Wednesday 31 July 2013

रिकार्ड जीत की ओर बढ़ती भारतीय जनता पार्टी?

प्रकाशित: 31 जुलाई 2013
श्री नरेन्द्र मोदी के सेंटर स्टेज पर आने से माहौल तो पता नहीं कितना बदला है पर नेताओं और भाजपा कार्यकर्ताओं में नया जोश जरूर आ गया है। हालांकि अभी भी मेरी राय में भाजपा कांग्रेस की नेचुरल विकल्प नहीं बन पाई पर पहले से भाजपा की स्थिति बेहतर जरूर हुई है। तभी तो भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों के नतीजे चौंकाने वाले रहेंगे। इनमें पार्टी को भारी विजय मिलेगी। अनुसूचित जाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को सम्बोधित करते हुए आडवाणी ने कहा कि जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे लगता है कि 2014 के आम चुनाव समय से पहले हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सभी अनुमान पार्टी के पक्ष में हैं और उन्हें पूरी उम्मीद है कि भाजपा रिकॉर्ड जीत दर्ज कर सत्ता में आएगी। कुछ अखबारों में प्रकाशित जनमत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर यह सर्वेक्षण भाजपा के खिलाफ पूर्वग्रह से ग्रस्त होते हैं। लेकिन इस बार इन सर्वेक्षणों में भी बताया गया है कि भाजपा चुनाव जीतेगी। समय पूर्व चुनाव का अनुमान जताते हुए आडवाणी ने कहा कि लोकसभा चुनाव और इस साल होने वाले विधानसभा  चुनाव अप्रैल 2014 तक पूरे हो जाएंगे। हमने इतने कम समय में इतने सारे चुनाव छह राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव का अनुभव नहीं किया है। चाहे या न चाहे, मौसम और अन्य कारकों को ध्यान में रखकर चुनाव आयोग भी समय पूर्व चुनाव चाहेगा। सरकार भी समय पूर्व चुनाव पसंद कर सकती है। उधर टीम मोदी ने 272 प्लस के लक्ष्य के साथ अपना काम शुरू कर दिया है। पार्टी के सारे अभियान का जोर युवाओं पर है और उनको लुभाने के लिए आईटी टीम ने मोर्चा सम्भाल लिया है। यह टीम डिजीटल मोबाइल व इंटरनेट के सहारे युवाओं को मतदान बूथ तक ले जाने की मुहिम में जुट गई है। देश के 65 फीसदी युवाओं को लक्ष्य कर बनाई जा रही चुनावी अभियान की रूपरेखा में भाजपा इस बार परम्परागत प्रचार माध्यमों से ज्यादा उपयोग सोशल मीडिया का कर रही है। इसमें आधुनिक सूचना-संचार तकनीक का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। कार्यकर्ताओं को बताया गया है कि वह अपने राज्यों में डिजीटल, मोबाइल और इंटरनेट के जरिए पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के भाषणों, क्लिपिंग, विभिन्न घटनाओं की जानकारी, कांग्रेस सरकार के घोटालों, उसके नेताओं के विवादास्पद बयानों को आम जनता खासकर युवाओं तक पहुंचाए। हर बूथ को पार्टी की टीम इसे अपने  यहां प्रचारित करेगी एक और अहम बात भाजपा के लिए यह है कि लम्बे अरसे तक गुजरात को सुशासन का मॉडल बताते हुए लाल कृष्ण आडवाणी ने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई जिक्र नहीं किया। अपने भाषण में जो भाजपा के उभरते सितारे हैं। कई भाजपा कार्यकर्ता उन्हें सर्वाधिक वोट जुटाने वाले और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखते हैं। शनिवार के अपने भाषण में संघ की भी दबे शब्दों में सराहना की पर इससे यह लगता है कि भाजपा के अन्दर मोदी को प्रधानमंत्री स्वीकार करने में सहमति नहीं बनी है। मोदी का अन्दरखाते विरोध भी जारी है। देखें आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर कोई आम सहमति बनती है या नहीं। माहौल तो कांग्रेस विरोधी है पर इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी कितना उठा सकती है असल सवाल तो यह है?

गलती हुड़दंगी बाइकर्स की, बदनामी पुलिस की

प्रकाशित: 31 जुलाई 2013
राष्ट्रीय राजधानी के अति सुरक्षित इलाके में शनिवार देर रात बाइकर्स के हुड़दंग व पथराव के बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। इससे बाइक पर स्टंट करने वाले एक बाइकर करण पांडे की मौत हो गई जबकि उसका दोस्त पुनीत शर्मा जख्मी हो गया। नई दिल्ली जिला पुलिस आयुक्त एबीएस त्यागी का कहना है कि शनिवार रात करीब 2.07 बजे विंडसर प्लेस के पास तैनात पीसीआर ने नई दिल्ली जिला कंट्रोल रूम को शंग्रीला होटल के पास 30-35 बाइकर्स के हुड़दंग मचाने की सूचना दी। सूचना मिलते ही दूसरी पीसीआर में तैनात नई दिल्ली जिला के पीसीआर सुपरवाइजर रजनीश कुमार वहां पहुंच गए। पुलिस ने बाइकर्स को स्टंट करने से रोका जवाब में उन लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। इंस्पेक्टर परमार ने माइक से बाइकर्स को समझाने का प्रयास किया लेकिन बाइकर्स नहीं माने। इसके बाद इंस्पेक्टर ने अपने सर्विस रिवाल्वर से हवा में दो फायर किए। इस पर भी जब बाइकर्स का हुड़दंग नहीं थमा तो इंस्पेक्टर ने एक बाइक के पिछले टायर को लक्ष्य बनाकर गोली चलाई। तभी बाइक चला रहे पुनीत शर्मा (19) ने स्टंट करते हुए बाइक को ऊपर हवा में उठा दिया। इससे गोली बाइक पर पीछे बैठे करण पांडे (18) की कमर में जा लगी और शरीर से पार होकर पुनीत की पीठ से रगड़ खाकर निकल गई। दोनों युवकों को आरएमएल अस्पताल में लाया गया, जहां डाक्टरों ने करण को मृत घोषित कर दिया। पुनीत की हालत खतरे से बाहर बताई गई। करण घर का इकलौता बेटा था। वह मालवीय नगर में रहता था। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार शनिवार रात को वह स्मोकिंग करने बाहर निकला था और ली मैरिडियन होटल के सामने खड़ा था। कुछ बाइकर्स वहीं गोल चक्कर पर स्टंट कर रहे थे। मैंने उनसे कुछ नहीं कहा, क्योंकि ऐसा अकसर होता था। मगर कुछ ही देर बाद मैंने देखा कि बाइकर्स के पीछे पीसीआर दौड़ रही है। कुछ बाइकर्स पुलिस पर पथराव कर रहे थे। मामला गम्भीर होते देख मैं अपने घर वापस आ गया। आखिरकार वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। पहले कई बार दी गई चेतावनी, चालान और बाइक जब्ती के बाद भी कानून व्यवस्था का मखौल उड़ाते हुए एक बाइकर करण पांडे पुलिस की गोली का शिकार हो गया। महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि फायरिंग सही थी या गलत और क्या पुलिस एक्शन गलत था? सुप्रीम कोर्ट के वकील डीबी गोस्वामी का कहना है कि पुलिस का एक्शन कानून की नजर में सही है। ट्रैफिक के बीच यदि कोई बाइकर इस तरह के खतरनाक स्टंट दिखाता है तो वह दूसरे लोगों की जान को भी खतरे में डालता है। वह उस वक्त पर तैनात पुलिस वालों की ड्यूटी बनती है कि वह उन्हें रोके। अगर इस कार्रवाई में किसी की जान चली जाती है तो क्राइम के दायरे में नहीं आती। क्रिमिनल मामलों के एक अन्य वकील पूज्य कुमार सिंह के मुताबिक, यह सही है कि पब्लिक प्लेस पर स्टंट दिखाने पर उसके खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत एक्शन  लिया जा सकता है। इस घटना में पुलिस फायरिंग सही नहीं है। कई टीवी चैनलों पर `दिल्ली पुलिस ने मार डाला' बाइकर्स पर फायरिंग क्यों जैसी हेड लाइंस चलीं, गलती किसकी है यह तो एसडीएम की जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन क्या किसी को कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने की छूट दी जा सकती है? कई बार चेतावनी देने के बावजूद भी यह बाइकर्स नहीं माने। पिछली घटनाओं में हल्का लाठीचार्ज भी किया गया लेकिन फिर भी यह बाइकर्स बाज नहीं आए। कहा जा रहा है कि इनसे निपटने के और भी तरीके थे। चेतावनी, आंसूगैस, वॉटर कैनन और लाठीचार्ज के विकल्प पुलिस के पास मौजूद थे। यह सभी विकल्प भीड़ प्रदर्शन को तितर-बितर करने के लिए होते हैं। यह बाइकर्स किसी राजनीतिक या सामाजिक प्रदर्शन के लिए वहां एकत्रित नहीं हुए थे बल्कि वो तो इधर से उधर एक कोने से उस कोने तक पुलिसकर्मियों को छकाते फिर रहे थे। अंत में पुलिस ने इन्हें काबू करने के लिए एक बाइक के टायर पर गोली चलाई। स्टंट की वजह से वह गोली पीछे बैठे करण पांडे को गलती से जा लगी जिससे उसकी मौत हो गई। यह घटना बच्चों की कारस्तानी से बेपरवाह मां-बाप की कमियों को भी उजागर करती है। मां-बाप को पता तक नहीं होता कि उनका बच्चा इतनी रात को कहां जा रहा है? क्या कर रहा है? दिल्ली पुलिस इस घटना से डिफेंसिंग नहीं है। पुलिस डिपार्टमेंट अब एक्शन के मूड में आ चुका है। शनिवार की घटना के बाद पुलिस ने संसद मार्ग थाने में विभिन्न धाराओं के तहत केस रजिस्टर कर कार्रवाई शुरू कर दी है। हालांकि जिस इंस्पेक्टर की पिस्टल से गोली चली, उसके खिलाफ अभी किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है। पुलिस अफसरों का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच रिपोर्ट आने के बाद ही इंस्पेक्टर के खिलाफ क्या कार्रवाई करनी है तब तय होगा।
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday 30 July 2013

ओबामा को पत्र ः मोदी से नफरत की इंतहा

प्रकाशित: 30 जुलाई 2013
नरेन्द्र मोदी क्या सचमुच इतने बड़े खलनायक हैं कि उन्हें हटाने के लिए देश की इज्जत, सप्रभुता और अस्तित्व तक को कुछ सांसदों ने दाव पर लगा दिया जब उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिख डाला कि मोदी को अमेरिका का वीजा न दिया जाए। इस बहस में नहीं जाना चाहता कि इस पत्र के कितने फर्जी हस्ताक्षर किए गए पर यह पत्र राजनीतिक क्षुद्रता का परिचायक जरूर है। अमेरिका तक में हैरानी जताई गई है कि भारतीय सांसदों ने अपने यहां के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की अपील अमेरिकी सरकार से क्यों की? एक निर्दलीय सांसद ने मोदी को वीजा न देने संबंधी अपील पर विभिन्न पार्टियों के सांसदों से हस्ताक्षर कराए थे जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को फैक्स के जरिए भेज दिया गया। अब कुछ सांसदों का कहना है कि उन्होंने इस पत्र पर हस्ताक्षर ही नहीं किए। किसी व्यक्ति को वीजा देना या न देना यह फैसला अमेरिका को करना है इस प्रकार से दबाव डालने से देश की ही बेइज्जती होती है। यह तथ्य सामने आना तो और भी शर्मनाक है कि मोदी के खिलाफ लिखे ओबामा के इस पत्र में फर्जीवाड़ा करने से भी भेजने वालों ने गुरेज नहीं किया। जिस तरह से करीब 10 सांसदों ने साफ इंकार किया है कि उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए उससे तो यही पता चलता है कि मोदी विरोधियों ने छल-कपट का सहारा लेने से भी संकोच नहीं किया। इस छल-कपट से संसद के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र का भी अपमान हुआ है। यह कितना दयनीय है कि अमेरिका और साथ ही दुनिया को यह संदेश चला गया कि भारत में ऐसे भी सांसद हैं जो अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए धोखाधड़ी से भी बाज नहीं आते। नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं या नहीं यह तो दूर की कौड़ी है लेकिन इसकी आड़ में क्या देश के माननीय सांसदों को ऐसे आचरण की इजाजत दी जा सकती है? खुद अमेरिकी अखबार `वाशिंगटन पोस्ट' इस पत्र पर हैरत जाहिर कर रहा है कि लम्बे अरसे तक अमेरिका से शीतयुद्ध की तपिश झेल चुके भारतीय सांसद ओबामा को ऐसे आग्रह का मन कैसे बना पाए होंगे। तब यह पत्र क्या अमेरिका में बसे हिन्दुओं और मुसलमानों की राजनीतिक होड़ का नतीजा है जिसमें हमारे सांसदों ने भी अपनी रोटी सेंकने का मौका तलाश लिया है। इस पत्र को लीक करने के पीछे इंडियन-अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल का नाम आ रहा है जिसने अमेरिका में मौजूद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मोदी अभियान की टक्कर में यह हथियार चलाया है। इस पत्र को दूसरी एक और घटना से भी जोड़ा जा रहा है जिसमें 27 अमेरिकी सांसदों ने अपने विदेश मंत्री जॉन केरी को पत्र लिखकर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों पर गम्भीर चिन्ता जाहिर की है। माकपा नेता सीताराम येचुरी की प्रतिक्रिया सही थी। उन्होंने पत्र पर खुद हस्ताक्षर न करने का तर्प देते हुए कहा कि मैं नहीं चाहता कि कोई देश के अंदरुनी मामले में हस्तक्षेप करे। इन सांसदों ने मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए अमेरिका से मोदी को वीजा न देने की अपील की है। यही पत्र पिछले साल के अंत में भी सांसद अमेरिका को लिख चुके हैं। लेकिन राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में वह यह शायद भूल गए कि ऐसा करके वह भारत के आंतरिक मामले में अमेरिका को चौधरी बनाने का मौका दे रहे हैं। अमेरिका की फितरत जानने वाले समझ सकते हैं कि सिलसिला फिर यहीं तक रुकने वाला नहीं है।

गरीब और गरीबी का मजाक उड़ाने से बाज आए

प्रकाशित: 30 जुलाई 2013
 बेचारे गरीब की औकात क्या है कि सामर्थ्यवानों के खिलाफ मुंह खोले। गरीबों से मजाक का एक तरीका इस संप्रग सरकार ने ऐसी कमेटियों में ढूंढ निकाला है जो गरीबी रेखा तलाशने की बाजीगरी में नित नए आंकड़े उछालती रहती है। ताजा उदाहरण है योजना आयोग का जिसने गरीबी रेखा को 27 से 33 रुपए के फेरे में डालकर ऐसी ही बाजीगरी की है जिस पर बवाल मचना स्वाभाविक ही था। गरीब और गरीबी के प्रति असंवेदनशील मजाक पर पूरे देश में ऐसी प्रतिक्रिया हुई जिसका संप्रग सरकार व कांग्रेस को शायद अंदाजा नहीं था। अंतर्राष्ट्रीय मापदंड जो 2005 में तय किया गया था वह 1.25 डॉलर (लगभग 75 रुपए) प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीब माना गया है। भारत में 27 रुपए गांव और 33 रुपए शहर में रोजाना खर्च करने वाले व्यक्ति गरीबों की श्रेणी में आता है योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक। चौंकाने वाली बात तो यह है कि कांग्रेस के कुछ सांसद नेता इस आंकड़े को जस्टिफाई कर रहे हैं कि पांच रुपए में जामा मस्जिद में पेटभर खाना खाया जा सकता है। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि खाना तो एक रुपए में भी खाया जा सकता है। इन नेताओं को राजस्थान के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उसी अंदाज में जवाब दिया है। श्रीगंगानगर जिले के सामाजिक कार्यकर्ता ने पीएम, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम 33-33 रुपए एवं कांग्रेस सांसद राज बब्बर के नाम 12 रुपए और रशीद मसूद के नाम पांच रुपए के मनी आर्डर भेजे हैं। ऐसे ही मनी आर्डर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विजय गोयल भी भेज चुके हैं। मनी आर्डर के साथ भेजे पत्र में कहा गया है कि वह 33-33 रुपए में भरपेट खाना खाकर दिखाएं। यदि वह इन राशियों में भरपेट भोजन स्वयं कर सकते हैं या फिर अन्य के लिए व्यवस्था कर सकते हैं तो चन्दा एकत्रित कर और थालियों के आर्डर भेजे जाएंगे। योजना आयोग के आकलन और नेताओं के बेतुके बयानों से हुई प्रतिक्रियाओं के बाद अब कांग्रेस पार्टी नुकसान की भरपाई में जुट गई है। खाद्य सुरक्षा विधेयक से पूरा सियासी माहौल पलटने की तैयारी कर रहे कांग्रेस नेतृत्व के अरमानों पर बब्बर और मसूद थाली न जो पानी फेरा है उसके बाद अब सरकार और पार्टी ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली योजना आयोग के खिलाफ जोरदार हल्ला बोल दिया है। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने योजना आयोग के गरीबी रेखा के निर्माण पर ही गम्भीर सवाल उठा दिए हैं। वहीं योजना मंत्री राजीव शुक्ला ने तो गरीबी के इस पैमाने को सरकारी आंकड़ा ही मानने से इंकार कर दिया है। इन आंकड़ों का राजनीतिक निहितार्थ यह बताना है कि शायद पिछली एनडीए सरकार के मुकाबले यूपीए की सत्ता गरीबों की बड़ी हिमायती रही है। लेकिन यह आंकड़े और दावे यह पोल खोल रहे हैं कि आज की सत्ता और राजनीति देश की वास्तविक हालात से किरकरी कर गई है। पेट की आग बुझाने में आज देश के गरीब की तमाम जिन्दगी गुजर जाती है इस प्रकार के भद्दे मजाक से बेहतर है कि गरीब की थाली का सही प्रबंध हो और उसकी गरीबी का मजाक न उड़ाया जाए।
-अनिल नरेन्द्र

