Sunday 14 July 2013

मैं राष्ट्रवादी हूं, हिन्दू हूं इसलिए हिन्दू राष्ट्रवादी हूं ः नरेन्द्र मोदी

प्रकाशित: 14 जुलाई 2013
यूं तो गुजरात के मुख्यमंत्री कभी भी विवादों से अछूते नहीं रहे पर जब से वह तीसरी बार गुजरात विधानसभा चुनाव जीते हैं और सेंटर स्टेज पर आए हैं उन्हें लेकर विवाद और बढ़ गए हैं। ताजा विवाद नरेन्द्र मोदी द्वारा रायटर्स समाचार एजेंसी को दिए गए एक इंटरव्यू को लेकर है। पहले बता दें कि उन्होंने इस साक्षात्कार में कहा क्या है। मोदी ने कहा कि वह जन्मजात हिन्दू हैं और उन्हें हिन्दू होने पर गर्व है। उन्होंने कहा कि वह एक राष्ट्रवादी हैं और हिन्दू हैं, इसलिए वह हिन्दू राष्ट्रवादी हैं। हिन्दू राष्ट्रवादी होना कोई गुनाह नहीं। वह देशभक्त हैं और हरेक नागरिक को देशभक्त होना चाहिए। इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने 2002 के दंगों के दौरान सही काम किया था, इस पर मोदी का जवाब था ः बिल्कुल। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) ने मुझे पूरी तरह क्लीन चिट दे दी है। उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात को लेकर खीझ होती है कि लोग उन्हें अभी तक 2002 दंगों से जोड़ते हैं। मोदी ने कहा कि यह लोकतांत्रिक देश है, हर किसी की अपनी राय होती है। मैं दोषी तब महसूस करूं जब मैंने कुछ गलत किया हो। जो कुछ हुआ उस पर आपको दुख है? इस सवाल के जवाब में मोदी बोले, अगर हम कार चला रहे हैं, हम ड्राइवर हैं या कोई कार चला रहा है और हम पीछे बैठे हैं तो भी किसी पपी (कुत्ते के बच्चे) का पहिए के नीचे आना दुखद होगा या नहीं? ऐसा होगा। चाहे मैं मुख्यमंत्री हूं या नहीं, मैं एक इंसान हूं। अगर कभी कुछ भी बुरा होता है तो दुखी होना स्वाभाविक है। मोदी के इस बयान पर हंगामा हो गया है। अधिकतर आलोचकों का कहना था कि मोदी ने कुत्ते के पिल्ले की मिसाल देकर अल्पसंख्यकों का अपमान किया है। उन्होंने अल्पसंख्यकों की तुलना कुत्ते से की है। हालांकि मोदी के बयान को तो तोड़-मरोड़कर देखा जा रहा है पर मैं भी मानता हूं कि बेहतर होता कि वह अपनी बात कहने के लिए कोई और बेहतर मिसाल देते। यह मिसाल अच्छी नहीं रही पर जहां तक दंगों का सवाल है तो यहां पर 2002 के दंगों को तीन-चार श्रेणियों में देखा जाना चाहिए। पहली कि यह एक प्रतिक्रिया स्वरूप दंगा था। चूंकि 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जिन्दा जला दिया गया था उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप दंगे हुए। इन दंगों में कुल 1267 लोग मरे जिनमें 740 मुसलमान थे और 254 हिन्दू थे। दंगों के बाद 27901 गिरफ्तारियां हुईं जिनमें 7656 हिन्दू भी गिरफ्तार किए गए। 249 केसों में सजाएं हुईं। यह सजाएं तब सम्भव हुईं जब राज्य सरकार, प्रशासन ने जांच एजेंसियों, अदालतों की पूरी मदद की। अब आप इसका मुकाबला करिए 1984 के दिल्ली दंगों से। