Published on 4 July,
2013
अनिल नरेन्द्र
केदारनाथ घाटी में आया सैलाब तो गुजर गया लेकिन पीछे
छोड़ गया ऐसी तबाही जिसको भरने के लिए पता नहीं कितने वर्ष लगें। भजन-कीर्तन और देव
आराधना से गुलजार रहने वाली इस घाटी में सन्नाटा
छा गया है और श्मशान बन चुकी है। न घंटे-घड़ियाल बज रहे हैं और न ही सुनाई दे रहा है
कोई श्लोक। यदि कहीं से आवाज आ रही है तो वह कराहनें और प्रलापों की। इस सैलाब ने न
सिर्प केदार घाटी को तबाह किया बल्कि यहां रहने वाले स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी भी
तबाह कर दी है। उनकी दुकान और होटल सब बर्बाद हो चुके हैं। घोड़े-खच्चर नदी में बह
चुके हैं। यात्रा सीजन ठप होने से अब पंडिताई का काम भी बन्द हो गया है। सालभर के लिए
परिवार के भरण-पोषण पर अब संकट मंडराने लगे हैं। उत्तराखंड में मची तबाही के गवाह कई
लोग बने हैं। उन्हीं में एक हैं केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित पंडित विष्णु कांत। उनकी
जिन्दगी तो हादसे में बच गई लेकिन बाकी सब कुछ लुट गया। उनकी सारी `खेती' बाढ़ ले गई।
तीर्थ पुरोहितों की भाषा में `खेती' उस बहीखाते को कहते हैं जो उनके हिस्से में आती
है। यह बहीखाता केदारनाथ आने वाले सभी श्रद्धालुओं का डेटा बेस होता है। विष्णु कांत
कहते हैं कि उन्हें इस बात का जिन्दगी भर अफसोस रहेगा कि उन्होंने अपनी जिन्दगी तो
बचा ली लेकिन अपनी खेती नहीं बचा सके। इन बहीखातों में श्रद्धालुओं के 6 पीढ़ी पुराने
आंकड़े थे। यह आंकड़े उनके पूर्वजों ने तैयार किए थे। अगर किसी के पूर्वज केदारनाथ पहले आए होंगे तो इन बहीखातों में
उनका नाम दर्ज होगा। इन बहीखातों में आने वाले का नाम, पता सब कुछ नोट होता था। पहले
केदारनाथ में 307 परिवार थे यानि 307 पुरोहित। फिर उनके बच्चों के बीच बंटवारा हुआ
और अब यहां 600 से ज्यादा पुरोहित हैं। विष्णु बताते हैं कि एक पुरोहित के पास करीब
10-12 किलो के बहीखाते होते हैं। यह पुरोहित साल में छह महीने केदारनाथ में रहते हैं।
14 मई को मंदिर के कपाट खुले तो सभी पुरोहित अपनी खेती के साथ यहां आए। आपदा में जान-माल
के भारी नुकसान के साथ इस खेती का भी ऐसा नुकसान हुआ है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती।
पुरोहितों की बात से बात उठी कि उखीमठ में बाबा केदार की पूजा पर भी विवाद पैदा हो
गया है। शारदा एवं ज्योर्तिपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
ने मुख्यमंत्री उत्तराखंड से केदारनाथ जाने की अनुमति मांगी है। उन्होंने उखीमठ में
शुरू की गई भगवान शंकर की पूजा का विरोध किया है। जगतगुरु शंकराचार्य ने हाल ही में
कनखल स्थित मठ में अखाड़ों और आश्रमों के संतों की बैठक बुलाई। बैठक को जगतगुरु रामानंदाचार्य
हंसदेवाचार्य ने पूर्ण समर्थन प्रदान किया। बैठक में अनेक संतों ने भाग लिया। बैठक
के बाद शंकराचार्य ने बताया कि केदारनाथ मंदिर की सफाई साधु-संतों द्वारा होनी चाहिए।
वह अपने प्रतिनिधि के साथ संतों के एक प्रतिनिधिमंडल को सफाई कार्य पूरा कर पूजा-अर्चना
के लिए केदारनाथ भेजेंगे। सारा विवाद उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान केदारनाथ
की पूजा शुरू होने से हुआ। बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष अनुसूइया
प्रसाद भट्ट ने कहा कि केदारनाथ में स्वयंभू भोले नाथ हैं यहां की पूजा ओंकारेश्वर
मंदिर में कैसे हो सकती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान बीकेटीसी अध्यक्ष गणेश गोंदियाल
