Wednesday 30 August 2017

अगस्त का महीना बीजेपी पर भारी रहा

सवा तीन साल में अगस्त 2017 शायद पहला महीना होगा जब टीवी चैनलों पर भाजपा के प्रवक्ता ठंडे-मीठे दिखे, तो कई बार तो दिखे ही नहीं। नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने के बाद से अब तक के वाकये में सिर्फ दो महीने सत्ता पक्ष के लिए अशुभ रहे हैं। फरवरी 2015 और नवंबर 2015 में जब पार्टी दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारी। मगर जल्द ही इन दोनों पराजयों को बुरे सपने की तरह भुलाकर बीजेपी तेज गति से आगे बढ़ी। पहली नजर में अलोकप्रिय दिखने वाले नोटबंदी के फैसले को मोदी के करिश्मे में बदल दिया गया और सर्जिकल स्ट्राइक का सीमा पार न जाने क्या असर हुआ, लेकिन देश के भीतर पाटी  का आत्मविश्वास जरूर बढ़ा। यह अलग बात है कि नोटबंदी का ब्यौरा देश को आजतक नहीं दिया गया। 2017 में यूपी, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर में पाटी सत्ता में आई और 2019 की जीत पक्की मानकर 2024 के चुनाव की चर्चा होने लगी। फिर आया अगस्त का महीना। पहला झटका पाटी को हरियाणा में लगा जब पार्टी के अध्यक्ष सुभाष बराला के पुत्र विकास बराला ने खासी किरकिरी कराई, आखिर उनकी गिरफ्तारी हुई लेकिन छवि का जितना नुकसान होना था हो गया। अभी मुश्किल से दो दिन बीते होंगे कि गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में बच्चों की भयावह मौत की खबर आ गई और इसके बाद सरकार को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा और बच्चों के मरने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। गोरखपुर में बच्चों की मौत पहले भी होती रही है, लेकिन इस बार बीजेपी इन आरोपों को झुठला नहीं सकी कि उसका रवैया इस मामले में गैर-जिम्मेदाराना और असंवेदनशील था। बीजेपी को तीसरा बड़ा झटका अगस्त महीने में पहले दस दिन के भीतर ही लग गया जब पाटी ने गुजरात से कांग्रेस के नेता अहमद पटेल को राज्यसभा में जाने से रोकने के लिए असफल एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। ये बात किसी से छिपी नहीं थी कि बीजेपी अमित शाह और स्मृति ईरानी को जिताने से ज्यादा अहमद पटेल को हराने के लिए दम लगा रही थी। भारी हंगामे और देर रात चले नाटक के बाद चुनाव आयोग ने अहमद पटेल को विजेता घोfिषत कर दिया और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। अगस्त महीने ने न जाने क्यों बीजेपी की गाड़ी पटरी से उतारने की ठान ली थी। खतौली की रेल दुर्घटना और उसके बाद सामने आए तथ्यों ने पाटी प्रवक्ताओं को मुसीबत में डाल दिया, पता चला कि पटरी पर काम चल रहा था और ड्राइवर को इसकी सूचना नहीं दी गई थी। शिवसेना से बीजेपी में आए सुरेश प्रभु ने ट्विटर के जरिए कार्यकुशल रेल मंत्री की जो छवि बनाई थी वो पूरी तरह से धूमिल हो गई जब चार दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश के औरैया में कैफियत एक्सप्रेस के 10 डिब्बे पटरी से उतर गए। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन एके मित्तल के इस्तीफा दे देने के बाद  प्रभु को भी इस्तीफा देने की पेशकश करनी पड़ी। उन्होंने इस्तीफा तो नहीं दिया, लेकिन लंबी चौड़ी भूमिका के साथ इस्तीफे की पेशकश की जिस पर पीएम मोदी ने कहा कि अभी इंतजार करिए। लेकिन बुलेट ट्रेन चलाने का दावा करने वाली सरकार की छवि पर जितना बड़ा धब्बा लगना था, वो तो लग ही गया। फिर आया राम रहीम का प्रकरण। राम रहीम को दोषी करार दिए जाने से पहले जमा हुई भीड़, उसके बाद भड़की हिंसा, मनोहर लाल खट्टर सरकार का रवैया और भारी दबाव के बावजूद कानून व्यवस्था बिगड़ने से बीजेपी की छवि को भारी धक्का लगा। बाबा का आशीर्वाद पाने के इच्छुक लगभग सभी राजनीतिक दल रहे हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बाबा ने बीजेपी को घोfिषत तौर पर समर्थन दिया था, इसलिए बीजेपी आसानी से पिंड नहीं छुड़ा पा रही है। अंत होते-होते सियासी तौर पर पटना के गांधी मैदान में 18 विपक्षी दलों की महारैली एक ऐसी घटना है जिसने बीजेपी को थोड़ा चिंतित जरूर किया होगा। इतना ही नहीं दिल्ली में अगले चुनाव में केजरीवाल के सफाए का दावा करने वाली बीजेपी को विधानसभा उपचुनाव में बवाना सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है। इस महीने कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे बीजेपी की छवि को गहरा धक्का पहुंचा है।

-अनिल नरेन्द्र

सिर्फ 4 महीने में केजरीवाल ने बाजी पलट दी


चार महीने पहले हुए एमसीडी चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाने वाली आम आदमी पाटी ने बवाना विधानसभा उपचुनाव में शानदार जीत हासिल कर बाजी पलट दी। पिछले कुछ चुनावों में जीत से दूर रही आम आदमी पाटी के पॉजिटिव कैंपेन और विकास के मुद्दे पर हुए इस चुनाव के बाद पाटी कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ना स्वभाविक ही है। बवाना में बीजेपी को अब तक की सबसे बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। 1998 से लेकर अब तक कभी भी बीजेपी का वोट शेयर 30 फीसदी से कम नहीं रहा। बवाना उपचुनाव में बीजेपी के परंपरागत वोटर्स टूट गए और  बीजेपी का वोट प्रतिशत गिरकर 27.2 फीसदी रह गया। यह आलम तब है, जब करीब 4 महीने पहले ही बीजेपी ने एमसीडी चुनाव जीता था और 36.18 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। कुछ महीने के अंदर ही बीजेपी का वोट प्रतिशत उसके हाथों से निकल गया। दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि अध्यक्ष होने के नाते वह हार की जिम्मेदारी लेते हैं। बवाना उपचुनाव में आप उम्मीदवार रामचंद्र ने बीजेपी के वेद प्रकाश को 24,052 वोटो के बड़े अंतर से करारी शिकस्त दी। कांग्रेस पिछले कई चुनावों की तरह इस बार भी तीसरे नंबर पर रही। 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 7.87 फीसदी वोट मिले थे। बवाना में यह वोट शेयर बढ़कर अब 24.21 फीसदी हो गया है। यह कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर 4 महीनों में ही ऐसे कौन से समीकरण बनें कि आप ने बाजी अपने पक्ष में की और शानदार बहुमत के साथ जीत हासिल की। दरअसल जनता ने इस चुनाव के जरिए तोड़-फोड़ की राजनीति को करारा जवाब दिया है। आप की टिकट पर 2015 में जीत हासिल करने वाले वेद प्रकाश का इस्तीफा देकर भाजपा में जाना लोगों को पसंद नहीं आया। फिर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जी-जान से बवाना प्रचार में जुटना भी रंग लाया। आप का पॉजिटिव कैंपेन कर विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ना पाटी के पक्ष में गया। बवाना चुनाव में नतीजों का वैसे आप सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता, क्योंकि पाटी के 65 विधायक हैं। फिर भी आप के लिए यह जीत बहुत जरूरी थी। पंजाब, गोवा के बाद दिल्ली में राजौरी गार्डन उपचुनाव और एमसीडी चुनाव में पाटी को सफलता नहीं मिली थी। कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी बुरा असर पड़ा। पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने भी केजरीवाल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। दावे किए जा रहे थे कि कई विधायक नाराज हैं और बवाना उपचुनाव के बाद वे भी कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। भाजपा हाईकमान को आत्ममंथन करने की जरूरत है कि पाटी क्यों हारी।


From Rockstar, Robinhood, Messenger of God to Prisoner Number 1997

Dera Sacha SaudaChief Gurmeet Ram Rahim Singh was convicted to 20 years imprisonment in the case of rape with Sadhvis. In a 15-year-old case, the CBI court of Panchkula ruled. On Friday moments after Ram Rahim was pronounced guilty minutes later, the Dera followers became violent in six states including Punjab and Haryana. The highest damage caused in Panchkula. One and a half lakh Dera supporters gathered in the city created havoc for three hours on the streets of Panchkula. So far, 36 people have been killed and more than 250 injured in the raging violence. Why all this happened? Who is this Ram Rahim? Let's discuss these. Dera Sacha Sauda chief Gurmeet Ram Rahim Singh in north-western India is a big force. Ram Rahim extended the legacy of Shah Satnam Singh Mastana, founder of Dera Sacha Sauda in 1948. Gurmit Ram Rahim Singh, who assumed the title of Dera in 1990, is now a film star, fond of cars, successful entrepreneur and property owner in India and abroad. Dera Sacha Sauda is getting both name and slander. Apart from Sadhvi's sexual exploitation and two murders, Gurmeet Ram Rahim has been accused of making 400 sadhus impotent.On the social service front, Dera has done a lot of work. Satnamji Green and Welfare Force is an army of Derawhich helps in the emergence of disaster and accidents. Dera supporters are said to be in millions. Punjab is estimated to be 70 lakh, Haryana 80 lakh, Rajasthan 50 lakh, Uttar Pradesh 35 lakh and in Delhi 20 lakh followers are reported. After all, what is the reason that despite his conviction in a serious crime like rape, his supporters are not ready to accept that their master has done something wrong? Firstly, the when expectations of the people are not fulfilled in the society, they take shelter in these Dera’s. Secondly, they consider the DeraOperator or Head to be Superman or Super Human Being. They think they cannot make mistakes. People think that the allegations made against their father are not just against Baba, but on our society. They think they have to save their society, their camps from these allegations. The belief of the people's in camp is changed into ideology. They think that what we are doing is for the truth. When people's problems are not resolved properly they adopt a religious or spiritual path. They think that the chief of the camp is the Messiah. Because of a large following Dera Sacha Saudahas direct interference in  Haryana and Punjab politics. Dera Sacha Sauda has also kept its political wing in its place. Dera followers on three dozen assembly seats in nine districts of Haryana have a great potential to play a decisive role in the defeat and victory of any party. In the last assembly elections, the BJP won over only two dozen seats with the help of Dera. Following the elections, the grant given to by Haryana's Sports Minister Anil Vij and Education Minister Ram Vilas Sharma for Dera Sacha Sauda has also been in the discussion. During the assembly elections held in Punjab, the Dera Sacha Sauda openly supported the BJP-Akali alliance. Having said that today due to the struggle of three people, Ram Rahim was renamed as prisoner number 1997, to whomthe government and the political parties used to bow down. For the first time in 2002, a woman wrote a letter of three pages to PM Atal Bihari Vajpayee, accusing Ram Rahim of raping her in 1999. Annoyed with the misbehavior with his sister, DeraManagement Committee member Ranjit Singh raised the acts of Ram Rahim. Ranjit Singh, living in KhanpurKoliya village of Kurukshetra, got a letter written from his sister. He sent it to the prime minister and the High Court. Journalist Ram Chandra Chattrapati, who published the Entire Truth newspaper, published the letter. He was shot dead hitting him with five bullets within a few days. After this, discovering that the letter was written by Bhai Ranjit, the Dera supporters killed him on July 10, 2002. Supreme Court handed over investigation to CBI in 2005. Many investigation officers changed in CBI from 2005 to 2006. Satish Dagar got the case. Dagar was the officer who searched for the victim women and prepared them for testimony. He didn't bow down to any pressure. During the hearing, supporters of Ram Rahim were intimidating these people. On the day Ram Rahim was to be heard, a temporary court was set up in the SP office. Supporters were outside the camp. In the CBI court in Panchkula, Haryana, JudgeJagdeep Singh ruled Ram Rahim guilty of the rapes. When he was reading the decision Ram Rahim stood with folded hands pleading for mecry. As soon as proved guilty, he started crying. Given the sensitivity of the judgment, the court directed to close the phones in the premises. No channel of the official press release will break the news so that no rumour and false news spreads. Singh came to headlines in September 2016, when he saved the lives of four people injured in the accident. We cannot ignore those sadhwi’swho have testified and stalled despite all kinds of pressures. On easing the control of the pitchers, the fingers are being raised on the Manohar Khattar government of Haryana today. Panchkula violence has raised many questions. It is important to analyze this entire matter closely. It had no effect on implementation of Section 144 in many districts including Panchkula. The prime question is raised if the government was aware of the seriousness of the issue why did it allow Dera followers in such large numbers in Panchkula? Why did the government take it seriously despite the aggressive statements given to the reporters by the Derasupporters? Jat reservation movement in Rohtak during 2016 had also taken the similar form. Just within four hours this violence spread not only in Rohtak but the entire Haryana state was ablaze. There was neither the police nor any law and order. Despite several reminders the Haryana Government didn't learn a lesson and gave time and opportunity to Dera followers to increase their numbers in Panchkula. Intelligence totally failed. Coming of supporters in such a large numbers, carrying weapons, sticks and petrol bombs, if it is notan  intelligence failure then what? Why the army was not deployed before and after the riots? Why did the people stay in parks and roads despite the section 144 being imposed? Punjab and Haryana High Court rebuked the Haryana government blaming for the violence after convicting Ram Rahim. Annoyed with the arson and sabotage, the Court said that the government left the state to be burnt surrendering before the Dera followers for the sake of political gain and vote bank. The High Court said that instead of taking the responsibility the Commissioner of Panchkula was made a scapegoat and suspended. The decision of imposing section 144 in Panchkula was drafted in a wrong manner; this is seemed to be done intentionally and not by mistake. It doesn't happen without any political pressure.  We know if we go deep in the matter, many faces will be exposed. We know that the political decision paralyzed the administrative decision, for which not only the city but the entire state paid.

