Thursday 28 March 2024

सीजेआई की ट्रोलिंग


प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उनके साथ हाल ही में हुई उस घटना को याद किया जब एक सुनवाई के दौरान कमर दर्द के कारण उन्हें अपनी कुर्सी ठीक करने की वजह से विवाद खड़ा किया गया और उन्हें ट्रोल किया गया और सोशल मीडिया पर शातिर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। बेंगलूरू में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने न्यायिक अधिकारियों के लिए तनाव प्रबंधन और जीवन शैली व काम के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत पर जोर डाला। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कर्नाटक राज्य न्यायिक अधिकारी संघ द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश के पास काफी काम होता है और परिवार तथा अपनी देखभाल के लिए समय नहीं निकाल पाने के कारण उन्हें उपयुक्त रूप से काम करने की मशक्कत करनी पड़ सकती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, तनाव का प्रबंधन करना और कामकाज एवं जीवन के बीच संतुलन बनाने की क्षमता पूरी तरह से न्याय प्रदान करने से जुड़ी हुई है। दूसरों के घाव भरने से पहले आपको अपने घाव भरना सीखना चाहिए। यह बात न्यायाधीशों पर भी लागू होती है। उन्हेंने न्यायिक अधिकारियों के 21वें द्विवार्षिक राज्य स्तर सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अपने एक हालिया व्यक्तिगत अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि एक अहम सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के आधार पर हाल में उनकी आलोचना की गई। उन्होंने कहा, महज चार-पांच दिन पहले जब मैं एक मामले की सुनवाई कर रहा था, मेरी पीठ में थोड़ा दर्द हो रहा था, इसलिए मैंने बस इतना किया थाकि अपनी कोहनियां अदालत में अपनी कुर्सी पर रख दीं और मैंने कुर्सी पर अपनी मुद्रा बदल ली। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर कई टिप्पणियां की गई, जिनमें आरोप लगाया गया कि प्रधान न्यायाधीश इतने अहंकारी हैं कि वह अदालत में एक महत्वपूर्ण बहस के बीच उठ गए। प्रधान न्यायाधीश ने उल्लेख किया उन्होंने आपको यह नहीं बताया कि मैंने जो कुछ किया वह केवल कुर्सी पर मुद्रा बदलने के लिए किया था। 24 वर्षों से न्यायिक कार्य करना थोड़ा श्रमसाध्य हो सकता है जो मैंने किया है। उन्होंने कहा मैं अदालत से बाहर नहीं गया। मैंने केवल अपनी मुद्रा बदली, लेकिन मुझे काफी दुर्व्यवहार ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा... लेकिन मेरा मानना है कि हमारे कंधे काफी चौड़े हैं और हमारे काम को लेकर आम लोगों का हम पर पूरा विश्वास है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों के समान ही तालुक अदालतों में (न्यायधीशों को) सुरक्षा नहीं मिलने के संदर्भ में उन्होंने एक घटना को याद किया जिसमें एक युवा दीवानी न्यायाधीश को बार के एक सदस्य ने धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया तो वह उनका तबादला करवा देगा। कामकाज और जीवन के बीच संतुलन तथा तनाव प्रबंधन इस दो दिवसीय सम्मेलन के विषयों में से एक था। इस बारे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि तनाव प्रबंधन की क्षमता एक न्यायाधीश के जीवन में महत्वपूर्ण है। खासकर जिला न्यायाधीशों के लिए। उन्होंने कहा कि अदालतों में आने वाले कई लोग अपने साथ हुए अन्याय को लेकर तनाव में रहते हैं। उन्होंने कहा प्रधान न्यायाधीश के रूप में मैंने बहुत से वकीलों और वादियों को देखा है, जब वे अदालत में अपनी सीमा पार कर जाते हैं इसका उत्तर यह नहीं कि उन्हें अवमानना का नोटिस दें बल्कि यह समझना जरूरी होता है कि उन्होंने यह सीमा क्यों पार की।

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