Sunday 28 July 2013

बटला हाउस फैसला ः तर्पसंगत, न्यायसंगत आधार पर इंसाफ है

प्रकाशित: 28 जुलाई 2013
 बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउंटर की असलीयत सामने आ गई है। साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्र ने इस केस को लेकर एक ऐसा महत्वपूर्ण फैसला दिया है जिसकी चर्चा बहुत दिनों तक होती रहेगी। एक कठिन, राजनीति से प्रेरित केस में किसी प्रकार का फैसला देना आसान काम नहीं था पर मानना पड़ेगा कि जज साहब ने एक बैलेंस्ड और न्यायसंगत फैसला दिया है। इस फैसले पर राजनीति तो होगी ही पर मुझे नहीं लगता कि इसके तथ्यों और निष्पक्षता पर कोई विवाद हो। सबसे पहले आपको बताएं कि बटला हाउस मुठभेड़ थी क्या? 13 सितम्बर, 2008 को दिल्ली के करोलबाग, कनॉट प्लेस, इंडिया  गेट व ग्रेटर कैलाश में सीरियल बम धमाके हुए थे। इन बम धमाकों में 26 लोग मारे गए थे जबकि 13 घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस ने जांच में पाया कि बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया। घटना के छह दिन बाद 19 सितम्बर को दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकवादी बटला हाउस स्थित मकान एल-18 में छिपे हुए हैं। सूचना के आधार पर इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की अगुवाई में सात सदस्यीय टीम जब छापा मारने पहुंची तो मकान के प्रथम तल पर बने फ्लैट में मौजूद पांच आतंकियों ने पुलिसकर्मियों पर गोली चलानी शुरू कर दी। एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा सहित दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। जवाबी फायरिंग में पुलिस ने दो आतंकी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद को मार दिया जबकि दो आतंकी मोहम्मद सैफ और जशीन को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन एक आतंकी भागने में सफल रहा। एनकाउंटर में घायल मोहन चन्द शर्मा को होली फैमिली अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस के अनुसार एनकाउंटर के बाद शहजाद उस फ्लैट से बचकर भाग गया था। पुलिस को शहजाद का पता आतंकी मोहम्मद सैफ से चला और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में एक अन्य आरोपी जुनैद को पकड़ा नहीं जा सका और उसे भगौड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया। शहजाद को एक जनवरी 2010 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले से गिरफ्तार किया जा सका और यहीं से आरम्भ हुई इस केस में राजनीति। चूंकि मामला अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा था और एक बार फिर आजमगढ़ का नाम इस कांड से जुड़ा, इसलिए दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेसी नेताओं ने सभाओं में इसे फर्जी करार देने के साथ-साथ यहां तक कह दिया कि इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा को उनके साथियों (पुलिस) ने ही मारा है। चुनावी सभाओं में भी इस मसले को उठाते रहे, एक वर्तमान मंत्री सलमान खुर्शीद ने तो एक सभा में यहां तक कहा कि इस फर्जी मुठभेड़ की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी की आंखों में आंसू तक आ गए। माननीय जज शास्त्राr ने अपने फैसले में एक तरह से बिना कहे इस पर सियासत करने वालों को करारा जवाब दिया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने 2009 के लोकसभा और 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था। सपा के पूर्व नेता अमर सिंह पार्टी के मौजूदा महासचिव रामगोपाल यादव के साथ बटला हाउस गए थे। उन्होंने भी मुठभेड़ को फर्जी बताया। बटला हाउस पर पार्टी नेताओं की सियासत से कांग्रेस किनारा तो करती है पर कभी भी उनके मुंह पर ताला लगाने की कोशिश भी नहीं की। दिग्विजय सिंह तो फैसले के बाद भी कह रहे हैं कि मैं आज भी अपने बयान पर कायम हूं। हैरानी की बात तो यह है कि संप्रग सरकार के वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने फैसले के बाद कहा कि बटला हाउस एनकाउंटर फर्जी नहीं था। बतौर गृहमंत्री इस मामले की समीक्षा करने वाले चिदम्बरम के मुताबिक एनकाउंटर की असलियत पर सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। जज शास्त्राr ने साफ कहा कि एनकाउंटर फर्जी नहीं था। सीरियल ब्लास्ट के बाद 19 सितम्बर 2008 को बटला हाउस एनकाउंटर को जज साहब ने सही बताया है। करीब 70 गवाहों और सबूतों को देखते हुए कोर्ट ने इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी शहजाद उर्प पप्पू को इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या का दोषी माना। अब 29 जुलाई को सजा पर बहस होगी। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302, 307, 186 और 120बी के तहत दोषी करार देते हुए कहा कि शहजाद ने गोली मारकर इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या की, यही नहीं उसने बाकी पुलिस वालों पर भी गोलियां चलाईं और हैड कांस्टेबल बलवंत सिंह की हत्या की भी कोशिश की थी। शहजाद को दोषी करार देते हुए अदालत ने कहा कि वह इंडियन मुजाहिद्दीन का सदस्य था या नहीं, इससे मामले पर कोई फर्प नहीं पड़ता है। वह इस मामले का दोषी है और यही हकीकत है। जज साहब ने कहा कि अदालत के सामने इस बात का कोई सबूत नहीं है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि वह आईएम का सदस्य है। जज साहब ने दिल्ली पुलिस को भी नहीं बख्शा। फैसले में अदालत ने कहा कि इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा ने रेड करने के समय बुलैट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहन रखी थी? यह अचरज का विषय है। उन्हें इसका अंजाम पता था, फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन्होंने सुरक्षा जैकेट पहनी ही नहीं। यह और कुछ नहीं बल्कि गैर-पेशेवर रवैया था। जज शास्त्राr ने कहा कि पुलिस के पास पहले से सूचना थी कि अमुक जगह पर कुछ आतंकी छिपे हुए हैं। ऐसे में वहां जाने से पहले योजना बनाई गई होगी पर यह कैसी योजना बनी कि सात पुलिस की टीम में दो के पास कोई हथियार ही नहीं थे, हालांकि अदालत ने कहा कि पुलिस हथियार के साथ जाए या खाली हाथ जाए, लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए, लेकिन यहां पर गोली चला दी गई। इसे कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसे बहुचर्चित, सियासी बनाए गए केस में ऐसा कोई फैसला देना जो न्यायसंगत, तर्पसंगत हो, सभी पक्षों को स्वीकार्य हो आसान काम नहीं था पर जज शास्त्राr के फैसले से जहां दिल्ली पुलिस ने राहत की सांस ली है वहीं शहजाद के गांव वाले दुखी तो नजर आए लेकिन किसी ने फैसले पर टिप्पणी नहीं की। गांव वालों ने आमतौर पर कोर्ट पर भरोसा जताया। जहां तक मुस्लिम समुदाय की राय की बात है तो इसमें भी मिलाजुला रिएक्शन आया है। जामिया इलाके में खासतौर से बटला हाउस के आसपास लोग सुबह से ही टीवी से चिपके रहे। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के शिक्षक और धर्मगुरुओं ने जहां इस फैसले में दिल्ली पुलिस की मनगढ़ंत दलील की झलक करार दिया वहीं कई लोगों का कहना है कि इस फैसले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि किसी व्यक्ति को अगर निचली अदालत से इंसाफ नहीं मिला तो वह ऊपरी अदालतों में जा सकता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद फिर आतंकवाद और आजमगढ़ का नाम जुड़ गया है। साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्राr मेरी राय में तो बधाई के पात्र हैं कि इतने मुश्किल केस में उन्होंने सभी से इंसाफ करने का प्रयास किया है।
-अनिल नरेन्द्र

Saturday 27 July 2013

गर्दिश में चल रहे हैं कुछ कलाकारों के सितारे ः संजय के बाद अब सलमान

प्रकाशित: 27 जुलाई 2013
बॉलीवुड के टॉप कलाकारों के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। पहले संजय दत्त जेल गए और अब सलमान मुश्किल में पड़ गए हैं। मुंबई के सत्र न्यायाधीश यूबी हजीब ने बुधवार को 11 साल पुराने हिट एण्ड रन केस में उन्हें गैर-इरादतन हत्या का दोषी करार दिया है। 28 सितम्बर 2002 को सलमान ने अपनी लैंड कूजर कार से बांद्रा अमेरिकन एक्सप्रेस बेकरी के सामने फुटपाथ पर सोए  हुए लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और चार अन्य घायल हो गए थे। घटना वाले दिन सलमान के खून में  शराब की मात्रा पाई गई थी। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक अभिनेता के खून में 62 मिली ग्राम अल्कोहल था जो स्वीकार्य सीमा से अधिक है। अभिनेता के बॉडीगार्ड रवीन्द्र पाटिल ने कोर्ट में कहा था कि हादसे के वक्त सलमान ही गाड़ी चला रहे थे। पाटिल की 2007 में मौत हो चुकी है मगर उसका यह रिकार्डेड बयान अहम भूमिका निभा रहा है। अगर यह गैर-इरादतन हत्या का आरोप सिद्ध हो जाता है तो सलमान को अधिकतम 10 साल तक की सजा हो सकती है। आरोप तय करने के  बाद जब जज ने सलमान से पूछा कि क्या आपको आरोप कबूल हैं? तो सलमान ने कहा कि मैं आरोप कबूल नहीं करता हूं। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 19 अगस्त की तारीख तय की है। अब मुकदमा चलेगा। गवाहों के बयान दर्ज होंगे। वकील बयानों पर बहस करेंगे। अंत में 313 का बयान होगा। इसमें कोर्ट सीधे सलमान से पूछेगी कि वह इस केस में कोई और तथ्य या जानकारी बताना चाहते हैं या नहीं। दोष सिद्ध हुआ तो सजा। वैसे सलमान के पास अभी बचाव के रास्ते हैं। केस में कई साल लग सकते हैं और अगर फैसला उनके खिलाफ आता है तो वह हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। हिट एण्ड रन के कई और किस्से अखबारों की सुर्खियां बन चुके हैं। 2011 में अभिनेता रोनित रॉय ने अपनी मर्सीडीज कार से कार को टक्कर मार दी जिसमें तीन लोग घायल हुए। तेज गाड़ी चलाने के आरोप में अभिनेता जॉन अब्राहम 15 दिन की सजा काट चुके हैं। 1999 में बहुचर्चित संजीव नंदा की कहानी तो बच्चा-बच्चा जानता है। नंदा की बीएमडब्ल्यू कार ने तीन पुलिस वालों सहित छह लोगों को कुचल दिया था। उन्हें दो साल की सजा हुई। दिल्ली में पिछले 15 सालों में 340 हिट एण्ड रन मामलों में 347 लोगों की जान गई थी। फिल्म अभिनेता सलमान खान पर आरोप लगने से बॉलीवुड में हड़कम्प मच गया है। सलमान खान पर बॉलीवुड के लगभग 700 करोड़ रुपए लगे हैं। फिलहाल तो वह अपने भाई सोहेल खान की 130 करोड़ की लागत से बन रही फिल्म मेंटल पूरी करने में जुटे हैं। इसके अलावा फिल्म डायरेक्टर केबी, शोमैन सुभाष घई वाली फिल्म, निर्माता बोनी कपूर की फिल्म `एंट्री में एंट्री' में काम करने जा रहे हैं। इसके अलावा लीला भंसाली की फिल्म `गब्बर' के अलावा फिल्म `फटा पोस्टर निकला हीरो' और फिल्म `ओ तेरी' में भी बतौर मेहमान कलाकार काम कर रहे हैं। क्लर्स चैनल के रियलिटी शो बिग बॉस के नए सीजन में भी वह नजर आएंगे। इस शो के प्रति एपीसोड के लिए वह लगभग आठ करोड़ रुपए लेते हैं। इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि वह एक उत्पाद के विज्ञापन के लिए कम से कम सात करोड़ रुपए लेते हैं। भूरे रंग की शर्ट और काली पेन्ट, फॉर्मल ड्रेस में सलमान बुधवार सुबह काला घोड़ा के सेशंस कोर्ट परिसर में समय से काफी पहले पहुंच गए थे। उनके साथ उनकी दोनों बहनें और उनके वकीलों की टीम थी।

क्या राहुल की जीतोड़ मेहनत इन कांग्रेसियों को सुधार पाएगी?

प्रकाशित: 27 जुलाई 2013
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी आजकल जी-जान से दिन-रात पार्टी संगठन को दुरुस्त करने में लगे हैं। राहुल ने अपने नेताओं को जो नसीहत दी है वह बहुत जरूरी है। आए दिन पार्टी के बड़े नेता अपनी ही सरकार व पार्टी नीतियों के खिलाफ बयानबाजी करके फालतू के विवाद पैदा करते हैं और आलाकमान को असमंजस में डाल देते हैं। पार्टी प्रवक्ता यह कहकर अपनी जान छुड़ाते हैं कि यह बयान अमुक नेता का अपना बयान है। राहुल ने बुधवार को पार्टी पदाधिकारियों से टीम भावना से काम करने की हिदायत देते हुए कहा कि गुटबाजी से संगठन कमजोर होता है। अत कांग्रेस पदाधिकारी व कार्यकर्ता टीम भावना से काम करें। राहुल ने कहा कि हमें समय के साथ चलना होगा क्योंकि हम अपनी तैयारी में देरी करते हैं तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। राहुल ने दो दिन पहले यूपी के कार्यकर्ताओं व नेताओं को चेताया कि यूपी में हम अपनी गुटबाजी के कारण हारे पर दुख का विषय तो यह है कि राहुल की इतनी कड़ी मेहनत का जितना लाभ पार्टी को होना चाहिए वह शायद नहीं हो रहा। मिशन 2014 की तैयारियों में जुटे राहुल गांधी को तगड़ा झटका लगा है। कांग्रेस की ही अपनी एक खुफिया रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि यूपी कोर के केंद्रीय मंत्री दरअसल हीरो नहीं जीरो हैं। उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव मधुसूदन मिस्त्राr ने प्रदेश का व्यापक दौरा करने के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें कई खुलासे हुए हैं। मिस्त्राr ने सोमवार को पार्टी हाई कमान को यह रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में जिन मंत्रियों के कामकाज पर अंगुलियां उठाई गई हैं, वह सभी राहुल के करीबी माने जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मंत्रियों का आम कार्यकर्ताओं से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है। भले ही पार्टी की आंतरिक रिपोर्ट के आधार पर मंत्रियों की कुर्सी खतरे में नहीं है लेकिन रिपोर्ट में उठे सवाल के बाद राहुल का नाराज होना स्वाभाविक ही है। मिस्त्राr ने तो अपनी रिपोर्ट में इन मंत्रियों के आगामी चुनाव में जीतने पर भी सवाल उठा दिए हैं। यूपी से केंद्र में तीन कैबिनेट मंत्री के तौर पर सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा और श्रीप्रकाश जायसवाल हैं जबकि राज्यमंत्री के तौर पर आरपीएन सिंह, जतिन प्रसाद और प्रदीप जैन हैं। मिस्त्राr ने रिपोर्ट तैयार करने से पहले दो बार प्रदेश का दौरा किया और इस दौरान वह प्रदेश, जिला और ब्लॉक समिति के सदस्यों और कार्यकर्ताओं से मिले। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सूरजपुंड की संवाद बैठक हो या फिर जयपुर की चिन्तन बैठक। कार्यकर्ताओं से मंत्रियों तक सीधे पहुंच की जो प्रणाली बनाने की बात की, वह उत्तर प्रदेश में ध्वस्त दिख रही है। कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि प्रदेश कांग्रेस इकाई के पदाधिकारियों तक भी मंत्रियों की बेरुखी से परेशान हैं। मंत्री अपनी मनमर्जी से क्षेत्र का दौरा करते हैं। राहुल ने हालांकि सभी मंत्रियों को दो-टूक कह दिया है कि चुनाव को एक साल भी नहीं रह गया है, इसलिए उन्हें दिल्ली छोड़ क्षेत्र में काम करना होगा। राहुल ने यह भी कहा है कि सभी मंत्रियों को प्रदेश कांग्रेस इकाई को साथ लेना पड़ेगा पर कुछ कांग्रेसी ऐसी ढीठ जमात से हैं कि वह किसी की भी नहीं सुनते। राहुल अकेले तो चुनाव नहीं जिता सकते, सरकार और संगठन दोनों को मिलकर नेतृत्व का साथ देना होगा।

Friday 26 July 2013

मुलायम पर सीबीआई फंदा हटाने की सरकारी तैयारी

प्रकाशित: 26 जुलाई 2013
कांग्रेस के लिए खाद्य सुरक्षा मुद्दा इतना अहम बन गया है कि इसे पास करवाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। चाहे इस चक्कर में क्यों न इस मामले में पहले से लगते सीबीआई पर सरकारी तोता होने के आरोप सिद्ध हो जाएं? प्राप्त संकेतों से लगता है कि संप्रग सरकार समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर मेहरबानी की तैयारी कर रही है। संकेत आ रहे हैं कि मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की सीबीआई जांच बन्द की जा सकती है। यही नहीं द्रमुक की राज्यसभा सदस्य और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में आरोपी कनिमोझी के खिलाफ भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पकड़ ढीली होने जा रही है। दरअसल खाद्य सुरक्षा जैसे अहम अध्यादेशों को मानसून सत्र में संसद में पास कराने के लिए सरकार को सपा और द्रमुक जैसे दलों के सहयोग की जरूरत है। ऐसे में जांच एजेंसियों के इन दोनों के खिलाफ ढीले होते शिकंजे को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में मानसून सत्र शुरू होने से पहले ही क्लीन चिट मिल सकती है। दिसम्बर में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को यह फैसला लेने के लिए स्वतंत्र कर दिया था कि मुलायम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। साथ ही अदालत ने मुलायम की बहू और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव की सम्पत्ति को इसमें जोड़ने से मना कर दिया था। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डिम्पल यादव की सम्पत्ति को बाहर निकालने के बाद सपा प्रमुख के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का केस नहीं  बनता है। पर्याप्त सबूत न मिलने के चलते सीबीआई मुलायम व परिवार के खिलाफ जांच की फाइल बन्द करने की तैयारी में है। सूत्रों का कहना है कि शुरुआती रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि मुलायम और अखिलेश की सम्पत्ति में वृद्धि रिश्तेदारों से लिए गए लोन के चलते हुई है, जिसे बाद में गिफ्ट के रूप में दिखाया गया है। इसके अलावा एजेंसी ने पिता-पुत्र की सम्पत्तियों में कोई ऐसा इजाफा नहीं पाया जिसका स्पष्टीकरण नहीं हो सके। यह भी पता चला है कि 1993 से 2005 के दौरान मुलायम और अखिलेश के निवेश में कई गुना इजाफा हुआ, जिससे कथित तौर पर आय से अधिक सम्पत्ति का निर्धारण करना मुश्किल हो गया। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2007 में अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी की जनहित याचिका पर मुलायम और अखिलेश के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जांच के आदेश दिए थे। इस बीच याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा बिल पर समर्थन हासिल करने के लिए जानबूझ कर सपा प्रमुख को बचा रही है। उन्होंने बिना नाम लिए एक मंत्री पर धमकी देने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि जब मैंने केस की फाइल बन्द करने का विरोध किया तो एक मंत्री ने मुझे फोन किया और धमकी दी कि जो काम मैंने 2008 में किया था वह दोबारा न करें। चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस की मुलायम के साथ डील हो गई है और एजेंसी सरकार के कहने पर काम कर रही है। मुलायम से हुई डील किसी तरह से मीडिया में लीक हो गई। इससे सीबीआई में हड़कम्प मच गया। सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने संवेदनशील जांच की जानकारी मीडिया में लीक करने वाले अपने अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का फैसला किया है। उन्होंने लीक करने वाले अधिकारी को खोज निकालने का आदेश दे दिया। साथ ही उन्होंने इसके लिए एक आंतरिक जांच टीम का गठन कर दिया है। सिन्हा ने कहा कि दोषी पाए जाने पर अधिकारी को तुरन्त निलंबित कर दिया जाएगा। सिन्हा के मुताबिक अखिलेश-मुलायम डीए केस में उन्होंने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है। इनके खिलाफ इकट्ठा सबूतों का विश्लेषण होना बाकी है, लेकिन अखबारों में गलत खबर देकर जांच को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। सिन्हा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के मुताबिक अखिलेश की पत्नी डिम्पल यादव का नाम केस से हटा लेने के बाद जांच की प्रवृत्ति बदल गई है। डिम्पल का नाम इसलिए हटाया गया क्योंकि वह एक गैर-सरकारी व्यक्ति हैं। सिन्हा के मुताबिक इस परिवार की ज्यादातर सम्पत्ति डिम्पल के नाम पर है। लिहाजा उनके हटने के बाद पिता-पुत्र के खिलाफ सबूतों में फर्प आ गया है।