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप सिख विरोधी दंगे भड़के। इन दंगों में 5000 से ऊपर लोग मरे। आज तक किसी दोषी महत्वपूर्ण व्यक्ति को सजा तक नहीं हो सकी। दूसरा पहलू है अदालती। अदालत द्वारा दर्जनों जांच कराई गईं। सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा एक जांच कमेटी एसआईटी बनाई। उस एसआईटी ने मोदी को क्लीन चिट दे दी। फिर आती है बात राजनीतिक मुद्दे की। यूं तो मोदी को डाउन करने के लिए यह मुद्दा उनके प्रतिद्वंद्वी हमेशा जीवित रखेंगे पर अगर गुजरात की जनता की बात करें तो दंगों के बाद भी मोदी तीन विधानसभा चुनाव शानदार तरीके से जीते हैं। इसका मतलब साफ है कि गुजरात की जनता ने उन्हें माफ कर दिया है। इन सबके बावजूद अगर मोदी अफसोस जाहिर कर रहे हैं तो यह अच्छी बात है पर जब एजेंडा राजनीतिक हो तो यह सब बेमायने हैं, मुद्दों को 2014 के लोकसभा चुनाव तक जीवित रखा जाएगा। वैसे एक उदाहरण देता हूं। आप सबने शोले फिल्म तो देखी होगी। उस फिल्म में अगर सबसे ज्यादा कोई चमका तो वह था विलेन अमजद खां। इसकी वजह थी कि तमाम हीरो उस विलेन पर हमला कर रहे थे। इस चक्कर में वह तो फिल्म का हीरो बन गया और तमाम हीरो नीचे आगे गए। कहीं यही किस्सा नरेन्द्र मोदी के साथ भी न हो। जिस तरह से चारों ओर से उन्हें टारगेट किया जा रहा है कहीं यही न हो कि उन्हें फायदा होता रहे और बाकी सब धरे के धरे रह जाएं। शायद यही नरेन्द्र मोदी चाहते भी होंगे। उन पर हमला करने वालों को समझना चाहिए कि वह मोदी की हर बात पर रिएक्ट न करें उन्हें जबरदस्ती हीरो न बनाएं। रही बात हिन्दू होने के गर्व की तो इसमें गलत क्या है। क्या हिन्दू होना इस देश में अपराध है? ऐसा माहौल बना दिया जा रहा है कि बहुसंख्यक तो विलेन बन गए हैं। जब देश का प्रधानमंत्री कहे कि देश की सम्पत्ति, संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है तो वह कौन-सी धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे हैं? भारत में सभी बराबर हैं और सभी को एक ही दृष्टि से देखा जाना चाहिए, एक समान बर्ताव होना चाहिए और संसाधन सभी के लिए बराबर होना चाहिए पर यूपीए सरकार की वोट बैंक की राजनीति ने देश को अंधकार में धकेल दिया है। इशरत जहाँ एनकाउंटर पर तो इतनी बहस हो रही है पर उस अभागी प्रज्ञा ठाकुर की कोई बात नहीं करता जो एनआईए के हैवानों की मार से मरने के कगार पर पहुंच गई है। पिछले तीन-चार साल में उस बेचारी के खिलाफ चार्जशीट तक पेश नहीं हो सकी। उसका कसूर सिर्प यह था कि उसने एक पुरानी मोटर साइकिल किसी वाद में दोषी साबित हुए संदिग्ध को बेची थी। इस सरकार का यह हाल है कि वोट बैंक राजनीति के चलते उसने देश की सबसे बड़ी गुप्तचर एजेंसी आईबी और देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है। भले ही ऐसा करने में देश की सुरक्षा और अखंडता को ही नुकसान क्यों न पहुंच रहा हो? बस किसी भी तरह हिन्दू आतंकवाद साबित करना है। देश के करोड़ों बहुसंख्यक इस सरकार की तुष्टिकरण की नीति से आजिज आ चुके हैं। अगर मोदी यह कहते हैं कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व है तो इसमें गलत क्या है?
-अनिल नरेन्द्र

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