Saturday 27 April 2024
ननद-भाभी की सियासी प्रतिष्ठा दांव पर
भाजपा की 44 दिन पहले ही निर्विरोध जीत
Thursday 25 April 2024
हम संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं
सपा और बसपा क्या मौका तलाश रही हैं?
Tuesday 23 April 2024
पप्पू यादव ने मुकाबले को रोचक बनाया
राज वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं दिग्गी राजा
Saturday 20 April 2024
जेडीयू दिग्गज नेता बनाम बाहबुली की बीवी
बॉलीवुड की क्वीन या हिमाचल के प्रिंस
कंगना रनौत मेरे बारे में कहती हैं कि मैं राजा का बेटा हूं। मेरे पिता वीरभद्र सिंह सिर्फ रामपुर बुशहर सियासत के राजा नहीं थे, वो हिमाचल प्रददेश के दिलों के राजा थे और मुझे गर्व है कि मैं उनका बेटा हूं। हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री और मंडी लोकसभा सीट के कांग्रेस के प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह रामपुर बुशहर में इकट्ठा लोगों को संबोधित कर रहे थे। शनिवार शाम को कांग्रेस की ओर से मंडी लोकसभा सीट का प्रत्याशी बनाए जाने के अगले दिन वह अपने प्रचार अभियान का आगाज कर रहे थे। भाजपा की ओर से टिकट दिए जाने के बाद से ही यह माना जाना लगा था कि कांग्रेsस इस बार उनकी मां और वर्तमान सांसद प्रतिभा सिंह के बजाए विक्रमादित्य सिंह को मंडी से उतार सकती है। वजह ये थी कि विक्रमादित्य ने सिर्फ कंगना रनौत के पुराने बयानों को उठाते हुए उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। फिर कंगना ने भी सीधे विक्रमादित्य सिंह पर निशाना साधना शुरू कर दिया। मंडी लोकसभा सीट में छह जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से तीन विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं और पांच अनुसूचित जाति के लिए। हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर आखिरी चरण के तहत मतदान होगा लेकिन मंडी लोकसभा सीट पर सियासी पारा लगातार चढ़ रहा है। कंगना और विक्रमादित्य एक-दूसरे पर तीखे जुबानी हमले कर चुके हैं। कई बार उनके बयान निजी हमलों की शक्ल में भी होते हैं। जहां विक्रमादित्य सिंह ने कंगना रनौत को मौसमी राजनेता बताते हुए उन पर बीफ खाने का आरोप लगाया, वहीं कंगना ने उनसे सबूत मांगते हुए उन्हें छोटा पप्पू और राजा बेटा कह दिया। एक-दूसरे पर जुबानी हमलों के मामलों में दोनों अभी तक एक से एक बढ़कर नजर आ रहे हैं। कंगना की बोलचाल में राजनेताओं जैसी बात नहीं दिखती, हालांकि अब वह लोगों से स्थानीय बोली में बात कर रही हैं, जिससे लोगों को अपनापन लग सकता है। वह कहते हैं, कंगना एक सेलिब्रिटी हैं तो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए जुट रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके लिए ये लड़ाई एक-तरफा है। लोगों ने हिमाचल के साथ लगते पंजाब के गुरदास पुर का भी उदाहरण देखा है। जहां अभिनेता सन्नी देओल पर चुनाव जीतने के बाद वापस अपने हलके की ओर न देखने के आरोप लगे थे। हिमाचल के लोग चाहते हैं कि नेता उनके दुख-सुख में शामिल हों। ऐसे में लोग कंगना को सिर्फ अभिनेत्री होने के कारण वोट दे देंगे, ऐसा लगता नहीं है। विक्रमादित्य के पिता वीरभद्र सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे और तीन बार मंडी लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। हालांकि खुद को कांग्रेस का वफादार बताने वाले विक्रमादित्य पर पिछले दिनों सवाल खड़े हो गए थे। विक्रमादित्य सिंह के उतरने के कारण हालात बदल गए हैं। वे युवा हैं, राज्य सरकार के मंत्री हैं और सबसे बड़ी बात वह वीरभद्र सिंह के बेटे हैं। इन सब बातों से लड़ना कंगना के लिए आसान नहीं है। सक्रिय राजनीति में कंगना नई हैं, जबकि विक्रमादित्य को अपने अनुभव के साथ वीरभद्र सिंह के परिवार से होने का भी लाभ मिलेगा। वो जानते हैं कि हिमाचल की जनता किन बातों से जुड़ाव महसूस करती है, कंगना को इस दिशा में भी मेहनत करनी होगी।
Thursday 18 April 2024
क्षत्रियों ने बढ़ाई भाजपा की धड़कने
बहन जी ने एकला चलो की ठानी
Tuesday 16 April 2024
2019 का प्रदर्शन भाजपा दोहरा पाएगी?