कुख्यात अबू गरेब जेल पर अलकायदा का बड़ा हमला

प्रकाशित: 26 जुलाई 2013
इराक स्थित अबू गरेब जेल दुनिया की बदनाम जेलों में से एक है। जब अमेरिका की सेना इराक में थी तो बगदाद के पश्चिम स्थित अबू गरेब जेल में कथित आतंकियों को इस तरह से प्रताड़ित किया गया था कि सारी दुनिया में यह जेल और अधिकारी बदनाम हो गए थे। बगदाद से 12 किलोमीटर दूर एक और जेल है वहां भी कथित आतंकी बन्द हैं। रविवार रात को इन दोनों जेलों पर जबरदस्त हमला हुआ। बन्दूकधारी सुन्नी आतंकवादियों ने जबरदस्त हमला किया। हमलावरों और सुरक्षाकर्मियों में 10 घंटे तक गोलाबारी चली। अंत में हमलावर दोनों जेलों से 500 के लगभग कैदियों को रिहा करने में सफल रहे। रातभर चली मुठभेड़ में कम से कम 41 लोग मारे गए। पुलिस के कर्नल का कहना है कि झड़प के दौरान अबू गरेब जेल से सात कैदी भाग निकलने में कामयाब रहे लेकिन बाद में सभी को गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरी ओर जेहादियों ने इंटरनेट पर दावा किया है कि हजारों कैदियों को छुड़ाया गया है। अधिकारियों ने बताया कि झड़प में सुरक्षाबलों के कम से कम 20 सदस्य मारे गए और 40 घायल हो गए। सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि दोनों जेलों में हुई झड़पों में 21 कैदी मारे गए और 25 घायल हुए। उन्होंने इस संबंध में कोई सूचना नहीं दी कि मारे गए कैदी झड़प में शामिल थे या नहीं। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि जेलों पर हमला करने वाले बन्दूकधारियों में से कितने हताहत हुए। पुलिस के कर्नल ने बताया कि हमलावरों न रविवार रात साढ़े नौ बजे जेलों पर मोर्टारों से धावा बोला। जेलों के मुख्य दरवाजों के पास चार कार बमों से विस्फोट किया गया जबकि ताजी जेल पर तीन आत्मघाती हमले हुए। ताजी जेल में जेल के पास सड़कों के किनारे भी पाच बम विस्फोट हुए। पूरी रात चली मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने हेलीकाप्टरों और अतिरिक्त सैनिकों का भी इस्तेमाल किया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि आत्मघाती हमलों से पश्चिमी छोर पर स्थित जेल के दरवाजों को पहले विस्फोटों से लदे वाहनों से उड़ाया गया फिर वह जेल का कम्पाउंड की सुरक्षा को भेदकर उसके अन्दर घुस गए तथा मोर्टार व रॉकेट चलित ग्रेनेडों की मदद से जेल के सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी। इनके साथ आए दूसरे आतंकवादियों ने मुख्य सड़क पर मोर्चा जमा लिया और बगदाद से रवाना किए गए सुरक्षाकर्मियों को जेल तक पहुंचने से रोक दिया। इस बीच विस्फोटों से लदी जैकेट पहने कई आतंकी जेल के अन्दर घुसे और अपने साथियों को छुड़ा ले गए। भाग निकले कैदियों में ज्यादातर अलकायदा के वरिष्ठ सदस्य हैं। सुन्नी मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा इस जेल ब्रेक से शिया नेतृत्व वाली इराक की सरकार की किरकिरी हुई है। एक सुरक्षा अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर समाचार एजेंसी रायटर को बताया कि यह स्पष्ट रूप से सजायाफ्ता अलकायदा के आतंकियों को छुड़ाने के लिए अलकायदा द्वारा किया गया हमला था। इराक में शिया सरकार और सुन्नी बन्दूकधारियों में हर रोज झड़पें चल रही हैं। आए दिन बम विस्फोट होते ही रहते हैं। केवल इसी महीने लगभग 600 इराकी मारे जा चुके हैं। रमजान के पवित्र महीने में भी दैनिक उपवास तोड़न के बाद इकट्ठे हुए लोगों, मस्जिदों, शौकिया फुटबाल मैचों, बाजारों व कैफे को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। निस्संदेह जेल ब्रेक के इतिहाक में यह एक सबसे बड़ा हमला होगा। यह हमला इराक व अफगानिस्तान दोनों पर प्रभाव डाल सकता है। रिहा हुए वरिष्ठ अलकायदा के कैदी शांति से तो  बैठने से रहे।
-अनिल नरेन्द्र

Thursday 25 July 2013

आईपीएल की तर्ज पर आईबीएल एक सराहनीय प्रयास

प्रकाशित: 25 जुलाई 2013
यह बहुत खुशी की बात है कि भारत में अब क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों पर भी ध्यान जा रहा है। क्रिकेट के बाद हॉकी का नम्बर आया और अब बैडमिंटन का वक्त आ गया है। बैडमिंटन में भी विधिवत लीग शुरू होने जा रही है। आईपीएल की तर्ज पर होने वाली भारतीय बैडमिंटन संघ की बहुप्रतीक्षित इंडियन बैडमिंटन लीग (आईबीएल) की सोमवार को हुई नीलामी  में खिलाड़ियों पर जमकर पैसा बरसा। सबसे महंगे विदेशी खिलाड़ी ली चोंग वेई रहे जबकि भारतीय खिलाड़ियों में पैसा कमाने के मामले में साइना नेहवाल अव्वल रहीं। दुनिया के नम्बर वन खिलाड़ी वेई को मुंबई मास्टर्स से दोगुने से भी ज्यादा कीमत पर खरीदा गया (करीब 80.29 लाख रुपए) जबकि साइना के लिए उनकी घरेलू टीम हैदराबाद ने सबसे ज्यादा बोली लगाई (करीब 71 लाख)। हैदराबादी खिलाड़ी पीवी सिंधु के लिए लखनऊ की अवध वॉरियर्स ने अच्छी रकम लगाई। भारत के एक मात्र पुरुष आइकन खिलाड़ी और राष्ट्रमंडल खेलों के कांस्य पदक विजेता पी. कश्यप को बेंगलुरु की बगा बीट्स ने (करीब 45 लाख रुपए) में खरीदा। इस नीलामी में छह टीमों ने हिस्सा लिया। चीन का कोई भी खिलाड़ी इस नीलामी में शामिल नहीं था। दो आइकन खिलाड़ी ज्वाला गट्टा और अश्विनी पोनप्पा का कोई खरीददार नहीं मिला, जिसके बाद आयोजकों को मजबूरन नियम में बदलाव करते हुए भारत की स्टार डब्ल्स विशेषज्ञ खिलाड़ियों के आधार मूल्य (बेस प्राइज) आधा करना पड़ा। दरअसल आईबीएल में महिला डब्ल्स मैच नहीं होने हैं और इसको देखते हुए बेस प्राइज देने को कोई तैयार नहीं हुआ। इसके बाद ज्वाला को दिल्ली स्मैर्स ने करीब 18 लाख, 41 हजार में खरीदा जबकि पोनप्पा को पुणे पिस्टंस ने करीब 14 लाख 87 हजार में खरीदा। आईपीएल की तर्ज पर की जा रही आईबीएल 14 से 31 अगस्त के बीच देश के 6 अलग-अलग शहरों में खेली जाएगी। इस लीग में कुल 6 टीमें होंगी। हर टीम में 6 देसी, 4 विदेशी और एक जूनियर खिलाड़ी होगा। हैदराबाद, बेंगलुरु, पुणे, दिल्ली, लखनऊ के अलावा मुंबई की टीमें आईबीएल के पहले सीजन में भाग लेंगी। नीलामी के बाद देखना होगा कि दर्शकों में बैडमिंटन के प्रति कितनी दिलचस्पी बढ़ती है। इसी पर निर्भर होगी। इस लीग की कामयाबी। दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए खेल के नियमों में कुछ बदलाव किए गए हैं। दिल्ली में खिलाड़ियों की बोली के दौरान टेनिस स्टार सानिया मिर्जा और ओलम्पिक ब्रांज मेडलिस्ट गगन नारंग की मौजूदगी बताती है कि आयोजकों ने दूसरे खेलों के खिलाड़ियों की स्टार वैल्यू को भी इस्तेमाल करने से परहेज नहीं किया। सुनील गावस्कर जैसे दिग्गज क्रिकेटर और दक्षिण भारत के स्टार नागार्जुन का टीम के मालिकों में शामिल होना भी उनकी स्टार वैल्यू को इस्तेमाल करने में शुमार है। दरअसल अब हर खेल के स्टार खिलाड़ी को ब्रांड बनाकर मार्केट करने का रिवाज शुरू हो चुका है। इसमें कोई शक नहीं कि बैडमिंटन को देश में बढ़ावा देने में सानिया का लंदन ओलंपिक्स में मैडल जीतने ने विशेष भूमिका निभाई। अब देखना यह होगा कि क्रिकेट, हॉकी की तर्ज पर देश में बैडमिंटन कितनी लोकप्रिय हो सकती है। बेशक इसमें समय लगे पर हमारा मानना है कि यह सही दिशा में सही कदम है। उम्मीद की जाती है कि अन्य खेलों पर भी ध्यान जाएगा और ऐसे ही खिलाड़ियों व खेल दोनों को प्रोत्साहन मिलेगा।
-अनिल नरेन्द्र

विजय बहुगुणा पहुंचे केदारनाथ धाम, की पूजा-अर्चना-जलाभिषेक

प्रकाशित: 25 जुलाई 2013
देश के विभिन्न शिव मंदिरों में भगवान शिव के भक्तों का सैलाब सावन के पहले दिन उमड़ने लगा। सावन के पहले दिन शिव भक्तों के उत्साह से मंदिर गुंजायमान हो रहे हैं। बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है। पूरे महीने चलने वाली इस यात्रा के लिए विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। हरिद्वार में इस माह में तीन से पांच करोड़ लोगों के पहुंचने की सम्भावना है जो वहां से गंगा जल लेकर शिव मंदिर में अर्पित करेंगे। देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। केदारनाथ धाम का भले ही अभी शुद्धिकरण न हुआ हो, सैकड़ों लाशें अभी भी मलबे के नीचे दबी हों, कराहें और रुदन अभी भी वातावरण में जहां-तहां सुनाई दे रही हों लेकिन नेता हैं कि वह सावन के पहले सोमवार को केदारनाथ धाम पहुंच ही गए। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और भाजपा नेत्री उमा भारती ने भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना के साथ ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया। केदारनाथ मंदिर परिसर में आए मलबे की सफाई का काम शुरू होने के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा वहां पहुंचे। बहुगुणा के चीफ सैकेटरी सुभाष कुमार और इंजीनियर्स इंडिया प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (ईआईपीएल) के विशेषज्ञों के साथ मुख्यमंत्री ने मंदिर का दौरा किया। ईआईपीएल के पांच सौ लोगों की टीम मंदिर से मलबा हटाने के काम में लग गई है। मलबे के नीचे से लाशें भी निकल रही हैं। टीम को उम्मीद है कि जल्द ही इसकी सफाई करा यहां नियमित पूजा शुरू कराई जा सकेगी। मंदिर के आसपास कम से कम 40 छोटी-बड़ी इमारतें क्षतिग्रस्त हैं। इन्हें हटाने और मरम्मत का काम चुनौतीपूर्ण है। इससे पहले सीएम ने यह ऐलान किया कि मंदिर के 500 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी। यहां ध्वस्त की जाने वाली परिसम्पत्तियों की बाकायदा वीडियो रिकार्डिंग और नम्बरिंग की जाएगी ताकि पुनर्निर्माण में संबंधित लोगों को प्राथमिकता दी जा सके। केदारनाथ   में मंदिर से मलबा हटाने का काम तेजी से चल रहा है। सोमवार को गर्भगृह की सफाई पूरी कर सभा मंडप से मलबा हटाने का काम शुरू कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इसमें तीन-चार दिन लगेंगे। सोमवार को केदारनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद सफाई कार्य में श्रमदान भी किया। उन्होंने कहा कि मंदिर की गरिमा को प्रभावित किए बिना यहां आपदा की चपेट में आए लोगों की याद में एक स्मृति स्थल भी बनाया जाएगा। जिस शिला से मंदिर की रक्षा हुई वह पूजनीय है। इस शिला को संजोए रखने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों से योजना बनाने को भी कहा गया है। आपदा के बाद पहली बार केदारनाथ मंदिर पहुंचे मुख्यमंत्री ने राहत कार्यों का जायजा लिया और उन्होंने अधिकारियों को केदारनाथ क्षेत्र में पेयजल व बिजली व्यवस्था शीघ्र शुरू करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री की केदारनाथ यात्रा धाम के पुरोहितों को पसंद नहीं आई। श्रीनिवास पोस्ती जो केदारनथ धाम के तीर्थ पुरोहित हैं ने कहा कि जब सरकार मंदिर के शुद्धिकरण की बात कर रही है तो फिर वहां पूजा-अर्चना कैसे कर दी गई। यह गलत है। वहीं महेश बगवाड़ी जो तीर्थ पुरोहित हैं धाम के उन्होंने कहा कि बिना शुद्धिकरण के मंदिर में पूजा-अर्चना कैसे की जा सकती है? जो कुछ हुआ उसका कोई औचित्य नहीं है। जय बाबा केदारनाथ।

विजय बहुगुणा पहुंचे केदारनाथ धाम, की पूजा-अर्चना-जलाभिषेक


प्रकाशित: 25 जुलाई 2013
देश के विभिन्न शिव मंदिरों में भगवान शिव के भक्तों का सैलाब सावन के पहले दिन उमड़ने लगा। सावन के पहले दिन शिव भक्तों के उत्साह से मंदिर गुंजायमान हो रहे हैं। बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है। पूरे महीने चलने वाली इस यात्रा के लिए विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। हरिद्वार में इस माह में तीन से पांच करोड़ लोगों के पहुंचने की सम्भावना है जो वहां से गंगा जल लेकर शिव मंदिर में अर्पित करेंगे। देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। केदारनाथ धाम का भले ही अभी शुद्धिकरण न हुआ हो, सैकड़ों लाशें अभी भी मलबे के नीचे दबी हों, कराहें और रुदन अभी भी वातावरण में जहां-तहां सुनाई दे रही हों लेकिन नेता हैं कि वह सावन के पहले सोमवार को केदारनाथ धाम पहुंच ही गए। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और भाजपा नेत्री उमा भारती ने भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना के साथ ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया। केदारनाथ मंदिर परिसर में आए मलबे की सफाई का काम शुरू होने के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा वहां पहुंचे। बहुगुणा के चीफ सैकेटरी सुभाष कुमार और इंजीनियर्स इंडिया प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (ईआईपीएल) के विशेषज्ञों के साथ मुख्यमंत्री ने मंदिर का दौरा किया। ईआईपीएल के पांच सौ लोगों की टीम मंदिर से मलबा हटाने के काम में लग गई है। मलबे के नीचे से लाशें भी निकल रही हैं। टीम को उम्मीद है कि जल्द ही इसकी सफाई करा यहां नियमित पूजा शुरू कराई जा सकेगी। मंदिर के आसपास कम से कम 40 छोटी-बड़ी इमारतें क्षतिग्रस्त हैं। इन्हें हटाने और मरम्मत का काम चुनौतीपूर्ण है। इससे पहले सीएम ने यह ऐलान किया कि मंदिर के 500 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी। यहां ध्वस्त की जाने वाली परिसम्पत्तियों की बाकायदा वीडियो रिकार्डिंग और नम्बरिंग की जाएगी ताकि पुनर्निर्माण में संबंधित लोगों को प्राथमिकता दी जा सके। केदारनाथ   में मंदिर से मलबा हटाने का काम तेजी से चल रहा है। सोमवार को गर्भगृह की सफाई पूरी कर सभा मंडप से मलबा हटाने का काम शुरू कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इसमें तीन-चार दिन लगेंगे। सोमवार को केदारनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद सफाई कार्य में श्रमदान भी किया। उन्होंने कहा कि मंदिर की गरिमा को प्रभावित किए बिना यहां आपदा की चपेट में आए लोगों की याद में एक स्मृति स्थल भी बनाया जाएगा। जिस शिला से मंदिर की रक्षा हुई वह पूजनीय है। इस शिला को संजोए रखने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों से योजना बनाने को भी कहा गया है। आपदा के बाद पहली बार केदारनाथ मंदिर पहुंचे मुख्यमंत्री ने राहत कार्यों का जायजा लिया और उन्होंने अधिकारियों को केदारनाथ क्षेत्र में पेयजल व बिजली व्यवस्था शीघ्र शुरू करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री की केदारनाथ यात्रा धाम के पुरोहितों को पसंद नहीं आई। श्रीनिवास पोस्ती जो केदारनथ धाम के तीर्थ पुरोहित हैं ने कहा कि जब सरकार मंदिर के शुद्धिकरण की बात कर रही है तो फिर वहां पूजा-अर्चना कैसे कर दी गई। यह गलत है। वहीं महेश बगवाड़ी जो तीर्थ पुरोहित हैं धाम के उन्होंने कहा कि बिना शुद्धिकरण के मंदिर में पूजा-अर्चना कैसे की जा सकती है? जो कुछ हुआ उसका कोई औचित्य नहीं है। जय बाबा केदारनाथ।