-          Anil Narendra 

कश्मीर में आतंकवाद की कीमत ः 46 हजार मौतें-सवा लाख हमले

उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर में उस समय तक सार्थक बातचीत संभव नहीं है जब तक घाटी में हिंसा नहीं थमती। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने कहाöकिससे बातचीत की जाए? शीर्ष अदालत जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ बार एसोसिएशन कार्यकारी सदस्य की अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने बार निकाय की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें इस आधार पर पैलेट गन के उपयोग पर रोक लगाने की मांग की गई थी कि केंद्र में पैलेट गन का विकल्प तलाशने के लिए पहले ही विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है। न्यायालय ने कहा कि मामले पर फैसले के दो तरीके हैं। या तो पार्टियां एक साथ बैठें और कोई समाधान निकालें या फिर अदालत इस मामले में फैसला करे। न्यायालय ने कहा कि बार एक जिम्मेदार और सम्मानित निकाय है तथा उसे कोई समाधान ढूंढने में मदद करनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर ने आतंकवाद के कारण बहुत भारी नुकसान उठाया है। कश्मीर में फैले आतंकवाद की कीमत है 46 हजार लाशें। बकौल गैर-सरकारी कीमत के सवा लाख लाशें। इनमें सभी की लाशें शामिल हैं। आतंकवाद मरने वालों में मतभेद नहीं करता। नतीजतन सवा लाख हमलों को सहन करने वाली कश्मीर घाटी इन 29 सालों में सवा लाख लोगों का लहू बहता देख चुकी है। अगर आधिकारिक आंकड़ों को ही लें तो मरने वाले 46 हजार लोगों में से जितने आतंकी मारे गए हैं उनमें से कुछेक ही कम आम नागरिक भी थे तो मरने वालों में सबसे अधिक वे ही मुसलमान मारे गए जिन्होंने जेहाद की खातिर कश्मीर में आतंकवाद को छेड़ रखा है। बकौल आधिकारिक आंकड़ों के इस महीने 21 तारीख तक कश्मीर में 29 सालों का अंतराल 46 हजार लोगों को लील गया। इनमें 24 हजार आतंकी भी शामिल हैं जिन्हें विभिन्न मुठभेड़ों में सुरक्षा बलों ने इसलिए मार गिराया क्योंकि उन्होंने उन्हें मजबूर किया कि वे उनकी जानें लें। हालांकि इन मरने वाले आतंकियों में से एक अच्छी-खासी संख्या सीमाओं पर ही मारी गई। एक रोचक तथ्य यह भी है कि कश्मीर में तथाकथित जेहाद और आजादी की लड़ाई को आरंभ करने वाले ये कश्मीरी नागरिक और बाद में जो मुठभेड़ों में मरने लगे वे हैं पाकिस्तानी और अफगानी नागरिक। यह कश्मीर में आतंकवाद को आगे बढ़ाने के लिए ठेका लेकर आए हुए हैं। 24 हजार आतंकियों में 11 हजार विदेशी आतंकवादी शामिल हैं। हमारे सुरक्षा बलों को भी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आंकड़े बताते हैं कि 29 साल का अरसा सात हजार सुरक्षाकर्मियों को लील गया। अर्थात अगर पांच आतंकी मारे गए तो उनके बदले में एक सुरक्षाकर्मी की जान कश्मीर में गई। आप ताजा हमले को ही ले लीजिए। शनिवार को तड़के पुलवामा में तीन आतंकियों ने पुलिस लाइंस पर जबरदस्त हमला किया। अंदर घुसे आतंकियों को निकालने के लिए चले आपरेशन में हमारे आठ जवान शहीद हो गए जबकि पांच घायल हैं। करीब 15 घंटे चली मुठभेड़ में तीनों आतंकियों को मार गिराया गया। सीआरपीएफ के अनुसार तड़के पौने चार बजे जिला पुलिस कॉम्प्लेक्स पर ग्रेनेड फेंकते हुए आतंकी अंदर घुस गए। वहां से यह लोग पुलिस लाइन के तीन ब्लॉक्स में घुसे। छिपकर फायरिंग शुरू कर दी। यहां बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों के परिवार रहते हैं। इन्हें सुरक्षित तरीके से निकालते हुए सेना, पुलिस और सीआरपीएफ ने आतंकियों को निकालने का ज्वाइंट आपरेशन शुरू कर दिया। हमले में शहीद हुए दो एसपीओ एक घर में फंसे रह गए थे। जेहाद छेड़ने वाले मुस्लिम आतंकवादियों ने ऐसा नहीं कि सिर्फ हिन्दुओं और सिखों को मौत के घाट उतारा हो, चौंकाने वाली बात यह है कि मारे गए 16 हजार नागरिकों में 14 हजार से अधिक की संख्या उन मुसलमानों की है जिन्हें आजादी दिलवाने की बात आज भी आतंकी करते हैं और जो जेहाद छेड़े हुए हैं। शायद उनकी आजादी के मायने यही रहे होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

जज जगदीप सिंह लोहान आप पर पूरे देश को गर्व है

डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम को सीबीआई की विशेष अदालत ने यौन शोषण मामले में दोषी ठहराते हुए दुष्कर्म के दो अलग-अलग मामलों में 10-10 साल की सजा सुनाकर एक ऐतिहासिक व दूरगामी फैसला दिया है। अब बलात्कारी बाबा को 20 साल की कैद भुगतनी पड़ेगी। साथ ही दोषी पर 30 लाख रुपए जुर्माना भी किया गया है। इसमें दोषी को 14-14 लाख रुपए पीड़ितों को देने होंगे जबकि दो लाख रुपए अदालत में जमा कराने होंगे। मौजूदा मामलों में जो भी सजा दी गई है वह निर्भया कांड से पहले के रेप कानून के हिसाब से सजा दी गई है। निर्भया कांड के बाद रेप लॉ में बदलाव हुआ है वह उसके बाद के केस पर ही नया एंटी रेप लॉ लागू होगा। पहले के मामले में नहीं। पुराने बलात्कार कानून के हिसाब से बाबा राम रहीम को सजा दी गई और इस सजा के खिलाफ वह हाई कोर्ट में 60 दिनों के भीतर अपील कर सकता है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का विकल्प होगा। साध्वी यौन शोषण प्रकरण में राम रहीम को सजा सुनाने वाले सीबीआई जज जगदीप सिंह लोहान ने जितना साहसिक और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, उस पर दोषी के भक्तों को छोड़कर जहां पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है वहीं उनके पैतृक गांव राजपुरा का सीना गर्व से फूला हुआ है। राजपुरा मैण गांव के एक शिक्षक परिवार में जन्म लेने वाले सीबीआई जज जगदीप सिंह लोहान ने प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में ही ग्रहण की। जज साहब न तो किसी के बहकावे में आए और न ही किसी दबाव में। उनका यह फैसला हर बलात्कारी के लिए एक उदाहरण होगा। गौरतलब है कि राम रहीम को सजा सुनाने वाले जज जगदीप को उनकी ईमानदार और सख्त छवि के लिए जाना जाता है। इस हाई-प्रोफाइल मामले में भी उन पर डेरे के समर्थकों समेत राजनीतिक हलकों से भी दबाव था। वह डिगे नहीं और बाबे को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। दुष्कर्म करने वाले बाबा राम रहीम के साथ फैसले के दिन साथ रहने वाली महिला हनी प्रीत उनकी सबसे करीबी मानी जाती है। दुनिया को बाबा उसे अपनी दत्तक पुत्री बताते हैं। पर उसके पति विश्वास गुप्ता ने सन 2011 में हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि डेरा प्रमुख भले ही उसकी पत्नी को बेटी कहते हों पर उसके साथ डेरा प्रमुख के जिस्मानी रिश्ते हैं। हनी प्रीत का वास्तविक नाम प्रियंका है। वह शुक्रवार को डेरा प्रमुख को दोषी करार दिए जाने के बाद उसके साथ हेलीकॉप्टर से रोहतक आई थी जहां सुनारिया जेल में बाबे को रखा गया है। खबर यह भी है कि सीबीआई जज जगदीश सिंह द्वारा डेरा प्रमुख को दुष्कर्म का दोषी मानने के बाद सुरक्षा गार्डों ने उसे जेल ले जाने से मना कर दिया था। इनमें छह सरकारी और दो प्राइवेट सुरक्षा गार्ड हैं। राम रहीम की सुरक्षा में तैनात हरियाणा पुलिस के पांच जवान भी पूरी तरह उसके रंग में रम चुके थे। हमेशा साथ रहने वाले इन जवानों ने पहले डेरा प्रमुख को पंचकूला स्थित अदालत में पेशी पर जाने से रोकना चाहा और फिर फैसला आने पर उसे भगा ले जाने की साजिश रच डाली। राम रहीम को पंचकूला कोर्ट से भगाने की कोशिश में पांच पुलिसकर्मियों और डेरा प्रमुख के दो निजी सुरक्षा गार्डों पर देशद्रोह का केस दर्ज किया गया है। उपद्रव में हरियाणा पुलिस की भूमिका पर चल रही अभी तक जांच के मुताबिक हिंसा की शुरुआत भी राम रहीम की सुरक्षा में तैनात इन्हीं सरकारी कमांडो ने की। पंचकूला के पुलिस कमिश्नर एएस चावला ने बताया कि इन लोगों ने पुलिस वालों से हाथापाई की और नाकाम रहने पर नारे लगाए कि हिन्दुस्तान को दुनिया के नक्शे से मिटा देंगे, आग लगा देंगे। पता चला है कि फैसला आने से दो-तीन दिन पहले से ही राम रहीम के अनुयायियों ने शहर को दहलाने की साजिश रचना शुरू कर दी थी। मोटर साइकिलों की टंकियां भरवाकर केन में पेट्रोल इकट्ठा किया गया। कटे-फटे टायरों, ईंट-पत्थरों और खाली बोतलों को जमा किया गया वहीं भारी संख्या में हथियार जुटाए गए। शुक्रवार को जैसे ही फैसला आया तो बवालियों ने साजिश को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। शुक्र है कि यह बहुत ज्यादा नुकसान नहीं कर सके। फैसले के बाद हुई हिंसा में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। उपद्रव में मारे जाने वालों के सवाल पर हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राम निवास ने बताया कि मरने वालों में सभी उपद्रवी हैं और इसमें कोई भी आम आदमी नहीं है। राम निवास बताते हैं कि उन्होंने पंचकूला में आम नागरिकों को किसी प्रकार की हानि नहीं होने दी है और मीडिया के लिए दुख है क्योंकि उनकी गाड़ियां जलाई गईं। पुलिस फायरिंग की बात स्वीकार करते हुए राम निवास ने कहा कि पुलिस फायरिंग के बाद ही दंगाइयों पर काबू पाया गया वरना पूरे पंचकूला में उत्पात मच सकता था। वह कहते हैं कि काफी प्रॉपर्टी का नुकसान बचाया है और जो नुकसान हुआ है उस नुकसान की भरपाई डेरे से की जाएगी। मीडिया कवरेज की बात करें तो आमतौर पर स्थानीय रिपोर्टर सरकार के दबाव में मजबूरन झुक जाते हैं, लेकिन एबीपी के पंजाब व हरियामा के ब्यूरो चीफ जगविन्दर पटियाल ने शानदार रिपोर्टिंग कर बाबा राम रहीम और हरियाणा सरकार का वह चेहरा बेनकाब किया जिसकी हिम्मत दिल्ली के बड़े-बड़े पत्रकार नहीं कर पाए। गोलीबारी और आगजनी के बीच पटियाल ने जान हथेली पर रखकर जिस तरह बाबा कांड में फैसले की रिपोर्टिंग की जिस पर देश के तमाम मीडिया को गर्व है। हम जगविन्दर पटियाल को भी सलाम करते हैं। पर सबसे ज्यादा तारीफ सीबीआई जज जगदीप सिंह की करनी होगी।

