Thursday, 28 July 2016

ट्रेन की चपेट में आने वाले बच्चों की मौत : जिम्मेदार कौन?

उत्तर प्रदेश के भदोही में कटका-माधो सिंह स्टेशनों के बीच इलाहाबाद पैसेंजर ट्रेन हादसे का अत्यंत दुखद समाचार आया है। यहां एक रेलवे क्रॉसिंग पर स्कूल बस और ट्रेन की टक्कर में आठ बच्चों की मौत और कइयों के जख्मी होने की खबर दिल दहला देने वाली है। ज्यादा दुखद यह है कि यह दुर्घटना आसानी से टल सकती थी। यह दुर्घटना ड्राइवर की सरासर लापरवाही और गैर जिम्मेदार व्यवहार की वजह से हुई। रेल क्रॉसिंग वैसे भी असुरक्षित मानी जाती है। ताजा अतीत में कई स्कूल बसों के असुरक्षित रेलवे क्रॉसिंग पर दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं हुई हैं। रेल दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में से 60 प्रतिशत मौतें रेलवे क्रॉसिंग पर होती हैं। ताजा केस में सोमवार सुबह सवा सात बजे वाराणसी-इलाहाबाद रेल रूट पर माधो सिंह और कटका स्टेशनों के बीच कैयरमऊ रेलवे क्रॉसिंग पर स्कूल बस चालक की लापरवाही से हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार क्रॉसिंग के गेट मित्र रूपेश राय ने बस चालक को रुकने के लिए आवाज दी लेकिन ईयर फोन लगाने की वजह से वह न तो उसकी आवाज सुन सका, न ही ट्रेन की आवाज को। हादसे में चालक रशीद भी घायल हो गया। धोनिया स्थित टेंडर हार्ट्स पब्लिक स्कूल की टाटा मैजिक मिर्जापुर सीमा से लगे कैयरमऊ और मटियारी गांवों के बच्चों को स्कूल के लिए लेने गई थी। रेलवे क्रॉसिंग पार करते हुए यह हादसा हुआ। दुर्घटना में अर्पित मिश्रा (10), श्वेता मिश्रा (8), अनिकेत मिश्रा (7), नैतिक (9), प्रद्युम्न (13), अभिषेक (10), साक्षी (9) की मौके पर ही मौत हो गई। 12 बच्चे घायल हो गए। भारत में लगभग 30,000 रेलवे लेवल क्रॉसिंग हैं, जिनमें से करीब 11,000 क्रॉसिंग पूरी तरह असुरक्षित हैं। जहां न कोई गेट लगा है और न ही कोई रेलवे कर्मी तैनात रहता है। इन असुरक्षित क्रॉसिंग पर ही ज्यादातर दुर्घटनाएं होती हैं। इसके अलावा भी लोग जगह-जगह रेलवे पटरी पार करने की जगह बना लेते हैं, वहां भी काफी दुर्घटनाएं होती हैं, खासकर ऐसे शहरी इलाकों में। मुंबई में हर साल हजारों लोग पटरी पार करते हुए मारे जाते हैं। बुनियादी मुद्दा यह है कि रेलवे पटरियों पर नागरिकों की मौत का मुद्दा इतना गंभीर मुद्दा नहीं मानता और यही वजह है कि अरबों के बजट में इन अनमैन्ड रेलवे क्रॉसिंग पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध नहीं होते। वैधानिक प्रमाणों के मुताबिक अगर कोई ट्रेन 80 या 100 किलोमीटर प्रति घंटा जैसी तेज गति से आ रही हो तो उसकी दूरी का अंदाजा गलत होने की पूरी-पूरी आशंका होती है। इंसानी अंदाजा 50-60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाले वाहन के लिए ही ठीक होता है। रेलमंत्री और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए कि ऐसी क्रॉसिंग जिनसे 80 से 100 किलोमीटर रफ्तार की ट्रेनें गुजरती हैं उन पर तो पटरी पार करने के सुरक्षित इंतजाम करें। वाहन चालकों और पटरी पार करने वालों को भी क्रॉसिंग पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

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