Tuesday 23 July 2013

एक बार फिर उठा तिहाड़ जेल के अन्दर की सुरक्षा का सवाल

प्रकाशित: 23 जुलाई 2013
अगर देश की राजधानी दिल्ली में बदमाशों के हौंसले बुलंद हैं तो देश के अन्य शहरों में क्या हाल होगा इसका अन्दाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दिल्ली के एक बिजनेसमैन और उसका परिवार लम्बे समय से दहशत के साये में जीने पर मजबूर है। हत्या के मामले में तिहाड़ जेल में बन्द एक कैदी बिजनेसमैन पर `मंथली' देने का दबाव बना रहा है। डिमांड पूरी न होने पर नतीजे भुगतने की धमकियां दी जाती हैं। संगम विहार निवासी बिजेन्द्र सिंह अपनी मां, पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते हैं। उनका केबल का बिजनेस है। कुछ साल पहले बिजेन्द्र ने हत्या के मामले में शामिल चन्द्र प्रकाश को जेल पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। यही बात उस कैदी को नागवार गुजरी। इसके बाद शुरू हुआ तिहाड़ जेल से ही बिजनेसमैन को धमकियां देने का सिलसिला। बिजेन्द्र का आरोप है कि चन्द्र प्रकाश तिहाड़ जेल से ही फोन कर उस पर मंथली देने का निरंतर दबाव डाल रहा है। बार-बार मिल रही धमकियों के मद्देनजर पीड़ित ने आरोपी से मोबाइल पर हुई बातचीत की रिकार्डिंग भी कर रखी है। उसके पास धमकी भरे कॉल वर्ष 2009 से आ रहे हैं। दो बार जानलेवा हमला भी हो चुका है। हालांकि बिजेन्द्र सिंह सभी संबंधित पुलिस अफसरान से मिल चुका है पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बेशक एशिया की सबसे बड़ी तिहाड़ मॉडल जेल में शुमार हो, लेकिन प्रशासनिक तौर पर यहां की अन्दर की हालत चिन्ताजनक जरूर है। तिहाड़ जेल में खुदकुशी, मारपीट, ब्लेडबाजी, मादक पदार्थों की तस्करी, मोबाइल फोनों की बरामदगी ने सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। तिहाड़ में क्षमता से दोगुना कैदी हैं और जरूरत से कम यानि एक-तिहाई जेल कर्मचारी हैं। वेतन विसंगति और पदोन्नति को लेकर उदासीन जेल कर्मचारी हर साल नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। पिछले कुछ माह के भीतर तिहाड़ जेल में दो कैदियों ने खुदकुशी कर ली और एक कैदी को दूसरे कैदियों ने मार-मार कर मौत के घाट उतार दिया। छोटी-मोटी घटनाएं तो आम बात है। जेल में कैदियों की क्षमता 6250 है लेकिन यहां पर 12113 कैदियों को रखा गया है। जेल मैन्युअल के हिसाब से यहां पर 6250 कैदियों के लिए कुल 1300 जेल सुरक्षाकर्मियों का पद स्वीकृत है। रुल्स स्टैंडर्स के मुताबिक स्वीकृत पद से 10 फीसदी अधिक सुरक्षाकर्मी भर्ती किया जाना चाहिए ताकि आपात स्थिति में कर्मचारी की कमी महसूस न हो लेकिन इस समय लगभग 900 सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। मौजूदा कैदियों की संख्या के हिसाब से लगभग 3000 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया जाना चाहिए। इस साल लगभग 50 जेल कर्मचारी नौकरी छोड़ चुके हैं। वर्ष 2007 बैच के कुल 18 सहायक जेल अधीक्षकों में से 12 ने नौकरी छोड़ दी है। वेतन विसंगति और पदोन्नति में भेदभाव को लेकर तिहाड़ जेल कर्मचारियों में भारी तनाव देखने को मिल रहा है। चौथे वेतन आयोग से पहले तिहाड़ जेल के सुरक्षाकर्मियों और पुलिस की सेलरी एक समान थी, लेकिन पांचवें और छठे वेतन आयोग में पुलिस की सेलरी बढ़ा दी गई और जेल सुरक्षाकर्मियों की जस की तस रह गई। तिहाड़ जेल की पूर्व महानिदेशक किरण बेदी, अजय कुमार, बीके गुप्ता व नीरज कुमार सभी अपने कार्यकाल में प्रस्ताव बनाकर वेतन विसंगति को दूर करने के लिए गृह विभाग से सिफारिश कर चुके हैं, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। तिहाड़ में सुरक्षा का मामला यूं ही चलता रहेगा। जब तक पूरी गम्भीरता से सारे पहलुओं पर विचार नहीं होता तब तक तिहाड़ से ऐसी ही खबरें आती रहेंगी।
-अनिल नरेन्द्र

इन अलगाववादियों का मकसद साफ है अमरनाथ यात्रा में विघ्न डालना

प्रकाशित: 23 जुलाई 2013

 कश्मीर में हालात फिर बिगाड़ने का प्रयास हो रहा है। एक छोटी-सी घटना का बहाना लेकर स्थिति को 1990 के दशक में पहुंचाने की स्थिति पैदा की जा रही है। मामूली बात पर हुए बवाल के बाद बृहस्पतिवार को रामबन के गूल इलाके में बीएसएफ पर उग्र भीड़ ने धावा बोल दिया। भीड़ पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों ने फायरिंग की जिसमें कम से कम चार लोगों की मौत हो गई। बीएसएफ ने आत्मरक्षा में मजबूरीवश उठाया, यह कदम बताया है। पूरी घटना पर अपना पक्ष रखते हुए बीएसएफ ने कहा कि सैकड़ों लोगों की भीड़ जब बेकाबू होकर कैम्प में घुसने लगी तब उसके पास बल प्रयोग करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था। बीएसएफ ने कहा कि समझाने और मामले को शांत करने के सभी प्रयास असफल होने के बाद ही हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उसे मजबूरी में गोलियां चलानी पड़ीं। बयान में बीएसएफ ने घटना के कारणों का भी खुलासा किया। बृहस्पतिवार तड़के लगभग पांच बजे बीएसएफ के एक गश्ती दल ने 25 वर्षीय मोहम्मद लतीफ को रोका और उससे पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा। वापसी के क्रम में उसी जगह पर लतीफ ने 15-20 लोगों को इकट्ठा कर गश्ती दल को रोक लिया। इस दौरान उक्त युवक ने गश्ती दल के सदस्यों पर बदतमीजी करने का आरोप लगाया। इसी बीच स्थानीय मस्जिद से गश्ती दल पर मुसलमानों के धर्मग्रंथ का अपमान करने की गलत घोषणा कर दी गई। बस फिर क्या था स्थानीय लोगों ने बीएसएफ कैम्प को घेरकर पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी। जब भीड़ ने कैम्प के अन्दर घुसने का प्रयास किया तो बीएसएफ ने आत्म सुरक्षा के लिए फायरिंग की जिसमें छह लोगों की मौत होने का समाचार है। इस घटना से उनकी मौत पर कश्मीरी कट्टरपंथियों, अलगाववादियों को मानो एक अवसर मिल गया या यह  भी कहा जा सकता है यह सोची-समझी साजिश का परिणाम है। कट्टरपंथी नेता अली शाह गिलानी ने अपने हड़ताली कैलेंडर को थैले से बाहर निकालने में जरा भी देर नहीं लगाई। दरअसल वह अपने प्रतिद्वंद्वी अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुख से कुछ कदम आगे निकलकर अपनी अलग पहचान साबित करना चाहते हैं। यही कारण था कि अन्य अलगाववादियों ने शनिवार से तीन दिन की हड़ताल और विरोध प्रदर्शन की घोषणा करते हुए कहा कि सुरक्षा बल कश्मीरियों को खत्म करना चाहते हैं। उनकी घोषणा का अंत यहीं नहीं होता बल्कि वह कहते हैं कि तीन दिनों की हड़ताल और विरोध प्रदर्शनों के बाद आगे की रणनीति की घोषणा की जाएगी। ऐसे समय में जब कश्मीर में टूरिज्म उफान पर है और अमरनाथ यात्रा के कारण भी आम कश्मीरी अपनी रोटी-रोजी का जुगाड़ कर रहे हैं। सुरक्षाबलों के हाथों कई सालों के बाद इन मौतों को भुनाने की अलगाववादी चाहत ने सच में कश्मीर को 1990 के दशक में पहुंचा दिया है। इन अलगाववादियों और कट्टरपंथियों का एक और छिपा मकसद नजर आ रहा है। यह है अमरनाथ यात्रा में बाधा डालना। इस धरना, प्रदर्शन, अव्यवस्था के पीछे कट्टरपंथियों की साजिश की बू आ रही है। यह जानबूझकर फायरिंग पर दहशत फैला रहे हैं ताकि किसी तरह अमरनाथ यात्रा में विघ्न डाल सकें। हर वर्ष करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक बर्फानी बाबा के दर्शन के लिए यात्रा का आयोजन होता है। हर वर्ष आतंकवादी और अलगाववादी ताकतें यात्रा में विघ्न डालने की नापाक कोशिश करते रहते हैं। आतंकवादियों द्वारा हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ का यह सिलसिला  1993 से शुरू हुआ। 1993 में बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद यात्रा को रोकने के लिए हमला किया गया जिसमें तीन लोग मारे गए थे। इसके बाद 1994 में पुन हरकतुल अंसार ने यात्रा पर हमला किया जिसमें दो यात्रियों की मौत हो गई थी। इसी तरह 1995 में हरकतुल अंसार ने यात्रा पर फिर हमला किया  लेकिन इस बार आतंकवादी किसी की जान नहीं ले पाए। वर्ष 2000 में आतंकियों ने फिर बड़ा हमला कर पहलगांव के करीब  आरू पर 32 श्रद्धालुओं सहित 35 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। 2001 में तीन पुलिस अधिकारियों समेत 12 श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया। 2002 में भी दो अलग-अलग हमलों में कुल 10 श्रद्धालु मारे गए थे। आतंकवादियों द्वारा लगातार की जा रही दुस्साहसिक वारदातों के बाद भी हिन्दुओं का मनोबल अमरनाथ यात्रा के लिए और बढ़ा ही है और हर वर्ष अमरनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण कराने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। हर-हर महादेव। बर्फानी बाबा की जय।

Sunday 21 July 2013

लक्ष्मी की मुहिम रंग लाई ः तेजाब की खुली बिक्री पर पाबंदी

प्रकाशित: 21 जुलाई 2013
कुछ दिन पहले मुझे फेसबुक पर एक अत्यंत दुखी पिता की एक पिटीशन आई थी जिसमें उन्होंने अपनी बेटी के मुंह पर किसी बदमाश द्वारा तेजाब फेंकने की दास्तान लिखी थी और उन्होंने मुझे उनकी एक पिटीशन पर हस्ताक्षर करने को कहा था कि तेजाब की इस तरह खुली बिक्री पर पाबंदी लगनी चाहिए। मैंने इस पिटीशन पर न केवल हस्ताक्षर ही किए बल्कि अपने दर्जनों मित्रों से भी फेसबुक पर इस पिटीशन पर साइन करने को कहा। लड़की के पिता की जीत हुई, हम सबकी जीत हुई। उस पिटीशन पर हजारों हस्ताक्षर हुए और वह अभागी लड़की के पिता ने राष्ट्रपति को भेज दी और महामहिम ने सरकार को। इस पिटीशन और दर्जनों ऐसे ही केसों के कारण सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में तेजाब बेचने और खरीदने से जुड़े सभी नियम-कायदे गुरुवार से ही लागू कर दिए। महिलाओं पर तेजाबी हमले की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर स्पष्ट और सख्त कानून बनाने की मांग कई बार पहले भी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को इस बारे में हिदायत दी थी। मगर टालमटोल का यह आलम है कि सुप्रीम कोर्ट को एक बार फिर सरकार को फटकार लगाते हुए यह कहना पड़ा कि वह तेजाब की खुली बिक्री रोकने के मामले में कभी गम्भीर नहीं रही है। देशभर में रोजाना लड़कियों पर तेजाबी हमले हो रहे हैं और वह मर रही हैं। मगर केंद्र सरकार ने अब भी इस संबंध में कोई कारगार कदम नहीं उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बिना पहचान पत्र देखे तेजाब बिका तो पायजन एक्ट 1919 के तहत केस चलेगा, सजा होगी। अब खुले बाजार में वही तेजाब बेचा जाएगा जो त्वचा पर बेअसर हो। दरअसल हो यह रहा है कि प्रयोगशालाओं और औद्योगिक ईकाइयों में रासायनिक तौर पर इस्तेमाल होने वाला तेजाब काफी समय से महिलाओं पर हमले का हथियार बन चुका है। किसी लड़की या स्त्राr के चेहरे को कुरूप कर देने से उसका जीवन बर्बाद हो जाएगा, इसी मंशा से तेजाब फेंका जाता है। इस लिहाज से किसी महिला पर तेजाब डालना बलात्कार जैसा ही संगीन अपराध है और इसे रोकने के लिए सख्त कानून निहायत जरूरी हैं। आसान उपलब्धता के चलते तेजाब पीकर खुदकुशी करने की भी खबरें आती रहती हैं। मगर इतने घातक असर के बावजूद इसके उत्पादन और वितरण पर निगरानी की कोई सुचारू व्यवस्था नहीं है। जस्टिस आरएम लोढा और जस्टिस फकीर मोहम्मद की बेंच ने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वह तेजाब हमलों को गैर जमानती अपराध बनाएं। कोर्ट ने सरकारों को तीन महीने के भीतर इस बारे में स्पष्ट नीति लाने के निर्देश दिए। याचिका की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी, जब राज्य सरकारें तेजाब पर नियंत्रण और पीड़ितों के पुनर्वास को लेकर पूरी नीति लाकर कोर्ट पहुंचाएंगी। तेजाब हमले की शिकार लक्ष्मी की 2006 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अंतरिम आदेश एक हफ्ते के भीतर सभी राज्यों तक पहुंच जाए। जहां हमें खुशी है कि हम सबकी मुहिम रंग लाई है और सरकारें अब तेजाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने के लिए कदम उठाएंगी वहीं यह भी कहना चाहेंगे कि बहुत कुछ इन पाबंदियों के क्रियान्वयन पर निर्भर होगा। देखना यह होगा कि सरकारें कितनी ईमानदारी से पाबंदियां लागू करती हैं और सरकारी मशीनरी कितने प्रभावी ढंग से पाबंदियों को लागू कर पाती है।
-अनिल नरेन्द्र

क्या मुंबई के डांस बार अब फिर गुलजार होंगे?

प्रकाशित: 21 जुलाई 2013
 अगर मुंबई बिल्डरों, माफियाओं, राजनीतिक दबंगों, बॉलीवुड, झोपड़पट्टियों का शहर बना तो मुंबई बार बालाओं के लिए भी मशहूर हुआ। कई फिल्मों में बार बालाओं के सीन दिखाए गए। मुंबई के डांस बार का गजब का आकर्षण था। दुनियाभर में यह लोकप्रिय  था। बार में घूमने आने वाले लोगों के लिए शान और पर्यटन की बात होती थी। यहां की फिल्मों को डांस बार का सेट लगाकर फिल्माया जाता रहा है। लेकिन मधुर भंडारकर के लिए यह एक सबजैक्ट बन गया। सब्जैक्ट में बार की असलियत और आकर्षण दोनों को उकेरा गया। एक लड़की तब्बू कैसे बार डांसर बनती है। इसकी कहानी दर्शाई गई जो काफी संवेदनशील थी। फिल्म अपने लिमिटेड क्षेत्र में हिट हुई। बार डांसर शगुफ्ता रफीक एक मिसाल हैं जिसने मुंबई और दुबई के बारों में काम करने से लेकर फिल्में लिखने तक का सफर तय किया है। शगुफ्ता इस समय महेश भट्ट की विशेष फिल्म्स की प्रमुख क्रिप्ट राइटर है। शगुफ्ता `वो लम्हे' 2006 से लेकर हाल में आई आशिकी-2 तक करीब एक दर्जन फिल्में लिख चुकी है। कई बार डांसरों की कहानी माफिया डॉन तक से भी जुड़ी है। दरअसल डॉन इनकी खूबसूरती पर फिदा हो जाते थे। कहते हैं कि सपना नाम की एक डांसर पर दाउद फिदा हो गया था। उसके बाद पुलिस की डायरी में आरजू नाम की डांसर का भी रिकार्ड तैयार हुआ। मगर सबसे ज्यादा नाम तरन्नुम का हुआ। जुहू के दीपा बार में डांस करने वाली तरन्नुम को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। 2005 में पुलिस ने उसे क्रिकेट सट्टेबाजी की घटना में गिरफ्तार किया था। उसके पास काफी सम्पत्ति पाई गई थी। पुलिस का कहना था कि डांस बार एक संगठित उद्योग बन चुका था। इसमें काला और सफेद दोनों तरह से पैसे आते थे। अंडरवर्ल्ड उन बारों का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करता था। मुंबई में करीब 43 साल पहले डांस बार का चलन शुरू हुआ था। 1970 के करीब महाराष्ट्र के गरीब खेतिहर इलाकों से आने वाली युवतियों पर बार मालिकों की नजर पड़ी। उन्होंने इन युवतियों को अपने बार में शराब परोसने के काम पर रख लिया। बाद में संगीत भी जुड़  गया और डांस भी। 1984 में महाराष्ट्र में पंजीकृत बारों की संख्या मात्र 24 थी जो 2005 में जब महाराष्ट्र में डांस बार पर रोक लगी तो प्रदेश में करीब 2500 डांस बारों में एक लाख बार बालाएं काम कर रही थीं। पाबंदी लगने से यह एक लाख बार डांसर बेरोजगार हो गईं। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि डांस बार की आड़ में वेश्यावृत्ति की शिकायतें बढ़ीं। पूरे प्रदेश में अश्लीलता का माहौल बन गया। इसका युवाओं पर खासतौर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था। मात्र 347 डांस बारों के पास लाइसेंस थे जबकि चल रहे थे 2500। इन डांस बारों की वजह से कानून व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। दूसरी ओर डांसरों का कहना है कि मनोरंजन के लिए नृत्य करना अपराध नहीं है। नृत्य एक तरह से व्यक्ति की आजादी है, इससे किसी को वंचित करना गैर कानूनी है। अपने तरीके से जीवकोपार्जन का अधिकार सबको है। अगर डांस बारों से अश्लीलता फैल रही थी तो प्रतिबंध के बाद सूबे में अश्लीलता और अन्य अपराधों में कमी क्यों नहीं आई? करीब 68 फीसदी बार बालाएं ऐसी थीं जो पूरे परिवार का आर्थिक बोझ उठा रही थीं। बेरोजगारी के कारण कई बार बालाओं ने खुदकुशी तक कर ली। राज्य में एक लाख के करीब बार डांसरों के पुनर्वास के लिए सरकार के पास कोई वैकल्पिक समाधान नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने डांस बारों  पर पाबंदी हटाते हुए अपने फैसले में यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की जो मायने रखती है कि भला आप किसी की रोटी-रोजी का अधिकार कैसे छीन सकते हैं? अगर बार डांसर गलत हैं तो इन्हें स्टार होटलों में चलाने की इजाजत किस आधार पर दी गई। संविधान ने तो सबको बराबर का अधिकार दिया है। अदालत ने कहा कि पुलिस एक्ट में बदलाव कर डांस बारों पर प्रतिबंध लगाना सरकार का गलत फैसला था। बेहतर हो कि सरकार कानून और व्यवस्था की स्थिति ठीक रखने का उपाय करे। अश्लीलता पर रोक के लिए सरकार हर क्षेत्र में अलग से पहल करे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से डांस बारों की बालाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है। वह खुशी मना रही हैं, मिठाइयां बांट रही हैं पर महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सोच रही है। देखें, मुंबई के डांस बार क्या फिर गुलजार होंगे?

