वोटों का नुकसान कम से कम हो।

Tuesday 23 April 2024

पप्पू यादव ने मुकाबले को रोचक बनाया


पप्पू यादव की निर्दलीय उम्मीदवार मौजूदगी ने पूर्णिया चुनाव को रोचक बना दिया है। सोमवार को नाम वापसी की अंतिम तारीख थी। लेकिन पप्पू यादव ने अपना पर्चा वापस नहीं लिया। अब अपने चुनाव निशान कैंची लेकर घूम रहे हैं। कहते हैं कि इसी की धार से महागठबंधन और राजग उम्मीदवारों की जीत को काटूंगा। पूर्णिया की देवतुल्य जनता बतौर निर्दलीय प्रत्याशी एक बार फिर मुझे संसद भेजेगी। इससे राजद और कांग्रेस दोनों के नेताओं में तनाव है। पप्पू यादव कहते हैं कि पूर्णिया से मुझे असीम प्यार है और मुझे एक बच्चे की तरह पूर्णिया के लोग देखते हैं। यहां हिन्दू-मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं है। यही कारण है कि सभी मुझे बेहद प्यार करते हैं और मेरे दिल में भी पूर्णिया बसा है। यहां से इंडिया गठबंधन की बीमा भारती ने पर्चा भरा है। वे राजद उम्मीदवार हैं। पांच दफा विधायक रही बिहार में मंत्री रहीं। इस दफा वे रुपौली की विधायक सीट जद (एकी) की टिकट पर जीती थीं। उससे इस्तीफा देकर राजद की लालटेन थाम ली और राजद ने सीट बंटवारे के पहले ही इन्हें चुनाव चिह्न दे दिया था। ये भी चुनावी रण में डटी हैं। इनका पर्चा दाखिल कराने तेजस्वी यादव खुद आए थे। बताते हैं कि हालांकि लालू प्रसाद और राहुल गांधी के समझाने पर भी निर्दलीय तौर पर पप्पू यादव ने पर्चा दाखिल कर दिया। अब दिक्कत यह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बीमा भारती के लिए प्रचार के लिए जनसभा करने का न्यौता दिया गया है। क्या राहुल राजद उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने आते हैं या नहीं यह देखना है। इन दोनों का मुकाबला जद (एकी) उम्मीदवार व निवर्तमान सांसद संतोष कुशवाह से है। पूर्णिया के मतदाता उन्हें फिर निर्वाचित करती है या नहीं? लेकिन मुकाबला तिकोना होने की संभावना है। वैसे 1999 वाली स्थिति भी पूर्णिया दोहरा सकती है। इस चुनाव में पप्पू यादव ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत हासिल की थी। वैसे बीमा भारती के पति अवधेश मंडल आपराधिक छवि के हैं। इनके खिलाफ विभिन्न थानों में एक दर्जन मामले दर्ज हैं। वहीं पप्पू यादव की छवि भी दबंग नेता की रही है। वामदल विधायक अजीत सरकार की हत्या मामले में सजा होने की वजह से 2009 का चुनाव नहीं लड़ सके थे। 2013 में ऊपरी अदालत से ये बरी हो गए थे। पप्पू यादव के मैदान में रहने से पूर्णिया का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। सबसे ज्यादा दुविधा कांग्रेस को है जिसने पप्पू को यहां से लड़ाने के लिए वादा किया था। यही नहीं पप्पू यादव ने अपनी पूरी पार्टी को भी कांग्रेस में मिला दिया था। राजद को भी कांग्रेस की मजबूरी समझनी चाहिए थी और पूर्णिया की सीट कांग्रेस को दे देनी चाहिए थी। खैर, जो होना था सो हो गया। अब देखें कि ऊंट किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

राज वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं दिग्गी राजा


दिग्विजय सिंह देश के उन गिने-चुने नेताओं में हैं जो सियासत में पांच दशक से ज्यादा वक्त गुजार चुके हैं। राजनीति में दिग्गी राजा के नाम से मशहूर दिग्विजय सिंह की उम्र 77 वर्ष है। इस आयु में भी राजगढ़ लोकसभा सीट से बतौर कांग्रेsस उम्मीदवार पैदल गांव-गांव प्रचार कर रहे हैं। उनकी फिटनेस की सिर्फ समर्थक ही नहीं, बल्कि विरोधी भी तारीफ करते हैं। 2014 से यह सीट भाजपा के पास है। राघोगढ़ राजपरिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह के पिता राजा बलभद्र सिंह को हिन्दु महासभा का करीबी माना जाता था कि दिग्विजय सिंह जनसंघ में अपनी राजनीति पारी शुरू करेंगे पर उन्होंने कांग्रेस का चुनाव किया। सिर्फ 22 साल की उम्र में राघोगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष पद से सियासत की शुरुआत करने वाले दिग्विजय सिंह को जनसंघ में शामिल होने के कई ऑफर मिले पर वह हमेशा जनसंघ के इन ऑफर को ठुकराते रहे। दिग्विजय सिंह के पिता की प्रदेश कांग्रेsस के नेता गोविंद नारायण से दोस्ती थी। शायद इसलिए दिग्विजय सिंह का रुझान कांग्रेस की तरफ गया और वह 1977 में पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह लगातार चार बार विधायक रहे। इस बीच उन्हें युवा कांग्रेsस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1980 में चुनाव जीतने के बाद वह अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री बने। 1984 और 1991 में राजगढ़ सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे। अपने बयानों की वजह से अमूमन सुर्खियों में रहने वाले दिग्गी राजा 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद पार्टी को प्रदेश में सत्ता तक पहुंचाने में पूरे 15 साल इंतजार करना पड़ा। वर्ष 2018 के चुनाव में कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने पर पार्टी में बगावत के कारण 2020 में सत्ता एक बार फिर भाजपा के हाथ लग गई। इस बीच दिग्विजय सिंह कांग्रेस संगठन में कई जिम्मेदारी संभालते रहे। 2014 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। राजगढ़ सीट पर दिग्विजय सिंह का मुकाबला 2014 और 2019 में जीत दर्ज कर चुके रोडमल नागर से है। 2019 में नागर को 65 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेsस की मोना सुस्तानी सिर्फ 31 फीसदी वोट हासिल कर पाई थीं। दिग्विजय सिंह इससे पहले इस सीट से 1984, 1989 और 1991 में चुनाव लड़ चुके हैं। 1989 का चुनाव वह भाजपा के प्यारे लाल खंडेलवाल से हार गए थे। वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था और उसके बाद उप चुनाव में दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। पूरे 33 साल बाद राजगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने की दिग्विजय सिंह की कहानी भी दिलचस्प है। वह इस बार चुनाव लड़ने के हक में नहीं थे पर जब पार्टी ने तय किया कि सभी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव मैदान में उतरना होगा तो दिग्विजय ने पार्टी का निर्णय स्वीकार करने में देरी नहीं की। मध्य प्रदेश कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव में हार के डर से अपने हथियार डाल दिए हैं।

Saturday 20 April 2024

जेडीयू दिग्गज नेता बनाम बाहबुली की बीवी


आमतौर पर लोग घर बसाने के लिए शादी करते हैं, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए शादी की जाए तो मामला अनोखा जरूर बन जाता है। इसी शादी की वजह से मौजूदा लोकसभा चुनाव में बिहार की जिन सीटों की सबसे ज्यादा चर्चा है, उनमें मुंगेर लोकसभा सीट भी शामिल है। इस सीट पर आरजेडी ने कुछ ही महीने जेल से जमानत पर बाहर आए अशोक महतो की पत्नी अनिता देवी को टिकट दिया है। जबकि जेडीयू ने अपने मौजूदा सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारा है। ललन सिंह पिछले साल जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष थे। भाजपा ने आरोप लगाया था कि आरजेडी से करीबी की वजह से ललन सिंह को अध्यक्ष के पद से हटाया गया था। अशोक महतो का ताल्लुक साल 2000 के आसपास बिहार के बांद्रा, शेखपुरा, जमुई और आसपास के इलाकों में सक्रीय उस महतो गुट से रहा है, जो पिछड़ी जातियों का समर्थक था। बिहार के करीब 20 साल पहले तक अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच कई खूनी संघर्ष हुए थे। बिहार में गैंगवार और एसपी अमित लोढ़ा का वो सच जिस पर बनी फिल्म खाकी ः ‘द बिहार चैप्टर’ है। अशोक महतो को साल 2001 में नवादा जेल ब्रेक कांड में दोषी ठहराया गया था। बिहार में इस संघर्ष पर ओटीटी पर वेब सीरीज खाकी ः द बिहार चैप्टर भी आ चुकी है। अशोक महतो नवादा जेल ब्रेक कांड में करीब 17 साल जेल की सजा काट चुके हैं। उन्होंने कुछ ही दिन पहले शादी भी कर ली जिसके बाद उनकी पत्नी चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर जेडीयू के मौजूदा सांसद ललन सिंह भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। मुंगेर सीट पर भूमिहार वोटों का बड़ा असर माना जाता है। जेडीयू के ललन Eिसह का दावा है कि मुंगेर में उनका कोई मुकाबला नहीं है और जनता विकास के नाम पर वोट करेगी। साल 2014 में मुंगेर सीट पर बाहुबली नेता माने जाने वाले भूमिहार नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को हटा दिया था। यह भी एक संयोग है कि मुंगेर लोकसभा सीट पर जिन दो उम्मीदवारों के बीच सीधे मुकाबले की संभावना है, उनमें से एक भूमिहार बिरादरी से हैं जबकि दूसरा महतो समुदाय से। ललन सिंह के मुताबिक मुंगेर के लोग मानते हैं कि नीतीश कुमार विकास के प्रतीक हैं। इसलिए मुंगेर में कोई लड़ाई नहीं है। 4 जून को चुनाव परिणाम बता देगा कि मुंगेर की जनता विकास के साथ है या नहीं। प्रजातंत्र में जनता मालिक है। जनता सब देखती है, उसी को फैसला करना है, ललन सिंह को नीतीश कुमार के काफी करीबी माना जाता है। मुंगेर सीट पर लोकसभा चुनावों के चौथे चरण में 13 मई को वोटिंग होनी है। गंगा के किनारे बसा यह इलाका किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन साल 1964 में मुंगेर सीट पर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी नेता मधुकर रामचंद्र लिमये (मधु लिमये) की जीत ने इस सीट को पूरे देश में सुर्खियों में लगा दिया था। मुंगेर में अभी चुनाव प्रचार ठंडा है, अंभी जोर नहीं पकड़ा है। प्रचार में जब तेजी आएगी तब माहौल का सही पता लग पाएगा। इस सीट पर भूमिहार वोटरों की भूमिका अहम हो गई है। कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, यादव, मुस्लिम भी अच्छी तादाद में हैं।

-अनिल नरेन्द्र

बॉलीवुड की क्वीन या हिमाचल के प्रिंस


कंगना रनौत मेरे बारे में कहती हैं कि मैं राजा का बेटा हूं। मेरे पिता वीरभद्र सिंह सिर्फ रामपुर बुशहर सियासत के राजा नहीं थे, वो हिमाचल प्रददेश के दिलों के राजा थे और मुझे गर्व है कि मैं उनका बेटा हूं। हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री और मंडी लोकसभा सीट के कांग्रेस के प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह रामपुर बुशहर में इकट्ठा लोगों को संबोधित कर रहे थे। शनिवार शाम को कांग्रेस की ओर से मंडी लोकसभा सीट का प्रत्याशी बनाए जाने के अगले दिन वह अपने प्रचार अभियान का आगाज कर रहे थे। भाजपा की ओर से टिकट दिए जाने के बाद से ही यह माना जाना लगा था कि कांग्रेsस इस बार उनकी मां और वर्तमान सांसद प्रतिभा सिंह के बजाए विक्रमादित्य सिंह को मंडी से उतार सकती है। वजह ये थी कि विक्रमादित्य ने सिर्फ कंगना रनौत के पुराने बयानों को उठाते हुए उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। फिर कंगना ने भी सीधे विक्रमादित्य सिंह पर निशाना साधना शुरू कर दिया। मंडी लोकसभा सीट में छह जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से तीन विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं और पांच अनुसूचित जाति के लिए। हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर आखिरी चरण के तहत मतदान होगा लेकिन मंडी लोकसभा सीट पर सियासी पारा लगातार चढ़ रहा है। कंगना और विक्रमादित्य एक-दूसरे पर तीखे जुबानी हमले कर चुके हैं। कई बार उनके बयान निजी हमलों की शक्ल में भी होते हैं। जहां विक्रमादित्य सिंह ने कंगना रनौत को मौसमी राजनेता बताते हुए उन पर बीफ खाने का आरोप लगाया, वहीं कंगना ने उनसे सबूत मांगते हुए उन्हें छोटा पप्पू और राजा बेटा कह दिया। एक-दूसरे पर जुबानी हमलों के मामलों में दोनों अभी तक एक से एक बढ़कर नजर आ रहे हैं। कंगना की बोलचाल में राजनेताओं जैसी बात नहीं दिखती, हालांकि अब वह लोगों से स्थानीय बोली में बात कर रही हैं, जिससे लोगों को अपनापन लग सकता है। वह कहते हैं, कंगना एक सेलिब्रिटी हैं तो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए जुट रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके लिए ये लड़ाई एक-तरफा है। लोगों ने हिमाचल के साथ लगते पंजाब के गुरदास पुर का भी उदाहरण देखा है। जहां अभिनेता सन्नी देओल पर चुनाव जीतने के बाद वापस अपने हलके की ओर न देखने के आरोप लगे थे। हिमाचल के लोग चाहते हैं कि नेता उनके दुख-सुख में शामिल हों। ऐसे में लोग कंगना को सिर्फ अभिनेत्री होने के कारण वोट दे देंगे, ऐसा लगता नहीं है। विक्रमादित्य के पिता वीरभद्र सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे और तीन बार मंडी लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। हालांकि खुद को कांग्रेस का वफादार बताने वाले विक्रमादित्य पर पिछले दिनों सवाल खड़े हो गए थे। विक्रमादित्य सिंह के उतरने के कारण हालात बदल गए हैं। वे युवा हैं, राज्य सरकार के मंत्री हैं और सबसे बड़ी बात वह वीरभद्र सिंह के बेटे हैं। इन सब बातों से लड़ना कंगना के लिए आसान नहीं है। सक्रिय राजनीति में कंगना नई हैं, जबकि विक्रमादित्य को अपने अनुभव के साथ वीरभद्र सिंह के परिवार से होने का भी लाभ मिलेगा। वो जानते हैं कि हिमाचल की जनता किन बातों से जुड़ाव महसूस करती है, कंगना को इस दिशा में भी मेहनत करनी होगी।