मतदाताओं के लिए बड़े चुनावी मुद्दे
Saturday 13 April 2024
बिहार की अतिप्रतिष्ठित लोकसभा सीट
फिर तो कितनों को जेल भेजते रहेंगे
Thursday 11 April 2024
दो निषाद चेहरे अब महागठबंधन में
ओवैसी की सल्तनत को देंगी चुनौती
Tuesday 9 April 2024
मदरसा कानून पर सुप्रीम रोक
संजय सिंह की दहाड़
Saturday 6 April 2024
बिहार में सीधी लड़ाई
चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
Thursday 4 April 2024
चनाव में टीवी - फ़िल्मी सितारों की भरमार।
नोटबंदी - काला धन कैसे ख़त्म हुआ?
Tuesday 2 April 2024
मुख्तार अंसारी की जिंदगी का आखिरी दिन
जर्मनी, अमेरिका के बाद अब संयुक्त राष्ट्र
Saturday 30 March 2024
क्या आईएस खुरासान ने रूस पर हमला किया
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और उनके प्रभाव वाले मीडिया की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि शुक्रवार को मॉस्को के थिएटर पर होने वाले हमले की जिम्मेदारी यूक्रेन पर डाली जा सके। लेकिन इस हमले की जिम्मेदारी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) खुरासान ने स्वीकार की है। हमलावरों ने न केवल क्रॉकस सिटी हाल में मौजूद लोगों पर बंदूकों से हमला किया बल्कि उन्होंने इमारत को भी आग लगा दी। रूस की जांच समिति की ओर से जारी वीडियो में कॉन्सर्ट हॉल का न केवल छत गिरने का दृश्य दिखाया गया है बल्कि बीम भी गिरते देखे जा सकते हैं। इस हमले में 137 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। अंग्रेsजी में इस चरमपंथी संगठन को आईएस कहा जाता है जो कथित इस्लामिक स्टेट खुरासान का संक्षिप्त रूप है। यह संगठन वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित किए गए गुट कथित इस्लामिक स्टेट का ही अंग है। इसका पूरा ध्यान अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान पर केंद्रित है। इस संगठन ने खुद को खुरासान का नाम दिया है क्योंकि जिन देशों में यह सक्रिय है वह क्षेत्र इस्लामी खिलाफत के इतिहास में इसी नाम से जाना जाता था। कथित इस्लामिक स्टेट खुरासान पिछले नौ सालों से इस क्षेत्र में सक्रिय है लेकिन हाल के महीनों में यह मूल इस्लामिक स्टेट की सबसे खतरनाक अनुषांगिक शाखा बनकर उभरी है जो अपनी निर्दयता और अत्याचार की वजह से जानी जाती है। यह अतिवादी संगठन सीरिया और इराक में मौजूद अपने केंद्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर इस्लामी दुनिया में कथित खिलाफत की व्यवस्था लाना चाहता है जहां वह अपनी मर्जी के सख्त कानून लागू कर सके। अफगानिस्तान में यह संगठन सत्तारूढ़ समूह तालिबान के खिलाफ भी जंग लड़ रहा है। इस साल इसने काबुल में रूसी दूतावास को भी निशाना बनाया था जिसमें छह लोग मारे गए और कई घायल हो गए थे। इन गिरोह की ओर से पहले अस्पतालों, बस अड्डों, पुलिस अधिकारियों को भी निशाना बनाया जाता रहा है। इस साल जनवरी में इस्लामिक स्टेट खुरासान ने ईरान के राज्य मिरयान में दो आत्मघाती हमलों की भी जिम्मेदारी ली थी जिसमें लगभग 100 ईरानी नागरिक मारे गए थे, रूस की सरकारी मीडिया के अनुसार गिरफ्तार किए गए चारों लोग ताजिक थे जिनका संबंध मध्य एशिया देश ताजिकिस्तान से था जो पहले सोवियत यूनियन का हिस्सा हुआ करते थे। इस्लामिक स्टेट खुरासान की ओर से रूस पर हमला करने की कई वजहें हो सकती हैं। यह संगठन दुनिया के अधिकतर देशों को अपना दुश्मन जानती है। यह रूस, अमेरिका, यूरोप, यहूदी, ईसाई, शिया मुसलमान और मुस्लिम बहुल देशों के शासक भी उसकी दुश्मनी की लिस्ट में शामिल हैं। कथित इस्लामिक स्टेट की रूस से दुश्मनी 1990-2000 के दशक में चेचन्या की राजधानी में रूसी फौज की कार्रवाईयों के कारण भी हो सकती है। हाल के दिनों में रूस ने सीरिया में होने वाले गृह युद्ध में राष्ट्रपति अल-असद का साथ दिया था और रूसी वायुसेना ने वहां अनगिनत बमबारी की थी। इन कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में कथित इस्लामिक स्टेट और अलकायदा के लड़ाके मारे गए थे। यह रूस को एक ईसाई देश समझता है और इस ग़िरोह की ओर से मॉस्को पर होने वाले हमले के बाद पोस्ट किए गए वीडियो में ईसाइयों की हत्या की बात भी की गई थी। यह भी हो सकता है कि रूस इस समय यूक्रेन में उलझा हुआ है, ऐसे में रूस एक आसान लक्ष्य लगा हो जहां हथियार भी आसानी से उपलब्ध हों। यह हमला यूक्रेन के लिए समर्थन जुटाने के लिए भी हो सकता है।