Monday 28 August 2017

रॉकस्टार, रॉबिनहुड, मैसेंजर ऑफ गॉड से लेकर कैदी नम्बर 1997

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह साध्वियों से दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए गए। 15 साल पुराने केस में पंचकूला की सीबीआई अदालत ने शुक्रवार को फैसला सुनाया। 15 मिनट बाद ही पंजाब-हरियाणा सहित छह राज्यों में डेरा अनुयायी हिंसक हो गए। सबसे ज्यादा नुकसान पंचकूला में हुआ। शहर में जमे डेढ़ लाख डेरा समर्थकों ने तीन घंटे तक पंचकूला की सड़कों पर उत्पात मचाया। अब तक भड़की हिंसा में 36 लोग मारे गए हैं और 250 से अधिक लोग घायल हैं। यह सब क्यों हुआ? कौन है यह राम रहीम? इन पर चर्चा करते हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बड़ी ताकत हैं। 1948 में बने डेरा सच्चा सौदा की स्थापना करने वाले शाह सतनाम सिंह मस्ताना की विरासत को राम रहीम ने अपने कार्यकाल में कई गुना बढ़ा दिया। 1990 में डेरे की गद्दी संभालने वाले गुरमीत राम रहीम सिंह आज फिल्म स्टार हैं, कारों के शौकीन, सफल उद्यमी और देश-विदेश में सम्पत्तियों के मालिक हैं। डेरा सच्चा सौदा को नाम और बदनामी दोनों मिलती रही हैं। गुरमीत राम रहीम पर साध्वी के यौन शोषण और दो मर्डर के अलावा 400 साधुओं को नपुंसक बनाने के भी आरोप लगे हैं। वहीं सामाजिक सेवा के मोर्चे पर डेरे ने काफी काम किया है। सतनाम जी ग्रीन एंड वेलफेयर फोर्स डेरा की एक ऐसी फौज है जो आपदा और दुर्घटना होने पर मदद को हाजिर रहती है। डेरा समर्थक लाखों में बताए जाते हैं। पंजाब 70 लाख, हरियाणा 80 लाख, राजस्थान 50 लाख, उत्तर प्रदेश 35 लाख और दिल्ली में 20 लाख अनुयायी बताए जाते हैं। आखिर क्या वजह है कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में अदालत द्वारा दोषी करार देने के बाद भी उनके समर्थक यह मानने को तैयार नहीं होते कि उनके गुरु ने कुछ गलत किया है? पहली बात तो यह है कि लोगों की जो उम्मीदें समाज में पूरी नहीं होतीं उनके मन में बात आती है कि यह तो बहुत अच्छी व्यवस्था है। दूसरी बात यह कि डेरे संचालक या प्रमुख को वे सुपरमैन या सुपर ह्यूमन बीइंग मानते हैं। उन्हें लगता है कि वे तो गलती कर ही नहीं सकते। लोगों को लगता है कि उनके बाबा पर जो आरोप लगे हैं वे सिर्फ बाबा के खिलाफ नहीं बल्कि हमारे समाज पर लगे हैं। उन्हें लगता है कि इन आरोपों से अपने समाज, अपने डेरे को बचाना है। लोगों की डेरे पर जो आस्था होती है, वह विचारधारा में बदल जाती है। उन्हें लगता है कि हम जो कर रहे हैं, सच्चाई के लिए कर रहे हैं। जब लोगों की समस्याएं सही ढंग से हल नहीं होतीं तो वे धार्मिक या आध्यात्मिक रास्ता अपनाते हैं। उन्हें लगता है कि डेरे का प्रमुख मसीहा है। डेरा सच्चा सौदा ऐसा है जिसका हरियाणा व पंजाब की राजनीति में सीधा हस्तक्षेप रहता है। डेरा सच्चा सौदा ने बाकायदा अपना राजनीतिक विंग भी बना रखा है। हरियाणा के नौ जिलों की तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर डेरा अनुयायी काफी हद तक किसी भी दल की हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाने का माद्दा रखते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में करीब दो दर्जन सीटों पर डेरे की कृपा से ही भाजपा को जीत नसीब हुई थी। चुनाव के बाद हरियाणा के खेलकूद मंत्री अनिल विज और शिक्षामंत्री रामविलास शर्मा द्वारा डेरा सच्चा सौदा को दिया गया अनुदान भी चर्चा में रहा है। उधर पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी डेरा सच्चा सौदा ने खुलेआम भाजपा-अकाली गठबंधन का समर्थन किया। जिस राम रहीम के सामने सरकारें और सियासी दल झुके रहते थे उसे तीन लोगों के संघर्ष के चलते आज राम रहीम का नया नामकरण हुआ, कैदी नम्बर 1997। साल 2002 में पहली बार महिला ने 1999 में राम रहीम पर दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम तीन पेज की चिट्ठी लिखी। बहन के साथ ज्यादती से खफा होकर डेरा प्रबंध समिति के सदस्य रणजीत सिंह ने राम रहीम की करतूतों को उठाया। कुरुक्षेत्र के गांव खानपुर कोलियां में रहने वाले रणजीत सिंह ने अपनी ही बहन से पत्र लिखवाया। उसे प्रधानमंत्री और हाई कोर्ट को भेजा। पूरा सच नाम का अखबार निकालने वाले पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति ने इस चिट्ठी को छापा। कुछ ही दिनों में पांच गोलियां मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद जब यह पता चला कि यह चिट्ठी भाई रणजीत ने लिखवाई थी तो डेरा समर्थकों ने 10 जुलाई 2002 को उनकी हत्या कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में सीबीआई को जांच सौंपी। 2005 से 2006 के बीच सीबीआई के कई जांच अधिकारी बदले। सतीश डागर को केस मिला। डागर ही वो अफसर थे जिन्होंने पीड़ित महिलाओं को ढूंढा। उन्हें गवाही के लिए तैयार किया। वो किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके। सुनवाई के दौरान राम रहीम के समर्थक इन लोगों को डराते-धमकाते थे। जिस दिन राम रहीम की पेशी होती थी उस दिन एसपी ऑफिस में अस्थायी कोर्ट लगाई जाती थी। छावनी के बाहर समर्थकों का हुजूम होता था। ऐसे में डागर के भरोसे ही दो साध्वियों ने गवाही दी और डटी रहीं। हरियाणा के पंचकूला में सीबीआई अदालत में जज जगदीप सिंह ने राम रहीम को दुष्कर्म मामले में दोषी करार देने वाला फैसला सुनाया। जब वो फैसला पढ़ रहे थे तब राम रहीम हाथ जोड़े खड़ा रहा। जैसे ही दोषी साबित हुआ रोने लगा। फैसले की संवेदनशीलता को देखते हुए कोर्ट ने परिसर में फोन बंद करने के निर्देश दिए। बिना आधिकारिक प्रेस रिलीज के कोई भी चैनल खबर ब्रेक नहीं करेगा ताकि कोई अफवाह और गलत खबर न फैले। सिंह सितम्बर 2016 में सुर्खियों में आए, जब हादसे में घायल चार लोगों की जिन्दगी उन्होंने बचाई थी। हम उन साध्वियों को भी नहीं नजरंदाज कर सकते जिन्होंने तमाम तरह के दबावों के बावजूद गवाही दी और डटी रहीं। उत्पाती डेरा समर्थकों को काबू में रखने में ढिलाई बरतने पर हरियाणा की मनोहर खट्टर सरकार पर आज अंगुलियां उठ रही हैं। पंचकूला हिंसा ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस पूरे मामले का बारीकी से विश्लेषण करना जरूरी है। पंचकूला समेत कई जिलों में धारा 144 को लागू करने पर इसका असर न दिखाई देना। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब सरकार को मामले की गंभीरता का पता था तो उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में डेरा समर्थकों को पंचकूला में इकट्ठा क्यों होने दिया? डेरा प्रेमियों द्वारा लगातार कई पत्रकारों को दिए आक्रामक बयानों के बाद भी सरकार ने इन्हें गंभीरता से क्यों नहीं लिया? 2016 के दौरान रोहतक से जाट आरक्षण आंदोलन ने भी लगभग यही रूप लिया था। महज चार घंटे के भीतर इस हिंसा ने न सिर्फ रोहतक, बल्कि पूरे हरियाणा प्रदेश को आग के हवाले कर दिया। इस दौरान न पुलिस दिखी और न ही लॉ एंड ऑर्डर। सीबीआई कोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी हरियाणा सरकार ने सबक नहीं लिया और डेरा समर्थकों को पंचकूला में अपनी संख्या को बढ़ाने का अवसर और समय दिया। खुफिया विभाग बुरी तरह विफल रहा। इतनी संख्या में समर्थकों का आना, अपने साथ हथियार, डंडे, पेट्रोल बम लाना यह खुफिया नाकामी नहीं तो क्या? दंगों से पहले और बाद में सेना का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? धारा 144 लगने के बाद भी लोग पार्कों और सड़कों पर क्यों डटे रहे? राम रहीम को दोषी ठहराए जाने के बाद भड़की हिंसा पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को दोषी ठहराते हुए दूसरे दिन भी कड़ी फटकार लगाई। आगजनी व तोड़फोड़ से नाराज कोर्ट ने कहा कि सरकार ने सियासी फायदे, वोट बैंक के लिए डेरा समर्थकों के आगे सरेंडर कर सूबे को जलने के लिए छोड़ दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि मामले में जिम्मेदारी लेने के स्थान पर पंचकूला के पुलिस कमिश्नर को बलि का बकरा बनाकर उनको सस्पेंड कर दिया गया। पंचकूला में धारा 144 लागू करने के फैसले को गलत तरीके से ड्राफ्ट किया गया, यह गलती नहीं जानबूझ कर किया गया काम प्रतीत हो रहा है। बिना राजनीतिक दबाव के ऐसा नहीं होता। यदि हम इस मामले की गहराई में जाएंगे तो कितने चेहरे बेनकाब होंगे, इसका अंदाजा हमें है। हमें यह पता है कि राजनीतिक निर्णय ने प्रशासनिक निर्णय को पैरालाइज कर दिया था, जिसका नतीजा शहर ने ही नहीं बल्कि पूरे हरियाणा ने भुगता।
-अनिल नरेन्द्र

Sunday 27 August 2017

निजता मौलिक अधिकार है या नहीं?