Thursday 18 April 2024

क्षत्रियों ने बढ़ाई भाजपा की धड़कने


लोकसभा चुनाव जीतने के लिए एक-एक वोट पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे भाजपा के नेताओं के सामने क्षत्रिय संगठनों ने परेशानी खड़ी कर दी है। गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय संगठन आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए थोड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। दरअसल केन्द्राrय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने क्षत्रियों को लेकर ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे क्षत्रिय समाज के लोग आंदोलन पर उतर आएं हैं। गाजियाबाद के सांसद बीके सिंह का टिकट कटने से क्षत्रिय पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में आंदोलन कर रहे हैं। रूपाला 22 साल के बाद चुनावी राजनीति में उतरे हैं। वह गुजरात दंगों के बाद चुनाव हार गए थे। तब से वह राज्यसभा में ही रहे हैं। इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यसभा कोटे से मंत्री बने नेताओं को चुनाव में उतारा है। पुरुषोत्तम रुपाला को राजकोट से चुनावी मैदान में उतारा गया है। रुपाला ने एक सभा में कहा कि आजादी के आंदोलन में दलित मोर्चे पर डटे रहे लेकिन क्षत्रियों ने घुटने टेक दिए थे। वह यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि क्षत्रियों का मुगलों के साथ रोटी-बेटी का भी रिश्ता था। रुपाला के इस बयान से बवाल मच गया। राज्य के अनेक संगठन ने रुपाला के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राजपूत के संगठन करणी से ना भी राजकोट में प्रदर्शन कर रही है। पुलिस और करणी सेना के बीच झड़प भी हुई है। रुपाला ने माफी मांग ली है लेकिन राजपूत संगठन उनका टिकट बदलने की मांग कर रहे हैं। रुपाला के बयान को कांग्रेस खूब भुना रही है। पार्टी के नेता जगह-जगह घूमकर रुपाला के बयान को हवा दे रहे हैं। गुजरात में लगभग सभी सीटों पर पांच से आठ प्रतिशत ठाकुर हैं। कुछ सीटों पर उनकी संख्या ज्यादा है। अब भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात दौरे से विवाद पर विराम लगेगा और क्षत्रियों की नाराजगी दूर होगी। क्योंकि सभी गुजराती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात गौरव मानते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री के कहने पर सभी की नाराजगी दूर हो जाएगी। ऐसी उम्मीद की जा रही है। उत्तर प्रदेश में भी जनरल बीके सिंह के टिकट कटने से क्षत्रिय आंदोलन कर रहे हैं। क्षत्रिय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय सम्मेलन कर भाजपा को हराने का आह्वान कर रहे हैं। उनकी नाराजगी दूर करने की तरकीब तलाशी जा रही है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमान, दलित और जाट अधिक संख्या में हैं। भाजपा के साथ अगड़ा वोट पक्की तरह से जुड़ा है। भाजपा नहीं चाहती कि अगड़ी जाति का एक भी वोट उनके कोटे से दूसरी जगह जाए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को क्षत्रिय समाज को समझाने की जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा ने अभी तक ब्रजभूषण शरण सिंह का टिकट फाइनल नहीं किया है। कैसरगंज सांसद का आजकल जबरदस्त प्रभाव है। महिला पहलवानों के आरोपों के कारण भाजपा हरियाणा में रिस्क नहीं लेना चाहती है। भाजपा उनके बदले उनकी पत्नी या बेटे को टिकट देने को तैयार है। लेकिन ब्रजभूषण शरण सिंह इसके लिए तैयार नहीं हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भाजपा के लिए एक-एक सीट का प्रश्न बना हुआ है। इसलिए वह सिर्फ किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहती। आश्चर्य नहीं होगा कि अंत में ब्रजभूषण शरण सिंह को ही टिकट दे दिया जाए। हरियाणा में 20 मई को और कैसरगंज में 25 मई का चुनाव है। मामला फंसा है लेकिन पार्टी राजपूतों को खुश करने के लिए ब्रजभूषण पर दांव लगा सकती है?

- अनिल नरेन्द्र

बहन जी ने एकला चलो की ठानी


बसपा सुप्रीमो मायावती जो कहती हैं वो करती हैं, करके दिखाती हैं, लगातार कई चुनावों में बेहतर परिणाम न आने के बाद भी उनके तेवर में कोई कमी नहीं आई है। जहां देशभर में छोटी से लेकर बड़ी पार्टियां एनडीए या इंडिया गठबंधन में जाने को आतुर हैं, वहीं बसपा सुप्रीमों ने यूपी में आम चुनाव अपने दम-खम पर लड़ने का फैसला किया है। हालांकि इस फैसले ने सबको चौंका जरूर दिया। उनको आज भी अपने कैडर पर पूरा विश्वास है कि वह उनके साथ है। यही कैडर उनका गुमान और अभिमान भी है। बसपा का नारा है - सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय। वह दबे, कुचले, शोषित, वंचितों के लिए राजनीति करती हैं। वह अपने भाषण की शुरुआत भी इनको लेकर ही करती हैं। देशभर की पार्टियों पर आरोप लगाती हैं कि चुनाव के समय दलित, शोषित और वंचित याद आते हैं। मायावती चुनाव नजदीक आते ही भाजपा, कांग्रेsस, सपा व अन्य विपक्षी पार्टियों पर डॉ. भीमराव अंबेडकर, कांशीराम, संत रविदास की याद आने का ढोंग करने का भी आरोप लगाती हैं। मायावती ने इंडिया गठबंधन से दूर रहकर अपने कैडर के भरोसे चुनाव में उतरने का फैसला किया है। भतीजे आकाश के जरिए प्रचार की रणनीति अपनाई है और सोशल मीडिया पर प्रचार को प्राथमिकता दी जा रही है। टिकटों के वितरण में मायावती ने मुस्लिम के साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय और ओबीसी को टिकट देकर वर्ष 2007 की तरह सोशल इंजीनियरिंग का दांव चला है। इसके जरिए वह कांग्रेस-सपा और भाजपा दोनों को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं। मायावती सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कैडर के लोगों तक पहुंचा रही हैं। बसपा ने सबसे पहला गठबंधन 1993 में यूपी में सपा के साथ विधानसभा चुनाव में किया था। दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ीं और सत्ता में आईं। लेकिन वह गठबंधन टूट गया। मायावती भाजपा संग गठबंधन कर 1995 में यूपी में पहली बार सीएम बनीं, लेकिन यह साथ भी अधिक दिनों तक नहीं चला। उन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन तो किया लेकिन मुफीद नतीजे न आने पर सपा को कैडर विहीन पार्टी बताकर तुरन्त गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। दलितों की पार्टी बसपा को 40 साल होने जा रहे हैं। रविवार को बसपा का 40वां स्थापना दिवस है। पिछले 24 साल से बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष गौतमबुद्ध नगर जिले के गांव बादलपुर में जन्मी मायावती हैं। पार्टी के नए उत्तराधिकारी आकाश आनंद का जन्म भी नोएडा में ही हुआ है और वह वहीं पर पढ़े-लिखे हैं। मायावती 2001 से पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बीते 40 सालों में बसपा ने अधिक उतार-चढ़ाव देखे। इन दिनों बसपा अपने बुरे दौर से गुजर रही है। जिसके पास पूरे प्रदेश में सिर्फ एक विधायक है। पार्टी सुप्रीमों के गृह नगर गौतमबुद्ध नगर में ही बसपा का कोई जनप्रतिनिधि नहीं है, जबकि दस साल पहले तक यहां पर बसपा का वर्चस्व हुआ करता था। 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम द्वारा बसपा का गठन किया गया था। उन्होंने बसपा को स्थापित करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। बसपा का गठन होने के बाद पहले उन्हें चुनाव चिह्न के रूप में चिड़ियां मिली थी, लेकिन इस चिह्न पर कोई जीत हासिल नहीं हो सकी। अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में बसपा का जनाधार लगातार घट रहा है। देखना अब यह है कि बहन जी की एकला चलो की रणनीति 2024 में क्या रंग लाती है?

Tuesday 16 April 2024

2019 का प्रदर्शन भाजपा दोहरा पाएगी?


भय, कोलाहल, गड़बड़ी....महाराष्ट्र में शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में टूट के बाद कई लोगों में यही शब्द सुनाई पड़े। महाराष्ट्र में 2024 लोकसभा चुनाव राज्य की दो प्रमुख पार्टियों में टूट के साए में हो रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस के अलावा अब यहां दो सेना और पवार वाली पार्टियां हैं। पुणे के सम्पन्न नादेड़ सिटी इलाके के एक वोटर कहते हैं, जहां पैसा होता है, नेता वहीं जाते हैं। लोग इतने परेशान हैं कि उनका वोटिंग के लिए जाने का मन नहीं है। इसी शहर में एक अन्य वोटर ने कहा, घोटाले वालों को तुम क्यों ले रहे हो? घोटाले वाले उधर गए और सब मंत्री बन गए। ये कैसे चलता है, लोग सब समझ रहे हैं। मुंबई के मशहूर शिवाजी पार्क के बाहर अपने दोस्तों के साथ बैठे रिटायर्ड एक एसपी के मुताबिक लोग पार्टियां तोड़ने के खिलाफ हैं। उनके नजदीक ही खड़े एक आदमी ने पलटवार कर कहा, भाजपा तोड़ रही है, इसका मतलब तुम में कुछ तो कमियां हैं, इस वजह से वो लोग तोड़ रहे हैं। लोकतंत्र खतरे में है, के विपक्षी दावों पर वह पूछते हैं किसका लोकतंत्र खतरे में हैं? हिन्दू का लोकतंत्र खतरे में हैं? आम आदमी का लोकतंत्र खतरे में है? साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 48 सीटों में से 23 तो वहीं शिव सेना ने 18 सीटें जीती थीं। साल 2024 के चुनाव में एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य रखने वाली भाजपा क्या महाराष्ट्र में इस बार भी 2019 जैसी सफलता दोहरा पाएगी? 2019 में शिव सेना की पूरी ताकत भाजपा के साथ थी। आज शिव सेना और एनसीपी के एक हिस्से उसके साथ हैं और राज्य में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति की लहर की बात कही जा रही है। महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में आरक्षण आंदोलन भी चल रहा है। देश के दूसरे हिस्सों की तरह भाजपा शासित महाराष्ट्र में भी बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्या आदि चुनौतियों मुंह बाए खड़ी हैं। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जोर उनकी नाव पार लगा देगा। महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें दांव पर हैं। विश्लेषकों का कहना है कि विभिन्न कारणों से भाजपा गठबंधन की सीटें इस बार घट सकती हैं। एक ओपिनियन पोल ने इस गठबंधन को 37-41 सीटें जीतने की बात कही है जबकि एक अन्य पोल ने महाविकास अघाड़ी (एमबीए) गठबंधन के 28 सीटों पर जीतने की उम्मीद जताई है। महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था लेकिन आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है। एनडीए के लिए 2019 की सफलता दोहराना मुश्किल हैं। लोग भाजपा से ज्यादा एकनाथ शिंदे और अजीत पवार से नाराज हैं कि उन्होंने टूट में हिस्सा लिया। उनके मुताबिक घटनाक्रम ने भाजपा को लंबे समय के लिए नुकसान पहुंचाया है। विश्लेषक के मुताबिक एनसीपी और शिव सेना के कई वोटर असमंजस में है कि किसको वोट करें। वो मानते हैं कि एक तरफ जहां भाजपा पीएम मोदी के नाम पर निर्भर होगी। वहीं शरद पवार और उद्धव ठाकरे को लेकर सहानुभूति है। ये सहानुभूति कितनी गहरी है, ये साफ नहीं है लेकिन एकनाथ शिंदे का हाथ थामने वाले इससे इंकार करते हैं। विश्लेषकों के अनुसार पार्टियों में टूट के कारण कई लोगों में छवि बनी है कि भाजपा पार्टी और परिवार तोड़ने वाली है और ये छवि भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। कुछ लोग इसे महाराष्ट्र बनाम गुजरात के रूप में भी देख रहे हैं और मराठा अस्मिता का प्रश्न भी बना रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मतदाताओं के लिए बड़े चुनावी मुद्दे


स्टेट फॉर द स्टडी ऑफ डेवलEिपग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम के तहत मतदान से पहले सर्वेक्षण में मतदाताओं के मन को समझने की कोशिश की गई। सर्वेक्षण में लोगों ने माना की बीते पांच सालों में रोजगार के अवसरों में गिरावट आई है। जरूरी वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इनकी वजह से लोगों को जीवन स्तर संतुलित रखने में परेशानी हो रही है। सर्वेक्षण में शामिल 62 फीसदी मानते हैं कि आज के दौर में नौकरी पाना सबसे कठिन है। शहर से लेकर गांव तक लोगों के पास रोजगार का संकट है। महिलाओं के लिए तो मौके और भी कम हो गए हैं। बेरोजगारी के मुद्दे पर कुल 62ज्ञ् लोगों का मानना है कि लोकसभा 2024 चुनाव में जनता की नजरों में यह सबसे बड़ा मुद्दा है। 62ज्ञ् गांव में, 65ज्ञ् शहरों में और कस्बों में 59ज्ञ् का मानना है कि बेरोजगारी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। वहीं 65ज्ञ् पुरुष और 59ज्ञ् महिलाएं यह मानती हैं। सर्वेक्षण में लोगों ने माना कि बेरोजगारी और महंगाई के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। उनका मानना था कि सभी वर्गों की बेहतरी के लिए राज्य सरकारों को देश की आर्थिक स्थिति संतुलित रखने के लिए आगे आना चाहिए। जहां तक महंगाई का सवाल है 76ज्ञ् जनता इससे बुरी तरह प्रभावित है। गरीब वर्ग के 76ज्ञ् लोग, कमजोर वर्ग 70ज्ञ्, मध्य 66ज्ञ्, उच्च मध्यम 68ज्ञ् ऐसा मानते हैं। जहां तक क्षेत्रों का सवाल है 72ज्ञ् गांव, शहर 66ज्ञ्, कस्बा 69ज्ञ् यह मानते हैं। दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोग बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर ज्यादा आक्रामक हैं। 67 फीसदी मुस्लिम लोग मानते हैं कि उनके लिए नौकरी खोजना दूर की कौड़ी है। इसी तरह मुस्लिम समुदाय के 76ज्ञ् लोग महंगाई को लेकर ज्यादा गंभीर हैं। सर्वेक्षण में विकास के मुद्दे पर मतदाता भाजपा के साथ दिखते हैं। हालांकि बेरोजगारी और महंगाई को लेकर भाजपा के सामने चुनौती है। सर्वेक्षण में शामिल 50 फीसदी लोगों का मानना है कि भाजपा के लिए ये दोनों मुद्दे गंभीर हो सकते हैं। उच्च वर्ग इन मुद्दों में ज्यादा रूचि नहीं दिखाते पर ग्रामीण बेरोजगारी और कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर ज्यादा आक्रामक हैं। कम पढ़े-]िलखे लोग महंगाई तो अधिक पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारी के मुद्देs को लेकर सजग हैं। चुनाव में जो मुद्दे हावी रहे ः बेरोजगारी 27ज्ञ्, महंगाई 23ज्ञ्, विकास 13ज्ञ्, भ्रष्टाचार 8ज्ञ्, राम मंदिर 8ज्ञ्, हिन्दुत्व 2ज्ञ्, भारत की छवि 2ज्ञ्, आरक्षण 2ज्ञ्, अन्य जवाब 9ज्ञ्, और 6ज्ञ् को पता नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल सिर्फ आठ फीसदी लोगों ने भ्रष्टाचार और राम मंदिर पर खुद से जोर दिया। अधिकांश मुद्दे चुनावी प्रचार व रैलियों के जरिए ही लोगों में जगह बना रहे हैं। लोकनीति सीएसडीएस ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान समेत कुल 19 राज्यों की 100 संसदीय सीटों के 400 पोलिंग बूथों पर ये सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण 28 मार्च से आठ अप्रैल के बीच हुआ। इसमें कुल 19019 लोगों ने भाग लिया। जिनमें अलग-अलग मुद्दे से जुड़े सवालों पर लोगों की राय जानी गई है। सर्वेक्षण से इतना तो तय हुआ ]िक जनता इस बार न तो मंदिर-मस्जिद, राम मंदिर इत्यादि मुद्दे पर अपना वोट देगी वे आर्थिक मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देगी बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार यह सब बड़े मुद्दे होंगे।

