Friday 19 July 2013

आईबी और सीबीआई को आमने-सामने करना देश की सुरक्षा से खिलवाड़ है

प्रकाशित: 19 जुलाई 2013
जिस बात का डर था वही हो रही है। राजनीतिक दांव-पेंच में फंसकर हलकान हुई खुफिया एजेंसी आईबी अब खुफियासूचनाएं देने से तौबा कर रही है। इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले में आईबी के विशेष निदेशक राजेन्द्र कुमार सहित कुछअफसरों को सीबीआई द्वारा निशाने पर लेने और केंद्र सरकार के उसके बचाव में पीछे हटने से आईबी अधिकारी काफीमायूस हैं। इसी के चलते आईबी ने आतंकी गतिविधियों से जुड़ी अहम खुफिया जानकारी साझा करना बन्द कर दिया है। खतरे से संबंधित केवल वही सूचना देती है जो अन्य एजेंसियों के माध्यम से मल्टी एजेंसी सेल (मैक)में आतीहैं। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पिछले एक महीने से उन्हें आईबी की खुफिया चेतावनी रिपोर्ट नहींमिली है। आईबी हर दिन पूरे देश में हुई घटनाओं की रिपोर्ट गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजतीहै। इसके अलावा वह देश में अशांति, उपद्रव या आतंकी हमले की साजिशों की खुफिया रिपोर्ट अलग से देती है। इसीखुफिया रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा एजेंसियों या राज्य सरकारों को जरूरी कदम उठाने के लिए सचेत किया जाता है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए आईबी की खुफिया रिपोर्ट बहुत अहमहै। इसके बिना आतंकी साजिशों को नाकाम करना मुश्किल है। आईबी और सीबीआई विवाद के पीछे है इशरत जहाँ। सीबीआई दावा कर रही है कि आईबी ने इशरत जहाँ को आतंकी बताया जिसकी वजह से उसको मारा गया, यहरिपोर्ट गलत थी। आईबी अपनी बात पर अडिग है और केंद्रीय गृहमंत्री इशरत के आतंकी रिश्तों की जानकारी देने से मनाकर रहे हैं। इशरत जहाँ के आतंकियों से रिश्ते के विवाद के बीच गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि वे इसकाखुलासा नहीं कर सकते हैं। इसकी वजह अमेरिका के साथ वह करार है जिसके तहतसरकार मुंबई के आतंकी हमले केमुख्य अभियुक्त डेविड हेडली से मिली कोई सूचना सार्वजनिक नहीं कर सकती है। वहीं पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई भीअपने 2011 के बयान से बदल गए हैं। पद पर रहते हुए इशरत को लश्कर का आतंकी बताने वाले पिल्लई अब उसे संदेहका लाभ देने की बात कह रहे हैं। ताजा घटनाक्रम में इशरत के आतंकी होने के बारे में हेडली के बयान को छुपाने कीएनआईए की कोशिशों की आईबी ने हवा निकाल दी है। आईबी द्वारा लीक किए गए 13 अक्तूबर 2010 को एनआईए केनोट के अनुसार 2005 में लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेशन हेड जाकीउर-रहमान लखवी को मुजामिल से मिलाया था। लखवीने मुजामिल पर तर्प कसते हुए कहा था कि यह लश्कर-ए-तैयबा के बड़े कमांडर हैं जिसके सारे ऑपरेशन फेल हो गए औरइशरत जहाँ मॉड्यूल उनमें एक थी। एनआईए का कोई भी अधिकारी इस नोट के बारे में बोलने को तैयार नहीं है।मंगलवार को गुवाहाटी में पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई अपने पुराने बयान से पलट गए। इसके अनुसार इशरत केआतंकी होने का कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन साथ मारे गए तीन लोग लश्कर-ए-तैयबा से प्रशिक्षित आतंकी थे औरइशरत उनके साथ देश के कई भागों में गई थी। उन्होंने आशंका जताई कि तीनों आतंकी इशरत को कवच के रूप मेंइस्तेमाल कर रहे थे। इशरत के आतंकी होने की बात को टाला नहीं जा सकता और इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। दो सवाल हैं, क्या इशरत आतंकी थी? दूसरा कि क्या मुठभेड़ फर्जी थी? हम फर्जी मुठभेड़ पर तो जोर दे रहे हैं परइशरत की असलियत पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं। इसी गृह मंत्रालय ने कथित मुठभेड़ में मारी गई इशरत औरउसके तीन साथियों को लश्कर का आतंकी बताया था। गुजरात हाई कोर्ट में इस संबंध में बाकायदा एक हलफनामा भीदिया गया था। लेकिन राजनीतिक कारणों से दो महीने बाद ही गृह मंत्रालय ने हलफनामा बदलकर दोबारा दाखिल कियाजिसमें आईबी की जानकारी को आधी-अधूरी बताकर गृह मंत्रालय इशरत जहाँ को आतंकी बताने से मुकर गया  औरआईबी पर गलत जानकारी देने का आरोप लगा दिया। बताया जा रहा है कि पिछले एक महीने से गृह मंत्रालय को आईबीकी खुफिया चेतावनियों की रिपोर्ट नहीं मिली है। ऐसे में न तो आतंकी साजिशों का पूर्वानुमान हो सकता है और न हीउनसे निपटने की तैयारी। इसलिए आईबी का मनोबल बनाए रखने के लिए देशहित में सरकार को तुरन्त कदम उठानेहोंगे। सीबीआई की भूमिका पर तो पहले भी अंगुलियां उठी हैं कि वह सरकार के इशारे पर काम करती है तो क्या यहमान लिया जाए कि सरकार अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे करने के लिए देशहित से भी समझौता करने को तैयार है?अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए इस बार आईबी के खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है? अगर ऐसा हैतो यह सरकार देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है।

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