Saturday, 30 March 2024

भाजपा का बढ़ता आत्मविश्वास


जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। भाजपा को लगता है कि अब वो अपने दम खम पर ही 370 पार कर लेगी। तभी तो उनके गठबंधन साथियों से रास्ता अलग होता जा रहा है। एक के बाद एक सहयोगी दल भाजपा गठबंधन से अलग होता जा रहा है। यह सिलसिला हरियाणा में जेजेपी से शुरू हुआ, उसके बाद बीजू जनता दल तक पहुंचा और अब शिरोमणि अकाली दल तक फिलहाल पहुंच चुका है। हरियाणा में साढ़े चार साल जेजेपी के साथ गठबंधन सरकार चली पर अचानक भाजपा ने न केवल अपना मुख्यमंत्री बदला बल्कि जेजेपी से भी किनारा कर लिया। इसके बाद आया बीजेडी (बीजू जनता दल) का। भाजपा और बीजेडी के बीच गठबंधन को लेकर दो सप्ताह से चल रही अटकलबाजी तब समाप्त हो गई जब बीजेपी के ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी राज्य के सभी 21 लोकसभा और 147 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। लेकिन जिस सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सामल ने यह घोषणा की, उसी में यह भी संकेत मिला कि भाजपा ने चुनाव बाद बीजेडी के साथ अनौपचारिक समझौते के लिए द्वार खुला रखा है। सामल ने कहा कि ओडिशा अस्मिता, गौरव और लोगों के हित से जुड़े विषयों को देखते हुए यह फैसला किया गया है। दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में बीजेडी ने 114 और लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीती थीं। बीजेडी विधानसभा की 147 में से सौ सीटों पर खुद लड़ना चाहती थी। भाजपा लोकसभा की 21 में से 14 सीटों पर दावेदारी जता रही थी। जबकि विधानसभा की आधी सीटों पर लड़ना चाहती थी। भाजपा के फार्मूले के तहत बीजद को अपने कई विधायकों और सांसदों का टिकट काटना पड़ता। इसके कारण चुनाव से पहले उसे बगावत का डर था। भाजपा ने लोकसभा की कुछ सीटों पर बीजद सांसदों को अपने निशान पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, मगर इस पर सहमति नहीं बन पाई। उधर लोकसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल से पंजाब में भाजपा की सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन सकी और बात टूट गई। पंजाब में जहां अकाली दल की शर्तों के साथ भाजपा के स्थानीय नेताओं की आपत्ति गठबंधन में बाधा बनी, वहीं कहा जा रहा है कि पंजाब में दोनों दलों के बीच सीट की संख्या कोई मुद्दा नहीं थी। अकाली दल ने गठबंधन के लिए किसान आंदोलन के संदर्भ में कुछ ठोस आश्वासन देने और अटारी बार्डर पर व्यापार के लिए खोलने की शर्त रखी। इस पर भाजपा नेतृत्व ने राज्य इकाई के नेताओं से बात की तो ज्यादार नेता गठबंधन के पक्ष में नजर नहीं आए। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ सहित कई नेताओं ने कहा कि भाजपा के समक्ष सिख मतदाताओं के बीच पैठ बनाने का यह बड़ा अवसर है। इसे खोना नहीं चाहिए। इन नेताओं ने लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के भाजपा में शामिल होने पर सहमति देने की जानकारी देते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर सिखों में भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं है, ऐसे में पार्टी को मोदी सरकार के कार्यकाल में सिख अस्मिता से जुड़े निर्णयों के सहारे मैदान में उतरना चाहिए। भाजपा का अकेले लड़ने का कितना लाभ होगा, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, जब मतगणना होगी।

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