Saturday 13 April 2024

बिहार की अतिप्रतिष्ठित लोकसभा सीट


बिहार की सारण लोकसभा सीट पर न केवल बिहार की बल्कि पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं। कारण है यहां के दो बने उम्मीदवार। बिहार की सारण लोकसभा सीट पर आरजेडी ने लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य को चुनाव मैदान में उतारा है। करीब डेढ़ साल पहले पिता लालू प्रसाद यादव को अपनी किडनी दान देने के बाद रोहिणी आचार्य सुर्खियों में आई थीं। अब रोहिणी के सामने सारण की उस सीट को जीतने की चुनौती है जहां से लालू पहली बार सांसद बने थे। लेकिन पिछले दो चुनावों में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। रोहिणी का इस सीट पर सीधा मुकाबला भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्राrय मंत्री राजीव प्रताप रुडी से माना जा रहा है। रुडी साल 2014 से ही लगातार इस सीट से सांसद हैं। खास बात यह है कि सारण सीट को लालू प्रसाद यादव का गढ़ माना जाता है। वो 4 बार इस सीट से सांसद रहे हैं। सारण सीट से लालू की पत्नी राबड़ी देवी और समधि चंद्रिका राय भी रुडी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए थे। इस लिहाज से सारण सीट पर रुडी का मुकाबला लगातार लालू या उनके परिवार के किसी सदस्य से चल रहा है। इसी सिलसिले में अब लालू की बेटी रोहिणी आचार्य पहली बार चुनाव मैदान में हैं। रोहिणी आचार्य ने बातचीत में कहा है, राजनीति मेरे लिए नई चीज नहीं है। मैं बचपन से यह सब देखती आई हूं। मैं राजनीतिक परिवार से हूं। मां-पिताजी और भाई राजनीति में पहले से हैं। मुझे सारण की जनता से जो प्यार मिला है, उससे मैं हैरान हूं। इस तेज धूप में इतने लोग स्वागत में आए हैं। इस सीट पर ग्रामीण इलाको में लालू लालू प्रसाद यादव का समर्थन स्पष्ट तौर पर दिखता है। यहां रोहिणी आचार्य को देखने के लिए सड़कों पर लोगों की भीड़ भी नजर आती है। रोहिणी को लेकर महिला वोटरों के बीच खासा उत्साह दिखता है। साल 1977 में पहली बार लालू प्रसाद यादव इसी इलाके से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। उस समय यह सीट छपरा लोकसभा सीट कहलाती थी। साल 2004 में छपरा लोकसभा सीट से लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के राजीव प्रताप रुडी को हराकर जीत दर्ज की थी। साल 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट का नाम सारण लोकसभा सीट हो गया था। सारण लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीट हैं। पिछले चुनाव में 4 सीटों पर आरजेडी ने जीत दर्ज की थी और दो भाजपा के खाते में गई थी। रोहिणी की शादी 24 मई 2002 को समरेश सिंह से हुई थी। समरेश सिंह सिंगापुर में ही आईटी सेक्टर में नौकरी करते हैं। शादी के कुछ समय बाद से ही रोहिणी अपने पति के साथ सिंगापुर में रह रही थीं। सारण लोकसभा क्षेत्र के सोनपुर इलाके में रोहिणी का भव्य स्वागत हुआ। यहां गंगा के किनारे यादवों के बड़े गांवों का इलाका है। रोहिणी को देखने के लिए यहां महिलाओं की बड़ी संख्या सड़कों, छतों, गलियों में नजर आती है। माना जाता है कि लालू को किडनी दान देने के बाद रोहिणी आचार्य के प्रति लोगों की सांत्वना हो सकती है। राजीव प्रताप रुडी भी रोहिणी आचार्य के लिए काफी सधे हुए शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। रुडी कहते हैं जो दो-तीन दिन चुनाव मैदान में आया हो उसके बारे में मुझे बहुत जानकारी नहीं है। हर पिता को ऐसी बेटी (रोहिणी) मिलनी चाहिए। बेटियां सबसे खूबसूरत और प्यारी होती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

फिर तो कितनों को जेल भेजते रहेंगे


संवाद और संचार के संस्थानों के रूप में उभरते सोशल मीडिया मंचों के विस्तार के साथ एक समस्या यह भी उभरती है कि उस पर अभिव्यक्तियों को किस रूप में देखा जाए। ऐसा देखा गया है कि कई बार यूट्यूब, फेसबुक, एक्स जैसे सोशल मीडिया मंचों पर किसी मसले को लेकर जाहिर राय को कुछ लोगों ने आपत्तिजनक सामग्री के तौर पर देखा और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। मगर फिर सवाल उठता है कि अगर स्वतंत्र मंचों पर जाहिर किए गए विचारों को इस तरह बाधित किया जाएगा तो अभिव्यक्ति के अधिकार का क्या मतलब रह जाएगा। फिर ऐसे आरोपों में लोगों को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया एक चलन बनी तो यह कहां जाकर थमेगा? सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप से जुड़े मामले में यूट्यूबर दुरईमुरुगन सत्ताई को दी गई जमानत बहाल कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर दुरईमुरुगन की जमानत बहाल करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर आरोप लगाने वाले हर व्यक्ति को जेल में नहीं डाला जा सकता है। यूट्यूबर पर 2021 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप है। जस्टिस अभय एस. ओझा और जस्टिस उज्जवल भुइंया की बेंच ने तमिलनाडु सरकार की ओर पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि अगर चुनाव से पहले हम यूट्यूब पर आरोप लगाने वाले हर व्यक्ति को सलाखों के पीछे डालना शुरू कर देंगे, तो कल्पना कीजिए कि कितने लोग जेल में होंगे? अदालत ने आरोपी दुरईमुरुगन की जमानत रद्द करने के आदेश को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने विरोध और अपने विचार व्यक्त करके अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग नहीं किया। अदालत ने राज्य सरकार के उस अनुरोध को भी खारिज कर दिया। जिसमें सत्ताई पर जमानत के दौरान निंदनीय टिप्पणी करने से परहेज की शर्त लगाने की मांग की गई थी। अदालत मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली सत्ताई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनकी जमानत रद्द कर दी थी क्योंकि उन्होंने अदालत में दिए गए हल्फनामे का उल्लंघन करते हुए स्टालिन के खिलाफ कुछ अपमानजनक टिप्पणी की थीं। तमिलनाडु पुलिस ने कारोबार के नियमों का उल्लंघन करके विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था। नाम तमिल काची (एनटीके) पार्टी के सदस्यों ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन के दौरान सत्ताई पर मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था। डीएमके की शिकायत पर पुलिस ने शांति भंग करने की एफआईआर दर्ज की और अक्तूबर 2021 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। मद्रास हाईकोर्ट ने नवम्बर 2021 में सतई को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया लेकिन खंडपीठ ने जमानत रद्द कर दी। सच है कि आज सोशल मीडिया पर कई बार कुछ लोग अमर्यादित, आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिससे किसी की गरिमा का हनन हो सकता है, मगर एक लोकतांत्रिक समाज और शासन में खासकर सरकारों को भी अपना रुख सुधारने का मौका मिलता है। जबकि हर व्यक्ति को लोकतंत्र में अपने विचार रखने का संवैधानिक हक मिला हुआ है।

Thursday 11 April 2024

दो निषाद चेहरे अब महागठबंधन में


मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के इंडिया गठबंधन में आ जाने से इस गठबंधन का आकार बड़ा हो गया है। अब एनडीए तथा इंडिया दोनों ही गठबंधनों में छह-छह दल हो गए हैं। हालांकि एनडीए गठबंधन में पांच दल जदयू, भाजपा, लोजपा (रामविलास), हम, और रालोसपा ही चुनाव लड़ रहे हैं। पशुपति पारस की रालोजपा समर्थन में खड़ी है। वहीं बिहार के महागठबंधन में पांच दलों के बीच सीटों का बंटवारा हुआ। राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा और भाकपा माले। अब राजद ने अपने कोटे से तीन सीट देकर वीआईपी को भी इसमें जोड़ लिया है। मुकेश सहनी शनिवार को अपनी पार्टी के साथ महागठबंधन में शामिल हुए तो इसी दिन मुजफ्फरपुर के भाजपा सांसद अजय निषाद ने विधिवत कांग्रेस की सदस्यता ले ली। बिहार के दो बड़े निषाद चेहरे अब महागठबंधन में शामिल हो गए हैं। गौर हो कि निषाद आरक्षण को लेकर पिछले कई वर्षों से संघर्ष कर रहे मुकेश सहनी सन आफ मल्लाह के रूप में भी पहचाने जाते हैं। वहीं अजय निषाद पूर्व सांसद स्व. जयनारायण निषाद के पुत्र हैं। जयनारायण निषाद समाज के एक बड़ा चेहरा रहे। बीच के 2004-2009 में जार्ज के कार्यकाल को छोड़ दें तो सन 1996 से 2024 तक मुजफ्फरपुर सीट पर पिता-पुत्र का कब्जा रहा है। फिर से उनके इस सीट पर कांग्रेस के सिम्बल पर उतरने की चर्चा है। मुकेश और अजय के महागठबंधन में आने से उत्तर बिहार की कई सीटों पर लाभ मिल सकता है। वैसे एनडीए के पास भी बड़े निषादें की जोड़ी है। भाजपा के पास हरि सहनी हैं तो जदयू के पास मदन सहनी। दोनों ही राज्य सरकार में अभी मंत्री हैं और उत्तर बिहार से आते हैं। आबादी में मल्लाहों का हिस्सा 2.60 प्रतिशत है और यह निर्णायक साबित हो सकता है। खासकर उत्तर बिहार की एक दर्जन सीटों पर। 11 वर्षें के सफर में दूसरी बार महागठबंधन में आए मुकेश सहनी बिहार की सियासत में 2013 में आए। वे कभी एनडीए का तो कभी गठबंधन का हिस्सा होने के बाद भी बिहार की राजनीति में अहम किरदार बनकर उभरे हैं। मुकेश सहनी ने 2013 में सिने वर्ल्ड में सेट डिजाइनर से बिहार की राजनीति में कदम रखा और 2015 में उन्होंने निषाद विकास संघ का गठन कर मल्लाहों को एकजुट करना प्रारंभ किया। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा का साथ दिया, लोकसभा चुनाव में भाजपा को सफलता मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में एनडीए को करारी हार। इसके बाद मुकेश सहनी से भाजपा की दूरी बढ़ने लगी। 2018 में मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का गठन किया और महागठबंधन में शामिल हो गए, पर खटपट शुरू हो गई। अब चार साल बाद महागठबंधन में फिर उनकी वापसी हुई है। महागठबंधन का हिस्सा बनी वीआईपी राजद कोटे की तीन सीटों गोपालगंज, मोतिहारी और झांझारपुर में प्रत्याशी उतारेगी। शुक्रवार को राजद कार्यालय में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने इसकी घोषणा की। इस मौके पर मुकेश सहनी ने भाजपा पर आरोप लगाया कि जब उनकी मजबूरी होती है तब वे निषाद समाज का साथ चाहते हैं, बाद में भूल जाते हैं। उन्होंने गठबंधन के घटक दलों का आभार भी जताया।

-अनिल नरेन्द्र


ओवैसी की सल्तनत को देंगी चुनौती


लोकसभा चुनावों में कुछ सीटों पर सबकी निगाहें होती हैं। चुनाव के ऐलान से लेकर नतीजों तक, ये सीटें अपने उम्मीदवारों की वजह से चर्चा में रहती हैं। ऐसी ही एक लोकसभा सीट हैदराबाद की है। हैदराबाद सीट करीब चार दशक से ओवैसी परिवार के पास है। फिलहाल इस सीट से एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी चार बार से सांसद हैं। इस सीट पर ओवैसी के पिता सुल्तान ओवैसी साल 1984 से 2004 तक सांसद रहे थे। सात विधानसभा सीट वाली हैदराबाद लोकसभा सीट में करीब 19 लाख मतदाता हैं। मगर 2024 के चुनावों में ये सीट भाजपा की ओर से मैदान में उतरीं उम्मीदवार माधवी लता की वजह से भी चर्चा में है। माधवी लता ने हाल ही में टीवी शो आपकी अदालत में एंकर रजत शर्मा से बात की। इस इंटरव्यू में माधवी लता की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट भी लिखी। भाजपा का टिकट मिलने से पहले माधवी लता के बारे में लोग अपेक्षाकृत कम ही जानते थे। सवाल इस बात पर भी उठे कि भाजपा ने ओवैसी के खिलाफ माधवी लता को किन वजहों से चुना? रिपोर्ट्स के मुताबिक, माधवी लता 49 साल की हैं और हैदराबाद की ही रहने वाली हैं। माधवी के पिता मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस में स्टोर इंचार्ज थे। माधवी लता को अच्छा वक्ता भी माना जाता है। सनातन के खिलाफ आक्रामक रहने वाले असदुद्दीन ओवैसी के परिवार का 40 साल पुराना सियासी किला भेदने के लिए भाजपा ने इस फायर ब्रांड माधवी लता को उतारकर ओवैसी के किले को भेदने की कोशिश की है। माधवी लता कट्टर हिंदुवादी होते हुए भी मदरसों की मदद करती हैं। वह कहती हैं कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं, लेकिन सनातन के खिलाफ अनावश्यक बयानबाजी करने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। माधवी के इरादे साफ हैं। पहली बार चुनाव में उतरी माधवी मानती हैं कि भाजपा ने सनातन की रक्षा का जो जिम्मा सौंपा है, उसे बिना किसी मुश्किल के पूरा करेंगी। हालांकि वह राजनीति में नई हैं और यह उनका पहला चुनाव है। लेकिन वह हैदराबाद में ओवैसी को कड़ी चुनौती देने वाली हैं, ऐसा उनके समर्थक कहते हैं। माधवी लता ने टिकट मिलने के बाद यहां तक दावा किया कि ओवैसी को उनके ही गढ़ में डेढ़ लाख वोट से हराकर संसद से बाहर करेंगी और लोकतंत्र के मंदिर में हैदराबाद का प्रतिनिधित्व करने जाएंगी। माधवी कहती हैं अब तक जिस धोखे से ओवैसी जीतते आए हैं, इस बार उनका वह वोगस वोट बैंक काम नहीं आएगा। अगर हिंदू भाई-बहन एक हो गए तो असद भाई के लिए भी बहुत मुश्किल हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी माधवी लता की खूब प्रशंसा करते हैं। पीएम ने रविवार को सोशल मीडिया पर टीवी शो (आप की अदालत) का जिक्र करते हुए कहा कि माधवी लता असाधरण हैं। उन्होंने बहुत ठोस मुद्दे उठाए हैं। पूरे तर्क व जुनून के साथ उन्होंने अपनी बात रखी। माधवी लता कहती हैं, पीएम मोदी ने मुझे जाने बिना टिकट दे दिया है। उन्हें भरोसा है कि मैं ओवैसी को टक्क्र दे सकती हूं। इससे अधिक पारदशी राजनीति और क्या हो सकती है।

Tuesday 9 April 2024

मदरसा कानून पर सुप्रीम रोक


उत्तर प्रदेश मदरसा अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रोक लगा दी। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार और दूसरे पक्षों को इस मामले में नोटिस जारी कर 31 मई तक जवाब देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे हफ्ते में होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गत 22 मार्च को अपने फैसले में सरकारी अनुदान पर मदरसा चलाने को धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ माना था। साथ ही राज्य सरकार से मदरसे में पढ़ रहे छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में करवाने को कहा था। इसके बाद राज्य के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने बीते गुरुवार को इस आदेश का पालन करने के आदेश दे दिए थे। इस मामले में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को स्वीकार किया है, इसलिए अपील नहीं की है। मदरसों के कारण सरकार पर सालाना 1096 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा था। मदरसों के छात्रों को दूसरे जिलों में दाखिला दिया जाएगा। वहीं, याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि इस आदेश से 17 लाख छात्र और 10 हजार शिक्षक प्रभावित होंगे। पीठ ने कहा कि मदरसा अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मदरसा शिक्षा को नियमित करना है। लिहाजा जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं कहा जा सकता। हाईकोर्ट के आदेश पर रोक का मतलब यह है कि फिलहाल उत्तर प्रदेश में मदरसे चलते रहेंगे। मदरसा संचालकों ने हाईकोर्ट के 22 मार्च को आए फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय का यह निर्देश कि मदरसा बोर्ड की स्थापना ही धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है, मदरसा शिक्षा को बोर्ड की नियामक शक्तियों के साथ मिलने जैसा प्रतीत होता है। यदि चिंता इस बात की है कि मदरसों के बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिले तो इसका समाधान मदरसा कानून को खत्म करने में नहीं है। इसके लिए निर्देश जारी किए जाने चाहिए। पीठ ने कहाö हाईकोर्ट ने मदरसा कानून को निरस्त करते समय छात्रों के दूसरे स्कूलों में भेजने के लिए कहा है। इससे 17 लाख छात्र प्रभावित होंगे। हमारा मानना है कि छात्रों को दूसरे स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्देश उचित नहीं है। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश प्रथम दृष्टया सही नहीं है। पीठ ने कहा कि यदि जनहित याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मदरसों को गणित, विज्ञान, इतिहास, भाषा जैसे मुख्य विषयों में धर्मनिरपेक्षता शिक्षा प्रदान की जाती है, तो इसका उपाय मदरसा अधिनियम 2004 के प्रावधानों को रद्द करना नहीं होगा। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी, पी.एम. पटवालिया, सलमान खुर्शीद और मेनका गुरुस्वामी ने हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे।