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इस सवाल पर काफी हद तक रोशनी डाली है कि कानून की नजर में प्राइवेसी दरअसल क्या चीज है और इसमें दखलंदाजी करने की सरकार को किस हद तक आजादी है? 1954 और 1961 में सर्वोच्च न्यायालय की दो पीठों के फैसलों में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के दायरे में रखने से इंकार कर दिया गया था। ताजा फैसला भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता को रेखांकित करता है। संविधान के अनुच्छेद 21 में मौलिक अधिकारों का प्रावधान है जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ नत्थी है। इसका अर्थ है कि निजता का अधिकार नैसर्गिक रूप से मौलिक अधिकारों में अंतरनिहित है और किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत के इस फैसले को इस मायने में प्रगतिशील कहा जाना चाहिए कि उसने अपने ही पूर्ववर्ती फैसले को पलटने में जरा भी हिचकिचाहट महसूस नहीं की कि जिनमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 में दिए गए जीने के अधिकार और संविधान के भाग तीन में दिए गए मौलिक अधिकारों के रूप में स्वीकार किया है। मुकदमे में दोनो पक्षों ने जोरदार दलीलें और तर्क दिए। पहले बहस में पक्ष में रखे गए तर्कöआजकल स्मार्ट फोन तक के लिए फिंगर प्रिंट मांग रहे हैं। ऐसा करने से यूजर की पहचान, उसकी जगह व वक्त आदि सब कुछ सर्विस देने वाले के पास चला जाता है। ऐसे में निजता को संरक्षित होना चाहिए। अगर कोई नहीं चाहता कि उसकी जानकारी कहीं जाए तो फिर उसे कैसे लिया जा सकता है? यह कहना था गोपाल सुब्रह्मण्यम एडवोकेट का। सोली सोराबजी ने कहा कि प्रेस की आजादी की व्याख्या अनुच्छेद 19(1) के तहत की जाती है, लेकिन संविधान में प्रेस की आजादी कहीं नहीं लिखी हुई है। जो संविधान में नहीं लिखा वह नहीं माना जाएगा, ऐसा नहीं हो सकता। संविधान सभा भी इस बात को नहीं मानती। एडवोकेट श्याम दीवान का मानना था कि हमारा शरीर हमारा है। उस पर हमारा पूरा अधिकार है। कोई इस अधिकार में  दखल नहीं दे सकता। कोई हमें अंगुली और आंखों का सैम्पल देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस पर तो हमारी मर्जी है। हम बनवाएं या न बनवाएं लेकिन आधार के लिए मजबूर किया जा रहा है। यह मेरा अधिकार है कि किसी को अपनी पहचान दूं या न दूं। आनंद ग्रोवर सीनियर एडवोकेट का कहना था कि निजता का सवाल पहले कभी नहीं उठा था। मानवाधिकार सीधे-सीधे निजता के अधिकार से जुड़ा है। इसे अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। हमें निजता को परिभाषित करना होगा। बाकी के मौलिक अधिकार निजता से जुड़े हैं और इन्हें संरक्षित किया जाना बहुत जरूरी है। एडवोकेट एस. पुवैया ने कहाöकोर्ट के कई ऐसे फैसले हैं जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है। आज देशभर में 40 करोड़ इंटरनेट और 50 करोड़ मोबाइल यूजर हैं। इनकी निजता का डाटा कैसे सुरक्षित होगा? मौलिक अधिकार के ही दायरे में देखना होगा कि कहां निजता का उल्लंघन हुआ है? खिलाफ बोलने वालों में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के सामने निजता बहुत छोटा महत्व रखती है। आधार को जिन तमाम योजनाओं से जोड़ा गया है, वो योजनाएं जिन्दगी से जुड़ी हैं। क्या कोई कह सकता है कि भोजन, आवास और रोजगार जैसी चीजें निजता से छोटी हैं? अगर कभी आजादी और जीवन के अधिकार के बीच टकराव हुआ तो जीवन का अधिकार हमेशा ऊपर रहेगा, क्योंकि जीवन के बिना स्वतंत्रता है ही नहीं। इसलिए निजता को मौलिक अधिकार के लेवल पर नहीं ला सकते। एडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहाöसंसद ने कई कानून बनाए हैं और इनके तहत निजता को संरक्षित किया गया है। इसे मौलिक अधिकार के स्तर पर ले जाने की जरूरत नहीं है। विधायिका को इस बात का इल्म है कि निजता को किस स्तर तक संरक्षित करने की जरूरत है। इसे विधायिका पर ही छोड़ दें। आधार में जो डाटा लिया गया है उसका इस्तेमाल कर अगर सरकार सर्विलांस भी करना चाहे तो असंभव है। आधार एक्ट कहता है कि उसका डाटा पूरी तरह से सुरक्षित है। डाटा प्रोटेक्शन बिल भी आने वाला है। मौजूदा मोदी सरकार तमाम सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से लेकर बैंक खाता खोलने और आयकर रिटर्न भरने तक के लिए जिस तरह से आधार को अनिवार्य कर रही है, उसकी ही वजह से निजता के अधिकार का मामला उठा है। नागरिकों की बॉयोमैट्रिक पहचान से जुड़े 12 अंकों के आधार नम्बर को लेकर यह आशंकाएं जताई जाती हैं कि इनका दुरुपयोग किया जा सकता है। यही नहीं, बात लोगों के खानपान और व्यक्तिगत पसंद/नापसंद तक आ गई थी। इससे कौन इंकार कर सकता है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचना चाहिए और इसमें आधार कारगर भी साबित हो रहा है। दूसरी ओर आधार की वैधता सवालों के घेरे में रही है जिसे सर्वोच्च न्यायालय में विभिन्न जनहित याचिकाओं के जरिये चुनौती दी गई है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में अपने नागरिकों के जीवन को सुरक्षित रखना सरकार का दायित्व होता है मगर सुनवाई के दौरान यह अहसास कराया गया मानो सरकार वंचितों पर अहसान कर रही है। हालांकि पीठ ने सिर्फ निजता के अधिकार पर फैसला सुनाया है और आधार से निजता के अधिकार का हनन हो रहा है या नहीं, इस पर तीन जजों की बेंच अलग सुनवाई करेगी। फिर भी यह फैसला आंशिक तौर पर आधार के दायरे को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। यह इसलिए क्योंकि अब कोई सरकारी या निजी एजेंसी यदि आधार से जुड़ी या कोई जानकारी मांगती है तो इस पर आपत्ति दर्ज की जा सकती है। कोई व्यक्ति आपके निजी जीवन में दखल दे रहा है तो उसके खिलाफ अदालत जा सकते हैं। सरकार को भी कोई कानून बनाते समय सजग रहना होगा कि निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। नागरिक के कोई भी अधिकार सम्पूर्ण नहीं होते, चाहे वह मौलिक अधिकार ही क्यों न हो? अलबत्ता राज्यों के पास इन अधिकारों को सीमित करने के लिए कुछ अधिकार होना ही चाहिए वरना अधिकारों का उच्छृंखलता में तब्दील होने का डर बराबर बना रहेगा। अब सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों से संबंधित डाटा की सुरक्षा के लिए पुख्ता कदम व कड़ा कानून लेकर आए।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday 26 August 2017

हमारी युवा पीढ़ी नशे की लत में तबाह हो रही है

यह अत्यंत चिन्ता का विषय है कि नशे की लत हमारे युवाओं को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। स्कूली बच्चों में नशे की यह लत न केवल उनका भविष्य खराब कर रही है बल्कि पूरे परिवार पर इसका असर होता है। सच तो यह है कि आज सात-आठ और नौ साल के बच्चे व्हाइटनर सूंघने वाला नशा कर रहे हैं जो जानलेवा है। सूंघने वाले नशे में पेट्रोलियम पदार्थ होता है जो दिमाग की प्रोटेक्टिंग कोटिंग को खत्म करता है इससे दिमाग में सेल्स मरने लगते हैं और ब्रेन का ग्रोथ रुख जाता है। नशे से इन बच्चों को बाहर निकालने वाले डाक्टर कहते हैं कि शुरू में ये बच्चे बाकी बच्चों की तरह की नॉर्मल होते हैं। लेकिन किसी चीज की टेंशन या परेशानी उन्हें नशा करने के लिए मजबूर कर देती है। लत लगना वहीं से शुरू होती है। डाक्टर राजेश ने बताया कि दिमाग में रिवार्ड पाथवे होता है। इससे डोपामाइन रिलीज होता है, जब यह रिलीज होता है तो इंसान को खुशी का अहसास होता है, चाहे इसकी वजह कुछ भी हो। कुछ इंसान को अपनी तारीफ सुनने में डोपामाइन रिलीज होता है तो कुछ में खेलने से होता है, कुछ में ड्रग्स लेने से। फिर इंसान जब नशे पर निर्भर रहने लगता है और नशा नहीं करता तो उसके ब्रेन से डोपामाइन रिलीज नहीं होता है और वह दुखी रहने लगता है। ऐसे में उसकी सिर्फ एक ही चाहत होती है कि अगला डोज कहां से लाया जाए, क्या किया जाए। एक उदाहरणöमैं शोएब हूं, जब नौ साल का था तो मुझे मैथ्स में दिक्कत आती थी। कुछ समझ नहीं आता था। घर में कोई बताने वाला नहीं था। मैं परेशान रहने लगा था। तब पहली बार मेरे कुछ दोस्त ने रूमाल सूंघने को दिया। मुझे अच्छा लगा। मेरी परेशानी दूर होती दिखी। फिर यह मेरी आदत बन गई। यह आदत लत में कब बदली मुझे पता नहीं चला। पहले घर से पैसे चुराकर नशा करता रहा फिर पैसे नहीं मिलते तो कूड़ा तक बीनता था और उसे बेच कर नशा करता। नशे से मेरी जिन्दगी खराब हो गई। मुझे नींद नहीं आती थी। बेचैनी होने लगती है। मैं परेशान हो जाता हूं और फिर नशे के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता हूं। मुझे रोजाना नशा चाहिए होता है। ऐसे न जाने कितने बच्चे और युवा दिल्ली में हैं जो नशे की लत की वजह से अपनी जिन्दगी खराब कर रहे हैं। नशे की लत का आज मार्केट में कई तरह का सामान उपलब्ध है। सूंघ कर किया जाने वाला नशा, इसमें कॉमन हैöग्लू, थिनर, रबर, आयोडेक्स, तारपीन का तेल, नेल रिमूवर, वाइटनर, गम पेस्ट। नशे में इस्तेमाल होने वाले ये प्रॉडक्ट्स आसानी से 50 रुपए तक में मिल जाते हैं। इंजैक्शन का भी इस्तेमाल हो रहा है। जो आमतौर पर जानवरों को लगाया जाता है। यह 35-40 रुपए में मिल जाता है। नींद की गोली और पेन किलर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। कई दवाओं में अफीम होती है और कफ सिरप में भी यह पाया जाता है। यह भी 50-100 रुपए में मिल जाता है। स्मैक भी बाजार में आसानी से उपलब्ध है, यह काफी महंगा होता है, एक डोज पर 400 रुपए तक का खर्च है। बच्चे इस खर्च को उठा नहीं पाते जिसके लिए क्राइम पर उतर आते हैं। गांजा भी पूरे देश में आसानी से मिल जाता है। इसके लिए एक डोज की कीमत 200 रुपए है। ब्राउन शुगर का एक डोज 300 से 350 रुपए में आता है, नशे के शिकार लोग रोजाना कम से कम दो डोज इस्तेमाल करते हैं। बाजार में ड्रग्स का कारोबार इसलिए फैल रहा है, क्योंकि इसके इस्तेमाल करने वालों में रोज इजाफा हो रहा है। सरकार ने नशामुक्ति के कई सेंटर खोले हुए हैं। जरूरत है तो इसके लिए सामने आने वालों की। मां-बाप के पास समय नहीं है। वह अपनी जिन्दगी जीना चाहते हैं और बच्चों को ऊपर वाले के हवाले छोड़ देते हैं। कई परिवारों में मां-बाप दोनों काम करते हैं और बच्चे अकेले होते हैं। यह सरकार के लिए तो चुनौती है ही पर समाज के लिए उससे बड़ी चुनौती है। अगर हमें अपनी युवा पीढ़ी को इस लत से बचाना है तो सभी स्तर पर युद्ध की तरह लड़ना होगा। केवल भारत ही नहीं लगभग हर देश इस समस्या से जूझ रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

शाह के एक बयान से 75+ नेताओं को संजीवनी

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह हाल ही में भोपाल यात्रा पर गए थे। वहां पर अमित शाह ने एक ऐसा बयान दिया जिससे कई नेताओं के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अमित शाह ने शनिवार को भोपाल में यह कहकर सबको चौंका दिया कि 75 साल की उम्र के नेताओं को चुनाव नहीं लड़ाने का पार्टी में कोई नियम नहीं है। न ही ऐसी कोई परंपरा है। भाजपा के इस लचीलेपन से पार्टी के 75+ के करीब दो दर्जन से ज्यादा नेताओं में एक बार फिर सक्रिय राजनीति में लौटने की उम्मीद जग गई है। यह नेता खासकर उन्हीं 15 राज्यों से हैं, जहां 2019 के आम चुनाव तक विधानसभा चुनाव होने हैं। दरअसल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75 साल पार नेताओं को अपनी कैबिनेट में नहीं रखा था। वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे कई नेता इसी वजह से मंत्रिमंडल से बाहर हो गए थे। इन्हें पार्टी के मार्गदर्शक मंडल तक सीमित कर दिया था। उसी दौरान यह भी पार्टी में स्पष्ट कर दिया गया था कि चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु सीमा 75 साल है। भाजपा शासित राज्यों में भी यही फार्मूला अपनाया गया। गुजरात में मुख्यमंत्री रहीं आनंदीबेन पटेल को 75 की उम्र पार करते ही कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। उन्होंने यह आयु सीमा पूरी होने से महीने पहले ही पद छोड़ दिया था। फेसबुक पोस्ट में उम्र ही उन्होंने इस्तीफे की वजह बताई थी। दरअसल भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 360 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इस कठिन चुनौतीपूर्ण लक्ष्य की रणनीति बनाते वक्त शीर्ष नेतृत्व समझ चुका है कि मनचाहे नतीजे पाने के लिए बुजुर्ग और अनुभवी नेताओं को तरजीह देनी ही पड़ेगी। इसलिए अमित शाह ने बेहद चतुराई से अघोषित सिद्धांत में यह लचीलेपन का संकेत दिया है। मौजूदा लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन 74 वर्ष की हो गई हैं। वह पिछले काफी समय से इंदौर से सांसद हैं, लेकिन शाह के इस बयान से साफ है कि उन्हें 2019 में भी लोकसभा का टिकट मिल सकता है। हिमाचल प्रदेश के चुनाव जल्द ही होने वाले हैं। पार्टी को वहां एक अनुभवी चेहरे की तलाश है। 82 वर्षीय शांता कुमार भी इस फैसले के बाद एक बार फिर मंत्री या मुख्यमंत्री की रेस में आ सकते हैं। कर्नाटक में भाजपा येदियुरप्पा के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। उनकी उम्र भी 75 पार हो रही है, लेकिन अब इस बयान के बाद उनका भी रास्ता साफ हो गया है। यूपी कोटे से केंद्र में मंत्री कलराज मिश्र भी 75 की उम्र पार कर चुके हैं। इसके अलावा भी प्रेम कुमार धूमल (73), गुलाब चन्द कटारिया (72), अमरा राम (74), भगत सिंह कोश्यारी (75), हुक्मदेव नारायण यादव (77), सीपी ठाकुर (85) जैसे कई नेताओं की किस्मत जाग सकती है। पर आडवाणी, जोशी, आनंदीबेन, नजमा हेपतुल्ला, यशवंत सिन्हा को 75 पार के लोगों को ब्रेन डेड घोषित किया गया था।

Friday 25 August 2017

तीन तलाक गैर-कानूनी और गैर-इस्लामी है जो इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं

