Saturday, 13 July 2013

तहरीर चौक ने कराई मिस्र में दूसरी क्रांति

प्रकाशित: 13 जुलाई 2013
मिस्र का तहरीर चौक शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अभी पहली क्रांति का खुमार टूटा भी नहीं था कि तहरीर चौक पर दूसरा इंकलाब हो गया है। जब मिस्र की सेना ने मोहम्मद मुर्सी को राष्ट्रपति पद से हटाने की घोषणा की तो काहिरा के तहरीर चौक पर भारी तादाद में जमा लोगों ने बेहद खुशी मनाई। देश के दूसरे हिस्सों में भी बहुत से लोगों ने जश्न मनाया। एक साल पहले मिस्र में उठे लोकतांत्रिक उफान में तानाशाह हुस्नी मुबारक की न केवल सत्ता ही चली गई पर वह जेल में अब अपनी जिन्दगी का शेष समय बिता रहे हैं। तहरीर चौक पर तब ऐसा ही जन सैलाब उमड़ा था जिसके साथ फौज की ताकत जुड़ते ही मिस्र तानाशाही के चंगुल से आजाद हो गया। इसके बाद पहली बार वर्षों बाद लोकतांत्रिक विधि से देश के राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता सम्भाली। मिस्र की 80 साल की कट्टरपंथी पार्टी `मुस्लिम ब्रदरहुड' से मुर्सी के सामने वैसे तो चुनौतियों के पहाड़ थे लेकिन सबसे जरूरी चुनौती थी देश की बदहाल अर्थव्यवस्था को तत्काल पटरी पर लाना। एक सर्वमान्य संविधान भी प्राथमिकता थी। देश की विभिन्न विचारधाराओं को साथ लेकर चलाने के लिए एक राष्ट्रीय प्लेटफार्म तैयार करना था। मुर्सी से उम्मीद थी कि वह राष्ट्रीय एजेंडे पर मुस्लिम ब्रदरहुड का कट्टरपंथी एजेंडा हावी नहीं होने देंगे। मुर्सी को राष्ट्रपति के तौर पर एक साल भी नहीं हुआ कि उनके खिलाफ बहुत बड़ी संख्या में  लोग सड़कों पर उतर आए। व्यापक जन असंतोष की यह अभिव्यक्ति मुर्सी की सत्ता के लिए चुनौती भी थी और सवाल भी। इसलिए उन्हें हटाने की सैनिक कार्रवाई पर दुनिया भर में वैसी तीखी प्रक्रिया नहीं हुई जैसी तख्तापलट को लेकर आमतौर पर होती है। लेकिन सैनिक हस्तक्षेप को लेकर तमाम आशंकाएं भी पैदा हुई हैं। क्या मुर्सी को इस तरह हटाने के पीछे वाकई ही लोगों का विश्वास खोना था या सेना ने शासन पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए जन आक्रोश के तर्प का बहाना किया? यही सेना थी जिसने तीन दशक तक हुस्नी मुबारक की तानाशाही का साथ दिया था। जब सेना को लगा कि पानी सिर तक आ चुका है तब जाकर उसने मुबारक से किनारा किया। नौ करोड़ की आबादी वाले मिस्र में महंगाई और तेल की किल्लत ने जीना हराम कर रखा है। विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली है और देश की मुद्रा की कीमत खाई में गिरती जा रही है। बिजली कटौती से घरों में अंधेरा है तो लोगों को रोजमर्रा की जरूरी चीजों के लिए भटकना पड़ रहा है। बेरोजगारी की बढ़ती फौज देश के आगे गम्भीर समस्या पैदा कर रही है। मुर्सी यह भी भूल गए कि एक साल पहले उन्होंने इन्हीं आवाजों को देश की तकदीर कहा था। मिस्र और मध्य-पूर्व एशिया के लिए एक स्थायी सरकार और शांतिपूर्ण माहौल अत्यंत आवश्यक है ताकि उसकी आर्थिक परेशानियां दूर हो सकें और क्षेत्र में पहले से ही आर्थिक स्थिति और ज्यादा अस्थिर न हो जाए। मुर्सी के पतन का असर कई पड़ोसी देशों पर भी पड़ सकता है। इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम ब्रदरहुड शांति से अब बैठेगा। कहीं मिस्र में गृहयुद्ध ही न हो जाए।
-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment