Sunday 31 July 2016

क्या फैट टैक्स जंक फूड को कंट्रोल कर सकेगा?

अकसर बच्चों को इस जंक फूड से बचाने के लिए सख्त कदम उठाने की मांग उठती रहती है पर कोई कुछ करता नहीं। मैंने भी इसी कॉलम में इस बढ़ती समस्या और बच्चों की सेहत को बचाने के लिए कुछ ठोस करने की वकालत की है। मुझे खुशी है कि इस दिशा में केरल सरकार ने कुछ ठोस कदम उठाए हैं। केरल सरकार ने पिज्जा-बर्गर जैसे जंक फूड पर जो `फैड टैक्स' लगाया है वह सही दिशा में उठाया गया एक सही कदम माना जाएगा। बच्चों का मन अब दलिया, पोहा या ब्रेड जैसे पारंपरिक नाश्तों में नहीं लगता। उनकी देखादेखी बड़े भी हफ्ते में एकाध पिज्जा-बर्गर उड़ा ही लेते हैं। लेकिन डायबिटीज और ओबीसिटी (मोटापा) के बढ़ते आंकड़े बताते हैं कि बाजार में मिलने वाले इस तरह के खाने भारत के लिए अजीब किस्म की महामारियों का सबब बनते जा रहे हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ के एक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि केरल देश का तीसरा और पंजाब दूसरा ऐसा राज्य है, जहां आबादी का एक-तिहाई या इससे भी बड़ा हिस्सा मोटापे की मार झेल रहा है। वैसे इस सर्वे की मानें तो फैट टैक्स सबसे पहले दिल्ली में लगना चाहिए, जहां तकरीबन आधे लोग मोटापे से पीड़ित हैं। जंक फूड से बच्चों की सेहत पर पड़ने वाले दुप्रभाव को देखते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने देशभर के स्कूल की कैंटीनों में इस तरह के खाद्य पदार्थों की उपलब्धता पर रोक लगाने के मकसद से राज्य शिक्षा बोर्डों से कहा है कि वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की तरह स्पष्ट दिशानिर्देश तय करें और उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। आयोग ने स्कूलों में जंक फूड पर पूरी तरह रोक लगाने के मकसद से हाल ही में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा बोर्डों एवं राज्य बाल आयोगों को पत्र लिखा है। उसमें उसने सीबीएसई के तहत आने वाले स्कूलों में इस केंद्रीय बोर्ड की ओर से तय दिशानिर्देशों का सख्ती से क्रियान्वयन कराने को कहा है। स्वस्थ जीवनशैली की आदत बनाना और कहीं भी आसानी से खरीदे जा सकने वाले सस्ते, स्वादिष्ट लेकिन बीमार न बनाने वाले खानों की, जिस दिशा में अभी तक हमारे देश में कुछ भी नहीं किया गया है। बहरहाल अभी तक जिन भी देशों में फैट टैक्स लगाया गया है, वहां इससे होने वाली आमदनी को खाने-पीने की सेहतमंद चीजों पर खर्च किया जाता है। जापान और डेनमार्प ने कई साल से इसी टैक्स के जरिये मोटापे के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। केरल में सिर्प जंक फूड पर यह टैक्स लगाया गया है, लेकिन डेनमार्प में तो मोटापा बढ़ाने वाली हर चीज पर फैट टैक्स लागू है। मोटापे के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नम्बर पर है। अपने यहां चाहे मोटापा हो, डायबिटीज हो सबसे ज्यादा मार 13 से 18 साल के बच्चे झेल रहे हैं। हमें अपनी भावी पीढ़ी को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर क्यों बंद किया जाए पैलेट गन का इस्तेमाल?

जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों उग्र प्रदर्शनों और हमारे सुरक्षा जवानों पर पत्थरबाजी पर इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं और मीडिया के एक हिस्से ने बहुत हायतौबा मचा रखी है। यह कहते हैं कि पैलेट गन इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगना चाहिए? हम पूछते हैं कि क्यों लगना चाहिए? क्या हमारे सुरक्षा जवानों को अपनी जान बचाने का इतना भी अधिकार नहीं है? क्या आपको मालूम है कि जम्मू-कश्मीर में जारी गंभीर विरोध प्रदर्शनों और पत्थर फेंकने की घटनाओं में 25 जुलाई तक लगभग 3500 सुरक्षा बल के जवान घायल हो चुके हैं। गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि वहां पर इस साल गंभीर विरोध प्रदर्शन और पत्थर फेंकने की कुल 1029 घटनाएं हुई हैं। 2015 में विरोध प्रदर्शन और पत्थर फेंकने की कुल 730 घटनाएं हुई थीं। इसके साथ ही अहीर ने बताया कि 17 जुलाई तक जम्मू-कश्मीर में 152 आतंकवादी घटनाएं हुईं जिनमें 30 जवानों की मौत हुई जबकि 2015 में हुई 208 आतंकी घटनाओं में 39 जवानों की मौत हो गई थी। पैलेट गन के इस्तेमाल पर खासा विवाद खड़ा किया जा रहा है। दुखद पहलू यह है कि हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी इस दबाव का शिकार होते लग रहे हैं। उन्होंने घोषणा की है कि पैलेट गन के विकल्प के लिए सात सदस्यों की विशेषज्ञ समिति गठित की जा रही है। यह समिति दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी। दो दिवसीय घाटी में दौरे पर गए राजनाथ सिंह को बताया गया कि पैलेट गन की स्टील की गोली से वयस्क ही नहीं, बल्कि छोटे बच्चों के शरीर के सॉफ्ट टिश्यू और आंखों को खासा नुकसान पहुंचा है। हम जानना चाहते हैं कि ऐसा कौन-सा उग्र आंदोलन होता है जहां निर्दोष इसकी चपेट में नहीं आ जाते। जब भीड़ पत्थरों से मार-मार कर हमारे जवानों को अधमरा कर रही हो तो क्या उन्हें सेल्फ डिफेंस का भी अधिकार नहीं है? भीड़ ने एक जवान को पकड़ कर उसकी आंख ही फोड़ दी। क्या यह सब हमें बर्दाश्त है कतई नहीं। हम सीआरपीएफ के डीजी दुर्गा प्रसाद से पूरी तरह सहमत हैं जब वह कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल नहीं रुकेगा। वार्षिक प्रेस कांफ्रेंस में श्री प्रसाद ने कहा कि हम स्वयं बहुत ही विषम परिस्थितियों में पैलेट गन के इस्तेमाल की कोशिश करते हैं। जिससे इंजरीस कम से कम हों। हम इन्हें एक्सट्रीम परिस्थितियों में इस्तेमाल करते हैं जब भीड़ काबू से बाहर हो जाती है। उन्होंने बताया कि सुरक्षा बलों का इमोशन न होने के लिए ऐसी स्थिति से तर्पसंगत तरीके से निपटने के लिए ट्रेंड किया जाता है। उन्होंने कहा कि पैलेट गन लीथल हथियार (जानलेवा) नहीं है। जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है जहां जवानों पर इस तरह का पथराव किया जाता है और ऐसे में जब परिस्थिति काबू से बाहर हो जाती है तो जवानों को अपनी जान बचाने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल करना पड़ता है। डीजी ने बताया कि सभी सुरक्षा बलों को निर्देश दिए जाते हैं कि कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल किए जाने के दौरान इसे घुटने के नीचे के हिस्से में चलाया जाए। उन्होंने बताया कि जवानों को सामने से गन को तब चलाना पड़ता है जब प्रदर्शनकारी करीब आ गए, ऐसे में जान जाने की आशंका थी। उन्होंने बताया कि हम कम खतरनाक श्रेणी में आने वाले दूसरे हथियारों का भी एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। इसमें अमेरिका में यूज किया जाने वाला एक बेपन भी शामिल है। बता दें कि यह  पैलेट गन क्या है? ये पंप करने वाली बंदूक होती है जिसमें कई तरह के कारतूस इस्तेमाल होते हैं। कारतूस एक से 12 की रेंज में होते हैं। एक को सबसे तेज और खतरनाक माना जाता है। इसका असर काफी दूर तक होता है। पैलेट गन से फायर किए गए एक कारतूस में 500 तक रबर और प्लास्टिक के छर्रे हो सकते हैं। फायर करने के बाद कारतूस हवा में फटते हैं और छर्रे एक जगह से चारों दिशाओं में जाते हैं। अंत में कारगिल विजय के मौके पर आतंकवादी बुरहान वानी के एनकाउंटर पर कुछ मीडिया (एंयूडो सेक्यूलर) में उठे सवालों पर रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। दिल्ली में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि के अवसर पर बोलते हुए पर्रिकर ने बगैर नाम लिए एक चैनल पर सवाल उठाया। आखिर देश के खिलाफ इसका क्या मतलब है? एक आतंकी के मारे जाने पर कई चैनलों के प्रसारण में मैंने जो देखा वह सही नहीं है। आखिर कोई कैसे ये सवाल पूछ सकता है कि इसको क्यों मारा? अब एक टेरेरिस्ट को नहीं मारेंगे तो किसको मारेंगे? टीआरपी के लिए आतंकियों के मारे जाने पर सवाल न उठाएं। देश के खिलाफ जो भी बोलेंगे उसे लोग पसंद नहीं करते।

Saturday 30 July 2016

क्या नरसिंह दोषी हैं या षड्यंत्र के शिकार?

पहलवान नरसिंह के डोप टेस्ट में फेल होने का मामला क्या षड्यंत्र से रचा गया खेल है ताकि नरसिंह रियो ओलंपिक में भाग न ले सकें? दूसरी ओर नरसिंह यादव की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। नाडा की ओर से पांच जुलाई को लिए गए सैम्पल की रिपोर्ट में भी वह पॉजिटिव निकले हैं। उनके सैम्पल में वही मेथेंडाइन नाम का स्टेराइड पाया गया जो 25 जून के सैम्पल की रिपोर्ट में पाया गया था। हालांकि अब यह देखने वाली बात होगी कि नाडा इसे नरसिंह का दूसरा अपराध मानती है या फिर इसे पहले अपराध की श्रेणी में रखती है और डिसिपिलिनेरी पैनल के समक्ष चल रही सुनवाई में ही शामिल करती है। वहीं 25 जून के सैम्पल में डोप पॉजिटिव पाए जाने के बाद उम्मीद यही जताई जा रही थी कि उनका पांच जुलाई का सैम्पल भी पॉजिटिव निकलेगा। यही हुआ भी। दूसरी रिपोर्ट भी पॉजिटिव पाए जाने के बावजूद कुश्ती संघ नरसिंह के खिलाफ साजिश के अपने आरोपों पर कायम है। दूसरी ओर कहा यह भी जा रहा है कि नरसिंह यादव को रियो ओलंपिक में जाने से रोकने के लिए बड़ा षड्यंत्र रचा गया था। सूत्रों के मुताबिक नरसिंह ने मंगलवार को उस संदिग्ध व्यक्ति की पहचान कर ली है जिसने उन्हें खाने में प्रतिबंधित दवा मिलाकर दी थी। उसके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया जाएगा। नरसिंह को राहत के लिए नाडा को यह साबित करना होगा कि उनके फंसने से सीधा प्रतिद्वंद्वी को फायदा पहुंच रहा था। माना जा रहा है कि नरसिंह इसमें अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवान और उनके रिश्तेदारों का सीधा नाम ले सकते हैं। वाडा का नियम कहता है (10.4) कि यदि साजिश के तहत किसी व्यक्ति को फंसाया गया है तभी उसे निलंबन से छूट दी जाएगी। यदि नरसिंह पूरी तरह अपना पक्ष साबित नहीं कर सके तो उन्हें कम से कम एक साल का निलंबन झेलना होगा। सूत्रों ने यह भी बताया कि नरसिंह को पांच जून को खाने में मिलाकर प्रतिबंधित दवा दी गई। यह साजिश सोनीपत स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के हॉस्टल में रची गई। सूत्रों का कहना है कि हॉस्टल के दो रसोइयों ने बताया कि उन्होंने एक संदिग्ध आदमी को खाने में कुछ मिलाते हुए देखा था। उन्होंने कहा कि वे उस व्यक्ति को पहचान सकते हैं। ओलंपिक पदक विजेता पहलवान  योगेश्वर दत्त ने डोप में फेल हुए नरसिंह यादव का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मामले की पूरी जांच होनी चाहिए। योगेश्वर ने ट्वीट कियाöकुश्ती के लिए बहुत दुखी हूं। मुझे विश्वास है कि नरसिंह ऐसा नहीं कर सकते। नरसिंह यादव के डोप टेस्ट में फेल रहने में हाथ होने की अफवाहों पर सतपाल सिंह ने कहा कि बिना सबूत उन पर और उनके शिष्य पर अंगुली उठाना गलत है। जो भी हो नरसिंह यादव दोषी हैं या उन्हें फंसाया गया, नुकसान तो भारतीय कुश्ती का हुआ है, देश का हुआ है।

