Wednesday 10 July 2013

हिन्दू धार्मिक स्थलों के बाद अब बौद्ध नगरी में धमाके


 Published on 10 July, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
विश्व की ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार बोधगया का महाबोधि मंदिर रविवार की सुबह श्रृंखलाबद्ध धमाके से दहल गया। सिलसिलेवार बम विस्फोटों से बेशक कोई बड़ा नुकसान न हुआ हो पर इस हमले का संदेश अधिक क्षुब्ध करने वाला है। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि दिल्ली पुलिस और आईबी ने साफ तौर पर बिहार सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में कहा था कि इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी बोधगया के महाबोधि मंदिर को निशाना बनाने की फिराक में हैं। इसके बावजूद नीतीश सरकार इसे लेकर गम्भीर नहीं थी। पुणे धमाके के आरोप में अक्तूबर 2012 में दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़े आईएम के आतंकियों ने बोधगया में धमाके की साजिश की जानकारी दी थी। गिरफ्तार आतंकियों ने दो सप्ताह तक महाबोधि मंदिर की रेकी किए जाने की भी जानकारी दी थी पर इन सबके बावजूद इतने महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय पूजा स्थल की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध नहीं हो सके। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने माना है कि यह सुरक्षा की बड़ी चूक है। बम धमाकों में ऐतिहासिक महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। भगवान बुद्ध की 80 फीट ऊंची प्रतिमा भी पूरी तरह सुरक्षित है। महाबोधि मंदिर बौद्धों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। 566-486 ईसा पूर्व बौधि वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। मंदिर का निर्माण 260 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने कराया था। जून 2002 में यूनेस्को की ओर से इसे विश्व विरासत का दर्जा मिला था। इसे संयोग कहिए या फिर महात्मा बुद्ध की ज्ञान स्थली की करुणा, जिस वक्त महाबोधि मंदिर में धमाके हुए उस वक्त मंदिर परिसर में काफी कम लोग थे। सुबह के साढ़े पांच बजे थे और दैनिक पूजा की तैयारी चल रही थी। जिस हिसाब से आतंकियों ने मंदिर  परिसर में अपनी पहुंच बना रखी थी उससे साफ है कि अगर मंदिर के भीतर भीड़ होती तो दृश्य कुछ और ही होता। चार विस्फोट मंदिर परिसर के चारों कोनों पर हुए। एक तरह से पूरा परिसर आतंकियों की पहुंच में था। मंदिर के ठीक पीछे भगवान बुद्ध के चरणस्थल हैं और यहीं पर बोधि वृक्ष की पूजा होती है। यहां पहुंचने के पहले सुरक्षाकर्मी की अनुमति लेनी होती है। इतनी सुबह कोई व्यक्ति बौद्ध भिक्षु का लिबास पहनें बगैर आसानी से नहीं आ सकता, क्योंकि यह पर्यटकों का समय नहीं। ऐसा लगता है कि जिसने बम लगाए उसने अपना लिबास कुछ इस तरह से रखा हुआ था कि किसी को शक न हो। मंदिर परिसर में प्रवेश करने वाले लोगों पर नजर रखने के लिए हालांकि 10 कैमरे लगे हुए थे पर सीसीटीवी के बेमानी होने का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उनके फुटेज दो दिनों से अधिक समय तक नहीं रखे जा सकते। यह हमला किसने करवाया और क्यों करवाया इसका जवाब फिलहाल देना मुश्किल है केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं। बोधगया में हुए इसे सिलसिलेवार धमाकों की तय तक पहुंचने में जांच एजेंसियों को वक्त लगेगा लेकिन पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म के इस पवित्र तीर्थस्थल पर इस हमले ने यह जरूर साबित कर दिया कि एक बार फिर हमारी सुरक्षा