देश की सर्वोच्च अदालत ने ऐतिहासिक फैसले में एक साथ तीन तलाक यानि तलाक--विद्दत की 1400 साल पुरानी प्रथा को खत्म कर दिया है। पांच जजों की संवैधानिक बेंच के दो जजों ने इसे धर्म का हिस्सा बताते हुए छह महीने के लिए रोक लगा दी और केंद्र से कानून बनाने को कहा। हालांकि तीन जजों ने बहुमत से इस प्रथा को धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं माना और इसे असंवैधानिक करार देते हुए तुरन्त खत्म करने का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय का बहुमत से आया यह फैसला ऐतिहासिक होने के साथ ही बराबरी के लिए संघर्ष कर रही मुस्लिम महिलाओं की बड़ी जीत है। इस फैसले ने दशकों से चली आ रही असमंजस की स्थिति को दूर करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि मनमाने ढंग से दिया गया तलाक अमान्य, अवैध और असंवैधानिक है। इस जीत का सेहरा अगर किसी के सिर बांधा जा सकता है तो वे आम मुस्लिम महिलाएं ही हैं। यह सच है कि मुस्लिम महिलाओं के कई संगठन तीन तलाक के कानून को खत्म करने के लिए पिछले काफी समय से सक्रिय थे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों ने तो इसे लेकर एक माहौल भी बनाया था। तीन तलाक जैसे मुद्दे को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनाने का श्रेय भी कुछ हद तक इन संगठनों को दिया जा सकता है। लेकिन इस जीत का श्रेय उन महिलाओं को ही मिलेगा, जिन्होंने चुपचाप इस लड़ाई को लड़ा, बिना किसी संगठन से जुड़े हुए, बिना किसी आंदोलन का हिस्सा बने हुए। इनमें उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो का नाम सबसे ऊपर है, जिन्होंने अपनी निजी समस्या को एक बड़े फलक पर देखा और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ऐसी ही लड़ाई इशरत जहां, फरह फैज, गुलशनी परवीन और आफरीन रहमान ने भी अपने-अपने तरीके से लड़ी। इनके पीछे करोड़ों आम मुस्लिम महिलाओं का जो मौन समर्थन है, उसे भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। मुसलमानों में खासतौर पर सुन्नी समुदाय के हनफी पंथ में तीन तलाक की मान्यता थी और है भी। हालांकि तलाक के अन्य तरीके भी प्रचलन में हैं, लेकिन तीन तलाक में महिलाओं की स्थिति के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के दायरे में तोला। साथ ही तीन तलाक को इस्लामिक कानून के खिलाफ बताया। बहुमत के फैसले में जस्टिस जोसेफ ने कहाöमैं चीफ जस्टिस के इस विचार से सहमत होने में बहुत मुश्किल महसूस कर रहा हूं कि तीन तलाक की प्रथा पर अविभाज्य धार्मिक मजहब के रूप में विचार करना चाहिए और यह उनके पर्सनल कानून का अंग है। जस्टिस कुरियन के दृष्टिकोण से जस्टिस ललित ने सहमति जताई जो बहुमत के फैसले का हिस्सा थे। पवित्र कुरान की आयतों का हवाला देते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वे एकदम स्पष्ट और असंदिग्ध हैं, जहां तक तलाक का संबंध है। पवित्र कुरान ने पवित्रता और स्थिरता का श्रेय विवाह को दिया है। बहुमत के निर्णय में कहा गया कि हालांकि अत्यधिक अपरिहार्य परिस्थितियों में तलाक की इजाजत है परन्तु तलाक के अंतिम रूप को हासिल करने से पहले सुलह के एक प्रयास और यदि यह सफल हो गया तो इसे निरस्त करना कुरान के आवश्यक कदम हैं। तीन तलाक के मामले में यह उपाय बंद हैं। इसलिए तीन तलाक पवित्र कुरान के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ है और परिणामस्वरूप यह शरीयत का हनन करता है। तीन तलाक का समर्थन करने वाले मौलवी और मुस्लिम संगठन अकसर शरीयत का हवाला देते रहे हैं, लेकिन इस फैसले के आलोक में उन्हें भी समझना चाहिए कि जो समाज अपनी बुराइयों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता, वह पिछड़ता चला जाता है। वास्तविकता यह है कि मामूली बातों पर आपा खोकर और टेलीफोन से लेकर स्काइप तथा वाट्सअप तक के जरिये महिलाओं को तलाक देने के मामले सामने आते रहते हैं। मनमाने तरीके से दिया जाने वाला तलाक पीड़ित महिला के मानसिक, आर्थिक और सामाजिक उत्पीड़न का सबब बन जाता है, क्योंकि इसके बाद अकसर ऐसी महिलाओं के लिए न तो घर में जगह होती है और न ही समाज में। यह व्यवस्था पूरी तरह से महिला विरोधी है जिसमें उनका पक्ष सुने जाने का कोई प्रावधान नहीं है। फिर यहां से निकाह हलाला जैसी यातना का दौर भी शुरू होता है, उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय इस पर भी जल्द फैसला करेगा। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मुस्लिम समाज का एक वर्ग भले ही इसे शरीयत में हस्तक्षेप बता रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि विश्व के 20 मुस्लिम देश ऐसे हैं, जिन्होंने शरीयत को किनारे करते हुए तीन तलाक को काफी पहले से ही रोक दिया था। पाकिस्तान व बांग्लादेश, दोनों ही इस्लामिक देश हैं। दोनों देश सुन्नी मुसलमान बहुल हैं। यहां के फैमिली लॉ आर्डिनेंस 1961 में तीन तलाक को प्रतिबंधित किया गया है। मिस्र के लॉ ऑफ पर्सनल स्टेट्स 1929 में वर्ष 1985 में संशोधन कर चार धाराओं में तलाक को परिभाषित किया गया जिसके अनुसार तीन तलाक पूरी तरह प्रतिबंधित है। शिया बहुल इराक आधिकारिक रूप से इस्लामिक देश है। यहां के कोड ऑफ पर्सनल स्टेट्स 1959 को वर्ष 1987 में संशोधित कर तीन तलाक को प्रतिबंधित किया गया। जॉर्डन, कुवैत, लीबिया, सीरिया, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, श्रीलंका, अल्जीरिया में भी तीन तलाक गैर-कानूनी है। इसके अलावा इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, लेबनान, मोरोक्को और सूडान आदि में भी तीन तलाक प्रतिबंधित है। इनमें वे मुल्क भी शामिल हैं जिन्हें हम अन्यथा कट्टर मजहबी देश मानते हैं। लेकिन भारत में अगर यह सब चलता रहा तो इसका दोष हम कुछ हद तक राजनीति को भी दे सकते हैं, कुछ सामाजिक जड़ता को भी और कुछ उन लोगों को भी, जिन्हें इस जड़ता के टूटने से डर लगता है। इधर सरकार ने कहा है कि तीन तलाक पर किसी नए कानून की जरूरत नहीं है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहाöसरकार इस मुद्दे पर संरचनात्मक एवं व्यवस्थित तरीके से विचार करेगी, प्रथम दृष्ट्या इस फैसले को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि (पांच सदस्यीय पीठ में) बहुमत ने इसे असंवैधानिक और अवैध बताया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस फैसले को उन लोगों के लिए बड़ी जीत करार दिया जिनका मानना है कि पर्सनल कानून प्रगतिशील होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि फैसला अब देश का कानून है। जेटली ने यह भी कहा कि इस्लामी दुनिया के कई हिस्सों में तीन तलाक की प्रथा को खारिज कर दिया गया है। ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड भी जानता है कि वह संवैधानिक आधार पर तीन तलाक को अब वाजिब नहीं ठहरा सकता, इसलिए उसने मुस्लिम महिलाओं के हितों का ध्यान रखने के लिए निकाहनामा में कुछ नई बातें जोड़ने की पेशकश की थी। पर अदालत ने इस तरह के पचड़े में पड़ने के बजाय संविधान की आत्मा की आवाज सुनी। इस फैसले से बोर्ड को कुछ सबक लेना चाहिए, समझना चाहिए कि संविधान सर्वोपरि है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च अदालत का यह फैसला मुस्लिम समाज में एक नई जागृति का सबब बनेगा। दुखद बात यह है कि जब तक ये मौलवी नहीं मानते तलाक-तलाक-तलाक जारी रहने की संभावना है।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday 24 August 2017

कहीं बाढ़ से तबाही तो कहीं सूखे से परेशानी

देश के कई राज्य इस समय बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं। बिहार में बाढ़ से मौतों का सिलसिला जारी है। रविवार को भी 58 लोगों की मौत हो  गई। हालांकि प्रभावित इलाकों में पानी उतरने से लोगों को कुछ राहत जरूर मिली है पर बांधों पर पानी का दबाव बढ़ने से संकट बना हुआ है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में उफनती महानंदा नदी का पानी नेशनल हाइवे के ऊपर आ जाने से वाहनों के पहिए ठहर गए हैं। मालदा में हालात नहीं सुधरने पर फरक्का से लेकर उमपुर तक करीब 40 किलोमीटर तक ट्रकों की कतारें लग गई हैं। बिहार में मृतकों की संख्या 350 से ऊपर पहुंच चुकी है। पूर्वी बिहार कोसी और सीमांचल में अब तक 188 लोग डूब चुके हैं। सबसे ज्यादा अरररिया में तबाही है। यहां 60 लोगों की जान जा चुकी है। उत्तर प्रदेश में कई जगह बाढ़ की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिख रहा है। गोरखपुर में राप्ती नदी के बढ़ते दबाव के चलते मंझरिया के पास बांध टूट गया, जिससे कई गांव पानी में डूब गए हैं। पानी थोड़ा और बड़ा तो गोरखपुर, लखनऊ, रेलमार्ग पर आवागमन प्रभावित हो सकता है। गंगा जहां खतरे के निशान से नीचे है वहीं घाघरा ने अपना दायरा तटों से आगे बढ़ा दिया है। बलिया, मऊ और आजमगढ़ में घाघरा का कहर जारी है। राज्य में पिछले 24 घंटों के दौरान बाढ़ के कारण कुल 16 लोगों की मौत की खबर है। इनमें नौ बच्चे भी शामिल हैं। विडम्बना देखिए कि इस साल मानसून आधा बीत जाने के बाद भी देश के एक चौथाई से ज्यादा हिस्से में कम बारिश हुई है। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक देशभर में हुई बारिश को मिलाकर पांच प्रतिशत कम बारिश हुई है लेकिन देश के 26 प्रतिशत भू-भाग में यह कमी ज्यादा है। विभाग के मुताबिक बारिश का यह अभाव मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिस्सों में ज्यादा है। मौसम विभाग ने वर्ष 2017 के लिए सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का अनुमान व्यक्त किया था जो जून से सितंबर तक रहता है। कम बारिश वाले राज्यों में खरीफ (गर्मी) फसलों की बुआई प्रभावित हुई है। मराठवाड़ा, विदर्भ और मध्य प्रदेश के पूर्वी इलाकों में बारिश का अभाव रहा है। केरल के कुछ हिस्सों में लगातार दूसरे साल कम बारिश हुई है। वहीं कुछ राज्य खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और गुजरात को बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ इलाकों में 32 फीसदी कम वर्षा दर्ज की गई है। इन इलाकों में सूखे के कारण पिछले कुछ वर्षों में कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं। हरियाणा में 27 फीसदी, दिल्ली में 39 फीसदी, गोवा में 25 फीसदी, नगालैंड में 30 और मणिपुर में 57 फीसदी कम वर्षा दर्ज की गई है। विडम्बना है कि नहीं कहीं बाढ़ से तबाही तो कहीं सूखे से परेशान किसान।