-अनिल नरेन्द्र

बीएसपी में बगावत? विधायकों के संगीन आरोप

चुनाव से पहले अकसर टिकटों को लेकर बगावतें होती हैं। जिसको टिकट नहीं मिलता वह पार्टी से नाराज होकर कभी-कभी पार्टी के खिलाफ अनर्गल बोलने लगता है, आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी हो जाता है। कुछ पार्टियों में विवाद ज्यादा होते हैं। बहुजन समाज पार्टी ऐसी ही एक पार्टी है। समय-समय पर पार्टी नेतृत्व पर टिकट बेचने के आरोप लगते रहते हैं। ताजा केस लखीमपुर के पालिया से विधायक रोमी साहनी और हरदोई के भल्लावा सीट से विधायक ब्रजेश वर्मा का। इन दोनों का यह कहना है कि छह जुलाई की सुबह 10 बजे नसीमुद्दीन ने मायावती के आवास पर बुलाकर कहा कि पालिया विधानसभा के लिए एक सरदार जी तीन करोड़ रुपए जमा करा गए हैं, दो करोड़ रुपए और देंगे। अगर आप पांच करोड़ जमा कर दें तो उनका पैसा वापस कर देंगे। मैंने असमर्थता जताई तो टिकट काटने की धमकी दी। कमोबेश यही कहानी दुहराते हुए ब्रजेश ने बताया कि मुझे 12 बजे बुलाकर चार करोड़ रुपए मांगे गए। हमने बहन जी से गुहार भी लगाई लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। एक सवाल के जवाब में विधायकों ने कहा कि पूरे पैसे कैश में लिए जाते हैं। हालांकि पिछली बार हमसे पैसे नहीं लिए गए थे। इस बार पैसा न जमा करने पर लोकसभा चुनाव लड़ाने का दिलासा दिया जा रहा है। हालत यह है कि क्षेत्र में जाने पर लोग यह नहीं पूछते कि टिकट किसका हुआ है, बल्कि यह पूछते हैं कि कितने में हुआ? चुनाव के वक्त किसी पार्टी की हवा भांपने का एक पैमाना यह भी होता है कि पार्टी छोड़ने वाले और दूसरे दलों में शामिल होने वाले लोगों का अनुपात कितना है। अगर पार्टी छोड़ने वाले कम हैं और आने वाले ज्यादा हैं तो समझा जाता है कि हवा का रुख पक्ष में है और अगर छोड़ने वाले ज्यादा होंगे, आने वाले कम तो समझ लिया जाता है कि हवा विपरीत है। अगर बीएसपी के सीटिंग विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं तो यकीनी तौर पर समझ लेना चाहिए कि उन्हें बीएसपी का टिकट जीत की गारंटी नहीं लगा रहा। अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने और दोबारा सदन में पहुंचने की ख्वाहिश उन्हें दल-बदल को मजबूर कर रही है। भाजपा बीएसपी में बगावत की इस चिंगारी को आगे और भड़काने की तैयारी कर रही है। हाल में पार्टी छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर जुगुल किशोर सहित दूसरे नेता इस मुहिम में लगे हैं। हालांकि पर्दे के पीछे के खिलाड़ी दूसरे बताए जा रहे हैं। मायावती पर टिकट के एवज में पैसे लेने का आरोप नया नहीं है। जुगुल, मौर्य, आरके चौधरी और उनके पहले से लेकर बुधवार को पार्टी के खिलाफ बोलने वाले विधायकों के नाम भले ही अलग-अलग हों लेकिन आरोप एक ही है। बुधवार को बगावत करने वाले दोनों ही विधायक जुगुल किशोर के खास माने जाते हैं जो इस समय भाजपा में हैं।

Friday 29 July 2016

आईजीआई एयरपोर्ट का गोल्ड थीफ

दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से लगभग 100 किलोग्राम सोना गायब होने की चौंकाने वाली खबर आई है। इतना तो तय है कि इस चोरी में मिलीभगत जरूर है। सवाल यह उठता है कि आखिर यह गोल्ड थीफ है कौन? कैसे वह इतनी आसानी से इतनी मात्रा में सोना गायब कर सकता है? क्या वह कस्टम विभाग का कोई अधिकारी या कर्मचारी है? या फिर एयरपोर्ट स्टाफ भी इसमें शामिल है? जिस तरह से एक के बाद चार वारदातें सामने आई हैं उससे साफ है कि इसमें बहुत बड़ी साजिश है। पुलिस के सामने चुनौती है कि 34 साल का रिकार्ड खंगालकर इस मामले को सुलझाए। खुद कस्टम विभाग भी यह तय नहीं कर पा रहा है कि आखिर इतना बड़ा गड़बड़झाला हुआ कैसे? आईजीआई एयरपोर्ट पर पिछले कुछ समय से सोना चोरी के चार मामले सामने आ चुके हैं। इनमें करीब 90 किलो सोना चोरी होने की चार एफआईआर दर्ज हुई हैं। इनमें से एक एफआईआर कुछ दिन पहले हुई है जिसमें 59 किलो सोना गायब होने की बात कही गई है। पुलिस के मुताबिक जिस तरह से चोरी की वारदात को अंजाम दिया है, उसमें कोई बाहरी आदमी शामिल नहीं हो सकता है। पुलिस का कहना है कि यह सारा सोना कस्टम विभाग द्वारा जब्त करके वेयरहाउस में रखा हुआ है। इसमें किसी बाहरी का प्रवेश असंभव है। विभागीय सूत्रों के अनुसार लंबे समय से यह सोना चोरी चल रही है। वर्ष 2014 में कस्टम वेयरहाउस से पहली बार सोना चोरी हुआ था। वर्ष 2015 और 2016 में दो और मामले सामने आए थे। इन घटनाओं में करीब 24 किलो सोना चोरी गया था, जिसकी कीमत सात करोड़ रुपए आंकी गई थी। ताजा मामला 59.612 किलो सोने चोरी का है। आईजीआई थाना पुलिस ने 18 जुलाई को मुकदमा दर्ज किया है। चोरों ने पैकेट में सीलबंद सोने के बिस्कुट को किसी अन्य धातु से बदल दिया है। कुछ पैकेट से छड़ी, डॉलर व यूएई की मुद्रा बरामद हुई है। कस्टम सूत्रों ने बताया कि एयरपोर्ट पर तस्करों से बरामद सोना व कीमती सामान का केस प्रॉपर्टी के रूप में टर्मिनल-3 स्थित कस्टम के स्ट्रांग रूम में रखा जाता है। वहां 30 वर्ष से करीब 3000 सीलबंद पैकेट में 900 किलो सोना रखा हुआ है। जिस स्ट्रांग रूम में सोना रखा गया है वह टर्मिनल बिल्डिंग के अंदर होने से पूरी तरह सुरक्षित है। विभागीय स्तर पर भी सोने की सुरक्षा के लिए पुख्ता प्रबंध हैं। इसकी चाबी कस्टम अधिकारियों के पास होती है। उनकी उपस्थिति में ही स्ट्रांग रूम में कोई प्रवेश कर सकता है। हालांकि चोरी के बाद पुलिस ने वहां अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगवाए हैं ताकि स्ट्रांग रूम पर पूरी नजर रखी जा सके। पुलिस 34 साल का पूरा स्टाक का रिकार्ड सहित सब कुछ खंगालेगी तब जाकर शायद कोई सुराग मिले। संभव है कि अब तक कई अधिकारी व कर्मचारी सेवानिवृत्त भी हो चुके होंगे। आखिर यह सोना चोर कौन है?

-अनिल नरेन्द्र

18 साल पुराने चिंकारा-हिरण केस में सलमान बरी

1998 में फिल्म हम साथ-साथ हैं की शूटिंग के दौरान जोधपुर के घोड़ा फार्म हाउस में चिंकारा और भवाद गांव में हिरण शिकार के मामले में फिल्म अभिनेता सलमान खान के बरी होने की सुखद खबर आई है। 1998 की 26-27 सितम्बर को यह कथित शिकार हुआ था। 18 साल बाद अदालत के चक्कर काट-काट कर सलमान के जूतों की हील घिस गई। अंतत राजस्थान हाई कोर्ट ने उनको इस केस में बरी कर दिया है। अदालत ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि चिंकारा के शरीर में जो छर्रे मिले, वे सलमान की लाइसेंसी बंदूक के नहीं थे। अदालत ने चिंकारा से जुड़े दो मामलों में 18 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सलमान को यह राहत दी। निचली अदालत ने दो मामलों में सलमान को एक और पांच साल की सजा सुनाई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने इनके खिलाफ लगाई गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दोनों सजाओं को रद्द कर दिया। अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार की तीनों अपीलों को भी खारिज कर दिया। राजस्थान सरकार ने कहा है कि वह हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। हालांकि सलमान के खिलाफ कांकाणी हिरण शिकार मामला और अवैध हथियार रखने का केस चलता रहेगा। इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने सलमान को हिट एंड रन मामले में भी बरी कर दिया था। यह केस भी सुप्रीम कोर्ट में है। राजस्थान हाई कोर्ट ने सलमान को इस बिनाह पर बरी किया ः चश्मदीद गवाह गायब हो गया था। उसके कारण ही सभी सह-अभियुक्त बरी हुए। सलमान तो उसे कोर्ट में पेश कराने का आग्रह कर रहा था। जिप्सी मालिक अरुण यादव ने कहा कि उसने जिप्सी में कोई खून नहीं देखा। होटल व मौके से लिए ब्लड सैम्पल मेल नहीं खाते। एफएसएल में यह स्पष्ट नहीं कि ब्लड सैम्पल हिरण का है। शिकार रिवाल्वर, राइफल या एयर गन से हुआ ये साबित नहीं हो पाया। जिप्सी में मिले छर्रे सलमान के हथियार से निकले नहीं थे। वाशिंग के 10 दिन बाद पुलिस को जिप्पी में छर्रे कैसे मिले? ब्लड सैम्पल लेते वक्त गवाह बना रामकिशन भी मुकर गया। बता दें कि हिरण शिकार के तीन मामलों में सलमान खान पुलिस व न्यायिक हिरासत को मिलाकर 18 दिन जेल में रह चुके हैं। वन विभाग ने सलमान को पहली बार 12 अक्तूबर 1998 को हिरासत में लिया था। वह 17 अक्तूबर तक जेल में रहे। इसके बाद घोड़ा फार्म मामले में 10 अप्रैल 2006 को सलमान को निचली अदालत ने पांच साल की सजा सुनाई थी जिसके तुरन्त बाद वे छह दिन जेल में रहे। सत्र न्यायालय ने भी इस सजा को बरकरार रखा और उन्होंने 26 से 31 अगस्त 2007 तक के दिन जेल में काटे। सलमान एक नेक और अच्छे इंसान हैं और वह बहुत से नेक काम करते रहते हैं। मैं समझता हूं कि अगर उनसे गलती हुई भी हो तो काफी सजा भुगत चुके हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में वह कानों को हाथ लगाएंगे।

Thursday 28 July 2016

दिल्ली में बढ़ती बच्चों के लापता होने की ज्वलंत समस्या

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली से लापता होते बच्चों पर अपनी चिन्ता जताई। हाई कोर्ट ने लापता हो रहे बच्चों के मामले को आतंकवाद के समान बताया है। दिल्ली से प्रतिदिन औसतन 22 बच्चे लापता होते हैं। इनमें से 28 फीसदी बच्चे दोबारा कभी घर नहीं लौटते हैं। बच्चों के गायब होने से जहां पीड़ित परिवार टूट जाते हैं, वहीं वह गलत हाथों में पड़ जाते हैं और समाज के सामने खतरा उत्पन्न कर देते हैं। राजधानी में लापता होने वाले बच्चों में ज्यादातर लड़कियां होती हैं। इनमें से अधिकतर को जबरदस्ती से देह व्यापार के दल-दल में धकेल दिया जाता है या घरेलू नौकरी करने के लिए मजबूर किया जाता है। बच्चों के लिए काम करने वाले संगठन `क्राई' और मानवाधिकार संगठन `एपीआर' की ओर से संयुक्त रूप से कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले साल उक्त आयुवर्ग में 3715 लड़कियां लापता हो गई थीं जबकि लड़कों की संख्या 2493 रही। सर्वेक्षण के मुताबिक पुलिस लड़कियों के लापता होने पर अकसर शादी के लिए भाग जाने की वजह का हवाला देती है लेकिन बचाई गई बच्चियों से मिली प्रतिक्रिया किसी और नतीजे पर पहुंचती है। सर्वेक्षण कहता है कि किशोरियों का अपहरण किया जाता है और उन्हें देह व्यापार में धकेल दिया जाता है। शादी करा दी जाती है या घरेलू सेविकाओं के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। क्राई की जया सिंह ने कहाöखुद भाग जाने वाली लड़कियों की संख्या कम है। हालांकि लड़कों को तरजीह दिए जाने की प्रवृत्ति की वजह से 0-8 साल के आयुवर्ग में लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक लापता होते हैं। पिछले साल इस आयुवर्ग के 453 लड़के लापता थे जबकि गुमशुदा लड़कियों की संख्या 352 रही। सबसे ज्यादा बच्चे पुनर्वासित अनाधिकृत कॉलोनियों से गायब होते हैं। बाहरी दिल्ली में सबसे ज्यादा 1326 जबकि दक्षिण-पश्चिमी जिले से 784 बच्चे लापता हुए। जिन जिलों में ज्यादा घटनाएं हुईं उनमें पुनर्वासित अनाधिकृत कॉलोनियां और औद्योगिक क्षेत्र की संख्या ज्यादा है। लापता हुए ज्यादातर बच्चों के परिवार गरीब थे और बाहरी व पश्चिमी दिल्ली में रहते थे। अधिकांश परिवार आजीविका की तलाश में दिल्ली में आकर बस गए थे। कई परिवारों के सभी सदस्य फैक्टरी व काम की तलाश में बाहर जाते थे। दिल्ली में आए दिन लापता हो रहे बच्चों की तलाश सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। ये बातें चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) और एलायंस फॉर पीपुल्स राइट्स (एपीआर) की एक जन सुनवाई में अभिभावकों ने कहीं। अभिभावकों ने इस समस्या पर अधिक ध्यान दिए जाने की मांग की। जन सुनवाई में तेजी से बढ़ रही इस समस्या को समझने और दूर करने के लिए लापता बच्चों के माता-पिता और संबद्ध संस्थाओं के बीच परामर्श किया गया। इस जन सुनवाई का मकसद राजधानी में लापता बच्चों की बढ़ती संख्या के जिम्मेदार कारकों को समझने और चुनौतियों को सामने लाना था।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रेन की चपेट में आने वाले बच्चों की मौत : जिम्मेदार कौन?

