Friday, 5 July 2013

अलविदा तेजेन्द्र खन्ना, स्वागत नजीब जंग


 Published on 5 July, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
अलविदा तेजेन्द्र खन्ना जी और स्वागतम नजीब जंग साहब। दिल्ली के नए उपराज्यपाल नजीब जंग की नियुक्ति हो गई है। आजादी के 66 वर्ष बाद दिल्ली के उच्चतम पद पर दिल्ली के किसी मूल निवासी को नियुक्त किया गया है। नजीब जंग की मां आज भी दरियागंज में गोलचा सिनेमा के पास रहती हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल पद पर रहते हुए श्री तेजेन्द्र खन्ना ने छह साल के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। अपने साफगोई और कभी-कभी सरकार के खिलाफ लिए फैसलों की वजह से उनके कभी भी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से संबंध अच्छे नहीं रहे। उनके कई फैसले यादगार बन गए हैं। यमुना के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में निर्माण पर प्रतिबंध लगाना और अवैध निर्माण के खिलाफ स्पेशल टास्क फोर्स बनाने का निर्णय उनके सख्त प्रशासक का परिचायक बन गया। तेजेन्द्र खन्ना ने 9 अप्रैल 2007 को पदभार सम्भाला और उनका कार्यकाल अब तक के किसी उपराज्यपाल से ज्यादा लम्बा बन गया। श्री तेजेन्द्र खन्ना मिलनसार थे और सब की बात सुनते थे। उम्मीद की जाती है कि नजीब जंग साहब का स्वाभाव भी उनके जैसा हो। चुनावी साल में दिल्ली के उपराज्यपाल पद पर जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति और पूर्व आईएएस अधिकारी नजीब जंग की नियुक्ति का सरकार का फैसला भले ही प्रशासनिक हो लेकिन इसके राजनैतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। इस साल के अंत में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस द्वारा मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में खड़ा करने की हर सम्भव कोशिश की जा रही है। बात चाहे चुनावी रणनीति से जुड़ी हो या संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण साफ तौर पर देखा जा रहा है। हाल ही में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी के रूप में तैनात किए गए शकील अहमद और अब दिल्ली के उपराज्यपाल। जानकारों की राय में पिछले साल हुए निगम चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए मुस्लिमों का मोहभंग की हकीकत को लगता है कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया है। दिल्ली में 70 में से करीब आधा दर्जन सीटों पर मुसलमानों की आबादी निर्णायक है। श्री नजीब जंग के सामने वैसे तो कई चुनौतियां हैं पर इनमें से प्रमुख हैं दिल्ली के हर कोने में एक जैसा विकास कराना, इसके लिए स्थानीय स्तर पर प्लान बनाए जाने की योजना बनी है। लेकिन मास्टर प्लान की तर्ज पर अब तक दिल्ली के 272 वार्ड्स में से केवल 33 वार्डों के ही प्लान बनाने के लिए सलाहकार नियुक्त हो सके हैं। दिल्ली की कानून व्यवस्था सीधे दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में होनी चाहिए या नहीं इस पर नए उपराज्यपाल को फैसला करना होगा। वर्तमान में यह मामला उपराज्यपाल से जुड़ता है। दिल्ली में कानून व्यवस्था सुधारना जंग साहब की प्राथमिकता होनी चाहिए। आम जनता से संबंधित मामलों की सीधी सुनवाई के लिए नजीब जंग साहब का दरबार हमेशा खुला होना चाहिए। चूंकि इनके मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अच्छे संबंध हैं। हमें नहीं लगता कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपल में कोई टकराव की स्थिति बने। नए उपराज्यपाल महोदय को यह याद रखना चाहिए कि वह किसी वर्ग विशेष, पार्टी विशेष के उपराज्यपाल नहीं, पूरी दिल्ली के उपराज्यपाल हैं। हमें खुशी है कि जंग साहब ने खुद ही कहा है कि मैं सिर्प मुसलमानों का नुमाइंदा नहीं।

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