व्यवस्था फेल हो गई है। म्यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों और बहुसंख्यक बौद्धों के टकराव को लेकर भारत में गत वर्ष अचानक शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला खतरे की घंटी पहले ही बजा चुका था। बीते एक साल के दौरान मुंबई से लेकर जमशेदपुर और दिल्ली तक विरोध प्रदर्शनों ने चिन्ताएं भी पैदा की थीं कि इसकी  परिणति किसी बड़ी हिंसक वारदात के रूप में हो सकती है। बोधगया से जमशेदपुर की दूरी कुछ घंटों की ही है जहां अगस्त 2012 में रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। उसमें तीन पुलिसकर्मी बुरी तरह घायल हुए थे। इन धमाकों के बाद प्रारम्भिक जांच में शक की सूई इंडियन मुजाहिद्दीन के दरभंगा मॉड्यूल पर जा रही है चूंकि हैदराबाद धमाके में भी दरभंगा मॉड्यूल का ही हाथ था। गौरतलब है कि दरभंगा मॉड्यूल इंडियन मुजाहिद्दीन का स्लीपर सेल कहा जाता है। दरअसल सरकार की चिन्ता सितम्बर में बड़ी तादाद में विदेशी श्रद्धालुओं जापान, थाइलैंड और म्यांमार से आने वालों को लेकर है, इसलिए सरकार ने मंदिर की सुरक्षा बहुत जल्द सीआरपीएफ और सीआईएसएफ को देने का फैसला किया है। एक चिन्ता सरकार की खासतौर से बुद्धिस्ट धर्मगुरू दलाई लामा और हिमाचल की धर्मशाला स्थित मठ की सुरक्षा को लेकर भी है। दुख से यह भी स्वीकार करना होगा कि मुंबई हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर बनी संजीदगी पिछले एक साल से गायब हो गई है। रही-सही कसर इस यूपीए सरकार की वोट बैंक नीति ने पूरी कर दी है। सरकार ने आईबी और सीबीआई में तकरार कराकर आईबी अफसरों का मनोबल गिरा दिया है। खुफिया ब्यूरो (आईबी) के विशेष निदेशक राजेन्द्र कुमार के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सेवानिवृत्ति से दो दिन पहले ही गृह सचिव आरके सिंह ने कहा था कि ऐसे में देश की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। उनकी आशंका एक ही हफ्ते में सही साबित हो गई है। सुरक्षा एजेंसियों से बेखौफ इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) आतंकी एक के बाद एक हमला कर रहे हैं। जिस समय इशरत एनकाउंटर के मामले में नीतीश व केंद्र सरकार के लोग नरेन्द्र मोदी व वहां के अफसरों, आईबी अधिकारियों पर दोषारोपण में मशगूल थे उसी समय आतंकी महाबोधि पर हमले की साजिश को अंजाम देने में लगे थे। यह बात राजनीतिक दलों के जहन में क्यों नहीं आती कि देश की अखंडता, अस्मिता एवं सुरक्षा का मामला वोटों की राजनीति से बढ़कर है। मुस्लिम वोटों के चक्कर में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कुछ पार्टियां जिस तरह का घिनौना खेल खेल रही हैं, वह देश के अस्तित्व एवं उसकी सप्रभुता के लिए बहुत गम्भीर चुनौती है। कुछ सालों से भारत के धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। अक्षरधाम, रघुनाथ मंदिर, काशी का संकटमोचन मंदिर, अयोध्या जैसे पवित्र स्थलों के बाद अब बोधगया। यह गम्भीर चिंता की बात है कि आम जनता के बाद इन हैवानों ने सुरक्षाबलों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है और अब संस्कृति की विरासत धार्मिक स्थलों को। इस चुनौती का जवाब हर तरह के राजनीतिक दुराग्रह से परे पूरी सख्ती से दिया जाना चाहिए। हमले की सच्चाई तो जांच से सामने आएगी ही लेकिन ज्यादा जरूरी है कि हमारी नीति-नियंता इसे एक सबक की तरह लेते हुए सुरक्षा व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान दें और आतंक से लड़ने की दृढ़ इच्छा दिखाएं। 

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