उत्तर प्रदेश के भदोही में कटका-माधो सिंह स्टेशनों के बीच इलाहाबाद पैसेंजर ट्रेन हादसे का अत्यंत दुखद समाचार आया है। यहां एक रेलवे क्रॉसिंग पर स्कूल बस और ट्रेन की टक्कर में आठ बच्चों की मौत और कइयों के जख्मी होने की खबर दिल दहला देने वाली है। ज्यादा दुखद यह है कि यह दुर्घटना आसानी से टल सकती थी। यह दुर्घटना ड्राइवर की सरासर लापरवाही और गैर जिम्मेदार व्यवहार की वजह से हुई। रेल क्रॉसिंग वैसे भी असुरक्षित मानी जाती है। ताजा अतीत में कई स्कूल बसों के असुरक्षित रेलवे क्रॉसिंग पर दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं हुई हैं। रेल दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में से 60 प्रतिशत मौतें रेलवे क्रॉसिंग पर होती हैं। ताजा केस में सोमवार सुबह सवा सात बजे वाराणसी-इलाहाबाद रेल रूट पर माधो सिंह और कटका स्टेशनों के बीच कैयरमऊ रेलवे क्रॉसिंग पर स्कूल बस चालक की लापरवाही से हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार क्रॉसिंग के गेट मित्र रूपेश राय ने बस चालक को रुकने के लिए आवाज दी लेकिन ईयर फोन लगाने की वजह से वह न तो उसकी आवाज सुन सका, न ही ट्रेन की आवाज को। हादसे में चालक रशीद भी घायल हो गया। धोनिया स्थित टेंडर हार्ट्स पब्लिक स्कूल की टाटा मैजिक मिर्जापुर सीमा से लगे कैयरमऊ और मटियारी गांवों के बच्चों को स्कूल के लिए लेने गई थी। रेलवे क्रॉसिंग पार करते हुए यह हादसा हुआ। दुर्घटना में अर्पित मिश्रा (10), श्वेता मिश्रा (8), अनिकेत मिश्रा (7), नैतिक (9), प्रद्युम्न (13), अभिषेक (10), साक्षी (9) की मौके पर ही मौत हो गई। 12 बच्चे घायल हो गए। भारत में लगभग 30,000 रेलवे लेवल क्रॉसिंग हैं, जिनमें से करीब 11,000 क्रॉसिंग पूरी तरह असुरक्षित हैं। जहां न कोई गेट लगा है और न ही कोई रेलवे कर्मी तैनात रहता है। इन असुरक्षित क्रॉसिंग पर ही ज्यादातर दुर्घटनाएं होती हैं। इसके अलावा भी लोग जगह-जगह रेलवे पटरी पार करने की जगह बना लेते हैं, वहां भी काफी दुर्घटनाएं होती हैं, खासकर ऐसे शहरी इलाकों में। मुंबई में हर साल हजारों लोग पटरी पार करते हुए मारे जाते हैं। बुनियादी मुद्दा यह है कि रेलवे पटरियों पर नागरिकों की मौत का मुद्दा इतना गंभीर मुद्दा नहीं मानता और यही वजह है कि अरबों के बजट में इन अनमैन्ड रेलवे क्रॉसिंग पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध नहीं होते। वैधानिक प्रमाणों के मुताबिक अगर कोई ट्रेन 80 या 100 किलोमीटर प्रति घंटा जैसी तेज गति से आ रही हो तो उसकी दूरी का अंदाजा गलत होने की पूरी-पूरी आशंका होती है। इंसानी अंदाजा 50-60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाले वाहन के लिए ही ठीक होता है। रेलमंत्री और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए कि ऐसी क्रॉसिंग जिनसे 80 से 100 किलोमीटर रफ्तार की ट्रेनें गुजरती हैं उन पर तो पटरी पार करने के सुरक्षित इंतजाम करें। वाहन चालकों और पटरी पार करने वालों को भी क्रॉसिंग पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

Wednesday 27 July 2016

दिल्ली में हाई-प्रोफाइल सेक्स रैकेट

दक्षिण दिल्ली जिला ने एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया है। दक्षिण दिल्ली के पॉश सफदरजंग एन्क्लेव इलाके में सेक्स रैकेट चलाने वाले प्रतिन्दर सिंह सान्याल (63) को गिरफ्तार कर लिया  गया है। आयकर विभाग की छापेमारी करने गए अधिकारियों को मिले दस्तावेज की जांच के बाद पुलिस को इस रैकेट के बारे में पता चला था। आरोपी सान्याल मूलरूप से लखनऊ का रहने वाला है। प्रतिन्दर सिंह सान्याल के अलावा इस मामले में सेना से रिटायर्ड कर्नल अजय अहलावत को भी हिरासत में लिया गया है। आरोपी खुद को सांसद बताकर यूपी के आईएएस अफसरों को काम करवाने के लिए मैसेज और फोन करता है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस सेक्स रैकेट में मध्य एशियाई देशों की ल़ड़कियों के शामिल होने की बात भी सामने आई है। आरोपी सान्याल ने पुलिस को बताया कि वह एक आईटी कंपनी में कंसल्टेट है। हालांकि पुलिस के सामने वह इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं कर सका। पुलिस को कई बैंक खातों से सान्याल के खाते में पैसे ट्रांसफर होने के सबूत भी मिले हैं। पुलिस को पता चला है कि सान्याल के ग्राहकों में राजनेता, व्यापारी से लेकर सेना के अधिकारी तक शामिल हैं। बताया जा रहा है कि सान्याल और उसके सहयोगी अजय अहलावत की तस्वीरें नामचीन क्रिकेटरों और राजनेताओं के साथ मिलने से जांच एजेंसी भ्रमित है। शुक्रवार को दक्षिण जिले के पुलिस आयुक्त ने देर रात प्रेस कांफ्रेंस पर इस मामले में राजनेताओं के शामिल होने की बात से इंकार किया था, लेकिन पीएन सान्याल के मोबाइल से राजनेताओं के नाम का एसएमएस और सान्याल के घर पर लगी फोटो व लेटरहैड मिलने से मामला संदिग्ध हो गया है। दरअसल सान्याल के घर ए-2 सफदरजंग एन्क्लेव पर जब आयकर विभाग ने छापा मारा तो घर से एक रूसी युवती मिली थी। छापे के दौरान ही युवती ने चाकू से हाथों की नसें काट लीं। आयकर विभाग ने ही दक्षिण दिल्ली जिला पुलिस को इसकी जानकारी दी थी। डीसीपी ने बताया कि विदेशी युवती ने बयान दिया है कि सान्याल ने उसे बंधक बनाकर रखा हुआ था। सान्याल ने उसका पासपोर्ट व अन्य कागजात कब्जे में ले रखे थे। ईश्वर सिंह (डीसीपी) ने बताया कि लखनऊ के गोमती नगर व दिल्ली स्थित फ्लैट से कई विदेशी लड़कियों के फोन नम्बर, पासपोर्ट की फोटोकॉपी और यात्रा से संबंधित कागजात बरामद हुए हैं। लड़कियां सान्याल के पास आती रहती थीं। बरामद दस्तावेजों से लगता है कि यहां लंबे समय से सेक्स रैकेट व धोखाधड़ी का रैकेट चल रहा था। ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं, जिनसे लगता है कि विदेशी लड़कियों की सप्लाई की एवज में उसने अपने खातों में मोटी रकम कमाई है। डीसीपी ने बताया कि यह बहुत बड़ा रैकेट है। इसे देखते हुए मामले की जांच के लिए स्पेशल टीम बनाई गई है। रूसी युवती ने पुलिस को बताया कि उसे सान्याल से अजय अहलावत ने मिलवाया था। वह विदेशी युवतियों को भारत बुलाता था। अहलावत सेना से वीआरएस लेकर वसंत पुंज में रह रहा था। रैकेट में आर्मी के और अफसरों के नाम भी सामने आ सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि सेना की गुप्त सूचनाएं भी लीक होती हों।

-अनिल नरेन्द्र

डोपिंग में फंसे नरसिंह ने दिया देश को करारा झटका

पहलवान नरसिंह यादव का डोप टेस्ट में फेल होना भारत के ओलंपिक आसियान के लिए एक बड़ा झटका है। जैसे ही नरEिसह के बारे में यह खबर आई देशभर के खेल प्रेमी सकते में आ गए। कहा गया है कि नरसिंह यादव के सैम्पल में मेंथेडाइन नाम का जो स्टेटाइड पाया गया है वह शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करने में सहायक होता है और इसका असर शरीर में 15 दिनों तक रहता है। हालांकि अभी नरसिंह यादव के मामले में सुनवाई चल रही है और दावे से नहीं कहा जा सकता कि वे रियो ओलंपिक में हिस्सेदारी कर पाएंगे या नहीं? पर इस घटना ने एक बार फिर डोपिंग की प्रवृत्ति पर सोचने को मजबूर जरूर कर दिया है। जब भी अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं शुरू होती हैं, कुछ खिलाड़ी डोEिपग के फंदे में फंस जाते हैं। चाहे वे एशियाई खेल हों या फिर ओलंपिक तमाम देशों के होनहार खिलाड़ियों को इस कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है और हर बार कुछ खिलाड़ी डोपिंग परीक्षण पास न कर पाने के कारण खेलों में हिस्सा लेने से रह जाते हैं। दरअसल दुनियाभर में डोपिंग को लेकर एक आचार संहिता बनी हुई है, जिसका सभी देशों को पालन करना पड़ता है। इसमें कई ऐसी दवाएं लेने पर प्रतिबंध है, जिनसे खिलाड़ी का रक्त संचार तेज हो जाता है, वह कुछ अधिक ताकत महसूस करने लगता है और उसकी खेलने की क्षमता बढ़ जाती है। नरEिसह ने खुद को साजिश के तहत फंसाने की बात कही है। नरसिंह कैंप से यह भी कहा जा रहा है कि नाडा की सुनवाई में उन्हें राहत नहीं मिलती है तो वह पुलिस में आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज करा सकते हैं। दुखद पहलू तो यह भी है कि सिर्प नरसिंह की नहीं उनके स्थान पर सुशील कुमार को रियो में भेजे जाने की उम्मीदें भी खत्म हो गई हैं। क्योंकि 18 जुलाई को ओलंपिक के लिए एंट्री भेजे जाने की आखिरी तारीख गुजर चुकी है। सुनवाई के दौरान अगर नरसिंह अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए तो उन पर चार साल का प्रतिबंध लगना तय है। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि यदि नरसिंह सुनवाई के दौरान उनके खिलाफ साजिश को साबित कर देते हैं तब भी उन्हें वाडा नियमों के तहत राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। दरअसल वाडा कोड में षड्यंत्र के चलते डोप में फंसने को स्थान नहीं दिया गया है। इसलिए नाडा का डिसिपलिनरी पैनल उनकी सजा तो कम कर सकता है लेकिन उन्हें बरी किया जाना बेहद मुश्किल है। वहीं कुश्ती संघ भी नरसिंह के पक्ष में खड़ा हो गया है। उसकी ओर से भी इस मामले में जांच कराई जा सकती है। नरसिंह का कहना है कि मैं एक अनुभवी रेसलर हूं। लगातार ओलंपिक खेल रहा हूं। मुझे पता है कि कौन-सी चीजें खाने से डोपिंग में फंस सकता हूं। ओलंपिक के इतने नजदीक आकर मैं अपना सुनहरा कैरियर क्यों खराब करूंगा? मेरे साथ किसी ने षड्यंत्र किया है। इस बारे में न तो नरसिंह कुछ बोल रहे हैं और न ही कुश्ती संघ। लेकिन नरसिंह की टीम के साथियों का कहना है कि हो सकता है कि नरसिंह को सोनीपत साई सेंटर में दिए जा रहे फूड में प्रतिबंधित दवा मिला दी गई हो। जिस तरह नरसिंह-सुशील के बीच विवाद हुआ था उससे तो आशंका यही है। फिर सुशील ने जो बयान पोस्ट किया, उससे भी इस आशंका को बल मिलता है। सुशील के कोच सतपाल का यह बयान कि वे तो पहले से ही जानते थे कि नरसिंह ऐसा करेंगे, से साजिश से इंकार नहीं किया जा सकता। समझा जाता है कि नरसिंह के डोप में फंसने की खबर फैडरेशन को पहले ही मिल गई थी जिसने उन्हें ओलंपिक तैयारियों के लिए जार्जिया जाने से रोक दिया था। ओलंपिक में हिस्सेदारी के लिए नरसिंह यादव का चुनाव शुरू से ही विवादों में घिरा रहा। 74 किलो वर्ग में दोहरा ओलंपिक जीतने वाले सुशील कुमार की जगह जब उन्हें भेजने का फैसला किया गया तो सुशील कुमार ने कड़ी आपत्ति दर्ज की। यहां तक कि उन्होंने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया। अब वही नरसिंह यादव अगर ओलंपिक में पदक हासिल करने के लिए जोशवर्द्धक दवाएं लेते पाए गए हैं तो उन लोगों को एक बार फिर अंगुली उठाने का न केवल मौका मिल गया है बल्कि नरसिंह ने अपने साथ पूरे देश की किरकिरी कराई है।