Saturday 20 July 2013

गरीब की थाली से गायब होतीं सब्जियां, बच्चों के लिए दूध सब महंगा

प्रकाशित: 20 जुलाई 2013
पिछले दिनों में कुछ ताबड़तोड़ आर्थिक फैसले लेकर बेशक केंद्र सरकार ने 2014 के चुनाव में वोटों की राजनीति करनी शुरू कर दी हो पर इन कदमों से पहले से ही मरी पड़ी जनता पर महंगाई की नई डोज मिलना तय है। महंगाई की नई सुनामी की शुरुआत हो चुकी है। पेट्रोल के दाम 1.55 पैसे प्रति लीटर बढ़ चुके हैं। पिछले 6 सप्ताह में पेट्रोल के दाम में चौथी बार वृद्धि की गई है। इससे पहले तेल कम्पनियों ने एक जून को 75 पैसे, 16 जून को 2 रुपए प्रति लीटर, 29 जून को 1.82 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की थी। पूरी आशंका है कि बिजली, यूरिया, स्टील, सीमेंट, सीएनजी और पीएनजी व डीजल की कीमतों में भी व्यापक वृद्धि होगी। इन सबकी सर्वाधिक मार पहले से ही महंगाई से झुलस रही जनता को झेलनी होगी। कुछ दिन पहले सरकार ने बिजली उत्पादकों को आयातित कोयले से बढ़ी लागत को भी उपभोक्ताओं से वसूल करने की इजाजत दी थी। यह निर्णय भी आम जनता को आने वाले समय में तगड़ा झटका देने वाला है। कहने को सरकार ने फसलों के समर्थन मूल्य में इजाफा करके किसान हितौषी दिखने की कोशिश की है, लेकिन बिजली और खाद की कीमतों से निश्चित बढ़ोतरी और लगातार महंगे होते डीजल के चलते यह किसानों को एक हाथ से देने और दूसरे हाथ से लेने का उपक्रम लगता है। साथ ही इससे खाद्यान्न के दाम भी बढ़ेंगे। राजधानी में जरूरी वस्तुओं के महंगे होने से आम आदमी का तो बजट ही चरमरा गया है। जिस परिवार का मासिक बजट पहले 10 हजार होता था, वह अब 15 हजार रुपए तक पहुंच गया है। आम उपभोक्ता सब्जी और परचून वाले के पास जाकर सबसे पहले कम दामों वाली चीजों के बारे में जानकारी लेता है और फिर कम से कम कीमत वाला सामान खरीदता है। आम लोगों में दूध का मुख्य उपयोग होता है। परिवार में पांच लोग हैं तो परिवार में अमूमन 2 किलो दूध खरीदा जाता है। पिछले डेढ़ साल में दूध के दाम चार बार बढ़े हैं। करीब तीन साल पहले दूध के दाम 20 रुपए लीटर होता था, वही अब थैली वाला दूध 42 रुपए लीटर और मदर डेयरी वाला दूध 50 से 55 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गया है। नाश्ते में इस्तेमाल होने वाली डबल रोटी जो पहले 16 रुपए प्रति पैकेट  होती थी, वह अब 22 रुपए पैकेट प्रति हो गई है। चीनी करीब चार साल पहले 12 से 14 रुपए प्रति किलो थी, वह अब 42 रुपए की खुली और पैकेट वाली 52 रुपए तक पहुंच गई है। बाजार में दालों के दाम आसमान छू रहे हैं। मध्यमवर्गीय ज्यादातर परिवारों में रोजाना इस पर चर्चा होती है कि दाल बनाएं या सब्जी। जिन घरों में बच्चे हैं वहां पर राजमा की खपत ज्यादा है, बच्चे राजमा पसंद करते हैं। राजमा की कीमत 120 रुपए प्रति किलो से कहीं कम नहीं है, अरहर की दाल 80 रुपए प्रति किलो से कम नहीं है। उड़द भी इतनी ही है। मूंग की दाल 85, मसूर की 75 रुपए और मटर के दाम 50 रुपए प्रति किलो हैं। दुखद पहलू तो यह है कि महंगाई कम नहीं होगी। रुपया कमजोर होता जा रहा है। कमजोर होते रुपए की कीमत आम आदमी को चुकानी पड़ेगी। महंगाई और बढ़ सकती है। साफ है कि अर्थव्यवस्था के लिए आगे और कठिन समय है और इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार आर्थिक कुप्रबंधन है। इस सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। आम जनता पर और बोझ बढ़ेगा और वह इसके तले और पिसेगी।
-अनिल नरेन्द्र

मासूम बच्चे तो बस स्कूल गए थे उनकी मौत का जिम्मेदार कौन?

प्रकाशित: 20 जुलाई 2013
बुधवार को जब केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सरकार की एक नई योजना का शुभारम्भ कर रहे थे उसी समय बिहार के छपरा जिले में हा-हाकार मचा हुआ था। छपरा के एक प्राइमरी स्कूल में जहरीले भोजन ने 23 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया जबकि दो दर्जन से अधिक बच्चे अस्पतालों में जिन्दगी के लिए जंग कर रहे हैं। दिल दहला देने वाली इस घटना के तुरन्त बाद ऐसा ही हादसा राज्य के मधुबनी के एक अन्य स्कूल में घटा, जहां इसी प्रकार दोपहर के भोजन खाते ही 15 बच्चे बेहोश हो गए। मधुबनी के इस हादसे में बच्चों के भोजन में छिपकली मिलने की बात कही गई। छपरा में भी बच्चों के खाने में जहरीला कीटनाशक मिलने की शंका जताई गई है। इन दोनों दिल दहलाने वाली घटनाओं में चौंकाने वाली समानताएं हैं। दोनों सरकारी स्कूल हैं, गांव-कस्बों से संबंध रखते हैं और पढ़ने वाले बच्चे गरीब परिवारों से हैं। सारण के धर्मसती गांव में मौत का सन्नाटा है। जिस गांव में कल तक बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं आज वहां मातम पसरा है। मंगलवार देर रात से ही बच्चों के शव आने और उन्हें दफनाने का सिलसिला शुरू हो गया था। बुधवार शाम तक मिड डे मील के शिकार हुए तमाम बच्चों के शव दफनाए जा चुके थे। विडम्बना यह है कि जिस स्कूल में वह पढ़ते-लिखते, खेलते व कूदते थे उसी स्कूल के सामने के मैदान में उन्हें दफनाया गया है। एक बच्चे के शव को तो लगभग स्कूल के गेट के बाहर ही दफनाया गया। बुधवार को धर्मसती गांव में किसी भी घर का चूल्हा नहीं जला। हर घर से रोने-बिलखने की आवाज आती रही। इस घटना ने एक महत्वपूर्ण योजना के प्रति बरती जा रही आपराधिक लापरवाही को ही उजागर किया है। वह बच्चे स्कूल में पढ़ने गए थे, लेकिन हमारी सड़ी-गली व्यवस्था ने उनके सपनों को परवान चढ़ने से पहले ही ध्वस्त कर दिया। दुखद यह है कि मध्याह्न भोजन में मरी छिपकली होने या उसके किसी तरह से विषाक्त होने की शिकायतें आती रही हैं और पहले भी कुछ जगहों पर कुछ बच्चों की विषाक्त भोजन से मौत तक हुई है इसके बावजूद शिक्षा के बुनियादी अधिकार को आधार देने वाली इस योजना को लेकर चौतरफा बेरुखी बरती जा रही है, यह तो जांच से ही पता चलेगा कि उन अभागे बच्चों को दिए गए भोजन में कीटनाशक मिला हुआ था या कोई और जहरीला पदार्थ, मगर जिस तरह से स्कूलों में मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है और बच्चों को परोसा जाता है उस पूरी व्यवस्था में ही गड़बड़ी है। उद्देश्य तो सही था। स्कूलों में दोपहर का भोजन सीधे देश की गरीबी से ताल्लुक रखता है। सरकार का मानना था कि स्कूलों में भोजन की व्यवस्था से लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित होंगे। यह भी सोचा गया था कि बच्चों को ऐसा भोजन दिया जाए जो उनके शारीरिक व मानसिक विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व मुहैया करवा सके। लेकिन जैसा अपने देश में प्रचलन है, ऐसी योजनाओं के पीछे गरीबों या देशहित की चिन्ता कम होती है, राजनीतिक लाभ-हानि और योजना के पैसों की लूट से जुड़ी होती है। गरीबों के नाम पर इन योजनाओं में करोड़ों-अरबों के वारे-न्यारे होते हैं और बिचौलियों का खेल चलता  रहता है। विश्वास न हो तो पता लगा लीजिए कि इन मिड डे मील योजनाओं में किनकी ठेकेदारी चल रही है और स्कूलों के हैड मास्टरों के तार कहां-कहां तक जुड़े हैं? ऐसे में गरीब बच्चों की जान की किसको पड़ी है। जिन माताओं का आंचल उजड़ गया है वो तो शायद रो-धो कर लाख-दो लाख का मुआवजा  लेकर चुप हो जाएंगे। रही बात देश के भविष्य की तो इसकी चिन्ता करने का समय किसके पास है। मासूम बच्चों की मौत पर भी राजनीतिक बहस छिड़ गई है। राजनेताओं को अपनी-अपनी रोटियां सेंकने की पड़ी है। एक तरफ जहां आम आदमी प्रभावित परिवार के दुख-दर्द से पीड़ित है वहीं राजनीतिक पार्टियों द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इस मिड डे मील योजना पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। अभिभावकों के अन्दर इस बात को लेकर दहशत है कि कहीं खिचड़ी खाने से मेरा बच्चा बीमार न पड़ जाए। यह घटना केवल बिहार की नहीं बल्कि पूरे देश की घटना बन चुकी है। बिहार सरकार से लेकर भारत सरकार के प्रति लोगों में आक्रोश व्याप्त है। गांव से लेकर शहर तक सभी लोग इस बात से आशंकित हैं कि आखिर इतनी बड़ी घटना के बाद भी प्रशासन प्रभावी कदम क्यों नहीं उठा रहा। पीड़ित परिवार कराहता रहा और नेता लोग बयानबाजी करते रहे। यदि प्रशासन द्वारा त्वरित कार्रवाई की गई होती तो शायद मासूमों को बचाया जा सकता था।

Friday 19 July 2013

राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस में असमंजस की स्थिति

प्रकाशित: 19 जुलाई 2013
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और राहुल गांधी के मुख्य राजनीतिक सलाहकार दिग्विजय सिंह ने संकेत दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी। हालांकि उन्होंने यह भी नहीं कहा कि अगर पार्टी अगले साल होने वाले आम चुनाव में भी जीतती है तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक बार फिर इस सर्वोच्च पद के उम्मीदवार होंगे। सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा कि हमारे यहां राष्ट्रपति शासन की प्रणाली नहीं है। कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले न तो मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है और न ही प्रधानमंत्री पद का। उनसे पूछा  गया था कि कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने को लेकर संकोच क्यों करती है और उसकी ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा। राहुल गांधी को अभी से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस पार्टी का संकोच साफ नजर आ रहा है। कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह समेत कई नेताओं के परस्पर विरोधी बयानों से पल्ला झाड़ते हुए सोमवार को कहा है कि प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदवारी पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। एक पत्रकार वार्ता में पार्टी के महासचिव अजय माकन ने कहा कि इस बारे में अभी तय नहीं किया गया है। जब भी इस पर फैसला होगा तो आपको पता चल ही जाएगा। जब इस मामले में सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगला लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अगुवाई में लड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ लोग हैं जो चाहते हैं कि पार्टी इस मामले में एक एजेंडा रखे, मगर ऐसे लोगों को पार्टी की मूल कार्यप्रणाली की समझ नहीं है। पार्टी के कई नेताओं का कहना है कि राहुल प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक उम्मीदवार हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष के तौर पर पार्टी संगठन में नम्बर दो पर हैं। दरअसल हमें लगता है कि मोदी बनाम राहुल की बहस से कांग्रेस परहेज कर रही है। कांग्रेस चाहती है कि पर्सनेलिटी वॉर से पार्टी को बचना चाहिए। पार्टी का फिलहाल पूरा फोकस विचारधारा व मुद्दों पर होना चाहिए। पार्टी मोदी पर तो विचारधारा व मुद्दों के बहाने वॉर करेगी लेकिन राहुल को इस बहस से दूर रखने का प्रयास करेगी। पार्टी की कम्युनिकेशन टीम ने हाल में एक बैठक की थी। बैठक में कई प्रवक्ताओं ने कहा कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि राजनीतिक लड़ाई का रुख मोदी बनाम राहुल न होने पाए। पार्टी का मानना है कि टीम मोदी पूरे राजनीतिक परिदृश्य को अमेरिकी पैटर्न पर ले जाना चाहती है। यहां दो पर्सनेलिटी के बीच लड़ाई नहीं हो सकती बल्कि विचारधारा और मुद्दों की लड़ाई होनी चाहिए। अपने कार्यकाल के आखिरी साल में दाखिल हो चुकी यूपीए सरकार को अगर आज की तारीख में चुनाव करवाने पड़े तो एक सर्वे के अनुसार भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटाले और बड़े फैसले लेने में असमर्थता की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। क्या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाए तो वह 36 फीसद लोगों की पसंद के साथ पहले नम्बर पर हैं। कांग्रेस के नम्बर दो राहुल गांधी को पीएम पद के लिए 13 फीसदी लोगों ने वोट दिया और मनमोहन सिंह के लिए महज 12 प्रतिशत वोट मिले। कटु सत्य तो यह है कि आज की तारीख में राहुल गांधी की छवि धूमिल है, उन्हें भाजपा गम्भीरता से नहीं लेती, यही वजह है कि कांग्रेस उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने से फिलहाल कतरा रही है।
-अनिल नरेन्द्र