केदारनाथ के गर्भगृह में फोटो खिंचवा कर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचा
रहे हैं। उधर केदारनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) भीमा शंकर लिंग के अनुसार आपदा के बाद
केदारनाथ मंदिर अशुद्ध हो गया है और जब तक उसका शुद्धिकरण नहीं हो जाता तब तक वहां
पूजा नहीं की जा सकती। शास्त्राsं के अनुसार पूजा का क्रम टूटना नहीं चाहिए। इसी बात
से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद खफा हैं। उनका दो टूक कहना है कि कपाट खुलने के बाद
रावल को किसी भी स्थिति में मंदिर नहीं छोड़ना चाहिए था। इस पर रावल भीमा शंकर लिंग
का कहना है कि स्वरूपानंद को केदारनाथ की पूजा-अर्चना की परम्पराओं का ज्ञान नहीं है।
केदारनाथ में रावल गुरु गद्दी में विराजमान रहते हैं और रावल के पांच शिष्यों में से
एक केदारनाथ में पूजा करता आया है। उन्होंने केदारनाथ में पूजा व व्यवस्थाओं को लेकर
शंकराचार्य स्वरूपानंद के बयान को बेतुका करार देते हुए कहा कि बढ़ती उम्र के साथ वह बिना सोचे-समझे कुछ भी बयानबाजी कर रहे हैं। रविवार
को हरिद्वार में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद की अध्यक्षता में हुई संतों की बैठक
में रावल को हटाने के साथ ही मंदिर समिति का अध्यक्ष भी संतों के बीच बनाने की मांग
का प्रस्ताव पारित किया गया था। रावल ने प्रतिक्रिया स्वरूप कहा कि वह केदारनाथ के
324वें रावल हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर समिति अध्यक्ष और उन्हें बर्खास्त करने की
मांग औचित्यहीन है। जब तक मंदिर की सफाई और शुद्धिकरण नहीं हो जाता तब तक वहां पूजा
सम्भव नहीं। संतों ने केदारनाथ में शवों का अंतिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाज से होने
की मांग भी की है। रासायनिक प्रक्रिया से कोई सहमत नहीं है। रविवार को केदारनाथ से
लौटे तीन चिकित्सकों ने क्षेत्र में तमाम गतिविधियों को बन्द करने का सुझाव देकर हालात
की हकीकतों से सरकार को अवगत करा दिया। बीते एक सप्ताह में मात्र 36 शवों का ही दाह-संस्कार
किया जा सका है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि शवों के निस्तारण का एक मात्र विकल्प रासायनिक
प्रक्रिया है। डीएनए सेम्पल लेने के लिए गए तीनों डाक्टर वहां से बीमार होकर लौटे हैं।
परिस्थितियों की गम्भीरता का अंदाजा मुख्यमंत्री के उस बयान से भी हो जाता है कि मृतकों
का असली आंकड़ा मिलना मुश्किल है। अभी तक केदारनाथ के अलावा गौरीपुंड, रामबाड़ा, जंगल
चट्टी, भीम चट्टी में पड़े शवों की गिनती तक नहीं हो पाई है। संक्रमण की आशंका और मौसम
विभाग की ताजा चेतावनी कि बारिश फिर से आ सकती है, शवों का तत्काल निस्तारण अत्यंत
जरूरी हो गया है। स्वास्थ्य महानिदेशालय के संयुक्त निदेशक व पब्लिक हेल्थ एनेलिस्ट
डॉ. जोशी ने बताया कि रासायनिक प्रक्रिया ही एक मात्र ऐसा रास्ता है, जिसमें आसानी
से शवों का निस्तारण किया जा सकता है। केदारनाथ घाटी में अभी भी बहुत से काम बचे हुए
हैं। अब सारा ध्यान घाटी में लगना चाहिए। शवों को हटाना, उनका अंतिम संस्कार करना,
मंदिर परिसर की सफाई व शुद्धिकरण, वहां पूजा-अर्चना फिर आरम्भ करना, यह सब जल्द होना
चाहिए। अगर फिर से तेज बारिश आती है तो यह काम और भी मुश्किल हो जाएगा। युद्ध स्तर
पर कार्रवाई की आवश्यकता है। हर-हर महादेव।
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