Tuesday 26 July 2016

आठ दिन के अंदर म्यूनिख में यूरोप में तीसरा हमला

यूरोप अब पूरी तरह से इस्लामी आतंकवाद का शिकार हो चुका है। अब तक अछूता रहा जर्मनी भी अब इसकी चपेट में आ गया है। आठ दिन में यूरोप में जर्मनी के प्रमुख शहर म्यूनिख में यह तीसरा बड़ा हमला है। इससे पहले नीस में फिर जर्मनी में और अब फिर जर्मनी में। म्यूनिख हमले के कुछ ही दिन पहले जर्मनी की एक ट्रेन में शरणार्थी अफगान किशोर ने अल्लाह हो अकबर के नारे लगाते हुए कुल्हाड़ी और चाकू से यात्रियों पर हमला बोला था। इसमें हांगकांग के एक परिवार के चार सदस्य गंभीर रूप से घायल हुए। पुलिस के अनुसार दक्षिणी शहर बुजबर्ग के समीप ट्रेन में हुई इस दुर्घटना में कई अन्य यात्री भी घायल हुए हैं। 17 साल का हमलावर किशोर उस समय मारा गया जब वह भागने की कोशिश कर रहा था। आतंकी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) से जुड़ी अमाक न्यूज एजेंसी ने कहाöजर्मनी में हमला करने वाला यह आईएस का लड़ाका था। जर्मनी में आईएस का यह पहला हमला था। इस हमले के कुछ ही दिन के अंदर जर्मनी के म्यूनिख शहर के एक शापिंग मॉल में बंदूकधारियों की अंधाधुंध फायरिंग में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई। हमले में 10 लोग घायल हुए। जर्मन पुलिस ने कहा कि हमलावर ने हमले के बाद आत्महत्या कर ली। यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है कि हमले में कितने आतंकी शामिल थे। पुलिस का कहना है कि हमें एक व्यक्ति मिला जिसने आत्महत्या कर ली। हमारा मानना है कि वह एकमात्र बंदूकधारी था। सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में दिखाई दे रहा है कि काले रंग के कपड़े पहने एक बंदूकधारी मैक्डॉनलड्स के एक रेस्तरां से बाहर आते हुए लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर रहा है और लोग चिल्लाते हुए भाग रहे हैं। म्यूनिख के हमले की जिम्मेदारी किसी संगठन ने नहीं ली है। लेकिन हमले के बाद सोशल मीडिया पर आईएस की ओर से जश्न मनाते हुए आईएस के समर्थकों ने इसे ट्वीट किया है। आठ दिन के अंदर यूरोप में यह तीसरा बड़ा हमला है। इससे पहले फ्रांस और जर्मनी में हुए हमलों की जिम्मेदारी आईएस ले चुका है। ज्ञात रहे कि यह शापिंग मॉल जहां यह हादसा हुआ है म्यूनिख ओलंपिक स्टेडियम के पास है और यहीं पर 1972 के ओलंपिक खेल के दौरान फलस्तीनी विद्रोहियों ने 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बनाकर उनकी हत्या कर दी थी। स्थानीय मीडिया की खबरों के मुताबिक इस गोलीबारी में कई लोगों की मौत की आशंका है। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक कई लोग घायल हैं। जर्मन मीडिया की रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि हमलावर एक ही है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि मॉल के इस हमले में 10 आतंकवादी शामिल थे जिनमें से छह हमलावर भाग निकले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गोलीबारी की निन्दा करते हुए ट्वीट करते हुए हमले की कड़े शब्दों में निन्दा की है। सरकार ने बताया कि इस गोलीबारी में मारे गए लोगों में कोई भी इंडियन नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

मियां नवाज शरीफ के हसीन सपने

एक बार फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में उनकी पार्टी पीएमएल-एन को विधानसभा चुनावों में मिली भारी जीत के बाद मुजफ्फराबाद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए यह बात कही। लंदन में मई में हुई अपनी हार्ट सर्जरी के बाद अपनी पहली जनसभा में शरीफ ने कश्मीर के लोगों से अनुरोध किया कि उन्हें न भूलें जो लोग आजादी के आंदोलन के लिए कश्मीर में अपनी जान बलिदान कर चुके हैं। मियां नवाज शरीफ के मुंगेरी लाल के हसीन सपने शायद ही कभी पूरे हों। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शरीफ को करारा जवाब देते हुए कहा कि कश्मीर को लेकर उनका सपना कयामत तक पूरा नहीं होगा। शनिवार को सुषमा ने कहा कि नवाज शरीफ के बयान से यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान कश्मीर में अस्थिरता के लिए लगातार अपनी नापाक कोशिशें कर रहा है। भारत की संसद कई बार यह संकल्प जाहिर कर चुकी है कि कश्मीर के मामले में अगर कोई अधूरा एजेंडा है तो वह है पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को वापस पाना है। कश्मीर कार्ड खेलने में जुटे पाकिस्तान को भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जमकर लताड़ लगाने के साथ ही आइना भी दिखा दिया। भारत ने गुलाम कश्मीर पर अवैध कब्जा जमाए पाकिस्तान को जल्द से जल्द खाली करने की चेतावनी देकर स्पष्ट कर दिया है कि जिस आग को वह भड़काने की कोशिश कर रहा है उससे उसका दामन भी खाक हो सकता है। पानी अब सिर से ऊपर जा रहा है और भारत इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। हिजबुल आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद से ही पाकिस्तान जिस तरह से कश्मीर की आड़ में आतंकियों का मनोबल बढ़ा रहा है भारत ने उसे भी दुनिया के सामने ला दिया है। पाकिस्तान की ओर से नए सिरे से कश्मीरी राग अलापने पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए भारत ने स्पष्ट कर दिया कि अब इस मुद्दे पर मुख्वत नहीं होगी। सख्त संदेश भी दिया जाएगा और सख्ती से निपटा भी जाएगा। पाकिस्तान लगातार खासकर कश्मीर घाटी में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की फिराक में रहता है। जब भी मौका मिलता है सीमा पार से घुसपैठ के जरिये आतंकियों को रवाना करता है ताकि घाटी में कभी भी जनजीवन सामान्य न हो सके। यही नहीं, वह अपने कब्जे वाले अवैध रूप से हथियाए हिस्से में कश्मीर में आतंकियों की ट्रेनिंग के लिए शिविर भी चलाता है। पाक इन कश्मीरी आतंकियों की हर संभव मदद करता है ताकि यह कश्मीर घाटी में अस्थिरता पैदा करने, जनजीवन अस्तव्यस्त करें और हमारे जवानों को मारें। यह कोई अनजाना तथ्य नहीं है। इसलिए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जब ये बातें लोकसभा में बता रहे थे तो नई बात सिर्प यह थी कि घाटी में मौजूदा अशांति में भी पाकिस्तान का हाथ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान कश्मीर में हमेशा ऐसी स्थिति पैदा करना चाहता है जिससे उसे इस मुद्दे को बड़े मंचों पर उठाने का मौका मिल जाए। जहां नवाज शरीफ के हसीन सपने कभी पूरे नहीं होंगे वहीं सवाल यह भी है कि भारत घाटी का माहौल बिगड़ने से रोकने के पुख्ता उपाय क्यों नहीं कर पाता? पिछले कई दशकों से कश्मीरी आवाम ने इन आतंकियों, अलगाववादियों की तमाम धमकियों की परवाह को नजरअंदाज करते हुए पंचायत से लेकर विधानसभा व लोकसभा चुनावों में हिस्सा लेते रहे हैं? इससे जाहिर है कि वे अमन व लोकतंत्र की व्यवस्था के हिमायती हैं। इससे यह भी साबित होता है कि वह अपना वोट देकर भारत के संविधान के प्रति अपना समर्थन जाहिर करते हैं। कश्मीरी आवाम इन मुट्ठीभर आतंकियों, अलगाववादी नेताओं से आजीज आ चुकी है। वह अमन-शांति चाहती है। अगर आप श्रीनगर और कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो कश्मीर घाटी के अन्य स्थानों पर एक अलग ही माहौल है। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के अपने अवैध कब्जे को भी हमें जोरशोर से उठाना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय मंचों में इसे लाना चाहिए। आज समूची दुनिया इस्लामिक आतंकवाद की चपेट में है। दुनिया को यह बताना जरूरी है कि पाकिस्तान कश्मीर के एक हिस्से का आतंक पनपाने के लिए कैसे इस्तेमाल कर रहा है। 56 इंच छाती की बात करने वाली सरकार ने पाकिस्तान के प्रति अब तक जो लचीला रुख दिखाया है उसकी वजह से ही पाक की हिम्मत बढ़ी है। इसीलिए वह जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकियों को उकसाने और अशांति फैलाने में जुटा है।

Sunday 24 July 2016

रजनीकांत की कबाली का

भारत के सुपर स्टार्स हैं फिल्म स्टार। फिल्म सितारों का फैंस में कितना केज है यह हमें समय-समय पर पता चलता है। दक्षिण भारत के रजनीकांत के इतने दीवाने हैं कि उनकी कोई भी फिल्म रिलीज हो तहलका मचा देती है। ताजा फिल्म कबाली ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। बेंगलुरु में जन्मे रजनीकांत फिल्म में गैंगस्टर बने हैं। रजनीकांत की स्टार पॉवर आप उनकी फिल्म कबाली के इंटरनेट पर फैंस द्वारा तैयार इस पोस्टर पर लिखी पंक्तियों से समझ सकते हैं। पोस्टर पर ऊपर लिखा हैöसलमान खान अपनी फिल्म ईद पर रिलीज करते हैं क्योंकि तब छुट्टी होती है। फिर क्लाइवा यानि सुपर बॉस की तस्वीर के नीचे दर्ज हैöरजनीकांत अपनी फिल्म जिस दिन रिलीज करते हैं उस दिन छुट्टी हो जाती है। शुक्रवार को उनकी फिल्म की वर्ल्ड रिलीज थी। शुक्रवार को साउथ के तमाम सिनेमा घर पूरे हफ्ते के लिए एडवांस में फुल हो गए। 22 जुलाई को तमिलनाडु में कुछ निजी कंपनियों ने इसलिए छुट्टी घोषित कर दी ताकि कर्मी फिल्म देखने जा सकें। लेकिन इस बार कुछ ऐसा मार्केटिंग कैंपेन चला कि उनके बड़े फैंस फर्स्ट डे फर्स्ट शो के मोर्चे पर स्टार्टअप और बड़ी कंपनियों की ताकत के सामने बेबस दिखे। रजनीकांत के एक बड़े फैन क्लब के एक मैम्बर बताते हैं, जिन क्लबों को पहले लगभग 300 टिकटें मिल जाती थीं, उनको कबाली की सिर्प 50 टिकटें ऑफर की गईं। इस बार बड़ी दिक्कत है। रजनी को लेकर लोगों में इतना केज है कि फैंस उनको भगवान मानते हैं। लोग तो उनके कटआउट का गाय के दूध से अभिषेक करते हैं और सिनेमा के पर्दे के सामने कपूर से उनकी आरती करते हैं। उपनगरीय थियेटर के लिए टिकट 500 से 1200 रुपए के बीच मिली, जबकि कुछ जगहों पर और भी महंगी थीं। कबाली देशभर में एक साथ 6000 क्रीन्स पर रिलीज हुई। 120 रुपए वाला टिकट 2000 रुपए में बिका। इस बार रजनीकांत की डिमांड है जो उनके 40 साल के करियर में पहले नहीं थी। कबाली के लिए चेन्नई और मुंबई जैसा ही रिस्पांस दिल्ली में भी दिखा। रजनीकांत की इस फिल्म कबाली को दिल्ली एनसीआर में 135 क्रीन पर रिलीज किया गया है। मार्निंग शो से लेकर ईवनिंग शो तक प्री-बुकिंग है। गौरतलब है कि दुनियाभर में कबाली एक साथ 12000 क्रीन पर रिलीज की गई है। रजनीकांत के फैंस दुनियाभर में हैं। दिल्ली भी अछूती नहीं है। बता दें कि यह रजनीकांत की तीसरी सबसे महंगी फिल्म है। कलेक्शन की रफ्तार को देखकर लग रहा है कि यह सभी रिकार्ड तोड़ देगी। फिल्म की लागत 165 करोड़ रुपए है। खबरें आ रही हैं कि फिल्म ने रिलीज से पहले ही सैटेलाइट और डिस्ट्रिब्यूर्ट्स राइट्स बेचकर 200 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। हिन्दी राइट्स से 160 करोड़ रुपए की कमाई है। अमेरिका के 400 सिनेमाघरों में फिल्म के तमिल और तेलुगू वर्जन को रिलीज किया गया है। फिल्म तमिल, तेलुगू, हिन्दी, मलेशियाई, चायनीज और थाइ लैंग्वेज में भी डब की गई है।