आईबी और सीबीआई को आमने-सामने करना देश की सुरक्षा से खिलवाड़ है

प्रकाशित: 19 जुलाई 2013
जिस बात का डर था वही हो रही है। राजनीतिक दांव-पेंच में फंसकर हलकान हुई खुफिया एजेंसी आईबी अब खुफियासूचनाएं देने से तौबा कर रही है। इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले में आईबी के विशेष निदेशक राजेन्द्र कुमार सहित कुछअफसरों को सीबीआई द्वारा निशाने पर लेने और केंद्र सरकार के उसके बचाव में पीछे हटने से आईबी अधिकारी काफीमायूस हैं। इसी के चलते आईबी ने आतंकी गतिविधियों से जुड़ी अहम खुफिया जानकारी साझा करना बन्द कर दिया है। खतरे से संबंधित केवल वही सूचना देती है जो अन्य एजेंसियों के माध्यम से मल्टी एजेंसी सेल (मैक)में आतीहैं। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पिछले एक महीने से उन्हें आईबी की खुफिया चेतावनी रिपोर्ट नहींमिली है। आईबी हर दिन पूरे देश में हुई घटनाओं की रिपोर्ट गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजतीहै। इसके अलावा वह देश में अशांति, उपद्रव या आतंकी हमले की साजिशों की खुफिया रिपोर्ट अलग से देती है। इसीखुफिया रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा एजेंसियों या राज्य सरकारों को जरूरी कदम उठाने के लिए सचेत किया जाता है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए आईबी की खुफिया रिपोर्ट बहुत अहमहै। इसके बिना आतंकी साजिशों को नाकाम करना मुश्किल है। आईबी और सीबीआई विवाद के पीछे है इशरत जहाँ। सीबीआई दावा कर रही है कि आईबी ने इशरत जहाँ को आतंकी बताया जिसकी वजह से उसको मारा गया, यहरिपोर्ट गलत थी। आईबी अपनी बात पर अडिग है और केंद्रीय गृहमंत्री इशरत के आतंकी रिश्तों की जानकारी देने से मनाकर रहे हैं। इशरत जहाँ के आतंकियों से रिश्ते के विवाद के बीच गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि वे इसकाखुलासा नहीं कर सकते हैं। इसकी वजह अमेरिका के साथ वह करार है जिसके तहतसरकार मुंबई के आतंकी हमले केमुख्य अभियुक्त डेविड हेडली से मिली कोई सूचना सार्वजनिक नहीं कर सकती है। वहीं पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई भीअपने 2011 के बयान से बदल गए हैं। पद पर रहते हुए इशरत को लश्कर का आतंकी बताने वाले पिल्लई अब उसे संदेहका लाभ देने की बात कह रहे हैं। ताजा घटनाक्रम में इशरत के आतंकी होने के बारे में हेडली के बयान को छुपाने कीएनआईए की कोशिशों की आईबी ने हवा निकाल दी है। आईबी द्वारा लीक किए गए 13 अक्तूबर 2010 को एनआईए केनोट के अनुसार 2005 में लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेशन हेड जाकीउर-रहमान लखवी को मुजामिल से मिलाया था। लखवीने मुजामिल पर तर्प कसते हुए कहा था कि यह लश्कर-ए-तैयबा के बड़े कमांडर हैं जिसके सारे ऑपरेशन फेल हो गए औरइशरत जहाँ मॉड्यूल उनमें एक थी। एनआईए का कोई भी अधिकारी इस नोट के बारे में बोलने को तैयार नहीं है।मंगलवार को गुवाहाटी में पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई अपने पुराने बयान से पलट गए। इसके अनुसार इशरत केआतंकी होने का कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन साथ मारे गए तीन लोग लश्कर-ए-तैयबा से प्रशिक्षित आतंकी थे औरइशरत उनके साथ देश के कई भागों में गई थी। उन्होंने आशंका जताई कि तीनों आतंकी इशरत को कवच के रूप मेंइस्तेमाल कर रहे थे। इशरत के आतंकी होने की बात को टाला नहीं जा सकता और इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। दो सवाल हैं, क्या इशरत आतंकी थी? दूसरा कि क्या मुठभेड़ फर्जी थी? हम फर्जी मुठभेड़ पर तो जोर दे रहे हैं परइशरत की असलियत पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं। इसी गृह मंत्रालय ने कथित मुठभेड़ में मारी गई इशरत औरउसके तीन साथियों को लश्कर का आतंकी बताया था। गुजरात हाई कोर्ट में इस संबंध में बाकायदा एक हलफनामा भीदिया गया था। लेकिन राजनीतिक कारणों से दो महीने बाद ही गृह मंत्रालय ने हलफनामा बदलकर दोबारा दाखिल कियाजिसमें आईबी की जानकारी को आधी-अधूरी बताकर गृह मंत्रालय इशरत जहाँ को आतंकी बताने से मुकर गया  औरआईबी पर गलत जानकारी देने का आरोप लगा दिया। बताया जा रहा है कि पिछले एक महीने से गृह मंत्रालय को आईबीकी खुफिया चेतावनियों की रिपोर्ट नहीं मिली है। ऐसे में न तो आतंकी साजिशों का पूर्वानुमान हो सकता है और न हीउनसे निपटने की तैयारी। इसलिए आईबी का मनोबल बनाए रखने के लिए देशहित में सरकार को तुरन्त कदम उठानेहोंगे। सीबीआई की भूमिका पर तो पहले भी अंगुलियां उठी हैं कि वह सरकार के इशारे पर काम करती है तो क्या यहमान लिया जाए कि सरकार अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे करने के लिए देशहित से भी समझौता करने को तैयार है?अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए इस बार आईबी के खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है? अगर ऐसा हैतो यह सरकार देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है।

Thursday 18 July 2013

अब लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस नहींö अब लड़ाई है मोदी बनाम कांग्रेस

प्रकाशित: 18 जुलाई 2013
नरेन्द्र मोदी के बढ़ते कदमों से जहां भाजपा फूली नहीं समा रही वहीं कांग्रेस के हाथ-पांव फूल रहे हैं। भाजपा का ब्रांड बन चुके नरेन्द्र मोदी को भाजपा घर-घर पहुंचाने में जुट गई है। इसके लिए तय किया गया है कि भाजयुमो (भाजपा का यूथ विंग) के कार्यकर्ता मोदी की फोटोयुक्त टी-शर्ट पहनेंगे। भाजयुमो अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के अनुसार इस बार एक करोड़ युवाओं को पार्टी से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए फेसबुक, ट्विटर समेत सभी सोशल मीडिया की मदद ली जाएगी। उधर कांग्रेस अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर हो गई है। कांग्रेस के हमले का केंद्र अब भाजपा नहीं बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। मोदी को कांग्रेस लगातार एक सूबे का मुख्यमंत्री और नेता बताकर ज्यादा अहमियत देने से इंकार करती रही। अब उसे मोदी के बयान के एक-एक शब्द और एक-एक पंक्ति पर कांग्रेस आलाकमान पूरी तैयारी से ताबड़तोड़ जवाब देगी। संकेत साफ है। बदली राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस मान चुकी है कि उसके लिए मुख्य चुनौती मोदी हैं। यही कारण है कि कांग्रेस अब 2014 की लड़ाई को पूरी तरह से धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता बना देने की रणनीति पर काम करती है। मोदी के हिन्दू कार्ड खेलने के बाद कांग्रेसी एकजुट और रणनीति के तहत हमला कर आगामी लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार की कामयाबियों या नाकामियों की बजाय धर्मनिरपेक्षता के इर्द-गिर्द पूरी सियासी बहस को केंद्रित करने की तैयारी में जुट गए हैं। गुजरात विधानसभा नतीजे के बाद कांग्रेस मोदी को लेकर खुद को चिंतित नहीं दिखाना चाह रही थी। यहां तक कि भाजपा की ओर से मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के लगातार संकेत देने के बाद भी पार्टी अपनी पुरानी रणनीति पर चल रही थी पर अब नरेन्द्र मोदी कांग्रेस के निशाने पर नम्बर वन हैं। उनकी हर बात का जवाब दिया जाएगा। पुणे में रविवार को नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर जोरदार हमला किया तो जवाब में सोमवार को पूरी कांग्रेस ने भाजपा के चुनाव अभियान के मुखिया पर हल्ला बोल दिया। कुत्ते के बच्चे वाले बयान के बाद कांग्रेस के निशाने पर मोदी का धर्मनिरपेक्षता बना बुर्का  वाला बयान है। नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा था कि अपनी अगुवाई वाली सरकार के भ्रष्टाचार व बेकाबू महंगाई को लेकर कांग्रेस गहरे संकट में फंसी है। लिहाजा नाकामियों से ध्यान हटाने के लिए वह एक बार फिर धर्मनिरपेक्षता रूपी बुर्के में छिप गई है। लेकिन इस बार उसकी दाल गलने वाली नहीं है। लोग झांसे में नहीं आएंगे। इस बयान के बाद पहले दिग्विजय सिंह से लेकर मनीष तिवारी ने मोदी पर सांप्रदायिकता के मुद्दे पर हमला किया। वहीं बाद में कांग्रेस मुख्यालय  में पार्टी के मंच से सम्पर्प विभाग के प्रमुख अजय माकन आंकड़ों के साथ गुजरात के मुख्यमंत्री के खिलाफ कूद पड़े। उन्होंने गुजरात को ही पिछड़ा करार दिया और देश से पहले अपने प्रदेश को ठीक करने की सलाह दी। दिग्विजय ने कहा कि मोदी पहले अपनी धर्मनिरपेक्षता को स्पष्ट करें। मनीष तिवारी ने मोदी पर तीखा कटाक्ष किया और कहा कि धर्मनिरपेक्षता के लबादे में सभी धर्म के लोग समा जाते हैं जबकि सांप्रदायिकता का बुर्का अलगाववादी है। यह भारत के मूल सिद्धांत सर्वधर्म समभाव के विचार और अलगाववाद के बीच युद्ध है। मोदी देश के मूल विचार के लिए खतरा हैं। जैसा मैंने कहा कि अब लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस नहीं बल्कि मोदी बनाम कांग्रेस बन गई है।

भ्रष्टों को सबक सिखाने का एक तरीका यह भी है

प्रकाशित: 18 जुलाई 2013
भारत में भ्रष्टाचार को खत्म करने में राजनीतिक दलों और सरकारी मशीनरी की विफलता की एक बड़ी मिसाल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के वार्षिक सर्वेक्षण के जरिए फिर से सामने आई है। सर्वे में 70 फीसद भारतीयों ने माना है कि भ्रष्टाचार भारत में पिछले दो सालों में बढ़ा है। 68 फीसदी भारतीयों का मानना है कि भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की मंशा पर उन्हें भरोसा नहीं है। 62 फीसद लोग ब्लॉग ढंग से मानते हैं कि उन्हें सरकारी अनुमति/सेवाओं की एवज में रिश्वत देनी पड़ती है। सर्वे में शामिल भारत के 86 फीसद लोग राजनीतिक दलों को सर्वाधिक भ्रष्ट मानते हैं। चिन्ता यह है कि भ्रष्टाचार की इस हा-हाकारी मौजूदगी पर आम लोगों की धारणा को बदलने के लिए गम्भीर प्रयास करने के बजाय हमारा राजनीतिक नेतृत्व इस सच्चाई को बेशर्मी और ढिठाई से नकारता रहा है। करप्शन यानि भ्रष्टाचार से कैसे निपटें? इस सवाल का जवाब चीन ने दिया है। रेलवे के इतिहास में दुनिया की सबसे बड़ी उपलब्धियों में जिस एक रेलमंत्री का नाम दर्ज है, वह हैं 2011 तक चीन के रेलमंत्री रहे ल्यू फीयुन। इन्हें चीन की अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोप का दोषी पाया और इन्हें मौत की सजा सुनाई गई है। मंत्री की सारी व्यक्तिगत सम्पत्ति पहले ही जब्त की जा चुकी है और उनके सभी राजनीतिक अधिकार भी समाप्त किए जा चुके हैं। आठ साल चीन के रेलमंत्री रहे ल्यू फीयुन के ही कार्यकाल में चीन ने तिब्बत रेलवे अपने मुकाम पर पहुंचाया और बुलेट ट्रेन के मामले में चीन दुनिया में नम्बर वन बन गया। उनके सख्त प्रशासन के तो किस्से सुनाए जाते हैं। लेकिन एक हाई स्पीड ट्रेन दुर्घटना के बाद शुरू हुई जांच ने न सिर्प उन्हें इस गर्त में पहुंचाया बल्कि चीन में रेल मंत्रालय नाम की चीज ही खत्म कर दी गई। चीन में कोई आदर्श राज्य व्यवस्था नहीं है। वहां भी मीडिया में सवाल उठ रहा है कि ल्यू फीयुन के पास 16 कारें, 350 फ्लैट और 18 रखैल हैं, यह जानने के लिए चीन के खुफिया विभाग को एक ट्रेन दुर्घटना का इंतजार क्यों करना पड़ा? एक हमारा देश है। हमारे रेलमंत्री पर खुलेआम भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और जांच एजेंसी सीबीआई ने मुख्य आरोपी को ही सरकारी गवाह बना  लिया है। वैसे तो देश में भ्रष्टाचार के मामले आजादी के बाद से ही सामने आने शुरू हो गए थे, लेकिन कुछ बीते सालों में सत्ताधीशों में चोरी और सीनाजोरी की प्रवृत्ति खुलेआम दिखाई देने लगी है। मौजूदा सरकार की बात करें तो भ्रष्टाचार के मामलों में इसके कुछ एक मंत्री जेल जा चुके हैं तथा कइयों को इस्तीफा देना पड़ा है। इस दौरान ऐसे भीमकाय घोटाले सामने आए हैं जिनकी गणना करना आम इंसान के बस की बात कतई नहीं है। यह भी देखा गया है कि कैसे मजबूत साक्ष्यों के बावजूद अंतिम दम तक सरकार आरोपियों को बचाने का भरसक प्रयास करती है। ल्यू फीयुन पर भ्रष्टाचार और पद का दुरुपयोग कर भारी धनराशि एकत्र करने और अय्याशी का आरोप है। चीन में हत्या और भ्रष्टाचार के साथ-साथ कई अपराधों के लिए फांसी का प्रावधान है। मगर भारत में भ्रष्टाचार के लिए जितनी भी सजा का प्रावधान हो, वह किसी सामर्थ्यवान व्यक्ति को नहीं मिल पाती। क्योंकि यहां कार्रवाई करने वालों से बचाने वाले के हाथ अकसर अधिक मजबूत होते हैं।
-अनिल नरेन्द्र

Wednesday 17 July 2013

तीस दिन बाद भी केदारनाथ घाटी वीरान बस्ती बनी हुई है

प्रकाशित: 17 जुलाई 2013
मंदाकिनी में आई बाढ़ और प्रलय से केदारनाथ घाटी को तबाह हुए पूरा एक महीना हो गया है। ठीक 16-17 जून को केदारनाथ में तबाही हुई थी। एक महीने बाद केदारनाथ एक वीरान बस्ती बन चुका है। उत्तराखंड के एडवोकेट जनरल ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में यह स्वीकार किया और कहा कि चेतावनियों पर ध्यान दिया जाता तो हालात ऐसे न होते। जस्टिस एके पटनायक की पीठ शुक्रवार को बाढ़ राहत कार्यों पर राज्य की रिपोर्ट पर विचार कर रही थी। जस्टिस पटनायक ने उनकी बात से सहमति जताई और कहा कि यात्रा जून माह में होनी ही नहीं चाहिए। इसे यदि मई में ही रोक दिया जाता तो इस तरह की जानमाल की हानि नहीं होती। राज्य के एडवोकेट जनरल उमेश उनियाल ने कहा कि यात्रियों को निकालने के कार्य पूरे कर लिए गए हैं। स्थिति नियंत्रण में है लेकिन केदारनाथ एक भुतहा स्थल बना हुआ है। कहा कि गत वर्ष एक मामले में कहा  गया था कि पहाड़ों में निर्माण नहीं रोका गया तो तबाही हो सकती है। आज वह भविष्यवाणी सही साबित हुई है। हालांकि राज्य सरकार ने यह नहीं बताया कि बाढ़ में कितने लोगों की मौत हुई है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार केदार घाटी में अब भी सैकड़ों यात्रियों के शव मिट्टी में दबे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट जनरल की बातें सुनकर जस्टिस एके पटनायक भी भाव-विह्ल हो गए। कहा कि गत वर्ष वह केदारनाथ की यात्रा पर गए थे और भगवान से उन्होंने जो मांगा था वह मिल गया। यात्रा से लौटने के बाद घर में एक पौत्र ने जन्म लिया और वह दादा बन गए। केदारनाथ में आपदा के चलते कितने लोग मारे गए इस रहस्य से पर्दा शायद ही कभी उठे। उत्तराखंड सरकार इस त्रासदी में पांच हजार से अधिक लोगों के लापता होने की बात स्वीकार कर चुकी है। लेकिन अब तक कुल 127 शवों का ही दाह-संस्कार हो पाया है। शवों की संख्या को लेकर भी प्रशासन स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रही है। बचाव कार्य के दौरान केदारनाथ में ही 250 से अधिक शवों की बात प्रशासन की ओर से की गई थी लेकिन वर्तमान में रह रहे राहत एवं बचाव दल ने वहां शवों के न होने की बात कही है। त्रासदी में लापता हुए लोगों के परिजन इस पीड़ा को भूल पाएं यह सम्भव नहीं। मेरे एक मित्र तेजेन्द्र मान जो करनाल रहते हैं की पत्नी अपने भाई और भाभी के साथ 16-17 जून को केदारनाथ में फंस गई और आज तक पता नहीं चला कि क्या हुआ। शनिवार को उनकी याद में दिल्ली के चिनमय मिशन में एक प्रार्थना सभा की। श्री मान से मैं मिला भी और तसल्ली भी दी पर सदमा उन्हें इतना गहरा लगा था कि सोमवार को खबर आई कि तेजेन्द्र मान भी चल बसे। ऐसे दर्जनों केस होंगे, जहां पर लापता लोगों के परिजनों को गहरी चोट लगी होगी। केदारनाथ में अब तक कुल 50 शवों का दाह-संस्कार हुआ है, गौरीपुंड व जंगलपट्टी में 43 व हरिद्वार में 34 शवों का दाह-संस्कार किया गया। हालांकि तबाही के बाद ढाई सौ से अधिक शव केवल केदारनाथ में देखे जाने की बात पुलिस की ओर से भी कही गई थी। यहां तक कि केदारनाथ से बच निकलने में सफल रहे प्रत्यक्षदर्शियों ने भी सैकड़ों की संख्या में शव पड़े होने की बात पुलिस व प्रशासन को बताई थी। लेकिन अब वह शव कहां गए यह रहस्य ही है। राष्ट्रीय सहारा में राजेश सेमवाल मृदुल/मोहित डिमरी की एक आंखों देखी रिपोर्ट छपी है। प्रस्तुत है रिपोर्ट के कुछ अंश। मंदाकिनी, क्षीर गंगा व मधु गंगा के मुहाने से केदारनाथ में हुई प्रलय को एक माह पूरा होने को है। इस एक महीने में आपदा से तबाह हो चुके छोटे-बड़े कस्बों में जिन्दगी पटरी पर कब लौटेगी और बसावट भी कब होगी? यह प्रश्न हर किसी के मन को कचोट रहा है। केदारनाथ घाटी के कोपागार के रूप में जाने-आने वाले शिव तीर्थ केदारनाथ पर हरिद्वार से केदारनाथ तक लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी थी। फिलहाल यहां पथरीली जमीन व बार-बार हो रहे भूस्खलन के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा है। श्रीनगर से लेकर केदार घाटी तक सड़कें सुनसान हैं। बाजार वीरान हैं और सड़कों से सटे गांवों में भी दिनचर्या ठहरी हुई है। दूरस्थ-दुर्गम गांवों का कोई सुधलेवा नहीं है। ऐसे सैकड़ों गांवों में आज भी बच्चे रोते हुए, महिलाएं सिसकती हुईं और बुजुर्ग स्तब्ध दिखते हैं। श्रीनगर से रुद्रप्रयाग तक आ-जा रहे वाहनों में सवारियां नहीं हैं। धारी देवी मंदिर पूर्व में जिस शिला पर स्थित था, वह अलकनंदा के आगोश में है। ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग रुद्रप्रयाग तक छोटे-बड़े वाहनों की आवाजाही के लिए हालांकि खुला हुआ है मगर सड़क पर मजदूरों के सिवाय और कोई नहीं दिख रहा। रुद्रप्रयाग का बाजार सुना पड़ा है। ढाबे व होटल वालों का कहना है कि 20 दिन से उन्होंने हजार रुपए का नोट नहीं देखा। समूचे केदार घाटी में लोग सहमे हुए हैं। नदी का जलस्तर बढ़ते ही लोग घरों को छोड़ने पर मजबूर हैं। आसमान से बरस रही आफत दुखदायी है। इस एक माह में सड़क की स्थिति पर बीआरओ तो असफल साबित हो रही है। सही एलाइन्मेंट का अभाव व अत्याधिक विस्फोटों के कारण तबाह हुई सड़क कब खुलेगी, कोई बता पाने की स्थिति में नहीं। तिलवाड़ा के आगे तबाही के सिवाय और कुछ नजर नहीं आता। रामपुर का बाजार सूना है। आगे सिल्ली को देखकर ऐसा भी महसूस नहीं होता कि कभी यहां बेंजी से लेकर बड़या पट्टी के सैकड़ों लोग प्रतिदिन आते-जाते होंगे। इससे आगे संचार विद्युत, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं तो बीते जमाने की बात हो गई। अगस्त मुनी के इंटर कॉलेज के नीचे खेतों में जहां फुलबारियां और अमरूद का बाग था, वहां रेगिस्तान नजर आता है। विजय नगर से आगे गंगानगर का बुरा हाल है। डिग्री कॉलेज के भवनों को भी क्षति हुई है। यहां बन रहा छात्रावास तबाह हो गया है। बीएड में अध्ययनरत छात्र अब कॉलेज नहीं आ रहे हैं। जहां कभी दर्जनों मकान थे वे अपने मकान व सामान सब गंवा चुके हैं। लोग वहां तिरपालों के सहारे मोमबत्ती में रातें काट रहे हैं। चन्द्रापुरी में तबाही को देखकर ऐसा नहीं लगता कि यहां पर चार-पांच मंजिला भवन रहे होंगे। एक माह बाद भी केदार घाटी की स्थिति ज्यों की त्यों है। खराब मौसम के चलते केदार घाटी में राहत कार्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। बारिश के कारण सभी गतिविधियां ठप हैं। रविवार को केदार घाटी के लिए गुप्तकाशी और फाटा से हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर सके। जिला प्रशासन के अनुसार केदार नाथ में इस वक्त 58 लोगों की टीम है। मलबा हटाने का कार्य शुरू नहीं हो सका। हालांकि उपकरण पहुंच चुके हैं। गुप्तकाशी में नोडल अधिकारी हरक सिंह रावत ने बताया कि 31 लोगों की एक टीम और गौरीपुंड भेजी गई है। यह टीम सोमवार को रामबाड़ा रवाना होगी और वहां शवों की तलाश करेगी। बारिश के कारण मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है।
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday 16 July 2013