-अनिल नरेन्द्र


संजय सिंह की दहाड़


आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय Eिसह ने कहा कि जेल में छह महीने बिताने के बाद उनका मनोबल बढ़ा है और साथ ही अन्याय व तानाशाही के खिलाफ लड़ने का संकल्प मजूबत हुआ है। जमानत मिलने के बाद तिहाड़ जेल से बाहर आए संजय Eिसह ने कहा कि जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पूर्व मंत्री सत्येन्द्र जैन भी जल्द रिहा होंगे। तिहाड़ से निकलते ही संजय सिंह ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि ये समय जश्न का नहीं बल्कि संघर्ष का है। अपने संबोधन में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि जेल का जवाब जनता देगी अपने वोट से। जानकार मानते हैं कि संजय सिंह की रिहाई संकट से जूझती आम आदमी पार्टी के लिए सुकून लेकर आई है। ये न सिर्फ कार्यकर्ताओं और अन्य नेताओं में उत्साह भरने का काम करेगी बल्कि आने वाले लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को फायदा होगा। संजय सिंह आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और उनकी पार्टी के पदाधिकारियों, सांसदों, नेताओं, कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़ मानी जाती है। जब तक संजय सिंह रिहा नहीं हुए थे, तब तक पार्टी के चार बड़े नेता अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन और खुद संजय सिंह जेल में थे। पार्टी एक तरह से लीडर लैस हो गई थी। संजय सिंह के आने से पहला फायदा तो ये होगा कि पार्टी को एक सफल नेतृत्व मिलेगा। संजय सिंह आम आदमी पार्टी के उन लोगों में से हैं जो राजनीतिक तौर पर काफी मंझे हुए हैं। उनकी पार्टी के कैडर में पदाधिकारियों, सांसदों, विधायकों के बीच अच्छी पकड़ है। साथ ही उन्होंने पंजाब में भी काफी काम किया है तो दिल्ली और पंजाब दोनों ही जगह पार्टी इकाई उनका बहुत सम्मान करती है। इस लिहाज से भी वह पार्टी को बहुत फायदा दे सकते हैं। संजय सिंह की जेल से रिहाई के समय तिहाड़ जेल के बाहर जो माहौल था वह शायद आम आदमी पार्टी के किसी नेता के लिए कभी न हो। उसमें उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया या स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन रहे हों। जिस दिन अरविन्द केजरीवाल तिहाड़ पहुंचे थे उनके लिए भी ऐसा माहौल नहीं था। जिस समय संजय सिंह जेल से बाहर आए तो उनके समर्थकों में गजब का उत्साह था और शेर आया शेर आया नारे से उन्होंने माहौल को पूरी तरह गरमा दिया था। जो बोलने का अंदाज संजय सिंह का है वह किसी के पास नहीं। सवाल यह उठ रहा था कि जब सारे टॉप नेता जेल में हैं तो पार्टी कौन संभालेगा, पार्टी में लीडरशिप की दूसरी पंक्ति में कौन हैं? पर जब संजय सिंह बाहर आए तो ये भावना जगी कि कम से कम कोई तो नेता साथ है, जो वाकई हतोत्सहित करने वाला है कि जब लोकसभा चुनाव आ गए हैं तब पार्टी के सारे शीर्ष नेता जेल में हैं। सुनीता केजरीवाल को भले ही आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री की कमान मिल जाए लेकिन वह सिर्फ नपा तुला ही बोल सकती हैं, क्योंकि वह राजनीति की पाठशाला में अभी एबीसीडी सीख रही हैं जबकि संजय सिंह इसमें महारथ हासिल कर चुके हैं। जिसके चलते हर विधानसभा क्षेत्र में जब उनकी सभा होगी तो वहां का आलम ही अलग होगा और कहीं न कहीं उनका कद आम आदमी पार्टी में तेजी से बढ़ेगा क्योंकि इस समय जितने भी नेता बाहर हैं उनमें वह सब पर भारी पड़ते हैं। संजय सिंह के बाहर आने से इंडिया एलायंस को भी फायदा मिलेगा। याद रहे कि संजय सिंह भाजपा के रहमो-करम पर तो छूटे नहीं है। उनके खिलाफ केस इतना कमजोर था कि छुटना तो था ही।

Saturday 6 April 2024

बिहार में सीधी लड़ाई


बिहार में पाला बदलने का सिलसिला जारी है। मंगलवार को मुजफ्फरपुर के वर्तमान सांसद अजय निषाद ने भाजपा से इस्तीफा दे कांग्रेस का पंजा थाम लिया। हालांकि राज्य ने अपनी 40 संसदीय सीटें के नाम घोषित कर दिए हैं। इसमें अजय निषाद का नाम नहीं है। इसी से नाराज होकर उन्होंने इस्तीफा दिया है। इंडिया गठबंधन ने अपनी सभी सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं किए हैं। लेकिन यह लगभग तय है कि बिहार की सभी 40 सीटों पर लड़ाई सीधी होगी। बिहार में सात चरणों में मतदान होना तय हुआ है। पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को होगा। चार अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जमुई से बिहार में प्रचार का शंखनाद किया। पहले चरण में चार सीटों औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई में चुनाव है। इसमें औरंगाबाद से सुशील कुमार सिंह और नवादा से विवेक ठाकुर, गया से हम के जीतन मांझी और जमुई से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार अरुण भारती चुनावी रण में हैं। वहीं इन चारों सीटों पर क्रम से अजय कुशवाहा, श्रवण कुमार, सर्वजीत कुमार और अर्चना रविदास राजद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव प्रचार में डटे हैं। इस तरह भाजपा के दस और जद (एकी) से 24 पर मुकाबला राजद से होगा जिन दस सीटों पर भाजपा-राजद की टक्कर होगी वे है... नवादा और औरंगाबाद, बक्सर, पाटलिपुत्र, पूर्वी चंपारण, सारण, उजियारपुर, दरभंगा, मधुबनी और अररिया हैं। वहीं जद (एकी) से राजद से इन सीटों पर मुकाबला होगा ये सीटें हैं जहानाबाद, मुंगेर, बांका, वाल्मीकि नगर, शिवहर, सीतामढ़ी, सीवान, गोपालगंज, झंझारपुर, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया। पूर्णिया अदला-बदली कांग्रेस से होने की भी आशंका जताई जा रही है। कांग्रेस को नौ सीटें बंटवारे में मिली हैं। इनमें पांच मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण, पटना साfिहब, सासाराम और महाराजगंज में मुख्य मुकाबला भाजपा से होना तय है। भागलपुर, किशनगंज और कटिहार पर जद (एकी) से कांग्रेस की चुनावी रण में टक्कर है। वहीं समस्तीपुर में लोजपा (राम) से कांग्रेस चुनावी रण में टक्कर है। भागलपुर सीट पर विधायक अजित शर्मा, कटिहार से कद्दावर तारिक अनवर और किशनगंज से वर्तमान सांसद डॉ. जावेद के नामों की सूची मंगलवार को जारी कर दी गई। दिलचस्प लड़ाई माले से है। राजद को तीन दल से चुनावी लोहा लेना है। आरा से भाजपा, नालंदा से जद (एकी) और काराकाट में रालोसपा से चुनौती है। भाकपा को बेगुसराय मिली है। यहां भाजपा से इसका मुकाबला होगा तो खगड़िया में लोजपा (राम) से टक्कर होगी। फिलहाल बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर 39 पर राजग का कब्जा है। यानि भाजपा 17, जद (एकी) 16 और पांच लोजपा (राम) ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती थी। एक सीट किशनगंज की कांग्रेस के पास है। यूं तो कांग्रेस गठबंधन के तहत भागलपुर सीट पर पहली दफा चुनाव लड़ रही है। 2024 के लोकसभा में बिहार की 40 सीटों का महत्व बहुत बढ़ गया है। सभी पार्टियों के लिए बिहार एक जबरदस्त चुनौती बना हुआ है। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है? 

-अनिल नरेन्द्र


चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस


सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती का अनुरोध करने वाली याचिका पर निर्वाचन आयोग और केन्द्र सरकार से जवाब मांगा है। वर्तमान में वीवीपैट पर्चियों के माध्यम से केवल रैंडम रूप से चयनित पांच ईवीएम (इलेक्ट्रिनिकल वोटिंग मशीन) के सत्यापन का नियम है। याचिका में सभी मतदाता सत्यापित पेपर ट्रेल (वीवीपैट) पेपर पर्चियों की गिनती की मांग की गई थी। मामले की अगली सुनवाई 17 मई को हो सकती है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने इसी तरह की राहत की मांग करते हुए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दायर एक अन्य याचिका के साथ इस याचिका को टैग करते हुए आदेश पारित किया। याचिका में निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देश को भी चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि वीवीपैट सत्यापन क्रमिक रूप से किया जाएगा, यानि एक के बाद एक जिससे अनावश्यक देरी होगी। याचिका में दलील दी गई है fिक यदि एक साथ सत्यापन किया जाए और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में गिनती के लिए अधिक संख्या में अधिकारियें को तैनात किया जाए तो पांच-छह घंटे के भीतर पूरा वीवीपैट सत्यापन किया जा सकता है। याचिकर्ताआंss ने तर्क दिया कि सरकार ने लगभग 24 लाख वीवीपैट की खरीद पर लगभग 5000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं और वर्तमान में केवल 20000 वीवीपैट की पर्चियों का सत्यापन होता है। यह देखते हुए कि वीवीपैट और ईवीएम के संबंध में विशेषज्ञों द्वारा कई सवाल उठाए जा रहे हैं और यह तथ्य कि अतीत में ईवीएम और वीवीपैट वोटों की गिनती के बीच बड़ी संख्या में विसंगतियां सामने आई हैं। यह जरूरी है कि सभी वीवीपैट पार्चियों की गिनती की जाए और मतदाता को अपनी वीवीपैट पर्ची को मतपेटी में मौलिक रूप से गिराने की अनुमति देकर यह ठीक से सत्यापित करने का अवसर दिया जाए कि मतपत्र में डाला गया उसका वोट भी गिना जाता है। याचिकाकर्ता ने चार राहत की मांग की है। एक यह कि ईसीआई अनिवार्य रूप से सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती करके वीवीपैट के माध्यम से मतदाता द्वारा दर्ज किए गए वोटों के साथ ईवीएम में गिनती को सत्यापित करता है। दो-चुनाव आयोग की ओर से अगस्त 2023 को इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन और वीवीपैट पर मैनुअल के दिशानिर्देश संख्या 14.7 (एच) को रद्द कर दिया जाना चाहिए। यह वीवीपैट पर्चियों में केवल क्रमिक सत्यापन की अनुमति देता है जिसके परिणामस्वरूप सभी वीवीपैट पर्चियों की fिगनती में अनुचित देरी होती है। तीन यह कि ईसीआई और मतदाता की वीवीपैट द्वारा उत्पन्न वीवीपैट पर्ची को मतपेटी में डालने की अनुमति देता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मतदाता का मत रेकार्ड के अनुसार गिना गया है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए यह अति आवश्यक है कि चुनाव में पारदर्शिता लाई जाए और वोटरों में विश्वास पैदा किया जा सके कि उनकी वोट उसी उम्मीदवार या पार्टी को गई है जिसे उसने वोट दिया है। ईवीएम से जनता का विश्वास उठ चुका है। देखें, चुनाव आयोग इसका क्या जवाब देता है और सुप्रीम कोर्ट आगे क्या कार्रवाई करता है।

Thursday 4 April 2024

चनाव में टीवी - फ़िल्मी सितारों की भरमार।

चुनाव का बिगुल बज चुका है और लगभग हर बड़ी पार्टी ने टीवी और फिल्मी सितारों को मैदान में उतारने का फैसला कर लिया है। देश में राजनीति और फिल्मी सितारों का संगम काफी पुराना है, किसी को अभिनय के लिए कोई जाना-पहचाना चेहरा मिल जाता है तो किसी को फिल्मों में या टीवी पर एक भूमिका निभा चुके राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, जय परदा, शत्रु घन सिन्हा, शेखर सुमन और मन मन सेन के पास राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने का आकर्षक मंच है और दक्षिण भारत में एमजी जैसे कई उदाहरण हैं आम चुनाव 2024 के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा जारी उम्मीदवारों की सूची के अनुसार, रामचंद्रन, जयललिता, अंति रामा राव और चिरंजीव और पवन कल्याण भी लंबे समय तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे किशन, मनोज तिवारी, कंगना रनौत, दिनेश लाल यादव, निरहवा, स्ट्रोघन सिन्हा जैसे दिग्गज राजनेताओं और सहायक अभिनेताओं या अभिनेत्रियों के अलावा, अरुण गोयल जैसे प्रसिद्ध सितारे भी हैं जो चेनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे। अभिनेताओं का राजनीति में आना कोई नई बात नहीं है लेकिन रामायण और महाभारत दो ऐसे टीवी सीरियल हैं जिनमें ज्यादातर प्रमुख कलाकार संसद पहुंचे पात्रों ने राजनीतिक भूमिकाएँ निभाई हैं। द्रौपदी चणव की नाव पर भी सवार हो चुकी हैं। हनुमान (दारा सिंह) भी राज्यसभा में मनोनीत सांसद रह चुके हैं पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद, भाजपा ने उन्हें उसी वर्ष राज्यसभा में भेजा, 2002 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता सेंसर बोर्ड के सक्रिय अध्यक्ष के तौर पर बी. कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर तीन बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच चुके हैं. वहीं, रामायण की सीता माता यानी दीपिका चठालिया भी लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं 1991 में बीजेपी के टिकट पर संसद पहुंचीं। उन्होंने जया बच्चन को एक बार फिर से राज्यसभा में भेजा। उनके पति अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से सांसद रहे नंदन बहुगुणा को हराकर लोकसभा पहुंचे थे लोकसभा से दिया इस्तीफा सनी देओल इस बार 2019 में तृणमूल कांग्रेस से चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं और नुसरत जहां जैसी बंगाली एक्ट्रेस भी लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं. तृणमूल कांग्रेस द्वारा घोषित 42 उम्मीदवारों में 6 फिल्मी सितारे हैं, देखिए वे 2024 के चुनाव में क्या कर रहे हैं। (अनिल नरेंद्र)

नोटबंदी - काला धन कैसे ख़त्म हुआ?