-अनिल नरेन्द्र

डीयू के तीन छात्र रियो में भारत का नाम रोशन करेंगे

यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि ब्राजील के शहर रियो में पांच अगस्त से शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों में दिल्ली विश्वविद्यालय के तीन छात्र भी भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। इनमें से दो खिलाड़ी जीसस एंड मेरी कॉलेज के और एक खिलाड़ी श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज का है। ये खिलाड़ी 10 मीटर एयर राइफल, टेबल टेनिस और 400 मीटर दौड़ में हिस्सा लेंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स काउंसिल के सचिव डॉ. अनिल कुमार कलकत ने बताया कि रियो में होने वाली ओलंपिक में डीयू के भी तीन खिलाड़ी भारतीय टीम में शामिल रहेंगे। इनमें जीसस एंड मेरी कॉलेज की समाज शास्त्र ऑनर्स कर रही अपूर्वी चन्देला निशानेबाजी, इसी कॉलेज से बीए कर रही मनिका बत्रा टेबल टेनिस और श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज से बीए कर चुके ललित कुमार माथुर शामिल हैं। पिछले कुछ सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र खेलों में खूब नाम कमा रहे हैं। छात्र लगातार विश्वस्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में न सिर्प भाग ले रहे हैं, बल्कि बेहतर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। वर्ल्ड यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में भी हमारे बच्चों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। स्पोर्ट्स काउंसिल के चेयरमैन प्रो. सीएस दूबे ने बताया कि इसके पीछे विश्वविद्यालय की व्यवस्थित योजना का बहुत बड़ा हाथ है। डॉ. कलकत ने बताया कि खेलों में डीयू के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए हमें यूजीसी से 1.75 करोड़ रुपए मिले हैं। इनमें से 90 लाख कम्प्यूटराइज्ड शूटिंग रेंज बनाने में, 75 लाख रुपए 50 बिस्तर का खेल छात्रावास बनाने और 10 लाख रुपए खेल का साजो-सामान खरीदने के लिए। मनिका बत्रा की मां सुषमा बत्रा ने बताया कि मनिका को अपने बड़े भाई और बहन के साथ खेलते-खेलते टेबल टेनिस का शौक लगा जो बाद में उसका जुनून बन गया। खिलाड़ियों में सचिन तेंदुलकर और साइना नेहवाल को पसंद करने वाली मनिका ने इस वर्ष हुई कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में दो रजत और एक कांस्य पदक जीता था। जीसस एंड मेरी कॉलेज में समाज शास्त्र ऑनर्स कर रही अपूर्वी चन्देला 2008 के बीजिंग ओलंपिक में अनिभव बिन्द्रा के स्वर्ण जीतने के बाद से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने निशानेबाज बनने का फैसला कर लिया। 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता के लिए ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाली अपूर्वी बहुत ही प्रतिभावान खिलाड़ी। खेल प्रतियोगिताओं की वजह से उनकी स्नातक की पढ़ाई रुक गई है। श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज से बीए प्रोग्राम करने वाले ललित माथुर कराला गांव के हैं। उनके कॉलेज के खेल डेस्क शिक्षक जसवंत सिंह ने बताया कि इस वर्ष ललित ने कॉलेज में प्रवेश लिया था। इसी साल इंटर कॉलेज के सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे।  हम ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में पदक जरूर लाएंगे। ओलंपिक में भाग लेना किसी भी खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना होता। इन तीनों ने डीयू का नाम रोशन कर दिया है। इन तीनों को बेस्ट ऑफ लक।

Saturday 23 July 2016

Aftermath of failed coup

Having successfully tackled the coup attempt in Turkey President Tayyip Erdogan has proclaimed emergency in the country. Extremely strong steps are being taken to crush the revolt he has declared an emergency for three months. After a five hour long five hour long meeting of the National Security Council, Erdogan said that the emergency has been proclaimed to root out the conspiracy against the democracy. The president ruled out the allegation of the western countries which said he is taking strong steps to crush the revolt. Some steps taken by Erdogan are really shocking. 95 teachers have been removed from the Istanbul University alone. Over hundred army generals have been arrested. As per Turkish government, eight thousand police officers have been suspended suspected for being involved in coup attempt. Besides about 6000 people affiliated to the army and judiciary have been taken into custody. These include army officer upto the rank of general. Recep Tayyip Erdogan has taken a vow to extract the rebelling viruses from the government establishments. The Turkish government claims that the cleric Fehtullah Gulen is behind the conspiracy of the coup. Gulen is also alleged, was behind the conspiracy of the coup against Erdogan with the help of the CIA. Rumours are also that two alleged US intelligence agency CIA agents having been arrested. However, Gulen has denied his involvement in any manner in the coup attempt. On Monday, the state media confirmed that more than 100 generals and admirals have been arrested throughout the country. On Sunday, Erdogan said that his government is also considering reinstating the capital punishment. Capital punishment was abolished in Turkey in the round of joining the European Federation (NATO) in 2004. Nobody has been punished with it since 1984. Erdogan has also demanded the repatriation of 75 years old cleric Fahtullah Gulen from the US. Turkish government has alleged Gulen of attempting to start a system parallel to the government. The US has told Turkey to share if it has any evidence against the cleric Gulen. Turkish Prime Minister Binati Childirich declared the coup attempt as a black spot in the democratic history of Turkey. He informed that 161 common men have died and 1440 persons have been injured. As per state media 2745 judges have been removed including the judges of the apex court. Turkey it seems will have a lot of political turmoil and unrest in the days to come. The aftermath of the failed coup may have serious long term effects.

-        Anil  Narendra

 

सड़कों पर असुरक्षित व खतरनाक बनता सफर

भारत सड़कों के जाल और दूरी के मामले में दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्कों वाले देशों में एक है। लेकिन विस्तार के बरकस सफर को सुरक्षित बनाने के मामले में उतनी ही लापरवाही दिखती है। यही वजह है कि सड़क हादसों में भारत दुनियाभर में अव्वल है। सवाल है कि फिर सड़कों के ऐसे विस्तार का क्या मतलब, जब इतनी ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं और लोग मारे जाते हैं। अगर हम राजधानी दिल्ली की बात करें तो देश में 50 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में राजधानी दिल्ली की सड़कें सबसे अधिक जानलेवा हैं। 2015 में दिल्ली में 8084 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1622 लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा पूरे देश के शहरों की तुलना में सर्वाधिक है। दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण व्यावसायिक वाहनों की तेज रफ्तार है। मृतकों में सबसे ज्यादा संख्या राहगीरों और दोपहिया वाहन मालिकों की है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सड़क व फुटपाथ की बनावट की खामी इसका बड़ा कारण है। लेकिन कहीं न कहीं यातायात नियमों का सख्ती से पालन न होना भी इन बढ़ती दुर्घटनाओं का एक कारण है। लेकिन अब केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क परिवहन में सुधार के लिए जो इरादा जताया है, अगर वह मूर्त रूप ले पाया तो निश्चित रूप से दुर्घटनाओं में सुधार हो सकता है। अमेरिका की यात्रा पर गए गडकरी ने न्यूयार्प के परिवहन विभाग के अधिकारियों के साथ चर्चा के बाद कहा कि भारत के महानगरों में जिस तरह सड़कों पर आवाजाही का मामला जटिल होता जा रहा है, उसमें काफी सुधार की जरूरत है और न्यूयार्प की स्मार्ट यातायात प्रणाली की तरह सड़क प्रबंधन को सुव्यवस्थित और सुरक्षित बनाया जा सकता है। इस दिशा में पहल का मतलब है कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे महानगरों में स्मार्ट यातायात प्रणाली विकसित की जाएगी, जो सड़क प्रबंधन के बारे में विस्तृत और सही सूचना उपलब्ध कराएगी। इस प्रणाली की खासियत यह है कि इसके तहत यातायात पर नजर रखने और दुर्घटना या जाम की स्थिति में अधिकारी सड़कों पर बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं। दिल्ली की सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए यह भी जरूरी है कि राहगीरों के लिए फुटपाथ की सही व्यवस्था हो। फुटपाथ पर वाहन नहीं चलें और पैदल यात्री बार-बार सड़क पर न आएं, इसके लिए फुटपाथ पर बैरियर लगाना बेहतर विकल्प हो सकता है। असुरक्षित तरीके से सड़क पार करते समय अधिकांश सब-वे बंद हो जाते हैं। इसलिए मजबूरी में लोग खतरनाक तरीके से वाहनों के बीच से निकलते हुए सड़क पार करते हैं। अमूमन रात में ट्रैफिक कम होने से लोग तेज गति से वाहन चलाते हैं। ऐसी स्थिति में सड़क पार कर रहे राहगीरों के वाहनों की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है। राहगीर सुरक्षित सड़क पार कर सकें, इसके लिए सब-वे की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। रात के समय अकसर वाहन चालक रेड लाइट का पालन नहीं करते हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं। इसलिए रेड लाइट का पालन सख्ती से कराना होगा। दिल्ली की कुछ सड़कों पर तेज मोड़ हैं। इन स्थानों पर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। मोड़ वाली जगह पर फ्लोरोसेंट पेंट से संकेतक बनाने तथा अन्य तरह से चालकों को पहले सचेत करने से दुर्घटनाएं रोकी जा सकती हैं। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सड़कों पर ऐसी व्यवस्था भी करनी होगी, जिससे बसों को बार-बार लेन बदलने की जरूरत न पड़े। दिल्ली में इस तरह के 128 स्थान हैं। इनमें से भी 10 स्थान ऐसे हैं, जहां सर्वाधिक हादसे होते हैं। भारत के शहरों-महानगरों में सड़कों पर सफर जिस तरह खतरनाक व असुविधाजनक होता जा रहा है उसमें एक कारगर यातायात व्यवस्था की बहुत जरूरत है। लेकिन शायद ही कभी इसे एक गंभीर समस्या के रूप में प्राथमिकता मिली हो। जब भी अचानक कोई मुश्किल खड़ी होती है तो कोई फौरी हल निकालकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से महानगरों की सड़कों पर बेतहाशा वाहन बढ़े हैं। क्या इस बढ़ती संख्या को नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए ट्रैफिक पुलिस बल की संख्या भी उसी मात्रा में बढ़ाई गई है?

-अनिल नरेन्द्र

तुर्की में विफल तख्तापलट का गंभीर फालआउट

तुर्की में हुए तख्तापलट के प्रयास को विफल करने के बाद राष्ट्रपति ताइप एर्दोगेन ने देश में आपातकाल लागू कर दिया है। विद्रोह को कुचलने के लिए अत्यंत कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की पांच घंटे चली बैठक के बाद अपने मंत्रिमंडल के समक्ष एर्दोगेन ने टीवी पर तीन महीने का आपातकाल का ऐलान करते हुए कहा कि आपातकाल की घोषणा लोकतंत्र के खिलाफ हुई साजिश की जड़ों को साफ करने के लिए की गई है। राष्ट्रपति ने पश्चिमी देशों के उस आरोप को गलत बताया जिसमें कहा गया है कि वह विद्रोह को कुचलने के लिए ज्यादा कड़े कदम उठा रहे हैं। एर्दोगेन द्वारा उठाए गए कुछ कदम वाकई ही चौंकाने वाले हैं। अकेले इस्तांबुल विश्वविद्यालय से 95 शिक्षकों को हटा दिया गया है। सेना के करीब सवा सौ जनरलों को गिरफ्तार किया गया है। तुर्की सरकार के मुताबिक आठ हजार पुलिस अधिकारियों को तख्तापलट की कोशिश में कथित तौर पर शामिल होने के संदेह में निलंबित किया गया है। इसके अतिरिक्त सेना और न्याय व्यवस्था से जुड़े करीब 6000 लोगों को हिरासत में लिया गया है। इनमें सेना के जनरल रैंक तक के अधिकारी शामिल हैं। रेसप तैयप एर्दोगेन ने विद्रोह करने वाले वायरसों को सरकारी प्रतिष्ठानों से निकालने की कसम खाई है। तुर्की की सरकार का दावा है कि तख्तापलट के पीछे धर्मगुरु फहतुल्लाह गुलेन का हाथ है। गुलेन पर दबे लफ्जों में यह भी आरोप लग रहा है कि वह एर्देगेन का तख्तापलट साजिश में सीआईए की मदद से काम कर रहे हैं। दो अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए एजेंटों को भी गिरफ्तार करने की अफवाह है। हालांकि गुलेन ने तख्तापलट की कोशिश में स्वयं किसी भी तरह से शामिल होने से इंकार किया है। सरकारी मीडिया ने सोमवार को कहा है कि देशभर में 100 से ज्यादा जनरल और एडमिरल को हिरासत में लिया गया है। एर्देगेन ने रविवार को कहा है कि उनकी सरकार मृत्युदंड को फिर से बहाल करने पर विचार भी कर रही है। 2004 में यूरोपीय संघ (नाटो) में शामिल होने के क्रम में तुर्की में मृत्युदंड को समाप्त किया गया था। देश में 1984 के बाद से ये सजा किसी को नहीं दी गई है। एर्दोगेन ने अमेरिका में रहने वाले 75 वर्षीय धर्म प्रचारक फतुल्लाह गुलेन के अमेरिका से प्रत्यर्पण की मांग भी की है। तुर्की की सरकार ने गुलेन पर सरकारी तंत्र के समांतर व्यवस्था खड़ी करने की कोशिश का आरोप लगाया है। उधर अमेरिका ने तुर्की से कहा है कि अगर उसके पास धर्म प्रचारक गुलेन के खिलाफ कोई भी सबूत हो तो वह उसके साथ उसे साझा करें। तुर्की के प्रधानमंत्री बिनाली चिल्दिरिच ने तख्तापलट की कोशिश को तुर्की के लोकतांत्रिक इतिहास में काला धब्बा करार दिया। उन्होंने बताया कि 161 आम लोगों की मौत हो गई है और 1440 लोग घायल हो गए हैं। सरकारी मीडिया के मुताबिक 2745 जजों को हटाया गया है उनमें उच्चतम न्यायालय के जज भी हैं।