-अनिल नरेन्द्र

नौ साल जेल में रहने के बाद कर्नल पुरोहित को जमानत

मालेगांव विस्फोट के बहुचर्चित मामले में आरोपी ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिलना बड़ी घटना इसलिए है कि वह नौ वर्षों से जमानत के लिए संघ्एार्ष कर रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। उन्हें महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते ने कथित हिंदू आतंकवाद का मुख्य सूत्रधार साबित करने की पुरजोर कोशिश की थी। मालेगांव ब्लास्ट में ले. कर्नल पुरोहित और पूर्व मेजर रमेश उपाध्याय, स्वामी दयानंद की गिरफ्तारी के बाद से ही भगवा आतंकवाद शब्द प्रचलन में आया गया। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदूवादी संगठनों पर आतंकी घटनाओं में शामिल होने का आरोप लगाया था। तब गृहमंत्री रहे पी. चिदंबरम ने तो 2010 में राज्य पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंकवाद से सावधान रहने की सलाह तक  दी थी। कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो उसके खिलाफ विरोधी स्वर उठने लगे। यही नहीं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तो मुंबई में 26 नवंबर 2008 को आतंकी हमले में पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की मौत के पीछे भी हिंदूवादी संगठनों की साजिश बता डाला क्योंकि एटीएस प्रमुख के तौर पर वे मालेगांव विस्फोट की जांच कर रहे थे। सारी दुनिया जानती है कि हेमंत करकरे कसाब एंड पार्टी के शिकार हुए थे। अप्रैल में इसी मालेगांव ब्लास्ट केस में कांड की प्रमुख अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी जमानत मिल गई थी। कर्नल पुरोहित को सशर्त जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी की अनदेखी करना कठिन है कि किसी की जमानत की मांग सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती, क्योकि एक समुदाय की भावनाएं अभियुक्त के खिलाफ हैं। क्या पुरोहित अभी तक इसी आधार पर जमानत से वंचित रहे? हालांकि जमानत मिलना निर्दोष साबित नहीं होता, किंतु पुरोहित की जमानत पर बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में जो बहस हुई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जो दलीलें दीं तथा अदालतों ने जो टिप्पणियां की हैं, उससे तत्काल लगता है कि जैसे आरोपितों पर अभी तक कायदे से मामला नहीं चला है। एनआईए के विरोध के बावजूद सोमवार को शीर्ष अदालत ने इस संबंध में बॉम्बे होई कोर्ट का फैसला रद्द करते हुए 45 वर्षीय पुरोहित को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। जस्टिस आरके अग्रवाल व जस्टिस एएम सप्रे की पीठ ने अपने आदेश में कहा-जमानत से सिर्फ इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता कि समुदाय की भावना आरोपी के खिलाफ हैं। मुंबई एटीएस और एनआईए द्वारा दायर चार्जशीट में अंतर  है। ट्रायल के स्तर पर दोनों चार्जशीट का परीक्षण किया जाएगा। कोर्ट किसी एक चार्जशीट पर गौर नहीं कर सकती। पुरोहित ने इसी मामले में आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को बाम्बे हाई कोर्ट में जमानत दिए जाने को आधार बनाते हुए अपनी याचिका दायर की थी। इस मामले में जो संगठन कठघरे में खड़ा हुआ और जिसकी मदद करने के आरोप में श्रीकांत पुरोहित को गिरफ्तार किया गया वह अभिनव भारत है। इस संगठन का साथ देने वालों में एक अन्य नाम प्रज्ञा सिंह ठाकुर का भी था। लेकिन विस्फोट कराने के आरोप सिद्ध न होने पर उन्हें जमानत मिल गई। जाहिर है कि इसमें श्रीकांत पुरोहित पर सैन्य ठिकाने से आरडीएक्स विस्फोटक जुटाकर प्रज्ञा ठाकुर और उनके साथियों को देने का आरोप अपने आप खारिज हो गया। यह भी पुरोहित के पक्ष में गया कि प्रारंभ में इस मामले की जांच करने वाले महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते और फिर जांच हाथ में लेने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी के निष्कर्ष विरोधाभासी हैं। मालेगांव विस्फोट एक ऐसा कांड था  जिसका पूरा सच हम अभी भी नहीं जानते, लेकिन एक बात तो साफ है कि शुरुआत से ही इस मामले का सियासी इस्तेमाल हो रहा था। एक तरफ इसके लिए भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़े गए थे, तो दूसरी तरफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के तर्क भी दिए गए। सच जो भी हो, लेकिन आतंकवाद जैसी संवेदनशील समस्या पर इस तरह की राजनीति हो इससे केवल आतंकियों को फायदा होता है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में न तो मजहब आना चाहिए न ही राजनीति आनी चाहिए। इसके लिए बनी जांच एजेंसियों को पूरी तरह स्वतंत्र और स्वायता से जांच करनी चाहिए। इसी के साथ यह भी जरूरी है कि आतंकवाद से जुड़े जो भी अन्य मामले हैं उनमें भी जांच और अदालती कार्रवाई आगे बढ़ाने का काम प्राथमिकता के आधार पर हो।

Wednesday 23 August 2017

इंफोसिस में सीईओ सिक्का के इस्तीफे से आया विशाल भूचाल

देश की सबसे दूसरी बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस में चल रही उथल-पुथल ने न केवल कंपनी के अंदर ही भूचाल ला दिया बल्कि देश के शेयर बाजार में भी भारी उथल-पुथल मचा दी। एनआर नारायणमूर्ति की अगुवाई में इंफोसिस के प्रमोटरों और कंपनी के सीईओ विशाल सिक्का के नेतृत्व में निदेशक बोर्ड के बीच तनातनी पिछले एक साल से चल रही थी। लेकिन हाल ही में मूर्ति के एक ई-मेल ने इस तनाव को चरम पर पहुंचा दिया जिसको यह मीडिया को भी लीक कर दिया गया इससे हालात और खराब होते चले गए और अंतत विशाल सिक्का ने शुक्रवार को इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के चलते कंपनी के शेयरों में तेज गिरावट आई और एक दिन में ही निवेशकों के 30 हजार करोड़ रुपए डूब गए। कंपनी में 3.44 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले नारायणमूर्ति परिवार को भी 1000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस्तीफे के पीछे तीन-चार वजहें बताई जा रही हैं। सिक्का के पैकेज पर नारायणमूर्ति को शुरू से ही एतराज था। एक अगस्त 2014 को विशाल सिक्का ने सीईओ का पद संभाला। 2016 में सिक्का का पैकेज 70 हजार करोड़ करने पर मूर्ति को आपत्ति थी। कंपनी ने बताया कि यह पैकेज परफार्मेंस से जोड़ा है। इस दौरान कंपनी का रेवेन्यू 15 हजार करोड़ रुपए तक बढ़ा। पूर्व सीईओ राजीव बंसल को सेवरेंस पैकेज 17.8 करोड़ रुपए यानि दो साल की सैलरी जितना था। आरोप लगा कि इजरायली कंपनी पनामा ज्यादा कीमत पर ली। इसमें कंपनी अधिकारियों के हित हैं। मंत्री जयंत सिन्हा की पत्नी को निदेशक बनाने पर भी विवाद हुआ। मूर्ति-सिक्का विवाद टाटा-मिस्त्राr जैसा ही है। रतन टाटा से विवाद कर ग्रुप ने 2016 में पहले गैर टाटा चेयरमैन साइरस मिस्त्राr को हटा दिया था। इंफोसिस के गैर संस्थापक सीईओ सिक्का को भी मूर्ति से विवाद में इस्तीफा देना पड़ा। विशाल सिक्का का 2014-15 में 4.56 करोड़ रुपए का सालाना वेतन पैकेज था जो 2015-16 में 48.73 करोड़ रुपए कर दिया गया था। 2016-17 में कम बोनस के कारण सिक्का का पैकेज घट गया था। कैश कंपोनेंट 2015-16 के 48.73 करोड़ से 67 प्रतिशत घटकर 16.01 करोड़ रह गया। बोनस और स्टॉक मिलाकर उन्हें 45.11 करोड़ मिले जो पिछले साल की तुलना में सात प्रतिशत कम है। तीन साल पहले कंपनी का काम संभालने वाले विशाल सिक्का देश के सबसे ज्यादा वेतन (सालाना 48 करोड़ से ज्यादा) पाने वाले सीईओ थे। वे कंपनी के पहले ऐसे सीईओ थे जो संस्थापकों के समूह से ताल्लुक नहीं रखते थे। अमेरिका की स्टैन फोर्ड यूनिवर्सिटी के कम्प्यूटर साइंस में पीएचडी 50 वर्षीय सिक्का ने निदेशक बोर्ड को पत्र में कहा, कुछ समय से मैं खुद पर लगाए जा रहे झूठे, बेबुनियाद और दुर्भाग्यपूर्ण आरोपों से आहत हूं। हालांकि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया पर समझा जाता है कि इशारा नारायणमूर्ति की ओर है। सिक्का ने कहाöमेरे खिलाफ लगाए गए सभी आरोप कई बार स्वतंत्र जांच में गलत पाए गए हैं, इसके बावजूद व्यक्तिगत हमले बंद नहीं हुए हैं। मजबूर होकर मुझे यह फैसला करना पड़ा। उधर कंपनी के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने कहा है कि वे कंपनी के निदेशक बोर्ड द्वारा उन पर लगाए गए आरोपों से आहत हैं पर वे सही वक्त पर जवाब देंगे। इंफोसिस कंपनी अब आए इस भूचाल के डैमेज कंट्रोल में लग गई है। कंपनी के निदेशक मंडल ने शनिवार को 13,000 करोड़ रुपए तक के शेयरों को पुनर्खरीदने की योजना को मंजूरी दे दी। कंपनी ने एक बयान में कहा कि पुनर्खरीद के लिए प्रति शेयर 1150 रुपए का भाव तय किया गया है। यह भाव कंपनी के शुक्रवार के बाजार बंद होने के 923.10 रुपए के भाव से करीब 25 प्रतिशत अधिक है। उधर अमेरिका की चार कानून कंपनियों ने इंफोसिस के खिलाफ जांच शुरू कर दी है। उन्होंने इंफोसिस के निवेशकों की तरफ से इन संभावित दावों की जांच शुरू की है कि क्या कंपनी या उसके अधिकारियों एवं निदेशकों ने संघीय सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया है?

-अनिल नरेन्द्र

क्या दिल्ली की अदालतों में पुख्ता सुरक्षा प्रबंध हैं?

दिल्ली हाई कोर्ट में बम की सूचना ने एक बार फिर दिल्ली की अदालतों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बृहस्पतिवार को दिल्ली हाई कोर्ट को बम से उड़ाने की धमकी मिली। फोन करने वाले ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना देकर कहा कि एक घंटे के भीतर कोर्ट में बम फट जाएगा। खबर मिलते ही नई दिल्ली जिला पुलिस व हाई कोर्ट की इंटरनल सिक्यूरिटी को अलर्ट कर दिया गया। डॉग व बम स्क्वायड, स्पेशल सेल, आपदा प्रबंधन, दमकल विभाग के अलावा अन्य बचाव दल मौके पर पहुंच गए। जैसे ही कोर्ट में मौजूद लोगों को बम की खबर लगी तो अफरातफरी मच गई। तलाशी के दौरान करीब 30 मिनट के लिए कोर्ट की कार्रवाई भी रोकनी पड़ी। कई घंटे चले तलाशी अभियान के बाद सूचना को झूठा करार दे दिया गया। बता दें कि इससे पूर्व दो बार हाई कोर्ट में बम विस्फोट हो चुके हैं। अदालतों में कई बार गोलीबारी भी हो चुकी है। रोहिणी, कड़कड़डूमा, पटियाला हाउस सहित कई अन्य अदालतों में कई बार गोलियां चली हैं। घटना होते ही कड़ी सुरक्षा के दावे किए जाते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में हालात पहले जैसे हो जाते हैं। वकील और अदालतों में आने वाले लोगों की जान हमेशा जोखिम में रहती है। हाई कोर्ट में सुरक्षा कहने को तो कड़ी है, लेकिन वकील की ड्रेस में कोई भी आतंकी या शरारती तत्व अदालत में पहुंच जाए तो उसे रोकना मुश्किल होगा। बेशक कोर्ट की सुरक्षा में लगा दिल्ली पुलिस का स्टाफ अदालत में जाने वाले व्यक्तियों की जांच तो करता है लेकिन वकील और उनके स्टाफ की जांच से पीछे हट जाता है। कोई भी वकील की ड्रेस में अंदर आ जाए तो उसे रोकने वाला कोई नहीं है। तीस हजारी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव ने माना कि कोर्ट की सुरक्षा राम भरोसे है। ट्रायल कोर्ट होने के कारण जहां प्रतिदिन अपराधियों को पेश किया जाता है उनके साथ काफी लोग होते हैं। कुछ दुश्मन भी होते हैं जो बदला लेने की ताक में रहते हैं। दिल्ली की अदालतों में कई ऐसी वारदातें हो चुकी हैं। 23 दिसम्बर 2015 की सुबह करीब पौने 12 बजे कड़कड़डूमा अदालत में चार हमलावरों ने कोर्ट रूम 73 में घुसकर एक बदमाश इरफान उर्फ छेनू पर गोलियां बरसाईं। जनवरी 2014 में कोर्ट परिसर के गेट नम्बर पांच के पास सुबह बदमाशों ने गोलीबारी की थी। हत्या के प्रयास के आरोपी जितेन्द्र उर्फ गोगी (23) को कोर्ट रूम ले जाते समय एक युवक ने गोली मार दी थी। इन अदालतों में जो पार्किंग लॉट बने हुए हैं वह भी सुरक्षा की दृष्टि से सेफ नहीं हैं। गाड़ी में कोई भी गोला-बारूद लेकर जा सकता है। दिल्ली की अदालतों में भीड़ इतनी बढ़ती जा रही है कि आखिर पुलिस भी कहां तक पुख्ता सुरक्षा बंदोबस्त कर सकती है। अदालतों के पुख्ता सुरक्षा प्रबंधन पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

Tuesday 22 August 2017

निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने की न तो मजबूरी है न तुक