शनिवार को हैदराबाद के नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में आयोजित न्यायपालिका और संविधान संगोष्ठी के पांचवें संस्करण के उद्घाटन सत्र में अपने मुख्य भाषण में, न्यायमूर्ति नागरत्न, जिन्होंने पिछले साल 2 जनवरी को फैसले में नोटबंदी का विरोध किया था, ने पूछा कि कब कार्यवाही से 98% करेंसी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास वापस आ गई, तो काला धन कैसे ख़त्म हुआ? अपने भाषण में, जस्टिस रत्ना ने नोटबंदी मामले में अपने 2023 के फैसले के बारे में बात की, जब सुप्रीम कोर्ट ने 41 के बहुमत के फैसले से केंद्र सरकार के 2016 के नोटबंदी के फैसले को बरकरार रखा था, जब उसने केंद्र के नोटबंदी के कदम का विरोध करने के लिए अपनी अस्वीकृति व्यक्त की थी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि वह नोटबंदी मामले की सुनवाई कर रही पीठ का हिस्सा बनकर खुश हैं। उन्होंने इस विशेष मामले में अपनी गैर-मौजूदगी के बारे में कहा कि 2016 में जब नोटबंदी हुई थी तो 86% मुद्रा 500/1000 के नोट थे। उन्होंने कहा कि 98 फीसदी करेंसी वापस आ गई, तो फिर हम काले धन से निपटने के उपायों (नोटबंदी) के निशाने पर कहां हैं? सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि उन्होंने उस समय सोचा था कि नोटबंदी काले धन को सफेद करने का एक अच्छा तरीका था. उन्होंने कहा कि क्योंकि 98 प्रतिशत मुद्रा वापस आ गई थी पैसे को सफ़ेद करने का तरीका। हम नहीं जानते कि आयकर कार्यवाही के संदर्भ में उसके बाद क्या हुआ, इसलिए आम आदमी की दुर्दशा ने मेरी भक्ति को परेशान कर दिया और मुझे असहमत होना पड़ा। जस्टिस नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि जिस तरह से नोटबंदी की गई, वह सही नहीं थी. उन्होंने कहा कि नोटबंदी में निर्णय लेने की कोई प्रक्रिया नहीं थी जो कानून के अनुरूप थी. उन्होंने बताया कि जिस जल्दबाजी के साथ यह किया गया, कुछ लोग ऐसा तब भी कहते हैं वित्त मंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने महाराष्ट्र विधानसभा में उठाए गए मुद्दे का भी उल्लेख किया। उन्होंने राज्यपाल के अवरोध का एक और उदाहरण दिया कि इसे संवैधानिक अदालतों के समक्ष लाना संविधान के तहत एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है संविधान के तहत अपने कर्तव्यों के साथ और इस तरह की मुकदमेबाजी से बचने के लिए, अदालतों को बुलाने से पहले, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि राज्यपालों को कई चीजें करने या न करने के लिए कहा जाना काफी शर्मनाक था, इसलिए, यह अब है समझा जाता है कि संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहे जाने पर न्यायमूर्ति नागरत्न की टिप्पणी भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की गई थी, यह द्रमुक द्वारा तमिलनाडु के राज्यपाल के रवैये पर गंभीर चिंता व्यक्त करने के तुरंत बाद आई थी आरएन रवि ने नीता को राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में बहाल करने से इनकार कर दिया।
 (अनिल नरेंद्र)

Tuesday 2 April 2024

मुख्तार अंसारी की जिंदगी का आखिरी दिन


गुरुवार रात उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी बांदा के मेडिकल कालेज में बेहोशी की हालत में पहुंचे और उसके लगभग एक घंटे बाद ही उनकी मौत हो गई। लेकिन पिछले कुछ दिनों से बांदा जेल और अस्पताल से मुख्तार अंसारी और उनकी बिगड़ती तबीयत के संकेत आ रहे थे और उनका परिवार भी यह आरोप लगा रहा था कि उन्हें धीरे-धीरे असर करने वाला जहर देकर मारने की कोशिश की जा रही है। अब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस मामले में मजिस्ट्रेट जांच बिठाई है और एक महीने में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। बांदा में मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उनका चेहरा देखकर अस्पताल से बाहर आए उनके छोटे बेटे उमर अंसारी कहते हैंö पापा ने हमें खुद बताया है कि उन्हें स्लो पाइजन दिया जा रहा है लेकिन कहां सुनवाई हुई? अब मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उनके बेटे उमर के साथ जेल से बातचीत का एक ऑडियो वायरल हुआ है। जिसमें मुख्तार की आवाज काफी कमजोर लग रही है। वह अपने बेटे उमर से कहते हैं, 18 (मार्च) तारीख के बाद रोजा नहीं हुआ है। उमर उनसे कहता है कि उन्होंने मीडिया की रिपोर्ट में मुख्तार को अस्पताल जाते देखा। जिसमें मुख्तार काफी कमजोर नजर आ रहे थे। मुख्तार को हिम्मत देते हुए उमर कहते हैं कि वो अदालतों से उनसे मिलने की इजाजत लेने की कोशिश में लगे हैं। अपनी कमजोरी बताते हुए मुख्तार अंसारी कहते हैं कि वो बैठ नहीं पा रहे हैं। जवाब में उमर कहते हैं हम देख रहे हैं पापा, जहर का सब असर है। मुख्तार आगे कहते हैं अल्लाह को अगर जिंदा रखना होगा तो रूह रहेगी। लेकिन बॉडी चली जा रही है। अभी वह व्हीलचेयर पर आए हैं और खड़े भी नहीं हो सकते हैं। 26 मार्च को यानि मंगलवार की सुबह उमर अंसारी ने स्थानीय मीडिया को पुलिस से मिला एक रेडियो संदेश भेजा जिसमें लिखा था कि मुख्तार अंसारी की तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें बांदा मेडिकल कालेज के आईसीयू में भर्ती कराया गया है। मुख्तार के भाई अफजल अंसारी जब उनसे बांदा मेडिकल के आईसीयू से मिलकर बाहर निकले तो उन्होंने बाहर मौजूद मीडिया से कहा कि उन्हें मुख्तार से 5 मिनट मिलने का मौका मिला और वो होश में थे। उन्होंने कहा कि मेरे भाई (मुख्तार) का मानना और कहना है कि उन्हें खाने में कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया है। 40 दिन पहले भी यह हो चुका है। उधर मुख्तार अंसारी की ऑटोप्सी रिपोर्ट में मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गई है। इस खबर को हिन्दुस्तान टाइम्स ने प्रमुखता से छापा है। अखबार का कहना है कि ऑटोप्सी रिपोर्ट में जहर देने जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। अखबार के मुताबिक रानी दुर्गावती मेडिकल कालेज में डाक्टरों के एक पैनल ने ऑटोप्सी की है। यह वही अस्पताल है जहां मुख्तार ने अंतिम सांसे ली थी। मुख्तार अंसारी अपराध की दुनिया में जितना ही खूंखार था। कई लोगों की नजरों में वह अपनी छवि मसीहा वाली गढ़ने की कोशिश करता था। साल 1996 में जब वह पहली बार विधायक बना तो एक मुस्लिम परिवार उसके पास बेटी की शादी की मदद मांगने पहुंचा। मुख्तार ने भरोसा दिया। अगले दिन ही लड़के वाले बिना दहेज की शादी के लिए राजी हो गए। इतना ही नहीं शादी के एक दिन पहले सामान लेकर मुख्तार खुद लड़की वालों के घर पहुंचे। इसी तरह मुंबई में मऊ के एक युवक की गिरफ्तारी हुई। परिवार ने गुहार लगाई तो मुख्तार उसे छुड़वाकर लाया। मुख्तार अंसारी राजनीति फिल्मी स्टाइल में करता था। एक ठेकेदार से विवाद हुआ, गोली चली। एक मजदूर मारा गया। मुख्तार मजदूर परिवार का हितैषी बन गया। कई सालों तक बीएसपी सुप्रीमो मायावती मो. मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा मानती थी। मायावती ने मुख्तार की आपराधिक छवि पर पर्दा डालते हुए कहा था कि उनका परिवार स्वतंत्रता सेनानी है और मुख्तार गरीबों के मसीहा हैं।

-अनिल नरेन्द्र

जर्मनी, अमेरिका के बाद अब संयुक्त राष्ट्र


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मनी और अमेरिका के बयान के बाद अब संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक से अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को फ्रीज करने को लेकर पूछा गया सवाल को जवाब में एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि दूसरे किसी भी देश की तरह जहां चुनाव हो रहा है, भारत में भी राजनीतिक और नागरिक अधिकारों के साथ-साथ सभी लोगों के हितों की रक्षा होनी चाहिए। प्रवक्ता ने कहा कि दुनिया को उम्मीद है कि हर कोई स्वतंत्र और निष्पक्षता माहौल में भारत के संसदीय चुनावों में वोट कर सकेगा। प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की आबकारी नीति में हुए कथित घोटाले से जुड़े केस में 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। भारत के पूर्व विदेश सचिव और तुर्की, फ्रांस, रूस सहित कई देशों के राजदूत रहे कंवल सिब्बल ने अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी संबंधित यूएन की टिप्पणी को सुनियोजित बताया है। सोशल मीडिया एक्स पर उन्हेंने लिखा, क्या केजरीवाल को मिल रहा यह बाहरी समर्थन कुछ कहता है? संयुक्त राष्ट्र चार्टर सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप पर रोक लगता है, लेकिन यूएनएसजी का आफिस खुद इसका उल्लंघन कर रहा है। इससे पहले अमेरिका केजरीवाल की गिरफ्तारी और चुनाव से पहले विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बैंक खातों को फ्रीज करने के आरोपों में दो बार टिप्पणी कर चुका है। अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने सोमवार को कहा था कि अमेरिका, अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से जुड़ी रिपोर्ट्स पर बारीकी से नजर रख रहा है और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया को मजबूत करने के पक्ष में खड़ा है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय को अवांछित करार देते हुए भारत ने इसका कड़ा विरोध जताया और भारत में मौजूद अमेरिकी कार्यवाहक डिप्टी चीफ ऑफ मिशन ग्लोरिया बर्बेना को तलब किया था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कल भारत ने अमेरिकी दूतावास को एक वरिष्ठ राजनयिक को अपनी कड़ी आपत्ति और विरोध दर्ज कराया था। भारत में कानूनी प्रक्रिया कानून के शासन से चलती है। अमेरिकी राजनयिक को तलब किए जाने के बाद फिर से केजरीवाल और कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से सवाल पूछा गया था। इसके जवाब में मैथ्यू विलर ने कहा था, हम कांग्रेस पार्टी के आरोपों से भी अवगत हैं कि आयकर विभाग ने उनके कुछ बैंक खातों को फ्रीज कर दिया है। जिससे कि आगामी चुनावों में प्रचार करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है। हम इनमें से हर एक मुद्दे के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और समय पर कानूनी प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करते हैं। बीते सप्ताह ही सोनिया गांधी सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि महज 14 लाख रुपए के टैक्स बकाये से जुड़े मामले में पार्टी को 285 करोड़ रुपए का फंड को रोक दिया गया है। इससे पहले जर्मनी ने भी अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के लिए निष्पक्ष सुनवाई की अपील की थी। केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से सवाल किया गया था कि चुनावों से पहले भारत में विपक्ष के एक बड़े नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को वो कैसे देखते हैं? प्रवक्ता ने कहा था, हमने इस मामले की जानकारी ली है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हम मानते हैं और उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों से जुड़े मानकों को लागू किया जाएगा।

Saturday 30 March 2024

क्या आईएस खुरासान ने रूस पर हमला किया


रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और उनके प्रभाव वाले मीडिया की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि शुक्रवार को मॉस्को के थिएटर पर होने वाले हमले की जिम्मेदारी यूक्रेन पर डाली जा सके। लेकिन इस हमले की जिम्मेदारी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) खुरासान ने स्वीकार की है। हमलावरों ने न केवल क्रॉकस सिटी हाल में मौजूद लोगों पर बंदूकों से हमला किया बल्कि उन्होंने इमारत को भी आग लगा दी। रूस की जांच समिति की ओर से जारी वीडियो में कॉन्सर्ट हॉल का न केवल छत गिरने का दृश्य दिखाया गया है बल्कि बीम भी गिरते देखे जा सकते हैं। इस हमले में 137 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। अंग्रेsजी में इस चरमपंथी संगठन को आईएस कहा जाता है जो कथित इस्लामिक स्टेट खुरासान का संक्षिप्त रूप है। यह संगठन वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित किए गए गुट कथित इस्लामिक स्टेट का ही अंग है। इसका पूरा ध्यान अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान पर केंद्रित है। इस संगठन ने खुद को खुरासान का नाम दिया है क्योंकि जिन देशों में यह सक्रिय है वह क्षेत्र इस्लामी खिलाफत के इतिहास में इसी नाम से जाना जाता था। कथित इस्लामिक स्टेट खुरासान पिछले नौ सालों से इस क्षेत्र में सक्रिय है लेकिन हाल के महीनों में यह मूल इस्लामिक स्टेट की सबसे खतरनाक अनुषांगिक शाखा बनकर उभरी है जो अपनी निर्दयता और अत्याचार की वजह से जानी जाती है। यह अतिवादी संगठन सीरिया और इराक में मौजूद अपने केंद्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर इस्लामी दुनिया में कथित खिलाफत की व्यवस्था लाना चाहता है जहां वह अपनी मर्जी के सख्त कानून लागू कर सके। अफगानिस्तान में यह संगठन सत्तारूढ़ समूह तालिबान के खिलाफ भी जंग लड़ रहा है। इस साल इसने काबुल में रूसी दूतावास को भी निशाना बनाया था जिसमें छह लोग मारे गए और कई घायल हो गए थे। इन गिरोह की ओर से पहले अस्पतालों, बस अड्डों, पुलिस अधिकारियों को भी निशाना बनाया जाता रहा है। इस साल जनवरी में इस्लामिक स्टेट खुरासान ने ईरान के राज्य मिरयान में दो आत्मघाती हमलों की भी जिम्मेदारी ली थी जिसमें लगभग 100 ईरानी नागरिक मारे गए थे, रूस की सरकारी मीडिया के अनुसार गिरफ्तार किए गए चारों लोग ताजिक थे जिनका संबंध मध्य एशिया देश ताजिकिस्तान से था जो पहले सोवियत यूनियन का हिस्सा हुआ करते थे। इस्लामिक स्टेट खुरासान की ओर से रूस पर हमला करने की कई वजहें हो सकती हैं। यह संगठन दुनिया के अधिकतर देशों को अपना दुश्मन जानती है। यह रूस, अमेरिका, यूरोप, यहूदी, ईसाई, शिया मुसलमान और मुस्लिम बहुल देशों के शासक भी उसकी दुश्मनी की लिस्ट में शामिल हैं। कथित इस्लामिक स्टेट की रूस से दुश्मनी 1990-2000 के दशक में चेचन्या की राजधानी में रूसी फौज की कार्रवाईयों के कारण भी हो सकती है। हाल के दिनों में रूस ने सीरिया में होने वाले गृह युद्ध में राष्ट्रपति अल-असद का साथ दिया था और रूसी वायुसेना ने वहां अनगिनत बमबारी की थी। इन कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में कथित इस्लामिक स्टेट और अलकायदा के लड़ाके मारे गए थे। यह रूस को एक ईसाई देश समझता है और इस ग़िरोह की ओर से मॉस्को पर होने वाले हमले के बाद पोस्ट किए गए वीडियो में ईसाइयों की हत्या की बात भी की गई थी। यह भी हो सकता है कि रूस इस समय यूक्रेन में उलझा हुआ है, ऐसे में रूस एक आसान लक्ष्य लगा हो जहां हथियार भी आसानी से उपलब्ध हों। यह हमला यूक्रेन के लिए समर्थन जुटाने के लिए भी हो सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा का बढ़ता आत्मविश्वास


जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। भाजपा को लगता है कि अब वो अपने दम खम पर ही 370 पार कर लेगी। तभी तो उनके गठबंधन साथियों से रास्ता अलग होता जा रहा है। एक के बाद एक सहयोगी दल भाजपा गठबंधन से अलग होता जा रहा है। यह सिलसिला हरियाणा में जेजेपी से शुरू हुआ, उसके बाद बीजू जनता दल तक पहुंचा और अब शिरोमणि अकाली दल तक फिलहाल पहुंच चुका है। हरियाणा में साढ़े चार साल जेजेपी के साथ गठबंधन सरकार चली पर अचानक भाजपा ने न केवल अपना मुख्यमंत्री बदला बल्कि जेजेपी से भी किनारा कर लिया। इसके बाद आया बीजेडी (बीजू जनता दल) का। भाजपा और बीजेडी के बीच गठबंधन को लेकर दो सप्ताह से चल रही अटकलबाजी तब समाप्त हो गई जब बीजेपी के ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी राज्य के सभी 21 लोकसभा और 147 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। लेकिन जिस सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सामल ने यह घोषणा की, उसी में यह भी संकेत मिला कि भाजपा ने चुनाव बाद बीजेडी के साथ अनौपचारिक समझौते के लिए द्वार खुला रखा है। सामल ने कहा कि ओडिशा अस्मिता, गौरव और लोगों के हित से जुड़े विषयों को देखते हुए यह फैसला किया गया है। दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में बीजेडी ने 114 और लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीती थीं। बीजेडी विधानसभा की 147 में से सौ सीटों पर खुद लड़ना चाहती थी। भाजपा लोकसभा की 21 में से 14 सीटों पर दावेदारी जता रही थी। जबकि विधानसभा की आधी सीटों पर लड़ना चाहती थी। भाजपा के फार्मूले के तहत बीजद को अपने कई विधायकों और सांसदों का टिकट काटना पड़ता। इसके कारण चुनाव से पहले उसे बगावत का डर था। भाजपा ने लोकसभा की कुछ सीटों पर बीजद सांसदों को अपने निशान पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, मगर इस पर सहमति नहीं बन पाई। उधर लोकसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल से पंजाब में भाजपा की सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन सकी और बात टूट गई। पंजाब में जहां अकाली दल की शर्तों के साथ भाजपा के स्थानीय नेताओं की आपत्ति गठबंधन में बाधा बनी, वहीं कहा जा रहा है कि पंजाब में दोनों दलों के बीच सीट की संख्या कोई मुद्दा नहीं थी। अकाली दल ने गठबंधन के लिए किसान आंदोलन के संदर्भ में कुछ ठोस आश्वासन देने और अटारी बार्डर पर व्यापार के लिए खोलने की शर्त रखी। इस पर भाजपा नेतृत्व ने राज्य इकाई के नेताओं से बात की तो ज्यादार नेता गठबंधन के पक्ष में नजर नहीं आए। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ सहित कई नेताओं ने कहा कि भाजपा के समक्ष सिख मतदाताओं के बीच पैठ बनाने का यह बड़ा अवसर है। इसे खोना नहीं चाहिए। इन नेताओं ने लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के भाजपा में शामिल होने पर सहमति देने की जानकारी देते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर सिखों में भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं है, ऐसे में पार्टी को मोदी सरकार के कार्यकाल में सिख अस्मिता से जुड़े निर्णयों के सहारे मैदान में उतरना चाहिए। भाजपा का अकेले लड़ने का कितना लाभ होगा, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, जब मतगणना होगी।

Thursday 28 March 2024

जेल से ही चलाएंगे सरकार केजरीवाल


अभी सियासी हलको में यह चर्चा हो रही थी कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के गिरफ्तार होने के बाद दिल्ली की सरकार का क्या होगा? क्या वह इस्तीफा देंगे और कोई दूसरे विधायक को दिल्ली सौपेंगे? या फिर वह तिहाड़ जेल से ही सरकार चलाएंगे। सीएम आवास के बाहर एकत्रित आप नेताओं और कार्यकर्ताओं का साफ कहना था कि केजरीवाल इस्तीफा नहीं देंगे और गिरफ्तारी के बाद भी वे जेल से ही सरकार चलाएंगे। उनका यह कहना ही था कि केजरीवाल जी का पहला आदेश तिहाड़ से आ गया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में रहकर सरकार चलाने के दौरान अपना पहला निर्देश देते हुए जल मंत्री आतिशी को शहर के कुछ इलाकों में पानी एवं सीवर से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए कहा। मंत्री आतिशी ने उनके आदेश को मीडिया के सामने पढ़ा। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने आदेश में कहा कि मुझे पता चला है कि दिल्ली के कुछ इलाकों में पानी और सीवर की काफी समस्याएं हो रही हैं। इसे लेकर मैं चिंतित हूं। चूंकि मैं जेल में हूं इस वजह से लोगों को जरा भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए। गर्मियां आ रही हैं, जहां पानी की कमी है। वहां उचित संख्या में टैंकरों का इंतजाम कीजिए। मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों को उचित आदेश दीजिए ताकि जनता को किसी तरह की परेशानी न हो। जनता की समस्याओं का तुरन्त और समुचित समाधान होना चाहिए। जरूरत पड़ने पर उपराज्यपाल महोदय का भी सहयोग लें। वे भी आपकी जरूर मदद करेंगे। कानून क्या कहता है? जानकार कहते हैं कि गिरफ्तारी पर इस्तीफा देने की कोई बाध्यता नहीं है, क्योंकि गिरफ्तारी होने को दोष सिद्धी नहीं माना जा सकता। ऐसे में किसी सीएम की गिरफ्तारी होने से तुरन्त उनका पद नहीं जा सकता, दूसरी ओर विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि देखना होगा कि जेल से सरकार चलाना कितना प्रेक्टिकल होगा, लोकतंत्र की परंपराओं के कितने अनुरूप होगा। इसके लिए जेल नियमों से लेकर तमाम तरह के पहलुओं पर काफी कुछ निर्भर करेगा। लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचार्य का कहना है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए भी कैबिनेट मीटिंग होती है, लेकिन जहां तक जेल से कैबिनेट मीटिंग या मंत्रियों के साथ मीटिंग का सवाल है तो इसके लिए जेल प्रशासन की मंजूरी जरूरी होगी। अगले जेल प्रशासन से मंजूरी नहीं मिलती तो कैबिनेट की बैठक संभव नहीं हो सकती है। अगर केजरीवाल इस्तीफा नहीं देते हैं तो जेल अथॉरिटी पर काफी कुछ निर्भर करता है। अगर मुख्यमंत्री जेल से सरकार चलाना चाहेंगे और जेल अथॉरिटी इसके लिए इजाजत देगी तो ऐसा किया जा सकता है। एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि पिछले साल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उनकी एक अर्जी थी कि जो मंत्री जेल जाता है उसे पद से वंचित किया जाना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो मंत्री को पद से इस्तीफा देना अनिवार्य करता है। उपराज्यपाल के पास किसी भी इमारत को जेल में बदलने की शक्ति है और अगर केजरीवाल उन्हें नजरबंद करने के लिए मना सकते हैं तो इससे उन्हें दिल्ली सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज का हिस्सा बनने में मदद मिलेगी। भाजपा उधर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही है।

-अनिल नरेन्द्र

सीजेआई की ट्रोलिंग


प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उनके साथ हाल ही में हुई उस घटना को याद किया जब एक सुनवाई के दौरान कमर दर्द के कारण उन्हें अपनी कुर्सी ठीक करने की वजह से विवाद खड़ा किया गया और उन्हें ट्रोल किया गया और सोशल मीडिया पर शातिर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। बेंगलूरू में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने न्यायिक अधिकारियों के लिए तनाव प्रबंधन और जीवन शैली व काम के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत पर जोर डाला। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कर्नाटक राज्य न्यायिक अधिकारी संघ द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश के पास काफी काम होता है और परिवार तथा अपनी देखभाल के लिए समय नहीं निकाल पाने के कारण उन्हें उपयुक्त रूप से काम करने की मशक्कत करनी पड़ सकती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, तनाव का प्रबंधन करना और कामकाज एवं जीवन के बीच संतुलन बनाने की क्षमता पूरी तरह से न्याय प्रदान करने से जुड़ी हुई है। दूसरों के घाव भरने से पहले आपको अपने घाव भरना सीखना चाहिए। यह बात न्यायाधीशों पर भी लागू होती है। उन्हेंने न्यायिक अधिकारियों के 21वें द्विवार्षिक राज्य स्तर सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अपने एक हालिया व्यक्तिगत अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि एक अहम सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के आधार पर हाल में उनकी आलोचना की गई। उन्होंने कहा, महज चार-पांच दिन पहले जब मैं एक मामले की सुनवाई कर रहा था, मेरी पीठ में थोड़ा दर्द हो रहा था, इसलिए मैंने बस इतना किया थाकि अपनी कोहनियां अदालत में अपनी कुर्सी पर रख दीं और मैंने कुर्सी पर अपनी मुद्रा बदल ली। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर कई टिप्पणियां की गई, जिनमें आरोप लगाया गया कि प्रधान न्यायाधीश इतने अहंकारी हैं कि वह अदालत में एक महत्वपूर्ण बहस के बीच उठ गए। प्रधान न्यायाधीश ने उल्लेख किया उन्होंने आपको यह नहीं बताया कि मैंने जो कुछ किया वह केवल कुर्सी पर मुद्रा बदलने के लिए किया था। 24 वर्षों से न्यायिक कार्य करना थोड़ा श्रमसाध्य हो सकता है जो मैंने किया है। उन्होंने कहा मैं अदालत से बाहर नहीं गया। मैंने केवल अपनी मुद्रा बदली, लेकिन मुझे काफी दुर्व्यवहार ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा... लेकिन मेरा मानना है कि हमारे कंधे काफी चौड़े हैं और हमारे काम को लेकर आम लोगों का हम पर पूरा विश्वास है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों के समान ही तालुक अदालतों में (न्यायधीशों को) सुरक्षा नहीं मिलने के संदर्भ में उन्होंने एक घटना को याद किया जिसमें एक युवा दीवानी न्यायाधीश को बार के एक सदस्य ने धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया तो वह उनका तबादला करवा देगा। कामकाज और जीवन के बीच संतुलन तथा तनाव प्रबंधन इस दो दिवसीय सम्मेलन के विषयों में से एक था। इस बारे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि तनाव प्रबंधन की क्षमता एक न्यायाधीश के जीवन में महत्वपूर्ण है। खासकर जिला न्यायाधीशों के लिए। उन्होंने कहा कि अदालतों में आने वाले कई लोग अपने साथ हुए अन्याय को लेकर तनाव में रहते हैं। उन्होंने कहा प्रधान न्यायाधीश के रूप में मैंने बहुत से वकीलों और वादियों को देखा है, जब वे अदालत में अपनी सीमा पार कर जाते हैं इसका उत्तर यह नहीं कि उन्हें अवमानना का नोटिस दें बल्कि यह समझना जरूरी होता है कि उन्होंने यह सीमा क्यों पार की।

Saturday 23 March 2024

चिराग पर मेहरबान पारस को ठेंगा




पारस को ठेंगा भारतीय जनता पाटा (भाजपा) आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार की 17 सीट पर खुद चुनाव लड़ेगी जबकि जनता दल (यूनाइटेड) 16 सीट और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पाटा (लोजपा) पांच सीट पर चुनाव लड़ेगी। सीट बंटवारे को लेकर हुए समझौते में राजग में शामिल वेंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पाटा के दावे को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है और उसे एक भी सीट नहीं दी गईं। पारस खुद हाजीपुर से लोकसभा सांसद हैं और एलजेपी में दूर होने के बाद पाटा के चार अन्य सांसद भी उनके साथ हैं। पशुपति पारस का कहना है कि मैंने ईंमानदारी से एनडीए की सेवा की। नरेन्द्र मोदी बड़े नेता हैं, सम्मानित नेता हैं लेकिन हमारी पाटा के साथ और व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ नाइंसाफी हुईं है। इसलिए मैं भारत सरकार के वैबिनेट मंत्री पद से त्याग पत्र देता हूं। पशुपति वुमार पारस लोक जनशक्ति (एलजेपी) पाटा के नेता रामविलास पासवान के भाईं हैं। लोक जनशक्ति पाटा के चिराग पासवान को उनके चाचा व वेंद्रीय मंत्री पशुपति वुमार पारस से अधिक महत्व देने के पीछे भाजपा पर चिराग का कोईं दबाव नहीं बल्कि इसके पीछे भाजपा की 400 पार करने की रणनीति है। मौजूदा राजनैतिक परिस्थितियों में चिराग पासवान भाजपा को उनके चाचा पशुपति वुमार पारस से अधिक फायदेमंद दिखाईं दे रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा ने चाचा को दरकिरना कर भतीजे को प्राथमिकता दी है। पशुपति पारस को नजरअंदाज करने के पीछे अब चाचा की जगह भतीजा भाजपा की पहली पसंद हो गईं है। इसके पीछे भाजपा की तीसरी बार सत्ता में आने के लिए भाजपा की चुनावी रणनीति रही है। दरअसल भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा किसी प्राकार का भी जोखिम उठाने की बजाए एक-एक सीट की गहराईं से समीक्षा कर अपनी रणनीति तैयार कर रही है। चिराग को चाचा से ज्यादा महत्व देना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। यह राजनैतिक समीक्षक भी मानते हैं कि जनता के बीच जो राजनीतिक हैसियत चिराग के पिता रामविलास पासवान थी वह पशुपति पारस की नहीं है, अपने भाईं की वृपा से ही पशुपति पारस सांसद बने थे। रामविलास पासवान के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है, ऐसे में रामविलास पासवान के निधन से उनके समर्थकों की सहानुभूति का फायदा पशुपति पारस को नहीं बल्कि चिराग पासवान को ही मिलेगा। एनडीए में पशुपति पारस यह अमान मिलने के बाद जहां यह माना जा रहा था कि वह कोईं बड़ा ऐलान करेंगे लेकिन उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीपे के अलावा कोईं बड़ा ऐलान अभी तक नहीं किया है। यही नहीं इस्तीपे के ऐलान के दौरान उन्होंने प्राधानमंत्री को बड़े पद का नेता बताते हुए उनकी तारीफ भी की। दरअसल पशुपति पारस गुट अभी भी एनडीए व भाजपा से कोईं सम्मानजनक पेशकश की उम्मीद लगाए हुए हैं। यही कारण है कि पारस ने चुपचाप अपमान तो सह लिया लेकिन अभी तक एनडीए व भाजपा के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। भाजपा के वुछ नेता चाहते हैं कि चाचा-भतीजा मिलकर चुनाव लड़े लेकिन भतीजा अंतत: अपने चाचा पर भारी पड़ गया। पशुपति क्या इंडिया एलाइंस में जा सकते हैं? 
——अनिल नरेन्द्र 