Friday 22 July 2016

10 साल पुरानी डीजल कारों पर रोक

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सोमवार को दिल्ली में डीजल से चलने वाले 10 साल से पुराने वाहनों पर तुरन्त प्रभाव से प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्द्धमान कौशिक बनाम भारत सरकार के वायु प्रदूषण संबंधी मुख्य मामले में ही दाखिल कई अन्य याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह आदेश दिया। पीठ ने कहा कि नेशनल परमिट वाले 10 साल से ज्यादा पुराने ट्रकों को भी दिल्ली में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए। वहीं दिल्ली परिवहन निगम की एक याचिका में जिसमें कुल 56 ट्रकों के लिए राहत मांगी गई थी, पीठ ने कहा कि 12 को छोड़कर सभी 10 साल से ज्यादा पुराने हैं। इन सभी को हटाना होगा। इसके अलावा प्रैशर हॉर्न के बेरोक-टोक इस्तेमाल को ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा कारण मानते हुए एनजीटी ने राष्ट्रीय राजधानी में इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रैशर हॉर्न का इस्तेमाल करने वाले वाहनों और सायलेंसर के बिना दुपहिया वाहनों को चलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके साथ ही पीठ ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को इस मामले में नोटिस जारी किया है। पीठ ने कहा कि प्रैशर हॉर्न निश्चित तौर पर बंद होना चाहिए। एक अनुमान के अनुसार इस समय राजधानी दिल्ली में लगभग दो लाख 82 हजार वाहन 10 साल पुराने हैं। 32 हजार के करीब व्यवसायिक डीजल वाहन हैं। उधर ज्ञात रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 2000 सीसी से अधिक वाहनों के पंजीकरण पर रोक लगा रखी है। एनजीटी के आदेश को रद्द करने वाली याचिका भी कोर्ट खारिज कर चुकी है। यह सही है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए पिछले दो दशक से बस और टैक्सी जैसे सार्वजनिक वाहनों में सीएनजी लगाने से लेकर कई तरह के उपाय आजमाए जा रहे हैं। सुधार तो हुआ है  लेकिन उस मात्रा में नहीं जिसकी आवश्यकता है। हकीकत यह है कि एक ओर पेट्रोल से डीजल की कीमत कम है, इसलिए भी लोग उसे इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। इस बात को भी समझना होगा कि हर साल हजारों नए वाहन सड़कों पर आ रहे हैं। पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली में वाहनों की संख्या में 97 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। इसमें अकेले डीजल से चलने वाली गा]िड़यों की तादाद 30 से 35 फीसदी बढ़ी है। पर वाहनों से कहीं ज्यादा प्रदूषण दुपहिया, निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल, खुले में जलाए जाने वाला औद्योगिक कचरा और खर-पतवार वगैरह हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें मानवीय और आर्थिक कारण भी हैं। रिटायर्ड नौकरशाह, सेना के अफसर यहां तक कि रिटायर्ड जज नए वाहन नहीं खरीद सकते। पुराने वाहन चलाना उनकी मजबूरी है। एनजीटी के इस फैसले को चुनौती मिलेगी और जोर वाहन की उम्र पर नहीं फिटनेस पर हो तो बेहतर होगा।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल गांधी माफी मांगें या मुकदमा झेलें

चुनावी माहौल में अकसर हमने देखा है कि नेतागण कभी-कभी ऐसे बयान दे देते हैं जिनसे बचना चाहिए। उदाहरण के तौर पर महात्मा गांधी की हत्या के लिए राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने बीते साल छह मार्च को महाराष्ट्र के ठाणे में एक चुनावी रैली में कह दिया था कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के लोगों ने गांधी जी की हत्या की। इस बयान पर महाराष्ट्र के भिवंडी के मजिस्ट्रेट कोर्ट में आरएसएस के राजेश पुंटे ने केस दर्ज किया था। आपराधिक मानहानि के केस को खारिज कराने की मांग को लेकर राहुल बीते साल मई में सुप्रीम कोर्ट गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी राहुल को यह मामला बंद करने के लिए खेद जताने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने सलाह को मानने से इंकार करते हुए कहा था कि वह मुकदमा लड़ेंगे। इस विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राहुल गांधी से कहा कि वह अपने बयान के लिए माफी मांगें या मुकदमा झेलने के लिए तैयार रहें। शीर्ष अदालत ने राहुल गांधी सामूहिक आक्षेप लगाने पर खिंचाई करते हुए कहा कि उन्हें मुकदमा झेलना पड़ेगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राहुल से कहा कि आप संघ के खिलाफ व्यापक तौर पर ऐसा बयान कैसे दे सकते हैं? कैसे संघ से जुड़े लोगों को एक ही तराजू पर तोल कर दिखा सकते हैं। पीठ ने पूछा कि राहुल ने गलत ऐतिहासिक साक्ष्य को अपने बयान का हिस्सा क्यों बनाया? अदालत ने सामूहिक मानहानि की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। यानि अगर जो भड़काऊ या आपत्तिजनक बयान देगा उसे मुकदमा झेलना पड़ेगा। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि राहुल गांधी के माफी मांगने का सवाल ही नहीं पैदा होता। वह एक परिपक्व नेता हैं और उनको ऐतिहासिक तथ्यों की पूरी जानकारी है। राहुल और कांग्रेस पार्टी उचित मंच पर इन सभी टिप्पणियों का बचाव करेगी। संघ के मनमोहन वैद्य का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कांग्रेस की पोल खुल गई है। राहुल गांधी सुनवाई से बच रहे हैं और बार-बार वही झूठा आरोप संघ के खिलाफ लगा रहे हैं। इससे लगता है कि उनका देश की न्याय व्यवस्था में कोई भरोसा नहीं है। राहुल के वकील के मुताबिक राहुल के भाषण में जो भी कहा गया है वह सरकारी रिकार्ड और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के आधार पर कहा गया। राहुल सीधे तौर पर आरएसएस का जिक्र नहीं कर रहे थे। इस पर बैंच ने हाई कोर्ट का फैसला पढ़ने के बाद कहा कि इसमें केवल इतना कहा गया है कि नाथूराम गोडसे आरएसएस का कार्यकर्ता था। बैंच ने कहा कि गोडसे ने गांधी को मारा और आरएसएस ने गांधी को मारा, दोनों अलग-अलग बात हैं। कई साल से कोशिश हो रही है कि ऐतिहासिक हस्तियों के जीवन में प्रवेश कर उसे नया आयाम दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के बावजूद राहुल का अपने रुख पर अड़े रहना शायद उन्हें लगता है कि इससे उनकी एक बहादुर नेता के तौर पर छवि बनेगी और कांग्रेस पार्टी का अल्पसंख्यक वोट बैंक कन्सालिडेट होगा। शायद उन्हें ऐसी सलाह इस मकसद से दी गई है कि इससे वह संघ का राजनीतिक रूप से सामना करते हुए दिखेंगे, लेकिन हमारा मानना है कि यह सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। आमतौर पर इस तरह की राजनीति सियासी दलों के नेतृत्व करने वाले नेता नहीं करते। आधे-अधूरे तथ्यों के साथ उकसावे वाले बयान देने वाले नेता वैसे हर दल में हैं। इस दृष्टि से कोर्ट का यह फैसला कई मायनों में विशेषकर राजनीतिक क्षेत्र के लिए अहम है। कोर्ट का साफ-साफ शब्दों में यह कहना है कि आप किसी को पब्लिकली क्रिटिसाइज नहीं कर सकते, सराहनीय है। इस फैसले पर अगर सही ढंग से गौर किया जाए तो मौजूदा राजनीति के स्तर में जो गिरावट आई है, उसमें काफी हद तक सुधार हो सकता है, अगर राजनेता इस फैसले को गंभीरता से लें। आमतौर पर हमने देखा है कि बेसिर-पैर के आरोप लगाने से भी राजनीतिक दल के नेता परहेज नहीं करते। राहुल गांधी का संघ से वैचारिक मतभेद हो सकता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह उसे बदनाम करें। राहुल गांधी का जो रुख और रवैया है उससे कांग्रेस को कुछ सियासी लाभ मिल सकता है लेकिन इससे कुल मिलाकर राहुल गांधी की अपनी छवि पर बुरा असर पड़ेगा। हमें तो लगता है कि अंतत उन्हें संघ से माफी मांगनी पड़ेगी।

Thursday 21 July 2016

पाकिस्तान की वन वूमन आर्मी : कंदील बलोच

पाकिस्तानी मॉडल कंदील बलोच की चौकसी वाली हत्या अखबारों की सुर्खियों में है। क्रिकेट, विवादों और सोशल मीडिया से सुर्खियां बटोरने वाली कंदील बलोच को उसके अपने भाई वसीम ने गत शुक्रवार रात गला दबाकर मार डाला। ईद पर वो घर मुल्तान आई थी। कंदील ने कुछ दिन पहले ही गृहमंत्री को पत्र लिखकर जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी। पुलिस का कहना है कि भाई, कंदील (26 वर्ष) के बोल्ड फोटो और वीडियो से खफा थे। जिस सोशल मीडिया ने कंदील को शोहरत दिलाई...उस पर अंतिम बार उसने लिखा, वैन वीडियो पर दुनिया से बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है, समर्थकों को बिना शर्त प्यार के लिए शुक्रिया। कंदील का वास्तविक नाम फौजिया अजीम था। कंदील ने 15 जुलाई को अपना आखिरी फेसबुक स्टेटस डाला था। जिसमें लिखा था कि उन्हें भले ही कितनी बार भी हराने की कोशिश की जाए लेकिन वह एक लड़ाके की तरह जवाब देंगी। उन्होंने लिखा था कि कंदील बलोच वन वूमन आर्मी है। पहली शादी से उनका बेटा भी है। कंदील बलोच पढ़ना चाहती थीं इसलिए उसने अपने शौहर से तलाक ले लिया। एक अन्य ट्वीट में लिखाöजिन्दगी ने मुझे कम उम्र में ही सबक सिखा दिया है। मेरा एक लड़की से एक आत्मनिर्भर महिला बनने का सफर आसान नहीं था। यदि इच्छाशक्ति है तो कोई भी आपको झुका नहीं सकता है। मैं हक के लिए लड़ूंगी, अपने लक्ष्य तक पहुंचूंगी। इसे पाने से कोई मुझे रोक नहीं सकता। अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा थाöभले ही कितनी ही बार मुझे गिराया जाए, लेकिन हर बार मैं फिर उठ खड़ी होऊंगी। मैं पूरी सेना हूं। मैं उन महिलाओं को प्रेरणा देती रहूंगी, जिनके साथ बुरा व्यवहार होता है। कंदील ने एक वीडियो में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी को डार्लिंग मोदी और चायवाला कहा था। टी-20 वर्ल्ड कप में शाहिद अफरीदी से भारत को हराने पर स्ट्रिप डांस करने का वादा किया था। लेकिन भारत ने जब पाकिस्तान को हरा दिया तो कंदील ने ट्वीट कियाöविराट बेबी अनुष्का शर्मा ही क्यों...फीलिंग लव। कंदील के छोटे भाई वसीम को शनिवार देर रात डेरा गाजी खान से गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में प्रेस वार्ता में अपनी बड़ी बहन को नशीली दवा देने के बाद उसका गला घोटकर हत्या करने की  बात कबूल भी की। द डॉन अखबार की खबर के अनुसार उसने कहा कि उसने कंदील की हत्या इसलिए की क्योंकि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक वीडियो और बयान जारी कर उसने बलोच नाम को कलंकित किया था। उसने कहाöऐसा करने के पीछे एक नामी मौलवी के साथ सेल्फी समेत कई अन्य विवाद भी थे। कंदील के पिता मोहम्मद अजीम ने दावा किया कि वसीम ने उसकी हत्या शान के नाम पर की है। कंदील के पिता ने ही हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