मेट्रो में बनाए गए एमएमएस पोर्न साइटों पर

प्रकाशित: 16 जुलाई 2013
दिल्ली मेट्रो पर न केवल दिल्ली को नाज है बल्कि पूरे देश की एक बड़ी उपलब्धि मानी गई है। विदेशों से भारत यात्रा पर आए महानुभाव तक दिल्ली मेट्रो में सवारी करते हैं पर पिछले दिनों दिल्ली मेट्रो की छवि पर दाग लग गया। दिल्ली मेट्रो में वैसे तो सुरक्षा मानकों का पूरा इंतजाम है पर किसी ने शायद यह नहीं सोचा था कि कोचों के अन्दर इस प्रकार की हरकतें भी हो सकती हैं? दिल्ली मेट्रो में लगे सीसीटीवी कैमरों के जरिए अश्लील एमएमएस और वीडियो क्लिप्स बनाए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। एक रिपोर्ट के अनुसार मेट्रो रेल में सुरक्षा के मद्देनजर लगाए गए सीसीटीवी कैमरों से अश्लील एमएमएस बन रहे हैं और इन्हें पोर्न साइट्स पर धड़ल्ले से अपलोड किया जा रहा है। अब तक करीब 13 पोर्न और अन्य साइट्स पर मेट्रो में बनाए गए वीडियो अपलोड किए जा चुके हैं। हैरत की बात यह है कि इन वीडियो क्लिप्स व एमएमएस को डेढ़ लाख से ज्यादा लोग देख भी चुके हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार युगल प्रेमी प्लेटफार्म ही नहीं बल्कि चलती ट्रेनों (मेट्रो) के अन्दर भी अश्लील हरकतें करने से बाज नहीं आते। एक क्लिप में तो बाकायदा पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन में हरकतें कैद हुईं। जिस समय लड़के-लड़कियों की अश्लील हरकतें दिखलाईं उस समय मेट्रो में किसी यात्री के नहीं होने की बात भी सामने आई है। यह वीडियो क्लिपिंग करीब ढाई से पांच मिनट के बीच की थी। हैरत की बात तो यह है कि मामले के सामने आने के बाद भी डीएमआरसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। सम्भवत यह सिलसिला पिछले लम्बे समय से चल रहा होगा, किन्तु मेट्रो अधिकारी अपने संबंधित विभाग की गतिविधियों की भनक तक नहीं लगा सके या फिर मामले को गम्भीरता से नहीं लिया गया। इस मामले में मंगलवार को महिला आयोग ने मेट्रो को नोटिस भेजा है। हालांकि बखेड़ा होने के बावजूद सीआईएसएफ और मेट्रो दोनों ही इस मामले से अपना पल्ला झाड़ने में लगे हैं। दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन का कहना है कि उन्होंने एमएमएस प्रकरण को गम्भीरता से लिया है। मामले की विभागीय जांच शुरू हो गई है। प्रकरण से जुड़ी एक एफआईआर साइबर क्राइम सेल में दर्ज कराई गई है। इसका मकसद दोषियों को सही तरह से सामने लाना है। हालांकि डीएमआरसी का मानना है कि यह एमएमएस सीसीटीवी कैमरों के जरिए नहीं  बनाए गए। मेट्रो के जनसम्पर्प विभाग के कार्यकारी निदेशक अनुज दयाल ने सीआईएसएफ पर आरोप मढ़ते हुए कहा कि वह मेट्रो में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच एजेंसी है। ऐसे में इस एमएमएस प्रकरण के लिए मेट्रो को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। वहीं सीआईएसएफ के प्रवक्ता हेमेन्द्र सिंह का कहना है कि सीसीटीवी फुटेज का नियंत्रण मेट्रो के पास है। उन्होंने कहा कि अपलोड की गई वीडियो क्लिप को देखकर ऐसा लगता है कि इन्हें मोबाइल द्वारा शूट किया गया है। यह बेहद चौंकाने वाला मामला है। तकनीक का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए होना चाहिए। लेकिन इसका इस्तेमाल महिलाओं की निजता पर प्रहार करने में हो रहा है। इस तरह की हरकतों से महिलाओं की मेट्रो में सफर करने पर आशंका पैदा करेगा पर सवाल तो यह है कि इन युगल जोड़ियों को रोका कैसे जाए। सिर्प सख्ती से हो सकता है? कसूरवारों को पकड़ा जाए और सजा दी जाए ताकि भय पैदा हो, बदनामी भी होगी।
-अनिल नरेन्द्र

इलाहाबाद हाई कोर्ट का जाति राजनीति पर रोक लगाने का दूरगामी प्रयास

प्रकाशित: 16 जुलाई 2013
वोट बैंक की राजनीति पर कोर्ट ने कड़ा प्रहार किया है। गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सियासी दलों की जातिगत रैलियों पर रोक लगा दी। इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं पर कड़ा फैसला सुनाया था। जस्टिस उमानाथ सिंह और महेन्द्र दयाल की इलाहाबाद बैंच ने याचिकाकर्ताओं की उस दलील को मान लिया जिसमें कहा गया था कि जातिगत रैलियां संविधान के खिलाफ हैं और यह समाज को बांटने का काम करती हैं। हाई कोर्ट के फैसले का असर देशभर में हो सकता है। इसे आधार बनाकर दूसरे राज्यों के हाई कोर्ट में भी अर्जी दाखिल की जा सकती है। ऐसे में बाकी राज्यों में भी जातिगत रैलियों पर इसी प्रकार के आदेश आ सकते हैं। जाति आधारित रैलियों पर रोक का राष्ट्रीय दल खुलकर न सही लेकिन इसे अपने लिए वरदान और बड़े राजनीतिक फैसले लेने के लिए मैंडेट जरूर मान रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड व महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दलों का जबरदस्त प्रभुत्व है। चुनावी राजनीति में जाति हमेशा से एक अहम मुद्दा रही है। सामाजिक तौर पर गम्भीर समस्या के रूप में मौजूदा जातियों का प्राय पार्टियां चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित का जरिया बनाती हैं। यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और प्रमुख विपक्षी बहुजन समाज पार्टी, दोनों ने कुछ महीनों में ब्राह्मण रैलियों का आयोजन किया। ब्राह्मण रैलियों के अलावा राजनीतिक दलों ने क्षेत्रीय रैली और वैश्य सम्मेलन जैसे नामों से अन्य कई जातियों को लेकर भी रैलियां कीं या करने की घोषणा की। मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी पिछड़ी जाति के वर्चस्व वाली पार्टी मानी जाती है वहीं बसपा मायावती के नेतृत्व में एक अनुसूचित जाति विशेष के आधार वाली मानी जाती है। भाजपा मूलत सवर्णों और हिन्दुओं की पार्टी मानी जाती है जिसमें उच्च जातियों और वैश्यों का जोर है। झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी पार्टियां भी हैं जो आदिवासियों की सियासत करती हैं। बिहार में नीतीश कुमार का जनता दल (यू) अति पिछड़ा वर्ग का विशेष समर्थक बताई जाता है। बिहार की ही राजद जिसके सुप्रीमो हैं लालू प्रसाद यादव मध्यवर्ती और पिछड़ी जाति केंद्रित पार्टी मानी जाती है। सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरणों के चलते बीते डेढ़ दशक से भाजपा और कांग्रेस जैसे दो बड़े राष्ट्रीय दल हाशिए पर हैं और राज्य की सत्ता दो क्षेत्रीय दलों सपा व बसपा में बंटी हुई है। चाहे नामकरण हो, मूर्तियां लगवाने का अभियान या सार्वजनिक छुट्टियों की घोषणा, यूपी में नेताओं ने वोट बैंक लुभाने का हर यत्न किया है। मंडल-कमंडल के दौर से परवान चढ़ा यह अभियान अब शाबाब पर है। इन जातियों की बेहतरी से बहुत मतलब न रखा गया हो लेकिन प्रतीकात्मक टोटकों के जरिए जातीय स्वाभिमान की लौ को खूब जलाया रखा गया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को महज दलितों का नेता बनाने का अभियान बेशक पुराना है लेकिन पिछले कुछ समय से इनको महज दलितों का उद्धारक बनाया जा रहा है। जाति के गौरव तलाशने का अभियान पिछड़े डेढ़ दशक से तेजी से चला। सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाने वाले छत्रपति शाहूजी महाराज, नारायण गुरु, ज्योतिबा फुले आदि को जाति से जोड़कर याद कराने की कोशिशें हुईं। उनके नाम पर स्मारक, पार्प और मूर्तियों का निर्माण हुआ, कई योजनाएं और किलों का नामांकरण भी जाति को ध्यान में रखकर महापुरुषों के नाम पर किया गया। सपा सरकार ने बसपा राज में बने छत्रपति शाहूजी महाराज जिले को अमेठी नाम दिया। बसपा ने किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय भी छत्रपति शाहूजी के नाम पर किया तो सपा सरकार ने इसे बदल दिया। ब्राह्मणों को लुभाने के लिए यूपी में भगवान परशुराम जयंती और सिंधियों को लुभाने के लिए चेटीचन्द के नाम पर सरकारी छुट्टी तय हुई। पिछड़ों के लिए विश्वकर्मा जयंती, वैश्य समुदाय के लिए अग्रसेन जयंती, कायस्तों के लिए चित्रगुप्त जयंती की छुट्टियां तय हुईं। हाई कोर्ट का यह फैसला वैसे तो उत्तर प्रदेश तक सीमित है लेकिन इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा। राष्ट्रीय दलों को चुनौती दे रहे तमाम क्षेत्रीय दलों की असली ताकत क्षेत्रीय जातीय समीकरण या क्षेत्रीय अस्मिता की भावनाओं पर बना माहौल है। दोनों में ही जाति काफी अहम भूमिका में है। यूपी और बिहार में जातीय समीकरणों से प्रभावित दलों ने भाजपा व कांग्रेस को तो सिकौड़ा ही है, वामपंथी दलों को भी लगभग बाहर कर दिया है। दक्षिण के राज्यों-आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल में भी क्षेत्रीय दलों की ताकत काफी हद तक उनका नेतृत्व करने वाले नेताओं की अपनी जाति है। लोकसभा की 300 सीटें ऐसी हैं, जहां जातिगत समीकरणों की वजह से ही क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है। यह फैसला कितने प्रभावी ढंग से लागू होता है यह समय बताएगा। चुनावी मौसम में यह पार्टियां इसका भी कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगी। सम्भव है कि जातीय रैलियां सामाजिक संगठनों की ओर से हों। कुल मिलाकर यह एक दूरगामी अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला है पर इसे लागू करना उतना ही मुश्किल साबित हो सकता है

Sunday 14 July 2013

मैं राष्ट्रवादी हूं, हिन्दू हूं इसलिए हिन्दू राष्ट्रवादी हूं ः नरेन्द्र मोदी

प्रकाशित: 14 जुलाई 2013
यूं तो गुजरात के मुख्यमंत्री कभी भी विवादों से अछूते नहीं रहे पर जब से वह तीसरी बार गुजरात विधानसभा चुनाव जीते हैं और सेंटर स्टेज पर आए हैं उन्हें लेकर विवाद और बढ़ गए हैं। ताजा विवाद नरेन्द्र मोदी द्वारा रायटर्स समाचार एजेंसी को दिए गए एक इंटरव्यू को लेकर है। पहले बता दें कि उन्होंने इस साक्षात्कार में कहा क्या है। मोदी ने कहा कि वह जन्मजात हिन्दू हैं और उन्हें हिन्दू होने पर गर्व है। उन्होंने कहा कि वह एक राष्ट्रवादी हैं और हिन्दू हैं, इसलिए वह हिन्दू राष्ट्रवादी हैं। हिन्दू राष्ट्रवादी होना कोई गुनाह नहीं। वह देशभक्त हैं और हरेक नागरिक को देशभक्त होना चाहिए। इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने 2002 के दंगों के दौरान सही काम किया था, इस पर मोदी का जवाब था ः बिल्कुल। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) ने मुझे पूरी तरह क्लीन चिट दे दी है। उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात को लेकर खीझ होती है कि लोग उन्हें अभी तक 2002 दंगों से जोड़ते हैं। मोदी ने कहा कि यह लोकतांत्रिक देश है, हर किसी की अपनी राय होती है। मैं दोषी तब महसूस करूं जब मैंने कुछ गलत किया हो। जो कुछ हुआ उस पर आपको दुख है? इस सवाल के जवाब में मोदी बोले, अगर हम कार चला रहे हैं, हम ड्राइवर हैं या कोई कार चला रहा है और हम पीछे बैठे हैं तो भी किसी पपी (कुत्ते के बच्चे) का पहिए के नीचे आना दुखद होगा या नहीं? ऐसा होगा। चाहे मैं मुख्यमंत्री हूं या नहीं, मैं एक इंसान हूं। अगर कभी कुछ भी बुरा होता है तो दुखी होना स्वाभाविक है। मोदी के इस बयान पर हंगामा हो गया है। अधिकतर आलोचकों का कहना था कि मोदी ने कुत्ते के पिल्ले की मिसाल देकर अल्पसंख्यकों का अपमान किया है। उन्होंने अल्पसंख्यकों की तुलना कुत्ते से की है। हालांकि मोदी के बयान को तो तोड़-मरोड़कर देखा जा रहा है पर मैं भी मानता हूं कि बेहतर होता कि वह अपनी बात कहने के लिए कोई और बेहतर मिसाल देते। यह मिसाल अच्छी नहीं रही पर जहां तक दंगों का सवाल है तो यहां पर 2002 के दंगों को तीन-चार श्रेणियों में देखा जाना चाहिए। पहली कि यह एक प्रतिक्रिया स्वरूप दंगा था। चूंकि 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जिन्दा जला दिया गया था उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप दंगे हुए। इन दंगों में कुल 1267 लोग मरे जिनमें 740 मुसलमान थे और 254 हिन्दू थे। दंगों के बाद 27901 गिरफ्तारियां हुईं जिनमें 7656 हिन्दू भी गिरफ्तार किए गए। 249 केसों में सजाएं हुईं। यह सजाएं तब सम्भव हुईं जब राज्य सरकार, प्रशासन ने जांच एजेंसियों, अदालतों की पूरी मदद की। अब आप इसका मुकाबला करिए 1984 के दिल्ली दंगों से। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप सिख विरोधी दंगे भड़के। इन दंगों में 5000 से ऊपर लोग मरे। आज तक किसी दोषी महत्वपूर्ण व्यक्ति को सजा तक नहीं हो सकी। दूसरा पहलू है अदालती। अदालत द्वारा दर्जनों जांच कराई गईं। सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा एक जांच कमेटी एसआईटी बनाई। उस एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दे दी। फिर आती है बात राजनीतिक मुद्दे की। यूं तो मोदी को डाउन करने के लिए यह मुद्दा उनके प्रतिद्वंद्वी हमेशा जीवित रखेंगे पर अगर गुजरात की जनता की बात करें तो दंगों के बाद भी मोदी तीन विधानसभा चुनाव शानदार तरीके से जीते हैं। इसका मतलब साफ है कि गुजरात की जनता ने उन्हें माफ कर दिया है। इन सबके बावजूद अगर मोदी अफसोस जाहिर कर रहे हैं तो यह अच्छी बात है पर जब एजेंडा राजनीतिक हो तो यह सब बेमायने हैं, मुद्दों को 2014 के लोकसभा चुनाव तक जीवित रखा जाएगा। वैसे एक उदाहरण देता हूं। आप सबने शोले फिल्म तो देखी होगी। उस फिल्म में अगर सबसे ज्यादा कोई चमका तो वह था विलेन अमजद खां। इसकी वजह थी कि तमाम हीरो उस विलेन पर हमला कर रहे थे। इस चक्कर में वह तो फिल्म का हीरो बन गया और तमाम हीरो नीचे आगे गए। कहीं यही किस्सा नरेन्द्र मोदी के साथ भी न हो। जिस तरह से चारों ओर से उन्हें टारगेट किया जा रहा है कहीं यही न हो कि उन्हें फायदा होता रहे और बाकी सब धरे के धरे रह जाएं। शायद यही नरेन्द्र मोदी चाहते भी होंगे। उन पर हमला करने वालों को समझना चाहिए कि वह मोदी की हर बात पर रिएक्ट न करें उन्हें जबरदस्ती हीरो न बनाएं। रही बात हिन्दू होने के गर्व की तो इसमें गलत क्या है। क्या हिन्दू होना इस देश में अपराध है? ऐसा माहौल बना दिया जा रहा है कि बहुसंख्यक तो विलेन बन गए हैं। जब देश का प्रधानमंत्री कहे कि देश की सम्पत्ति, संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है तो वह कौन-सी धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे हैं? भारत में सभी बराबर हैं और सभी को एक ही दृष्टि से देखा जाना चाहिए, एक समान बर्ताव होना चाहिए और संसाधन सभी के लिए बराबर होना चाहिए पर यूपीए सरकार की वोट बैंक की राजनीति ने देश को अंधकार में धकेल दिया है। इशरत जहाँ एनकाउंटर पर तो इतनी बहस हो रही है पर उस अभागी प्रज्ञा ठाकुर की कोई बात नहीं करता जो एनआईए के हैवानों की मार से मरने के कगार पर पहुंच गई है। पिछले तीन-चार साल में उस बेचारी के खिलाफ चार्जशीट तक पेश नहीं हो सकी। उसका कसूर सिर्प यह था कि उसने एक पुरानी मोटर साइकिल किसी वाद में दोषी साबित हुए संदिग्ध को बेची थी। इस सरकार का यह हाल है कि वोट बैंक राजनीति के चलते उसने देश की सबसे बड़ी गुप्तचर एजेंसी आईबी और देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है। भले ही ऐसा करने में देश की सुरक्षा और अखंडता को ही नुकसान क्यों न पहुंच रहा हो? बस किसी भी तरह हिन्दू आतंकवाद साबित करना है। देश के करोड़ों बहुसंख्यक इस सरकार की तुष्टिकरण की नीति से आजिज आ चुके हैं। अगर मोदी यह कहते हैं कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व है तो इसमें गलत क्या है?
-अनिल नरेन्द्र