राजधानी दिल्ली में निजी स्कूलों की फीस के मुद्दे पर स्कूल प्रशासन और दिल्ली सरकार आमने-सामने है। निजी स्कूलों में फीस बढ़ोत्तरी के मामले में दिल्ली सरकार ने स्टैंड ले लिया है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार का निजी स्कूलों का जबरन अधिग्रहण करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन उन्हें अधिक वसूली गई फीस अभिभावकों को वापस करनी होगी। उन्होंने कहा कि सरकार राजधानी के सभी निजी स्कूलों का अकाउंट चैक करेगी। सरकार की कोशिश यह पता करने की होगी कि अदालत के आदेश पर स्कूलों ने अभिभावकों की फीस लौटाई या नहीं। शुक्रवार को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि स्कूलों के खिलाफ आने वाली शिकायतों को सरकार गंभीरता से ले रही है। जल्द ही स्कूलों को नोटिस जारी किया जाएगा। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि इन स्कूलों ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए फीस बढ़ाई। बाद में यह माना गया था कि यह बढ़ोत्तरी वैध नहीं थी और इन स्कूलों को फीस वापस करने के लिए कहा गया था। लेकिन उन्होंने फीस नहीं लौटाई। केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने ऐसा नहीं किया। बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों के खातों की जांच के लिए दुग्गल कमेटी गठित की थी। वर्ष 2009 में फीस वृद्धि के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। इस पर 12 अगस्त 2011 को हाई कोर्ट ने जस्टिस अनिल देव कमेटी गठित कर सभी निजी स्कूलों की फीस सही है या गलत, इसकी जांच करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में मॉर्डन स्कूल बनाम भारत सरकार के मामले में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय को सभी सरकारी व गैर सरकारी जमीन पर बने निजी स्कूलों के खातों की हर साल जांच कराने का आदेश दिया था, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। स्कूलों के खिलाफ मनमानी करने की कानूनी लड़ाई 20 वर्ष पहले शुरू हुई थी। दिल्ली अभिभावक संघ ने आठ सितम्बर 1997 को हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनकी याचिका पर हाई कोर्ट ने अक्तूबर 1998 में फैसला देते हुए कहा था कि स्कूलों के खातों की जांच करना न सिर्फ सरकार का अधिकार है बल्कि जिम्मेदारी भी है। मनीष सिसोदिया ने बताया कि अनिल देव कमेटी ने 1108 निजी स्कूलों का अकाउंट चैक किया था। इसमें से 544 स्कूलों ने तय नियमों का उल्लंघन कर ज्यादा फीस ली थी। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने फीस लौटाने का आदेश दिया था। 544 स्कूलों में से 95 स्कूल अलग-अलग श्रेणियों के होने से बाहर हो गए। इसके बाद बचे 449 स्कूलों को कारण बताओ नोटिस दिया गया। वहीं अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि एक स्कूल ऐसा मिला जिसके पास 19 करोड़ रुपए का सरप्लस है, एक अन्य के पास पांच करोड़ का। ऐसे में फीस बढ़ाने का न तो कोई कारण है न तुक।

-अनिल नरेन्द्र

चीन युद्ध की धमकियां दे रहा है पर क्या वह हमला करेगा?

पिछले दो महीने से भूटान के डोकलाम सीमा पर भारत और चीन के बीच तनातनी जारी है। दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। इस पूरे परिदृश्य में भूटान का क्या स्टैंड है? आखिर क्या है डोकलाम का सामरिक महत्व? भूटान और भारत के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। दोनों के बीच एक समझौता भी है जिसके तहत आर्थिक और सामरिक स्तर पर दोनों देश साथ हैं। डोकलाम सीमा पर चीन द्वारा सड़क निर्माण को लेकर भूटान ने अपनी आपत्ति जता दी है। भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं। वहीं भारत और भूटान के बीच काफी गहरे संबंध हैं। दोनों के बीच 1949 में फ्रेंडशिप ट्रीटी हुई थी। इसके तहत भूटान को अपने विदेशी संबंधों के मामले में भारत को भी शामिल करना होता था। 2007 में इस समझौते में संशोधन हुआ था। क्या भूटान और भारत की करीबी चीन को खटकती है? चीन ने भूटान के साथ सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश की। वह चाहता था कि इसमें भारत शामिल नहीं हो। हालांकि इस मामले में भूटान ने साफ कहा कि जो भी बात होगी वो भारत की मौजूदगी में होगी। 1949 में भारत और भूटान के बीच जो फ्रेंडशिप समझौता हुआ था उसमें 2007 में संशोधन किया गया था। संशोधन से पहले इस समझौते में था कि भूटान सभी तरह के विदेशी संबंधों के मामले में भारत को सूचित करेगा। संशोधन के बाद इसमें जोड़ा गया कि जिन विदेशी मामलों में भारत सीधे तौर पर जुड़ा होगा। उन्हीं में उसे सूचित किया जाएगा। चीन को यह संधि खटकती है। ऐसा माना जाता है कि भूटान और भारत के बीच की दोस्ती को और करीब लाने में इस समझौते का बड़ा योगदान रहा है। भारत और भूटान के बीच यह संधि चीन को हमेशा खटकती रही है। भूटान और चीन के बीच जो वार्ता है उसमें भारत की कोई लीगल भूमिका तो नहीं है हालांकि भारत का हित प्रभावित होगा और उसमें भूटान को भारत को सूचित करना होगा। चीन और भूटान के बीच पश्चिम और उत्तर में करीब 471 किलोमीटर लंबी सीमा है। दूसरी तरफ भारत और भूटान की सीमा पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में 605 किलोमीटर है। डोकलाम ट्राई जंक्शन पर चीनी सेना के जमावड़े को भारतीय सेना ने तीन तरफ से घेर रखा है। तीनों दिशाओं में भारतीय सेना चीनी सेना के मुकाबले ऊंचाई पर है। इस सामरिक व सैन्य बढ़त ने डोकलाम में चीन को उलझा दिया है। यही वजह है कि चीन भले ही बार-बार युद्ध की धमकी दे रहा हो, लेकिन उसके लिए किसी भी सैन्य कार्रवाई की राह आसान नहीं है। सामरिक रणनीतिकारों के मुताबिक डोकलाम में ही नहीं, पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर चीन को किसी कार्रवाई के लिए बड़ी तैयारी करनी होगी। अरुणाचल के भी कुछ क्षेत्रों को छोड़ पूरी एलओसी पर भारतीय सेना की सामरिक और सैन्य स्थिति मजबूत है। चीन इससे भी परेशान है। बड़े संसाधन वाला देश होने के बावजूद उसे वैश्विक स्तर पर ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा। अमेरिका, आस्ट्रेलिया के बाद जापान ने भारत के पक्ष में खड़े होकर चीन की चिन्ता बढ़ा दी है। रणनीतिकारों के मुताबिक अगर चीन भारत पर हमला करने का फैसला करता है तो उसे हर भारतीय सैनिक के लिए अपने कम से कम नौ सैनिक लगाने होंगे। पारंपरिक युद्ध नियमों की मानें तो हमलावर सेना को दुश्मन के मुकाबले नौ से बारह गुणा अधिक संसाधन का इस्तेमाल करना पड़ता है। चीन के पास संसाधन की बेशक कमी नहीं हो पर इसकी तैयारी में उसे लंबा वक्त लगेगा। जब तक चीन 100 फीसद जीत के लिए आश्वस्त नहीं होगा आक्रमण नहीं करेगा। पाकिस्तान और उत्तरी कोरिया के अलावा कोई भी देश चीन के साथ खड़ा नहीं दिख रहा। यही वजह है कि चीन तरह-तरह की धमकियां देकर दबाव देने की कोशिश में है।

Sunday 20 August 2017

अब तक अछूता रहा स्पेन भी आतंक का शिकार

यह सभी को मालूम है कि कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के निशाने पर यूरोप है। पिछले कुछ समय से यूरोप के विभिन्न देशों में आईएस हमले कर रहा है। ताजा केस स्पेन का है। स्पेन में कुछ ही घंटे के अंतराल पर लगातार दो आतंकी हमले हुए। गुरुवार को शाम चार बजकर पचास मिनट पर एक सफेद वैन ने स्पीड में लहरते हुए सड़क किनारे खड़े लोगों को जानबूझ कर निशाना बनाया। इस हमले की चपेट में 18 देशों के नागरिक आ गए। इनमें जर्मनी, रोमानिया, इटली, अल्जीरिया और चीन जैसे देश शामिल हैं। यह हमला बार्सिलोना के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लास रमब्लास में हुआ जो बार्सिलोना शहर के केंद्र में स्थित 1.2 किलोमीटर लंबा रास्ता है। पुलिस ने इस मामले में मोरक्को के एक व्यक्ति और उत्तरी अफ्रीका के एक शख्स को गिरफ्तार किया है। तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। पिछले एक साल में यूरोप में कई शहरों में भीड़ पर गाड़ी चढ़ाने या दौड़ाने की कई घटनाएं हुई हैं। पेरिस में नौ अगस्त 2017 को एक व्यक्ति ने कुछ सैनिकों पर डीएमडब्ल्यू गाड़ी दौड़ा दी, इसमें छह लोग घायल हो गए। लंदन में तीन जून 2017 को तीन जेहादियों ने लंदन ब्रिज पर लोगों पर वैन दौड़ा दी और कई लोगों पर चाकू से हमला किया। जून महीने में ही फिन्सबरी पार्क में मुसलमानों पर एक वैन के हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। 22 मार्च 2017 को वैस्ट मिनिस्टर ब्रिज पर लोगों पर एक गाड़ी दौड़ा दी गई और कार चालक ने एक पुलिसकर्मी को चाकू से हमला कर मार दिया। बर्लिन में क्रिसमस बाजार में भीड़ को निशाना बनाया गया। फ्रांस के शहर नीस में 14 जुलाई 2016 को ट्यूनीशिया मूल के मोहम्मद लावेइज बहूलत डे पर आतिशबाजी देखने के लिए पहुंची भीड़ पर एक लारी से हमला किया गया जिसमें 86 लोगों की मौत हो गई। भीड़ पर गाड़ी चढ़ाने की घटना के कुछ ही घंटे बाद स्पेन के तटीय शहर कैम्बील्स में कुछ अन्य संदिग्धों ने इसी तरह की घटना को अंजाम देने की कोशिश की पर पुलिस ने हमला विफल करते हुए मुठभेड़ में पांच संदिग्ध आतंकियों को मारा गिराया। ऐसा माना जा रहा है कि यह हमला बार्सिलोना में हुए हमले का ही हिस्सा था। उधर स्पेन के प्रधानमंत्री मारियानो रखॉय ने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। प्रधानमंत्री ने इसे जेहादी हमला बताया। इस्लामिक स्टेट ने यूरोप के कई शहरों में हमले किए हैं पर पिछले एक दशक में यूरोप में हुए आतंकी हमलों से स्पेन अब तक अछूता रहा था। स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आखिरी हमला मार्च 2004 में हुआ था। उस वक्त ट्रेन में हुए धमाकों में 194 लोग मारे गए थे और 180 से ज्यादा घायल हुए थे। अब स्पेन भी निशाने पर आ गया है।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रेनों में बढ़ती असुरक्षा ः आए दिन यात्री लुट रहे हैं

मेरे भारत महान में रेलगाड़ी से सफर करने वाले यात्री कहीं भी सुरक्षित अब नहीं हैं। न स्टेशन के अंदर और न ही ट्रेनों के अंदर। राजधानी के अहम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी पिछले महीने झपटमारी और बच्चे के अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम दिया गया। बेहद सुरक्षित माने जाने वाले राजधानी के एसी कोचों में अब तक की सबसे बड़ी चोरी की खबर है। मुंबई से दिल्ली आ रही अगस्त क्रांति राजधानी एक्सप्रेस में बदमाशों ने सात एसी कोचों के यात्रियों को बेहोश करके लाखों रुपए की नकदी, ज्वैलरी, घड़ियां और मोबाइल पर हाथ साफ कर दिया। यह वारदात मध्यप्रदेश के रतलाम के पास हुई। बदमाशों ने राजधानी के एसी-2 और एसी-3 टीयर कोचों को निशाना बनाया। वारदात को देर रात दो से तीन बजे के बीच अंजाम दिया गया। करीब 25 यात्रियों ने पर्स, गहनें और अन्य कीमती सामान लूटे जाने की बात कही है। डीसीपी (रेलवे) परवेज अहमद के मुताबिक मंगलवार-बुधवार की रात वारदात को अंजाम दिया गया। कुछ यात्रियों के मुताबिक इसी ट्रेन में एक-दो दिन पहले भी चोरी हुई थी, लेकिन घटना को दबा दिया गया। एक वरिष्ठ अधिकारी से भी इस मामले में पूछताछ की जाएगी। अगर कोई रेलवे कर्मचारी इसमें शामिल पाया गया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर 11 यात्रियों ने एफआईआर दर्ज कराई है। इनके मुताबिक ट्रेन कोटा में जागने पर कुछ यात्रियों ने पाया कि उनके पर्स, सामान और दूसरी चीजें गायब हैं। ढूंढने पर खाली पर्स टॉयलेट के पास पड़े मिले। कुछ का कहना है कि उनके आई-फोन दूसरे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण गायब हैं। कई के आधार कार्ड और दूसरे संवेदनशील दस्तावेज चोरी होने की शिकायत है। कुछ एफआईआर में कहा गया कि उन्हें बेहोश कर दिया गया था। कइयों ने इस वारदात में रेलवे स्टाफ के शामिल होने का आरोप लगाया। राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेनों को भी बदमाश लगातार निशाना बना रहे हैं। अगस्त क्रांति एक्सप्रेस से पहले अप्रैल में पटना राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन में भी बिहार के बक्सर के पास लूटपाट की गई थी। इस वारदात में तो तीन यात्री घायल भी हुए थे। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अभी हाल ही में इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस में एक महिला समेत चार यात्रियों से छीना-झपटी की वारदात को अंजाम दिया गया। दिल्ली रेल मंडल में ही इस साल जून तक चोरी का आंकड़ा 1225 के करीब पहुंच गया है। पिछले साल इस तरह की कुल वारदात 2874 हुई थीं। इस महीने तक बदमाशों ने एक दर्जन ट्रेनों में लूटपाट की है। इस साल तीन ट्रेनों में डकैती भी हुई है और चार यात्रियों की हत्या का भी मामला सामने आया है। हमारा मानना है कि रेलयात्रियों की सुरक्षा के मकसद से एक केंद्रीय बल फौरन बनाने की जरूरत है जिसके पास चोरों और लुटेरों से निपटने के ज्यादा अधिकार हों। अरसे से ऐसी मांग होती रही है लेकिन अपनी लापरवाही पर लीपापोती करके रेल मंत्रालय और जीआरपी जैसे तंत्र इसके गठन में रोड़ा अटकाते रहे हैं। भारतीय रेल को ध्यान रखना होगा कि उसकी खूबी सिर्फ यही नहीं है कि वह दुनिया के विशालतम रेल नेटवर्क का कुशलता से संचालन करती है, बल्कि यह भी होना चाहिए कि उसकी ट्रेनों में यात्रा हर तरह से सुरक्षित हो। रेल मंत्रालय किराये बढ़ाता जा रहा है और सुविधाएं बढ़ाना तो दूर, यात्रियों की सफर में सुरक्षा तक देने में फेल हो रहा है। रेलमंत्री संवेदनशील व्यक्ति हैं, उम्मीद की जाती है कि वह इस समस्या पर गौर करके तत्काल कोई स्थायी समाधान करेंगे।