-अनिल नरेन्द्र

नवजोत सिंह सिद्धू का भाजपा को करारा झटका

अपनी बेरुखी और मनमानी से भाजपा को जब-तब असहज करते रहे पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने इस बार बड़ा झटका दिया है। महज तीन महीने पहले मनोनीत होकर राज्यसभा पहुंचे सिद्धू ने पंजाब चुनाव से ऐन पहले नेतृत्व को अंधकार में रखते हुए राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है। सोमवार को सुबह 10.20 बजे ही वह राज्यसभा सभापति के कमरे में पहुंच गए थे। 10.30 बजे पर राजनीतिक दलों की बैठक से पहले ही उन्होंने राज्यसभा सभापति उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को अपना इस्तीफा सौंप दिया जो मंजूर भी हो गया। इससे पहले सिद्धू की पत्नी और पंजाब में संसदीय सचिव का जिम्मा संभाल रहीं डॉ. नवजोत कौर ने पहली अप्रैल को फेसबुक पर भाजपा छोड़ने की टिप्पणी से माहौल गरम कर दिया था। हालांकि तब वह महज अप्रैल फूल साबित हुआ था। चर्चा गरम है कि दोनों मियां-बीवी आम आदमी पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं। अमृतसर से लोकसभा का टिकट काटे जाने और पंजाब में अकाली दल से गठबंधन जारी रखने के कारण अरसे से नाराज चल रहे सिद्धू दम्पत्ति ने यह स्वीकार भी किया कि उनकी आप में शामिल होने की बातचीत चल रही है। आप ने भी इस्तीफे को साहसी कदम बताते हुए सिद्धू को पार्टी में शामिल होने का खंडन नहीं किया। बीते चार-पांच महीने में सिद्धू दम्पत्ति की अरविन्द केजरीवाल से कई दौर की बातचीत हुई थी। इस क्रम में नवजोत कौर शुरू से ही आप में शामिल होने की इच्छुक थीं। मगर इस बीच भाजपा नेतृत्व ने सिद्धू को मना लिया। खुद पीएम मोदी ने सिद्धू से बात की और उन्हें राज्यसभा के लिए राजी कर लिया। अभी यह साफ नहीं कि सिद्धू पंजाब में आप का मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे या नहीं? आप के संविधान के मुताबिक परिवार का कोई एक ही सदस्य किसी पद पर रह सकता है। चुनाव भी सिद्धू और उनकी पत्नी फिलहाल आप से नहीं लड़ सकते। हालांकि सूत्रों का कहना है कि आप सिद्धू और नवजोत कौर को साधने के लिए पार्टी के संविधान में बदलाव भी कर सकती है। ऐसा हुआ तो अरविन्द केजरीवाल की पत्नी के लिए भी आप में किसी भूमिका का रास्ता खुल सकता है। नवजोत की पत्नी पेशे से डाक्टर नवजोत कौर सिद्धू पंजाब में एमएलए हैं और चीफ पार्लियामेंट्री सैकेटरी हैं। डॉ. कौर ने ड्रग्स के खिलाफ बयान देकर पहले ही आम आदमी पार्टी में जाने का इशारा किया था। नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने इस्तीफे के बाद कहा कि पंजाब की भलाई के लिए प्रधानमंत्री के आग्रह पर मैंने राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार की थी। पंजाब की भलाई का हर दरवाजा बंद होने के चलते इसका कोई मतलब नहीं रहता। अब यह महज बोझ है। मैं इसे और ज्यादा नहीं ढोना चाहता। सही और गलत की लड़ाई में आप स्वार्थी बनकर तटस्थ नहीं रह सकते। पंजाब का हित सबसे ऊपर है। नवजोत सिंह सिद्धू का पंजाब चुनाव से ऐन पूर्व भाजपा छोड़ना पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। यह एक ऐसी घटना है जो चुनाव परिणाम प्रभावित कर सकती है। वैसे भी इस घटना से पंजाब की हवा का पता चलता है। कहते हैं कि सिद्धू को हवा सूंघने की आदत है और आने वाले समय व माहौल को भांप लेते हैं। जब वह क्रिकेटर थे तो अगर मैच में बारिश होती थी तो कप्तान उनके पास आकर पूछते थे कि बारिश कब रुकेगी, मैच होगा या नहीं? भाजपा भले ही सार्वजनिक तौर पर इसे स्वीकार करे या न करे, लेकिन उसके लिए एक ऐसा झटका है जिसकी क्षति उसे चुनाव में उठानी पड़ सकती है। पंजाब में अकाली दल की बढ़ती अलोकप्रियता तथा आप पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता कोई छिपा तथ्य नहीं है। केजरीवाल कई बार दावा कर चुके हैं कि आप पार्टी की 100 से ज्यादा सीटें आएंगी। अगर पार्टी को केशधारी सिद्धू जैसा एक चेहरा मिल जाता है तो आप पार्टी के लिए इस समय मुंहमांगा वरदान जैसा दिख रहा है। वैसे भी देखा जाए तो सिद्धू पंजाब में भाजपा को मजबूत करने और अपने दम-खम पर खड़ा करने के पक्षधर थे। पर भाजपा हाई कमान को अकाली बैसाखी ज्यादा पसंद थी। भाजपा ने एक सुनहरा मौका गंवा दिया। अब प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिन्दर सिंह के समांनतर आप के पास भी एक विश्वसनीय सिख चेहरा आ गया है। लोगों के पास एक तीसरा विकल्प भी उपलब्ध होगा। यह तो मानना ही पड़ेगा कि सिद्धू की वक्तृत्व कला में एक जादू है, जो लोगों को मोहित करती है। देखें, भाजपा इस झटके से कैसे निपटती है?

Wednesday 20 July 2016

क्या शीला यूपी में कांग्रेस की नैया पार लगा पाएंगी?

तकरीबन तीन महीने पहले कांग्रेस के नए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सुझाव दिया था कि उत्तर प्रदेश में अगर कांग्रेस को दोबारा जीवित करना है तो विधानसभा चुनाव में पार्टी को किसी ब्राह्मण नेता को अपना चेहरा बनाना होगा। प्रशांत किशोर के सुझाव के बाद गुलाम नबी आजाद की सिफारिश पर अमल करते हुए सोनिया गांधी, प्रियंका और राहुल गांधी ने शीला दीक्षित को यूपी का चेहरा बनाने की स्वीकृति दे दी। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए शीला जी अब कांग्रेस का चेहरा होंगी। यूपी की सत्ता से 27 साल से दूर कांग्रेस वहां सिंहासन पाने को बेताब है। यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने शीला के नाम का ऐलान करते हुए कहा कि वह अनुभवी और मेहनती हैं। सीएम के तौर पर शीला ने 15 साल दिल्ली में विकास कार्य किए हैं जिन्हें कोई नकार नहीं सकता है। फिर शीला दीक्षित का यूपी से करीबी रिश्ता भी है, वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व मंत्री रहे उमाशंकर दीक्षित की पुत्रवधू हैं। कांग्रेस ने एक तरह से शीला दीक्षित को यूपी में सीएम पद का भावी चेहरा घोषित कर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नेहरू-गांधी परिवार को छोड़ दें तो निश्चित रूप से इस समय शीला जी से बेहतर कांग्रेसी चेहरा यूपी के लिए फिट नहीं बैठता। लेकिन सिर्प इस ब्राह्मण कार्ड के सहारे यूपी में लगभग 27 वर्षों से सत्ता से दूर कांग्रेस की डगर बहुत आसान होने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस का कार्यकर्ता उदास और मायूस होकर घर बैठ गया है। उसे मोटिवेट करना आसान नहीं होगा। हां इतना जरूर हो सकता है कि शीला की ससुराल की विरासत के सहारे कांग्रेस यूपी की लगभग 14 प्रतिशत ब्राह्मण आबादी के कुछ वोट हासिल कर ले। पर यूपी में सियासत की फर्श पर खड़ी कांग्रेस को शीला का कार्ड अर्श पर पहुंचा देगा, यह फिलहाल आसान नजर नहीं आ रहा है। राजनीतिक समीक्षकों का तो कहना है कि शीला के सहारे कांग्रेस यूपी की जातीय गुणाभाग वाली सियासत में चुनाव के दौरान दूसरों की चिन्ता भले बढ़ा लें लेकिन सपा, भाजपा या बसपा जैसे दलों के सामने बेहतर विकल्प बनकर चुनौती खड़ी कर पाएगी, इसको कहना म]िश्कल है। दिल्ली में बीते विधानसभा चुनाव में भले ही अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया हो लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित के लगातार 15 साल के कार्यकाल में दिल्ली के अभूतपूर्व विकास को कोई भी झुठला नहीं सकता। शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत बेशक न दिला पाएं लेकिन उनके कद व राजनीतिक अनुभव और समीकरण फिट करने में माहिर कांग्रेस यूपी में काफी कुछ अप्रत्याशित कर सकती है। बता दें कि दिल्ली विधानसभा के इतिहास में सबसे अधिक समय तक 5504 दिन शीला जी ने मुख्यमंत्री पद पर कायम रहकर रिकार्ड बनाया है। यूपी में कांग्रेस का ढांचा बेहद कमजोर है। गांव तक संगठन नहीं है। कार्यकर्ता कम तो हो ही गए हैं जो हैं भी वह मायूस होकर या तो दूसरी पार्टियों में चले गए हैं या घर बैठ गए हैं। सिर्प चन्द नेता वह भी जिला स्तर पर रह गए हैं। कई जगह तो ब्लॉक स्तर की कमेटी तक पूरी नहीं है। जिला, ब्लॉक आदि की बैठकों में गिनती के लोग शिरकत करते हैं और गुटबाजी भी हावी है। ऐसे में नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने के लिए गुलाम नबी आजाद, राजबब्बर और शीला दीक्षित की तिकड़ी को कड़ी मेहनत व मशक्कत करनी होगी। यह काम आसान नहीं। कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी अगर राहुल या प्रियंका को सामने रखकर चुनाव लड़ती तो शायद इससे कुछ फर्प पड़ता। प्रियंका की सक्रियता से लग रहा था कि वह बड़ी भूमिका निभाने वाली हैं। शायद वह अब भी निभाएं। लेकिन उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति में कांग्रेस का निरुत्साह बहुत कुछ बता देता है।

-अनिल नरेन्द्र

शहीद पैदा हो, लेकिन मेरे घर में नहीं, पड़ोसी के घर में

शहीद पैदा हों, लेकिन मेरे घर में नहीं, पड़ोसी के घर में। यह कहावत कश्मीरी अलगाववादियों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। कश्मीरी युवाओं के मन में अलगाववादियों के दोहरे चेहरे व रवैये को लेकर सवाल उठने लगे हैं। उनकी हकीकत समझने और समझाने की जरूरत है। आम कश्मीरी नौजवानों को जेहाद के रास्ते पर चलने के लिए उकसाने और इस्लाम के नाम पर उन्हें मौत के मुंह में धकेलने वाले ये हुर्रियत नेताओं के खुद के बच्चे कश्मीर की मार-काट से दूर देश-विदेश में पढ़ाई या पैसा कमाकर आराम की जिन्दगी बिता रहे हैं। कश्मीर में अलगाववाद का सबसे बड़ा चेहरा सैयद अली शाह गिलानी को माना जता है। गिलानी ने कैरियर की शुरुआत जमात--इस्लामी कश्मीर से की थी। बाद में खुद ही पार्टी तहरीक--हुर्रियत का गठन किया। गिलानी का बड़ा बेटा नईम और बड़ी बेटी पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहते हैं। दोनों ही पेशे से डाक्टर हैं। जबकि छोटा बेटा दिल्ली के मालवीय नगर में रहता है। जहां पर गिलानी सर्दियों के समय लगभग तीन माह का समय बिताते हैं। गिलानी का पोता एक भारतीय प्राइवेट एयरलाइन में कू मेम्बर है। छोटी बेटी फरहत जेद्दाह में रहती हैं। अलगाववादी नेता और दुख्तरान--मिल्लत की चीफ आसिया अंद्राबी जमीयत-उल-मुजाहिद्दीन के पूर्व कमांडर आशिक हुसैन फक्तू उर्प मोहम्मद कासिम की पत्नी है। फक्तू को मानवाधिकार कार्यकर्ता एमएन वांचू की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा मिली है और वह 22 साल से श्रीनगर जेल में है। अंद्राबी और उसके पति को गिलानी गुट का समर्थक माना जाता है। लेकिन दुख्तरान--मिल्लत हुर्रियत का हिस्सा नहीं है। आसिया के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा मोहम्मद बिन कासिम मलेशिया में आसिया की बड़ी बहन के साथ रहकर बैचलर ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी का कोर्स कर रहा है। छोटा बेटा श्रीनगर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में अपनी पढ़ाई कर रहा है। आसिया के अधिकतर रिश्तेदार सऊदी अरब, मलेशिया और इंग्लैंड में रहते हैं। अवामी एक्शन कमेटी के नेता मीरवाइज उमर फारुक को हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी धड़े का नेता माना जाता है। मीरवाइज की छवि एक कश्मीरी धार्मिक मुस्लिम नेता की है। मीरवाइज की बहन रुबिया फारुक अमेरिका में डाक्टर है। मीरवाइज ने अमेरिकी मूल की मुस्लिम शीवा मसूदी से शादी की है। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक की आस्था पाक से शुरू से ही जुड़ी है। यासीन के पिता सरकारी बस के ड्राइवर थे। यासीन ने पाक लड़की मुशहाला हुसैन से निकाह किया है। मुशहाला जानी-मानी चित्रकार हैं। मुशहाला लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएट है। उनके पिता एमए हुसैन पाक के जाने-माने इकोनामिस्ट हैं। मां रेहाना पाकिस्तान मुस्लिम लीग की महिला विंग की प्रेसिडेंट हैं। इन अलगाववादी नेताओं के अपने आचरण पर जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापकों में से एक हाशिम कुरैशी के बेटे जुनैद कुरैशी ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा है कि अलगाववादी दूसरों के बच्चों को बंदूक उठाकर मरने के लिए क्यों उकसाते हैं? जुनैद उस हाशिम कुरैशी का बेटा है जो 30 जनवरी 1971 को इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक कर लाहौर ले गया था। वहां यात्रियों को छोड़ दिया गया था पर विमान को बमों से उड़ा दिया गया था। हालांकि बाद में हाशिम कुरैशी ने आतंक का रास्ता छोड़ दिया। जुनैद ने कहा कि कश्मीरी नौजवान इन अलगाववादियों से ये सवाल पूछें कि अगर बंदूक उठानी जरूरी है तो फिर वे क्यों अपने बच्चों से बंदूक नहीं चलवाते? दरअसल जैसे ही अलगाववादी नेताओं के बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं उन्हें कश्मीर से बाहर भेज दिया जाता है। ऐसा कश्मीर के लगभग हर अलगाववादी नेता ने किया है। इनके बच्चे न तो कभी किसी प्रदर्शन में शामिल हुए और न ही इन्होंने कभी सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंके हैं। कई बार तो ऐसा देखने में आया है कि इन नेताओं के बच्चे उस दौरान कश्मीर में आए और उन्हें तुरन्त वापस भेज दिया गया। कभी किसी नेता ने कश्मीर के खराब हालात के दौरान अपने बच्चों को नहीं बुलाया। हर बार दंगों में इन नेताओं के बच्चे बाहर ही रहते हैं।