Saturday 13 July 2013

तहरीर चौक ने कराई मिस्र में दूसरी क्रांति

प्रकाशित: 13 जुलाई 2013
मिस्र का तहरीर चौक शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अभी पहली क्रांति का खुमार टूटा भी नहीं था कि तहरीर चौक पर दूसरा इंकलाब हो गया है। जब मिस्र की सेना ने मोहम्मद मुर्सी को राष्ट्रपति पद से हटाने की घोषणा की तो काहिरा के तहरीर चौक पर भारी तादाद में जमा लोगों ने बेहद खुशी मनाई। देश के दूसरे हिस्सों में भी बहुत से लोगों ने जश्न मनाया। एक साल पहले मिस्र में उठे लोकतांत्रिक उफान में तानाशाह हुस्नी मुबारक की न केवल सत्ता ही चली गई पर वह जेल में अब अपनी जिन्दगी का शेष समय बिता रहे हैं। तहरीर चौक पर तब ऐसा ही जन सैलाब उमड़ा था जिसके साथ फौज की ताकत जुड़ते ही मिस्र तानाशाही के चंगुल से आजाद हो गया। इसके बाद पहली बार वर्षों बाद लोकतांत्रिक विधि से देश के राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता सम्भाली। मिस्र की 80 साल की कट्टरपंथी पार्टी `मुस्लिम ब्रदरहुड' से मुर्सी के सामने वैसे तो चुनौतियों के पहाड़ थे लेकिन सबसे जरूरी चुनौती थी देश की बदहाल अर्थव्यवस्था को तत्काल पटरी पर लाना। एक सर्वमान्य संविधान भी प्राथमिकता थी। देश की विभिन्न विचारधाराओं को साथ लेकर चलाने के लिए एक राष्ट्रीय प्लेटफार्म तैयार करना था। मुर्सी से उम्मीद थी कि वह राष्ट्रीय एजेंडे पर मुस्लिम ब्रदरहुड का कट्टरपंथी एजेंडा हावी नहीं होने देंगे। मुर्सी को राष्ट्रपति के तौर पर एक साल भी नहीं हुआ कि उनके खिलाफ बहुत बड़ी संख्या में  लोग सड़कों पर उतर आए। व्यापक जन असंतोष की यह अभिव्यक्ति मुर्सी की सत्ता के लिए चुनौती भी थी और सवाल भी। इसलिए उन्हें हटाने की सैनिक कार्रवाई पर दुनिया भर में वैसी तीखी प्रक्रिया नहीं हुई जैसी तख्तापलट को लेकर आमतौर पर होती है। लेकिन सैनिक हस्तक्षेप को लेकर तमाम आशंकाएं भी पैदा हुई हैं। क्या मुर्सी को इस तरह हटाने के पीछे वाकई ही लोगों का विश्वास खोना था या सेना ने शासन पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए जन आक्रोश के तर्प का बहाना किया? यही सेना थी जिसने तीन दशक तक हुस्नी मुबारक की तानाशाही का साथ दिया था। जब सेना को लगा कि पानी सिर तक आ चुका है तब जाकर उसने मुबारक से किनारा किया। नौ करोड़ की आबादी वाले मिस्र में महंगाई और तेल की किल्लत ने जीना हराम कर रखा है। विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली है और देश की मुद्रा की कीमत खाई में गिरती जा रही है। बिजली कटौती से घरों में अंधेरा है तो लोगों को रोजमर्रा की जरूरी चीजों के लिए भटकना पड़ रहा है। बेरोजगारी की बढ़ती फौज देश के आगे गम्भीर समस्या पैदा कर रही है। मुर्सी यह भी भूल गए कि एक साल पहले उन्होंने इन्हीं आवाजों को देश की तकदीर कहा था। मिस्र और मध्य-पूर्व एशिया के लिए एक स्थायी सरकार और शांतिपूर्ण माहौल अत्यंत आवश्यक है ताकि उसकी आर्थिक परेशानियां दूर हो सकें और क्षेत्र में पहले से ही आर्थिक स्थिति और ज्यादा अस्थिर न हो जाए। मुर्सी के पतन का असर कई पड़ोसी देशों पर भी पड़ सकता है। इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम ब्रदरहुड शांति से अब बैठेगा। कहीं मिस्र में गृहयुद्ध ही न हो जाए।
-अनिल नरेन्द्र

आक्रामक चुनावी मोड में आई भारतीय जनता पार्टी

प्रकाशित: 13 जुलाई 2013
भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार को ऐलान किया कि कांग्रेस समय से पहले चुनाव करवा सकती है और हम इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में नरेन्द्र मोदी और राजनाथ सिंह को चुनाव अभियान का गठन करने के लिए अधिकृत किया गया। नरेन्द्र मोदी की उपसमिति में हुई बैठक में आगामी लोकसभा चुनाव में सुशासन और विकास को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने का निर्णय लिया गया। अनंत कुमार ने बैठक के बाद कहा कि भाजपा आक्रामक चुनावी मोड में आ चुकी है। चुनावी तैयारियों पर नजर रखने और उसे आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न समितियों की हर सप्ताह या 10 दिन में बैठकें हुआ करेंगी। बीजेपी की कैम्पेन कमेटी की कमान सम्भालते ही नरेन्द्र मोदी ने अपना मिशन 2014 की रणनीति बना ली। गत गुरुवार को संसदीय बोर्ड की बैठक से पहले पार्टी का हाई लेवल कमेटी की बैठक में इस गेम के लिए टारगेट के मुद्दे सेट कर दिए गए। यह हैंöभ्रष्टाचार, सीबीआई का दुरुपयोग और आर्थिक संकट। तय हुआ कि इन चारों मुद्दों को लेकर पार्टी राज्यों में अभियान चलाएगी। इनके अलावा आतंकवाद, देश की लचर सुरक्षा व्यवस्था व लोकल मुद्दों को भी जोर-शोर से उठाया जाएगा। अगले महीने कांग्रेस के खिलाफ चार्जशीट जारी की जाएगी। भाजपा शासित राज्यों की अपनी गवर्नेंस भी हाई लाइट की जाएगी। चुनाव अभियान की तैयारी को लेकर बैठक में आडवाणी और मोदी दोनों ने कहा कि चुनाव में अब वक्त कम बचा है। हो सकता है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव इसी साल करवा ले। ऐसे में पार्टी को तैयार रहना चाहिए। नरेन्द्र मोदी ने भी लगता है कि अपने काम करने के स्टाइल में थोड़ी तब्दीली की है। अब वे सबको साथ लेकर चलने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने साफ संकेत दिए हैं कि फैसले लेने में वह अपनी नहीं चलाएंगे बल्कि संसदीय बोर्ड और दूसरे फोरम की सहमति से काम करेंगे। इसी के तहत चुनाव अभियान से जुड़ी कुछ बड़ी जिम्मेदारियां औरों को सौंपी हैं। आडवाणी और मोदी की सोच में हालांकि अब भी फर्प है। जहां मोदी भाजपा की सीटें बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं वहीं आडवाणी बीजेपी के नए सहयोगी जुटाने पर जोर दे रहे हैं। मोदी चाहते हैं कि गुजरात के विकास मॉडल को आगे बढ़ाया जाए जबकि आडवाणी अटल बिहारी वाजपेयी मॉडल को लाना बेहतर समझते हैं। मोदी का कहना है कि पार्टी को जिताऊ उम्मीदवारों पर दांव लगाना चाहिए। आडवाणी कह रहे हैं कि उम्मीदवार जिताऊ तो होना चाहिए पर उसकी छवि साफ होना भी जरूरी है। बैठक से यह संकेत भी मिलता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्देश पर पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने एकजुटता दिखाने का प्रयास किया है। सामूहिक फैसलों की नीति पर अमल करते हुए संसदीय बोर्ड को आगे भी पूरी तरह से चुनावी रणनीति से जोड़े रखा जाएगा। नरेन्द्र मोदी की मिशन 2014 में उत्तर प्रदेश और बिहार दो महत्वपूर्ण राज्य हैं। मोदी के ऑपरेशन उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए खासतौर पर रणनीति तय की जा रही है। कोशिश यह है कि हर वर्गों तक पहुंचा जाए ताकि उन्हें साथ जोड़ा जा सके। 120 लोकसभा सीटों वाले यह दो राज्य मिशन मोदी की धुरी बनेंगे। लक्ष्य यह भी होगा कि सीटों के मामले में कोई भी राज्य अछूता न रहे।

Friday 12 July 2013

उत्तराखंड में तबाही का आंकलन करना मुश्किल है, पुनर्निर्माण में तो सालों लगेंगे

प्रकाशित: 12 जुलाई 2013
चार धाम यात्रा के तहत केदारनाथ धाम के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को अब लम्बा इंतजार करना पड़ेगा। उत्तराखंड में जल प्रलय से तबाह हुए केदारनाथ मंदिर के पुनरुद्धार में कम से कम तीन-चार साल का समय लग सकता है। केंद्रीय संस्कृति मंत्री चन्द्रsश कुमारी कटोच ने कहा कि मंदिर को हुई क्षति का आंकलन करने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग सर्वेक्षण के लिए जल्द उत्तराखंड का दौरा करेगा। हालांकि यह टीम कुछ दिन पूर्व वहां गई थी लेकिन खराब मौसम के कारण वह मंदिर तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने भरोसा दिलाया कि मंदिर को पुराने स्वरूप में लाने के लिए पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग हर सम्भव कोशिश करेगा। केदारनाथ धाम में आई तबाही के चलते जान-माल का कितना नुकसान हुआ है इसका आंकलन करना अभी सम्भव नहीं। अभी तक यह भी सही पता नहीं चल सका कि कितने लोग गायब हैं, लापता हैं? खबर आई है कि सरकार ने फैसला किया है कि अकस्मात  भक्त केदारनाथ मंदिर परिसर में यूं ही सोते रहेंगे क्योंकि सरकार अभी मलबे के भीतर दबे शवों को निकालने की जल्दबाजी में नहीं है। वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श करने के बाद ही यहां से मलबा हटाने पर विचार किया जाएगा। सतह पर मिलने वाले शवों का दाह-संस्कार करने के बाद अब दूसरे चरण में क्षतिग्रस्त भवनों में फंसे शवों को निकालकर उनका दाह-संस्कार किया जाएगा। इसके लिए स्लैब व लोहा काटने की मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद उन शवों को निकाला जाना है जो मलबे में गहरे दबे हैं। बाबा केदार की यात्रा के भरोसे सैकड़ों घरों के चूल्हे जलते थे। अब आपदा ने यह भरोसा तोड़ दिया है। कई घरों में खाने के लाले पड़ गए हैं। 16 और 17 जून को बाबा केदारनाथ के परिसर सहित रामबाड़ा और गौरीपुंड में आई आपदा ने गुप्तकाशी और कालीमठ घाटी के जहां सैकड़ों लोगों को अपनों से छीन लिया वहीं जिन्दा लोगों की जीने की उम्मीदें भी छीन लीं। आजीविका के साधन तबाह हो गए हैं। कई लोगों के सपने पलक झपकते ही खत्म हो गए। गुप्तकाशी व कालीमठ क्षेत्र के अधिकांश गांवों की आजीविका केदारनाथ धाम पर निर्भर थी। पंडिताई से लेकर दुकान और खच्चर के काम में यहां के सैकड़ों लोग वर्षों से जुड़े हुए थे। लेकिन सैलाब ने सब कुछ तबाह कर दिया। तबाही में सैकड़ों की संख्या में बोझ ढोने वाले कुलियों तथा उनके लगभग 2000 खच्चर अभी भी लापता हैं। कुछ गैर सरकारी संगठनों का दावा है कि उनमें से कुछ बाढ़ में बह गए तथा कुछ अभी भी फंसे हुए हैं तथा बचाव करने वाले अधिकारियों की बाट जोह रहे हैं। खच्चरों के जरिये बोझा ढोने वाले समुदाय राज्य सरकार के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं। मोटे अनुमान के आधार पर राज्य में बोझा ढोने वाले लगभग 20,000 लोग हैं जो पर्यटकों को या तो खच्चरों पर या अपनी पीठ पर ढोकर तीर्थस्थलों तक पहुंचाते हैं। 16-17 जून को आए जल प्रलय ने उत्तराखंड को फौरी तौर पर साढे आठ हजार करोड़ रुपए की चपत लगा दी। भारी बारिश व भूस्खलन से चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ में जान-माल की भारी क्षति हुई है। आपदा के बाद इन जनपदों में न तो आवागमन के लिए सड़क मार्ग व पैदल रास्ते बचे हैं और न ही पीने के लिए पानी व उजाले के लिए बिजली। सीढ़ीनुमा खेत-खलिहान में लहरा रही फसलें भी बर्बाद हो गईं। देश-विदेश के श्रद्धालुओं से गुलजार रहने वाले चार धाम यात्रा मार्ग पर दिखाई दे रहा है तो सिर्प तबाही का मंजर व वीरानगी। मरघट में तब्दील हो चुके केदारनाथ धाम, गौरीपुंड व रामबाड़ा में चौतरफा बिखरे पड़े शव महामारी की आशंका बढ़ा रहे हैं। आवागमन के रास्ते बन्द होने व छोटे-बड़े पुल टूटने से अलग-थलग पड़े गांव-कस्बों में भुखमरी जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। चार धाम की यात्रा रुकने से लाखों लोगों की रोटी-रोजी पर संकट आ गया है। चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी के जिलों में तो आर्थिक गतिविधि ठप हुई ही, ऋषिकेश, हरिद्वार और अन्य मैदानी जिलों में भी लोग प्रभावित हुए हैं। ठेली लगाने वाले दुकानदार, ट्रेवल एजेंटों, मंदिरों के पुरोहित, वाहन चालकों, होटल, लांज, धर्मशालाओं, रेस्टोरेंट के संचालकों तक की सालभर की कमाई इसी चार धाम यात्रा पर निर्भर रहती है। एक सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड को पर्यटन से होने वाली आय में से अकेले चार धाम यात्रा का हिस्सा करीब 16 हजार करोड़ का है। अब तक भले ही यात्री सीजन में चार हजार करोड़ की कमाई मान भी ली जाए तो यात्रा रुकने से करीब 12 हजार करोड़ की आर्थिक गतिविधियां ठप होकर रह गई हैं। अगले साल भी अगर यात्रा एक-तिहाई रह जाती है तो नुकसान 20,000 करोड़ तक पहुंच जाएगा। ऐसे में कुछ नुकसान करीब 32,000 करोड़ के आसपास पहुंच सकता है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सर्वे के मुताबिक करीब छह लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चार धाम यात्रा मार्ग पर किसी न किसी रोजगार से जुड़े हैं। केदारनाथ और बद्रीनाथ का दो हजार से ज्यादा पंडा-पुरोहित समाज, 12 हजार से ज्यादा कंडी, घोड़े-खच्चर से जुड़ा तबका, एक हजार से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूह (मंदिर के लिए प्रसाद और यात्रियों के लिए सोविनियर बनाने वाले) इससे प्रभावित हैं। एक बड़ा वर्ग ट्रेवल एजेंटों और लांज, होटल, रेस्तरां से जुड़ा है। यात्रा पर आने वाले सबसे अधिक इसी पर खर्च करते हैं। चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में करीब ढाई हजार लोग पारिवारिक उद्योगों से जुड़े हैं। इन उद्योगों में आटा चक्की से लेकर बुरांस का जूस बनाने का काम होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यात्रा रुट पर करीब पांच हजार होटल, रिसोर्ट और धर्मशालाएं हैं। इसमें हरिद्वार और ऋषिकेश के होटल आदि शामिल नहीं हैं। चिन्तनीय पहलू यह है कि छह माह तक चार धाम मार्ग पर पर्यटन व्यवसाय से जुड़कर रोजी-रोटी कमाने वाले एक लाख 80 हजार लोग बेरोजगार हो गए हैं। तबाही ने सड़क मार्ग, पेयजल लाइनें, विद्युत ट्रांसफार्मर व खम्भों को भी तबाह कर दिया है। 950 करोड़ रुपए की लागत के क्षतिग्रस्त हो चुके राजमार्ग व अन्य सड़कों का पुनर्निर्माण होना है। तीनों जनपदों में एक हजार 418 पेयजल लाइन आपदा से  प्रभावित हुई हैं जिनकी मरम्मत के लिए 284 करोड़ रुपए की दरकार है। कुल 8188 हेक्टेयर कृषि भूमि में से 30 फीसदी खेत-खलिहानों से फसल चौपट हो चुकी है। पशुपालन को भी काफी नुकसान पहुंचा है। तबाही इतनी भयानक हुई कि इसका सही आंकलन शायद ही हो सके। जिस तबाही के आंकलन में इतनी मुश्किलें आ रही हों उसके पुनर्निर्माण में कितना समय और पैसा लगेगा, अनुमान लगाना भी मुश्किल है। उत्तराखंड को सालों-साल लगेंगे इस  प्रलय से उभरने के लिए।
-अनिल नरेन्द्र