Saturday 19 August 2017

आफत की बारिश

देश में भारी बारिश से हाहाकार मचा हुआ है। बारिश न हो तब भी हाहाकार और ज्यादा हो जाए तो तबाही। देश के चार राज्योंöउत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और असम में बारिश से भारी तबाही हुई है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में सोमवार को सुबह बादल फटने से नौ लोगों की मौत हो गई। वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में कई जिले जलमग्न हैं। असम में बाढ़ से बिगड़े हालात के कारण कई ट्रेनों को बुधवार तक रद्द कर दिया गया है। उत्तराखंड में कैलाश मानसरोवर मार्ग में रविवार देर रात भालपा और मांगती नाले से सटे क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही हुई जिसमें सेना के जेसीओ सहित नौ लोगों की मौत हो गई। यूपी में नदियां ऊफान पर हैं। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र में लगातार हो रही भारी बारिश के चलते उत्तरी पूर्वांचल में नदियां उफान पर हैं। प्रदेश के 40 जिले बाढ़ से घिरे हैं। कुशीनगर में रिंग बांध सोमवार को टूट गया। इससे कई गांवों में बाढ़ का पानी भर गया। हिमाचल प्रदेश सहित नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में हो रही लगातार बारिश के कारण जलाशयों का जल स्तर बढ़ने और इनका पानी छोड़े जाने से पंजाब में हजारों एकड़ की फसलें जलमग्न हो गई हैं और सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पोंग डैम से पानी छोड़े जाने तथा अन्य सहायक नदियों के पानी ने पंजाब के तरनतारन जिले में ब्यास नदी के पानी ने तबाही मचाई हुई है। अरुणाचल प्रदेश में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य के विभिन्न स्थानों पर सड़क यातायात बाधित है। कई जिलों में व्यापक तौर पर भोजन का संकट उत्पन्न हो गया है। बिहार और नेपाल में हो रही बारिश के कारण 13 जिले बाढ़ की चपेट में हैं। प्रभावित जिलों में रेल व सड़क सम्पर्क सेवा बाधित हुई है। सेना, एनडीआरएफ की टीम के अलावा सेना के दो हेलीकाप्टर की सहायता से युद्ध स्तर पर राहत और बचाव कार्य चलाया जा रहा है। असम में 22.5 लाख लोगों पर राज्य के 21 जिलों में आफत आ गई है। 99 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। राहत कार्य के लिए सेना बुलाई गई है। बाढ़ की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि केंद्र सरकार बिहार, यूपी और असम की बाढ़ की स्थिति पर नजर रखे हुए है। बचाव राहत कार्य में मदद के लिए एनडीआरएफ के दल भेजे गए हैं। बारिश से तबाही का यह सिलसिला हर साल होता है। देश के कुछ भागों में पानी की कमी होने से लोग मरते हैं तो अन्य क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होने से। इतने वर्षों में इसका कोई स्थायी समाधान नहीं हो सका। हमारे पास सब तरह के विभाग हैं, योजनाएं हैं पर समाधान नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

...और अब बिहार में सृजन घोटाला, करोड़ों की हेराफेरी

...और अब बिहार में सृजन घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। सृजन घोटाले में शनिवार तक सात एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। शुक्रवार को इसमें सात लोगों की गिरफ्तारी हुई। महाघोटाले में कल्याण विभाग की 100 करोड़ रुपए की हेराफेरी का पता चला है। अब तक 750 करोड़ रुपए के गबन के मामले सामने आ चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग में भी 50 लाख रुपए के गबन का मामला उजागर हुआ है। भूअर्जन के बाद भागलपुर में सबसे ज्यादा कल्याण विभाग में राशि की हेराफेरी की गई। इस बीच गिरफ्तार किए गए भागलपुर के डीएम के स्टेनोग्राफर प्रेम कुमार सहित सात आरोपियों को जेल भेज दिया गया है। भागलपुर में सरकारी राशि के गबन में एनजीओ सृजन और बैंक के फर्जीवाड़े में अब तक 418 करोड़ रुपए गबन के कागजात मिल चुके हैं। बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने शनिवार को कहा कि इस बात की भी जांच कराई जाएगी कि एनजीओ के खाते में बैंक ने सरकार की जो मोटी राशि स्थानांतरित की वह कहां गई? मुख्य सचिव ने कहा कि पूरे प्रकरण की जांच काफी सूक्ष्मता से हो रही है। सभी जिलों को पूर्व में यह निर्देश दिया गया है कि वे अपने सभी विभागों से जुड़े बैंक खातों का सत्यापन कराएं। भागलपुर के सृजन घोटाले पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी समेत भाजपा के कई नेताओं पर हमला बोला है। लालू ने इसे पशुपालन से भी बड़ा घोटाला करार दिया और सुशील मोदी को घोटालेबाजों का संरक्षक बताया। उन्होंने पूछा कि मुख्यमंत्री की जीरो टालरेंस की नीति कहां गई? इतना बड़ा घोटाला सरकारी संरक्षण के बिना हो गया क्या? लालू ने मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। भ्रष्टाचार के मामले में लगातार दो महीने तक प्रेस कांफ्रेंस करके लालू परिवार को परेशानी में डालने वाले सुशील मोदी पर लालू ने पलटवार करते हुए कहा कि सृजन घोटाले की प्रकृति चारा घोटाले से मिलती है। चारा घोटाले में मुझे सिर्फ इसलिए आरोपी बना दिया गया कि वित्त विभाग का चार्ज मेरे पास था। सृजन घोटाले के दौरान वित्त विभाग सुशील मोदी के पास है। 2005 में जब नीतीश की सरकार बनी थी तभी से यह विभाग सुशील मोदी के पास है। सृजन घोटाले में अब एक-दूसरे पर दोष मढ़ने का खेल बैंक और प्रशासनिक अधिकारियों में शुरू हो गया है। प्रशासनिक अधिकारी अपने हस्ताक्षर को जाली बता रहे हैं, लेकिन बैंक अधिकारी उन्हें सही ठहरा रहे हैं। सरकारी राशि घोटाले की जांच की आंच पटना, रांची और दिल्ली के कई बड़े नेताओं तक पहुंच सकती है। सृजन की वर्तमान सचिव और मनोरमा देवी को बहु प्रिया कुमार रांची के एक प्रमुख कांग्रेस नेता की बेटी हैं। यह नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री के भाई हैं। मामले की जांच हो रही है। देखें छनकर क्या-क्या निकलता है?

Friday 18 August 2017

पाकिस्तान की 70 वर्ष की आजादी?

1947 को दोनों भारत और पाकिस्तान आजाद हुए थे। 70 साल के इस लंबे सफर में दोनों देशों में कितना अंतर आ गया है। दोनों के राजनीतिक इतिहास में जमीन-आसमान का फर्क है। पाकिस्तान की सियासत में 70 साल में लगभग साढ़े तीन दशक तक फौज की सत्ता रही। इस दौरान पाकिस्तान में चार सैनिक सरकारें गद्दीनशीं हुईं और सत्ता का कंट्रोल जनरल अय्यूब खान, जनरल याहया खान, जनरल जिया-उल-हक और जनरल परवेज मुशर्रफ के पास था। जनरल अय्यूब से लेकर जनरल परवेज मुशर्रफ तक हर दौर में एक ही कॉमन रिएक्शन सुनने को मिलता रहा जिसमें चुनी हुई नागरिक सरकार की अक्षमता, भ्रष्टाचार और देश के लिए खतरे के दावे सबसे ऊपर थे। देश की सेना चाहती है कि सभी मामलों में उसकी सलाह से सरकारें चलाई जाएं। रक्षा विशेषज्ञ हसन असकरी का कहना है कि बाहरी सुरक्षा का बोझ उन पर है, आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबला भी सेना कर रही है। नागरिक सरकार की भूमिका सीमित है। इसलिए जब सलाह-मशविरे की प्रक्रिया चलती रहती है तब तक हालात ठीक रहते हैं। हसन असकरी के अनुसार दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा बजट मामलों का है। तीसरा ऐसा होता है कि खुद को सशक्त बनाने के लिए कुछ मंत्री अनावश्यक रूप से सेना की आलोचना करते रहते हैं जिससे संबंधों में खटास आ जाती है। हाल ही में नवाज शरीफ कोर्ट से प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार दिए जाने के बाद जुलूस का नेतृत्व करते हुए इस्लामाबाद से लाहौर पहुंचे। इस यात्रा के दौरान उनके भाषणों में प्रत्यक्ष और कहीं-कहीं अप्रत्यक्ष रूप में भी सेना और न्यायपालिका को उनकी बर्खास्तगी के लिए दोषी ठहराया गया। अदालत के जरिये नवाज शरीफ को हटाने के फैसले ने देश को एक बार फिर नागरिक सरकार सर्वोच्चता की चर्चा को जन्म दिया है। नवाज शरीफ दो बार भारी बहुमत से सत्ता में आए, यह तीसरा मौका था जब उन्हें पद से हटना पड़ा, लेकिन इस बार संबंध बिगड़ने के क्या कारण रहे? रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीकी का मानना है कि इसकी एक बड़ी वजह विदेश नीति थी। नवाज शरीफ विदेश नीति को धीरे-धीरे बदलना चाह रहे थे और राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल को एक नया आयाम देने की कोशिश कर रहे थे। इससे पाकिस्तान की विदेश नीति के केंद्र में भारत नहीं रहता। यह सेना की दुखती रग था और इसलिए मीडिया ट्रायल शुरू किया गया ताकि मियां साहब को हटाया जा सके। रक्षा विशेषज्ञ शुजा नवाज का कहना है कि सेना और नागरिक सरकार के बीच विरोधाभास का मुख्य कारण कथनी और करनी में अंतर भी है। वे कहते हैं कि सिस्टम केवल बातों से नहीं बल्कि उसे कैसे चलाते हैं, इससे स्थापित होता है। इसमें केवल नागरिक सरकार या सेना की गलती नहीं बल्कि यह पूरी पाकिस्तान की आवाम की जिम्मेदारी है। पाकिस्तान की बुनियादी जरूरत गुड गवर्नेंस की है। जब सरकार लोगों की जरूरत को पूरा करेगी और ईमानदारी से काम करेगी तो जनता भी उसका साथ देगी और दूसरी कोई ताकत उसे बेदखल नहीं कर सकती। पाकिस्तान में जहां पिछले 70 साल में सेना का सियासी रसूख बढ़ा है, वहीं चीनी और उर्वरक कारखानों से लेकर बेकरी तक के कारोबार में उसकी भागीदारी में भी वृद्धि हुई है तो क्या सत्ता के कारण सेना के व्यवसाय में विस्तार या उसमें स्थिरता आई है? पाकिस्तान में तानाशाही के दौर में पत्रकार भी लोकतंत्र की बहाली और अभिव्यक्ति की आजादी के संघर्ष में शामिल रहे। वरिष्ठ पत्रकार राशिद रहमान का कहना है कि तानाशाही का साथ देने वाले पत्रकारों को बुरी नजर से देखा जाता था, लेकिन आजकल स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। टीवी चैनलों और कुछ हद तक अखबारों में जो खबरें चल रही हैं वो सेना का जनसम्पर्क विभाग तय करता है। इसे जानबूझ कर नहीं तो डर या भय या किसी और कारण से पत्रकारों ने अपना लिया है। मैं समझता हूं कि यह न तो पत्रकारिता की आवश्यकताएं पूरी कर रहा है और न ही वो अपनी जिम्मेदारी पूरी कर पा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र