पुतिन की रिकार्ड तोड़ जीत

ब्लादिमीर पुतिन पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अब उनका कार्यंकाल 2030 तक के लिए होगा। इस चुनाव में पुतिन को रिकार्ड 87 फीसदी वोट मिले। इसके पहले चुनाव में उन्हें 76.7 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि उनके सामने कोईं मजबूत प्रातिद्वंद्वी नहीं था। क्योंकि क्रेमलिन रूस के राजनीतिक तंत्र, मीडिया और चुनाव पर कठोर नियंत्रण रखता है। पािमी देशों के कईं नेताओं ने इस चुनाव की आलोचना की है। उनका कहना है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हुए। चुनाव की आलोचना करने वालों में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की भी शामिल हैं। उन्होंने पुतिन को ऐसा तानाशाह बताया है, जिस पर सत्ता का नशा हावी है। 71 साल के हो चुके पुतिन 1999 में पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे। जो जोसेफ स्टालिन के बाद रूस पर शासन करने वाले दूसरे नेता हैं। वो स्टालिन का भी रिकार्ड तोड़ देंगे। यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध तीसरे साल में प्रावेश कर गया है। इस युद्ध में रूसियों की मौत लगातार हो रही है। वहीं इस युद्ध की वजह से पािम के देशों में रूस को अलग-थलग कर दिया है। पत्रकार ओद्रेईं सोलातोव निर्वासन में लंदन में रह रहे हैं। उन्हें 2020 में रूस छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। वह कहते हैं कि पुतिन जानते हैं कि देश में होने वाली हर तरह की राजनीतिक चर्चा को वैसे दबाया जाए। वह कहते हैं कि पुतिन इसमें बहुत अच्छे हैं। वह अपने राजनीतिक विरोधियों को हटाने में सच में बहुत अच्छे हैं। 2024 के चुनाव के मतपत्र पर केवल तीन अन्य उम्मीदवारों के नाम थे। इनमें से कोईं भी पुतिन के लिए वास्तविक चुनौती साबित नहीं हुआ। उन सभी ने राष्ट्रपति और यूक्रेन में जारी युद्ध दोनों के लिए समर्थन दिया। राष्ट्रपति के वास्तविक खतरों को या तो जेल में डाल दिया गया है या मार दिया गया है या किसी अन्य तरीके से हटा दिया गया है। हालांकि क्रेमलिन इसमें किसी भी तरह से शामिल होने से इंकार करता है। राष्ट्रपति चुनाव शुरू होने से ठीक एक महीने पहले पुतिन के सबसे कट्टर प्रातिद्वंद्वी 47 साल के एलेक्सी नवेलनी की जेल में मौत हो गईं थी। उल्लेखनीय है कि 1999 में तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के इस्तीपे के बाद पुतिन पहली बार कार्यंवाहक राष्ट्रपति बने और फिर 2000 में राष्ट्रपति बने थे। संवैधानिक बाधता के चलते जब 2008 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा, तब उन्होंने अपने साथी दिमित्री मेदवेदवे को राष्ट्रपति बनाया और खुद देश के प्राधानमंत्री बन गए। संविधान संशोधन के जरिए पुतिन फिर 2012 और 2018 में राष्ट्रपति बने। फिर 2020 में किए गए संविधान संशोधन में उनका 2036 तक राष्ट्रपति बनने का मार्ग खुल गया है। जाहिर है कि ज्यादातर तानाशाहों की तरह पुतिन भी लंबे समय तक सत्ता में रहना चाहते हैं। चुनाव परिणामों के तुरन्त बाद पुतिन ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पािमी देशों ने यूक्रेन में अपनी सेना तैनात की तो तीसरा विश्व युद्ध अवश्यभावी है। रूसी राष्ट्रपति की यह बड़ी चेतावनी पर प्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रो के उस बयान के संदर्भ में आया जिसमें उन्होंने यूक्रेन में प्रांस और नाटो के सैनिकों को तैनात करने के बारे में कहा था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी पुतिन को क्रूर, हत्यारा, तानाशाह और युद्ध अपराधी बताया था। पुतिन अगले कईं वर्षो तक मजबूती के साथ सत्ता में बने रहेंगे और अमेरिका व पािमी देशों को इस बात का ध्यान रखना होगा।

Thursday 21 March 2024

चंदा देने वालो के नाम पर चुप हैं राष्ट्रीय पार्टियां!

भारतीय चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड को लेकर राजनीतिक दलों से मिली जानकारी रविवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से कहा था कि सभी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग से इलेक्ट्रोल बॉन्ड के बारे में जानकारी. चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से ये जानकारी लेनी थी कि उन्हें कौन सा बॉन्ड किसने दिया है. बॉन्ड शुरू होने से लेकर सितंबर 2023 तक ये जानकारी चुनाव आयोग को सौंपी गई. एक सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया। अब चुनाव आयोग ने इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। और उन्हें कब भुनाया गया। जबकि कई पार्टियों ने सिर्फ यह बताया है कि उन्हें किस बांड से कितने रुपये मिले। प्रमुख राजनीतिक दलों में एआईडीएमके, डीएमके और जाट दिल सेक्युलर ने जानकारी दी है कि उन्होंने इलेक्ट्रोल बॉन्ड के जरिए दान दिया है? जबकि सिखम डेमोक्रेटिक फ्रंट और महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी जैसी छोटी पार्टियों ने कहा है कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड के जरिए उन्हें जो चंदा मिला है, वह कलेक्शन से आया है। वहीं आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2019 तक के दानदाताओं का ब्योरा दिया है. जबकि नवंबर 2023 में जब ताजा जानकारी चुनाव आयोग को सौंपी गई तो उसने दानदाताओं की जानकारी नहीं दी. उन्होंने केवल यह बताया कि बांड कितने के थे और उन्हें कब भुनाया गया। 2019 में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि ये बांडधारक बांड हैं। टीएमसी ने यह भी कहा कि ये बांड उसके कार्यालय के पते पर भेजे गए थे . फिर वहां से उन्हें बैंकों में जमा किया गया या हमारी पार्टी के समर्थकों ने इसे गुप्त रखने के लिए किसी और के माध्यम से भेजा था. इस बीच, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने भी कहा कि उनके पटना कार्यालय में चेनवी बांड किसने रखा था. उन्हें नहीं पता हालांकि जेडी एस ने अप्रैल 2019 में प्राप्त 13 करोड़ रुपये में से 3 करोड़ रुपये के दानकर्ता की पहचान का खुलासा किया। लेकिन टीएमसी ने किसी भी दानकर्ता की पहचान उजागर नहीं की। बांड से संबंधित जानकारी देने से संबंधित नियमों का हवाला दिया गया। .बीजेपी ने कहा कि जन प्रतिनिधि कानून के मुताबिक राजनीतिक दलों को हर साल इलेक्ट्रोल बॉन्ड से मिलने वाले पैसे का ब्योरा सार्वजनिक करना होता है. अन्यथा उसे यह जानकारी देनी होगी कि उसे बांड कहां से मिले। बीजेपी ने यह भी कहा कि आयकर अधिनियम के तहत पार्टी को केवल उतनी ही जानकारी देनी है, जितना कानून के तहत है। पार्टी के लिए यह देना जरूरी नहीं है। इलेक्ट्रोल बॉन्ड देने वालों के बारे में जानकारी इसलिए उसने यह ब्योरा अपने पास नहीं रखा। कोभानाया और उनके खाते में कितने पैसे आए।

दक्षिण की 129 सीटें होंगी निर्णायक!

आम चुनाव में 5 दक्षिण भारतीय राज्यों की 129 सीटों की भूमिका अहम रहने वाली है. इन दोनों राजनीतिक दलों से काफी उम्मीदें हैं. इन दोनों राजनीतिक दलों के अलावा डीएमके, वाईएसआर, बीआरएस और कम्युनिस्ट पार्टी जैसी स्थानीय पार्टियां भी हैं. क्षेत्रीय पार्टियां भी अपनी क्षेत्रीय सत्ता बचाने की कोशिश कर रही हैं। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ही ऐसे 2 राज्य हैं जहां बीजेपी ने पिछले चुनाव में सीटें जीती थीं। इसमें बीजेपी ने कर्नाटक में 25 और तेलंगाना में 4 सीटें जीती थीं .बाकी 3 राज्यों में तो उनका खाता भी नहीं खुला. इसके बावजूद दक्षिण के राज्यों में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं. दक्षिण की बाकी 100 सीटों पर बीजेपी ने पिछले 5 साल में काफी काम किया है और इसमें से कुछ सीटें जीतने की भी उम्मीद है। तमिलनाडु में प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष गठबंधन ने पिछली बार अच्छा प्रदर्शन किया था। डीएमके का नेतृत्व कांग्रेस और वाम दलों ने किया था। उसने 39 में से 38 सीटें जीती थीं। बार भी है वहां और उन्हें अपना प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है. आंध्र प्रदेश में बीजेपी ने केडीपी और जन सेना के साथ गठबंधन किया है. पिछली बार वाईएसआर ने 25 में से 22 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था और टीडीपी केवल तीन सीटें जीत पाई थी. बीजेपी नहीं जीत सकी थी कोई भी सीट जीतें लेकिन इस बार बीजेपी टीडीपी, जिनसेना गठबंधन ने वीएसआर कांग्रेस को चुनौती दी है। इस बार भी तेलंगाना में मुकाबला दिलचस्प होगा। पिछली बार बीआर.एस ने 9, बीजेपी ने 4, कांग्रेस ने 3, एमआईएम ने 1 सीट जीती थी। कुल 17 सीटें हैं. इस बार वहां कांग्रेस सत्ता में है. डीआरएस कमजोर हो गई है. बीजेपी ने भी जमीनी स्तर पर अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश की है. सीटें जीत लीं. कांग्रेस और जेडीएस ने 1-1 सीटें जीतीं, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती. यह इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर के संकेत हैं. यहां कांग्रेस सत्ता में है और डीके शिव कुमार जैसे नेता हैं. एक चतुर राजनेता कांग्रेस के साथ है. इसलिए बीजेपी के लिए वहां पुराना इतिहास दोहराना मुश्किल होगा. पिछली बार केरल में , कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा, उसने 20 में से 15 सीटें जीतीं। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसपी को एक-एक सीट मिली। सफल रही जबकि कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसपी ने एक-एक सीट जीती। दो सीटें इंडियन मुस्लिम लीग और एक सीट जीतीं सीएम द्वारा. वहां बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़कर 13% हो गया लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार यहां उसका खाता खुल सकता है. पूरे देश की तरह बीजेपी का ट्रंप कार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. साथ ही बीजेपी का जोर भी रहेगा. दक्षिण पर हो. कांग्रेस के पास दक्षिण भारत में भी अच्छा प्रदर्शन करने का विकल्प है. राहुल गांधी की पहली यात्रा भी कन्याकुमारी से शुरू हुई. (अनिल नरेंद्र)

Tuesday 19 March 2024

नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह को टिकट


नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में जब राजनाथ सिंह गृहमंत्री के बदले रक्षा मंत्री बने तो उनके सियासी भविष्य को लेकर अटकले तेज हो गई थीं। इसी तरह नितिन गडकरी को बीजेपी के संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से बाहर किया गया तो उनके सियासी भविष्य को लेकर भी कई तरह की बातें होने लगी थीं। शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे हैं और विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो भी कई तरह के सवाल उठने लगे थे। लेकिन बीजेपी ने इन तीनों को 2024 के आम चुनाव में टिकट दिया है। इन तीनों दिग्गजों को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में उतारा है लेकिन आने राले दिनों में सरकार और पार्टी में इनकी हैसियत क्या होगी यह अहम सवाल है। बीजेपी की पिछले दस सालों में पूरी तरह बदल गई है। नेतृत्व नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के हाथों में है। इस लिहाज से संगठन और सरकार में इन्हीं की टीम का दबदबा है। राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान अटल-आडवाणी के नेतृत्व वाली बीजेपी से हैं। राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी खुद भी बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश के विदिशा से नितिन गडकरी को नागपुर से और राजनाथ सिंह को लखनऊ से टिकट दिया गया है। बीजेपी की पहली सूची में नितिन गडकरी का नाम नहीं आने के बाद से यह कहा जाने लगा था कि उनका टिकट कट सकता है लेकिन बीजेपी ने उन्हें नागपुर से एक बार फिर मैदान में उतारा है। शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का सीएम नहीं बनाने के बाद से ही उन्हें केंद्र की राजनीति में भेजे जाने की बातें होने लगी थी। 2019 में सरकार बनने के कुछ समय बाद ही जून में राजनाथ सिंह को कई कमेटियों से बाहर कर दिया गया। लेकिन 24 घंटे के अंदर ही ये फैसला बदल गया। नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह के बारे में बातें कही जा रही थी कि इनका टिकट कट सकता है। लेकिन बीजेपी ने बताया कि वो अब भी इन नेताओं पर दांव खेल रही है। दरअसल बीजेपी इस बीच कुछ भी उथल-पुथल के मूड में नहीं है। उनकी भर कोशिश है कि किस तरह से वो अपनी जीत पक्की कर सकते हैं। बीजेपी किसी भी सीट पर कोई चांस नहीं लेना चाहती। नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह को टिकट मिलना इस बात का भी संकेत हैं कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। बीजेपी अंदर से थोड़ी घबराई हुई है कि वह अब की बार 400 पार तक पहुंच जाएगी। इसलिए बीजेपी अपने ही उस फार्मूले को लागू नहीं कर रही है कि 70 साल से ज्यादा को टिकट नहीं देना है। पार्टी दावा कर रही थी कि पुराने चेहरे बाहर और नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। दरअसल बीजेपी हाईकमान सेफ प्ले करना चाहती है ताकि अधिक से अधिक सीटें हासिल कर सके। नए चेहरों पर इसलिए भी दांव नहीं खेला गया क्योंकि पता नहीं कि वो सीट निकाल पाएं या नहीं। इसलिए पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया जाए। 2013 में जब राजनाथ सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने ही नरेन्द्र मोदी के नाम की घोषणा पीएम उम्मीदवार के रूप में की थी। उन्हेंने तब एक इंटरव्यू में कहा था ये जरूरी नहीं है कि पार्टी अध्यक्ष लोगों को अपनी तरफ खींचने वाला ही हो और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी हो। राजनाथ सिंह को भी गडकरी की तरह ही राजनीतिक विश्लेषक मोदी कैंप से बाहर मानते हैं। नितिन गडकरी को टिकट मिलने का एक अर्थ यह भी है कि बीजेपी अंदर खाते इस बात पर कांफीडेंट नहीं है कि अब की बार 400 पार। अंदर से पार्टी का विश्वास डगमगा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या गेम चेंजर हो सकता है इलेक्टोरल बॉन्ड?


इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से विपक्ष गदगद है। आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन इंडिया इस मुद्दे को बड़ा हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है। विपक्ष के कई नेताओं का मानना है कि अगर विपक्ष ने इसे ठीक से जनता के सामने रखा तो यह गेम चेंजर साबित हो सकता है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस का आरोप है कि वो पहले से ही कह रही है कि सरकार जांच एजेंसियों का डर दिखाकर चंदा वसूल रही है। उनका कहना है कि ऐसी कई कंपनियां हैं जिनको लेकर कहा जा रहा है कि उनकी ओर से दिए जाने वाले चंदे की वजह से जांच एजेंसियों की रेड का डर है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को बांड खरीददारों की जो लिस्ट सौंपी है। उससे कई अहम जानकारियां सामने आई हैं। सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वालों में कई ऐसी कंपनियां शामिल हैं जिनके खिलाफ ईडी और इन्कम टैक्स विभाग की कार्रवाई हो चुकी है। दिलचस्प ये है कि ये कार्रवाईयां बॉन्ड खरीदने के समय के आसपास हुई हैं। फ्यूचर गेमिंग, वेदांता लिमिटेड और मेघा इंजीनियरिंग जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वालों में शामिल हैं। लेकिन इन कंपनियों की ओर से ये खरीददारी ईडी और इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट की कार्रवाईयों के आसपास हुई हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक खास रिपोर्ट में कहा है कि सिर्फ यही कंपनियां नहीं, करीब दस कंपनियों की बॉन्ड खरीददारी में भी यही पैटर्न दिखता है। अखबार लिखता है कि आरपीएसजी की हल्दिया एनर्जी, डीएलएफ, फार्मा कंपनी हेटरो ड्रग्स, वेल स्पन ग्रुप, डिवीस लेबोरेट्रीज और बायोकॉन की किरण मजूमदार राये ने काफी बॉन्ड खरीदते हैं। लेकिन ये सारी खरीददारी केंद्रीय एजेंसियों की जांच के समय में खरीदे गए हैं। मसलन, इलेक्टोरल बॉन्ड की चौथी सबसे बड़ी खरीददारी हल्दिया एनर्जी पर सीबीआाr ने 2020 में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया था। आरपीएसजी ग्रुप की कंपनियां हल्दिया एनर्जी ने 2019 से लेकर 2024 के बीच 377 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। मार्च 2020 में सीबीआई ने हल्दिया एनर्जी और अडानी, वेदांता, जिंदल स्टील बीआईएलटी समेत 24 कंपनियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए। डीएलएफ शीर्ष बॉन्ड खरीददारों में शामिल है। उसने 130 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। सीबीआई ने एक नवम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट के निदेश के बाद केस दर्ज किया था। 25 जनवरी 2019 को सीबीआई ने कंपनी के गुरुग्राम के दफ्तर और कई ठिकानों पर छापेमारी की थी। इन कार्रवाईयों के बाद डीएलएफ ने 9 अक्टूबर 2019 को बॉन्ड खरीदने शुरू किए। कंपनी ने कुल 130 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। एक बार फिर 25 नवम्बर 2023 को ईडी ने कंपनी के गुरुग्राम में मौजूद दफ्तरों पर छापेमारी की। फार्मा कंपनी हैंरारो बायोलैण्ड के जरिए 60 करोड़ रुपए के बांड खरीदे। ये कंपनी 2021 से इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट की निगरानी में थी। अक्तूबर 2021 में आयकर विभाग ने कंपनी के कई ठिकानों पर छापेमारी की और 140 करोड़ रुपए से ज्यादा का कैश बरामद किया। रोडमैप लेबोरेट्रीज देश की सबसे बड़ी एपीआई मैन्यूफैक्चर्स में शामिल है। इस कंपनी ने 2023 में 55 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। कंपनी के "िकानों पर 14 से 18 फरवरी तक इन्कम टैक्स के छापे पड़े थे। बायोकॉन की शॉ ने 6 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। ऐसी सूची बहुत लम्बी है। यह शायद ही जनता के सामने आए। पर साफ है कि ईडी इंकम टैक्स, सीबीआई के जरिए न केवल सरकारें गिराई जाती हैं, पार्टी तोड़ी जाती है बल्कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से पार्टियों के फंडिंग भी की जाती है।

Saturday 16 March 2024

हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन


लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हरियाणा में भाजपा और जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठबंधन टूटना, उन चौंका देने वाले अप्रत्याशित निर्णयों की कड़ी में नया जुड़ाव है, जो पिछले काफी समय से भाजपा के केन्द्राrय नेतृत्व की शैली बन गई है। चाहे राजस्थान हो, बिहार हो या मध्य प्रदेश, विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों के नेता जिस तरह भाजपा के प्रति आक्रोशित हो रहे हैं, वह भाजपा की चुनावी तैयारी और गंभीरता को दर्शाता है। ताजा उदाहरण हरियाणा का है। हरियाणा की राजनीति में मंगलवार को दिन की शुरुआत भाजपा व जजपा के गठबंधन में दरार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की चर्चा के साथ हुई। दोपहर तक खट्टर बाहर हो गए और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी को नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया। इससे एक दिन पहले ही नरेन्द्र मोदी ने खट्टर की जमकर सराहना की थी। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व ने उन्हें क्यों बदला, यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है। पार्टी विधायक दल की बैठक में खुद मनोहर लाल खट्टर ने अगले मुख्यमंत्री के लिए नायाब सिंह सैनी के नाम का प्रस्ताव रखा। हरियाणा में यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गुरुग्राम के एक कार्यक्रम में हरियाणा के विकास के लिए खट्टर और उनके दृष्टिकोण की सराहना करने के एक दिन बाद हुआ। गुरुग्राम के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने द्वारका एक्सप्रेस-वे के हरियाणा खंड के शुभारंभ में बताया था कि कैसे वह अक्सर खट्टर की मोटर साइकिल पर पिछली सीट पर बैठकर रोहतक से गुड़गांव (अब गुरुग्राम) तक यात्रा करते थे। छोटी सड़कें थीं, लेकिन आज पूरा गुरुग्राम क्षेत्र एक्सप्रेस-वे सहित कई प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा है जो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रगतिशील मानसिकता को दर्शाता है। आज मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हर हरियाणावासी का भविष्य सुरक्षित है। हfिरयाणा वासियों का तो भविष्य बेशक सुरक्षित हो पर खुद खट्टर साहब को यह अंदाजा नहीं था कि उनका अपना भविष्य 24 घंटों में बदलने वाला है। इस पूरे घटनाक्रम में अगर कोई फंसा तो वह है जजपा अध्यक्ष व पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला। गठबंधन में होते हुए भी एक-दूसरे को मात देने के लिए चल रहे शह और मात के खेल में आखिरकार जजपा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भाजपा के चक्रव्यूह में फंसते चले गए। जजपा को बड़ा झटका देते हुए आनन-फानन में मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा देकर पूरा खेल ही पलट दिया। न तो अधिकारिक रूप से गठबंधन तोड़ने का आरोप लगा और और न ही जजपा का साथ। उल्टा जजपा के 5 विधायकों को भाजपा ने साध लिया है और दुष्यंत के लिए अपनी पार्टी ही टूटने का खतरा पैदा हो गया है। साढ़े चार साल पहले बनी पाटी पर अब संकट के बादल छाए हुए हैं। भाजपा के हरियाणा मामलों के प्रभारी बिल्पब देव ने एक साल पहले ही साफ कर दिया था कि चुनावों में भाजपा जजपा के साथ नहीं चलेगी। बावजूद इसके दुष्यंत चौटाला भाजपा हाईकमान के संपर्क में रहे और गठबंधन में खटपट चलती रही। सबसे बड़ा राजनीतिक संकट दुष्यंत चौटाला के सामने आने वाला है। हालांकि वह यह ऐलान कर चुके हैं कि राज्य की दसों सीट पर वह अपने उम्मीदवार उतारेंगे। गठबंधन तोड़ने के भाजपा के पास और भी कई कारण हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सवाल चुनाव से ठीक पहले सीएए लागू करने का


नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाए जाने के करीब चार साल बाद सोमवार को केन्द्राrय गृह मंत्रालय ने उसे लागू करने की घोषणा कर दी। जब यह कानून लाया गया था, तब इसके खिलाफ काफी लंबा शांतिपूर्ण विरोध हुआ था। शायद इसे नोटिफाई करने में इतनी देर के बाद लाने के पीछे एक तर्क यह हो सकता है कि सरकार चाहती थी कि दोबारा इस मुद्दे पर देश में इस तरह के हालात न बने जैसे चार साल पहले बने थे। केन्द्र सरकार के इस फैसले पर पूरे देश से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, लेकिन सबसे तीखी प्रतिक्रिया पश्चिम बंगाल और असम से आई है। जब 2019 में कानून बना था उस वक्त भी दोनों ही राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे। पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सीएए बंगाल में दोबारा विभाजन और देश से बंगालियों को खदेड़ने का खेल है। तृणमूल कांग्रेस के अलावा वामपंथी दलों ने भी इसे चुनावी लॉली पॉप करार दिया है। ममता बनजी ने कहा है कि अगर नागरिकता कानून के जरिए किसी की नागरिकता जाती है तो मैं इसका कड़ा विरोध करूंगी। सरकार किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देगी। ममता ने कहा, यह बच्चों का खेल नहीं है। ममता का सवाल था कि यह कानून साल 2020 में पारित किया गया था। अब सरकार ने चार बाद लोकसभा चुनाव के ऐन पहले इसे लागू करने का फैसला क्यों किया? वहीं उत्तर 24 परगना समेत दूसरे राज्यों में फैले मतुआ समुदाय ने इस पर खुशियां जताई है और उत्सव मनाया है। मतुआ समुदाय के लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि ममता बनजी राज्य में सीएए और एनआरसी लागू होने का पहले से ही विरोध करती रही हैं। उनकी दलील थी कि मतुआ समुदाय के लोग पहले से ही भारतीय नागरिक हैं। अगर नहीं हैं तो उन्होंने अब तक चुनाव में भाजपा को वोट कैसे दिया था? ऐसे में उनको दोबारा नागरिकता कैसे दी जा सकती है? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने भी इस कानून को लागू करने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर इसे चुनाव से पहले क्यों लागू किया गया है? साफ है कि इसका मकसद चुनावी फायदा उठाना है। दूसरी ओर सीपीएम सचिव मोहम्मद सलीम ने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ममता बनजी के बीच की मिलीभगत का नतीजा बताया है। पत्रकारों से बातचीत में उनका दावा था कि ममता महज दिखावे के लिए इस कानून का विरोध कर रही हैं। उनका कहना था कि केन्द्र ने धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के लिए चुनाव से ठीक पहले इस कानून को लागू करने का फैसला किया है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इलेक्ट्रोरल बांड से उत्पन्न हुई विस्फोट स्थिति से जनता का ध्यान हटाने के लिए इस कानून को लाया गया है। उधर भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार कहते हैं कि केंद्र सरकार ने हमेशा अपने वादे पूरे किए हैं। केन्द्राrय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने का भरोसा दिया था। अब यह वादा पूरा हो गया है। इस कानून से आतंकित होने की जरूरत नहीं है। चुनावी लाभ-हानि का जो भी गणित हो, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी पक्ष इस मसले पर संवेदनशीलता और संयम बनाए रखें और प्रदर्शन बेशक करें पर कानून व्यवस्था भंग न करें।

Thursday 14 March 2024

तो इसलिए 400 पार का नारा

भाजपा नेता आए दिन 400 पार का नारा देते हैं। इस नारे के पीछे असल मकसद क्या है? इस पर अटकलें लगाईं जा रही हैं। अब एक भाजपा के ही सांसद ने इसके पीछे की रणनीति का खुलासा किया है। भाजपा सांसद अनंत वुमार हेगड़े ने रविवार को कहा कि प्रास्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने के लिए भाजपा संविधान में संशोधन करेगी। उन्होंने लोगों से लोकसभा में भाजपा को दो-तिहाईं बहुमत देने का आह्वान किया ताकि देश के संविधान में संशोधन किया जा सके। हेगड़े ने छह साल पहले भी इसी तरह का बयान दिया था। हेगड़े ने कहा कि भाजपा के संविधान में संशोधन करने के लिए और कांग्रोस द्वारा इसमें जोड़ी गईं अनावश्यक चीजों को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाईं बहुमत की जरूरत होगी। उन्होंने यहां एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा को इसके लिए 20 से अधिक राज्यों में सत्ता में आना होगा। कर्नाटक से छह बार के लोकसभा सदस्य हेगड़े ने कहा, अगर संविधान में संशोधन करना है, कांग्रोस ने संविधान में अनावश्यक चीजों को जबरदस्ती भरकर विशेष रूप से ऐसे कानून लाकर जिनका उद्देश्य हिन्दू समाज को दबाना था, संविधान को मूलरूप से विवृत कर दिया है— यदि यह सब बदलना है तो इस (वर्तमान) बहुमत के साथ संभव नहीं है, उन्होंने कहा अगर हम सोचते हैं कि यह किया जा सकता है, क्योंकि लोकसभा में कांग्रोस नहीं है और प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास लोकसभा में दो-तिहाईं बहुमत है और चुप रहे तो यह संभव नहीं है। हेगड़े ने कहा, मोदी ने कहा है कि अबकी बार 400 पार। 400 पार क्यों? हेगड़े के इस बयान पर गंभीर चिता व्यक्त करते हुए कांग्रोस ने इसे देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे पर हमले का प्रायास करार दिया। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया — मोदी सरकार, भाजपा और आरएसएस गुप्त रूप से तानाशाही लागू करना चाहती है। वे भारत के लोगों पर अपनी मनुवादी मानसिकता थोपेंगे और एससी-एसटी तथा ओबीसी के अधिकार छीन लेगी। कोईं चुनाव नहीं होगा। ज्यादा से ज्यादा दिखावटी चुनाव होंगे। संस्थानों की स्वतंत्रता में कटौती की जाएगी। अभिव्यक्ति की आजादी पर बुलडोजर चलाया जाएगा। भाजपा हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और विविधता में एकता को नष्ट कर देगी। संघ परिवार के इस गलत इरादों को कांग्रोस सफल नहीं होने देगी। राहुल गांधी ने कहा, नरेन्द्र मोदी और भाजपा का अंतिम तथ्य बाबा साहेब के संविधान को खत्म करना है। उन्हें न्याय, बराबरी, नागरिक अधिकार और लोकतंत्र से नफरत है। समाज को बांटना मीडिया को गुलाम बनाना अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा बनाकर विपक्ष को मिटाने की साजिश करके भारत के महान लोकतंत्र को तानाशाही में बदलना चाहते हैं। वैसे भाजपा की कर्नाटक इकाईं ने सोशल मंच एक्स पर पोस्ट किया, संविधान पर हेगड़े की टिप्पणी उनके निजी विचार हैं और पाटा के रूख को प्रातिबिबित नहीं करती है। भाजपा देश के संविधान को बनाए रखने के लिए अपनी अटूट प्रातिबद्धता दोहराती है और हेगड़े से उनकी टिप्पणी के संबंध में स्पष्टीकरण मांगेगी। ——अनिल नरेन्द्र

अरुण गोयल ने इस्तीफा क्यों दिया?

लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने में अब वुछ ही दिन बाकी रह गए हैं, लेकिन उससे पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। कानून मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में इस बात की जानकारी दी गईं कि राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। यह नौ मार्च से प्राभावी हो गया है। गोयल का कार्यंकाल पांच दिसम्बर 2027 तक था और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईंसी) राजीव वुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद वे अगले साल फरवरी में संभवत: सीईंसी का पदभार संभालते। इसी के साथ चुनाव आयोग में इस समय सिर्प मुख्य चुनाव आयुक्त ही बचे हैं। चुनाव आयोग में दो चुनाव आयुक्त और एक मुख्य चुनाव आयुक्त होते हैं। एक चुनाव आयुक्त का पद पहले से ही खाली था तो अब अरुण गोयल के जाने से सिर्प मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार ही बचे हैं। तत्काल यह पता नहीं चल पाया है कि गोयल ने इस्तीफा क्यों दिया? उनका इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब चुनाव आयोग (ईंसी) चुनाव तैयारियों की समीक्षा के लिए देश भर में यात्रा कर रहा था और वुछ दिनों में लोकसभा चुनाव के कार्यंव््राम की घोषणा होने की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में गोयल ने हाल में तमिलनाडु, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रादेश और पािम बंगाल के दौरे किए थे। बंगाल के दौरे से लौटने के बाद गोयल ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार की अगुवाईं में चुनाव आयोग के द्वारा बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। तब एक अधिकारी ने कहा था कि स्वास्थ्य कारणों से गोयल इसमें हिस्सा नहीं ले सके। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर बने नए कानून के अनुसार कानून मंत्री की अध्यक्षता में दो वेंद्रीय सचिवों वाली एक खोज समिति पांच नामों का चयन करेगी। फिर एक चयन समिति नाम को अंतिम रूप देगी। प्राधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति में उनके (प्राधानमंत्री) द्वारा नामित एक वेंद्रीय मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे। विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीपे को लेकर तरह-तरह के सवाल दागकर सियासी गमा बढ़ा दी है। इस्तीपे के पीछे सरकार के दबाव से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार से उनके मतभेद की खबरों के बीच विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। कांग्रोस समेत विपक्षी दलों ने सरकार से जवाब मांगा है कि अरुण गोयल ने मोदी सरकार या मुख्य चुनाव आयुक्त जिसके साथ मतभेद के कारण इतना बड़ा कदम उठाया, जबकि उनका कार्यंकाल अभी चार साल बाकी था और मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की लाइन में थे। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने तो गोयल के इस्तीपे की खबर आने के तत्काल बाद शनिवार रात ही इस पर सवाल उठाए तो एसोसिएशन फार डेमोव््रोटिक रिफाम्र्स ने कहा अरुण गोयल के इस्तीपे से पता चलता है कि वह ऊपर खाते किस दबाव में काम कर रहे थे। कांग्रोस का कहना था क्या वास्तव में स्वतंत्र होकर काम करने के प्रायास में चुनाव आयुक्त या मोदी सरकार के साथ मतभेदों या व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दिया गया है? टीएमसी प्रावक्ता ने कहा कि पद बीच में छोड़ कर इस्तीफा देने के पीछे इस अचानक रहस्य की वजह क्या है? इस्तीफे के कारण का जल्द खुलासा होगा।