Tuesday 19 July 2016

ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री टेरेसा मे

ऐसा विरला ही होता है कि कार्यकाल के बीच में एक प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी छोड़ दे और दूसरे को सौंप दे। इस तरह असाधारण परिस्थितियों में टेरेसा मे ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल  लिया। बर्किंघम पैलेस के अंत पुर में डेविड कैमरन जब प्रधानमंत्री के तौर पर घुसे, उसके एक घंटे के भीतर ही टेरेसा उनकी उत्तराधिकारी बनकर वहां से बाहर निकलीं। बेशक चेहरा और नाम नया है। मगर जिन समस्याओं से डेविड कैमरन पिछले छह साल से जूझते रहे, उनसे नई प्रधानमंत्री टेरेसा को भी जूझना पड़ेगा, खासतौर पर वित्तीय तंगी, कमजोर बहुमत और सबसे बड़ी सिरदर्दी ब्रेग्जिट। टेरेसा मे इस पद पर आने वाली दूसरी महिला हैं। इनसे पहले लौह महिला के रूप में चर्चित मारग्रेट थैचर देश का नेतृत्व कर चुकी हैं। लेकिन जिन हालात में टेरेसा मे को देश की कमान मिली है वह एक कांटों भरा ताज है। दिलचस्प यह है कि कैबिनेट गठन के साथ ही उनकी आलोचना भी शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा सवाल बोरिस जॉनसन को विदेश मंत्री बनाने को लेकर उठाए जा रहे हैं। जॉनसन ब्रेग्जिट के पक्ष में अभियान चलाने वाले नेता रहे हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित कई अन्य राष्ट्राध्यक्षों के खिलाफ दिए गए उनके बयान खासे चर्चित रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को विदेश नीति का जिम्मा सौंपने पर सवाल उठने स्वाभाविक ही हैं। 10 डाउनिंग स्ट्रीट में अपनी पहली रात 59 वर्षीय टेरेसा को शायद ही नींद आई हो। प्रवक्ता ने कहाöसभी बधाई के फोन संवादों में प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ से बाहर जाने संबंधी ब्रिटिश जनता की इच्छा को पूरा करने की प्रतिबद्धता जताई। टेरेसा के सामने एक चुनौती देश के आम मतदाताओं का विश्वास हासिल करने की होगी। गौर करने की बात है कि पिछले प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की ही तरह खुद टेरेसा भी ब्रेग्जिट के खिलाफ थीं। ऐसे में अगर वह ब्रेग्जिट समर्थक खेमे के अग्रणी नेताओं को अपनी सरकार में अहम भूमिका नहीं देतीं तो इसे जनमत की अवहेलना समझा जाता। प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए उनके बयानों में भी यह कोशिश साफ झलकती है। उन्होंने लोगों को साफ-साफ कहा है कि बड़े फैसले लेते वक्त हम ताकतवर लोगों के बारे में नहीं आपके बारे में सोचेंगे। नए कानून भी उनका नहीं आपका ध्यान रखते हुए बनाएंगे, टैक्स की बात होगी तो हमारी प्राथमिकता आप होंगे, वह नहीं। टेरेसा मे की कामयाबी पर न सिर्प यूरोपीय देशों की, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में यह सूचना भी दिलासा देने वाली है कि टेरेसा मे के शुरुआती कदमों में कोई हड़बड़ी नहीं दिखती और उनकी दिशा भी सही है। हम टेरेसा को उनके प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह ब्रिटेन को इस चुनौतीपूर्ण समय से बाहर निकालने में सफल रहेंगी।

-अनिल नरेन्द्र

तुर्की में तख्तापलट की नाकाम कोशिश

यूरोप से एशिया तक फैले देश तुर्की की राजधानी अंकारा की सड़कों पर शुक्रवार शाम अचानक सेना के जवानों की बढ़ती मौजूदगी देख लोग हैरान रह गए। लोगों को उस समय समझ नहीं आया कि भारी टैंकों के साथ सड़कों पर उतरे ये सैनिक देश की मौजूदा सरकार का तख्ता पलटने जा रहे हैं। सेना के एक गुट ने तख्तापलट की साजिश रची। टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों, फाइटर प्लेन के सहारे राजधानी अंकारा और सबसे बड़े शहर इस्तांबुल में जमकर हल्ला बोला। संसद पर भी बम बरसाए। एयरपोर्ट बंद हो गया और सारी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गईं। पूरे देश में हड़कंप मच गया। राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन उस समय देश से बाहर थे। जैसे ही उन्हें तख्तापलट की सूचना मिली, उन्होंने टीवी, ट्विटर और बल्क एमएमएस के जरिये लोगों से अपील कीöलोकतंत्र और शांति के लिए उठो, सड़कों पर उतरो। हजारों लोग घरों से निकल पड़े। टैंकों व बख्तरबंद गाड़ियों के आगे लेट गए, खड़े हो गए। बिना बंदूकों के फौज से भिड़ गए। जनता का रौद्र रूप देख करीब पांच घंटे बाद खूनी संघर्ष थम गया। विद्रोहियों ने हाथ खड़े कर दिए। इस दौरान कुछ ही घंटों में 256 लोगों की मौत हो गई, 1500 से ज्यादा विद्रोहियों को जनता ने मार-मारकर आत्मसमर्पण कराया। सरकार ने 90 प्रतिशत हालात काबू में होने का दावा किया है। शाम को सरकार ने विद्रोही खेमे पर सख्ती शुरू कर दी। करीब तीन हजार बागियों को गिरफ्तार कर लिया गया। 25 कर्नल, पांच जनरलों को भी हटा दिया गया। विद्रोहियों से सम्पर्प के चलते 2800 जजों की भी छुट्टी कर दी गई। आठ बागी हेलीकाप्टर से यूनान भाग गए। राष्ट्रपति ने जिस ट्वीट से तख्तापलट की साजिश नाकाम कर दी वह कुछ ऐसे थाöतुर्की के प्यारे लोगो! यह हरकत देश के खिलाफ है। एक छोटी-सी सैनिक टुकड़ी ने इस्तांबुल और अंकारा में सेना की हथियारबंद गाड़ियों और हथियार हासिल कर लिए हैं। 1970 का इतिहास दोहराने की तैयारी है। तख्तापलट की कोशिश को उचित जवाब देना जरूरी है। अपने देश और लोकतंत्र को बचा लो। सड़कों पर उतरें और अपना देश वापस छीन लें। तख्तापलट के पीछे अमेरिका में निर्वासन में रह रहे मुस्लिम धर्मगुरु फतहुल्ला गुलेन का नाम लिया जा रहा है। सरकार के वकील राबर्ट एम्सटर्डम ने कहा कि इसके पीछे फतहुल्ला का सीधा हाथ है। इंटेलीजेंस सूत्रों के मुताबिक इसके साफ संकेत हैं कि फतहुल्ला कुछ खास मिलिट्री लीडरशिप के साथ चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने के लिए काम कर रहे थे। हालांकि फतहुल्ला ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज किया। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि तुर्की की सेना को आधुनिक तुर्की के निर्माता कमाल अता तुर्प के बनाए धर्मनिरपेक्ष संविधान का संरक्षण माना जाता है। 14 साल पहले जब राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन सत्ता में आए थे तभी से उनकी कट्टरपंथियों के आगे झुकने की नीति को सेना नापसंद कर रही थी। 2002 में सत्ता में आने के बाद से ही एर्दोगन ने सेना पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए शीर्ष स्तर पर फेरबदल शुरू कर दिए थे। फूट डालकर अपने पसंद के जनरलों को ऊंचे ओहदों पर बैठाने की एर्दोगन की नीतियों से सेना के आला अफसर नाराज चल रहे थे। विद्रोही गुट का कहना है कि वे सिर्प राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन को हटाना चाहता है। एर्दोगन पर आरोप है कि वे तानाशाही चलाते हैं। विद्रोहियों को जेल भेजते हैं। कई आलोचक पत्रकारों पर केस करने और विदेशी पत्रकारों को देश से निकालने का भी आरोप है। पिछले महीने तुर्की के सबसे बड़े अखबार जमान पर पुलिस ने छापा मारा था, जिसके बाद अखबार को झुकना पड़ा था। 61 साल के रेसेप तैयप एर्दोगन 2002 में सत्ता में आए थे जबकि 2001 में उन्होंने एके पार्टी का गठन किया था। 2014 में राष्ट्रपति बनने से पहले वह 11 साल तक तुर्की के प्रधानमंत्री रहे। 2013 में एर्दोगन ने सेना के वरिष्ठ जनरलों पर कार्रवाई की। इनमें से 17 को जेल भेज दिया था। सेना इस वजह से भी इनसे नाराज है। बचपन में एर्दोगन पैसा कमाने के लिए इस्तांबुल की सड़कों पर नींबू पानी बेचते थे। 1999 में इस्लामी भावनाएं भड़काने के आरोप में उन्हें चार महीने तक जेल में रहना पड़ा था। तुर्की की जनता लोकतंत्र समर्थक रही है। इसीलिए जब राष्ट्रपति का एमएमएस आया तो तमाम जनता सड़कों पर उतरी और लोकतंत्र को बचा लिया।

Monday 18 July 2016

The world needs a united front to combat Islamic Terrorism

France has once again been a victim of terrorist attack. Within eight months after the horrific attacks on Paris (14th November 2015) falling prey to such attacks should be a matter of concern for not only France but the entire world also. For France, 14th July is Bastille Fall Day or National Day. Targeting the celebration of Bastille Day in Nice city shows that that IS ideology inspired Islamic terrorist attacks are on the rise in all the countries of the world. If was feared that as the IS weakens in Syria and Iraq, it will resort to terrorist attacks in the entire world to show its impact. The attacks on France within last one and half year should have made the security and intelligence agencies of France more vigilant and observant thereafter. Its security lapses during the Paris attack had been pointed out , in the investigation report. In Nice attack too the way the terrorist entered the city driving the truck at the speed of 100 km/hour he needed to be stopped and checked but it did not seem to be so. As per Marco Barsoti, enjoying the fireworks of Bastille Day with his girlfriend, at 11 pm all of a sudden a white coloured refrigerator truck entered the huge crowd in the most beautiful road of the city Promenade des Angeles. People began to run here and there. We ran to corner to save our life. Many people fell on each other. The truck went on trampling down the people upto 2 kms. Blood scattered all around. So far 84 people have been killed and 120 people are reported to be injured in this attack. These also include many women and children. Dozens of injured have been worrisome. The police on the spot killed down the driver terrorist. A biker even tried to stop the 31 year old driver, a French-Tunis citizen Mohammed Lahouaiej Bouhlel but failed. The assailant ravaged the orgy of death on road for 25 minutes. He was firing also. Later on the police surrounded the truck and killed the assailant. Claiming the responsibility of the attack, IS have also posted the pictures of the celebration on the social media. We have seen the pictures of celebrations of attacks from Brussels, Orlando, Dhaka to Istanbul. Still has not the time come when the world honestly unites against the Islamic terrorism? Shouldn’t it overcome the difference between the bad and good terrorism? IS is constantly being claimed to be weak, despite it some Muslim youth inspired with its ideology are making suicide attacks in the entire world. The Nice terrorist was also such a person. The way he was firing after crushing people and getting down from the truck shows that he was prepared to die. No one knows that where so many crazy obsessive are sitting in what garb. It may be said that IS has changed its strategy after weakening in Iraq-Syria. Now it has concentrated on terrorist attacks from place to place. Suicide attacks using vehicles to target innocent people seems to be the latest strategy of the Islamic State. Security forces in Iraq and Syria have the advantage that they can see the enemy in front and make air and ground assault directly. But preventing terrorist attacks on Brussels, Orlando, Dhaka, Nice and Istanbul is impossible because they live within the general public, look just like them. Such sleeper cells keep quiet for years and strike on their own time. Sadly, the world is still not united against this Islamic terrorism. The terrorists are fully utilizing the liberal European policies. It’s a matter of satisfaction that since the Modi government has come to power, not a single major terrorist attack happened in India. Leave aside Jammu & Kashmir where the game is different, the rest of India is still safe. Internet has become the great means of the terrorist groups today. Youth in many countries having been inspired by the terrorist publicity are joining the IS. The Nice attack shows that a single terrorist can create such havoc.  This is a new challenge and  to counter it the entire world would have to unite against this rising Islamic terrorism otherwise attacks like Nice would be continuing.

-        Anil Narendra