Saturday 16 July 2016

पहले उत्तराखंड और अब अरुणाचल ः केंद्र को करारा झटका

अरुणाचल प्रदेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है। इससे पहले उत्तराखंड में भी राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसले को भी खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अरुणाचल की सात महीने पुरानी कांग्रेस सरकार बहाल करने का आदेश दे दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के फैसले को गलत और असंवैधानिक करार दिया। साथ ही अदालत ने 15 दिसम्बर 2015 से पहली वाली स्थिति बहाल करने का निर्देश दिया। गौरतलब है कि अरुणाचल की नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दिसम्बर में बर्खास्त कर दी गई थी। यह सही है कि कांग्रेस विधायक दल में बगावत के चलते नबाम तुकी सरकार का बहुमत संदिग्ध हो गया था पर राज्यपाल ने जो किया, उसे कतई निष्पक्ष और उनके पद के संवैधानिक दायित्व के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। अरुणाचल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली नबाम तुकी सरकार इसलिए संकट में आई थी, क्योंकि कांग्रेसी विधायकों ने ही उनके खिलाफ बगावत कर दी थी। चूंकि विधानसभा अध्यक्ष मुख्यमंत्री के भाई थे इसलिए उन्होंने खासतौर पर सत्तापक्ष को राहत देने वाले फैसले लिए। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दृष्टि से ऐतिहासिक कहा जाएगा क्योंकि पहली बार सत्ता से बाहर हो चुकी सरकार को फिर से बहाल किया गया है। पर बड़ा सवाल यहां यह भी है कि अगर नबाम तुकी विधानसभा में अपना बहुमत साबित नहीं कर सके तो? यह वह सवाल है जिसका जवाब ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वास्तविक महत्ता रेखांकित करेगा। एक तरह से अरुणाचल का फैसला अभी शेष है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जहां एक बार फिर कांग्रेस पार्टी व तमाम विपक्ष को संजीवनी मिली है वहीं संसद के मानसून सत्र में यह हंगामे का बड़ा मुद्दा बनने वाला है। चूंकि फैसला देश के सर्वोच्च न्यायालय का है, इसलिए सरकार के पास अपना बचाव करने के लिए विकल्प सीमित हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने घड़ी की सूई को पूरी तरह दिसम्बर 2015 की ओर मोड़ दिया है। जहां से संकट आरंभ हुआ था। नबाम तुकी की सरकार बहाल होगी और इस बीच कालिखो पुल सरकार ने जो भी निर्णय किया, वे सब असंवैधानिक माने जाएंगे। न्यायालय की टिप्पणियों का सीधा अर्थ है कि उसकी नजर में राज्यपाल द्वारा विधानसभा की बैठक बुलाना तथा विद्रोहियों के एजेंडे के अनुसार कार्यसूची निर्धारित करना असंवैधानिक था। इस फैसले से राज्यपाल राजखोवा पूरी तरह से कठघरे में खड़े हैं। चूंकि न्यायालय ने कह दिया है कि राज्यपाल केंद्र के एजेंट की तरह काम न करें, इसलिए केंद्र भी कठघरे में आ गया है। उत्तराखंड और अरुणाचल फैसलों का यही संदेश है कि नरेंद्र मोदी सरकार किसी भी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले गंभीरता से पहलुओं पर होमवर्प करे।

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