-अनिल नरेन्द्र
भाजपा का बढ़ता आत्मविश्वास
जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। भाजपा को लगता है कि अब वो अपने दम खम पर ही 370 पार कर लेगी। तभी तो उनके गठबंधन साथियों से रास्ता अलग होता जा रहा है। एक के बाद एक सहयोगी दल भाजपा गठबंधन से अलग होता जा रहा है। यह सिलसिला हरियाणा में जेजेपी से शुरू हुआ, उसके बाद बीजू जनता दल तक पहुंचा और अब शिरोमणि अकाली दल तक फिलहाल पहुंच चुका है। हरियाणा में साढ़े चार साल जेजेपी के साथ गठबंधन सरकार चली पर अचानक भाजपा ने न केवल अपना मुख्यमंत्री बदला बल्कि जेजेपी से भी किनारा कर लिया। इसके बाद आया बीजेडी (बीजू जनता दल) का। भाजपा और बीजेडी के बीच गठबंधन को लेकर दो सप्ताह से चल रही अटकलबाजी तब समाप्त हो गई जब बीजेपी के ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी राज्य के सभी 21 लोकसभा और 147 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। लेकिन जिस सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सामल ने यह घोषणा की, उसी में यह भी संकेत मिला कि भाजपा ने चुनाव बाद बीजेडी के साथ अनौपचारिक समझौते के लिए द्वार खुला रखा है। सामल ने कहा कि ओडिशा अस्मिता, गौरव और लोगों के हित से जुड़े विषयों को देखते हुए यह फैसला किया गया है। दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में बीजेडी ने 114 और लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीती थीं। बीजेडी विधानसभा की 147 में से सौ सीटों पर खुद लड़ना चाहती थी। भाजपा लोकसभा की 21 में से 14 सीटों पर दावेदारी जता रही थी। जबकि विधानसभा की आधी सीटों पर लड़ना चाहती थी। भाजपा के फार्मूले के तहत बीजद को अपने कई विधायकों और सांसदों का टिकट काटना पड़ता। इसके कारण चुनाव से पहले उसे बगावत का डर था। भाजपा ने लोकसभा की कुछ सीटों पर बीजद सांसदों को अपने निशान पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, मगर इस पर सहमति नहीं बन पाई। उधर लोकसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल से पंजाब में भाजपा की सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन सकी और बात टूट गई। पंजाब में जहां अकाली दल की शर्तों के साथ भाजपा के स्थानीय नेताओं की आपत्ति गठबंधन में बाधा बनी, वहीं कहा जा रहा है कि पंजाब में दोनों दलों के बीच सीट की संख्या कोई मुद्दा नहीं थी। अकाली दल ने गठबंधन के लिए किसान आंदोलन के संदर्भ में कुछ ठोस आश्वासन देने और अटारी बार्डर पर व्यापार के लिए खोलने की शर्त रखी। इस पर भाजपा नेतृत्व ने राज्य इकाई के नेताओं से बात की तो ज्यादार नेता गठबंधन के पक्ष में नजर नहीं आए। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ सहित कई नेताओं ने कहा कि भाजपा के समक्ष सिख मतदाताओं के बीच पैठ बनाने का यह बड़ा अवसर है। इसे खोना नहीं चाहिए। इन नेताओं ने लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के भाजपा में शामिल होने पर सहमति देने की जानकारी देते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर सिखों में भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं है, ऐसे में पार्टी को मोदी सरकार के कार्यकाल में सिख अस्मिता से जुड़े निर्णयों के सहारे मैदान में उतरना चाहिए। भाजपा का अकेले लड़ने का कितना लाभ होगा, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, जब मतगणना होगी।